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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–21




आर्यमणि चारो ओर अपनी नजरें घुमाए जा रहा था। अचानक से उसकी नजर एक जगह ठहरी और वहां का नजारा देखकर आर्यमणि मुस्कुराने लगा। मिरर वाले उस हिस्से में पलक खड़ी थी। उसके हाथ में एक क्रिकेट स्टंप था। उसे वह फ्लोर पर टिकाकर बिल्कुल आर्यमणि के स्टाइल में खड़ी थी। कुछ देर वैसे ही खड़ी रही फिर पलक कॉलेज वाला एक्शन दोहराने लगी, जैसा–जैसा आर्यमणि कॉलेज में कर रहा था।


आर्यमणि, पलक के इस हरकत को पीछे से देख रहा था। पलक अपनी जिज्ञासा आइने के सामने दिखा रही थी… "सुनिए आप जरा एक किनारे खड़े होंगे।" आर्यमणि को किसी ने टोका और वो वहां से किनारे हटकर पलक के रिपीट टेलीकास्ट के एक्शन को देखने लगा।


3-4 बार पलक उस एक्ट को करने के बाद, वहीं पास के ट्रायल रूम में घुस गई और आर्यमणि मुस्कुराते हुए वहां से आगे बढ़ गया। अपनी धुन में आर्य मणि भी पलक के पीछे जाने लगा। तभी सामने से भूमि उसे रोकती.… "तू किसके लिए यहां शॉपिंग करने आया है।"… भूमि ने सवाल किया और चित्रा जोड़-जोड़ से हसने लगी।


आर्यमणि, पलक के बारे में सोचने पर ऐसा मशगूल हुआ कि वो लेडीज अंडरगारमेंट्स के शॉप में घुस गया।…. "हम्मम ! ठीक है आप लोग जबतक यहां हो, मै दादा से मिल आता हूं। यहां से फ्री होकर कॉल करना मुझे।"…


चित्रा:- दीदी एक तो बात कम करता है ऊपर से आप ऐसे उसकी बोलती बंद कर दोगी तो क्या होगा।


भूमि:- किसी से बात करे कि ना करे तेरे से तो पूरी बात करता है ना। तू दिल पर हाथ रखकर बता, क्या वो मेरी बात का जवाब नहीं दे सकता था? वो भी ऐसा की हमारी बोलती बंद हो जाए।


चित्रा:- हां आपकी दोनो बात सही है। वो मुझ से बात भी करता है और यहां पर वो जवाब भी दे देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।


भूमि:- और क्यों नहीं किया..


चित्रा:- क्योंकि वो चाहता था हमे लगे कि हमने उससे ऐसा मज़ाक किया कि वो शर्माकर यहां से भाग गया।


भूमि:- तुझे वो दिल से मानता है और तू भी। अच्छा चित्रा तुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि आर्य तुझसे आई लव यू कहे।


चित्रा:- दीदी अगर उसे ऐसा फील होता ना कि मेरे दिल में ऐसी इक्छा है, तो भले ही उसके दिल में ऐसी इक्छा नहीं होती, लेकिन फिर भी वो बोल चुका होता।


भूमि:- और उसके दिल में ऐसी इक्छा होती की तू उसकी गर्लफ्रेंड होती..


चित्रा:- मुझे अभी फील हो जाए तो अभी कह दूंगी। कभी ना कभी किसी ना किसी को पार्टनर बनना ही है और मेरे करीबी दोस्त की ऐसी फीलिंग है तो चलो भाई कमिटेड हो जाओ।


भूमि:- कुछ तो गड़बड़ है चित्रा। इतने क्लियर कॉन्सेप्ट.. नाना कुछ ना कुछ यहां छिपाया जा रहा है। तुझे आर्य की कसम, मुझे वो बात बता जिसने तुम दोनों के बीच इतनी साफ मनसा दी है।


चित्रा:- हम दोनों ने अपने रिलेशन स्टेटस को चेंज किया था। जबरदस्ती 2 महीने तक गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रैंड भी रहे। कई बार किस्स भी हुआ, लेकिन एक बार भी स्मूच नहीं हुआ। बॉयफ्रेंड के साथ चिपकने वाली कभी फीलिंग ही ना आयी। वही रेगुलर गले लगने वाली ही फीलिंग आयी। जबकि हम दोनों ने जान बूझकर काफी टाईट हग किया था, कुछ तो वैसी फीलिंग निकल आए, लेकिन नहीं निकला। और भी सुनना है या हो गया।


भूमि:- हां हां सुना सुना इंट्रेस्टिंग है ये तो।


चित्रा:- हुंह ! आगे कुछ नहीं। 2 महीने में हमे पता चल गया कि हम दोनों के बीच कुछ नहीं हो सकता, इसलिए हमने ब्रेकअप कर लिया।


भूमि:- तब बच्ची थी ना। सीने पर कुछ रहेगा तो ना फीलींग निकलती। अभी ट्राई करके देख ले।


चित्रा:- नहीं होगा कन्फर्म, क्योंकि आर्य किसी के प्यार मे है।


भूमि:- क्या बक कर रही है।


चित्रा:- मैं तो दोनो को जानती भी हूं।


भूमि:- उसका तो पता नहीं लेकिन तेरी लव स्टोरी किसी के साथ कन्फर्म है। खैर तू छिपाने वाली तो है नहीं इसलिए तेरी चिंता ना है। लेकिन आर्य... चल उसका नाम बता, कल ही आधी शादी करवाकर दोनो को बूक कर दूं।


चित्रा:- दीदी वो पलक..


जैसे ही चित्रा, पलक का नाम ली, पलक का कलेजा धक–धक। इधर भूमि हैरान होती... "क्या !! पलक???"


चित्रा:- अरे वो नहीं पलक हमे सुन रही।


पलक, सामने आती... "सॉरी, चित्रा अपनी और आर्य की लव स्टोरी बता रही थी और मैं तभी पहुंची। मुझे लगा कहीं मेरे सामने न बताए, इसलिए छिपकर सुन ली। वैसे काफी रोमांटिक लव स्टोरी थी।


भूमि:- दूसरों की लव स्टोरी छिपकर सुनते शर्म नहीं आती। चल अपने किस्से बता।


पलक:- मेरा नाम पलक भारद्वाज है। मैंने 2 साल एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी की और पहले अटेम्प्ट में ही अच्छे मार्क्स मिले और आज मै नेशनल कॉलेज में हूं।


चित्रा:- अच्छा परपोज कितने लड़को ने किया वहीं बता दे।


पलक:- मुझे कोई प्रपोज नहीं करता।


भूमि:- चल झुटी। बड़ी आयी.. चित्रा देख इसे जारा..


चित्रा:- देखना क्या है दीदी.. अच्छा बता तो पलक तेरी फिगर क्या है।


पलक:- 32-24-34..


चित्रा:- सुना दीदी, क्या फिगर है। बिल्कुल छरहरा बदन, 5"6’ की हाइट और चेहरे की बनावट ऐसी की नजरें टिक जाए। बस एक ही कमी रह जाती है, कभी सज–संवर के नहीं निकलती। अब ऐसे फिगर वाली को कोई परपोज ना करे?


पलक:- इतने दिन से तो कॉलेज में हूं, किसी ने परपोज किया क्या अब तक?


चित्रा:- अब तू एसपी की बहन बनकर आएगी तो कौन परपोज करेगा। लोग थोड़े कम से काम चला लेते है। वैसे अपने कॉलेज में भी तेरे जैसी फिगर को टक्कर देने वाली लड़कियां है। और वो एक ग्रुप जो सबसे अलग रहता है उसकी लड़कियां इतनी हॉट होती है कि सभी लड़के उधर ही तकते रहते है। अब ऐसे माहौल में लड़के एसपी की बहन के साथ रिस्क क्यों ले? लड़के कहीं और कोशिश में लग गए होंगे। कौन पुलिस का लफड़ा पाले क्यों दीदी।?


भूमि:- अरे पुलिस वाले की बहन हुई तो क्या हुआ, लौंडे आजकल कुछ नहीं देखते, परपोज कर ही देते है।


पलक, थोड़ी चिढ़ती हुई… "ऐसा था तो मुझे अब तक आर्य ही परपोज कर देता।"..


चित्रा:- "अरे कुछ प्राउड मोमेंट होते है। भूमि दीदी आर्य जब मेरे साथ चलता है तब मैं जली-भुनी लड़कियों के रिएक्शंस ही देखती हूं। वो साले अलग-थलग ग्रुप वालों मे लौंडे भी उतना ही हैंडसम। वहां की सेक्सी हॉट लड़कियां ग्रुप के बाहर के लौंडों को देखती तक नहीं, लेकिन वो सब भी आर्य को ताड़ती रहती है, आर्य वो मैटेरियल है।"

"लड़कियां सामने से आकर जिसे परपोज करे, आर्य वो मटेरियल है और वो तुम्हे परपोज करेगा अपनी गर्लफ्रेड बनाने के लिए। वैसे भी अगर आर्य ने किसी को परपोज किया तो समझो वो गर्लफ्रेंड बनाने के लिए परपोज नहीं कर रहा, बल्कि लाइफ पार्टनर बनाने के लिए करेगा। यदि तुम्हे मेरी बातों का यकीन नहीं है तो तुम खुद देख लेना की उसकी नजर कितनी लड़कियों पर होती है, और कितनी लड़कियों की नजर उसपर।"


पलक:- तुम ज्यादा अच्छे से जानती होगी उसके बारे में। मुझे क्या करना है। मै जैसी भी हूं खुश हूं। एक लाइफ पार्टनर ही चुनना है ना, आई-बाबा जिसे चुन लेंगे मै हां कह दूंगी।


चित्रा:- बोरिंग..


भूमि:- चित्रा कल से इसे जरा बन सवर कर निकाल इसके घर से।


चित्रा:- कैसे होगा... ये सिविल लाइन 4th रोड में है और मै सिविल लाइन 1st रोड में।


भूमि:- तेरे बाजू वाले पड़ोसी का नाम बता जो पसंद नहीं।


चित्रा:- मुरली पवार, आईजी ऑफ पुलिस।


भूमि:- ठीक है, कल से इसके घर चली जाना आज रात ही ये शिफ्ट करेंगे।


पलक:- ठीक है जो भी करना है कर लेना.. अभी चले यहां से।


भूमि:- चित्रा वो हड्डी का ढांचा और निशांत किधर है।


चित्रा:- कहीं लाइन मार रहा होगा।


भूमि:- हा हा हा… पहले उन्ही दोनो की करतूत देखते है फिर आर्य को कॉल करती हूं।


पलक:- आप दोनो जाओ, मै तेजस दादा से मिलकर आती हूं।


पलक दोनो को छोड़कर एमडी चेंबर के ओर चल दी। दरवाजे पर वही शामलाल खड़ा था, पलक को देखकर पूछने लगा क्या काम है? पलक अपना नाम बतायी और वो हाथ के इशारे से अंदर जाने के लिए बोल दिया।


पलक अंदर आयि, और नजरों के सामने आर्यमणि… "तेजस दादा नहीं है क्या?"


आर्यमणि, पलक के कमर में हाथ डालकर, अपनी ओर खींचते.… "दादा नही, एक किस्स का वादा है, जो कॉलेज का मैटर खत्म करने के बाद तुम देती"…


पलक नाटकीय अंदाज में गुस्सा दिखती, खुद को आर्यमणि के पकड़ से छुड़ाने के लिए थोड़ी कसमसाती हुई.… "ये वादा कॉलेज के सामने मुझे परपोज करने के बाद का था। लेकिन शायद तुम्हारी फट गई। क्यूंकि सिर्फ तुम्हारे नागपुर में होने पर जिस अक्षरा भारद्वाज ने तुम्हे चैन से श्वांस नही लेने दिया, उसकी बेटी को सबके सामने परपोज कर देते, फिर क्या होता"…


पलक भले चिढ़ाने के लिए बोली हो लेकिन आर्यमणि बात को पूरी गंभीरता से लेते हुए.… "फिर तो फिलहाल हमे अनजान हो जाना चाहिए..."


पलक अंदर ही अंदर मुस्काती और बाहर से वह भी आर्यमणि की तरह गंभीर दिखती... "हां बिल्कुल!! तेजस दादा कहां है?"


आर्यमणि:– कहीं बाहर गए हैं।


पलक जाकर चुपचाप बैठ गई। कुछ पल तक दोनो ख़ामोश रहे… "कुछ पता है कब तक आएंगे?"..


आर्यमणि:- पता नहीं।


दोनो फिर से ख़ामोश हो गए। एक बार फिर पलक खामोशी तोड़ती हुई… "तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?"..


आर्यमणि:- हां है।


पलक थोड़ी सी हैरान होती हुई… "लेकिन चित्रा तो बता रही थी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"..


