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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Lust_King

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Hahahaha... Lust king sahab mai abhi silent mod par jata hun is ummid ke sath ki poori kahani Mai drive kar hun jise aapne pasand kiya isliye aage bhi bina kisi dawab ke wahi chhapunga jo likh chuka hun ... Is ummid me ki Mere readers openly mere har experiments ko experience karenge :hug:
Sir zarur ... Tabhi to wait rhta h update ka .. but as a reader hmari feelings bhii jaag jaati h hero k liye to I'm not saying that k aap acha nhi kr rhe h .. sorry if you feel bad
 

Lust_King

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भाग:–167


लगातार २ दिनो तक रोने के बाद आर्यमणि ने अपने आंसू पोछे..... “चाहकीली मुझे कोई देख भी न सके ऐसे जगह ले चलो।”

चाहकीली:– चाचू आप पहले से ही ऐसी जगह पर हो। यह सोधक प्रजाति का क्षेत्र का सबसे गहरा हिस्सा है, जहां हम अपने देवता को पूजते हैं। यहां किसी को भी आने की इजाजत नहीं है।

आर्यमणि:– फिर ये मेटल टूथ कैसे आ गये और तुम्हारे लोगों ने मुझे ऐसे पवित्र जगह लाने से रोका नहीं?

चाहकीली:– भगवान को भला उसके घर आने से कौन रोक सकता है। और ये मेटल टूथ तो केवल मेरे वियोग को मेहसूस कर यहां आ गये। ये सब मेरे दोस्त जो ठहरे...

आर्यमणि:– हम्मम ठीक है। मै अपनी साधना में बैठने वाला हूं। मुझे यहां किसी प्रकार का विघ्न नही चाहिए।

चाहकीली:– ठीक है फिर मैं मेटल टूथ को लेकर निकलती हूं, आप जब तक चाहिए यहां अपनी साधना कीजिए, आपको यहां छोटी सी सरसराहट की आवाज तक नहीं सुनाई देगी।

चाहकीली अपनी बात कहकर वहां से सबको लेकर निकली। आर्यमणि मंत्र उच्चारण करते आसान लगाया और पलथी लगाकर बैठा। जल साधना, सबसे कठोर साधना, उसमे भी इतनी गहराई में। दिन बीता, महीने बीते, बिता साल। दूसरे साल के 2 महीने बीते होंगे जब आर्यमणि ने अपना आंख खोल लिया।

बदन पर पूरा काई जमी थी। दाढ़ी फिट भर लंबी हो चली थी। बड़े–बड़े नाखून निकल आये थे। पर चेहरे पर अलग ही तेज और शांति के भाव थे। आंख खोलते ही उसने चाहकीली का स्मरण किया किंतु उसे कोई जवाब नही मिला। कुछ देर तक आर्यमणि ने गहरा ध्यान लगाया।

पिछले 14 महीने की तस्वीर साफ होने लगी थी। कैसे निमेषदर्थ ने पता लगाया की हत्याकांड वाले दिन चाहकीली ने समुद्री तूफान उठाया था। उस तूफान में उसकी सबसे बड़ी ख्वाइश अमेया कहीं खो गयी थी, जो बाद में निमेषदर्थ के लाख ढूंढने के बाद भी नही मिली। उसी के बाद से निमेषदर्थ चाहकीली को वश में करने पर तुल गया था।

किंतु चाहकीली और निमेषदर्थ के बीच एक ही बाधा थी, महाती। महती अक्सर ही निमेषदर्थ के सम्मोहन को पूर्ण नही होने देती। पर 8 महीने पहले, निमेषदर्थ ने बौने के समुदाय से पूरा मामला फसा दिया। जलपड़ी और बौने 2 ऐसे समुदाय थे, जिनपर पूरे महासागर का उत्तरदायित्व था। पिछले कई पीढ़ियों ने बौने के समुदाय से एक भी राजा नही देखा था, जबकि पूर्व में 3–4 जलपड़ी समुदाय के राजा होते तो एक बौने के राज घराने से राजा बनता था।

बौने समुदाय हो या फिर जलपड़ी समुदाय। राजा के लिये सब उसकी प्रजा ही थी। दोनो ओर से लोग सड़कों पर थे और उत्पात मचाकर प्रशासन के नाक में दम कर रखा था। महाती अपने पिता के साथ जैसे ही व्यस्त हुई, मौका देखकर निमेषदर्थ ने चाहकीली को सम्मोहित कर लिया।

सम्मोहित करने के बाद निमेषदर्थ सबसे पहले कैलाश मार्ग मठ ही गया। मठ में कितने सिद्ध पुरुष मिलते यह तो निमेषदर्थ को भी नही पता था, इसलिए अपनी पूरी तैयारी के साथ पहुंचा था। ऐतिहातन उसने अपने 5 सैनिक आगे भेजे और उस जगह का मुआयना करने कहा। 5 सैनिक मठ के दरवाजे तक पहुंचे किंतु प्रवेश द्वार मंत्रों से अभिमंत्रित थी।

कई दिनों तक निमेषदर्थ वहीं घात लगाये बैठा रहा। मठ से किसी के बाहर आने का इंतजार में उसने महीना बिता दिया, परंतु मठ से कोई बाहर नही निकला। हां लेकिन 1 महीने बाद बाहर से कुछ संन्यासी मठ में जरूर जा रहे थे। निमेषदर्थ, संन्यासियों की टोली देखकर समझ तो गया था कि अमेया उनके साथ नही थी और न ही मठ में उसके होने के कोई भी संकेत मिले थे। निमेषदर्थ अमेया का पता लगाने के इरादे से संन्यासियों का रास्ता रोक लिया। सबसे आग संन्यासी शिवम ही थे। निमेषदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.... “तुम कौन हो और हमारा रास्ता क्यों रोक रखे हो?”..

