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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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nain11ster

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
अंकी के बाबा आ रहें हैं और इनका प्रोजेक्ट भी कामयाबी के ओर बढ़ रहा हैं
अभी तक प्रहरी के फ्यूज ठिकाने नहीं आएं आएंगे भी कैसे आर्यमणी ने कांड ही ऐसा करके गया जिस पर सपने में भी विश्वास नहीं कर सकते हैं प्रहरी

जयदेव तो अपना रास्ता हीं भटकता लग रहा हैं
क्या यह कांड आर्य का हैं

जासुसों को कोन गायब कर रहा है क्या यह निशांत हैं नैन भाई

वैसे खुशखबरी पहूंच गई प्रहरी समुदाय के पास इनकों अभी और भटकना बाकी हैं
अभी यह पागल होना बाकी
देखते हैं बक्से मिलने के बाद प्रहरी समुदाय की क्या हालत होती हैं
कहीं सुकेश का राम नाम सत्य हीं ना कर दे यें लोग

Sabhi bhatke hain ... Chinta nahi... Jald hi pata chalega ki Prahri ka fuse apne aap ud Raha ya thodi bahut kosis nishat aur aryamani ne bhi kiya hai...
 

Kala Nag

Mr. X
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भाग:–65





नागपुर शहर...

नागपुर शहर में एसपी प्रभार बदलने के कुछ दिन बाद कमिश्नर प्रभार भी बदल गया था। जिस दिन निशांत ने केस जीता उसी दिन उसके पापा राकेश नाईक ने नागपुर की पैतृक संपत्ति, एक पूरा ऑफिशियल बिल्डिंग ही चित्रा और निशांत के नाम लिख चुके थे। हालांकि राकेश नाईक को सुप्रीम कोर्ट के जीत की खबर तो पहले से थी। साथ में जो वकील केस लड़ रहा था उसे देखकर राकेश समझ चुका था कि एक दिन से ज्यादा ये केस नही चलने वाला। निशांत का वकील पहले दिन ही डिग्री ले लेगा। इसलिये वहीं पास के रजिस्टार ऑफिस में राकेश ने पहले ही सारी प्रक्रिया पूरी कर रखी थी, बस चित्रा और निशांत के सिग्नेचर की देरी थी। केस जितने के बाद वो फॉर्मुलिटी भी पूरी हो गयी।


राकेश, उज्जवल और अक्षरा को देख अपनी छाती चौड़ी किये पेपर लेकर कोर्ट रूम के बाहर ही खड़ा था। जैसे ही निशांत और चित्रा बाहर निकले, राकेश उसके हाथ में पेपर थमाते... "दोनो इसपर सिग्नेचर कर दो।" फिर उज्जवल और अक्षरा से...


"तुम्हारे एक कहे पर मैं उनसे नफरत (कुलकर्णी परिवार) करता रहा जिसके बच्चे को आगे तुमने दामाद बनाने का फैसला कर लिया। और जब वो बच्चा नादानी में कुछ अच्छा और कुछ बुरा कर गया, तब सबके सामने तो भरी सभा में उसे बधाई दी, लेकिन पीठ पीछे उसके प्रोजेक्ट को हथियाने चाहते थे। आर्यमणि अपने दोस्तों के लिये इतना मरता था कि पूरा प्रोजेक्ट उनके नाम कर गया और तुम लोगों से ये भी देखा न गया। पूरा गवर्नमेंट को ही मैनेज करने के बाद भी क्या हासिल कर लिये? तुमसे तो अच्छा केशव और जया थे, जिसने उस रात की पूरी बात बता दी और तुमने मुझे ऐसे किनारा किया जैसे मैं कोई था ही नहीं। जाओ खुश रहो तुम लोग।"…


