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Fantasy Dark Love (Completed)

parkas

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Update - 03
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सारा दिन मैं किसी मशीन की तरह काम में लगा रहा। काम पूरा होते ही मैंने खुद को साफ़ किया और बिना किसी से कुछ बोले गैराज से निकल लिया। मेरे हिस्से में मुझे जितना काम मिलता था उसे पूरा करने के बाद मैं एक पल के लिए भी गैराज में नहीं रुकता था, फिर चाहे भले ही क़यामत आ जाए। मेरे साथ गैराज में काम करने वाले बाकी लोगों को अब मेरे इस रवैए की आदत पड़ चुकी थी। मेरे सामने तो वो कुछ नहीं बोलते थे किन्तु मेरे जाते ही वो सब बातें शुरू कर देते थे।

गैराज से निकल कर मैं अपने घर नहीं जाता था बल्कि मेघा की खोज में उसी जंगल की तरफ निकल पड़ता था जहां पर मैंने उसके साथ चंद दिन गुज़ारे थे। सारी दुनियां भले ही मुझे पागल समझती थी लेकिन मेरे दिल को यकीन था कि मेघा मुझे जब भी मिलेगी उसी जंगल में मिलेगी। अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर रोज़ शाम होने से पहले उस जंगल में दाखिल हो जाता था।

ठण्ड ने अपना असर दिखाना पहले ही शुरू कर दिया था और कोहरे ने फ़िज़ा में धुंध फैला दी थी। जंगल में दाखिल होने से पहले एक बार मैं उस जगह पर ज़रूर जाता था जहां पर दो साल पहले मेरे साथ हादसा हुआ था। वो हादसा ही था जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था और उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी।

दो साल पहले का वो हादसा आज भी मेरे ज़हन में तारो ताज़ा था। मैं हर रोज़ की तरह सुबह सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकला था। उस दिन भी आज की ही तरह ठण्ड थी और फ़िज़ा में कोहरे की धुंध छाई हुई थी। मैं अपनी ही धुन में एक पुरानी मोटर साइकिल में बैठा गजराज शेठ के मोटर गैराज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। कोहरे की धुंध की वजह से सड़क पर ज़्यादा दूर का दिखाई नहीं दे रहा था इस लिए मैं धीमी रफ़्तार में ही मोटर साइकिल से जा रहा था। घर से क़रीब दो किलो मीटर दूर निकल आने के बाद अचानक मेरी नज़र सामने से भागती हुई आ रही एक लड़की पर पड़ी थी। कोहरे की वजह से वो अचानक ही मुझे दिखी थी और मेरे काफी पास आ गई थी। मैं उसे यूं अचानक देख कर एकदम से बौखला गया था। उसे बचाने के चक्कर में मैंने मोटर साइकिल का हैंडल जल्दी से घुमाया और ऐसा करना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया।

मोटर साइकिल का अगला पहिया सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर ज़ोर से लगा था और मैं मोटर साइकिल सहित सड़क पर जा गिरा था। अगर सिर्फ इतना ही होता तो बेहतर था लेकिन सड़क पर जब मैं गिरा था तो झोंक में मेरा सिर किसी ठोस चीज़ से टकरा गया था। मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाता चला गया था। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था।

जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक ऐसे कमरे के बेड पर पड़ा हुआ पाया जिस कमरे की दीवारें काले पत्थरों की थीं। दीवारों पर दिख रहे काले पत्थर ऐसे थे जैसे न जाने कब से उन पर चढ़ी हुई धूल या काई को साफ़ ना किया गया हो। कमरा सामान्य कमरों से कहीं ज़्यादा बड़ा था और कमरे की छत भी सामान्य से कहीं ज़्यादा उँचाई पर थी। एक तरफ की दीवार पर लोहे की खूँटी थी जिस पर पुरानी जंग लगी हुई लालटेन टंगी हुई थी। उसी लालटेन का धीमा प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। हालांकि उसका प्रकाश कमरे को पूरी तरह रोशन करने में सक्षम नहीं था किन्तु इतना ज़रूर था कि कमरे में मौजूद किसी वस्तु को देखा जा सके। कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था, बल्कि लकड़ी का एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे देख कर यही लगता था कि अगर उस दरवाज़े पर थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दिया जाए तो वो टूट जाएगा। दरवाज़े में लगे लकड़ी के पटरों पर झिर्रियां थी जिससे उस पार का दृश्य आसानी से देखा जा सकता था।

मैं खुद को ऐसी विचित्र जगह पर पा कर पहले तो हड़बड़ा गया था उसके बाद एकदम से मेरे अंदर अजीब सा डर और घबराहट भरती चली गई थी। मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर मैं ऐसी जगह पर पहुंच कैसे गया था? ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मेरे साथ हादसा हुआ था। यानि किसी लड़की को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हो गया था। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से मैं बेहोश हो गया था। उसके बाद जब मुझे होश आया तो मैं ऐसी जगह पर था।

ऐसी डरावनी जगह पर खुद को एक बिस्तर पर पड़े देख मेरे मन में तरह तरह के भयानक ख़याल आने लगे थे। मैंने चारो तरफ नज़रें घुमा घुमा कर देखा किन्तु मेरे अलावा उस कमरे में कोई नज़र नहीं आया। मैंने हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने की कोशिश की तो एकदम से मेरे मुख से कराह निकल गई। मेरी पीठ पर बड़ा तेज़ दर्द हुआ था जिसकी वजह से मैं वापस उसी बिस्तर पर लेट गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ऐसी जगह पर आख़िर कैसे पहुंच गया था? मुझे अच्छी तरह याद था कि हादसा सड़क पर हुआ था जबकि ये ऐसी जगह थी जिसको मैंने तसव्वुर में भी कभी नहीं देखा था। अचानक ही मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे यहाँ पर पहुंचाने वाली कहीं वो लड़की ही तो नहीं जिसे बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हुआ था? उस लड़की का ख़याल आया तो मेरे ज़हन में उसके बारे में भी तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि अगर वो लड़की ही मुझे यहाँ ले कर आई है तो वो खुद कहां है इस वक़्त?

मैं अभी इन ख़यालों में खोया ही हुआ था कि तभी कमरे का दरवाज़ा अजीब सी चरमराहट के साथ खुला तो मैंने चौंक कर उस तरफ देखा। दरवाज़े से दाखिल हो कर जो शख्सियत मेरे सामने मुझे नज़र आई उसे देख कर मैं जैसे अपने होशो हवास खोता चला गया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा जैसे मैं अचानक से ही कोई हसीन ख़्वाब देखने लगा हूं।

"अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?" उसकी मधुर आवाज़ मेरे एकदम पास से आई तो जैसे मुझे होश आया। जाने कब वो मेरे एकदम पास में आ कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई थी। मैंने जब उसे अपने इतने क़रीब से देखा तो मैंने महसूस किया जैसे मैं उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। वो अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में मुझे ही देखे जा रही और मैं उसे। जीवन में पहली बार मैंने अपने इतने क़रीब किसी लड़की को देखा था, वो भी ऐसी वैसी लड़की नहीं बल्कि दुनियां की सबसे हसीन लड़की को। मैं दावे के साथ कह सकता था कि दुनियां में उसके जैसी खूबसूरत लड़की कोई हो ही नहीं सकती थी।

चेहरा चांद की तरह रौशन था। बड़ी बड़ी आँखों में समुन्दर से भी कहीं ज़्यादा गहराई थी। नैन नक्श ऐसे थे जैसे किसी मूर्तिकार ने अपने हाथों से उस अद्भुत मूरत को रचा था। लम्बे सुराहीदार गले में लटका एक बड़ा सा लॉकेट जिसमें गाढ़े नीले रंग का नगीने जैसा पत्थर था। दूध की तरह सफ्फाक बदन पर ऐसे कपड़े थे मानो किसी बहुत ही बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। बड़े गले वाली कमीज थोड़ा कसी हुई थी जिसके चलते उसके सीने की गोलाइयों के उभार साफ़ दिख रहे थे। अपने रेशमी बालों को वैसे तो उसने जूड़े की शक्ल दे कर बाँध रखा था लेकिन इसके बावजूद उसके बालों की कुछ लटाएं दोनों तरफ से नीचे झूल कर उसके खूबसूरत गालों को बारहा चूम रहीं थी। खूबसूरत होठों पर गहरे सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी। मैं साँसें रोके जैसे उसकी सुंदरता में ही खो गया था।

"क्या हुआ? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?" मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख उसने कहा था____"मैं पूछ रही हूं कि अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?"