निमेषदर्थ:– मैं महासागर मानव हूं। अपने पिता की पहली संतान और महासागर का होने वाला भावी महाराजा। महासागर की एक बच्ची थल पर आ गयी है और पता चला है कि वह यहीं इसी मठ में है।

संन्यासी शिवम:– यदि महासागर की कोई बच्ची यहां होती तो हमें अवश्य पता होता। फिर भी तुम अपनी संतुष्टि के लिये यहां ढूंढ सकते है।

निमेषदर्थ:– जब आप इतने सुनिश्चित है तो फिर अंदर जाकर ढूंढना ही क्यूं? गंगा जल हाथ पर लेकर मेरे साथ मंत्र दोहरा दीजिए, मैं पूर्णतः सुनिश्चित हो जाऊंगा।

संन्यासी शिवम:– यदि विजयदर्थ ये बात आकर कहते तो मैं एक बार सोचता भी, तुम किस अधिकार से मुझे सीधा आदेश दे रहे हो।

निमेषदर्थ:– संन्यासी तुम्हारी बातों से मुझे समझ में आ गया है कि अमेया तुम्हारे ही पास है। जल्दी से उस बच्ची को लौटा दो, वरना अंजाम अच्छा नही होगा...

संन्यासी शिवम ने एक छोटा सा मंत्र पढ़ा और कुछ ही पल में विजयदर्थ वहां पहुंच चुका था। विजयदर्थ जैसे ही वहां पहुंचा संन्यासी शिवम पर खिसयाई नजरों से देखते.... “संन्यासी एक योजन में तुम्हारे बुलाने से मैं चला क्या आया, तुम तो मुझे परेशान करने लगे।”

सन्यासी शिवम्:– जरा पीछे मुड़कर देखिए फिर पता चलेगा की कौन किसको परेशान कर रहा है।

विजयदर्थ जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, सामने निमेषदर्थ खड़ा था। उसे यहां देख निमेषदर्थ घोर आश्चर्य करते.... “तुम यहां क्यों आये हो?”

निमेषदर्थ:– पिताजी इन्ही लोगों के पास अमेया है।

विजयदर्थ, खींचकर एक तमाचा जड़ते..... तुम सात्विक आश्रम द्वारा संचालित एक मठ के संन्यासी से उनके गुरु आर्यमणि की बच्ची को मांगने आये हो?

निमेषदर्थ:– पिताजी मुझे नही पता था कि...

विजयदर्थ ने पूरी बात सुनना भी उचित नही समझा। वह अपना पंजा झटका और निमेषदर्थ के गले, हाथ और पाऊं मोटे जंजीरों में कैद हो चुके थे। विजयदर्थ अपनी गुस्से से लाल आंखें दिखाते..... “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई थल पर आकर अपनी पहचान जाहिर करने और यहां के जीवन में हस्तछेप करने की। वैसे भी तुम मेरे उत्तराधिकारी कभी नहीं रहे और आज की हरकतों के बात तुम राजकुमार भी नही रहे। अपनी सजा भुगतने के बाद तुम सामान्य नागरिक का जीवक जीयोगे। संन्यासी इसकी गलती की सजा मैं दे रहा हूं। आप से विनती है आप भी इस बात को यहीं समाप्त कर दे।”

संन्यासी शिवम:– आपके न्याय प्रणाली से मैं बेहद प्रसन्न हुआ। ठीक है मैं इस बात को यहीं समाप्त करता हूं।

इस वाकये के बाद निमेषदर्थ अपने हर तरह के अधिकार खो चुका था। हां वो भी एक दंश का मालिक था, इसलिए उस दंश का अधिकार उस से नही छीना जा सकता था। अपनी कैद से खुन्नस खाया विजयदर्थ, रिहा होते ही अपनी बहन हिमा से मिला और अपनी सजा के लिये चाहकीली को जिम्मेदार मानते हुये उसे मारने की योजना बना लिया। जिस दिन चाहकीली को जान से मारने की तैयारी चल रही थी, आर्यमणि अपनी साधना को वहीं पूर्ण विराम लगाते, अपनी आंखें खोल लिया।

सोधक जीव के गुप्त स्थान से आर्यमणि उठकर बाहर आया। कुछ दूर चलने के बाद आर्यमणि सोधक प्रजाति के आबादी वाले क्षेत्र में पहुंच गया। क्षेत्र के सीमा पर चाहकीली के पिता शावल मिल गये। बड़ी चिंता और बड़े–बड़े आंसुओं के साथ आर्यमणि को देखते..... “आर्यमणि वो मेरी बच्ची चाहकीली।”...

आर्यमणि धीमे मुस्कुराया और अपना हाथ शावल के बदन पर रखते..... “चिंता मत करो, चाहकीली को कुछ नही होगा। कल सुबह तक वो तुम लोगों के साथ होगी। मै इतना ही बताने यहां तक आया था।”...

अपनी बात कहकर आर्यमणि सीधा अंतर्ध्यान हो गया और उस सभा में पहुंचा जहां चाहकीली को मृत्यु की सजा दी जा रही थी। आर्यमणि भिड़ के पीछे से गरजते हुये.... “तुम्हे नही लगता की तुम्हारी ये सभा भ्रष्ट हो चुकी है। मां जैसे एक मासूम से जीव के दिमाग को काबू कर उसे मारने जा रहे हो?”

