parkas
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Nice and beautiful update...Update - 08
__________________
जाने वो कौन सी जगह थी? ऐसी जगह को मैंने पहले कभी नहीं देखा था। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों के ऊपर छाई हुई कोहरे की हल्की धुंध शाम जैसा माहौल बनाए हुए थी। उन्हीं के बीच बर्फ़ की सफ़ेद चादर यदा कदा दिखाई दे रही थी। चारो तरफ तो ऊँचे ऊँचे पहाड़ थे किन्तु उनके बीच नीचे बल्कि बहुत ही गहराई में कुछ ऐसा नज़र आ रहा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। नीचे गहराई में और बर्फ़ की चादर से घिरे पहाड़ों से सटे बड़े बड़े ऐसे महल बने हुए थे जिनके ऊपर भी बर्फ़ की चादर चढ़ी हुई दिख रही थी। उन महलों के झरोखों से पीले रंग का प्रकाश दिख रहा था। ज़ाहिर था कि महलों के अंदर या तो लालटेनें जल रहीं थी फिर मशालें। चारो तरफ के पहाड़ों से सटे उन महलों के बीच काफी लम्बा गोल घेरा बना हुआ था जिसका फर्श पक्का था और उस फर्श पर खूबसूरत नक्काशी की हुई थी। मैं हैरत से फटी अपनी आँखों से एकटक उस मंज़र को देखे जा रहा था।
मैं जिस जगह पर खड़ा था वो समतल ज़मीन तो थी लेकिन नीचे दिख रहे उन महलों से काफी उँचाई पर थी। मेरे पीछे दूर दूर तक समतल ज़मीन थी जिस पर बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी। एक तरफ विशाल जंगल दिख रहा था। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि ऐसी जगह पर आख़िर मैं पहुंच कैसे गया था? मुझे अपना पिछला कुछ भी याद नहीं था। सिर्फ इतना ही याद था कि मैं अपनी मेघा को खोज रहा था।
समय तो दिन का ही था लेकिन आसमान में कोहरे की गहरी धुंध छाई हुई थी इस लिए सूरज नहीं दिख रहा था। हालांकि ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ की चादर की वजह से सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था। मैं मूर्खों की तरह कभी अपने पीछे दूर दूर तक खाली पड़ी ज़मीन को देखता तो कभी जंगल को तो कभी सामने नीचे की तरफ नज़र आ रहे उन अजीब से महलों को। फ़िज़ा में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था।
मैं अपनी जगह पर अभी खड़ा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि हो सकता है कि मेघा नीचे नज़र आ रहे उन महलों में हो। उसके जिस्म पर राजकुमारियों जैसा लिबाश रहता था जो यही ज़ाहिर करता था कि वो कोई मामूली लड़की नहीं थी। अभी मैं सोच ही रहा था कि तभी बिजली की तरह मेरे ज़हन में मेघा की बात कौंधी जो उसने अपने बारे में मुझे बताया था। मेघा की असलियत का ख़याल आते ही पहले तो मेरे जिस्म में झुरझुरी हुई उसके बाद मैंने गहरी सांस ली।
नीचे नज़र आ रहे महलों की तरफ मैंने फिर से नज़र डाली और वहां पहुंचने का रास्ता खोजने लगा। जल्दी ही मुझे रास्ता नज़र आ गया जो कि महलों के बीच बने विशाल गोले के सामने की तरफ था किन्तु वहां पर यहाँ से सीधा नहीं जाया जा सकता था। मैं बाएं तरफ घूमा और सीधा चल दिया। मेरा अनुमान था कि दूर दूर तक नज़र आ रही समतल ज़मीन में ही कहीं से उन महलों की तरफ जाने का रास्ता होगा। मेरे ज़हन में तो जाने कितने ही ख़याल उभर रहे थे लेकिन फ़िज़ा में एकदम से ख़ामोशी छाई हुई थी। सामने नज़र आ रही ज़मीन में बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी लेकिन कहीं पर भी ऐसा निशान नहीं था जो ये साबित करे कि यहाँ से कोई जीव गया हो या आया हो। ख़ैर मैं बढ़ता ही चला जा रहा था।
काफी देर चलने के बाद मैंने देखा कि आगे की तरफ ज़मीन ढलान में है। पहली बार मैंने फ़िज़ा में एक अजीब सा शोर होता सुना। शोर की तरफ जब मैंने ध्यान दिया तो मेरी नज़र सामने क़रीब दो सौ मीटर उँचाई में नज़र आ रहे एक जल प्रवाह पर पड़ी। ऊंचाई से पानी नीचे गिर रहा था और नीचे वही पानी एक नदी का रूप अख्तियार कर के बह रहा था। नदी के बीच और आस पास छोटी बड़ी चट्टानें नज़र आ रही थी। ज़मीन पर बिछी बर्फ़ की चादर उस नदी के किनारे तक फैली हुई थी। मैं चलते हुए नदी के पास आ गया।
नदी का पानी बेहद ही साफ़ था जिसके नीचे मौजूद छोटे बड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। जो चट्टानें थोड़ी बड़ी थी उनसे टकरा कर नदी का पानी अलग ही नज़ारे के साथ बह रहा था। नदी को बड़ी ही आसानी से पार किया जा सकता था क्योंकि बड़े बड़े पत्थर और चट्टानों का सिखर पानी से ऊँचा था। हालांकि नदी की गहराई मुश्किल से घुटनों तक या फिर उससे थोड़ा ज़्यादा थी। जहां मैं खड़ा हो गया था वहां से बाएं तरफ क़रीब सौ मीटर की दूरी पर वो जल प्रवाह गिरता हुआ नज़र आ रहा था। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं चारो तरफ देखता रहा उसके बाद नदी को पार करने का सोचा और आगे बढ़ चला।
बड़े बड़े पत्थरों पर पाँव रख कर मैंने नदी को पार किया और दूसरी तरफ पहुंच गया। इस तरफ आया तो देखा आगे की तरफ की ज़मीन अब उठान पर थी। मैं बढ़ता ही चला गया। थोड़ा ऊपर आया तो देखा इस तरफ पेड़ पौधे थे जिनके बीच से दो पगडंडियां जा रहीं थी। उन पगडंडियों को देख कर यही लगता था जैसे कोई वाहन उनमें से आता जाता है। पगडंडियां पेड़ों के बीच से ही थीं और आगे जाने कहां तक चली गईं थी। मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उसी पगडण्डी पर बढ़ चला।
क़रीब आधे घंटे बाद उस पगडण्डी पर चलते हुए मैं उस छोर पर आया जहां पर शुरू में मैंने महल बने हुए देखे थे। सामने एक तरफ अजीब सा पहाड़ था जिसके बगल से वो पगडण्डी जा रही थी। पगडण्डी का रास्ता ही बता रहा था कि रास्ता ऊँचे पर्वत शिखर को काट कर बनाया गया रहा होगा। बर्फ़ की चादर इधर भी थी। मैं जब कुछ और पास पहुंचा तो ये देख कर चौंका कि जिन्हें अब तक मैं पहाड़ समझ रहा था असल में वो पहाड़ नहीं बल्कि मिट्टी में दबी बहुत ही विशाल पत्थर की चट्टानें थी जिनका रंग काला था। पगडण्डी वाला रास्ता दो चट्टानों के बीच से गुज़र रहा था। वो दोनों चट्टानें अपने सिर के भाग से आपस में जुडी हुईं थी।
मैं पगडण्डी में आगे बढ़ा और कुछ ही समय में उस जगह पर पहुंच गया जहां पर महल बने हुए थे। आस पास कोई नहीं दिख रहा था। फ़िज़ा में बड़ा ही अजीब सा सन्नाटा कायम था। एक मैं ही अकेला था जो ऐसी जगह पर भटक रहा था। मन में एक भय पैदा हो गया था और दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी। मैं चलते हुए उसी गोले पर आ गया जिसे मैंने शुरू में उँचाई से देखा था। गोलाकार फर्श पर रुक कर मैं महलों के उन झरोखों की तरफ देखने लगा जहां से पीला प्रकाश दिख रहा था। मैं चकित आँखों से महलों की बनावट और उनमें मौजूद शानदार नक्काशी को देखे जा रहा था। महलों की दीवारें बेहद पुरानी सी नज़र आ रहीं थी। बड़े बड़े परकोटे और ऊपर बड़े बड़े गुंबद। काले पत्थरों की दीवारें और मोटे मोटे खम्भे। बड़ा ही रहस्यमय नज़ारा था। सहसा मेरी नज़र महल के एक बड़े से दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था किन्तु जाने क्या सोच कर मैं उस दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। ऐसा लगा जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी।