आर्यमणि:- अभी एक घंटे पहले बनी है, इसलिए उसे भी पता नहीं।


पलक:- पहली बार उससे कब मिले थे।


आर्यमणि:- 1 घंटे और 5 मिनट पहले।


पलक:- क्या वो चित्रा से भी खूबसूरत है?


आर्यमणि:- कल वो जब आएगी मिलने, तो खुद ही देख लेना।


पलक:- क्या वो अपने ही क्लास की है?


आर्यमणि:- कल उसकी पूरी डिटेल मिल जाएगी। अब चले यहां से दादा लगता है नहीं आने वाले।


पलक:- मै क्यों जाऊं? मै तो भूमि दीदी के साथ आयी हूं। तुम जाओ, मै दादा से मिलकर जाऊंगी।


आर्यमणि, उठकर वहां से बाहर चला आया, और भूमि को कॉल लगाकर उसके बारे में पूछने लगा। भूमि ने उसे कैश काउंटर पर ही आ जाने के लिए कही। हर कोई अपना अपना पेमेंट करके जैसे ही निकलने लगे… "आर्य तू दादा के ऑफिस से आ रहा है ना, पलक वहां थी।"..


आर्यमणि:- दीदी मैंने उसे चलने के लिए कहा था तब वो बोली दादा से मिलकर ही आएगी।


भूमि:- ठीक है एक काम कर तू उसे बाइक से छोड़ देना। मै इन तीनों को छोड़ आती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी। अरे माधव ये लो, ये तुम्हारे लिए है।


माधव, आर्यमणि के हाथ में लैपटॉप देखकर थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया… "नहीं दोस्त ई हमको थोड़े ना चाहिए, वापस कर दो।"..


चित्रा:- वो फ्री में नहीं दे रहा है माधव, बदले में तुम हम दोनों को मैथमेटिक्स और फिजिक्स पढ़ाओगे।


माधव:- वो तो हम वैसे भी हेल्प कर देंगे, लेकिन ई हम नहीं ले सकते है। वापस कर दीजिए इसको।


भूमि:- गार्ड इस अस्थिपंजर को उठाकर लाओ। आर्य तू वो लैपटॉप मुझे दे, हम इसके हॉस्टल के अंदर तक छोड़कर आएंगे।


माधव:- अरे लेकिन उ तो बॉयज हॉस्टल है दीदी आप काहे जाइएगा।


वो लोग माधव को लेकर चलते बने। इधर आर्यमणि अटक सा गया। लगभग 1 घंटे बाद आर्यमणि के मोबाइल पर पलक का कॉल आया, और वो आर्यमणि से उसका पता पूछने लगी। आर्यमणि उसे बिल काउंटर पर ही बुला लिया।… "सॉरी मेरे कारण तुम्हे इंतजार करना पड़ा। दीदी को कॉल की तो पता चला उन्हें जरूरी काम था इसलिए उन्हें निकालना पड़ा और मै तुम्हारे साथ"..


आर्यमणि:- इट्स ओके। चलो चलकर पहले कुछ खाते है।


पलक:- बाहर में कुछ खाए क्या?


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है चलो।


आर्यमणि, पलक को रुकने बोलकर अपनी बाइक ले आया। पलक को अचानक ध्यान आया कि आर्यमणि के पास तो बाइक है, वो भी उसके सीट की पोजिशन ऐसी है कि बिना चिपके जा नहीं सकते है… "आर्य, क्या तुम्हारे पास कार नहीं है"


आर्यमणि:- ज़िन्दगी में हर चीज का मज़ा लेना चाहिए पलक। गंभीर और शांत मै भी रहता हूं, इसका मतलब ये नहीं कि जीता नहीं हूं, हंसता नहीं हूं। तुमने तो अपने अंदर के ख्यालों को ही अपनी पूरी दुनिया बना ली है। अब आओ और ये झिझक छोड़ दो कि बाइक पर मै एक अजनबी के साथ कैसे जाऊंगी।


"चले क्या"… पलक बाइक पर बैठती हुई आर्यमणि के कंधे पर हांथ डालकर मुस्कुराती हुई कहने लगी। आर्यमणि मस्त अपनी बाइक चला रहा था और पीछे बैठकर पलक आर्यमणि से दूरी बनाने की कोशिश तो कर रही थी, लेकिन बीएमडब्लू बाइक के सीट कि पोजिशनिंग कुछ ऐसी थी कि वो जाकर आर्यमणि से चिपक जाती।


बड़ी मुश्किल से पलक 2 इंच की दूरी बनाती और इधर ट्रैफिक के कारण लगा ब्रेक उन दूरियों को मिटा देती।… "पलक कहां चलना है।"..


पलक अपने होंठ आर्यमणि के कान के करीब ले जाती… "चांदनी चौक चलेंगे पहले।"… कुछ ही देर में दोनो चांदनी चौक में थे। पलक स्ट्रीट फूड का लुफ्त उठाने आयी थी, वहां उसने जैसे ही 2 प्लेट हैदराबादी तंदूर का ऑर्डर दिया… "पलक एक ही प्लेट का ऑर्डर दो।"..


पलक:- क्यों ऐसे ठेले पर का खाना खाने में शर्म आएगी क्या?


आर्यमणि:- नहीं, मै नॉन वेज नहीं खाता।


पलक:- सच बताओ।


आर्यमणि:- हां सच ही कह रहा हूं।


पलक:- फिर छोड़ो, चलो चलते है यहां से।


आर्यमणि:- लेकिन हुआ क्या?


पलक:- साथ आए है, खाली हाथ खड़े रहोगे और मै खाऊंगी तो अजीब लगेगा ना।


आर्यमणि:- तुम आराम से खाओ, मै भी अपने लिए कुछ ले लेता हूं।


वहीं पास से उसने गरम छने समोसे लिए और पलक का साथ देते हुए वो समोसा खाने लगा। चांदनी चौक से फिर दोनो प्रताप नगर और वहां से फिर तहसील ऑफिस। हर जगह के स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते अंत में दोनो सिविल लाइन चले आए।


जैसे ही सिविल लाइन आया, पलक… "तुम यहीं छोड़ दो, यहां से मै चली जाऊंगी।"…


आर्यमणि:- नहीं दीदी ने घर तक छोड़कर आने के लिए कहा है।


पलक, अनायास ही बोल पड़ी… "पागल हो क्या, मेरे घर जाओगे। तुम जानते भी हो वहां का क्या माहौल होगा।"


आर्यमणि:- हद है, इतना बढ़िया अनजान के रोल में घुसी थी, यहां आकर क्या हो गया?


पलक, छोटा सा मुंह बनाती... "मुझे माफ कर दो। मैं अपनी आई (अक्षरा भारद्वाज) के नाम पर तुम्हे बस छेड़ रही थी। लेकिन मेरे घर तक जाना...


आर्यमणि:- क्यों किसी लड़के के साथ जाने पर तुम्हारे घरवाले तुम्हे गोली मार देंगे क्या?


पलक:- किसी मे, और तुम मे अंतर है ना आर्य।


आर्यमणि:- मेरे माथे पर नाम नहीं लिखा है। दीदी ने कहा है तो घर तक छोड़कर ही आऊंगा।


पलक:- जिद्दी कहीं के ! ठीक है चलो।


कुछ ही दूरी पर पलक का घर था। आर्य उसे छोड़कर वापस लौट ही रहा था कि पीछे से पलक ने आवाज़ लगा दी… "सुनो आर्य"...


आर्य रुककर इशारे से पूछने लगा क्या हुआ। पलक उत्तर देती कहने लगी, दादा (राजदीप) का आवास शिफ्ट कर दिया गया है। आर्यमणि पलक को लेकर उसके नए आवास पर पहुंच गया। पलक बाइक से उतरती हुई आर्यमणि से विदा ली। लेकिन पलक जैसे ही अपना कदम बढ़ायि, आर्यमणि भी उसके पीछे चल दिया।

पलक हैरानी से आर्यमणि को देखती... "मेरे पीछे क्यूं आ रहे?

आर्यमणि:– जब इतनी दूर आ ही गया हूं, तो साथ में तुम्हारे घर भी चलता हूं। मेरे माथे पर थोड़े ना मेरा नाम लिखा है।"

पलक:– आर्य तुम समझते क्यूं नही? अंदर मत आओ..

आर्यमणि:– तुम्हे इस राजा की रानी बनना है या नही?

पलक:– हां लेकिन...

आर्यमणि:– हां तो फिर चलो...

पलक असमंजस में, और आर्यमणि मानने को तैयार नहीं... पलक, आर्यमणि को समझाकर वापस भेजने में विफल रही और नतीजा, आर्यमणि भी पलक के साथ ही अंदर घुसा... वहीं कुछ घंटे पूर्व, शॉपिंग मॉल में जैसा की भूमि, चित्रा से कही थी, ठीक वैसा ही हुआ। एसपी राजदीप और कमिश्नर राकेश नाईक का आवास आसपास था। शिफ्ट करने में कोई परेशानी ना हो इसके लिए भूमि ने कई सारे लोगों को भेज दिया था।


सुप्रीटेंडेंट और कमिश्नर का परिवार आस-पास और दोनो परिवार के लोग हॉल में बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक उसी वक्त पलक और आर्यमणि वहां पहुंच गये। पलक और आर्यमणि ने जैसे ही घर में कदम रखा, सभी लोगो की नजर दोनो पर। और जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वहां बैठे सभी लोग घोर आश्चर्य में पड़ गए।


इससे पहले कि कोई कुछ कहता, एक उड़ता हुआ चाकू आर्यमणि के ओर चला आया और पीछे से राजदीप की मां अक्षरा चिल्लाने लगी… "ये कुलकर्णी की औलाद यहां क्या कर रहा है। पलकककक .. हट उसके पास से। जिसका साया पड़ना भी अशुद्ध होता है, तू उसे घर तक साथ ले आयी। तुझे और कोई लड़का नहीं मिला क्या पूरे नागपुर में, जो तू उस भगोड़ी जया के बेटे को यहां ले आयी।


आर्यमणि दरवाजे पर ही खड़ा था, और अक्षरा बेज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पलक को ऐसा लगा मानो उसने आर्यमणि को यहां लाकर कितनी बड़ी गलती कर गई। शब्द तीर की तरह थे जो पलक का कलेजा चिर गई और वो रोती हुई आर्यमणि को देखने लगी, मानो बहते आंसू के साथ माफी मांग रही हो।


आर्यमणि खामोशी से बात सुनता गया। अक्षरा जैसे ही चुप होकर बढ़ी धड़कनों को सामान्य करने लगी, आर्यमणि पलक के आशु पोछकर उसे शांत रहने का इशारा किया और अक्षरा के ओर चल दिया। अपने हाथ में वो चाकू लिए अक्षरा के पास पहुंचा। आर्यमणि, अक्षरा का हाथ पकड़कर उसे चाकू थमाते… "देख तो लूं जरा, कितनी नफरत भरी है आपके दिल में।"…


तभी बीच में निशांत की मां निलानजना बोलने लगी… "नहीं आर्य"..


आर्य:- नहीं आंटी अभी नहीं। बचपन से इनकी एक ही कहानी सुनकर पक गया हूं। मेरी मां के बारे में इन्होंने इतना कुछ बोला है कि मेरा दिमाग खराब हो गया। कॉलेज में मुझे परेशान करने के लिए ये लोग स्टूडेंट को उकसा रहे है। आज दुश्मनी का लेवल भी चेक कर लेने दो मुझे।… अक्षरा भारद्वाज दिखाओ लेवल। भाई मरा था ना उस दिन, तो ले लो बदला। अब चाकू लिए ऐसे ख़ामोश क्या सोच रही है?