उस रात की घटना से शायद राकेश आज भी आहत था। हो भी क्यों न। दगाबाजी तो राकेश के साथ हुई ही थी। सब लोग एक हो गये और आर्यमणि के दिल में राकेश के लिये कभी इज्जत आयी ही नही। राकेश भी अपना पूरा भड़ास निकाल दिया, जिसका नतीजा उसे ट्रांसफर से भुगतना पड़ा। जाने से पहले राकेश ने सिविल लाइन के पास ही 2 फ्लैट खरीद लिया। एक फ्लैट चित्रा और निशांत के लिये तो दूसरा फ्लैट माधव के नाम। अपने बेटे और बेटी दोनों को एक लग्जरियस कार खरीद कर गिफ्ट कर दिया। जाने से पहले उसने केशव और जया से माफी भी मांगी और अपने बच्चे को उन्ही के भरोसे छोड़कर नागपुर से निकल गया। राकेश के जाने के अगले दिन ही निशांत भी वर्ल्ड टूर के लिये फ्लाइट ले चुका था।


आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का काम शुरू हो चुका था। नागपुर के प्राइम लोकेशन पर एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, जो की चित्रा और निशांत का ही था, उसका पूरा एक फ्लोर "अस्त्र लिमिटेड" का ऑफिस था। एमडी के ऑफिस में चित्रा और माधव साथ बैठकर पिज्जा का एक स्लाइस मुंह में लेती.… "एंकी एक बात बताओ"..


माधव:– हां..


चित्रा:– बाबूजी को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बता दिये की नही...


माधव:– अभी पहले मैन्युफैक्चर यूनिट बनकर पूरा तैयार हो जाये। उसके बाद जब प्रोजेक्ट पर काम शुरू होगा तब बतायेंगे।


चित्रा:– हम्मम और क्या बताओगे..


माधव:– ये भी बताऊंगा की हमारी शुरवाती सैलरी 1 लाख रुपया महीना होगी और कंपनी के प्रॉफिट में २० टका हिस्सा भी।


चित्रा:– और भी कुछ जो उन्हें बताना चाहो..


माधव:– और क्या बताऊंगा?


चित्रा:– और कुछ नही बताओगे...


माधव:– और क्या बताना है?


चित्रा:– फाइन.. बैठकर यहां पिज्जा खाओ मैं नया ब्वॉयफ्रेंड ढूंढ लूंगी...


माधव:– अरे.. अरे.. अरे.. भारी भूल हो गयी। चित्रा सुनो.. सुनो तो...


चित्रा:– गो टू हेल एंकी... पीछे मत आना..


"एक तरफ बाबूजी दूसरी तरह ये चित्रा... अरे रुक तो जाओ। तुम सुनी, हम अभी ही बाबूजी को फोन घुमा दे रहे हैं।"… माधव चिल्लाते हुये चित्रा के पीछे भागा..


"तुमसे ना हो पायेगा फट्टू... दम है तो अभी लगाकर दिखाओ"….


"अरे रुको तो... देखो रिंग हो रहा है"… जबतक माधव खड़ा होकर फोन की घंटी सुनता.… "हेल्लो"… फोन के दूसरे ओर से बाबूजी की कड़कती आवाज...


चित्रा ने भी उस आवाज को सुना... आवाज सुनते ही वो पलट गयी, जब तक उधर से बाबूजी ३ बार हेल्लो चिल्ला चुके थे.…


माधव:– हां बाबूजी प्रणाम..


बाबूजी:– हां खुश रहा.. सब कुशल मंगल..


माधव:– हां बाबूजी सब बढ़िया। इ बार भी हम टॉप किये है बाबूजी..


बाबूजी:– कौनो आईआईटी में टॉप नही किये। सरकारी नौकरी के लिये कंपीटेशन की तयारी करे के पड़ी। टॉप करे से कोनो सरकारी नौकरी वाला न बन जएबे।


माधव चुप, चित्रा मुंह से बुदबुदाती... "फट्टू कहीं के"… उधर से कोई जवाब न सुनकर... "ठीक है बेटा अच्छे से तैयारी कर। हम फोन रख रहे है।"..


