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Dosto, Story ka next update post kar diya hai,,,,

Dhruv apni life me kafi dukh dekha tha jab usko sukh ka sahara mila megha ki roop me wo bhi usse chin gaya use dukh ki samundar me dhakel diya.Update - 01
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हर एक पल रंज़-ओ-ग़म गवारा करके।
जी रहा हूं फक़त यादों का सहारा करके।।
हाल-ए-दिल मेरा समझता ही नहीं कोई,
बैठा है हर शख़्स मुझसे किनारा करके।।
तेरे बग़ैर मुझे रास न आएगी ये दुनियां,
देख लिया है मैंने हर सूं गुज़ारा करके।।
नींद आए कभी तो ख़्वाबों में देखूं तुझे,
जी नहीं लगता किसी का नज़ारा करके।।
ज़िन्दगी पहले भी बेरंग थी, ज़िन्दगी आज भी बेरंग है और न जाने कब तक ये ज़िन्दगी यूं ही बेरंग रहने वाली है। मैंने अपनी ज़िन्दगी को रंगों से भरने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार ऐसा ही हुआ है कि मेरी ज़िन्दगी मुझे बेरंग ही नज़र आई। मैं अक्सर सोचता था कि क्या मुझे कोई अभिशाप मिला है जिसकी वजह से मैं हर किसी की तरह खुश नहीं रह सकता? हलांकि इस दुनियां में खुश तो कोई नहीं है लेकिन मेरे अलावा बाकी लोगों को खुश रहने का कोई न कोई जरिया तो मिल ही जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये भी है कि झूठ मूठ का ही सही लेकिन बाकी लोग खुश रहने का दिखावा तो कर ही लेते हैं किन्तु मेरी किस्मत में ऐसा दिखावा करना भी जैसे लिखा ही नहीं है।
पिछले दो साल में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने उस जगह को खोजने की कोशिश न की हो जिस जगह पर मैंने एक ऐसी शख़्सियत के साथ जीवन के चंद दिन गुज़ारे थे जिसे देख कर मैं ये समझ बैठा था कि उसके साथ ही मेरी ज़िन्दगी की असल खुशियां हैं। कुदरत कभी कभी इंसान को खुली आँखों से ऐसे ख़्वाब दिखा देती है जो उसे कुछ पलों के लिए तो ख़ुशी दे देते हैं लेकिन उसके बाद जीवन भर का दर्द भी जैसे उन्हें सौगात में मिल जाता है। मुझे ऐसे दर्द से कोई शिकवा नहीं था बल्कि मैं तो यही चाहता था कि दर्द चाहे जितने भी मिल जाएं लेकिन जीवन में एक बार फिर से उसका दीदार हो जाए ताकि उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों में और अपने दिल में बसा कर उसी के ख़यालों में ताऊम्र खोया रहूं।
"अब मुझे जाना होगा ध्रुव।" उसने प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा था____"ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने किसी इंसान के साथ इतना वक़्त बिताया है।"
"ये..ये तुम क्या कह रही हो मेघा?" उसके जाने की बात सुन कर मेरी जान जैसे मेरे हलक में आ फंसी थी_____"तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कैसे जा सकती हो?"
"मुझे जाना ही होगा ध्रुव।" मेघा ने पहले की भाँति ही मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा था_____"पिछले एक हप्ते से मैं तुम्हारे साथ यहाँ पर हूं। तुम्हारे ज़ख्म तो पहले ही ठीक हो गए थे लेकिन मैं तुम्हारे साथ इतने दिनों तक इसी लिए रह गई क्योंकि मेरी वजह से ही तुम मौत के मुँह में जाते जाते बचे थे। मैं खुद इस बात को नहीं जानती कि मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ क्यों किया जबकि मेरी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं।"
"ऐसा मत कहो मेघा।" मेरी आवाज़ भारी हो गई थी____"मेरी नज़र में तुम दुनियां की सबसे खूबसूरत और सबसे नेकदिल लड़की हो। एक हप्ते पहले जो कुछ भी हुआ था वो महज एक हादसा ज़रूर था लेकिन उस हादसे ने मुझे तुमसे मिलाया। सच कहूं तो मैं उस हादसे के होने से बेहद खुश हूं क्योंकि अगर वो हादसा न होता तो मैं एक ऐसी लड़की से कैसे मिल पाता जिसे अब मैं टूट टूट कर प्यार करने लगा हूं। तुम नहीं जानती मेघा, इसके पहले मेरी ज़िन्दगी का कोई मतलब ही नहीं था। इसके पहले मेरी ज़िन्दगी में ना तो कोई रंग थे और ना ही कोई खुशियां थी। सच तो ये है कि मुझे अपनी ही ज़िन्दगी बोझ सी लगती थी। एक पल भी जीने की आरज़ू नहीं होती थी, फिर भी इस उम्मीद में जीता था कि शायद किसी दिन मेरी ज़िन्दगी में भी कोई खुशियों की बहार आए। तुम मिली तो अब मुझे ऐसा ही लगता है जैसे मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी में खुशियों की बहार आ गई है। मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता मेघा और ना ही जीना चाहता हूं। इस तरह मुझे छोड़ कर जाने को मत कहो। मैं तुमसे भीख मांगता हूं, भगवान के लिए मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।"
"मुझे इस तरह मोह के जाल में मत फंसाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा था____"तुम पहले इंसान हो जिसके साथ मैंने इतना वक़्त गुज़ार दिया है वरना मेरी फितरत तो ऐसी है कि मैं किसी के लिए भी ऐसे जज़्बात नहीं रखती। तुम बहुत अच्छे हो ध्रुव लेकिन एक सच ये भी है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। अपने दिल से मेरे प्रति ऐसे ख़याल निकाल दो। मैं चाह कर भी ना तो तुम्हारे साथ रह सकती हूं और ना ही तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"
"आख़िर क्यों मेघा?" उसकी बातें सुन कर मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। कातर भाव से कहा था मैंने____"क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं? क्या मुझमें कोई कमी है जिसके चलते तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती? तुम बस एक बार बता दो मेघा, मैं तुम्हारे लिए अपने अंदर की हर कमी को दूर कर दूंगा।"
"नहीं ध्रुव।" उसने जल्दी से अपनी हथेली को मेरे मुख पर रख दिया था, फिर अधीर हो कर कहा_____"तुम में कोई कमी नहीं है बल्कि तुम तो ऐसे हो जिसके प्रेम को अगर कोई लड़की स्वीकार न करे तो वो बदनसीब ही कहलाएगी।"
"फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाने की बात कह रही हो?" मैंने अपने एक हाथ से उसकी हथेली को अपने मुख से हटाते हुए कहा था____"ये जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता, फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो?"
