Update - 03
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सारा दिन मैं किसी मशीन की तरह काम में लगा रहा। काम पूरा होते ही मैंने खुद को साफ़ किया और बिना किसी से कुछ बोले गैराज से निकल लिया। मेरे हिस्से में मुझे जितना काम मिलता था उसे पूरा करने के बाद मैं एक पल के लिए भी गैराज में नहीं रुकता था, फिर चाहे भले ही क़यामत आ जाए। मेरे साथ गैराज में काम करने वाले बाकी लोगों को अब मेरे इस रवैए की आदत पड़ चुकी थी। मेरे सामने तो वो कुछ नहीं बोलते थे किन्तु मेरे जाते ही वो सब बातें शुरू कर देते थे।
गैराज से निकल कर मैं अपने घर नहीं जाता था बल्कि मेघा की खोज में उसी जंगल की तरफ निकल पड़ता था जहां पर मैंने उसके साथ चंद दिन गुज़ारे थे। सारी दुनियां भले ही मुझे पागल समझती थी लेकिन मेरे दिल को यकीन था कि मेघा मुझे जब भी मिलेगी उसी जंगल में मिलेगी। अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर रोज़ शाम होने से पहले उस जंगल में दाखिल हो जाता था।
ठण्ड ने अपना असर दिखाना पहले ही शुरू कर दिया था और कोहरे ने फ़िज़ा में धुंध फैला दी थी। जंगल में दाखिल होने से पहले एक बार मैं उस जगह पर ज़रूर जाता था जहां पर दो साल पहले मेरे साथ हादसा हुआ था। वो हादसा ही था जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था और उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी।
दो साल पहले का वो हादसा आज भी मेरे ज़हन में तारो ताज़ा था। मैं हर रोज़ की तरह सुबह सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकला था। उस दिन भी आज की ही तरह ठण्ड थी और फ़िज़ा में कोहरे की धुंध छाई हुई थी। मैं अपनी ही धुन में एक पुरानी मोटर साइकिल में बैठा गजराज शेठ के मोटर गैराज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। कोहरे की धुंध की वजह से सड़क पर ज़्यादा दूर का दिखाई नहीं दे रहा था इस लिए मैं धीमी रफ़्तार में ही मोटर साइकिल से जा रहा था। घर से क़रीब दो किलो मीटर दूर निकल आने के बाद अचानक मेरी नज़र सामने से भागती हुई आ रही एक लड़की पर पड़ी थी। कोहरे की वजह से वो अचानक ही मुझे दिखी थी और मेरे काफी पास आ गई थी। मैं उसे यूं अचानक देख कर एकदम से बौखला गया था। उसे बचाने के चक्कर में मैंने मोटर साइकिल का हैंडल जल्दी से घुमाया और ऐसा करना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया।
मोटर साइकिल का अगला पहिया सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर ज़ोर से लगा था और मैं मोटर साइकिल सहित सड़क पर जा गिरा था। अगर सिर्फ इतना ही होता तो बेहतर था लेकिन सड़क पर जब मैं गिरा था तो झोंक में मेरा सिर किसी ठोस चीज़ से टकरा गया था। मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाता चला गया था। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था।
जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक ऐसे कमरे के बेड पर पड़ा हुआ पाया जिस कमरे की दीवारें काले पत्थरों की थीं। दीवारों पर दिख रहे काले पत्थर ऐसे थे जैसे न जाने कब से उन पर चढ़ी हुई धूल या काई को साफ़ ना किया गया हो। कमरा सामान्य कमरों से कहीं ज़्यादा बड़ा था और कमरे की छत भी सामान्य से कहीं ज़्यादा उँचाई पर थी। एक तरफ की दीवार पर लोहे की खूँटी थी जिस पर पुरानी जंग लगी हुई लालटेन टंगी हुई थी। उसी लालटेन का धीमा प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। हालांकि उसका प्रकाश कमरे को पूरी तरह रोशन करने में सक्षम नहीं था किन्तु इतना ज़रूर था कि कमरे में मौजूद किसी वस्तु को देखा जा सके। कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था, बल्कि लकड़ी का एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे देख कर यही लगता था कि अगर उस दरवाज़े पर थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दिया जाए तो वो टूट जाएगा। दरवाज़े में लगे लकड़ी के पटरों पर झिर्रियां थी जिससे उस पार का दृश्य आसानी से देखा जा सकता था।
