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Erotica Dilwale - Written by FTK aka HalfbludPrince (Completed)

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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कहानी के हीरो पर हमला हुआ और वो बेहोश हुआ उसके बाद की कहानी गायब है
सीधे काके दा ढाबा पर पहुंच गये Incest bhai कुछ खो गया है कृप्या सुधार कर दो
भ्रम में मत पड़ो....
ये फौजी भाई की कहानी है, सस्पैंस के लिए कुछ भी कर सकते हैं

इस कहानी में ये सीन ऐसे ही है... कहीं कुछ भी मिसिंग नहीं है, कहानी को लिखा ही ऐसे गया है
Xossip पर भी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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भ्रम में मत पड़ो....
ये फौजी भाई की कहानी है, सस्पैंस के लिए कुछ भी कर सकते हैं

इस कहानी में ये सीन ऐसे ही है... कहीं कुछ भी मिसिंग नहीं है, कहानी को लिखा ही ऐसे गया है
Xossip पर भी
Agree :approve:
Pahle apan ko bhi laga ki kahani me us jagah ke kuch update miss ho gaye hain lekin baad me pata chala ki fauji bhai ne aisa kar ke kahani me ek alag hi twist daala hai. Matlab ki jis baat ki door door tak kahi ummid ya sambhavna nahi thi wo hua. Well end me hero ka mar jana achha nahi laga....par shayad yahi uchit laga hoga unhe :dazed:
 

Lutgaya

Well-Known Member
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भ्रम में मत पड़ो....
ये फौजी भाई की कहानी है, सस्पैंस के लिए कुछ भी कर सकते हैं

इस कहानी में ये सीन ऐसे ही है... कहीं कुछ भी मिसिंग नहीं है, कहानी को लिखा ही ऐसे गया है
Xossip पर भी
फौजी भाई कुछ बोलते क्यूं नही
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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फौजी भाई कुछ बोलते क्यूं नही
वो बिजी हैं आजकल...
उनका काम ही ऐसा है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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फौजी भाई कुछ बोलते क्यूं नही
भाई वो सीन के बाद स्टोरी मे लीप लिया था, उसकी वज़ह से ऐसा लगता है
 

Tiger 786

Well-Known Member
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काली साडी में क्या गजब लग रही थी वो हल्का सा मेकअप किया हुआ था टाइट कसे ब्लाउज में उसके उभार जैसे की उस कैद को तोड़कर बाहर खुली हवा में साँस लेने को पूरी तरह से आतुर थे उसके बदन से उडती वो खुसबू जैसे मेरे रोम रोम में बस गयी थी वो थोडा सा मेरे आगे थी तो मेरी नजर उसकी बड़ी से गांड पर पड़ी उफ्फ्फ अवंतिका बीते समय में तुम और भी खूबसूरत हो गयी थी



वो- ऐसे क्या देख रहे हो


मैं- आज से पहले तुम्हे इस नजर से देखा भी तो नहीं


वो- देव,


मै- कोई नहीं है


वो- तभी तो तुम्हे बुलाया है बस तुम हो मैं हु और ये रात है देखो देव ये तुम्हारी मांगी रात है


मैंने उसका हाथ पकड लिया और बोला- अवंतिका


उसने अपनी नजरे झुका ली कसम से नजरो से ही मार डालने का इरादा था उसका तो धीरे से वो मेरे आगोश में आ गयी उसकी छातिया मेरे सीने से जा टकराई मेरे हाथ उसकी कोमल पीठ पर रेंगने लगी ना वो कुछ बोल रही थी ना मैं बस साँसे ही उलझी पड़ी थी साँसों से धड़कने बढ़ सी गयी थी कुछ पसीना सा बह चला था गर्दन के पीछे से जैसे जैसे वो मेरी बाहों में कसती जा रही थी एक रुमानियत सी छाने लगी थी

उसकी गर्म सांसो को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था मैं,फिर वो आहिस्ता से अलग हुई थी की मैंने फिर से उसको खींच लिया अपनी और इस बार मेरे हाथ उसके नितंबो से जा टकराये थे, उसके रुई से गद्देदार कूल्हों को मेरे कठोर हाथो ने कस कर दबाया तो अवंतिका के गले से एक आह निकली उसकी नशीली आँखे जैसे ही मेरी नजरो से मिली मैंने अपने प्यासे होंठ उसके सुर्ख होंठो से जोड़ दिए उफ्फ इस उम्र में भी इतने मीठे होंठ ऐसा लगा की जैसे चाशनी में डूबे हुए हो, इतने मुलायम की मक्खन भी शर्मा जाये ,उसके होंठ जरा सा खुले और मेरी जीभ् को अंदर जाने का रास्ता मिल गया मैं साडी के ऊपर से ही उसके मदमस्त कर देने वाले नितंबो को मसल रहा था अवंतिका की आँखे बंद थी


हमारी जीभ एक दूसरे से टक्कर ले रही थी आपस में रगड़ खा रही थी इसी बीच उसकी साडी का पल्लू आगे से सरक गया काले ब्लाउज़ में कैद वो खरबूजे से मोटे उभार मेरी आँखों के सामने थे मैंने हलके हलके उनको दबाना शुरू किया बस सहला भर ही देने जैसा, किसी गर्म चॉकलेट की तरह अवंतिका पिघल रही थी आहिस्ता आहिस्ता से मैंने उसके जुड़े में लगी पिन को खोला उसके रेशमी लंबे बाल कमर तक फैल गए अब मैंने उसकी साडी का एक छोर पकड़ा और वो गोल गोल घूमने लगी साडी उतरने लगी और कुछ पलों बाद वो बस पेटीकोट और ब्लाउज़ में मेरी आँखों के सामने थी

उफ्फ्फ खूबसुरती की हद अगर थी तो बस अवंतिका वो ख्वाब जो कभी मैंने देखा था आज उस ख्वाब को हकीकत होना था ,एक बार फिर से हमारे होंठ आपस में टकराने लगे थे उसके रूप का नशा होंठो से होते हुए मेरे दिल में उतरने लगा था मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसको खोल दिया संगमरमर सी जांघो को चूमते हुए पेटीकोट फिसल कर नीचे जा गिरा उसके गोरे बदन पर वो जालीदार काली कच्छी उफ्फ्फ आग ही लगा दी थी उसने मैंने बिना देर किये अपने कपडे उतारने शुरू किया उसने अपना ब्लाउज़ खुद उतार दिया


जल्दी ही मैं भी बस कच्छे में ही था अपने आप में इठलाती वो बस ब्रा-पेंटी में मुझ पर अपने हुस्न की बिजलिया गिरा रही थी उसकी नजर मेरे कच्छे में बने उभार पर पड़ी तो वो बोली- ऊपर बेडरूम में चलते है


मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और सीढिया चढ़ने लगा अवंतिका ने अपनी गोरी बाहे मेरे गले में डाल दी ऊपर आये उने मुझे बताया किस तरफ और फिर हम उसके बेडरूम में थे , जैसे ही अन्दर गए उफ़ क्या जबरदस्त नजारा था कमरे में चारो तरफ मोमबत्तियो की रौशनी फैली थी पुरे कमरे में गुलाब की पंखुड़िया फैली हुई थी अवंतिका मेरी गोद से उतरी पर मैंने फिर से उसको अपने से चिपका लिया मेरा लंड उसकी गांड की दरार में घुसने को बेताब था मैं ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियो से खेलने लगा वो अपने कुलहो को धीरे धीरे हिलाने लगी


धीरे से मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और उसकी पीठ को चूमने लगा जगह जगह से काटने लगा अवंतिका के अन्दर आग भड़कने लगी उसने मेरे कच्छे में हाथ डाल दिया और मेरे औज़ार को सहलाने लगी , मचलने लगी मेरी बाहों में उसने खुद ही अपने अंतिम वस्त्र को भी त्याग दिया मेरा लंड उसने अपनी जांघो के बीच दबा दिया और बस अपने बोबो को दबवाती रही जब तक की उसकी गोरी छातिया लाल ना होगई उसके काले निप्पल बाहर को निकल आये
“ओह!देव, बस भी करो ना ”

“अभी तो शुरू भी नहीं हुआ और तुम बस बस करने लगी हो ”

मैंने अवंतिका को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी नाभि पर जीभ फेरने लगा उसको गुदगुदी सी होने लगी थी धीरे धीरे मैं उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चाटते हुए उसकी योनी की तरफ बढ़ रहा था उफ्फ्फ बिना बालो की किसी ब्रेड की तरह फूली हुई हलकी गुलाबी रंगत लिए हुए कसम से जी किया की झट से इसके अंदर घुस जाऊ

