Death Kiñg
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Men Will Be Men..तो क्या हुआ !
मैं भी अकसर खुबसूरत हसिनाओं को देखकर मन ही मन एक गीत गाता हूं ।
" खुदा भी आसमान से जब जमीन पर देखता होगा
मेरे महबूब को किसने बनाया , सोचता होगा । "
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Men Will Be Men..तो क्या हुआ !
मैं भी अकसर खुबसूरत हसिनाओं को देखकर मन ही मन एक गीत गाता हूं ।
" खुदा भी आसमान से जब जमीन पर देखता होगा
मेरे महबूब को किसने बनाया , सोचता होगा । "
लिखने को कोई भी लिख सकता है,Oho aisa kya, matlab Wo ke alawa koi nahi likh sakta![]()
मैं आई एस जौहर साहब का बहुत बड़ा फैन हूं ।Kya baat hai bhaiya ji, aap to mahi madam ko line maarne lage, zara ham bachcho ka bhi khayaal kariye![]()
कोई फर्क नहीं पड़ना है । वो मोबाइल ज्यादा यूज ही नहीं करती ।Bhabhi ji se shikayat karni padegi ab![]()
मैं दुल्हा ढूंढता हूं आप के लिए । बिल्कुल मेरे जैसा ।लिखने को कोई भी लिख सकता है,
लेकिन जो मज़ा और सुकून उनके लिखने पर मिलेगा, वो किसी और के लिखने पर नहीं मिलेगा।![]()
Aaj ki generation ko kuch sikhane ki zarurat nahi hai aur aapko buddha nahi kaha maine balki ye kaha ki apne se chhoto ka bhi khayaal rakhiye.मैं आई एस जौहर साहब का बहुत बड़ा फैन हूं ।
इनके उपर पिक्चराइज एक बेहतरीन गीत था -
" झूम बराबर झूम शराबी " फाइव राइफल्स मूवी का ।
इनकी एक और लाजवाब मूवी थी । जय मुखर्जी , सायरा बानो और आई एस जौहर अभिनित " शागिर्द "।
एक बेहतरीन डायलॉग था इनका -
मोहब्बत बच्चों का खेल नहीं है और न ही जागीर है जवानों की । "
( कामेडी मूवी थी । देखिएगा । )
बाकी आप समझ सकते हैं । और वैसे भी मैं कोई बुड्ढा थोड़ी न हो गया हूं ।![]()
Ye aap dar ke bata rahe hain naकोई फर्क नहीं पड़ना है । वो मोबाइल ज्यादा यूज ही नहीं करती ।![]()
To ham log sanyaas le le????मैं दुल्हा ढूंढता हूं आप के लिए । बिल्कुल मेरे जैसा ।![]()
आपके जैसा हो महोदय,मैं दुल्हा ढूंढता हूं आप के लिए । बिल्कुल मेरे जैसा ।![]()
GoodUpdate - 07
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मैं अभी मेघा के ख़यालों में ही था कि तभी टोर्च की रौशनी कोहरे की धुंध को भेदता हुए जिस चीज़ पर पड़ी उस पर नज़र पड़ते ही मैं एकदम से रुक गया। उस चीज़ पर मेरी नज़रें जैसे जम सी गईं थी। मेरे दिल को पहले तो एक झटका लगा और फिर जैसे वो धड़कना भूल गया। समूचा जिस्म मानो पलक झपकते ही क्रियाहीन हो गया, किन्तु जल्द ही मैं इस स्थिति से उबरा।
मेरी आँखों के सामने क़रीब चार क़दम की दूरी पर वो मकान मौजूद था जिसमें मैं दो साल पहले मेघा के साथ रहा था। चारो तरफ से कोहरे की धुंध में घिरा वो पुराना सा मकान बिल्कुल वैसा ही था जैसे दो साल पहले मैंने देखा था। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो इस बियाबान जंगल में इस वक़्त ऐसे भयावह मकान को देख कर बेहोश हो जाता लेकिन मैं तो जैसे उस स्थिति में पहुंच था जहां पर इंसान को किसी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पडता था।
जैसे ही मेरा ज़हन सक्रिय हुआ तो मेरे अंदर ख़ुशी की ऐसी लहरें उठने लगीं जो मेरे समूचे जिस्म को एक सुखद सा एहसास करने लगीं। उस मकान को देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मेघा मुझे मिल गई हो। मेरे दिल के जज़्बात बुरी तरह मचल उठे और मुझसे अपनी जगह पर खड़े न रहा गया। मैं भागते हुए उस मकान के पास पहुंचा और उसकी दीवारों को अपने हाथों से सहलाने लगा। आँखों से अनायास ही आंसू बहने लगे। मेरा दिल कर रहा था कि उस मकान को मेघा समझ कर अपने सीने से लगा लूं और बिलख बिलख कर रोने लगूं। रोते हुए उससे कहूं कि इतने समय तक वो मुझे क्यों अकेला छोड़े हुए थी? क्या उसे मेरी ज़रा भी याद नहीं आती थी? क्या सच में उसका दिल पत्थर की तरह कठोर है कि उसके अंदर मेरे लिए कोई जज़्बात ही नहीं थे?
