• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,748
259
Last edited:

Tiger 786

Well-Known Member
6,341
23,042
188
भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
Aarya or uski natkhat team to pure josh mai hai.
Lazwaab update
 

Lib am

Well-Known Member
3,257
11,330
158
भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
क्या ही दिमाग लगाया था रूबी ने, बॉक्स खोलने के लिए और वहीं सुकेश की घटिया हरकते भी बताई। सच में ये अपेक्स सुपरनैचुरल्स जलील, घटिया और इंसानियत के नाम पर धब्बा है। ऐसे लोगो को ट्रक के पीछे बांध कर घसीट कर मारना चाहिए।

आर्य ने भी सब क्रू वालो के लालच की सही धज्जियां उड़ा दी और अपना पूरा पैसा लेकर निकल गया। सोने का भी एक दम मस्त इंतजाम किया था। मस्त अपडेट।
 

The king

Well-Known Member
4,239
15,473
158
भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
Nice update bhai waiting for next update
 

Mahendra Baranwal

Active Member
1,054
2,991
158
भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
Bahut hi sunder
 
  • Like
Reactions: Tiger 786 and Xabhi

B2.

New Member
82
231
33
भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
Esa lag raha hai Hollywood ki koi smuggling movie like contraband dekh raha hu bs ab kissi best cop ki entry hogi😂😂😂😂
Awesome update Bhai ❤️🎉
 
  • Like
Reactions: Tiger 786

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,701
144
भाग:–30




एक अध्याय समाप्त होने को था, और पहला लक्ष्य मिल चुका था। रात के तकरीबन 10.30 बजे आर्यमणि वापस आया। भूमि हॉल में बैठकर उसका इंतजार कर रही थी। आर्यमणि आते ही भूमि के पास चला गया… "किस सोच में डूबी हो।"..


भूमि:- सॉरी, वो मैंने तुझे टेस्ट के बारे में कुछ भी नही बताया।


आर्यमणि:- वो सब छोड़ो, मुझे पढ़ने में मज़ा नहीं आ रहा, मुझे कुछ पैसे चाहिए, बिजनेस करना है।


भूमि:- हाहाहाहा… अभी तो तूने ठीक से जिंदगी नहीं जिया। 2-4 साल अपने शौक पूरे कर ले, फिर बिजनेस करना।


आर्यमणि:- मुझे आप पैसे दे रही हो या मै मौसी से मांग लूं।


भूमि:- तूने पक्का मन बनाया है।


आर्यमणि:- हां दीदी।


भूमि:- अच्छा ठीक है कितने पैसे चाहिए तुझे..


आर्यमणि:- 10 करोड़।


भूमि:- अच्छा और किराये के दुकान में काम शुरू करेगा।


आर्यमणि:- अभी स्टार्टअप है ना, धीरे-धीरे काम बढ़ाऊंगा।


भूमि:- अच्छा तू बिजनेस कौन सा करेगा।


आर्यमणि:- अर्मस एंड अम्यूनेशन के पार्ट्स डेवलप करना।


भूमि:- क्या है ये सब आर्य। गवर्नमेंट तुम्हे कभी अनुमति नहीं देगी।


आर्यमणि:- दीदी भरोसा है ना मुझ पर।


भूमि:- नहीं।


आर्यमणि:- क्या बोली?


भूमि:- भाई कुछ और कर ले ना। ये हटके वाला बिजनेस क्यों करना चाहता है। आराम से एक शॉपिंग मॉल का फाइनेंस मुझसे लेले। मस्त प्राइम लोकेशन पर खोल। तेजस दादा को टक्कर दे। ये सब ना करके तुझे वैपन डेवलप करना है। भाई गवर्नमेंट उसकी अनुमति तुम्हे नहीं देगी वो सिर्फ इशारों और डीआरडीओ करता है।


आर्यमणि:- अरे मेरी भोली दीदी, गन की नली उसके पार्ट्स, ये सब सरकारी जगहों पर नहीं बनता है। मैंने सब सोच रखा है। मेरा पूरा प्रोजक्ट तैयार भी है। तुम बस 10 करोड़ दो मुझे और 2 महीने का वक़्त।


भूमि:- ठीक है लेकिन एक शर्त पर। तुझे कितना जगह में कैसा कंस्ट्रक्शन चाहिए वो बता दे। काम हम अपनी जगह में शुरू करेंगे।


आर्यमणि:- जगह 6000 स्क्वेयर फुट। 1 अंडरग्राउंड फ्लोर और 4 फ्लोर उसके ऊपर खड़ा।


भूमि:- ओह मतलब तू प्रोजेक्ट के बदले सरकार से लॉन लेता, फिर अपना काम शुरू करता।


आर्यमणि:- हां यही करने वाला था।


भूमि:- कोई जरूरत नहीं है, तू बस अपना प्रोजेक्ट रेडी रख, बाकी सब मैं देख लूंगी। और कुछ..


आर्यमणि:- हां है ना…


भूमि:- क्या?


आर्यमणि:- जल्दी से खुशखबरी दो, मै मामा कब बन रहा हूं।


भूमि:- हां ठीक मैंने सुन लिया, अब जाएगा सोने या थप्पड़ खाएगा। ..


सुबह-सुबह का वक़्त और आर्यमणि की बाइक सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस के घर पर। घर की बेल बजी और नम्रता दरवाजा पर आते ही…. "आई पहली बार तुम्हारे छोटे जमाई घर आये है, क्या करूं?"..


"छोटे जमाई"… सुनकर ही पलक खुशी से उछलने लगी। वो दौड़कर बाहर दरवाजे तक आयी और आर्यमणि का हाथ पकड़कर अंदर लाते…. "हद है दीदी आप तो ऐसे पूछ रही हो जैसे पहली बार कोई दुल्हन घर आ रही हो। यहां बैठो आर्य, क्या लोगे।"


आर्यमणि:- कल तुम्हारे लिए कुछ शॉपिंग की थी, रख लो।


नम्रता:- जारा मुझे भी दिखाओ क्या लाये हो?