“मेरी सभा में ये कौन बोला?”..... आर्यमणि के सवाल पर उस सभा का मुखिया ने गरजते हुये पूछा। आर्यमणि यह आवाज भली भांति पहचानता था। आर्यमणि जैसे–जैसे अपनी दोनो बांह फैला रहा था, वैसे–वैसे भिड़ दोनो किनारे हो रही थी और बीच से रास्ता बनते जा रहा था। आर्यमणि के नजरों के सामने उसका दोषी निमेषदर्थ खड़ा था। बीच का रास्ता जो खाली था, इस खाली रास्ते पर अचानक ही जड़ों ने कब्जा जमा लिया और देखते ही देखते निमेषदर्थ जड़ों में लिपटा हुआ था।

जड़ों में लिपटने के साथ ही निमेषदर्थ की यादें आर्यमणि के पास आने लगी और उस याद में आर्यमणि ने अपने एक और दोषी को पाया जो इस वक्त इसी सभा में मौजूद थी किंतु हत्याकांड वाले दिन वह दिखी नही थी। निमेषदर्थ की बहन हिमा। जैसे ही आर्यमणि को अपना दूसरा दोषी मिला, आर्यमणि बिना वक्त गवाए उसे भी जड़ों में जकड़ चुका था।

दोनो किनारे पर जो भीड़ खड़ी थी, उसमे एक हजार कुशल सैनिक भी थे। हालांकि वो जड़ों में तो नही जकड़े थे, लेकिन किसी अदृश्य शक्ति ने उनके पाऊं जमा दिये हो जैसे। कोई भी हील तक नही पा रहा था। आर्यमणि एक–एक कदम बढ़ाते हुये निमेषदर्थ के पास पहुंचा। आर्यमणि अपने गुस्से से लाल आंखें निमेषदर्थ को दिखाते .... “आखिर किस लालच में तुमने मेरे परिवार को मार डाला था निमेष।”...

निमेषदर्थ:– देखो आर्यमणि मैं तो बस एक मोहरा था।

आर्यमणि:– तुम्हारी यादों में मैं सब देख चुका हूं। तभी तो तुम्हारी बहन भी जड़ों में जकड़ी हुई है। तुम दोनो अपने आखरी वक्त में किसी को याद करना चाहो तो कर सकते हो।

“ठीक है मुझे वक्त दो। मै सबको याद कर लेता हूं।”.... इतना कह कर निमेषदर्थ अपनी आंख मूंदकर जोड़–जोड़ से कहने लगा.... “हे मेरे अनुयाई, मेरे रक्षक.. मैं तुम्हे याद कर रहा हूं। सबको मैं दिल से याद कर रहा हूं। ऐसा लग रहा है मेरे प्राण अब जाने वाले है। मौत मेरे नजरों के सामने खड़ी है। वह मुझे बेबस कर चुकी है। वह मुझे घूर रही है और किसी भी वक्त मुझे अपने चपेट में ले लेगी।”...

निमेषदर्थ चिल्लाकर अपनी भावना कह रहा था। हर शब्द के साथ जैसे वहां का माहोल बदल रहा हो। निमेषदर्थ जहां खड़ा था, उस से तकरीबन 100 मीटर आगे चाहकीली अचेत अवस्था में लेटी थी। निमेषदर्थ के हर शब्द के साथ उसमें जैसे जान आ रहा हो। जैसे ही निमेषदर्थ का बोलना समाप्त हुआ वहां का माहौल ही बदल गया।

चारो ओर सोधक प्रजाति के जीव फैले हुये थे। सोधक जीव की संख्या इतनी थी कि एक के पीछे एक कतार में इस प्रकार खड़े थे कि मानो जीवित पहाड़ों की श्रृंखला सामने खड़ी थी। न सिर्फ सोधक प्रजाति थे बल्कि शार्क और व्हेल जैसी मछलियां की भी भारी तादात में थी, जो सोधक प्रजाति के आगे थी और उन सबने मिलकर निमेषदर्थ को घेर लिया था।

चाहकीली तो सबसे पास में ही थी। खूंखार हुई शार्क और वेल्स के साथ वह भी निमेषदर्थ के चक्कर लगा रही थी। इसी बीच निमेषदर्थ खुद को जड़ों की कैद से आजाद करके पागलों की तरह हंसने लगा..... “क्या सोचे थे हां... मेरी जगह पर मुझे ही मार सकते हो। अभी तक तो इन जानवरों को ये नहीं पता की मेरी मौत कौन है। जरा सोचो मेरे एक इशारे पर तुम्हारा क्या होगा? फिर अभी तो तुम पर यह जानवर भरी पड़ेगा। इन जानवरों का मालिक मैं, फिर तुम पर कितना भारी पर सकता हूं।”...

आर्यमणि, निमेषदर्थ की बातें सुनकर मुश्कुराया। फिर उसकी बहन हिमा के ओर देखते..... “तुम्हे भी कुछ कहना है?”...

हिमा:– मुझे कुछ बोलने के लिये तुम जैसों के इजाजत की ज़रूरत नही। भाई इसे जानवरों का चारा बना दो।

निमेषदर्थ:– बिलकुल बहना, अभी करता हूं।

फिर तो मात्र एक उंगली के इशारे थे और सभी खूंखार जलीय जीवों ने जैसे एक साथ हमला बोल दिया हो। जिसमे चाहकिली सबसे आगे थी। आर्यमणि के शरीर से 50 गुणा बड़ा मुंह फाड़े चाहकिली एक इंच की दूरी पर रही होगी, तभी वहां के माहौल में वह दहाड़ गूंजी जो आज से पहले कभी किसी ने नहीं सुनी गयी थी। ऐसी दहाड़ जो महासागर के ऊपरी सतह पर तो कोई भूचाल नही लेकर आयी लेकिन पानी की गहराई में कहड़ सा मचा दिया था। ऐसी दहाड़ जिसे सुनकर जलीय मानव का कलेजा कांप गया। ऐसी दहाड़ जिसे सुनने वाले हर समुद्री जीव अपना सर झुकाकर अपनी जगह ठहर गये। जीव–जंतुओं को नियंत्रित करने की इतनी खतरनाक वह दहाड़ थी कि पूरे महासागर के जीव–जंतु जिस जगह थे वहीं अपने सर झुका कर रुक गये।

आर्यमणि:– चाहकीली क्या तुम मुझे सुन रही हो...

चाहकीली:– कोई विधि से मेरी जान ले लो चाचू। मै इस नालायक निमेषदर्थ की बातों में आकर आपको ही निगलने वाली थी। मुझे अब जीवित नहीं रहना...

