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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] ( Completed )

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
अध्याय - 06
__________________




अब तक,,,,,

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

अब आगे,,,,,



शिवकांत वागले डायरी में लिखी विक्रम सिंह की कहानी को पढ़ने में खोया ही हुआ था कि तभी किसी आहट से उसका ध्यान भंग हो गया। उसने चौंक कर इधर उधर देखा। नज़र गहरी नींद में सो रही सावित्री पर पड़ी। सावित्री ने नींद में ही उसकी तरफ को करवट लिया था। शिवकांत को सहसा वक़्त का ख़्याल आया तो उसने हाथ में बंधी घड़ी पर समय देखा। रात के क़रीब सवा दो बज रहे थे। वागले समय देख कर चौंका। उसने एक गहरी सांस ली और डायरी को बंद करके ब्रीफकेस में चुपचाप रख दिया।

डायरी को यथास्थान रखने के बाद वागले बेड पर करवट ले कर लेट गया था। कुछ देर तक वो विक्रम सिंह और उसकी कहानी के बारे में सोचता रहा और फिर गहरी नींद में चला गया। दूसरे दिन वो अपने समय पर ड्यूटी पहुंचा। आज जेल में कुछ अधिकारी आए हुए थे जिसकी वजह से उसे विक्रम सिंह की कहानी पढ़ने का मौका ही नहीं मिला। सारा दिन किसी न किसी काम में व्यस्तता ही रही।

शाम को वो अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर घर पहुंचा। रात में डिनर करने के बाद वो सीधा अपने कमरे में आ कर बेड पर लेट गया। जब से उसने विक्रम सिंह की डायरी में उसकी कहानी पढ़ना शुरू किया था तब से ज़्यादातर उसके दिलो-दिमाग़ में विक्रम सिंह का ही ख़्याल चलता रहता था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि विक्रम सिंह अपनी पिछली ज़िन्दगी में इस तरह का इंसान था या उसका इतिहास ऐसा था। बेड पर लेटा वो सोच रहा था कि अगर विक्रम सिंह का शुरूआती जीवन इस तरह से शुरू हुआ था तो फिर बाद में आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से उसने अपने ही माता पिता की बेरहमी से हत्या की होगी?

शिवकांत वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। थक हार कर उसने अपने ज़हन से इस बात को झटक दिया और फिर ये सोचने लगा कि डायरी के अनुसार कैसे विक्रम सिंह अपने शुरूआती दिनों में उन तीन तीन सुन्दर लड़कियों के साथ मसाज करवा रहा था और वो तीनों लड़कियां एकदम नंगी हो कर उसके जिस्म के हर अंग से खेल रहीं थी। उस वक़्त विक्रम सिंह की क्या हालत थी ये उसने विस्तार से अपनी डायरी में लिखा था।

वागले की आँखों के सामने डायरी में लिखा गया उस वक़्त का एक एक मंज़र जैसे उजागर होने लगा था। वागले की आँखें जाने किस शून्य को घूरने लगीं थी। आँखों के सामने उजागर हो रहे उन तीनों लड़कियों के नंगे जिस्मों ने उसके अपने जिस्म में एक हलचल सी मचानी शुरू कर दी थी। वागले को पता ही नहीं चला कि कब उसकी बीवी सावित्री कमरे में आई और कब वो उसके बगल में एक तरफ लेट गई थी।

"कहां खोए हुए हैं आप?" सावित्री ने वागले को कहीं खोए हुए देखा तो उसने फौरी तौर पर पूछा_____"सोना नहीं है क्या आपको?"
"आं हां।" वागले ने चौंक कर उसकी तरफ देखा_____"तुम कब आई?"

"कमाल है।" सावित्री ने थोड़े हैरानी वाले लहजे में कहा____"आपको मेरे आने की भनक भी नहीं लगी, ऐसा कैसे हो सकता है?"
"अरे! वो मैं।" वागले ने बात को सम्हालते हुए कहा_____"एक क़ैदी के बारे में सोच रहा था न तो शायद इसी लिए मुझे तुम्हारे आने का आभास ही नहीं हो पाया।"

"मैंने कितनी बार कहा है आपसे कि क़ैदियों के ख़याल अपने जेल में ही लाया कीजिए।" सावित्री ने बुरा सा मुँह बनाया____"यहां घर में उन अपराधियों के बारे में मत सोचा कीजिए।"

"ग़लती हो गई भाग्यवान।" वागले ने सावित्री की तरफ करवट लेते हुए मुस्कुरा कर कहा____"अब से किसी क़ैदी के बारे में घर पर नहीं सोचूंगा लेकिन घर आने के बाद तुम्हारे बारे में तो सोच सकता हूं न?"

"क्या मतलब?" सावित्री ने अपनी भौंहें सिकोड़ी।
"मतलब ये कि घर में मैं अपनी जाने बहार के बारे में तो सोच ही सकता हूं।" वागले ने मीठे शब्दों में कहा____"वैसे एक बात कहूं??"

"कहिए क्या कहना चाहते हैं?" सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए कहा तो वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं ये कहना चाहता हूं कि तुम पहले से ज़्यादा खूबसूरत लगने लगी हो और मेरा मन करता है कि मैं अपनी इस खूबसूरत पत्नी को जी भर के प्यार करुं।"

"आप फिर से शुरू हो गए?" सावित्री ने आँखें दिखाते हुए कहा_____"आज कल कुछ ज़्यादा ही प्यार करने की बातें करने लगे हैं आप। अरे! कुछ तो बच्चों के बारे में सोचिए।"

"तो तुम्हें क्या लगता है कि मैं बच्चों के बारे में नहीं सोचता?" वागले ने कहा_____"जबकि अपनी समझ में मैं हमारे बच्चों के लिए वो सब कुछ कर रहा हूं जो एक अच्छे पिता को करना चाहिए। भगवान की दया से हमारे दोनों बच्चे भी सकुशल हैं और सही राह पर हैं। अब भला और क्या सोचूं उनके बारे में? सच तो ये है भाग्यवान कि बच्चों के साथ साथ तुम्हारे बारे में भी सोचना मेरा फ़र्ज़ है और मैं अपने फ़र्ज़ को अच्छी तरह से निभाना चाहता हूं।"

"बातें बनाना आपको खूब आता है।" सावित्री कहने के साथ ही दूसरी तरफ को करवट ले कर लेट गई। जबकि वागले कुछ पल उसकी पीठ को घूरता रहा और फिर खिसक कर सावित्री के पास पहुंच गया।

"मैं मानता हूं मेरी जान कि तुम दिन भर के कामों से बुरी तरह थक जाती हो।" वागले ने पीछे से अपनी बीवी सावित्री को अपनी आगोश में भरते हुए कहा_____"लेकिन मेरा यकीन मानो डियर। मैं इस तरह से तुम्हें प्यार करुंगा कि तुम्हारी सारी थकान पलक झपकते ही दूर हो जाएगी।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने अपने पेट से वागले के हाथ को हटाते हुए कहा_____"और मुझे परेशान मत कीजिए। चुप चाप सो जाइए।"
"तुम्हारी इन बातों से मुझे अच्छी तरह पता चल गया है सवित्री।" वागले ने कहा_____"कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जज़्बात नहीं है। ठीक है फिर, आज के बाद मैं भी तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं करुंगा।"

शिवकांत वागले का दिमाग भन्ना सा गया था। ये सच है कि सावित्री कभी भी अपनी तरफ से पहल नहीं करती थी और अगर वो ख़ुद कभी उसको प्यार करने को कहे तो सावित्री उससे यही सब कह कर उसे मायूस कर देती थी। किन्तु आज की बात अलग थी, आज वागले का सच में बेहद मन कर रहा था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी को प्यार करे। उसके अंदर विक्रम सिंह की कहानी ने एक उत्तेजना सी भर दी थी किन्तु सावित्री ने जब इस तरह से बातें सुना कर उसे प्यार करने से इंकार किया तो उसे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। वो एक झटके से सावित्री से दूर हुआ और बेड से उतर कर कमरे से बाहर निकल गया।

वागले के इस तरह चले जाने से पहले तो सावित्री चुपचाप पड़ी ही रही लेकिन जब उसे आभास हुआ कि वागले कमरे से ही चला गया है तो उसने पलट कर दरवाज़े की तरफ देखा। कमरे में बल्ब का प्रकाश फैला हुआ था और सावित्री को कमरे में वागले नज़र न आया। कुछ देर तक वो खुले हुए दरवाज़े की तरफ देखती रही और फिर वो पहले की ही तरह करवट के बल लेट गई। उसने कमरे से बाहर निकल कर ये देखने की कोई भी कोशिश नहीं की कि वागले कमरे से निकल कर आख़िर गया कहां होगा? शायद उसे ये लगा था कि वागले किचेन में पानी पीने गया होगा।