"आं..हां???" मैं उसकी शहद में मिली हुई आवाज़ को सुन कर हल्के से चौंका था, फिर जल्दी से खुद को सम्हाल कर बोला_____"म..मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं लेकिन...।"

"लेकिन???" उसके चमकते हुए चेहरे पर सवालिया भाव उभरे।
"ल..लेकिन तुम कौन हो?" वस्तुस्थित का एहसास होते ही मैं धड़कते दिल से पूछ बैठा था_____"और..और मैं यहाँ कैसे आ गया? मैं तो...।"

"फ़िक्र मत करो।" उसने इस लहजे से कहा कि उसकी खनकती हुई आवाज़ मेरे दिल की गहराइयों में उतरती चली गई थी____"तुम यहाँ पर सुरक्षित हो। तुमने मुझे बचाने के चक्कर में खुद को ही चोट पहुंचा लिया था। मैं तो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इंसान इतना नेकदिल हो सकता है। मैं चाह कर भी तुम्हें उस हालत में देख कर खुद को रोक नहीं पाई थी जोकि मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात ही थी। ख़ैर, मैं तुम्हें उस जगह से यहाँ ले आई और तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ किया।"

"तो क्या तुम्हीं वो लड़की थी जो अचानक से मेरे सामने भागती हुई आ गई थी?" मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था जिस पर वो हल्के से मुस्कुराई। मैं उसकी मुस्कान को देख कर अपने दिल में बजने लगी घंटियों को महसूस करने लगा था। जबकि उसने कहा____"हां वो मैं ही थी लेकिन जिस तरह से तुमने मेरे लिए खुद को ख़तरे में डाला था उससे मैं बेहद प्रभावित हुई थी।"

"पर तुम सुबह सुबह उस वक़्त ऐसे भागती हुई जा कहां रही थी?" मैं उससे पूछ ज़रूर रहा था लेकिन सच तो ये था कि मेरी नज़रें उसके हसीन चेहरे से हट ही नहीं रही थी और यकीनन उसे भी इस बात का एहसास ज़रूर था।

"इस दुनियां में कोई न कोई बहुत कुछ ऐसा कर रहा होता है जो बाकी लोगों की नज़र में अटपटा होता है।" उसने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ख़ैर छोड़ो इस बात को। तुम्हें अभी आराम की ज़रूरत है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लेना।"

"तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुम कौन हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से उससे कहा था____"मैंने अपने जीवन में तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की ख़्वाब में भी नहीं देखी। तुम्हें मैं एक ढीठ किस्म का इंसान ज़रूर लग सकता हूं लेकिन सच यही है कि तुम्हें देख कर मेरा दिल तुम्हारी तरफ किसी चुम्बक की तरह खिंचा जा रहा है। मेरे दिल में अजीब सी हलचल मच गई है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ये अचानक से मुझे क्या हो रहा है। मेरे अब तक के जीवन में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। भगवान के लिए मुझे बताओ कि कौन हो तुम और मेरे दिल में तुम्हारे प्रति प्रेम की तरंगें क्यों उठ रही हैं?"

"तुम सिर्फ़ इतना जान लो कि मेरा नाम मेघा है।" उसने अजीब भाव से कहा था____"जो किसी वजह से तुमसे आ मिली है। तुम्हारे लिए मेरी सलाह यही है कि मेरे प्रति अपने अंदर प्रेम जैसे जज़्बात मत उभरने दो क्योंकि इससे तुम्हें ही नुक्सान होगा।"

"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" उसकी बातें सुन कर मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था। एक अंजाना सा भय मेरे अंदर उभर आया था, जिसे बड़ी मुश्किल से सम्हाला था मैंने।

"क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना मेरी फितरत में नहीं है।" उसने सपाट लहजे में कहा था____"इस लिए तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि मेरा ख़याल दिल से निकाल दो। तुमने क्योंकि मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली थी इस लिए मैं अपनी फितरत के खिलाफ़ जा कर तुम्हारा इलाज़ कर के तुम्हें वापस तुम्हारे घर भेज देना चाहती हूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

मुझे हैरान परेशान कर के मेघा नाम की वो लड़की मानो हवा के झोंके की तरह कमरे के दरवाज़े से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे मैं गहरी नींद से जागा था। कुछ देर तक तो मैं अपनी हालत को ही समझने की कोशिश करता रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर मेघा और उसकी बातों के बारे में सोचने लगा।

अभी मैं दो साल पहले हुए उस हादसे के ख़यालों में ही गुम था कि तभी किसी वाहन के तेज़ हॉर्न से मैं हक़ीक़त की दुनियां में आ गया। मैंने नज़र उठा कर आने वाले वाहन की तरफ देखा और फिर एक तरफ को बढ़ चला।

कोहरे की धुंध में पता ही नहीं चल रहा था कि शाम ढल चुकी है या अभी भी शाम ढलने में कुछ समय बाकी है। मैं सड़क से बाएं तरफ एक ऐसे संकरे रास्ते की तरफ मुड़ गया जो जंगल की तरफ जाता था। दूसरी तरफ पहाड़ों की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं थीं जोकि कोहरे की गहरी धुंध की वजह से दिख नहीं रहीं थी।

एक बार फिर से मैं उसी जंगल में दाखिल हो चुका था जिस जंगल में मुझे ये उम्मीद थी कि मेघा का कहीं अशियाना होगा या ये कहूं कि जहां पर मैं उसके साथ एक हप्ते रहा था। मैं अगर सामान्य हालत में होता तो यकीनन ये सोचता कि मेरे जैसा बेवकूफ़ इंसान शायद ही इस दुनियां में कोई होगा जो आज के युग में किसी लड़की के प्रेम में पागल हो कर इस तरह उसकी खोज में दर दर भटक रहा है।

क़रीब डेढ़ घंटे टार्च की रौशनी में चलने के बाद अचानक ही एक जगह मैं रुक गया। मेरे रुक जाने की वजह थी कुछ आवाज़ें जो मेरे दाएं तरफ से हल्की हल्की आ रहीं थी। मैंने गौर से सुनने की कोशिश की तो अगले ही पल मेरे थके हारे जिस्म में जैसे न‌ई ताक़त और न‌ई स्फूर्ति भर गई। मैं उन आवाज़ों को सुन कर एकदम खुशी से पागल सा होने लगा। मैं फ़ौरन ही दाएं तरफ तेज़ी से बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे वो आवाज़ें और भी साफ़ सुनाई देती जा रहीं थी। मैं दुगुनी रफ़्तार से चलते हुए जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गया जहां से आवाज़ें आ रहीं थी।

कोहरे की गहरी धुंध में मैंने आवाज़ों की दिशा में टार्च की रौशनी डाली तो मुझे वो झरना दिखा जिसके पानी के गिरने की आवाज़ अक्सर मैं मेघा के उस कमरे में बेड पर लेटे हुए सुना करता था। इन दो सालों में पहली बार मुझे कोई ऐसी चीज़ खोजने पर मिली थी जो इस बात को साबित करती थी कि इस झरने के आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जिसके एक कमरे में मैं एक हप्ते रहा था। मेरा दिल इन दो सालों में पहली बार झरने को देख कर खुशी से झूमा था। मैं पहले भी कभी एक पल के लिए नाउम्मीद नहीं हुआ था और आज तो इस झरने के मिल जाने पर नाउम्मीद होने का सवाल ही नहीं था। एक मुद्दत से जो दिल बहुत उदास था वो इस झरने के मिल जाने से खुश हो गया था और साथ ही मेघा के दीदार के लिए बुरी तरह मचलने लगा था। जाने क्यों मेरे दिल के जज़्बात बड़े ज़ोरों से मचल उठे।


दिल को इक पल क़रार आना भी नहीं मुमकिन।
तेरे बग़ैर मेरे दोस्त, जी पाना भी नहीं मुमकिन।।

हर शब मैं तेरी जुस्तजू में भटका हूं कहां कहां,
मिल जाओ के दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।

दिल-ए-नादां पे गुज़री है क्या क्या तेरे बग़ैर,
हाले-दिल किसी को, बताना भी नहीं मुमकिन।।

तेरे ख़याल में गुम रहना ही मयस्सर है मुझे,
के तुझे एक पल भूल जाना भी नहीं मुमकिन।।

मैं तेरी याद में पतंगों सा जलता तो हूं मगर,
तेरी याद में फना हो जाना भी नहीं मुमकिन।।


✮✮✮
Nice and awesome update...
 