आर्यमणि:– अपना सर ऊपर उठाओ...

चाहकीली अपना सर ऊपर की। उसके आंखों से उसके आंसू बह रहे थे। आर्यमणि अपना हाथ बढ़ाकर उसके एक बूंद गिरते आंसू को अपने हथेली पर लेते.... “बेटा रोने जैसी बात नही है। तुम्हारा दिमाग निमेष के कब्जे में था। अब मेरी बात ध्यान से सुनो।”...

निमेषदर्थ:– ये तुम कर कैसे रहे हो। मेरे जानवरों को होश में कैसे ले आये...

आर्यमणि का फिर एक इशारा हुआ और एक बार फिर निमेषदर्थ जड़ों में जकड़ा हुआ था.... “निमेष तुमसे मैं कुछ देर से बात करता हूं। तब तक हिमा तुम अपने आखरी वक्त में किसी को याद करना चाहो तो कर लो।”.... इतना कहने के बाद अपने हथेली के आंसू को अभिमंत्रित कर.... “चाहकीली अपना सर नीचे करो”...

चाहकिली थोड़ा पीछे हटकर अपना सर पूरा नीचे झुका दी। आर्यमणि थोड़ा ऊपर हुआ और चाहकीली के माथे के ठीक बीच आंसू वाला पूरा पंजा टिकाते हुये..... “आज के बाद तुम्हारे दिमाग को कोई नियंत्रित नही कर सकेगा। इसके अलावा जितने भी सोधक का दिमाग किसी ने काबू किया होगा, तुम्हारे एक आवाज पर वो सब भी मुक्त होंगे। अब तुम यहां से सभी जीवों को लेकर जाओ। मै जरा पुराना हिसाब बराबर कर लूं।”

चाहकीली:– चाचू मुझे भी इस निमेष का विनाश देखना है।

आर्यमणि:– वो जड़ों की कैद से आजाद होने वाला है। मै नही चाहता की यहां के युद्ध में एक भी जीव घायल हो। मेरी बात को समझो। तुम चाहो तो इन्हे दूर ले जाने बाद वापस आओ और एक किलोमीटर दूर से ही इसके विनाश को देखो। ऐसा तो कर सकती हो ना।

चाहकीली, चहकती हुई... “हां बिलकुल चाचू।”... इतना कहने के बाद चाहकीली एक कड़क सिटी बजाई और सभी जीवों को लेकर वहां से निकली। वो जगह जैसे ही खाली हुई, आर्यमणि दोनो भाई बहन को खोलते.... “उम्मीद है तुमने अपने सभी प्रियजनों को याद कर लिया होगा। अब अपनी मृत्यु के लिये तैयार हो जाओ।”

“किसकी मृत्यु”.... इतना कहकर हिमा ने अपना दंश को आर्यमणि के सामने कर दिया। उसके दंश से लगातार छोटे–छोटे उजले कण निकल रहे थे जो आर्यमणि के ओर बड़ी तेजी से बढ़ रहे थे। देखने में ऐसा लग रहा था जैसे एनीमशन में शुक्राणु चलते है। ये उजले कण भी ठीक उसी प्रकार से आर्यमणि के ओर बढ़ रहा था।

सभी कण लगातार आर्यमणि के ओर बढ़ रहे थे लेकिन जैसे ही वह एक फिट की दूरी पर रहते, अपने आप ही नीचे तल में गिरकर कहीं गायब हो जाते। फिर तो कई खतरनाक हमले एक साथ हुये। पहले हिमा अकेली कर रही थी। बाद ने हिमा और निमेषदर्थ ने एक साथ हमला किया। उसके बाद निमेषदर्थ ने अपने 1000 कुशल सैनिकों को आज़ाद करके सबको साथ हमला करने बोला।

आर्यमणि अपना दोनो हाथ ऊपर उठाते.... “एक मिनट रुको जरा।”...

निमेषदर्थ:– क्यों एक साथ इतने लोग देखकर फट गयी क्या?

आर्यमणि:– फट गयी... फट गयी.. ये मेरी अलबेली की भाषा हुआ करती थी, जिसकी मृत्यु की कहानी तुमने लिखी थी।

कुछ बूंद आंसू आंखों के दोनो किनारे आ गये। आर्यमणि उन्हे साफ करते.... “हां फट गयी समझो। यहां आम लोग है, पहले उन्हे जाने दो। मै कौन सा यहां से भागा जा रहा हूं।”

निमेषदर्थ कुछ देर के लिये रुका। वहां से जब सारे लोग हटे तब एक साथ हजार लोगो की कतार थी। ठीक सामने आर्यमणि खड़ा। निमेषदर्थ का एक इशारा हुआ और हजार हाथ आर्यमणि के सामने हमला करने के लिये तन गये। उसके अगले ही पल हर जलीय सैनिक के हाथ से काला धुआं निकल रहा था। निमेषदर्थ और हिमा के दंश से भी भीषण काला धुवां निकल रहा था। धुएं के बीच आर्यमणि कहीं गुम सा हो गया। कहीं किसी तरह की कोई हलचल नहीं।
Chalo Bhai action shuru ho chuka h ... Do doshio ko saja milegi fir sab ko .. bhut hee shandar update bhai
 

ASR

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Divine
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nain11ster 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺 🐺
मित्र कई दिलों को जोड़ने से शुरू हुई यात्रा सभी के दिलों को तोड़ कर अंततः आगे बढ़ रही है...
💗 😍 💗 लगता है कि अब समय आ गया है सभी आर्य पैक के दुश्मनों के गुनाहों को सजा देने का...
समय चक्र भी बहुत आगे बढ़ चुका है... कई शक्तियों को प्राप्त कर आर्य पुनः समायोजन करने के लिए निकले हैं 😚...
💗 😍 💗 अद्भुत क्षमता को उन्नत करने के लिए आज उसका उपयोग व प्रयोग करने के लिए समय मिला है....
💗
इंतजारी के आलम मे बेसब्र....
💗
 

Samar2154

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Superb shabd nahin hai update ko varnan karne ko simply marvelous.