दिन भर के कामों की वजह से थकी हुई सावित्री कुछ ही देर में गहरी नींद में जा चुकी थी। उधर वागले कमरे से निकल कर सीधा किचन में गया और पानी पीने के बाद ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। इस वक़्त उसके चेहरे पर बड़े ही शख़्त भाव थे। काफी देर तक वो सोफे में बैठा जाने क्या क्या सोचता रहा और फिर उसी सोफे पर लेट कर सो गया।

रात सोफे पर ही गुज़र गई। सुबह वो जल्दी ही उठ जाता था इस लिए सुबह नित्य कर्मों से फुर्सत हो कर वो नहाया धोया। सावित्री को भी सुबह जल्दी ही उठने की आदत थी। वो वागले से पहले ही उठ जाती थी, इस लिए जब वो सुबह उठी थी तो कमरे में वागले को न पा कर पहले तो वो सोच में पड़ गई थी फिर बाथरूम में घुस गई थी।

सावित्री किचेन में नास्ता बना रही थी जबकि वागले अपनी वर्दी पहन कर और ब्रीफ़केस ले कर बाहर आया। दोनों बच्चे भी उठ चुके थे और नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर डाइनिंग टेबल पर नास्ते का इंतज़ार कर रहे थे। शिवकांत वागले ब्रीफ़केस ले कर कमरे से बाहर आया और बिना किसी से कुछ बोले घर से बाहर निकल गया। उसके इस तरह चले जाने से दोनों बच्चे पहले तो हैरान हुए लेकिन फिर ये सोच कर सामान्य हो गए कि शायद उनके पिता को ड्यूटी पर पहुंचना बेहद ज़रूरी रहा होगा, जैसा कि इस पेशे में अक्सर होता ही रहता है। हालांकि बच्चों को पता था कि अगर उनके पिता को जल्दी ही ड्यूटी पर जाना होता था तो वो ब्रेकफास्ट अपने साथ ही ले कर चले जाते थे किन्तु आज ऐसा नहीं हुआ था। वागले की बेटी ने फ़ौरन की किचेन में जा कर सावित्री को बताया कि पापा अपना ब्रीफ़केस ले कर ड्यूटी चले गए हैं। बेटी की ये बात सुन कर सावित्री मन ही मन बुरी तरह चौंकी थी। उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसका पति सच में उससे नाराज़ हो गया है। इस एहसास के साथ ही वो थोड़ा चिंतित हो गई थी।

उधर वागले जेल पहुंचा। उसके ज़हन में कई सारी बातें चल रही थी जिनकी वजह से उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवा गवन चालू था। जेल का चक्कर लगाने के बाद वो अपने केबिन में आया और कुछ ज़रूरी फाइल्स को देखने लगा। क़रीब एक घंटे बाद वो फुर्सत हुआ। इस बीच उसने एक सिपाही के द्वारा एक ढाबे से नास्ता मगवा लिया था। नास्ता करने के बाद उसने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और आगे की कहानी पढ़ने लगा।

☆☆☆

मैं अंदर से घबराया हुआ तो था किन्तु मेरे मन में ये उत्सुकता भी प्रबल हो रही थी कि अब ये तीनों नंगी पुंगी हसीनाएं मेरे साथ क्या क्या करेंगी। माया की बात मुझे अब तक याद थी जब उसने कोमल और तबस्सुम से ये कहा था कि अब मुझे सिर्फ ये सिखाना है कि किसी औरत को संतुस्ट कैसे किया जाता है। मतलब साफ़ था कि अब वो तीनों मुझे सेक्स का ज्ञान कराने वाली थीं। मैं मन ही मन ये सोच कर बेहद खुश भी हो रहा था कि अब ये तीनों मेरे साथ सेक्स करेंगी और मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। मैं क्योंकि नंगा ही था इस लिए मेरा लंड अपनी पूरी औकात पर खड़ा हो कर कुछ इस तरीके से ठुमकते हुए झटके मार रहा था जैसे वो उन्हें सलामी दे रहा हो।

"हम तीनों ये देख चुकी हैं कि तुम में संयम की कोई कमी नहीं है।" माया ने आगे बढ़ कर मुझसे कहा_____"हालाँकि पहली बार में तुम्हारी जगह कोई भी होता तो वो हम तीनों के द्वारा इतना कुछ करने से पहले ही अपना संयम खो देता। हम तीनों सबसे पहले यही देखना चाहते थे कि तुम में संयम रखने की क्षमता है या नहीं। अगर तुम में संयम की कमी होती तो हम तीनों तुम्हें संयम कैसे रखना होता है ये सिखाते। ख़ैर अब जबकि हमें पता चल चुका है कि तुम्हें कुदरती तौर पर सब कुछ मिला है और संयम की भी कोई कमी नहीं है। अब हम तुम्हें ये सिखाएंगे कि किसी औरत को सेक्स से खुश और संतुस्ट कैसे करना होता है।"

माया की बात सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि रेशमी कपड़े जैसी ब्रा में क़ैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को देखता रहा। उसे भी पता था कि मैं उसकी चूचियों को ही देख रहा हूं किन्तु उसे इस बात से जैसे कोई ऐतराज़ नहीं था।

"एक बात हमेशा याद रखना।" कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद उसने फिर से कहा____"और वो ये कि कभी भी किसी लड़की या औरत के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती में सेक्स न करना। क्योंकि ऐसा करना बलात्कार कहलाता है और इससे न तो तुम्हें ख़ुशी मिलेगी और ना ही उस औरत को। किसी के साथ बलात्कार करने से दो पल के लिए भले ही मज़े का एहसास हो लेकिन मज़े के बाद जब वास्तविकता का एहसास होता है तब ये बोध भी होता है कि हमने कितना ग़लत किया है। ख़ैर सेक्स का असली मज़ा दोनों पर्सन की रज़ामंदी से ही मिलता है। ईश्वर ने औरत को इतना सुन्दर इसी लिए बनाया होता है कि मर्द उसे सिर्फ प्यार करे। औरत प्यार में अपना सब कुछ मर्द को सौंप देती है।"

"हालाँकि दुनिया में तरह तरह की मानसिकता वाले लोग भी होते हैं।" कोमल ने कहा____"जिनमें औरतें भी होती हैं। कुछ मर्द और औरतें ऐसी मानसिकता वाली होती हैं जिन्हें अलग अलग तरीके से सेक्स करने में मज़ा आता है। कोई प्यार से सेक्स करता है तो कोई सेक्स करते समय पागलपन की हद को पार कर जाता है। उस पागलपन में लोग सेक्स करते समय एक दूसरे को बुरी तरह से कष्ट पहुंचाते हैं। उन्हें सेक्स में ऐसा ही वहशीपना पसंद होता है।"

"यहां पर तुम्हें दोनों तरह से सेक्स करने के बारे में सीखना ज़रूरी है।" तबस्सुम ने कहा____"क्योंकि आने वाले समय में तुम्हें ऐसे ही काम करने होंगे।"
"वो सब तो ठीक है।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मैं बहुत ही ज़्यादा शर्मीले स्वभाव का हूं जिससे मैं किसी औरत ज़ात से खुल कर बात करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता।"

"शर्म हर इंसान में होती है।" माया ने कहा____"फिर चाहे वो मर्द हो या औरत। ये एक कुदरती गुण होता है जो आगे चल कर वक़्त और हालात के साथ साथ घटता और बढ़ता रहता है। कुछ लोग सिचुएशन के अनुसार जल्दी ही खुद को ढाल लेते हैं और कुछ लोगों को सिचुएशन के अनुसार खुद को ढालने में थोड़ा वक़्त लगता है लेकिन ये सच है कि वो ढल ज़रूर जाता है। तुम भी ढल जाओगे और बहुत जल्दी ढल जाओगे।"

कहने के साथ ही माया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ बढ़ी तो मेरी धड़कनें अनायास ही बढ़ चलीं। मैं उसी की तरफ देख रहा था और सोचने लगा था कि अब ये क्या करने वाली है? उधर वो मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर हल्के से खींचते हुए बेड पर ला कर मुझे बैठा दिया।

"सपने तो ज़रूर देखते होंगे न तुम?" माया मेरे क़रीब ही बैठते हुए बोली____"और किसी न किसी के बारे में तरह तरह के ख़याल भी बुनते होगे?"
"मैं कुछ समझा नहीं?" माया की इस बात से मैं चकरा सा गया था।

"बड़ी सीधी सी बात है डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"हर कोई सपने देखता है। कभी खुली आँखों से तो कभी बंद आँखों से। हर लड़का एक ऐसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता है जो दुनियां में उसे सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती है। तुम भी तो किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर अपने मन में तरह तरह के ख़याल बुनते होगे?"

