Update - 06
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ठण्ड लगने की वजह से मुझे होश आया। पलकें खुलीं तो कोहरे की धुंध में मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की। मेरे पास ही कहीं पर रौशनी का आभास हुआ तो मैं चौंका। पहले तो कुछ समझ न आया कि मैं कहां हूं और किस हाल में हूं किन्तु कुछ पलों में जैसे ही ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ। नज़र पीछे की तरफ पड़ी तो देखा मेरी टोर्च ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसी टोर्च की रौशनी का मुझे आभास हुआ था। ठण्ड ज़ोरों की लग रही थी इस लिए उठ कर मैंने अपने कपड़ों को ब्यवस्थित किया जिससे ठण्ड का प्रभाव थोड़ा कम हो गया।
मैंने जब बेहोश होने से पूर्व का घटनाक्रम याद किया तो एक बार फिर से दिल में दर्द जाग उठा। ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। ज़ाहिर है वो सभी ख़याल मुझे कोई खुशियां नहीं दे रहे थे इस लिए मैंने बड़ी मुश्किल से उन ख़यालों को अपने ज़हन से निकाला और ज़मीन पर पड़ी टोर्च को उठा कर खड़ा हो गया। पलट कर उस दिशा की तरफ देखा जहां बेहोश होने से पूर्व मैंने उस झरने को देखा था। मेरे अलावा दुनियां का कोई भी इंसान इस बात का यकीन नहीं कर सकता था कि मैंने अपनी खुली आँखों से इस जंगल में दो दो बार एक ऐसे झरने को देखा था जो किसी मायाजाल से कम नहीं था।
मेरा दिल तो बहुत उदास और बहुत दुखी था जिसकी वजह से अब कुछ भी करने की हसरत नहीं थी किन्तु जाने क्यों मैं उसी तरफ चल पड़ा जिस तरफ मैंने झरने को देखा था। वही कच्ची ज़मीन, वही पेड़ पौधे और ज़मीन पर पड़े सूखे हुए पत्ते। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जिस जगह पर मैं चल रहा हूं यहीं पर कुछ समय पहले एक अच्छा ख़ासा झरना था। क्या हो अगर वो झरना फिर से प्रकट हो जाए? ज़ाहिर है मैं सीधा उसके पानी में डूबता चला जाऊंगा और ऐसी ठण्ड में मेरे सलामत होने की कोई उम्मीद भी नहीं होगी। इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा की किन्तु मैं रुका नहीं बल्कि आगे बढ़ता ही चला गया। टोर्च की रौशनी कोहरे को भेदने में नाकाम थी लेकिन मुझे रोक देने की ताकत उस कोहरे में तो हर्गिज़ नहीं थी।
"क्या बात है, तुम इतने गुमसुम से क्यों दिख रहे हो?" अगली सुबह मेघा आई और जब काफी देर गुज़र जाने पर भी मैंने कुछ न बोला था तो उसने पूछा था____"कुछ हुआ है क्या? कहीं तुम मेरे मना करने के बाद भी इस कमरे से बाहर तो नहीं चले गए थे?"
"बड़ी अजीब बात है।" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____'पहले तुम्हें मेरे बोलने पर समस्या थी और अब जबकि मैं चुप हूं तो तुम पूछ रही हो कि मैं गुमसुम क्यों हूं?"
"इसमें अजीब क्या है?" उसने एक पीतल की थाली में खाने को सजा कर मेरे पास लाते हुए कहा था____"यहां पर तुम मेरे मेहमान हो और मेरी वजह से ज़ख़्मी भी हुए हो इस लिए ये मेरा फ़र्ज़ है कि मेरी वजह से तुम्हें फिर से कोई तकलीफ़ न हो। हालांकि तुम पहले ऐसे इंसान हो जिसके बारे में मैं ऐसा सोचती हूं और इतना कुछ कर रही हूं वरना मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ऐसा कुछ करना है ही नहीं।"
"तो फिर मत करो मेरे लिए ये सब।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था____"अगर तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं तो फिर मेरे लिए भी तुम्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अगर तुम्हारी वजह से ज़ख़्मी हुआ भी था तो तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर चुप चाप चली जाती। मुझे तुमसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं होती बल्कि मैं ये समझ लेता कि ज़िन्दगी जहां इतने दुःख दे रही है तो एक ये अदना सा दुःख और सही।"
"मैं नहीं जानती कि तुम ये सब क्या और क्यों कह रहे हो।" मेघा ने मुझे हल्के से खींच कर बेड की पिछली पुष्त पर टिकाते हुए कहा____"लेकिन तुम्हें उस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती थी। उस दिन जब मैं तुम्हें यहाँ लाई थी तो मैं खुद हैरान थी कि मैंने ऐसा क्यों किया। काफी सोचने के बाद भी मुझे कुछ समझ नहीं आया था। तुम तो बेहोश थे लेकिन मैं अपने अंदर चल रहे द्वन्द से जूझ रही थी। उसके बाद न चाहते हुए भी मैं वो सब करती चली गई जो मेरी फितरत में है ही नहीं। जब तुम्हें होश आया और तुमसे बातें हुईं तो एक अलग ही एहसास हुआ मुझे जिसके बाद मैंने तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ करना शुरू कर दिया। मैं आज भी नहीं जानती कि मैंने किसी इंसान के लिए इतना कुछ कैसे किया और अब भी क्यों कर रही हूं?"