जाने कितनी ही देर तक मैं मकान की दीवारों को अपने हाथों से सहलाता रहा और साथ ही मन ही मन तरह तरह की बातें करते हुए अपना दुःख दर्द जताता रहा। उसके बाद मैं घूम कर मकान के सामने की तरफ आया। मकान का दरवाज़ा वैसा ही था जैसे दो साल पहले था। लकड़ी के चार पटरे आपस में जुड़े हुए थे जिनके बीच झिर्रियां थी। दरवाज़े की हालत आज भी वैसी ही थी, यानि अगर कोई उसमें थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दे तो उसकी लकड़ी टूट टूट कर बिखर जाएगी।
मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं था। मेरे दिल की हसरतें जो दम तोड़ने लगीं थी उनमें मानो फिर से जान आ गई थी। मेरा यकीन जो इसके पहले बुरी तरह डगमगाने लगा था वो फिर से ये सोच कर अपनी जगह पर दृढ़ हो गया था कि अब जब ये मकान मिल गया है तो मेघा भी मिल ही जाएगी। मेरा दिल चीख चीख कर मुझसे कहने लगा कि अब और तड़पने की ज़रूरत नहीं है ध्रुव। जिसकी जुदाई में अब तक इतने दुःख और कष्ट सहे थे वो जल्द ही मुझे मिलेगी और अपना प्यार दे कर मेरा हर दुःख दर्द दूर कर देगी।
मेरा मन जाने कैसे कैसे मीठे ख़याल बुनता जा रहा था जिसके असर से मेरा दिल खुशियों से भरता जा रहा था और ये ख़ुशी ऐसी थी जो मेरी आँखों से आंसू बन कर निकलती भी जा रही थी। मैं पागलों की तरह मकान के उस दरवाज़े को अपने हाथों से सहला सहला कर उसे चूम भी लेता था। जब मुझसे और ज़्यादा न रहा गया तो मैंने उस दरवाज़े को अंदर की तरफ ढकेला। दरवाज़ा जिस्म को थर्रा देने वाली आवाज़ के साथ खुलता चला गया। कमरे के अंदर पीले रंग का मध्यम सा प्रकाश फैला हुआ था जो शायद उसी लालटेन के जलने से था जो दो साल पहले मैंने देखी थी। अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से काबू करने का प्रयास करते हुए मैं अंदर की तरफ दाखिल हुआ।
दरवाज़े के अंदर दाखिल होते ही मैं उसी कमरे में आ गया जिसमें दो साल पहले मैं रहा था। वो एक बड़ा सा कमरा था जिसके एक कोने में बेड था और एक कोने में मिट्टी का वो घड़ा जिसमें पानी भरा रहता था। एक तरफ की दिवार पर गड़ी कील में लालटेन टंगी हुई थी जिसका पीला प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। बेड से थोड़ा दाएं तरफ एक और दरवाज़ा था जो कि बाथरूम था। बेड पर लगा बिस्तर वैसा ही था जैसा दो साल पहले था, फ़र्क सिर्फ इतना ही था कि उसमें कोई सलवटें नहीं थी जो ये ज़ाहिर करती थीं कि उसमें लेटने या बैठने वाला फिलहाल कोई नहीं था।
कमरे में खड़ा मैं हर चीज़ को बड़े ध्यान से देखते हुए वो सब बातें याद कर रहा था जो मेघा से साथ हुईं थी। मेरे जीवन का वो एक हप्ता मेरे लिए बहुत ही ज़्यादा मायने रखता था। माना कि उस एक हप्ते मेघा के साथ रहने के बाद मैंने एक और दर्द पा लिया था लेकिन ये भी सच था कि कुछ दिन तो उसके साथ ख़ुशी ख़ुशी ही गुज़रे थे। अपनी ज़िन्दगी में मैंने पहले कभी कोई खुशियां नहीं देखी थीं लेकिन मेघा को देखने के बाद और उसके साथ चंद दिन गुज़ारने के बाद जैसे मैंने बहुत कुछ पा लिया था। उसको अपने क़रीब देख कर बहुत कुछ महसूस कर लिया था। आज उसका दर्द भी मुझे एक मीठे आनंद की अनुभूति ही कराता था।
मैं अपनी जगह पर घूम घूम कर हर उस जगह को देख रहा था जहां जहां मेघा मौजूद रहती थी। उन जगहों को देखते ही आँखों के सामने मानो वो चित्र सजीव हो उठते थे। उन सजीब चित्रों को देख कर मेरा दिल एक अलग ही ख़ुशी महसूस करने लगा था। कुछ ही पलों में मैं ये भूल गया कि मैं इस वक़्त कहां हूं और किस हालत में हूं।