"कुछ सवालों के जवाब नहीं होते ध्रुव।" उसने कहीं खोए हुए अंदाज़ से कहा था____"काश! मेरी किस्मत में भी तुम्हारे साथ रहना लिखा होता। काश! विधाता ने मुझे तुम्हारे लायक बनाया होता। काश! तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर के मैं भी तुम्हारे साथ एक नई किन्तु हसीन दुनियां बसा सकती।"
"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये क्या कह रही हो?" मैं उसकी बातें सुन कर बहुत ज़्यादा उलझन में पड़ गया था_____"आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि तुम मेरे साथ नहीं रह सकती? अगर किसी तरह की कोई समस्या है तो हम दोनों मिल कर उस समस्या को दूर करेंगे ना।"
"ऐसा नहीं हो सकता ध्रुव।" उसने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरा चेहरा अपनी कोमल हथेलियों में भर कर कहा_____"इस दुनियां में बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन पर किसी का अख़्तियार नहीं होता। ख़ैर, मैं बहुत खुश हूं कि मेरे जैसी लड़की के लिए तुम्हारे दिल में ऐसे खूबसूरत जज़्बात हैं। यकीन मानो, मुझे इस बात का बेहद रंज है कि मैं एक ऐसे इंसान को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हूं जो मुझे बेहद प्रेम करता है। काश! विधाता ने मुझे इस लायक बनाया होता कि मेरे नसीब में भी किसी इंसान से प्यार करना लिखा होता और मैं किसी इंसान के साथ जीवन गुज़ार सकती।"
मैं मूर्खों की तरह उस खूबसूरत लड़की की तरफ देखता रह गया था जिसका चेहरा उस वक़्त मुझे ऐसा नज़र आ रहा था जैसे वो अपने अंदर चल रहे किसी बहुत ही बड़े झंझावात से जूझ रही हो। मेरा जी चाहा कि बेड से उठ कर उसे अपने सीने से लगा लूं लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका। मेरे ज़ख्म तो पहले ही भर गए थे लेकिन जिस्म में कमजोरी का आभास हो रहा था इस लिए मैं बेबस भाव से उसकी तरफ बस देखता ही रह गया था।
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एक बार फिर से शाम ढल चुकी थी और मैं हमेशा की तरह आज भी इस उम्मीद में यहाँ आया था कि शायद आज मुझे वो जगह मिल जाए जिस जगह पर मैंने मेघा के साथ अपने जीवन के बहुत ही खूबसूरत पल बिताए थे। उसके साथ बिताए हुए चंद दिनों का ऐसा असर हुआ था कि पहले से ही बेरंग लगती मेरी ज़िन्दगी उसके बिना मुझे और भी ज़्यादा बेरंग लगने लगी थी। हर वक़्त दिल से यही दुआ करता था कि बस एक बार उसका दीदार हो जाए और मैं जी भर के उसे देख लूं लेकिन न पहले कभी मेरी दुआएं क़ुबूल हुईं थी और ना ही शायद आगे कभी क़ुबूल होने वाली थीं। मुझे मेरी बदनसीबी पर इतना एतबार जो था।
दिसंबर के आख़िर में ज़ोरों की ठण्ड होने लगती थी और कोहरे की धुंध ऐसी होती थी कि पांच फ़ुट की दूरी पर खड़ा ब्यक्ति भी आसानी से दिखाई नहीं देता था। इन दो सालों में मैंने इस पूरे क्षेत्र को अच्छी तरह छान मारा था लेकिन मुझे वो जगह नहीं मिली थी जिस जगह पर मैंने दो साल पहले मेघा के साथ एक हप्ता गुज़ारा था। ऐसा नहीं था कि मेरे ज़हन से उस जगह का नक्शा मिट चुका था बल्कि वो तो मुझे आज भी अच्छी तरह याद है लेकिन जाने क्यों मैं उस जगह को आज तक खोज नहीं पाया था। मैं अक्सर सोचता था कि क्या उस जगह को ज़मीन ने निगल लिया होगा या फिर आसमान खा गया होगा?