जैसे ही नम्रता बैग दिखाने बोली, पलक, आर्यमणि के हाथ से बैग छीनकर कमरे में भागती हुई…. "पहनकर दिखा देती हूं दीदी, मेरे लिए ड्रेस और एसेसरीज लेकर आया है।"..


नम्रता:- हां समझ गई किस तरह के ड्रेस लाया होगा। और आर्य, आज से कॉलेज जाने की अनुमति..


आर्यमणि:- अनुमति तो कल से ही मिल गयि थी। लेकिन हां कल किसी ने जादुई घोल में लिटा दिया तो मेरे पूरे जख्म भर गये।


"माफ करना आर्य, तुम्हारे कारनामे ही ऐसे थे कि किसी को यकीन कर पाना मुश्किल था। हां लेकिन वो करंट वाला मामला कुछ ज्यादा हो गया था।"…. राजदीप उन सब के बीच बैठते हुए कहने लगा।


अक्षरा:- टेस्ट के नाम पर जान से ही मार देने वाले थे क्या? सीधा-सीधा वुल्फबेन इंजेक्ट कर देते।


राजदीप:- फिर पता कैसे चलता आर्यमणि कितना मजबूत है। क्यों आर्य?


आर्यमणि:- हां बकड़े की जान चली गई और खाने वाले को कोई श्वाद ही नहीं मिला।


राजदीप:- बकरे से याद आया, आज मटन बनाते है और रात का खाना हमारे साथ, क्या कहते हो आर्य।


"वो भेज है दादा, नॉन भेज नहीं खाता।".. अंदर से पलक ने जवाब दिया।


राजदीप:- पहला वुल्फ जो साकहारी होगा।


आर्यमणि:- मेरे दादा जी मुझे कुछ जरूरी ज्ञान देने वाले थे। इसलिए मै जब मां के गर्भ में नहीं था उस से पहले ही उन्होंने मां को नॉन भेज खाने से मना कर दिया था। जबतक मै पुरा अन्न खाने लायक नहीं हुआ, तबतक उन्होंने मां को मांस खाने नहीं दिया था। दादा जी मुझे कुछ शुद्घ ज्ञान के ओर प्रेरित करने वाले थे इसलिए..


उज्जवल:- तुम्हारे दादा जी बहुत ज्ञानी पुरुष थे। अब लगता है वो शायद किसी के साजिश का शिकार हो गये। कोई अपनी दूर दृष्टि किसी कार्य में लगाये हुये था जिसके रोड़ा तुम्हारे दादा जी होंगे। दुश्मन कोई बाहर का नहीं था, वो तो अब भी घर में छिपा होगा।


राजदीप:- बाबा ये क्या है? वो बच्चा है अभी। और सुनो बच्चे शादी तय हो गई है इसका ये मतलब नहीं कि ज्यादा मस्ती मज़ाक और घूमना-फिरना करो। पहले कैरियर पर ध्यान दो।


आर्यमणि:- कैरियर पर ध्यान दूंगा तो आपके जैसा हो जाऊंगा भईया। जल्दी शादी कर लो वरना सुपरिटेंडेंट से अस्सिटेंट कमिश्नर बनने के चक्कर में लड़की नहीं मिलेगी।


आर्यमणि की बातें सुनकर सभी हंसने लगे, इसी बीच पलक भी पहुंच गई। ब्लू रंग की पेंसिल जीन्स, जो टखने के थोड़ा ऊपर था। नीचे मैचिंग शू, ऊपर ब्राउन कलर का स्लीवलेस टॉप और उसके ऊपर हल्के पीले रंग का ब्लेजर। बस आज तैयार होने का अंदाज कुछ ऐसा था कि पलक नजर मे बस रही थी।


राजदीप:- ये उस दिन भी ऐसे ही तैयार होकर निकली थी ना? आई हमारे लगन फिक्स करने से पहले कहीं दोनो के बीच कुछ चल तो नही रहा था? जब इसका लगन तय कर रहे थे, तब पलक ने एक बार भी नहीं कहा कि वो किसी और को चाहती है। दाल में कुछ काला है।


पलक:- आप पुलिस में हो ना दादा, कली दाल पकाते रहो, हम कॉलेज चलते है। क्यों आर्य..


दोनो वहां से निकल गये और दोनो को जाते देख सभी एक साथ कहने लगे… "दोनो साथ में कितने प्यारे लगते है ना।"..


"बहुत स्वीट दिख रहे हो, चॉकलेट की तरह"… पलक आर्य के गाल को चूमती हुई कहने लगी।


आर्यमणि, कार को एक किनारे खड़ी करके पलक का हांथ खींचकर अपने ऊपर लाया और उसके खुले बाल जो चेहरे पर आए थे, उस हटाते हुए पलक की आखों में झांकने लगा… पलक कभी अपनी नजर आर्यमणि से मिलाती तो कभी नजरें चुराती… धीरे-धीरे दोनो करीब होते चले गए। आर्यमणि अपने होंठ आगे बढ़ाकर पलक के होंठ को स्पर्श किया और अपना चेहरा पीछे करके उसके चेहरे को देखने लगा।


पलक अपनी आखें खोलकर आर्यमणि को देखकर मुस्कुराई और अगले ही पल उसके होंठ से अपने होंठ लगाकर, उसे प्यार से चूमने लगी। दोनो की ही धड़कने बढ़ी हुई थी। आर्यमणि खुद को काबू करते अपना सर पीछे किया। पलक अब भी आंख मूंदे बस अपने होंठ आगे की हुईं थी।


आर्यमणि, होंठ पर एक छोटा सा स्पर्श करते…. "रात में ऐसे पैशन के साथ किस्स करना पलक, कार में वो मज़ा नहीं आयेगा।"


आर्यमणि की बात सुनकर पलक अपनी आखें दिखती…. "कॉलेज चले।"..


कॉलेज पहुंचकर जैसे ही पलक कार से उतरने लगी…. "पलक एक मिनट।"..