"अब तुम्हारे ज़ख्म कैसे हैं ध्रुव?" पूरे दो दिन बाद मेघा आई थी और मुझे देखते ही उसने मुझसे यही पूछा था। मैं दो दिन से भूखा था, सिर्फ मिट्टी के घड़े में रखे पानी को पी कर ही ज़िंदा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेघा हर रोज़ की तरह मेरे पास मुझे खाना देने और दवा लगाने क्यों नहीं आई थी? आज जब आई तो मैंने उसके चेहरे पर दो दिन पहले जैसी ही गंभीरता छाई हुई देखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी बात से बेहद परेशान हो।
"जिस्म के ज़ख्म तो तुम्हारी दवा से ठीक हो जाएंगे मेघा।" उसके सवाल पर मैंने गंभीरता से जवाब देते हुए कहा था____"लेकिन दिल पर लगा ज़ख्म शायद कभी भी ठीक नहीं होगा। ख़ैर छोड़ो, अभी तक कौन सा मैं ऐशो आराम में जी रहा था? आज से पहले भी तो ज़िन्दगी में दुःख दर्द ही थे, तो एक तुम्हारे प्रेम का दर्द और सही। मैं बस ये जानना चाहता हूं कि परसों की गई तुम आज आई हो...ऐसा क्यों भला?"
"क्या करोगे जान कर?" मेघा मुझसे नज़रें हटा कर लकड़ी के उस टेबल की तरफ बढ़ी जो घड़े के पास ही रखा रहता था और उसी टेबल में वो मेरे खाने की थाली सजाती थी। टेबल के पास पहुंच कर उसने बिना मेरी तरफ देखे ही कहा____"इस दुनियां में सबके साथ कुछ न कुछ होता ही रहता है।"
"तुम हर बार पहेलियाँ क्यों बुझाती हो मेघा?" मैंने आहत भाव से कहा था____"अपनी कोई भी बात साफ़ शब्दों में क्यों नहीं कहा करती तुम? आज भी तुम्हारे चेहरे पर वैसी ही गंभीरता है जैसे परसों थी। मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर इन दो तीन दिनों में ऐसा क्या हो गया है जिसने तुम्हारे चाँद की तरह खिले हुए चेहरे को इतना बेनूर बना दिया है? तुम अपनी परेशानी मुझे बता सकती हो मेघा। मैं अपने पवित्र प्रेम की क़सम खा कर कहता हूं कि तुम्हारी जो भी परेशानी होगी उसे दूर करने की पूरी कोशिश करुंगा। तुम्हें भले ही मेरी ये बात छोटे मुँह बड़ी बात लगे लेकिन यकीन मानो तुम्हारे चेहरे पर छाई इस गंभीरता को देख कर मेरे दिल को बेहद तकलीफ़ हो रही है। मैं उस शख़्स को एक पल के लिए भी परेशान या दुखी नहीं देख सकता जिससे मैं बेपनाह प्रेम करता हूं।"
"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने एक झटके से मेरी तरफ पलट कर कहा था। उसके चेहरे पर एकदम से ऐसे भाव उभर आए थे जैसे मेरी इन बातों से उसे बेहद तकलीफ़ हुई हो, बोली_____"मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी लड़की से इतना अगाध प्रेम करता है लेकिन इस बात से बेहद दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे इस पवित्र प्रेम के ना तो लायक हूं और ना ही तुम्हारे प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"
मेघा ने दुखी भाव से और एक ही सांस में मानो सब कुछ उगल दिया था। उसकी बातें सुन कर मैं बुरी तरह चकित रह गया था। वो तो ख़ामोश हो गई थी लेकिन उसके द्वारा कहा गया एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जो मेघा परसों तक मेरे प्रेम को फ़ालतू की बातें कह रही थी और ऐसी बातों पर नाराज़गी जताती थी आज वही ख़ुद ऐसी बातें कह रही थी। बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल कौंधा कि क्या सच में मेघा को मेरे प्रेम का एहसास है? अगर है तो फिर वो ऐसा क्यों कह रही है कि वो मेरे प्रेम के लायक नहीं है या वो मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती?