"ओह! हां ये तो सही कहा आपने।" मैंने हल्के से शर्माते हुए कहा____"पर शायद मैं बाकी लड़कों से ज़्यादा लड़कियों के बारे में तरह तरह के ख़याल बुनता हूं। वो बात ये है कि मैं और तो कुछ करने की हिम्मत जुटा नहीं पाता इस लिए जो मेरे बस में होता है वही करता रहता हूं। यानि दिन रात किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता रहता हूं। वैसे आपने ये क्यों पूछा मुझसे?"

"अब तक तुमने।" माया ने जैसे मेरे सवाल को नज़रअंदाज़ ही कर दिया, बोली____"जिन जिन लड़कियों के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुने हैं उन ख़यालों को अब सच में करके दिखावो।"

"दि...दिखाओ???" मैं जैसे हकला गया_____"मेरा मतलब है कि मैं भला कैसे...???"
"मैं भला कैसे का क्या मतलब है?" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"क्या तुम ये चाहते हो कि कोई दूसरा लड़का आए और तुम्हारे सामने हम तीनों के साथ मज़े करे?"

"न..नहीं तो।" मैं एकदम से बौखला गया_____"मैं भला ऐसा कैसे चाह सकता हूं?"
"देखो मिस्टर।" माया ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"हमारा तो काम ही यही है कि हम तुम जैसे लड़कों को सेक्स की ट्रेनिंग दें और वो हम अपने तरीके से दे भी देंगे लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम ख़ुद अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो जिन्हें तुमने अपने मन में अब तक बुने हैं। इससे तुम्हें ही फायदा होगा। तुम्हारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और तुम्हारे अंदर की झिझक व शर्म भी दूर होगी।"

"मैं माया की बात से सहमत हूं।" कोमल ने कहा____"ये सच है कि हम तुम्हें ट्रेंड कर देंगे लेकिन अगर तुम खुद अपने तरीके से अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो तो ये तुम्हारे लिए बेहतर ही होगा।"

माया और कोमल की बातों ने मुझे अजीब कस्मकस में डाल दिया था। ये सच था कि मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं उन तीनों के खूबसूरत जिस्मों के साथ खेलूं। उनकी सुडौल चूचियों को अपने हाथों में ले कर सहलाऊं और मसलूं लेकिन ऐसा करने की मुझ में हिम्मत नहीं हो सकती थी।

"अच्छा अब ये बताओ कि हम तीनों में से तुम्हें सबसे ज़्यादा कौन पसंद है?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैंने उसकी तरफ देखा, जबकि उसने उसी मुस्कान में आगे कहा_____"सच सच बताना और हां ये मत सोचना कि अगर तुमने हम में से बाकी दो को पसंद नहीं किया तो हमें बुरा लग जाएगा। चलो अब खुल कर बताओ।"

साला ये तो ऐसा सवाल था जिसका उत्तर देना तो जैसे टेढ़ी खीर था। मेरी नज़र में तो वो तीनों ही बला की खूबसूरत थीं। तीनो में से किसी एक को पसंद करना या चुनना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे कौन सा उनमें से किसी से शादी करनी है। कहने का मतलब ये कि मुझे तो किसी एक को पसंद कर के शायद उसके साथ सेक्स ही करना है न तो फिर इसमें इतना सोचने की क्या ज़रूरत है? किसी एक को पसंद कर लेता हूं बाकी जो होगा देखा जाएगा। मैंने तीनों को बारी बारी से देखा। मैंने सोचा कि कोमल और तबस्सुम को तो मैं पूरा ही नंगा देख चुका हूं जबकि माया अभी भी ब्रा पेंटी पहने हुए है इस लिए मैंने सोचा इसको भी नंगा देख लेता हूं।

"देखिए बात ये है कि।" फिर मैंने झिझकते हुए कहा_____"मुझे तो आप तीनों ही सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं। आप तीनों में से किसी एक को पसंद करना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल है, फिर भी आप कहती हैं तो मैं बताए देता हूं कि मुझे सबसे ज़्यादा आप ही पसंद हैं।"

"मुबारक़ हो माया।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इस लड़के की सील तोड़ने का पहला मौका तुम्हें ही मिल गया।"
"सही कहा तबस्सुम।" कोमल ने जैसे ताना सा मारा_____"हम तीनों में से एक माया ही तो है जो सबसे ज़्यादा सुन्दर है और पसंद करने वाली चीज़ भी है। ये लड़का तो बड़ा ही चालू निकला।"

"देखिए आप लोग प्लीज़ बुरा मत मानिए।" उन दोनों की बातें सुन कर मैं जल्दी से बोल पड़ा था____"मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे लिए आप में से किसी एक को पसंद करना बेहद ही मुश्किल है।"

"अरे! तुम इनकी बातों पर ध्यान मत दो।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये दोनों तो मज़ाक में ऐसा बोल रही हैं तुम्हें। ख़ैर तो अब जबकि तुमने मुझे पसंद किया है तो आज के लिए मैं तुम्हारी हुई। आज के दिन अब तुम और मैं ही एक दूसरे के साथ रहेंगे। तुम ये समझो कि मैं वो लड़की हूं जिसके बारे में सोच कर तुम तरह तरह के ख़याल बुनते थे और अब जबकि मैं तुम्हारे ख़यालों से बाहर आ कर तुम्हारे पास ही हूं तो तुम मेरे साथ वो सब कुछ कर सकते हो जो ख़यालों में मेरे साथ करते थे।"

"क्या सच में???" मेरे मुख से जाने ये कैसे निकल गया, जबकि मेरे द्वारा इतनी उत्सुकता से कहे गए इस वाक्य को सुन कर कोमल और तबस्सुम ने एक साथ मुस्कुराते हुए कहा_____"ओए होए, देखो तो कितना उतावले हो उठे हैं ये जनाब।"

कोमल और तबस्सुम की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह झेंप गया और शर्म से लाल हो गया। जबकि उन दोनों की बात सुन कर माया ने उन्हें डांटते हुए कहा____"क्यों छेड़ रही हो बेचारे को?"

"अच्छा ठीक है हम कुछ नहीं कहेंगी।" कोमल ने कहा____"लेकिन हां ये ज़रूर कहेंगे कि थोड़ा सम्हाल के करना। तुम तो जानती हो कि इस बेचारे की अभी सील भी नहीं टूटी है।"

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

☆☆☆
Kadak update dost
 
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258
वागले साहब को जब विक्रांत की कहानी पढ़कर सेक्स की भूख सताने लगी तब अपने पत्नी को हमबिस्तर होने के लिए मान-मनौव्वल करने लगे । कई महीनों तक या सालों भी हो सकते हैं , पत्नी से सेक्स करने की न इच्छा हुई और न ही कोशिश की । हो सकता है उन दिनों उनकी पत्नी सेक्स की आग में तड़पती हो । हो सकता है उनकी पत्नी ने उन्हें सेक्स के लिए अप्रत्यक्ष रूप से इशारा भी किया हो । पर उस वक्त उनकी इच्छा नहीं थी इसलिए सेक्स के विषय को हल्के में ले लिया । पर अब जब उनकी इच्छा है तो उनकी पत्नी इग्नोर कर रही है ।
यह सब अधिकांशतः होता है और इसी कारण पती पत्नी सेक्सुअल रिलेशन से दूर होते जाते हैं ।