दरवाज़े के पास पहुंच कर मैं रुका। कुछ देर जाने क्या सोचता रहा और फिर दोनों हाथों को बढ़ा कर उस विशाल दरवाज़े को अंदर की तरफ ज़ोर दे कर ढकेला। दरवाज़ा भयानक आवाज़ करता हुआ अंदर की तरफ खुलता चला गया। अंदर नीम अँधेरा नज़र आया मुझे। अभी मैं अंदर दाखिल होने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी जैसे क़यामत आ गई।
अंदर की तरफ इतना तेज़ शोर हुआ कि मेरे कानों के पर्दे फट गए से प्रतीत हुए। मैंने जल्दी से हड़बड़ा कर अपने कानों को हाथों से ढँक लिया। मुझे समझ न आया कि अचानक से ये कैसा शोर होने लगा था। ऐसा लगा था जैसे अंदर कोई भारी और वजनी चीज़ कहीं से टकरा कर गिरी थी। शोर धीमा हुआ तो मैंने अपने कानों से हाथ हटाए और आगे की तरफ बढ़ चला। मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में हज़ारो तरह के विचार उभरने लगे थे।
अंदर आया तो एक बड़ा सा गोलाकार हाल नज़र आया। हाल के बहुत ऊपर छत पर एक विशाल झूमर लटक रहा था। चारो तरफ की दीवारों में बड़े बड़े मशाल जल रहे थे जिसकी रौशनी हर तरफ फैली हुई थी। सामने की तरफ बेहद चौड़ी सीढ़ियां थी जो ऊपर की तरफ जा कर दोनों तरफ की बालकनी की ओर मुड़ गईं थी। अभी मैं सीढ़ियों की तरफ देख ही रहा था कि तभी किसी नारी कंठ से निकली भयानक चीख को सुन कर मैं दहल गया। एकाएक वहां की फ़िज़ा में गहमा गहमी महसूस हुई और अगले ही पल मेरे बाएं तरफ ऊपर के माले से कोई तेज़ी से आया और हाल में बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ गिरा। मैं छिटक कर उससे दूर हट गया था।
हाल में गिरने वाला शख़्स दो तीन पलटियां खाया था और फिर रुक गया था। उसके जिस्म पर काले रंग के किन्तु चमकीले कपड़े थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके नीचे से निकल रहे गाढ़े काले रंग के तरल पदार्थ पर पड़ी। ऐसा लगा जैसे वो उसके जिस्म के किसी हिस्से से निकल रहा था और अब हाल में फैलता जा रहा था। मुझसे मात्र दो तीन क़दम की दूरी पर ही था वो इस लिए मैं हिम्मत कर के उसकी तरफ बढ़ा। चेहरे की तरफ आ कर मैं रुक गया और उसे ध्यान से देखने लगा। लम्बे लम्बे बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे जिससे मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था लेकिन इतना मैं समझ गया कि वो कोई लड़की थी।
जिस्म पर चुस्त काले लेदर के कपड़े। पैरों में काले रंग के ही लांग बूट जो उसके घुटनों तक दे। दोनों हाथों की दो दो उंगलियों में ऐसी अँगूठियां जिनमें काले और नीले रंग का पत्थर जड़ा हुआ था। उंगलियों के नाख़ून भी काले रंग के थे और थोड़ा बड़े हुए थे। हाथ ज़रूर उसका दूध की तरह गोरा दिख रहा था। कुछ पलों तक मैं उसे ऐसे ही निहारता रहा उसके बाद सहसा मैं झुका और एक हाथ से उसके चेहरे पर बिखरे बालों को बहुत ही सावधानी से हटाया। मेरा दिल इस वक़्त धाड़ धाड़ कर के बज रहा था।
चेहरे पर से जैसे ही बाल हटे तो मेरी नज़र उस लड़की के चेहरे पर पड़ी और मैं ये देख कर उछल पड़ा कि वो मेघा थी। मैं उस चेहरे को पलक झपकते ही पहचान गया था? भला मैं उस चेहरे को भूल भी कैसे सकता था जिसे मैं टूट टूट कर चाहता था और जिसके ख़यालों में मैं हर वक़्त खोया ही रहता था। मैंने झपट कर मेघा को सीधा किया तो ये देख कर मेरे हलक से चीख निकल गई कि उसके पेट पर बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था। वहीं से काले रंग का वो तरल पदार्थ निकल कर हाल के फर्श पर फैलता जा रहा था। इसका मतलब वो काला पदार्थ मेघा का खून था।
एक पल में ही मेरी हालत ख़राब हो गई। अपनी मेघा को इस हालत में देख कर मैं तड़प उठा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरी आँखों से ये सोच कर आंसू बहने लगे कि जिस मेघा को मैं इतना चाहता था और जिसकी खोज में मैं दर दर भटक रहा था वो मर चुकी है। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जो मेरी सहन शक्ति से बाहर हो गया और मैं मेघा का नाम ले कर पूरी शक्ति से चिल्लाया।
मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा था। मेरी आँखें खुल चुकीं थी। ठण्ड के मौसम में भी मैं पसीने से भींगा हुआ था। विचित्र सी हालत में मैं मूर्खों की तरफ बेड पर बैठा इधर उधर देखने लगा था। न वो महल दिख रहे थे, न ही वो बड़ा सा हाल और ना ही उस हाल में मेघा। खुली आंखों में बस कमरे की वो दीवारें दिख रहीं थी जो काले पत्थरों की थीं। एक तरफ की दीवार में गड़ी कील पर लालटेन टंगी हुई थी। एक तरफ मिट्टी का घड़ा रखा हुआ था और उसी घड़े के पास एक टेबल था। दूसरी तरफ लकड़ी का दरवाज़ा। मुझे एकदम से झटका लगा। मनो मस्तिष्क में जैसे विस्फोट सा हुआ और पलक झपकते ही ज़हन में ख़याल उभरा______'इसका मतलब मैं अभी तक ख़्वाब देख रहा था।'
✮✮✮
वो यकीनन ख़्वाब ही था और दुनिया भले ही ये कहे कि ख़्वाबों का सच से कोई वास्ता नहीं होता लेकिन दिल को भला कौन समझाए? वो तो यही समझ रहा था कि उसकी मेघा मर चुकी है। किसी ज़ालिम ने उसे बेदर्दी से मार डाला है। ये ऐसा एहसास था जो मेरे ज़हन को भी यही स्वीकार करने पर ज़ोर दे रहा था जिसकी वजह से मैं बेहद दुखी हो गया था। मैं बार बार ऊपर वाले से मेघा को सही सलामत रखने की दुआ करता जा रहा था। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। बस दहाड़ें मार मार कर रोने का मन कर रहा था। चारो तरफ मेघा को खोजते हुए चीख चीख कर उसको पुकारने का मन कर रहा था।
मैं झटके से बेड से उठा था और भागते हुए कमरे से बाहर आया था। बाहर पेड़ पौधों के अलावा कुछ नज़र न आया। कोहरे की धुंध उतनी नहीं थी जैसे तब थी जब मैं यहाँ आया था। दिन जैसा जान पड़ता था। जंगल की ज़मीन पर सूझे पत्ते बिखरे हुए थे। मैं तेज़ी से एक तरफ को भाग चला। आँखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ज़हन में बस एक ही ख़याल बार बार मुझे तड़पा देता था कि मेरी मेघा मर चुकी है। अगले ही पल मैं अपने इस ख़याल पर बिफरे हुए अंदाज़ में मन ही मन कह उठता कि ऐसे कैसे मर जाएगी वो? अभी तो मुझे उसकी सूरत देखनी है। अभी तो मुझे उसको अपने सीने से लगाना है ताकि मेरे दिल को शान्ति मिल जाए। वो इस तरह मुझे तड़पता छोड़ कर कैसे चली जाएगी?
