पलक:- ठीक है जो भी करना है कर लेना.. अभी चले यहां से।
भूमि:- चित्रा वो हड्डी का ढांचा और निशांत किधर है।
चित्रा:- कहीं लाइन मार रहा होगा।
भूमि:- हा हा हा… पहले उन्ही दोनो की करतूत देखते है फिर आर्य को कॉल करती हूं।
पलक:- आप दोनो जाओ, मै तेजस दादा से मिलकर आती हूं।
पलक दोनो को छोड़कर एमडी चेंबर के ओर चल दी। दरवाजे पर वही शामलाल खड़ा था, पलक को देखकर पूछने लगा क्या काम है? पलक अपना नाम बतायी और वो हाथ के इशारे से अंदर जाने के लिए बोल दिया।
पलक अंदर आयि, और नजरों के सामने आर्यमणि… "तेजस दादा नहीं है क्या?"
आर्यमणि, पलक के कमर में हाथ डालकर, अपनी ओर खींचते.… "दादा नही, एक किस्स का वादा है, जो कॉलेज का मैटर खत्म करने के बाद तुम देती"…
पलक नाटकीय अंदाज में गुस्सा दिखती, खुद को आर्यमणि के पकड़ से छुड़ाने के लिए थोड़ी कसमसाती हुई.… "ये वादा कॉलेज के सामने मुझे परपोज करने के बाद का था। लेकिन शायद तुम्हारी फट गई। क्यूंकि सिर्फ तुम्हारे नागपुर में होने पर जिस अक्षरा भारद्वाज ने तुम्हे चैन से श्वांस नही लेने दिया, उसकी बेटी को सबके सामने परपोज कर देते, फिर क्या होता"…
पलक भले चिढ़ाने के लिए बोली हो लेकिन आर्यमणि बात को पूरी गंभीरता से लेते हुए.… "फिर तो फिलहाल हमे अनजान हो जाना चाहिए..."
पलक अंदर ही अंदर मुस्काती और बाहर से वह भी आर्यमणि की तरह गंभीर दिखती... "हां बिल्कुल!! तेजस दादा कहां है?"
आर्यमणि:– कहीं बाहर गए हैं।
पलक जाकर चुपचाप बैठ गई। कुछ पल तक दोनो ख़ामोश रहे… "कुछ पता है कब तक आएंगे?"..
आर्यमणि:- पता नहीं।
दोनो फिर से ख़ामोश हो गए। एक बार फिर पलक खामोशी तोड़ती हुई… "तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?"..
आर्यमणि:- हां है।
पलक थोड़ी सी हैरान होती हुई… "लेकिन चित्रा तो बता रही थी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"..
आर्यमणि:- अभी एक घंटे पहले बनी है, इसलिए उसे भी पता नहीं।
पलक:- पहली बार उससे कब मिले थे।
आर्यमणि:- 1 घंटे और 5 मिनट पहले।
पलक:- क्या वो चित्रा से भी खूबसूरत है?
आर्यमणि:- कल वो जब आएगी मिलने, तो खुद ही देख लेना।
पलक:- क्या वो अपने ही क्लास की है?
आर्यमणि:- कल उसकी पूरी डिटेल मिल जाएगी। अब चले यहां से दादा लगता है नहीं आने वाले।
पलक:- मै क्यों जाऊं? मै तो भूमि दीदी के साथ आयी हूं। तुम जाओ, मै दादा से मिलकर जाऊंगी।
आर्यमणि, उठकर वहां से बाहर चला आया, और भूमि को कॉल लगाकर उसके बारे में पूछने लगा। भूमि ने उसे कैश काउंटर पर ही आ जाने के लिए कही। हर कोई अपना अपना पेमेंट करके जैसे ही निकलने लगे… "आर्य तू दादा के ऑफिस से आ रहा है ना, पलक वहां थी।"..
आर्यमणि:- दीदी मैंने उसे चलने के लिए कहा था तब वो बोली दादा से मिलकर ही आएगी।
भूमि:- ठीक है एक काम कर तू उसे बाइक से छोड़ देना। मै इन तीनों को छोड़ आती हूं।
आर्यमणि:- ठीक है दीदी। अरे माधव ये लो, ये तुम्हारे लिए है।
माधव, आर्यमणि के हाथ में लैपटॉप देखकर थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया… "नहीं दोस्त ई हमको थोड़े ना चाहिए, वापस कर दो।"..