आर्यमणि इतनी जोर से चिल्लाया की वहां के हॉल में उसकी आवाज गूंज गई। राजदीप कुछ बोलने लगा लेकिन तभी चित्रा की मां निलांजना ने उसे चुप करा दिया। आर्यमणि गुस्से में अक्षरा से अपनी नजर मिलाए… "क्यों केवल बोलना आता है, पीठ पीछे लोग भेजने आते है। आज मैंने कॉलेज ने 30 ऐसे लोगो को मारा है जो आपके कहने पर कॉलेज मुझसे लड़ने आए थे। उनमें से 2 को बहुत गन्दा तोड़ा मैंने, और जब उससे मिलने हॉस्पिटल गया तो 30-40 और लोगों को तोड़ना परा। भारद्वाज खानदान में सामने से वार करने की हिम्मत खत्म हो गई क्या? चलो चलो चलो अब दिखाओ भी नफरत।


अक्षरा बड़ी मुश्किल से चाकू ऊपर उठाई। उसके हाथ कांप रहे थे। आर्यमणि ने उसके हाथ को अपने हाथ का सहारा देकर अक्षरा की आंखों में देखा। चाकू को अपने सीने के नीचे टिकाया। लोग जैसे ही दौड़कर उसके नजदीक पहुंचते, उससे पहले ही आर्यमणि वो चाकू अपने अंदर घुसा चुका था।
 

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आर्यमणि चारो ओर अपनी नजरें घुमाए जा रहा था। अचानक से उसकी नजर एक जगह ठहरी और वहां का नजारा देखकर आर्यमणि मुस्कुराने लगा। मिरर वाले उस हिस्से में पलक खड़ी थी। उसके हाथ में एक क्रिकेट स्टंप था। उसे वह फ्लोर पर टिकाकर बिल्कुल आर्यमणि के स्टाइल में खड़ी थी। कुछ देर वैसे ही खड़ी रही फिर पलक कॉलेज वाला एक्शन दोहराने लगी, जैसा–जैसा आर्यमणि कॉलेज में कर रहा था।


आर्यमणि, पलक के इस हरकत को पीछे से देख रहा था। पलक अपनी जिज्ञासा आइने के सामने दिखा रही थी… "सुनिए आप जरा एक किनारे खड़े होंगे।" आर्यमणि को किसी ने टोका और वो वहां से किनारे हटकर पलक के रिपीट टेलीकास्ट के एक्शन को देखने लगा।


3-4 बार पलक उस एक्ट को करने के बाद, वहीं पास के ट्रायल रूम में घुस गई और आर्यमणि मुस्कुराते हुए वहां से आगे बढ़ गया। अपनी धुन में आर्य मणि भी पलक के पीछे जाने लगा। तभी सामने से भूमि उसे रोकती.… "तू किसके लिए यहां शॉपिंग करने आया है।"… भूमि ने सवाल किया और चित्रा जोड़-जोड़ से हसने लगी।


आर्यमणि, पलक के बारे में सोचने पर ऐसा मशगूल हुआ कि वो लेडीज अंडरगारमेंट्स के शॉप में घुस गया।…. "हम्मम ! ठीक है आप लोग जबतक यहां हो, मै दादा से मिल आता हूं। यहां से फ्री होकर कॉल करना मुझे।"…



चित्रा:- दीदी एक तो बात कम करता है ऊपर से आप ऐसे उसकी बोलती बंद कर दोगी तो क्या होगा।


भूमि:- किसी से बात करे कि ना करे तेरे से तो पूरी बात करता है ना। तू दिल पर हाथ रखकर बता, क्या वो मेरी बात का जवाब नहीं दे सकता था? वो भी ऐसा की हमारी बोलती बंद हो जाए।


चित्रा:- हां आपकी दोनो बात सही है। वो मुझ से बात भी करता है और यहां पर वो जवाब भी दे देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।


भूमि:- और क्यों नहीं किया..


चित्रा:- क्योंकि वो चाहता था हमे लगे कि हमने उससे ऐसा मज़ाक किया कि वो शर्माकर यहां से भाग गया।


भूमि:- तुझे वो दिल से मानता है और तू भी। अच्छा चित्रा तुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि आर्य तुझसे आई लव यू कहे।


चित्रा:- दीदी अगर उसे ऐसा फील होता ना कि मेरे दिल में ऐसी इक्छा है, तो भले ही उसके दिल में ऐसी इक्छा नहीं होती, लेकिन फिर भी वो बोल चुका होता।


भूमि:- और उसके दिल में ऐसी इक्छा होती की तू उसकी गर्लफ्रेंड होती..


चित्रा:- मुझे अभी फील हो जाए तो अभी कह दूंगी। कभी ना कभी किसी ना किसी को पार्टनर बनना ही है और मेरे करीबी दोस्त की ऐसी फीलिंग है तो चलो भाई कमिटेड हो जाओ।


भूमि:- कुछ तो गड़बड़ है चित्रा। इतने क्लियर कॉन्सेप्ट.. नाना कुछ ना कुछ यहां छिपाया जा रहा है। तुझे आर्य की कसम, मुझे वो बात बता जिसने तुम दोनों के बीच इतनी साफ मनसा दी है।


चित्रा:- हम दोनों ने अपने रिलेशन स्टेटस को चेंज किया था। जबरदस्ती 2 महीने तक गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रैंड भी रहे। कई बार किस्स भी हुआ, लेकिन एक बार भी स्मूच नहीं हुआ। बॉयफ्रेंड के साथ चिपकने वाली कभी फीलिंग ही ना आयी। वही रेगुलर गले लगने वाली ही फीलिंग आयी। जबकि हम दोनों ने जान बूझकर काफी टाईट हग किया था, कुछ तो वैसी फीलिंग निकल आए, लेकिन नहीं निकला। और भी सुनना है या हो गया।


भूमि:- हां हां सुना सुना इंट्रेस्टिंग है ये तो।


चित्रा:- हुंह ! आगे कुछ नहीं। 2 महीने में हमे पता चल गया कि हम दोनों के बीच कुछ नहीं हो सकता, इसलिए हमने ब्रेकअप कर लिया।


भूमि:- तब बच्ची थी ना। सीने पर कुछ रहेगा तो ना फीलींग निकलती। अभी ट्राई करके देख ले।


चित्रा:- नहीं होगा कन्फर्म, क्योंकि आर्य किसी के प्यार मे है।


भूमि:- क्या बक कर रही है।


चित्रा:- मैं तो दोनो को जानती भी हूं।


भूमि:- उसका तो पता नहीं लेकिन तेरी लव स्टोरी किसी के साथ कन्फर्म है। खैर तू छिपाने वाली तो है नहीं इसलिए तेरी चिंता ना है। लेकिन आर्य... चल उसका नाम बता, कल ही आधी शादी करवाकर दोनो को बूक कर दूं।


चित्रा:- दीदी वो पलक..


जैसे ही चित्रा, पलक का नाम ली, पलक का कलेजा धक–धक। इधर भूमि हैरान होती... "क्या !! पलक???"


चित्रा:- अरे वो नहीं पलक हमे सुन रही।


पलक, सामने आती... "सॉरी, चित्रा अपनी और आर्य की लव स्टोरी बता रही थी और मैं तभी पहुंची। मुझे लगा कहीं मेरे सामने न बताए, इसलिए छिपकर सुन ली। वैसे काफी रोमांटिक लव स्टोरी थी।


भूमि:- दूसरों की लव स्टोरी छिपकर सुनते शर्म नहीं आती। चल अपने किस्से बता।


पलक:- मेरा नाम पलक भारद्वाज है। मैंने 2 साल एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी की और पहले अटेम्प्ट में ही अच्छे मार्क्स मिले और आज मै नेशनल कॉलेज में हूं।


चित्रा:- अच्छा परपोज कितने लड़को ने किया वहीं बता दे।


पलक:- मुझे कोई प्रपोज नहीं करता।


भूमि:- चल झुटी। बड़ी आयी.. चित्रा देख इसे जारा..


चित्रा:- देखना क्या है दीदी.. अच्छा बता तो पलक तेरी फिगर क्या है।


पलक:- 32-24-34..


चित्रा:- सुना दीदी, क्या फिगर है। बिल्कुल छरहरा बदन, 5"6’ की हाइट और चेहरे की बनावट ऐसी की नजरें टिक जाए। बस एक ही कमी रह जाती है, कभी सज–संवर के नहीं निकलती। अब ऐसे फिगर वाली को कोई परपोज ना करे?


पलक:- इतने दिन से तो कॉलेज में हूं, किसी ने परपोज किया क्या अब तक?


चित्रा:- अब तू एसपी की बहन बनकर आएगी तो कौन परपोज करेगा। लोग थोड़े कम से काम चला लेते है। वैसे अपने कॉलेज में भी तेरे जैसी फिगर को टक्कर देने वाली लड़कियां है। और वो एक ग्रुप जो सबसे अलग रहता है उसकी लड़कियां इतनी हॉट होती है कि सभी लड़के उधर ही तकते रहते है। अब ऐसे माहौल में लड़के एसपी की बहन के साथ रिस्क क्यों ले? लड़के कहीं और कोशिश में लग गए होंगे। कौन पुलिस का लफड़ा पाले क्यों दीदी।?


भूमि:- अरे पुलिस वाले की बहन हुई तो क्या हुआ, लौंडे आजकल कुछ नहीं देखते, परपोज कर ही देते है।


पलक, थोड़ी चिढ़ती हुई… "ऐसा था तो मुझे अब तक आर्य ही परपोज कर देता।"..


चित्रा:- "अरे कुछ प्राउड मोमेंट होते है। भूमि दीदी आर्य जब मेरे साथ चलता है तब मैं जली-भुनी लड़कियों के रिएक्शंस ही देखती हूं। वो साले अलग-थलग ग्रुप वालों मे लौंडे भी उतना ही हैंडसम। वहां की सेक्सी हॉट लड़कियां ग्रुप के बाहर के लौंडों को देखती तक नहीं, लेकिन वो सब भी आर्य को ताड़ती रहती है, आर्य वो मैटेरियल है।"

"लड़कियां सामने से आकर जिसे परपोज करे, आर्य वो मटेरियल है और वो तुम्हे परपोज करेगा अपनी गर्लफ्रेड बनाने के लिए। वैसे भी अगर आर्य ने किसी को परपोज किया तो समझो वो गर्लफ्रेंड बनाने के लिए परपोज नहीं कर रहा, बल्कि लाइफ पार्टनर बनाने के लिए करेगा। यदि तुम्हे मेरी बातों का यकीन नहीं है तो तुम खुद देख लेना की उसकी नजर कितनी लड़कियों पर होती है, और कितनी लड़कियों की नजर उसपर।"


पलक:- तुम ज्यादा अच्छे से जानती होगी उसके बारे में। मुझे क्या करना है। मै जैसी भी हूं खुश हूं। एक लाइफ पार्टनर ही चुनना है ना, आई-बाबा जिसे चुन लेंगे मै हां कह दूंगी।


चित्रा:- बोरिंग..


भूमि:- चित्रा कल से इसे जरा बन सवर कर निकाल इसके घर से।


चित्रा:- कैसे होगा... ये सिविल लाइन 4th रोड में है और मै सिविल लाइन 1st रोड में।


भूमि:- तेरे बाजू वाले पड़ोसी का नाम बता जो पसंद नहीं।


चित्रा:- मुरली पवार, आईजी ऑफ पुलिस।


भूमि:- ठीक है, कल से इसके घर चली जाना आज रात ही ये शिफ्ट करेंगे।


पलक:- ठीक है जो भी करना है कर लेना.. अभी चले यहां से।


भूमि:- चित्रा वो हड्डी का ढांचा और निशांत किधर है।


चित्रा:- कहीं लाइन मार रहा होगा।


भूमि:- हा हा हा… पहले उन्ही दोनो की करतूत देखते है फिर आर्य को कॉल करती हूं।


पलक:- आप दोनो जाओ, मै तेजस दादा से मिलकर आती हूं।


पलक दोनो को छोड़कर एमडी चेंबर के ओर चल दी। दरवाजे पर वही शामलाल खड़ा था, पलक को देखकर पूछने लगा क्या काम है? पलक अपना नाम बतायी और वो हाथ के इशारे से अंदर जाने के लिए बोल दिया।


पलक अंदर आयि, और नजरों के सामने आर्यमणि… "तेजस दादा नहीं है क्या?"


आर्यमणि, पलक के कमर में हाथ डालकर, अपनी ओर खींचते.… "दादा नही, एक किस्स का वादा है, जो कॉलेज का मैटर खत्म करने के बाद तुम देती"…


पलक नाटकीय अंदाज में गुस्सा दिखती, खुद को आर्यमणि के पकड़ से छुड़ाने के लिए थोड़ी कसमसाती हुई.… "ये वादा कॉलेज के सामने मुझे परपोज करने के बाद का था। लेकिन शायद तुम्हारी फट गई। क्यूंकि सिर्फ तुम्हारे नागपुर में होने पर जिस अक्षरा भारद्वाज ने तुम्हे चैन से श्वांस नही लेने दिया, उसकी बेटी को सबके सामने परपोज कर देते, फिर क्या होता"…


पलक भले चिढ़ाने के लिए बोली हो लेकिन आर्यमणि बात को पूरी गंभीरता से लेते हुए.… "फिर तो फिलहाल हमे अनजान हो जाना चाहिए..."


पलक अंदर ही अंदर मुस्काती और बाहर से वह भी आर्यमणि की तरह गंभीर दिखती... "हां बिल्कुल!! तेजस दादा कहां है?"


आर्यमणि:– कहीं बाहर गए हैं।


पलक जाकर चुपचाप बैठ गई। कुछ पल तक दोनो ख़ामोश रहे… "कुछ पता है कब तक आएंगे?"..


आर्यमणि:- पता नहीं।


दोनो फिर से ख़ामोश हो गए। एक बार फिर पलक खामोशी तोड़ती हुई… "तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?"..


आर्यमणि:- हां है।


पलक थोड़ी सी हैरान होती हुई… "लेकिन चित्रा तो बता रही थी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"..


