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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–३



आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।


"आर्य तू खोद मैं खंडहर में देखता हूं।".. निशांत अपनी बात कहकर कॉटेज के ओर चल दिया, इधर बस 1 मिनट की खुदाई के बाद ही अंदर जो दफन था वो आंखों के सामने था... गहरा सदमा जैसे दफन था। गहरा आश्चर्य सा दफन था जैसे। आर्यमणि ने एक झलक मात्र तो देखा था और सदमे से वो चित गिड़ा। आर्यमणि को गहरा सदमा लगा। वह बेसुध होकर जमीन पर गिर गया और मुंह से बस मैत्री ही निकला.…


अंदर मैत्री की लाश थी, वो भी आधी। कमर के नीचे का पूरा हिस्सा गायब था और सीने पर वही लॉकेट रखा हुआ था जो मैत्री हमेशा पहना करती थी। आर्यमणि हैरानी से मैत्री को देखते हुए उसका चेहरे पर हाथ फेरने लगा। हाथ फेरने के क्रम में उसने वो लॉकेट जैसे ही अपने हाथ में लिया… कुछ अजीब सा नजारा आर्यमणि की आखों ने देखा। बिल्कुल सोच से परे। इससे पहले की आर्यमणि कुछ और सोचता, निशांत अंदर खंडहर से चिल्लाने लगा। आर्यमणि लॉकेट वापस रखकर गड्ढे को भड़ दिया और निशांत के पास पहुंचा।


आर्यमणि खंडहर में जैसे ही पहुंचा, वहां का नजारा भी बहुत अजीब था। एक बड़ा सा सरिया शूहोत्र के सीने में घुसा हुआ था। शूहोत्र की आंख हल्की खुली हुई और मुंह से दबी हुई दर्द भरी चींख निकल रही थी। शायद अपने दर्द पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था। आर्यमणि शूहोत्र के सर पर हाथ रखते हुए निशांत को देखने लगा… "यार, इसे कौन यहां सुलाकर चला गया।"


दूसरी ओर निशांत अपना पूरा बैग खोल चुका था। आर्यमणि ने तुरंत शूहोत्र का ब्लड प्रेशर चेक किया… "निशांत ब्लड प्रेशर बढ़ा है, टैबलेट निकाल।"… ब्लड प्रेशर कम करने की टैबलेट निकालकर.… शूहोत्र इसे अपने जीभ के नीचे रखो, हम ये सरिया निकालने वाले है।" ..


शूहोत्र सहमति में अपना सर हिला दिया। टैबलेट उसके जीभ के नीचे डालकर, दोनो कुछ देर रुके फिर निशांत सुहोत्र का सर अपने हाथ से पकड़कर… "हम सरिया निकालने वाले है, तुम तैयार हो।"


जैसे ही शूहोत्र ने सहमति में सिर हिलाया, आर्यमणि और निशांत की नजरे भी एक दूसरे से सहमति बना रही थी। आर्यमणि शूहोत्र के मुंह में कपड़े का टुकड़ा पुरा ठूंसकर, निशांत को इशारा किया। निशांत पुरा जोड़ लगाकर सरिया को खींचने लगा। सरिया नीचे से जमीन के अंदर घुसे होने के कारण धीरे–धीरे निकल रहा था और इसी के साथ शूहोत्र की पीड़ा भी अपने चरम पर थी। ऐसा लग रहा था दर्द से उसकी आंख बाहर निकल आएगी।


शूहोत्र चिंख़ने के लिए पुरा गला फाड़ रहा था लेकिन मुंह में कपड़ा और कपड़े के बीच में आर्यमणि के हाथ होने के कारण, उसकी चींख गले में ही अटकी हुई थी। तभी अचानक शूहोत्र की आखें बिल्कुल पीली हो गई, कपड़े के बीच में घुसा हुआ आर्यमणि का टेढ़ा किया हुआ हाथ में ऐसा लगा जैसे किसी ने काफी नुकीली कील घुसाकर हथेली फाड़ दी हो।


सरिया निकालने के साथ ही शूहोत्र बेहोश हो गया और आर्यमणि तेज चिंख्ते हुए अपनी कलाई झटका और अपना हाथ शूहोत्र के मुंह से बाहर निकाला। आर्यमणि ने जैसे ही हाथ झटका खून कि बूंद निशांत के चेहरे पर गई… "आर्य तुझे चोट कैसे लगी।"..


आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते हुए, टॉर्च की रौशनी को कलाई से ढक दिया…. "शूहोत्र को कोई मारने आया है, टॉर्च बंद कर।"…


तभी शूहोत्र आर्यमणि को खींचकर, उसका कान अपने होंठ के पास लाते…. "अभी समझने का वक़्त नहीं, यहां पुलिस बुलाओ, वरना तुम दोनो नहीं बचोगे। ये लोग प्रोफेशनल है, और अब तक पूरे जंगल में ट्रैप वायर बिछा चुके होंगे।"..


आर्यमणि:- निशांत ये लोग प्रोफेशनल है और जंगल में पुरा ट्रापवायर लगा है।


निशांत:- वायरलेस कर दे क्या?


आर्यमणि:- नहीं उन सबको खतरा हो सकता है। इसे लेकर हम छोटे रास्ते से जाएंगे। तुम बस शिकारी कुत्तों को भरमाने का इंतजाम करो।


निशांत:- समझो हो गया । तुम नीचे उतरने की व्यवस्था करो, मै इन शिकारी कुत्तों का इंतजाम करता हूं।


जंगल और यहां के शिकारियों से दोनो दोस्त काफी वाकिफ थे। इन्हे पता था कि जंगल के शिकारी, अपने शिकार के लिए शिकारी कुत्तों का इस्तमाल करते हैं जिसके सूंघने की क्षमता अद्भुत होती है।


इधर जबतक आर्यमणि ने छोटे रास्ते से जाने और 40 फिट नीचे खड़ी ढलान उतरने का इंतजाम किया, तबतक निशांत ने शिकारी कुत्तों के लिए जाल बुन दिया। कॉटेज से पीछे के ओर बढ़ने वाले पूरे रास्ते को, खून के अजीब गंध से भर दिया। जहां शूहोत्र को सरिया लगा था वहां पर भी खून को उड़ेल दिया, ताकि असली गंध शिकारी कुत्तों के नाक तक नहीं पहुंच पाए।


सब सेट हो गया था। जबतक ये दोनो शूहोत्र को लेकर निकलते, तबतक 20-25 टॉर्च की रौशनी उसी कॉटेज के ओर बढ़ रही थी। दोनो दोस्त ने उसे कंधे पर लादा और 40 फिट नीचे उतरकर, छोटे रास्ते से आगे बढ़ने लगे। खून की गंध ने उन छोटे रास्तों पर तो जैसे हलचल मचा रखा हो।


चारो ओर से आहट आने शुरू हो चुके थे। दोनो अपने साथ लाए छोटी सी मसाल जला लिए। वहां के जानवर आग और रौशनी देखकर कदम पीछे लेने लगे। लेकिन ये तो छोटे मोटे जानवर थे। रात का अंधेरा और इतना घने जंगल में जब खून कि बूंद गिरती हो तो भला शिकारी जानवरो को भनक क्यों ना लगे। देखते ही देखते तीनों को चारो ओर से लोमड़ीयां घेर चुकी थी। जैसे ही उनका पुरा झुंड ने तीनों को घेरा, लोमड़ियां तैयार हो चुकी थी हमला के लिए।


दर्द भरी आवाज़ में शूहोत्र कहने लगा…. "अंधेरा ही कर दो, और बढ़ते रहो। कोई जानवर हमला नहीं करेगा, ये मेरा वादा है। आगे एक किलोमीटर पर मेरी कार खड़ी है, जंगल से निकलकर सीधा एमजी हॉस्पिटल चलना।"


आर्यमणि ने विश्वास दिखाते हुए वहां अंधेरा कर दिया। निशांत और आर्यमणि दोनो को ऐसा लग रहा था मानो उसके साथ-साथ कई जानवर चल रहे है, लेकिन कोई हमला नहीं कर रहा।…. "कमाल है आर्य, पूर्णिमा की रात यहां की लोमड़ी आक्रमक नहीं है उल्टा हमारे साथ चल रही। ये ले एक और चमत्कार। कास कोहरे को छांटकर चांदनी की रौशनी आती तो मै देख पता कि यहां क्या हो रहा है?".. इधर शिकारियों का झुंड जैसे ही उस कॉटेज में पहुंचा, उनका मुखिया चिंखते हुए… "भाग गया वो कमीना। कैसे भी करके उसे ढूंढो। और खत्म कर दो।"


शिकारी कुत्तों को जैसे ही छोड़ा गया वो लोग दौड़ते हुए सीधा ट्रक पर पहुंच गए। वहां ट्रक को देखकर उनका मुखिया कहने लगा… "ओह तो हमारी जानकारी गलत थी, ये तो पूरी टीम के साथ आया है।"..


थोड़ी ही देर में वो लोग एमजी हॉस्पिटल में थे। शूहोत्र को इस हालत में देख तुरंत ही डॉक्टर इंड्रू गजमेर वहां पहुंची। शूहोत्र की हालत का जायजा लेकर उसे तुरंत ओटी में भेज दी और आर्यमणि के हाथ पर लगी पट्टी के नीचे बहते खून को देखती हुई कहने लगी…. "कव्या यहां आकर इस लड़के को अटेंड करो और इसकी चोट पर ड्रेसिंग करो।"… इंद्रू अपनी बात कहकर ओटी में निकल गई और काव्या, आर्यमणि को लेकर माइनर ओटी में चली आयी।


रात के तकरीबन 11.30 बज रहे थे। जैसे ही दोनो सिविल लाइन की सड़क से चलते हुए घर के ओर बढ़ रहे थे, सामने उनका रास्ता रोके चित्रा खड़ी थी…. "बाय आर्य, हम जा रहे हैं। यदि तुम मुझे बेहोश न करते तो शायद तुम्हे पता होता की पापा का ट्रांसफर हो चुका हैं। या फिर मेरे जाने का वैसे भी कोई अफसोस नहीं होता क्योंकि जब हम दोस्त ही नही तो फिर मेरे यहां रहने या ना रहने से तुम्हे क्या फक्र पड़ेगा। अब फिर कभी मैं जंगल के लिए नहीं रोकूंगी। तुम अपने मन मर्जी की करते रहो।"


चित्रा अपनी बात कहकर, निशांत का हाथ पकड़ी और वहां से सीधा अपने घर में चली गई। आर्यमणि थोड़ा मायूस जरूर हुआ सुनकर, लेकिन वो चुपचाप अपने घर चला आया। सुबह का पूरा माहौल ही कौतुहल से भरा हुआ था, जब पुलिस फोर्स एक सूचना के आधार पर जंगल पहुंची और वहां उन्हें ट्रक लगी मिली।


गंगटोक की हॉट न्यूज बनी हुई थी क्योंकि 2 आदमी के मरने कि खबर थी और मौके पर ट्रक मिली। और ट्रक में मिली आर्यमणि और निशांत की साइकिल। मामला ये नहीं था कि इनपर किसी भी तरह का खून करने का इल्ज़ाम था, बस मामला ये था कि इतनी रात को आखरी किसकी सूचना पर ये दोनो जंगल गए थे और पुलिस को क्यों नहीं इनफॉर्म किया?


आर्यमणि पूरी कहानी बनाते हुए कहा दिया… "निशांत जाने वाला था और उसकी जिद की वजह से वो जंगल गया था। जंगल जाकर उसे सिकारियों के होने का अनुभव हुआ और साथ में ये भी आभाष हुआ कि ये शिकारी पूरे जंगल में ट्रैप लगाए है, इसलिए रात को पुलिस को सूचित नहीं किया। ताकि कोई केजुअल्टी ना हो और खुद छोटे सस्ते से वापस आ गया।"..


जब क्रॉस वेरिफिकेशन हुआ तब आर्यमणि की सारी बातें सच निकली, केवल उसने शुहोत्र की पूरी कहानी को गायब कर दिया। लेकिन एक आश्चर्य की बात और हो गई जो आर्यमणि को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी… "पुलिस को कॉटेज के पास मैत्री की लाश क्यों नहीं मिली?"..


कुलकर्णी जी ने क्या क्लास लगाई आर्यमणि की। वो तो इतने आक्रोशित थे कि गुस्से में उन्होंने 4-5 चमेट भी लगा दिया। केशव और जया को तो सोचकर ही प्राण सूखे जा रहे थे कि कल रात कुछ भी उंच–नीच हो जाती तो आर्यमणि का क्या होता? दोनो ही दंपति अब तूल गए आर्यमणि को नागपुर भेजने।


आर्यमणि:- पापा, मम्मी, आप का गुस्सा सही लेकिन मै अभी गंगटोक छोड़कर नहीं जाऊंगा।


केशव, गुस्से में उसका गला पकड़कर दबाते हुए…. "क्यों नहीं जाएगा यहां से? या फिर हमे चिता पर लिटाने के बाद तुम्हे अक्ल आएगी, की हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते।"..


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं आप मेरे बिना जी नहीं सकते और मै मैत्री के बिना। ये बात आप नहीं जानते थे क्या पापा? मैंने आपसे कहा भी था मुझे जर्मनी भेज दो, तब तो आपने मुझे नहीं भेजा। तब आपका स्वार्थ, आपका प्यार, आपका बेटे के प्रति जिम्मेदारी आ गई, फिर आज क्यों मुझे भेज रहे हो?


जया, एक थप्पड़ लगाती…. "अभी इतना बड़ा हो गया है तू.… अपने पापा से ऊंची आवाज में बातें कर रहा। एक लड़की के प्यार को हमारे भावनाओं से तुलना कर रहा। एक बात मै साफ-साफ कहे देती हूं आर्य, आज ही तू यहां से भूमि के पास जाएगा।


आर्यमणि:- एक थप्पड़ क्या 10 मार लो, लेकिन मै अभी यहां से कहीं नहीं जाऊंगा। आप दोनो को पता है मै कोई ज़िद्दी नहीं, और ना ही आप लोगों को दुखी देखना चाहता हूं। लेकिन कल रात जब मै जंगल गया तो पीछे कई सारे सवाल छूट गए। जबतक मै उन सवालों के जवाब नहीं ढूंढ लेता, मै कहीं नहीं जाऊंगा।


दोनो दंपत्ति बात कर ही रहे थे, तभी हॉस्पिटल से कॉल आ गया। आर्यमणि, के पास 2 गार्ड को तैनात करके केशव उनसे साफ कहता गया, "आर्य निकलने की कोशिश करे तो सीधा पाऊं मे गोली मार देना।"


अपनी बात कहकर केशव और जया सीधा हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर इंड्रू गजमेर केशव और जया को अपने साथ लिए गई, जहां सुहोत्र एडमिट था। शूहोत्र को देखकर दोनो दंपत्ति थोड़ा हैरान होते.… "तुम यहां क्या कर रहे हो"?


शूहोत्र:- कैसी बातें करते हो, तुम्हारे बेटे ने कुछ भी नहीं बताया क्या?


जया:- क्या नहीं बताया?


शूहोत्र:- मैत्री का कत्ल हो गया और कल रात जिन 2 की लाश मैंने गिराई वो शिकारी थे। बदले मे उसने मेरे सीने मे भी सरिया घुसा दिया था।


मैत्री के मरने की खबर से ही जया और केशव के होश उड़ गए। दोनो आर्यमणि की हालत का अब पूरा अंदाजा लगा सकते थे। उसके बदले व्यवहार के पीछे का कारण समझ में आ चुका था... जया, शुहोत्र को सवालिया नजरों से देखती... "भाग्यशाली रहे जो शिकारियों के हाथ से बच निकले.….


शूहोत्र:- हां लेकिन मैत्री उतनी भाग्यशाली नहीं थी। ओह हां, अभी तो तुम दोनो का बेटा पागल बना हुआ होगा ना, मैत्री के कातिलों को ढूंढने के लिए।


जया:- अपनी जुबान संभाल कर। मैत्री ना तो तुम लोगों जैसी थी और वो ना कभी हो सकती थी। उसके कत्ल का सुनकर हमारे अंदर भी वही चल रहा है जो तुम्हारे अंदर। लेकिन आर्य को दूर ही रखो.…



शूहोत्र:- दूर रखना है तो ध्यान से सुन लो, मुझे शिकारियों से बचाकर यहां से सुरक्षित निकालो। वरना मैं तो अब किसी विधि जर्मनी निकल ही जाऊंगा, लेकिन जाने से पहले आर्यमणि को वो ज्ञान देता चला जाऊंगा, जिसके शाये से तुम अपने बेटे को दूर रखना चाहते थे।


केशव:- तुम्हे कब निकालना है?


