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Erotica Dilwale - Written by FTK aka HalfbludPrince (Completed)

Incest

Supreme
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घर आके मैंने सबको पूरा वाकया सुनाया सब को एक बार तो यकीन ही नहीं हुआ की ऐसे किस्मत से खजाना मिल सकता है पर मेरे देश में ना जाने ऐसे कितने खजाने दबे पड़े है सदियों से ,सब लोग अपने अपने ख्यालो में डूब से गए थे कहानी थोड़ी फ़िल्मी टाइप हो चली थी पर सच तो ये ही था की उनको खजाना मिला था या फिर उन्होंने माता के खजाने को चुराया था खैर मैंने अगले दिन उस मंदिर को देखने का निर्णय लिया थोड़ी उत्सुकता सी हो चली थी साथ ही वो चबूतरा भी फिर से बनवाना था


बस इंतज़ार था उस रात के बीतने का जब हम उस जगह को देखंगे जहा पर खजाना था पिताजी के व्यक्तित्व का एक अलग ही पहलु देखने को मिला था आज पर वो लालची नहीं थ अगर लालच होता तो अपनों में बंटवारा नहीं करते उस सोने का , पर फिर उस सोने से नफरत सी होने लगी क्योंकि उसकी वजह से आज मेरा परिवार मेरे साथ नहीं था क्या होता जो हमारे पास इतना धन नहीं होता कम से कम माँ की गोद तो होती जब प्यार से वो मेरे सर को चूमती तो मेरी हर परेशानी पल में दूर हो जाती , मेरे सर पर मेरे पिता के प्यार की छत होती जब कभी मैं कमजोर पड़ता तो वो मुझे हौंसला देते
अगले दिन कुछ मजदूरो को लेके हम लोग चल पड़े पहुचे वहा पर उनको चबूतरा बाकायदा इज्जत के साथ बनाने को कहा आखिर मेरा भाई सो रहा था वहा पर मन थोडा भावुक था पर अब कुछ चीजों पर कहा किसका जोर चलता है , उसके बाद हम आगे तो चल पड़े नीनू को ही पता था रस्ते का घनी झाड़ियो पेड़ो से होते हुए करीब दो कोस बाद हम उस मंदिर तक पहुचे पहली नजर में ही पता चलता था की वो शायद अपने अंतिम समय में है मैंने माता को प्रणाम किया बस एक कमरा सा ही था


कमरा क्या एक कोटडा सा था तो मैंने ये अनुमान लगाया की शायद ये खजाना किसी ज़माने में लूटा गया होगा
और फिर यहाँ छुपाया गया होगा लूटने वाले लोग किसी कारण से यहाँ से ना निकाल पाए और ये धरती में दबा रह गया मंदिर को खूब देखा बस साधारण ही था सब वहा पर उसके बाद जैसे रतिया काका ने बताया था पास मेही वो कुआ भी मिल गया हमे अब उसमे मिटटी ही थी बस



मैं- देखो यहाँ था वो सब सोना



उसके बाद हमने आस पास खुदाई की छान बीन की कुछ नहीं मिला सिवाय कुछ सोने के टुकडो के जो शायद निकालते समय इधर ही रह गया होगा कुछ भी हो पर थोडा रोमांच हो रहा था उसके बाद हम लोग वापिस आ गए मैंने मजदूरो से पुछा तो पता चला की दो दिन तो लग ही जायेंगे उसके बाद उनको वही छोड़ के हम वापिस हुए



पिस्ता को शहर जाना था किसी काम से तो वो चली गयी नीनू और माधुरी घर रह गयी मुझे आज ममता से मिलना था उसने कहा था की दोपहर को वो खेत पर मिलेगी तो मैं वहा चल दिया दोपहर का समय था खेतो में दूर तक कोई नहीं दिख रहा था करीब आधे घंटे बाद मैं रतिया काका के खेतो की तरफ पहुच गया ये खेत हमारी तरफ ना होकर गाँव की परली तरफ थे ममता मुझे कुवे पर ही मिल गयी उसने मुझे इशारा किया तो मैं उसके पीछे कमरे में पहुच गया




मैं- यहाँ क्यों बुलाया



वो- बैठिये तो सही जेठ जी



मैं बैठ गया



ममता- जेठ जी मुझे ना बात घुमा फिरा के कहने की आदत नहीं है मैं जान गयी हु की आपके और आपके परिवार के साथ क्या हुआ और आपको आपके गुनेह्गारो की तलास्श है और इस काम में मैं आपकी मदद कर सकती हु



मैं- और इसमें तुम्हारा क्या फायदा है



वो- अब कुछ तो मेरा भी भला होगा ही



मैं- मुद्दे की बात करो



मेरा ऐसे कहते ही ममता मेरे पास आके बैठ गयी और बोली- जेठजी अब आपके किस्से तो पुरे गाँव में मशहूर है और आपको तो पता ही होगा की मेरे पति और ननद का रिश्ता भाई बहन से बढ़ कर कुछ और ही है