मैं खुद को ऐसी विचित्र जगह पर पा कर पहले तो हड़बड़ा गया था उसके बाद एकदम से मेरे अंदर अजीब सा डर और घबराहट भरती चली गई थी। मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर मैं ऐसी जगह पर पहुंच कैसे गया था? ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मेरे साथ हादसा हुआ था। यानि किसी लड़की को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हो गया था। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से मैं बेहोश हो गया था। उसके बाद जब मुझे होश आया तो मैं ऐसी जगह पर था।
ऐसी डरावनी जगह पर खुद को एक बिस्तर पर पड़े देख मेरे मन में तरह तरह के भयानक ख़याल आने लगे थे। मैंने चारो तरफ नज़रें घुमा घुमा कर देखा किन्तु मेरे अलावा उस कमरे में कोई नज़र नहीं आया। मैंने हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने की कोशिश की तो एकदम से मेरे मुख से कराह निकल गई। मेरी पीठ पर बड़ा तेज़ दर्द हुआ था जिसकी वजह से मैं वापस उसी बिस्तर पर लेट गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ऐसी जगह पर आख़िर कैसे पहुंच गया था? मुझे अच्छी तरह याद था कि हादसा सड़क पर हुआ था जबकि ये ऐसी जगह थी जिसको मैंने तसव्वुर में भी कभी नहीं देखा था। अचानक ही मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे यहाँ पर पहुंचाने वाली कहीं वो लड़की ही तो नहीं जिसे बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हुआ था? उस लड़की का ख़याल आया तो मेरे ज़हन में उसके बारे में भी तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि अगर वो लड़की ही मुझे यहाँ ले कर आई है तो वो खुद कहां है इस वक़्त?
मैं अभी इन ख़यालों में खोया ही हुआ था कि तभी कमरे का दरवाज़ा अजीब सी चरमराहट के साथ खुला तो मैंने चौंक कर उस तरफ देखा। दरवाज़े से दाखिल हो कर जो शख्सियत मेरे सामने मुझे नज़र आई उसे देख कर मैं जैसे अपने होशो हवास खोता चला गया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा जैसे मैं अचानक से ही कोई हसीन ख़्वाब देखने लगा हूं।
"अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?" उसकी मधुर आवाज़ मेरे एकदम पास से आई तो जैसे मुझे होश आया। जाने कब वो मेरे एकदम पास में आ कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई थी। मैंने जब उसे अपने इतने क़रीब से देखा तो मैंने महसूस किया जैसे मैं उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। वो अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में मुझे ही देखे जा रही और मैं उसे। जीवन में पहली बार मैंने अपने इतने क़रीब किसी लड़की को देखा था, वो भी ऐसी वैसी लड़की नहीं बल्कि दुनियां की सबसे हसीन लड़की को। मैं दावे के साथ कह सकता था कि दुनियां में उसके जैसी खूबसूरत लड़की कोई हो ही नहीं सकती थी।
चेहरा चांद की तरह रौशन था। बड़ी बड़ी आँखों में समुन्दर से भी कहीं ज़्यादा गहराई थी। नैन नक्श ऐसे थे जैसे किसी मूर्तिकार ने अपने हाथों से उस अद्भुत मूरत को रचा था। लम्बे सुराहीदार गले में लटका एक बड़ा सा लॉकेट जिसमें गाढ़े नीले रंग का नगीने जैसा पत्थर था। दूध की तरह सफ्फाक बदन पर ऐसे कपड़े थे मानो किसी बहुत ही बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। बड़े गले वाली कमीज थोड़ा कसी हुई थी जिसके चलते उसके सीने की गोलाइयों के उभार साफ़ दिख रहे थे। अपने रेशमी बालों को वैसे तो उसने जूड़े की शक्ल दे कर बाँध रखा था लेकिन इसके बावजूद उसके बालों की कुछ लटाएं दोनों तरफ से नीचे झूल कर उसके खूबसूरत गालों को बारहा चूम रहीं थी। खूबसूरत होठों पर गहरे सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी। मैं साँसें रोके जैसे उसकी सुंदरता में ही खो गया था।
"क्या हुआ? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?" मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख उसने कहा था____"मैं पूछ रही हूं कि अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?"