माधव:– बाबूजी तनिक रुकिये..


बाबूजी:– हां बोला..


माधव:– वो बाबूजी.. हम..


बाबूजी:– हिचकिचा काहे रहे हो। पैसा कम पड़ गया..


माधव:– नही बाबूजी ऊ बात नही है..


चित्रा जोर से चिल्लाते.… "आपके बेटा अनके माधव सिंह को चित्रा नाईक यानी की मुझसे प्यार हो गया गया है। बहु का प्रणाम स्वीकार कीजिये बाबूजी और जल्दी से हमारा रिश्ता तय कर दीजिये।"…


माधव की सिट्टी–पिट्टी गुम। उधर से बाबूजी चिल्लाते... "फोन रख कपूत, तू खेतिये लायक है। कुछ दिन में पहुंचते है।"…


कॉल डिस्कनेक्ट और माधव टुकुर–टुकुर फोन को देखने लगा। माधव की हालत देख, चित्रा हंस रही थी। बेचारा माधव उसके तो अभी से पाऊं कांपने लगे थे। दोनो अपने ही धुन में थे, कि तभी वहां का स्टाफ एक चिट्ठी लेकर पहुंच गया। सरकारी चिट्ठी थी, जिसमे पहले तो "अस्त्र लिमिटेड" को उसके प्रोजेक्ट के लिये धन्यवाद कहा गया। साथ ही साथ उन्हे डीआरडीओ (DRDO) आने का न्योता भी मिला था, जहां वो अपने प्रोजेक्ट का छोटा प्रारूप सेट करके उत्पादन दिखा सके।


जैसा की "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में वर्णित था कि उनके उत्पादन, लगभग 40 से 50 फीसदी की कम कीमत पर भारत सरकार को गन, ऑटोमेटिक राइफल और ऑपरेशन में इस्तमाल होने वाले खास राइफल मुहैया करवायेगी जिसकी गुणवत्ता तत्काल इस्तमाल हो रहे हथियार के बराबर या उस से उच्च स्तर की होगी। यदि इस छोटे से प्रारूप में वो सफल होते है तब 10 गुणा और बड़े पैमाने पर इस प्रोजेक्ट को शुरू किया जायेगा, ताकि हथियारों के लिये विदेशी बाजार पर निर्भर रहना न पड़े। चिट्ठी में यह भी साफ लिखा था कि.…


"हम समझते है, छोटे प्रारूप से उत्पादन की कीमत बढ़ेगी। लेकिन हमारी एक्सपर्ट टीम वहां होगी जो छोटे से मॉडल से तय कर लेगी की बड़े पैमाने पर जब उत्पादन शुरू होगा तो कितने प्रतिसत कम खर्च पर बनेगी। यदि आपका प्रोजेक्ट सफल होता है, तब आपके "गन एंड ऑटोमेटिक राइफल रिसर्च यूनिट" पर भी विचार करेंगे, जो हथियार की गुणवत्ता को और भी ज्यादा बढ़ा सके और बदलते वक्त के साथ नए तकनीक के हथियार मुहैया करवा सके। अपनी टीम के साथ विचार–विमर्श करके एक समय तय कर ले और डीआरडीओ (DRDO) पहुंचे। हमारी सुभकमना आपके साथ है।"


चिट्ठी देखकर तो माधव और चित्रा दोनो उछल पड़े। चित्रा ने तुरंत ही वह चिट्ठी निशांत को मेल कर दी। आधे घंटे बाद निशांत ने जवाब में लिखा, 92 दिन के बाद का कोई भी समय तय कर ले। चित्रा ने भी तुरंत सरकारी विभाग को जवाबी पत्री भेज दी, जिसमे 3 महीने के बाद की एक तारीख तय कर दी।


खुशी की बात थी इसलिए चित्रा, माधव के साथ सीधा कलेक्टर आवास पहुंची, जहां आर्यमणि के परिवार के साथ भूमि भी सेटल थी। चित्रा की खुशी देखते हुये भूमि पूछे बिना रह नहीं पायी.… "क्या हुआ चित्रा, इस अस्थिपंजर ने अपने बाबूजी से तेरे बारे में बात कर लिया क्या, जो इतनी चहक रही?"