ओह तो इसको राहुल और मंजू के बारे में पता था ,



ममता- जेठजी, कुछ दिन पहले मैंने उन दोनों को हमबिस्तर देखा जाहिर है खून तो मेरा बहुत खौला मेरा पति अपनी ही बहन के साथ वो सब कर रहा था जो उसे मेरे साथ करना चाहिए था उसके बाद वो आपकी बाती करने लगे मंजू कह रही थी की वो आपसे सेक्स करेगी क्योंकि उसको आपके साथ बहुत मजा आता है और उसने राहुल को बताया की ..........की



मैं- की क्या



वो- की आपका हथियार भी बहुत लम्बा और मोटा है



मैं- ममता देखो तुम्हे ऐसा नहीं बोलना चाहिए तुम्हारा और मेरा नाता ऐसा नहीं है



वो- जेठ जी, आप के मुह से ऐसी बाते सुनके लगता है कोई आतंकवादी शांति की बात करने लगा हो



रिस्ते नातो की बात आप मत करो , और फिर आपका भी तो फायदा होगा आपको एक और जिस्म चखने को मिलेगा जेठ जी मैं सच में आपके बहुत काम आ सकती हु



मैं- देखो ममता जब तुम इतना खुल ही रही हो तो मैं आपको बता दू की चूत और दारू मैं अपनी मर्ज़ी से यूज़ करता हु वैसे मुझे तुम्हारा बिंदास अंदाज पसंद आया पर पहले तुम मुझे बताओ की तुम्हे इस मामले में क्या पता है



ममता- जेठ जी, मैं आपको सलाह दूंगी की ये जो आपके अपने बने फिरते हैं ना इनसे थोडा दूर रहना ये कब छुरा मार देंगे पता नहीं चलेगा



मैं- तुम्हे ऐसा क्यों लगता है



वो- आपको कुछ बातो का पता नहीं है जेठ जी, मेरे ससुर बहुत ही तेज खोपड़ी है जितना उन्होंने शराफत का नकाब ओढ़ रखा है अन्दर से वो उतने ही नीच है , गाँव की कई औरतो से उनके तालुकात है अब सोचो जो इंसान बुढ़ापे में भी अपनी बहु और बेटी को रगड़ सकता है तो वो जवानी में कैसा रहा होगा



मैं- तो क्या तुम्हे भी



वो- हां जेठ जी , ब्याह के कुछ दिनों बाद ही उसने मेरे साथ, खैर अब तो आदत सी हो गयी है , मैं जानती हु उन्होंने आपको खजाने की बात बता दी है पर इसलिए नहीं की क्योंकि आधा हिस्सा आपके पिता का था बल्कि इसलिए की आपके जरिये वो उस खोये हुए आधे हिस्से को पाना चाहते है



मैं- तुम्हे खजाने की बात की पता और साथ ही ये की उन्होंने वो बात मुझे बता दी है



वो- कल रात मैं दूध लेके उनके कमरे में गयी थी वो फ़ोन पर किसी को बता रह थे तो मेरे कानो में पड़ी मुझे देख कर वो चुप हो गए पर मैंने दरवाजे पर कान लगा दिए ऐसा लग रहा था की वो किसी बहुत ही खास इंसान से बात कर रहे थे पर वो जो भी था ससुर जी का खास था



मैं- वो खास कौन है क्या तुम पता कर सकोगी



वो- मैं पूरी कोशिश करुँगी



मैं- ममता, बात खाली ये नहीं है की जिस तरह से तुम मेरी मदद करना चाहती हो बात ये भी नहीं है की तुम अपना जिस्म परोसना चाहती हो बात ये है की ये कोई ट्रैप भी तो हो सकता है कोई साजिश क्योंकि एक बार पहले भी मुझे एक हुस्न्वाली ने मारने की कोशिस की थी हो सकता है की जो बात तुमने मुझे बताई हो वो सच हो , और काका एक रंगीन आदमी है ये भी मुझे पता चल चूका है




ममता- जेठ जी मैं जानती हु की आप ऐसे ही मेरा विश्वास नहीं कर लोगे आप पर जो हमला हुआ वो ससुर जी ने ही करवाया था और एक खास बात आपके चाचा और मेरे ससुर मिले हुए है वो काफी समय से खजाने को ढूंढ रहे है



मैं- तो क्या हुआ हमारे घरलू सम्बन्ध है दोनों व्यापारी है साथ है तो क्या गुनाह हुआ



ममता- तो फिर जाके अपनी भाभी से पूछो की क्यों चाचा ने उसको दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका क्यों उस औरत का साथ छोड़ दिया जिसके लिए पुरे परिवार से नाराजगी हो गयी थी आखिर ऐसा क्यों हुआ की बिमला और वो अलग हो गए

मैं- चाचा ने बताया था की बिमला ने विधायक का साथ कर लिया था वो उस बात से खुश नहीं थे तो इसलिए वो अलग हो गए