Siraj Patel

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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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lovely update ..to megha ke saath kaise mulakat huyi thi dhruv ki ye pata chal gaya .
megha bhagte huye kaha ja rahi thi ,aur lagta hai wo insan nahi hai 🤔..

aaj 2 saal baad wo jharna mil gaya jiski aawaj wo us kamre me rehkar sunta tha .
par kya aaj megha milegi ya khali haath hi lautna padega dhruv ko .
Shukriya bhai. Megha milegi ki nahi ye to aage hi pata chalega. :poke:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Update - 04
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पिछले दो साल से मैं मेघा को तलाश कर रहा था और उसको देखने के लिए तड़प रहा था। इन दो सालों से जहां दिल बहुत उदास और टूटा हुआ सा था वहीं इस झरने के मिल जाने से ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुरझाए हुए गुलशन में बहार ने आ कर जान डाल दी हो। झरना इस बात का सबूत था कि उसके आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जहां दो साल पहले मैं मेघा के साथ एक हप्ते रहा था। मेरे दिल में अब मेघा से मिलने की और उसे देखने की बेचैनी एकदम से बढ़ गई थी। जी चाह रहा था कि पलक झपकते ही मैं मेघा के पास पहुंच जाऊं और उससे लिपट कर दो सालों की जुदाई का दुःख दर्द भूल जाऊं।

मेरी नज़रें अभी भी उस झरने को घूर रहीं थी, जैसे उसी झरने में कहीं पर मुझे मेघा का अक्श दिख रहा हो जिसे मैं अपलक देखे जा रहा था। ऊंचाई से गिरते हुए पानी की आवाज़ इस वक़्त अजीब सी लग रही थी जो दिल में एक भय सा उत्पन्न कर रही थी। हालांकि कोहरे की धुंध छाई हुई थी इस लिए ऊंचाई से गिरता हुआ पानी मुझे साफ़ नहीं दिख रहा लेकिन एक धुंध जैसा ज़रूर दिख रहा था जो ऊपर से नीचे की तरफ जाता उजागर हो रहा था।

दिल में मेघा से मिलने की तड़प बढ़ चुकी थी और अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मैं एक झटके से पलटा और दाएं हाथ में पकड़ी हुई टार्च के प्रकाश को पहले इधर उधर घुमाया उसके बाद एक तरफ को बढ़ चला। जिस्म में मौजूद थकान जाने कहां गायब हो गई थी। न अपनी हालत का होश था और ना ही अपने पेट के अंदर भूख की वजह से ऊपर नीचे उठ रहे गैस के गोलों का। मुझे बस इस बात की ख़ुशी महसूस हो रही थी कि झरना मिल गया है तो अब जल्द ही मुझे मेघा भी मिल जाएगी। मेघा से मिलने की ख़ुशी इतनी ज़्यादा थी कि मैं बिना रुके और बिना कुछ सोचे आगे बढ़ता ही जा रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनता जा रहा था कि जब मेघा मुझे मिलेगी तो मैं ऐसा करुंगा या वैसा करुंगा।

काफी देर तक चलने के बाद अचानक ही मुझे झटका सा लगा और मैं बुरी तरह चौंक गया। कारण मैं मेरे कानों में एक बार फिर से झरने में ऊपर से नीचे गिरते हुए पानी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मैंने टार्च के प्रकाश को बाएं तरफ घुमाया तो ये देख कर चौंक गया कि मैं उसी जगह खड़ा हूं जहां पर मैं पहले खड़ा था, यानि झरने के किनारे पर। मुझे समझ न आया कि ये क्या चक्कर है? मैं तो कुछ देर पहले इसी जगह से मेघा को खोजने ख़ुशी ख़ुशी गया था, जबकि मैं काफी देर तक चलने के बाद भी उसी झरने के पास आ गया था।

कुछ देर झरने के किनारे पर खड़ा मैं इस सबके बारे में सोचता रहा। मैं समझ गया कि शायद अंजाने में मैं घूम फिर कर वापस झरने के पास आ गया हूं। मेघा से मिलने की ख़ुशी ही इतनी थी कि मुझे बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। मेरे दिल को थोड़ी तकलीफ़ तो हुई लेकिन किसी तरह खुद को बहला कर मैंने फैसला किया कि इस बार मुझे पूरे होशो हवास में मेघा को खोजना है।

एक बार फिर से मैं मेघा और उसके उस पुराने से मकान की खोज में चल पड़ा। इस बार मैं पूरे होशो हवास में आगे बढ़ रहा था। मेरे हाथ में मौजूद टार्च का तेज़ प्रकाश कोहरे की धुंध को भेदता हुआ मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रहा था। चारो तरफ घने पेड़ थे। कच्ची ज़मीन पर पेड़ों के सूखे पत्ते थे जो मेरे चलने से बड़ी अजीब सी आवाज़ें कर रहे थे। मेरी जगह कोई सामान्य मनुष्य होता तो वो भय के मारे पेशाब कर देता लेकिन मैं तो जैसे इन दो सालों में खुद ही एक भूत बन गया था जो अँधेरे में ऐसे भयावह जंगल में हर रात विचरण करता था। मुझे इन दो सालों में कभी भी ऐसी जगह पर इधर उधर भटकने में डर का आभास नहीं हुआ। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मैं हर वक़्त सिर्फ मेघा के ख़यालों में ही रहता था। किसी और चीज़ का मुझे ख़याल ही नहीं रहता था। अगर मैं ये सोचता कि मैं रात के अँधेरे में एक ऐसे जंगल में भटक रहा हूं जहां पर किसी भी वक़्त मुझे कोई भी जीव या जानवर नुक्सान पहुंचा सकता है तो यकीनन इस ख़याल से मैं डरता और यहाँ रात के अँधेरे में आने के बारे में सोचता भी नहीं।

हड्डियों को भी कंपा देने वाली ठण्ड थी। कोहरे की धुंध के बीच ब्याप्त भयावह सन्नाटा जैसे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। मैं बिना रुके आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। मुझे चलते हुए काफी देर हो चुकी थी। मैं कुछ दूर चलने के बाद रुक जाता था और टार्च के प्रकाश को इधर उधर घुमा कर ये भी देखता था कि मेघा के साथ मैं जिस मकान में रहा था वो कहीं दिख रहा है कि नहीं? कुछ देर और चलने के बाद अचानक से मैं ठिठक गया और साथ ही मैं आश्चर्यचकित भी रह गया। कारण एक बार फिर से मैं झरने के पास ही आ गया था।

मेरे लिए ये बेहद ही चौंकाने वाली बात थी कि मैं दूसरी बार एक ही जगह पर कैसे आ गया था? मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं कोई ख़्वाब नहीं देख रहा था लेकिन ये जो कुछ भी हुआ था वो ऐसा था जैसे मैं किसी ख़्वाबों की दुनियां में पहुंच गया हूं। ऐसी हैरतअंगेज़ बात ख़्वाब में ही हो सकती थी लेकिन सबसे बड़ा सच यही था कि ये कोई ख़्वाब नहीं था बल्कि वास्तविकता थी। एक ऐसी वास्तविकता जिसने मुझे बुरी तरह उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता था? मैं हर बार घूम फिर कर उसी झरने के पास क्यों आ जाता था? क्या ये मेरे लिए किसी प्रकार का संकेत था या फिर किसी तरह की चेतावनी थी?