इन दो सालों में मेरी मानसिक हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे दुनियां से और दुनियां वालों से जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मैं आज भी सुबह काम पर जाता था और शाम से पहले ही काम से वापस आ जाता था। मेरे पास दिन का सिर्फ यही पहर होता था जब मैं उसकी खोज में इस क्षेत्र की वादियों में भटकता था। मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मेरी पीठ के पीछे मेरे बारे में तरह तरह की बातें करते थे लेकिन मुझे उनसे और उनकी बातों से कभी कोई मतलब नहीं होता था। मुझे तो बस एक ही सनक सवार थी कि एक बार फिर से मुझे मेघा मिल जाए और मैं उसे जी भर के देख लूं। उसकी खोज में मैंने वो सब किया था जो मुझसे हो सकता था लेकिन दो साल गुज़र जाने के बाद भी ना तो मुझे उसका कोई सुराग़ मिल सका था और ना ही कहीं उसके होने की उम्मीद नज़र आई थी। इस सबके बावजूद मुझे इतना ऐतबार ज़रूर था कि वो जब भी मुझे मिलेगी तो यहीं कहीं मिलेगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि यहीं पर कहीं आज भी उसका वजूद है।
शाम तो कब की ढल चुकी थी और गुज़रते वक़्त के साथ ठण्ड भी अपना ज़ोर दिखाती जा रही थी लेकिन मैं हाथ में बड़ी सी टार्च लिए मुसलसल आगे बढ़ता ही जा रहा था। हालांकि आसमान में चाँद खिला हुआ था किन्तु उसकी रौशनी कोहरे की गहरी धुंध को भेदने में नाकाम थी। मेरे चारो तरफ घना जंगल था और फ़िज़ा में रूह को थर्रा देने वाली सांय सांय की आवाज़ें गूँज रहीं थी लेकिन मेरे अंदर डर जैसी कोई बात नहीं थी। असल में मैं इन दो सालों में इस सबका आदी हो चुका था। अपने घर से बहुत दूर आ चुका था मैं और ये अक्सर ही होता था। कभी कभी ऐसा भी होता था कि मैं जंगल में ही थक कर सो जाता था और दिन निकलने पर जब मेरी आँखें खुलती तो वापस लौट जाता था, क्योंकि सुबह मुझे काम पर भी जाना होता था।
"मुझसे वादा करो ध्रुव कि तुम मुझे कभी भी खोजने की कोशिश नहीं करोगे।" दो साल पहले मेघा के द्वारा कहा गया ये वाक्य अक्सर मेरे कानों में गूँज उठता था_____"बल्कि मुझे भुलाने की कोशिश करते हुए तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाओगे।"
"मैं तुमसे ऐसा वादा नहीं कर सकता मेघा।" मैंने दुखी भाव से कहा था____"मैं चाह कर भी तुम्हें भुला नहीं सकूंगा बल्कि सच तो ये है कि हर पल तुम्हारी याद में तड़पना ही जैसे मेरा मुक़द्दर बन जाएगा। क्या तुम्हें मेरी हालत पर ज़रा भी तरस नहीं आता? भगवान के लिए मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ। मेरा इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है।"
"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने अपनी आँखें बंद कर के मानो बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालने की कोशिश की थी____"तुम्हारी ऐसी बातों से मेरा मुकम्मल वजूद कांप उठता है। तुम मेरी विवशता को नहीं समझ सकते। मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूं और ना ही मेरी किस्मत में तुम्हारा साथ लिखा है।"
"आख़िर बार बार ऐसा क्यों कहती हो तुम?" मेघा के मलिन पड़े चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था मैंने____"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि तुम मेरे प्यार के लायक नहीं हो या तुम्हारी किस्मत में मेरे साथ रहना नहीं लिखा है? मुझे सच सच बताओ मेघा, आख़िर ऐसी कौन सी बात है?"
मेरे इस सवाल पर उसने बड़ी ही बेबसी से देखा था मेरी तरफ। उसकी गहरी आँखों में बड़ा अजीब सा सूनापन नज़र आया था मुझे। मैं अपने सवालों के जवाब की उम्मीद में उसी की तरफ अपलक देखता जा रहा था। लालटेन की धीमी रौशनी में भी उसका चेहरा चाँद की मानिन्द चमक रहा था। उसके सुर्ख होठ ताज़े खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे। कमर के नीचे तक बिखरे हुए उसके घने काले रेशमी बाल मानो घटाओं को भी मात दे रहे थे। उसके सुराहीदार गले में एक ऐसा लॉकेट था जिसमें गाढ़े नीले रंग का किन्तु बड़ा सा नगीने जैसा पत्थर था।
"क्या हुआ?" उसे गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ देख मैंने उससे कहा था____"तुम इस तरह ख़ामोश क्यों हो जाती हो मेघा? मुझे बताती क्यों नहीं कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुम मेरे साथ नहीं रह सकती?"