ममता- जेठ, जी ज़माने को देखे तो आप बहुत भोले रह गए आप आज भी पिछले ज़माने में जी रहे है कभी बिमला से पूछ लेना शायद वो बता दे आपको

मैं- मेरा उस से कोई लेना देना नहीं है

वो- चलो मैं बताती हु की मेरे ससुर और चाचा की घनिष्टता बढ़ने लगी थी दोनों साथ रंडीबाजी करते कुछ और उलटे सीधे काम करते और फिर एक दिन ससुर जी ने बिमला को भोगने की अपनी मंशा चाचा को बताई, पर चाचा ने बदले में मेरी सास मांगी तो बात तय हो गयी पर बिमला को जब पता चला तो वो काफी आग बबूला हुई और उसका और चाचा का झगडा हो गया उसके कुछ दिनों के बाद कंवर सिंह बड़े जेठ जी आ गए तो उनको अब पता चल गया तह इधर बिमला और चाचा का उनसे काफी झगडा हुआ उस बात को लेके और फिर वो यहाँ से चले गए


चाचा चाहता था की बिमला मेरे ससुर से सम्बन्ध बनाये पर बिमला को वो बात चुभ गयी थी इसलिए वो दोनों अलग हो गए और तबसे अलग ही है

मैंने एक गहरी साँस ली थी साला हरामखोर चाचा जी तो चाह रहा था की उसकी गांड पे लात दू

मैं- ममता एक बात कहू

वो- क्या

मैं- हरिया काका की मौत के बारे में क्या जानती हो

वो- कुछ नहीं , हमारा उनसे कुछ लेना देना नहीं ससुर जी का गीता से पंगा है किसी बात को लेकर तो आना जाना है है बस इतना पता है की गीता ने बिमला पर उसकी मौत का इल्जाम लगाया था

मैं- वैसे पंगा क्या है

वो- पता नहीं पर शायद कोई उसी समय की बात है जब ये सब शुरू हुआ था मतलब आपके परिवार की मुसीबते
ये कहकर वो खड़ी हुई और बाहर दरवाजे की तरफ चली मेरी नजर उसकी मध्यम साइज़ की गांड पर अटक गयी वो दरवाजे पर इस तरह से खड़ी थी की मेरी नजर उसकी गांड पर पड़े ही पड़े ममता कोई पच्चीस की पटाखा औरत थी उसकी पतली कमर रूप रंग भी मस्त था मैं खड़ा हुआ और उसको पीछे से अपनी बाहों में जकड लिया उसने बिलकुल भी प्रतिकार नहीं किया करती भी कैसे वो तो खुद चुदना चाहती थी मैंने आने हाथो को उसकी छाती पर ले आया उर उसकी गोल मटोल चूचियो को दबाने लगा


“आह!जेठ जी धीरे ओह जेठ जी ”

“धीरे नहीं ममता , अब तो जोर आजमाइश होगी पर मेरी भी शर्त है ”

“क्या जेठजी ”

“तुझे दिखाना होगा की की तू कितनी गरम है जितना तेरी बातो में नखरा है उतना नखरा तेरे जिस्म में भी है ”
मैंने उसके ब्लाउज को खोलना चालू किया वो अपनी गांड को मेरे लंड पर रगड़ने लगी उसके बदन से आती भीनी भीनी खुशबु मुझे उत्तेजित करने लगी और अगले ही पल उसका ब्लाउज उतर गया था मैंने ब्रा भी उतार दिया उसकी नंगी पीठ पर चूमा मैंने

“आह ”वो सिसक उठी उसका हाथ मेरी पेंट के ऊपर से ही मेरे लंड पर पहुच गया वो सहलाने लगी मैंने उसकी पीठ और नंगे कंधो को चूमने लगा कुछ देर उसके उभारो से खेलता रहा वो मेरी बाँहों में पिघलने लगी थी और फिर अब मैंने उसको अणि तरफ घुमाया और उसके होंठो को अपने मुह में भर लिया हमारे होंठ आपस में टकराए मुझे ऐसा लगा की जैसे गुलाब की पंखुड़िया चख रहा हु मैं ममता ने अपनी आँखे बंद कर ली और अपनी जीभ को मेरे मुह में डाल दिया मी हाथ उसकी गांड तक पहुच चुके थे

करीब दस मिनट तक बस हम एक दुसरे को चूमते रहे फिर ममता ने मेरी पेंट खोली और मेरे लंड को बाहर निकाल लिया और जैसे ही वो उसकी आँखों के सामने आया बोली- सच कहती थी दीदी,

अगले ही पल वो अपने घुटनों पे बैठ गयी और बिना कुछ सोचे समझे मेरे लंड को अपने मुह में भर लिया उसकी गीली जीभ जैसे ही मेरे सुपाडे से टकराई बदन में चिनगारिया सी उडी उसकी और मेरी नजर एक बार मिली और फिर वो तेजी से उसे चुसने लगी उसके मुह का थूक उसकी चूचियो पर गिरने लगा मस्ती में चूर ममता पुरे उन्माद से भरी मेरे लंड को चूस रही थी उसके सुपाडे को चूम रही थी कुछ देर में उसने मेरे लंड को अपने मुह से निकाल दिया