"ये तुम कैसे कह सकती हो कि तुम मेरे लायक नहीं हो?" मैंने मेघा की तरफ गंभीरता से देखते हुए कहा था____"अरे! सच तो ये है कि मैं ख़ुद तुम्हारे लायक नहीं हूं मेघा। तुम तो आसमान का चमकता हुआ वो खूबसूरत चाँद हो जिसे पाने के लिए मुझ जैसा दो कौड़ी का इंसान बेकार ही अपने दिल में हसरत लिए बैठा है। तुम तो ख़्वाबों की परी हो मेघा। तुम्हारे सामने मेरी कोई औक़ात ही नहीं है। मैं तो बस अपने दिल के हाथों मजबूर हो गया हूं क्योंकि वो तुमसे बेपनाह प्रेम करने लगा है और इतना पागल है कि तुम्हें पाने की ख़्वाहिश भी करता है। तुमसे तो मेरी कोई बराबरी ही नहीं है फिर ऐसा क्यों कहती हो कि तुम मेरे प्रेम के लायक नहीं हो?"
"क्योंकि तुम मेरी असलियत नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने अपने जज़्बातों को मानो बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"इस संसार में जो कुछ जैसा दिखता है वैसा असल में होता नहीं है। सब कुछ आँखों का भ्रम होता है। हर कोई उसी भ्रम को सच मान कर जीता है और एक दिन मर जाता है।"
"मैं कुछ समझा नहीं" मैंने उलझन भरे भाव से कहा____"आख़िर तुम कहना क्या चाहती जो?"
"इससे ज़्यादा खुल कर और कुछ नहीं कह सकती ध्रुव।" मेघा ने पीतल की थाली में खाने को सजाते हुए कहा____"मैं बस ये चाहती हूं कि जल्द से जल्द तुम ठीक हो जाओ ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"
"आख़िर चल क्या रहा है तुम्हारे अंदर?" मैंने शंकित भाव से कहा था____"मुझे साफ़ साफ़ बताओ मेघा। मेरा दिल चीख चीख कर मुझसे कह रहा है कि तुम मुझसे बहुत कुछ छुपा रही हो। मेरा दिल ये भी चीख चीख कर कहता है कि इस वक़्त तुम भी उसी तरह अंदर से दुखी हो जैसे मैं हूं। अगर हम दोनों का एक जैसा ही हाल है तो हमारे एक होने में समस्या क्या है? मैं क़सम खा कर कहता हूं कि तुम्हारी जो भी समस्या होगी उसे मैं अपनी जान दे कर भी दूर करुंगा। उसके बाद हम दोनों इसी जंगल में अपनी एक अलग दुनियां बसाएंगे। हमारे पवित्र प्रेम की दुनियां, जिसमें हम होंगे और समंदर से भी गहरा हमारा प्रेम होगा।"
"मुझे इस तरह के सपने मत दिखाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा____"तुम मेरी बिवसता को कभी नहीं समझ सकते। तुम्हें क्या लगता है, मैं दो दिन तुमसे मिलने यहां क्यों नहीं आई? तुम नहीं समझ सकते ध्रुव कि ये दो दिन मैंने किस हाल में गुज़ारे हैं। अपने जीवन में मैं पहले कभी इतनी बेबस और लाचार नहीं हुई थी। तुमसे मुलाक़ात हुई तो जैसे मेरे जीवन में सब कुछ बदल गया लेकिन जब बदली हुई चीज़ों का एहसास हुआ तो समूचा वजूद थर्रा उठा। मैं उस वक़्त नहीं समझी थी किन्तु जब ख़ुद का वैसा हाल हुआ तो समझ आया कि तुम पर क्या गुज़र रही है।"
"इसका मतलब" मैं मारे ख़ुशी के बीच में ही मेघा की बात काट कर बोल पड़ा था____"इसका मतलब तुम भी मुझसे प्रेम करती हो, है ना?"