"तुम बार बार ऐसा क्यों कहती हो कि तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं?" मैंने वो सवाल किया जो मेरे मन में कई दिनों से उभर रहा था____"क्या तुम्हें मर्दों से कोई समस्या है या तुम उनसे नफ़रत करती हो?"
"ये सब ना ही जानो तो तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" मेघा पीछे से आ कर मेरे पास ही बेड के किनारे पर बैठते हुए बोली थी____"चलो अब जल्दी से खाना खा लो। उसके बाद मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा दूंगी।"
"चलो मान लिया मैंने कि तुम्हें हम मर्दों से नफ़रत है जिसकी वजह से तुम किसी भी इंसान से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखती।" मैंने पीतल की थाली में रखे खाने की तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन ये भी सच है कि तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया। क्या तुमने ये समझने की कोशिश नहीं की कि ऐसा क्यों किया होगा तुमने? अगर तुम्हारी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं तो फिर क्यों ऐसा किया तुमने?"
"मैं ये सब फ़ालतू की बातें नहीं सोचना चाहती।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा था किन्तु उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही नज़र आ रहे थे जिन्हें देखते हुए मैंने कहा____"ठीक है, लेकिन मैं बता सकता हूं कि तुमने ऐसा क्यों किया?"
"क्या??" मेघा ने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा था____"मेरा मतलब है कि तुम भला कैसे बता सकते हो?"
"क्यों नहीं बता सकता?" मैंने थाली से नज़र हटा कर उसकी तरफ देखा____"आख़िर ऊपर वाले ने थोड़ा बहुत बुद्धि विवेक मुझे भी दिया है।"
"कहना क्या चाहते हो?" मेघा ने मेरी तरफ उलझन भरे भाव से देखते हुए कहा था।
"यही कि जो बात किसी इंसान की समझ से बाहर होती है।" मैंने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ज़रूरी नहीं कि उसका कोई मतलब ही न हो। सच तो ये है कि दुनियां में जो भी होता है वो सब उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होता है। मैं नहीं जानता कि तुम इंसानों के प्रति ऐसे ख़याल क्यों रखती हो लेकिन इसके बावजूद अगर तुम्हें ये सब करना पड़ रहा है तो ज़ाहिर है कि इसमें नियति का कोई न कोई खेल ज़रूर है। इस सबके बारे में हम दोनों में से किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा कुछ होगा लेकिन फिर भी ये सब हुआ तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कोई ऐसी वजह ज़रूर है जिसे हम दोनों को ही समझने की ज़रूरत है। हालांकि मैंने तो समझ लिया है लेकिन तुम्हें शायद देर से समझ आए।"
"तुमने ऐसा क्या समझ लिया है?" मेघा ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा था____"और ऐसा क्या है जो तुम्हारे हिसाब से मुझे देर से समझ में आएगा?"
"एक ऐसी चीज़ जो किसी के भी दिल में किसी के भी प्रति खूबसूरत एहसास जगा देती है।" मैंने कहा था____"उस एहसास को ये दुनिया प्रेम का नाम देती है। मैं बता ही चुका हूं कि तुम्हारे प्रति मेरे दिल में बेपनाह प्रेम का सागर अपना वजूद बना चुका है जबकि तुम्हें इसके बारे में शायद देर से पता चले। तुम खुद सोचो कि अचानक से हम दोनों एक दूसरे को क्यों मिल गए और इस वक़्त एक दूसरे के इतने क़रीब क्यों हैं? हम दोनों को भले ही ये नज़र आता हो कि इसकी वजह वो हादसा है लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो हादसा भी इसी लिए हुआ हो ताकि हम दोनों को एक दूसरे के क़रीब रहने का मौका मिले और एक दिन हम दोनों एक हो जाएं?"