उसने अपनी साडी और पेटीकोट उतार दिया गुलाबी कच्छी ही शेष थी उसके बदन पर जो उसकी उन्नत योनी का भार संभाल नहीं पा रही थी मैंने भी अपने कपडे उतार दिये और ममता जो अपनी गोदी में बिठा लिया और एक बार फिर से उसकी चूचियो से खेलने लगा वो अपनी गांड को मेरे लंड पर रगड़ने लगी वो अपने चहरे को मेरे चेहरे पर पटकने लगी और फिर उसने अपनी गांड को थोडा सा ऊपर किया और अपनी कच्छी को उतार दिया मेरा लंड उसकी गांड की दरार में फंस गया वो आहे भरने लगी

“क्यों तडपा रहे हो जेठ जी रौंद क्यों नहीं देते मुझे , बादल बन कर मुझ धरती पर बरस क्यों नहीं जाते ”

मैं- अभी तो खेल शुरू भी नहीं हुआ तुम तड़पने लगी

वो खड़ी हुई मैंने देखा उसकी चूत बुरी तरह से गीली हो गयी थी यहाँ तक की जन्घो का कुछ हिस्सा भी उसके रस से सन गया था मैंने उसे खाट पर लिटाया औरउसके ऊपर लेट गया उसके बदन को चूमने लगा मेरा लंड उसकी चूत को छूने लगा ममता मेरी बाहों में तड़प रही थी उसकी तेज साँसे बता रही थी की उसका हाल क्या है बारी से मैं उसकी चूचियो को चूसने लगा वो आहे भरते हुए तड़पने लगी थी

“जेठ जी, क्या कर रहे हो ये मुझे क्या हो रहा है ahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh ओह जेठ जी आउच ”


मैंने उसके बोबो को निचोड़ना चालू किया वो जल बिन मछली की तरह तदपने लगी अपने पैरो को पटकने लगी और अबकी बार मैंने जैसे ही ममता की चूची को मुह में लिया वो झड़ने लगी उसका बदन अकाद गया और आह भरते हुए उसकी चूत से कामरस टपकने लगा , और जैसे ही वो झड़ी मैंने उसकी टांगो को फैला दिया और उसके कामरस को अपनी जीभ से चाटने लगा ममता झर झर झड़ने लगी उसकी टाँगे ऊपर को उठने लगी

मैंने ऊसका पूरा कामरस चाट लिया वो दो पल को शांत हुई और मैंने उसकी चूत को अपने मुह में भर लिया किसी गोलगप्पे की तरह बिना बालो की उसकी हलकी फूली हुई चूत फिर से गरम होने लगी और दो मिनट में ही वो फिर से गर्म आहे भरने लगी


“जेठ ही बस भी कीजिये क्या ऐसे ही मार डालने का इरादा है ऊफ्फ्फ आह काटो मत प्लीज ”

“ऐसे ही नहीं मरूँगा ममता रानी, अभी तो मजा बाकी है ”

ममता की टाँगे विपरीत दिशाओ में फैइ हुई थी वो अपने हाथो से मेरे मुह को अपने योनी द्वार पर दबा रही थी उसकी चूत का गीलापन फिर से बढ़ने लगा था उत्तेजना का सागर अपनी लहरों पर उसको सवार करके घुमाने लगा था कभी वो अपने पैर पटके कभी अपने बाल नोचे तो कभी अपनी गांड उठा के पूरी चूत मेरे मुह में धकेले मस्ती में चूर वो अपने जेठ को अपनी चूत का रसपान करवा रही थी

पांच सात मिनट और बीते उसका पूरा शरीर पसीने से सं चूका था पर मैं उसकी योनी को चुसे ही जा रहा था फलसवरूप वो एक बार और झड गयी थी बिना चोदे ही मैंने उसको दो बाद ढीली कर दिया था

अब मैंने तकिये को उसकी गांड के निचे रख दिया और उसकी टांगो को अपनी टांगो पर चढ़ाया ममता ममता ने अपनी आँखों को हल्का सा खोला मैंने अपने लंड को उसकी चूत की दरार पर रगडा

“जेठ जी क्यों तडपा रहे हो बर्दाश्त करनी की भी हद होती है मुझे अपना बना क्यों नहीं लेते आप ”

उसके ऐसा कहते ही मैंने जोर लगाया और अपना लंड चूत में डालने लगा और ममता का बदन अकड़ने लगा

“आह!सच में बहुत मोटा है आराम से ”

मैं- बस एक मिनट की बात है फिर तुम ही चाहोगी की मैं इसको अन्दर ही रखु

अगले कुछ धक्को के बाद मैंने अपना पूरा लंड उसकी चूत में पंहुचा दिया और हलके हलके धक्के लगाने लगा ममता ने मेरी पीठ पर अपनी बाहे कस दी

“आह, आह उफफ्फ्फ्फ़ आई सीईईइ ”