शूहोत्र:- काफी गहरा ज़ख्म मिला है मुझे भी, लेकिन 2 दिन बाद की फ्लाइट है और मैं निश्चित जाऊंगा।


जया:- जिसने भी मैत्री को मारा है, फिर चाहे जो कोई भी हो, मेरा वादा है उसे मैं देख लूंगी। हमारा पूरा परिवार जिन मामलों से दूर है, उसमे घसीटने की कोशिश भी मत करना।


शूहोत्र:- ऐसा होता तो तुम्हारे बेटे को कल ही सरी बातें पता चल जाती। मेरी बहन को मार डाला, मै यहां पड़ा हूं, लेकिन फिर भी तुम दोनो को मैंने बुलवाया। मैं जानता हूं मैं यहां कुछ नहीं कर सकता। इसलिए जो कर सकते हैं, उन तक अपनी आवाज पहुंचा रहा हूं। मैं यहां खुद नहीं आया, मैत्री के पीछे आया था। हां लेकिन यहां से जाने से पहले इतना ही कहूंगा, मैत्री की चाहत ने उसकी जान ली है। पिछले कई सालों से मैत्री भी अपने परिवार की नहीं थी।


केशव:- हम आर्य को लेकर बहुत परेशान थे शायद यही वजह थी कि तुम्हारा दर्द देख नहीं पाए। तुम हॉस्पिटल से निकलने से पहले मुझे एक बार बता देना।


शूहोत्र:- तुमने इतना कह दिया काफी है। जाओ आर्यमणि को संभालो।


भले ही आर्यमणि खुद को कितना भी सामान्य दिखाने की कोशिश कर ले, किंतु मैत्री की लाश देखने के बाद वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं हो सकता। मैत्री की मौत की खबर सुनने के बाद दोनो दंपत्ति जैसे बेचैन हो गए हो। क्योंकि उन्हें पता था कि आर्यमणि को पता है कि मैत्री की लाश शिकारियों ने गिराई है और वो सुराग ढूंढ कर उसके पीछे जायेगा... आर्यमणि उन शिकारियों के पीछे, जिसके शाए से भी अब तक आर्यमणि को दूर रखा गया था।


दोनो दंपत्ति हड़बड़ी में घर पहुंचे, लेकिन पता चला आर्यमणि गायब है। दोनो भागते हुए जंगल पहुंचे। 400 पुलिसवालों ने लोपचे के पूरे खंडहर को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला।


इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…
Ye kya arya ke best friend chale gye premika ka katl ho gya, sath hi sikari bhi pichhe pade hai Jo alag hi mistary hai,
Lopje miya ko bchate huye arya ke hath me kaat liya tha Lopje ne ek man kahta hai ki ye sare werewolf hai jo chup kr rah rhe hai insano ke Bich or ye arya ke papa ma Kon se raaj se bcha rhe hai arya ko... Lopje jiske pichhe aaya tha Vo to mar gyi pr dekhne vali baat hai ki arya ko nhi btaya uske nature ko jante huye bhi, ki Vo chahe kuchh bhi ho jaye pta lga kr hi rahega... Arya ke papa ne 400 police valo ko jungle bheja hua hai arya ko dhundhne pr arya Ghar se guard ko chakhma dekr nye surag se Milne gya hai...
Aapne very well written Nainu bhaya... Superb update jabarjast sandar
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–4




इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…


पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..


मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


कुछ दिन बाद...


आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।


3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…


शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..


आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..


शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?


आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...


शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...


आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...


शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।


आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।


शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।


सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..


आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।


शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?


आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"


जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।


शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।


शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।



तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..


शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..


रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।


शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"


शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।


उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..


शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..


रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।


शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?


ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।


ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।


रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।


एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..


आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..


ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"


आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।


ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।


आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..


उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।


किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।


हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।


थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।


वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"


आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?


ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।


आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।


ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..


आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।


ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"


आर्यमणि:- ऐसा क्यों?


ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।


आर्यमणि:- हम्मम !


तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।


ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..


आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।


रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।
Ye kya baat hui bhai Alfa hona hai Jise vo shuhotr ka bita hai or ye Eden ki kya kahani hai Lagta hai jald hi arya Isko sabak sikhayega...
Eden yha ki mukhiya hai or vo yha sab control karti hai vahi yha 3 log ko chhod kr sab jashn Mna rhe hai ye maitri ki Saheli to gajab ki hai bhaya White Fox jiske sarir se kamukta ki gandh aati hai...
Dekhte hai arya ke behosh hone ke baad kya hua... Superb Nainu bhaya sandar jabarjast
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Waise ye Naina ke sath kya kaand ho gaya...
Sayad ban kr diya unhe, vo kuchh din dusri site pr dilhi thi, ab pta nhi kaha hongi...
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–5



रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।


आर्य के ख्यालों की गहराई मैत्री एक प्यारी सी तस्वीर बनने लगी जिसे देखकर आर्यमणि मुस्कुराने लगा…. "तुम मुझे बहुत प्यारे लगते थे आर्य, अपना ख्याल रखना।".. ख्यालों में आर्य का प्यार, उसे बड़े प्यार से देखती हुई अपना ख्याल रखने कह रही थी।


इधर आखें मूंदे आर्यमणि ख्यालों में ही था तभी उसे ऐसा लगा जैसे उसके कंधे फटकर फ़ैल रहे है। वही हाल पूरे शरीर का था और जब आखें खुली, फ्लोर पर गिरे खून की परछाई में खुद को देखा तो दंग रह गया। चौड़े पंजे बड़े–बड़े नाखून वाले। कान फैलकर लंबी हो गई, शरीर चौड़ा और पौराणिक कथाओं का वो रूप बदल इंसानी–भेड़िया के रूप में आर्यमणि खुद को देख रहा था। अंदर से पूरा आक्रमक और दिमाग में केवल और केवल खून की चाहत। आर्यमणि अपनी हथेली उठाकर सामने जो आया उसे फाड़ने की कोशिश करने लगा। पागलों की तरह चीखने और चिंघाड़ने लगा। बिल्कुल बेकाबू सा एक भेड़िया जो अपने सामने आने वाले पर हमला कर रहा था।


उसकी आक्रमता देखकर वुल्फ हाउस के सभी वुल्फ झूमने लगे, चिल्लाने लगे। सभी वेयरवोल्फ आर्यमणि के बदन से आ रही आकर्षक खून की खुशबू से, उसके बदन पर पागलों की तरह टूट पड़े। आर्यमणि एक पर हमला करता और 20 लोग उसके बदन के खून को जीभ से चाटकर साफ करते हुए, अपने दांत चुभो कर आर्यमणि का खून चूसने लग जाते। दर्द और अक्रमता का मिला जुला तेज आवाज आर्यमणि के मुंह से निकल रहा था। आर्यमणि के होश जैसे गुम थे। जो भी हो रहा था, उसपर आर्यमणि का कोई नियंत्रण नहीं था और न ही खुद के नोचे जाने को वह रोक सकता था। उसके आगे क्या हुआ आर्यमणि को नही पता। उसकी जब आखें खुली तब आसपास बिल्कुल अंधेरा था। उसके नंगे बदन पर पुरा मिट्टी चिपका हुए था। शरीर का अंग-अंग ऐसे टूट रहा था मानो उसमे जान ही बाकी नहीं हो।


कुछ देर तक तेज-तेज श्वांस अंदर बाहर करते, चारो ओर का माहौल देखने लगा। बड़े-बड़े दैत्याकार वृक्ष, चारो ओर सांझ जैसा माहोल। कहां जाना है कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी उसे ऐसा लगा जैसे उसके करीब से हवा गुजरी हो, और कुछ दूर जब आगे नजर गई तो ओशुन खड़ी थी।…. "काफी हॉट लग रहे हो आर्य।"


आर्यमणि ने जब ओशुन की नज़रों का पीछा किया, तब अपने हाथ से अपना लिंग छिपाते खुद को सिकोड़ लिया… खुद की हालत पर थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करते आर्य, ओशुन से कहने लगा.…. "क्या तुम मेरे लिए कुछ कपड़े ला सकती हो।"


ओशुन उसे देखकर हंसती हुई उसके करीब गई और कंधे से अपने ड्रेस को सरकाकर जमीन पर गिर जाने दी। ओशुन नीचे से अपनी पोशाक उठाकर आर्यमणि के ओर बढाती हुई… "लो ये पहन लो, मै ऐसे मैनेज कर लूंगी।"..


ओशुन केवल ब्रा और पैंटी में थी। उसके बदन का आकर्षण इतना कामुक था कि आर्यमणि की धैर्य और क्षमता दोनो जवाब दे रही थी, लेकिन किसी तरह खुद पर काबू रखते हुए… "नहीं, ये तुम ही पहन लो, और यहां से चलते है।"..


ओशुन, अपने बचे हुए कपड़े भी उतारकर… "मुझे कोई आपत्ती नहीं यदि यहां से मै नंगी भी जाऊं। यहां हमारे दूसरे प्रजाति के जितने भी शिकारी जानवर है, वो ऐसे ही नंगे रहते है। हां हम उनसे कुछ अलग है, तो हमे भी समझना होगा कि ये बीच की झिझक ना रहे। लेकिन तुम्हे जिस बात के लिए शर्मशार होना चाहिए, वो थी कल रात उन लोगों ने जो तुम्हारे साथ किया, ना की ये कपड़े।


आर्यमणि:- मुझे तो कुछ याद भी नहीं।


ओशुन:- हां मुझे पता है तुम्हे याद नहीं, और ना ही तुम्हे कभी याद आएगा, क्योंकि तुम इन लोगों के लिए खिलौने मात्र हो, जिससे ये हर रात अपना दिल बहलाएंगे। हर सुबह जब तुम जागोगे तो खुद को इसी तरह यूं ही बेबस पाओगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! समझ गया। चलो वुल्फ हाउस वापस चलते है। अपने कपड़े पहन लो, तुम्हे नंगे देखकर अजीब सा लग रहा है।


ओशुन:- अजीब क्यों लगेगा, हर कोई तो हॉर्नी ही फील करता है। हां तुम जब होश में होते हो तो खुद को बहुत काबू में रखते हो, ये बात मानने वाली है।


"अब ऐसे दिन आ गए की इसके साथ संभोग करोगी, मै क्या मर गया था ओशुन। हम लोगों को तुम दूर ही फटका कर रखती हो, इस नपुंसक में तुम्हे क्या दिख गया या फिर अपना निजी गुलाम रखने का इरादा तो नहीं?"… वेयरवुल्फ के झुंड से किसी ने ओशुन पर तंज कसा...


"मत सुनो उनकी आओ मेरे पीछे"….. ओशुन अपने कपड़े पहनती हुई कही और दौड़ लगा दी।


आर्यमणि में इतनी हिम्मत नहीं की वो ढंग से चल सके, ओशुन तो क्षण भर में नज़रों से ओझल होने वाले गति में थी। आर्यमणि थका सा ओशुन की दिशा में चल रहा था। जैसे ही वो कुछ दूर आगे बढ़ा पीछे से उसे एक लात परी और वो आगे जमीन पर मुंह के बल गिर गया।


आर्यमणि खड़ा होकर अपने चारो ओर देखा, कहीं कोई नहीं था। वो फिर से आगे बढ़ने लगा। तभी उसे आभाष हुआ कि कोई सामने से आ रहा है। वो किनारे होने की कोशिश करने लगा, लेकिन तभी सामने से उसके अंडकोष पर तेज लात परी और दर्द से बिलबिलाता हुआ वो बेहोश हो गया।


आखें जब खुली तब कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा था। चारो ओर घनघोर अंधेरा। कानो में भेड़ियों के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। इधर से आर्यमणि भी चिल्लाने लगा। जैसे ही सबने आर्यमणि की आवाज़ सुनी, भेड़ियों का बड़ा सा झुंड उसके समीप आकर खड़ा हो गया। फिर तो सभी भेड़िए जैसे पागल हो गए हो। हर कोई अपना फेंग (बड़े नुकीले दांत) आर्यमणि के शरीर में घुसाकर खून चूसने लगा। कुछ मनमौजी वेयरवॉल्फ आर्यमणि के पिछवाड़े कांटेदार तार में लिपटी डंडे घुसा रहे थे, तो कोई बॉटल ही घुसेड़ देता। हालत बेसुध सी थी। 20 नोचने वाले एक साथ लगे होते, तो 20 अपनी बारी आने का इंतजार करते। बिलकुल किसी खौफनाक सपने की तरह।


आर्यमणि के लिए क्या भोर और क्या सांझ। आंखे जब भी खुलती चारो ओर अंधेरा। नंगा बदन पूरा मिट्टी में लिप्त और पूरे शरीर में बस आंख की पुतलियां ही आर्यमणि हिला सकता था, बाकी इतनी जान नही बची होती की वो उंगली भी हिला सके। आंख खुलने के बाद जैसे–जैसे वक्त बीतता शरीर में कुछ–कुछ ऊर्जा का संचार होने लगता। और जैसे ही आर्यमणि उठकर खड़ा होता, फिर से वही सब दोहराने लगता।


जैसे एक चक्र सा बन गया हो। आंख खुली और लगभग 2 घंटे में पूरी ऊर्जा समेटने के बाद फिर से वेयरवोल्फ की कुरूरता शुरू। किसी एक दिन जब आर्य की आखें खुली उसके साथ एक ही अच्छी बात हुई, उसके बदन पर पानी की फुहार पड़ी, रोम-रोम खिल उठा। लेकिन ये खुशी कुछ देर की ही मेहमान थी। क्योंकि पूरे चंद्रमा अर्थात पूर्णिमा की रात थी जिसमे वेयरवोल्फ की ताकत और आक्रमता अपने चरम पर होती है। शाम ढल चुकी थी और उगते हुए चंद्रमा के साथ आर्यमणि का वुल्फ भी खुद व खुद बाहर आने लगा था।


जैसे ही उसके अंदर का वुल्फ बाहर आया वो पूरी तरह से आक्रमक हो चुका था। घनघोर अंधेरे मे भी सामने का नजारा सब कुछ साफ़-साफ़ नजर आ रहा था। चारो ओर ईडन और उसके वुल्फ तेज-तेज हंस रहे थे। आर्यमणि ने उन सब पर हमला करना शुरू कर दिया और फिर से वही नतीजा हुआ। हर कोई उसके बदन से लगा हुए था और और अपने तेज दांत चुभोकर अंदर के खून को चूसना शुरू कर चुका था।


एक बार फिर से वही सब दोहराया गया। आर्यमणि की जब आखें खुली, फिर से चारो ओर का वैसा ही नजारा था। जंगल के बीच बिल्कुल काला घनघोर माहौल। ऐसा लगा रहा था जैसे ब्लैक फॉरेस्ट में उसकी किस्मत ही ब्लैक लिखी जा चुकी है।


एक दिन जब आर्यमणि की आंखे खुली, ओशुन उसके करीब थी, लेकिन आज आर्यमणि के पास ना तो कहने के लिए कोई शब्द थे और ना ही कुछ सुनने का मन था। शायद ओशुन उसकी भावना को पढ़ चुकी थी… "तुम वही आर्यमणि हो ना जो विषम से विषम परिस्थिति में भी निकलने का क्षमता रखता है।"..


आर्यमणि:- प्लीज तुम यहां से चली जाओ। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।


ओशुन:- तुम यदि सोचते हो कि शूहोत्र तुम्हारे पास आएगा और तुम्हे ब्लैक फॉरेस्ट से निकालकर वापस इंडिया भेज देगा तो तुम बहुत बड़े बेवकूफ हो। हां उसका लगाव मैत्री से काफी अधिक था, लेकिन इस चक्कर में वो 3 नियम तोड़ चुका है और जितनी सजा तुम्हे यहां मिल रही है, तुम्हे यहां फंसाकर वो अपनी गलती सुधार चुका है, वरना तुम्हारी जगह अभी सुहोत्र होता। अभी वो वुल्फ हाउस में बड़े मज़े की जिंदगी जी रहा है।


आर्यमणि हैरानी से ओशुन के ओर देखते हुए मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो ऐसा क्या हो गया जो शुहोत्र ने मुझे फंसा दिया? ओशुन उसके आखों कि भाषा को समझती हुई कहने लगी…

"एक वुल्फ पैक में एक अल्फा होता है और एक हॉफ अल्फा होते है। उसके नीचे बीटा होता है। अल्फा के मिलन या बाइट से एक कमजोर बीटा पैदा होता है। वैसे मैं बता दूं कि बाइट के अलग नियम है। जिस इंसान को अल्फा वेयरवोल्फ का बाइट दिया गया हो, अगर उस इंसानी शरीर के इम्यून सिस्टम ने बाइट के बाद चेंज को एक्सेप्ट किया तभी वह वेयरवॉल्फ बन सकता है, वरना मर जायेगा।"

"जबकि एक बीटा वुल्फ कभी भी अपने बाइट से दूसरा बीटा नहीं बना सकता है। तुम्हे या तो शूहोत्र के बाइट से मर जाना चाहिए था या फिर जिंदा बच गए तो बीटा यानी शूहोत्र का काम था तुम्हे मार देना। अब सुनो सुहोत्र ने अपने पैक के कौन–कौन नियम भंग किया था। शूहोत्र की पहली गलती, सबके मना करने के बावजूद वो अकेला गया, वुल्फ पैक का सबसे बड़ा नियम टूटा। दूसरी गलती उसने अपनी बाइट तुम्हे दी, फिर चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। तीसरी गलती जब तुम उसके बाइट से जिंदा बच गए तो तुम्हे मारा क्यों नहीं?"

"अब तुम्हे जारा यहां की कहानी भी बता दू। ईडन, वुल्फ फैमिली की सबसे शक्तिशाली वुल्फ है। उसे फर्स्ट अल्फा कहा जाता है। इसके अंदर 3-4 वुल्फ पैक रहते हैं जैसे कि तुम यहां देख रहे हो। आर्य, शूहोत्र को हमदर्दी तो है तुमसे, लेकिन जब खुद की जान बचानी होती है तो लोग स्वार्थी हो जाते है।"

"पैक से निकाले गए वुल्फ को ओमेगा कहते है। एक ओमेगा की जिंदगी कितने दिनों की होती है, ये बात शूहोत्र को मैत्री के मौत के साथ ही समझ में आ चुकी थी। यहां के लोगों के लिए एक रात के मनोरंजन के लिए तुम्हे यहां लाया गया था। हर कोई यही समझ रहा था कि एक बीटा ने तुम्हे काटा है और तुम केवल जिंदा बच गए हो। तुम्हारे अंदर का ताजा खून चूसकर तुम्हे उस सभा में नोचकर मार डालने का प्लान था, लेकिन तुम्हारी किस्मत उससे भी ज्यादा खराब निकली।"

"तुम दुनिया के सबसे दुर्बल वुल्फ बने, जिसमे केवल घाव भरने की क्षमता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं। तुम्हे खुद भी पता नहीं तुम रात को क्या खाते हो, सुबह को क्या खाते हो। जरा देखो अपनी ओर। कुछ दिनों में तुम्हरे बदन का बचा मांस भी खत्म हो जाएगा। फिक्र मत करो तुम फिर भी नहीं मारोगे। जब आखें खुलेगी तुम खुद को यहां पाओगे। बिल्कुल तन्हा, अकेला और लाचार। ना तो तुम यहां किसी से लड़ सकते हो और ना ही मर सकते हो। कल मैंने तुम्हे बाइट किया था अंदर झांकने और जानते हो क्या पाई…"


आर्यमणि:- क्या ?