विक्रांत का कौमार्य भंग होने का समय आ चुका है । माया उन्हें किशोर से मर्द में तब्दील करेगी । शायद उसके बाद तबस्सुम और कोमल का भी नम्बर लग जाए ! उसके बाद कोई और , उसके बाद कोई और फिर कोई और फिर कोई और....... काफी लम्बी लिस्ट होने वाली है ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट शुभम भाई । जगमग जगमग अपडेट ।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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304
छठवाँ भाग
बहुत ही जबरदस्त।
दूसरे की आत्मकथा पढ़ने में वागले साहब इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें समय का भान भी नहीं रहा। दूसरे दिन पूरी तरह व्यस्तता के कारण वो विक्रम की डायरी नही पढ़ पाए। रात में पत्नी के साथ कुछ इलू इलू करने का मन हुआ तो पत्नी ने खड़े बाँस पर पानी डाल डाल दिया। वागले साहब की नाराजगी जायज है। उनकी नाराजगी का एहसास सुबह सावित्री को भी हो गया जब वागले साहब बिना खाये पिये जेल चले गए।।
विक्रम का प्रशिक्षण बहुत तेज़ गति से और सही दिशा ने आगे बढ़ रहा है।। विक्रम बड़ा संयमी है ऐसा कहना है माया तबस्सुम और कोमल का। अब अगर इंसान के सामने काजू कतली सोहन पपड़ी और लखनऊवा बर्फी रख दिया जाए और कहा जाए कि कोई एक पसंद करके खा लो तो इंसन दुविधा में पड़ जाता है।। विक्रम के सामने भी यही स्थिति उत्पन्न हो गई है।। उसने दिमाग लगाकर माया को चुन लिया सबसे सुंदर बोलकर। अब रात भर माया उसके साथ रहेगी। देखना होगा वो कैसे प्रशिक्षण देती है विक्रम को।।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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वागले साहब को जब विक्रांत की कहानी पढ़कर सेक्स की भूख सताने लगी तब अपने पत्नी को हमबिस्तर होने के लिए मान-मनौव्वल करने लगे । कई महीनों तक या सालों भी हो सकते हैं , पत्नी से सेक्स करने की न इच्छा हुई और न ही कोशिश की । हो सकता है उन दिनों उनकी पत्नी सेक्स की आग में तड़पती हो । हो सकता है उनकी पत्नी ने उन्हें सेक्स के लिए अप्रत्यक्ष रूप से इशारा भी किया हो । पर उस वक्त उनकी इच्छा नहीं थी इसलिए सेक्स के विषय को हल्के में ले लिया । पर अब जब उनकी इच्छा है तो उनकी पत्नी इग्नोर कर रही है ।
यह सब अधिकांशतः होता है और इसी कारण पती पत्नी सेक्सुअल रिलेशन से दूर होते जाते हैं ।
Ab ye to aap jaaniye bhaiya ji kyoki aap shadi shuda hain, main to abhi kawara hu,,,:lol:

विक्रांत का कौमार्य भंग होने का समय आ चुका है । माया उन्हें किशोर से मर्द में तब्दील करेगी । शायद उसके बाद तबस्सुम और कोमल का भी नम्बर लग जाए ! उसके बाद कोई और , उसके बाद कोई और फिर कोई और फिर कोई और....... काफी लम्बी लिस्ट होने वाली है ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट शुभम भाई । जगमग जगमग अपडेट ।
Vikram Singh ki chaandi hone wali hai,,,:declare:
Khair bahut bahut shukriya bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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वागले साहब की नाराजगी जायज है।
Aisi biwi bekaar hoti hain,,,,:beee:
अब अगर इंसान के सामने काजू कतली सोहन पपड़ी और लखनऊवा बर्फी रख दिया जाए और कहा जाए कि कोई एक पसंद करके खा लो तो इंसन दुविधा में पड़ जाता है।
:lol: Vikram Singh ke saamne kaaju katli Sohan paapri aur lakhnavi barfi hai,,,:jump:
Waise kismat isi tarah chamakni chahiye,,, :D
Khair shukriya is behtareen sameeksha ke liye,,,,:hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अध्याय - 07
__________________



अब तक,,,,,

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

अब आगे,,,,,


"चलो अब शुरू करो।" बेड पर मेरे एकदम पास बैठते ही माया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मेरे दिल की धड़कनें पहले से भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि उसने किस चीज़ को शुरू करने को कहा था किन्तु मेरे लिए ये सब शुरू करना अगर इतना ही आसान होता तो मैं यहाँ इस हाल में होता ही क्यों?

"क्या हुआ? तुम शुरू क्यों नहीं कर रहे?" मुझे कुछ न करते देख माया ने फिर से कहा_____"देखो डियर, तुम यहाँ सेक्स की ट्रेनिंग लेने आए हो और तुम्हारे लिए सबसे अच्छी बात ये है कि तुम्हें जिसके साथ सेक्स करने की ट्रेनिंग लेनी है वो तुम्हारा पूरा साथ देगी। यूं समझो कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मेरे साथ कर सकते हो। मैं तुम्हें किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करुंगी। दुनियां में बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिनके नसीब में इतना अच्छा मौका मिलता है। अगर तुम इसी तरह सेक्स के नाम पर शर्म करोगे तो फिर कैसे तुम किसी औरत के साथ सेक्स कर पाओगे और कैसे उसे संतुष्ट कर पाओगे? एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी तो क्या तुम अपनी बीवी के साथ भी सेक्स नहीं करोगे? ऐसे में तो लोग तुम्हें नपुंसक और हिंजड़ा कहेंगे। वो ये भी कहेंगे कि तुम मर्द नहीं बल्कि गांडू हो जो किसी औरत के साथ सेक्स ही नहीं कर सकता बल्कि दूसरे मर्दों से खुद अपनी ही गांड मरवाता है। क्या तुम सच में गांडू बनना चाहते हो?"

"न..नहीं नहीं।" मैं एकदम से बौखलाते हुए बोल पड़ा_____"मैं ऐसा नहीं बनना चाहता।"
"तो फिर मर्द बनो डियर।" माया ने मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा_____"भगवान की कृपा से तुम्हें इतना तगड़ा हथियार मिला है तो अब तुम भी साबित करो कि तुम एक मुकम्मल मर्द हो और अपने इस हलब्बी लंड के द्वारा किसी भी औरत की चीखें निकाल सकते हो। दुनियां की हर औरत को तुम अपने इस हलब्बी लंड की दीवानी बना दो। जब ऐसा हो जाएगा तो देखना दुनियां की हर औरत ख़ुद ही अपना सब कुछ तुम्हें देने को तैयार रहेगी।"

माया के द्वारा खुल कर कही गई इन बातों ने मेरे अंदर एक जोश सा भर दिया था और मुझे पहली बार एहसास हुआ कि वो सच कह रही थी। यानी सच में मुझे ईश्वर ने एक ऐसा लंड दिया था जिसके बलबूते पर मैं किसी भी औरत की चीखें निकाल सकता था। ऐसे हलब्बी लंड के होते हुए भी अगर मैं मुकम्मल मर्द न बन सका तो फिर ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात ही होगी। इस ख़याल के साथ ही मैंने एक गहरी सांस ली और मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब मुझे मुकम्मल मर्द बनना है। मुझे अपने अंदर से इस शर्मो हया को निकाल कर दूर फेंक देना होगा।

मैंने आँखें बंद कर के दो तीन गहरी गहरी साँसें ली और फिर झटके से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। इस बार मेरे देखने का अंदाज़ पहले से काफी अलग था। मैं अपने अंदर एक निडरता महसूस करने लगा था। माया मेरे चेहरे के बदले हुए भावों को ही देख रही थी। मेरी नज़रें उसके खूबसूरत चेहरे पर जम सी गईं थी। कुछ पलों तक मेरी नज़रें उसके चेहरे पर ही जमी रहीं उसके बाद मेरी नज़र उसके रसीले होठों पर पड़ी। मैंने महसूस किया जैसे उसके वो रसीले होंठ मुझे इशारा करते हुए कह रहे हों कि आओ और मुझे अपने मुँह में भर कर चूस लो।

मैंने एक बार फिर से गहरी सांस ली और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर माया के चेहरे को थाम लिया। मेरे ऐसा करते ही माया के रसीले होठों पर मुस्कान थिरक उठी जिससे मेरे अंदर के जज़्बात मचल से उठे और मैंने एक पल की भी देरी न करते हुए लपक कर उसके होठों पर अपने होठों को रख दिया। यकीनन माया को मुझसे इतनी जल्दी इस सबकी उम्मीद न रही होगी लेकिन मैंने तो अब सोच लिया था कि मुझे मुकम्मल मर्द बनना है।

माया के रसीले होंठों को जैसे ही मैंने अपने होंठों से छुआ तो मेरे जिस्म में एक सुखद अनुभूति हुई। जीवन में पहली बार मैं किसी लड़की के होठों पर अपने होठ रखे हुए था। मैं बयां नहीं कर सकता था कि उस वक्त मुझे कितना अच्छा महसूस हुआ था। उसके बाद तो जैसे सब कुछ अपने आप ही होता चला गया। माया के होठों में शराब से भी ज़्यादा नशा था जिसने मुझे मदहोश करना शुरू कर दिया था। मेरे अंदर लेश मात्र भी कहीं शर्म नहीं रह गई थी बल्कि जिस्म का हर रोयां मदहोशी में ये कह उठा कि अब रुकना नहीं क्योंकि इसमें उन्हें बेहद मज़ा आने लगा है।

