आर्यमणि... यानी की केवल किवदंतियों में पाए जाने वाला, एक प्योर अल्फा... आर्यमणि की इस कहानी के अभी तक कुल 30 ही अध्याय पढ़े हैं मैंने, परंतु इस दौरान क्या कुछ नहीं देख लिया है हमने उसके जीवन में होते हुए... रोमांच, साहसपूर्ण कार्य, प्रेम, दुख, कष्ट, आर्यमणि के इस छोटे से जीवन में, वो अभी तक इन सबको देख और भोग चुका है। गंगटोक की वादियों से शुरू हुई ये कहानी अब महाराष्ट्र में पहुंच चुकी है और इस दौरान आर्यमणि और उसके जीवन से जुड़े कई लोगों का परिचय भी हुआ, और साथ ही उनका चरित्र – चित्रण भी हुआ।
अभी तक की कहानी को पढ़ने के पश्चात इतना तो कहा ही जा सकता है की इस कहानी की स्थापना एक ऐसे भारत में है, जहां लोगों ने अलौकिक शक्तियों के मध्य रहना सीख लिया है। वरवॉल्फ और प्रहरी.. ये दो मुख्य शक्तियां इस कहानी में अभी तक आई हैं, जिनका आपस में कटुता और दुश्मनी का संबंध है। प्रहरी समाज, जिसे हम भारद्वाज परिवार की जागीर भी मान सकते हैं, उनका कार्यभार है वरवॉल्फ और उनके गुट को आम जनता से दूर रखना और जब उन्हें रोकना कठिन हो तो उनका अंत कर देना। परंतु आर्यमणि नामक ये लड़का, इस पूरी व्यवस्था को अकेले दम पर बदलने का माद्दा लेकर महाराष्ट्र आया है, और शायद वो उस पथ पर निकल चुका है जहां वो दो संसारों के मध्य एक दीवार बनकर खड़ा होगा।
दो संसार.. एक प्रहरियों का तो दूजा वरवॉल्फ्स का! देखना ये है की आर्यमणि किसे अपना शत्रु बनाएगा तो किसे अपना मित्र। चूंकि वो भारद्वाज परिवार से गहरा ताल्लुक रखता है और साथ ही वर्धराज कुलकर्णी का पोता भी है, तो ऐसे में स्पष्ट है की वरवॉल्फ्स उसे अपना मित्र समझें, इसके आसार कम हैं। परंतु दूसरी ओर, आर्यमणि में दिखाई दे रहे लक्षण, जोकि एक अल्फा के हैं, उसकी रूही से नजदीकियां.. कहीं बाध्य ना कर दें प्रहरी समाज को, इस बात के लिए की वो आर्यमणि को अपना शत्रु ना समझ बैठें। परंतु, जो सवाल यहां सबसे बड़ा है, वो है कि आर्यमणि का असली मकसद क्या है? वो भारद्वाज खानदान के बीच उस विभीषण को ढूंढ रहा है, वो अपने दादा – वर्धराज कुलकर्णी के अपमान के कारण को ढूंढ रहा है और साथ ही, अपने प्यार – मैत्री लोपचे के कातिलों को भी ढूंढ रहा है.. किंतु यदि इस बीच उसे चुनना पड़ा, प्रहरी और वरवॉल्फ में से किसी एक को, तन क्या होगा..?
खैर, एक मुख्य प्रश्न ये भी है की इतने वर्ष जो आर्यमणि ने अज्ञातवास में गुजारे, उन वर्षों में उसके साथ क्या – क्या हुआ? वो जर्मनी के उन जंगलों में ईडन के कब्जे में था, शुहोत्र के धोखे के बाद, वो उस जाल में फंसा था, जहां से उसका निकालना असंभव सा ही था। तो निकला कैसे वो वहां से? ओशुन के अलावा कोई भी ऐसा नहीं था वहां, जिसे आर्यमणि का शुभचिंतक कहा जा सके, परंतु क्या ओशुन इस काबिल थी की आर्यमणि को वहां से निकाल पाती? कहानी की कुछ झलकियां दिखलाई थी आपने, प्रथम अध्याय से पूर्व, उसके एक भाग में ओशुन कहीं बंधी हुई थी और आर्यमणि उसे छोड़ने के लिए ईडन से कह रहा था, क्या आर्यमणि की किसी तरह की सहायता करने का अंजाम था वो, जिसके फलस्वरूप ओशुन को दंड मिला हो? संभव है ऐसा होना। बहरहाल, उत्सुकता इस बात को जानने की भी है की शुहोत्र के साथ आर्यमणि ने क्या किया? क्या उसे छोड़ दिया या फिर...