यकीनन रात गुज़र गई थी और अब दिन का समय था। वातावरण में कोहरे की धुंध अब कुछ कम थी जिसकी वजह से आगे बढ़ने में मुझे न तो टोर्च की ज़रूरत थी और ना ही कोई परेशानी थी। मैं अपनी नाक के सीध भागता ही चला जा रहा था। मेरे ज़हन में ख़्वाब में दिखने वाले वो महल उभर रहे थे और अब मुझे हर कीमत पर उन महलों में पहुंचना था। मुझे यकीन सा हो गया था कि मेरी मेघा वहीं है और इस वक़्त उसे मेरी शख़्त ज़रूरत है।
"क्या हुआ, तुम इतने चुप क्यों हो?" मेरे ज़ख्म ठीक होने के बाद मेघा मुझे मेरे घर छोड़ने जा रही थी। मैं और वो पैदल ही जंगल में चल रहे थे। मैं अंदर से बेहद उदास और बेहद ही दुखी था। दुखी इस लिए क्योंकि आज के बाद मेघा से कभी मुलाक़ात नहीं होनी थी। उसके अनुसार हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे। रास्ते में जब मैं कुछ नहीं बोल रहा था तो मेघा ने मुझसे यही कहा था_____"देखो, हम दोनों के लिए बेहतर यही है कि हम अपनी अपनी दुनिया में खो जाएं। हमारा मिलना तो बस इत्तेफ़ाक़ की बात थी ध्रुव। मैं खुश हूं कि मुझे एक ऐसा इंसान मिला जिसने मुझे अपने खूबसूरत प्रेम का एहसास कराया। भले ही ये एहसास जीवन भर मुझे दर्द देता रहे लेकिन यकीन मानो इसका मुझे ज़रा भी रंज नहीं होगा। मैं तुम्हारे भगवान से दुआ करती हूं कि वो तुम्हें हमेशा खुश रखे।"
"जिन्हें प्रेम का रोग लग जाता है न।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा था____"वो ऐसे बदनसीब बन जाते हैं कि फिर उनको किसी की दुआ भी नहीं लगती। उनका तो बस अपने प्रेमी या अपनी प्रेमिका की यादों में तड़पते रहने का मुकद्दर ही बन जाता है। मैं तो तुम्हारी असलियत जानने के बाद भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं और अभी भी यही चाहता हूं कि हम दोनों एक साथ रहें लेकिन तुम जाने क्यों ऐसा नहीं चाहती?"
"तुमने एक बार कहा था न कि प्रेम को हासिल कर लेना ही प्रेम नहीं कहलाता।" मेघा ने कहा____"बल्कि प्रेम के लिए त्याग और बलिदान करना भी प्रेम कहलाता है। असल में प्रेम की महानता भी वही है जिसमें त्याग और बलिदान किया जाए। तुम्हारी इन बातों ने मुझे समझा दिया था कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं अपनी ख़ुशी के लिए भला वो काम कैसे कर सकती थी जो तुम्हारे जीवन को संकट में डाल दे? प्रेम के नियम सिर्फ तुम पर ही तो लागू नहीं होते थे बल्कि वो तो हर उस शख़्स पर लागू होंगे जो किसी से प्रेम करता हो।"
"तुमसे जुदा होने के बाद मैं कौन सा ख़ुशी से जी सकूंगा?" मैंने कहा था____"इससे अच्छा तो यही था कि साथ रह कर हर उस चीज़ का सामना करते जो हमारे लिए परेशानी बन कर आती। अगर साथ में जी नहीं सकते थे तो कम से कम साथ में मर तो सकते ही थे।"
"नहीं ध्रुव।" मेघा ने सहसा रुक कर और मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहला कर कहा था____"जब अंजाम अच्छे से पता हो तो जान बूझ कर वैसी ग़लती क्यों की जाए? मैं ये हर्गिज़ बरदास्त नहीं कर सकूंगी कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। इसी लिए तो तुम्हारी तरह जीवन भर तड़पना मंज़ूर कर लिया है मैंने। सोचा था कि तुमसे ये सब नहीं बताऊंगी ताकि तुम मेरा ख़याल अपने दिल से निकाल कर जीवन में आगे बढ़ जाओ लेकिन तुमने मजबूर कर दिया मुझे।"
"तुम बेवजह ही ये सब सोच रही हो मेघा।" मैंने पहली बार मेघा के चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया था____"प्रेम करने वाले किसी अंजाम की परवाह नहीं करते बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं और अगर साथ जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"
"तुम्हारी बातें मुझे कमजोर बनाने लगती हैं ध्रुव।" मेघा ने मेरी हथेलियों से अपना चेहरा छुड़ा कर कहा था____"तुम मेरी बिवसता को क्यों नहीं समझते? ये सब इतना आसान नहीं है जितना तुम समझते हो।"
"ठीक है।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा था____"मैं तुम्हें किसी चीज़ के लिए बिवस करने का सोच भी नहीं सकता। मैं तो बस सम्भावनाओं से अवगत करा रहा था। अगर तुम इसके बावजूद यही चाहती हो तो ठीक है।"
मेरी बात सुन कर मेघा अपलक मुझे देखने लगी थी। शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी कि उसकी बातों से मुझे बुरा लगा है या मुझे ठेस पहुंची है। कुछ पल देखने के बाद वो आगे बढ़ चली तो मैं भी आगे बढ़ चला।
"एक वादा करो मुझसे।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा_____"आज के बाद खुद को कभी दुखी नहीं रखोगे और ना ही मुझे खोजने की कोशिश करोगे।"
"मेरी जान मांग लो।" मेरी आँखों में आंसू तैरने लगे थे____"लेकिन ऐसा वादा नहीं कर सकता जो मेरे अख्तियार में ही नहीं है।"
"अगर तुम खुद को दुखी रखोगे तो मैं भी ख़ुशी से जी नहीं पाऊंगी।" मेघा ने भारी गले से कहा था_____"बस ये समझ लो कि जैसा हाल तुम्हारा होगा वैसा ही हाल यहाँ मेरा भी होगा।"
"इसका तो एक ही उपाय है फिर।" मैंने रुक कर उससे कहा था____"और वो ये कि मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटा दो। जब तुम्हारे बारे में मुझे कुछ याद ही नहीं रहेगा तो फिर भला कैसे मैं ऐसे हाल से गुज़रुंगा?"