उसके होंठो से गर्म आहे निकलने लगी ममता के पसीने की मादक गंध मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी जिस से मैं अब तेज तेज धक्के लगाने लगा था वो मेरी बाहों में पिघल रही थी

मैं- थोडा दम दिखा रानी बड़ा उछल रही थी अब जेठ को ठंडा नहीं करोगी

वो- क्या दम दिखाऊ दो बार तो पहले ही निचोड़ दी

मैं- मेरी रानी, तेरी चूत आज ऐसे मरूँगा की रात को बिस्तर पर करवातो में ही रात गुजरेगी

वो- चोद डालो, जेठ जी मुझे इस तरह रौंद डालो की इस निगोड़ी की सारी खाज मिट जाये अपनी बाहों में पीस डालो मुझे आह शाबाश और तेज और तेज तेज करो चोदो मुझे

मैंने ममता को चूमना चालू कर दिया होंठो से होंठ जुड़ गए थे उसके बाकि के शब्द मुह में ही घुल गए जल्दी ही वो अपनी गांड उठा उठा के मेरी ताल से ताल मिलाने लगी उसके सच में ही काफी स्टैमिना था कामुकता की चाशनी में डूबा हुआ उसका हुस्न मेरे आगोश में पल पल वो पिस रही थी उसकी छतिया किसी धोंकनी की तरह ऊपर निचे हो रही थी पर मेरी रफ़्तार बढती जा रही थी सांसे मुह में ही घुल गयी थी जीभ आपस में तलवार की तरह टकरा रही थी

मेरा लंड उसकी चूत के गाढे पानी से सना हुआ था चिकना हुआ द्रुत गति से दौड़ते हुए उसकी चूत के छल्ले को चौड़ा किये हुए था ममता का बदन अकड़ने लगा था वो मुझे कसने लगी अपनी बाहों ने सांसे फूल गयी थी उसका जिस्म ऐंठ और फिर एक बार से वो झड़ने लगी थी अब हुई वो पस्त और खाट पर किसी बेजान लाश की तरह पड़ गयी मैंने धक्के रोक दिए , कुछ देर बाद उसने अपनी सांसो को संयंत किया और मैंने उसे घोड़ी बना दी उसने मेरी और देखा पर मेरा हुआ नहीं था तो मैं क्या करता


उसने अपने अगले हिस्से को पूरी तरह से झुका दिया और पिछले हिस्से को ऊपर उठा लिया मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और अपने लंड को चूत से भिड़ा चूत पूरी तरह से लाल हो रखी थी एक जोर का शॉट लगाया और फिर से उसको चोदने लगा ममता की हालात बुरी हुई पड़ी थी बस वो हाय हाय कर रही थी धीरे धीरे वो भी गरम होने लगी चूत का गीला पण बढ़ते ही मेरा हथियार और खूंखार होने लगा अपना पूरा जोर लगते हुए मैं उसकी चूत मार रहा था


“आह!जेठ जी सुसु आ रहा है बहुत तेज ”

“यही कर दो ”

“दो पल छोड़ो मुझे आः मैं रोक नहीं पाऊँगी ”

मैंने जैसे ही उसको ढील दी वो खाट से निचे उतरी और मूतने बैठ गयी सुर्र्र्रर सुर्र्र करके उसकी चूत से पेशाब की धर धरती पर गिरने लगी जैसे ही उसका मूत बंद हुआ मैंने उसको बिस्तर भी खीच लिया और फिर से हमारी चुदाई शुरू हो गयी ममता की सुध बुध खो चुकी थी बस वो मेरे धक्को को झेल रही थी करीब दस मिनट और मैंने उसकी ली फिर मैंने उसकी चूत में अपना गरमा गर्म वीर्य छोड़ दिया

एक के बाद एक वीर्य की पिचकारिया निकल कर उसकी चूत में गिरती रही और साथ ही वो भी झड़ गयी आज से पहले मेरा इतना पानी कभी नहीं निकला था ऐसा लग रहा था की जैसे किसी ने मेरी सारी शक्ति निचोड़ ली हो मैं उसकी बगल में ही पड़ गया
थोड़ी देर हम लोग लेटे रहे फिर ममता लड़खड़ाते कदमो से उठी और अपने कपड़ो को पहनने लगी

मैं- क्या हुआ और नहीं करना

वो- मुझसे गलती हो गयी जेठ जी मुझे माफ़ कीजिये

मैं- क्या हुआ मजा नहीं आया क्या

वो- मजा तो आया पर आपने तो मुझे निचोड़ दिया सर घूम रहा है पता नहीं घर तक पहुच भी पाऊँगी या नही
मैंने भी अपने कपडे पहने उसके बाद मैंने उस से वादा लिया की वो मेरा पूरा साथ देगी और कुछ भी पता चलते ही मुझे बताएगी उसने वादा किया की मैं उसको ऐसे ही पेलूँगा तो वो मेरी बन के रहेगी उसके बाद हमने अपना अपना रास्ता ले लिया