"नहीं, मैं तुमसे प्रेम नहीं करती।" मेघा ने सहसा शख़्ती अख्तियार करते हुए कहा____"मैं किसी इंसान से प्रेम कर ही नहीं सकती।"
"लेकिन अभी जो कुछ तुम कह रही थी।" मेरी ख़ुशी मानो एक झटके में छू मंतर हो गई थी____"उसका तो यही मतलब हुआ कि तुम भी मुझसे प्रेम करती हो।"
"नहीं ध्रुव।" मेघा ने शख़्ती से अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए कहा____"जब मैं तुम्हारे लायक ही नहीं हूं तो भला तुमसे प्रेम कैसे कर सकती हूं?"
"तुम झूठ बोल रही हो।" मैं बुरी तरह खीझ उठा था, दिल को इतना तेज़ दर्द उठा था कि आँखों से आंसू बह चले थे____"क्यों मेघा क्यों? क्यों ऐसा कर रही हो तुम? क्यों मेरे साथ साथ खुद को भी इस तरह सज़ा दे रही हो? आख़िर ऐसी कौन सी मज़बूरी है तुम्हारी जो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती?"
"चलो खाना खाओ।" मेघा ने थाली को मेरे सामने रखते हुए कहा____"और हां, इसके लिए मुझे माफ़ करना कि मैंने दो दिन से तुम्हें यहाँ भूखा रखा।"
"नहीं खाना मुझे ये खाना।" मैंने बिफरे हुए अंदाज़ से कहा____"ले जाओ इसे और अब मुझे यहाँ भी नहीं रहना है। मैं खुद यहाँ से चला जाऊंगा। तुम्हें मेरे लिए और तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत नहीं है।"
"कमाल है।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए अजीब भाव से कहा था____"अभी तक तो बड़ा कह रहे थे कि मुझसे बेपनाह प्रेम करते हो और अब मुझ पर ही गुस्सा कर रहे हो, वाह! बहुत खूब। तुम्हीं से सुना था कि हम जिससे प्रेम करते हैं उन्हें किसी बात के लिए ना तो मजबूर करते हैं और ना ही बेबस। क्योंकि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। अगर ये सब सच है तो क्या यही प्रेम है तुम्हारा?"
मेघा की बातों से मेरे तड़पते दिल को झटका सा लगा। किसी हारे हुए जुआरी की तरह मैं बेबस सा देखता रह गया था उसे। सच ही तो कह रही थी वो। प्रेम की परिभाषा और प्रेम के नियम यही तो थे कि खुद चाहे जितनी तकलीफ़ सह लो लेकिन जिससे प्रेम करते हो उसे अपनी तरफ से ज़रा सी भी तकलीफ़ न दो। प्रेम किया है तो हर कीमत पर अपने प्रेमी या प्रेमिका की बातो का मान रखो। उससे किसी भी तरह का शिकवा न करो, बल्कि हर बात को अपने सीने में दबा कर सिर्फ उसको खुशियां देने की कोशिश करो। वाह रे प्रेम, ये कैसा नियम था तेरा?