"हां ये कर सकती हूं मैं।" मेघा ने अजीब भाव से कहा था।
"लेकिन मेरी एक शर्त है।" मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा था____"मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटाने के बाद तुम्हें भी अपने दिलो दिमाग़ से मेरी सब यादें मिटानी होंगी।"
"नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं करुंगी।" मेघा एकदम से दुखी लहजे से बोल पड़ी थी____"तुम्हारे प्रेम की खूबसूरत यादें और उसका एहसास मैं मरते दम तक सम्हाल के रखना चाहती हूं।"
"तो फिर मेरे साथ ही ये नाइंसाफ़ी क्यों?" मैंने मेघा के दोनों कन्धों पर अपने हाथ रख कर कहा था____"मुझे तिल तिल कर मरना मंजूर है लेकिन तुम्हारी यादों को अपने दिलो दिमाग़ से मिटाना मंजूर नहीं है। मेरे पास तुम्हारी इन यादों के अलावा कोई भी अनमोल दौलत नहीं है। क्या तुम मुझसे मेरी ये दौलत छीन लेना चाहती हो?"
"नहीं नहीं, मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती।" मेघा ने बुरी तरह तड़प कर कहा और झपट कर मेरे सीने से लिपट गई। ये पहली बार था जब वो मेरे सीने से लिपटी थी। उसके यूं लिपट जाने पर मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला। अपने दोनों हाथ आगे कर के मैंने भी उसे अपने सीने में भींच लिया। ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। मन ही मन ऊपर वाले से फ़रियाद की कि इस वक़्त को अब यहीं पर ठहर जाने दो।
अभी एक मिनट भी नहीं हुआ था कि अचानक मेघा मुझसे अलग हो कर दूर खड़ी हो गई। उसके यूं अलग हो जाने पर मुझे पहले तो हैरानी हुई किन्तु फिर अनायास ही मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई और साथ ही दिल तड़प कर रह गया।
मेघा की साँसें थोड़ी भारी हो गईं थी। कुछ पलों के लिए उसका गोरा चेहरा अजीब सा दिखा किन्तु फिर सामान्य हो गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद वो पगडण्डी पर चलने लगी तो मैं भी उसके बगल से चलने लगा। जल्द ही हम दोनों जंगल से निकल कर मुख्य सड़क पर आ गए। सुबह अभी हुई नहीं थी किन्तु चांदनी थी इस लिए कोहरे की धुंध में भी हल्का उजाला सा प्रतीत होता था। मैं अभी मुख्य सड़क के दोनों तरफ बारी बारी से देख ही रहा था कि तभी मेघा पर नज़र पड़ते ही मैं चौंका। वो मेरी मोटर साइकिल के साथ खड़ी थी।
"ये तुम्हारे पास कहां से आ गई?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था।
"उस दिन जब हादसा हुआ था और तुम बेहोश हो गए थे।" मेघा कह रही थी____"तो मैंने इसे सड़क से दूर ला कर यहाँ झाड़ियों में छुपा दिया था। अब यहाँ से तुम्हें इसी मोटर साइकिल से जाना होगा।"
"तो क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगी?" मैंने धड़कते दिल से पूछा____"तुमने तो कहा था कि मुझे सही सलामत मेरे घर तक पहुचाओगी।"
"मैं तुम्हारे घर तक नहीं जा सकती ध्रुव।" मेघा ने गंभीरता से कहा था____"यहां से अब तुम्हें किसी भी तरह का ख़तरा नहीं है। इस लिए तुम इस मोटर साइकिल के द्वारा आराम से अपने घर जा सकते हो।"
"क्या सच में तुम ऐसा ही चाहती हो मेघा?" मैंने आख़िरी उम्मीद से कहा था_____"एक बार फिर से सोच लो। ग़मे-इश्क़ वो अज़ाब है जो हम दोनों को चैन से जीने नहीं देगा। मुझे किसी बात की परवाह नहीं है, परवाह है तो सिर्फ हमारे प्रेम की। मैं तुम्हारे लिए हर कीमत देने को तैयार हूं।"
"काश! ऐसा संभव होता ध्रुव।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए लरज़ते स्वर में कहा था____"काश! मेरे लिए ये सब इतना आसान होता और काश मेरे पास ऐसी मजबूरियां न होती। ख़ैर, हमेशा खुश रहना ध्रुव। मेरे लिए अपना जीवन बर्बाद मत करना। अच्छा अब तुम जाओ, मैं भी जा रही हूं....अलविदा।"
शायद उसे पता था कि उसके ऐसा कहने पर मैं फिर से कुछ ऐसा कहूंगा जिससे वो जज़्बातों में बह कर कमज़ोर पड़ जाएगी। इसी लिए उसने इतना कहा और फिर बिना मेरी कोई बात सुने वो तेज़ी से जंगल की तरफ लगभग भागते हुए चली गई। मैं ठगा सा उसे देखता रह गया था। ऐसा लगा जैसे उसके चले जाने से मेरी दुनिया ही उजड़ गई हो। जी चाहा कि मैं भी उसके पीछे भाग जाऊं और अगले ही पल मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर उसके पीछे दौड़ भी पड़ा। मैं जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ता हुआ जंगल की तरफ भागा। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। मैंने चारो तरफ दूर दूर तक नज़र घुमाई लेकिन मेघा कहीं नज़र न आई। मैंने पूरी शक्ति से चिल्ला चिल्ला कर उसे पुकारा भी लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। ज़हन में बस एक ही ख़याल उभरा कि मेरी मेघा हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर जा चुकी है। इस एहसास के साथ ही मानो सारा आसमान मेरे सिर पर आ गिरा और मैं वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर कर ज़ार ज़ार रो पड़ा।
चला गया मेरे दिल को उदासियां दे कर।
मैं हार गया उसे इश्क़ की दुहाइयां दे कर।।
दिल की दुनिया अब कहां आबाद होगी,
चला गया इक तूफ़ां उसे वीनाइयां दे कर।।
वो भी न ले गया दर्द-ए-दिले-शिफ़ा कोई,
मुझे भी न गया दिल की दवाईयां दे कर।।
क्या कहूं उसको के जिसने ऐसे मरहले में,
दर्द से भर दिया दामन जुदाईयां दे कर।।
जिस तरह मुझको गया है छोड़ कर कोई,
यूं न जाए कोई किसी को तन्हाइयां दे कर।।
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Romanchak story..Update - 08
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जाने वो कौन सी जगह थी? ऐसी जगह को मैंने पहले कभी नहीं देखा था। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों के ऊपर छाई हुई कोहरे की हल्की धुंध शाम जैसा माहौल बनाए हुए थी। उन्हीं के बीच बर्फ़ की सफ़ेद चादर यदा कदा दिखाई दे रही थी। चारो तरफ तो ऊँचे ऊँचे पहाड़ थे किन्तु उनके बीच नीचे बल्कि बहुत ही गहराई में कुछ ऐसा नज़र आ रहा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। नीचे गहराई में और बर्फ़ की चादर से घिरे पहाड़ों से सटे बड़े बड़े ऐसे महल बने हुए थे जिनके ऊपर भी बर्फ़ की चादर चढ़ी हुई दिख रही थी। उन महलों के झरोखों से पीले रंग का प्रकाश दिख रहा था। ज़ाहिर था कि महलों के अंदर या तो लालटेनें जल रहीं थी फिर मशालें। चारो तरफ के पहाड़ों से सटे उन महलों के बीच काफी लम्बा गोल घेरा बना हुआ था जिसका फर्श पक्का था और उस फर्श पर खूबसूरत नक्काशी की हुई थी। मैं हैरत से फटी अपनी आँखों से एकटक उस मंज़र को देखे जा रहा था।