अब समस्या ये थी की हर एक के तार दुसरे से जुड़े थे और सारे ही ही मेरे अपने होने का दम भर रहे थे एक तरफ चाचा और बिमला थे जिन्होंने सब रिश्ते नाते ताक पर रख दिए थे अपने चोदुप्न के कारण, दूसरी तरफ प्यारी मामी थी जिसने चूत देके मेरी गांड मार ली थी मार ही डाला था मुझे और तीसरी तरफ रतिया काका था ममता के अनुसार उसने हमला करवाया था और लोचा भी उसका ही था अब साला जाये तो कहा जाये दिमाग में कुछ नहीं आ रहा था


दुनिया के केस सुलझाये थे पर खुद की गांड में पड़ा बम्बू नहीं निकल रहा था सब दरवाजे पीट लिए पर कुछ हासिल ना हो रहा था जी कर रहा था की उसी दिन मर जाते तो ठीक रहता ना हम रहते न ये सवाल होता ऊपर से ममता ने बुरी तरह थका दिया था तो मैं जाते ही सो गया फिर जब आँख खुली तो चारो तरफ अँधेरा था शायद बिजली चली गयी थी मैं उठ के अन्दर गया मोमबत्ती जलाई भूख सी लग आई थी अब इस समय किसी को जगाना ठीक नहीं था तो रसोई में गया कुछ खाया पिया नींद अब आनी थी नहीं मैंने देखा नीनू बैठक ने सोयी हुई है मैं उसके पास ही लेट गया

उस से चिपक गया उसको अपने से लगा लिया वो कसमसाई और मेरी बाहों में ढीली हो गयी मैंने एक हाथ उसकी कमर पर लपेट लिया

नीनू- सोने दो ना क्यों तंग करते हो

मैं- मैं कब जगा रहा हु अब क्या तुम्हे थोडा सा प्यार भी नहीं कर सकता मैं

वो- टाइम तो देखो

मैं- प्यार करने वाले टाइम नहीं देखते

वो- सोने दो ना बहुत नींद आ रही है

मैं- ठीक है , पर मैं इधर ही सो रहा हु

वो हां, वो मुझसे चिपक गयी और हम सो गए

सुबह जरा देर से आँखे खुली बदन जैसे टूट सा रहा था मैंने फ़ोन देखा तो मंजू की कई मिस काल आई हुई थी मैंने फ़ोन मिलाया डॉट इन घंटी के बाद उसने फ़ोन उठाया

मंजू-कब से फ़ोन कर रही हु तू है कहा

मैं- अभी उठा हु बस

वो- देव, मिलना है तुझसे

मैं- घर आजा

वो- नही उधर नहीं बात कुछ अर्जेंट है

मैं- ठीक है तू हमारे कुवे पर आजा मैं आधे घंटे में वहा मिलता हु

मैं करीब आधे घंटे में वहा पंहुचा तो मंजू वही बैठी थी

मैं- क्यों बुलाया

वो- देव, तूने सच कहा था तेरे साथ हुए हादसे में मेरे परिवार का कुछ तो लेना देना है

मैं- तुझे कैसे पता

वो- देव,मेरे बापू कल भाभी को चोद रहे थे मैंने देख लिया वो आपस में कुछ बात कर रहे थे तुम्हारे बारे में

मैं- क्या बात कर रहे थे

वो- देव, बात खजाने को लेकर थी

खजाना , तो जान का जंजाल बन गया था

मैं-बता जरा

वो- बापू भाभी से बोल रहे थे की उनको पूरा विश्वास है की देव बाकि का सोना ढूंढ ही लेगा तो भाभी बोली हां पर अगर वो ढूंढ लेगा तो हमे क्या मिलेगा फिर बापू बोला एक बार सोना मिलने तो दे उसके बाद देखेंगे उस सोने के लिए बड़े पापड़ बेले है

मैं- आगे

वो- बस इतना ही सुना

मैं- मंजू, अगर तेरे बापू ने गद्दारी की होगी तो तू किसका साथ देगी

वो- देव, मैं तेरा साथ दूंगी क्योंकि जब अपने ही दुश्मन हो जाये तो आदमी क्या कर सकता है देव तेरा मेरा बचपन से साथ रहा है मेरे बापू ने जो कलंक लगाया है उसे धोने के लिए मैं कुछ भी करुँगी

मैं- मुझे तेरा विश्वास है मंजू पर ये बात बता तूने अपने बापू से भी गांड मरवा ली

वो- देव, तुझे किसने

मैं- बस पता चला गया

वो- देव, एक दिन बापू ने मुझे और भाई को करते हुए पकड़ लिया था अब मैं क्या करती मज़बूरी हो गयी थी मेरी

मैं- जाने दे , तू मेरी बात सुन तू तेरे बापू से जाके चुदा और उस टाइम उस से इस बारे में पूछना और ये बोलना की देव को बाकि का खजाना मिल गया है मैंने तुझे बताया है