आर्यमणि:- अभी एक घंटे पहले बनी है, इसलिए उसे भी पता नहीं।


पलक:- पहली बार उससे कब मिले थे।


आर्यमणि:- 1 घंटे और 5 मिनट पहले।


पलक:- क्या वो चित्रा से भी खूबसूरत है?


आर्यमणि:- कल वो जब आएगी मिलने, तो खुद ही देख लेना।


पलक:- क्या वो अपने ही क्लास की है?


आर्यमणि:- कल उसकी पूरी डिटेल मिल जाएगी। अब चले यहां से दादा लगता है नहीं आने वाले।


पलक:- मै क्यों जाऊं? मै तो भूमि दीदी के साथ आयी हूं। तुम जाओ, मै दादा से मिलकर जाऊंगी।


आर्यमणि, उठकर वहां से बाहर चला आया, और भूमि को कॉल लगाकर उसके बारे में पूछने लगा। भूमि ने उसे कैश काउंटर पर ही आ जाने के लिए कही। हर कोई अपना अपना पेमेंट करके जैसे ही निकलने लगे… "आर्य तू दादा के ऑफिस से आ रहा है ना, पलक वहां थी।"..


आर्यमणि:- दीदी मैंने उसे चलने के लिए कहा था तब वो बोली दादा से मिलकर ही आएगी।


भूमि:- ठीक है एक काम कर तू उसे बाइक से छोड़ देना। मै इन तीनों को छोड़ आती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी। अरे माधव ये लो, ये तुम्हारे लिए है।


माधव, आर्यमणि के हाथ में लैपटॉप देखकर थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया… "नहीं दोस्त ई हमको थोड़े ना चाहिए, वापस कर दो।"..


चित्रा:- वो फ्री में नहीं दे रहा है माधव, बदले में तुम हम दोनों को मैथमेटिक्स और फिजिक्स पढ़ाओगे।


माधव:- वो तो हम वैसे भी हेल्प कर देंगे, लेकिन ई हम नहीं ले सकते है। वापस कर दीजिए इसको।


भूमि:- गार्ड इस अस्थिपंजर को उठाकर लाओ। आर्य तू वो लैपटॉप मुझे दे, हम इसके हॉस्टल के अंदर तक छोड़कर आएंगे।


माधव:- अरे लेकिन उ तो बॉयज हॉस्टल है दीदी आप काहे जाइएगा।


वो लोग माधव को लेकर चलते बने। इधर आर्यमणि अटक सा गया। लगभग 1 घंटे बाद आर्यमणि के मोबाइल पर पलक का कॉल आया, और वो आर्यमणि से उसका पता पूछने लगी। आर्यमणि उसे बिल काउंटर पर ही बुला लिया।… "सॉरी मेरे कारण तुम्हे इंतजार करना पड़ा। दीदी को कॉल की तो पता चला उन्हें जरूरी काम था इसलिए उन्हें निकालना पड़ा और मै तुम्हारे साथ"..


आर्यमणि:- इट्स ओके। चलो चलकर पहले कुछ खाते है।


पलक:- बाहर में कुछ खाए क्या?


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है चलो।


आर्यमणि, पलक को रुकने बोलकर अपनी बाइक ले आया। पलक को अचानक ध्यान आया कि आर्यमणि के पास तो बाइक है, वो भी उसके सीट की पोजिशन ऐसी है कि बिना चिपके जा नहीं सकते है… "आर्य, क्या तुम्हारे पास कार नहीं है"


आर्यमणि:- ज़िन्दगी में हर चीज का मज़ा लेना चाहिए पलक। गंभीर और शांत मै भी रहता हूं, इसका मतलब ये नहीं कि जीता नहीं हूं, हंसता नहीं हूं। तुमने तो अपने अंदर के ख्यालों को ही अपनी पूरी दुनिया बना ली है। अब आओ और ये झिझक छोड़ दो कि बाइक पर मै एक अजनबी के साथ कैसे जाऊंगी।


"चले क्या"… पलक बाइक पर बैठती हुई आर्यमणि के कंधे पर हांथ डालकर मुस्कुराती हुई कहने लगी। आर्यमणि मस्त अपनी बाइक चला रहा था और पीछे बैठकर पलक आर्यमणि से दूरी बनाने की कोशिश तो कर रही थी, लेकिन बीएमडब्लू बाइक के सीट कि पोजिशनिंग कुछ ऐसी थी कि वो जाकर आर्यमणि से चिपक जाती।


बड़ी मुश्किल से पलक 2 इंच की दूरी बनाती और इधर ट्रैफिक के कारण लगा ब्रेक उन दूरियों को मिटा देती।… "पलक कहां चलना है।"..


पलक अपने होंठ आर्यमणि के कान के करीब ले जाती… "चांदनी चौक चलेंगे पहले।"… कुछ ही देर में दोनो चांदनी चौक में थे। पलक स्ट्रीट फूड का लुफ्त उठाने आयी थी, वहां उसने जैसे ही 2 प्लेट हैदराबादी तंदूर का ऑर्डर दिया… "पलक एक ही प्लेट का ऑर्डर दो।"..


पलक:- क्यों ऐसे ठेले पर का खाना खाने में शर्म आएगी क्या?


आर्यमणि:- नहीं, मै नॉन वेज नहीं खाता।


पलक:- सच बताओ।


आर्यमणि:- हां सच ही कह रहा हूं।


पलक:- फिर छोड़ो, चलो चलते है यहां से।


आर्यमणि:- लेकिन हुआ क्या?


पलक:- साथ आए है, खाली हाथ खड़े रहोगे और मै खाऊंगी तो अजीब लगेगा ना।


आर्यमणि:- तुम आराम से खाओ, मै भी अपने लिए कुछ ले लेता हूं।


वहीं पास से उसने गरम छने समोसे लिए और पलक का साथ देते हुए वो समोसा खाने लगा। चांदनी चौक से फिर दोनो प्रताप नगर और वहां से फिर तहसील ऑफिस। हर जगह के स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते अंत में दोनो सिविल लाइन चले आए।


जैसे ही सिविल लाइन आया, पलक… "तुम यहीं छोड़ दो, यहां से मै चली जाऊंगी।"…


आर्यमणि:- नहीं दीदी ने घर तक छोड़कर आने के लिए कहा है।


पलक, अनायास ही बोल पड़ी… "पागल हो क्या, मेरे घर जाओगे। तुम जानते भी हो वहां का क्या माहौल होगा।"


आर्यमणि:- हद है, इतना बढ़िया अनजान के रोल में घुसी थी, यहां आकर क्या हो गया?


पलक, छोटा सा मुंह बनाती... "मुझे माफ कर दो। मैं अपनी आई (अक्षरा भारद्वाज) के नाम पर तुम्हे बस छेड़ रही थी। लेकिन मेरे घर तक जाना...


आर्यमणि:- क्यों किसी लड़के के साथ जाने पर तुम्हारे घरवाले तुम्हे गोली मार देंगे क्या?


पलक:- किसी मे, और तुम मे अंतर है ना आर्य।


आर्यमणि:- मेरे माथे पर नाम नहीं लिखा है। दीदी ने कहा है तो घर तक छोड़कर ही आऊंगा।


पलक:- जिद्दी कहीं के ! ठीक है चलो।


कुछ ही दूरी पर पलक का घर था। आर्य उसे छोड़कर वापस लौट ही रहा था कि पीछे से पलक ने आवाज़ लगा दी… "सुनो आर्य"...


आर्य रुककर इशारे से पूछने लगा क्या हुआ। पलक उत्तर देती कहने लगी, दादा (राजदीप) का आवास शिफ्ट कर दिया गया है। आर्यमणि पलक को लेकर उसके नए आवास पर पहुंच गया। पलक बाइक से उतरती हुई आर्यमणि से विदा ली। लेकिन पलक जैसे ही अपना कदम बढ़ायि, आर्यमणि भी उसके पीछे चल दिया।

पलक हैरानी से आर्यमणि को देखती... "मेरे पीछे क्यूं आ रहे?

आर्यमणि:– जब इतनी दूर आ ही गया हूं, तो साथ में तुम्हारे घर भी चलता हूं। मेरे माथे पर थोड़े ना मेरा नाम लिखा है।"

पलक:– आर्य तुम समझते क्यूं नही? अंदर मत आओ..

आर्यमणि:– तुम्हे इस राजा की रानी बनना है या नही?

पलक:– हां लेकिन...

आर्यमणि:– हां तो फिर चलो...

पलक असमंजस में, और आर्यमणि मानने को तैयार नहीं... पलक, आर्यमणि को समझाकर वापस भेजने में विफल रही और नतीजा, आर्यमणि भी पलक के साथ ही अंदर घुसा... वहीं कुछ घंटे पूर्व, शॉपिंग मॉल में जैसा की भूमि, चित्रा से कही थी, ठीक वैसा ही हुआ। एसपी राजदीप और कमिश्नर राकेश नाईक का आवास आसपास था। शिफ्ट करने में कोई परेशानी ना हो इसके लिए भूमि ने कई सारे लोगों को भेज दिया था।


सुप्रीटेंडेंट और कमिश्नर का परिवार आस-पास और दोनो परिवार के लोग हॉल में बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक उसी वक्त पलक और आर्यमणि वहां पहुंच गये। पलक और आर्यमणि ने जैसे ही घर में कदम रखा, सभी लोगो की नजर दोनो पर। और जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वहां बैठे सभी लोग घोर आश्चर्य में पड़ गए।


इससे पहले कि कोई कुछ कहता, एक उड़ता हुआ चाकू आर्यमणि के ओर चला आया और पीछे से राजदीप की मां अक्षरा चिल्लाने लगी… "ये कुलकर्णी की औलाद यहां क्या कर रहा है। पलकककक .. हट उसके पास से। जिसका साया पड़ना भी अशुद्ध होता है, तू उसे घर तक साथ ले आयी। तुझे और कोई लड़का नहीं मिला क्या पूरे नागपुर में, जो तू उस भगोड़ी जया के बेटे को यहां ले आयी।


आर्यमणि दरवाजे पर ही खड़ा था, और अक्षरा बेज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पलक को ऐसा लगा मानो उसने आर्यमणि को यहां लाकर कितनी बड़ी गलती कर गई। शब्द तीर की तरह थे जो पलक का कलेजा चिर गई और वो रोती हुई आर्यमणि को देखने लगी, मानो बहते आंसू के साथ माफी मांग रही हो।


आर्यमणि खामोशी से बात सुनता गया। अक्षरा जैसे ही चुप होकर बढ़ी धड़कनों को सामान्य करने लगी, आर्यमणि पलक के आशु पोछकर उसे शांत रहने का इशारा किया और अक्षरा के ओर चल दिया। अपने हाथ में वो चाकू लिए अक्षरा के पास पहुंचा। आर्यमणि, अक्षरा का हाथ पकड़कर उसे चाकू थमाते… "देख तो लूं जरा, कितनी नफरत भरी है आपके दिल में।"…


तभी बीच में निशांत की मां निलानजना बोलने लगी… "नहीं आर्य"..


आर्य:- नहीं आंटी अभी नहीं। बचपन से इनकी एक ही कहानी सुनकर पक गया हूं। मेरी मां के बारे में इन्होंने इतना कुछ बोला है कि मेरा दिमाग खराब हो गया। कॉलेज में मुझे परेशान करने के लिए ये लोग स्टूडेंट को उकसा रहे है। आज दुश्मनी का लेवल भी चेक कर लेने दो मुझे।… अक्षरा भारद्वाज दिखाओ लेवल। भाई मरा था ना उस दिन, तो ले लो बदला। अब चाकू लिए ऐसे ख़ामोश क्या सोच रही है?


