भाग:–२
एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।
आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..
आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..
जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।
आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…
जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...
केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।
आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।
केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?
आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...
केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।
आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।
आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।
रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।
निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।
आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?
निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?
आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?
निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।
आर्यमणि:- हां ..
निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।
आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।
निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।
आर्यमणि:- हम्मम !
निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।
निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..
आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...
चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?
आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?
चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।
आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।
चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।
आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।
चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।
आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।
चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।
आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।
चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..
सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।
निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?
दिव्या:- कैसी लग रही हूं?
निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"
आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?
दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"
"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"
"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"
आर्यमणि:- हम्मम!
निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।
दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।
निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।
दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...
निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।
दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"
आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।
आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"
आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।
दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।
आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।
दिव्या:- हम्मम। ठीक है..
आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।
दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..
आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?
आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..
आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…
"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…
निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..
आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।
शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।
जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...
चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।
आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।
चित्रा:- कहां..
आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..
चित्रा:- कहां .. यहां..
"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।
कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"
निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..
आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।
आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
Jaha ek taraf MA ne khari khoti sunai vahi dusri taraf bahan ne Mai apne sabd vapas Leta hu Ye to abhi 11th kr rhe hai to medical to kiya hi nhi hoga or papa bhi ingenier bnane vale hai...
Ye bahna to Hitlar lage hai manne pr itna khula vyavhar arya ne chitra madam ko dekh kr hi bta diya ki vo erotica padh rhi thi or usne kabool bhi kr liya (Vaise isme [erotica Padhne me] koi galat baat nhi hai jb tk yah limit me rhe, kyoki jindgi me har chij ka gyan jaruri hai)
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Arya ne taja mans ko isliye tahniyo me bandhvaya taki vo purnima ki raat ke hinsak jivo ko bhatka sake, ye Lopez ke khandahr me ab Kon karah rha hai or ye taji khudi mitti ke andar Kon ya kya dafan hai...
Superb bhai jabarjast sandar update Lajvab