पलक:- हां आर्य..


अपने होंठ से पलक के होंठ को स्पर्श करते… "अब जाओ"… पलक हंसती हुई.. "पागल"…


आर्यमणि पार्किंग में अपनी कार खड़ी किया, तभी रूही भी उसके पास पहुंच गई… "हीरो लग रहे हो बॉस।"


आर्यमणि:- थैंक्स रूही..बात क्या है जो कहने में झिझक रही हो।


रूही:- तुम्हे कैसे पता मै झिझक रही हूं।


आर्यमणि उसके सर पर टफ्ली मारते… "मै किसी के भी इमोशंस कयि किलोमीटर दूर से भांप सकता हूं, सिवाय अपनी रानी के।"..


रूही:- चल झूटे कहीं के…


आर्यमणि, उसे आंख दिखाने लगा। रूही शांत होती… "सॉरी बॉस।"..


आर्यमणि:- जाकर कोई बॉयफ्रेंड ढूंढ लो ना।


रूही:- हमे इजाज़त नहीं आम इंसानों के साथ ज्यादा मेल-जोल बढ़ना। वैसे भी किसी पर दिल आ गया तो जिंदगी भर उसे साथ थोड़े ना रख सकते है। पहचान तो खुल ही जाना है। मुझसे नहीं तो मेरे बच्चे से।


आर्यमणि:- तुम मेरे पैक में हो और पहले ही कह चुका हूं, पुरानी ज़िन्दगी को अलविदा कह दो। खुलकर अपनी जिंदगी जी लो। तुम जिस भविष्य कि कल्पना से डर रही हो, उसकी जिम्मेदारी मेरी है।


रूही:- क्या सच में ऐसा होगा।


आर्यमणि:- मेरा वादा है।


रूही आर्यमणि की बात सुनकर उसके गले लग गई। आर्यमणि उसे खुद से दूर करते… "यहां इमोशन ना दिखाओ, जबतक सरदार का कुछ कर नहीं लेते। अब तुम बताओगी झिझक क्यों रही थी।"..


रूही:- अलबेली इधर आ…


रूही जैसे ही आवाज़ लगाई, बाल्यावस्था से किशोरावस्था में कदम रखी, प्यारी सी लड़की बाहर निकलकर आयी.. आर्यमणि उसे देखकर ही समझ गया वो बहुत ज्यादा घबरायि और सहमी हुई है। उसके खुले कर्ली बाल और गोल सा चेहरा काफी प्यारा और आकर्षक था, लेकिन अलबेली की आंखें उतनी ही खामोश। देखने से ही दिल में टीस उठने लगे, इतनी प्यारी लड़की की हंसी किसने छीन ली।


आर्यमणि, थोड़ा नीचे झुककर जैसे ही अलबेली के चेहरे को अपने हाथ से थामा... उस एक पल में अलबेली को अपने अंदर किसी अभिभावक के साये तले होने का एहसास हुआ, जो अंदर से मेहसूस करवा जाए कि मै इस साये तले खुलकर जी सकती हूं। उस एक पल का एहसास... और अलबेली के आंखों से आंसू फुट निकले...


आर्यमणि उसके चेहरे को सीने से लगाकर उसके बलो में हाथ फेरते हुए… "अलबेली रूही दीदी के साथ रहना। आज से तुम्हारे इस प्यारे चेहरे पर कभी आंसू नहीं आयेंगे, ये वादा है। जाओ तुम कार में इंतजार करो।"..


रूही:- ट्विन अल्फा के मरने के जश्न में अलबेली के बदन को नोचा जा रहा था। ये भी उस किले के उन अभगों मे से है, जिसका कोई पैक नहीं, सिवाय इसके एक जुड़वा भाई के। इसका जुड़वा, इसे बचाने के लिए बीच में आया तो उसे कल रात ही मार दिया गया। किसी तरह मै अलबेली को वहां से निकाल कर लायी हूं, लेकिन सरदार को मुझपर शक हो गया...


आर्यमणि:- हम्मम ! किसकी दिमागी फितूर है ये..


रूही:- और किसकी सरदार खान के चेले नरेश और उसके पूरे पैक की।


आर्यमणि:- चलो सरदार खान के किले में चलते है। अपना पैक के होने का साइन बनाओ। आज प्रहरी और सरदार खान को पता चलना चाहिए कि हमारा भी एक पैक है। अलबेली यहां आओ।


अलबेली:- जी भईया..


आर्यमणि:- तुम अपने बदले के लिए तैयार रहो अलबेली। हमे घंटे भर में ये काम खत्म करना है। लेकिन उससे पहले इसे ब्लड ओथ लेना होगा। क्या ये अपना पैक छोड़ने के लिए तैयार है?


रूही:- इसका कोई पैक नहीं। बस 2 जुड़वा थे। इसके अल्फा को पिछले महीने सरदार ने मार दिया था और बचे हुए बीटा अलग-अलग पैक मे समिल हो गये सिवाय इन जुड़वा के, जिन्हें कमजोर समझ कर खेलने के लिये किले में भटकने छोड़ दिया।


आर्यमणि:- चलो फिर आज ये किला फतह करते है। ब्लड ओथ सेरेमनी की तैयारी करो।


रूही अलबेली को लेकर सुरक्षित जगह पर पहुंची। चारो ओर का माहौल देखने के बाद रूही ने आर्यमणि को बुलाया। आर्यमणि वहां पहुंचा। रूही, चाकू अलबेली के हाथ में थमा दी। अलबेली पहले अपना हथेली चिर ली, फिर आर्यमणि का। और ठीक वैसे ही 2 मिनट की प्रक्रिया हुई जैसे रूही के समय में हुआ था।