मेरी बात सुन कर उसने एक बार फिर से मेरी तरफ बेबसी से देखा और फिर मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर उसने जो कुछ कहा उसने मेरे मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। मेरी हालत उस बुत की तरह हो गई थी जिसमें कोई जान नहीं होती। हैरत से फटी आँखों से मैं बस उसे ही देखे जा रहा था, जबकि वो अपने चेहरे को ऊपर कर के मेरी तरफ इस तरह देखने लगी थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।
अभी मैं मेघा के ख़यालों में ही खोया हुआ था की तभी मेरे बगल से कोई इतनी तेज़ रफ़्तार से निकल कर भागा कि एक पल के लिए तो मेरी रूह तक फ़ना होती हुई महसूस हुई। मैंने बौखला कर तेज़ी से टार्च का फोकस उस तरफ को किया जिस तरफ से कोई बड़ी तेज़ी से भागता हुआ गया था। टार्च के तेज़ प्रकाश में भाग कर जाने वाला तो नहीं दिखा, अलबत्ता कोहरे की गहरी धुंध ज़रूर दिखी। ठण्ड इतनी थी कि घने जंगल में होने के बावजूद मैं रह रह कर कांप उठता था। हालांकि ठण्ड से खुद को बचाने के लिए मैंने अपने जिस्म में कई गर्म कपड़े डाल रखे थे। मैंने महसूस किया कि आज कोहरे की धुंध पिछले दिनों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही थी और शायद यही वजह थी कि मुझे अपने सामने नज़र आने वाला हर रास्ता अंजान सा लग रहा था।
जब से मेघा मुझे छोड़ कर गई थी तब से ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रा था जब मैंने उसकी खोज न की हो या उसका पता न लगाया हो। शुरुआत में तो मैं उसके बारे में दूसरों से भी पूछता था और हर जगह उसे खोजता भी था। यहाँ तक कि दूसरे शहरों में जा कर भी उसकी तलाश की थी लेकिन मुझे मेघा का कहीं कोई सुराग़ तक न मिला था। ऐसा लगता था जैसे सच में वो कोई ऐसा ख़्वाब थी जिसको मैंने खुली आँखों से देखा था। एक वक़्त ऐसा आ गया था जब लोग मुझे देखते ही मुझसे किनारा करने लगे थे। ऐसा शायद इस लिए कि वो मुझे पागल समझने लगे थे और नहीं चाहते थे कि वो किसी पागल की बातें सुनें। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो पहले ही मेघा का ख़याल अपने दिल से निकाल कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाता लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका था। सच तो ये था कि मैं मेघा को अपने दिलो दिमाग़ से निकालना ही नहीं चाहता था। मेरे जीवन में एक वही तो ऐसी थी जिसे देख कर मैंने ये महसूस किया था कि वो मेरा सब कुछ है और मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी सिर्फ उसी के द्वारा संवर सकती थी। मैं जानता हूं कि मेरा ऐसा सोचना महज बेवकूफ़ी के सिवा कुछ नहीं था लेकिन अपने दिल को मैं किसी भी कीमत पर समझा नहीं सकता था।
टार्च की रौशनी में आगे बढ़ते हुए अचानक ही मैं खुले मैदान में आ गया। यहाँ पर चाँद की रौशनी में कोहरे की गहरी धुंध मुझे साफ़ दिख रही थी। अपनी जगह पर रुक कर मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की लेकिन धुंध की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने महसूस किया कि इस जगह पर मैं पहली बार आया हूं और ये वो जगह नहीं है जहां पर दो साल पहले मैं मेघा के साथ उसके अजीब से घर में एक हप्ते रहा था। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि पत्थर के बने उस अजीब से मकान के चारो तरफ घने पेड़ पौधे थे और पास में ही कहीं से किसी झरने से पानी बहने की आवाज़ आती थी।
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Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।
वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।
ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।
हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।
एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।
मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।
किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।
ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।
ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।
घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।
सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।
मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर गई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।
"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"
"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"
"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"
"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"
"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"
"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"
"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"
मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।
अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।
सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।
"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"
मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।
पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।
मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।
"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"
गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।
"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ गए न तुम?"
ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।
मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।
मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?
✮✮✮
Dhruv megha k pyar me iss kadar pagal ho gaya he sab kuch bhula diya he jiske chalte usko bahut kuch sunna pad raja.dhruv Megha ko panne k liye aur kuch karna hoga.Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।
वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।
ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।
हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।
एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।
मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।
किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।
ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।
ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।
घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।
सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।
मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर गई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।
"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"
"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"
"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"
"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"
"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"
"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"
"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"
मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।
अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।
सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।
"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"
मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।
पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।
मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।
"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"
गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।
"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ गए न तुम?"
ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।
मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।
मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?
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Nice and excellent update...Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।
वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।
ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।
हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।
एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।
मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।
किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।
ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।
ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।
घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।
सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।
मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर गई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।
"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"
"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"
"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"
"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"
"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"
"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"
"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"
मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।
अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।
सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।
"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"
मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।
पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।
मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।
"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"
गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।
"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ गए न तुम?"
ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।
मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।
मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?
