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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–164


भयानक तूफान सा उठा था। एक ही पल में पूरी जगह जलनिमग्न हो गयी। जिस पहाड़ पर यह भीषण हत्याकांड चल रही थी, वह पहाड़ बीच से ढह गयी। ऐसा लग रहा था, दो पहाड़ के बीच गहरी खाई सी बन गयी हो। निमेषदर्थ, चिचि और माया तीनो ही महासागर में उठे सुनामी जैसे तूफान में कहां गायब हुये पता ही नही चला। निमेषदर्थ के हाथ से अमेया कहां छूटी उसे पता भी नही चला। तूफान जब शांत हुआ तब उसी के साथ पूरा माहौल भी शांत था और अल्फा पैक के मिटने के सबूत भी पूरी तरह से गायब।

घनघोर अंधेरे के बीच तकरीबन 100 योगी और संन्यासी उस बड़े से भू–भाग की छानबीन करने पहुंच चुके थे। पहले की भांति महज 40 या 45 किलोमीटर का यह टापू नही रह गया था, बल्कि पूरा एक महाद्वीप था। यादि किसी के पास उच्च स्तर की सिद्धियां न हो, फिर इस महाद्वीप में पहुंचना नामुमकिन था। क्योंकि पूरा भू–भाग का मार्ग एक तिलिस्मी जाल था, जो महासागर की गहराइयों से होकर जाता था। पहले की तरह अब ये टापू नही रह गया, जो महासागर के इस हिस्से में सफर करते हुये आसानी से दिख जाये...

आपातकालीन संदेश मिलते ही, महज कुछ घंटे में अपस्यु अपनी पूरी टीम के साथ वहां पहुंच चुका था। अपस्यु आते ही सबसे पहले कॉटेज गया और वहां के चारो ओर का मुआयना करने के बाद सर्च टीम के साथ निकल गया। छानबीन करते हुए एक टीम उसी जगह के आस पास पहुंच गयी, जहां आर्यमणि और उसके पूरे पैक के साथ यह निर्मम घटना हुई थी। हालांकि कुछ घंटे पहले और अब में बहुत अंतर था। दक्षिणी हिस्से के जिस पहाड़ी पर कांड हुआ था, वहां अब बड़ा सा झरना था। घटनास्थल के 200 मीटर के दायरे वाले पहाड़ को ही पूरा महासागर में घुसा दिया गया था। देखने से ऐसा लग रहा था जैसे 2 बड़े पर्वत के बीच कोई बड़ा सा झील हो।

खोजी दस्ते में ओजल और निशांत भी थे, जो वहां के हवा को महसूस कर सकते थे। ओजल यूं तो पूरे रास्ते रोती हुई ही आयी थी। ब्लड पैक से जुड़े होने के कारण यहां हुई घटना को वह दूर से महसूस कर चुकी थी। बस मन में एक छोटी सी आस बंधी थी, जो इस घटनास्थल पर पहुंचकर वो भी समाप्त हो गयी। वहां अल्फा पैक का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था। ओजल वहीं बैठकर, बिलख–बिलख कर रोने लगी।

मौके पर अपस्यु भी पहुंचा। हवा को वह भी महसूस कर सकता था। अपनों को खोने का क्या गम होता है, अपस्यु भली भांति समझता था। कोई दिलाशा, कोई भी बात अपनों को खोने के गम से उबार नही सकती थी, इकलौता वक्त ही होता है, जो किसी तरह जीना सिखा देता है। ओजल के लिये बहुत कठिन वक्त था। लगभग 6 दिन तक अल्फा पैक की लाश ढूंढने की प्रक्रिया चलती रही, लेकिन किसी के भी पार्थिव शरीर का कहीं कोई निशान तक नही था।

संन्यासी शिवम् अपने कुछ शिष्यों के साथ वहीं आवाहन पर बैठे थे। सातवे दिन विचलित होकर सबसे पहले विजयदर्थ उनके पास पहुंचा.... “हे संन्यासी तुम कौन हो और क्यों इतने कठिन योजन पर बैठे हो। जानते भी हो, मैंने यदि तुम्हारी बात न सुनी तो तुम और योजन पर बैठे जितने भी संन्यासी है सब मर जायेंगे।”

संन्यासी शिवम्:– हे महासागर नरेश, मुझे विश्वास है कि आप मेरी बार सुनेगे। मेरा मन विचलित है। मेरे गुरु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे थे किंतु उनका कोई पता नहीं। उनके साथ एक नवजात शिशु भी है।

विजयदर्थ:– आर्य और उसका पैक। क्या हुआ है उनके साथ...

संन्यासी शिवम:– आप जवाब दीजिए। आपने भरोसा दिलाया था कि गुरु आर्यमणि और उसके परिवार को कोई छू भी नहीं सकता।

विजयदर्थ:– संन्यासी पहले बताए कि हुआ क्या है? आपको भी पता है कि मैं स्थल के मामले में कुछ नही कर सकता।

संन्यासी शिवम्:– आपने ही आश्वाशन दिया था न... इस भूमि पर कोई बाहरी नही आ सकता।

विजयदर्थ:– मैने आश्वाशन दिया था, लेकिन फिर भी मेरी जानकारी के बगैर आप और आपके सभी लोग यहां पहुंच गये ना। बिना किसी सिद्ध प्राप्त इंसान की मदद से यहां कोई बाहरी नही आ सकता।

संन्यासी शिवम्:– और यदि कोई आपके घर का मिला हो?

विजयदर्थ:– मेरे घर का भी कोई चाह ले तो भी बिना किसी सिद्ध पुरुष की मदद से यहां कोई बाहरी नही आ सकता क्योंकि ये पूरा क्षेत्र नागलोक का है ना की ये महासागर का कोई टापू है। अब आप पहले मुझे बताएंगे की आर्य और उसके परिवार के साथ हुआ क्या है? अमेया कहां है? नाभीमन महाराज कहां हो? महाराज कहां हो?

नभीमन, वहां आते... “ये संन्यासी मुझे कबसे बुला रहा था मैं नही आया। क्या तुम्हे पता नही की मैं किसी इंसान के सामने नहीं आता।

विजयदर्थ:– महाराज आप अभी अपने नियम थोड़े किनारे रखिए। यहां आर्य और उसका पूरा परिवार गायब है। अमेया का कोई पता नहीं चल रहा।

नभीमन:– गुरुवर गायब हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?

नभीमन अपनी आंख मूंदकर वहीं भूमि पर बैठ गया। आधे घंटे तक उसका फन चारो ओर घूमता रहा। आधे घंटे बाद नाभिमन अपनी आंखें खोलते.... “अमेया कहीं सुरक्षित है। यहां 3 लाशें गिरी थी चौथा मरने की कगार पर है। एक समुद्री मानव के साथ 7 परिग्रही, 1 रीछ स्त्री महाजानिका का साधक भी था। उसी साधक ने रीछ स्त्री के दिव्य खंजर को एक परिग्रही के हाथ में दिया था। सभी हत्याएं उसी खंजर से हुई थी। अलौकिक माया का प्रयोग भी किया गया था और शून्य काल का अंतर्ध्यान भी हुआ है।

सन्यासी शिवम्:– हे पाताल लोक के शासक साफ शब्दों में गुरु आर्यमणि और उनके परिवार के बारे में बताइये।

नभीमन:– मैं बिते कल में इस से ज्यादा नही देख सकता। ऐसा लग रहा था पूरे भू–भाग पर किसी ने मायाजाल फैलाया था। जरूर ये तांत्रिक अध्यात का काम होगा। वह यहां आया होगा और अपना जाल फैलाकर अंतर्ध्यान हुआ होगा।

विजयदर्थ:– महाराज वो सब तो समझे किंतु आर्य और उसका परिवार...

नभीमन:– मेरा दिल भारी हो रहा है। शायद 4 में से 3 की मृत्यु हो चुकी है और कोई एक जीवन और मृत्यु के बीच में है। इस से ज्यादा अभी मैं कुछ नही कह सकता...

काफी देर तक वहां मंथन होता रहा। अपस्यु अपने लोगों के साथ भी पहुंचा। उसने भी पूरी बात सुनी लेकिन कोई एक ऐसी बात नहीं थी जो दिल को संतुष्ट कर सके। न तो लाश मिल रहे थे न ही अल्फा पैक के कोई भी निशान। सातवे दिन सभी मायूस होकर वापस लौट आये।

टापू पर हुये कुरूर नरसंहार के 2 दिन बाद... मुंबई के एक गुप्त स्थान पर मनमोहक जश्न का माहोल चल रहा था। जिस्म की नुमाइश करती थिरकती हुई कमसिन और जवान लड़कियां। मंहगी जाम को अपने अदाओं से परोसती हुई दिलकश औरतें। और हाथो में जाम लहराते तात्कालिक प्रहरी के आला हुक्मरान। आर्यमणि और उसके पैक के सफाया के बाद, जिस्म और शराब का पूरा मनोरंजन चल रहा था। आज से कुछ वर्ष पूर्व और उसके कुछ वर्ष पूर्व भी, ऐसा ही जश्न का माहोल था, क्योंकि उस वक्त भी इन्होंने आर्यमणि की तरह सात्त्विक आश्रम के गुरुओं का शिकार करवाया था। हां लेकिन जितना नाक में दम आर्यमणि ने किया, उतना किसी से नहीं किया था।

प्रहरी में अपेक्स सुपरनैचुरल का राज था, जिनमे ज्यादातर नायजो समुदाय के लोग थे, जो किसी दूर, दूसरे ग्रह से पृथ्वी पर आये थे। ब्रह्मांड में जितने भी ग्रहों पर नायजो समुदाय के विषय में जानकारी थी, वह कुछ इस प्रकार थी..... “यह समुदाय काफी विकसित है और प्रकृति प्रेमी भी। आंखों से इनकी दिव्य रौशनी निकलती है जो इनके मस्तिष्क के अधीन होती है... अर्थात अगर नायज़ो समुदाय वाले किसी को घायल करने की सोच रहे तो आंखों की रौशनी केवल घायल करेगी... यदि मन में चल रहा हो की केवल डराना है, तब आंखों की रौशनी से केवल भय पैदा होगा।” बस यही इतनी जानकारी हर किसी के पास थी। दूर ग्रह से आये ये नायजो समुदाय वाले और क्या कर सकते थे, यह पूरा किसी को नही पता था, सिवाय अल्फा पैक के, जिन्होंने इन्हे काफी करीब से जाना था।

पुराने पन्नों को यदि पलटा जाए तब इतिहास में एक बहुत ही धूर्त साधक था, शूर्पमारीच। शूर्पमारीच जब अपनी नई सिद्धियों के लिये नायजो समुदाय के पास पहुंचा था, तब एक संधि हुई थी। नायजो समुदाय वालों ने शूर्पमारीच को जड़ी–बूटी के धुएं का ऐसा प्रयोग बताया था, जिसके माध्यम से वह किसी के दिमाग की यादों को जितना चाहे उतना मिटा सकता था। इसके अलावा किसी भी सिद्ध प्राप्त इंसान हो या अलौकिक जन्म लिया अवतार, उन्हे एक जगह बांधकर विवश करने की पूर्ण विधि नायजो समुदाय ने सिखाकर उसे इन कलाओं में निपुण किया था। बदले में नायजो ने अपनी गंभीर समस्या का इलाज मांगा था।