अलबेली भी अपने अंदर कुछ अच्छा और सुकून भरा मेहसूस करने लगी। रूही के भांति वह भी अपने हाथ हाथ को उलट–पलट कर देख रही थी। अलबेली को पैक में सामिल करने के बाद आर्यमणि, उन दोनों को लेकर सरदार खान की गली पहुंचा, जिसे उसका किला भी मानते थे। जैसे ही किले में आर्यमणि को वेयरवॉल्फ ने देखा, हर कोई उसे ही घुर रहा था। आर्यमणि आगे–आगे और उसके पीछे रूही और अलबेली। तीनों उस जगह के मध्य में पहुंचे जिसे चौपाल कहते थे। इस जगह पर आम लोगों को आने नहीं दिया जाता था। 4000 स्क्वेयर फीट का खुला मैदान, जिसके मध्य में एक विशाल पेड़ था और उसी के नीचे बड़ा सा चौपाल बना था, जहां बाहर से आने वालों को यहां लाकर शिकार किया करते थे तथा सरदार खान की पंचायत यहीं लगती थी।


रूही को देखते ही वहां का पहरेदार भाग खड़ा हुआ। रूही ने दरवाजा खोला, आर्यमणि सबको लेकर अंदर मैदान में पहुंचा। रूही अपने चाकू से उस चौपाल के पेड़ पर नये पैक निशान बनाकर उसे सर्किल से घेर दी। सर्किल से घेरने के बाद पहले आर्यमणि ने अपने खून से निशान लगाया, फिर रूही ने और अंत में अलबेली ने। यह लड़ाई के लिये चुनौती का निशान था। इधर किले कि सड़क पर जैसे ही आर्यमणि को सबने देखा, सब के सब सरदार खान के हवेली पहुंचे। मांस पर टूटा हुआ सरदार खान अपने खाने को छोड़कर एक बार तेजी से दहारा….. "सुबह के भोजन के वक़्त कौन आ गया अपनी मौत मरने।".. ।


नरेश:- सरदार वो लड़का आर्यमणि आया है, उसके साथ रूही और अलबेली भी थी।


सरदार:- अलबेली और रूही के साथ मे वो लड़का आया है। क्या वो हमसे अलबेली के विषय में सवाल-जवाब करने आया है? या फिर कॉलेज के मैटर में इसने जो हमारे कुछ लोगों को तोड़ा था, उस बात ने कहीं ये सोचने पर तो मजबूर नहीं कर दिया ना की हम कमजोर है। नरेश कहीं हमारी साख अपने ही क्षेत्र में कमजोर तो नहीं पड़ने लगी...


नरेश:- खुद ही चौपाल तक पहुंच गया है सरदार, अब तो बस भोज का नगाड़ा बाजवा दो।


सरदार ने नगाड़ा बजवाया और देखते ही देखते 150 बीटा, 5 अल्फा के साथ सरदार चौपाल पहुंच गया। सरदार और उसके दरिंदे वुल्फ जैसे ही वहां पहुंचे, पेड़ पर नए पैक का अस्तित्व और उसपर लड़ाई की चुनौती का निशान देखते ही सबने अपना शेप शिफ्ट कर लिया… खुर्र–खुरर–खुर्र–खूर्र करके सभी के फेफरों से गुस्से भरी श्वंस की आवाज चारो ओर गूंजने लगी.…
आर्य का यूं अचानक व्यापार करने का फैसला, वो भी आर्म एक्यूपमेट की ले लेना कोई आम बात नहीं हैं। इसके पीछे कहीं न कहीं किसी राज के छुपे होने की बूॅं आ रहा हैं।

रूही ट्यून अल्फा का खात्मा कर अल्फा बन गई और वादे के मुताबिक आर्य से समागम भी कर लिया साथ ही एक अल्फा भी बन गई।

आर्य के निर्देश अनुसार रहीं ने एक असहाय बुल्फ अलबेली को अपने पैक में सामिल कर लिया और इन दो (रूही और अलबेली) को अपने पैक में सामिल करता हुआ देखकर लग रहा है आर्य अपने पैक में अधिकतर उन्ही को लेने वाला हैं जो या तो कमजोर समझा जाता हैं जिसके कर उनके साथ कुरूरता और दरिंदगी किया जाता हैं।

अब आर्य अपने नए बने दो पैक सदस्य के साथ सरदार खान के विला में घुस गया और और युद्ध की चुनौती भी दे दिया ही देखते यह युद्ध कितना खतरनाक होता है ओर कितने ओर लोग आर्य के पैक में सामिल होता है।
 

@09vk

Member
358
1,324
123
Bahut acha
भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
 
  • Like
Reactions: Xabhi and Tiger 786

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,701
144
भाग:–33



शाम के लगभग 7.30 बज रहे थे जब आज एक बार फिर रूही अलबेली को बस्ती भेज रही थी। लेकिन आर्यमणि, रूही को नजरों से ही समझा दिया की अब रुक जाना चाहिए और वह घर वापस लौट आया। जैसे ही वो पहुंचा भूमि अपने कमरे से बाहर निकलती… "आर्य तैयार हो जा"..


आर्यमणि:- ठीक है दीदी…


थोड़ी देर बाद पुरा परिवार साथ था। सभी लोग मंदिर जाकर पूजा किये। भूमि के चेहरे पर अलग ही खुशी थी। वो आर्यमणि के माथे पर तिलक लगती हुई कहने लगी… "बहुत जल्द परिवार में तुझे कोई मामा कहने वाला आयेगा। उसके नन्हे-नन्हे हाथो को पकड़कर तू उसे चलना सिखाएगा। सिखाएगा ना।"


आर्यमणि प्यार से भूमि के गाल पर रंग लगाते…. "मेरा उतराधिकारी वही बनेगा। केवल प्रहरी वाली इक्छा मत बोलना दीदी।"..


भूमि:- ठीक है नहीं बोलूंगी खुश। बस कुछ बातें हैं जो मै घर चलकर आराम से बताउंगी।


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है दीदी।


वहां से सीधा भूमि अपने मायके निकल गई। घर गई, मीनाक्षी से मिली और घर में शोर-गुल होने लगा। इसी बीच जया और केशव भी पहुंच गए।… "अरे दीदी अब मै यहीं रहने वाली हूं, क्यों इतना शोर मचा रही हो।"..