मुझे ना तो किसी प्रकार के ख़तरे का डर था और ना ही अपनी जान जाने की फ़िक्र थी। मैं बस हर हाल में मेघा को खोजना चाहता था। अपने अंदर चल रही उथल पुथल को मैंने किसी तरह शांत किया और पलट कर फिर से एक तरफ को बढ़ चला।

रात तो शायद कब की हो चुकी थी लेकिन घने जंगल के बीच अभी भी वैसा ही वातावरण था जैसे यहाँ आने से पहले था। आसमान में शायद चाँद मौजूद था जिसकी रौशनी कोहरे को भेदने की नाकाम कोशिश कर रही थी। धुंध में रौशनी का आभास हो रहा था और यही वजह थी कि रात हो जाने पर भी मुझे शाम जैसा ही वातावरण प्रतीत हो रहा था। हालांकि संभव था कि इसकी कोई दूसरी वजह भी रही हो।

इस बार मैं झरने के किनारे किनारे ही चल रहा था। हालांकि झरने के किनारे पर कहीं मेघा के उस पुराने मकान का मौजूद होना ज़रूरी तो नहीं था किन्तु मैं देखना चाहता था कि इस बार भी मैं उसी जगह पर पहुंच जाता हूं या नहीं? काफी देर तक मैं किनारे किनारे ही चलता रहा। मेरे एक तरफ घना जंगल था तो दूसरी तरफ नीचे की तरफ दिख रही एक चौड़ी नदी जिसमें झरने का पानी अपने बहने का आभास करा रहा था। नदी के ऊपर हवा में कोहरे की धुंध थी जिसकी वजह से मुझे नदी में बहता पानी दिख नहीं रहा था। किनारे से चलते हुए मैं इतना ज़रूर अनुमान लगा रहा था कि नदी यहाँ की ज़मीन से काफी गहरी है। यानि मैं उंचाई पर चल रहा था। टार्च के प्रकाश में मैं आगे बढ़ता ही जा रहा था। मुझे महसूस हुआ कि इस बार मुझे चलते हुए काफी समय हो गया था। मैंने नदी की तरफ टार्च के प्रकाश को डाला तो सहसा मैं चौंक गया।

मेरे जिस तरफ नदी थी वहां अब नदी नहीं थी बल्कि उस जगह पर भी अब घने पेड़ पौधे और ज़मीन दिख रही थी। मैं सोच में पड़ गया कि क्या नदी पलक झपकते ही गायब हो गई या वो किसी दूसरी तरफ को मुड़ गई है? यकीनन वो किसी दूसरी तरफ ही मुड़ गई होगी, भला इतनी बड़ी नदी पलक झपकते ही तो गायब नहीं हो जाएगी। मैं कुछ और दूर आया तो देखा मेरे सामने पक्की सड़़क थी। मैं ये देख कर चौंका कि ये वही सड़़क है जहां से मैं हर रोज़ जंगल की तरफ मुड़ता था। यानि अंजाने में ही मैं सड़क पर आ गया था। दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं जंगल में इतने समय तक भटकने के बाद अपने आप ही सड़क पर आ गया था।

सड़क का एक छोर मुझे मेरे घर तक ले जाने के लिए मानो मुझे ज़ोर दे रहा था तो दूसरी तरफ का छोर मुझे दूसरे शहर की तरफ जाने का एहसास करा रहा था। सड़क को देख कर मेरा दिलो दिमाग़ भारी पीड़ा से भर गया। एक बार फिर से नाकामी ने अपना चेहरा दिखा कर मुझे हताश और दुखी कर दिया था। कहां इसके पहले उस झरने के मिल जाने से मैं ये सोच कर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था कि अब मुझे मेघा मिल जाएगी और कहां अब मैं एक बार फिर से उसको खोज न पाने की वजह से दुखी हो गया था। मेरा जी चाहा कि उसी सड़क पर अपने सिर को पटक पटक कर अपनी जान दे दूं।

जंगल की तरफ मुखातिब हो कर और मन ही मन मेघा को याद करते हुए मैं उसको अपने दिल की हालत बताने के लिए जैसे तड़़प उठा। मेरा दिल चीख चीख कर उससे कहना चाहता था कि वो उसके लिए कितना तड़प रहा है। उसको एक बार देख लेने के लिए बुरी तरह बेचैन है। ज़हन में न जाने कितने ही ख़याल उभरने लगे जिनके एहसास से मेरी आँखें छलक पड़ीं।

यूं किया है तुमने ग़म के हवाले मुझको।
कोई ऐसा भी नहीं जो सम्हाले मुझको।।

देख कर हाले-दिल अपना यूं लगता है,
हिज़्रे-ग़म किसी रोज़ मार न डाले मुझको।।

मरीज़े-दिल की बस एक ही ख़्वाहिश है,
चैन आ जाए अगर गले लगा ले मुझको।।

मैं तेरी दीद की हसरत लिए फिरता हूं,
मुझ पे रहम कर अपना बना ले मुझको।।

मेरी ज़िन्दगी में बहार आ जाए शायद,
अपने जूड़े में गुल सा सजा ले मुझको।।

ऐसा न हो किसी रोज़ डूब के मर जाऊं,
अपनी याद के दरिया से बचा ले मुझको।।

घर आते आते रात काफी गुज़र गई थी। मेरा दिल बुरी तरह तड़प रहा था। कमरे में जाते ही बिस्तर पर औंधे मुँह गिर गया। फ़िज़ा में शमशान की मानिन्द सन्नाटा ब्याप्त था। कमरे में हल्की रौशनी थी क्योंकि बिजली का एक छोटा सा बल्ब अपनी क्षमता के अनुसार टिमटिमा रहा था। कुछ देर तक यूं ही बिस्तर में चेहरा छुपाए अपने अंदर मचल रहे जज़्बातों को रोकने की कोशिश करते हुए पड़ा रहा। उसके बाद उठा और लकड़ी के स्टूल पर एक प्लेट में रखी भुजिया को उठा कर उसे ज़बरदस्ती खाने का प्रयास करने लगा। भुजिया सुबह की थी और ठण्ड में और भी ज़्यादा ठण्ड हो गई थी। इस वक़्त ढाबे से कुछ भी मिलना मुश्किल था क्योंकि रात काफी हो जाने की वजह से ढाबा पहले ही बंद हो चुका था। ख़ैर बड़ी मुश्किल से मैंने प्लेट में बची हुई भुजिया को हलक के नीचे उतारा और फिर पानी पी कर वापस बिस्तर में पसर गया।

"कहां चली गई थी तुम?" क़रीब तीन घंटे बाद जब मेघा वापस आई थी तो मैंने सबसे पहले उससे यही कहा था_____"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि इस डरावनी जगह पर अकेले रहने से मेरी क्या हालत हो गई थी?"

"तुम्हारे लिए कुछ खाने का इंतजाम करने गई थी।" मेघा के हाथ में एक प्लास्टिक की थैली थी जिसे उसने एक पुराने से स्टूल पर रखते हुए कहा था____"मुझे पता है कि तुम भूखे होगे। हालांकि तुमने मुझसे इसके बारे में कहा नहीं लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ है कि तुम्हारा ख़याल रखूं। मुझे नहीं पता कि तुम्हें खाने में क्या खाना पसंद है लेकिन फिर भी उम्मीद करती हूं कि मेरा लाया हुआ खाना तुम्हे पसंद आएगा।"

मेघा ये सब कहते हुए प्लास्टिक की उस थैली से निकाल कर खाने को एक बड़ी सी प्लेट में रख दिया था। मैं खाने की तरफ नहीं बल्कि उसके चेहरे की तरफ ही अपलक देखे जा रहा था। दूध में हल्का केसर मिले रंग जैसा उसका चेहरा गोरा था। उसके सिर में पहले की ही भाँति जूड़ा बना हुआ था और चेहरे के दोनों तरफ उसके बालों की दो लटें झूलते हुए उसके गालों को बार बार चूम ले रहीं थी। जिस्म पर वही रेशमी कपड़े थे जो उसने तीन घंटे पहले पहने थे। उसके कपड़े बिलकुल वैसे ही थे जैसे वो किसी बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। झुके होने की वजह से उसकी कमीज का गला थोड़ा ज़्यादा फ़ैल गया था जिससे उसके सीने के बड़े बड़े उभार और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। उसी दरार के सामने उसके गले में पड़ा हुआ वो लॉकेट झूल रहा था जिसमें गाढ़े नीले रंग का पत्थर जैसा नगीना लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" उसकी मधुर आवाज़ से जैसे मेरा सम्मोहन टूटा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। जबकि उसने सीधा खड़े हो कर आगे कहा____"तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया?"