आर्यमणि इतनी जोर से चिल्लाया की वहां के हॉल में उसकी आवाज गूंज गई। राजदीप कुछ बोलने लगा लेकिन तभी चित्रा की मां निलांजना ने उसे चुप करा दिया। आर्यमणि गुस्से में अक्षरा से अपनी नजर मिलाए… "क्यों केवल बोलना आता है, पीठ पीछे लोग भेजने आते है। आज मैंने कॉलेज ने 30 ऐसे लोगो को मारा है जो आपके कहने पर कॉलेज मुझसे लड़ने आए थे। उनमें से 2 को बहुत गन्दा तोड़ा मैंने, और जब उससे मिलने हॉस्पिटल गया तो 30-40 और लोगों को तोड़ना परा। भारद्वाज खानदान में सामने से वार करने की हिम्मत खत्म हो गई क्या? चलो चलो चलो अब दिखाओ भी नफरत।


अक्षरा बड़ी मुश्किल से चाकू ऊपर उठाई। उसके हाथ कांप रहे थे। आर्यमणि ने उसके हाथ को अपने हाथ का सहारा देकर अक्षरा की आंखों में देखा। चाकू को अपने सीने के नीचे टिकाया। लोग जैसे ही दौड़कर उसके नजदीक पहुंचते, उससे पहले ही आर्यमणि वो चाकू अपने अंदर घुसा चुका था।
Hero to bilkul aar paar karne aaya tha .. dekhte h ab Akshara ka dil change hota h ya nhi .... Aur dushmani khatm karne ka acha tareeka socha h hero ne.. dekhte h kya hota h ... Waiting for next bro
 

Lib am

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भाग:–20






परदे के पीछे का खिलाड़ी सामने था। और आर्यमणि को परेशान करने की वजह भी सामने थी। भूमि और राजदीप के बीच जो भी मन लुभावन बातें हुई, वह बस मात्र एक कल्पना थी, जिसके पूरा होने का कोई रास्ता नही था। लेकिन आर्यमणि ने जब पहला दिन अपना कदम नागपुर में रखा तभी उसे पार्किंग में पता चल चुका था कि अक्षरा भारद्वाज लग गई है उसके पीछे। उतने दिन से आर्यमणि बस दुश्मनी का इतिहास ही खंगाल रहा था और जब वह सुनिश्चित हुआ की अब अक्षरा से मिलने का वक्त आ गया, तब उसने अपना तांडव सुरु कर दिया। अब बस छोटा सा इंतजार करना था... सही वक्त का...


राजदीप चला गया और भूमि कैंटीन में चली आयी। वो आर्यमणि के पास बैठती हुई…. "ये हड्डी का ढांचा कौन है।"… भूमि माधव को देखते हुए पूछने लगी।


चित्रा:- उसे हड्डी का ढांचा नहीं बुलाइए।


भूमि:- चित्रा बहुत बड़ी हो गई है। क्या कहती थी मुझसे.. दीदी जब मै नागपुर आऊंगी तब आपके साथ ही रहूंगी और वो आशिक़ कहां गया, मेरा दूसरा बॉयफ्रेंड.. क्यों रे उधर मुंह छिपाकर क्या कर रहा है, यहां इसे कोई मिली नहीं क्या अब तक?


निशांत:- कैसे मिलेगी, आर्य को बीएमडब्लू दी हो और मुझे भुल गई।


भूमि:- तेरा बाप क्या पैसे छाती पर लाद कर ले जाएगा। पिछले साल 182 करोड़ का आईटीआर फाइल किया था। अपने कंजूस बाप को बोल एक बाइक दिला दे।


चित्रा:- दीदी आपकी बात कौन टाल सकता है। आप ही पापा को बोल दो।


भूमि:- ये छोड़ी चुप क्यों है। पलक तुम मुझे पहचानती हो या नहीं।


पलक:- दीदी आप भी ना कैसी बातें कर रही हो। कैसी हो आप?


भूमि:- कैसी बातें क्या? मै आयी, यहां बैठी। तेरे मौसेरे भाई बहन मुझसे खुलकर बात कर रहे और तू मुझसे कतरा रही है। तेरी मां और चित्रा की मां दोनो सौतेली बहने है क्या?


पलक:- आप भी ना कैसी बातें कर रही हो दीदी।


भूमि:- कैसी बातें क्या, मै चित्रा की मां से मिली थी। उसने अपने बच्चे के मन में कभी जहर नहीं घोला, कि तेरे मामा की मौत के कारण मेरी जया मासी है। ये दोनो गहरे दोस्त है और एक बात, तेरी मां के चढ़ावे में आकर तेरा बाप मेरी मासी और मौसा से दुश्मनी निभा रहा है, लेकिन चित्रा की मां और जया मासी दोनो अच्छे दोस्त है, सुख दुख के साथी। क्यों चित्रा, क्यों निशांत मै गलत कह रही हूं क्या?


चित्रा:- दीदी बिल्कुल सही कहा आपने। जैसे आप छुट्टियों में आती थी गंगटोक, तेजस दादा आते थे, वहां महीनों रहते थे। वैसी ही मां भी कहती थी मासी से, दीदी बच्चो को भेज दो राकेश के पुलिस की नौकरी के कारण हम कहीं निकल नहीं पाते। तब मासी साफ माना मार देती, कहती तेरे घर के बगल में कुलकर्णी का घर है।


निशांत:- जानती हो दीदी, एक दिन मैंने पलक के कंधे पर हाथ रख दिया तो इसे ऐसा लगा जैसे किसी अनजान ने इसके कंधे पर हाथ रख दिया। हम बस नाम के दो सगी बहनों के बच्चे है, बाकी जान पहचान तो मानकर चलो की कॉलेज के कारण हुई है।


पलक:- नहीं ऐसी बात नहीं है।


चित्रा:- तो कैसी बात है। हां मानती हूं तुम हम सबसे समझदार हो लेकिन दिल प्यार मांगता है, समझदारी तो जिंदगी भर दिखा सकती हो। तुम बताओ क्या जैसे भूमि दीदी और आर्य के बीच का रिश्ता उसके 5% में भी है क्या हम लोग।


भूमि:- तुम तो ये कहती हो। इसकी मां का दबदबा ऐसा है कि उसने इन सबको सीखा कर रखा है, वो लोग तेरे थोड़े ना अपने है। तेरे दादा 2 भाई थे उसके 2 बच्चे हुए, और ये तीसरा जेनरेशन है। इनसे इतने क्लोज होने की क्या जरूरत। जबकि ये तो मेरे कंप्लीट ब्लड रिलेशन में हुए। एक ही शहर में आए हुए साल भर हो गए है लेकिन मिस ने एक कॉल तक नहीं किया।


पलक:- आप सब क्यों मेरी आई के बारे में इतना कह रहे। भूमि दीदी जैसे आप आर्य के लिए आज व्याकुल होकर यहां स्टूडेंट की लाश गिराने के लिए तैयार थी, वैसा ही हाल तो मेरी मां का भी है ना। आप आक्रोशित हो तो प्यार और वो आक्रोशित हो तो…


भूमि:- मीटिंग में तो तुम आती ही हो ना.. वहां क्या बताया जाता है.… परिस्थितियों से हारकर जो आत्महत्या करते है वो अक्षम्य अपराध है। यानी कि माफ ना करने योग्य गलती। उस आदमी ने आत्महत्या कि और अपने पीछे कई जलते लोगो को छोड़ दिया। भाई से प्रेम है इस बात का हम सब आदर करते है, तभी तो छोटे काका से मै बाहर मिलते रहती हूं, राजदीप मुझसे मिलने आता है। दादा से मिलता है। नम्रता मेरे नीचे काम कर रही है और इस मीटिंग में मै उसे अपना उतराधिकारी बना रही हूं। क्यों नहीं है कदर। उनकी भावना की कदर है तभी तो हम बाहर मिलते है, ताकि उनको दर्द का एहसास ना हो। हम सब मिलते है सिवाय तुम्हारे। अब तुम कह दो कि तुम्हे ये बात पता नहीं।


पलक:- मै जा रही हूं क्लास।


चित्रा:- अब कौन बीच मे छोड़कर जा रहा है।


पलक:- मुझे नहीं समझ में आ रहा की मै क्या जवाब दूं। दीदी ने ऐसी बात कही है जिसमें पॉजिटिव भी उनका है और नेगेटिव भी उन्हीं का। मै किस प्वाइंट को बोलकर तर्क करूं जबकि अभी मै खुद में ही गिल्ट फील कर रही हूं।


भूमि:- चल शॉपिंग करके आते है।


पलक:- मुझे कहीं नहीं जाना।


भूमि:- चित्रा मै तो थर्ड जेनरेशन में हूं, थोड़े दूर की बहन। तू ही कह, कहीं तेरी बात मान ले।


पलक:- कोई ड्रामे नहीं चाहिए। दीदी मै समझ गई दुनिया क्यों कहती है भूमि ने जो ठान लिया वो होकर रहता है।


भूमि:- और क्यों ऐसा कहती है..


पलक:- क्योंकि आप अपनी बात मनवाने में माहिर हो। चलती हूं मै आपके साथ।


भूमि:- ये हुई ना बात। चलो फिर सब..


माधव:- फिर क्लास का क्या होगा।


भूमि:- इस डेढ़ पसली को भी पैक करके लाओ, ये भी चलेगा।


आर्यमणि:- आप लोग जाओ दीदी मै जारा हॉस्पिटल होकर आता हूं। शायद 2 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए है।



भूमि:- ठीक है उन्हें देखकर सीधा दादा के मॉल आ जाना।


ये चारो एक साथ निकल गए और आर्यमणि चल दिया उन लोगों को देखने जिसे उसने पीटा था। कॉलेज के ऑफिस से पता करके आर्यमणि उन लड़कों के घर के ओर चल दिया।


जैसे ही उनके गली में बाइक घुसी, चारो ओर खून कि बू और कटे हुए बकरे लटक रहे थे। आस–पास ऐसे लोगो की भीड़, जिनसे आर्यमणि का पाला पहले भी पड़ चुका था। एक पूरी बस्ती, सरदार खान की बस्ती, जहां खून के प्यासे लोग चारो ओर थे। आर्यमणि चारो ओर के माहौल का जायजा लेते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ ही रहा था तभी एक लड़की अर्यमनि का हाथ पकड़कर कहने लगी… "मेरे साथ चलो और किसी से भी नजरें नहीं मिलाना।"..


आर्यमणि उसके साथ चला। बाज़ार की भीड़ से जैसे ही दोनो आगे बढ़े, वो लड़की आर्यमणि को एक कोने में ले गई और उसे दीवार से चिपकाते हुए…. "तुम क्या पागल हो जो यहां आए हो।"..


दोनो इतने करीब थे कि आर्यमणि उसकी धड़कने सुन सकता था। गले से प्रवाह होने वाले गरम रक्त को मेहसूस कर सकता था। उसके बदन कि खुशबू लड़की का पूरा परिचय दे रही थी। आर्यमणि अपना मुट्ठी बांधकर अपनी तेज धड़कन को धीरे-धीरे सामान्य करने लगा.. इतने में दोबारा वो लड़की पूछी…. "तुम क्या पागल हो जो यहां आए।"…


आर्यमणि, उसे खुद से थोड़ा दूर खड़ा करते ऊपर से नीचे तक देखने लगा… "तुम हमारे कॉलेज में पढ़ती हो। मुझे मारने आए लड़को के साथ तुम भी पीछे खड़ी थी। नाम क्या है तुम्हारा?


लड़की:- रूही..


आर्यमणि:- मुझे घेरकर मारने आए थे, बदले में मैंने उसे मारा। मुझे लगा गुस्से में बहुत गलत कर दिया मैंने, इसलिए यहां पता करने चला आया कि वो कौन से हॉस्पिटल में है।


रूही:- तुम बिल्कुल पागल हो। वो लोग नेचर हॉस्पिटल में एडमिट है। यहां से 4 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां उनसे मिलना और चुपचाप चले जाना। कल कॉलेज आकर मै बात करती हूं।


आर्यमणि:- हम्मम !


आर्यमणि उसी रास्ते वापस जाने की सोच रहा था लेकिन रूही ने उसे दूसरे रास्ते से बाहर निकाला और दोबारा कहने लगी, "बस मिलना और चले जाना"। आर्यमणि उसकी बात पर हां में अपना सर हिलाते हुए नेचर हॉस्पिटल पहुंचा। वो समझ चुका था कि ये हॉस्पिटल इन लोगों का अपना हॉस्पिटल है।


आर्यमणि रिसेप्शन पर…. "मिस यहां 2 लड़का आज एडमिट हुआ होगा, नेशनल कॉलेज का है। एक के सीने की हड्डी टूटी है और दूसरे की पाऊं की। आपको कुछ आइडिया है।


वह लड़की ने आर्यमणि को घुरकर देखी और पहले माले के रूम नंबर 5 में जाने के लिए बोल दी। आर्यमणि के ठीक पीछे-पीछे रूही भी वहां पहुंची थी। रिसेप्शन पर खड़ी लड़की को देखकर रूही समझ गई यहां क्या होने वाला है। हवा की रफ्तार से वो आर्यमणि के पास जाकर खड़ी हो गई… "कैसी हो लिटा, और तुम जानू यहां क्यों आ गए, मना की थी ना मेरे दोस्त ठीक है तुम्हे चिंता करने की जरूरत नहीं।"


वो रिसेप्शनिस्ट लिटा, रूही को हैरानी से देखती हुई…. "जानू, ये तेरा बॉयफ्रेंड है क्या?"