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romanchak shuruwat .Update - 01
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हर एक पल रंज़-ओ-ग़म गवारा करके।
जी रहा हूं फक़त यादों का सहारा करके।।
हाल-ए-दिल मेरा समझता ही नहीं कोई,
बैठा है हर शख़्स मुझसे किनारा करके।।
तेरे बग़ैर मुझे रास न आएगी ये दुनियां,
देख लिया है मैंने हर सूं गुज़ारा करके।।
नींद आए कभी तो ख़्वाबों में देखूं तुझे,
जी नहीं लगता किसी का नज़ारा करके।।
ज़िन्दगी पहले भी बेरंग थी, ज़िन्दगी आज भी बेरंग है और न जाने कब तक ये ज़िन्दगी यूं ही बेरंग रहने वाली है। मैंने अपनी ज़िन्दगी को रंगों से भरने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार ऐसा ही हुआ है कि मेरी ज़िन्दगी मुझे बेरंग ही नज़र आई। मैं अक्सर सोचता था कि क्या मुझे कोई अभिशाप मिला है जिसकी वजह से मैं हर किसी की तरह खुश नहीं रह सकता? हलांकि इस दुनियां में खुश तो कोई नहीं है लेकिन मेरे अलावा बाकी लोगों को खुश रहने का कोई न कोई जरिया तो मिल ही जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये भी है कि झूठ मूठ का ही सही लेकिन बाकी लोग खुश रहने का दिखावा तो कर ही लेते हैं किन्तु मेरी किस्मत में ऐसा दिखावा करना भी जैसे लिखा ही नहीं है।
पिछले दो साल में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने उस जगह को खोजने की कोशिश न की हो जिस जगह पर मैंने एक ऐसी शख़्सियत के साथ जीवन के चंद दिन गुज़ारे थे जिसे देख कर मैं ये समझ बैठा था कि उसके साथ ही मेरी ज़िन्दगी की असल खुशियां हैं। कुदरत कभी कभी इंसान को खुली आँखों से ऐसे ख़्वाब दिखा देती है जो उसे कुछ पलों के लिए तो ख़ुशी दे देते हैं लेकिन उसके बाद जीवन भर का दर्द भी जैसे उन्हें सौगात में मिल जाता है। मुझे ऐसे दर्द से कोई शिकवा नहीं था बल्कि मैं तो यही चाहता था कि दर्द चाहे जितने भी मिल जाएं लेकिन जीवन में एक बार फिर से उसका दीदार हो जाए ताकि उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों में और अपने दिल में बसा कर उसी के ख़यालों में ताऊम्र खोया रहूं।
"अब मुझे जाना होगा ध्रुव।" उसने प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा था____"ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने किसी इंसान के साथ इतना वक़्त बिताया है।"
"ये..ये तुम क्या कह रही हो मेघा?" उसके जाने की बात सुन कर मेरी जान जैसे मेरे हलक में आ फंसी थी_____"तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कैसे जा सकती हो?"
"मुझे जाना ही होगा ध्रुव।" मेघा ने पहले की भाँति ही मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा था_____"पिछले एक हप्ते से मैं तुम्हारे साथ यहाँ पर हूं। तुम्हारे ज़ख्म तो पहले ही ठीक हो गए थे लेकिन मैं तुम्हारे साथ इतने दिनों तक इसी लिए रह गई क्योंकि मेरी वजह से ही तुम मौत के मुँह में जाते जाते बचे थे। मैं खुद इस बात को नहीं जानती कि मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ क्यों किया जबकि मेरी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं।"
"ऐसा मत कहो मेघा।" मेरी आवाज़ भारी हो गई थी____"मेरी नज़र में तुम दुनियां की सबसे खूबसूरत और सबसे नेकदिल लड़की हो। एक हप्ते पहले जो कुछ भी हुआ था वो महज एक हादसा ज़रूर था लेकिन उस हादसे ने मुझे तुमसे मिलाया। सच कहूं तो मैं उस हादसे के होने से बेहद खुश हूं क्योंकि अगर वो हादसा न होता तो मैं एक ऐसी लड़की से कैसे मिल पाता जिसे अब मैं टूट टूट कर प्यार करने लगा हूं। तुम नहीं जानती मेघा, इसके पहले मेरी ज़िन्दगी का कोई मतलब ही नहीं था। इसके पहले मेरी ज़िन्दगी में ना तो कोई रंग थे और ना ही कोई खुशियां थी। सच तो ये है कि मुझे अपनी ही ज़िन्दगी बोझ सी लगती थी। एक पल भी जीने की आरज़ू नहीं होती थी, फिर भी इस उम्मीद में जीता था कि शायद किसी दिन मेरी ज़िन्दगी में भी कोई खुशियों की बहार आए। तुम मिली तो अब मुझे ऐसा ही लगता है जैसे मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी में खुशियों की बहार आ गई है। मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता मेघा और ना ही जीना चाहता हूं। इस तरह मुझे छोड़ कर जाने को मत कहो। मैं तुमसे भीख मांगता हूं, भगवान के लिए मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।"
"मुझे इस तरह मोह के जाल में मत फंसाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा था____"तुम पहले इंसान हो जिसके साथ मैंने इतना वक़्त गुज़ार दिया है वरना मेरी फितरत तो ऐसी है कि मैं किसी के लिए भी ऐसे जज़्बात नहीं रखती। तुम बहुत अच्छे हो ध्रुव लेकिन एक सच ये भी है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। अपने दिल से मेरे प्रति ऐसे ख़याल निकाल दो। मैं चाह कर भी ना तो तुम्हारे साथ रह सकती हूं और ना ही तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"
"आख़िर क्यों मेघा?" उसकी बातें सुन कर मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। कातर भाव से कहा था मैंने____"क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं? क्या मुझमें कोई कमी है जिसके चलते तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती? तुम बस एक बार बता दो मेघा, मैं तुम्हारे लिए अपने अंदर की हर कमी को दूर कर दूंगा।"
"नहीं ध्रुव।" उसने जल्दी से अपनी हथेली को मेरे मुख पर रख दिया था, फिर अधीर हो कर कहा_____"तुम में कोई कमी नहीं है बल्कि तुम तो ऐसे हो जिसके प्रेम को अगर कोई लड़की स्वीकार न करे तो वो बदनसीब ही कहलाएगी।"
"फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाने की बात कह रही हो?" मैंने अपने एक हाथ से उसकी हथेली को अपने मुख से हटाते हुए कहा था____"ये जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता, फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो?"