"पता नहीं तुम इंसान कैसी कैसी कल्पनाएं करते रहते हो।" मेघा ने हैरान नज़रों से मुझे देखते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम चुप चाप खाना खाओ। तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा कर मुझे यहाँ से जाना भी है।"
"अभी और कितना वक़्त लगेगा मेरे इन ज़ख्मों को ठीक होने में?" मैंने थाली से एक निवाला अपने मुँह में डालने के बाद कहा था____"क्या कोई ऐसी दवा नहीं है जो एक पल में मेरे ज़ख्मों को ठीक कर दे?"
"ऐसी दवा तो है।" मेघा ने कहीं खोए हुए भाव से कहा था____"लेकिन वो दवा तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
"ये क्या बात हुई भला?" मैंने हैरानी से मेघा की तरफ देखा था_____"ऐसी दवा तो है लेकिन मेरे लिए ठीक नहीं है इसका क्या मतलब हुआ?"
"तुम बाल की खाल निकालने पर क्यों तुल जाते हो?" मेघा ने नाराज़गी भरे भाव से कहा था____"चुप चाप खाना खाओ अब।"
"जो हुकुम।" मैंने अदब से सिर नवा कर कहा और चुप चाप खाना खाने लगा। उधर मेघा बेड से उठ कर तथा थोड़ी दूर जा कर जाने क्या करने लगी थी। मेरी तरफ उसकी पीठ थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था।
पिछले पांच दिनों से मैं इस जगह पर रह रहा था। मेघा के ना रहने पर मैं अकेला पता नहीं क्या क्या सोचता रहता था। मुझे किसी भी चीज़ की समस्या नहीं थी यहाँ लेकिन जाने क्यों दिल यही चाहता था कि मेघा हर पल मेरे पास ही रहे। वो जब चली जाती थी तो मैं शाम या फिर सुबह होने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार करता था। रात तो को देर से ही सही लेकिन आँख लग जाती थी जिससे जल्द ही सुबह हो जाती थी लेकिन दिन बड़ी मुश्किल से गुज़रता था। अब तक मैंने मेघा से अपने दिल का हर हाल बयां कर दिया था और यही उम्मीद करता था कि उसके दिल में भी मेरे लिए वही एहसास पैदा हो जाए जैसे एहसास उसके प्रति मेरे दिल में फल फूल रहे थे। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे और जैसे जैसे मुझे ये एहसास हो रहा था कि मेरी चाहत फ़िज़ूल है वैसे वैसे मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। अक्सर ये ख़याल मेरी धड़कनों को जाम कर देता था कि क्या होगा जब मेरे ठीक हो जाने पर मेघा मुझे मेरे घर पहुंचा देगी? मैं कैसे उसके बिना ज़िन्दगी में कोई ख़ुशी खोज पाऊंगा?
अचानक किसी पत्थर से मेरा पाँव टकरा गया जिससे एकदम से मैं वर्तमान में आ गया। ज़मीन पर पड़े पत्थर से मेरा पाँव ज़्यादा तेज़ी से नहीं टकराया था इस लिए मैं सिर्फ लड़खड़ा कर ही रह गया था। ख़ैर वर्तमान में आया तो मुझे आभास हुआ कि मैं चलते चलते पता नहीं कहां आ गया हूं मैं। मैंने ठिठक कर टोर्च की रौशनी दूर दूर तक डाली। कोहरे की वजह से दूर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि ऐसे कब तक चलता रहूंगा मैं? इस तरफ ठण्ड कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं इधर उधर यूं ही देखता रहा उसके बाद अपने बाएं तरफ चल दिया।
मैं एक बार फिर से मेघा के ख़यालों में खोने ही वाला था कि तभी मैं चौंका। मेरे कानों में फिर से झरने में बहते पानी की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। इस एक रात में ये दूसरी बार था जब झरने का वजूद मुझे नज़र आया था और इस बार मैं झरने के दूसरी तरफ मौजूद था। ये जान कर अंदर से मुझे जाने क्यों एक ख़ुशी सी महसूस हुई। दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ी तेज़ हो गईं कि क्या इस तरफ सच में कहीं पर मेघा का वो पुराना सा मकान होगा? इस ख़याल के साथ ही मेरे जिस्म में एक नई जान सी आ गई और मैं तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया।