चित्रा:– ससुर जी भी ट्रेन की टिकिट बनावा रहे होंगे.. एंकी बोल नही पा रहा था, इसलिए मैंने खुद बात कर ली।


आर्यमणि की मां जया.… "चलो अच्छा हुआ। वैसे भी निलंजना (चित्रा की मां) तेरी जिम्मेदारी मुझ पर ही सौंप गयी है। आने दे इसके बाबूजी को भी, देखते हैं कितना खूंखार है।"..


भूमि:– मासी केवल 10 लाख नेट और एक ललकी बुलेट ही तो एंकी के बाबूजी को ऑफर करनी है, उसी में तो सब सेट है।


चित्रा:– क्या भूमि दीदी आप भी एंकी के पीछे पड़ गयी।


जया:– मेरी कोई बेटी नही इसलिए चित्रा को मै अपनी बेटी की तरह विदा करूंगी। 10 लाख तो मैं केवल इसके कपड़ो पर खर्च कर दूं।


चित्रा:– अहो थांबा... प्रत्येकजण खूप उत्साही आहे. माझे पण ऐक.. (ओह रुको ... हर कोई कितना उत्साहित है। मेरी भी सुनो)


भूमि और जया एक साथ... "बोला"..


चित्रा, चिट्ठी उनके हाथ में देती... "सब खुद ही पढ़ लो"..


उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद तो जैसे सभी जोश में आ गये। उनकी कामयाबी के लिये जया और भूमि बधाई देने लगी। चित्रा थोड़ी मायूस होती... "आर्य का प्रोजेक्ट था ये। और ये सफलता भी उसी की है।"..


"कौन सी सफलता"… पीछे से जयदेव भी वहां पहुंच गया..


चित्रा:– जयदेव जीजू, आर्य के "आर्म्स & एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट की सफलता की बात कर रहे थे...


जयदेव:– कौन वो हमारे प्रहरी समुदाय वाला प्रोजेक्ट..


भूमि:– तुम्हे अभी झगड़ा करना है क्या जयदेव? प्रहरी का पैसा लगा है बस... यदि ज्यादा दिल में दर्द हो रहा है तो बोलो, पैसे वापस करवा देती हूं।


जयदेव:– मुझे नही ये बात अपने बाबूजी को समझाओ...


भूमि:– अब आर्य किताब लेकर चला गया उसका गुस्सा तुम लोग किसी से भी निकाल रहे। जब बाबा के दिल में इतना ही दर्द था तो क्यों प्रहरी सभा में आर्यमणि की वाह–वाही करवाये। अनंत कीर्ति किताब का चोर बना देते।


जयदेव, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "मुझे माफ करो, और अपना गुस्सा शांत करो। गुस्सा, होने वाले बच्चे के लिये खतरनाक होगा।"


भूमि:– हां और बच्चे का बाप कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गया है। जयदेव तुम्हारी कमी अखड़ती है। जब से मैं प्रेगनेंट हुई हूं, तुमने तो खुद को और भी ज्यादा वयस्त कर लिया है।


जया, हैरानी के साथ खड़ी होती.… "तुम लोग जरा शांत रहो।"…


हर कोई शांत हो गया। जया बड़े ध्यान से मुख्य दरवाजे को देख रही थी। बड़े गौर से देखने के बाद एक चिमटी उठायी और दीवार पर लगे एक छोटे काले धब्बे को उस चिमटी से निकालती.… "ये करोड़ों वायरस का समूह, काफी खरनाक है।"


चित्रा:– क्या आप भी ना आंटी...