"कुछ सवालों के जवाब नहीं होते ध्रुव।" उसने कहीं खोए हुए अंदाज़ से कहा था____"काश! मेरी किस्मत में भी तुम्हारे साथ रहना लिखा होता। काश! विधाता ने मुझे तुम्हारे लायक बनाया होता। काश! तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर के मैं भी तुम्हारे साथ एक नई किन्तु हसीन दुनियां बसा सकती।"
"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये क्या कह रही हो?" मैं उसकी बातें सुन कर बहुत ज़्यादा उलझन में पड़ गया था_____"आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि तुम मेरे साथ नहीं रह सकती? अगर किसी तरह की कोई समस्या है तो हम दोनों मिल कर उस समस्या को दूर करेंगे ना।"
"ऐसा नहीं हो सकता ध्रुव।" उसने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरा चेहरा अपनी कोमल हथेलियों में भर कर कहा_____"इस दुनियां में बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन पर किसी का अख़्तियार नहीं होता। ख़ैर, मैं बहुत खुश हूं कि मेरे जैसी लड़की के लिए तुम्हारे दिल में ऐसे खूबसूरत जज़्बात हैं। यकीन मानो, मुझे इस बात का बेहद रंज है कि मैं एक ऐसे इंसान को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हूं जो मुझे बेहद प्रेम करता है। काश! विधाता ने मुझे इस लायक बनाया होता कि मेरे नसीब में भी किसी इंसान से प्यार करना लिखा होता और मैं किसी इंसान के साथ जीवन गुज़ार सकती।"
मैं मूर्खों की तरह उस खूबसूरत लड़की की तरफ देखता रह गया था जिसका चेहरा उस वक़्त मुझे ऐसा नज़र आ रहा था जैसे वो अपने अंदर चल रहे किसी बहुत ही बड़े झंझावात से जूझ रही हो। मेरा जी चाहा कि बेड से उठ कर उसे अपने सीने से लगा लूं लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका। मेरे ज़ख्म तो पहले ही भर गए थे लेकिन जिस्म में कमजोरी का आभास हो रहा था इस लिए मैं बेबस भाव से उसकी तरफ बस देखता ही रह गया था।
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एक बार फिर से शाम ढल चुकी थी और मैं हमेशा की तरह आज भी इस उम्मीद में यहाँ आया था कि शायद आज मुझे वो जगह मिल जाए जिस जगह पर मैंने मेघा के साथ अपने जीवन के बहुत ही खूबसूरत पल बिताए थे। उसके साथ बिताए हुए चंद दिनों का ऐसा असर हुआ था कि पहले से ही बेरंग लगती मेरी ज़िन्दगी उसके बिना मुझे और भी ज़्यादा बेरंग लगने लगी थी। हर वक़्त दिल से यही दुआ करता था कि बस एक बार उसका दीदार हो जाए और मैं जी भर के उसे देख लूं लेकिन न पहले कभी मेरी दुआएं क़ुबूल हुईं थी और ना ही शायद आगे कभी क़ुबूल होने वाली थीं। मुझे मेरी बदनसीबी पर इतना एतबार जो था।
दिसंबर के आख़िर में ज़ोरों की ठण्ड होने लगती थी और कोहरे की धुंध ऐसी होती थी कि पांच फ़ुट की दूरी पर खड़ा ब्यक्ति भी आसानी से दिखाई नहीं देता था। इन दो सालों में मैंने इस पूरे क्षेत्र को अच्छी तरह छान मारा था लेकिन मुझे वो जगह नहीं मिली थी जिस जगह पर मैंने दो साल पहले मेघा के साथ एक हप्ता गुज़ारा था। ऐसा नहीं था कि मेरे ज़हन से उस जगह का नक्शा मिट चुका था बल्कि वो तो मुझे आज भी अच्छी तरह याद है लेकिन जाने क्यों मैं उस जगह को आज तक खोज नहीं पाया था। मैं अक्सर सोचता था कि क्या उस जगह को ज़मीन ने निगल लिया होगा या फिर आसमान खा गया होगा?