"कि..किस बात का??" मैं एकदम से बौखला गया था। उधर उसने मेरे सवाल पर कुछ पलों तक मुझे देखा फिर स्टूल से उस प्लेट को उठा कर मेरे पास आते हुए कहा____"यही कि जो खाना मैं तुम्हारे लिए ले कर आई हूं वो तुम्हें ज़रूर पसंद आएगा।"

"हां बिल्कुल।" मैंने झट से कहा था____"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम मेरे लिए कुछ लाओ और वो मुझे पसंद न आए?"
"अच्छा ऐसी बात है क्या?" उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा था____"फिर तो अच्छी बात है। मैं अपनी समझ में तुम्हारे लिए बेहतर खाना ही ले कर आई हूं। अब जबकि तुम खुद ही कह रहे हो कि मेरा लाया हुआ सब कुछ तुम्हें पसंद आएगा तो मुझे अब इसके लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत ही नहीं है।"

मेघा ने मेरी तरफ प्लेट बढ़ाया तो मैंने उसे अपने एक हाथ से थाम लिया। मैंने पहली बार प्लेट में रखे हुए खाने की तरफ निगाह डाली और सच तो ये था कि मैंने ऐसा खाना पहली बार ही देखा था। हालांकि मैं जिस हैसियत वाला इंसान था उसमें मैंने वास्तव में ज़्यादा ब्यंजन के प्रकार नहीं देखे थे लेकिन इतना ज़रूर समझने की कोशिश कर सकता था कि ये ब्यंजन खाने योग्य है कि नहीं। प्लेट में जो खाना रखा हुआ था वो मेरे लिए बिलकुल ही अनभिज्ञ था लेकिन उसका रंग रूप बड़ा ही ख़ास नज़र आ रहा था।

"क्या देख रहे हो?" मुझे प्लेट की तरफ अपलक घूरता देख मेघा ने पूछा था____"ख़ाना पसंद नहीं आया क्या?"
"ऐसा तो मैंने नहीं कहा।" मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा था____"और इसे खाने के बाद भी नहीं कहूंगा।"

"ऐसा क्यों?" मेघा ने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था।
"क्योंकि इस खाने को तुम ले कर आई हो।" मैंने बड़ी मोहब्बत से उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी लाई हुई हर चीज़ बेहद ख़ास ही होगी और ऐसी भी होगी जो मुझे बेहद पसंद आएगी।"

"ये तुम नहीं बल्कि मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम बोल रहा है ध्रुव।" मेघा ने कहा था____"मैंने तुम्हें उस वक़्त भी समझाते हुए कहा था कि मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने ज़हन से निकाल दो। तुम्हें मेरी असलियत पता नहीं है। अगर मेरी असलियत जान जाओगे तो तुम्हारा ये प्रेम का भूत एक पल में तुम्हारे अंदर से भाग जाएगा।"

"सच्चे प्रेम के भूत की यही तो ख़ासियत होती है मेघा कि वो जब एक बार किसी के सिर पर चढ़ जाता है तो मरते दम तक नहीं उतरता।" मैंने बेझिझक और बिना किसी डर के कहा था____"तुम्हारे जाने के बाद मैंने ख़ुद इस बारे में बहुत सोचा था और यकीन मानो मैं खुद चकित था कि किसी को एक बार देख लेने से उसके प्रति कैसे इस तरह के जज़्बात पैदा हो सकते हैं जो मिटाना चाह कर भी मिटाए ही न जाएं? सुना तो था कि जब भी किसी को किसी से प्रेम होता है तो वो पहली ही नज़र में हो जाता है लेकिन जब खुद पर ऐसा हुआ तब यकीन करने में देर नहीं लगी मुझे। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अपने अंदर तुम्हारे प्रति उभरने वाले प्रेम के मीठे जज़्बातों को चाह की मिटा न सका। अब तो ऐसा आलम है कि मैं खुद भी ये प्रयास नहीं करना चाहता कि मैं तुम्हारे प्रति अपने अंदर उभर रहे जज़्बातों का गला घोटूं।"

"बड़े अजीब इंसान हो तुम।" मेघा ने चकित भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा था_____"क्या हर इंसान तुम्हारी तरह ही ढीठ और ज़िद्दी होता है?"

"मैं किसी और के बारे में कुछ नहीं कह सकता।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि इस हालत में और सामान्य हालत में काफी फ़र्क होता है। इंसान को जब तक किसी से प्रेम नहीं होता तब तक उसका नज़रिया अलग होता है और जब उसे किसी से प्रेम हो जाता है तो उसका नज़रिया अपने आप ही बदल जाता है।"

"ख़ैर मुझे इससे क्या लेना देना।" मेघा ने जैसे विषय बदलने की कोशिश की थी____"मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द पूरी तरह ठीक हो जाओ, ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"ऐसा क्यों चाहती हो तुम?" मैंने अचानक से बढ़ चली अपनी धड़कनों को नियंत्रित करते हुए कहा____"क्या तुम्हें मेरा यहाँ पर रहना अच्छा नहीं लग रहा या फिर मैं तुम्हारे लिए बोझ सा लग रहा हूं?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" मेघा ने सपाट भाव से कहा था____"सच तो ये है कि मैं खुद इस बात से हैरान हूं कि मैं किसी इंसान के लिए इतना कुछ क्यों कर रही हूं? मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं। माना कि तुमने मुझे बचाने के लिए खुद को ज़ख़्मी किया था लेकिन मेरी नज़र में ये कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके लिए मुझे तुम्हें यहाँ ला कर तुम्हारा इलाज़ करना चाहिए था।"

"फिर भी तुमने ऐसा किया न?" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा था____"मैं नहीं जानता कि तुम्हारी फितरत कैसी है लेकिन जो कुछ तुमने किया है या कर रही हो वो इस बात का सबूत है कि तुम्हारे अंदर भी इंसानियत मौजूद है और तुम किसी ऐसे इंसान को उसके हाल पर छोड़ कर नहीं जाना चाहती जो तुम्हारी ही वजह से ज़ख़्मी हो गया हो।"

"तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा था____"वरना मेरे बारे में ऐसी बातें सोचते भी नहीं। ख़ैर मैं तुमसे कोई बहस नहीं करना चाहती। फिलहाल मुझे यहाँ से जाना होगा और हाँ, यहाँ से कहीं बाहर जाने का सोचना भी मत। अगर तुम यहाँ से बाहर गए और तुम्हारे साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो उसके जिम्मेदार तुम ख़ुद होगे।"

"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं यहाँ से बाहर जाने का सोचूंगा भी?" मैंने एक बार फिर से मेघा की तरफ मोहब्बत से देखते हुए कहा था____"सच तो ये है कि अब मैं मरते दम तक इस जगह पर रहना चाहता हूं, ताकि मैं दुनियां की उस हसीन लड़की को अपनी आँखों से देख सकूं जिससे मेरा दिल प्रेम करता है।"

मेरी बातें सुन कर मेघा बड़े ही शख़्त भाव से मेरी तरफ कुछ देर तक देखती रही उसके बाद बिना कुछ कहे दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को घूरता रह गया था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने एक बार चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हाथ में पकड़ी खाने की प्लेट को देखने लगा। खाना हल्का गर्म था और उसकी खुशबू भी काफी अच्छी थी। मैंने बड़ी ख़ुशी से उसे खाना शुरू कर दिया।

कहीं दूर घंटाघर में मौजूद बड़े से घंटे की आवाज़ आई तो मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने महसूस किया कि मुझे ठण्ड लग रही है इस लिए अपने नीचे पड़ी रजाई को मैंने उठाया और खुद को उसके अंदर क़ैद कर लिया। रात बड़ी ही मुश्किल से आँख लगी थी लेकिन सुबह होने में देर भी नहीं लगी। एक नई सुबह जाने किस तरह मेरा स्वागत करने का मुझे आभास करा रही थी?