रूही:- कामिनी इस हैंडसम हंक को घूरना बंद कर और तुम क्या इसे देख रहे हो, चलो यहां से।


लिटा:- ये लड़का नॉर्मल दिख रहा है, तू कंफ्यूज दिख रही है, सच-सच बता ये तेरा बॉयफ्रेंड है या तू इसे बचना चाह रही है। जिस तरह से ये पूछ रहा था, मुझे तो पुरा यकीन है कि ये वही है जिसने रफी और मोजेक को मारा है।


रूही, रिसेप्शन काउंटर पर अपने दोनो हाथ पटकती… "हां ये वही है। और वो कॉलेज का लफड़ा था समझी। कंफ्यूज मै नहीं थी बल्कि ये साफ मन से आया था इसलिए घबरा रही थी। और अंत में, ये मेरा बॉयफ्रेंड है, इसका मतलब ये मेरे पहचान का है, इसे कुछ नहीं होना चाहिए।


लिटा:- ये बातें तू मुझे नहीं उन्हें समझा जो तेरे बॉयफ्रेंड को ओमेगा मानते है। एक अल्फा जिसके पास कोई पैक नहीं। और हां तू यहां बातें कर वो तो गया..


रूही जबतक मुड़कर देखती तबतक तो आर्यमणि गायब हो चुका था। रूही भागकर ऊपर पहुंची। …. "ओ खुदाया, ये सब क्या है।"


बीच के समय में… जैसे ही रूही आगे बढ़कर रिसेप्शन काउंटर पर अपने हाथ ठोकी, आर्यमणि उन लोगो से मिलने पहले माले पर चल दिया। पूरा पैसेज ही वूल्फ से भड़ा पड़ा था। आर्यमणि जैसे ही भिड़ से होकर अंदर घुसने कि कोशिश करने लगा, वहां खड़े वेयरवुल्फ को समझ में आ गया कि है यह हमारे बीच का नहीं है। आर्यमणि को पीछे धकेलते हुए लोग उसकी ओर मुड़ गए… "ए लड़के अभी तू जा यहां से इलाज चल रहा है। जब इलाज हो जाए तो आ जाना।"..


अभी एक आदमी आर्यमणि से इतना कह ही रहा था तभी एक लड़का चिल्लाया… "यही है वो अल्फा जिसने रफी और मोजेक को मारा है।"… बस इतना कहना था कि वहां पर सभी शेप शिफ्टर ने अपना शेप बदल लिया। किसी की चमकती पीली आखें तो किसी के चमकते लाल आंख। कान सबके बड़े हो गए और ऊपर से तिकोने। चेहरा खींचकर आधा इंसान तो आधा वुल्फ का बन गया।


"वूऊऊऊ" की आवाज़ निकालकर आगे बढ़े। 2 वेयरवोल्फ अद्भुत रफ्तार से दौड़कर अपने पंजे से आर्यमणि को फाड़ने की कोशिश। आर्यमणि दोनो की कलाई पकड़ कर उल्टा घुमाया और तेजी के साथ दोनो के सर को पहले आपस में टकराया और उसके बाद दाएं बाएं के दीवाल पर बारी-बारी से उनका सर दे मारा।


आर्यमणि उस छोटे से पैसेज में आगे बढ़ते हुए, किसी हाथ पकड़कर उसके पंजे के नाखून को उल्टा घूमाकर बड़े–बड़े राक्षस जैसे नाखून को तोड़कर जमीन में बिखेर देता, तो किसी का गला पकड़कर उसके पाऊं पर ऐसा मारता की वो अपने टूटे पाऊं के साथ कर्राहने लगता।


देखते ही देखते वो पुरा पैसेज घायलों के चींख और पुकार से गूंजने लगा। ज्यादातर लोगों की हालत ऐसी थी मानो वो चलती चक्की के बीच में आकर पीस गया हो। आर्यमणि ने ज्यादातर लोगों को दाएं और बाएं के पैसेज की दीवार से टकरा दिया था।


जैसे ही रूही उस पैसेज में पहुंची, अपने सर पर हाथ रखती…. "ओ मेरे खुदाया। आर्य तुमने क्या कर दिया।"


आर्यमणि उसके बातो का जवाब देने से ज्यादा जरूरी अंदर जाकर घायलों से मिलना समझा और वो रफी और मोजेक के कमरे में प्रवेश किया। जैसे ही आर्यमणि ने दरवाजा खोला, मोजेक जोर से चिल्लाया…. "यही है वो ओमेगा"


आर्यमणि:- यही बात बोलकर पीली और लाल चमकती आखों वाले ने मुझ पर हमला किया था। मैंने उनका क्या हाल किया वो जाकर देखो पैसेज में। क्यों जानू तुम कुछ कहती क्यों नहीं?


रूही, जो बिल्कुल पीछे खड़ी थी, और आर्यमणि उसके बदन की खुशबू से समझ गया था। रूही हड़बड़ाई और घबराई आवाज़ में… "मै जी वो बाबा"..


"ये लड़का कौन है रूही, और बाहर के पैसेज में क्या हुआ है जो ये दर्द भरी कर्राहटें निकल रही है।"…. एक रौबदार आवाज़ उस कमरे में गूंजती हुई.. जिसे सुनकर रूही के साथ-साथ मोजेक और रफी भी सिहर गए।


आर्यमणि अपने एक कदम आगे बढ़कर, अपनी उंगली उसके गले के साइड में उभरे हुए नाश पर उंगली फेरते कहने लगा… "तुम डरे हुए हो, और अपनी डर को छिपाने के लिए ये तेज आवाज़ निकाल रहे। तुमने सब सुना बाहर खड़े लोग ने जब मुझे ओमेगा कहा। और देखते ही देखते तुम्हारे 20-30 लोग और घायल हो गए।"


"मै नहीं जानता कि तुम मुझे ओमेगा क्यों कह रहे। मै नहीं जानता कि तुम्हारी आखें पीली या लाल कैसे हो जाती है। मै नहीं जानता तुमलोग रूप बदलकर कैसे इंसान से नर भेड़िए बन जाते हो। एक ही बात मै जनता हूं, महाकाल मेरे सर पर सवार होता है और मै सामने वाले को तोड़ देता हूं।"

"कॉलेज के झगड़े में इसका पाऊं गया। मुझे बुरा लगा कि गलती किसी और कि थी और आगे रहकर मार करने की सजा ये पा गया। अब बात यहीं खत्म करनी है या आगे बढ़ानी है तुम्हारा फैसला। चाहो तो पुरा गांव बुलाकर मुझे ओमेगा-ओमेगा कहते रहो और हड्डियां तुड़वाते रहो। या फिर इसे ये मानकर भुल जाओ की तुम वीर लोग कहीं मार करने गए और कोई तुमसे भी ज्यादा वीर मिल गया।"


आर्यमणि गंभीर से आवाज़ में सरदार खान के इर्द गिर्द घूमता अपनी बात कह रहा था और वो आदमी लगातार अपने माथे के पसीने को पोंछ रहा था। जैसे ही आर्यमणि की बात खत्म हुई…. "मेरा नाम सरदार खान है। ये पूरे इलाके का मुखिया। मुखिया मतलब हम जैसे पीली और लाल आखों वाले वुल्फ का मुखिया। हमे इंसान पहचानने में गलती हुई। मै ये बात यही खत्म करता हूं, इस विनती के साथ की तुमने जो यहां देखा वो किसी से नहीं कहोगे।"..


आर्यमणि:- अब तो आपकी बेटी का बॉयफ्रेंड हूं, यहां आना जाना लगा रहेगा। अब घर की बात थोड़े ना बाहर बताऊंगा, क्यों डार्लिंग।


रूही:- बाबा मै इसे बाहर छोड़कर आती हूं।


रूही ख़ामोश आर्यमणि के साथ चल दी। वो कदम से कदम मिलाकर चल भी रही थी और अपनी नजर त्रिछि करके आर्यमणि को देखकर मुस्कुरा भी रही थी। जैसे ही दोनो बाहर आए…. "तुम्हे जारा भी डर नहीं लगा, जब यहां के लोगों से अपना शेप शिफ्ट किया।"


आर्यमणि:- तुम भी तो उस रात शेप शिफ्ट की हुई थी घोस्ट। मै भूत, पिसाच, और दैत्यों के अस्तित्व में विश्वास तो रखता हूं, लेकिन मुझे घंटा उनसे डर नही लगता। शेप शिफ्टर के गॉडफादर श्री हनुमान जी मे विश्वास रखता हूं, फिर तुम लोग तो इनके सामने धूल के बराबर हो।


रूही:- तुम कमाल के हो मेरे बॉयफ्रेंड। मुझे पाहचना कैसे?


आर्यमणि, बाइक पर बैठते हुए… "जब तुम मेरे बिल्कुल करीब थी, तब मैंने तुम्हारी बढ़ी धड़कने मेहसूस की थी। इन धड़कनों से मै पहले भी परिचित हो चुका हूं। खैर मै कुछ मामले निपटाकर जल्द ही तुमसे मिलता हूं, तबतक जलते अरमान को थोड़ा और जला लो।"..


आर्यमणि, जैसे ही बाइक स्टार्ट करके जाने लगा… "ओय तत्काल बने मेरे बॉयफ्रेंड, अपनी गर्लफ्रेंड को एक बार देखकर बता तो दो कैसी लगी।"..


आर्यमणि "मस्त, सुपर हॉट... वैसे भी पता नहीं तुम लोगों की मां ने कौन सी जड़ी बूटी खाकर पैदा किया था, सब एक से बढकर एक। उसमे भी तुम तो कल्पना से पड़े हो" कहता हुआ चल दिया शॉपिंग पर सबको ज्वाइन करने। कुछ ही देर में आर्यमणि बिग सिटी मॉल में था। नीचे के सेक्शन में कोई नहीं था इसलिए आर्यमणि फर्स्ट फ्लोर पर जाने लगा।
भूमि ने क्या मस्त बजाई अक्षरा की, उसकी ही बेटी के सामने और बेचारी पलक को कुछ बोलने का मौका भी नहीं दिया। बाद में शॉपिंग के नाम पर साथ ले जाकर बेचारी का गुस्सा भी ठंडा कर दिया।

और अपना हीरो तो फिर हीरो ही है, दो लोगो को तोड़ फोड़ कर उन्ही को जरिया बनाकर पूरे ग्रुप की वाट लगा दी और उनके सरदार सरदार खान को चेतावनी भी दे दी कि टक्कर उससे लो जिसको हरा सको।

अब रूही की पहचान भी खुल गई है और वो आर्य की गर्लफ्रेंड भी बन गई है जो आगे जा कर आर्य का पैक भी ज्वाइन करेगी और उसकी सबसे क्लोज पार्टनर इन क्राइम भी बनेगी।

क्या मस्त एक्शन पैक्ड अपडेट था मजा आ गया अब देखते है अक्षरा देवी से मुक्कालात कब होती है और क्या वो अपनी दिल की नफरत कभी खतम कर पाएगी या नही। जैसा भूमि ने कहा कि आत्महत्या जगन्य अपराध है कमजोर इंसान की निशानी है तो अक्षरा हो तो ये बात समझ आनी चाहिए।

कुल मिलाकर जबरदस्त, झकास अपडेट। और इसी के साथ समय है अगले अपडेट को पढ़ने का और फिर उसके रिव्यू का।
 

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भाग:–21




आर्यमणि चारो ओर अपनी नजरें घुमाए जा रहा था। अचानक से उसकी नजर एक जगह ठहरी और वहां का नजारा देखकर आर्यमणि मुस्कुराने लगा। मिरर वाले उस हिस्से में पलक खड़ी थी। उसके हाथ में एक क्रिकेट स्टंप था। उसे वह फ्लोर पर टिकाकर बिल्कुल आर्यमणि के स्टाइल में खड़ी थी। कुछ देर वैसे ही खड़ी रही फिर पलक कॉलेज वाला एक्शन दोहराने लगी, जैसा–जैसा आर्यमणि कॉलेज में कर रहा था।


आर्यमणि, पलक के इस हरकत को पीछे से देख रहा था। पलक अपनी जिज्ञासा आइने के सामने दिखा रही थी… "सुनिए आप जरा एक किनारे खड़े होंगे।" आर्यमणि को किसी ने टोका और वो वहां से किनारे हटकर पलक के रिपीट टेलीकास्ट के एक्शन को देखने लगा।


3-4 बार पलक उस एक्ट को करने के बाद, वहीं पास के ट्रायल रूम में घुस गई और आर्यमणि मुस्कुराते हुए वहां से आगे बढ़ गया। अपनी धुन में आर्य मणि भी पलक के पीछे जाने लगा। तभी सामने से भूमि उसे रोकती.… "तू किसके लिए यहां शॉपिंग करने आया है।"… भूमि ने सवाल किया और चित्रा जोड़-जोड़ से हसने लगी।


आर्यमणि, पलक के बारे में सोचने पर ऐसा मशगूल हुआ कि वो लेडीज अंडरगारमेंट्स के शॉप में घुस गया।…. "हम्मम ! ठीक है आप लोग जबतक यहां हो, मै दादा से मिल आता हूं। यहां से फ्री होकर कॉल करना मुझे।"…



चित्रा:- दीदी एक तो बात कम करता है ऊपर से आप ऐसे उसकी बोलती बंद कर दोगी तो क्या होगा।


भूमि:- किसी से बात करे कि ना करे तेरे से तो पूरी बात करता है ना। तू दिल पर हाथ रखकर बता, क्या वो मेरी बात का जवाब नहीं दे सकता था? वो भी ऐसा की हमारी बोलती बंद हो जाए।


चित्रा:- हां आपकी दोनो बात सही है। वो मुझ से बात भी करता है और यहां पर वो जवाब भी दे देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।


भूमि:- और क्यों नहीं किया..