चित्रा:- वो फ्री में नहीं दे रहा है माधव, बदले में तुम हम दोनों को मैथमेटिक्स और फिजिक्स पढ़ाओगे।
माधव:- वो तो हम वैसे भी हेल्प कर देंगे, लेकिन ई हम नहीं ले सकते है। वापस कर दीजिए इसको।
भूमि:- गार्ड इस अस्थिपंजर को उठाकर लाओ। आर्य तू वो लैपटॉप मुझे दे, हम इसके हॉस्टल के अंदर तक छोड़कर आएंगे।
माधव:- अरे लेकिन उ तो बॉयज हॉस्टल है दीदी आप काहे जाइएगा।
वो लोग माधव को लेकर चलते बने। इधर आर्यमणि अटक सा गया। लगभग 1 घंटे बाद आर्यमणि के मोबाइल पर पलक का कॉल आया, और वो आर्यमणि से उसका पता पूछने लगी। आर्यमणि उसे बिल काउंटर पर ही बुला लिया।… "सॉरी मेरे कारण तुम्हे इंतजार करना पड़ा। दीदी को कॉल की तो पता चला उन्हें जरूरी काम था इसलिए उन्हें निकालना पड़ा और मै तुम्हारे साथ"..
आर्यमणि:- इट्स ओके। चलो चलकर पहले कुछ खाते है।
पलक:- बाहर में कुछ खाए क्या?
आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है चलो।
आर्यमणि, पलक को रुकने बोलकर अपनी बाइक ले आया। पलक को अचानक ध्यान आया कि आर्यमणि के पास तो बाइक है, वो भी उसके सीट की पोजिशन ऐसी है कि बिना चिपके जा नहीं सकते है… "आर्य, क्या तुम्हारे पास कार नहीं है"
आर्यमणि:- ज़िन्दगी में हर चीज का मज़ा लेना चाहिए पलक। गंभीर और शांत मै भी रहता हूं, इसका मतलब ये नहीं कि जीता नहीं हूं, हंसता नहीं हूं। तुमने तो अपने अंदर के ख्यालों को ही अपनी पूरी दुनिया बना ली है। अब आओ और ये झिझक छोड़ दो कि बाइक पर मै एक अजनबी के साथ कैसे जाऊंगी।
"चले क्या"… पलक बाइक पर बैठती हुई आर्यमणि के कंधे पर हांथ डालकर मुस्कुराती हुई कहने लगी। आर्यमणि मस्त अपनी बाइक चला रहा था और पीछे बैठकर पलक आर्यमणि से दूरी बनाने की कोशिश तो कर रही थी, लेकिन बीएमडब्लू बाइक के सीट कि पोजिशनिंग कुछ ऐसी थी कि वो जाकर आर्यमणि से चिपक जाती।
बड़ी मुश्किल से पलक 2 इंच की दूरी बनाती और इधर ट्रैफिक के कारण लगा ब्रेक उन दूरियों को मिटा देती।… "पलक कहां चलना है।"..
पलक अपने होंठ आर्यमणि के कान के करीब ले जाती… "चांदनी चौक चलेंगे पहले।"… कुछ ही देर में दोनो चांदनी चौक में थे। पलक स्ट्रीट फूड का लुफ्त उठाने आयी थी, वहां उसने जैसे ही 2 प्लेट हैदराबादी तंदूर का ऑर्डर दिया… "पलक एक ही प्लेट का ऑर्डर दो।"..
पलक:- क्यों ऐसे ठेले पर का खाना खाने में शर्म आएगी क्या?
आर्यमणि:- नहीं, मै नॉन वेज नहीं खाता।
पलक:- सच बताओ।
आर्यमणि:- हां सच ही कह रहा हूं।
पलक:- फिर छोड़ो, चलो चलते है यहां से।
आर्यमणि:- लेकिन हुआ क्या?
पलक:- साथ आए है, खाली हाथ खड़े रहोगे और मै खाऊंगी तो अजीब लगेगा ना।
आर्यमणि:- तुम आराम से खाओ, मै भी अपने लिए कुछ ले लेता हूं।
वहीं पास से उसने गरम छने समोसे लिए और पलक का साथ देते हुए वो समोसा खाने लगा। चांदनी चौक से फिर दोनो प्रताप नगर और वहां से फिर तहसील ऑफिस। हर जगह के स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते अंत में दोनो सिविल लाइन चले आए।