अद्भुत, सच में दादी - नानी के किस्सों की याद आ गई। राजिया का पात्र और कामिनी का प्रसव दोनों की ही झलक इसमे दिखाई दी। आपकी कहानी पढ़ते पढ़ते लगता है मैं खुद उन दृश्यों को साक्षात देख रहा हूं। खासकर उस पेड़ की डाल पर बैठी कलेजा खाती नन्ही चुड़ैल का एक टक देखना, और अचानक कंधे पर हाथ रखकर किसी का बोलना "उसे मत देखो, नहीं तो वो तुम्हारा कलेजा निकाल कर खा जाएगी"। मारे रोमांच के मेरे रोंगटे खड़े हो गए। पता नहीं आपके यहां ये बोला जाता होगा या नहीं, पर मेरे गांव (मध्य प्रदेश में बैतूल जिले के छोटे से गांव से हूं मैं) में हमे ज्यादातर "मसान्या भूत" से बच्चों को डराया जाता था। हालांकि वो एक भूत ना होकर एक जानवर था (कबर बिज्जू, जो दिखने में किसी बड़े से नेवले जैसे दिखते थे) जो की अब प्रायः प्रायः लुप्त हो चुके हैं, पर पुराने समय में वे कब्र से लाशें निकल कर खाने, और कभी कभी छोटे दुधमुंहे बच्चों को उठा ले जाने के लिए कुख्यात थे। और भले ही हमने उन्हें देखा नहीं पर सभी बच्चे डरते इतना थे की अंधेरा होने के बाद घर के बाहर ही नहीं निकलते थे।
एक ऐसा ही किस्सा सुना था जो धुंधला धुंधला याद है, की किसी आदमी का जो आधी रात गए गांव वापस आ रहा था। मेन रोड से गांव के लिए करीब ४-५ किलोमीटर की कच्ची सड़क थी, जिसके बीच में छोटे बड़े मिलाकर कुल ७ नाले आते थे। वह आदमी रात के करीब १२ बजे पास के कस्बे से निकला जो की बस ८ किलोमीटर दूर था, और कच्ची सड़क पर उतरने के बाद ५ नाले पार कर चुका था पर छटवां नाला आ ही नहीं रहा था। हैरान परेशान वह ४ घंटे तक बैलगाड़ी हांके जा रहा था, पर रास्ता तय होने का नाम ही ना ले। दूर दूर तक सन्नाटा, और बैलों के गले में बंधे घुंगरूओं की आवाज की सिवा कोई आवाज नहीं। हवा भी नहीं चल रही थी, और अमावस्या की रात होने की वजह से बिल्कुल भी रोशनी नही थी। बस एक लालटेन तो बैलगाड़ी के सामने लटका हुआ था रास्ता देखने की लिए। गांव तक एक ही रास्ता था, और वह भी सीधा, तो कहीं गलत मुड़ने की भी संभावना नहीं थी। तब उसे लगा गाड़ी कुछ ज्यादा ही भारी हो गई है क्योंकि बैलों को काफी जोर लगाना पड़ रहा था उसे खींचने के लिए। उसे अहसास हो गया की कोई अप्राकृतिक शक्ति उसे उलझा चुकी है। तब उसे याद आया की पिछले नाले के पास उसने किसी औरत जैसे साए को सड़क के किनारे बैठे देखा था, वापस देखा तो वहां कोई नहीं था तो उसने वहम हुआ होगा सोच कर ध्यान नहीं दिया। पर अब समय का अंदाज लगाते हुए उस आदमी को लगा की सुबह बस होने ही वाली है, और अगर वह अब कहीं रुका तो शायद वापस ना पहुंच पाए। खैर मन में भगवान का नाम लेकर वह गाड़ी हांकता रहा। और थोड़ी देर बाद उसे सामने से एक रोशनी आती दिखी। पास आने पर पता चला की ये तो अपने ही गांव वाले की मोटरसाइकिल है जो दूध बांटने कस्बे की ओर जा रहा होगा। उस मोटरसाइकिल वाले ने जब पास आकर देखा तो ये गाड़ी वाला उसी ५वे नाले के थोड़ा आगे सड़क के किनारे खेत में गोल गोल चक्कर लगा रहा था सारी रात। बैलों के खुर और गाड़ी के पहियों के निशान से पता चला। और उस दूधवाले के आने से अब भ्रम टूटा और बैल वापस रास्ते पर आ गए। वे लोग गांव से मात्र १ किलोमीटर दूर थे, और लगभग सारी रात बस एक ही जगह पर गोल गोल घूमते रहे, जबकि जो लोग गांव में रहे होंगे उन्हें पता होगा की बैल गाड़ी चलाने वाला अगर सो भी जाए तो जानवर अपने आप ही रोज के रास्ते से घर तक चले जाते हैं। जान तो बच गई उस आदमी की, पर दहशत की वजह से हफ्ते भर तक बीमार रहा, और फिर कभी भी घर पहुंचने में देर रात नहीं की।