वो भी जान गयी थी की मैं क्या चाहता हु उसने अपने पैरो को फैला लिया और अपने कुल्हे थोडा सा ऊपर को उठाये अवंतिका की गुलाबी योनी मुझे चूमने का निमंत्रण दे रही थी तो भला मैं कैसे पीछे रहने वाला था मैंने अपनी गीली, लिजलिजी जीभ से उसके भाग्नासे को छुआ और अवंतिका के बदन में जैसे बिजलिया ही गिरने लगी थी
“आः ओफफ्फ्फ्फ़ हम्म्म्म ”
मुझे किसी बाद को कोई जल्दी नहीं थी बस वो थी मैं था और हमारी ये मांगी हुई रात थी उसकी चूत का पानी थोडा खारा सा था पर जल्दी ही मुह को लग गया बड़ी ही हसरत से मैं अपनी जीभ को उसकी योनी द्वार पर घुमा रहा था अवंतिका लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी कभी बिस्तर की चादर को मुट्ठी में कस्ती तो कभी अपने कुलहो को ऊपर उठाती उसकी बेकरारी बढती पल पल और जब मैंने उसकी भाग्नासे को अपने दांतों में दबा कर चुसना शुरू किया तो अवंतिका बिलकुल होश में नहीं रही उसका बदन ढीला पड़ने लगा आँखे बंद होने लगी मस्ती के सागर में डूबने लगी वो ,
और तभी मैंने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया मैं नहीं चाहता था की वो इस तरह से झड़े , मैं उसके ऊपर से हट गया और तभी वो मेरे ऊपर चढ़ गयी और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी हमारी सांसे सांसो में घुलने लगी थी उसका थूक मेरे पुरे चेहरे पर फैला हुआ था और फिर वो मेरी टांगो की तरफ आई मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और बड़े प्यार से उस से खेलने लगी उसकी आँखों में गुलाबी डोरे तैर रहे थे और मैं जानता था की आज की रत वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी उसके इरादों को भांप लिया था मैंने
उसने अपने सर को मेरे लंड पर झुकाया और हौले हौले से उसकी पप्पिया लेने लगी कुछ देर वो बस ऐसे ही करती रही फिर उसने गप्प से मेरे सुपाडे को अपने मुह में ले लिया और उसको किसी कुल्फी की तरह चूसने लगी मेरे होंठो से बहुत देर से दबी आह बाहर निकली वो बस सुपाडे को ही चूस रही थी जब जब उसकी जीभ रगड खाती मेरे बदन में एक झनझनाहट होती एक आग बढती पर उसे क्या परवाह थी उसे तो बस खेलना था अपने मनपसंद खिलोने से अपनी उंगलियों से वो मेरी गोलियों से खेलते हुए मुझे मुखमैथुन का सुख प्रदान कर रही थी
जब उसका मुह थकने लगा तो उसने लंड को बाहर निकाला और फिर मेरी गोली को मुह में ले लिया उसकी गर्म सांसो ने जैसे जादू सा कर दिया था मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा वो इतना ऐंठ रहा था की मुझे दर्द होने लगा आग इतनी लग चुकी थी की दिल बेक़रार था उस आग में पिघल जाने को हां मैं देव इस आग में अपने जिस्म को अपने वजूद को झुलसा देना चाहता था अवंतिका रुपी इस आग में क़यामत तक जल जाना चाहता था मैं और शायद वो भी मुझमे समा कर पूरा हो जाना चाहती थी
जैसे ही वो लेटी उसने अपने पैरो को फैला कर मुझे जन्नत के रस्ते की और बढ़ने का निमन्त्रण दिया जिसे मैं अस्वीकार करने की अवस्था में बिलकुल नहीं था जैसे ही मेरे लंड ने उसके अंग को छुआ अवंतिका ने एक आह ली और अगले ही पल चूत की मुलायम फांको को फैलाते हुए मेरा लंड उस चूत में जा रहा था जिसकी हसरत थी मुझे कभी पर मुराद आज पूरी हुई थी थोडा थोडा दवाब देते हुए मैं उसकी गर्म चूत म अपने लंड को डालता जा रहा था अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भरना शुरू किया और फिर मेरा लंड जहा तक जा सकता था पहुच गया
“चीर ही दिया दर्द कर दिया अन्दर तक अड़ गया है “
“तभी तो तुमको वो सुख मिलेगा अवंतिका ”
मैंने अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा और फिर झटके से वापिस डाला ऐसे मैंने कई बार किया
“तडपाना कोई तुमसे सीखे अब मैं जानी क्यों औरते तुम्हारी दीवानी थी ”
“मेरा साथ दो, तुम पर भी रंग ना चढ़ जाए तो कहना ”
“मुझ पर तो बहुत पहले रंग लगा था आज तक नहीं उतरा देव मैं तो बहुत पहले तुम्हरी हो गयी थी बस आज पूरी हो जाउंगी इस मिलन के बाद मुझ प्यासी जमीन पर अम्बर बन कर बरस जाओ देव , आज मुझ पर यु बरसो की मैं महकती रहू दमकती रहू पल पल मुझे अगर कुछ याद रहे तो बस तुम और ये रात ”
मैंने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करना शुर किया अवंतिका भी मेरी ताल से ताल मिलाने लगी थी कभी मुझे अपनी बाहों में कस्ती तो कभी अपनी टांगो को मेरी कमर पे लपेटती कभी खुद निचे से धक्के लगाती हम दोनों हर गुजरते लम्हे के साथ पागल हुए जा रहे थे अवन्तिका के नाख़ून मेरी पीठ को रगड रहे थे जल्दी ही मैं उस पर पूरी तरह से छा गया था ठप्प थोप्प इ आवाज ही थी जो उस कमरे में गूँज रही थी
उसकी चूत की बढती चिकनाई में सना मेरा लंड हर झटके के साथ अवंतिका को सुख की और आगे ले जा रहा था उसके गालो पर मेरे दांतों के निशान अपनी छाप छोड़ गए थे , एक मस्ती फैली थी उस कमरे में हम दोनों इस तरह से समाये हुए थे की साँस भी जैसे उलझ गयी थी मरे धक्को की रफ़्तार तेज होती जा रही थी उसकी चूत के छल्ले ने मेरे लंड को कस लिया था बुरी तरह से अवंतिका की टाँगे अब M शेप में थी वो कभी अपने हाथ मेरे सीने पर रखती तो कभी अपने बोबो को संभालती जो की बुरी तरह से हिल रहे थे अवंतिका की चूत से रिश्ता पानी मेरे अन्डकोशो तक को गीला कर चूका था

अवंतिका और मैं दोनों काफी देर से लगे हुए थे जिस्म तो हरकत कर रहा था वो अपनी आँखे बंद किये मुझसे चिपकी पड़ी थी उसके झटके कहते बदन से मैं समझ गया था की बस गिरने वाली है तो मैंने पूरा जोर लाते हुए धक्के लगाने शुरू किये अवंतिका बस जोर जोर से बडबडा रही थी उसने मेरे होंठ अपने होंठो में दबा लिया और अपने बदन को मेरे हवाले कर दिया अवंतिका की चूत में गर्मी बहुत बढ़ गयी थी वो झड़ने लगी थी और उसकी चूत की गर्मी ने मेरे को भी पिघला दिया मैंने अपना पानी उसकी गर्म चूत में उड़ेल दिया और उसके ऊपर ही ढह गया

अब हटो भी किती देर से ऊपर पड़े हो ”

मैं साइड में लेट गया वो उठी और नंगी ही कमरे से बाहर चली गयी करीब पन्द्रह मिनट बाद आई शायद फ्रेश होने गयी थी वापिस मेरी बगल में लेट गयी मैंने अपना हाथ उसके थोड़े फुले हुए पेट पर रख दिया वो मुझसे चिपक गयी खेलने लगी मेरे लंड से , उसके हाथो का कामुक स्पर्श पाकर मैं फिर से मचलने लगा


“जानते हो देव, करीब दो साल बाद आज मैंने सेक्स किया है ”

मैं- अच्छा लगा


वो- बहुत


मैं- जानती हो जब पहली बार तुम्हे देखा था तभी मर मिटा था तुम पर


वो- गीता ने बताया था मुझे की कितना पेला है तुमने उसको पिस्ता तो हमेशा मेरे साथ रहती थी पर मजे अकले ले गयी वो


मैं- उसकी बात सबसे अलग है पता नहीं कब मैं उस से इतना जुड़ गया


अवंतिका ने एक बार फिर से खिलोने को मुह में ले लिया था और चूसने लगी थी उसकी हरकतों की वजह से मैं फिर से उत्तेजित हो रहा था जल्दी ही हम दोनों 69 में आके एक दुसरे के अंगो का रसपान कर रहे थे उसकी गांड को सहलाते हुए मैं उसकी चूत का पानी पी रहा था बार बार उसके चुतड हिलते धीरे धीरे मैं उसकी गांड के छेद से खेल रहा था जल्दी ही उसके थूक में सना मेरा लंड एक बार इर से तैयार था उसकी भोसड़ी से टक्कर लेने को


मैंने उसको घोड़ी बनने को कहा और उसके पीछे आ गया वास्तव में ही उसकी गांड गीता की 44 इंची गांड के बराबर ही थी कम बिलकुल ही नही थी शायद ताई की फिटनेस जबर्दस्त थी इसलिए उनका बदन ज्यादा सुडौल था मैंने अपने लंड को चूत पे टिकाया और फिर शुरू हो गए हम दोनों अवंतिका जब मैं रुक जाता तो अपनी गांड को आगे पीछे करती मैं उसके कुलहो को थामे इत्मिनान से उसको चोद रहा था कभी कभी मैं ब्द्र्दी से तेज तेज झटके लगा तो कभी बिलकुल आराम से