ओशुन:- "जंगल में जब तुम उस औरत दिव्या की जान बचाकर वहां शूहोत्र को देखे, तो 6 महीने से जिसकी कोई खबर नहीं मिली, यानी की तुम्हारा प्यार मैत्री, उसके बारे में तुम्हे कोई तो खबर मिले, बस इसी इरादे से तुम उसी वक़्त शूहोत्र से मिलना चाह रहे थे। लेकिन फिर तुम्हारी नज़र वहां के मिट्टी पर गई और तुम्हारा दिल जोड़ों से धड़का। तुम्हे ऐसा मेहसूस हुआ जैसे तुम्हारी सारी खुशियां इसी मिट्टी के अंदर दफन है।"

"इसी एहसास ने तुम्हे पागल कर दिया। लेकिन उस वक़्त पुलिस आने वाली थी और तुम वहां खुदाई नहीं कर सकते थे, बस इसी के चलते तुम्हे रात में आना पड़ा। तुमने जब मैत्री का आधा कटा धर देखा तब तुम अंदर से रोए लेकिन ऊपर आशु नहीं थे। उस लॉकेट मे कोई जादू नहीं था, बस मैत्री की रोती हुई आत्मा थी, जो तुम्हे अपना असली रूप दिखा रही थी और वहां से भागने कह रही थी। जब मै तुम्हारे रिश्ते की गहराई को समझ सकती हूं तो फिर शूहोत्र क्यों नहीं।"

"शूहोत्र के उस बाइट का नतीजा यह हुआ कि वो अपने पैक में सामिल हो गया और तुम यहां कीड़े की ज़िंदगी जी रहे हो। सुहोत्र बाइट देने के साथ ही सब कुछ प्लान कर चुका था, जबकि उस वक्त तुम उसकी जान बचा रहे थे और वो तुम्हे पूरी तरह से फसाने का प्लान बना रहा था। आर्य हर अच्छाई, अच्छा नतीजा नहीं लाती।"


आर्यमणि:- ओशुन क्या तुम मुझे यहां से निकलने में मदद करोगी?


ओशुन:- मै नियम से बंधी हूं आर्य। तुम्हे मैंने जितनी भी बातें बताई वो मै बता सकती हूं, इसलिए बताई। ना तो तुम्हे यहां अपने सवालों के जवाब मिलेगा और ना ही जिंदगी। जाते-जाते एक ही बात कहूंगी… शुहोत्र की जान बचाने के लिए, जिन शिकारीयों को उस रात तुमने चकमा दिया था, उसे यहां के 2 अल्फा पैक साथ मिलकर भी चकमा नहीं दे सकते थे। अब मै चलती हूं। अपना ख्याल रखना।


जब शरीर ही पूरा खत्म हो गया हो। निर्बलता और तृष्कार ने जहां दिमाग को सदमे में भेज दिया हो। ऐसे इंसान को कही गई बात कितनी समझ आएगी और वो कही गई बातों का कितना अर्थपूर्ण आकलन कर पाएगा। ओशुन, भंवर में फंसे आर्यमणि का चक्र तोड़कर उसे यह एहसास करवाने की कोशिश तो कर गई, "की वह क्या है और उसकी क्या क्षमता है?"


लेकिन क्या आर्यमणि के अंदर वह हौसला बचा था, जो कभी वो गंगटोक के जंगल में प्रदर्शित करता था? क्या वही आत्मविश्वास और किसी भी विषम परिस्थिति से निकलने का जोश अब भी बचा था?
Is update se kafi kuchh samajh me aane lga hai ki akhir yha ho kya rha hai...
Osun ne Pahle use yha se nikalne ka kaha tha pr arya ki halat kharab hone ke chalte vo vha se jald nhi nikal saka or natija yha itne dino se mar mar ke ji rha hai roj usko noch noch kr kha rhe hai...
Arya ne socha tha ki shuhotr use yha maitri ki family se milane laya hai pr Vo to sadyantra bnaye baitha tha or yha lakr fsa diya arya ko...
Osun ne arya ko situation se rubaru to karva diya pr Jaisa ki Nainu bhaya ne btaya ki kya abhi bhi arya ke andar vo samajh vo ladne ka jajba vo josh baki hai ya nhi... Kya hi amazing update hai bhai superb update jabarjast sandar
 

Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
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भाग:–9


भूमि प्रिंसिपल से बात करके वहां से निकल गई। दोनो लड़कियां भी आराम से बैठकर कॉफी पीने लगी।…

"पलक तूने हरप्रीत की बात बताकर गलत की है। देख अपनी टेबल खाली हो गई। 2 महीने के लिए माधव बुक हो गया और निशांत को हवा लग गई। 4 साल ये हरप्रीत के साथ निकाल देगा।"..


पलक:- और उसकी पहले कि गर्लफ्रेंड जो गंगटोक में थी, उससे ब्रेकअप कर लिया क्या?


चित्रा:- गर्लफ्रेंड थी लवर नहीं। कुत्ते ने पलट कर फोन भी नहीं किया होगा।


पलक:- फिर तो ये धोका हुआ।


चित्रा:- धोखा काहे का पलक। ये जिस दिन नागपुर आया इसकी गर्लफ्रेंड ने पहले एफबी स्टेटस चेंज किया, नाउ आई एम् सिंगल।


पलक:- और तुम जब नागपुर आयी तब तुम्हारे किसी बॉयफ्रेंड ने तुम्हे कॉल नहीं किया?


चित्रा:- ब्वॉयफ्रैंड तो था लेकिन इतना फट्टू की आर्य और निशांत के सामने कभी आने की हिम्मत ही न हुई और पीछे में मिलने के लिए शाम का वक़्त मिलता था जिसमें मै मिलती नहीं थी।


पलक:- क्यों?


चित्रा:- पागल, शाम रोमांटिक होती है ना, खुद पर काबू ना रहा तो।


पलक:- हां ये भी सही है। तो तुमने ब्रेकअप कर लिया।


चित्रा:- हां लगभग ब्रेकअप ही समझो। वैसे तुम्हे देखकर लगता नहीं कि तुम्हारा भी कोई बॉयफ्रेंड होगा।


पलक:- नहीं ऐसी बात नहीं है। अमरावती में एक ने मुझे परपोज किया था।


चित्रा:- फिर क्या हुआ।


पलक:- 2 दिन बाद मुझसे कहता है तुम बोरिंग हो।


चित्रा:- फिर तुमने क्या कहा।


पलक:- मैंने थैंक्स कहा और बात खत्म।


किसी एक रात का वक़्त… नागपुर के बड़ा सा हॉल, जिसमें पूरे महाराष्ट्र के बड़े-बड़े उद्योगपति, पॉलिटीशियन और बड़े-बड़े अधिकारी एक मीटिंग में पहुंचे हुए थे। लगभग हजारों वर्ष पूर्व शुरू हुई एक संस्था, जिसके संस्थापक सदस्य और पहले मुखिया वैधायन भारद्वाज की प्रहरी संस्था थी। प्रहरी यानी कि पहरा देने वाला। इनका मुख्य काम सुपरनेचुरल और इंसानों के बीच शांति बनाए रखना था। यधपी इंसानों को आभाष भी नहीं था कि उनके बीच इंसान के वेश में सुपरनेचुरल रहते थे।


प्रहरी का काम गुप्त रूप से होता था। ये अपने लोगों को उन सुपरनैचुरल से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करते थे, जो इंसानों के रक्त पीते, उन्हें मारते और खुद को श्रेष्ठ समझते। इसके अलावा सुपरनैचुरल जीवों के बीच क्षेत्र को लेकर आपसी खूनी जंग आम बात थी। जबतक 2 समूह आपस में क्षेत्र के लिए लड़ते और मरते थे, तबतक प्रहरी को कोई आपत्ति नहीं थी। किन्तु दोनो के आपस की लड़ाई में जैसे ही कोई इंसान निशाना बनता, फिर प्रहरी इन दोनों के इलाके में घुसते थे।


प्राचीन काल से ही वैधायन के इस प्रहरी समूह को शुरू से गुप्त रूप से प्रसाशन का पूरा समर्थन रहा है। इसलिए इनके काम को सुचारू रूप से चलाने के लिए इनको शहर का मुख्य व्यावसायिक बना दिया जाता था, ताकि काम करने के लिए या मूलभूत चीजों की खरीदी, बिना किसी पर आश्रित रहकर किया जा सके। यही वजह थी कि ये प्रहरी आज के समय में जहां भी थे, अरबपति ही थे।


ऐसा नहीं था कि इस समूह में भ्रष्ट्राचार नहीं आया। बहुत से लोग धन को देखकर काम करना बंद कर दिए तो उनकी जगह कई नए लोगो ने ले लिए। प्रहरी जो भी थे उन्हें तो पहले यह सिखाया जाता था कि जो भी धन उनके पास है, वो लोगो द्वारा दी गई संपत्ति है। केवल इस उद्देश्य से कि प्रहरी रक्षा करता है, और इस कार्य में प्रहरी या उसका परिवार आर्थिक तंगी से ना गुजरे।


इसी तथ्य के साथ प्रहरी छोड़ने के 2 नियम विख्यात थे, जो सभी मानने पर विवश थे। पहला नियम प्रहरी के पास का धन प्रहरी को उसके काम में सुविधा देने के लिए है, इसलिए यदि कोई प्रहरी का काम को छोड़ता है, तो उसे अपनी 60% संपत्ति प्रहरी के समूह में देनी होगी। दूसरा नियम यह कहता है कि यदि किसी को प्रहरी से निष्काशित किया गया हो तो उसकी कुल धन सम्पत्ति प्रहरी संस्था की होगी।


वैधायन कुल के 2 परिवार जो इस वक़्त खड़े थे… केशव भारद्वाज और उसका चचेरा छोटा भाई उज़्ज़वल भारद्वाज। उनके बच्चे आजकल प्रहरी के काम को देख रहे थे। मीटिंग की शूरवात मेंबर कॉर्डिनेटर और प्रहरी ग्रुप की सबसे चहेती भूमि देसाई ने शुरू की…. "लगता है प्रहरी का जोश खत्म हो गया है। आज वो आवाज़ नहीं आ रही जो पहले आया करती थी।"...


तभी पूरे हॉल में एक साथ आवाज़ गूंजी… "हम इंसान और शैतान के बीच की दीवार है, कर्म पथ पर चलते रहना हमारा काम। हम तमाम उम्र सेवा का वादा करते है।"


भूमि:- यें हुई ना बात। वैसे आज मुझे कुछ जरूरी प्रस्ताव देने है, इसलिए अध्यक्ष विश्व देसाई (भूमि का ससुर) और ऊप—अध्यक्ष तेजस भारद्वाज (भूमि का बड़ा भाई) की कोई बात सुनना चाहता है तो हाथ ऊपर कर दे, नहीं तो मै ही मीटिंग लूंगी।


जयदेव (भूमि का पति)… "घर पर भी सुनो और यहां भी, मुझे नहीं सुनना भूमि को। बाबा (विश्व देसाई) को ही बोलो, वो ही बोले, या तेजस दादा बोल ले।"..


तभी भिड़ से एक लड़का बोला… "जयदेव भाव, भूमि को सुनने का अपना ही मजा है। वो तो शुक्र मनाओ सुकेश काका (भूमि के पिता) ने मेरा रिश्ता ये कहकर कैंसल कर दिया कि मैं अभी बहुत छोटा हूं। वैसे मै अब भी लगन के लिए तैयार हूं यदि भूमि तुम्हे छोड़कर आना चाहे तो।"..


भूमि:- बस रे माणिक, अब कुछ नहीं हो सकता। हम लोग मीटिंग पर ध्यान दे दे। वैसे सबसे पीछे से एक लड़का जो चुप है, आज पहली बार मीटिंग में आ रहा अनुराग, उसे मै यहां बुलाना चाहूंगी।


बाल्यावस्था से किशोर अवस्था में कदम रख रहा एक लड़का मंच पर आया। भूमि उसका परिचय करवाती हुई कहने लगी… "ये है हमारे बीच का सबसे छोटा प्रहरी, कौन इसे अपना उतराधिकारी चुन रहा है, हाथ उठाए।"..


भूमि, उठे हाथ में से एक का चुनाव करती… "कुबेर आज से अनुराग की जिम्मेदारी तुम्हारी।".. फिर भूमि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के ओर देखती… "क्यों काका, क्यों दादा.. कौन लेने आ रहा है मीटिंग"


विश्व:- भूमि तू ही लेले मीटिंग।


भूमि:- अब सब शांत होकर सुनेगे। ये कब तक बूढ़े लोगो को अध्यक्ष बनाए रहेंगे। मेरे बाबा ने रिटायरमेंट ले ली। मेरे काका ने रिटायरमेंट ले ली। विश्व काका भी रिटायरमेंट प्लान कर रहे है। इसलिए मै नए अध्यक्ष के लिए माणिक, पंकज और कुशल का नाम प्रस्तावित करती हूं। तीनों ही तैयार रहेंगे। बाद में किसी ने ना नुकुर किया तो ट्रेनिंग हॉल में उल्टा टांग कर बाकियों को उसपर ही अभ्यास करवाऊंगी।


भूमि इतना ही कही थी कि पीछे से कुछ आवाज़ आयी…. तभी भूमि की तेज आवाज गूंजी.… "मैंने कहा सभी शांत रहेंगे, मतलब सबके लिए था वो। किसी को प्रस्ताव से परेशानी है तो अपना मत लिखकर देंगे। दूसरा प्रस्ताव है, मै जल्द ही अपना उतराधिकारी घोषित करूंगी। इसके अलावा राजदीप को मै मेंबर कॉर्डिनेटर का स्वतंत्र प्रभार देती हूं, आने वाले समय में वो मेरी जगह लेगा।"

"बाकियों के लिए मीटिंग खत्म हो गई है। नागपुर के प्रहरी विशेष ध्यान देंगे। मलाजखंड के जंगलों के सुपरनैचुरल और सरदार खान के बीच खूनी जंग शुरू है। हर प्रहरी उस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देंगे। यदि एक भी आम इंसान परेशान हुएक्स1 तो हम सरदार खान के इलाके के साथ मलाजखंड के जंगल घुसेंगे।"…

"बाकी सारी डिटेल पोस्ट कर दिया है, क्यों हमे सरदार खान का साथ देना चाहिए। आप लोग उसे पढ़ सकते है। इसी के साथ मीटिंग समापन होता है। प्रस्ताव से किसी को भी कोई परेशानी हो तो अपना लिखित मत जरूर दें।"


मीटिंग खत्म हो गई, हर कोई जाने लगा। तभी भूमि एक लड़के को रोकती हुई… "हां महा उस वक़्त तुम कुछ कहना चाह रहे थे।"..


महा:- भूमि दीदी मै तो यह कह रहा था कि तेजस दादा का नाम क्यों नहीं है अध्यक्ष में।


भूमि:- क्या तू महा। देख दादा (तेजस) ने पहले लिखित मना किया है कि वो अभी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते। इसके अलावा माणिक और कुशल उभरते हुए लोग है। आज मै उन्हें आगे बढ़ाऊंगी तभी तो वो भी तुम सबको आगे बढ़ाएगा। ये एक कल्चर है महा, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे पूर्वजों ने हमारे आने वाली जेनरेशन को दिया है। तभी तो इतने स्वार्थी और धूर्त लोग होने के बावजूद भी ये समूह आज भी खड़ा है।


महा:- समझ गया दीदी।


भूमि:- बाकी सॉरी हां.. कभी-कभी थोड़ी सी मै स्ट्रिक्ट हो जाती हूं।


भूमि अपनी बात समझाकर वहां से निकल गई। मीटिंग खत्म करके भूमि सीधा अपने मायके पहुंची। पूरा परिवार हॉल में बैठा हुआ था। आई, मीनाक्षी भारद्वाज, बाबा सुकेश भारद्वाज, बड़ा भाई तेजस और साथ में उसकी पत्नी वैदेही। दो बच्चे मयंक और शैली भारद्वाज। इन सबके बीच आर्यमणि का परिवार, मां जया कुलकर्णी और पिता केशव कुलकर्णी बैठे हुए थे। रिश्ते में जया और मीनाक्षी दोनो सगी बहनें थी।



भूमि अपने पति जयदेव के साथ पहुंची, और सबका उतरा चेहरा देखकर… "आर्य की कोई खबर नहीं..."..


मीनाक्षी:- नहीं आयी तो नहीं आये। उसे इतनी अक्ल नहीं की कहीं भी रहे एक बार फोन कर ले। हम तो अपने नहीं है, कम से कम जया से तो बात कर लेता। जिस दिन वो मिल गया ना टांगे तोड़कर घर में बिठा दूंगी।


भूमि:- मौसा जी को भी क्या जरूरत थी जंगल की बात को लेकर इतना खींचने की। वो समझते नहीं है क्या, जवान लड़का है, बात बुरी लग सकती है। कच्ची उम्र थी उसकी भी...


केशव कुलकर्णी:- नहीं आर्य उन लड़कों में से नहीं है जो अपने आई-बाबा की बात सुनकर घर छोड़कर चला जाए। उसे मैत्री लोपचे की मौत का सदमा लगा था शायद, और मती भ्रम होने के कारण वह कहीं भी भटक रहा होगा। वरना उसे यूएस जाने की क्या जरूरत थी।


भूमि:- मौसा यूएस 500 या हजार रुपए में नहीं जाते। आर्य को जरूर कोई ले गया है। या फिर वो मैत्री के मौत का पता लगाने के लिए जर्मनी तो नहीं पहुंच गया।


सुकेश:- जर्मनी में मैंने शिकारियों से पता लगवाया था। वो लोग वुल्फ हाउस में खुद तहकीकात करके आए थे। वहां आर्य तो क्या, कोई भी नही था।


भूमि:- बाबा मै बस इतना जानती हूं कि मेरा भाई मुसीबत में है और इस वक़्त वो बिना पैसे और बिना किसी सहारे के अकेला होगा। जयदेव अपने कुछ लोगो को लेकर मै आर्य का पता लगाने यूएस जाऊंगी, क्या तुम तबतक यहां का सारा काम देख लोगे?


वैदेही:- मै इस वक़्त खाली हूं। तुम्हारे हिस्से का सारा काम मै और नम्रता मिलकर देख लेंगे। तुम बेफिक्र होकर जाओ।


भूमि:- आप सब हौसला रखो। अपने भाई को लेकर ही लौटूंगी...