मैं जिस जगह पर खड़ा था वो समतल ज़मीन तो थी लेकिन नीचे दिख रहे उन महलों से काफी उँचाई पर थी। मेरे पीछे दूर दूर तक समतल ज़मीन थी जिस पर बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी। एक तरफ विशाल जंगल दिख रहा था। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि ऐसी जगह पर आख़िर मैं पहुंच कैसे गया था? मुझे अपना पिछला कुछ भी याद नहीं था। सिर्फ इतना ही याद था कि मैं अपनी मेघा को खोज रहा था।
समय तो दिन का ही था लेकिन आसमान में कोहरे की गहरी धुंध छाई हुई थी इस लिए सूरज नहीं दिख रहा था। हालांकि ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ की चादर की वजह से सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था। मैं मूर्खों की तरह कभी अपने पीछे दूर दूर तक खाली पड़ी ज़मीन को देखता तो कभी जंगल को तो कभी सामने नीचे की तरफ नज़र आ रहे उन अजीब से महलों को। फ़िज़ा में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था।
मैं अपनी जगह पर अभी खड़ा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि हो सकता है कि मेघा नीचे नज़र आ रहे उन महलों में हो। उसके जिस्म पर राजकुमारियों जैसा लिबाश रहता था जो यही ज़ाहिर करता था कि वो कोई मामूली लड़की नहीं थी। अभी मैं सोच ही रहा था कि तभी बिजली की तरह मेरे ज़हन में मेघा की बात कौंधी जो उसने अपने बारे में मुझे बताया था। मेघा की असलियत का ख़याल आते ही पहले तो मेरे जिस्म में झुरझुरी हुई उसके बाद मैंने गहरी सांस ली।
नीचे नज़र आ रहे महलों की तरफ मैंने फिर से नज़र डाली और वहां पहुंचने का रास्ता खोजने लगा। जल्दी ही मुझे रास्ता नज़र आ गया जो कि महलों के बीच बने विशाल गोले के सामने की तरफ था किन्तु वहां पर यहाँ से सीधा नहीं जाया जा सकता था। मैं बाएं तरफ घूमा और सीधा चल दिया। मेरा अनुमान था कि दूर दूर तक नज़र आ रही समतल ज़मीन में ही कहीं से उन महलों की तरफ जाने का रास्ता होगा। मेरे ज़हन में तो जाने कितने ही ख़याल उभर रहे थे लेकिन फ़िज़ा में एकदम से ख़ामोशी छाई हुई थी। सामने नज़र आ रही ज़मीन में बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी लेकिन कहीं पर भी ऐसा निशान नहीं था जो ये साबित करे कि यहाँ से कोई जीव गया हो या आया हो। ख़ैर मैं बढ़ता ही चला जा रहा था।
काफी देर चलने के बाद मैंने देखा कि आगे की तरफ ज़मीन ढलान में है। पहली बार मैंने फ़िज़ा में एक अजीब सा शोर होता सुना। शोर की तरफ जब मैंने ध्यान दिया तो मेरी नज़र सामने क़रीब दो सौ मीटर उँचाई में नज़र आ रहे एक जल प्रवाह पर पड़ी। ऊंचाई से पानी नीचे गिर रहा था और नीचे वही पानी एक नदी का रूप अख्तियार कर के बह रहा था। नदी के बीच और आस पास छोटी बड़ी चट्टानें नज़र आ रही थी। ज़मीन पर बिछी बर्फ़ की चादर उस नदी के किनारे तक फैली हुई थी। मैं चलते हुए नदी के पास आ गया।
नदी का पानी बेहद ही साफ़ था जिसके नीचे मौजूद छोटे बड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। जो चट्टानें थोड़ी बड़ी थी उनसे टकरा कर नदी का पानी अलग ही नज़ारे के साथ बह रहा था। नदी को बड़ी ही आसानी से पार किया जा सकता था क्योंकि बड़े बड़े पत्थर और चट्टानों का सिखर पानी से ऊँचा था। हालांकि नदी की गहराई मुश्किल से घुटनों तक या फिर उससे थोड़ा ज़्यादा थी। जहां मैं खड़ा हो गया था वहां से बाएं तरफ क़रीब सौ मीटर की दूरी पर वो जल प्रवाह गिरता हुआ नज़र आ रहा था। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं चारो तरफ देखता रहा उसके बाद नदी को पार करने का सोचा और आगे बढ़ चला।
बड़े बड़े पत्थरों पर पाँव रख कर मैंने नदी को पार किया और दूसरी तरफ पहुंच गया। इस तरफ आया तो देखा आगे की तरफ की ज़मीन अब उठान पर थी। मैं बढ़ता ही चला गया। थोड़ा ऊपर आया तो देखा इस तरफ पेड़ पौधे थे जिनके बीच से दो पगडंडियां जा रहीं थी। उन पगडंडियों को देख कर यही लगता था जैसे कोई वाहन उनमें से आता जाता है। पगडंडियां पेड़ों के बीच से ही थीं और आगे जाने कहां तक चली गईं थी। मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उसी पगडण्डी पर बढ़ चला।
क़रीब आधे घंटे बाद उस पगडण्डी पर चलते हुए मैं उस छोर पर आया जहां पर शुरू में मैंने महल बने हुए देखे थे। सामने एक तरफ अजीब सा पहाड़ था जिसके बगल से वो पगडण्डी जा रही थी। पगडण्डी का रास्ता ही बता रहा था कि रास्ता ऊँचे पर्वत शिखर को काट कर बनाया गया रहा होगा। बर्फ़ की चादर इधर भी थी। मैं जब कुछ और पास पहुंचा तो ये देख कर चौंका कि जिन्हें अब तक मैं पहाड़ समझ रहा था असल में वो पहाड़ नहीं बल्कि मिट्टी में दबी बहुत ही विशाल पत्थर की चट्टानें थी जिनका रंग काला था। पगडण्डी वाला रास्ता दो चट्टानों के बीच से गुज़र रहा था। वो दोनों चट्टानें अपने सिर के भाग से आपस में जुडी हुईं थी।
मैं पगडण्डी में आगे बढ़ा और कुछ ही समय में उस जगह पर पहुंच गया जहां पर महल बने हुए थे। आस पास कोई नहीं दिख रहा था। फ़िज़ा में बड़ा ही अजीब सा सन्नाटा कायम था। एक मैं ही अकेला था जो ऐसी जगह पर भटक रहा था। मन में एक भय पैदा हो गया था और दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी। मैं चलते हुए उसी गोले पर आ गया जिसे मैंने शुरू में उँचाई से देखा था। गोलाकार फर्श पर रुक कर मैं महलों के उन झरोखों की तरफ देखने लगा जहां से पीला प्रकाश दिख रहा था। मैं चकित आँखों से महलों की बनावट और उनमें मौजूद शानदार नक्काशी को देखे जा रहा था। महलों की दीवारें बेहद पुरानी सी नज़र आ रहीं थी। बड़े बड़े परकोटे और ऊपर बड़े बड़े गुंबद। काले पत्थरों की दीवारें और मोटे मोटे खम्भे। बड़ा ही रहस्यमय नज़ारा था। सहसा मेरी नज़र महल के एक बड़े से दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था किन्तु जाने क्या सोच कर मैं उस दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। ऐसा लगा जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी।