जया:– तुम लोगों को कुछ भी पता नही... खैर छोड़ो ये बातें.. जयदेव बाबू ये तो सच है कि आप भूमि को समय नहीं दे रहे...


जयदेव:– जब आप है मासी तो मुझे कोई चिंता नहीं। वैसे आर्य की कोई खबर...


जया बड़े ही उदास मन से... "पता न मेरे बेटे को किसकी नजर लगी है। पहले मैत्री के कारण हमसे कटा–काटा रहता था। उस गम से उबरने के बाद कुछ दिन तो हुये थे, जब वो हमारे साथ था। लेकिन तभी पता न कहां गायब हो गया। वापस लौटकर जब आया तब उसने जाहिर किया की वो हमे कितना चाहता है। उसकी हंसी कुछ दिन तो देखी थी, कि फिर से गायब। जयदेव कहीं से भी मेरे बेटे को ढूंढ लाओ। केशव तो लगभग हर एंबेसी में आर्य की तस्वीर भिजवा चुके हैं, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नही आया।"


भूमि:– चिंता मत करो मासी, जहां भी होगा सुरक्षित होगा और जल्द ही लौटेगा...


जयदेव:– अच्छा चलता हूं मैं। आर्य की कोई खबर मिली तो जरूर बताऊंगा...


जयदेव वहां से वापस सुकेश के घर लौटा। वहां सुकेश, उज्जवल, तेजस, मीनाक्षी, अक्षरा सब बैठे हुये थे। जयदेव के पहुंचते ही... "क्या खबर है?"


जयदेव:– हमारा वशीकरण वाले जीव को जया ने चिमटे से पकड़ लिया।


सभी एक साथ चौंकते हुये... "क्या???"


जयदेव:– हां बिलकुल... ऊपर से जया के घर के सभी स्टाफ बिलकुल नए थे। हमारा एक भी आदमी वहां नही था। गैजेट वैग्रह सब बंद है। यहां तक की चित्रा और उसके ब्वॉयफ्रेंड के अपार्टमेंट में जो हमने आस–पास लोग रखे थे, वह भी गायब है। चित्रा के पास नया ड्राइवर है। उसके ब्वॉयफ्रेंड के पास नया ड्राइवर। केशव के डीएम ऑफ़िस में भी सारे नए स्टाफ है। हमने अपने जितने लोग लगाये थे सब के सब उन लोगों के आस–पास से गायब हो चुके है।


मीनाक्षी:– हां लेकिन जया ने चिमटी से अपना वशीकरण जीव कैसे पकड़ लिया?


जयदेव:– मैने उन्हे हवा में छोड़ा था, लेकिन वो सब जाकर बाहरी दीवार से चिपक गये। पतले पेन के छोटे से डॉट जितने थे, उसे भी जया ने पकड़ लिया।


अक्षरा:– जरूर ये कुलकर्णी परिवार और भूमि हमारे बारे में सब जानते है। वर्धराज जाने से पहले कुछ सिद्धियां इन्हे भी सीखा गया होगा इसलिए अपने बचने के उपाय पहले से कर रखे है।


जयदेव:– और चित्रा का क्या? उसने कैसे हमारे लोगों को हटाया...


अक्षरा:– हां तो वो भी साथ में मिली है। सबके साथ उसे भी मार दो।


जयदेव:– "उन्हे नही मार पायेंगे क्योंकि बीच में कोई तीसरा है। रीछ स्त्री जब ऐडियाना का मकबरा खोल रही थी, तब हमे लगा था कि आर्यमणि ने हमारा काम बिगड़ा है। लेकिन वो काम किसी सिद्ध पुरुष का था। पूरे जगह को ही उसने अपने सिद्धियों से बांध दिया था। आर्यमणि पर नित्या ने हमले भी किये, लेकिन वह घायल तक नही हुआ।"