चित्रा:- क्योंकि वो चाहता था हमे लगे कि हमने उससे ऐसा मज़ाक किया कि वो शर्माकर यहां से भाग गया।


भूमि:- तुझे वो दिल से मानता है और तू भी। अच्छा चित्रा तुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि आर्य तुझसे आई लव यू कहे।


चित्रा:- दीदी अगर उसे ऐसा फील होता ना कि मेरे दिल में ऐसी इक्छा है, तो भले ही उसके दिल में ऐसी इक्छा नहीं होती, लेकिन फिर भी वो बोल चुका होता।


भूमि:- और उसके दिल में ऐसी इक्छा होती की तू उसकी गर्लफ्रेंड होती..


चित्रा:- मुझे अभी फील हो जाए तो अभी कह दूंगी। कभी ना कभी किसी ना किसी को पार्टनर बनना ही है और मेरे करीबी दोस्त की ऐसी फीलिंग है तो चलो भाई कमिटेड हो जाओ।


भूमि:- कुछ तो गड़बड़ है चित्रा। इतने क्लियर कॉन्सेप्ट.. नाना कुछ ना कुछ यहां छिपाया जा रहा है। तुझे आर्य की कसम, मुझे वो बात बता जिसने तुम दोनों के बीच इतनी साफ मनसा दी है।


चित्रा:- हम दोनों ने अपने रिलेशन स्टेटस को चेंज किया था। जबरदस्ती 2 महीने तक गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रैंड भी रहे। कई बार किस्स भी हुआ, लेकिन एक बार भी स्मूच नहीं हुआ। बॉयफ्रेंड के साथ चिपकने वाली कभी फीलिंग ही ना आयी। वही रेगुलर गले लगने वाली ही फीलिंग आयी। जबकि हम दोनों ने जान बूझकर काफी टाईट हग किया था, कुछ तो वैसी फीलिंग निकल आए, लेकिन नहीं निकला। और भी सुनना है या हो गया।


भूमि:- हां हां सुना सुना इंट्रेस्टिंग है ये तो।


चित्रा:- हुंह ! आगे कुछ नहीं। 2 महीने में हमे पता चल गया कि हम दोनों के बीच कुछ नहीं हो सकता, इसलिए हमने ब्रेकअप कर लिया।


भूमि:- तब बच्ची थी ना। सीने पर कुछ रहेगा तो ना फीलींग निकलती। अभी ट्राई करके देख ले।


चित्रा:- नहीं होगा कन्फर्म, क्योंकि आर्य किसी के प्यार मे है।


भूमि:- क्या बक कर रही है।


चित्रा:- मैं तो दोनो को जानती भी हूं।


भूमि:- उसका तो पता नहीं लेकिन तेरी लव स्टोरी किसी के साथ कन्फर्म है। खैर तू छिपाने वाली तो है नहीं इसलिए तेरी चिंता ना है। लेकिन आर्य... चल उसका नाम बता, कल ही आधी शादी करवाकर दोनो को बूक कर दूं।


चित्रा:- दीदी वो पलक..


जैसे ही चित्रा, पलक का नाम ली, पलक का कलेजा धक–धक। इधर भूमि हैरान होती... "क्या !! पलक???"


चित्रा:- अरे वो नहीं पलक हमे सुन रही।


पलक, सामने आती... "सॉरी, चित्रा अपनी और आर्य की लव स्टोरी बता रही थी और मैं तभी पहुंची। मुझे लगा कहीं मेरे सामने न बताए, इसलिए छिपकर सुन ली। वैसे काफी रोमांटिक लव स्टोरी थी।


भूमि:- दूसरों की लव स्टोरी छिपकर सुनते शर्म नहीं आती। चल अपने किस्से बता।


पलक:- मेरा नाम पलक भारद्वाज है। मैंने 2 साल एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी की और पहले अटेम्प्ट में ही अच्छे मार्क्स मिले और आज मै नेशनल कॉलेज में हूं।


चित्रा:- अच्छा परपोज कितने लड़को ने किया वहीं बता दे।


पलक:- मुझे कोई प्रपोज नहीं करता।


भूमि:- चल झुटी। बड़ी आयी.. चित्रा देख इसे जारा..


चित्रा:- देखना क्या है दीदी.. अच्छा बता तो पलक तेरी फिगर क्या है।


पलक:- 32-24-34..


चित्रा:- सुना दीदी, क्या फिगर है। बिल्कुल छरहरा बदन, 5"6’ की हाइट और चेहरे की बनावट ऐसी की नजरें टिक जाए। बस एक ही कमी रह जाती है, कभी सज–संवर के नहीं निकलती। अब ऐसे फिगर वाली को कोई परपोज ना करे?


पलक:- इतने दिन से तो कॉलेज में हूं, किसी ने परपोज किया क्या अब तक?


चित्रा:- अब तू एसपी की बहन बनकर आएगी तो कौन परपोज करेगा। लोग थोड़े कम से काम चला लेते है। वैसे अपने कॉलेज में भी तेरे जैसी फिगर को टक्कर देने वाली लड़कियां है। और वो एक ग्रुप जो सबसे अलग रहता है उसकी लड़कियां इतनी हॉट होती है कि सभी लड़के उधर ही तकते रहते है। अब ऐसे माहौल में लड़के एसपी की बहन के साथ रिस्क क्यों ले? लड़के कहीं और कोशिश में लग गए होंगे। कौन पुलिस का लफड़ा पाले क्यों दीदी।?


भूमि:- अरे पुलिस वाले की बहन हुई तो क्या हुआ, लौंडे आजकल कुछ नहीं देखते, परपोज कर ही देते है।


पलक, थोड़ी चिढ़ती हुई… "ऐसा था तो मुझे अब तक आर्य ही परपोज कर देता।"..


चित्रा:- "अरे कुछ प्राउड मोमेंट होते है। भूमि दीदी आर्य जब मेरे साथ चलता है तब मैं जली-भुनी लड़कियों के रिएक्शंस ही देखती हूं। वो साले अलग-थलग ग्रुप वालों मे लौंडे भी उतना ही हैंडसम। वहां की सेक्सी हॉट लड़कियां ग्रुप के बाहर के लौंडों को देखती तक नहीं, लेकिन वो सब भी आर्य को ताड़ती रहती है, आर्य वो मैटेरियल है।"

"लड़कियां सामने से आकर जिसे परपोज करे, आर्य वो मटेरियल है और वो तुम्हे परपोज करेगा अपनी गर्लफ्रेड बनाने के लिए। वैसे भी अगर आर्य ने किसी को परपोज किया तो समझो वो गर्लफ्रेंड बनाने के लिए परपोज नहीं कर रहा, बल्कि लाइफ पार्टनर बनाने के लिए करेगा। यदि तुम्हे मेरी बातों का यकीन नहीं है तो तुम खुद देख लेना की उसकी नजर कितनी लड़कियों पर होती है, और कितनी लड़कियों की नजर उसपर।"


पलक:- तुम ज्यादा अच्छे से जानती होगी उसके बारे में। मुझे क्या करना है। मै जैसी भी हूं खुश हूं। एक लाइफ पार्टनर ही चुनना है ना, आई-बाबा जिसे चुन लेंगे मै हां कह दूंगी।


चित्रा:- बोरिंग..


भूमि:- चित्रा कल से इसे जरा बन सवर कर निकाल इसके घर से।


चित्रा:- कैसे होगा... ये सिविल लाइन 4th रोड में है और मै सिविल लाइन 1st रोड में।


भूमि:- तेरे बाजू वाले पड़ोसी का नाम बता जो पसंद नहीं।


चित्रा:- मुरली पवार, आईजी ऑफ पुलिस।


भूमि:- ठीक है, कल से इसके घर चली जाना आज रात ही ये शिफ्ट करेंगे।


पलक:- ठीक है जो भी करना है कर लेना.. अभी चले यहां से।


भूमि:- चित्रा वो हड्डी का ढांचा और निशांत किधर है।


चित्रा:- कहीं लाइन मार रहा होगा।


भूमि:- हा हा हा… पहले उन्ही दोनो की करतूत देखते है फिर आर्य को कॉल करती हूं।


पलक:- आप दोनो जाओ, मै तेजस दादा से मिलकर आती हूं।


पलक दोनो को छोड़कर एमडी चेंबर के ओर चल दी। दरवाजे पर वही शामलाल खड़ा था, पलक को देखकर पूछने लगा क्या काम है? पलक अपना नाम बतायी और वो हाथ के इशारे से अंदर जाने के लिए बोल दिया।


पलक अंदर आयि, और नजरों के सामने आर्यमणि… "तेजस दादा नहीं है क्या?"


आर्यमणि, पलक के कमर में हाथ डालकर, अपनी ओर खींचते.… "दादा नही, एक किस्स का वादा है, जो कॉलेज का मैटर खत्म करने के बाद तुम देती"…


पलक नाटकीय अंदाज में गुस्सा दिखती, खुद को आर्यमणि के पकड़ से छुड़ाने के लिए थोड़ी कसमसाती हुई.… "ये वादा कॉलेज के सामने मुझे परपोज करने के बाद का था। लेकिन शायद तुम्हारी फट गई। क्यूंकि सिर्फ तुम्हारे नागपुर में होने पर जिस अक्षरा भारद्वाज ने तुम्हे चैन से श्वांस नही लेने दिया, उसकी बेटी को सबके सामने परपोज कर देते, फिर क्या होता"…


पलक भले चिढ़ाने के लिए बोली हो लेकिन आर्यमणि बात को पूरी गंभीरता से लेते हुए.… "फिर तो फिलहाल हमे अनजान हो जाना चाहिए..."


पलक अंदर ही अंदर मुस्काती और बाहर से वह भी आर्यमणि की तरह गंभीर दिखती... "हां बिल्कुल!! तेजस दादा कहां है?"


आर्यमणि:– कहीं बाहर गए हैं।


पलक जाकर चुपचाप बैठ गई। कुछ पल तक दोनो ख़ामोश रहे… "कुछ पता है कब तक आएंगे?"..


आर्यमणि:- पता नहीं।


दोनो फिर से ख़ामोश हो गए। एक बार फिर पलक खामोशी तोड़ती हुई… "तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?"..


आर्यमणि:- हां है।


पलक थोड़ी सी हैरान होती हुई… "लेकिन चित्रा तो बता रही थी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"..


आर्यमणि:- अभी एक घंटे पहले बनी है, इसलिए उसे भी पता नहीं।


पलक:- पहली बार उससे कब मिले थे।


आर्यमणि:- 1 घंटे और 5 मिनट पहले।


पलक:- क्या वो चित्रा से भी खूबसूरत है?


आर्यमणि:- कल वो जब आएगी मिलने, तो खुद ही देख लेना।


पलक:- क्या वो अपने ही क्लास की है?


आर्यमणि:- कल उसकी पूरी डिटेल मिल जाएगी। अब चले यहां से दादा लगता है नहीं आने वाले।


पलक:- मै क्यों जाऊं? मै तो भूमि दीदी के साथ आयी हूं। तुम जाओ, मै दादा से मिलकर जाऊंगी।


आर्यमणि, उठकर वहां से बाहर चला आया, और भूमि को कॉल लगाकर उसके बारे में पूछने लगा। भूमि ने उसे कैश काउंटर पर ही आ जाने के लिए कही। हर कोई अपना अपना पेमेंट करके जैसे ही निकलने लगे… "आर्य तू दादा के ऑफिस से आ रहा है ना, पलक वहां थी।"..


आर्यमणि:- दीदी मैंने उसे चलने के लिए कहा था तब वो बोली दादा से मिलकर ही आएगी।


भूमि:- ठीक है एक काम कर तू उसे बाइक से छोड़ देना। मै इन तीनों को छोड़ आती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है दीदी। अरे माधव ये लो, ये तुम्हारे लिए है।


माधव, आर्यमणि के हाथ में लैपटॉप देखकर थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया… "नहीं दोस्त ई हमको थोड़े ना चाहिए, वापस कर दो।"..