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parkas

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Update - 04
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पिछले दो साल से मैं मेघा को तलाश कर रहा था और उसको देखने के लिए तड़प रहा था। इन दो सालों से जहां दिल बहुत उदास और टूटा हुआ सा था वहीं इस झरने के मिल जाने से ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुरझाए हुए गुलशन में बहार ने आ कर जान डाल दी हो। झरना इस बात का सबूत था कि उसके आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जहां दो साल पहले मैं मेघा के साथ एक हप्ते रहा था। मेरे दिल में अब मेघा से मिलने की और उसे देखने की बेचैनी एकदम से बढ़ गई थी। जी चाह रहा था कि पलक झपकते ही मैं मेघा के पास पहुंच जाऊं और उससे लिपट कर दो सालों की जुदाई का दुःख दर्द भूल जाऊं।

मेरी नज़रें अभी भी उस झरने को घूर रहीं थी, जैसे उसी झरने में कहीं पर मुझे मेघा का अक्श दिख रहा हो जिसे मैं अपलक देखे जा रहा था। ऊंचाई से गिरते हुए पानी की आवाज़ इस वक़्त अजीब सी लग रही थी जो दिल में एक भय सा उत्पन्न कर रही थी। हालांकि कोहरे की धुंध छाई हुई थी इस लिए ऊंचाई से गिरता हुआ पानी मुझे साफ़ नहीं दिख रहा लेकिन एक धुंध जैसा ज़रूर दिख रहा था जो ऊपर से नीचे की तरफ जाता उजागर हो रहा था।

दिल में मेघा से मिलने की तड़प बढ़ चुकी थी और अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मैं एक झटके से पलटा और दाएं हाथ में पकड़ी हुई टार्च के प्रकाश को पहले इधर उधर घुमाया उसके बाद एक तरफ को बढ़ चला। जिस्म में मौजूद थकान जाने कहां गायब हो गई थी। न अपनी हालत का होश था और ना ही अपने पेट के अंदर भूख की वजह से ऊपर नीचे उठ रहे गैस के गोलों का। मुझे बस इस बात की ख़ुशी महसूस हो रही थी कि झरना मिल गया है तो अब जल्द ही मुझे मेघा भी मिल जाएगी। मेघा से मिलने की ख़ुशी इतनी ज़्यादा थी कि मैं बिना रुके और बिना कुछ सोचे आगे बढ़ता ही जा रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनता जा रहा था कि जब मेघा मुझे मिलेगी तो मैं ऐसा करुंगा या वैसा करुंगा।

काफी देर तक चलने के बाद अचानक ही मुझे झटका सा लगा और मैं बुरी तरह चौंक गया। कारण मैं मेरे कानों में एक बार फिर से झरने में ऊपर से नीचे गिरते हुए पानी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मैंने टार्च के प्रकाश को बाएं तरफ घुमाया तो ये देख कर चौंक गया कि मैं उसी जगह खड़ा हूं जहां पर मैं पहले खड़ा था, यानि झरने के किनारे पर। मुझे समझ न आया कि ये क्या चक्कर है? मैं तो कुछ देर पहले इसी जगह से मेघा को खोजने ख़ुशी ख़ुशी गया था, जबकि मैं काफी देर तक चलने के बाद भी उसी झरने के पास आ गया था।

कुछ देर झरने के किनारे पर खड़ा मैं इस सबके बारे में सोचता रहा। मैं समझ गया कि शायद अंजाने में मैं घूम फिर कर वापस झरने के पास आ गया हूं। मेघा से मिलने की ख़ुशी ही इतनी थी कि मुझे बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। मेरे दिल को थोड़ी तकलीफ़ तो हुई लेकिन किसी तरह खुद को बहला कर मैंने फैसला किया कि इस बार मुझे पूरे होशो हवास में मेघा को खोजना है।

एक बार फिर से मैं मेघा और उसके उस पुराने से मकान की खोज में चल पड़ा। इस बार मैं पूरे होशो हवास में आगे बढ़ रहा था। मेरे हाथ में मौजूद टार्च का तेज़ प्रकाश कोहरे की धुंध को भेदता हुआ मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रहा था। चारो तरफ घने पेड़ थे। कच्ची ज़मीन पर पेड़ों के सूखे पत्ते थे जो मेरे चलने से बड़ी अजीब सी आवाज़ें कर रहे थे। मेरी जगह कोई सामान्य मनुष्य होता तो वो भय के मारे पेशाब कर देता लेकिन मैं तो जैसे इन दो सालों में खुद ही एक भूत बन गया था जो अँधेरे में ऐसे भयावह जंगल में हर रात विचरण करता था। मुझे इन दो सालों में कभी भी ऐसी जगह पर इधर उधर भटकने में डर का आभास नहीं हुआ। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मैं हर वक़्त सिर्फ मेघा के ख़यालों में ही रहता था। किसी और चीज़ का मुझे ख़याल ही नहीं रहता था। अगर मैं ये सोचता कि मैं रात के अँधेरे में एक ऐसे जंगल में भटक रहा हूं जहां पर किसी भी वक़्त मुझे कोई भी जीव या जानवर नुक्सान पहुंचा सकता है तो यकीनन इस ख़याल से मैं डरता और यहाँ रात के अँधेरे में आने के बारे में सोचता भी नहीं।

हड्डियों को भी कंपा देने वाली ठण्ड थी। कोहरे की धुंध के बीच ब्याप्त भयावह सन्नाटा जैसे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। मैं बिना रुके आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। मुझे चलते हुए काफी देर हो चुकी थी। मैं कुछ दूर चलने के बाद रुक जाता था और टार्च के प्रकाश को इधर उधर घुमा कर ये भी देखता था कि मेघा के साथ मैं जिस मकान में रहा था वो कहीं दिख रहा है कि नहीं? कुछ देर और चलने के बाद अचानक से मैं ठिठक गया और साथ ही मैं आश्चर्यचकित भी रह गया। कारण एक बार फिर से मैं झरने के पास ही आ गया था।

मेरे लिए ये बेहद ही चौंकाने वाली बात थी कि मैं दूसरी बार एक ही जगह पर कैसे आ गया था? मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं कोई ख़्वाब नहीं देख रहा था लेकिन ये जो कुछ भी हुआ था वो ऐसा था जैसे मैं किसी ख़्वाबों की दुनियां में पहुंच गया हूं। ऐसी हैरतअंगेज़ बात ख़्वाब में ही हो सकती थी लेकिन सबसे बड़ा सच यही था कि ये कोई ख़्वाब नहीं था बल्कि वास्तविकता थी। एक ऐसी वास्तविकता जिसने मुझे बुरी तरह उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता था? मैं हर बार घूम फिर कर उसी झरने के पास क्यों आ जाता था? क्या ये मेरे लिए किसी प्रकार का संकेत था या फिर किसी तरह की चेतावनी थी?