"ऐसा ही कुछ नागपुर में उस रात भी हुआ था। आर्यमणि तो रात 11.30 बजे तक सरदार खान को लेकर निकल गया। स्वामी, सुकेश के घर से चोरी करने के बाद उल्टे रास्ते के जंगल कैसे पहुंचा? जो हमला आर्यमणि पर होना चाहिए था वह हमला स्वामी पर हो गया। सबसे अचरज तो इस बात का है कि जादूगर महान का दंश (सुकेश के घर से चोरी हुआ एक नायाब दंश, जिसके सहारे स्वामी को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी से जीतते हुये दिखाया गया था) जो कभी हमसे सक्रिय नही हुआ, वह स्वामी के हाथ में सक्रिय था और उसके बाद वह दंश कहां गायब हुआ किसी को नहीं पता। वह दंश तो चोरी के समान के साथ भी नही गया फिर वो गया कहां? हमारा लूट का माल हवा निगल गयी या जमीन खा गयी कुछ पता ही नही चल रहा। तुम लोगों को नही लगता की बीच में कोई है जो अपना खेल रच रहा।


जयदेव अपने हिसाब से आकलन कर रहा था। उसे न तो आर्यमणि के ताकतों के बारे में पता था और न ही आर्यमणि के एक्जिट पॉइंट के बारे में कोई भी ज्ञान। वेयरवॉल्फ यादें देख सकते हैं, ये पता था। लेकिन यादों के साथ छेड़–छाड़ और दिमाग में अपनी कल्पना के कुछ अलग तस्वीर डाल देना, ऐसा कोई वुल्फ नही कर सकता था। इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ हुई है, ऐसा कोई भी सीक्रेट प्रहरी सपने में भी नही सोच सकता था।



जयदेव बस अपनी समीक्षा दे रहा था कि क्यों वो लोग पिछड़ रहे है? उसकी बातें सुनने के बाद सुकेश कुछ सोचते हुये.… "सतपुरा के जंगल वाले कांड में पलक ने भी ऐसी ही आसंका जताई थी।"


जयदेव:– हां बिलकुल... उसी ने हमारा ध्यान इस पहलू पर खींचा था, वरना हम आर्यमणि के ऊपर ही ध्यान केंद्रित किये रहते...


मीनाक्षी:– तो क्या लगता है, कौन इसके पीछे हो सकता है?


जयदेव, कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाते.… "और कौन, वही हमारा पुराना दुश्मन... शायद आश्रम फिर से सक्रिय हो गया है और परदे के पीछे से वही कहानी रच रहा। जहां भी हमारा मामला फंसता है, फिर वह आर्यमणि हो या स्वामी या फिर जया, वहां बीच में ये चला आता है और हमारे कमजोर दुश्मन को भी ऐसे सामने रखता है जैसे वो हमारे लिये खतरा हो।"


उज्जवल:– इस से आश्रम वालों को क्या फायदा होगा?


जयदेव:– वही जो कभी छिपकर हमने किया था। दुश्मन के बारे में पूरा जानना। कमजोर और मजबूत पक्ष को परखना। वह हमे इन छोटे लोगों से भिड़ाना चाहता है। ताकि पहले हम छोटे हमले से इन लोगों को मार सके। छोटे हमले जैसे आज मैंने वशीकरण जीव पूरे उस समूह पर छोड़ा था, जो आर्यमणि के करीबी थे। वह जीव खुली आंखों से पकड़ में आ गया। इतनी सिद्धि केवल आश्रम वालों के पास ही हो सकती है। अब वो लोग ये सोच रहे होंगे की, हमलोग जया को सीक्रेट प्रहरी के लिये खतरा समझ रहे और इसलिए हम जया को मारने का प्रयास करेंगे। यदि मारने गये तब जया तो नही मरेगी, लेकिन हमारा एक और दाव उन आश्रम वालों के नजर में होगा।