दरवाज़े के पास पहुंच कर मैं रुका। कुछ देर जाने क्या सोचता रहा और फिर दोनों हाथों को बढ़ा कर उस विशाल दरवाज़े को अंदर की तरफ ज़ोर दे कर ढकेला। दरवाज़ा भयानक आवाज़ करता हुआ अंदर की तरफ खुलता चला गया। अंदर नीम अँधेरा नज़र आया मुझे। अभी मैं अंदर दाखिल होने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी जैसे क़यामत आ गई।
अंदर की तरफ इतना तेज़ शोर हुआ कि मेरे कानों के पर्दे फट गए से प्रतीत हुए। मैंने जल्दी से हड़बड़ा कर अपने कानों को हाथों से ढँक लिया। मुझे समझ न आया कि अचानक से ये कैसा शोर होने लगा था। ऐसा लगा था जैसे अंदर कोई भारी और वजनी चीज़ कहीं से टकरा कर गिरी थी। शोर धीमा हुआ तो मैंने अपने कानों से हाथ हटाए और आगे की तरफ बढ़ चला। मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में हज़ारो तरह के विचार उभरने लगे थे।
अंदर आया तो एक बड़ा सा गोलाकार हाल नज़र आया। हाल के बहुत ऊपर छत पर एक विशाल झूमर लटक रहा था। चारो तरफ की दीवारों में बड़े बड़े मशाल जल रहे थे जिसकी रौशनी हर तरफ फैली हुई थी। सामने की तरफ बेहद चौड़ी सीढ़ियां थी जो ऊपर की तरफ जा कर दोनों तरफ की बालकनी की ओर मुड़ गईं थी। अभी मैं सीढ़ियों की तरफ देख ही रहा था कि तभी किसी नारी कंठ से निकली भयानक चीख को सुन कर मैं दहल गया। एकाएक वहां की फ़िज़ा में गहमा गहमी महसूस हुई और अगले ही पल मेरे बाएं तरफ ऊपर के माले से कोई तेज़ी से आया और हाल में बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ गिरा। मैं छिटक कर उससे दूर हट गया था।
हाल में गिरने वाला शख़्स दो तीन पलटियां खाया था और फिर रुक गया था। उसके जिस्म पर काले रंग के किन्तु चमकीले कपड़े थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके नीचे से निकल रहे गाढ़े काले रंग के तरल पदार्थ पर पड़ी। ऐसा लगा जैसे वो उसके जिस्म के किसी हिस्से से निकल रहा था और अब हाल में फैलता जा रहा था। मुझसे मात्र दो तीन क़दम की दूरी पर ही था वो इस लिए मैं हिम्मत कर के उसकी तरफ बढ़ा। चेहरे की तरफ आ कर मैं रुक गया और उसे ध्यान से देखने लगा। लम्बे लम्बे बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे जिससे मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था लेकिन इतना मैं समझ गया कि वो कोई लड़की थी।
जिस्म पर चुस्त काले लेदर के कपड़े। पैरों में काले रंग के ही लांग बूट जो उसके घुटनों तक दे। दोनों हाथों की दो दो उंगलियों में ऐसी अँगूठियां जिनमें काले और नीले रंग का पत्थर जड़ा हुआ था। उंगलियों के नाख़ून भी काले रंग के थे और थोड़ा बड़े हुए थे। हाथ ज़रूर उसका दूध की तरह गोरा दिख रहा था। कुछ पलों तक मैं उसे ऐसे ही निहारता रहा उसके बाद सहसा मैं झुका और एक हाथ से उसके चेहरे पर बिखरे बालों को बहुत ही सावधानी से हटाया। मेरा दिल इस वक़्त धाड़ धाड़ कर के बज रहा था।
चेहरे पर से जैसे ही बाल हटे तो मेरी नज़र उस लड़की के चेहरे पर पड़ी और मैं ये देख कर उछल पड़ा कि वो मेघा थी। मैं उस चेहरे को पलक झपकते ही पहचान गया था? भला मैं उस चेहरे को भूल भी कैसे सकता था जिसे मैं टूट टूट कर चाहता था और जिसके ख़यालों में मैं हर वक़्त खोया ही रहता था। मैंने झपट कर मेघा को सीधा किया तो ये देख कर मेरे हलक से चीख निकल गई कि उसके पेट पर बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था। वहीं से काले रंग का वो तरल पदार्थ निकल कर हाल के फर्श पर फैलता जा रहा था। इसका मतलब वो काला पदार्थ मेघा का खून था।
एक पल में ही मेरी हालत ख़राब हो गई। अपनी मेघा को इस हालत में देख कर मैं तड़प उठा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरी आँखों से ये सोच कर आंसू बहने लगे कि जिस मेघा को मैं इतना चाहता था और जिसकी खोज में मैं दर दर भटक रहा था वो मर चुकी है। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जो मेरी सहन शक्ति से बाहर हो गया और मैं मेघा का नाम ले कर पूरी शक्ति से चिल्लाया।
मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा था। मेरी आँखें खुल चुकीं थी। ठण्ड के मौसम में भी मैं पसीने से भींगा हुआ था। विचित्र सी हालत में मैं मूर्खों की तरफ बेड पर बैठा इधर उधर देखने लगा था। न वो महल दिख रहे थे, न ही वो बड़ा सा हाल और ना ही उस हाल में मेघा। खुली आंखों में बस कमरे की वो दीवारें दिख रहीं थी जो काले पत्थरों की थीं। एक तरफ की दीवार में गड़ी कील पर लालटेन टंगी हुई थी। एक तरफ मिट्टी का घड़ा रखा हुआ था और उसी घड़े के पास एक टेबल था। दूसरी तरफ लकड़ी का दरवाज़ा। मुझे एकदम से झटका लगा। मनो मस्तिष्क में जैसे विस्फोट सा हुआ और पलक झपकते ही ज़हन में ख़याल उभरा______'इसका मतलब मैं अभी तक ख़्वाब देख रहा था।'
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वो यकीनन ख़्वाब ही था और दुनिया भले ही ये कहे कि ख़्वाबों का सच से कोई वास्ता नहीं होता लेकिन दिल को भला कौन समझाए? वो तो यही समझ रहा था कि उसकी मेघा मर चुकी है। किसी ज़ालिम ने उसे बेदर्दी से मार डाला है। ये ऐसा एहसास था जो मेरे ज़हन को भी यही स्वीकार करने पर ज़ोर दे रहा था जिसकी वजह से मैं बेहद दुखी हो गया था। मैं बार बार ऊपर वाले से मेघा को सही सलामत रखने की दुआ करता जा रहा था। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। बस दहाड़ें मार मार कर रोने का मन कर रहा था। चारो तरफ मेघा को खोजते हुए चीख चीख कर उसको पुकारने का मन कर रहा था।
मैं झटके से बेड से उठा था और भागते हुए कमरे से बाहर आया था। बाहर पेड़ पौधों के अलावा कुछ नज़र न आया। कोहरे की धुंध उतनी नहीं थी जैसे तब थी जब मैं यहाँ आया था। दिन जैसा जान पड़ता था। जंगल की ज़मीन पर सूझे पत्ते बिखरे हुए थे। मैं तेज़ी से एक तरफ को भाग चला। आँखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ज़हन में बस एक ही ख़याल बार बार मुझे तड़पा देता था कि मेरी मेघा मर चुकी है। अगले ही पल मैं अपने इस ख़याल पर बिफरे हुए अंदाज़ में मन ही मन कह उठता कि ऐसे कैसे मर जाएगी वो? अभी तो मुझे उसकी सूरत देखनी है। अभी तो मुझे उसको अपने सीने से लगाना है ताकि मेरे दिल को शान्ति मिल जाए। वो इस तरह मुझे तड़पता छोड़ कर कैसे चली जाएगी?