"आं..हां???" मैं उसकी शहद में मिली हुई आवाज़ को सुन कर हल्के से चौंका था, फिर जल्दी से खुद को सम्हाल कर बोला_____"म..मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं लेकिन...।"
"लेकिन???" उसके चमकते हुए चेहरे पर सवालिया भाव उभरे।
"ल..लेकिन तुम कौन हो?" वस्तुस्थित का एहसास होते ही मैं धड़कते दिल से पूछ बैठा था_____"और..और मैं यहाँ कैसे आ गया? मैं तो...।"
"फ़िक्र मत करो।" उसने इस लहजे से कहा कि उसकी खनकती हुई आवाज़ मेरे दिल की गहराइयों में उतरती चली गई थी____"तुम यहाँ पर सुरक्षित हो। तुमने मुझे बचाने के चक्कर में खुद को ही चोट पहुंचा लिया था। मैं तो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इंसान इतना नेकदिल हो सकता है। मैं चाह कर भी तुम्हें उस हालत में देख कर खुद को रोक नहीं पाई थी जोकि मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात ही थी। ख़ैर, मैं तुम्हें उस जगह से यहाँ ले आई और तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ किया।"
"तो क्या तुम्हीं वो लड़की थी जो अचानक से मेरे सामने भागती हुई आ गई थी?" मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था जिस पर वो हल्के से मुस्कुराई। मैं उसकी मुस्कान को देख कर अपने दिल में बजने लगी घंटियों को महसूस करने लगा था। जबकि उसने कहा____"हां वो मैं ही थी लेकिन जिस तरह से तुमने मेरे लिए खुद को ख़तरे में डाला था उससे मैं बेहद प्रभावित हुई थी।"
"पर तुम सुबह सुबह उस वक़्त ऐसे भागती हुई जा कहां रही थी?" मैं उससे पूछ ज़रूर रहा था लेकिन सच तो ये था कि मेरी नज़रें उसके हसीन चेहरे से हट ही नहीं रही थी और यकीनन उसे भी इस बात का एहसास ज़रूर था।
"इस दुनियां में कोई न कोई बहुत कुछ ऐसा कर रहा होता है जो बाकी लोगों की नज़र में अटपटा होता है।" उसने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ख़ैर छोड़ो इस बात को। तुम्हें अभी आराम की ज़रूरत है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लेना।"
"तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुम कौन हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से उससे कहा था____"मैंने अपने जीवन में तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की ख़्वाब में भी नहीं देखी। तुम्हें मैं एक ढीठ किस्म का इंसान ज़रूर लग सकता हूं लेकिन सच यही है कि तुम्हें देख कर मेरा दिल तुम्हारी तरफ किसी चुम्बक की तरह खिंचा जा रहा है। मेरे दिल में अजीब सी हलचल मच गई है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ये अचानक से मुझे क्या हो रहा है। मेरे अब तक के जीवन में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। भगवान के लिए मुझे बताओ कि कौन हो तुम और मेरे दिल में तुम्हारे प्रति प्रेम की तरंगें क्यों उठ रही हैं?"