कुछ दिन बाद भूमि अपने भरोसे के 10 शिकारियों के साथ वो यूएस निकल गई। इंडियन एंबेसी जाकर भूमि ने आर्य की पासपोर्ट डिटेल दी और लापता होने के बाद कहां-कहां पहुंचा है उसकी जानकारी ली।


खुद 5 दिन यूएस स्थित इंडियन एंबेसी में रुकी और उस वक्त आर्यमणि के साथ आए सभी पैसेंजर लिस्ट निकालने के बाद, वो उनके एड्रेस पर जाकर क्रॉस चेक की। यूएस में दूसरे शिकारियों से भी मिली और उसे आर्यमणि की तस्वीर दिखाते हुए ढूंढने के लिए कहने लगी।


लगभग 2 महीने तक भूमि ने यूएस से लेकर यूरोप कि खाक छानी। जर्मनी वुल्फ हाउस भी गई, लेकिन आर्य का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिला। वो तो हार चुकी थी और शायद अंदर से टूट भी चुकी थी, लेकिन बाकियों को हौसला देने के लिए उसने झूट का भ्रम फैला दिया। एक कंप्यूटर एक्सपर्ट से मिलकर आर्य की रियल दिखने वाली होलोग्राफिक इमेज तैयार करवाई। हर किसी को वीडियो कॉल पर उसे दिखा दिया, लेकिन सबको एक बार देखने के बाद वर्चुअल आर्य ने फोन कट कर दिया।


भूमि के पास जैसे ही कॉल आया उसने सबको यही बताया कि आर्य उससे भी बात नहीं कर रहा। केवल इतना ही कहा कि "पापा मुझे बाहर भेजना चाहते थे इसलिए आ गया। जब बाहर रहने से मै ऊब जाऊंगा चला आऊंगा।" और हां आज के बाद वो ये जगह भी छोड़ रहा है। अभी उसका मन पुरा भटकने का हो रहा है। पैसे की चिंता ना करे, वो जिन लोगो के साथ भटक रहा है उन्हीं के साथ काम भी कर लेता है और पैसे भी कमा लेता है।


भूमि की बातो पर सबको यकीन था क्योंकि झूट बोलकर सांत्वना देना भूमि के आदतों में नहीं था। इसलिए हर कोई आर्यमणि की खबर सुनकर खुश था। भूमि लगभग 75 दिनों बाद लौट तो आयी लेकिन अंदर से यही प्रार्थना कर रही थी कि उसका भाई जहां भी हो सुरक्षित हो और जल्दी लौट आए।


इधर 75 दिन बाद भूमि भी लौट रही थी और 3 महीने अवकाश के बाद माधव भी कॉलेज लौट रहा था। माधव को देखकर चित्रा खुश होते हुए उसके गले लग गई… "वेलकम बैक, हड्डी"।


फिर निशांत भी उसके गले लगते… "हड्डी तेरे हाथ टेढ़े हो गए होंगे इसलिए मैंने कटोरा खरीद लिया था।"…. "साला तुम सब जब भी बोलोगे ऊटपटांग ही बोलोगे।"..


पलक भी माधव से हाथ मिलाती उसका वेलकम की… ब्रेक टाइम में सब कैंटीन पहुंचे… "ओएं, निशांत नहीं है आज, कहां गया।"..


चित्रा:- अपनी गर्लफ्रेंड के पास।


माधव:- क्या बात कर रही हो। उसने गर्लफ्रेंड बना भी ली।


चित्रा:- जाओ तुम भी लाइन मारने..


माधव:- ई हड्डी को देखकर कोई पट जाती तो हम दिन रात किसी के दरवाजे पर नहीं बीता देते।


पलक:- उतनी मेहनत क्यों करोगे, चित्रा को ही परपोज कर दो ना, ये तो थप्पड़ भी नहीं मारेगी।


चित्रा:- नहीं माधव ये चढ़ा रही है, फिर अपनी कट्टी हो जाएगी। तुम मुझे गर्लफ्रेड वाली फीलिंग से देखोगे और मै तुम्हे दोस्त, फिर पहले चिढ़ आएगी, बाद में झगड़ा और अंत में दोस्ती का अंत।


माधव:- हां सही कह रही है चित्रा। पलक तुमको ही परपोज कर देते है। तुम्हारा थप्पड़ भी खा लेंगे और झगड़ा का तो सवाल ही नहीं होता।


चित्रा:- वो क्यों..


माधव:- 2-4 शब्द बोलकर जो चुप हो जाती है वो एक पन्ने जितना कहां से बोलेगी।


माधव अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और चित्रा हंसती हुई उसकी बात पर ताली बजा दी।.. पलक भी थोड़ा सा मुस्कुराती… "हड्डी बहुत बोलने लग गए हो।"


माधव:- ये सब छोड़ो, ये बताओ कॉलेज में क्या सब चल रहा है। उस दिन के बाद से दोनो लफंटर मिले की नहीं।


चित्रा:- पलक ने उसकी ऐसी चमड़ी उधेड़ी है कि दोबारा कभी सामने आने की हिम्मत ही नहीं हुई, और उसके बाद किसी को हमारे साथ बकवास करने की भी हिम्मत नहीं हुई।


माधव:- वो तो दिख रहा है तभी उ निशांत गायब है और तुम दोनो अकेली।


चित्रा और पलक दोनो एक साथ… "वेरी फनी"…


लगभग 1 सेमेस्टर बीत गए थे इन सबके। सेमेस्टर रिजल्ट में पलक 4th टॉपर, माधव ओवरऑल 1st टॉपर, सभी ब्रांच मिलाकर, चित्रा 8th रैंक और निशांत 4 सब्जेक्ट में बैक।
Wahhhh kya mast update tha bhai maja aa gaya. Aur jaisa ki aapne kaha tha is Update se such me bahut se logo ke bare me pata laga. Sath me is story kebare me bahut si chije bhi clear hui hai. Aur sath me aage kya kya possibly aane wali hai ye sub bhi pata chla is Update se. Bahut khub.
भाग:–10


लगभग 1 सेमेस्टर बीत गए थे इन सबके। सेमेस्टर रिजल्ट में पलक 4th टॉपर, माधव ओवरऑल 1st टॉपर, सभी ब्रांच मिलाकर, चित्रा 8th रैंक और निशांत 4 सब्जेक्ट में बैक।


तीनों ही माधव को कैंटीन में सामने बिठाकर… "क्यों बे हड्डी तू तो 3 महीने कॉलेज नहीं आया फिर ये गड़बड़ घोटाला कैसे हो गया, तू कैसे टॉपर हो गया।"..


माधव:- उ फेल वाले से पूछोगी कि कैसे फेल हो गया? उल्टा मुझसे ही पुछ रही मैं कैसे टॉप कर गया।


पलक:- माधव सही ही तो कह रहा है।


चित्रा:- ना पहले मेरे सवाल का जवाब दे।


माधव:- जब मै टूटा फूटा घर में था तब कोई काम ही नहीं था। पूरा बुक 3 बार खत्म कर लिए 3 महीने में। यहां तक कि आगे के सेमेस्टर का भी सेलेब्स 2 बार कंप्लीट कर लिया।


निशांत:- क्या बात कर रहा है। इतना पढ़कर क्या करेगा।


माधव:- एक्सक्यूटिव इंजिनियर बनूंगा और तब अपने आप सुंदरियों के रिश्ता आने शुरू हो जाएंगे। फिर कोई मेरे रंग सांवला होना या मेरे ऐसे दुबले होने का मज़ाक नहीं उड़ाएंगे।


पलक:- मै इंप्रेस हुई। अच्छी सोच है माधव।


वक़्त अपनी रफ्तार से बीत रहा था। हर किसी की अपनी ही कहानी चल रही थी। इसी बीच कॉलेज के कुछ दिन और बीते होंगे। ऐसे ही एक दिन सभी दोस्त बैठे हुए थे। निशांत हरप्रीत को लेकर चित्रा, माधव और पलक के साथ बैठा हुआ था। पांचों के बीच बातचीत चल रही थी, तभी हरप्रीत खड़ी हुई और पीछे से आ रहे लड़के से टकरा गई।


निशांत गुस्से में उठा और उस लड़के को एक थप्पड़ खींच दिया। निशांत ने जैसे ही उसे थप्पड़ मरा, वो लड़का निशांत को घूरने लगा… "साले घूरता क्या है बे, दोनो आखें निकल लूंगा तेरी।"..


वो लड़का एक नजर सबको देखा और वहां से चुपचाप चला गया। हरप्रीत भी अपने ड्रेस साफ करने के लिए निकल गई… "गलत थप्पड़ मार दिए निशांत, उ लड़के की तो कोई गलती भी नहीं थी। सबसे मजबूत ग्रुप है उनका, जो कैंपस में किसी और से बात तक नहीं करते। उनके ग्रुप में फर्स्ट ईयर से लेकर फाइनल ईयर तक के स्टूडेंट्स होंगे, लेकिन आज तक उन्हें किसी से भी झगड़ा करते हुए नही देखे। इतने कैपेबल होने के बाद भी तुम्हारा तप्पड़ खा लिए। गलत किए हो तुम निशांत।".... माधव ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया दे दी।


पलक:- गलत नहीं इसे गलतफहमी कहते है। और खून अपने बहन, दोस्त और गर्लफ्रेंड के लिए नहीं खौलेगा तो किसके लिए खौलेगा। कोई नहीं गलतफहमी में गलती हुई है, तो माफी मंगाकर सही कर लेंगे। क्या कहते हो निशांत।


निशांत:- कुछ भी हो गिल्ट तो फील हो ही रहा है ना। उसकी जगह मै होता और कोई मुझे इस तरह से कैंटीन में थप्पड़ मार चुका होता तो मुझे कैसा लगता?


पलक सभी लोगो के साथ उनके ग्रुप के पास पहुंची। इनका पूरा ग्रुप गार्डन में ही बैठा रहता था। लगभग 40-50 लड़के–लड़कियां। सब एक से बढ़कर एक फिगर वाले। जैसे ही चारो पहुंचे, निशांत एक लड़की को देखकर माधव से कहता है… "हाय क्या लग रही है ये तो। ऐसा लग रहा है जैसे मै "स्कार्लेट जोहानसन" की कॉपी देख रहा हूं। उफ्फ मन हराभरा हो गया।"


माधव बाएं साइड से पाऊं मारते… "गधा उधर दाए चित्रा खड़ी है घोंचू, मैं तेरे बाएं ओर हूं। अभी मामला सैटल करने आया है, थोड़ा दिल संभाल।"


इधर पलक उन तीनों को छोड़कर जैसे ही आगे बढ़ी, सभी एक साथ खड़े हो गए। पलक उन्हें अपने पास जमा होते देख मुस्कुराती हुई कहने लगी… "ऐसे एक साथ घेरकर मुझे डराने की कोशिश तो नहीं कर रहे ना?"..


एक लड़का खड़ा होते… "मेरा नाम मोजेक है, मिस पलक भारद्वाज। जानकार खुशी हुई कि तुम भूमि की बहन हो। हमे लगा था हमारा परिचय बहुत पहले हो जाएगा, लेकिन तुमने बहुत देर कर दी यहां हमारे बीच आने में।


पलक:- डरती जो थी। तुम सब एक से बढ़कर एक, कहीं किसी से इश्क़ हो गया तो वो ज्यादा दर्द देता। मुझे थोड़ा कम और तुम लोगो को थोड़ा ज्यादा। वैसे हम दोस्त तो हो ही सकते है।


मोजेक:- ऐसे सूखे मुंह दोस्त कह देने से थोड़े ना होता है। हमारे बीच बैठकर जब तक हम एक दूसरे को नहीं जानेगे, दोस्ती कैसे होगी।


पलक:- अभी होगी ना। मेरे भाई से एक भुल हो गई, सबके बीच तुम्हारे के साथी को उसने थप्पड़ मार दिया।


मोजेक का दोस्त रफी… "कौन वो लड़का जो मेरी बहन रूही को कब से घुरे जा रहा है।"


पलक:- हाहाहाहा.. देखा 4 दिन बैठ गई तुमलोगो के पास तो लफड़े ही होने है। मुझे इश्क़ होने से पहले लगता है मेरा भाई घायल हो जाएगा।


मोजेक:- तुम्हारे इश्क़ से प्रॉब्लम हो सकती है, उस निशांत से नहीं। यदि बात सत्यापित करनी हो तो कभी हमारी गली आ जाना... रूही तो हर किसी पर खुलेआम प्यार बरसाती है। क्यों रूही...


जिस लड़की रुही के बारे में सभी बोल रहे थे, वह बस एक नजर सबको देखी और वहां से चली गई। पलक भी फालतू के बातों से अपना ध्यान हटाती.… मोजेक उस लड़के को भी बुला दो, निशांत उसे दिल से सॉरी कहना चाहता है।


मोजेक:- महफिल में थप्पड़ पड़ी है गलती तो हुई है, और रही बात माफी कि तो एक ही शर्त पर मिलेगी..


पलक:- और वो कैसे..


मोजेक:- हमारे बीच कभी-कभी बैठना होगा। मेरे बाबा सरदार खान जब ये सुनेगे तो खुश होंगे। साथ में इन सब के बाबा भी।


पलक:- ठीक है मोजेक, वैसे जिसे भी थप्पड़ पड़ी उससे कहना हम सब दिल से सॉरी फील कर रहे है।


इसी का नाम जिंदगी है। पलक बचपन से अपने समूह प्रहरी के साथ जिनके खिलाफ लड़ना सीख रही थी, आज उन्ही के ओर से दोस्ती का प्रस्ताव हंसकर स्वीकार कर रही थी। हर समुदाय में अच्छे और बुरे लोग होते है, नागपुर के प्रहरी और सुपरनैचुरल एक जगह साथ खड़े रहकर इस बात का प्रमाण दे रहे थे। ..


देखते ही देखते पुरा साल बीत गया। सेकंड सेमेस्टर भी बीत गया। चित्रा और पलक के समझाने के कारण निशांत कुछ महीनों से माधव के साथ उसके कमरे में रुककर साथ तैयारी कर रहा था। अपना पिछले 4 बैंक मे 2 कवर कर लिया, साथ में इस बार के एग्जाम में एक बैक के साथ नेक्स्ट ईयर क्लास में चला गया।


इन लोगों का पूरा ग्रुप अब एक साल सीनियर हो चुका था और नए लड़के लड़कियां एडमिशन के लिए आ रहे थे। फिर से वहीं रैगिंग, फिर से वही नए लोग के सहमे से चेहरे, और पढ़ाई के साथ सबकी अपनी नई कहानी लिखी जानी थी।


बड़ा सा बंगलो जिसके दरवाजे पर ही लिखा था देसाई भवन। एक लड़का देसाई भवन के बड़े से मुख्य द्वार से अंदर जाने लगा। उसे दरवाजे पर ही रोक लिया गया… "सर, आप कौन है, और किस से मिलने आए है।"..


लड़का:- यहां जयदेव पवार रहते है?


दरबान:- आपको सर से काम है।


लड़का:- नहीं, भूमि से..


दरबान:- सर आपको किस से काम है, सर से या मैडम से?


लड़का:- भूमि मैडम से।


दरबान:- अपना नाम बताइए..


लड़का:- नाम जानकर क्या करोगे, उनसे बोल देना उनका बॉयफ्रेंड आया है।


दरबान, गुस्से में बाहर निकला और उसका कॉलर पकड़ते हुए… "तू जा मयला.. इतनी हिम्मत तेरी"..


लड़का बड़े से दरवाजे के बिल्कुल मध्य में खड़ा था और दरबान उसका कॉलर पकड़े। इसी बीच भूमि की कार हॉर्न बजाती हुई अंदर घुस रही थी, वो दरवाजे पर ही रुक गई। गुस्से में भूमि कार से उतरी… "दरवाजे पर क्या तमाशा लगा रखा है जीवन।"


दरबान जीवन… "मैडम ये लड़का जो खड़ा है.. वो कहता है आपका बॉयफ्रेंड है।"..


"क्या बकवास है ये…".. भूमि तेजी में उसके पास पहुंची और कांधा पकड़कर जैसे ही पीछे घुमाई…. "आर्य"..


आश्चर्य से उसकी आंखें फैल चुकी थी। चेहरे के भाव ऐसे थे मानो जिंदगी की कितनी बड़ी खुशी आंखों के सामने खड़ी हो। भूमि की नम आंखें एक टक आर्यमणि को ही देख रही थी और आर्यमणि अपनी प्यारी दीदी को देखकर, खड़ा बस मुस्कुरा रहा था।
Ye Update to such me bhut chota tha but koi nhi kaam chla lenge. Aur waise bhi ab to apne hero ki reentry ho hi gayi hai dekhte hai. Ab aage aur kya kya hota hai.
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–6



"कॉलेज में नाबालिक लड़की के साथ छेड़छाड़, बीच बचाव करने पुलिस पहुंची तो उसपर भी हमले। 4 कांस्टेबल और एक एस.आई घायल।"..