भूमि को जो कहानी सुनाई आर्यमणि ने अपने अज्ञातवास के बारे में, जिसमें वो अमेरिका से लेकर रूस तक का भ्रमण कर आया, वो पूर्णतः मिथ्या नहीं होगी। ऐसा मेरा अनुमान है की जर्मनी में कैद से निकलने के बाद, आर्यमणि ने कुछ जगहों का भ्रमण अवश्य किया होगा, उदाहरण के लिए रूस का वो जंगल। शायद किसी तथ्य अथवा सत्य की खोज में रहा होगा वो। बहरहाल, शुहोत्र ने आर्यमणि को जर्मनी ले जाने से पूर्व श्रीलंका में कहा था की, आर्यमणि भली – भांति समझ रहा है की मैत्री के कटैल कौन हैं, बस स्वीकारना नहीं चाहता। क्या अर्थ था इसका? क्या मैत्री के खून से उसी व्यक्ति/समूह के हाथ रंगे हैं, जो वर्धराज कुलकर्णी के निष्कासन और जया कुलकर्णी के अपमान का कारण था? मुझे तो ऐसा ही लगता है!
अब यदि एक नज़र कहानी के कुछ मुख्य किरदारों और पहलुओं पर डाली जाए तो...
पलक भारद्वाज... अभी के लिए आर्यमणि के भावी साम्राज्य की महारानी कहा जा सकता है पलक को। पलक का आगमन कहानी में एक ऐसी लड़की के रूप में हुआ था जो केवल अपने काम से काम रखती थी और अधिक बातें नहीं किया करती थी। साथ ही जब बात कुछ ज़रूरी विषयों की होती, तब पलक मुखर भी रहती और साथ ही हमने पलक की युद्ध – कला का नमूना भी देखा जब कॉलेज में उसने दोनों लड़कों को ज़मीन पर ला दिया था। आर्यमणि के पलक के जीवन में आने के बाद, उसमें काफी बदलाव हुआ है। पलक अब पहले से ज्यादा बातें करने लगी है, दूसरे शब्दों में वो अब खुलकर जीने लगी है। पलक ने साथ ही एक अनुमति भी दे दी आर्यमणि को की वो अन्य लड़कियों से भी संबंध रख सकता है, बस उसकी भनक पलक को नहीं लगनी चाहिए। खैर, अब देखना ये है की पलक और आर्यमणि की प्रेम कहानी में और क्या रंग भरने शेष हैं अभी...
भूमि देसाई... भूमि का रूतबा महाराष्ट्र में शायद मुख्यमंत्री से भी बड़ा होगा। हालांकि, अभी तक कहानी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के दर्शन हुए नहीं हैं, पर मुझे विश्वास है की वो भी भारद्वाज परिवार के सीधे संपर्क में होगा। खैर, भूमि, आर्यमणि को अपनी खुद की संतान की ही तरह प्रेम करती दिखी है अभी तक की कहानी में, साथ ही भूमि जानती है वो षड्यंत्र को भारद्वाज परिवार के खिलाफ रचा जा रहा है। पर शायद वो अनजान है इस हकीकत से की, रिचा, उसकी ननद ही उस षड्यंत्र में शामिल है। मेरे ख्याल में भूमि का निर्णय, सभा को अलविदा कहने का, अभी टलने वाला है। बेशक, भूमि अब मातृत्व सुख प्राप्त करना चाहती है, परंतु आर्यमणि जो रिचा की बातें सुन चुका है, वो क्या भूमि को सभा से अलविदा कहने देगा? दूसरा प्रश्न, ये है की जयदेव, भूमि का पति, उसका क्या किरदार है इस कहानी में? यदि रिचा की बातों पर ध्यान दें तो यही लगेगा की जयदेव एक सकारात्मक किरदार है परंतु संभव है की उसके चेहरे पर भी कोई नकाब हो।
रिचा देसाई... रिचा, अभी तक की कहानी में यदि कोई परिवार का शख्स नकारात्मक किरदार में दिखाई दिया है तो वो रिचा ही है। पहाड़ी पर अपने साथियों संग उसकी बातचीत इसका कारण है। रिचा की योजना अपने मंगेतर मानस को सभा का अध्यक्ष बनाना और खुद को जयदेव का उत्तराधिकारी बनाना है। इसके अतिरिक्त रिचा की योजना में राजदीप की शादी मुक्ता से और नम्रता की शादी माणिक से करवाना भी शामिल है। साफ शब्दों में रिचा का लक्ष्य है, भारद्वाज परिवार की ताकत को उखाड़कर सभा से बाहर फेंक देना और देसाई परिवार को ताकतवर बनाना। परंतु देखने योग्य बात ये है को शायद रिचा अपने पिता विश्वा देसाई का भी सम्मान नहीं करती, नाम लेकर संबोधित किया था उसने अपने पिता को, शोचनीय है ये बात भी...