Ab saal do saal tak Aryamani drid sankalp se tap kiya uske parinaam swaroop usko koun koun si sidhiya prapt hui uske baare mein bhi kuch vivaran denge na bhai.....zaroor denge nahin toh ham sab ko maloom kaise chalega.

Kya iske baad Aryamani phir se nayjo ke cheap tricks ke changul mein phas jayega ya un saab ka tod bhi use mil gayi hai. Alfa pack nahin rahi ye dukh ki baat hai par hamari pyari omeya bilkul surakshit hai ye jaan kar bahut khushi bhi hui.


Ab revenge bas sabko khatarnak tarike se maara jaye prithvi par hi nahi nayjo ke doosre grahon se bhi unka safaya ho jaye toh mazaa dugna hojayega.
 
Last edited:

Bhupinder Singh

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लगातार २ दिनो तक रोने के बाद आर्यमणि ने अपने आंसू पोछे..... “चाहकीली मुझे कोई देख भी न सके ऐसे जगह ले चलो।”

चाहकीली:– चाचू आप पहले से ही ऐसी जगह पर हो। यह सोधक प्रजाति का क्षेत्र का सबसे गहरा हिस्सा है, जहां हम अपने देवता को पूजते हैं। यहां किसी को भी आने की इजाजत नहीं है।

आर्यमणि:– फिर ये मेटल टूथ कैसे आ गये और तुम्हारे लोगों ने मुझे ऐसे पवित्र जगह लाने से रोका नहीं?

चाहकीली:– भगवान को भला उसके घर आने से कौन रोक सकता है। और ये मेटल टूथ तो केवल मेरे वियोग को मेहसूस कर यहां आ गये। ये सब मेरे दोस्त जो ठहरे...

आर्यमणि:– हम्मम ठीक है। मै अपनी साधना में बैठने वाला हूं। मुझे यहां किसी प्रकार का विघ्न नही चाहिए।

चाहकीली:– ठीक है फिर मैं मेटल टूथ को लेकर निकलती हूं, आप जब तक चाहिए यहां अपनी साधना कीजिए, आपको यहां छोटी सी सरसराहट की आवाज तक नहीं सुनाई देगी।

चाहकीली अपनी बात कहकर वहां से सबको लेकर निकली। आर्यमणि मंत्र उच्चारण करते आसान लगाया और पलथी लगाकर बैठा। जल साधना, सबसे कठोर साधना, उसमे भी इतनी गहराई में। दिन बीता, महीने बीते, बिता साल। दूसरे साल के 2 महीने बीते होंगे जब आर्यमणि ने अपना आंख खोल लिया।

बदन पर पूरा काई जमी थी। दाढ़ी फिट भर लंबी हो चली थी। बड़े–बड़े नाखून निकल आये थे। पर चेहरे पर अलग ही तेज और शांति के भाव थे। आंख खोलते ही उसने चाहकीली का स्मरण किया किंतु उसे कोई जवाब नही मिला। कुछ देर तक आर्यमणि ने गहरा ध्यान लगाया।

पिछले 14 महीने की तस्वीर साफ होने लगी थी। कैसे निमेषदर्थ ने पता लगाया की हत्याकांड वाले दिन चाहकीली ने समुद्री तूफान उठाया था। उस तूफान में उसकी सबसे बड़ी ख्वाइश अमेया कहीं खो गयी थी, जो बाद में निमेषदर्थ के लाख ढूंढने के बाद भी नही मिली। उसी के बाद से निमेषदर्थ चाहकीली को वश में करने पर तुल गया था।

किंतु चाहकीली और निमेषदर्थ के बीच एक ही बाधा थी, महाती। महती अक्सर ही निमेषदर्थ के सम्मोहन को पूर्ण नही होने देती। पर 8 महीने पहले, निमेषदर्थ ने बौने के समुदाय से पूरा मामला फसा दिया। जलपड़ी और बौने 2 ऐसे समुदाय थे, जिनपर पूरे महासागर का उत्तरदायित्व था। पिछले कई पीढ़ियों ने बौने के समुदाय से एक भी राजा नही देखा था, जबकि पूर्व में 3–4 जलपड़ी समुदाय के राजा होते तो एक बौने के राज घराने से राजा बनता था।

बौने समुदाय हो या फिर जलपड़ी समुदाय। राजा के लिये सब उसकी प्रजा ही थी। दोनो ओर से लोग सड़कों पर थे और उत्पात मचाकर प्रशासन के नाक में दम कर रखा था। महाती अपने पिता के साथ जैसे ही व्यस्त हुई, मौका देखकर निमेषदर्थ ने चाहकीली को सम्मोहित कर लिया।

सम्मोहित करने के बाद निमेषदर्थ सबसे पहले कैलाश मार्ग मठ ही गया। मठ में कितने सिद्ध पुरुष मिलते यह तो निमेषदर्थ को भी नही पता था, इसलिए अपनी पूरी तैयारी के साथ पहुंचा था। ऐतिहातन उसने अपने 5 सैनिक आगे भेजे और उस जगह का मुआयना करने कहा। 5 सैनिक मठ के दरवाजे तक पहुंचे किंतु प्रवेश द्वार मंत्रों से अभिमंत्रित थी।

कई दिनों तक निमेषदर्थ वहीं घात लगाये बैठा रहा। मठ से किसी के बाहर आने का इंतजार में उसने महीना बिता दिया, परंतु मठ से कोई बाहर नही निकला। हां लेकिन 1 महीने बाद बाहर से कुछ संन्यासी मठ में जरूर जा रहे थे। निमेषदर्थ, संन्यासियों की टोली देखकर समझ तो गया था कि अमेया उनके साथ नही थी और न ही मठ में उसके होने के कोई भी संकेत मिले थे। निमेषदर्थ अमेया का पता लगाने के इरादे से संन्यासियों का रास्ता रोक लिया। सबसे आग संन्यासी शिवम ही थे। निमेषदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.... “तुम कौन हो और हमारा रास्ता क्यों रोक रखे हो?”..