"नेशनल कॉलेज में एक और रैगिंग का मामला। पीड़ित ने अपनी प्राथमिकता दर्ज करवाई।"

"दिन दहाड़े 2 बाइक सवार ने एक महिला के गले से उसके मंगलसूत्र उड़ा कर फरार हो गए। पुलिस अभियुक्तों कि तलाश में जुटी।"

"दो गुटों में झड़प, मुख्य मार्ग 6 घंटे तक रहा जाम। डीएम मौके पर पहुंचकर मामले का संज्ञान लिए और दोनो पक्षों को शांत करवाकर वहां से हटाया।"

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कमिश्नर कार्यालय, नागपुर… महाराष्ट्र होम मिनिस्टर और नागपुर के नए पुलिस कमिश्नर राकेश नाईक की बैठक।


तकरीबन 3 घंटे की बैठक और बढ़ते क्राइम को देखते हुए लिया गया अहम फैसला। मंत्री जी के जाने के बाद कमिश्नर राकेश नाईक की प्रेस मीटिंग। प्रेस कॉन्फ्रेंस के मुखातिर होते हुए, कमिश्नर साहब रिपोर्टर्स के सभी सवालों पर विराम लगाते… "हम लोग जिला एसपी का कार्यभार बदल रहे है, आने वाले एक महीने में इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल जाएंगे।"


तकरीबन 3 दिन बाद, नागपुर पुलिस एसपी ऑफस का मीटिंग हाल। सामने 28 साल के बिल्कुल यंग आईपीएस, राजदीप भारद्वाज। जिले के सभी थाना अधिकारी सामने कुर्सी पर बैठे हुए। छोटी सी जान पहचान कि फॉर्मल मीटिंग।


राजदीप, छोटी सी फॉर्मल मीटिंग करने के बाद…. "यहां पहले क्या होता था वो मै नहीं जानता। लेकिन अब से मेरे कानो में केवल एक ही बात आनी चाहिए, नागपुर पुलिस बहुत सक्रिय है। और ये बात आपमें से किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लोगों के दिल से निकलनी चाहिए ये बात। जो भी इस सोच के साथ काम करना चाहते है उनका स्वागत है। और जो खुद को बदल नहीं सकते, उनके लिए केवल इतना ही, जल्द से जल्द नई नौकरी ढूंढ़ना शुरू कर दो।"


एसपी ऑफिस से बाहर निकलते वक़्त लगभग सभी थाना अधिकारी ऐसे हंस रहे थे, मानो एसपी ऑफिस से कोई कॉमेडी शो देखकर निकले हैं। हां शायद यही सोच रहे हो, अकेला एसपी कर भी क्या सकता है। लेकिन वो भुल गए की उस 28 साल के लड़के के पास आईपीएस का दिमाग है। उसी शाम चैन स्नैचिंग के लगभग 800 मामले को राजदीप ने अपने हाथ में लिया। अपनी अगुवाई में टीम बनाई जिसमें 20 एस आई और 200 सिपाही थे। सभी के सभी फ्रस्ट्रेट पुलिस वाले जिनका सर्विस बुक में इन डिसिप्लिन होने का दाग लगा हुआ था।


4 दिन की कार्यवाही, और जो ही चोर उचक्कों को पुलिस ने दौरा-दौरा कर मारा। यहां तो केवल राजदीप ने 800 मामले को अपने हाथ में लिया था और जब पुलिस की ठुकाई हुई तो 1800 मामलों में इनका नाम आया। पूरे नागपुर में 12 चैन स्नेचर की गैंग और 108 लोगो की गिरफ्तारी हुई थी। इसके अलावा 17 दुकानों को चोरी का माल खरीदने के लिए सील कर दिया गया था और उनके मालिकों को भी हिरासत में ले लिया गया था।


आते ही हर सुर्खियों में केवल राजदीप ही राजदीप छाए रहे। जिस डिपार्टमेंट को काम ना करने की आदत सी पड़ चुकी थी। जिनकी लापरवाही और मिली भगत का यह नतीजा था कि क्रिमिनल थाने के सामने से चोरी करने से नहीं कतराते थे, उन सब पुलिस वालों पर गाज गिरना शुरू हो गया था। नौकरी तो बचानी ही थी अपनी, इसलिए जो भी क्रिमिनल अरेस्ट होते थे सब के सब पुखते सबूतों के साथ।


एक महीने के पूरी ड्यूटी के बाद तो जैसे नागपुर शहर का क्राइम ग्राफ ही लुढ़क गया हो। जितने भी टपोरी थे या तो उन्होंने धंधा बदल लिया या शहर। जो समय कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया था, उसके खत्म होते ही उन्होंने फिर एक कॉन्फ्रेंस किया, लेकिन इस बार सवाल कम और तारीफ ज्यादा बटोर रही थी नागपुर पुलिस।


सुप्रीटेंडेंट साहब जितने मशहूर नागपुर में हुए, उतने ही अपने परिवार के भी चहेते थे। पिताजी हाई स्कूल में प्रिंसिपल के पोस्ट से रिटायर किए थे और माताजी भी उसी स्कूल में शिक्षिका थी। राजदीप का एक बड़ा भाई कमल भारद्वाज जो यूएस में सॉफ्टवेर इंजिनियर है अपने बीवी बच्चों के साथ वहीं रहता था।


दूसरा राजदीप जो सुप्रीटेंडेंट ऑफ पोलिस है। राजदीप से छोटी उसकी एक बहन नम्रता, जो पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद पीएचडी करना चाह रही थी, लेकिन राजदीप के नागपुर पोस्टिंग के बाद अपने दोस्तों को छोड़कर यहां के यूनिवर्सिटी में अप्लाई करना पड़ा। और सबसे आखरी में पलक भारद्वाज, 1 साल की तैयारी के बाद अपने इंजीनियरिंग एंट्रेंस टेस्ट देकर उसके परिणाम का इंतजार कर रही थी।


शुरू से ही घर का माहौल पठन-पाठन वाला रहा, इसलिए राजदीप को पढ़ने का अनुकूल माहौल मिला और वो 24 साल की उम्र में अपना आईपीएस क्लियर करके ट्रेनिंग के लिए चला गया। ट्रेनिंग के बाद उसे 26 साल में पहली फील्ड पोस्टिंग मिली थी, और 2 साल बाद ही महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नागपुर की जिम्मेदारी।


रविवार की सुबह थी। राजदीप बाहर लॉन में बैठकर पेपर पढ़ रहा था, उसकी पहली छोटी बहन नम्रता चाय लेकर उसके पास पहुंची… "क्या पढ़ रहे हो दादा, अखबार में तो केवल आपके ही चर्चे हैं। अब एक काम करो शादी कर लो।"..


राजदीप:- कितने पैसे चाहिए।


नम्रता:- क्या दादा, आपको क्यों ऐसा लग रहा है कि मै आपसे पैसे मांगने आयी हूं।


राजदीप:- फिर क्या बात है।


नम्रता:- दादा पलक ने नेशनल कॉलेज में एडमिशन ले लिया है, वो तो पता ही होगा ना।


राजदीप:- हां पता है, उसने इंट्रेस में टॉप मार्क्स मिले थे, मैंने अपने साथियों में मिठाई भी बंटवाई थी।


नम्रता:- दादा वो कॉलेज रैगिंग के लिए मशहूर है और मुझे बहुत डर लग रहा है। आप तो पलक को जानते ही हो, इसलिए क्या आप पुरा हफ्ता उसे कॉलेज ड्रॉप कर सकते हैं?


राजदीप:- नम्रता वो कॉलेज है, वहां पुलिस का क्या काम। देखो मै पलक को केवल वहां एक हफ्ते छोड़ने जाऊंगा, लेकिन वो अगले 4 साल उस कॉलेज में जाने वाली है। थोड़ा बहुत रैगिंग से जूनियर्स, सीनियर्स के पास आते हैं, वो जायज है। हां उसके ऊपर जब जाए तब मैं हूं, चिंता मत करो। कल पहला दिन है तो मै ही चला जाऊंगा। वैसे ये रहती कहां है आजकल।


नम्रता:- घर में ही होगी जाएगी कहां, रुको बुला देता हूं।


राजदीप:- नहीं रहने दे, उसका यहां बैठना और ना बैठना दोनो एक जैसा होगा। मुझे तो कभी-कभी लगता है आई–बाबा का एक बच्चा हॉस्पिटल में बदल गया था।


नम्रता:- क्या दादा, सुनेगी तो बुरा लगेगा।


राजदीप:- हां लेकिन गुस्सा तो हो, झगड़ा तो करे। वो बस इतना ही कहेगी हर किसी का स्वभाव एक जैसा नहीं होता और बात खत्म।


अगले दिन सुबह-सुबह राजदीप पलक के साथ नेशनल कॉलेज के लिए निकला।..


राजदीप:- सो क्या ख्याल चल रहे है पहले दिन को लेकर।


पलक:- कुछ नहीं दादा, थैंक्स आप साथ आए।


राजदीप:- हद है, अब भाई को भी थैंक्स कहेगी। अच्छा सुन कोई रैगिंग करे तो मुझे बताना।


पलक:- हां बिल्कुल।


राजदीप कुछ दूर आगे चला होगा तभी उसे लंबा जाम दिखा।… "पलक 2 मिनिट गाड़ी में बैठ मै अभी आया।".. लगभग 200 मीटर जाम को पार करने के बाद राजदीप जैसे ही चौराहे पर पहुंचा, वहां का माहौल देखकर वो दंग रह गया। ऊपर से जब वो आगे बढ़ने लगा, तभी एक आदमी उसके सीने पर हाथ रखते… "साले तेरेको दिख नहीं रहा, भाई इधर धरना दे रयले है।"


राजदीप ने ऐसा तमाचा दिया कि उसके गाल पर पंजे का निशान छप गया। कुछ देर तक तो उसका सर नाचने लगा और तमाचा इतना जोरदार था कि वहां तमाचा की आवाज गूंज गई। सभी गुंडे उठकर खड़े हो गए। इसी बीच थाने और कंट्रोल रूम से पुलिस का भारी जत्था पहुंच गया। राजदीप एक कार के बोनट पर अपनी तशरीफ़ को टिकाते हुए, अपने आखों पर चस्मा डाला…. "जबतक रुकने के लिए ना कहूं, ठोकते रहो इनको।"


चारो ओर से घिरे होने के कारण भाग पाना काफी मुश्किल हो रहा था। इसी बीच पुलिस की टीम ने आदेश मिलते ही जो ही डंडे बरसाने शुरू किए, तबतक नहीं रुके जबतक राजदीप ने रुकने का इशारा नहीं किया।… "इसके गैंग लीडर को सामने लेकर आओ"…


सामने लोकल एरिया का मशहूर गुंडा और यहां के लोकल एमएलए का खास आदमी, इमरान कुरैशी को लाकर खड़ा कर दिया… "साले ज्यादा फिल्मी हो रहा है। अगली बार कहीं सड़क जाम करता हुआ दिखा ना तो किसी काम का नहीं छोडूंगा। इंस्पेक्टर यहां का ट्रैफिक क्लियर करो और इन सबको हॉस्पिटल लेकर जाओ।"


राजदीप जाम क्लियर करवाकर वापस अपने गाड़ी में आया और पलक के साथ उसे कॉलेज छोड़ने के लिए चल दिया। कॉलेज का कैंपस देखकर राजदीप कहने पर मजबूर हो गया… "ये लोग कॉलेज चला रहे है या 5 स्टार होटल। तभी आजकल इंजिनियरिंग इतनी मेंहगी हो गई है।"..


पलक:- दादा आप जाओ, मै अपना क्लास ढूंढ लूंगी।


राजदीप:- क्या है पलक, मै यहां तेरे लिए आया हूं और तू है कि मुझे ही भगा रही है। चल आज मै तुम्हारी हेल्प कर देता हूं।


पलक:- ठीक है दादा।


राजदीप वहां से ऑफिस गया और ऑफिस से पलक के सारे क्लास का पता लगाकर उसे दोबारा रैगिंग के विषय में समझाकर, वहां से वापस अपने ऑफिस पहुंचा। राजदीप जैसे ही अपने केबिन में पहुंचा ठीक उसके पीछे संदेशा भी पहुंचा… "एमएलए साहब मिलना चाह रहे थे।"..


राजदीप कुछ फाइल पर साइन करने के बाद एमएलए आवास पर पहुंचा। सामने से उसे सैल्यूट करते हुए… "सर आपने मुझे यहां बुलाया।"..


एमएलए:- सुना है सड़क पर तुमने आज खूब एक्शन दिखाया।


राजदीप:- गलत सुना है सर। आज अपनी बहन को कॉलेज ड्रॉप करने गया था तो थोड़ा जल्दी में था इसलिए केवल वार्निग देकर छोड़ा दिया, कहीं वर्दी में होता तो उसे काल के दर्शन करवाता।


एमएलए:- जवान खून हो और तन पर सुप्रीटेंडेंट की वर्दी। नतीजा तो ऐसा ही होना है। तुम्हे पता है महाराष्ट्र के असेम्बली में मेरा क्या योगदान है। मेरे 72 एमएलए सपोर्ट के साथ ये असेम्बली चल रही है, इधर मैंने अपना हाथ खींचा और उधर इलेक्शन शुरू। तू जानता नहीं मै क्या करवा सकता हूं?


राजदीप:- आराम से बैठकर बातें करें या अपनी कुर्सी का सॉलिड अकड़ है?


एमएलए:- पॉलिटिक्स में अकड़ नहीं बल्कि अक्ल काम आती है, आओ मेरे साथ।


दोनो एमएलए के प्राइवेट चैंबर में बैठते हुए… "हां अभी कहो।"..


राजदीप:- सुनो कृपा शंकर गोडबोले, मुझे शहर कि सड़कें साफ चाहिए। आम जनता परेशान होते नजर नहीं आने चाहिए। मर्डर मतलब उस क्राइम को रिवर्स नहीं किया जा सकता, किसी की जिंदगी नहीं लौटाया जा सकती, इसलिए किसी का मर्डर नहीं चाहिए। ड्रग्स जैसे कारोबार नहीं चाहिए। इसके अलावा कुछ भी करो मै कुछ नहीं कहने आऊंगा। बात समझ में आ गई हो तो 10 करोड़ के एनुअल बजट के साथ डील फाइनल करो वरना बौधायन भारद्वाज के वंशज के बारे में एक बार पता कर लेना।


एमएलए, ने जैसे ही बौधायन भारद्वाज का नाम सुना, राजदीप को आंखे फाड़कर देखते, "उज्ज्वल भारद्वाज के बेटे हो क्या?"… राजदीप ने जैसे ही हां मे सर हिलाया, एमएलए... "मुझे माफ़ कर दो, मै तुम्हे पहचान नहीं पाया। मुझे तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है। लेकिन 10 करोड़ थोड़ा ज्यादा नहीं लग रहा, अब थोड़े बहुत काम से मै कितना पैसा बना पाऊंगा। इसे 5 करोड़ कर दो प्लीज।"


राजदीप:- कृपा शंकर सर, ये चिंदी काम से आपका पेट थोड़े ना भरता है। मुझे मजबूर ना करे अपने रिस्ट्रिक्शन के दायरे बढ़ाने में वरना फिर मै पहले मिलावटी चीजों पर ध्यान दूंगा। फिर शिकंजा बढ़ेगा बैटिंग पर। फिर दायरा बढ़ेगा ब्रांडेड प्रोडक्ट्स के पायरेसी के धंधे पर। और वो जो नेशनल कॉलेज को चकाचक करवाकर जो इतना डोनेशन कमा रहे, उस जैसे फिर ना जाने कितने सरकारी कॉलेज है, जहां तुमने एडवांस फीचर्स के नाम पर बैक डोर से मोटी रकम वसूली है, और वसूलते रहोगे...


एमएलए:- आप तो ज्ञानी है प्रभु। ठीक है डील तय कर दिया, आज से पुरा नागपुर आपका। जो आप कहेंगे वहीं होगा।


राजदीप:- मै तो पूरे भारत में जो कहूंगा वो होगा, लेकिन वो क्या है ना कृपाशंकर, हम यदि अपनी मांगे नाजायज रखेंगे तो अपना वैल्यू ही खत्म हो जाएगा। बाकी पुलिस और पॉलिटिक्स में तो पॉलिटीशियन को इतनी सेवा पुलिस की करनी ही पड़ती है।


एमएलए:- हव साहेब.. आप जैसा बोलो।


राजदीप:- ठीक है सर अब मै चलता हूं, आपके वाहट्स ऐप पर मैंने अपनी बहन की तस्वीर भेज दी है, आपकी छत्र छाया वाले कॉलेज में है, देखिएगा कोई हरासशमेंट का केस ना आए, बाकी छोटी मोटी रैगिंग के लिए मै पढ़ने वालों को परेशान नहीं करता।


एमएलए:- आप जाइए राजदीप सर, कॉलेज में इन्हे कोई परेशानी नहीं होगी।


शाम को ऑफिस से लौटते वक़्त राजदीप अपनी बहनों के लिए कुछ खरीदारी करता हुआ चला। वो जब रास्ते में था तभी कमिश्नर राकेश का फोन आ गया… "जी सर कहिए।"


राकेश:- क्यों रे मैंने सुना है आज एमएलए से मिलकर आया। ये तो कमाल ही हो गया। मतलब हम कमिश्नर ऑफिस में और तू पॉलिटीशियन की गोद में। वो भी पॉलिटीशियन कौन तो कृपाशंकर।


राजदीप:- मै आता हूं ना सर आपके घर।


राकेश:- छोड़ मै ही आता हूं तेरे घर। वैसे भी आजकल डीसी ऑफिस से ज्यादा तो एसपी ऑफिस छाया हुआ है नागपुर में।


राकेश:- जैसा आप सही समझो साहेब। मै भी ऑफिस से निकल गया।


राजदीप अपना सारा प्लान कैंसल करते हुए, नागपुर के सबसे मशहूर रेस्त्रां से मटन, नान और नाना प्रकार के व्यंजन पैक करवाकर सीधा घर पहुंचा। रात के ठीक 8 बजे नए प्रमोटेड कमिश्नर साहब अपने पूरे परिवार के साथ राजदीप के घर पहुंचे।
Unique naam rakhne me to aapka koi mukabla nhi kr sakta bhaya...
Ye nye SP sahab ne to MLA ki puri kundali nikal rakhi hai or use apni puri mithe bol ki dhamki de rakhi hai or SP MLA milan ki khabar nye commissioner ko lag gyi hai, Dekhte hai ab vo apna hissa mangta hai ya bahan ka hath... Ho sakta hai beti hi na pakda de apni... Maza Bahut aaya yah update padh kr superb update bhai sandar jabarjast
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–8

साथ में ये तीसरा दिन था कॉलेज का, जब पलक ने यह सवाल दोनो से पूछ ही लिया… सवाल सुनकर दोनो हंसने लगे। पलक दोनो का चेहरा देखती हुई… "क्या हुआ, कुछ गलत पूछ ली क्या?"