नायजो समुदाय उस दौड़ में विलुप्त की कगार पर खड़ा था। नर और मादा के मिलन से एक भी बच्चा पैदा नहीं हो रहा था। तब शूर्पमारीच ने नायजो समुदाय को ब्रह्मांड के 5 हिस्सों में बसाया था.… विषपर, हुर्रियंट, शिल्फर, गुरियन और पृथ्वी... यह सभी ग्रह विशाल फैले ब्रह्मांड के 5 हिस्से में थे। नायजो को इन सभी ग्रहों पर बसाने के उपरांत, चुपके से अन्य समुदाय के स्त्री और पुरुष को पकड़कर लाते और उनसे नए पीढ़ी पैदा करने की तैयारी करते।

शूर्पमारीच और नायजो का संधि साथ–साथ चल रही थी। शूर्पमारीच को सब सीखने में लगभग 3 वर्ष लगे, और इतने वक्त में कई बच्चों का जन्म हुआ। हां लेकिन सभी नवजात में नायजो के अनुवांशिक गुण नही आये। जिनमे भी नायजो समुदाय के गुण नही आये उनका जीवन आगे नही बढ़ा। बस यही एक भूल जो नायजो समुदाय पृथ्वी पर कर गये, नवजातों की हत्या। यह खबर पहले किसी राजदरबार में पहुंची और जब वो लोग इन तिलस्मी नायजो समुदाय से निपट नही पाए फिर योगियों और साधुओं की मदद मांगी।

उसी दौर से सात्त्विक आश्रम और नायजो के बीच जंग छिड़ी हुई थी। हां लेकिन सही मायनो में नायजो समुदाय की जीत तब हुई, जब धूर्त शूर्पमारीच ने पूरे सात्त्विक आश्रम को ही बर्बाद कर दिया। फिर तो जैसे पृथ्वी पर नायजो समुदाय का एकाधिकार हो चुका था। हालांकि शूर्पमारीच एक ऐसा रहस्य था, जिनसे नायजो समुदाय भी खौफ खाता था। ऐसा नही था कि सात्त्विक आश्रम कमजोर था या उन्हे हरा पाना आसान था। किंतु शूर्पमारीच के पास जितनी सिद्धि प्राप्त थी, उतना ही वो धूर्त भी था। खैर उन दिनों शूर्पमारीच और सात्त्विक आश्रम के द्वंद में सबसे ज्यादा फायदा नायजो वालों ने ही उठाया था।

शूर्पमारीच की अहम जानकारी उस अनंत कीर्ति के पुस्तक में भी थी। सात्विक आश्रम और शूर्पमारीच के प्रथम द्वंद में, शूर्पमारीच को लगभग समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने ही अनंत कीर्ति की पुस्तक का निर्माण किया था। पुस्तक के निर्माण के साथ ही प्रहरी समाज भी बना था, जिसका मुखिया उस पुस्तक में, विकृत जीव का विवरण और उन्हे कैसे रोका या समाप्त किया जाए, उसे वर्णित करते थे। प्रहरी समुदाय पर शुरू से नायजो समुदाय की पैनी नजर थी। जैसे ही सात्त्विक आश्रम बर्बाद हुआ, सबसे पहले प्रहरी समुदाय ही निशाना बना।

बहरहाल अतीत के पन्नो से लेकर तात्कालिक वर्तमान परिस्थिति में एक बात सामान्य थी, नायजो समुदाय पृथ्वी छोड़कर नही जाना चाहते थे। इसका प्रमुख कारण यह भी था कि यहां की नई पीढ़ी पहले से ज्यादा कुशल और उनका दीमाग उतना ही विकसित होता था। वर्तमान समय में जश्न में डूबा दूर ग्रह वाशी यह सुनिश्चित कर बैठा था कि उसने सात्त्विक आश्रम के होने वाले गुरु आर्यमणि की लीला समाप्त कर दी थी। अब वापस उस आश्रम को फलने फूलने में वक्त लगेगा.….

उसी महफिल के एक कोने में पलक भी थी, जो आर्यमणि और अल्फा पैक की खबर सुनकर कभी सदमे में रहती तो कभी उसे सब भ्रम लगता। शायद आर्यमणि नही मर सकता ऐसा उसे अंदर से यकीन था, लेकिन माया और विवियन का विश्वास देख पलक के अंदर का विश्वास डोल रहा था। पलक खुद में क्या महसूस कर रही थी, इस बात को तो वो खुद भी समझ नही पा रही थी। इसी बीच सुकेश भारद्वाज पलक के करीब पहुंचते.… "क्या हुआ तुम आज बुझी–बुझी सी हो? कहां गया पलक का जोश?"

पलक:– काका मुझे एक आखरी बार आर्यमणि से मिलना था। जब वो मर रहा होता तब उस से नजरें मिलानी थी..

सुकेश:– विवियन जैसे मारक के हाथ से आर्यमणि और उसका पैक बच चुका था। उसके शिकार के लिए माया को खुद आना पड़ा था। वहां तुम्हारा न होना ही अच्छा था। वरना आर्यमणि को जरा भी भनक लगती तब वह फिर बचकर भाग जाता...

"क्या बातें हो रही है"…. दूर ग्रह से आया एक परिग्रही जो रिश्ते में माया का भाई और पलक को दिल से पसंद करने वाला, मायस्प, ने पूछ लिया... पलक फिकी मुस्कान देती मायस्प के साथ उस पार्टी से निकल गयी। मायस्प के साथ चलते हुये भी बुझे मन में एक ही ख्याल चल रहा था... "हे ईश्वर, हे विनायक आर्यमणि और उसके पैक को सुरक्षित रखना”...

शायद पलक ये मानने से इंकार कर चुकी थी कि अल्फा पैक के साथ कोई घटना भी हो सकती थी। लेकिन इन सबमें सबसे बुरा हाल तो कहीं और ही था। सबसे पहले खबर भूमि को मिली। भूमि, पिछले कुछ वक्त से क्या कर रही थी, उसे होश ही नहीं, और जब होश आया फिर... दरअसल आर्यमणि के भागते ही भूमि के पति और नायजो समुदाय का एक होनहार मुखिया जयदेव ने भूमि को अपने बस में कर लिया था। संन्यासियों के संपर्क में आने के पूर्व ही जयदेव यह कांड कर चुका था।

भूमि को सम्मोहित कर अपने वश में करने के बाद ही नायजो को भूमि, आर्यमणि और कुलकर्णी परिवार के बीच की सारी बातें पता चली। नायजो का एक प्रमुख चेहरा सुकेश और मीनाक्षी भारद्वाज तब सकते में आ गये, जब उन्हे पता चला उसकी खुद की बेटी भूमि को उनपर शक है। भूमि के जरिए ही नायजो समुदाय को टर्की की शादी का पता चला था।

मुंबई में जश्न समाप्त करने के बाद जयदेव सीधा नागपुर पहुंचा। सबसे पहले तो उसने भूमि का सम्मोहन हटाया। जबतक भूमि सम्मोहित थी, तबतक उसे होश कहां की वो क्या कर रही थी, लेकिन जब सम्मोहन हटा तब सम्मोहित होने के दौरान भूमि ने जो भी की थी, हर वाक्या मानो सीने में नासूर जख्म बनकर उभर रहा था। खुद से घृणा होने लगी थी। भूमि, जयदेव का कॉलर पकड़कर उसे खींचकर लगातार थप्पड़ लगाती रही और जयदेव हर थप्पड़ के बाद जोड़ से हंसकर भूमि की चिढ को और बढ़ा रहा था।

अचानक ही जयदेव ने भूमि के पेट पर एक लात जमा दिया। काफी तेज लात लगी और भूमि कर्राहती हुई नीचे बैठ गयी। जयदेव भूमि का बाल पकड़कर, उसके चेहरे को ऊपर करते.… "तुझे बड़ा शौक था न जानने की... बहुत चूल मची हुई थी कि क्यों सुकेश और मीनाक्षी भारद्वाज को एक छींक तक नही आती? आखिर सरदार खान के बस्ती में ये लोग करने क्या जाते थे? क्यों ये लोग वेयरवुल्फ को बीस्ट वुल्फ बना रहे थे? तुझे ही शौक था न, नागपुर प्रहरी समूह अलग कर के हर बात पता लगाना की... तो नतीजा भुगतने को क्यों तैयार न थी? क्यों तुझे यह इल्म न हुआ की हम तुम्हारी पहुंच से कहीं ऊपर है? हम आसमान जितना ऊपर है और तुम सब एक कीड़े। तु जिस राह पर चल रही थी उसका एक छोटा सा परिणाम भुगतने पर इतना दर्द। हर किसी के दिल में यह एहसास रहे कि हमारे पीछे आने वालों का क्या अंजाम होता है... चल तेरे दर्द पर एक और छोटा सा घाव देता हूं... आर्यमणि और उसके पूरे पैक का सफाया हो गया है... उसे भी हमारे बारे में जानने की कुछ ज्यादा ही चूल मची हुई थी"…

जयदेव अपनी बात कहकर भूमि को 2 थप्पड़ लगाया और उस घर से निकल गया। भूमि पहले से हताश थी, ऊपर से आर्यमणि की खबर। भूमि पूर्ण रूप से टूट चुकी थी। बिलख–बिलख कर बस रोती रही। आर्यमणि की खबर उसके माता–पिता तक भी पहुंची। हर कोई जैसे सदमे में चला गया था। बहुत बुरा दौर से सभी गुजर रहे थे।

किसी अपने के खोने का गम नासूर होता है। सदमे से लोग उबर नहीं पाते। इकलौता वक्त होता है जो जीना सिखा देता है। आर्यमणि की मौसेरी बहन भूमि, पिता केशव कुलकर्णी और माता जया कुलकर्णी पर तो जैसे बिजली गिर गया था। कमजोर तो खैर ये तीनों भी नही थे। यादि मुकाबला खुद के जैसे सामान्य इंसानों से होता, फिर तो तीनो ही काफी थे लेकिन भूमि, जया और केशव को भी पता नही था कि किनसे उलझे थे...