निमेषदर्थ:– मैं महासागर मानव हूं। अपने पिता की पहली संतान और महासागर का होने वाला भावी महाराजा। महासागर की एक बच्ची थल पर आ गयी है और पता चला है कि वह यहीं इसी मठ में है।

संन्यासी शिवम:– यदि महासागर की कोई बच्ची यहां होती तो हमें अवश्य पता होता। फिर भी तुम अपनी संतुष्टि के लिये यहां ढूंढ सकते है।

निमेषदर्थ:– जब आप इतने सुनिश्चित है तो फिर अंदर जाकर ढूंढना ही क्यूं? गंगा जल हाथ पर लेकर मेरे साथ मंत्र दोहरा दीजिए, मैं पूर्णतः सुनिश्चित हो जाऊंगा।

संन्यासी शिवम:– यदि विजयदर्थ ये बात आकर कहते तो मैं एक बार सोचता भी, तुम किस अधिकार से मुझे सीधा आदेश दे रहे हो।

निमेषदर्थ:– संन्यासी तुम्हारी बातों से मुझे समझ में आ गया है कि अमेया तुम्हारे ही पास है। जल्दी से उस बच्ची को लौटा दो, वरना अंजाम अच्छा नही होगा...

संन्यासी शिवम ने एक छोटा सा मंत्र पढ़ा और कुछ ही पल में विजयदर्थ वहां पहुंच चुका था। विजयदर्थ जैसे ही वहां पहुंचा संन्यासी शिवम पर खिसयाई नजरों से देखते.... “संन्यासी एक योजन में तुम्हारे बुलाने से मैं चला क्या आया, तुम तो मुझे परेशान करने लगे।”

सन्यासी शिवम्:– जरा पीछे मुड़कर देखिए फिर पता चलेगा की कौन किसको परेशान कर रहा है।

विजयदर्थ जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, सामने निमेषदर्थ खड़ा था। उसे यहां देख निमेषदर्थ घोर आश्चर्य करते.... “तुम यहां क्यों आये हो?”

निमेषदर्थ:– पिताजी इन्ही लोगों के पास अमेया है।

विजयदर्थ, खींचकर एक तमाचा जड़ते..... तुम सात्विक आश्रम द्वारा संचालित एक मठ के संन्यासी से उनके गुरु आर्यमणि की बच्ची को मांगने आये हो?

निमेषदर्थ:– पिताजी मुझे नही पता था कि...

विजयदर्थ ने पूरी बात सुनना भी उचित नही समझा। वह अपना पंजा झटका और निमेषदर्थ के गले, हाथ और पाऊं मोटे जंजीरों में कैद हो चुके थे। विजयदर्थ अपनी गुस्से से लाल आंखें दिखाते..... “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई थल पर आकर अपनी पहचान जाहिर करने और यहां के जीवन में हस्तछेप करने की। वैसे भी तुम मेरे उत्तराधिकारी कभी नहीं रहे और आज की हरकतों के बात तुम राजकुमार भी नही रहे। अपनी सजा भुगतने के बाद तुम सामान्य नागरिक का जीवक जीयोगे। संन्यासी इसकी गलती की सजा मैं दे रहा हूं। आप से विनती है आप भी इस बात को यहीं समाप्त कर दे।”

संन्यासी शिवम:– आपके न्याय प्रणाली से मैं बेहद प्रसन्न हुआ। ठीक है मैं इस बात को यहीं समाप्त करता हूं।

इस वाकये के बाद निमेषदर्थ अपने हर तरह के अधिकार खो चुका था। हां वो भी एक दंश का मालिक था, इसलिए उस दंश का अधिकार उस से नही छीना जा सकता था। अपनी कैद से खुन्नस खाया विजयदर्थ, रिहा होते ही अपनी बहन हिमा से मिला और अपनी सजा के लिये चाहकीली को जिम्मेदार मानते हुये उसे मारने की योजना बना लिया। जिस दिन चाहकीली को जान से मारने की तैयारी चल रही थी, आर्यमणि अपनी साधना को वहीं पूर्ण विराम लगाते, अपनी आंखें खोल लिया।

सोधक जीव के गुप्त स्थान से आर्यमणि उठकर बाहर आया। कुछ दूर चलने के बाद आर्यमणि सोधक प्रजाति के आबादी वाले क्षेत्र में पहुंच गया। क्षेत्र के सीमा पर चाहकीली के पिता शावल मिल गये। बड़ी चिंता और बड़े–बड़े आंसुओं के साथ आर्यमणि को देखते..... “आर्यमणि वो मेरी बच्ची चाहकीली।”...

आर्यमणि धीमे मुस्कुराया और अपना हाथ शावल के बदन पर रखते..... “चिंता मत करो, चाहकीली को कुछ नही होगा। कल सुबह तक वो तुम लोगों के साथ होगी। मै इतना ही बताने यहां तक आया था।”...

अपनी बात कहकर आर्यमणि सीधा अंतर्ध्यान हो गया और उस सभा में पहुंचा जहां चाहकीली को मृत्यु की सजा दी जा रही थी। आर्यमणि भिड़ के पीछे से गरजते हुये.... “तुम्हे नही लगता की तुम्हारी ये सभा भ्रष्ट हो चुकी है। मां जैसे एक मासूम से जीव के दिमाग को काबू कर उसे मारने जा रहे हो?”