तभी अंदर से भूमि निकल कर आयी और जया को पाऊं छू कर प्रणाम करने लगी। जया भूमि का खिला चेहरा देखते ही समझ गई और उसे अपने गले से लगाकर उसके गाल को चूमती… "अब तू यहां से हिलेगी नहीं। पूरे 33 महीने जबतक तेरा आने वाला 2 साल का नहीं होता। और इसपर कोई बहस नहीं होगी। आर्य, चल तू घर बदल ले बेटा। आज से तू भी यहीं रहेगा।"..


अब जब जया मासी ने बोल दिया फिर कौन बात टाल सकता था। ना तो भूमि ने एक बार भी ना नुकर की और ना ही जयदेव ने कुछ बोला। अगले 3-4 दिन तक तो बधाई देने वालों का मेला लगा हुआ था। जो आ सकते थे वो भूमि से आकर मिले। जो नहीं आ सकते थे उन्होंने फोन पर ही बधाइयां दे दी।


सनिवार की रात थी जब भूमि को आर्यमणि के वूल्फ पैक बनाने वाली बात पता चल गई। भूमि थोड़ी खींची और चिढी भी हुई थी, बस सही मौके के इंतजार में थी। थोड़ा इंतजार करना पड़ा लेकिन वो मौका भी मिल ही गया। भूमि अकेली थी और जैसे ही आर्यमणि उसके करीब आकर बैठ… "यहां मेरे पास क्यों आए हो?"


आर्यमणि:- आपसे बात करने।


भूमि:- क्यों?


आर्यमणि:- हम्मम ! इतना गुस्सा। मतलब आपको मेरी और सरदार खान की बात पता चल गई।


भूमि:- सरदार खान को बाद में देखूंगी। पहले तो मै तेरे पैक के बारे में जानना चाहूंगी। तू क्या वुल्फ है जो तुझे पैक चाहिए।


आर्यमणि, चौंकते हुए…. "वुल्फ इसे पैक का नाम देते है हम इसे क्लोज रिश्ता कहते है। इसमें गलत क्या है।


भूमि:- है गलत, जुबान ना लड़ाओ।


आर्यमणि:- आप मुझसे यहां झगड़ा करने बैठी हो या सवालों के जवाब चाहिए।


भूमि:- सवालों के जवाब।


आर्यमणि:- पहला सवाल?


भूमि हंस दी… "मुझे पिघला मत। पक्की खबर आयी है कि तूने वेयरवुल्फ का नया पैक बनाया है।"


आर्यमणि:- हां बनाया है, आपको बताता भी लेकिन उस रात आपने इतनी बड़ी खुशखबरी दी कि मै अपनी बात भुल गया। पैक का नाम भी है, अल्फा पैक।


भूमि:- पूछ सकती हूं क्यों पैक बनाया?


आर्यमणि:- भूमि देसाई ने उसी लड़की रूही को क्यों बचाया जिसे सड़क पर लड़के नोच रहे थे? आपको यदि रूही या अलबेली मे जानवर दिख रहा है तो आप दूर रहिए। मुझे वो इंसान नजर आती है जिनके अंदर भावनाएं है। इसलिए उनसे दोस्ती है। उन्होंने कहा हम पैक को परिवार मानते है और यहां मेरा कोई परिवार नहीं। सो मैंने उसके भावना का मान रखा। कोई मेरे परिवार को तंग कर रहा था, इसलिए मैंने तंग करने वालों को उसके नियम अनुसार सजा दे आया। अब आप मुझे कह दो कि मै गलत हूं।


भूमि:- बेटा तेरी बात सच है लेकिन अगर उसने भी तुझे अपने जैसा बना दिया तो।


आर्यमणि, भूमि के गाल खिंचते… "कितना चाहोगी आप मुझे। बस हर प्वाइंट में यही ढूंढ़ती हो की कहीं मै आपसे दूर तो नहीं हो रहा। बाइट का असर करने का नियम है। बाइट का विषाणु शरीर के ब्लड फ्लो से होते हुए सीने तक पहुंचने में 6 से 8 घंटे लेता है, जबकि लूथरिया बुलापिन उसी विषाणु का तोड़ है। रोज मेरे आने के बाद एक इंजेक्शन लगा देना।


भूमि:- हां लेकिन ये सुरक्षित तरीका नहीं है। यदि बाइट किसी स्ट्रॉन्ग अल्फा की हुई तो लूथरिया बुलापिनी जहर की तरह काम करेगा और बाइट के बाद जितनी दूर तक वो विषाणु फैला होगा, वो अंग निष्क्रिय हो जाएगा।


आर्यमणि:- तभी तो उन्हें कंट्रोल सीखा रहा हूं और साथ में ये भी की जानवर का शिकार करके मासहारी प्रवृति अपने अंदर ना लाए। हो सके तो फल सब्जी पर आश्रित रहे और भूना हुआ मांस ही खाए। अब बोलो।


भूमि:- ठीक है तू सही मै गलत। जा अपना लंबा चौड़ा पैक बना ताकि उन्हें अच्छी जिंदगी मिले। प्रहरी समूह मे इसपर कोई सवाल-जवाब हुआ तो तेजस दादा जवाब देंगे। वैसे भी मैं बहुत इक्कछुक है उस सरदार खान की नकेल कसने के लिए। जा तू आराम कर, बाकी के काम मैं देखती हूं।


आर्यमणि, अपने कमरे में आराम करने चला गया। यही कोई रात के 2 बजे उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा जब खुला तो सामने रिचा थी, और क्या अवतार में थी। एकबार तो आर्यमणि की नजर भी ठहर गयि। रिचा, आर्यमणि को किनारे कर अंदर उसके बिस्तर पर बैठती.… "वहीं खड़े अब भी मेरे बारे में कल्पना कर रहे क्या?"…


आर्यमणि:– नही तो...


रिचा:– तो फिर रूम लॉक करो और आओ...