मुझे ना तो किसी प्रकार के ख़तरे का डर था और ना ही अपनी जान जाने की फ़िक्र थी। मैं बस हर हाल में मेघा को खोजना चाहता था। अपने अंदर चल रही उथल पुथल को मैंने किसी तरह शांत किया और पलट कर फिर से एक तरफ को बढ़ चला।

रात तो शायद कब की हो चुकी थी लेकिन घने जंगल के बीच अभी भी वैसा ही वातावरण था जैसे यहाँ आने से पहले था। आसमान में शायद चाँद मौजूद था जिसकी रौशनी कोहरे को भेदने की नाकाम कोशिश कर रही थी। धुंध में रौशनी का आभास हो रहा था और यही वजह थी कि रात हो जाने पर भी मुझे शाम जैसा ही वातावरण प्रतीत हो रहा था। हालांकि संभव था कि इसकी कोई दूसरी वजह भी रही हो।

इस बार मैं झरने के किनारे किनारे ही चल रहा था। हालांकि झरने के किनारे पर कहीं मेघा के उस पुराने मकान का मौजूद होना ज़रूरी तो नहीं था किन्तु मैं देखना चाहता था कि इस बार भी मैं उसी जगह पर पहुंच जाता हूं या नहीं? काफी देर तक मैं किनारे किनारे ही चलता रहा। मेरे एक तरफ घना जंगल था तो दूसरी तरफ नीचे की तरफ दिख रही एक चौड़ी नदी जिसमें झरने का पानी अपने बहने का आभास करा रहा था। नदी के ऊपर हवा में कोहरे की धुंध थी जिसकी वजह से मुझे नदी में बहता पानी दिख नहीं रहा था। किनारे से चलते हुए मैं इतना ज़रूर अनुमान लगा रहा था कि नदी यहाँ की ज़मीन से काफी गहरी है। यानि मैं उंचाई पर चल रहा था। टार्च के प्रकाश में मैं आगे बढ़ता ही जा रहा था। मुझे महसूस हुआ कि इस बार मुझे चलते हुए काफी समय हो गया था। मैंने नदी की तरफ टार्च के प्रकाश को डाला तो सहसा मैं चौंक गया।

मेरे जिस तरफ नदी थी वहां अब नदी नहीं थी बल्कि उस जगह पर भी अब घने पेड़ पौधे और ज़मीन दिख रही थी। मैं सोच में पड़ गया कि क्या नदी पलक झपकते ही गायब हो गई या वो किसी दूसरी तरफ को मुड़ गई है? यकीनन वो किसी दूसरी तरफ ही मुड़ गई होगी, भला इतनी बड़ी नदी पलक झपकते ही तो गायब नहीं हो जाएगी। मैं कुछ और दूर आया तो देखा मेरे सामने पक्की सड़़क थी। मैं ये देख कर चौंका कि ये वही सड़़क है जहां से मैं हर रोज़ जंगल की तरफ मुड़ता था। यानि अंजाने में ही मैं सड़क पर आ गया था। दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं जंगल में इतने समय तक भटकने के बाद अपने आप ही सड़क पर आ गया था।

सड़क का एक छोर मुझे मेरे घर तक ले जाने के लिए मानो मुझे ज़ोर दे रहा था तो दूसरी तरफ का छोर मुझे दूसरे शहर की तरफ जाने का एहसास करा रहा था। सड़क को देख कर मेरा दिलो दिमाग़ भारी पीड़ा से भर गया। एक बार फिर से नाकामी ने अपना चेहरा दिखा कर मुझे हताश और दुखी कर दिया था। कहां इसके पहले उस झरने के मिल जाने से मैं ये सोच कर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था कि अब मुझे मेघा मिल जाएगी और कहां अब मैं एक बार फिर से उसको खोज न पाने की वजह से दुखी हो गया था। मेरा जी चाहा कि उसी सड़क पर अपने सिर को पटक पटक कर अपनी जान दे दूं।

जंगल की तरफ मुखातिब हो कर और मन ही मन मेघा को याद करते हुए मैं उसको अपने दिल की हालत बताने के लिए जैसे तड़़प उठा। मेरा दिल चीख चीख कर उससे कहना चाहता था कि वो उसके लिए कितना तड़प रहा है। उसको एक बार देख लेने के लिए बुरी तरह बेचैन है। ज़हन में न जाने कितने ही ख़याल उभरने लगे जिनके एहसास से मेरी आँखें छलक पड़ीं।


यूं किया है तुमने ग़म के हवाले मुझको।
कोई ऐसा भी नहीं जो सम्हाले मुझको।।

देख कर हाले-दिल अपना यूं लगता है,
हिज़्रे-ग़म किसी रोज़ मार न डाले मुझको।।

मरीज़े-दिल की बस एक ही ख़्वाहिश है,
चैन आ जाए अगर गले लगा ले मुझको।।

मैं तेरी दीद की हसरत लिए फिरता हूं,
मुझ पे रहम कर अपना बना ले मुझको।।

मेरी ज़िन्दगी में बहार आ जाए शायद,
अपने जूड़े में गुल सा सजा ले मुझको।।

ऐसा न हो किसी रोज़ डूब के मर जाऊं,
अपनी याद के दरिया से बचा ले मुझको।।

घर आते आते रात काफी गुज़र गई थी। मेरा दिल बुरी तरह तड़प रहा था। कमरे में जाते ही बिस्तर पर औंधे मुँह गिर गया। फ़िज़ा में शमशान की मानिन्द सन्नाटा ब्याप्त था। कमरे में हल्की रौशनी थी क्योंकि बिजली का एक छोटा सा बल्ब अपनी क्षमता के अनुसार टिमटिमा रहा था। कुछ देर तक यूं ही बिस्तर में चेहरा छुपाए अपने अंदर मचल रहे जज़्बातों को रोकने की कोशिश करते हुए पड़ा रहा। उसके बाद उठा और लकड़ी के स्टूल पर एक प्लेट में रखी भुजिया को उठा कर उसे ज़बरदस्ती खाने का प्रयास करने लगा। भुजिया सुबह की थी और ठण्ड में और भी ज़्यादा ठण्ड हो गई थी। इस वक़्त ढाबे से कुछ भी मिलना मुश्किल था क्योंकि रात काफी हो जाने की वजह से ढाबा पहले ही बंद हो चुका था। ख़ैर बड़ी मुश्किल से मैंने प्लेट में बची हुई भुजिया को हलक के नीचे उतारा और फिर पानी पी कर वापस बिस्तर में पसर गया।

"कहां चली गई थी तुम?" क़रीब तीन घंटे बाद जब मेघा वापस आई थी तो मैंने सबसे पहले उससे यही कहा था_____"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि इस डरावनी जगह पर अकेले रहने से मेरी क्या हालत हो गई थी?"

"तुम्हारे लिए कुछ खाने का इंतजाम करने गई थी।" मेघा के हाथ में एक प्लास्टिक की थैली थी जिसे उसने एक पुराने से स्टूल पर रखते हुए कहा था____"मुझे पता है कि तुम भूखे होगे। हालांकि तुमने मुझसे इसके बारे में कहा नहीं लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ है कि तुम्हारा ख़याल रखूं। मुझे नहीं पता कि तुम्हें खाने में क्या खाना पसंद है लेकिन फिर भी उम्मीद करती हूं कि मेरा लाया हुआ खाना तुम्हे पसंद आएगा।"

मेघा ये सब कहते हुए प्लास्टिक की उस थैली से निकाल कर खाने को एक बड़ी सी प्लेट में रख दिया था। मैं खाने की तरफ नहीं बल्कि उसके चेहरे की तरफ ही अपलक देखे जा रहा था। दूध में हल्का केसर मिले रंग जैसा उसका चेहरा गोरा था। उसके सिर में पहले की ही भाँति जूड़ा बना हुआ था और चेहरे के दोनों तरफ उसके बालों की दो लटें झूलते हुए उसके गालों को बार बार चूम ले रहीं थी। जिस्म पर वही रेशमी कपड़े थे जो उसने तीन घंटे पहले पहने थे। उसके कपड़े बिलकुल वैसे ही थे जैसे वो किसी बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। झुके होने की वजह से उसकी कमीज का गला थोड़ा ज़्यादा फ़ैल गया था जिससे उसके सीने के बड़े बड़े उभार और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। उसी दरार के सामने उसके गले में पड़ा हुआ वो लॉकेट झूल रहा था जिसमें गाढ़े नीले रंग का पत्थर जैसा नगीना लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" उसकी मधुर आवाज़ से जैसे मेरा सम्मोहन टूटा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। जबकि उसने सीधा खड़े हो कर आगे कहा____"तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया?"