माया कुछ पलों तक बुत सी बनी रही और जब मैंने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया तो जैसे उसे होश आया। उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए मेरा साथ देने लगी। उधर माया के शहद जैसे मीठे होठों को चूसने में मुझे इतना मज़ा आने लगा था कि मैं एकदम से पागलों की तरह उन्हें चूसे ही चला जा रहा था। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर जैसे सागर की लहरों की तरह हिलोरें ले रही थी।

मुझे कोई होश नहीं था कि माया के होठों को चूसते हुए मैं किस हद तक जुनूनी हो उठा था। मुझे उसके होठ इतने मीठे और लजीज़ लग रहे थे कि मैं बस उन्हें खा ही जाना चाहता था। कुछ ही पलों में मेरी साँसें मेरे काबू से बाहर होने लगीं लेकिन मैं रुका तब भी नहीं बल्कि लगा ही रहा। उधर माया की भी साँसें भारी हो चलीं थी लेकिन वो भी मुझे रोक नहीं रही थी बल्कि मेरी तरह वो भी मेरा साथ दे रही थी। हम दोनों बेड पर बैठे हुए थे और मैं इस हद तक जूनून के हवाले हो चुका था कि प्रतिपल मैं उसके ऊपर हावी होता जा रहा था जिसका नतीजा ये निकला की कुछ ही देर में मैंने माया को उसी बेड पर गिरा दिया।

माया बेड पर सीधा गिरी तो हम दोनों के होठ एक दूसरे के होठों से अलग हो गए। होठ अलग हुए तो जैसे एक तूफ़ान कुछ पलों के लिए थम सा गया। मैंने आँखें खोल कर माया की तरफ देखा तो बेड पर लेटी हुई मुझे दो दो माया नज़र आ रही थी। मैं समझ न पाया कि ये माया के होठों को चूसने से उसका नशा मुझ पर चढ़ गया था या सच में दो दो माया प्रकट हो गईं थी। मैंने नशे की खुमारी जैसे आलम में उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र उसकी ब्रा में कैद बड़ी बड़ी चूचियों पर पड़ी जो तेज़ चलती साँसों की वजह से जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहीं थी।

माया की चूचियों ने भी जैसे मुझे मूक आमंत्रण दे दिया और मैंने भी उनके आमंत्रण को नहीं ठुकराया बल्कि आव देखा न ताव एक झटके से उन पर टूट पड़ा। माया की चूचियों पर रेशमी कपड़े की ब्रा इस तरह से बंधी हुई थी कि उसके किनारों से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर को झाँक रहीं थी। मैंने अपने दोनों हाथों से उन्हें थाम लिया। मुझे अपनी हथेलियों में ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बहुत ही मुलायम चीज़ पर मेरा हाथ पड़ गया हो जिसके एहसास ने मेरे जिस्म के हर ज़र्रे पर एक बार फिर से मज़े की लहरों को दौड़ा दिया। मैंने माया की दोनों चूचियों को मुट्ठी में भरा और ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू कर दिया जिसकी वजह से माया के मुख से सिसकियों के साथ साथ दर्द में डूबी मीठी सी कराहें निकलने लगीं।

माया ने एक बार फिर से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे चेहरे को अपनी छातियों की तरफ झुकाने लगी। उसके झुकाने से मैं समझा तो कुछ नहीं लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि मैं उसकी चूचियों के खुले हुए हिस्से को ज़रूर चूमने और चाटने लगा था। कुछ देर उसकी चूचियों को चाटने के बाद मैंने चेहरा उठाया और उस रेशमी कपड़े की ब्रा के ऊपर से ही माया की एक चूची को मुँह में भर कर ज़ोर से काट लिया जिससे माया की घुटी घुटी सी चीख निकल गई और वो एकदम से उछल पड़ी।

"आह्ह्ह्ह इतनी ज़ोर से मत काटो डियर।" माया ने कराहते हुए कहा_____"ये तो सलीके से प्यार करने वाली चीज़ है। इन्हें जितना प्यार करोगे उतना ही हम दोनों को मज़ा आएगा। अभी प्यार वाला सेक्स करो उसके बाद अगर तुम्हारा दिल करे तो वहशीपन वाला भी कर लेना।"

माया की इन बातों का मैंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उसकी बात मान कर उसकी चूची को काटना बंद कर दिया। उसकी बातों ने एक पल के लिए मुझे होश में ला दिया था और उस एक पल ने मुझे ये भी एहसास करा दिया था कि मुझे इस तरह किसी के कोमल अंगों को काटना नहीं चाहिए। ख़ैर मैंने अपने ज़हन से इस बात को झटका और फिर से माया की चूचियों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया। मुझे माया की बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों को दबाने और मसलने में बड़ा ही मज़ा आ रहा था। मन कर रहा था कि मैं उन्हें मसलता ही रहूं। एकाएक मुझे ख़याल आया कि मुझे माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े को हटा देना चाहिए क्योंकि अभी तक मैंने माया की चूचियों को पूरी तरह नंगा नहीं देखा था। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े वाली ब्रा को पकड़ कर ऊपर खिसका दिया जिससे माया की दोनों खरबूजे जैसी चूचियां उछल कर मेरी आँखों के सामने आ ग‌ईं।

दूध की तरह गोरी चूचियों को देखते ही मुझे मेरा गला सूखता हुआ सा प्रतीत हुआ। मैंने लपक कर उसकी एक चूची के भूरे निप्पल को पूरा ही मुँह में भर लिया और उसे इस तरह से चूसना शुरू कर दिया जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी मां का दूध निचोड़ निचोड़ कर पीना शुरू कर देता है। हालांकि माया के निप्पल से दूध नहीं निकल रहा था लेकिन मैं किसी बच्चे की तरह ही चूसे जा रहा था और उधर माया भी मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरने लगी थी जैसे वो मुझे अपना बच्चा समझ कर मुझे अपना दूध पिला रही हो। काफी देर तक मैं माया की उस चूची को चूसता रहा और माया मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए सिसकारियां भरती रही उसके बाद मैंने उसकी दूसरी चूची के निप्पल को भी मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

मज़ा अथवा आनंद क्या होता है ये मैं आज महसूस कर रहा था। अपनी कल्पनाओं में मैंने न जाने कितनी ही बार अलग अलग लड़कियों को सोच कर उनके साथ न जाने क्या क्या किया था लेकिन जो मज़ा हक़ीक़त में मिल रहा था वो मेरी कल्पनाओ में तो हो ही नहीं सकता था।

"तुम तो किसी बच्चे की तरह मेरी चूचियों को पी रहे हो डियर।" माया ने मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरते हुए कहा_____"जबकी तुम्हें एक मर्द की तरह मेरे साथ पेश आना चाहिए। तुम ये मत भूलो कि तुम्हें एक मुकम्मल मर्द बनना है और हर औरत को सेक्स में संतुष्ट करना है।"

"मैं भूला नहीं हूं इस बात को।" मैंने उसकी चूची से अपना चेहरा उठा कर उससे कहा____"लेकिन इस वक़्त मैं सिर्फ वो कर रहा हूं जिसे मैंने पहले कभी नहीं किया था। पहले मुझे जी भर के एक लड़की के इन खूबसूरत अंगों को देखने के साथ साथ प्यार तो कर लेने दो उसके बाद मैं एक मर्द की तरह भी तुमसे पेश आऊंगा।"

"अच्छा तो ये बात है।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"चलो कोई बात नहीं। तुम पहले अपनी उन हसरतों को ही पूरा कर लो जिन्हें पूरा करने की तुमने अपने मन में ख़्वाहिश की रही होगी। मुझे इसमें कोई ऐतराज़ नहीं है।"

माया की बात सुन कर मैंने उसे शुक्रिया कहा और इस बार थोड़ा ऊपर खिसक कर मैंने फिर से उसके रसीले होठों को मुँह में भर लिया। वो कहते हैं न कि सूखी रोटियां खाने वाले को जब घी में सनी हुई गरमा गरम रोटियां मिलती हैं तो वो उन पर ऐसे टूट पड़ता है जैसे दोबारा उसे वैसी रोटियां नसीब ही नहीं होंगी। मेरी हालात भी कदाचित वैसी ही थी। हालांकि सच में ऐसा नहीं था बल्कि सच तो ये था कि अब से तो मेरे नसीब में न जाने ऐसे कितने ही जिस्म मिलने वाले थे जिनके साथ मुझे मज़े भी करना था और उन जिस्मों की मालकिनों को संतुष्ट भी करना था।