चित्रा:- नहीं कुछ गलत नहीं पूछी। निशांत पलक को इसका जवाब दे…


निशांत:- बस कभी ये ख्याल ही नहीं रहता की हम किसी पुलिस अधिकारी के बच्चे है। यहां तो स्टूडेंट है और हर स्टूडेंट की तरह हमारे भी एक परेंट है।


क्लास, पढ़ाई और भागती हुई ज़िन्दगी, यूं तो निशांत और चित्रा के पास ध्यान भटकाने के कई सारे साधन मिल चुके थे, लेकिन किसी ना किसी बातों से हर वक़्त आर्यमणि की यादें ताज़ा हो ही जाती थी। कॉलेज आकर दोनो भाई बहन के चेहरे के भाव बदले थे लेकिन अंदर की भावना नहीं।


गंगटोक से आए लगभग 3 साल से ऊपर हो गए थे और इतने लंबे वक्त में एक छोटी सी खबर नहीं आर्यमणि कि। कॉलेज शुरू हुए 2 महीने हो गए थे। 2 क्लास के बीच में इतना गैप था कि कम से 1 घंटा तो इनका कैंटीन में जरूर बिता करता था। चित्रा, पलक और निशांत तीनों बैठे थे.…


चित्रा:- अभी देखना हम लोग को सरप्राइज देते हुए आर्य सामने से आएगा।


निशांत:- पिछले 10 दिन से तू यहीं बोल रही है। अब कहेगी नहीं आज मेरी स्ट्रॉन्ग वाली फीलिंग कह रही है।


पलक:- वो देखो तुम्हारा दोस्त आर्य आ गया।


चित्रा और निशांत दोनो एक साथ सामने देखते… "क्या यार पलक, इसे भावनाओ के साथ खेलना कहते है। निशांत उस माधव को बुला जरा।"


ऊपर वाले की फैक्टरी में बाना विचित्र रचना। उम्र 18-19 साल लगभग, हाइट 5 फिट 9 इंच, वजह 38 किलो। निशांत उसे आवाज़ लगाते… "ए माधव इधर आ।"..


माधव ने एक नजर टेबल पर डाली और फिर अपनी नजरें नीची करते चुपचाप जाने लगा…. "क्या यार माधव नाराज है क्या"… माधव ने अब भी नजरदांज किया।


चित्रा:- माधव यहां आओ वरना हम तुम्हारे बाबूजी को फोन अभिए लगा देंगे हां।


माधव, उन तीनों के पास बैठते…. "काहे आपलोग हमको तंग करते है। हमे जाने दीजिए ना।"..


चित्रा:- सुन ना माधव, मझे फिजिक्स और मैथमेटिक्स में हेल्प कर दे ना।


माधव:- देखिए भगवान ने हमको कुरूप बनाया है, कोई बॉडी पर्सनैलिटी नहीं दी है, इसका ये मतलब नहीं कि आप सब हमरा मज़ाक उड़ाए।


चित्रा:- अबे ओय घोंचू, तेरा कब मज़ाक उड़ाये बे।


माधव:- कल यहीं पास वाला टेबल पर बैठे थे। अपने क्लास की वो निधि और उसके दोस्तों ने आप लोगो की तरह ही बुलाया था। और हम बस रोए नहीं, भरी महफिल में ऐसा मज़ाक बनाया। कल वो थी आज आप है।


निशांत:- मज़ाक तो हम भी तुम्हारा बनाते माधव। आखिर कांड ही ऐसे किए थे। प्रेम पत्री दिए मेरी बहन को, हां।


माधव:- सॉरी खाली दोस्ती का लेटर था। पहले कभी इतनी सुंदर लड़की से बात नहीं किए थे। जिससे भी करने कि कोशिश किए, सबने खाली मज़ाक ही उड़ाया। चित्रा से 2-4 बार बात हुई थी सब्जेक्ट को लेकर, तो हम सोचे कहीं हमसे दोस्ती कर ले। अकेले रहते है ना, इसलिए फील होता है। हमारा तो रूममेट भी हमसे बात नहीं करता।


चित्रा:- दोस्ती में तो कोई हर्ज नहीं है माधव, लेकिन मै करूंगी मज़ाक और तुम हो जाओगे सीरियस, और किसी भोले इंसान का दिल नहीं दुखाना चाहती, इसलिए जवाब नहीं दी, वरना तुम तो हीरा हो माधव हीरा। फिजिक्स और मैथमेटिक्स में क्या पकड़ है तुम्हारी।


माधव:- हमारे बाबूजी कहते थे, पाऊं उतना ही पसारना चाहिए जितनी चादर हो। हम तो बिलो एवरेज से भी एक पायदान नीचे है और आप तो मिस वर्ल्ड है।


निशांत:- आज से तुम हमारे दोस्त। हम तुमसे मज़ाक करेंगे और तुम हम सब से मज़ाक करना लेकिन कोई तुम्हे बेइज्जत करे तो हमसे शेयर करना, फिर उनका ग्रुप बेज्जत्ती की कहानी हम लिखेंगे। समझे बुरबक..


माधव:- हां समझ गए। इसी खुशी में आज की काफी मेरी तरफ से।


निशांत:- तू तो बड़ा दिलदार निकला चल पिला, पिला…


कॉलेज आते हुए सभी को लगभग महीनो बीत गए थे। 2 क्लास के बीच में इनके पास लगभग 1 घंटे का गैप होता था जहां चित्रा, निशांत, पलक और माधव कैंटीन में बैठकर बातें किया करते थे।


ऐसे ही एक दिन चारो बैठे हुए थे, तभी एक लड़का उनके बीच आ बैठा।… "मैंने कॉलेज में पुरा सर्वे किया, कैंटीन का बेहतरीन खूबसूरत टेबल यही है। लेकिन इन 2 खूबसूरत तितलियों के साथ 2 बेकार जैसे लोग बैठे रहते है, ये किसी को भी समझ में नहीं आता।"..


माधव:- समझिएगा भी नहीं, ये आउट ऑफ स्लैब्स वाला सवाल है।


चित्रा:- तुम्हे क्या चाहिए मिस्टर, किसपर ट्राय करने आए हो। आए तो हो, लेकिन अपना नाम भी नहीं बताए।


लड़का:- मेरा नाम नीरज है, और पलक मुझे बहुत अच्छी लगती है। सिर्फ दोस्ती करने आया हूं।


पलक, अपना हाथ बढाती…. "नीरज जी हमारी दोस्ती हो गई, अब क्या हमे परेशान करना बंद करेंगे।"


तभी वहां पर एक और लड़का पहुंच गया… "अरे नीरज तूने तो 2 मिनट में दोस्ती भी कर ली, मुझे भी चित्रा से दोस्ती करवा दे कसम से कितनी हॉट है।"..


चित्रा:- तुम भी अपना परिचय दे ही दो।


लड़का:- मै हूं विनीत, हम दोनों सेकंड ईयर में है।


चित्रा भी अपनी हाथ बढ़ाती… "तुम से भी दोस्ती हो गई विनीत अब खुश"


दोनो ही लड़के ठीक चित्रा और पलक के बाजू में अपना टेबल लगाते हुए उससे चिपक कर बैठ गए।…. "ओ ओ !! चित्रा, पलक, लगता है हम सबको यहां से चलना चाहिए। पहले दिन में ही काफी गहरी दोस्ती बनाने के इरादे से आए है।"… माधव कहते हुए खड़ा हो गया।


निशांत:- माधव सही कह रहा है, चलो चलते है।


चित्रा और पलक भी दोनो के बात से सहमत होती खड़ी हो गई। दोनो लड़कियां जैसे ही खड़ी हुई, उन दोनों लड़को ने उसका हाथ पकड़ लिया।… "देखिए सर, आपने दोस्ती कहीं करने, हमने कर ली। लेकिन जबरदस्ती हाथ पकड़ना गलत है। हाथ छोड़िए।"..


दोनो लड़को ने हाथ छोड़ दिया। चित्रा और पलक वहां से जाने लगी। पीछे से वो लड़का नीरज कहने लगा… "अब तो दोस्ती हो गई है, आज नहीं तो कल हाथ थाम ही लेंगे।"..


कुछ दिन और बीते, चारो ने नीरज और विनीत की हरकतों को लगभग अनदेखा ही किया। जबदस्ती कुछ देर के लिए आते, फालतू की बकवास करते और चले जाते। कभी चारो मिलकर उन्हें छिल देते तो कभी चारो कुछ मिनट में ही इरिटेट होकर वहां से उठकर चले आते। लेकिन उस दिन ये लड़के अपने और 4 दोस्तो के साथ आए थे और आते ही सीधा चित्रा और पलक को परपोज कर दिया।


पलक:- सॉरी, मेरी ऐसी कोई फीलिंग नहीं है।

चित्रा:- और मेरी भी।


विनीत जिसने चित्रा को परपोज किया था… "इस डेढ़ पसली वाले कुत्ते (माधव) के साथ तो तुम ना जाने क्या-क्या करती होगी, जब तुम्हे ये पसंद आ सकता है फिर मै क्यों नही?"


उसकी बात सुनकर निशांत और माधव आगे बढ़े ही थे कि पलक…. "तुम दोनो ध्यान मत दो, चलो चलते है यहां से।"..


"साली कामिनी हमे इनकार करेगी, तुझसे तो हां करवाकर रहूंगा"… पीछे से नीरज ने कहा।


चित्रा और पलक आगे जा रही थी, माधव और निशांत पीछे–पीछे। दोनो ने एक दूसरे को देखकर सहमति बनाई और पीछे की ओर मुड़ गए। माधव ने टेबल पर परा हुआ कप उठाया और सीधा नीरज के कनपटी पर दे मारा। कप के इतने टुकड़े उसके सर में घुसे की ब्लीडिंग शुरू हो गई।


वहीं निशांत, विनीत के मुंह पर ऐसा पंच मारा कि उसके नाक और मुंह से खून बहने लगा। वो भी अपने 4 दोस्तो के साथ आया था। उन चारो ने निशांत पर ध्यान दिया और माधव को भुल गए। माधव भी इस लड़ाई में चार चांद लगाते हुए टेबल पर परे बचे हुए कप किसी के गाल पर मार कर ऐसा फोड़ा की उसका जबड़ा हिल गया तो किसी के सर पर कप तोड़कर उसका सर फोड़ डाला।


जैसे ही 2 लड़के निशांत के पास से हटे, निशांत को भी पाऊं चलाने का मौका मिल गया। जिसने पूरी उम्र जंगल और पहाड़ों में गुजरी हो, स्वाभाविक है उसके हाथ और पाऊं में उतना ही बल होगा। निशांत ने जब मारना शुरू किया, फिर तो जबतक वो सब भाग नहीं गए तबतक मारता रहा।


सभी लड़के टूटी-फूटी हालत में कैंटीन से निकल रहे थे। जाते-जाते कहते गए, सेकंड ईयर से पंगा लेकर तुमने गलत किया है… "कुत्ते के पिल्ले दोबारा कभी सामने आया तो फोर्थ ईयर वाले तुम्हे नहीं बचा पाएंगे।"


पलक और चित्रा दोनो किनारे खड़ी होकर ये सब देख रही थी। दोनो को ही यहां उनको मारने में कुछ गलत नहीं लगा बस ये लड़ाई आगे ना बढ़े इस बारे में सोच रही थी। चारो ने बाकी के क्लास अटेंड किए और जाते वक़्त पलक कहने लगी… "मै क्या सोच रही थी, 4-5 दिन कॉलेज ड्रॉप कर देते है, जबतक मौसा जी (निशांत और चित्रा के पापा) और दादा (राजदीप) मुंबई की मीटिंग खत्म करके चले आएंगे।"


चित्रा:- दादा या पापा नहीं पढ़ते है इस कॉलेज में, तुम चिंता नहीं करो, माधव तो हर रोज अपने गांव में मार खाता था और निशांत को लड़कियों के सैंडल ने इतना मजबूत बना दिया है कि दोनो की कल कुटाई भी हो गई, तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।


माधव:- ऐसे दोस्त से अच्छा तो उ दुश्मन होंगे जो हमारे बल के हिसाब से रणनीति बाना रहे होंगे। कोई कमी ना छोड़ी बेज्जाती में।


निशांत:- सही कहा माधव। चल चलकर कल इनकी कुटाई की प्लांनिंग हम भी करते है।


माधव:- प्लांनिंग क्या करना है उ आकाश और सुरेश दोनो है ना, जो क्लास में पलक और चित्रा को ही देखते रहते है, उनको उकसा देंगे। हीरो बनने का अच्छा मौका है साला खुद ही 8-10 हॉस्टल के लड़के लेकर चले आएंगे।


माधव की बात सुनकर चित्रा और पलक दोनो ही हसने लगी… "बहुत बड़े वाले कमिने हो दोनो। चलो अब क्लास अटेंड करते है।"..


चारो क्लास अटेंड करने चल दिए। शाम का वक्त था जब पहले खबर निशांत के पास गई। निशांत से चित्रा और चित्रा से पलक तक खबर पहुंची। तीनों ही सिटी हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में पहुंचे।… "अरे निशांत आ गए। सालों ने रणनीति बदल दी रे। सालों ने मुझे हॉस्टल में ही धो दिए। कुत्ते की तरह मरा।"


निशांत:- कुछ टूटा फूटा तो नहीं है ना।


माधव:- हाथ ही तोड़ दिया सालो ने।


दोनो बात कर ही रहे थे तभी माधव को जनरल वार्ड से उठाकर प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया। पलक और चित्रा भी उसके पीछे गई। कुछ देर मिलने के बाद तीनों वहां से निकल गए।


पलक के सीने में अलग आग लगी थी। चित्रा के सीने में अलग और निशांत के सीने में अलग, और तीनों अलग-अलग आग लिए, अलग-अलग निकले और एक ही बंगलो पर आगे–पीछे पहुंचे।…. सबसे पहले निशांत पहुंचा।


ये बंगलो आर्यमणि की मौसेरी बहन भूमि का ससुराल था। भूमि की मां मीनाक्षी और आर्यमणि की मां जया दोनो अपनी सगी बहन थी। वहीं भूमि के बाबा सुकेश भारद्वाज और पलक के बाबा उज्जवल भारद्वाज दोनो अपने चचेरे भाई थे। भूमि के परिवार का लगाव आर्यमणि के परिवार के साथ अलग ही लेवल का था, ये सबको पता था। उसमे भी भूमि, आर्य को अपने बच्चे जैसा मानती थी। यही वजह थी कि चित्रा और निशांत भी भूमि के काफी क्लोज थे।


बंगलो में भूमि, पलक की बड़ी बहन नम्रता के साथ थी और कुछ बातें कर रही थी। तभी वहां निशांत पहुंच गया। निशांत को देखते ही भूमि… "अरे मेरे छोटे बॉयफ्रेंड, अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने में इतनी देर लगा दी।"..


नम्रता:- दीदी आप निशांत को जानती हो।


भूमि:- क्यों तेरी मां तुम लोगों को कहीं नहीं भेजती तो क्या मेरी भी अाई कहीं नहीं भेजे। बस 2 लोगों का दिमाग खराब है, एक तेरी अाई और दूसरा इसका बाप, बाकी सब मस्त है।


निशांत:- दीदी कॉलेज में एक लफड़ा हुआ है और मुझे 50-60 लोगों को टूटी-फूटी हालत में हॉस्पिटल भेजना है।


निशांत अपनी बात खत्म किया ही था कि पीछे से चित्रा भी पहुंच गई। निशांत को वहां देखकर चित्रा उससे पूछने लगी क्या वो माधव के लिए आया है? निशांत ने उसे हां में जवाब दिया। कॉलेज के लफड़े के लिए केवल निशांत आता तो भूमि कॉम्प्रोमाइज का रास्ता अपनाती क्योंकि लड़कों के बीच लड़ाई होना आम बात थी, लेकिन चित्रा का आना, भूमि के लिए चिंता का विषय था।


भूमि ने दोनो भाई बहन को बिठाकर पूरी कहानी सुनी। पूरी कहानी सुनने के बाद… "हम्मम ! गलत किया है उन लड़को ने, बहुत गलत"..


भूमि इतना कह ही रही थी कि तभी पीछे से पलक भी वहां पहुंच गई। पलक को देखकर नम्रता और भूमि दोनो आश्चर्य करती हुई…. "पलक और यहां"..


चित्रा और निशांत दोनो एक साथ… "वो भी इसी मुद्दे के लिए आयी है।"..


पलक आते ही… "शायद हर किसी के दिल में आग लगी है।"


भूमि को यूं तो तीनों से बहुत सी बातें करने थी, लेकिन तीनों ही उसके सामने बच्चे थे और इनके परेशानी को देखते हुए, भूमि ने सिर्फ इतना पूछा… "पलक तुम क्या चाहती हो।"


पलक:- सबको तोड़ना है, सिवाय नीरज और विनीत के। क्योंकि उनकी चमरी मै अपने हाथो से कल उधेड़ दूंगी।


भूमि:- नम्रता ये काम मै तुम्हे दे रही हूं। सुनो स्टूडेंट है तो थोड़ा हिसाब से तोड़ना 2-3 महीने में पढ़ाई करने लगे ऐसा।


नम्रता:- मज़ा आएगा दीदी।


अगले दिन पलक ने अपना बैग खुद तैयार किया। नम्रता तो पहले ही अपने लोगो को भेज चुकी थी, जो पलक के कैंटीन आने से पहले पता लगा कर रखते की कौन सा ग्रुप पलक, चित्रा और निशांत को मारने वाले है, ताकि तोड़ते वक़्त कोई कन्फ्यूजन ना हो।


नीरज और विनीत ने कल शाम 10 लड़को के साथ पिटने गया था, लेकिन आज 40 लड़के लेकर आया था, यह सोचकर कि कॉलेज का माहौल है और पाता नहीं शायद 10-15 दोस्त निशांत भी लेकर आए। जैसे ही नम्रता को पुष्टि हो गई 40 लड़के है, उसके 60 लोग पहले से ही कैंटीन के आसपास जाकर फ़ैल गए।


पहला क्लास खत्म होने के बाद पलक अपने बैग का चैन खोली और नजरे बस प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ये लोग आए। ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ा था और कैंटीन आने वाले रास्ते पर ही दूर से वो दिख गये।


पलक तेजी से दौड़ लगती अपने बैग से 1 मीटर की चाबुक निकल ली। जिसके चमड़े के ऊपर कांटेदार पतली तार लगी हुई थी। नीरज और विनीत कुछ कह पाते उससे पहले ही पलक ने आधे मीटर की दूरी से चाबुक चलना शुरू कर दिया।


जब वो चाबुक चला रही थी, देखने वाले स्टूडेंट ने अपने दातों तले उंगलियां दबा ली। सटाक की आवाज के साथ चाबुक पड़ते और अंदर का मांस लेकर निकल आते। पलक ने तबीयत से नीरज और वीनित को चाबुक मारना शुरू कर दिया था।


नीरज और वीनीत हर चाबुक पड़ने के बाद छिलमिलाते हुए दर्द भारी चींख निकालते और मदद के लिए अपने दोस्तो को गुहार लगाते। लेकिन चाबुक का दर्द इतना अशहनिया था कि नीरज और विनीत को पता ही नहीं चला कि जब उन्हें पलक के हाथ का पहला हंटर लग रहा था, ठीक उसी वक़्त उसके पीछे नम्रता के भेजे सभी लोगो ने नीरज के साथ आए मार करने वाले स्टूडेंट को तोड़ दिया था।


पलक दोनो को उसके औक़ाद अनुसार हंटर मारकर, हंटर को वापस बैग में रखी। पलक की नजर साफ देख पा रही थी कि जब वो हंटर चला रही थी, कैसे कॉलेज का एक समूह उसे घुरे जा रहा था। पलक अपना काम खत्म करके नीरज और विनीत के पास पहुंची और उसके मुंह पर अपना लात रखती हुई कहने लगी… "अगली बार हमारे आसपास भी नजर आए तो फिर से मारूंगी।"..