वो- समझ गयी आज ही तेरा ये काम कर दूंगी

उसके बाद मैंने उसे एक काम और करने को कहा फिर हमने अपना रास्ता पकड़ा अब कहानी ये थी की रतिया काका को चाह थी उस बाकि हिस्से की जो ना जाने कहा था और ममता को वो शायद ये कहना चाह रहे थे की सोना मिलने के बाद देव को रस्ते से हटा देंगे घर आके मैंने एक मैप बनाया ज्सिमे सबको लिखा, चाचा, बिमला, रतियाकाका, मामी, चारो ही मेरे लिए बहुत खास थे मेरे अपने थे पर चारो ही शक के घेरे में थे अब इनमे से तीन एक साथ थे और बिमला अलग थी सोना दो लोगो को मिला था


पिताजी के मन में कोई लालच नहीं था उन्होंने सबको हिस्सा दिया था चाहे वो नगद हो या सोना अगर ऐसा था तो उन्होंने मेरे लिए भी मेरा हिस्सा छोड़ा होगा ये बात पक्की थी क्योंकि जब वो उन नालायको पर दया कर सकते थे तो मैं तो उनका बेटा था इसका मतलब उन्होंने चाची को भी दिया होगा हां, पक्का पर आज चाची जिंदा थी नहीं तो कैसे मालूमात करू

मैंने अतीत के पन्ने खंगालने शुरू किये और मेरे दिमाग में एक बात आई चाची ने उन दिनों एक नया बैंक अकाउंट खुलवाया था तो शायद उन्होंने अपना सोना बैंक मे रखा हो मुझे याद था उन्होंने उस अकाउंट के बारे में चाचा को बताने से मना किया है मैंने तलाश किया तो उस अकाउंट की डिटेल्स मिल गयी मैंने पिस्ता को साथ लिया और बैंक पंहुचा

मेनेजर को अपनी और चाची की डिटेल्स बताई और आनी का मकसद भी अब वारिस तो मैं ही था तो करीब घंटे भर की कागजी कार्यवाई के बाद चाची के खाते में जितना भी कैश था वो और उनके लाकर की चाबी मेरे हाथ में थी जैसे ही मैंने लाकर खोला मेरी आँखे फट गयी वो पूरा सोने के गहनों से भरा था वो ही गहने जो और लोगो के पास थे पिस्ता ने वो सब बैग में भर लिया करीब पांच किलो क आस पास वजन था वो
आके हम गाड़ी में बैठे

पिस्ता- देव, एक बात तो है पिताजी ने तुम्हारे लिए भी कुछ तो छोड़ा है

मैं- हां, पर कहा वो नहीं पता

वो- शायद उन्हें पता हो की तुम उस तक पहुच जाओगे

मैं- काश वो साथ होते

वो- वो हमेशा तुम्हारे साथ है वो अपने आशीर्वाद के रूप में हमारी मदद कर रहे है देव जल्दी ही हम इस उलझन को सुलझा के तुम्हारे गुनेहगार को पकड लेंगे

मेरे दिमाग को इन नए समीकरणों ने उलझा दिया था किसी पर भी भरोसा करना मेरे लिए वापिस मौत के दरवाजे खोल सकता था मैंने एक चाल तो चली थी पर देखो उसका क्या असर होना था मंजू पर मुझे भरोसा था क्योंकि मैं जानता था वो मेरी मदद करेगी बिमला की बाकि सब से पट रही थी नहीं तो क्या दुश्मन का दुश्मन दोस्त हो सकता है क्या वो मेरी मदद कर सकती है जबकि गुजरे ज़माने में उसने मुझे बर्बाद करने की ठान ली थी असल में देखा जाये तो इस सब के लिए मैं ही जिम्मेदार था अगर मैं अपनी हवस में अपनी भाभी को फंसाता तो क्या पता आज मेरे सब अपने मेरे साथ होते

आखिर कुछ सोच कर मैंने गाड़ी बिमला की कोठी की तरफ मोड़ दी , पिस्ता- देव हम यहाँ क्यों आये है

मैं- मुझे लगता है बिमला को बता देना चाहिए कंवर के बारे में

पिस्ता-देव, वो टूट जाएगी

मैं- जो औरत अपनी जिद में सबको खा गयी उसको अब क्या फरक पड़ना है

पिस्ता- देव,मेरी बात मानो, कुछ बातो को छुपा लेना ही बेहतर है तुम समझ रहे हो ना
मैं- ठीक है पिस्ता पर कुछ और बाते तो कर सकते है है
वो- हाँ
हम लोग अन्दर गए कुछ इंतजार के बाद बिमला आई , हमारी बात शुरू हुई