माया के होठों का जाम पीने के बाद मैं फिर से नीचे आया और एक बार फिर से उसकी दोनों चूचियों को मसलते हुए उन्हें चूमने चाटने लगा। किसी भी लड़की या औरत की सुडौल चूचियां मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थीं और सबसे ज़्यादा आकर्षित भी करती थीं। मैं अक्सर ये तक सोच बैठता था कि काश इतनी खूबसूरत चूचियां मेरे सीने में भी होतीं तो मैं दिन रात उन्हें अपने हाथों में ले कर सहलाता रहता।

कुछ देर मैंने माया की दोनों चूचियों को मसला और चूमा चाटा उसके बाद मैं नीचे की तरफ बढ़ा। मेरा लंड न जाने कब से मुझसे रहम की भीख मांग रहा था जिस पर मेरा कोई ध्यान ही नहीं था। मैं तो अभी अपनी ख़्वाहिश ही पूरी करने में लगा हुआ था। उसकी ख़्वाहिशों का ख़याल तो मुझे बाद में ही आना था। नीचे आया तो देखा माया का चिकना पेट दूध की तरह गोरा था जिस पर एक गहरी सी नाभि थी। मुझसे रहा न गया तो मैंने फ़ौरन ही उसके पेट पर अपना चेहरा रख दिया और मुँह से उसके पूरे पेट को चूमने चाटने लगा। मेरी इस क्रिया से माया की एक बार फिर से सिसकियां निकलने लगीं और उसका जिस्म झटका सा खाने लगा। मैं उसके पूरे पेट को चूमा और चाट रहा था। उसकी नाभि के चारो तरफ मैं अपनी जीभ फिरा रहा था। ये सब करना मुझे पहले से पता था। ऐसा नहीं था कि मैं एकदम से ही अनाड़ी था। हम सभी दोस्त गन्दी गन्दी किताबों में ये सब बहुत बार देख और पढ़ चुके थे। इस लिए मुझे अच्छी तरह पता था कि लड़कियों के साथ क्या क्या किया जाता है। ये तो हमारी ख़राब किस्मत ही थी कि शर्मीले स्वभाव की वजह से कभी भी किसी लड़की के साथ सेक्स करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था।

मैंने माया की गहरी नाभि में अपनी पूरी जीभ घुसा दी तो माया ने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने पेट पर दबाने लगी। शायद मेरे ऐसा करने से उसे भी बेहद मज़ा आने लगा था। उसका पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। नाभि के नीचे रेशमी कपड़े की ही उसकी पेंटी थी जहां से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी। मैंने उन गन्दी किताबों में पढ़ा था कि जब लड़की हद से ज़्यादा गरम हो जाती है या उत्तेजित हो जाती है तो उसकी चूत से कामरस का रिसाव होने लगता है और ये खुशबू उसी कामरस से निकल कर आती है। मेरे मन में ये देखने की बड़ी तीव्र जिज्ञासा जाग उठी कि एक लड़की की चूत किस तरह की होती है। हालांकि गन्दी किताबों में मैंने चूत देखी थी लेकिन असलियत में तो मैंने कभी नहीं देखा था।

चूत को देखने की हसरत जब प्रबल हो उठी तो मैंने माया के पेट से अपना चेहरा उठा कर चूत की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। मेरा दिल अनायास ही तेज़ी से धड़कने लगा था। मेरे अंदर अब डर या घबराहट जैसी कोई बात नहीं रह गई थी। ऐसा शायद इस लिए कि अब मैं माया के साथ इस क्षेत्र में आगे निकल चुका था और मुझे किसी भी तरह से रोका नहीं गया था। चूत के ऊपर रेशमी कपड़े की पेंटी के पास जैसे ही मेरा चेहरा आया तो मेरे नथुनों में कामरस की खुशबू और भी तेज़ी से समाने लगी जिसकी वजह से मुझ पर एक अजीब सा नशा चढ़ने लगा।

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"ट्रिन्निंग...ट्रिन्निंग" अचानक ही टेबल पर रखे फ़ोन की घंटी ज़ोरों से बज उठी तो डायरी में विक्रम सिंह की कहानी पढ़ रहा शिवकांत वागले जैसे उछल ही पड़ा। उसने फ़ोन को बड़े ही गुस्से से देखा। उसके चेहरे पर बेहद ही अप्रसन्नता के भाव उभर आए थे। वो कहानी पढ़ने में इतना खो गया था कि इस वक़्त उसे फ़ोन का एकाएक इस तरह बज उठना बहुत ही नागवार गुज़रा था। कहानी इस वक़्त ऐसे मुकाम पर थी कि उसके असर से खुद वागले का जिस्म गरम हो उठा था और उसके पैंट में उसके खड़े हुए लंड का उभार साफ़ दिख रहा था।

"हैलो।" फिर उसने किसी तरह अपने गुस्से वाले भावों को दबाते हुए फ़ोन को उठा कर कान से लगाते हुए कहा तो उधर से उसके कान में उसके बेटे चंद्रकांत वागले की आवाज़ पड़ी।

"हैलो पापा मैं चंद्रकांत बोल रहा हूं।" उधर से उसके बेटे ने कहा____"आज आप सुबह ब्रेकफास्ट कर के नहीं गए और ना ही श्याम को दोपहर का खाना लाने के लिए भेजा।"

"हां वो मुझे किसी ज़रूरी काम से सुबह जल्दी ही निकलना था।" शिवकांत भला अब अपने बेटे से क्या कहता, इस लिए बहाना बनाते हुए आगे कहा_____"और दोपहर में भी मुझे अपने ऑफिस में नहीं रहना था इस लिए श्याम को नहीं भेजा। ख़ैर तुम फ़िक्र मत करो बेटा। मैंने बाहर ही लंच कर लिया है।"

शिवकांत वागले ने इतना कहने के बाद फोन का रिसीवर केड्रिल पर रख दिया। वो जानता था कि ये फ़ोन उसकी बीवी सावित्री ने अपने बेटे से लगवाया था और उसे इस बात से ये सोच कर बुरा भी लगा था कि सावित्री ने खुद उससे बात क्यों नहीं की? वो सावित्री से नाराज़ था और चाहता था कि सावित्री खुद उसे मनाए लेकिन ऐसा फिलहाल हुआ नहीं था। ख़ैर फ़ोन रखने के बाद वागले कुछ देर जाने क्या सोचता रहा उसके बाद उसने विक्रम सिंह की डायरी को ब्रीफ़केस में रखा और श्याम को बुला कर उसे किसी ढाबे से खाना लाने के लिए पैसे दिए। उसने श्याम को ख़ास तौर पर ये कहा कि वो अपनी मैडम से यानी वागले की बीवी से इस बात को न बताए कि वो आज कहां गया था या उसने कहां खाना खाया था? श्याम जो कि जेल का ही एक मामूली सा सिपाही था उसने वागले के कहने पर अपना सिर हां में हिलाया और केबिन से बाहर चला गया।

श्याम के आने के बाद वागले ने खाना खाया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। करीब एक घंटे बाद वागले अपने केबिन में आया और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर उसे फिर से पढ़ने लगा।

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रेशमी कपड़े वाली पैंटी में छुपी माया की चूत से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी जो मुझे प्रतिपल मदहोश सा किए जा रही थी। रेशमी कपड़े वाली पैंटी का रंग सुनहरा था जो माया की चूत को ढंकने में सक्षम तो था किन्तु पूरी तरह से नहीं। उस पैंटी के किनारों से माया की चूत के अगल बगल वाला हल्का सुर्ख भाग साफ़ दिख रहा था जिससे मेरे दिल की धड़कनें एकदम से थमने लगीं थी। सुनहरे कपड़े की वजह से मुझे माया का कामरस तो नज़र न आया लेकिन चूत पर चिपके होने की वजह से मुझे समझने में ज़रा भी देरी नहीं हुई कि माया इस वक़्त बेहद गरम हो चुकी है जिसकी वजह से उसका कामरस उसकी पैंटी को इस कदर भिगो दिया है जिससे उसकी पैंटी उसकी चूत पर चिपक गई है।