जैसे ही आर्यमणि रूम लॉक करके पलटा उसकी आंखें फैल गई। रिचा अपने ऊपर के कपड़े उतारकर केवल ब्रा और पेंटी में बैठी थी।…. "देखो तुम शर्त की बात को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले ली हो। या फिर यहां कुछ और जानने के इरादे से हो"…


रिचा, आर्यमणि को देखकर हंसने लगी और अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने हाथों से ब्रा को उतारती… "कुछ और जानने से तुम्हारा मतलब"…


आर्यमणि:– रिचा किसी को पता चला तो परिवार में बवाल हो जाएगा, तुम ऐसे अदा मत दिखाओ मुझे...


"और यदि मैं परिवार से नही होती तो"… रिचा अपने गोल सुडोल स्तनों के साथ खेलती हुई पूछने लगी...


आर्यमणि:– देखो मेरी शादी तय हो गई है। मेरी एक गर्लफ्रेंड है...


रिचा, अपने दोनो पाऊं फैलाकर पेंटी में अपना हाथ डाल ली, और मादकता से अपने होंठ काटती... "तो आओ ना लड़के, दिखाओ की तुम अपनी गर्लफ्रेंड को कैसे संतुष्ट करोगे"…


आर्यमणि:– ऐसी बात है रिचा... लेकिन एक बात बता दूं मैं... मुझे किसी लड़की को खुश करने का जरा भी अनुभव नही...

"आह्ह्ह… क्या वाकई में आर्य… तो जब तुम इतने कच्चे हो फिर तो अब तक तुम्हे कूदकर मेरे ऊपर चढ़ जाना चाहिए था और अपनी हसरत खोलकर दिखा देना थी"…

"ऐसी बात है क्या"…. कहते हुए आर्यमणि ने रिचा को धक्का देकर लिटा दिया और अपना पैंट खोलकर सीधा बिस्तर पर चढ़ गया.…

रिचा अपना हाथ आगे बढ़ाकर आर्यमणि के लिंग को अपने दोनो हाथ के बीच दबोचती.… "आज तो तुम्हारा हथियार भरी बंदूक की तरह तना है। उफ्फ ये कितना लंबा और मोटा है आर्यमणि... ये तो मेरे नीचे जब घुसेगा, मेरी छेद को और बड़ा कर देगा।…

"आह्ह्ह्ह, रिचा तुम्हारे हाथ... उफ्फ मजा आ रहा है ऐसे ही आगे पीछे करते रहो"….

रिचा अपना एक हाथ हटाकर आर्यमणि का एक हाथ अपने हरे भरे वक्ष पर डाली, और दूसरा हाथ ले जाकर अपनी योनि पर रखती... "जरा इनके साथ भी खेलो आर्य... निचोड़ डालो मेरे दोनो कबूतर को... मेरे योनि को पूरा मसल डालो... आह्ह्ह्हह… तुम्हारे होंठ मेरे होंठ से लगाकर... रस भरा चुम्बन का मजा दो आर्य"…

आर्यमणि, रिचा के कमर के पास अपना थोड़ा पाऊं फैलाकर बैठा। एक हाथ से उसके स्तन को जोर जोर से मसलने लगा। दूसरे हाथ पेंटी में डालकर उसकी योनि से खेलने लगा... होंठ से होंठ जुड़ चुके थे। आर्यमणि अपना जीभ अंदर तक डालकर रस भरा चुम्बन लेने लगा।

जिस्म में जैसे चिंगारी फूटी हो। रिचा का हाथ ऐसा कमाल कर रहा था की लिंग झटके खाने लगा। जोश इतना हावी था की आर्यमणि ने वक्ष को इतना तेज निचोड़ा की रिचा उठकर बैठ गई.… "आह.. जंगली.. उखड़ने तो नही वाले थे।"… लेकिन रिचा की बात का जैसे उसपर कोई असर ही नही हुआ हो।

आर्यमणि खड़ा हो गया। उसका खड़ा लिंग रिचा के मुंह के पास झूलने लगा। आर्यमणि रिचा के बाल को मुट्ठी में पकड़कर उसका गर्दन ऊपर किया और खुद का चेहरा नीचे झुकाकर एक जोरदार चुम्बन के बाद लिंग को रिचा के गाल से सटाकर हिलाने लगा। रिचा हंसती हुई पूछने लगी... "इसका क्या मतलब है मेरे भोले शिकारी"…

आर्यमणि बिना कोई जवाब दिए लिंग को अब उसके होंठ से लगा दिया... रिचा बिना कोई देर किए अपना मुंह खोल दी। जैसे ही रिचा मुंह खोली आर्यमणि अपना तना लिंग झटके में अंदर डालकर कमर को झटका देने लगा। रिचा का पूरा मुंह भर गया। आर्यमणि का जोश रिचा से संभाला नही जा रहा था। वह लिंग को बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी और आर्यमणि उसका बाल पकड़कर मुंह में ही जोर जोर से झटके मारने लगा... रिचा जब ज्यादा जोड़ लगाकर लिंग को मुंह से निकालने की कोशिश की, आर्यमणि एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया।


रिचा के पूरे गाल लाल हो गए। मुंह का लार चूकर उसके पूरे मुंह और छाती पर फैल गया था। रिचा का पूरा मुंह लाल हो गया था। रिचा किसी तरह हिम्मत जुटाकर आर्यमणि को धक्का दी और बिस्तर पर हाथ फैलाकर लेट गई। लेटकर वो अपने श्वांस सामान्य कर रही थी तभी आर्यमणि रिचा के पेंटी को एक झटके में उसके पाऊं खींचकर निकाल दिया। रिचा संभल भी नही पाई थी उस से पहले ही आर्यमणि ने उसके दोनो पाऊं फैला दिया। पाऊं फैलते ही रिचा की योनि बिलकुल सामने थी.… "यहां तो ऐसा लग रहा है कभी बाल ही नही थे... बाल कहां गए रिचा"…


रिचा झल्लाती हुई.… "तुझ चुतिए के लिए अपनी चूत को साफ़ करके आयी थी। साले जंगली, हरामजदा"…