मुझे पूरा यकीन था कि झरने के आस पास ही कहीं पर वो मकान था जिसमें मैं एक हप्ते रहा था। इसके पहले मैं इस तरफ का पूरा जंगल छान मारा था किन्तु तब में और अब बहुत फ़र्क हो गया था। पहले मुझे इस झरने का कोई वजूद नहीं दिखा था और आज दो दो बार ये झरना मेरी आँखों के सामने आ चुका था जो मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। शुरू में ज़रूर मैं इस झरने की माया से चकित था लेकिन फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी कि ये भी मेघा की तरह ही रहस्यमी है।
"क्या हुआ।" शाम को जब मेघा वापस आई थी तो वो एकदम ख़ामोश थी। उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। इसके पहले वो एकदम खिली खिली सी लगती थी। जब काफी देर गुज़र जाने पर भी उसने कोई बात नहीं की थी तो मैं उससे पूछ बैठा था____"इतनी शांत और चुप सी क्यों हो मेघा? तुम्हारे चेहरे के भाव ऐसे हैं जैसे कोई गंभीर बात है। मुझे बताओ कि आख़िर बात क्या है? क्या मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो गई है? अगर ऐसा है तो तुम्हें मेरे लिए ये सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अब पहले से काफी ठीक हूं और मैं खुद अपने से अपना ख़याल रख सकता हूं।"
"तुम ग़लत समझ रहे हो ध्रुव।" मेघा ने थाली में मेरे लिए खाना सजाते हुए कहा था____"मुझे तुम्हारी वजह से कोई परेशानी नहीं है।"
"तो फिर ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चाँद की तरह खिला रहने वाला चेहरा इस वक़्त बेनूर सा नज़र आ रहा है?"
"तो तुम्हें मेरा चेहरा चाँद की तरह खिला हुआ नज़र आता था?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए पहली बार हल्के से मुस्कुरा कर कहा था____"ये तारीफ़ थी या मुझे यूं ही आसमान में चढ़ा रहे थे?"
"बात को मत बदलो।" मैंने उससे नज़रें चुराते हुए कहा____"मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो। आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि तुम इतना गंभीर नज़र आ रही थी?"
"आज सारा दिन तुम्हारे द्वारा कही गई बातों के बारे में सोचती रही थी मैं।" मेघा ने थोड़े गंभीर भाव से कहना शुरू किया था____"जीवन में पहली बार मैंने किसी के द्वारा प्रेम के सम्बन्ध में ऐसी बातें सुनी थी। सुबह तुम्हारी बातें मुझे बहुत अजीब सी लग रहीं थी। मन में अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे थे। यहाँ से जाने के बाद मैंने जब अकेले में तुम्हारी बातों पर विचार किया तो मुझे बहुत कुछ ऐसा महसूस हुआ जिसने मुझे एकदम से गंभीर बना दिया।"
"ऐसा क्या महसूस हुआ तुम्हें जिसकी वजह से तुम एकदम से इतना गंभीर हो गई?" मैं धड़कते हुए दिल से एक ही सांस में पूछ बैठा था।
"वही जो नहीं महसूस करना चाहिए था मुझे।" मेघा ने अजीब भाव से कहा____"कम से कम किसी इंसान के लिए तो हर्गिज़ नहीं।"
"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये तुम क्या कह रही हो?" मैं सच में उसकी बातें सुन कर उलझन में पड़ गया था____"साफ़ साफ़ बताओ न कि बात क्या है?"
"मैं इस बारे में अब और कोई बात नहीं करना चाहती।" मेघा ने मेरे सामने बेड पर थाली रखते हुए कहा था____"तुम जल्दी से खाना खा लो ताकि मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा सकूं।"
मेघा की बातें सुन कर मैं एकदम से कुछ बोल न सका था, बल्कि मन में विचारों का तूफ़ान लिए बस उसकी तरफ देखता रह गया था। उसके चेहरे से भी ये ज़ाहिर हो रहा था कि वो किसी बात से परेशान है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वो किस बात से इतना परेशान और गंभीर दिखने लगी थी। मेरे सामने पीतल की थाली में खाना रखा हुआ था किन्तु उसे खाने का ज़रा भी मन नहीं कर रहा था।
"क्या हुआ?" मुझे खाता न देख मेघा ने पूछा____"तुम खा क्यों नहीं रहे?"