"कि..किस बात का??" मैं एकदम से बौखला गया था। उधर उसने मेरे सवाल पर कुछ पलों तक मुझे देखा फिर स्टूल से उस प्लेट को उठा कर मेरे पास आते हुए कहा____"यही कि जो खाना मैं तुम्हारे लिए ले कर आई हूं वो तुम्हें ज़रूर पसंद आएगा।"

"हां बिल्कुल।" मैंने झट से कहा था____"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम मेरे लिए कुछ लाओ और वो मुझे पसंद न आए?"
"अच्छा ऐसी बात है क्या?" उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा था____"फिर तो अच्छी बात है। मैं अपनी समझ में तुम्हारे लिए बेहतर खाना ही ले कर आई हूं। अब जबकि तुम खुद ही कह रहे हो कि मेरा लाया हुआ सब कुछ तुम्हें पसंद आएगा तो मुझे अब इसके लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत ही नहीं है।"

मेघा ने मेरी तरफ प्लेट बढ़ाया तो मैंने उसे अपने एक हाथ से थाम लिया। मैंने पहली बार प्लेट में रखे हुए खाने की तरफ निगाह डाली और सच तो ये था कि मैंने ऐसा खाना पहली बार ही देखा था। हालांकि मैं जिस हैसियत वाला इंसान था उसमें मैंने वास्तव में ज़्यादा ब्यंजन के प्रकार नहीं देखे थे लेकिन इतना ज़रूर समझने की कोशिश कर सकता था कि ये ब्यंजन खाने योग्य है कि नहीं। प्लेट में जो खाना रखा हुआ था वो मेरे लिए बिलकुल ही अनभिज्ञ था लेकिन उसका रंग रूप बड़ा ही ख़ास नज़र आ रहा था।

"क्या देख रहे हो?" मुझे प्लेट की तरफ अपलक घूरता देख मेघा ने पूछा था____"ख़ाना पसंद नहीं आया क्या?"
"ऐसा तो मैंने नहीं कहा।" मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा था____"और इसे खाने के बाद भी नहीं कहूंगा।"

"ऐसा क्यों?" मेघा ने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था।
"क्योंकि इस खाने को तुम ले कर आई हो।" मैंने बड़ी मोहब्बत से उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी लाई हुई हर चीज़ बेहद ख़ास ही होगी और ऐसी भी होगी जो मुझे बेहद पसंद आएगी।"

"ये तुम नहीं बल्कि मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम बोल रहा है ध्रुव।" मेघा ने कहा था____"मैंने तुम्हें उस वक़्त भी समझाते हुए कहा था कि मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने ज़हन से निकाल दो। तुम्हें मेरी असलियत पता नहीं है। अगर मेरी असलियत जान जाओगे तो तुम्हारा ये प्रेम का भूत एक पल में तुम्हारे अंदर से भाग जाएगा।"

"सच्चे प्रेम के भूत की यही तो ख़ासियत होती है मेघा कि वो जब एक बार किसी के सिर पर चढ़ जाता है तो मरते दम तक नहीं उतरता।" मैंने बेझिझक और बिना किसी डर के कहा था____"तुम्हारे जाने के बाद मैंने ख़ुद इस बारे में बहुत सोचा था और यकीन मानो मैं खुद चकित था कि किसी को एक बार देख लेने से उसके प्रति कैसे इस तरह के जज़्बात पैदा हो सकते हैं जो मिटाना चाह कर भी मिटाए ही न जाएं? सुना तो था कि जब भी किसी को किसी से प्रेम होता है तो वो पहली ही नज़र में हो जाता है लेकिन जब खुद पर ऐसा हुआ तब यकीन करने में देर नहीं लगी मुझे। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अपने अंदर तुम्हारे प्रति उभरने वाले प्रेम के मीठे जज़्बातों को चाह की मिटा न सका। अब तो ऐसा आलम है कि मैं खुद भी ये प्रयास नहीं करना चाहता कि मैं तुम्हारे प्रति अपने अंदर उभर रहे जज़्बातों का गला घोटूं।"

"बड़े अजीब इंसान हो तुम।" मेघा ने चकित भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा था_____"क्या हर इंसान तुम्हारी तरह ही ढीठ और ज़िद्दी होता है?"

"मैं किसी और के बारे में कुछ नहीं कह सकता।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि इस हालत में और सामान्य हालत में काफी फ़र्क होता है। इंसान को जब तक किसी से प्रेम नहीं होता तब तक उसका नज़रिया अलग होता है और जब उसे किसी से प्रेम हो जाता है तो उसका नज़रिया अपने आप ही बदल जाता है।"

"ख़ैर मुझे इससे क्या लेना देना।" मेघा ने जैसे विषय बदलने की कोशिश की थी____"मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द पूरी तरह ठीक हो जाओ, ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"ऐसा क्यों चाहती हो तुम?" मैंने अचानक से बढ़ चली अपनी धड़कनों को नियंत्रित करते हुए कहा____"क्या तुम्हें मेरा यहाँ पर रहना अच्छा नहीं लग रहा या फिर मैं तुम्हारे लिए बोझ सा लग रहा हूं?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" मेघा ने सपाट भाव से कहा था____"सच तो ये है कि मैं खुद इस बात से हैरान हूं कि मैं किसी इंसान के लिए इतना कुछ क्यों कर रही हूं? मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं। माना कि तुमने मुझे बचाने के लिए खुद को ज़ख़्मी किया था लेकिन मेरी नज़र में ये कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके लिए मुझे तुम्हें यहाँ ला कर तुम्हारा इलाज़ करना चाहिए था।"

"फिर भी तुमने ऐसा किया न?" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा था____"मैं नहीं जानता कि तुम्हारी फितरत कैसी है लेकिन जो कुछ तुमने किया है या कर रही हो वो इस बात का सबूत है कि तुम्हारे अंदर भी इंसानियत मौजूद है और तुम किसी ऐसे इंसान को उसके हाल पर छोड़ कर नहीं जाना चाहती जो तुम्हारी ही वजह से ज़ख़्मी हो गया हो।"

"तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा था____"वरना मेरे बारे में ऐसी बातें सोचते भी नहीं। ख़ैर मैं तुमसे कोई बहस नहीं करना चाहती। फिलहाल मुझे यहाँ से जाना होगा और हाँ, यहाँ से कहीं बाहर जाने का सोचना भी मत। अगर तुम यहाँ से बाहर गए और तुम्हारे साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो उसके जिम्मेदार तुम ख़ुद होगे।"

"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं यहाँ से बाहर जाने का सोचूंगा भी?" मैंने एक बार फिर से मेघा की तरफ मोहब्बत से देखते हुए कहा था____"सच तो ये है कि अब मैं मरते दम तक इस जगह पर रहना चाहता हूं, ताकि मैं दुनियां की उस हसीन लड़की को अपनी आँखों से देख सकूं जिससे मेरा दिल प्रेम करता है।"

मेरी बातें सुन कर मेघा बड़े ही शख़्त भाव से मेरी तरफ कुछ देर तक देखती रही उसके बाद बिना कुछ कहे दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को घूरता रह गया था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने एक बार चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हाथ में पकड़ी खाने की प्लेट को देखने लगा। खाना हल्का गर्म था और उसकी खुशबू भी काफी अच्छी थी। मैंने बड़ी ख़ुशी से उसे खाना शुरू कर दिया।

कहीं दूर घंटाघर में मौजूद बड़े से घंटे की आवाज़ आई तो मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने महसूस किया कि मुझे ठण्ड लग रही है इस लिए अपने नीचे पड़ी रजाई को मैंने उठाया और खुद को उसके अंदर क़ैद कर लिया। रात बड़ी ही मुश्किल से आँख लगी थी लेकिन सुबह होने में देर भी नहीं लगी। एक नई सुबह जाने किस तरह मेरा स्वागत करने का मुझे आभास करा रही थी?


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Nice and excellent update...
 
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