निशांत और चित्रा नाईक... आर्यमणि के बचपन के दो मित्र जोकि दूर की रिश्तेदारी में संबंधी भी हैं आर्यमणि के। चित्रा और आर्यमणि का रिश्ता मित्रता का शुद्धतम रूप है। सभी को यही लगता है की चित्रा और आर्यमणि का रिश्ता दोस्ती से कुछ आगे था, परंतु सत्य तो यही है की दोनों के बीच मित्रता के अलावा कुछ नहीं... कम से कम अभी के लिए तो बिलकुल भी नहीं! चित्रा, माधव के साथ अपनी दोस्ती को एक नया रिश्ता दे चुकी है, और सत्य ये है की दोनों की हरकतों से इस बात का अंदेशा हो ही गया था। परंतु यहां देखना ये होगा की जिस रिश्वत की बात चित्रा कर रही थी, आर्यमणि से, वो क्या है? इधर निशांत और हरप्रीत अब अलग हो चुके हैं, परंतु जितने खुले विचारों का ये पूरा ही खानदान है, कोई संशय नहीं इस बात में की जल्द ही निशांत भी कोई और लड़की खोज ही लेगा अपने लिए। निशांत और चित्रा, ये दोनों किस ओर होंगे, इस दो संसारों की लड़ाई में ये भी एक सवाल है। अभी के लिए तो यही लगता है की इन दोनों के पास कोई चामत्कारिक अथवा आलौकिक शक्तियां नहीं हैं, ऐसे में इनका किरदार कहानी में कुछ भिन्न हो सकता है।
अक्षरा भारद्वाज की नफरत जया कुलकर्णी के लिए समझी जा सकती है। हालांकि, उन्हें पहले पूरी कहानी नहीं पता था परंतु तब भी यदि एक तटस्थ नजरिए से सारी बातों का आंकलन किया जाता, तो जया उतनी गलत ना लगती। आत्महत्या, एक अपराध था और सदैव एक अपराध ही माना जाएगा (कुछ परिस्थितियों के अलावा)... जया और मीनाक्षी ने जो बातें सामने रखीं उसके पश्चात एक बात तो कही जा सकती है की शायद इन दोनों बहनों का एक फैसला गलत था, शायद दोनों बहनों को पहले ही ये सब कुछ सभी को बता देना चाहिए था। इस बीच मुझे कहीं न कहीं लगा की जया कुलकर्णी और केशव कुलकर्णी के संबंध भी सामान्य नहीं हैं। आर्यमणि के जन्म के बाद, उन्होंने दूसरे बच्चे की कोशिश ही नहीं की, मीनाक्षी से इस बारे में बात भी हो रही थी उसकी जहां जया की प्रतिक्रिया खींची हुई सी थी... शायद कोई राज़ हो इसके पीछे भी!
बहरहाल, मीनाक्षी के पति सुकेश और बेटे तेजस का अभी तक कहानी में खास भाग नहीं रहा है, तो ऐसे में उनके चरित्र का आंकलन करना संभव नहीं। परंतु, तेजस की बीवी वैदैही, ज़रूर एक सुलझी हुई और समझदार युवती के रूप में उभरकर सामने आई है। वैदैही ना केवल अपनी सास मीनाक्षी की चहेती है, अपितु उसका व्यवहार आर्यमणि के प्रति भी काफी अच्छा था। इसके अलावा वो महिलाओं से जुड़ी एक संस्था में सम्मिलित भी है, तो बेशक सामाजिक कार्यों में उसकी रुचि समझी जा सकती है। हां, एक सवाल ये भी था की मीनाक्षी और भूमि में जब आर्यमणि को अपने घर पर ठहराने को लेकर बहस हो रही थी, तब मीनाक्षी ने भूमि को किसी बात को लेकर माफी मांगने को कहा था, जिसपर भूमि की प्रतिक्रिया थी की उसने जो किया सही किया। अतीत के पन्नों में बहुत कुछ छुपा हुआ है... जया की छवि भी कहा गया था भूमि को, अर्थात शायद जया के अतीत में भी गहरे राज़ छुपे होंगे!