कुछ लोग तो वाकई में उलझते है। लेकिन कुछ खुद से उड़ता तीर अपने पिछवाड़े में ले लेते हैं। आर्यमणि उस रात नागपुर से सबके दिमाग को इस कदर खाली करके भागा था कि सीक्रेट प्रहरी के दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। पलक की एक सही समीक्षा के ऊपर अपने नए समीकरण को जोड़कर जयदेव एंड कंपनी अब कुछ अलग या यूं कह लें की बिलकुल ही अलग दिशा में सोच को आगे ले जा रहे थे।


जहां तक बात जया की थी। तो जयदेव ने न तो कोई वशीकरण जीव छोड़ा था और न ही सबके बीच चल रही बात को रोक कर जया ने चिमटी से उस वशीकरण जीव को मुख्य दरवाजे से निकाला था। बल्कि ये पूरी घटना जयदेव के दिमाग की इतनी गहरी उपज थी कि जयदेव अपने मस्तिष्क भ्रम को पूर्ण सत्य मान लिया। और ये हो भी क्यों न... दिमाग में लगातार जब एक ही प्रकार की थ्योरी रात दिन घूमती रहेगी तो दिमाग भी अपने विजन से उस थ्योरी को प्रूफ कर ही देगा। सत्य और कल्पना का मायाजाल, जहां दिमाग की माया नजरों के सामने वह दृश्य दिखा देती है जिसे हम पहले से स्वीकार कर सच मान चुके होते है। जैसे की जयदेव के साथ हो रहा था। उसने आश्रम को सबसे बड़ा खतरा मान लिया था इसलिए दिमाग वही दिखा रहा था जो वह पहले से सत्य मान बैठा था।


आश्रम का सक्रिय होना सुनकर ही सीक्रेट प्रहरी के बीच हाहाकार मचा था। ऊपर से सुकेश के घर की चोरी ने और भी ज्यादा अपंग बना दिया था, क्योंकि सिद्ध पुरुष से निपटने और प्राणघाती चोट देने वाले सारे हथियार तो उन्ही चोरी के समान में थे। सभी लोग आगे क्या करना है उसपर विचार विमर्श कर ही रहे थे कि बहुत दिन बाद एक खुश खबरी इनके हाथ लगी थी। बीते 45–50 दिनो में पहली बार इतने खुश थे कि मुंह से हूटिंग अपने आप ही निकल रही थी। इतने दिनो में पहली बार कोई ढंग की खबर हाथ लगी थी। खबर मिल चुकी थी कि जो बॉक्स लूट कर ले गये थे, उन्हे खोला जा चुका है और अब उसका लोकेशन भी पता चल चुका है।
Awesome update bro maza aa gaya
 
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Reactions: Xabhi and Tiger 786

nain11ster

Prime
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Mast update dimagi tantuo ka santulan bigadna apne aarya ke liye bahut fayede ka Raha, kyu ki sab se bada hathiyar to dimag hi hota hai, magar iccha thi ki thoda jyada bura hal ker deta to aur accha tha, power aur pesa is tarah dimag per havi hai ki sab kuch bhula bethe hai, kuch ki puri umra is jaddojahad me nikal gayi, aur kuch ki nikalne wali hai, kher Astra limited ka DRDO se offer aana aur 3 mahine bad ki meeting set kerna bhi Nishant ka hi plan rha hoga , in 3 mahino me wo Astra ko aur establish ker lenge aur Nishant bhi kafi kuch sikh jayega tab tak, baki ujjawal and company ki 12 baje hai , man hai ki inko Dara hua , bhay se kapta hua dekhu.


Abhi kisi ne kuch kiya kahan hai anky bhai... Ye haalat to khud ki banayi hui hai... Abhi to bahut kuch karna baki hai... Baharhaal dekhte hai aage kya hota hai... Drdo ka kissa waise aapko to pasand aaya hi hoga... How's our new madhav
 
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