"तुम सिर्फ़ इतना जान लो कि मेरा नाम मेघा है।" उसने अजीब भाव से कहा था____"जो किसी वजह से तुमसे आ मिली है। तुम्हारे लिए मेरी सलाह यही है कि मेरे प्रति अपने अंदर प्रेम जैसे जज़्बात मत उभरने दो क्योंकि इससे तुम्हें ही नुक्सान होगा।"
"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" उसकी बातें सुन कर मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था। एक अंजाना सा भय मेरे अंदर उभर आया था, जिसे बड़ी मुश्किल से सम्हाला था मैंने।
"क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना मेरी फितरत में नहीं है।" उसने सपाट लहजे में कहा था____"इस लिए तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि मेरा ख़याल दिल से निकाल दो। तुमने क्योंकि मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली थी इस लिए मैं अपनी फितरत के खिलाफ़ जा कर तुम्हारा इलाज़ कर के तुम्हें वापस तुम्हारे घर भेज देना चाहती हूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"
मुझे हैरान परेशान कर के मेघा नाम की वो लड़की मानो हवा के झोंके की तरह कमरे के दरवाज़े से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे मैं गहरी नींद से जागा था। कुछ देर तक तो मैं अपनी हालत को ही समझने की कोशिश करता रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर मेघा और उसकी बातों के बारे में सोचने लगा।
अभी मैं दो साल पहले हुए उस हादसे के ख़यालों में ही गुम था कि तभी किसी वाहन के तेज़ हॉर्न से मैं हक़ीक़त की दुनियां में आ गया। मैंने नज़र उठा कर आने वाले वाहन की तरफ देखा और फिर एक तरफ को बढ़ चला।
कोहरे की धुंध में पता ही नहीं चल रहा था कि शाम ढल चुकी है या अभी भी शाम ढलने में कुछ समय बाकी है। मैं सड़क से बाएं तरफ एक ऐसे संकरे रास्ते की तरफ मुड़ गया जो जंगल की तरफ जाता था। दूसरी तरफ पहाड़ों की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं थीं जोकि कोहरे की गहरी धुंध की वजह से दिख नहीं रहीं थी।
एक बार फिर से मैं उसी जंगल में दाखिल हो चुका था जिस जंगल में मुझे ये उम्मीद थी कि मेघा का कहीं अशियाना होगा या ये कहूं कि जहां पर मैं उसके साथ एक हप्ते रहा था। मैं अगर सामान्य हालत में होता तो यकीनन ये सोचता कि मेरे जैसा बेवकूफ़ इंसान शायद ही इस दुनियां में कोई होगा जो आज के युग में किसी लड़की के प्रेम में पागल हो कर इस तरह उसकी खोज में दर दर भटक रहा है।
क़रीब डेढ़ घंटे टार्च की रौशनी में चलने के बाद अचानक ही एक जगह मैं रुक गया। मेरे रुक जाने की वजह थी कुछ आवाज़ें जो मेरे दाएं तरफ से हल्की हल्की आ रहीं थी। मैंने गौर से सुनने की कोशिश की तो अगले ही पल मेरे थके हारे जिस्म में जैसे नई ताक़त और नई स्फूर्ति भर गई। मैं उन आवाज़ों को सुन कर एकदम खुशी से पागल सा होने लगा। मैं फ़ौरन ही दाएं तरफ तेज़ी से बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे वो आवाज़ें और भी साफ़ सुनाई देती जा रहीं थी। मैं दुगुनी रफ़्तार से चलते हुए जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गया जहां से आवाज़ें आ रहीं थी।
कोहरे की गहरी धुंध में मैंने आवाज़ों की दिशा में टार्च की रौशनी डाली तो मुझे वो झरना दिखा जिसके पानी के गिरने की आवाज़ अक्सर मैं मेघा के उस कमरे में बेड पर लेटे हुए सुना करता था। इन दो सालों में पहली बार मुझे कोई ऐसी चीज़ खोजने पर मिली थी जो इस बात को साबित करती थी कि इस झरने के आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जिसके एक कमरे में मैं एक हप्ते रहा था। मेरा दिल इन दो सालों में पहली बार झरने को देख कर खुशी से झूमा था। मैं पहले भी कभी एक पल के लिए नाउम्मीद नहीं हुआ था और आज तो इस झरने के मिल जाने पर नाउम्मीद होने का सवाल ही नहीं था। एक मुद्दत से जो दिल बहुत उदास था वो इस झरने के मिल जाने से खुश हो गया था और साथ ही मेघा के दीदार के लिए बुरी तरह मचलने लगा था। जाने क्यों मेरे दिल के जज़्बात बड़े ज़ोरों से मचल उठे।
दिल को इक पल क़रार आना भी नहीं मुमकिन।
तेरे बग़ैर मेरे दोस्त, जी पाना भी नहीं मुमकिन।।
हर शब मैं तेरी जुस्तजू में भटका हूं कहां कहां,
मिल जाओ के दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।
दिल-ए-नादां पे गुज़री है क्या क्या तेरे बग़ैर,
हाले-दिल किसी को, बताना भी नहीं मुमकिन।।
तेरे ख़याल में गुम रहना ही मयस्सर है मुझे,
के तुझे एक पल भूल जाना भी नहीं मुमकिन।।
मैं तेरी याद में पतंगों सा जलता तो हूं मगर,
तेरी याद में फना हो जाना भी नहीं मुमकिन।।
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