"मुझे भूख नहीं है।" मैंने उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा था, जिस पर वो कुछ पलों तक ख़ामोशी से मेरे चेहरे को देखती रही उसके बाद बोली____"ठीक है, बाद में खा लेना। चलो अब मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा देती हूं।"
मेघा की ये बात सुन कर मुझे बड़ी मायूसी हुई। मुझे एक पल को यही लगा था कि शायद वो खुद ये कहे कि चलो मैं खिला देती हूं लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। हालांकि मुझे सच में भूख नहीं थी। इस वक़्त उसे परेशान देख कर मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा था। मैं चाहता था कि उसका चेहरा वैसे ही खिल जाए जैसे हर रोज़ खिला रहता था।
मेघा ने थाली को उठा कर एक तरफ रखा और मेरे ज़ख्मों पर दवा लगाने लगी। न वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं। हालांकि हम दोनों के ज़हन में विचारों तूफ़ान चालू था। ये अलग बात है कि मुझे ये नहीं पता था कि उसके अंदर किस तरह के विचारों का तूफ़ान चालू था? कुछ ही देर में जब दवा लग गई तो मेघा ने वहीं पास में ही रखे घड़े के पानी से अपना हाथ धो कर साफ़ किया और फिर मेरी तरफ पलटी।
"मुझे यकीन है कि कल या परसों तक तुम्हारे ज़ख्म भर जाएंगे और तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे।" मेघा दरवाज़े के पास खड़ी कह रही थी____"उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगी।"
"ठीक है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"लेकिन अगर कभी तुम्हें देखने का मेरा दिल किया तो क्या तुम मुझसे नहीं मिलोगी?"
"बिल्कुल नहीं।" मेघा ने दो टूक लहजे में कहा था____"तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर पहुंचा देना ही मेरा मकसद है, उसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"
"तुमने तो ये बात बड़ी आसानी से कह दी।" मैंने अपने अंदर बुरी तरह मचल उठे जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"लेकिन तुम्हें ये अंदाज़ा भी नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद मेरी क्या हालत होगी। तुम्हारा दिल पत्थर का हो सकता है लेकिन मेरा नहीं। मेरे दिल के हर कोने में तुम्हारे प्रति मोहब्बत के ऐसे जज़्बात भर चुके हैं जो तुमसे जुदा होने के बाद मुझे चैन से जीने नहीं देंगे। ख़ैर कोई बात नहीं, मैं तो पैदा ही हुआ था जीवन में दुःख दर्द सहने के लिए। बचपन से ही मेरा कोई अपना नहीं था। बचपन से अब तक मैंने कैसे कैसे दुःख झेले हैं ये या तो मैं जानता हूं या फिर ऊपर बैठा सबका भगवान। न उसे कभी मेरी हालत पर तरस आया और ना ही तुम्हें आएगा लेकिन इसमें तुम्हारी ग़लती नहीं है मेघा बल्कि मेरे दिल की है। वो एक ऐसी लड़की से प्रेम कर बैठा है जो कभी उसकी हो ही नहीं सकती।"
"अपना ख़याल रखना।" मैं चुप हुआ तो मेघा ने बस इतना ही कहा और दरवाज़ा खोल कर किसी हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद एकदम से मुझे झटका लगा। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये मैंने क्या क्या कह दिया उससे। मुझे उससे ये सब नहीं कहना चाहिए था। मुझे अपने जज़्बातों पर काबू रखना चाहिए था। भला इसमें उसका क्या कुसूर?
मेघा जा चुकी थी और मैं बंद हो चुके दरवाज़े पर निगाहें जमाए किसी शून्य में डूबता चला गया था। कानों में किसी भी चीज़ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। ज़हन पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका था लेकिन आंसू का एक कतरा मानो इस स्थिति में भी क्षण भर के लिए जीवित था। वो मेरी आँख से निकल कर नीचे गिरा और फ़ना हो गया।
कोई उम्मीद कोई ख़्वाहिश कोई आरज़ू क्यों हो।
वो नसीबों में नहीं मेरे, उसकी जुस्तजू क्यों हो।।
उम्र गुज़री है मेरी ख़िजां के साए में अब तलक,
फिर आसपास मेरे सितमगर की खुशबू क्यों हो।।
इससे अच्छा है किसी रोज़ मौत आ जाए मुझे,
इश्क़-ए-रुसवाई का आलम कू-ब-कू क्यों हो।।
कितना अच्छा हो अगर सब कुछ भूल जाऊं मैं,
खुद अपने ही आपसे हर वक़्त गुफ्तगू क्यों हो।।
मुझे भी उसकी तरह सुकूं से नींद आए कभी,
बंद पलकों में कोई चेहरा मेरे रूबरू क्यों हो।।
मेरे ख़ुदा तू इस अज़ाब से रिहा कर दे मुझे,
सरे-बाज़ार ये दिले-बीमार बे-आबरू क्यों हो।।
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