“मेरी सभा में ये कौन बोला?”..... आर्यमणि के सवाल पर उस सभा का मुखिया ने गरजते हुये पूछा। आर्यमणि यह आवाज भली भांति पहचानता था। आर्यमणि जैसे–जैसे अपनी दोनो बांह फैला रहा था, वैसे–वैसे भिड़ दोनो किनारे हो रही थी और बीच से रास्ता बनते जा रहा था। आर्यमणि के नजरों के सामने उसका दोषी निमेषदर्थ खड़ा था। बीच का रास्ता जो खाली था, इस खाली रास्ते पर अचानक ही जड़ों ने कब्जा जमा लिया और देखते ही देखते निमेषदर्थ जड़ों में लिपटा हुआ था।

जड़ों में लिपटने के साथ ही निमेषदर्थ की यादें आर्यमणि के पास आने लगी और उस याद में आर्यमणि ने अपने एक और दोषी को पाया जो इस वक्त इसी सभा में मौजूद थी किंतु हत्याकांड वाले दिन वह दिखी नही थी। निमेषदर्थ की बहन हिमा। जैसे ही आर्यमणि को अपना दूसरा दोषी मिला, आर्यमणि बिना वक्त गवाए उसे भी जड़ों में जकड़ चुका था।

दोनो किनारे पर जो भीड़ खड़ी थी, उसमे एक हजार कुशल सैनिक भी थे। हालांकि वो जड़ों में तो नही जकड़े थे, लेकिन किसी अदृश्य शक्ति ने उनके पाऊं जमा दिये हो जैसे। कोई भी हील तक नही पा रहा था। आर्यमणि एक–एक कदम बढ़ाते हुये निमेषदर्थ के पास पहुंचा। आर्यमणि अपने गुस्से से लाल आंखें निमेषदर्थ को दिखाते .... “आखिर किस लालच में तुमने मेरे परिवार को मार डाला था निमेष।”...

निमेषदर्थ:– देखो आर्यमणि मैं तो बस एक मोहरा था।

आर्यमणि:– तुम्हारी यादों में मैं सब देख चुका हूं। तभी तो तुम्हारी बहन भी जड़ों में जकड़ी हुई है। तुम दोनो अपने आखरी वक्त में किसी को याद करना चाहो तो कर सकते हो।

“ठीक है मुझे वक्त दो। मै सबको याद कर लेता हूं।”.... इतना कह कर निमेषदर्थ अपनी आंख मूंदकर जोड़–जोड़ से कहने लगा.... “हे मेरे अनुयाई, मेरे रक्षक.. मैं तुम्हे याद कर रहा हूं। सबको मैं दिल से याद कर रहा हूं। ऐसा लग रहा है मेरे प्राण अब जाने वाले है। मौत मेरे नजरों के सामने खड़ी है। वह मुझे बेबस कर चुकी है। वह मुझे घूर रही है और किसी भी वक्त मुझे अपने चपेट में ले लेगी।”...

निमेषदर्थ चिल्लाकर अपनी भावना कह रहा था। हर शब्द के साथ जैसे वहां का माहोल बदल रहा हो। निमेषदर्थ जहां खड़ा था, उस से तकरीबन 100 मीटर आगे चाहकीली अचेत अवस्था में लेटी थी। निमेषदर्थ के हर शब्द के साथ उसमें जैसे जान आ रहा हो। जैसे ही निमेषदर्थ का बोलना समाप्त हुआ वहां का माहौल ही बदल गया।

चारो ओर सोधक प्रजाति के जीव फैले हुये थे। सोधक जीव की संख्या इतनी थी कि एक के पीछे एक कतार में इस प्रकार खड़े थे कि मानो जीवित पहाड़ों की श्रृंखला सामने खड़ी थी। न सिर्फ सोधक प्रजाति थे बल्कि शार्क और व्हेल जैसी मछलियां की भी भारी तादात में थी, जो सोधक प्रजाति के आगे थी और उन सबने मिलकर निमेषदर्थ को घेर लिया था।

चाहकीली तो सबसे पास में ही थी। खूंखार हुई शार्क और वेल्स के साथ वह भी निमेषदर्थ के चक्कर लगा रही थी। इसी बीच निमेषदर्थ खुद को जड़ों की कैद से आजाद करके पागलों की तरह हंसने लगा..... “क्या सोचे थे हां... मेरी जगह पर मुझे ही मार सकते हो। अभी तक तो इन जानवरों को ये नहीं पता की मेरी मौत कौन है। जरा सोचो मेरे एक इशारे पर तुम्हारा क्या होगा? फिर अभी तो तुम पर यह जानवर भरी पड़ेगा। इन जानवरों का मालिक मैं, फिर तुम पर कितना भारी पर सकता हूं।”...

आर्यमणि, निमेषदर्थ की बातें सुनकर मुश्कुराया। फिर उसकी बहन हिमा के ओर देखते..... “तुम्हे भी कुछ कहना है?”...

हिमा:– मुझे कुछ बोलने के लिये तुम जैसों के इजाजत की ज़रूरत नही। भाई इसे जानवरों का चारा बना दो।

निमेषदर्थ:– बिलकुल बहना, अभी करता हूं।

फिर तो मात्र एक उंगली के इशारे थे और सभी खूंखार जलीय जीवों ने जैसे एक साथ हमला बोल दिया हो। जिसमे चाहकिली सबसे आगे थी। आर्यमणि के शरीर से 50 गुणा बड़ा मुंह फाड़े चाहकिली एक इंच की दूरी पर रही होगी, तभी वहां के माहौल में वह दहाड़ गूंजी जो आज से पहले कभी किसी ने नहीं सुनी गयी थी। ऐसी दहाड़ जो महासागर के ऊपरी सतह पर तो कोई भूचाल नही लेकर आयी लेकिन पानी की गहराई में कहड़ सा मचा दिया था। ऐसी दहाड़ जिसे सुनकर जलीय मानव का कलेजा कांप गया। ऐसी दहाड़ जिसे सुनने वाले हर समुद्री जीव अपना सर झुकाकर अपनी जगह ठहर गये। जीव–जंतुओं को नियंत्रित करने की इतनी खतरनाक वह दहाड़ थी कि पूरे महासागर के जीव–जंतु जिस जगह थे वहीं अपने सर झुका कर रुक गये।

आर्यमणि:– चाहकीली क्या तुम मुझे सुन रही हो...