रिचा इतना बोल ही रही थी की तभी आर्यमणि अपना बड़ा सा मुंह खोलकर उसकी योनि पर रखा और योनि के ऊपरी हिस्से पर अपने दांत घिसने लगा.… "आआआह्ह्ह.. हां हां... आह्हहहहह, मर गई आर्य.. उफ्फ…" चिंगारियां रिचा के बदन से फूटनी शुरू हो गई.. उसका सारा गुस्सा मादक सिसकारी में बदल गया। आर्यमणि के बाल को मुट्ठी में दबोच कर उसका मुंह अपने योनि के अंदर और भी दबाने लगी। अपने गोरे चिकने पाऊं से उसके गर्दन पर दवाब बनाने लगी। रिचा ऐसी पागल हुई की उसका कमर हिलने लगा।

कुछ देर की योनि चुसाई में ही रिचा पिघल कर बह गई। आर्यमणि के बाल को खींचकर वो अपने ऊपर ली और नीचे हाथ लगाकर उसका लिंग पकड़ती अपनी योनि पर घिसने लगी.… "आह्हहहहह, आर्य चूत को तुम्हारे लिए ही संवार कर लाई थी... आज शांत कर दो... बहुत जल रहा है।"..


आर्यमणि भी रिचा के पूरा ऊपर आते उसके गर्दन को चूमना शुरू किया और एक ही झटके में अपना पूरा लिंग रिचा के योनी में उतार दिया। "आह्ह्ह्ह्" की मादक सिसकारी के साथ रिचा हवा में उड़ने लगी। आर्यमणि तो जैसे मजे के सागर में था। लिंग कसा हुआ अंदर जाता और बाहर आता। उसे ऐसा लग रहा था वह योनि के छेद को फैलाकर अंदर घुसा रहा और बाहर कर रहा।


दोनो के गोरे बदन पसीने से तर थे। रिचा अपने पूरा पाऊं फैलाए आर्यमणि के नीचे थी और ऊपर से आर्यमणि उभरा हुआ नितंब दिख रहा था जो नीचे अपने लिंग से कसी हुई योनि में लगातार जगह बनाते धक्का मार रहा था। रिचा अपना सर दाएं बाएं करती मादक सिसकारियां भर रही थी। आर्यमणि का नया खून पूरे उबाल पर थापा थाप धक्के लगा रहा था।


योनि और लिंग का संगम इतना झन्नाटेदार था की आर्यमणि पहले धक्के से जो शुरू हुआ फिर रुका ही नही... धक्कों की रफ्तार अपने बुलंदियों पर.. आर्यमणि हांफते हुए धक्का लगा रहा था। रिचा सिसकारी भरती हर धक्के मजा ले रही थी। तभी पहले रिचा की सिसकारी अपनी बुलंदियों पर गई फिर आर्यमणि धक्का मरते मारते पूरा उफान पर आ गया... "आह्हहहहहहहहहहहहह" की जोरदार आवाज दोनो के मुंह से एक साथ निकली और आर्यमणि हांफते हुए रिचा के ऊपर लेट गया।


कुछ देर बाद रिचा आर्यमणि को अपने ऊपर से हटती, उठ गई। रिचा जैसे ही उठी आर्यमणि उसका हाथ पकड़ते... तुम जा रही हो क्या?"..


रिचा:– अपनी एक बार की शर्त थी...


आर्यमणि उसका हाथ पकड़कर अपने ऊपर गिराया। उसके गोल सुडोल वक्ष आर्यमणि के सीने में धस गया। आर्यमणि रिचा के चेहरे को ऊपर करता... "हां शर्त ये थी की एक बार तुम न्यूड शो दिखाओगी और उसमे मैं अपनी मर्जी का कर सकता हूं"…


रिचा, हंसती हुई आर्यमणि के होंठ पर एक जोरदार चुम्बन देती... "मतलब"…. आर्यमणि, रिचा के दोनो पाऊं फैलाकर अपने कमर पर लदने के लिए विवश कर दिया और अगले ही पल अपने लिंग को उसके योनि के से लगाकर एक धक्का लगाते... "मतलब तुम्हारे अंदर मेरा हथियार कितनी बार जायेगा वो तय नहीं हुआ था"…


"आह्हहहहहहहहहहह... जंगली... पहले बता तो देते मैं तैयार हो जाती... उफ्फ कहर ढा रहे हो आर्यमणि"…


आर्यमणि घचाघच धक्के लगाते... "किसी शिकारी का शिकार करना काफी मजेदार होता है वो भी तब जब केवल एक बार के लिए आयी हो। फिर तो नाग का पूरा जहर उतर दो".…


"उफ्फफफफफफफफ, ऊम्ममममम आर्य... एक ही बार में पूरा निचोड़ लोगे क्या... मेरी चूत का भोसड़ा बना दिए"…


आर्यमणि, रिचा को सीधा बिठाया। रिचा आर्यमणि के लिंग पर सीधा बैठी थी और आर्यमणि लेटकर नीचे से धक्का मार रहा था... आर्यमणि अपने दोनो हाथ ऊपर ले जाकर उसके 34 के साइज के गोल वक्ष को अपने दोनो हाथ में दबोचकर... "ये चूत और भोसड़ा कहां से सीखी"…


"ऊम्मममममममममममम... आह्हहहहहहहहहह, तुम्हे किसी ने अब तक लंड, चूत नही सिखाया"…


"उफ्फफफफफ तुम हो न... मेरा हथियार जैसे बटर की भट्टी में जा रहा है... कितना मजा आ रहा है धक्का मारने में"…


"अह्ह्ह्ह… तुम्हारा लंड और स्टेमिना दोनो मजेदार है..." फिर रिचा अपने बालों को झटकती... "आह्हहहहहहह, और तेज चोदो मुझे... ऊम्मममममममम, आज चूत फाड़ दो… आज तो बड़ी तड़प रही... हां.. हां.. हां.. ऐसे ही तेज तेज धक्का मरते रहो… आह्हहहहहहहहहह, कहां थे आर्यमणि अब तक... उफ्फ चूची पर तो रहम नहीं किया.. चोदो.. चोदो… और तेज.. और तेज..."