निशांत, पलक के पास पहुंचते…. "एक को तो छोड़ देती, मै ठुकाई कर देता, कम से कम इसी बहाने कोई लड़की तो इंप्रेस हो जाती।"..


पलक:- कल तुम्हे वो सीएस वाली लड़की हरप्रीत बड़े गौर से देख रही थी। तुमने ध्यान नहीं दिया। निशांत खुशी से उसके दोनो गाल खिंचते… "यू आर सो स्वीट। तुम्हे कोई पसंद हो तो बताना मै हेल्प कर दूंगा।"


चित्रा:- ये तो गया काम से अब हफ्तों तक दिखेगा नहीं।


चित्रा और पलक बातें करती वहां से जा ही रही थी कि तभी वहां प्रिंसिपल अपनी पूरी टीम के साथ पहुंच गए। प्रिंसीपल जैसे ही वहां पहुंचा, पीछे से नम्रता और भूमि भी वहां पहुंच गई।


भूमि प्रिंसिपल को देखते हुए कहने लगी…. "क्या देख रहे हो मसूद, ये हमारी नेक्स्ट जेनरेशन है। तुम कुछ सोचकर तो नहीं आए थे इनके पास।"..


मसूद:- भूमि ये कॉलेज है। छोटे मोटे झगड़े तक तो ठीक है लेकिन आज जो इस कैंपस में हुआ…


भूमि:- पलक, चित्रा तुम दोनो जाओ। जो भी हुआ उसमे उन लौडों की गलती थी। उनके गार्डियन को संदेश भेज दो, उनके बच्चे ग्रुप बनाकर बाहर लड़को की पिटाई करते है, जिसका नतीजा ये हुआ है कि यहां के लोकल लोग कॉलेज में घुसकर मार कर रहे है। पुलिस कार्यवाही होती तो मजबूरन उन्हें रस्टीकेट करना पड़ता इसलिए कोई एक्शन नहीं ले पाए।


मसूद:- हम्मम ! ठीक है ऐसा ही होगा। भूमि वो सरदार ने तेजस से कुछ कहा था, उसपर तुम लोगों का क्या विचार बना।


भूमि:- मसूद हम दोनों ही बंधे है। अगर सरदार चाहता है तो हम मदद के लिए आएंगे। लेकिन सोच लो तुम दूसरे के इलाके में घुसोगे, फिर वो तुम्हारे इलाके में घुसेंगे और यदि आम लोग परेशान हुए तो हम तुम दोनो के इलाके में घुसेंगे। जो भी फैसला हो बता देना।


मसूद:- ठीक है मै सरदार से बात करता हूं।


भूमि प्रिंसिपल से बात करके वहां से निकल गई। दोनो लड़कियां भी आराम से बैठकर कॉफी पीने लगी।…
Are ha Yahi to chahiye tha hunter vali madam ka tandav dekhna tha pura mamla padh kr anand hi aa gya, kaha palak ka bhai kah rha tha ki bahan usse ladti nhi hai, ye hunter lekr khadi ho gyi to 100 meter Pahle hi maidan chhod bhag jayega bhaya... Rajniti idhar bhi Chal rhi hai Jo dekhne mili bhumi or principal ki bato se...
Maza aa gya padh kr bhai superb update jabarjast sandar wonderful
 

Xabhi

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भाग:–9


भूमि प्रिंसिपल से बात करके वहां से निकल गई। दोनो लड़कियां भी आराम से बैठकर कॉफी पीने लगी।…

"पलक तूने हरप्रीत की बात बताकर गलत की है। देख अपनी टेबल खाली हो गई। 2 महीने के लिए माधव बुक हो गया और निशांत को हवा लग गई। 4 साल ये हरप्रीत के साथ निकाल देगा।"..


पलक:- और उसकी पहले कि गर्लफ्रेंड जो गंगटोक में थी, उससे ब्रेकअप कर लिया क्या?


चित्रा:- गर्लफ्रेंड थी लवर नहीं। कुत्ते ने पलट कर फोन भी नहीं किया होगा।


पलक:- फिर तो ये धोका हुआ।


चित्रा:- धोखा काहे का पलक। ये जिस दिन नागपुर आया इसकी गर्लफ्रेंड ने पहले एफबी स्टेटस चेंज किया, नाउ आई एम् सिंगल।


पलक:- और तुम जब नागपुर आयी तब तुम्हारे किसी बॉयफ्रेंड ने तुम्हे कॉल नहीं किया?


चित्रा:- ब्वॉयफ्रैंड तो था लेकिन इतना फट्टू की आर्य और निशांत के सामने कभी आने की हिम्मत ही न हुई और पीछे में मिलने के लिए शाम का वक़्त मिलता था जिसमें मै मिलती नहीं थी।


पलक:- क्यों?


चित्रा:- पागल, शाम रोमांटिक होती है ना, खुद पर काबू ना रहा तो।


पलक:- हां ये भी सही है। तो तुमने ब्रेकअप कर लिया।


चित्रा:- हां लगभग ब्रेकअप ही समझो। वैसे तुम्हे देखकर लगता नहीं कि तुम्हारा भी कोई बॉयफ्रेंड होगा।


पलक:- नहीं ऐसी बात नहीं है। अमरावती में एक ने मुझे परपोज किया था।


चित्रा:- फिर क्या हुआ।


पलक:- 2 दिन बाद मुझसे कहता है तुम बोरिंग हो।


चित्रा:- फिर तुमने क्या कहा।


पलक:- मैंने थैंक्स कहा और बात खत्म।


किसी एक रात का वक़्त… नागपुर के बड़ा सा हॉल, जिसमें पूरे महाराष्ट्र के बड़े-बड़े उद्योगपति, पॉलिटीशियन और बड़े-बड़े अधिकारी एक मीटिंग में पहुंचे हुए थे। लगभग हजारों वर्ष पूर्व शुरू हुई एक संस्था, जिसके संस्थापक सदस्य और पहले मुखिया वैधायन भारद्वाज की प्रहरी संस्था थी। प्रहरी यानी कि पहरा देने वाला। इनका मुख्य काम सुपरनेचुरल और इंसानों के बीच शांति बनाए रखना था। यधपी इंसानों को आभाष भी नहीं था कि उनके बीच इंसान के वेश में सुपरनेचुरल रहते थे।


प्रहरी का काम गुप्त रूप से होता था। ये अपने लोगों को उन सुपरनैचुरल से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करते थे, जो इंसानों के रक्त पीते, उन्हें मारते और खुद को श्रेष्ठ समझते। इसके अलावा सुपरनैचुरल जीवों के बीच क्षेत्र को लेकर आपसी खूनी जंग आम बात थी। जबतक 2 समूह आपस में क्षेत्र के लिए लड़ते और मरते थे, तबतक प्रहरी को कोई आपत्ति नहीं थी। किन्तु दोनो के आपस की लड़ाई में जैसे ही कोई इंसान निशाना बनता, फिर प्रहरी इन दोनों के इलाके में घुसते थे।


प्राचीन काल से ही वैधायन के इस प्रहरी समूह को शुरू से गुप्त रूप से प्रसाशन का पूरा समर्थन रहा है। इसलिए इनके काम को सुचारू रूप से चलाने के लिए इनको शहर का मुख्य व्यावसायिक बना दिया जाता था, ताकि काम करने के लिए या मूलभूत चीजों की खरीदी, बिना किसी पर आश्रित रहकर किया जा सके। यही वजह थी कि ये प्रहरी आज के समय में जहां भी थे, अरबपति ही थे।


ऐसा नहीं था कि इस समूह में भ्रष्ट्राचार नहीं आया। बहुत से लोग धन को देखकर काम करना बंद कर दिए तो उनकी जगह कई नए लोगो ने ले लिए। प्रहरी जो भी थे उन्हें तो पहले यह सिखाया जाता था कि जो भी धन उनके पास है, वो लोगो द्वारा दी गई संपत्ति है। केवल इस उद्देश्य से कि प्रहरी रक्षा करता है, और इस कार्य में प्रहरी या उसका परिवार आर्थिक तंगी से ना गुजरे।


इसी तथ्य के साथ प्रहरी छोड़ने के 2 नियम विख्यात थे, जो सभी मानने पर विवश थे। पहला नियम प्रहरी के पास का धन प्रहरी को उसके काम में सुविधा देने के लिए है, इसलिए यदि कोई प्रहरी का काम को छोड़ता है, तो उसे अपनी 60% संपत्ति प्रहरी के समूह में देनी होगी। दूसरा नियम यह कहता है कि यदि किसी को प्रहरी से निष्काशित किया गया हो तो उसकी कुल धन सम्पत्ति प्रहरी संस्था की होगी।


वैधायन कुल के 2 परिवार जो इस वक़्त खड़े थे… केशव भारद्वाज और उसका चचेरा छोटा भाई उज़्ज़वल भारद्वाज। उनके बच्चे आजकल प्रहरी के काम को देख रहे थे। मीटिंग की शूरवात मेंबर कॉर्डिनेटर और प्रहरी ग्रुप की सबसे चहेती भूमि देसाई ने शुरू की…. "लगता है प्रहरी का जोश खत्म हो गया है। आज वो आवाज़ नहीं आ रही जो पहले आया करती थी।"...


तभी पूरे हॉल में एक साथ आवाज़ गूंजी… "हम इंसान और शैतान के बीच की दीवार है, कर्म पथ पर चलते रहना हमारा काम। हम तमाम उम्र सेवा का वादा करते है।"


भूमि:- यें हुई ना बात। वैसे आज मुझे कुछ जरूरी प्रस्ताव देने है, इसलिए अध्यक्ष विश्व देसाई (भूमि का ससुर) और ऊप—अध्यक्ष तेजस भारद्वाज (भूमि का बड़ा भाई) की कोई बात सुनना चाहता है तो हाथ ऊपर कर दे, नहीं तो मै ही मीटिंग लूंगी।


जयदेव (भूमि का पति)… "घर पर भी सुनो और यहां भी, मुझे नहीं सुनना भूमि को। बाबा (विश्व देसाई) को ही बोलो, वो ही बोले, या तेजस दादा बोल ले।"..


तभी भिड़ से एक लड़का बोला… "जयदेव भाव, भूमि को सुनने का अपना ही मजा है। वो तो शुक्र मनाओ सुकेश काका (भूमि के पिता) ने मेरा रिश्ता ये कहकर कैंसल कर दिया कि मैं अभी बहुत छोटा हूं। वैसे मै अब भी लगन के लिए तैयार हूं यदि भूमि तुम्हे छोड़कर आना चाहे तो।"..


भूमि:- बस रे माणिक, अब कुछ नहीं हो सकता। हम लोग मीटिंग पर ध्यान दे दे। वैसे सबसे पीछे से एक लड़का जो चुप है, आज पहली बार मीटिंग में आ रहा अनुराग, उसे मै यहां बुलाना चाहूंगी।


बाल्यावस्था से किशोर अवस्था में कदम रख रहा एक लड़का मंच पर आया। भूमि उसका परिचय करवाती हुई कहने लगी… "ये है हमारे बीच का सबसे छोटा प्रहरी, कौन इसे अपना उतराधिकारी चुन रहा है, हाथ उठाए।"..


भूमि, उठे हाथ में से एक का चुनाव करती… "कुबेर आज से अनुराग की जिम्मेदारी तुम्हारी।".. फिर भूमि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के ओर देखती… "क्यों काका, क्यों दादा.. कौन लेने आ रहा है मीटिंग"


विश्व:- भूमि तू ही लेले मीटिंग।


भूमि:- अब सब शांत होकर सुनेगे। ये कब तक बूढ़े लोगो को अध्यक्ष बनाए रहेंगे। मेरे बाबा ने रिटायरमेंट ले ली। मेरे काका ने रिटायरमेंट ले ली। विश्व काका भी रिटायरमेंट प्लान कर रहे है। इसलिए मै नए अध्यक्ष के लिए माणिक, पंकज और कुशल का नाम प्रस्तावित करती हूं। तीनों ही तैयार रहेंगे। बाद में किसी ने ना नुकुर किया तो ट्रेनिंग हॉल में उल्टा टांग कर बाकियों को उसपर ही अभ्यास करवाऊंगी।


भूमि इतना ही कही थी कि पीछे से कुछ आवाज़ आयी…. तभी भूमि की तेज आवाज गूंजी.… "मैंने कहा सभी शांत रहेंगे, मतलब सबके लिए था वो। किसी को प्रस्ताव से परेशानी है तो अपना मत लिखकर देंगे। दूसरा प्रस्ताव है, मै जल्द ही अपना उतराधिकारी घोषित करूंगी। इसके अलावा राजदीप को मै मेंबर कॉर्डिनेटर का स्वतंत्र प्रभार देती हूं, आने वाले समय में वो मेरी जगह लेगा।"

"बाकियों के लिए मीटिंग खत्म हो गई है। नागपुर के प्रहरी विशेष ध्यान देंगे। मलाजखंड के जंगलों के सुपरनैचुरल और सरदार खान के बीच खूनी जंग शुरू है। हर प्रहरी उस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देंगे। यदि एक भी आम इंसान परेशान हुएक्स1 तो हम सरदार खान के इलाके के साथ मलाजखंड के जंगल घुसेंगे।"…

"बाकी सारी डिटेल पोस्ट कर दिया है, क्यों हमे सरदार खान का साथ देना चाहिए। आप लोग उसे पढ़ सकते है। इसी के साथ मीटिंग समापन होता है। प्रस्ताव से किसी को भी कोई परेशानी हो तो अपना लिखित मत जरूर दें।"


मीटिंग खत्म हो गई, हर कोई जाने लगा। तभी भूमि एक लड़के को रोकती हुई… "हां महा उस वक़्त तुम कुछ कहना चाह रहे थे।"..


महा:- भूमि दीदी मै तो यह कह रहा था कि तेजस दादा का नाम क्यों नहीं है अध्यक्ष में।


भूमि:- क्या तू महा। देख दादा (तेजस) ने पहले लिखित मना किया है कि वो अभी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते। इसके अलावा माणिक और कुशल उभरते हुए लोग है। आज मै उन्हें आगे बढ़ाऊंगी तभी तो वो भी तुम सबको आगे बढ़ाएगा। ये एक कल्चर है महा, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे पूर्वजों ने हमारे आने वाली जेनरेशन को दिया है। तभी तो इतने स्वार्थी और धूर्त लोग होने के बावजूद भी ये समूह आज भी खड़ा है।


महा:- समझ गया दीदी।


भूमि:- बाकी सॉरी हां.. कभी-कभी थोड़ी सी मै स्ट्रिक्ट हो जाती हूं।


भूमि अपनी बात समझाकर वहां से निकल गई। मीटिंग खत्म करके भूमि सीधा अपने मायके पहुंची। पूरा परिवार हॉल में बैठा हुआ था। आई, मीनाक्षी भारद्वाज, बाबा सुकेश भारद्वाज, बड़ा भाई तेजस और साथ में उसकी पत्नी वैदेही। दो बच्चे मयंक और शैली भारद्वाज। इन सबके बीच आर्यमणि का परिवार, मां जया कुलकर्णी और पिता केशव कुलकर्णी बैठे हुए थे। रिश्ते में जया और मीनाक्षी दोनो सगी बहनें थी।



भूमि अपने पति जयदेव के साथ पहुंची, और सबका उतरा चेहरा देखकर… "आर्य की कोई खबर नहीं..."..


मीनाक्षी:- नहीं आयी तो नहीं आये। उसे इतनी अक्ल नहीं की कहीं भी रहे एक बार फोन कर ले। हम तो अपने नहीं है, कम से कम जया से तो बात कर लेता। जिस दिन वो मिल गया ना टांगे तोड़कर घर में बिठा दूंगी।


भूमि:- मौसा जी को भी क्या जरूरत थी जंगल की बात को लेकर इतना खींचने की। वो समझते नहीं है क्या, जवान लड़का है, बात बुरी लग सकती है। कच्ची उम्र थी उसकी भी...


केशव कुलकर्णी:- नहीं आर्य उन लड़कों में से नहीं है जो अपने आई-बाबा की बात सुनकर घर छोड़कर चला जाए। उसे मैत्री लोपचे की मौत का सदमा लगा था शायद, और मती भ्रम होने के कारण वह कहीं भी भटक रहा होगा। वरना उसे यूएस जाने की क्या जरूरत थी।


भूमि:- मौसा यूएस 500 या हजार रुपए में नहीं जाते। आर्य को जरूर कोई ले गया है। या फिर वो मैत्री के मौत का पता लगाने के लिए जर्मनी तो नहीं पहुंच गया।


सुकेश:- जर्मनी में मैंने शिकारियों से पता लगवाया था। वो लोग वुल्फ हाउस में खुद तहकीकात करके आए थे। वहां आर्य तो क्या, कोई भी नही था।


भूमि:- बाबा मै बस इतना जानती हूं कि मेरा भाई मुसीबत में है और इस वक़्त वो बिना पैसे और बिना किसी सहारे के अकेला होगा। जयदेव अपने कुछ लोगो को लेकर मै आर्य का पता लगाने यूएस जाऊंगी, क्या तुम तबतक यहां का सारा काम देख लोगे?