चाहकीली:– कोई विधि से मेरी जान ले लो चाचू। मै इस नालायक निमेषदर्थ की बातों में आकर आपको ही निगलने वाली थी। मुझे अब जीवित नहीं रहना...

आर्यमणि:– अपना सर ऊपर उठाओ...

चाहकीली अपना सर ऊपर की। उसके आंखों से उसके आंसू बह रहे थे। आर्यमणि अपना हाथ बढ़ाकर उसके एक बूंद गिरते आंसू को अपने हथेली पर लेते.... “बेटा रोने जैसी बात नही है। तुम्हारा दिमाग निमेष के कब्जे में था। अब मेरी बात ध्यान से सुनो।”...

निमेषदर्थ:– ये तुम कर कैसे रहे हो। मेरे जानवरों को होश में कैसे ले आये...

आर्यमणि का फिर एक इशारा हुआ और एक बार फिर निमेषदर्थ जड़ों में जकड़ा हुआ था.... “निमेष तुमसे मैं कुछ देर से बात करता हूं। तब तक हिमा तुम अपने आखरी वक्त में किसी को याद करना चाहो तो कर लो।”.... इतना कहने के बाद अपने हथेली के आंसू को अभिमंत्रित कर.... “चाहकीली अपना सर नीचे करो”...

चाहकिली थोड़ा पीछे हटकर अपना सर पूरा नीचे झुका दी। आर्यमणि थोड़ा ऊपर हुआ और चाहकीली के माथे के ठीक बीच आंसू वाला पूरा पंजा टिकाते हुये..... “आज के बाद तुम्हारे दिमाग को कोई नियंत्रित नही कर सकेगा। इसके अलावा जितने भी सोधक का दिमाग किसी ने काबू किया होगा, तुम्हारे एक आवाज पर वो सब भी मुक्त होंगे। अब तुम यहां से सभी जीवों को लेकर जाओ। मै जरा पुराना हिसाब बराबर कर लूं।”

चाहकीली:– चाचू मुझे भी इस निमेष का विनाश देखना है।

आर्यमणि:– वो जड़ों की कैद से आजाद होने वाला है। मै नही चाहता की यहां के युद्ध में एक भी जीव घायल हो। मेरी बात को समझो। तुम चाहो तो इन्हे दूर ले जाने बाद वापस आओ और एक किलोमीटर दूर से ही इसके विनाश को देखो। ऐसा तो कर सकती हो ना।

चाहकीली, चहकती हुई... “हां बिलकुल चाचू।”... इतना कहने के बाद चाहकीली एक कड़क सिटी बजाई और सभी जीवों को लेकर वहां से निकली। वो जगह जैसे ही खाली हुई, आर्यमणि दोनो भाई बहन को खोलते.... “उम्मीद है तुमने अपने सभी प्रियजनों को याद कर लिया होगा। अब अपनी मृत्यु के लिये तैयार हो जाओ।”

“किसकी मृत्यु”.... इतना कहकर हिमा ने अपना दंश को आर्यमणि के सामने कर दिया। उसके दंश से लगातार छोटे–छोटे उजले कण निकल रहे थे जो आर्यमणि के ओर बड़ी तेजी से बढ़ रहे थे। देखने में ऐसा लग रहा था जैसे एनीमशन में शुक्राणु चलते है। ये उजले कण भी ठीक उसी प्रकार से आर्यमणि के ओर बढ़ रहा था।

सभी कण लगातार आर्यमणि के ओर बढ़ रहे थे लेकिन जैसे ही वह एक फिट की दूरी पर रहते, अपने आप ही नीचे तल में गिरकर कहीं गायब हो जाते। फिर तो कई खतरनाक हमले एक साथ हुये। पहले हिमा अकेली कर रही थी। बाद ने हिमा और निमेषदर्थ ने एक साथ हमला किया। उसके बाद निमेषदर्थ ने अपने 1000 कुशल सैनिकों को आज़ाद करके सबको साथ हमला करने बोला।

आर्यमणि अपना दोनो हाथ ऊपर उठाते.... “एक मिनट रुको जरा।”...

निमेषदर्थ:– क्यों एक साथ इतने लोग देखकर फट गयी क्या?

आर्यमणि:– फट गयी... फट गयी.. ये मेरी अलबेली की भाषा हुआ करती थी, जिसकी मृत्यु की कहानी तुमने लिखी थी।

कुछ बूंद आंसू आंखों के दोनो किनारे आ गये। आर्यमणि उन्हे साफ करते.... “हां फट गयी समझो। यहां आम लोग है, पहले उन्हे जाने दो। मै कौन सा यहां से भागा जा रहा हूं।”

निमेषदर्थ कुछ देर के लिये रुका। वहां से जब सारे लोग हटे तब एक साथ हजार लोगो की कतार थी। ठीक सामने आर्यमणि खड़ा। निमेषदर्थ का एक इशारा हुआ और हजार हाथ आर्यमणि के सामने हमला करने के लिये तन गये। उसके अगले ही पल हर जलीय सैनिक के हाथ से काला धुआं निकल रहा था। निमेषदर्थ और हिमा के दंश से भी भीषण काला धुवां निकल रहा था। धुएं के बीच आर्यमणि कहीं गुम सा हो गया। कहीं किसी तरह की कोई हलचल नहीं।
Nice update
 

nain11ster

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Super updates bhai matlab aab Maya ka number lag gaya
Abhi thoda kahani ka maza lijiye na... Kahani waise bhi apne final chepter par hai .... Ab to sabko marna hi hai
 
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