इन दो सालों में मेरी मानसिक हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे दुनियां से और दुनियां वालों से जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मैं आज भी सुबह काम पर जाता था और शाम से पहले ही काम से वापस आ जाता था। मेरे पास दिन का सिर्फ यही पहर होता था जब मैं उसकी खोज में इस क्षेत्र की वादियों में भटकता था। मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मेरी पीठ के पीछे मेरे बारे में तरह तरह की बातें करते थे लेकिन मुझे उनसे और उनकी बातों से कभी कोई मतलब नहीं होता था। मुझे तो बस एक ही सनक सवार थी कि एक बार फिर से मुझे मेघा मिल जाए और मैं उसे जी भर के देख लूं। उसकी खोज में मैंने वो सब किया था जो मुझसे हो सकता था लेकिन दो साल गुज़र जाने के बाद भी ना तो मुझे उसका कोई सुराग़ मिल सका था और ना ही कहीं उसके होने की उम्मीद नज़र आई थी। इस सबके बावजूद मुझे इतना ऐतबार ज़रूर था कि वो जब भी मुझे मिलेगी तो यहीं कहीं मिलेगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि यहीं पर कहीं आज भी उसका वजूद है।
शाम तो कब की ढल चुकी थी और गुज़रते वक़्त के साथ ठण्ड भी अपना ज़ोर दिखाती जा रही थी लेकिन मैं हाथ में बड़ी सी टार्च लिए मुसलसल आगे बढ़ता ही जा रहा था। हालांकि आसमान में चाँद खिला हुआ था किन्तु उसकी रौशनी कोहरे की गहरी धुंध को भेदने में नाकाम थी। मेरे चारो तरफ घना जंगल था और फ़िज़ा में रूह को थर्रा देने वाली सांय सांय की आवाज़ें गूँज रहीं थी लेकिन मेरे अंदर डर जैसी कोई बात नहीं थी। असल में मैं इन दो सालों में इस सबका आदी हो चुका था। अपने घर से बहुत दूर आ चुका था मैं और ये अक्सर ही होता था। कभी कभी ऐसा भी होता था कि मैं जंगल में ही थक कर सो जाता था और दिन निकलने पर जब मेरी आँखें खुलती तो वापस लौट जाता था, क्योंकि सुबह मुझे काम पर भी जाना होता था।
"मुझसे वादा करो ध्रुव कि तुम मुझे कभी भी खोजने की कोशिश नहीं करोगे।" दो साल पहले मेघा के द्वारा कहा गया ये वाक्य अक्सर मेरे कानों में गूँज उठता था_____"बल्कि मुझे भुलाने की कोशिश करते हुए तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाओगे।"
"मैं तुमसे ऐसा वादा नहीं कर सकता मेघा।" मैंने दुखी भाव से कहा था____"मैं चाह कर भी तुम्हें भुला नहीं सकूंगा बल्कि सच तो ये है कि हर पल तुम्हारी याद में तड़पना ही जैसे मेरा मुक़द्दर बन जाएगा। क्या तुम्हें मेरी हालत पर ज़रा भी तरस नहीं आता? भगवान के लिए मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ। मेरा इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है।"
"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने अपनी आँखें बंद कर के मानो बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालने की कोशिश की थी____"तुम्हारी ऐसी बातों से मेरा मुकम्मल वजूद कांप उठता है। तुम मेरी विवशता को नहीं समझ सकते। मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूं और ना ही मेरी किस्मत में तुम्हारा साथ लिखा है।"
"आख़िर बार बार ऐसा क्यों कहती हो तुम?" मेघा के मलिन पड़े चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था मैंने____"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि तुम मेरे प्यार के लायक नहीं हो या तुम्हारी किस्मत में मेरे साथ रहना नहीं लिखा है? मुझे सच सच बताओ मेघा, आख़िर ऐसी कौन सी बात है?"
मेरे इस सवाल पर उसने बड़ी ही बेबसी से देखा था मेरी तरफ। उसकी गहरी आँखों में बड़ा अजीब सा सूनापन नज़र आया था मुझे। मैं अपने सवालों के जवाब की उम्मीद में उसी की तरफ अपलक देखता जा रहा था। लालटेन की धीमी रौशनी में भी उसका चेहरा चाँद की मानिन्द चमक रहा था। उसके सुर्ख होठ ताज़े खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे। कमर के नीचे तक बिखरे हुए उसके घने काले रेशमी बाल मानो घटाओं को भी मात दे रहे थे। उसके सुराहीदार गले में एक ऐसा लॉकेट था जिसमें गाढ़े नीले रंग का किन्तु बड़ा सा नगीने जैसा पत्थर था।
"क्या हुआ?" उसे गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ देख मैंने उससे कहा था____"तुम इस तरह ख़ामोश क्यों हो जाती हो मेघा? मुझे बताती क्यों नहीं कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुम मेरे साथ नहीं रह सकती?"