अपने आंसुओं को पोंछ कर मैंने चुप चाप खाना खाना शुरू कर दिया था। दिल के अंदर तो हलचल मची हुई थी लेकिन सब कुछ जज़्ब कर के मैं एक एक निवाला ज़बरदस्ती अपने हलक के नीचे उतारता जा रहा था। मेघा कुछ देर तक मेरी तरफ ख़ामोशी से देखती रही फिर वो बिना कुछ कहे बेड के किनारे से उठी और पानी के घड़े के पास जा कर खड़ी हो गई। मैंने महसूस किया जैसे उसका दिल भी रो रहा था।
किसी आहट के चलते मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने ये सोच कर इधर उधर देखा कि आहट कहां से और किस चीज़ की हुई थी? चारो तरफ घूम घूम कर मैंने देखा किन्तु कहीं पर कुछ ऐसा नज़र न आया जिससे ये पता चल सके कि आहट किस चीज़ की हुई थी। ख़ैर मैं आगे बढ़ा और बेड के पास पहुंचा। लकड़ी का पुराना सा बेड था वो, जिसका सिरहाना काफी ऊँचा था। बेड भले ही पुराना था किन्तु उस पर बिछे हुए बिस्तर के कपड़े ऐसे थे जैसे किसी राजा महाराजाओं के यहाँ होते हैं। कीमती रेशमी कपड़े और वैसी ही मखमली रजाई जिसे ठण्ड से बचने के लिए ओढ़ा जाता था। ये बिछौना दो साल पहले भी था लेकिन हैरानी की बात थी कि पुराना नहीं नज़र आ रहा था।
मैंने झुक कर हल्के हाथों से उस बिस्तर को दोनों हाथों से छुआ और सहलाया। हाथों की उंगलियों में अजीब सा एहसास हुआ जिसने दिल की धड़कनों को सामान्य से थोड़ा ज़्यादा बढ़ा दिया। ये वही बिस्तर था जिस पर मैं एक हप्ते लेटा था और इसी बेड के किनारे पर हर शाम-ओ-सहर मेघा आ कर मेरे पास ही बैठ जाती थी। अचानक ही मेरे दिल ने मुझे एक क्रिया करने पर ज़ोर दिया, जिसे सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। सच ही कहते हैं कि दिल पागल होता है। वो मुझे बिस्तर पर वैसे ही लेट जाने के लिए ज़ोर दे रहा था जैसे दो साल पहले मैं लेटा रहता था। ऐसा करने से दिल का तात्पर्य यही थी कि शायद ऐसा हो जाए कि अचानक ही दरवाज़ा खुले और मेघा अंदर दाखिल हो कर मेरे पास बेड के किनारे पर ही आ कर बैठ जाए। वो जब मेरे इतने क़रीब बैठ जाएगी तो मैं उसके खूबसूरत चेहरे को देखते हुए उसके सम्मोहन में खो जाऊंगा।
मुझे अपने दिल की ये बात कहीं से भी अनुचित नहीं लगी इस लिए मैं बेड पर वैसे ही लेट गया, जैसा लेटने के लिए वो ज़ोर दे रहा था। सचमुच इस तरह लेटने के बाद मुझे भी ऐसा प्रतीत हुआ कि अभी कमरे का दरवाज़ा खुलेगा और मेघा किसी स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा की तरह प्रकट हो जाएगी। बेड की पिछली पुष्त पर अपनी पीठ टिकाए मैं दरवाज़े की तरफ ही देखने लगा था और ये उम्मीद लगा बैठा था कि सच में मेघा आएगी लेकिन कल्पनाओं में और हकीक़त में तो ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है। कहने का मतलब ये कि मैं काफी देर तक वैसे ही बेड पर अधलेटा सा पड़ा दरवाज़े की तरफ देखता रहा लेकिन ना तो दरवाज़ा खुला और ना ही मेघा का आगमन हुआ। एक बार फिर से मैं निराशा और हताशा से भर उठा। दिल एक बार फिर से तड़पने लगा था। उम्मीद का दीपक फिर से बुझने के लिए फड़फड़ाने लगा था। मन ही मन मैंने ऊपर वाले को याद किया। बंद पलकों में मेघा का अक्श उभरा तो मैंने उससे फरियाद की।
इससे पहले के जी तन से जुदा हो जाए।
तेरी सूरत मेरी आँखों को अता हो जाए।।
मैं आ गया हूं वही इश्क़ का दरिया ले कर,
खुदा करे के तुझको भी ये पता हो जाए।।
इतना आसां नहीं तेरी याद में जीना जाना,
वो भी क्या जीना के जीना सज़ा हो जाए।।
रास आएगी तुझे भी ये मोहब्बत ऐ दोस्त,
तू जो आलम-ए-बेबसी से रिहा हो जाए।।
कज़ा के बाद तब ही सुकून आएगा मुझे,
तेरे हाथों से अगर दिल की दवा हो जाए।।
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