"उफ्फ काफी गरम हो गई हो... वैसे रहता तो तुम्हारे पास ही हूं"…. "हां आर्यमणि काफी गरम हो गई.. ऐसे ही चोद चोद के ठंडा करो... आह्हहहहहहहह, ऊम्मममममम.. जब जी करे रात को लंड लेकर चले आना... आज शर्त वाला है... आगे कोई शर्त नहीं... जैसे मर्जी हो चोदना... उफ्फफफफफफफ, मेरा ओर्गास्म हो गया रे… आह्ह्ह्ह्ह"..


घमासान के बाद एक फिर दोनो हांफते हुए लेटे। रिचा को लगा की आर्यमणि कहीं तीसरे राउंड के लिए न तैयार हो जाए। नया–नया सेक्स के सुरूर में अक्सर हो जाता है इसलिए रिचा जल्दी से कपड़े पहनकर अपने कमरे में आ गई। जैसे ही कमरे में पहुंची वैसे ही कॉल लगा दी...


दूसरे ओर से... "सब हो गया"..


रिचा:– हां सब हो गया और आर्यमणि ने शेप शिफ्ट नही किया। और कोई टेस्ट बाकी है....


दूसरी ओर से... "नही और कोई टेस्ट बाकी नही। लगता है आर्यमणि के दादा ने उसे कुछ खास दिया है। या फिर गंगटोक में उसे कुछ ऐसा मिल गया है जिससे वेयरवुल्फ तो उसके सामने कुछ है ही नही... उसकी ताकत के सोर्स का पता करना होगा।"..


रिचा:– वो अच्छा लड़का है। वुल्फ की जिंदगी सवार रहा है। फिर आप सबको उसकी ताकत का सोर्स क्यों जानना है। शिकारी भी सक्षम है वोल्फ से लड़ने में। फिर आप उसकी ताकत का सोर्स जानकर क्या करेंगे.. वोल्फ की तरह खुद भी तो कहीं ताकत बढ़ाने की चाह है आप सबकी।


दूसरी ओर से:– ये तुम्हारे चिंतन का विषय नही। जितना कहा जाए बस उतना करो..


रिचा:– जितना कहा उतना कर दिया। अब यदि मुझसे आर्यमणि के बारे में कुछ भी पता करवाने की उम्मीद नहीं रखियेगा... मैं किसी के ताकत का सोर्स पता करके उसकी ताकत पाने की चाह में प्रहरी नही ज्वाइन की हूं, इसलिए आगे मुझसे कोई उम्मीद न रखिए...


रिचा फोन रखकर खुद में ही समीक्षा करती.… "आखिर ये सब के सब आर्यमणि के पीछे हाथ धोकर क्यों परे है। उफ्फ बात कुछ भी हो लेकिन रात बना दी लड़के ने। क्या जोश है... जबतक किसी की हो न जाति मैं तो पूरा मजा लूंगी अब"…


रविवार का दिन। छुट्टी कि सुबह लेकिन आपातकालिक बैठक प्रहरी की। उच्च सदस्यी बैठक में पलक बोर ना हो इसलिए अपने सहायक तौड़ पर वो आर्यमणि को ले जाना चाहती थी। लेकिन वुल्फ पैक के मसले को देखते हुए पलक निशांत को ले गयी।


निशांत के पापा राकेश और मां निलांजना भी इस सभा के लिए पहुंचे और घर में चित्रा हो गई अकेली। अकेले उसे बोर लगने लगा इसलिए वो माधव को कॉल लगा दी… "क्या हो रहा है बेबी।"


माधव:- तुम यकीन नहीं करोगी चित्रा दिमाग में एक दम धांसू कॉन्सेप्ट आया है। मै उस इंजिनियरिंग पर दिमाग लगा रहा था जिसने बिना हैवी मैकेनिकल प्रोसेस के समुद्र में पुल बांध दिया। रामायण का वो तैरता पत्थर का पुल।


चित्रा, थोड़ी उखड़ी आवाज़ में… "ठीक है पुल बनाकर मुझे कॉल करना।"..


माधव:- सॉरी सॉरी, अब क्या करे हमरा रूममेट भी बात नहीं करना चाहता और इतना बढ़िया कॉन्सेप्ट था कि तुम्हे बताए बिना रह नहीं पाए। सॉरी, लगता है फिर से तुम्हे बोर कर दिया।


चित्रा:- वो सब छोड़ो और जल्दी से मेरे घर आ जाओ।

पहले से ही आर्य को किसने ट्रेनिंग देकर खुद को नियंत्रण में रखना सीखा चुकी/चुका हैं। लेकिन वो है कौन क्योंकि जो भी वह जर्मन में हुआ था और जर्मन में आर्य का एक ही शुभचितक थी ओशुन तो जाहिर सी बात है ओशुन ने ही सभी कुछ किया था और आर्य के हृदय को अपने लिए एक छोटा सा जगह बना चुकी थीं जो अभी तक कायम हैं अगर ऐसा न होता तो रूही के साथ समागम करते वक्त जब आर्य अनियंत्रित हों गया था तब रूही की करुण आवाज उसे ओशुन की याद न दिला देता।

रूही अलबेली और आर्य के निरंतर प्रयास ने सभी को अपने पर नियंत्रण रखना सीखा दिया और रूही समागम के आवेश में बहकर आर्य को अनियंत्रित होने की बात न कहीं होती और रूही की बात मानकर निरंतर प्रयास आर्य ने न की होती तो रिचा के साथ आर्य बहकर अनियंत्रित हों जाता और उसकी पोल खुल चुका होता।

इस भाग में जन गए की रिचा के कंधे का सहरा लेकर कोई अन्य ही कांड कर रहा है जिसका अंदेशा मैं पहले ही जाता चुका था बस अब प्रतीक्षा हैं की वो बहरूपिया कौन है?
 
Top