आर्यमणि के गम में ऐसे बौखलाए थे कि तीनो ने मिलकर सुकेश, मीनाक्षी, उज्जवल, अक्षरा, जयदेव समेत 20 लोगों के मारने की पूरी प्लानिंग कर चुके थे। तय यह हुआ था कि सबको एक ही वक्त पर मारेंगे... और वह वक्त था, चित्रा और माधव कि शादी। शादी के पूर्व निशांत भी नागपुर पहुंचा किंतु उसने आर्यमणि के विषय में चित्रा को कुछ नही बताया। वहीं न सिर्फ चित्रा बल्कि उसकी मां निलंजना और पिता राकेश नाईक भी पूछते रहे। हर सवाल के जवाब में निशांत बस इतना ही कहता कि जबसे आर्य की शादी हुई है, कोई खबर नही की कहां घूम रहा है।

 
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भाग:–165


लगभग 1 महीने का पूरा वक्त था और सीने में आग भड़क रही थी। शादी की तैयारियों के साथ ही सभी को मारने की तैयारी भी चल रही थी। शादी लोनावाला, महाराष्ट्र, के किसी रिजॉर्ट से हो रही थी। जैसा शुरू से होता चला आया था, सुकेश और उज्जवल भारद्वाज आस–पास ही ठहरे थे, और उन दोनो के आस–पास उनके कुछ सहयोगी। बस एक जयदेव था जिसका कमरा नंबर पता नही चला था। खैर, किसी का कमरा नंबर पता हो की नही हो लेकिन तैयारियां पूरी थी। शादी के एक रात पूर्व भूमि को जयदेव भी दिख गया। दोनो की नजरें एक बार टकराई और दोनो अलग रास्ते पर चल दिये।

रात के 2 बज रहे थे, जब असली खेल शुरू हुआ। कहते है न, आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास में धागे मात्र का फर्क होता है। यहां तो नायजो समुदाय में विश्वास और आत्मविश्वास से कहीं ऊपर सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ होने की भावना थी। इसी भावना के चलते यह विश्वास पनपा की मेरा कौन क्या बिगड़ लेगा। हालांकि सुरक्षा के सभी कड़े इंतजामात थे, लेकिन एक आईएएस केशव कुलकर्णी का दिमाग और पूर्व के 2 घातक शिकारी, भूमि और जया, शिकार पर निकले थे। सुरक्षा के जितने भी इंतजाम थे वो सब फिर क्या कर लेते...

रिजॉर्ट का वो हिस्सा जहां सुकेश और उज्जवल ठहरे थे, रात भर के जश्न के बाद घोड़े बेचकर सो रहे थे। सुकेश और मीनाक्षी, उज्जवल और अक्षरा के अलावा वहां आस–पास के स्वीट्स में कौन–कौन थे, ये भूमि, जया और केशव को नही पता था। बस एक ही बात पता थी, बदला, बदला और बदला... और इंतकाम की आग ऐसी भड़की थी, उसका नजारा रात के 2 बजे सबको पता चल गया।

न कोई विस्फोट हुआ और न ही कोई गोली चली। एसी के डक्ट से चली तो एक गैस, और फिर जो नजारा सामने आया वह केशव, जया और भूमि को सुकून देने वाला नजारा था। हालांकि गैस की गंध से सोए लोग भी जाग चुके थे, लेकिन जागने में थोड़ी देर हो चुकी थी। जबतक जागकर समझते की भागना था, उस से पहले ही एक छोटी सी चिंगारी और चारो ओर आग ही आग। एसी कमरा यानी पूरा बंद कमरा। ऊपर से बाहर निकलने वाला दरवाजा भी बाहर से बंद। चिंगारी उठते ही मानो रिजॉर्ट के उस हिस्से के हर स्वीट के अंदर एटम बॉम्ब जैसा विस्फोट के साथ आग फैला हो। पलक झपकने के पूर्व सब सही और पलक झपकते ही चारो ओर आग ही आग।

अंदर कई हजार डिग्री के तापमान तक कमरे झुलसने के बाद बाहर धुवां दिखने लगा। एक गार्ड ने जैसे ही किसी तरह एक स्वीट का दरवाजा खोला, धू करके आग का बवंडर दरवाजा के रास्ते इतनी दूर तक गया की वो गार्ड भी उसके चपेट में आ गया। किसी तरह उस गार्ड को बचाकर ले गये और यह नजारा देखकर दूसरे गार्ड की फट गयी। फिर किसी की हिम्मत नही हुई, किसी दरवाजे को खोलने की। कहीं दूर से आग और धुवां का मजा लेते तीनो, केशव, जया और भूमि अंदर से काफी खुश हो रहे थे।

भूमि:– अरे अभी तो धुवां ही नजर आ रहा, तंदूर प्रहरी कब नजर आएंगे.…

केशव:– हां मैं भी उसी के इंतजार में हूं। यादि कोई बच जायेगा तो उसके लिए व्यवस्था टाइट तो रखे हो न...

भूमि:– मौसा पूरी व्यवस्था टाइट है... किसी को बचने तो दो...

जया:– नही जो बचेंगे वो उनकी किस्मत... अब हम दोबारा हमला नही करेंगे, बल्कि यहां से सुरक्षित निकलने की तैयारी करो। अभी अपने बच्चे का पूरा इंतकाम लेना बाकी है। बदला लेने से पहले मैं मर नही सकती...

केशव:– जैसे तुम्हारी मर्जी... चलो फिर पास से इसका नजारा लेते है.…

तीनो आग वाले हिस्से में पहुंच गये। मौके पर अग्निशमन की गाड़ियां पहुंच चुकी थी। फायर फाइटर्स अपने काम में लग चुके थे। ये तीनों भी अब आग बुझने और जले हुये तंदूर प्रहरियों के बाहर आने का इंतजार करने लगे।

"बहुत खूब, तो अब भी तुम लोगों में हिम्मत बाकी है?"… भूमि के करीब खड़ा जयदेव धीरे से कहा...

भूमि:– कहीं मजलूम तो नही समझ रखे थे न जयदेव..

जयदेव:– न ना.. तुझे तो बस जरिया समझ रखा था, लेकिन निकली फालतू। सारा क्रेडिट तो वो माया ले गयी। तुझपर सम्मोहन करने का कोई फायदा नही निकला।

भूमि:– अभी तेरी बातों पर मुझे कोई प्रतिक्रिया देने की जरूरत नही। बस तू जो बोला था वह याद आ गया... तुम लोग आसमान से भी ऊंची रेंज वाले लोग हो ना। शायद खुद को अपेक्स सुपरनैचुरल कहलवाना ज्यादा पसंद करते हो... एक बात बताओ, जिस समुदाय का बिल्ड अप इतना बड़ा था, उन्हे इस आग में कुछ हुआ तो नही होगा ना.…

जयदेव:– तू गलत खेल गई है...

भूमि:– मां बाप कभी मां बाप थे ही नहीं। पति कभी पति नही था। एक प्यारा भाई था वो बचा नही... अब तो ले लिया पंगा जयदेव... गलत सही जो खेलना था, खेल लीया। अब उखाड़ ले जो उखाड़ना है...

जयदेव:– सुबह के उजाला होने से पहले तू क्या, इस जगह पर आर्यमणि के जितने भी चाहनेवाले उसके करीबी है, सब मरेंगे...

भूमि:– पंगा किसी से लो तो उसके परिणाम के लिए भी तैयार रहो, ऐसा ही कुछ तू कहकर गया था न... खुदको क्या भगवान समझता है, जो तेरे पंगे का कोई जवाब नही देगा... साला खुद पर आयी तो बिलबिला रहा है... सुन बे बदबूदार मल… तेरे गांड़ में दम हो तो सुबह होने से पहले हमारी लाश गिरा कर दिखा देना... अब मुझे तेरे भाई बंधु का तंदूर देखने दे... तु तबतक जाकर हमारे मर्डर की तैयारी कर..

जयदेव, अपनी उंगली दिखाते.… "तुझे तो मैं छोडूंगा नही"..

भूमि:– जो भी है करके दिखा चुतिए, बोल बच्चन मत दे। वैसे एक जिज्ञासा है... क्या आग में तुमलोग भी जलते हो, या फिर जो खुद को इतना ऊंचा बताते है, वो अमर बूटी खाकर आया है, जो आग भी उसका कुछ नही बिगाड़ सकती...

जयदेव घूरती नजरो से देखने लगा। इस से पहले की कुछ कहता, अग्निशमको द्वारा आग में फंसे लोगों को बचाकर बाहर निकाला जा रहा था। सबसे पहले सुकेश भारद्वाज ही बाहर आया... पूरा का पूरा जला हुआ... देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो अगर सुकेश को पकड़ ले तो हाथ में उसका पूरा भुना मांस चला आयेगा...

एक–एक करके कुल 22 लोगों को निकाला गया। 22 में से 17 की हालत गंभीर और 5 लोगों को मृत घोषित कर दिया गया। मरने वालों में से 2 बड़े नाम, अक्षरा भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज थे। लगभग सुबह के 5 बज रहे थे। कौतूहल से भरा माहोल शांत होने को आया था। दूर खड़े तमाशा देख रहे लोग अब धीरे–धीरे छटने लगे, केवल 4 लोगों को छोड़कर…. भूमि, जया, केशव एक टीम और दूसरी ओर जयदेव...

मृत और गंभीर रूप से घायलों का ब्योरा जैसे ही आया, भूमि रौबदार आवाज में.… "हम फलाना है, हम चिलाना है... मासी खुद को तुर्रम खां समझने वालों को परख लिया.. आग में उनके भी मांस ठीक वैसे ही जले, जैसे हमारा दिल जल रहा है। चलो स्कोर बुरा तो नहीं। 5 के नरक लोक का टिकट कट गया।"

जया:– भूमि, कोई तो कह रहा था, सूरज निकलने से पहले हमारी लाश गिरा देगा... घंटे भर में तो सूरज निकल भी आएगा...

केशव:– सुनो बे, तुम्हे जो करना था वो कर चुके... अब हमारी बारी है... शिकार करने वाले खुद भी शिकार हो सकते हैं, यह बात हम तो कभी नही भूले, लेकिन लगता है ये पाठ तुम नीच लोगों ने नही पढ़ा... कोई बात नही अभी साक्षात गुरुदेव केशव कुलकर्णी तुम्हे ये पाठ रटवा देंगे... बस देखते जाओ... चलो सब यहां से...

इतना कहकर वहां से तीनो निकल लिये। उन तीनो को मारने का इरादा रखने वाला जयदेव तुरंत ही अपने लोगो को इकट्ठा किया। बाहर निकला तो था तीनो को मारने, लेकिन हल्के अंधेरे और हल्के उजाले वाले भोर की बेला में जयदेव को काल के दर्शन हो गये। सात्त्विक आश्रम के 6 संन्यासियों के साथ ओजल उनके रास्ते में खड़ी थी।

जयदेव, ओजल को सामने देख, अपना कारवां रोकते.… "ब्लड पैक की एक जिंदा बची अल्फा। अच्छे वक्त पर आयी हो। हम अभी आर्यमणि के सभी चाहने वालों को खत्म करने जा रहे थे। तु अकेली जिंदा रहकर क्या कर लेती... खत्म करो इन सबको जल्दी..."