कुछ पलों तक मैंने गौर से उस चिपके हुए सुनहरे कपड़े को देखा और फिर हल्के से मैंने उस कपड़े पर यानी कि माया की चूत पर अपना चेहरा रख दिया। पहले तो मेरे चेहरे पर हल्का सा ठण्डा एहसास हुआ और फिर जैसे ही मेरा चेहरा पूरी तरह माया की चूत पर धर गया तो मेरे होठों और नाक पर गर्मी का एहसास हुआ। माया की चूत मानो धधक रही थी। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई और अचानक ही जाने मुझे क्या हुआ कि मैंने अपनी जीभ निकाली और उस गीले सुनहरे कपड़े को चाटने लगा। मुझे मेरी जीभ में बड़े ही अजीब से स्वाद का एहसास हुआ जो खारा भी था और थोड़ा खट्टा भी था। उधर मेरे जीभ द्वारा इस तरह चाटने से माया के जिस्म में भी झटका लगा था और उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा लिया। एक तरफ से उसने अपनी दोनों टांगों को उठा कर मेरे सिर के दोनों तरफ से मेरे सिर को ही जकड़ लिया था।

मैं माया की चूत से निकले उस खटमिट्ठे कामरस को इस तरह चाटे जा रहा था जैसे वो मेरे लिए कोई अमृत था। उधर माया ज़ोर ज़ोर से सिसकियां लेते हुए मेरे सिर को हाथों से दबाए जा रही थी और साथ ही साथ अपनी टांगों की जकड़न को और भी बढ़ाती जा रही थी। मैं काफी देर तक माया की चूत को चाटता रहा उसके बाद मैंने अपने दाहिने हाथ की ऊँगली से माया की चूत को ढंके उस गीले रेशमी कपड़े को हटाया तो मेरी आँखों के सामने एक ऐसी चीज़ नज़र आई जो गुलाबी रंग की थी और उस पर न तो कहीं किसी बाल का एक रेशा था और ना ही कोई दाग़ था। एकदम चिकनी और गुलाबी चूत को मैं इस तरह देखने लगा था जैसे उसने मुझे अपने सम्मोहन में ले लिया हो। तभी माया ने मेरे सिर को फिर से अपनी चूत की तरफ दबाया तो मुझे होश आया।

मैंने किसी तरह चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा। माया बेड पर आँखे बंद किए लेटी हुई थी। उसके चेहरे के भाव साफ़ साफ़ बता रहे थे कि इस वक़्त वो किस दुनियां में डूबी हुई है। चेहरे के नीचे उसकी पर्वतों की तरह शिखर वाली दूधिया चूचियां उसके ज़रा से हिलने पर थिरक जाती थी। मेरे जिस्म में ये सब देख कर एक रोमांच की लहर दौड़ गई और मैंने दोनों हाथ बढ़ा कर झट से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया। माया के मुख से सिसकियां निकलने लगी। उसने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया और दूसरे हाथ को ले कर मेरे उन हाथों पर रख लिया जिन हाथों से मैं उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मसले जा रहा था।

माया ने अपने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया तो मैंने उसकी चूत को फिर से चूमना चाटना शुरू कर दिया। इस बार मेरी जीभ उसकी चूत की फांकों को खोल भी रही थी और उस पर घर्षण भी करती जा रही थी। माया की चूत बेहद गरम थी जिसका ताप मुझे अपनी जीभ पर महसूस हो रहा था। जीवन में मैं पहली बार किसी लड़की की चूत पर अपनी जीभ फिरा रहा था। मैं अक्सर सोचा करता था कि किताबों में जिस तरह लिखा होता है कि मर्द औरत की चूत को बड़े ही मज़े से चाटते हैं तो क्या ये सच में ऐसा ही होता होगा? क्या मर्द को किसी औरत की चूत चाटने में घिन न लगती होगी? आख़िर कोई मर्द औरत की उस जगह को कैसे इतना मज़े से चाट सकता है जिस जगह से औरत पेशाब करती है? ये तो हद दर्ज़े की घिनौनी बात हुई लेकिन इस वक़्त मेरी ये सोच जाने कहां गुम हो गई थी? इस वक़्त तो मैं ख़ुद ही माया की चूत को ये सोच कर मज़े से चाटे जा रहा था कि वो कोई अमृत है और उस अमृत को चाटने से मैं अमर हो जाऊंगा।

मैं इतने जुनूनी अंदाज़ से माया की चूत चाटे जा रहा था कि माया का कुछ ही देर में बुरा हाल हो गया। वो अपनी कमर को हवा में उठा उठा कर बेड पर पटकने लगी थी और साथ ही मेरे सिर को पूरी ताकत से अपनी चूत पर घुसेड़े दे रही थी। मेरा पूरा चेहरा माया के कामरस से लिसलिसा हो गया था जिसकी मुझे कोई ख़बर ही नहीं थी। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि माया का जिस्म एकदम से अकड़ गया है और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता माया के जिस्म को झटके लगने शुरू हो ग‌ए। झटकों के साथ ही माया की चूत से ढेर सारा कामरस निकल कर मेरे मुँह में भरने लगा। अपने मुँह में आए इस गाढ़े और गरम कामरस से मैं एकदम से बौखला गया और जल्दी से अपना सिर माया की चूत से हटाना चाहा लेकिन तभी माया ने अपनी दोनों टांगों के बीच फंसे मेरे सिर को और भी बुरी तरह से जकड़ लिया। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मैं माया की पकड़ से अपना सिर आज़ाद न कर सका। इस वक़्त माया में जाने कहां से इतनी ताकत आ गई थी कि उसने मुझे बुरी तरह अपनी टांगों के बीच जकड़ लिया था। मरता क्या न करता वाली हालत में मैं वापस ढीला हो कर उसकी बहती चूत पर ढेर हो गया। कुछ देर बाद जब माया के जिस्म पर लगने वाले झटके बंद हुए तो माया की जकड़ अपने आप ही ढीली पड़ती चली गई। माया की जकड़ ढीली हुई तो मैंने फ़ौरन ही अपना सिर उसकी चूत से उठा कर उसकी तरफ देखा।

मैं तो बुरी तरह हांफ ही रहा था लेकिन माया मुझसे कहीं ज़्यादा बुरी तरह हांफ रही थी। आँखें बंद किए वो इस तरह पड़ी थी जैसे उसमें अब कोई शक्ति ही न बची हो। लम्बी लम्बी सांस लेने की वजह से उसकी छातियां ऊपर नीचे हो रहीं थी। मैं भौचक्का सा माया की तरफ देखे जा रहा था। तभी मुझे अपने चेहरे और होठों पर चिपचिपा सा महसूस हुआ तो मेरा हाथ मेरे चेहरे पर गया। मैंने अपने चेहरे और मुँह के आस पास हाथ फिराया तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा चेहरा तो माया के कामरस से पूरी तरह सन गया है।

काफी देर बाद जब माया की हालत ठीक हुई तो उसने अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखा। उसकी आँखों में मेरे लिए मुझे ढेर सारा प्यार झलकता हुआ नज़र आया। मैंने जब उसकी तरफ देखा तो उसके होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। कुछ पलों तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद वो उठी और झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"ओह! तुम तो कमाल हो डियर।" फिर उसने मीठे स्वर में कहा_____"मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम पहली बार में ही मुझे इस तरह से ढेर कर दोगे। मैं हैरान हूं कि ये सब तुमने पहली बार में कैसे कर लिया?"
"मुझे नहीं पता।" मैंने धीमे स्वर में कहा_____"पता नहीं क्या हो गया था मुझे? मैं खुद अपने आप पर हैरान हूं कि ये सब मैंने कैसे किया?"