यकीनन रात गुज़र गई थी और अब दिन का समय था। वातावरण में कोहरे की धुंध अब कुछ कम थी जिसकी वजह से आगे बढ़ने में मुझे न तो टोर्च की ज़रूरत थी और ना ही कोई परेशानी थी। मैं अपनी नाक के सीध भागता ही चला जा रहा था। मेरे ज़हन में ख़्वाब में दिखने वाले वो महल उभर रहे थे और अब मुझे हर कीमत पर उन महलों में पहुंचना था। मुझे यकीन सा हो गया था कि मेरी मेघा वहीं है और इस वक़्त उसे मेरी शख़्त ज़रूरत है।
"क्या हुआ, तुम इतने चुप क्यों हो?" मेरे ज़ख्म ठीक होने के बाद मेघा मुझे मेरे घर छोड़ने जा रही थी। मैं और वो पैदल ही जंगल में चल रहे थे। मैं अंदर से बेहद उदास और बेहद ही दुखी था। दुखी इस लिए क्योंकि आज के बाद मेघा से कभी मुलाक़ात नहीं होनी थी। उसके अनुसार हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे। रास्ते में जब मैं कुछ नहीं बोल रहा था तो मेघा ने मुझसे यही कहा था_____"देखो, हम दोनों के लिए बेहतर यही है कि हम अपनी अपनी दुनिया में खो जाएं। हमारा मिलना तो बस इत्तेफ़ाक़ की बात थी ध्रुव। मैं खुश हूं कि मुझे एक ऐसा इंसान मिला जिसने मुझे अपने खूबसूरत प्रेम का एहसास कराया। भले ही ये एहसास जीवन भर मुझे दर्द देता रहे लेकिन यकीन मानो इसका मुझे ज़रा भी रंज नहीं होगा। मैं तुम्हारे भगवान से दुआ करती हूं कि वो तुम्हें हमेशा खुश रखे।"
"जिन्हें प्रेम का रोग लग जाता है न।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा था____"वो ऐसे बदनसीब बन जाते हैं कि फिर उनको किसी की दुआ भी नहीं लगती। उनका तो बस अपने प्रेमी या अपनी प्रेमिका की यादों में तड़पते रहने का मुकद्दर ही बन जाता है। मैं तो तुम्हारी असलियत जानने के बाद भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं और अभी भी यही चाहता हूं कि हम दोनों एक साथ रहें लेकिन तुम जाने क्यों ऐसा नहीं चाहती?"
"तुमने एक बार कहा था न कि प्रेम को हासिल कर लेना ही प्रेम नहीं कहलाता।" मेघा ने कहा____"बल्कि प्रेम के लिए त्याग और बलिदान करना भी प्रेम कहलाता है। असल में प्रेम की महानता भी वही है जिसमें त्याग और बलिदान किया जाए। तुम्हारी इन बातों ने मुझे समझा दिया था कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं अपनी ख़ुशी के लिए भला वो काम कैसे कर सकती थी जो तुम्हारे जीवन को संकट में डाल दे? प्रेम के नियम सिर्फ तुम पर ही तो लागू नहीं होते थे बल्कि वो तो हर उस शख़्स पर लागू होंगे जो किसी से प्रेम करता हो।"
"तुमसे जुदा होने के बाद मैं कौन सा ख़ुशी से जी सकूंगा?" मैंने कहा था____"इससे अच्छा तो यही था कि साथ रह कर हर उस चीज़ का सामना करते जो हमारे लिए परेशानी बन कर आती। अगर साथ में जी नहीं सकते थे तो कम से कम साथ में मर तो सकते ही थे।"
"नहीं ध्रुव।" मेघा ने सहसा रुक कर और मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहला कर कहा था____"जब अंजाम अच्छे से पता हो तो जान बूझ कर वैसी ग़लती क्यों की जाए? मैं ये हर्गिज़ बरदास्त नहीं कर सकूंगी कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। इसी लिए तो तुम्हारी तरह जीवन भर तड़पना मंज़ूर कर लिया है मैंने। सोचा था कि तुमसे ये सब नहीं बताऊंगी ताकि तुम मेरा ख़याल अपने दिल से निकाल कर जीवन में आगे बढ़ जाओ लेकिन तुमने मजबूर कर दिया मुझे।"
"तुम बेवजह ही ये सब सोच रही हो मेघा।" मैंने पहली बार मेघा के चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया था____"प्रेम करने वाले किसी अंजाम की परवाह नहीं करते बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं और अगर साथ जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"
"तुम्हारी बातें मुझे कमजोर बनाने लगती हैं ध्रुव।" मेघा ने मेरी हथेलियों से अपना चेहरा छुड़ा कर कहा था____"तुम मेरी बिवसता को क्यों नहीं समझते? ये सब इतना आसान नहीं है जितना तुम समझते हो।"
"ठीक है।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा था____"मैं तुम्हें किसी चीज़ के लिए बिवस करने का सोच भी नहीं सकता। मैं तो बस सम्भावनाओं से अवगत करा रहा था। अगर तुम इसके बावजूद यही चाहती हो तो ठीक है।"
मेरी बात सुन कर मेघा अपलक मुझे देखने लगी थी। शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी कि उसकी बातों से मुझे बुरा लगा है या मुझे ठेस पहुंची है। कुछ पल देखने के बाद वो आगे बढ़ चली तो मैं भी आगे बढ़ चला।
"एक वादा करो मुझसे।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा_____"आज के बाद खुद को कभी दुखी नहीं रखोगे और ना ही मुझे खोजने की कोशिश करोगे।"
"मेरी जान मांग लो।" मेरी आँखों में आंसू तैरने लगे थे____"लेकिन ऐसा वादा नहीं कर सकता जो मेरे अख्तियार में ही नहीं है।"
"अगर तुम खुद को दुखी रखोगे तो मैं भी ख़ुशी से जी नहीं पाऊंगी।" मेघा ने भारी गले से कहा था_____"बस ये समझ लो कि जैसा हाल तुम्हारा होगा वैसा ही हाल यहाँ मेरा भी होगा।"
"इसका तो एक ही उपाय है फिर।" मैंने रुक कर उससे कहा था____"और वो ये कि मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटा दो। जब तुम्हारे बारे में मुझे कुछ याद ही नहीं रहेगा तो फिर भला कैसे मैं ऐसे हाल से गुज़रुंगा?"