जयदेव के लिये शायद यह वक्त बुरा चल रहा था। जयदेव ने अपनी बातें समाप्त किया और अगले ही पल निशांत का एक जोड़दार तमाचा पड़ गया। इधर निशांत को तमाचा पड़ा और उधर जयदेव के साथ आये गुर्गों को कब ओजल काटकर जमीन पर उसके टुकड़े बिछा दी, जयदेव को पता भी नही चला। और जब तक पता चला तब तक लाशें गिर चुकी थी।

जयदेव लगातार आंखों से रौशनी निकालता रहा लेकिन वायु विघ्न मंत्र को साधने वालों पर फिर कहां ये नायजो के आंखों की लेजर काम आती है। अगले ही पल वहां चारो ओर धुवां। धुएं के अंदर जयदेव को शुद्ध रूप से लात और घुसे पर रहे थे। इतने कड़क लतों और घुसो की बारिश हो रही थी कि उसका हीलिंग प्रोसेस लुल हो गयी।

किसी आम इंसान की तरह जयदेव भी बेहोशी हो गया और बेहोशी के बाद जब आंखें खुली तब चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा था। वह जगह इतनी अंधकार थी कि आंखों के लेजर की रौशनी तक से कुछ नही देखा जा सकता था। जयदेव कई दिनों तक बाहर निकलने की कोशिश करता रहा, पर चारो ओर ऐसी दीवारें बनी थी जो न तो बाहुबल से टूटा और न ही नजरों के लेजर से।

अंत में अहंकारी नायजो समुदाय के घमंडी जयदेव खुद में बेबस सा महसूस करने लगा। जब बेबसी का दौड़ शुरू हुआ उसके पहले दिन जयदेव चींखते चिल्लाते यही कहता रहा की यहां से निकलकर सबसे पहले तुम्हारी लाश गिराऊंगा। फिर कुछ दिन बीते। बेबसी ने उनके जीवन में ऐसा पाऊं पसारा की बाद ने गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे... "मुझे जाने दो। क्यों यहां रखे हो। तुम्हे क्या चाहिए कुछ तो बोलो"…

खैर आवाज पहले दिन वाला अहंकारी हो या फिर हिम्मत टूटने के बाद बेबस जैसा, दोनो ही परिस्थिति में जयदेव को बाहर से कहीं कोई जवाब नहीं मिला। मिला तो सिर्फ उसे अंधेरा।... घोर अंधेरा था। उस अंधेरे में खाने के लिये नाक का इस्तमाल करना पड़ता था। किसी तरह सूंघ कर अपने खाने तक पहुंचते थे।

जयदेव गायब हो चुका था। उसकी कोई खबर नहीं मिली। हाई टेबल प्रहरी को चलाने वाले नायजो सब जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। नायज़ो हाई टेबल पर ऐसा हमला हुआ था मानो उनकी कमर टूट गयी हो। आर्यमणि मर चुका था और उसके मरने के बाद भी जब नायजो का शिकर हो गया, इस बात से भिड़ पागल बनी हुई थी। मीटिंग विवियन ले रहा था और सामने लाखों की भिड़।

विवियन:– 12 मई की सुबह काली थी। इस आगजनी को 3 महीने हो गये। हमारे 5 लोग तत्काल मारे गये। इलाज के दौरान 6 लोगों की मौत हो चुकी है। जो 11 लोग अभी बचे है, वो भी पता नही कब तक ठीक होंगे या कभी ठीक होंगे भी या नही.…

भीड़ से एक आवाज:– ये सुनने हम यहां नही आये। जिन कीड़ों ने ये काम किया था, उन्हे जिंदा जलाया की नही..

पलक, अपनी जगह से खड़ी होती... "उन्हे मारने के लिए जयदेव 6 लोगों के साथ गया था, लेकिन पिछले 3 महीने से न तो आग लगाने वालों का पता लगा और न ही जयदेव का"…

भीड़ से कोई... "तुम सब नकारा हो गये हो। क्या अब कोई हमसे भी ऊपर है?

विवियन:– यहां आपस में झगड़ने से कोई फायदा नही है। ये वक्त आपस में लड़ने का नही...

भिड़ से कोई एक:– पहले तो वो आर्यमणि था, जिसने जब चाहा हमारा शिकार कर लिया। वो गया तो उसकी बहन और उसके मां–बाप। न जाने कहां छिपे है। अंधेरे से बाहर निकलते है और सबको जलाकर अंधेरे में फिर गायब। क्या हम उनके लिये इतना आसान शिकार है?

विवियन:– मैं आप सबकी तकलीफ को समझता हूं। हमारे लोग उन सबकी तलाश में जुटे है, तब तक आप लोग धैर्य बनाकर चलिए और जिसे भी वो लोग दिख जाये मारिए पहले सवाल बाद में कीजिए।

विवियन इतना ही बोला था कि पीछे से उसके कंधे पर हाथ पड़ा। मुड़कर देखा तो माया खड़ी थी।। माया पूरे भीड़ को हाथ दिखाती.… "तुम्हारे लीडर्स के घायल होते ही तुम्हारा संगठन ही कमजोर सा लग रहा। सब शांत रहेंगे... पहली बार हम सामने आकर किसी को मारे थे। उसका कुछ तो परिणाम भुगतोगे या नही... जिन्होंने हम पर हमला किया, उन्होंने अपने पूरे क्षमता के साथ हमला किया। हमे भी पता नही था कि आम से दिखने वाले ये लोग कितना नुकसान कर सकते है। लेकिन देखो, तुम्हारे सभी नेताओं को ही लिटा दिया। इसलिए 2 बात हमेशा याद रहे... पहला की खुलकर कभी सामने मत आओ और यदि सामने आते भी हो तो जबतक सभी मुसीबत खत्म न हो जाये, तब तक आंखें खुली और दिमाग हमेशा खतरे को साफ करने के पीछे लगाओ"…

भीड़ से एक... तो क्या ये इंसान इतने ताकतवर हो गये की अब हमारा शिकार करेंगे?

माया:– ताकत की बात कौन कहता है। ताकत से लड़े होते तो क्या कोई मरता भी। शिकार करने की तकनीक हमने किनसे सीखी है, इंसानों से ही। घात लगाकर पूरे धैर्य पूर्वक शिकार करना। मौत कहां से चली आयी किसी को पता नही। तो हां अपनी शारीरिक क्षमता पर इतना विश्वास न जताओ क्योंकि इंसान क्या कर सकते है उसका प्रत्यक्ष उदाहरण सामने है... जिन लोगों ने हमे चोट दिया वो सब शिकारी थे और उन्हें पता था कि किसने उनके प्रियजनों को मारा था। ये बात तो तुम्हारे लीडर्स भी जानते थे कि जिन लोगों ने हमला किया था, उन्हे पहले से तुम्हारे लीडर्स पर शक था। लेकिन कहते है न विनाश काले विपरित बुद्धि... वो लोग हमारा क्या बिगड़ लेंगे ये सोचने वाले कुछ लोग मर गये और कुछ मरने के कगार पर है।

भीड़:– हां समझ गये की शरीर की क्षमता जितनी जरूरी है, उस से कहीं ज्यादा मानसिक क्षमता मायने रखती है। और वो दूसरी बात क्या है माया...

माया:– यह पहली बार नही था जो हमने आग का सामना किया हो। आर्यमणि हमारे कई लोगों को जिंदा जला चुका है। हां लेकिन उस वक्त इतना ध्यान इसलिए नही गया क्योंकि वह केवल जलाता नही था। तुम सब एक ही काम में लग जाओ...ऐसी युक्ति ढूंढो की दोबारा कोई हमे आग से डरा न सके। वैसे एक खुश खबरी भी है। हमारे नए दोस्त निमेषदर्थ ने आर्यमणि के खून से ऐसी हीलिंग पोशन तैयार कर लिया है कि महज 1 घंटे में तुम्हारे बचे हुए लीडर्स तुम लोगों से बात करेंगे। पृथ्वी पर मेरा काम खत्म होता है, इसलिए मैं विषपर प्लैनेट वापस जा रही। आते जाते रहूंगी... और हां पलक एक मेघावी नायजो है, उम्मीद है उसके लीडरशिप में तुम लोग और ऊंचाइयों को छू सकोगे.… अब मैं चलती हूं...

माया सभा समाप्त करके चली गयी और पलक के लिये एक नई राह खोल गयी। कुछ वर्ष पूर्व ही उसे भी पता चला था की वह अपने भाई राजदीप की तरह ही एक पूर्ण नायजो है। बाकी उसका बड़ा भाई कंवल और बड़ी बहन नम्रता में नायजो वाले कोई गुण नही आये थे। पलक जब लीडरशिप की राह में चली फिर उसने पीछे मुड़कर नही देखा। छोटे उम्र के इस लीडर ने चारो ओर से खूब सराहना बटोरी। देखते ही देखते समुदाय में उसका कद और रूतवा इतना ऊंचा हुआ कि वो अब 5 ग्रहों में बैठे लीडर्स के साथ उठा–बैठा करती थी।

वक्त अपने रफ्तार से चलता रहा। दिन बीत रहे थे। सुकेश और मीनाक्षी भी स्वास्थ्य होकर अपना काम देख रहे थे। उस आगजनी में अक्षरा और उज्जवल अपना दम तोड़ चुके थे। इस बात का मलाल सबको था। उस दिन के बाद हर कोई भूमि, केशव और जया की तलाश करते रहे, लेकिन उन्हें एक निशान तक नही मिले। जयदेव भी बिलकुल गायब ही था... सबको जमीन निगल गई या आसमान खा गया कुछ पता नहीं चल पा रहा था.…

अब तो वक्त भी इतना गुजर चुका था कि धीरे–धीरे सब इस बात को भूलते जा रहे थे। प्रहरी के मुखौटा तले नायजो समुदाय फल फूल रहा था। वेयरवुल्फ को अब भी बीस्ट वुल्फ बनाया जा रहा था। प्रहरी में आने वाले इंसानों के दिमाग में अब भी 2 दुनिया के रखवाले होने का भूत घुसाया जा रहा था और इसी काम के दौरान ही, पृथ्वी मानव सभ्यता का मिलन नायजो समुदाय से होता था। कुछ इंसानी बच्चे पैदा होते। उन्हे या तो मार दिया जाता या फिर जय प्रहरी के नारे लगवाए जाते। कुछ पूर्ण अथवा अल्प नायजो बनते, उन सबको अलग सभा में बिठाकर अपनी परम्परा में ढालते। कुल मिलाकर नायजो का सब कुछ चकाचक चल रहा था।

 
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nain11ster

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Aise bol ke ju ham readers ki ummido ki aisi ki taisi kar rho ho 😭😭😭😭
Koi nahi aap mujhe likhne dijiye bus.... Kahani ke storyline ko badlana kahani par bura prabhav dal sakta hai... Ab tak mera likha hua pasand aaya ho to aage bhi aayega mujhe vishwas hai
 

Devilrudra

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भाग:–164


भयानक तूफान सा उठा था। एक ही पल में पूरी जगह जलनिमग्न हो गयी। जिस पहाड़ पर यह भीषण हत्याकांड चल रही थी, वह पहाड़ बीच से ढह गयी। ऐसा लग रहा था, दो पहाड़ के बीच गहरी खाई सी बन गयी हो। निमेषदर्थ, चिचि और माया तीनो ही महासागर में उठे सुनामी जैसे तूफान में कहां गायब हुये पता ही नही चला। निमेषदर्थ के हाथ से अमेया कहां छूटी उसे पता भी नही चला। तूफान जब शांत हुआ तब उसी के साथ पूरा माहौल भी शांत था और अल्फा पैक के मिटने के सबूत भी पूरी तरह से गायब।

घनघोर अंधेरे के बीच तकरीबन 100 योगी और संन्यासी उस बड़े से भू–भाग की छानबीन करने पहुंच चुके थे। पहले की भांति महज 40 या 45 किलोमीटर का यह टापू नही रह गया था, बल्कि पूरा एक महाद्वीप था। यादि किसी के पास उच्च स्तर की सिद्धियां न हो, फिर इस महाद्वीप में पहुंचना नामुमकिन था। क्योंकि पूरा भू–भाग का मार्ग एक तिलिस्मी जाल था, जो महासागर की गहराइयों से होकर जाता था। पहले की तरह अब ये टापू नही रह गया, जो महासागर के इस हिस्से में सफर करते हुये आसानी से दिख जाये...

आपातकालीन संदेश मिलते ही, महज कुछ घंटे में अपस्यु अपनी पूरी टीम के साथ वहां पहुंच चुका था। अपस्यु आते ही सबसे पहले कॉटेज गया और वहां के चारो ओर का मुआयना करने के बाद सर्च टीम के साथ निकल गया। छानबीन करते हुए एक टीम उसी जगह के आस पास पहुंच गयी, जहां आर्यमणि और उसके पूरे पैक के साथ यह निर्मम घटना हुई थी। हालांकि कुछ घंटे पहले और अब में बहुत अंतर था। दक्षिणी हिस्से के जिस पहाड़ी पर कांड हुआ था, वहां अब बड़ा सा झरना था। घटनास्थल के 200 मीटर के दायरे वाले पहाड़ को ही पूरा महासागर में घुसा दिया गया था। देखने से ऐसा लग रहा था जैसे 2 बड़े पर्वत के बीच कोई बड़ा सा झील हो।

खोजी दस्ते में ओजल और निशांत भी थे, जो वहां के हवा को महसूस कर सकते थे। ओजल यूं तो पूरे रास्ते रोती हुई ही आयी थी। ब्लड पैक से जुड़े होने के कारण यहां हुई घटना को वह दूर से महसूस कर चुकी थी। बस मन में एक छोटी सी आस बंधी थी, जो इस घटनास्थल पर पहुंचकर वो भी समाप्त हो गयी। वहां अल्फा पैक का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था। ओजल वहीं बैठकर, बिलख–बिलख कर रोने लगी।

मौके पर अपस्यु भी पहुंचा। हवा को वह भी महसूस कर सकता था। अपनों को खोने का क्या गम होता है, अपस्यु भली भांति समझता था। कोई दिलाशा, कोई भी बात अपनों को खोने के गम से उबार नही सकती थी, इकलौता वक्त ही होता है, जो किसी तरह जीना सिखा देता है। ओजल के लिये बहुत कठिन वक्त था। लगभग 6 दिन तक अल्फा पैक की लाश ढूंढने की प्रक्रिया चलती रही, लेकिन किसी के भी पार्थिव शरीर का कहीं कोई निशान तक नही था।

संन्यासी शिवम् अपने कुछ शिष्यों के साथ वहीं आवाहन पर बैठे थे। सातवे दिन विचलित होकर सबसे पहले विजयदर्थ उनके पास पहुंचा.... “हे संन्यासी तुम कौन हो और क्यों इतने कठिन योजन पर बैठे हो। जानते भी हो, मैंने यदि तुम्हारी बात न सुनी तो तुम और योजन पर बैठे जितने भी संन्यासी है सब मर जायेंगे।”

संन्यासी शिवम्:– हे महासागर नरेश, मुझे विश्वास है कि आप मेरी बार सुनेगे। मेरा मन विचलित है। मेरे गुरु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे थे किंतु उनका कोई पता नहीं। उनके साथ एक नवजात शिशु भी है।

विजयदर्थ:– आर्य और उसका पैक। क्या हुआ है उनके साथ...

संन्यासी शिवम:– आप जवाब दीजिए। आपने भरोसा दिलाया था कि गुरु आर्यमणि और उसके परिवार को कोई छू भी नहीं सकता।

विजयदर्थ:– संन्यासी पहले बताए कि हुआ क्या है? आपको भी पता है कि मैं स्थल के मामले में कुछ नही कर सकता।

संन्यासी शिवम्:– आपने ही आश्वाशन दिया था न... इस भूमि पर कोई बाहरी नही आ सकता।

विजयदर्थ:– मैने आश्वाशन दिया था, लेकिन फिर भी मेरी जानकारी के बगैर आप और आपके सभी लोग यहां पहुंच गये ना। बिना किसी सिद्ध प्राप्त इंसान की मदद से यहां कोई बाहरी नही आ सकता।

संन्यासी शिवम्:– और यदि कोई आपके घर का मिला हो?

विजयदर्थ:– मेरे घर का भी कोई चाह ले तो भी बिना किसी सिद्ध पुरुष की मदद से यहां कोई बाहरी नही आ सकता क्योंकि ये पूरा क्षेत्र नागलोक का है ना की ये महासागर का कोई टापू है। अब आप पहले मुझे बताएंगे की आर्य और उसके परिवार के साथ हुआ क्या है? अमेया कहां है? नाभीमन महाराज कहां हो? महाराज कहां हो?

नभीमन, वहां आते... “ये संन्यासी मुझे कबसे बुला रहा था मैं नही आया। क्या तुम्हे पता नही की मैं किसी इंसान के सामने नहीं आता।

विजयदर्थ:– महाराज आप अभी अपने नियम थोड़े किनारे रखिए। यहां आर्य और उसका पूरा परिवार गायब है। अमेया का कोई पता नहीं चल रहा।

नभीमन:– गुरुवर गायब हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?

नभीमन अपनी आंख मूंदकर वहीं भूमि पर बैठ गया। आधे घंटे तक उसका फन चारो ओर घूमता रहा। आधे घंटे बाद नाभिमन अपनी आंखें खोलते.... “अमेया कहीं सुरक्षित है। यहां 3 लाशें गिरी थी चौथा मरने की कगार पर है। एक समुद्री मानव के साथ 7 परिग्रही, 1 रीछ स्त्री महाजानिका का साधक भी था। उसी साधक ने रीछ स्त्री के दिव्य खंजर को एक परिग्रही के हाथ में दिया था। सभी हत्याएं उसी खंजर से हुई थी। अलौकिक माया का प्रयोग भी किया गया था और शून्य काल का अंतर्ध्यान भी हुआ है।

सन्यासी शिवम्:– हे पाताल लोक के शासक साफ शब्दों में गुरु आर्यमणि और उनके परिवार के बारे में बताइये।

नभीमन:– मैं बिते कल में इस से ज्यादा नही देख सकता। ऐसा लग रहा था पूरे भू–भाग पर किसी ने मायाजाल फैलाया था। जरूर ये तांत्रिक अध्यात का काम होगा। वह यहां आया होगा और अपना जाल फैलाकर अंतर्ध्यान हुआ होगा।

विजयदर्थ:– महाराज वो सब तो समझे किंतु आर्य और उसका परिवार...

नभीमन:– मेरा दिल भारी हो रहा है। शायद 4 में से 3 की मृत्यु हो चुकी है और कोई एक जीवन और मृत्यु के बीच में है। इस से ज्यादा अभी मैं कुछ नही कह सकता...

काफी देर तक वहां मंथन होता रहा। अपस्यु अपने लोगों के साथ भी पहुंचा। उसने भी पूरी बात सुनी लेकिन कोई एक ऐसी बात नहीं थी जो दिल को संतुष्ट कर सके। न तो लाश मिल रहे थे न ही अल्फा पैक के कोई भी निशान। सातवे दिन सभी मायूस होकर वापस लौट आये।

टापू पर हुये कुरूर नरसंहार के 2 दिन बाद... मुंबई के एक गुप्त स्थान पर मनमोहक जश्न का माहोल चल रहा था। जिस्म की नुमाइश करती थिरकती हुई कमसिन और जवान लड़कियां। मंहगी जाम को अपने अदाओं से परोसती हुई दिलकश औरतें। और हाथो में जाम लहराते तात्कालिक प्रहरी के आला हुक्मरान। आर्यमणि और उसके पैक के सफाया के बाद, जिस्म और शराब का पूरा मनोरंजन चल रहा था। आज से कुछ वर्ष पूर्व और उसके कुछ वर्ष पूर्व भी, ऐसा ही जश्न का माहोल था, क्योंकि उस वक्त भी इन्होंने आर्यमणि की तरह सात्त्विक आश्रम के गुरुओं का शिकार करवाया था। हां लेकिन जितना नाक में दम आर्यमणि ने किया, उतना किसी से नहीं किया था।

प्रहरी में अपेक्स सुपरनैचुरल का राज था, जिनमे ज्यादातर नायजो समुदाय के लोग थे, जो किसी दूर, दूसरे ग्रह से पृथ्वी पर आये थे। ब्रह्मांड में जितने भी ग्रहों पर नायजो समुदाय के विषय में जानकारी थी, वह कुछ इस प्रकार थी..... “यह समुदाय काफी विकसित है और प्रकृति प्रेमी भी। आंखों से इनकी दिव्य रौशनी निकलती है जो इनके मस्तिष्क के अधीन होती है... अर्थात अगर नायज़ो समुदाय वाले किसी को घायल करने की सोच रहे तो आंखों की रौशनी केवल घायल करेगी... यदि मन में चल रहा हो की केवल डराना है, तब आंखों की रौशनी से केवल भय पैदा होगा।” बस यही इतनी जानकारी हर किसी के पास थी। दूर ग्रह से आये ये नायजो समुदाय वाले और क्या कर सकते थे, यह पूरा किसी को नही पता था, सिवाय अल्फा पैक के, जिन्होंने इन्हे काफी करीब से जाना था।

पुराने पन्नों को यदि पलटा जाए तब इतिहास में एक बहुत ही धूर्त साधक था, शूर्पमारीच। शूर्पमारीच जब अपनी नई सिद्धियों के लिये नायजो समुदाय के पास पहुंचा था, तब एक संधि हुई थी। नायजो समुदाय वालों ने शूर्पमारीच को जड़ी–बूटी के धुएं का ऐसा प्रयोग बताया था, जिसके माध्यम से वह किसी के दिमाग की यादों को जितना चाहे उतना मिटा सकता था। इसके अलावा किसी भी सिद्ध प्राप्त इंसान हो या अलौकिक जन्म लिया अवतार, उन्हे एक जगह बांधकर विवश करने की पूर्ण विधि नायजो समुदाय ने सिखाकर उसे इन कलाओं में निपुण किया था। बदले में नायजो ने अपनी गंभीर समस्या का इलाज मांगा था।

नायजो समुदाय उस दौड़ में विलुप्त की कगार पर खड़ा था। नर और मादा के मिलन से एक भी बच्चा पैदा नहीं हो रहा था। तब शूर्पमारीच ने नायजो समुदाय को ब्रह्मांड के 5 हिस्सों में बसाया था.… विषपर, हुर्रियंट, शिल्फर, गुरियन और पृथ्वी... यह सभी ग्रह विशाल फैले ब्रह्मांड के 5 हिस्से में थे। नायजो को इन सभी ग्रहों पर बसाने के उपरांत, चुपके से अन्य समुदाय के स्त्री और पुरुष को पकड़कर लाते और उनसे नए पीढ़ी पैदा करने की तैयारी करते।

शूर्पमारीच और नायजो का संधि साथ–साथ चल रही थी। शूर्पमारीच को सब सीखने में लगभग 3 वर्ष लगे, और इतने वक्त में कई बच्चों का जन्म हुआ। हां लेकिन सभी नवजात में नायजो के अनुवांशिक गुण नही आये। जिनमे भी नायजो समुदाय के गुण नही आये उनका जीवन आगे नही बढ़ा। बस यही एक भूल जो नायजो समुदाय पृथ्वी पर कर गये, नवजातों की हत्या। यह खबर पहले किसी राजदरबार में पहुंची और जब वो लोग इन तिलस्मी नायजो समुदाय से निपट नही पाए फिर योगियों और साधुओं की मदद मांगी।

उसी दौर से सात्त्विक आश्रम और नायजो के बीच जंग छिड़ी हुई थी। हां लेकिन सही मायनो में नायजो समुदाय की जीत तब हुई, जब धूर्त शूर्पमारीच ने पूरे सात्त्विक आश्रम को ही बर्बाद कर दिया। फिर तो जैसे पृथ्वी पर नायजो समुदाय का एकाधिकार हो चुका था। हालांकि शूर्पमारीच एक ऐसा रहस्य था, जिनसे नायजो समुदाय भी खौफ खाता था। ऐसा नही था कि सात्त्विक आश्रम कमजोर था या उन्हे हरा पाना आसान था। किंतु शूर्पमारीच के पास जितनी सिद्धि प्राप्त थी, उतना ही वो धूर्त भी था। खैर उन दिनों शूर्पमारीच और सात्त्विक आश्रम के द्वंद में सबसे ज्यादा फायदा नायजो वालों ने ही उठाया था।

शूर्पमारीच की अहम जानकारी उस अनंत कीर्ति के पुस्तक में भी थी। सात्विक आश्रम और शूर्पमारीच के प्रथम द्वंद में, शूर्पमारीच को लगभग समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने ही अनंत कीर्ति की पुस्तक का निर्माण किया था। पुस्तक के निर्माण के साथ ही प्रहरी समाज भी बना था, जिसका मुखिया उस पुस्तक में, विकृत जीव का विवरण और उन्हे कैसे रोका या समाप्त किया जाए, उसे वर्णित करते थे। प्रहरी समुदाय पर शुरू से नायजो समुदाय की पैनी नजर थी। जैसे ही सात्त्विक आश्रम बर्बाद हुआ, सबसे पहले प्रहरी समुदाय ही निशाना बना।

बहरहाल अतीत के पन्नो से लेकर तात्कालिक वर्तमान परिस्थिति में एक बात सामान्य थी, नायजो समुदाय पृथ्वी छोड़कर नही जाना चाहते थे। इसका प्रमुख कारण यह भी था कि यहां की नई पीढ़ी पहले से ज्यादा कुशल और उनका दीमाग उतना ही विकसित होता था। वर्तमान समय में जश्न में डूबा दूर ग्रह वाशी यह सुनिश्चित कर बैठा था कि उसने सात्त्विक आश्रम के होने वाले गुरु आर्यमणि की लीला समाप्त कर दी थी। अब वापस उस आश्रम को फलने फूलने में वक्त लगेगा.….

उसी महफिल के एक कोने में पलक भी थी, जो आर्यमणि और अल्फा पैक की खबर सुनकर कभी सदमे में रहती तो कभी उसे सब भ्रम लगता। शायद आर्यमणि नही मर सकता ऐसा उसे अंदर से यकीन था, लेकिन माया और विवियन का विश्वास देख पलक के अंदर का विश्वास डोल रहा था। पलक खुद में क्या महसूस कर रही थी, इस बात को तो वो खुद भी समझ नही पा रही थी। इसी बीच सुकेश भारद्वाज पलक के करीब पहुंचते.… "क्या हुआ तुम आज बुझी–बुझी सी हो? कहां गया पलक का जोश?"

पलक:– काका मुझे एक आखरी बार आर्यमणि से मिलना था। जब वो मर रहा होता तब उस से नजरें मिलानी थी..

सुकेश:– विवियन जैसे मारक के हाथ से आर्यमणि और उसका पैक बच चुका था। उसके शिकार के लिए माया को खुद आना पड़ा था। वहां तुम्हारा न होना ही अच्छा था। वरना आर्यमणि को जरा भी भनक लगती तब वह फिर बचकर भाग जाता...

"क्या बातें हो रही है"…. दूर ग्रह से आया एक परिग्रही जो रिश्ते में माया का भाई और पलक को दिल से पसंद करने वाला, मायस्प, ने पूछ लिया... पलक फिकी मुस्कान देती मायस्प के साथ उस पार्टी से निकल गयी। मायस्प के साथ चलते हुये भी बुझे मन में एक ही ख्याल चल रहा था... "हे ईश्वर, हे विनायक आर्यमणि और उसके पैक को सुरक्षित रखना”...

शायद पलक ये मानने से इंकार कर चुकी थी कि अल्फा पैक के साथ कोई घटना भी हो सकती थी। लेकिन इन सबमें सबसे बुरा हाल तो कहीं और ही था। सबसे पहले खबर भूमि को मिली। भूमि, पिछले कुछ वक्त से क्या कर रही थी, उसे होश ही नहीं, और जब होश आया फिर... दरअसल आर्यमणि के भागते ही भूमि के पति और नायजो समुदाय का एक होनहार मुखिया जयदेव ने भूमि को अपने बस में कर लिया था। संन्यासियों के संपर्क में आने के पूर्व ही जयदेव यह कांड कर चुका था।

भूमि को सम्मोहित कर अपने वश में करने के बाद ही नायजो को भूमि, आर्यमणि और कुलकर्णी परिवार के बीच की सारी बातें पता चली। नायजो का एक प्रमुख चेहरा सुकेश और मीनाक्षी भारद्वाज तब सकते में आ गये, जब उन्हे पता चला उसकी खुद की बेटी भूमि को उनपर शक है। भूमि के जरिए ही नायजो समुदाय को टर्की की शादी का पता चला था।

मुंबई में जश्न समाप्त करने के बाद जयदेव सीधा नागपुर पहुंचा। सबसे पहले तो उसने भूमि का सम्मोहन हटाया। जबतक भूमि सम्मोहित थी, तबतक उसे होश कहां की वो क्या कर रही थी, लेकिन जब सम्मोहन हटा तब सम्मोहित होने के दौरान भूमि ने जो भी की थी, हर वाक्या मानो सीने में नासूर जख्म बनकर उभर रहा था। खुद से घृणा होने लगी थी। भूमि, जयदेव का कॉलर पकड़कर उसे खींचकर लगातार थप्पड़ लगाती रही और जयदेव हर थप्पड़ के बाद जोड़ से हंसकर भूमि की चिढ को और बढ़ा रहा था।

अचानक ही जयदेव ने भूमि के पेट पर एक लात जमा दिया। काफी तेज लात लगी और भूमि कर्राहती हुई नीचे बैठ गयी। जयदेव भूमि का बाल पकड़कर, उसके चेहरे को ऊपर करते.… "तुझे बड़ा शौक था न जानने की... बहुत चूल मची हुई थी कि क्यों सुकेश और मीनाक्षी भारद्वाज को एक छींक तक नही आती? आखिर सरदार खान के बस्ती में ये लोग करने क्या जाते थे? क्यों ये लोग वेयरवुल्फ को बीस्ट वुल्फ बना रहे थे? तुझे ही शौक था न, नागपुर प्रहरी समूह अलग कर के हर बात पता लगाना की... तो नतीजा भुगतने को क्यों तैयार न थी? क्यों तुझे यह इल्म न हुआ की हम तुम्हारी पहुंच से कहीं ऊपर है? हम आसमान जितना ऊपर है और तुम सब एक कीड़े। तु जिस राह पर चल रही थी उसका एक छोटा सा परिणाम भुगतने पर इतना दर्द। हर किसी के दिल में यह एहसास रहे कि हमारे पीछे आने वालों का क्या अंजाम होता है... चल तेरे दर्द पर एक और छोटा सा घाव देता हूं... आर्यमणि और उसके पूरे पैक का सफाया हो गया है... उसे भी हमारे बारे में जानने की कुछ ज्यादा ही चूल मची हुई थी"…

जयदेव अपनी बात कहकर भूमि को 2 थप्पड़ लगाया और उस घर से निकल गया। भूमि पहले से हताश थी, ऊपर से आर्यमणि की खबर। भूमि पूर्ण रूप से टूट चुकी थी। बिलख–बिलख कर बस रोती रही। आर्यमणि की खबर उसके माता–पिता तक भी पहुंची। हर कोई जैसे सदमे में चला गया था। बहुत बुरा दौर से सभी गुजर रहे थे।

किसी अपने के खोने का गम नासूर होता है। सदमे से लोग उबर नहीं पाते। इकलौता वक्त होता है जो जीना सिखा देता है। आर्यमणि की मौसेरी बहन भूमि, पिता केशव कुलकर्णी और माता जया कुलकर्णी पर तो जैसे बिजली गिर गया था। कमजोर तो खैर ये तीनों भी नही थे। यादि मुकाबला खुद के जैसे सामान्य इंसानों से होता, फिर तो तीनो ही काफी थे लेकिन भूमि, जया और केशव को भी पता नही था कि किनसे उलझे थे...

आर्यमणि के गम में ऐसे बौखलाए थे कि तीनो ने मिलकर सुकेश, मीनाक्षी, उज्जवल, अक्षरा, जयदेव समेत 20 लोगों के मारने की पूरी प्लानिंग कर चुके थे। तय यह हुआ था कि सबको एक ही वक्त पर मारेंगे... और वह वक्त था, चित्रा और माधव कि शादी। शादी के पूर्व निशांत भी नागपुर पहुंचा किंतु उसने आर्यमणि के विषय में चित्रा को कुछ नही बताया। वहीं न सिर्फ चित्रा बल्कि उसकी मां निलंजना और पिता राकेश नाईक भी पूछते रहे। हर सवाल के जवाब में निशांत बस इतना ही कहता कि जबसे आर्य की शादी हुई है, कोई खबर नही की कहां घूम रहा है।
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Devilrudra

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भाग:–165


लगभग 1 महीने का पूरा वक्त था और सीने में आग भड़क रही थी। शादी की तैयारियों के साथ ही सभी को मारने की तैयारी भी चल रही थी। शादी लोनावाला, महाराष्ट्र, के किसी रिजॉर्ट से हो रही थी। जैसा शुरू से होता चला आया था, सुकेश और उज्जवल भारद्वाज आस–पास ही ठहरे थे, और उन दोनो के आस–पास उनके कुछ सहयोगी। बस एक जयदेव था जिसका कमरा नंबर पता नही चला था। खैर, किसी का कमरा नंबर पता हो की नही हो लेकिन तैयारियां पूरी थी। शादी के एक रात पूर्व भूमि को जयदेव भी दिख गया। दोनो की नजरें एक बार टकराई और दोनो अलग रास्ते पर चल दिये।

रात के 2 बज रहे थे, जब असली खेल शुरू हुआ। कहते है न, आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास में धागे मात्र का फर्क होता है। यहां तो नायजो समुदाय में विश्वास और आत्मविश्वास से कहीं ऊपर सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ होने की भावना थी। इसी भावना के चलते यह विश्वास पनपा की मेरा कौन क्या बिगड़ लेगा। हालांकि सुरक्षा के सभी कड़े इंतजामात थे, लेकिन एक आईएएस केशव कुलकर्णी का दिमाग और पूर्व के 2 घातक शिकारी, भूमि और जया, शिकार पर निकले थे। सुरक्षा के जितने भी इंतजाम थे वो सब फिर क्या कर लेते...

रिजॉर्ट का वो हिस्सा जहां सुकेश और उज्जवल ठहरे थे, रात भर के जश्न के बाद घोड़े बेचकर सो रहे थे। सुकेश और मीनाक्षी, उज्जवल और अक्षरा के अलावा वहां आस–पास के स्वीट्स में कौन–कौन थे, ये भूमि, जया और केशव को नही पता था। बस एक ही बात पता थी, बदला, बदला और बदला... और इंतकाम की आग ऐसी भड़की थी, उसका नजारा रात के 2 बजे सबको पता चल गया।

न कोई विस्फोट हुआ और न ही कोई गोली चली। एसी के डक्ट से चली तो एक गैस, और फिर जो नजारा सामने आया वह केशव, जया और भूमि को सुकून देने वाला नजारा था। हालांकि गैस की गंध से सोए लोग भी जाग चुके थे, लेकिन जागने में थोड़ी देर हो चुकी थी। जबतक जागकर समझते की भागना था, उस से पहले ही एक छोटी सी चिंगारी और चारो ओर आग ही आग। एसी कमरा यानी पूरा बंद कमरा। ऊपर से बाहर निकलने वाला दरवाजा भी बाहर से बंद। चिंगारी उठते ही मानो रिजॉर्ट के उस हिस्से के हर स्वीट के अंदर एटम बॉम्ब जैसा विस्फोट के साथ आग फैला हो। पलक झपकने के पूर्व सब सही और पलक झपकते ही चारो ओर आग ही आग।

अंदर कई हजार डिग्री के तापमान तक कमरे झुलसने के बाद बाहर धुवां दिखने लगा। एक गार्ड ने जैसे ही किसी तरह एक स्वीट का दरवाजा खोला, धू करके आग का बवंडर दरवाजा के रास्ते इतनी दूर तक गया की वो गार्ड भी उसके चपेट में आ गया। किसी तरह उस गार्ड को बचाकर ले गये और यह नजारा देखकर दूसरे गार्ड की फट गयी। फिर किसी की हिम्मत नही हुई, किसी दरवाजे को खोलने की। कहीं दूर से आग और धुवां का मजा लेते तीनो, केशव, जया और भूमि अंदर से काफी खुश हो रहे थे।

भूमि:– अरे अभी तो धुवां ही नजर आ रहा, तंदूर प्रहरी कब नजर आएंगे.…

केशव:– हां मैं भी उसी के इंतजार में हूं। यादि कोई बच जायेगा तो उसके लिए व्यवस्था टाइट तो रखे हो न...

भूमि:– मौसा पूरी व्यवस्था टाइट है... किसी को बचने तो दो...

जया:– नही जो बचेंगे वो उनकी किस्मत... अब हम दोबारा हमला नही करेंगे, बल्कि यहां से सुरक्षित निकलने की तैयारी करो। अभी अपने बच्चे का पूरा इंतकाम लेना बाकी है। बदला लेने से पहले मैं मर नही सकती...

केशव:– जैसे तुम्हारी मर्जी... चलो फिर पास से इसका नजारा लेते है.…

तीनो आग वाले हिस्से में पहुंच गये। मौके पर अग्निशमन की गाड़ियां पहुंच चुकी थी। फायर फाइटर्स अपने काम में लग चुके थे। ये तीनों भी अब आग बुझने और जले हुये तंदूर प्रहरियों के बाहर आने का इंतजार करने लगे।

"बहुत खूब, तो अब भी तुम लोगों में हिम्मत बाकी है?"… भूमि के करीब खड़ा जयदेव धीरे से कहा...

भूमि:– कहीं मजलूम तो नही समझ रखे थे न जयदेव..

जयदेव:– न ना.. तुझे तो बस जरिया समझ रखा था, लेकिन निकली फालतू। सारा क्रेडिट तो वो माया ले गयी। तुझपर सम्मोहन करने का कोई फायदा नही निकला।

भूमि:– अभी तेरी बातों पर मुझे कोई प्रतिक्रिया देने की जरूरत नही। बस तू जो बोला था वह याद आ गया... तुम लोग आसमान से भी ऊंची रेंज वाले लोग हो ना। शायद खुद को अपेक्स सुपरनैचुरल कहलवाना ज्यादा पसंद करते हो... एक बात बताओ, जिस समुदाय का बिल्ड अप इतना बड़ा था, उन्हे इस आग में कुछ हुआ तो नही होगा ना.…

जयदेव:– तू गलत खेल गई है...

भूमि:– मां बाप कभी मां बाप थे ही नहीं। पति कभी पति नही था। एक प्यारा भाई था वो बचा नही... अब तो ले लिया पंगा जयदेव... गलत सही जो खेलना था, खेल लीया। अब उखाड़ ले जो उखाड़ना है...

जयदेव:– सुबह के उजाला होने से पहले तू क्या, इस जगह पर आर्यमणि के जितने भी चाहनेवाले उसके करीबी है, सब मरेंगे...

भूमि:– पंगा किसी से लो तो उसके परिणाम के लिए भी तैयार रहो, ऐसा ही कुछ तू कहकर गया था न... खुदको क्या भगवान समझता है, जो तेरे पंगे का कोई जवाब नही देगा... साला खुद पर आयी तो बिलबिला रहा है... सुन बे बदबूदार मल… तेरे गांड़ में दम हो तो सुबह होने से पहले हमारी लाश गिरा कर दिखा देना... अब मुझे तेरे भाई बंधु का तंदूर देखने दे... तु तबतक जाकर हमारे मर्डर की तैयारी कर..

जयदेव, अपनी उंगली दिखाते.… "तुझे तो मैं छोडूंगा नही"..

भूमि:– जो भी है करके दिखा चुतिए, बोल बच्चन मत दे। वैसे एक जिज्ञासा है... क्या आग में तुमलोग भी जलते हो, या फिर जो खुद को इतना ऊंचा बताते है, वो अमर बूटी खाकर आया है, जो आग भी उसका कुछ नही बिगाड़ सकती...

जयदेव घूरती नजरो से देखने लगा। इस से पहले की कुछ कहता, अग्निशमको द्वारा आग में फंसे लोगों को बचाकर बाहर निकाला जा रहा था। सबसे पहले सुकेश भारद्वाज ही बाहर आया... पूरा का पूरा जला हुआ... देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो अगर सुकेश को पकड़ ले तो हाथ में उसका पूरा भुना मांस चला आयेगा...

एक–एक करके कुल 22 लोगों को निकाला गया। 22 में से 17 की हालत गंभीर और 5 लोगों को मृत घोषित कर दिया गया। मरने वालों में से 2 बड़े नाम, अक्षरा भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज थे। लगभग सुबह के 5 बज रहे थे। कौतूहल से भरा माहोल शांत होने को आया था। दूर खड़े तमाशा देख रहे लोग अब धीरे–धीरे छटने लगे, केवल 4 लोगों को छोड़कर…. भूमि, जया, केशव एक टीम और दूसरी ओर जयदेव...

मृत और गंभीर रूप से घायलों का ब्योरा जैसे ही आया, भूमि रौबदार आवाज में.… "हम फलाना है, हम चिलाना है... मासी खुद को तुर्रम खां समझने वालों को परख लिया.. आग में उनके भी मांस ठीक वैसे ही जले, जैसे हमारा दिल जल रहा है। चलो स्कोर बुरा तो नहीं। 5 के नरक लोक का टिकट कट गया।"

जया:– भूमि, कोई तो कह रहा था, सूरज निकलने से पहले हमारी लाश गिरा देगा... घंटे भर में तो सूरज निकल भी आएगा...

केशव:– सुनो बे, तुम्हे जो करना था वो कर चुके... अब हमारी बारी है... शिकार करने वाले खुद भी शिकार हो सकते हैं, यह बात हम तो कभी नही भूले, लेकिन लगता है ये पाठ तुम नीच लोगों ने नही पढ़ा... कोई बात नही अभी साक्षात गुरुदेव केशव कुलकर्णी तुम्हे ये पाठ रटवा देंगे... बस देखते जाओ... चलो सब यहां से...

इतना कहकर वहां से तीनो निकल लिये। उन तीनो को मारने का इरादा रखने वाला जयदेव तुरंत ही अपने लोगो को इकट्ठा किया। बाहर निकला तो था तीनो को मारने, लेकिन हल्के अंधेरे और हल्के उजाले वाले भोर की बेला में जयदेव को काल के दर्शन हो गये। सात्त्विक आश्रम के 6 संन्यासियों के साथ ओजल उनके रास्ते में खड़ी थी।

जयदेव, ओजल को सामने देख, अपना कारवां रोकते.… "ब्लड पैक की एक जिंदा बची अल्फा। अच्छे वक्त पर आयी हो। हम अभी आर्यमणि के सभी चाहने वालों को खत्म करने जा रहे थे। तु अकेली जिंदा रहकर क्या कर लेती... खत्म करो इन सबको जल्दी..."