"तुमने मुझे असीम सुख दिया है डियर।" माया ने मुझे खुद से अलग करने के बाद मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"मैंने ट्रेनिंग के दौरान न जाने कितने ही मर्दों के साथ सेक्स किया है लेकिन बिना सेक्स किए इस तरह से पहली बार मुझे इतना आनंद मिला है। मेरा रोम रोम अभी भी उस मज़े को महसूस कर के आनंदित हो रहा है। तुम सच में छुपे रुस्तम हो डियर। मुझे तो लगता है कि तुम्हें कुछ सुखाने की ज़रूरत ही नहीं है बल्कि तुम्हें तो सब कुछ आता है। ख़ैर अच्छा है कि तुम्हें ये सब करना आता है। चलो अब मैं भी तुम्हें वैसा ही सुख और वैसा ही आनंद देती हूं जैसा तुमने मुझे दिया है।"

"पहले मुझे अपना चेहरा तो अच्छे से साफ़ कर लेने दो।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा_____"तुम्हारे कामरस से मेरा पूरा चेहरा ही भींग गया है। तुमने मुझे अपनी टांगों के बीच में इस तरह जकड़ लिया था कि मैं चाह कर भी अपना चेहरा तुम्हारी टांगों से छुड़ा नहीं पाया।"

"ओह! माफ़ करना डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"उस वक़्त मैं मज़े के सातवें आसमान में थी जिसकी वजह से मुझे किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। ख़ैर तुम चिंता मत करो, मेरी वजह से अगर तुम्हारा चेहरा ख़राब हुआ है तो मैं ही इसे साफ़ भी करुंगी।"

कहने के साथ ही माया ने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरी आँखों में देखते हुए वो मेरे चेहरे पर झुकती चली गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ चलीं कि अब माया मेरे साथ क्या क्या करेगी? उसके झुकने से मेरी आँखें अपने आप ही बंद हो गईं और तभी मेरे होठों पर उसके बेहद ही मुलायम होठों का गरम स्पर्श महसूस हुआ जिससे मेरे पुरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई। माया ने पहले दो तीन बार मेरे होठों को चूमा और फिर अपनी जीभ निकाल कर मेरे चेहरे के हर हिस्से पर फिराने लगी। मैं समझ गया कि वो मेरे चेहरे पर लगे अपने कामरस को चाट चाट कर मेरा चेहरा साफ़ कर रही है। मैं ये सोच कर बेहद ही रोमांचित हो उठा कि एक लड़की अपना ही कामरस चाट रही है।

मेरे जिस्म में मज़े की लहरें दौड़ने लगीं थी जिसकी वजह से फ़ौरन ही मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। माया मेरे बाएं तरफ बेड पर अधलेटी सी थी इस लिए शायद उसे मेरा खड़ा हुआ लंड नहीं दिख रहा था। माया पूरी तन्मयता से मेरे चेहरे पर लगे अपने कामरस को चाट रही थी और मैं उसके इस तरह चाटने से बेहद ही आनंद का अनुभव कर रहा था। उसकी चूचियां मेरे सीने पर कभी छू जातीं तो कभी धंस जातीं जिससे मेरा मज़ा दुगुना हो जाता था। कुछ देर बाद जब माया ने मेरे चेहरे से अपना सारा कामरस चाट लिया तो वो मेरे होठों को चूमते हुए मेरे गले की तरफ बढ़ी और गले से फिर सीने पर आ गई। माया मेरे सीने के हर हिस्से पर अपनी जुबान फेर रही थी और जब उसकी जुबान मेरे निप्पल पर चलती तो मेरे जिस्म का रोयां रोयां मज़े की तरंग में नाच उठता। मेरा लंड तो मज़े की इस तरंग में झटके पर झटके खा रहा था। मुझसे रहा न गया तो मैंने अपने दोनों हाथों से माया के सर को थाम लिया।

मेरे पूरे जिस्म को चूमते चाटते माया मेरे झटका खाते हुए लंड पर पहुंच ग‌ई। उसने अपने कोमल हाथों से जब मेरे लंड को पकड़ा तो मेरे जिस्म में एक बार फिर से झुरझुरी हुई। मैंने बड़ी मुश्किल से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। वो मेरे लंड को सहलाते हुए मुझे ही देख रही थी। मेरी नज़र जब उससे मिली तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसने अपने जिस्म से पता नहीं कब अपनी ब्रा और पैंटी को उतार कर फेंक दिया था जिसकी वजह से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मुझे साफ़ दिख रहीं थी। उसकी दोनों चूचियां मेरे मसलने से लाल सुर्ख पड़ गईं थी और एक चूची पर तो मेरे काटने का निशान भी दिख रहा था। मैं अपने काटे हुए निशान को देख कर मुस्कुरा उठा। मुझे मुस्कुराते देख उसने इशारे से ही पूछा कि क्या हुआ तो मैंने न में सिर हिला कर इशारे से ही बताया कि कुछ नहीं।

मेरे देखते ही देखते माया मेरे लंड पर झुकी और अपना मुँह खोल कर उसने मेरे लंड के मोटे से टोपे को अपने मुँह में भर लिया। उसके गरम गरम मुँह पर जैसे ही मेरा लंड घुसा तो मज़े से मेरी आँखें फिर से बंद हो गईं। उधर उसने मेरे टोपे को मुँह में भरने के बाद अंदर ही अपनी जीभ से उसके छेंद को कुरेदना शुरू कर दिया जिसकी वजह से मेरे मुँह से सिसकियां निकलने लगीं। मज़े की तरंग ने मुझे एक झटके से सातवें आसमान में पंहुचा दिया। कुछ देर अपनी जीभ से मेरे लंड के छेंद को कुरेदने के बाद माया ने मेरे लंड को मुँह से निकाल दिया। उसके ऐसा करने से मैंने एकदम से अपनी आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा। असल में मैं चाहता था कि अभी जिस मज़े में मैं पहुंच गया था उसी मज़े में मैं डूबा रहूं। मेरी तरफ देख कर माया शायद मेरे मनोभावों को समझ गई थी इस लिए उसने फिर से मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया।

मेरा लंड इतना मोटा और बड़ा था कि उसके मुँह में उसका टोपा ही समा पा रहा था। माया ने कोशिश करते हुए टोपे के साथ साथ मेरे लंड के कुछ और हिस्से को अपने मुँह के अंदर लिया और फिर अपना सिर नीचे ऊपर करते हुए मेरे लंड को कुल्फी की तरफ चूसने लगी। उसके गरम गरम मुख में मेरा लंड था और इसके बारे में सोच कर ही मैं मज़े के सागर में मानो गोते लगाने लगा था। मैंने फ़ौरन ही अपने हाथों को बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड पर दबाने लगा।

मज़े की तरंग में प्रतिपल मैं अपने होश खोता जा रहा था और पूरा ज़ोर लगा कर माया के मुँह में अपने लंड को और भी अंदर घुसेड़ता जा रहा था। आँखें बंद किए मैं अपनी कमर को उठा उठा कर माया के मुँह में अपना लंड पेल रहा था। मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकारियां पूरे कमरे में गूंजने लगीं थी और उसी के साथ मेरी भारी होती साँसें भी। मुझे अब इस बात का कोई इल्म नहीं था कि मेरे इस तरह ज़ोर देने पर माया की क्या हालत हुई जा रही होगी बल्कि मुझे तो इस वक़्त सिर्फ अपने मज़े की ही पड़ी थी। मेरे जिस्म का लहू बड़ी तेज़ी से मेरे लंड की तरफ दौड़ता हुआ जा रहा था। उधर माया के मुँह से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकल रही थी और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो मेरे लंड को अपने मुँह से निकालने की ज़द्दो जहद कर रही हो। अचानक ही उसने अपने दांत मेरे लंड पर गड़ाए तो मेरे मुख से घुटी घुटी सी चीख निकल गई और मैंने झट से उसके सिर को छोड़ दिया।

माया ने एक झटके से मेरे लंड को अपने मुँह से निकाल दिया। मैंने झटके से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा तो चौंक गया। उसका चेहरा बुरी तरह लाल सुर्ख पड़ा हुआ था और वो बुरी तरह हांफ रही थी। उसकी आँखों से आंसू के कतरे बहे हुए दिख रहे थे। उसकी हालत देख कर मैं ये सोच कर एकदम से घबरा गया कि इसे क्या हो गया है?

"तुम तो मेरी जान ही लेने पर उतारू हो गए डियर।" उसने अपनी उखड़ी हुई साँसों को सम्हालते हुए और ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा_____"मज़े की तरंग में इतना भी अपना होश नहीं खो देना चाहिए कि अपने सेक्स पार्टनर का कोई ख़याल ही न रह जाए।"

"म..मुझे माफ़ कर दो।" मैंने जल्दी से उठ कर उससे शर्मिंदा हो कर कहा_____"मुझे सच में इस बात का ख़याल ही नहीं रह गया था कि अपने मज़े में मैं तुम्हें तक़लीफ दिए जा रहा हूं। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। अब से ऐसा नहीं होगा।"

"कोई बात नहीं डियर।" माया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं समझ सकती हूं कि पहली बार में ये सब तुमसे अंजाने में हो गया है। ख़ैर चलो फिर से शुरू करते हैं।"

माया की बात सुन कर मैंने राहत की सांस ली और सिर को हिलाते हुए चुप चाप बेड पर लेट गया। मेरे लेटते ही माया ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी तरफ देखते हुए उसने मेरे लंड को फिर से थाम लिया। मेरा लंड थोड़ा ढीला सा पड़ गया था जोकि उसके हाथ में आते ही फिर से ठुमकने लगा था।

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