राजदीप... महाराष्ट्र पुलिस विभाग में कार्यरत है, परंतु रुतबा इतना बड़ा की मंत्री भी भीगी बिल्ली बन गया था इसके सामने। राजदीप की शादी मुक्ता से होने के पीछे किसका कुचक्र है, ये भी सोचने वाली बात है। परंतु, एक बात तो के ही सकते हैं की राजदीप एक कुशल पुलिस अफसर दिखा है अभी तक की कहानी में। राकेश नाईक भी पुलिस विभाग में ही कार्यरत है। परंतु जो बात मुझे अभी तक असामान्य लगी है वो है केशव कुलकर्णी.. कहीं न कहीं मुझे ऐसा लगता है की केशव के दो रूप हैं, एक जिला अधिकारी का, जो आम लोगों के लिए है और एक ऐसा जो परदे के पीछे छुपा हुआ है।
अरुण जोशी का आगमन भी हुआ कहानी में जोकि आर्यमणि का मामा है। स्वभाव से तो लालची और स्वार्थी ही लगा है अरुण, ऐसा प्रतीत हुआ की उसकी पत्नी प्रीती उसे अपने परिवार के विरुद्ध बरगला रही हो। उसके बच्चे.. वंश और निर भी अपने माता – पिता का ही प्रतिबिंब लगे हैं। देखते हैं की उप – मुख्यमंत्री से को मदद, भूमि के कहने पर अरुण को मिल रही है, उसे किस प्रकार लेता है वो। निश्चित तौर पर जैसा स्वभाव उसका है, कोई न कोई हरकत तो वो करेगा ही। बहरहाल, अक्षरा का को लड़का अमेरिका में बस चुका है, उसका कहानी में कुछ भाग होगा या नहीं ये भी एक प्रश्न है।
सरदार खान... वरवॉल्फ्स के एक बहुत बड़े दल का नेता, एक अल्फा। सरदार खान एक घटिया और नीच प्राणी के रूप में सामने आया है अब तक की कहानी में, जिसने अपनी ही बेटी की इज्ज़त पर हाथ डाल दिया। अब मुझे स्मरण हो रहा है की कॉलेज में निशांत और उसके साथियों से सरदार खान के दल के एक युवक ने कहा था की रूही सबमें प्यार बांटती फिरती है, इसका अर्थ यही था शायद... रूही के लिए काफी बुरा लगा, परंतु अब आर्यमणि के रूप में उसे एक सहारा मिल चुका है जो उसे एक बेहतर ज़िंदगी दे सकता है। आर्यमणि के प्योर अल्फा होने का रहस्य अभी तक केवल रूही को ही मालूम है, और उसी की से अब रूही भी एक अल्फा बन चुकी है। देखते हैं की आर्यमणि की सेना में रूही की भूमिका क्या होती है? मुझे यही लगता है की दुनिया के लिए आर्यमणि के दल की पहचान रूही हो सकती है, और आर्यमणि शायद परदे के पीछे रहकर उस दल का संचालन करेगा। अलबेली के रूप में शायद एक और सदस्य मिल गई है उसे अपने दल के लिए...
खैर, यही कहूंगा की आर्यमणि की कहानी के सभी सिरे वर्धराज कुलकर्णी से ही जुड़ेंगे। बचपन में उन्होंने कई राज़ और कई बातें आर्यमणि को बताई होंगी, और उसी के कारण एक कमज़ोर वोल्फ, शुहोत्र के काटने पर आर्यमणि एक प्योर अल्फा बन गया। संभव है की कुछ ऐसे राज़ मालूम थे वर्धराज को जिसके कारण उन्हें अपमानित कर महाराष्ट्र से पलायन को मजबूर कर दिया गया। देखना ये भी है की आर्यमणि को जो किताब विश्वा की सहायता से प्राप्त हुई जिसका जादुई आंकड़ा – 25 है, उसकी कहानी क्या है? एक बार तो तय है की वो किताब आर्यमणि से जुड़ी हुई है, उसके स्पर्श पर किताब का रंग बदलना तो इसी और इशारा करता है।
खैर, अब आर्यमणि सरदार खान के इलाके में पहुंच गया है, और वहां जाकर अपने दल के चिन्ह द्वारा उसे युद्ध के लिए चुनौती भी से दी है। देखते हैं की इस लड़ाई में केवल सरदार खान का खास आदमी ही करेगा या फिर सरदार खान का नंबर भी लग सकता है...
सभी भाग बहुत ही खूबसूरत थे भाई। कहानी के शुरुआती दौर में जिस प्रकार आपने मुख्य पात्रों और घटनाओं का विवरण किया, वो बेहद ही सुंदर था। सभी पात्रों की भूमिका कहानी में विशेष रही है। भूमि और पलक के चरित्र का चित्रण, जिस खूबसूरती से किया आपने, वो बेहद खास लगा। रोमांचकारी दृश्यों पर आपकी पकड़ बेहद मज़बूत है। चाहे वो गंगटोक में दिव्या नामक सैलानी को बचाना हो या फिर जंगल में ट्विन – अल्फा के साथ हुई लड़ाई, बेहद ही खूबसूरती से वर्णन किया आपने इन दृश्यों का।
अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी...