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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] ( Completed )

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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सातवाँ भाग

बहुत ही जबरदस्त और कामुक।।

माया को विक्रम के हथियार का उद्घाटन करने का मौका मिला। माया ने उसे अच्छी तरह समझाया। विक्रम बहुत शर्मा रहा था। माया के समझाने के बाद वो अपने फॉर्म में आ गया। फिर तो उसने ऐसा कमाल दिखाया कि माया जैसी खेली खाई लड़की ने भी अपने हथियार डाल दिये। सच मे विक्रम को घी से चुपड़ी रोटी मिली थी वो भी शहद लगा के। तो उसका टूट पड़ना बनता था उसपर।।

वागले इतना ज्यादा तल्लीन था कि फ़ोन आने पर उसकी झांठे सुलग गई। उसने मन ही मन गाली दी फ़ोन करने वाले को। आखिर क्यों न गाली दे। फ़ोन की गलत मौके पर आया था, जब वो विक्रम की आत्मकथा पढ़कर अपने चरम पर पहुच गया था। विक्रम इतना ज्यादा अधीर हो गया कि माया की माया को तोड़कर उसका मुंह सूजा दिया।।

Shukriya mahi madam is khubsurat pratikriya ke liye,,,,,:hug:
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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क्या बात है ! मासूम राइटर ने तो सारी मासूमियत त्याग दी । पहली बार इतने खुलकर शब्दों का प्रयोग किया है । डिटेल में काम क्रीड़ा का वर्णन किया है । :D
लेकिन जो भी हो बहुत बढ़िया लिखा है आपने । कामुक और उत्तेजक अपडेट दिया है आपने ।
Kahani ke title ke hisab se thoda detail me varnan karne ka socha,,,,::D
बहुत बढ़िया अपडेट था शुभम भाई । जगमग जगमग अपडेट
Shukriya bade bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,,,:hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 08
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अब तक,,,,,

"कोई बात नहीं डियर।" माया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं समझ सकती हूं कि पहली बार में ये सब तुमसे अंजाने में हो गया है। ख़ैर चलो फिर से शुरू करते हैं।"

माया की बात सुन कर मैंने राहत की सांस ली और सिर को हिलाते हुए चुप चाप बेड पर लेट गया। मेरे लेटते ही माया ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी तरफ देखते हुए उसने मेरे लंड को फिर से थाम लिया। मेरा लंड थोड़ा ढीला सा पड़ गया था जोकि उसके हाथ में आते ही फिर से ठुमकने लगा था।


अब आगे,,,,,


माया बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए मेरा लंड सहलाए जा रही थी और मैं आँखें बंद कर के ये सोचने लगा था कि साला समय भी क्या चीज़ है जिसके बारे में कोई भी इंसान ये नहीं कह सकता कि कब क्या हो जाए? मैंने तो इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि मेरे जीवन में कभी ऐसा भी वक़्त आएगा जब एक खूबसूरत लड़की मेरे लंड को इस तरह से अपने हाथ में ले कर सहलाएगी और मुझे मज़े के सातवें आसमान में पहुंचा देगी। एक वक़्त था जब मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात करने में भी शर्माता था और आज ये वक़्त है कि वही लड़की ज़ात मुझे सेक्स का ज्ञान दे रही थी और मैं बिना शर्माए उससे अपना लंड सहलवाते जा रहा था।

मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकी निकल गई। माया ने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया था और अब वो उसका चोपा लगा रही थी। उसने मेरे लंड को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया था और मेरे लंड के टोपे को इस तरह से चूसे जा रही थी कि पूरे कमरे में दो तरह की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। एक तो मेरी सिसकारियों की और एक उसके चोपा लगाने की। मैं एक पल में ही मज़े के सागर में गोते लगाने लगा था। मेरे अंडकोषों में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी हो रही थी। मेरे मुँह से तेज़ तेज़ आहें और सिसकारियां निकल रहीं थी और मैं बेड पर पड़ा जैसे छटपटाने सा लगा था।

मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैंने जल्दी से हाथ बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड से हटाने के लिए ज़ोर लगाया तो माया ने अपने मुँह से मेरे लंड को निकाल दिया और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा।

"क्या हुआ डियर?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा____"क्या तुम्हें मेरे ऐसा करने से मज़ा नहीं आ रहा?"
"अ..ऐसी बात नहीं है।" मैंने अपनी साँसों को और ख़ुद की हालत को काबू करते हुए कहा_____"मज़ा तो मुझे इतना आ रहा है कि मैं उसके बारे में बता ही नहीं सकता लेकिन मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या आज सारा दिन हम यही करते रहेंगे? मेरा मतलब है कि क्या हम इसके आगे नहीं बढ़ेंगे?"

"बिल्कुल बढ़ेंगे डियर।" माया ने उसी मुस्कान के साथ कहा_____"मैं तो बस तुम्हें मज़ा देने के लिए तुम्हारे इस हलब्बी लंड को मुँह में ले कर चूस रही थी। अगर तुम्हारा मन इससे आगे बढ़ने का है तो ठीक है, चलो वही करते हैं।"

माया ने ये कहा तो मैंने खुश हो कर हां में सिर हिला दिया। असल में मैं अब सच में यही चाहता था कि अब मैं वो करूं जो हर लड़के की ख़्वाहिश होती है, यानी किसी लड़की की चूत में अपना लंड डाल कर उसे हचक हचक के चोदना। हालांकि मेरे लिए ये सब एक नया अनुभव था और मुझे इसमें बेहद मज़ा भी आ रहा था लेकिन अब ये सब मुझे ऊबता सा लगने लगा था। अब तो मुझे यही लग रहा था कि कितना जल्दी मैं इस माया की चूत में अपने लंड को डाल दूं और उसके ऊपर सवार हो कर उसकी धुआंधार चुदाई शुरू कर दूं।

"एक बात हमेशा याद रखना डियर।" माया मेरी तरफ आते हुए बोली_____"और वो ये कि तुम जिस फील्ड के लिए आए हो उसमें तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि औरत के मन का करना होगा। औरत जिस तरह से चाहेगी तुम्हें उस तरह से उसे खुश करना होगा। औरत के खुश होने पर या संतुष्ट होने पर ही ये माना जाएगा कि तुम अपनी सर्विस देने में कामयाब हुए हो। अगर तुम्हारी वजह से कोई औरत खुश न हुई और उसने शिकायत का कोई पैग़ाम भेज दिया तो समझो कि इसके लिए तुम्हें संस्था द्वारा सज़ा भी दी जाएगी।"

"य..ये क्या कह रही हो तुम?" मैं माया की ये बातें सुन कर बुरी तरह हैरान हो गया था।
"यही सच है डियर।" माया मुझसे सट कर बैठते हुए बोली____"हालाँकि हम लोग ये बातें किसी को भी नहीं बताते लेकिन क्योंकि तुम ख़ास हो इस लिए मैंने तुम्हें बता दिया है और हां इस बात का ज़िक्र तुम संस्था में किसी से भी मत करना वरना इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"क्या ये भी संस्था का कोई नियम है?"
"शायद अभी तुम्हें संस्था के सारे नियम कानून नहीं बताये गए हैं।" माया ने कहा_____"वरना मेरी बात सुन कर तुम इस तरह हैरान नहीं होते। ख़ैर कोई बात नहीं, जल्द ही तुम्हें सारे नियम कानून पता चल जाएंगे। चलो अब छोड़ो ये बातें और अपनी मर्ज़ी से वो करो जो तुम करना चाहते हो।"

माया इतना कह कर बेड पर सीधा लेट गई थी। उसका गोरा और मादक जिस्म ऐसा था कि मैं चाह कर भी उसके बदन से नज़र नहीं हटा सकता था। उसके सीने पर गर्व से तने हुए बड़े बड़े पर्वत शिखर इतने सुडौल और सुन्दर थे कि मुझसे रहा न गया। मैंने झुक कर फ़ौरन ही उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भर लिया। अपने दूसरे हाथ से मैंने माया की दूसरी चूची को मसलना शुरू कर दिया। एक हाथ से मैं उसके पेट और नाभि को सहलाने लगा। माया के जिस्म में इसका असर हुआ तो उसने मेरे सिर पर अपना एक हाथ रख लिया जबकि दूसरे हाथ से उसने बेड की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया।

माया की चूचियों को चूमते हुए मैं जल्दी ही नीचे आया और उसकी रस से भरी चूत को कुछ पल देखने के बाद मैंने उस पर अपना मुँह रख दिया। अपनी जीभ निकाल कर मैंने उसकी चूत की फांकों के बीच नीचे से ऊपर की तरफ फेरा तो माया के जिस्म में कंपकंपी सी हुई। इधर मेरे मुँह में उसकी चूत के रस का खटमिट्ठा स्वाद भर गया। मैंने अपने एक हाथ की दो उंगलियों से उसकी चूत की फांकों को फैलाया तो मुझे उसके अंदर सुर्ख रंग का लिसलिसा सा मंज़र नज़र आया। मेरे बदन में एक झुरझुरी सी हुई और मैंने अपनी एक ऊँगली उसके छेंद पर डाल दिया जिससे माया के जिस्म में फिर से कंपकंपी हुई। उसकी चूत में एक ऊँगली डालने के बाद मैंने उसे यूं ही अंदर घुमाया। मेरी पूरी ऊँगली उसके कामरस से भींग गई थी। मैंने ऊँगली निकाल कर देखा और उसे मुँह में भर लिया। कामरस के स्वाद से बड़ा अजीब सा एहसास हुआ मुझे। मेरा मन किया कि मैं माया की चूत को खा ही जाऊं लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं था।

मैं अब और बरदास्त नहीं कर सकता था इस लिए मैं उठा और माया की दोनों टांगों को फैला कर उसके बीच में आ गया। मेरा लंड इतना कठोर हो गया था कि अब मुझे उसमें दर्द सा होने लगा था। मेरे पास किताबी ज्ञान था जिसके सहारे मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से माया की चूत की फांकों को फैला कर अपने लंड को उसके छेंद के पास टिकाया। मेरी धड़कनें इस वक़्त काफी तेज़ी से चल रहीं थी और इस वक़्त मैं अजीब ही हालत में पहुंच गया था। चूत के छेंद पर लंड के टोपे को टिका कर मैंने अपनी कमर को आगे की तरफ हल्के से ढकेला तो मेरा हाथ माया की चूत से छूट गया जिससे मेरा लंड भी फिसल गया। मैंने चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे अपनी तरफ ही मुस्कुराते हुए देखता पाया। उसे इस तरह मुस्कुराते देख मुझे शर्म सी महसूस हुई और मैंने फ़ौरन ही उसकी तरफ से नज़रें हटा ली।

मैंने फिर से अपने लंड को माया की चूत के छेंद पर अच्छे से टिकाया और इस बार ज़रा सावधानी से अपनी कमर को आगे की तरफ ढकेला तो मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुस गया। टोपा घुसते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई और मैंने फिर से नज़र उठा कर माया की तरफ देखा। इस बार उसे मुस्कुराता देख मुझे शर्म नहीं महसूस हुई बल्कि ऐसा लगा जैसे मैंने बहुत बड़ी फ़तह हासिल कर ली हो। खै़र मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुसा तो मैंने अपने लंड से अपना हाथ हटा लिया और माया की दोनों जाँघों को पकड़ कर अपनी कमर को और भी आगे की तरफ धकेला तो मेरा लंड फिर से उसकी चूत में अंदर की तरफ घुसा। मैंने महसूस किया कि माया की चूत अंदर से बेहद गरम है और उसने चारो तरफ से मेरे लंड को जकड़ लिया है।

तीन चार बार में मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लंड को आधे से ज़्यादा माया की चूत में उतार दिया था। माया के मुख से हर बार सिसकी निकल जाती थी। जब मेरा लंड आधा उसकी चूत में उतर गया तो माया ने मुझे धीरे धीरे धक्का लगाने को कहा तो मैं अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। गीली और गरम चूत पर मेरा लंड बहुत ज़्यादा तो नहीं लेकिन कसा हुआ ज़रूर लग रहा था और जैसे जैसे मैं उसे अंदर बाहर कर रहा था वैसे वैसे मुझे मज़ा आ रहा था। देखते ही देखते मज़े में आ कर मैंने तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने महसूस किया कि अब ये मेरे लिए मुश्किल काम नहीं है और शायद यही वजह थी कि मेरे धक्कों की रफ़्तार पहले की अपेक्षा तेज़ हो गई थी। माया की मांसल जाँघों को पकड़े मैं तेज़ तेज़ धक्के लगाए जा रहा था। हर धक्के के साथ मेरा लंड और भी गहराई में उतरता जा रहा था जिसकी वजह से माया के मुँह से सिसकारियों के साथ साथ अब आहें भी निकलने लगीं थी।

किसी लड़की के साथ चुदाई करने में सच में इतना मज़ा आता है ये मुझे अब पता चल रहा था। मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं थी। मैं आनंद में अपने होश खोता जा रहा था और धीरे धीरे मुझमें एक जूनून सा सवार होता जा रहा था। उसी जूनून के तहत मैं और भी तेज़ी से माया की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करता जा रहा था। मैंने नज़र उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे मज़े में अपनी आँखें बंद किए पाया। उसकी बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां मेरे हर धक्के पर उछल पड़ती थीं। चूचियों का उछलना देख कर मुझे और भी ज़्यादा जोश चढ़ गया और मैं और भी तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

पूरे कमरे में माया की मज़े में डूबी आहें और सिसकारियां गूँज रहीं थी। बीच बीच में वो ये भी बोलती जा रही थी कि हां डियर ऐसे ही, बहुत मज़ा आ रहा है। उसके ऐसा कहने पर मैं दोगुने जोश में धक्के लगाने लगता। मैं ख़ुद भी बुरी तरह हांफने लगा था लेकिन मज़ा इतना आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। काफी देर तक यही आलम रहा। उसके बाद माया ने मुझे रुकने को कहा तो मैं रुक गया। मुझे उसका यूं रोकना अच्छा तो नहीं लगा था लेकिन जब मैंने उसे घोड़ी बनते हुए देखा तो मुझे किताब में बने चित्र की याद आई और मैं मुस्कुरा उठा। घोड़ी बनते ही माया ने मुझसे कहा कि मैं पीछे से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई करूं तो मैंने ऐसा ही किया। मेरे मोटे लंड की वजह से उसकी चूत का छेंद खुला हुआ साफ़ दिख रहा था जिसकी वजह से मुझे उसके छेंद पर अपना लंड डालने में कोई परेशानी नहीं हुई।

माया घोड़ी बनी हुई थी और मैं उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। काफी देर तक मैं ऐसे ही धक्के लगाता रहा। माया जब थक गई तो उसने फिर से मुझे रुकने को कहा।

"तुम सच में कमाल हो डियर।" माया ने सीधा हो कर लेटते हुए कहा_____"मैंने ऐसा मर्द नहीं देखा जिसका पहली बार में इतना गज़ब का स्टेमिना हो। काश तुम हमेशा के लिए मेरे पास ही रहते।"

"तुम एक ऐसी लड़की हो माया।" मैंने माया को उसके नाम से सम्बोधित करते हुए कहा____"जिसने मुझे जीवन में पहली बार सेक्स का इतना सुख दिया है। इस लिए तुम्हारे लिए मेरे दिल में हमेशा एक ख़ास जगह रहेगी। अगर तुम्हें संभव लगे तो मुझे ज़रूर याद करना। मैं जहां भी रहूंगा तुम्हारे पास ज़रूर आऊंगा।"

"यही तो मुश्किल है डियर।" माया ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा_____"यहाँ से जाने के बाद कोई भी मर्द हमारे पास वापस नहीं आता और ना ही हमने कभी उन्हें बुलाने की कोशिश की। ऐसा नहीं है कि हमें कभी उन मर्दों की याद नहीं आती लेकिन नियम कानून के डर से हमने कभी भी उन्हें बुलाने का नहीं सोचा। दूसरी बात ये भी थी कि उनसे सम्बन्ध स्थापित करने का हमारे पास कोई जरिया नहीं था। ख़ैर छोड़ो ये सब बातें और इस असीम सुख का आनंद लो। जब तक यहाँ हो तब तक तो तुम हमारे ही रहोगे न।"

माया की इस बात ने मेरा दिल खुश कर दिया था। मैंने उसके होठों को प्यार से चूम लिया और एक बार फिर से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई का कार्यक्रम शुरू कर दिया। इस बार मैंने पहले से भी ज़्यादा जोश में आ कर माया की हचक हचक कर चुदाई की थी। माया इस बार ज़्यादा देर तक ठहर नहीं पाई और झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। झड़ते वक़्त उसने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी कमर को जकड़ लिया था। जब वो झड़ कर शांत हो गई तो मैंने फिर से धक्के तेज़ कर दिए। क़रीब पांच मिनट बाद ही मुझे लगने लगा कि अब मैं भी झड़ने की कगार पर आ गया हूं। मेरे मुँह से निकलती सिसकारियों से ही माया को पता चल गया कि मैं झड़ने वाला हूं इस लिए उसने फ़ौरन ही मुझे अपनी चूत से मेरा लंड निकालने को कहा तो मैंने न चाहते हुए भी अपना लंड निकाल लिया।

मैंने लंड निकाला तो माया जल्दी से उठी और मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया। मैं इस वक़्त बेहद आनंद और जोश में था इस लिए जैसे ही उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भरा तो मैंने उसके सिर को पकड़ कर उसके मुख को ही चोदना शुरू कर दिया। जल्दी ही मैं मज़े की चरम सीमा पर पंहुच गया और फिर एक लम्बी आह भरते हुए मेरा पूरा जिस्म अकड़ गया। मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरने लगा। मुझे कोई होश नहीं था कि मैंने कितने झटके खाए और मेरे लंड का सारा पानी कहां गया। चौंका तब जब माया ने मुझे ज़ोर का धक्का दिया। उसके धक्के से मैं बेड पर भरभरा कर गिर गया। उधर माया का मुँह मेरे लंड से निकले कामरस से लबालब भरा हुआ था और उसके मुख से बाहर भी निकल कर बेड पर गिरता जा रहा था। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ा हुआ था। आँखें बंद करते वक़्त मुझे एहसास हुआ कि शायद एक बार फिर से मैंने माया की हालत ख़राब कर दी थी जिसके लिए मुझे बेहद अफ़सोस और शर्मिंदगी हुई।

☆☆☆

शिवकांत वागले ने फ़ौरन ही डायरी को बंद कर दिया और लम्बी लम्बी सांसें लेते हुए कुर्सी की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका लिया। इस वक़्त उसकी हालत बड़ी अजीब सी दिख रही थी। चेहरे पर पसीना उभरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर का तापमान इस वक़्त बढ़ गया था। हालांकि सच तो यही था कि उसके अंदर का तापमान बढ़ चुका था। विक्रम सिंह की डायरी में उसकी गरमा गरम कहानी पढ़ कर उसकी ख़ुद की हालत ख़राब हो गई थी। दो दो जवान बच्चों का बाप होते हुए भी वागले अपने अंदर सेक्स की गर्मी महसूस कर रहा था। कहानी में तो विक्रम सिंह और माया चरम सीमा में पहुंच कर तथा आनंद को प्राप्त कर के शांत पड़ गए थे लेकिन यहाँ वागले का हाल बेहाल सा नज़र आ रहा था। उसका अपना लंड पैंट के अंदर अकड़ा हुआ था।

वागले ने अपनी मौजूदा हालत को ठीक करने के लिए आँखें बंद कर ली किन्तु आँखें बंद करते ही उसकी बंद पलकों के तले कहानी के वो सारे मंज़र एक एक कर के दिखने लगे जिन्हें अभी उसने पढ़ा था। वागले ने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोली और केबिन में इधर उधर देखने के बाद उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास को उठा कर पानी पिया। माथे पर उभर आए पसीने को उसने रुमाल से पोंछा और फिर अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए उसने एक सिगरेट जला ली। सिगरेट के लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआँ हवा में उड़ाया। न चाहते हुए भी बार बार उसकी आँखों के सामने कहानी में लिखा एक एक मंज़र घूमने लगता था। वागले सोचने लगा कि विक्रम सिंह जैसा इंसान एक डायरी में अपनी इस तरह की आप बीती कैसे लिख सकता है जबकि उसे ख़ुद इस बात का एहसास हो कि अगर उसका लिखा हुआ किसी ने पढ़ लिया तो उसके बारे में क्या सोचेगा?

शिवकांत वागले को समझ में नहीं आ रहा था कि अगर विक्रम सिंह को उसे अपने अतीत के बारे में ही बताना था तो वो दूसरे तरीके से लिख कर भी बता सकता था लेकिन इस तरह सेक्स से भरी कहानी लिखने का क्या मतलब था उसका? आख़िर उसके ज़हन में इस तरह से अपनी आप बीती लिखने की मूर्खता क्यों आई होगी? वागले को याद आया कि जिस दिन विक्रम सिंह ने उसे ये डायरी दी थी उस दिन उसने जाते समय उससे ये भी कहा था कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें लेकिन वो उसे खोजने की कभी कोशिश न करे। वागले को समझ न आया कि आख़िर विक्रम सिंह ने उससे ऐसा क्यों कहा होगा? क्या इसके पीछे भी कोई ऐसी बात हो सकती है जिसके बारे में फिलहाल वो सोच नहीं पा रहा है?

शिवकांत वागले की बेचैनी जब सिगरेट पीने के बाद भी शांत न हुई तो वो कुर्सी से उठ कर जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। इसके पहले वो डायरी को ब्रीफ़केस में डालना नहीं भूला था। शाम तक वागले जेल में ही इधर उधर चक्कर लगाता रहा और दूसरे कुछ ख़ास कै़दियों से मिलता जुलता रहा। उसके बाद वो ब्रीफ़केस ले कर अपने सरकारी आवास की तरफ निकल गया।

घर पर आया तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला। वागले ने एक नज़र सावित्री पर डाली और फिर बिना कुछ बोले ही अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसका बेटा चंद्रकांत और बेटी सुप्रिया शायद घर पर नहीं थी वरना इस वक़्त वो वागले को ड्राइंग रूम में ज़रूर दिख जाते। ख़ैर वागले ने कमरे में जा कर अपनी वर्दी उतारी और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया।

इधर सावित्री किचेन में उसके लिए चाय बनाने लगी थी और सोचती भी जा रही थी कि क्या उसका पति सच में उससे नाराज़ है या फिर ये उसका वहम है? हालांकि जब उसने दरवाज़ा खोला था तो वागले ने उससे कोई बात नहीं की थी और इसी बात से सावित्री को लगने लगा था कि उसका पति शायद सच में ही उससे नाराज़ है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वो अपने पति से किस तरह बात करे?

नहा धो कर और पजामा कुर्ता पहन कर वागले कमरे से निकला और घर से बाहर लान में एक तऱफ रखी कुर्सी पर बैठ गया। सावित्री उसी के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही वो बाहर गया तो सावित्री भी ट्रे में दो कप चाय ले कर बाहर निकल गई। लान में वागले के पास आ कर उसने ट्रे को अपने पति के सामने किया तो वागले ने बिना कुछ बोले चुपचाप ट्रे से चाय का कप उठा लिया। सावित्री ने ट्रे से अपना कप ले कर ट्रे को वही सेंटर टेबल पर रख दिया और उस पार रखी एक कुर्सी पर बैठ गई।

शिवकांत वागले ने जब सावित्री को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठते देखा तो वो अपनी कुर्सी से उठ गया। सावित्री ये देख कर चौंकी और उसने वागले की तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा_____"कहां जा रहे हैं? अब क्या मेरा चेहरा भी नहीं देखना चाहते हैं?"

वागले ने सावित्री की इस बात को सुन कर एक नज़र उसकी तरफ देखा और बिना कुछ कहे अंदर की तरफ चला गया। पति के इस तरह चले जाने से सावित्री को बहुत बुरा लगा। आज सारा दिन वो यही सब सोच कर उदास रही थी और इस वक़्त पति का ऐसा बर्ताव देख कर उसका गला भर आया था। हालांकि वो जानती थी कि दोष उसी का है। माना कि उसके दो दो जवाब बच्चे थे लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता था न कि बच्चों के जवान हो जाने की वजह से उनका अपना कोई निजी जीवन ही नहीं रहा या अपनी कोई हसरतें ही नहीं रहीं? सावित्री जानती थी कि वागले कभी इस तरह उसे सेक्स के लिए नहीं कहता था बल्कि वो तभी कहता था जब कभी ख़ुद उसका मन होता था वरना दोनों के बीच अब सेक्स न के बराबर ही होता था। सावित्री तो कभी भी इसके लिए पहल नहीं करती थी और वागले अगर पहल करता था तो सावित्री हमेशा ही उसे जवाब में बच्चों का हवाला दे कर इसके लिए मना कर देती थी। इसके पहले वागले कभी भी इस तरह उससे नाराज़ नहीं हुआ था किन्तु इस बार शायद सावित्री ने सच में उसका दिल दुख दिया था।

सावित्री की आँखों में आंसू तो आए लेकिन कुर्सी से उठ कर वागले के पीछे जाने की उसमें हिम्मत न हुई। किसी तरह उसने चाय ख़त्म की और फिर अंदर जा कर रात के लिए खाना बनाने में लग गई। उधर वागले दूसरे कपड़े पहन कर घर से बाहर कहीं निकल गया।

रात में वागले उस वक़्त आया जब खाना खाने का वक़्त हो गया था। खाना खाने के बाद वो कमरे में गया और पैंट की जगह पजामा पहन कर बाहर आया। ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर वो बैठ गया और टीवी चला कर उसमें न्यूज़ देखने लगा। न्यूज़ देखने में वो इतना खो गया कि उसे वक़्त का पता ही नहीं चला और शायद आगे भी उसे पता न चलता अगर सावित्री आ कर स्विच बोर्ड से टीवी का बटन न बंद कर देती।

"सोने का वक़्त हो गया है।" सावित्री ने शांत भाव से कहा_____"कमरे में चलिए। मैंने दूध का गिलास वहीं स्टूल में रख दिया है।"
"ज़रुरत नहीं है।" वागले ने रूखे भाव से कहा____"मैं यहीं सोऊंगा।"

"अब भला ये क्या बात हुई?" सावित्री ने कातर भाव से वागले की तरफ देखा तो वागले ने सपाट लहजे में कहा____"बात कुछ नहीं हुई। मुझे यहीं पर सोना है। तुम जाओ और सो जाओ।"
"पहले तो कभी आप यहाँ नहीं सोए।" सावित्री ने कहा____"फिर आज क्यों यहाँ पर सोने को कह रहे हैं?"

"क्योंकि यही पर मेरा सोने का मन है।" वागले ने कहा____"अब जाओ यहाँ से।"
"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए?" सावित्री ने इस बार थोड़ा दुखी भाव से कहा____"बच्चे पास में ही अपने कमरे में है। अगर उन्होंने सुन लिया कि आप यहाँ सोने की बात कह रहे हैं तो वो क्या सोचेंगे?"

"तो क्यों सुना रही हो उन्हें?" वागले ने उखड़े हुए भाव से कहा____"जब मैंने कह दिया कि मुझे यहीं पर सोना है तो क्यों मुझे कमरे में सोने को कह रही हो? अब जाओ यहाँ से या फिर अगर चाहती हो कि बच्चे सुन ही लें तो ऐसे ही लगी रहो। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।"

"मैं मानती हूं कि मुझसे ग़लती हुई है।" सावित्री की आँखों में आंसू भर आए____"इस लिए मैं अपनी ग़लती को स्वीकार करती हूं और अब से वही करुँगी जो आप चाहेंगे। अब भगवान के लिए गुस्सा थूक दीजिए और कमरे में चलिए।"

"तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुमसे उस वजह से गुस्सा हूं?" वागले ने कहा____"नहीं, तुम ग़लत सोच रही हो। तुम्हारी इच्छाएं मर गई हैं तो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है बल्कि दोष तो मेरा है जिसे अभी तक तृष्णा ने अपना शिकार बना रखा है, लेकिन तुम फ़िक्र मत करो। मैं अपनी ज़रूरत कहीं और से पूरी कर लूंगा। आज की दुनियां में पैसे से सब कुछ मिल जाता है।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए____"इतनी सी बात के लिए आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं?"
"क्यों नहीं सोच सकता?" वागले ने दो टूक भाव से कहा_____"मेरी ज़िन्दगी है, मैं जैसा चाहूं सोच सकता हूं। इसमें तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। जिस तरह तुम अपनी सोच के अनुसार जीवन जी रही हो उसी तरह हर इंसान को अपनी सोच के अनुसार जीवन जीने का हक़ है।"

"मैं कह तो रही हूं कि अब से जो आप कहेंगे मैं वही करुंगी।" सावित्री ने बेचैनी से कहा_____"फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप?"
"मुझे अब तुमसे कुछ नहीं चाहिए।" वागले ने स्पष्ट रूप से कहा____"अब जाओ यहाँ से, मेरा दिमाग़ मत ख़राब करो।"

"क्या हुआ पापा?" तभी ड्राइंग रूम में चंद्रकांत की आवाज़ गूँजी तो सावित्री ने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा। पीछे कमरे के दरवाज़े पर चंद्रकांत खड़ा था। अपने बेटे को देख कर और उसकी बात सुन कर जहां सावित्री ये सोच कर बुरी तरह घबरा गई कि कहीं उसके बेटे ने सारी बातें तो नहीं सुन ली तो वहीं वागले पर जैसे अपने बेटे की इस आवाज़ से कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

"कुछ नहीं बेटा।" वागले ने उसकी तरफ देखते हुए सामान्य भाव से कहा_____"वो हम ऐसे ही इधर उधर की बातें कर रहे थे। तुम जाओ अपने कमरे में, और आराम से सो जाओ।"
"जी पापा।" चंद्रकांत ने बड़े अदब से कहा और वापस अपने कमरे में जा कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

☆☆☆
 

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Update - 08
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Ab Tak,,,,,

"Koi baat nahi dear." Maya ne halke se muskurate huye kaha____"Main samajh sakti hu ki pahli baar me ye sab tumse anjaane me ho gaya hai. Khair chalo fir se shuru karte hain."

Maya ki baat sun kar maine raahat ki saans li aur sir ko hilaate huye chup chaap bed par let gaya. Mere lette hi maya ne apna hath badhaya aur meri taraf dekhte huye usne mere land ko fir se thaam liya. Mera land thoda sa dheela pad gaya tha jo ki uske haath me aate hi fir se thumakne laga tha.


Ab Aage,,,,,,



Maya bade pyar se meri taraf dekhte huye mera land sahlaye ja rahi thi aur main aankhe band kar ke ye sochne laga tha ki saala samay bhi kya cheez hai jiske bare me koi bhi insaan ye nahi kah sakta ki kab kya ho jaaye. Maine to is baat ka tasavvur bhi nahi kiya tha ki mere jeewan me kabhi aisa bhi waqt aayega jab ek khubsurat ladki mere land ko is tarah se apne hath me le kar sahlaayegi aur mujhe maze ke saatve asmaan me pahucha degi. Ek waqt tha jab main ladki zaat se khul kar baat karne me bhi sharmata tha aur aaj ye waqt hai ki wahi ladki zaat mujhe sex ka gyaan de rahi thi aur main bina sharmaye usse apna land sahalwate ja raha tha.

Main ye soch hi raha tha ki tabhi mere muh se maze me doobi siski nikal gayi. Maya ne mere land ko apne muh me bhar liya tha aur ab wo uska chopa laga rahi thi. Usne mere land ko dono hatho se kas kar pakad liya tha aur mere land ke tope ko is tarah se chuse ja rahi thi ki pure kamre me do tarah ki awaaze goojne lagi thi. Ek to meri siskaariyo ki aur ek uske chopa lagane ki. Main ek pal me hi maze ke saagar me gote lagane laga tha. Mere andkosho me badi tezi se jhurujhuri ho rahi thi. Mere muh se tez tez aahe aur siskaariya nikal rahi thi aur main bed par pada jaise chhatpatane sa laga tha.

Mujhse bardaast na hua to maine jaldi se hath badha kar maya ke sir ko pakda aur use apne land se hatane ke liye zor lagaya to maya ne apne muh se mera land nikaal diya aur meri taraf muskurate huye dekha.

"Kya hua dear?" Maya ne muskurate huye puchha____"Kya tumhe mere aisa karne se maza nahi aa raha?"
"Aisi baat nahi hai." Maine apni saanso ko aur khud ki haalat ko kaabu karte huye kaha____"Maza to mujhe itna aa raha hai ki main uske bare me bata hi nahi sakta, lekin main ye jaanna chahta hu ki kya aaj saara din ham yahi karte rahenge? Mera matlab hai ki kya ham iske aage nahi badhenge?"

"Bilkul badhenge dear." Maya ne usi muskaan ke sath kaha_____"Main to bas tumhe maza dene ke liye tumhare is halabbi land ko muh me le kar choos rahi thi. Agar tumhara man isse aage badhne ka hai to theek hai, chalo wahi karte hain."

Maya ne ye kaha to maine khush ho kar haan me sir hila diya. Asal me main ab sach me yahi chaahta tha ki ab main wo karu jo har ladke ki khwaahish hoti hai, yaani kisi ladki ki choot me apna land daal kar use hachak hachak ke chodna. Halaaki mere liye ye sab ek naya anubhav tha aur mujhe isme behad maza bhi aa raha tha lekin ab ye sab mujhe oobta sa lagne laga tha. Ab to mujhe yahi lag raha tha ki kitna jaldi main is maya ki choot me apne land ko daal du aur uske upar sawaar ho kar uski dhuadhaar chudaayi shuru kar du.

"Ek baat hamesha yaad rakhna dear." Maya meri taraf aate huye boli____"Aur wo ye ki tum jis field ke liye aaye ho usme tumhe apne man ka nahi karna hai balki aurat ke man ka karna hoga. Aurat jis tarah se chaahegi tumhe us tarah se use khush karna hoga. Aurat ke khush hone par ya santust hone par hi ye mana jayega ki tum apni service dene me kamyab huye ho. Agar tumhari vajah se koi aurat khush na huyi aur usne shikayat ka koi paigaam bhej diya to samjho iske liye tumhe sanstha dwara saza bhi di jaayegi."

"Ye...ye kya kah rahi ho tum?" Main maya ki ye baate sun kar buri tarah hairaan ho gaya tha.
"Yahi sach hai dear." Maya mujhse sat kar baithte huye boli____"Halaaki ham log ye baate kisi ko bhi nahi batate lekin kyoki tum khaas ho is liye maine tumhe bata diya hai, aur haan is baat ka zikra tum sanstha me kisi se bhi mat karna warna iska anjaam achha nahi hoga."

"Badi ajeeb baat hai." Maine gahri saans lete huye kaha____"Kya ye bhi sanstha ka koi niyam hai?"
"Shayad abhi tumhe sanstha ke saare niyam kanoon nahi bataye gaye hain." Maya ne kaha____"Warna meri baat sun kar tum is tarah hairaan nahi hote. Khair koi baat nahi, jald hi tumhe sare niyam kanoon pata chal jayenge. Chalo ab chhodo ye baate aur apni marzi se wo karo jo tum karna chahte ho."

Maya itna kah kar bed par seedha let gayi thi. Uska gora aur maadak jism aisa tha ki main chaah kar bhi uske badan se nazar nahi hata sakta tha. Uske seene par garv se tane huye bade bade parwat shikhar itne sudaul aur sundar the ki mujhse raha na gaya. Maine jhuk kar fauran hi uski chuchi ke ek nipple ko muh me bhar liya. Apne dusre hath se maine maya ki dusri chuchi ko masalna shuru kar diya. Ek hath se main uske pet aur naabhi ko sahlane laga. Maya ke jism me iska asar hua to usne mere sir par apna ek hath rakh liya jabki dusre hath se usne bed ki chaadar ko apni mutthi me bhar liya.

Maya ki chuchiyo ko chumte huye main jaldi hi neeche aaya aur uski ras se bhari choot ko kuch pal dekhne ke baad maine us par apna muh rakh diya. Apni jeebh nikaal kar maine uski choot ki faanko ke beech neeche se upar ki taraf fera to maya ke jism me kapkapi si huyi. Idhar mere muh me uski choot ke ras ka khatmittha swaad bhar gaya. Maine apne haath ki do ungaliyo se uski choot ki faanko ko failaya to mujhe uske andar surkh rang ka lislisa sa manzar nazar aaya. Mere badan me ek jhurujhuri si huyi aur maine apni ek ungli uske chhend me daal diya jisse maya ke jism me fir se kapkapi huyi. Uski choot me ek ungli daalne ke baad maine use yu hi andar ghumaya. Meri puri ungli uske kamras se bheeg gayi thi. Maine ungli nikaal kar dekha aur use muh me bhar liya. Kamras ke swaad se bada ajeeb sa ehsaas hua mujhe. Mera man kiya ki main maya ki choot ko kha hi jaau lekin aisa karna mumkin nahi tha.

Main ab aur bardaast nahi kar sakta tha is liye main utha aur maya ki dono taango ko faila kar uske beech me aa gaya. Mera land itna kathor ho gaya tha ki ab mujhe usme dard sa hone laga tha. Mere paas kitaabi gyaan tha jiske sahare maine ek hath se apne land ko pakda aur dusre hath se maya ki choot ki faanko ko faila kar apne land ko uske chhend ke paas tikaya. Meri dhadkane is waqt kafi tezi se chal rahi thi aur is waqt main ajeeb hi haalat me pahuch gaya tha. Choot ke chhend par land ke tope ko tika kar maine apni kamar ko aage ki taraf halke se dhakela to mera hath maya ki choot se chhoot gaya jisse mera land bhi fisal gaya. Maine chehra utha kar maya ki taraf dekha to use apni taraf hi muskurate huye dekhta paya. Use is tarah muskurate dekh mujhe sharm si mahsoos huyi aur maine fauran hi uski taraf se nazre hata li.

Maine fir se apne land ko maya ki choot ke chhend par achhe se tikaya aur is baar zara sawdhani se apni kamar ko aage ki taraf dhakela to mere land ka topa uski choot me ghus gaya. Topa ghuste hi mere hotho par muskaan ubhar aayi aur maine fir se nazar utha kar maya ki taraf dekha. Is baar use muskurata dekh mujhe sharm nahi mahsoos huyi balki aisa laga jaise maine bahut badi fatah haasil kar li ho. Khair mere land ka topa uski choot me ghusa to maine apne land se apna hath hata liya aur maya ki dono jaangho ko pakad kar apni kamar ko aur bhi andar ki taraf dhakela to mera land fir se uski choot me andar ki taraf ghusa. Maine mahsoos kiya ki maya ki choot andar se behad garam hai aur usne chaaro taraf se mere land ko jakad liya hai.

Teen chaar baar me maine aahista aahista apne land ko aadhe se zyada maya ki choot me utaar diya tha. Maya ke mukh se har baar siski nikal jati thi. Jab mera land aadha uski choot me utar gaya to maya ne mujhe dheere dheere dhakka lagane ko kaha to main apni kamar ko dheere dheere aage peeche karne laga. Geeli aur garam choot par mera land bahut zyada to nahi par kasa hua zarur lag raha tha aur jaise jaise main use andar baahar kar raha waise waise mujhe maza aa raha tha. Dekhte hi dekhte maze me aa kar maine tez tez dhakke lagane shuru kar diye. Maine mahsoos kiya ki ab ye mere liye mushkil kaam nahi hai aur shayad yahi vajah thi ki mere dhakko ki raftaar pahle ki apeksha tez ho gayi thi. Maya ki maansal janagho ko pakde main tez tez dhakke lagaye ja raha tha. Har dhakke ke sath mera land aur bhi gahraayi me utarta ja raha tha jiski vajah se maya ke muh se siskaariyo ke sath sath aahe bhi nikalne lagi thi.

Kisi ladki ke sath chudaayi karne me sach me itna maza aata hai ye mujhe ab pata chal raha tha. Mere aanand ki koi seema nahi thi. Main aanand me apne hosh khota ja raha tha aur dhire dhire mujh me ek junoon sa sawaar hota ja raha tha. Usi junoon ke tahat main aur bhi tezi se maya ki choot me apne land ko andar baahar karta ja raha tha. Maine nazar utha kar maya ki taraf dekha to use maze me apni aankhe band kiye paya. Uski badi badi kharbuje jaisi chuchiya mere har dhakke par uchhal padti thi. Chuchiyo ka uchhalna dekh kar mujhe aur bhi zyada josh chadh gaya aur main aur bhi tezi se dhakke lagane laga.

Pure kamre me maya ki maze me doobi aahe aur siskaariya goonj rahi thi. Bich bich me wo ye bhi bolti ja rahi thi ki haan dear aise hi, bahut maza aa raha hai. Uske aisa kahne par main dugune josh me dhakke lagane lagta. Main khud bhi buri tarah haafne laga tha lekin maza itna aa raha tha ki main rukne ka naam hi nahi le raha tha. Kaafi der tak yahi aalam raha. Uske baad maya ne mujhe rukne ko kaha to main ruk gaya. Mujhe uska yu rokna achha to nahi laga tha lekin jab maine use ghodi bante huye dekha to mujhe kitaab me bane chitra ki yaad aayi aur main muskura utha. Ghodi bante hi maya ne mujhse kaha ki main peeche se uski choot me apna land daal kar chudaayi karu to maine aisa hi kiya. Mere mote land ki vajah se uski choot ka chhend khula hua saaf dikh raha tha jiski vajah se mujhe uske chhend par apna land daalne me koi pareshani nahi huyi.

Maya ghodi bani huyi thi aur main uski kamar ko dono haatho se pakde tez tez dhakke laga raha tha. Kafi der tak main aise hi dhakke lagata raha. Maya jab thak gayi to usne fir se mujhe rukne ko kaha.

"Tum sach me kamaal ho dear." Maya ne seedha ho kar lette huye kaha___"Maine aisa mard nahi dekha jiska pahli baar me itna gazab ka stemina ho. Kaash Tum hamesha ke liye mere paas hi rahte."

"Tum ek aisi ladki ho maya." Maine maya ko uske naam se sambodhit karte huye kaha____"Jisne mujhe jeewan me pahli baar sex ka itna sukh diya hai. Is liye tumhare liye mere dil me hamesha ek khaas jagah rahegi. Agar tumhe sambhav lage to mujhe zarur yaad karna. Main jaha bhi rahuga tumhare paas zarur aauga."

"Yahi to mushkil hai dear." Maya ne jaise afsos jatate huye kaha____"Yaha se jane ke baad koi bhi mard hamare paas waapas nahi aata aur na hi hamne kabhi unhe bulaane ki koshish ki. Aisa nahi hai ki hame kabhi un mardo ki yaad nahi aati lekin niyam kanoon ke dar se hamne kabhi bhi unhe bulane ka nahi socha. Dusri baat ye bhi thi ki unse sambandh sthaapit karne ka hamare paas koi jariya nahi tha. Khair chhodo ye sab baate, aur is aseem sukh ka aanand lo. Jab tak yaha ho tab tak to hamare hi rahoge na."

Maya ki is baat ne mera dil khush kar diya tha. Maine uske hotho ko pyar se choom liya aur ek baar fir se uski choot me apna land daal kar chudaayi ka kaaryakram shuru kar diya. Is baar maine pahle se bhi zyada josh me aa kar maya ki hachak hachak kar chudaayi ki thi. Maya is baar zyada der tak thahar nahi paayi aur jhatke khaate huye jhadne lagi thi. Jhadte waqt usne apni dono taango ke beech meri kamar ko jakad liya tha. Jab wo jhad kar shaant ho gayi to maine fir se dhakke tez kar diye. Kareeb paanch minute baad hi mujhe lagne laga ki ab main bhi jhadne ki kagaar par aa gaya hu. Mere muh se nikalti siskaariyo se hi maya ko pata chal gaya ki main jhadne wala hu is liye usne fauran hi mujhe choot se mera land nikaalne ko kaha to maine na chaahte huye bhi apna land nikaal liya.

Maine land nikaala to maya jaldi se uthi aur mere land ko pakad kar apne muh me bhar liya. Main is waqt behad aanand aur josh me tha is liye jaise hi usne mere land ko apne muh me bhara to maine uske sir ko pakad kar uske mukh ko hi chodna shuru kar diya. Jaldi hi main maze ki charam seema par pahuch gaya aur fir ek lambi aah bharte huye mera pura jism akad gaya. Main jaise asmaan se dharti par girne laga. Mujhe koi hosh nahi tha ki maine kitne jhatke khaye aur mere land ka saara paani kaha gaya. Chaunka tab jab maya ne mujhe zor ka dhakka diya. Uske dhakke se main bed par bharbhara kar gir gaya. Udhar maya ka muh mere land se nikle kamras se labalab bhara hua tha aur uske mukh se baahar bhi nikal kar bed par girta ja raha tha. Uska chehra laal surkh pada hua tha. Aankhe band karte waqt mujhe ehsaas hua ki shayad ek baar fir se maine maya ki haalat kharaab kar di thi jiske liye mujhe behad afsos aur sharmindagi huyi thi.

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Shivkant wagle ne fauran hi diary ko band kar diya aur lambi lambi saanse lete huye kursi ki pichhli pusht se apni peeth tika liya. Is waqt uski haalat badi ajeeb si dikh rahi thi. Chehre par paseena ubhra hua tha. Aisa lag raha tha jaise uske andar ka taapmaan badh chuka tha. Vikram singh ki diary me uski garma garam kahani padh kar uski khud ki haalat kharaab ho gayi thi. Do do jawaan bachcho ka baap hote huye bhi wagle apne andar sex ki garmi mahsoos kar raha tha. Kahani me to vikram singh aur maya charam seema me pahuch kar tatha aanand ko praapt kar ke shaant pad gaye the lekin yaha wagle ka haal behaal sa nazar aa raha tha. Uska apna land paint ke andar akda hua tha.

Wagle ne apni maujooda haalat ko theek karne ke liye aankhe band kar li kintu aankhe band karte hi band palko ke tale kahani ke wo saare manzar ek ek kar ke dikhne lage jinhe abhi usne padha tha. Wagle ne fauran hi apni aankhe kholi aur cabin me idhar udhar dekhne ke baad usne table par rakhe paani ke glass ko utha kar paani piya. Maathe par ubhar aaye paseene ko usne rumaal se ponchha aur fir usne apni bechaini ko door karne ke liye ek cigarette jala li. Cigarette ke lambe lambe kash lene ke baad usne dher saara dhua hawa me udaya. Na chaahte huye bhi baar baar uski aankho ke saamne kahani me likha ek ek manzar ghoomne lagta tha. Wagle sochne laga ki vikram singh jaisa insaan ek diary me apni is tarah ki aap beeti kaise likh sakta hai, jabki use khud is baat ka ehsaas ho ki agar uska likha hua kisi ne padh liya to uske bare me kya sochega?

Shivkant wagle ko samajh me nahi aa raha tha ki agar vikram singh ko use apne ateet ke bare me hi batana tha to wo dusre tareeke se likh kar bhi to bata sakta tha lekin is tarah sex se bhari kahani likhne ka kya matlab tha uska? Aakhir uske zahen me is tarah se apni aap beeti likhne ki moorkhata kyo aayi hogi? Wagle ko yaad aaya ki jis din vikram singh ne use ye diary di thi us din usne jaate samay usse ye bhi kaha tha ki chaahe jaisi bhi paristhitiya bane lekin wo use khojne ki kabhi koshish na kare. Wagle ko samajh na aaya ki aakhir vikram singh ne usse aisa kyo kaha hoga? Kya iske peeche bhi koi aisi baat ho sakti hai jiske bare me filhaal wo soch nahi pa raha hai?

Shivkant wagle ki bechaini jab cigarette peene ke baad bhi shaant na huyi to wo kursi se uth kar jail ka chakkar lagane ke liye nikal gaya. Iske pahle wo diary ko briefcase me daalna nahi bhula tha. Shaam tak wagle jail me hi idhar udhar chakkar lagata raha aur dusre kuch khaas kaidiyo se milta julta raha. Uske baad wo briefcase le kar apne sarkari awaas ki taraf nikal gaya.

Ghar par aaya to savitri ne hi darwaza khola. Wagle ne ek nazar savitri par daali aur fir bina kuch bole hi apne kamre ki taraf badh gaya. Uska beta chandrakant aur beti supriya shayad ghar par nahi thi warna is waqt wo wagle ko dring room me zarur dikh jaate. Khair wagle ne kamre me ja kar apni wardi utaari aur tauliya le kar bathroom me ghus gaya.

Idhar savitri kitchen me uske liye chaay banane lagi thi aur sochti bhi ja rahi thi ki kya uska pati sach me usse naraz hai ya fir ye uska waham hai? Halaaki jab usne darwaza khola tha to wagle ne usse koi baat nahi ki thi aur isi baat se savitri ko lagne laga tha ki uska pati shayad sach me hi usse naraz hai. Use samajh nahi aa raha tha ki ab wo apne pati se kis tarah baat kare?

Naha dho kar aur pajama kurta pahan kar wagle kamre se nikla aur ghar se baahar lawn me ek taraf rakhi kursi par baith gaya. Savitri usi ke nikalne ka intzaar kar rahi thi. Jaise hi wo baahar aaya to savitri bhi tray me do cup chaay le kar baahar nikal gayi. Lawn me wagle ke paas aa kar usne tray ko apne pati ke saamne kiya to wagle ne bina kuch bole chup chaap tray se chaay ka cup utha liya. Savitri ne tray se apna cup le kar tray ko wahi centre table par rakh diya aur us paar rakhi ek kursi par baith gayi.

Shivkant wagle ne jab savitri ko apne saamne wali kursi par baithte dekha to wo apni kursi se uth gaya. Savitri ye dekh kar chaunki aur usne wagle ki taraf dekhte huye dheeme swar me kaha____"Kaha ja rahe hain? Ab kya mera chehra bhi nahi dekhna chaahte hain?"

Wagle ne savitri ki is baat ko sun kar ek nazar uski taraf dekha aur bina kuch kahe andar ki taraf chala gaya. Pati ke is tarah chale jane se savitri ko bahut bura laga. Aaj saara din wo yahi sab soch kar udaas rahi thi aur is waqt pati ka aisa bartaav dekh kar uska gala bhar aaya tha. Halaaki wo jaanti thi ki dosh usi ka hai. Mana ki uske do do jawaan bachche the lekin iska matlab ye to nahi ho sakta na ki bachcho ke jawaan ho jane ki vajah se unka apna koi niji jeewan hi nahi raha ya apni koi hasrate hi nahi rahi? Savitri jaanti thi ki wagle kabhi is tarah use sex ke liye nahi kahta tha balki wo tabhi kahta tha jab kabhi khud uska man hota tha, warna dono ke beech ab sex na ke barabar hi hota tha. Savitri to kabhi bhi iske liye pahal nahi karti thi aur wagle agar pahal karta tha to savitri hamesha hi use jawaab me bachcho ka hawala de kar iske liye mana kar deti thi. Iske pahle wagle kabhi bhi is tarah usse naraz nahi hua tha kintu is baar shayad savitri ne sach me uska dil dukha diya tha.

Savitri ki aankho me aansu to aaye lekin kursi se uth kar wagle ke peeche jane ni usme himmat na huyi. Kisi tarah usne chaay khatm ki aur fir andar ja kar raat ke liye khana banane me lag gayi. Udhar wagle dusre kapde pahan kar ghar se baahar kahi nikal gaya.

Raat me wagle us waqt aaya jab khana khane ka waqt ho gaya tha. Khana khane ke baad wo kamre me gaya aur paint ki jagah pajama pahan kar baaya aaya. Dring room me rakhe sofe par wo baith gaya aur tv chala kar usme news dekhne laga. News dekhne me wo itna kho gaya ki use waqt ka pata hi nahi chala aur shayad aage bhi use pata na chalta agar savitri aa kar switch board se tv ka button na band kar deti.

"Sone ka waqt ho gaya hai." Savitri ne shaant bhaav se kaha____"Kamre me chaliye. Maine doodh ka glass wahi stool me rakh diya hai."
"Zarurat nahi hai." Wagle ne rookhe bhaav se kaha____"Main yahi souga."

"Ab bhala ye kya baat huyi?" Savitri ne kaatar bhaav se wagle ki taraf dekha to wagle ne sapaat lahje me kaha____"Baat kuch nahi huyi. Mujhe yahi sona hai. Tum jaao aur so jaao."
"Pahle to kabhi aap yaha nahi soye." Savitri ne kaha____"Fir aaj kyo yaha par sone ko kah rahe hain?"

"Kyoki yahi par mera sone ka man hai." Wagle ne kaha____"Ab jaao yaha se."
"Bhagwan ke liye aisi baate mat kijiye." Savitri ne is baar thoda dukhi bhaav se kaha____"Bachche paas me hi apne kamre me hain. Agar unhone sun liya ki aap yaha sone ki baat kah rahe hain to wo kya sochenge?"

"To kyo suna rahi ho unhe?" Wagle ne ukhde huye bhaav se kaha____"Jab maine kah diya ki mujhe yahi par sona hai to kyo mujhe kamre me sone ko kah rahi ho? Ab jaao yaha se ya fir agar chaahti ho ki bachche sun hi le to aise hi lagi raho. Mujhe koi fark nahi padta."

"Main maanti hu ki mujhse galti huyi hai." Savitri ki aankho me aansu bhar aaye____"Is liye main apni galti ko swikaar karti hu aur ab se wahi karugi jo aap chaahenge. Ab bhagwan ke liye gussa thook dijiye aur kamre me chaliye."

"Tumhe kya lagta hai ki main tumse us wajah se gussa hu?" Wagle ne kaha____"Nahi, tum galat soch rahi ho. Tumhari ichhaaye mar gayi hain to isme tumhara koi dosh nahi hai, balki dosh to mera hai jise abhi tak trishna ne apna shikaar bana rakha hai. Lekin tum fikra mat karo, main apni zarurat kahi aur se puri kar luga. Aaj ki duniya me paise se sab kuch mil jata hai."

"Hey bhagwan ye kya kah rahe hain aap?" Savitri ke chehre par hairat ke bhaav ubhar aaye____"Itni si baat ke liye aap aisa kaise soch sakte hain?"
"Kyo nahi soch sakta?" Wagle ne do took bhaav se kaha____"Meri zindagi hai, main jaisa chaahu soch sakta hu. Isme tumhe koi samasya nahi honi chahiye. Jis tarah tum apni soch ke anusaar jeewan ji rahi ho usi tarah har insaan ko apni soch ke anusaar jeewan jeene ka haq hai."

"Main kah to rahi hu ki ab se jo aap kahenge main wahi karugi." Savitri ne bechaini se kaha____"Fir aisi baate kyo kar rahe hain aap?"
"Mujhe ab tumse kuch nahi chahiye." Wagle ne spasht roop se kaha____"Ab jaao yahe se, mera dinaag mat kharaab karo."

"Kya hua papa?" Tabhi dring room me chandrakant ki awaaz goonji to savitri ne chaunkte huye peeche mud kar dekha. Peechhe kamre ke darwaze par chandrakant khada tha. Apne bete ko dekh kar aur uski baat sun kar jaha savitri ye soch kar buri tarah ghabra gayi ki kahi uske bete ne saari baate to nahi sun li to wahi wagle par jaise apne bete ki is awaaz se koi fark hi nahi pada tha.

"Kuch nahi beta." Wagle ne uski taraf dekhte huye samaanya bhaav se kaha____"Wo ham aise hi idhar udhar ki baate kar rahe the. Tum jaao apne kamre me aur araam se so jaao."
"Ji papa." Chandrakant ne bade adab se kaha aur waapas apne kamre me ja kar usne kamre ka darwaza band kar liya.

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