वैदेही:- मै इस वक़्त खाली हूं। तुम्हारे हिस्से का सारा काम मै और नम्रता मिलकर देख लेंगे। तुम बेफिक्र होकर जाओ।


भूमि:- आप सब हौसला रखो। अपने भाई को लेकर ही लौटूंगी...


कुछ दिन बाद भूमि अपने भरोसे के 10 शिकारियों के साथ वो यूएस निकल गई। इंडियन एंबेसी जाकर भूमि ने आर्य की पासपोर्ट डिटेल दी और लापता होने के बाद कहां-कहां पहुंचा है उसकी जानकारी ली।


खुद 5 दिन यूएस स्थित इंडियन एंबेसी में रुकी और उस वक्त आर्यमणि के साथ आए सभी पैसेंजर लिस्ट निकालने के बाद, वो उनके एड्रेस पर जाकर क्रॉस चेक की। यूएस में दूसरे शिकारियों से भी मिली और उसे आर्यमणि की तस्वीर दिखाते हुए ढूंढने के लिए कहने लगी।


लगभग 2 महीने तक भूमि ने यूएस से लेकर यूरोप कि खाक छानी। जर्मनी वुल्फ हाउस भी गई, लेकिन आर्य का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिला। वो तो हार चुकी थी और शायद अंदर से टूट भी चुकी थी, लेकिन बाकियों को हौसला देने के लिए उसने झूट का भ्रम फैला दिया। एक कंप्यूटर एक्सपर्ट से मिलकर आर्य की रियल दिखने वाली होलोग्राफिक इमेज तैयार करवाई। हर किसी को वीडियो कॉल पर उसे दिखा दिया, लेकिन सबको एक बार देखने के बाद वर्चुअल आर्य ने फोन कट कर दिया।


भूमि के पास जैसे ही कॉल आया उसने सबको यही बताया कि आर्य उससे भी बात नहीं कर रहा। केवल इतना ही कहा कि "पापा मुझे बाहर भेजना चाहते थे इसलिए आ गया। जब बाहर रहने से मै ऊब जाऊंगा चला आऊंगा।" और हां आज के बाद वो ये जगह भी छोड़ रहा है। अभी उसका मन पुरा भटकने का हो रहा है। पैसे की चिंता ना करे, वो जिन लोगो के साथ भटक रहा है उन्हीं के साथ काम भी कर लेता है और पैसे भी कमा लेता है।


भूमि की बातो पर सबको यकीन था क्योंकि झूट बोलकर सांत्वना देना भूमि के आदतों में नहीं था। इसलिए हर कोई आर्यमणि की खबर सुनकर खुश था। भूमि लगभग 75 दिनों बाद लौट तो आयी लेकिन अंदर से यही प्रार्थना कर रही थी कि उसका भाई जहां भी हो सुरक्षित हो और जल्दी लौट आए।


इधर 75 दिन बाद भूमि भी लौट रही थी और 3 महीने अवकाश के बाद माधव भी कॉलेज लौट रहा था। माधव को देखकर चित्रा खुश होते हुए उसके गले लग गई… "वेलकम बैक, हड्डी"।


फिर निशांत भी उसके गले लगते… "हड्डी तेरे हाथ टेढ़े हो गए होंगे इसलिए मैंने कटोरा खरीद लिया था।"…. "साला तुम सब जब भी बोलोगे ऊटपटांग ही बोलोगे।"..


पलक भी माधव से हाथ मिलाती उसका वेलकम की… ब्रेक टाइम में सब कैंटीन पहुंचे… "ओएं, निशांत नहीं है आज, कहां गया।"..


चित्रा:- अपनी गर्लफ्रेंड के पास।


माधव:- क्या बात कर रही हो। उसने गर्लफ्रेंड बना भी ली।


चित्रा:- जाओ तुम भी लाइन मारने..


माधव:- ई हड्डी को देखकर कोई पट जाती तो हम दिन रात किसी के दरवाजे पर नहीं बीता देते।


पलक:- उतनी मेहनत क्यों करोगे, चित्रा को ही परपोज कर दो ना, ये तो थप्पड़ भी नहीं मारेगी।


चित्रा:- नहीं माधव ये चढ़ा रही है, फिर अपनी कट्टी हो जाएगी। तुम मुझे गर्लफ्रेड वाली फीलिंग से देखोगे और मै तुम्हे दोस्त, फिर पहले चिढ़ आएगी, बाद में झगड़ा और अंत में दोस्ती का अंत।


माधव:- हां सही कह रही है चित्रा। पलक तुमको ही परपोज कर देते है। तुम्हारा थप्पड़ भी खा लेंगे और झगड़ा का तो सवाल ही नहीं होता।


चित्रा:- वो क्यों..


माधव:- 2-4 शब्द बोलकर जो चुप हो जाती है वो एक पन्ने जितना कहां से बोलेगी।


माधव अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और चित्रा हंसती हुई उसकी बात पर ताली बजा दी।.. पलक भी थोड़ा सा मुस्कुराती… "हड्डी बहुत बोलने लग गए हो।"


माधव:- ये सब छोड़ो, ये बताओ कॉलेज में क्या सब चल रहा है। उस दिन के बाद से दोनो लफंटर मिले की नहीं।


चित्रा:- पलक ने उसकी ऐसी चमड़ी उधेड़ी है कि दोबारा कभी सामने आने की हिम्मत ही नहीं हुई, और उसके बाद किसी को हमारे साथ बकवास करने की भी हिम्मत नहीं हुई।


माधव:- वो तो दिख रहा है तभी उ निशांत गायब है और तुम दोनो अकेली।


चित्रा और पलक दोनो एक साथ… "वेरी फनी"…


लगभग 1 सेमेस्टर बीत गए थे इन सबके। सेमेस्टर रिजल्ट में पलक 4th टॉपर, माधव ओवरऑल 1st टॉपर, सभी ब्रांच मिलाकर, चित्रा 8th रैंक और निशांत 4 सब्जेक्ट में बैक।
Jaha ek taraf bhumi ke dhundhne pr arya ke na milne pr thoda Dukh ki anubhuti Hui vahi madhav ke aane pr unki bate sunkr hasi ke thahake gunje hai mere, vo to Accha hai alag kamre me baitha hu Varna Aaj lag Jane the L...
Palak ke break up vali baat Yani pahla paragraph padh kr bhi man anand se bhar gya bhai...
Ye sikariyo ki sanstha ke bare me padh kr to sach me realistic lag rha hai pura...

jabarjast update hai bhai sandar superb
 

Xabhi

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भाग:–10


लगभग 1 सेमेस्टर बीत गए थे इन सबके। सेमेस्टर रिजल्ट में पलक 4th टॉपर, माधव ओवरऑल 1st टॉपर, सभी ब्रांच मिलाकर, चित्रा 8th रैंक और निशांत 4 सब्जेक्ट में बैक।


तीनों ही माधव को कैंटीन में सामने बिठाकर… "क्यों बे हड्डी तू तो 3 महीने कॉलेज नहीं आया फिर ये गड़बड़ घोटाला कैसे हो गया, तू कैसे टॉपर हो गया।"..


माधव:- उ फेल वाले से पूछोगी कि कैसे फेल हो गया? उल्टा मुझसे ही पुछ रही मैं कैसे टॉप कर गया।


पलक:- माधव सही ही तो कह रहा है।


चित्रा:- ना पहले मेरे सवाल का जवाब दे।


माधव:- जब मै टूटा फूटा घर में था तब कोई काम ही नहीं था। पूरा बुक 3 बार खत्म कर लिए 3 महीने में। यहां तक कि आगे के सेमेस्टर का भी सेलेब्स 2 बार कंप्लीट कर लिया।


निशांत:- क्या बात कर रहा है। इतना पढ़कर क्या करेगा।


माधव:- एक्सक्यूटिव इंजिनियर बनूंगा और तब अपने आप सुंदरियों के रिश्ता आने शुरू हो जाएंगे। फिर कोई मेरे रंग सांवला होना या मेरे ऐसे दुबले होने का मज़ाक नहीं उड़ाएंगे।


पलक:- मै इंप्रेस हुई। अच्छी सोच है माधव।


वक़्त अपनी रफ्तार से बीत रहा था। हर किसी की अपनी ही कहानी चल रही थी। इसी बीच कॉलेज के कुछ दिन और बीते होंगे। ऐसे ही एक दिन सभी दोस्त बैठे हुए थे। निशांत हरप्रीत को लेकर चित्रा, माधव और पलक के साथ बैठा हुआ था। पांचों के बीच बातचीत चल रही थी, तभी हरप्रीत खड़ी हुई और पीछे से आ रहे लड़के से टकरा गई।


निशांत गुस्से में उठा और उस लड़के को एक थप्पड़ खींच दिया। निशांत ने जैसे ही उसे थप्पड़ मरा, वो लड़का निशांत को घूरने लगा… "साले घूरता क्या है बे, दोनो आखें निकल लूंगा तेरी।"..


वो लड़का एक नजर सबको देखा और वहां से चुपचाप चला गया। हरप्रीत भी अपने ड्रेस साफ करने के लिए निकल गई… "गलत थप्पड़ मार दिए निशांत, उ लड़के की तो कोई गलती भी नहीं थी। सबसे मजबूत ग्रुप है उनका, जो कैंपस में किसी और से बात तक नहीं करते। उनके ग्रुप में फर्स्ट ईयर से लेकर फाइनल ईयर तक के स्टूडेंट्स होंगे, लेकिन आज तक उन्हें किसी से भी झगड़ा करते हुए नही देखे। इतने कैपेबल होने के बाद भी तुम्हारा तप्पड़ खा लिए। गलत किए हो तुम निशांत।".... माधव ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया दे दी।


पलक:- गलत नहीं इसे गलतफहमी कहते है। और खून अपने बहन, दोस्त और गर्लफ्रेंड के लिए नहीं खौलेगा तो किसके लिए खौलेगा। कोई नहीं गलतफहमी में गलती हुई है, तो माफी मंगाकर सही कर लेंगे। क्या कहते हो निशांत।


निशांत:- कुछ भी हो गिल्ट तो फील हो ही रहा है ना। उसकी जगह मै होता और कोई मुझे इस तरह से कैंटीन में थप्पड़ मार चुका होता तो मुझे कैसा लगता?


पलक सभी लोगो के साथ उनके ग्रुप के पास पहुंची। इनका पूरा ग्रुप गार्डन में ही बैठा रहता था। लगभग 40-50 लड़के–लड़कियां। सब एक से बढ़कर एक फिगर वाले। जैसे ही चारो पहुंचे, निशांत एक लड़की को देखकर माधव से कहता है… "हाय क्या लग रही है ये तो। ऐसा लग रहा है जैसे मै "स्कार्लेट जोहानसन" की कॉपी देख रहा हूं। उफ्फ मन हराभरा हो गया।"


माधव बाएं साइड से पाऊं मारते… "गधा उधर दाए चित्रा खड़ी है घोंचू, मैं तेरे बाएं ओर हूं। अभी मामला सैटल करने आया है, थोड़ा दिल संभाल।"


इधर पलक उन तीनों को छोड़कर जैसे ही आगे बढ़ी, सभी एक साथ खड़े हो गए। पलक उन्हें अपने पास जमा होते देख मुस्कुराती हुई कहने लगी… "ऐसे एक साथ घेरकर मुझे डराने की कोशिश तो नहीं कर रहे ना?"..


एक लड़का खड़ा होते… "मेरा नाम मोजेक है, मिस पलक भारद्वाज। जानकार खुशी हुई कि तुम भूमि की बहन हो। हमे लगा था हमारा परिचय बहुत पहले हो जाएगा, लेकिन तुमने बहुत देर कर दी यहां हमारे बीच आने में।


पलक:- डरती जो थी। तुम सब एक से बढ़कर एक, कहीं किसी से इश्क़ हो गया तो वो ज्यादा दर्द देता। मुझे थोड़ा कम और तुम लोगो को थोड़ा ज्यादा। वैसे हम दोस्त तो हो ही सकते है।


मोजेक:- ऐसे सूखे मुंह दोस्त कह देने से थोड़े ना होता है। हमारे बीच बैठकर जब तक हम एक दूसरे को नहीं जानेगे, दोस्ती कैसे होगी।


पलक:- अभी होगी ना। मेरे भाई से एक भुल हो गई, सबके बीच तुम्हारे के साथी को उसने थप्पड़ मार दिया।


मोजेक का दोस्त रफी… "कौन वो लड़का जो मेरी बहन रूही को कब से घुरे जा रहा है।"


पलक:- हाहाहाहा.. देखा 4 दिन बैठ गई तुमलोगो के पास तो लफड़े ही होने है। मुझे इश्क़ होने से पहले लगता है मेरा भाई घायल हो जाएगा।


मोजेक:- तुम्हारे इश्क़ से प्रॉब्लम हो सकती है, उस निशांत से नहीं। यदि बात सत्यापित करनी हो तो कभी हमारी गली आ जाना... रूही तो हर किसी पर खुलेआम प्यार बरसाती है। क्यों रूही...


जिस लड़की रुही के बारे में सभी बोल रहे थे, वह बस एक नजर सबको देखी और वहां से चली गई। पलक भी फालतू के बातों से अपना ध्यान हटाती.… मोजेक उस लड़के को भी बुला दो, निशांत उसे दिल से सॉरी कहना चाहता है।


मोजेक:- महफिल में थप्पड़ पड़ी है गलती तो हुई है, और रही बात माफी कि तो एक ही शर्त पर मिलेगी..


पलक:- और वो कैसे..


मोजेक:- हमारे बीच कभी-कभी बैठना होगा। मेरे बाबा सरदार खान जब ये सुनेगे तो खुश होंगे। साथ में इन सब के बाबा भी।


पलक:- ठीक है मोजेक, वैसे जिसे भी थप्पड़ पड़ी उससे कहना हम सब दिल से सॉरी फील कर रहे है।


इसी का नाम जिंदगी है। पलक बचपन से अपने समूह प्रहरी के साथ जिनके खिलाफ लड़ना सीख रही थी, आज उन्ही के ओर से दोस्ती का प्रस्ताव हंसकर स्वीकार कर रही थी। हर समुदाय में अच्छे और बुरे लोग होते है, नागपुर के प्रहरी और सुपरनैचुरल एक जगह साथ खड़े रहकर इस बात का प्रमाण दे रहे थे। ..


देखते ही देखते पुरा साल बीत गया। सेकंड सेमेस्टर भी बीत गया। चित्रा और पलक के समझाने के कारण निशांत कुछ महीनों से माधव के साथ उसके कमरे में रुककर साथ तैयारी कर रहा था। अपना पिछले 4 बैंक मे 2 कवर कर लिया, साथ में इस बार के एग्जाम में एक बैक के साथ नेक्स्ट ईयर क्लास में चला गया।


इन लोगों का पूरा ग्रुप अब एक साल सीनियर हो चुका था और नए लड़के लड़कियां एडमिशन के लिए आ रहे थे। फिर से वहीं रैगिंग, फिर से वही नए लोग के सहमे से चेहरे, और पढ़ाई के साथ सबकी अपनी नई कहानी लिखी जानी थी।


बड़ा सा बंगलो जिसके दरवाजे पर ही लिखा था देसाई भवन। एक लड़का देसाई भवन के बड़े से मुख्य द्वार से अंदर जाने लगा। उसे दरवाजे पर ही रोक लिया गया… "सर, आप कौन है, और किस से मिलने आए है।"..


लड़का:- यहां जयदेव पवार रहते है?


दरबान:- आपको सर से काम है।


लड़का:- नहीं, भूमि से..


दरबान:- सर आपको किस से काम है, सर से या मैडम से?


लड़का:- भूमि मैडम से।


दरबान:- अपना नाम बताइए..


लड़का:- नाम जानकर क्या करोगे, उनसे बोल देना उनका बॉयफ्रेंड आया है।


दरबान, गुस्से में बाहर निकला और उसका कॉलर पकड़ते हुए… "तू जा मयला.. इतनी हिम्मत तेरी"..


लड़का बड़े से दरवाजे के बिल्कुल मध्य में खड़ा था और दरबान उसका कॉलर पकड़े। इसी बीच भूमि की कार हॉर्न बजाती हुई अंदर घुस रही थी, वो दरवाजे पर ही रुक गई। गुस्से में भूमि कार से उतरी… "दरवाजे पर क्या तमाशा लगा रखा है जीवन।"


दरबान जीवन… "मैडम ये लड़का जो खड़ा है.. वो कहता है आपका बॉयफ्रेंड है।"..


"क्या बकवास है ये…".. भूमि तेजी में उसके पास पहुंची और कांधा पकड़कर जैसे ही पीछे घुमाई…. "आर्य"..


आश्चर्य से उसकी आंखें फैल चुकी थी। चेहरे के भाव ऐसे थे मानो जिंदगी की कितनी बड़ी खुशी आंखों के सामने खड़ी हो। भूमि की नम आंखें एक टक आर्यमणि को ही देख रही थी और आर्यमणि अपनी प्यारी दीदी को देखकर, खड़ा बस मुस्कुरा रहा था।
Palak, khan ke bete mojek ke group se dosti kr li hai vahi apne Nitin bhau ko mohit ke sath chhod diya taki vo kamse kam pass to ho jaye... Yha ek baat ko follow kiya gya - kisi ko Pahle se hi judge nhi karna chahiye, hmesha open minded rahkr sabhi se milna chahiye... Jo mujhe bahut pasand aai...
Arya pahuch gya bhumi ke ghar Lekin Apne hi andaj me, btao darban ko Bolta hai bhumi se jakr bolo ki uska bf aaya hai, bechara darban to khali fokat me hi arya ka kaller pakad liya...
Suspense me chhod diya hai aapne fir se ek baar... Koi na Saam ko milte hai...
Superb update bhai sandar jabarjast
 
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