मेरी बात सुन कर उसने एक बार फिर से मेरी तरफ बेबसी से देखा और फिर मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर उसने जो कुछ कहा उसने मेरे मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। मेरी हालत उस बुत की तरह हो गई थी जिसमें कोई जान नहीं होती। हैरत से फटी आँखों से मैं बस उसे ही देखे जा रहा था, जबकि वो अपने चेहरे को ऊपर कर के मेरी तरफ इस तरह देखने लगी थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।
अभी मैं मेघा के ख़यालों में ही खोया हुआ था की तभी मेरे बगल से कोई इतनी तेज़ रफ़्तार से निकल कर भागा कि एक पल के लिए तो मेरी रूह तक फ़ना होती हुई महसूस हुई। मैंने बौखला कर तेज़ी से टार्च का फोकस उस तरफ को किया जिस तरफ से कोई बड़ी तेज़ी से भागता हुआ गया था। टार्च के तेज़ प्रकाश में भाग कर जाने वाला तो नहीं दिखा, अलबत्ता कोहरे की गहरी धुंध ज़रूर दिखी। ठण्ड इतनी थी कि घने जंगल में होने के बावजूद मैं रह रह कर कांप उठता था। हालांकि ठण्ड से खुद को बचाने के लिए मैंने अपने जिस्म में कई गर्म कपड़े डाल रखे थे। मैंने महसूस किया कि आज कोहरे की धुंध पिछले दिनों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही थी और शायद यही वजह थी कि मुझे अपने सामने नज़र आने वाला हर रास्ता अंजान सा लग रहा था।
जब से मेघा मुझे छोड़ कर गई थी तब से ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रा था जब मैंने उसकी खोज न की हो या उसका पता न लगाया हो। शुरुआत में तो मैं उसके बारे में दूसरों से भी पूछता था और हर जगह उसे खोजता भी था। यहाँ तक कि दूसरे शहरों में जा कर भी उसकी तलाश की थी लेकिन मुझे मेघा का कहीं कोई सुराग़ तक न मिला था। ऐसा लगता था जैसे सच में वो कोई ऐसा ख़्वाब थी जिसको मैंने खुली आँखों से देखा था। एक वक़्त ऐसा आ गया था जब लोग मुझे देखते ही मुझसे किनारा करने लगे थे। ऐसा शायद इस लिए कि वो मुझे पागल समझने लगे थे और नहीं चाहते थे कि वो किसी पागल की बातें सुनें। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो पहले ही मेघा का ख़याल अपने दिल से निकाल कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाता लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका था। सच तो ये था कि मैं मेघा को अपने दिलो दिमाग़ से निकालना ही नहीं चाहता था। मेरे जीवन में एक वही तो ऐसी थी जिसे देख कर मैंने ये महसूस किया था कि वो मेरा सब कुछ है और मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी सिर्फ उसी के द्वारा संवर सकती थी। मैं जानता हूं कि मेरा ऐसा सोचना महज बेवकूफ़ी के सिवा कुछ नहीं था लेकिन अपने दिल को मैं किसी भी कीमत पर समझा नहीं सकता था।
टार्च की रौशनी में आगे बढ़ते हुए अचानक ही मैं खुले मैदान में आ गया। यहाँ पर चाँद की रौशनी में कोहरे की गहरी धुंध मुझे साफ़ दिख रही थी। अपनी जगह पर रुक कर मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की लेकिन धुंध की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने महसूस किया कि इस जगह पर मैं पहली बार आया हूं और ये वो जगह नहीं है जहां पर दो साल पहले मैं मेघा के साथ उसके अजीब से घर में एक हप्ते रहा था। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि पत्थर के बने उस अजीब से मकान के चारो तरफ घने पेड़ पौधे थे और पास में ही कहीं से किसी झरने से पानी बहने की आवाज़ आती थी।
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majedar update ..megha ki sachchai kya hai ,kaun hai wo ye abhi pata nahi chal paya par dhruv ko bata diya tha megha ne .Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।
वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।
ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।
हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।
एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।
मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।
किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।
ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।
ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।
घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।
सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।
मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर गई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।
"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"
"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"
"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"
"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"
"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"
"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"
"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"
मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।
अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।
सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।
"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"
मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।
पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।
मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।
"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"
गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।
"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ गए न तुम?"
ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।
मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।
मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?
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Bhai ek do story Hinglish me bhi likhi hain maine lekin zyadatar mujhe devnagri me likhna hi achha lagta hai. Waise bhi hindi sahitya ko devnagri me padhne ka ek alag hi maza hai. Khair shukriya is pratikriya ke liye,,,,Yar hininglish ma story liko
Congratulations for new story bhai...Hello Dosto
Ek Short Story Le kar Aapki Adaalat Me Haazir Hua Hu. Iske Pahle Maine Ek Short Story ✧Double Game✧ Likhi Thi Jise Aap Sabne Padha Aur Apni Khubsurat Pratikriyao Se Mujhe Awgat Bhi Karaya Tha. Khair Ab Ek Aur Short Story Aap Sabki Adaalat Me Prastust Karne Ja Raha Hu. Ummeed Hai Aap Sabko Ye Story Pasand Aayegi. Hamesha Ki Tarah Story Ke Sambandh Me Apni Pratikriyao Se Mujhe Rubaru Zarur Karaiyega Aur Agar Kahi Par Koi Truti Dikhe To Us Truti Ko Bhi Mere Samaksh Bejhijhak Ho Kar Byakt Kijiyega.
Dhanyawaad..
Dark Love
Dark Love
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