पूरी मजबूती से उसकी कमर को थामे मैं उसको पूरा मजा दे रहा था उसकी सांस फूल आई थी पर वो लगी हुई थी उसने अपने धड को नीच कर लिया और चूतडो को खूब ऊपर कर लिया जिस इ मैं अब आसानी से उसकी चूत मार रहा था चूत के आस पास वाला पूरा हिस्स लाल हुआ पड़ा था बड़ा सुंदर लग रहा था करीब दस मिनट बाद मैं वहा से हट गया अब मैं निचे था वो मेरे लंड पर बैठी थी और अपनी गांड हिला रही थी उसके दोनों हाथ मेरे सीने पर थे ऐसा लग रहा था अब वो मुझे चोद रही थी


मैंने उसकी चूची पीना शुरू किया तो अवंतिका और मस्त गयी और जोर जोर से अपनी गांड को पटकने लगी जैसे जैसे मैं उसकी चूची पी रहा था वो और मस्त रही थी और उसकी रफ्तार भी बढ़ रही थी करीब पांच मिनट बाद उसने मुझे ऊपर आने को कहा और फिर से वो चुदने लगी उसकी पकड़ टाइट होते जा रही थी मेर जिस्म पर अवंतिका की सांस काफी फूल गयी थी और फिर लगभग चीखते हुए ही वो झड़ने लगी इस बार थोडा ज्यादा झड़ी थी वो रुक रुक कर वो झड़ रही थी और मैं तेज धक्के मारते हुए उसके इस सुख को कई गुना बढ़ा रहा था


झड़ने के साथ ही उसने मुझे इस तरह अपनी बाहों में कस लिया की मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाया एक बार फिर से मेरे गर्म वीर्य ने उसकी योंनि को भर दिया मिलन का एक दुआर और संपन्न हुआ बुरी तरह से थके हुए हम लोग एक दुसरे की बाहों में पड़े रहे गला सुख गया था मैंने उस से कुछ पीने को कहा तो वो बोली अभी लाती हु
मैंने तकिये को एडजस्ट किया और बेड के सिराहने से अपना सर टिका दिया अवंतिका को भी पा लिया था मैंने सची ही तो कहती थी नीनू साला सारा कुनबा ही थर्कियो का है घर में दो दो लुगाई थी तब भी बाहर मुह मार रहा था था पर मेरे ये रिश्ते भी अजीब थी हर कोई मेरा अपना ही था कम से कम मैं तो ऐसा ही मानता था कुछ देर बाद अवंतिका आई मैंने थोडा पानी पिया


“कुछ खाओगे ”

मैं- तुम्हे


वो- हाँ वो तो खा लेना इतनी मेहनत की है थोड़े थक गए हो


मैं- कहा ना अभी बस तुम्हे ही खाना है


मैंने उसको इशारा किया तो वो मेरी गोद में आके बैठ गयी मेरा लंड उसकी गांड की दरार पर सेट हुआ पड़ा था मैं उसके बॉब को फिर से मसलने लगा


वो- तुम कभी थकते नहीं हो ना


मै- अपना ऐसा ही है और वैसे भी तुम जब साथ हो बस एक रात के लिए तो फिर तुम्ही बताओ मैं कैसे रुकू
मैंने उसकी गर्दन को चूमना शुरू किया वो मचलने लगी जल्दी ही उसकी चूचियो के निप्पल फिर से कडक होने लगे थे पर इस बार मेरा इरादा कुछ और था मेरा दिल आ गया था उसकी गांड पर जैसे ही मेरा लंड तना वो मेरी गोद से उठ गयी मैंने उसे उल्टा लिटा दिया बिस्तर पर और उसकी गांड के भूरे छेद से खेलने लगा


“तुम मर्दों, को ये इतना क्यों भाति है ”

मैं- बस अच्छी लगती है तुम्हारे इतने मोटे चुतड देख कर मैं खोद को रोक नहीं पा रहा हु


वो- ड्रावर म वसेलीन पड़ी है निकाल लो वर्ना कल चालला भी नहीं जायेगा मुझसे


मैंने वेसलीन ली और खूब सारी उसके छेद पर लगाई इर अपनी ऊँगली को गांड ममे डाल के अंदर बाहर करने आगा अवंतिका अपने चुत्डो को कसने लगी


“इतना जोर से मत घुमाओ ऊँगली को देव दर्द होता है मैं तुम्हे करने को मना नहीं कर रही पर प्यार से ”

मैं कुछ देर तक ऐसे ही ऊँगली से उसकी गांड स्से खेलता रहा फिर मैंने कुछ जेल अपने लंड पर भी लगाई और उसको अवंतिका की गांड पर रख दिया उसने अपने हाथो से अपने कुलहो को फैलाया और मैंने दवाब डालना शुरू किया


“तुम्हारा बहुत मोटा है आराम से डालो आःह्ह्ह्ह धीरे ”

“बस हो गया हो गया ”

जैसे ही मेरा सुपाडा गांड को फैलाते हुए अंदर घुसा अवंतिका दर्द के मरे ज्यादा परेशान हो गयी पर उसको भी पता था दो मिनट की बाद है धीरे धीरे बड़े प्यार से मैंने पूरा अन्दर डाल दिया और बस उसके ऊपर लेट गया और उस से बाते करने लगा उसके गालो को चूमने लगा करीब पांच मिनत बाद मैंने अपनी कमर उच्कानी शुरू की और उसने दर्द भरी सिस्कारिया लेना चालू किया


जल्दी ही अवंतिका भी मजे लेने लगी और मैं अब तेज तेज धक्के लगते हुए उसके पिछवाड़े का मजा ले रहा था बस अगर कुछ था तो हवस जो हमारे जिस्मो को नचा रही थी अपनी ताल पे मेरी गोलिया हर धक्के पे उसके मुलायम कुलहो पर टकराती अवंतिका की गांड बहुत ही टाइट थी मुझे लगा की कही मेरा लंड छिल ना जाए पर ऐसी गांड पर ही तो लंड की मजबूती नाप जा सकती थी करीब बीस बाईस मिनट तक उसकी गांड जम के मारी और फिर मैंने अपना पानी वही छोड़ दिया

उस पूरी रात हम दोनों ने एक पल के लिए भी आँखे नहीं मीची बस चुदाई ही चुदाई चलती रही जब मैं जाने लगा तो उसने कहा की नाश्ता करके जाओ वो भी अकेली है थोडा अच्छा लगेगा और जल्दी ही हम नाश्ता कर रहे थे तभी मेरी नजर वहा लगी एक पेंटिंग पर पड़ी शायद कोई राजस्थानी पेंटिंग थी जिसमे तीन राजा लग रहे थे



मैं- अवन्तिका, ये पेंटिंग किस की है



वो- ये त्रिदेव है ससुर जी लाये थे इस पेंटिंग को तीन भाइयो की तस्वीर है बस इतना ही पता है मुझे वैसे अच्छी है ना
मैं- हाँ ऐसा लग था है की अभी बोल पड़ेंगे पुराने ज़माने की शान ही और होती थी त्रिदेव वाह क्या बात है



फिर ऐसे ही हलकी फुलकी बाते करते हुए हम नाश्ता करते रहे और तभी चाय का कप मेरे हाथो से छुट गया ओह तेरी त्रिदेव तो ये बात थी मैं भी कितना बुद्धू था मुझे ये बात पहले ही समझ जानी चाहिए थे ओह मेरे रब्बा हद है यार, अगर वहा वो सब हुआ तो मान ग

या पिताजी ने बहुत सोचकर वहा पर छुपाया होगा मैं जैसे ख़ुशी से नाच ही था था मैंने अवंतिका के होंठ चूम लिए
“क्या हुआ देव ऐसा क्या मिल गया बताओ तो सही ”


मैं- अवंतिका तुम नहीं जानती तुमने अनजाने में मेरी मदद कर दी है अगर सचमुच वैसा हुआ जैसा मैं सोच रहा हु तो गजब हो जायेगा ओह मेरी जान अवंतिका तुम सस्च में गजब हो यार कल मेरा यहाँ आना और इस तस्वीर को देखना त्रिदेव, कसम से जान अभी जाना होगा शाम को इंतज़ार करना मेरे फ़ोन का भी मुझे जाना होगा मिलते है
उसको वहा छोड़कर मैं सीधा घर आया और सबको मेरे साथ आने को कहा साथ ही कहा की खुदाई का सामान भी ले ले



पिस्ता- कुछ बताओ तो सही कहा जाना है



मैं- चुप रहो बस चलो मेरे साथ



मैंने सबको गाडी में बिठाया और गाड़ी को भगा दी करीब आधे घंटे बाद हम लोग उसी जमीन पर थे जहा ये सब खेल शुरू हुआ था गाडी तो आगे जा सकती नहीं थी उसको वही खड़ी किया और अब करीब दो कोस पैदल चलते हुए जा रहे थे



नीनू- देव, हम वापिस इस जगह क्यों



मैं- खुद ही देख लेना अगर मेरा अंदाजा सही है तो मैंने अपना हिस्सा ढूंढ लिया है



“क्या ”वो तीनो एक साथ चिल्लाई



मैं- क्या हुआ चुप नहीं रह सकती क्या अभी मेरा अंदाजा ही है बस पर तीर लग गया तो पार ही है



नेनू- पर कैसे



मैं- चलो तो सही पहले



सबलोग एकदम से रोमांचित हो गए थे थे जोश जोश में हम वहा पहुचे पूरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था पर अब किसे गर्मी लगनी थी और फिर हम वहा आये जहा पर वो तीन पेड़ थे , त्रिदेव ही तो थे वो तीन बरगद के पेड़ एक जड से निकले हुए जैसे तीन भाई एक माँ की कोख से पैदा होते है



मैं- देखो मैंने कहा था ना की इन पेड़ो में कुछ तो अजीब बात है और वो अजीब बात ये है की ये त्रिदेव है



पिस्ता- पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो साफ साफ क्यों नहीं बताते



मैं – खजाने का आधा हिस्सा इनमे इ किसी एक पेड़ के निचे या अस पास है



नीनू- देव, हम चबूतरे के पास खोद चुके है और जानते हो ना हमे क्या मिला था



मैं- एक चीज़ होती है किस्मत नीनू पर ये सारी बाते खोखली हो जाएँगी अगर वो चीज़ हमे नहीं मिली जिसकी हमे तलाश है तो इस चबूतरे को बिलकुल मत छेड़ना और बाकी जगहों पर खोदना शुरू करो अब थोड़ी मेहनत तो कर ही सकते है तो चलो शुरू हो जाओ

अगले घंटे भर तक हम खोदते रहे पर कुछ नहीं मिला दो घंटे हुए पर खाली हाथ सब तरफ से करीब तीन तीन फीट खुदाई हो चुकी थी पिस्ता ने तो अपनी कुदाल फेक ही दी थी



वो- देव, तुम्हारे फ़ालतू के ख्याल ने मेहनत जाया करवा दी है



मैं- पिस्ता हार मत मानो हम 6 फीट तक देखेंगे मेरे हिसाब से इतने में काम बन जाना चाहिए वर्ना बाकि अपना नसीब पर मेरा दिल कहता है हम उस चीज़ के बेहद करीब है जिसके बारे में लोगो ने बस सुना ही होता है



तो एक बार फिर जोश के साथ हम जुट गए पर जैसे जैसे खुदाई होते जा रही थी उम्मीद कम हो रही थी और फिर नीनू की गैंती किसी धातु से टकराई जैसे उलझी हो उसमे औ जी ही नीनू ने गैंती को बाहर खीचा उसके साथ लिपटा हुआ आया कुछ ये एक हार था मिटटी में सना हुआ पर बात बन गयी थी सभी के चेहरे दमक उठे थे अब हम सारे उस जगह को लगे खोदने और फिर दो बड़े से संदूक जिनमे वो सारा माल भरा था जो रह गया था मतलब संदूक में ना समा पाया था उसे साथ ही दफना दिया गया था




अथक मेहनत के बाद सारे माल को धरातल तक खीचा हमने वाह री किस्मत तेरे अजब खेल कितना पास होकर भी वो खजाना सबके इतना नजदीक था त्रिदेव, आखिर क्यों कोई इस बात को पहल्ले नहीं समझ पाया था



पिस्ता- देव, खजाना , तुम्हारा हिस्सा



मैं- कह सकती हो पर ये मेरा हिस्सा नहीं है शायद हुआ यु होगा की शायद पिताजी ने वहा से यहाँ इसको हिफाजत के लिए छपाया होगा की बाद में ले लेंगे पर वो बाद कभी आ ही नहीं पाया



नीनू- पर जब उन्होंने वहा से यहाँ तक लाया तो घर भी तो ल जा सकते थे



मैं- शायद उस समय हालात ऐसे नहीं था चुनाव थे घर में कलेश था ऊपर से रतिया काका का एक्सीडेंट यहाँ सिर्फ इसलिए रखा गया होगा की उस उवे का पता किसी को चल भी गया हो तो और कोई चुरा ना सके


पिस्ता- एक वजह और हो सकती है देव



मैं- क्या



वो- लालच की क्यों बंटवारा किया जाये देखो देव बुरा मत मानना पर ऐसा भी तो हो सकता है की लालच हो की रतिया तो बचे ना बचे तो सारा माल अपना अब उसके बारे में बस दो लोग तो जानते थे की है कहा और ये भी तो हो सकता है की हिस्सेदार को रस्ते से हटाने के लिए अब इन्सान की फितरत कब बदल जाए और यहाँ तो मामला खजाने का है अभी भी इन संदूको में और बाहर का मिला कर 50-60 किलो तो है ही



मैं- देखो पिस्ता मैं तुम्हरी बात को समर्थन देता पर जिनको खजाना मिला वो दोनों ही लोग इस दुनिया में नहीं है और मैं इस बात की पुष्टि करता हु की दोनों की मौत का कारण लालच तो हो सकता है पर खजाना हरगिज़ नहीं है



पर तुम्हारी इस बात ने मेरे मन में कुछ ऐसी बात ला दी है जो शायद मुझे नहीं करनी चाहिए पर तर्क जरुरी है देखो दो लंगोटिया यार जिनमे भाइयो जैसा प्यार , एक महा ठरकी, तो ऐसा होनाही सकता की दुसरे को उसके बारे में पता ना हो माना की मेरे पिता थे उनमे से एक और ऐसी बात करना उचित भी नहीं पर देखो हम दोस्तों के कई गुण-अवगुण अनजाने में ही ले लेते है तो ऐसा भी हो सकता है की पिताजी पता नही मैं आगे की बात क्यों नहीं कह पाया



“पिताजी भी रतिया काका के हर पाप में भागीदार रहे हो ”नीनू ने मेरी बात पूरी की



नहीं पिताजी की जो छवि मेरे मन म थी वो तद्कने लगी थी अगर ऐया हुआ तो पर इनकार भी तो नहीं किया जा सकता था सम्भावना से जिंदगी ये कैसे मोड़ पर ले आई थी मेरे मन में नीनू की वो बात आने लगी की सारा कुनबा ही ठरकी है

नीनू- देखो जब तक हमे कोई ठोस सबूत नहीं मिल जाता आकलन करने से क्या फायदा अब सवाल ये है की गाड़ी दूर है इतने वजन को कौन ढोयेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात की ये पता कैसे चला की ये सोना यहाँ है


मैं- किस्मत नीनू किस्मत बस हमारी अच्छी थी और उसकी ख़राब जिसने कवर की लाश को यहाँ गाडा देखो दोनों में बस थोड़ी ही दूरी है उसने भी कम से कम पांच फीट खुदाई की थी लाश को छुपाने की पर यही तो खेल है कीमत का अगर वो बीच की जगह यहाँ खोदता तो आज इस सोने का मालिक वो होता

देखो इस पूरी जमीन में ये पेड़ सबसे अलग दीखते है क्योंकि ये बरगद के तीन पेड़ एक जद से निकले है और एक साथ है ये निशानी है तीन भाइयो की ये तीन त्रिदेव हा जबकि हमने उस दिन इन्हें त्रिवेणी समझ लिया था पर पिताजी ने इन्हें त्रिदेव समझा ये पेड़ तीन भाई है और पिताजी हर भी तीन भाई थे वो इस दुनिया में सबसे ज्यादा किसी को चाहते थे तो बस अपने परिवार को अपने भाइयो को ये बात सबको पता है इन तीन पेड़ो में उन्होंने खुद को अपने भाइयो को देखा और शायद इसलिए ही उन्होंने खजाना यहाँ छुपाया


मतलब हम इंसानों की फितरत अजीब होती है, कई बार छोटी छोटी चीज़े हमे टच कर जाती है जैसे मैं आज भी रडियो सुनता हु , केसेट सुनता हु जबकि अरसा हुआ केसेट आणि बंद हुए तो शायद ऐसे ही इमोशनल टच कह सकते है और शायद ये ही कारण हो क उनके वारिस को आज वो सब मिला है जो कभी उन्हें मिला था किसी ने मुझे तीन भाइयो त्रिदेव के बारे में बताया था बातो बातो में बताया था और तभी मुझे ये ख्याल आया


तो चलो , अब हमे यहाँ से निकलना चाहिए हम इस वक़्त सेफ नहीं है अगर दुश्मन की नजर में है तो अब गाडी तो आ नहीं सकती जैसे तैसे करके गाड़ी तक सामान को घसीटना ही होगा


पिस्ता- अगर हम गाड़ी को उस तरफ से ले आये जिस तरफ से ममता भागी थी तो घसीटना ना पड़े


मैं- पिस्ता गाड़ी उस तरफ लाने के लिए बहुत दूर का चक्कर लगाना पड़ेगा और जितनी देर लगेगी उस से आधी में तो हम लोग पैदल गाड़ी तक पहुच जायेंगे


बोलने को आसन था पर करना बहुत मुस्किल दम निकल आया सबका बुरा हाल हुआ पड़ा था पर गाड़ी तक जाना ही था करीब करीब डेढ़ घंटा तो लगा ही होगा बल्कि ज्यादा है खैर उसको लादा गाडी में और फिर चले हम घर के लिए सूरज ढलने लगा था पूरा दिन ही बीत गया था मैंने सुबह से बस थोडा बहुत अवंतिका के साथ ही खाया था तो भूख लगी पड़ी थी पर सब थके हुए पड़े थी इधर उधर आखिर नीनू ने ही हिम्मत की और कुछ बनाने रसोई में चली गयी
मैंने अंदर पुराना सामान देखा तो कुछ बट्टे और पुराना तराजू मिल गया तो मैंने सारे सोने को तोलना शुरू किया तो करीब वो 62 किलो के आस पास था मैंने कहा देखो सब इस को अपने अपने हिसाब से बाँट लो


पिस्ता- देव तुम ये बात कह कर हमे शर्मिंदा करते हो


मैं- तो जैसे रखना है तुम जानो मुझे बड़ी भूख लगी है बस खाने को कुछ दो यार


फिर खाना वाना खाके थोड़ी जान आई फिर कोई नहाने चला गया कोई आराम करने आज मजदुर लोग पैसा मांग रहे थे तो मैं उनका हिसाब करने लग गया तो उसमे बहुत देर लग गयी मैंने फ्फिर अवंतिका को फोन किया तो पता चला की वो फार्म हाउस पर है तो मैंने कहा मैं वही आ रहा हु घंटे भर में अब अवंतिका ने ही तो वो क्लू दिया था तो मैंने सोचा की उसको भी हिस्सा देना चाहिए तो मैंने एक बैग में सोना भरा और फिर बहाना बना के गाड़ी को मोड़ दी फार्म हाउस की तरफ


पर रस्ते भर मैं यही सोचता रहा की आखिर वो कौन दुश्मन हो सकता है हमारा जो मेरे पास होकर भी इतना दूर है रतिया काका तो रहे नहीं थे बचे चाचा, बिमला और मामी स्लै सब ढोंग कर रहे थे अपना होने का पर कालान्तर में इन्होने ही मारी थी मेरी साला दर्द भी अपना और दर्द देने वाले भी अपने मेरे तन पे मेरे मन पे मेरे अपनों के ही तो ज़ख्म थे कहने को तो परिवार ख़तम होने के बाद ये मेरे अपने थे पर सालो ने एक दिन भी नहीं संभाला चाचा और बिमला को तो कभी अपनी प्यास से फुर्सत ही नहीं आई


और नाना मामा सब साले चोर किसी को ये परवाह नहीं की मेरे मन में क्या है सब को बस लालच सबके मन में हवस किसी न य्नाही सोचा की देव भी कोई है माना की मुझसे गलति हुई अपने लालच की वजह से मैं माँ सामान भाभी के रिश्ते को कलंकित किया वो सही कहती थी उसको ये राह मैंने ही दिखाही थी वो मैं ही था जिसने खून को गन्दा किया था अगर कोई सबसे बड़ा दोषी था वो मैं ही था ये अजीब खेल जिंदगी के आंसू भी अपना नमक दर्द भी अपना और दिलदार भी अपना


जहाँ देखो बस गम ही गम है सोचते क्सोहते मैं अवंतिका के फार्महाउस पर पंहुचा वो अकेली ही थी हम अन्दर आये मैंने उसको बैग दिया


वो- क्या है इसमें


मैं- तुम्हारे लिए मेरी तरफ से कुछ


उसने जैसे ही बैग खोला उसकी आँखे फटी रह गयी


वो- ये,,,,,,,,,,,,,,,,,, ये सब क्या है देव


मैं- तोहफा है तुम्हारे लिए मेरी तरफ से


वो- पर मैं इतना सोना कैसे


मैं- अवंतिका तुम्हे मेरी कसम ये लेना ही होगा


उसने बैग साइड में रख दिया और मेरे पास आके बैठ गयी


बोली- तुमने कभी मोहब्बत की है देव


मैं- पता नहीं कभी आवारापन से फुर्सत ही नहीं आई तुम्हे तो सब पता ही है ना


वो- देखो, जिंदगी वैसी भी नहीं होती जैसा हम सोचते है अक्सर हम लोगो के बस एक टैग दे देते है की वो ऐसा है वो वैसा है जब मैंने पहली बार तुम्हारे बारे में सुना था की बस तुम ही हो जो चुनावो में मेरी नैया को पार लगा सकता है मैने सुना तुम्हरे बारे में गाँव के छैल छबीले नोजवान पर मैं सोचती थी की क्या ये लड़का मेरे लिए अपने परिवार को हरवा देगा क्योंकि हमारे लिए तो परिवार ही सबकुछ होता है और वो भी जब तुम्हरे और मेरे परिवार में सम्बन्ध ठीक नहीं थे


जब तुमने वो एक रात वाली शर्त रखी तो मैंने तुम्हे तोलने का सोचा और हाँ कर दी मेरे मन में ये था की शायद तुम अपने परिवार से धोका नहीं करोगे पर तुमने अपना वादा निभाया और उसके बाद भी तुमने उस रात वाली बात का जिक्र नहीं किया मैं सोचने लगी तुम्हारे बारे में हर पल पल पल मैं सोचती की क्या कहूँगी जब तुम अपना वचन निभाने को कहोगे क्योंकि आसन कहा होता है किसी भी औरत के लिए वो सब , जबकि मेरी दो खास पिस्ता और गीता तुम्हरी बड़ाई करते नहीं थकती थी ये कैसा जादू सा था जो उनके साथ साथ मुझ पर भी अपना रंग चढाने लगा था

और फिर ना जाने कब मैं तुमसे जुड़ने लगी हर पल सोचती थी की कब तुम पहल करोगे पर फिर वो हादसा हो गया जिसने सब बदल कर रख दिया इस से पहले की मैं तुम से मिल पाती तुम गाँव छोड़ गए , और फिर मुलाकात हुई भी तो किस हाल में तुम घायल थे तदप रहे थे वो बस किस्मत की ही बात थी खैर, तुम बिना बताये गायब हो गए वक़्त बड़ा गया यादे धुंधला गयी अपने अजनबी हो गए

मैं- अवन्त्का कुछ बाते बस याद ही रहनी चाहिए मेरी जिंदगी का एक मात्र उद्देश्य उस इन्सान की तलाश है जिसने मेरे परिवार को मार डाला मुझे अनाथ बना दिया जानती हो हर पल उस आग में जलता हु मैं जब उस दिन मैं हॉस्पिटल पंहुचा तो पिताजी की सांस चल रही थी खून से लथपथ जब मैंने देखा उनको तो जानती हो क्या गुजरेगी उस बेटे पर जिका बाप पल पल मौत की तरफ बढ़ रहा हो , जब उनकी सांसो की डोर टूटी उनका हाथ मेरे हाथ में था

मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया था अवंतिका मेरे सर से छत टूट गयी थी एक पल को मेरे पिताजी जिन्होंने हर परिस्तिथि में ढाल बन कर मेरा संरक्षण किया था पल भर में ही एक इंसान लाश बन गया था क्या नहीं था मेरे पर फिर भी मैं अपने पिता को नहीं बचा पाया था बहुत देर तक उनको अपने आप से अलगाए मैं रोता रहा एक आस थी की वो अपने बेटे से बात करेंगे पर वो जा चुकेथे सोचो जरा उस बेटे पर क्या गुरी होगी जब उसने कफ़न उठा कर अपनी माँ को देखा होगा वो मुस्कुराता चेहरा रक्त-रंजित पड़ा था सर फट गया था साइड से कोई कोई और देखता तो उलटी कर देता पर मेरी माँ थी वो


जिसकी वजह से मैं इस दुनिया में था जिसके आँचल के तले मैंने जीना सीखा था जिसकी गोद में सर रखने भर से मैं चिंता मुक्त हो जाता था जब वो प्यार से मेरे बालो में हाथ फेरती थी तो लगता था की ज़माने भर की ख़ुशी पा ली है मैंने जब किसी गलती पे पिताजी से डांट पड़ती तो वो माँ ही थी जो मेरा पक्ष लिया करती थी समय अपनी रातर से बढ़ गया पर अवंतिका मैं आज भी उसी मोड़ पर खड़ा हु जहा उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा था


वो मासूम बच्चे, ताऊ-ताई सब ख़ाक हो गया और जो बचा है वो उत्महरे सामने है तुम ही बताओ इन नालायको को कैसे अपनाऊ मैं कैसे सीने से लगाऊ इन को सब डूबे है अपनी हवस में अपने काम से काम है पर ये कोई नहीं पूछता की देव कैसा है किस तकलीफ से गुजर रहा है देव


अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया पर कुछ बोली नहीं शायद वो भी जानती थी की इस दर्द से बस मुझे ही जूझना है सोचा तो था की अवंतिका को एक रात और रगड़ना है पर साला मूड सैड सैड हो गया था अब ऐसे में अपने से चूत मारी जाती रात भी काफी हो गयी थी अवंतिका ने काह की मैं यही रुक जाऊ सुबह साथ चलेंगे पर दिल टूट सा रहा था बिन पिए ही नशा सा होने लगा था अवंतिका ने बार बार कहा की मैं रुक जाऊ गाँव दूर है पर अब इसे होनी कह लो या फिर जिद अब कहा किसी की सुननी थी माननी थी


जैसे तैसे करके गाँव तक आया मैंने गाड़ी को रतिया काका की जो पुरानी दुकान होती थी वही लगा दिया क्योंकि गली में और साधन खड़े थे शायद रिश्तेदारों के हो पेशाब आ रहा था बड़ी तेज से तो तो मैं साइड में जाके पेशाब करने लगा चारो तरफ संन्नाता था बस हवा चल रही थी टाइम पता नहीं कितना हो रहा था मूत के आ रहा था की मैंने देखा कोई औरत खेतो की तरफ जा रही थी गली की इस तरफ रौशनी थोड़ी कम थी पर मैंने उसको पहचान लिया था वो मंजू थी


अब इतनी रात को इसको क्या चुदास लगी है ये कहा जा रही है एक पल को सोचा की शायद टट्टी जा रही होगी पर इतनी रात को किसी को साथ ले जाती कुछ गड़बड़ सी लगी और कल उसने मुझसे अलग तरीके से बात की तो मेरे मन में हुड़क लगी की ये कहा जा रही है तो मैं छुपते छुपते उसके पीछे चलने लगा , बस्ती पीछे रह गयी थी सेर सुरु हो गया था दोनों तरफ पेड़ थे खेत थे पर वो चलती जा रही थी अपनी धुन में


ये तो हमारे कुवे पर आ गयी थी मैंने सोचा कही कुवे में कूद के जान तो ना देगी हो भी सके था मैं पास में ही चुप चाप खड़ा हो गया वो कुवे की मुंडेर पर ही बैठ गयी बस बैठी रही पांच मिनट दस मिनट खामोश शायद इंतजार था किसी का या अपने आप ही शायद वो रो रही थी मैं उसके पास गया वो मुझे देख कर चौंक गयी


मंजू- देव, तू यहाँ क्या कर रहा है


मैं- मेरी छोड़ तू इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही है


वो- दिल नहीं लग रहा था नींद नहीं आ रही थी जबसे तूने बापू के बारे में बताया कुछ भी अच्छा नहीं लगता तो सोचा इधर आके बैठ जाऊ क्या पता मन हल्का हो जाये


मैं- देख, मंजू मैं तुझे बताना नहीं चाहता था पर मेरे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था अब हमे इसी सच के साथ जीना होगा



वो- देव, ये सच हर पल मुझे तड्पाएगा जब भी बापू का ख्याल आएगा मैं क्या सोचूंगी


मैं- मंजू, उन्होंने गलत किया था हरिया काका को मारना कहा का इन्साफ था किस लिए मारा उनको की बस शक था ,शक तो मुझे भी सब पे है तो क्या सबको मार दू काका ने पैसे के दम पे गाँव की कितनी औरतो का शोषण किया उन्होंने क्या दुआए दी होंगी तुम्हारे पिता को जिस भी औरत की तरफ देखा उसे अपने बिस्तर पर घसीट लिया चलो कोई सेटिंग हो तो अलग बात होती है पर मजलूमों का शोषण किस लिए सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए और भूख भी ये जो कभी मिटती ही नहीं


उन्होंने तो अपनी बेटी को भी नहीं छोड़ा चढ़ गया उस पर भी , गलत हम सब है तुम, मैं , राहुल भाई बहन के रिशतो की धज्जिया उड़ा डाली ये हवस हमे विरासत में मिली है मंजू हम जिए भी इसके साथ ही पर उनमे और हममे ये फरक है की हमने किसी को मजबूर नहीं किया हमने जो किया अपनी मर्ज़ी से किया
मंजू- ये तो वो बात हुई की तुम्हारा पापा ज्यादा है मेरा कम कम


मैं- हमाम में तो सब नंगे है मंजू


वो- देव, तुझे क्या लगता है बापू को किसने मारा होगा


“मैंने ” मैंने मारा है उस दुष्ट, घटिया पतित इंसान को मैंने आवाज बिलकुल मेरे पीछे से आई थी मैं मुड़ा और तभीईईई

आवाज बिलकुल मेरे पीछे से आई थी और जैसे ही मैं पीछे को मुड़ा बदन में दर्द सा हुआ आँखे जैसे बाहर को आ गयी चक्कू मेरे पेट में घुस गया था आँख से आंसू निकल पड़े इस से पहले की मैं कुछ भी समझ पता क्योंकि उसके चेहरे को देखते ही मुझे यकीन नहीं हुआ की ये जिसपे मैंने हद से ज्यादा विश्वास किया वो मेरे साथ ऐसा करेगी उसने तुरंत ही एक और वार किया खून की धारा बह निकली थी पर वो नहीं रुकी एक के बाद एक वार करती ही गयी पेट पूरा काट डाला उसने मुह ने नाक से खून बह चला मैं लहरा कर गिरा जमीन पर


बस कुछ ही देर में उसने अपना काम कर दिया था वो हंसी जोरो से हाँ मैं देव हां मैं
“देव, ”मंजू जोर से चीखी


मैं- bhaaggggggggggggggggggggggggggg मंजू भाग यहाँ से


पर वो तो जैसे जाम ही हो गयी थी , उसने मुंडेर के पास पड़ी बाल्टी दे मंजू के सर पर चीख मारते हुए वो लहरा कर गिरी निचे मैं चिल्लाया पर कोई फायदा नहीं था


“चिल्ला ले, देव जितना चीखना है चीख ले पर आज तेरी कोई नहीं सुनने वाला कोई नहीं सुनेगा , और तू ऐसे नहीं मरेगा मरने से पहले तुझे ये जानने का पूरा हक़ है की आखिर क्यों तेरी जान जा रही है , जान जैसे तेरे बाप की गयी थी जैसे रतिया की गयी थी वैसे ही तेरी ”

तेरे लिए ये समझना मुश्किल होगा की आखिर क्यों मैंने ये सब किया जबकि तूने हद से ज्यादा मेरा भरोसा किया इतना विश्वास कोई अपनों पर नहीं करता जितना तूने मुझे किया, ये कहना झूठ होगा की तुझे मारते हुए मुझे तकलीफ नहीं होगी पर क्या करू कलेजे पर पत्थर तो रखना ही होगा य भी सच है मुझे अच्छा लगता था तू बहुत अच्छा ये कहू की शायद चाह सी होने लगी थी तेरी तो गलत नहीं होगा पर तुझे भी मरना होगा , तुझे भी मरना होगा


“आह , तुझे मेरी जान चाहिए ना तो ले लेले अरे एक बार कह देती तुझे भी मैंने खूब चाहता क्या नहीं किया तेरे लिए पर अगर तुझे मेरे खून की प्यास है तो ठीक है मार दे मुझे पर ये बात मेरी मौत के साथ ही ख़तम हो जानी चाहिए वर्ना कल को कोई किसी पर भरोसा नहीं करेगा ”

वो- भरोसा, देव कितना अच्छा लगता है ये सुनने में भरोसा कभी मैंने भी किया था भरोसा पर क्या मिला मुझे कुछ नहीं सिवाय दर्द के उअर ये दर्द उसने दिया जिसे जिसपे मैंने भरोसा किया था तेरे बाप पे टूट की भरोसा किया था पर क्या मिला मुझे क्या मिला वो चीखीईईईईईईईईइ


वो- ये जो हवस तुम्हे हर समय चढ़ी रहती है ना ये तुम्हे विरासत में मिली है अपने बाप से वो भी तुम्हारी ही तरह था बिलकुल ऐसे ही और उसको भी बड़ी चाह थी मेरी, जैसे तुम मेरी फ़िक्र करते हो वैसे ही वो भी करता था एक जमाना था जब मेरी जवानी जोरो पे थी जब मैं इठला के चलती थी तो ना जाने कितनो के दिल आहे भरते थे तुम्हारे पिता रोज खेत में जाते मैं आती तुम्हारे खेतो में काम करने नजरो ने नजरो को पढ़ लिया था दिल धड़क उठे थे और ना जाने कब मैंने खुद को तुम्हारे पिता को समर्पित कर दिया


उसकी दीवानगी भी ठीक ऐसे ही थी जैसी तुम्हारी है मेरे लिए जब मेरी जिंदगी में तुम आये और जिस तरह से तुम मेरे तन मन पे छा गए मुझे ऐसा लगता की मैं आज भी तुम्हारे पिता की बाँहों में हु दिन गुजरते गए जिंदगी आगे बढ़ने लगी तुम्हारे पिता और मैं पहले की तरह नहीं मिल पाते पर उसने कभी मुझे कोई कमी नहीं होने दी


मैं- तो फिर क्यों .......................... क्यों तुमने मारा , मेरी माँ उसका क्या दोष था और बाकि घरवाले क्यों ....
.
वो- किसी क कोई दोष नहीं था सिवाय तेरे बाप का सुन मैं बताती हु तुझे की उसका क्या दोष था सब सही चल रहा था पर मेरे पति ने अपनी गन्दी आदतों के लिए रतिया से कुछ कर्जा ले लिया जब मुझे पता चला तो खूब कलेश हुआ क्योंकि वो एक नीच आदमी था मेरा पति कहा से चुकता वो कर्जा हार कर मैंने तुम्हारे पिता से बात की उसने कहा की वो संभाल लेगा उसने मुझे पैसे भी दिए की मैं रतिया को लौटा सकू मैं पैसे देने गयी उस नीच को पर उसने मेरे पति का अंगूठा कोरे कागज़ पर लगवा लिया था


उसने एक बहुत बड़ी रकम मांगी कहा से देती मैं , वो मेरे पिच्छे ही पड़ गया रस्ते में गली में रोक लेता मैं बहुत परेशान थी मैंने तेर बाप को बताई पर वो अपने घर की लड़ाई में बीजी था ऊपर से चुनाव आने वाले थे और फिर एक दिन उस अतिया ने अपनी नीचता दिखाई उसने कहा की वो मेरा सारा कर्जा माफ़ कर देगा अगर मैं उसकी रखैल बन जाऊ, रखैल


सोच सकता है क्या गुजरी होगी मेरे ऊपर जब एक भेड़िया मेरी बोटी बोटी नोचने को तैयार था उस दिन मैं बहुत रोई घर आके मेरे पास बस तुम्हारे बाप का ही सहारा था मैंने उसे अपनी परेशानी बताई जैसा की मैंने कहा उसे मेरी उतनी ही फ़िक्र थी जितना तुझे है उसने रतिया से बात करने का आश्वासन दिया , पर उस नीच इन्सान को कहा किसी की परवाह थी उसे तो मैं एक माल नारज आ रही थी जसे वो अपने निचे लिटाना चाहता था तुम्हारा बाप खुद की परेशानी में ज्यादा उलझा हुआ था इधर रतिया ने मेरा जीना हराम किया हुआ और जब तुम्हरे पिता ने उस से इस बारे में बात की तो वो वो और ज्यादा परेशान करने लगा



मैं कब तक सहती उसने तो अपने भाई जैसे दोस्त का मान भी ना रखा था और तुम्हरे पिता अपनी दोस्ती की वजह से उस पर ज्या दवाब भी नहीं दे पा रहे थे , और इर एक रात वो मेरे घर आया उसी कागज को लेकर उसने मुझसे कहा की अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो चोरी के इल्जाम में मेरे पति को जेल में बंद करवा देगा और उस कागज़ पे मेरे पति का अंगूठा लगा है ये घर बार सब वो छीन लेगा मैं हद से ज्यादा मजबूर थी एक औअत की मज़बूरी की कीमत बहुत होती है

शिकारी शिकार के तैयार था मैंने रतिया से आधे घंटे की मोहलत मांगी और भागके तुम्हारे घर आई तेरे बाप के पास उस दिन टाइम नहीं था उसने कहा की बाद में मिलेगा अरे क्या बाद में दो मिनट नहीं थे उसके पास मेरी बात सुनने को आजतक उसका ही सहारा तो था मुझे उसके सिवा और किस दरवाजे पर जाती मैं मेरी आँखों से आंसू बह निकले हमारा नाता टूट गया उस दिन मैं रोते हुए घर आई पूरी रात उस दरिन्दे ने रौंदा मुझे उस रात मेरी आत्मा तार तार हो गयी


जिस्म लुट जाने से ज्यादा मुझे आघात तेरे बाप ने दिया था अरे इतने बरस का उसका और मेरा साथ रहा एक मिनट मेरी बात सुनने लायक नहीं हुआ वो जिस इन्सान से आपको आ हो और वो ही आस तोड़े तो बहुत बुरा लगता है पर मैंने भी सोच लिया था की अब कभी भी तुम्हारे घर का दरवाजा नहीं देखूंगी चाहे कुछ भी हो रतिया लगातार मेरा शोषण करता रहा मैं लुटती रही मेरी आत्मा लहू लुहान होती रही पल पल मैं कोसती खुद को


जी तो रही थी पर मर मर के और फिर मैंने तुमको देखा जब तुम लादेन को मार रहे थे मैंने उस दिन सोचा की मुझे भी अपना सहारा खुद बनना होगा और मैंने निर्णय लिया की मैं बदला लुंगी रतिया से चाहे कुछ भी करना पड़े याद है तुम्हे उस दिन जब मैं रतिया की दुकान पे थी जब तुम भी वहा आ गए थे थोड़ी देर पहले ही उसने लूटा था मुझे तुम मेरे घर आये मेरी मदद की पर जल्दी ही तुमने भी अपना रंग दिखा दिया आखिर हो भी तो उसी इन्सान के


रतिया का एक्सीडेंट मैंने करवाया पर साला बच गया तुम्हारे बाप की जान था वो उसने पूरा जोर लगा दिया ढूँढने को की किसने किया उस रात वो आया मेरे पास वो बोलता रहा मैं सुनता रहा बहुत गुस्से में था उसने हाथ उठा दिया मुझ पर, मुझ पर जिसने एक पत्नी से बढ़ कर प्यार किया उसको पर शायद यही मेरी औकात थी , मैंने बताया उसको की उसके दोस्त ने क्या किया था मेरे साथ पर जानते वो देव तुम्हारी और तुम्हरे पिता की यही एक कमी थी की वो हमेशा गलत लोगो पर भरोसा कर लेते थे


वो ये मानने को तैयार ही नहीं था की उसका जिगरी इतनी घिनोनी हरकत कर सकता था वो भी जब की उसने खुद उसे मना किया था उसे मेरी आँखों में सच नहीं दिखा उसकी दोस्ती के आगे मेरा रिश्ता कमजोर पड़ गया मैने लाख दुहाई दी पर एक औरत की बात का कोई मोल नहीं होता जब देखो किसी खिलोने की तरह इस्तेमाल किया और फेक दिया , आज भी कुछ ऐसा ही था क्या मेरा रिश्ता इतना कच्चा था , शायद तभी तो उसने मेरी बात नहीं सूनी


तेरे बाप को उस नीच की जान की फ़िक्र थी मेरे आंसुओ की क्या कीमत थी सोच के देख मेरी हालत क्या हुई होगी उस समय वो रात क़यामत की रात थी मेरी आँखों में कुछ था तो प्रतिशोध मैंने कह दिया था की रतिया को मैं मार डालूंगी पर बीच में वो दिवार थी जिसे शायद मेरे पक्ष ममे खड़ा होना था पर चलो ये ही सही मैंने हॉस्पिटल में उसको मारना चाह पर तुम्हरे पिता उसकी ढाल बनके खड़े थे ना चाहते हुए भी उस गाड़ी के ब्रेक मैंने ही फ़ैल किये दिल बहुत रोया था मेरा पर जिस आग में मैं जल रही थी उसमे सबको झुलसना था


जब भी मैं पिस्ता और तुमको देखती मैं तुम लोगो में खुद को और तुम्हारे पिता को देखती तुम मेरी जिंदगी में आ गए थे पर पता नहीं क्यों जब तुम मुझे हाथ लगाते तो लगता की तुमहरा बाप मुझे टच कर रहा है मैंने तुम्हारे घर को बर्बाद कर दिया था जब भी तुम मेरी नजरो के सामने आते मेरा दिल तुम्हे देख के रोता ,तुमने अपनी जमीन मुझे दी तुम्हारा अहसान था पर मेरे अंदर प्रतिशोध की जवाला कह रही थी की मैं सबको ख़तम कर दू क्यंकि तुम् भी उसका ही खून थे तुम्हारी भी चाह मेरे जिस्म की थी तुमने पैसोके जोर पे मेरे जिस्म को पाया था

किस्मत से मैं तुम्हारे मामा से टकरा गयी थी अपने इसी जिस्म का इस्तेमाल किया मैंने उसको पैसो का लालच दिया वो भी तुमसे परेशान था क्योंकि तुमने अपनी हवस में उसकी बीवी को भी लपेट लिया था मैंने उसे एक झूठी रकम का लालच दिया पर ऐन वक़्त पर उसकी अंतरात्मा जाग गयी फिर मैंने जानकारी इकठ्ठा की पहले हमले में तुम बच गए थे तो मैं एक योजना बनवाई तुम्हरी मामी को ब्लैकमेल करके उसके हाथो से ही तुमको मरवाया


तुम गायब हो गए मैं बस अपने आखिरी दुश्मन को मारना चाहती थी पर देखो देव आठ साल लग गए हर टाइम उस कुत्ते के साथ सिक्यूरिटी होती मैंने बहुत प्रयास किये पर उसके आगे मेरी औकात भी छोटी पड़ जाती थी इस बीच तुम्हारा भाई आ गया बड़ा परेशान था वो पर वो भी तुम्हारी तरह जुगाडी था पर उसमे तुम्हारी तरफ हर किसी पे विश्वास करने वाली दिक्कत नहीं थी तुमहरा बाप डायरी लिखता था जिसमे उसने एक तरह से अपनी जिनदगी ही उतार ली थी कंवर को सब समझ आ गया था तो क्या करती उसको भी रस्ते से हटाया वो भी तुम्हारी तरह अपने परिवार को बहुत चाहता था उसे उस डायरी को पढ़ कर तुम्हारे पिता और मेरेसंबंध के बारे में सब पता चल गया थोड़ी मुस्किल हुई पर उस पर भी काबू पा ही लिया मैंने


दुनिया को कभी पता नहीं चला की कहाँ गायब हो गया सब जानते है की वो परदेस वापिस चला गया


मैं- - ताई, उसकी लाश को ढूंढ लिया था मैंने ,आह


दर्द बहुत हो रहा था ऐसा लगता था की जैसे किसी ने काफी सारा बोझ रख दिया था मैंने अपनी शर्ट की कतरनों से खून रोकने की नाकाम कोशिश की थोड़ी ही दूरी पर मंजू पड़ी थी जिन्दा थी या मर गयी कुछ पता नहीं मेरी आँखे बस बंद हो जाना चाहती थी


मैंने एक नजर उस औरत पर देखा जिसे अपने जिंदगी का एक अहम् हिस्सा माना था जो मेरी कुछ लगती थी गीता ताई जिस पर टूट के मुझे भरोसा था


मैं- ताई, भरोसा तोड़ दिया तूने तो ..........

वो- बस यही तेरे मुह से सुनना चाहती थी मैं , मैं चाहती थी की तू इस दर्द से गुजरे तू समझे की कैसा लगता है कब कोई अपना भरोसा तोड़ता है जिस्म का घाव भर जाता है देव पर ये जो ज़ख्म आत्मा पे लगे है इनका क्या अब तू जानेगा की औरत बस खिलौना नहीं है की जब जी आया खेला और ठुकरा दिया

गीता – औरत जब किसी को अपना दिल देती है तो बस जिस्म की प्यास ही सबकुछ नहीं होती मैंने टूट के भरोसा किया था तेरे बाप पर पर वो भी बस निकला तो एक फरेबी , और वो रतिया हर दिन तड़पती थी मैं जब भी उसको देखती थी आठ साल इंतजार किया और फिर मुझ को वो मौका मिला उस दिन वो खेत में अकेला था शराब के नशे में चूर मुझे और क्या चाहिए था तडपा तडपा कर मारा मैंने उसको उस दिन मेरी रूह को सुकून मिला


ये दिल भी अजीब होता है देव बेसह्क मुझे तुझसे नफरत थी पर जो तूने मेरे लिए किया कही मेरे दिल के किसी कोने में तेरे लिए जज्बात भी थे आज भी मैं टूट रही हु अन्दर ही अन्दर घायल है मेरा मन जो वार मैंने तुझ पर किये है वो मुझे लहुलुहान कर गए है पर मैं क्या करू तू तेरे पिता का ही अंश है तेरी रगों में भी उसी का खून दौड़ रहा है इस गंदे खून का बह जाना ही ठीक है देव बह जाना ही ठीक है देव , तूने भी तो औरत को बस एक भोग की चीज़ ही समझा था देव


मैंने उठने की कोशिश की तभी ताई न वो बाल्टी मेरे डर पर दे मारी मैं चीख कर गिरा निचे


“ना देव ना, ”क्या करोगे उठ कर मैं चाहती हु तुम महसूस करो इस दर्द को जैसे मैंने महसूस किया बस फर्क इतना है की मैं इस दर्द के साथ जियी हु तुम कुछ देर में शांत हो जाओगे फ़ना हो जाओगे


ताई का ध्यान मंजू पर गया और मैंने चुपके से अपना फ़ोन पिस्ता को मिलाया तभी ताई मेरी तरफ मुड़ी मैंने फ़ोन छुपा लिया मैं बस इतना चाहता था की वो सुन ले यहाँ जो भी हो रहा था क्योंकि वो ही उम्मीद थी मैंने ताई को बातो में उलझाना चाहां


मैं- ताई तुझे क्या पता था की इस वक़्त मैं यहाँ कुवे पर हु


वो- बहुत भोला है तू, मेरे घर के आगे से ही तो आये थे तुम किस्मत से मैं जाग रही थी बस मौका मिल गया और मैं आ गयी दबे पाँव और तुम्हारी किस्मत ख़राब थी देव जो इस समय तुम यहाँ हो पल पल मर रहे हो हो तुम पल पल
मैं- बहुत गलत किया तुमने ताई


मेरी बात बस अधूरी रह गयी उसका चाकू मेरी पसली को चीर गया था मैं भी जान गया था की अब मैं बचूंगा नहीं पर ऐसे नहीं मर सकता था देव ऐसे नहीं मरना चाहता था मेरी नजर मंजू के पास गयी ताई उस तक पहुच चुकी थी ताई का चाकू मंजू की गर्दन पर था वो चाकू को बेहोश मंजू पर ऐसे घुमा रही थी जैसे की कोई कसी किसी बकरे पर घुमाता है


“नहीं ताई ” नहीं तू मेरी जान ले ले मंजू को जाने दे इसका कोई लेना देना नहीं है इस से जाने दे मैं तेरे पाँव पड़ता हु मंजू को कुछ मत करना जाने दे उसको


वो- तेरी तरह इसकी रगों में भी गन्दाखून दौड़ रहा है ये भी एक गंदगी है आज इसको भी तू लेजा ऊपर अपने साथ वहा दोनों हवस का खेल खेलना


एक पल के लिए ताई की और मेरी आँखे मिली और अगले ही पल उसने मंजू का गला रेत दिया मैंने चीखा पर उस चीख में भी इतना दम नहीं था वो बेचारी तो चीख भी नहीं सकी थी उस से पहले ही उसकी आधी गर्दन कट गयी थी मंजू मैंने पुकारा पर इस पुकार को सुनने वाला कोई नहीं था कोई नहीं


ताई हौले हौले मेरी तरफ बढ़ी फिर बोली- तू ये सोच रहा होगा की एक गरीब गीता ताई ने ये सब कैसे कर दिया मैं जानती हु बस यही तेरा अंतिम सवाल है तो सुन


एक गरीब मजलूम औरत की हसियत कैसे हुई , तेरा बाप वो पता नहीं किस मिटटी का बना था जिसे अपना समझ लेता उसका हो जाया करता था बिलकुल तेरी ही तरह , तेरे ताऊ को उसने एक बड़ी रकम और कुछ सोने के गहने दिए थे अब ये बात मुझसे कैसे छिपि रहती उस इंसान ने मुझे रतिया से बचाने की जरा भी कोशिश नहीं की अरे मेरा तो उस से प्रेम का नाता था पर उसने ये पैसे और गहने देकर एक तमाचा मारा था मेरे प्रेम को मैंने उसी के दिए धन से तुम्हारे खिलाफ साजिश की


बस बहुत हुआ देव बहुत हुआ सवाल जवाब में रात निकल जानी है अब तेरे जाने का वक़्त हुआ ताई ने पास में पड़ी बाल्टी ली उअर मेरे सर पर मारन लगी धाड़ धड मरिया आँखों के आगे अँधेरा छा गया खून आंसुओ में मिलने लगा सर पट गया पर उसके हाथ नहीं रुके मेरे होश खोने लगे आँखे बंद होने लगी जो रवानी मेरी धडकनों में थी वो मंद पड़ने लगी


ताई- तुझे मारके मेरा बदला तो पूरा हो जायेगा पर जी मैं भी नहीं पाऊँगी दिल के किसी कोने में पता नहीं कब तूने कब्ज़ा कर लिया था मैंने बहुत कोशिश की पर देख मैंने हर गयी अपनी नफरत के आगे मैं हार गयी तेरे बिना मैं भी किस काम की और किस काम की ये जिनदगी


अपनी आधी बेहोश आँखों से मैंने देखा की की ताई ने कोई पुडिया सी निगल ली थी और जल्दी ही वो छात्पटाने लगी मुह से झाग निकलने लगा और फिर वो मेरे पास ही गिर गयी जिस्म अकड़ गया कुछ देर तडपी फिर वो शांत पड़ गयी इधर मेरी सांसो की डोर भी बस टूट ही रही थी की मेर कानो में एक आवाज सी आई देव

.......देव


मैंने अपनी आँखे खोलने की कोशिश की पर सिवाय अँधेरे के मुझे कुछ नहीं दिखा बोने की कोशिस की पर कोई लफ्ज़ ना निकला सांस तेज तेज चल रही थी मुह से खून निकल रहा था और फिर ऐसे लगा की किसी में मुझे अपनी गोद में लिया हो ऐसे लग रहा था की बस सब शांत होने वाला है सब जैसे रुक सा गया हो अपनी पूरी ताकत लगा कर मैंने आँखे खोली कुछ घुन्ध्ला से साये मुझे अपनी तरफ दिखे और फिर मेरे कानो में एक धीमी सी आवाज आई – पापा , पापा


ये बस एक आवाज नहीं थी मेरे खून की पुकार थी जो तदप उठा था मेरे लिए ऐसा ही कुछ मैंने पहले भी देखा था जब हॉस्पिटल में मैं और मेरे पिताजी थी कुछ आंसू मेरी आँखों से निकल जिन्हें कोई भी नहीं देख पाया अपनी टूटती सांसो से मैंने धीमे से अपने बेटे को पुकारा और तभी किसी ने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया
“आर्यन मेरे बेटे ”बस होंठो ने इतना ही फुसफुसाया और फिर डोर टूट गयी दिलवाला जी गया था अपनी जिंदगी धड़कन बंद हो गयी रह गयी तो बस कुछ यादे जिनके सहारे बाकि लोगो को अब जीना था शायद यही अंत था या फिर एक नयी शुरू आत थी एक नए आने वाले कल की





समाप्त
Incest bhai apka bohot bohot shukriya is kahani ko yaha post karne ka.apki vajha se fauji bhai ki ek behtreen storie padne ko mili
 
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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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ये मेरे द्वारा लिखी गई कहानी है दोस्त, कम से कम क्रेडिट तो दे देते
Poora credit aap ko hi diya hai foji bhai. Mai ye kahani dubara padh raha hu.
Yaden fir se taza ho gai bhai.👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
 
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Jannat1972

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Bhai bht hi shaandaar aur romanch se bhari story hai
..mane dusri baar padi hai ye story ...fauji bhai ki sabhi story rehesye aur romanch se bhari hoti hai ......bahi bs ek guzarish hai aapse ..apni story guzarish bhi puri kar do ..
 
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Ag Mahan

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एक अलग ही सुकून मिलता है ये पढ़ के
 
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