"हां ये कर सकती हूं मैं।" मेघा ने अजीब भाव से कहा था।
"लेकिन मेरी एक शर्त है।" मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा था____"मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटाने के बाद तुम्हें भी अपने दिलो दिमाग़ से मेरी सब यादें मिटानी होंगी।"
"नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं करुंगी।" मेघा एकदम से दुखी लहजे से बोल पड़ी थी____"तुम्हारे प्रेम की खूबसूरत यादें और उसका एहसास मैं मरते दम तक सम्हाल के रखना चाहती हूं।"
"तो फिर मेरे साथ ही ये नाइंसाफ़ी क्यों?" मैंने मेघा के दोनों कन्धों पर अपने हाथ रख कर कहा था____"मुझे तिल तिल कर मरना मंजूर है लेकिन तुम्हारी यादों को अपने दिलो दिमाग़ से मिटाना मंजूर नहीं है। मेरे पास तुम्हारी इन यादों के अलावा कोई भी अनमोल दौलत नहीं है। क्या तुम मुझसे मेरी ये दौलत छीन लेना चाहती हो?"
"नहीं नहीं, मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती।" मेघा ने बुरी तरह तड़प कर कहा और झपट कर मेरे सीने से लिपट गई। ये पहली बार था जब वो मेरे सीने से लिपटी थी। उसके यूं लिपट जाने पर मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला। अपने दोनों हाथ आगे कर के मैंने भी उसे अपने सीने में भींच लिया। ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। मन ही मन ऊपर वाले से फ़रियाद की कि इस वक़्त को अब यहीं पर ठहर जाने दो।
अभी एक मिनट भी नहीं हुआ था कि अचानक मेघा मुझसे अलग हो कर दूर खड़ी हो गई। उसके यूं अलग हो जाने पर मुझे पहले तो हैरानी हुई किन्तु फिर अनायास ही मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई और साथ ही दिल तड़प कर रह गया।
मेघा की साँसें थोड़ी भारी हो गईं थी। कुछ पलों के लिए उसका गोरा चेहरा अजीब सा दिखा किन्तु फिर सामान्य हो गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद वो पगडण्डी पर चलने लगी तो मैं भी उसके बगल से चलने लगा। जल्द ही हम दोनों जंगल से निकल कर मुख्य सड़क पर आ गए। सुबह अभी हुई नहीं थी किन्तु चांदनी थी इस लिए कोहरे की धुंध में भी हल्का उजाला सा प्रतीत होता था। मैं अभी मुख्य सड़क के दोनों तरफ बारी बारी से देख ही रहा था कि तभी मेघा पर नज़र पड़ते ही मैं चौंका। वो मेरी मोटर साइकिल के साथ खड़ी थी।
"ये तुम्हारे पास कहां से आ गई?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था।
"उस दिन जब हादसा हुआ था और तुम बेहोश हो गए थे।" मेघा कह रही थी____"तो मैंने इसे सड़क से दूर ला कर यहाँ झाड़ियों में छुपा दिया था। अब यहाँ से तुम्हें इसी मोटर साइकिल से जाना होगा।"
"तो क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगी?" मैंने धड़कते दिल से पूछा____"तुमने तो कहा था कि मुझे सही सलामत मेरे घर तक पहुचाओगी।"
"मैं तुम्हारे घर तक नहीं जा सकती ध्रुव।" मेघा ने गंभीरता से कहा था____"यहां से अब तुम्हें किसी भी तरह का ख़तरा नहीं है। इस लिए तुम इस मोटर साइकिल के द्वारा आराम से अपने घर जा सकते हो।"
"क्या सच में तुम ऐसा ही चाहती हो मेघा?" मैंने आख़िरी उम्मीद से कहा था_____"एक बार फिर से सोच लो। ग़मे-इश्क़ वो अज़ाब है जो हम दोनों को चैन से जीने नहीं देगा। मुझे किसी बात की परवाह नहीं है, परवाह है तो सिर्फ हमारे प्रेम की। मैं तुम्हारे लिए हर कीमत देने को तैयार हूं।"
"काश! ऐसा संभव होता ध्रुव।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए लरज़ते स्वर में कहा था____"काश! मेरे लिए ये सब इतना आसान होता और काश मेरे पास ऐसी मजबूरियां न होती। ख़ैर, हमेशा खुश रहना ध्रुव। मेरे लिए अपना जीवन बर्बाद मत करना। अच्छा अब तुम जाओ, मैं भी जा रही हूं....अलविदा।"
शायद उसे पता था कि उसके ऐसा कहने पर मैं फिर से कुछ ऐसा कहूंगा जिससे वो जज़्बातों में बह कर कमज़ोर पड़ जाएगी। इसी लिए उसने इतना कहा और फिर बिना मेरी कोई बात सुने वो तेज़ी से जंगल की तरफ लगभग भागते हुए चली गई। मैं ठगा सा उसे देखता रह गया था। ऐसा लगा जैसे उसके चले जाने से मेरी दुनिया ही उजड़ गई हो। जी चाहा कि मैं भी उसके पीछे भाग जाऊं और अगले ही पल मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर उसके पीछे दौड़ भी पड़ा। मैं जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ता हुआ जंगल की तरफ भागा। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। मैंने चारो तरफ दूर दूर तक नज़र घुमाई लेकिन मेघा कहीं नज़र न आई। मैंने पूरी शक्ति से चिल्ला चिल्ला कर उसे पुकारा भी लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। ज़हन में बस एक ही ख़याल उभरा कि मेरी मेघा हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर जा चुकी है। इस एहसास के साथ ही मानो सारा आसमान मेरे सिर पर आ गिरा और मैं वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर कर ज़ार ज़ार रो पड़ा।
चला गया मेरे दिल को उदासियां दे कर।
मैं हार गया उसे इश्क़ की दुहाइयां दे कर।।
दिल की दुनिया अब कहां आबाद होगी,
चला गया इक तूफ़ां उसे वीनाइयां दे कर।।
वो भी न ले गया दर्द-ए-दिले-शिफ़ा कोई,
मुझे भी न गया दिल की दवाईयां दे कर।।
क्या कहूं उसको के जिसने ऐसे मरहले में,
दर्द से भर दिया दामन जुदाईयां दे कर।।
जिस तरह मुझको गया है छोड़ कर कोई,
यूं न जाए कोई किसी को तन्हाइयां दे कर।।
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Siraj bahi ap koi zip file bol raha tha ka jis ma 5k story ha wo upload kara ga agr ap ka pass tim ho to wo upload kar da plzFor starting new story thread
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Hope this story will touch our hearts
Shukriya bhaiFor completed 10k views on your story thread.....