जयदेव के लिये शायद यह वक्त बुरा चल रहा था। जयदेव ने अपनी बातें समाप्त किया और अगले ही पल निशांत का एक जोड़दार तमाचा पड़ गया। इधर निशांत को तमाचा पड़ा और उधर जयदेव के साथ आये गुर्गों को कब ओजल काटकर जमीन पर उसके टुकड़े बिछा दी, जयदेव को पता भी नही चला। और जब तक पता चला तब तक लाशें गिर चुकी थी।

जयदेव लगातार आंखों से रौशनी निकालता रहा लेकिन वायु विघ्न मंत्र को साधने वालों पर फिर कहां ये नायजो के आंखों की लेजर काम आती है। अगले ही पल वहां चारो ओर धुवां। धुएं के अंदर जयदेव को शुद्ध रूप से लात और घुसे पर रहे थे। इतने कड़क लतों और घुसो की बारिश हो रही थी कि उसका हीलिंग प्रोसेस लुल हो गयी।

किसी आम इंसान की तरह जयदेव भी बेहोशी हो गया और बेहोशी के बाद जब आंखें खुली तब चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा था। वह जगह इतनी अंधकार थी कि आंखों के लेजर की रौशनी तक से कुछ नही देखा जा सकता था। जयदेव कई दिनों तक बाहर निकलने की कोशिश करता रहा, पर चारो ओर ऐसी दीवारें बनी थी जो न तो बाहुबल से टूटा और न ही नजरों के लेजर से।

अंत में अहंकारी नायजो समुदाय के घमंडी जयदेव खुद में बेबस सा महसूस करने लगा। जब बेबसी का दौड़ शुरू हुआ उसके पहले दिन जयदेव चींखते चिल्लाते यही कहता रहा की यहां से निकलकर सबसे पहले तुम्हारी लाश गिराऊंगा। फिर कुछ दिन बीते। बेबसी ने उनके जीवन में ऐसा पाऊं पसारा की बाद ने गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे... "मुझे जाने दो। क्यों यहां रखे हो। तुम्हे क्या चाहिए कुछ तो बोलो"…

खैर आवाज पहले दिन वाला अहंकारी हो या फिर हिम्मत टूटने के बाद बेबस जैसा, दोनो ही परिस्थिति में जयदेव को बाहर से कहीं कोई जवाब नहीं मिला। मिला तो सिर्फ उसे अंधेरा।... घोर अंधेरा था। उस अंधेरे में खाने के लिये नाक का इस्तमाल करना पड़ता था। किसी तरह सूंघ कर अपने खाने तक पहुंचते थे।

जयदेव गायब हो चुका था। उसकी कोई खबर नहीं मिली। हाई टेबल प्रहरी को चलाने वाले नायजो सब जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। नायज़ो हाई टेबल पर ऐसा हमला हुआ था मानो उनकी कमर टूट गयी हो। आर्यमणि मर चुका था और उसके मरने के बाद भी जब नायजो का शिकर हो गया, इस बात से भिड़ पागल बनी हुई थी। मीटिंग विवियन ले रहा था और सामने लाखों की भिड़।

विवियन:– 12 मई की सुबह काली थी। इस आगजनी को 3 महीने हो गये। हमारे 5 लोग तत्काल मारे गये। इलाज के दौरान 6 लोगों की मौत हो चुकी है। जो 11 लोग अभी बचे है, वो भी पता नही कब तक ठीक होंगे या कभी ठीक होंगे भी या नही.…

भीड़ से एक आवाज:– ये सुनने हम यहां नही आये। जिन कीड़ों ने ये काम किया था, उन्हे जिंदा जलाया की नही..

पलक, अपनी जगह से खड़ी होती... "उन्हे मारने के लिए जयदेव 6 लोगों के साथ गया था, लेकिन पिछले 3 महीने से न तो आग लगाने वालों का पता लगा और न ही जयदेव का"…

भीड़ से कोई... "तुम सब नकारा हो गये हो। क्या अब कोई हमसे भी ऊपर है?

विवियन:– यहां आपस में झगड़ने से कोई फायदा नही है। ये वक्त आपस में लड़ने का नही...

भिड़ से कोई एक:– पहले तो वो आर्यमणि था, जिसने जब चाहा हमारा शिकार कर लिया। वो गया तो उसकी बहन और उसके मां–बाप। न जाने कहां छिपे है। अंधेरे से बाहर निकलते है और सबको जलाकर अंधेरे में फिर गायब। क्या हम उनके लिये इतना आसान शिकार है?

विवियन:– मैं आप सबकी तकलीफ को समझता हूं। हमारे लोग उन सबकी तलाश में जुटे है, तब तक आप लोग धैर्य बनाकर चलिए और जिसे भी वो लोग दिख जाये मारिए पहले सवाल बाद में कीजिए।

विवियन इतना ही बोला था कि पीछे से उसके कंधे पर हाथ पड़ा। मुड़कर देखा तो माया खड़ी थी।। माया पूरे भीड़ को हाथ दिखाती.… "तुम्हारे लीडर्स के घायल होते ही तुम्हारा संगठन ही कमजोर सा लग रहा। सब शांत रहेंगे... पहली बार हम सामने आकर किसी को मारे थे। उसका कुछ तो परिणाम भुगतोगे या नही... जिन्होंने हम पर हमला किया, उन्होंने अपने पूरे क्षमता के साथ हमला किया। हमे भी पता नही था कि आम से दिखने वाले ये लोग कितना नुकसान कर सकते है। लेकिन देखो, तुम्हारे सभी नेताओं को ही लिटा दिया। इसलिए 2 बात हमेशा याद रहे... पहला की खुलकर कभी सामने मत आओ और यदि सामने आते भी हो तो जबतक सभी मुसीबत खत्म न हो जाये, तब तक आंखें खुली और दिमाग हमेशा खतरे को साफ करने के पीछे लगाओ"…

भीड़ से एक... तो क्या ये इंसान इतने ताकतवर हो गये की अब हमारा शिकार करेंगे?

माया:– ताकत की बात कौन कहता है। ताकत से लड़े होते तो क्या कोई मरता भी। शिकार करने की तकनीक हमने किनसे सीखी है, इंसानों से ही। घात लगाकर पूरे धैर्य पूर्वक शिकार करना। मौत कहां से चली आयी किसी को पता नही। तो हां अपनी शारीरिक क्षमता पर इतना विश्वास न जताओ क्योंकि इंसान क्या कर सकते है उसका प्रत्यक्ष उदाहरण सामने है... जिन लोगों ने हमे चोट दिया वो सब शिकारी थे और उन्हें पता था कि किसने उनके प्रियजनों को मारा था। ये बात तो तुम्हारे लीडर्स भी जानते थे कि जिन लोगों ने हमला किया था, उन्हे पहले से तुम्हारे लीडर्स पर शक था। लेकिन कहते है न विनाश काले विपरित बुद्धि... वो लोग हमारा क्या बिगड़ लेंगे ये सोचने वाले कुछ लोग मर गये और कुछ मरने के कगार पर है।

भीड़:– हां समझ गये की शरीर की क्षमता जितनी जरूरी है, उस से कहीं ज्यादा मानसिक क्षमता मायने रखती है। और वो दूसरी बात क्या है माया...

माया:– यह पहली बार नही था जो हमने आग का सामना किया हो। आर्यमणि हमारे कई लोगों को जिंदा जला चुका है। हां लेकिन उस वक्त इतना ध्यान इसलिए नही गया क्योंकि वह केवल जलाता नही था। तुम सब एक ही काम में लग जाओ...ऐसी युक्ति ढूंढो की दोबारा कोई हमे आग से डरा न सके। वैसे एक खुश खबरी भी है। हमारे नए दोस्त निमेषदर्थ ने आर्यमणि के खून से ऐसी हीलिंग पोशन तैयार कर लिया है कि महज 1 घंटे में तुम्हारे बचे हुए लीडर्स तुम लोगों से बात करेंगे। पृथ्वी पर मेरा काम खत्म होता है, इसलिए मैं विषपर प्लैनेट वापस जा रही। आते जाते रहूंगी... और हां पलक एक मेघावी नायजो है, उम्मीद है उसके लीडरशिप में तुम लोग और ऊंचाइयों को छू सकोगे.… अब मैं चलती हूं...

माया सभा समाप्त करके चली गयी और पलक के लिये एक नई राह खोल गयी। कुछ वर्ष पूर्व ही उसे भी पता चला था की वह अपने भाई राजदीप की तरह ही एक पूर्ण नायजो है। बाकी उसका बड़ा भाई कंवल और बड़ी बहन नम्रता में नायजो वाले कोई गुण नही आये थे। पलक जब लीडरशिप की राह में चली फिर उसने पीछे मुड़कर नही देखा। छोटे उम्र के इस लीडर ने चारो ओर से खूब सराहना बटोरी। देखते ही देखते समुदाय में उसका कद और रूतवा इतना ऊंचा हुआ कि वो अब 5 ग्रहों में बैठे लीडर्स के साथ उठा–बैठा करती थी।

वक्त अपने रफ्तार से चलता रहा। दिन बीत रहे थे। सुकेश और मीनाक्षी भी स्वास्थ्य होकर अपना काम देख रहे थे। उस आगजनी में अक्षरा और उज्जवल अपना दम तोड़ चुके थे। इस बात का मलाल सबको था। उस दिन के बाद हर कोई भूमि, केशव और जया की तलाश करते रहे, लेकिन उन्हें एक निशान तक नही मिले। जयदेव भी बिलकुल गायब ही था... सबको जमीन निगल गई या आसमान खा गया कुछ पता नहीं चल पा रहा था.…

अब तो वक्त भी इतना गुजर चुका था कि धीरे–धीरे सब इस बात को भूलते जा रहे थे। प्रहरी के मुखौटा तले नायजो समुदाय फल फूल रहा था। वेयरवुल्फ को अब भी बीस्ट वुल्फ बनाया जा रहा था। प्रहरी में आने वाले इंसानों के दिमाग में अब भी 2 दुनिया के रखवाले होने का भूत घुसाया जा रहा था और इसी काम के दौरान ही, पृथ्वी मानव सभ्यता का मिलन नायजो समुदाय से होता था। कुछ इंसानी बच्चे पैदा होते। उन्हे या तो मार दिया जाता या फिर जय प्रहरी के नारे लगवाए जाते। कुछ पूर्ण अथवा अल्प नायजो बनते, उन सबको अलग सभा में बिठाकर अपनी परम्परा में ढालते। कुल मिलाकर नायजो का सब कुछ चकाचक चल रहा था।
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आर्य भाई माफ करना लेकिन आखिर के दोनों ही अपडेट पढ़ कर ऐसा लग रहा है की सायद आप भी किसी उलझन मे है क्योंकि न्याजो और सुपरमारीच का अर्थ पे आना साथ्वीक आश्रम का उसको हराना उसके बाद फिर वापस आना और न्याजो की मद्दत से फिर आश्रम को मिटाना ये सब आप कहानी मे पहले भी बहुत बार बता चुके हो तो उनको दुबारा बताना मतलब अपडेट को और लम्बा खींचना ऊपर से कहानी को फ़ास्ट फॉरवर्ड करते हुए तीन महीने आगे लाना लेकिन आर्य और उसके पैक के साथ क्या हुए ये नहीं बताना और सस्पेंस को बढ़ाना थोड़ा अजीब है क्योंकि आप उन राइटरो मे से हो जो सस्पेंस से ज्यादा थ्रील पे फोकस करते हो ऐसे मे ये सब कुल मिला के बोलू तो लास्ट के दोनों अपडेट मे कुछ खालीपन सा लगा

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

और है अगले अपडेट मे आर्य के बारे मे जरूर बताये कल से आज तक़ जिस चीज का इंतजार कीया वही नहीं पढ़ने को मिला
 
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