चित्रा:- वो फ्री में नहीं दे रहा है माधव, बदले में तुम हम दोनों को मैथमेटिक्स और फिजिक्स पढ़ाओगे।


माधव:- वो तो हम वैसे भी हेल्प कर देंगे, लेकिन ई हम नहीं ले सकते है। वापस कर दीजिए इसको।


भूमि:- गार्ड इस अस्थिपंजर को उठाकर लाओ। आर्य तू वो लैपटॉप मुझे दे, हम इसके हॉस्टल के अंदर तक छोड़कर आएंगे।


माधव:- अरे लेकिन उ तो बॉयज हॉस्टल है दीदी आप काहे जाइएगा।


वो लोग माधव को लेकर चलते बने। इधर आर्यमणि अटक सा गया। लगभग 1 घंटे बाद आर्यमणि के मोबाइल पर पलक का कॉल आया, और वो आर्यमणि से उसका पता पूछने लगी। आर्यमणि उसे बिल काउंटर पर ही बुला लिया।… "सॉरी मेरे कारण तुम्हे इंतजार करना पड़ा। दीदी को कॉल की तो पता चला उन्हें जरूरी काम था इसलिए उन्हें निकालना पड़ा और मै तुम्हारे साथ"..


आर्यमणि:- इट्स ओके। चलो चलकर पहले कुछ खाते है।


पलक:- बाहर में कुछ खाए क्या?


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है चलो।


आर्यमणि, पलक को रुकने बोलकर अपनी बाइक ले आया। पलक को अचानक ध्यान आया कि आर्यमणि के पास तो बाइक है, वो भी उसके सीट की पोजिशन ऐसी है कि बिना चिपके जा नहीं सकते है… "आर्य, क्या तुम्हारे पास कार नहीं है"


आर्यमणि:- ज़िन्दगी में हर चीज का मज़ा लेना चाहिए पलक। गंभीर और शांत मै भी रहता हूं, इसका मतलब ये नहीं कि जीता नहीं हूं, हंसता नहीं हूं। तुमने तो अपने अंदर के ख्यालों को ही अपनी पूरी दुनिया बना ली है। अब आओ और ये झिझक छोड़ दो कि बाइक पर मै एक अजनबी के साथ कैसे जाऊंगी।


"चले क्या"… पलक बाइक पर बैठती हुई आर्यमणि के कंधे पर हांथ डालकर मुस्कुराती हुई कहने लगी। आर्यमणि मस्त अपनी बाइक चला रहा था और पीछे बैठकर पलक आर्यमणि से दूरी बनाने की कोशिश तो कर रही थी, लेकिन बीएमडब्लू बाइक के सीट कि पोजिशनिंग कुछ ऐसी थी कि वो जाकर आर्यमणि से चिपक जाती।


बड़ी मुश्किल से पलक 2 इंच की दूरी बनाती और इधर ट्रैफिक के कारण लगा ब्रेक उन दूरियों को मिटा देती।… "पलक कहां चलना है।"..


पलक अपने होंठ आर्यमणि के कान के करीब ले जाती… "चांदनी चौक चलेंगे पहले।"… कुछ ही देर में दोनो चांदनी चौक में थे। पलक स्ट्रीट फूड का लुफ्त उठाने आयी थी, वहां उसने जैसे ही 2 प्लेट हैदराबादी तंदूर का ऑर्डर दिया… "पलक एक ही प्लेट का ऑर्डर दो।"..


पलक:- क्यों ऐसे ठेले पर का खाना खाने में शर्म आएगी क्या?


आर्यमणि:- नहीं, मै नॉन वेज नहीं खाता।


पलक:- सच बताओ।


आर्यमणि:- हां सच ही कह रहा हूं।


पलक:- फिर छोड़ो, चलो चलते है यहां से।


आर्यमणि:- लेकिन हुआ क्या?


पलक:- साथ आए है, खाली हाथ खड़े रहोगे और मै खाऊंगी तो अजीब लगेगा ना।


आर्यमणि:- तुम आराम से खाओ, मै भी अपने लिए कुछ ले लेता हूं।


वहीं पास से उसने गरम छने समोसे लिए और पलक का साथ देते हुए वो समोसा खाने लगा। चांदनी चौक से फिर दोनो प्रताप नगर और वहां से फिर तहसील ऑफिस। हर जगह के स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते अंत में दोनो सिविल लाइन चले आए।


जैसे ही सिविल लाइन आया, पलक… "तुम यहीं छोड़ दो, यहां से मै चली जाऊंगी।"…


आर्यमणि:- नहीं दीदी ने घर तक छोड़कर आने के लिए कहा है।


पलक, अनायास ही बोल पड़ी… "पागल हो क्या, मेरे घर जाओगे। तुम जानते भी हो वहां का क्या माहौल होगा।"


आर्यमणि:- हद है, इतना बढ़िया अनजान के रोल में घुसी थी, यहां आकर क्या हो गया?


पलक, छोटा सा मुंह बनाती... "मुझे माफ कर दो। मैं अपनी आई (अक्षरा भारद्वाज) के नाम पर तुम्हे बस छेड़ रही थी। लेकिन मेरे घर तक जाना...


आर्यमणि:- क्यों किसी लड़के के साथ जाने पर तुम्हारे घरवाले तुम्हे गोली मार देंगे क्या?


पलक:- किसी मे, और तुम मे अंतर है ना आर्य।


आर्यमणि:- मेरे माथे पर नाम नहीं लिखा है। दीदी ने कहा है तो घर तक छोड़कर ही आऊंगा।


पलक:- जिद्दी कहीं के ! ठीक है चलो।


कुछ ही दूरी पर पलक का घर था। आर्य उसे छोड़कर वापस लौट ही रहा था कि पीछे से पलक ने आवाज़ लगा दी… "सुनो आर्य"...


आर्य रुककर इशारे से पूछने लगा क्या हुआ। पलक उत्तर देती कहने लगी, दादा (राजदीप) का आवास शिफ्ट कर दिया गया है। आर्यमणि पलक को लेकर उसके नए आवास पर पहुंच गया। पलक बाइक से उतरती हुई आर्यमणि से विदा ली। लेकिन पलक जैसे ही अपना कदम बढ़ायि, आर्यमणि भी उसके पीछे चल दिया।

पलक हैरानी से आर्यमणि को देखती... "मेरे पीछे क्यूं आ रहे?

आर्यमणि:– जब इतनी दूर आ ही गया हूं, तो साथ में तुम्हारे घर भी चलता हूं। मेरे माथे पर थोड़े ना मेरा नाम लिखा है।"

पलक:– आर्य तुम समझते क्यूं नही? अंदर मत आओ..

आर्यमणि:– तुम्हे इस राजा की रानी बनना है या नही?

पलक:– हां लेकिन...

आर्यमणि:– हां तो फिर चलो...

पलक असमंजस में, और आर्यमणि मानने को तैयार नहीं... पलक, आर्यमणि को समझाकर वापस भेजने में विफल रही और नतीजा, आर्यमणि भी पलक के साथ ही अंदर घुसा... वहीं कुछ घंटे पूर्व, शॉपिंग मॉल में जैसा की भूमि, चित्रा से कही थी, ठीक वैसा ही हुआ। एसपी राजदीप और कमिश्नर राकेश नाईक का आवास आसपास था। शिफ्ट करने में कोई परेशानी ना हो इसके लिए भूमि ने कई सारे लोगों को भेज दिया था।


सुप्रीटेंडेंट और कमिश्नर का परिवार आस-पास और दोनो परिवार के लोग हॉल में बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे, ठीक उसी वक्त पलक और आर्यमणि वहां पहुंच गये। पलक और आर्यमणि ने जैसे ही घर में कदम रखा, सभी लोगो की नजर दोनो पर। और जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वहां बैठे सभी लोग घोर आश्चर्य में पड़ गए।


इससे पहले कि कोई कुछ कहता, एक उड़ता हुआ चाकू आर्यमणि के ओर चला आया और पीछे से राजदीप की मां अक्षरा चिल्लाने लगी… "ये कुलकर्णी की औलाद यहां क्या कर रहा है। पलकककक .. हट उसके पास से। जिसका साया पड़ना भी अशुद्ध होता है, तू उसे घर तक साथ ले आयी। तुझे और कोई लड़का नहीं मिला क्या पूरे नागपुर में, जो तू उस भगोड़ी जया के बेटे को यहां ले आयी।


आर्यमणि दरवाजे पर ही खड़ा था, और अक्षरा बेज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पलक को ऐसा लगा मानो उसने आर्यमणि को यहां लाकर कितनी बड़ी गलती कर गई। शब्द तीर की तरह थे जो पलक का कलेजा चिर गई और वो रोती हुई आर्यमणि को देखने लगी, मानो बहते आंसू के साथ माफी मांग रही हो।


आर्यमणि खामोशी से बात सुनता गया। अक्षरा जैसे ही चुप होकर बढ़ी धड़कनों को सामान्य करने लगी, आर्यमणि पलक के आशु पोछकर उसे शांत रहने का इशारा किया और अक्षरा के ओर चल दिया। अपने हाथ में वो चाकू लिए अक्षरा के पास पहुंचा। आर्यमणि, अक्षरा का हाथ पकड़कर उसे चाकू थमाते… "देख तो लूं जरा, कितनी नफरत भरी है आपके दिल में।"…


तभी बीच में निशांत की मां निलानजना बोलने लगी… "नहीं आर्य"..


आर्य:- नहीं आंटी अभी नहीं। बचपन से इनकी एक ही कहानी सुनकर पक गया हूं। मेरी मां के बारे में इन्होंने इतना कुछ बोला है कि मेरा दिमाग खराब हो गया। कॉलेज में मुझे परेशान करने के लिए ये लोग स्टूडेंट को उकसा रहे है। आज दुश्मनी का लेवल भी चेक कर लेने दो मुझे।… अक्षरा भारद्वाज दिखाओ लेवल। भाई मरा था ना उस दिन, तो ले लो बदला। अब चाकू लिए ऐसे ख़ामोश क्या सोच रही है?


आर्यमणि इतनी जोर से चिल्लाया की वहां के हॉल में उसकी आवाज गूंज गई। राजदीप कुछ बोलने लगा लेकिन तभी चित्रा की मां निलांजना ने उसे चुप करा दिया। आर्यमणि गुस्से में अक्षरा से अपनी नजर मिलाए… "क्यों केवल बोलना आता है, पीठ पीछे लोग भेजने आते है। आज मैंने कॉलेज ने 30 ऐसे लोगो को मारा है जो आपके कहने पर कॉलेज मुझसे लड़ने आए थे। उनमें से 2 को बहुत गन्दा तोड़ा मैंने, और जब उससे मिलने हॉस्पिटल गया तो 30-40 और लोगों को तोड़ना परा। भारद्वाज खानदान में सामने से वार करने की हिम्मत खत्म हो गई क्या? चलो चलो चलो अब दिखाओ भी नफरत।


अक्षरा बड़ी मुश्किल से चाकू ऊपर उठाई। उसके हाथ कांप रहे थे। आर्यमणि ने उसके हाथ को अपने हाथ का सहारा देकर अक्षरा की आंखों में देखा। चाकू को अपने सीने के नीचे टिकाया। लोग जैसे ही दौड़कर उसके नजदीक पहुंचते, उससे पहले ही आर्यमणि वो चाकू अपने अंदर घुसा चुका था।
nain11ster भाई, ये क्या बवाल अपडेट दे दिया है? पहले चित्रा का आर्य और उसकी प्रेम कहानी के असफल प्रयास के बारे में बताना और फिर आर्य की खूबियां और उसके प्यार करने के जुनून के बारे में बताना।

फिर राजा रानी का एक दूसरे से अंजान बनना, घूमना फिरना और साथ समय बिताना और फिर राजा का रानी को उसके घर छोड़ने आना।

और फिर वो face-off जिसका सदियों से इंतजार था, अक्षरा vs आर्य। साला सास और जमाई की नाम राशि भी एक है बताओ तो। अक्षरा का चाकू फेंकना, आर्य का चाकू पकड़ना, अक्षरा को उसकी सारी करनी बताना और फिर अपने सारे कांड बताना और अक्षरा को उसकी औकात बता देना और अंत में उसके ही हाथो से अपने सीने में चाकू घोप कर उसको अपराधबोध से ग्रसित कर देना। अब आर्य ठहरा हीरो तो उसको होना तो कुछ है नहीं मगर इस घटना से अक्षरा के अंदर जो अपराधबोध उत्पन होगा वो कहीं ना कहीं अक्षरा के दिल में बसी बरसो पुरानी नफरत को कुछ हद तक कम करेगा। यहीं बात अपने राजा रानी के मिलन में सहायक भी होगी।

कुल मिलाकर सुपर से ऊपर वाला अपडेट था बहुत ही शानदार, अगर अक्षरा आर्य का सीन थोड़ा और लंबा होता तो और भी मजा आ जाता मगर फिर अगले अपडेट के लिए सस्पेंस कैसे बनता?

अब जैसे की nain11ster भाई कहते है कि आगे क्या होगा ये तो उन्हे भी नही पता तो हमने उनकी सहायता कर दी है ये बता कर की आगे क्या हो सकता है।

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