मैं- देखो मैं उम्मीद करता हु की तुम सब सच बताओगी

वो- क्या जानना चाहते हो तुम

मैं- सोने के बारे में किस किस को पता है

वो- सबको जिन को होना चाहिये

मैं- मतलब

वो- मुझे , तुम्हे, तुम्हारे चाचा और रतिया काका को

मैं- तो तुम्हारा क्या पंगा है रतिया काका से और चाचा से

वो- चाचा ने साथ कर लिया था रतिया का दोनों कुछ खुराफात कर रहे थे मैंने कई बार कहा भी था की वो उस से दूर रही पर एक दिन चाह्चा ने मुझे कहा की मुझे सोना होगा रतिया के साथ तो मेरा दिमाग घूम गया उस दिन हमारा कलेश हुआ कुछ दिन बाद हम अलग हो गए रतिया ने जो फर्म बनायीं है वो हमारी जमीन है आज के हिसाब से उसकी करोडो में कीमत है वो कहता है की चाचा जी ने उसको वो जमीन दी है पर मैं नहीं मानती

मैं-ऐसा क्यों

वो- क्योंकि वो जमीन अपनी पुश्तैनी नहीं है जब घर का बंटवारा हुआ उसके बाद चाचाजी ने वो जमीन तुम्हारे लिए खरीदी थी

ये साला एक और बम फूट गया था

मैं- एक बात तो सा है ये सारा खेल खजाने के लिए हुआ है और इसके पीछे जो भी है मैं उसको माफ़ नहीं करूँगा

वो- मैं खुद इतने दिन से इसी काम में जुटी हु पर जो भी है वो बहुत शातिर है कोई सबूत नहीं कुछ सुराग नहीं मिल पाया है

मैं- गीता ताई से तुम्हारा क्या झगडा है

वो- जाने दो देव, तुम इस मामले में नहीं पडो कुछ बाते दबी ही रहे तो ठीक रहता है

मैं- बताओ ना

वो कहा न नहीं

मैं- उसने बताया की तुमने उसके पति को मरवाया

वो- पागल है साली, मैंने उसे कितनी बार कहा की रतिया का काम है पर वो साली मानती ही नहीं खामखा दुश्मनी पाल राखी है उसने

मैं- पर रतिया काका ने उसको क्यों मरवाया

वो- वो तो मुझे नहीं पता बस उडती उडती खबर आई थी और वैसे भी गीता और रतिया के सम्बन्ध ठीक नहीं है सबको पता है

मैं- तुम मुझे पूरी बात क्यों नहीं बताती हो

वो-क्योंकि सच बहुत कडवा है देव और मैं नहीं चाहती की तुम टूट कर बिखरो

“ये दुनिया वैसे नहीं होती जैसा हम समझते है यहाँ पर कोई किसी का अपना नहीं होता सब रिश्ते नाते मोह माया है सब आँखों का फरेब है यहाँ कोई किसी का सगा नहीं कोई किसी का पराया नहीं अगर कुछ सच है तो ये भूख, जिस्मो की भूख लालच की भूख इसके आलावा कुछ नहीं , मैं जानती हु की तुम सच को आज नै तो कल तलाश कर ही लोगे पर देव कम से कम मैं तुम्हे कुछ बाते नहीं बता सकती “

और हां, तुम्हे वो गाँव में मंदिर में कुछ देने की जरुरत नहीं तुम्हारे नाम से मैंने पैसे दे दिए है ”
मैं कुछ कहने ही वाला था की पिस्ता ने मेरा हाथ पकड लिया और चलने का इशारा किया हम वापिस आ गए बिमला से मदद मांगने गए थे ढेर सारी और उलझाने ले आये थे सब लोग अपना सब कुछ मुझे देने को तैयार थे सबका प्यार उमड़ आया था मुझ पर और इस प्यार के निचे था क्या सिर्फ नफरत और सिर्फ लालच

घर आके मैंने चाय नाश्ता किया सब लोग साथ ही बैठे थे मैं- एक बात ये भी है की बाकि का आधा खजाना जो था वो चोरी नहीं हुआ

नीनू- कैसे

मैं- क्योंकि गाँव में इन लोगो के आलावा कोई भी इतना अमीर नहीं हुआ है और बाहर का कोई खजाना ले जा सकता नहीं क्योंकि पिताजी ने वो जमीन खरीदते ही तार बंदी करवा दी थी और उस ज़माने में कोई ऐसे भी किसी की जमीन में नहीं जाया करता था वैसे भी वो उजाड़ जंगली इलाका है उस राज़ को बस दो आदमी ही जानते थे या तो रतिया काका या पिताजी रतिया काका उस समय हॉस्पिटल में थे तो पिताजी ने इतनी नजर तो राखी ही होगी की खजाने की सलामती रहे
 

Incest

Supreme
432
859
64
माधुरी- भाई मेरा ये अनुमान है की की जो बाकि का आधा खजाना था वो ही आपका हिस्सा है बस जरुरत है उसको खोजने की
माधुरी ने जैसे विस्फोट किया था ऐसा हो सकता था की शायद पिताजी को डर हो की कही कोई उस खजाने को चुरा न ले तो उन्होंने उसे किसी दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया होगा और इस से पहले की वो रतिया काका को बता पाते उनकी मौत हो गयी

मैं- होभी सकता है

पिस्ता- तो फिर कोई तो सुराग, कोई रास्ता जुरूर छोड़ा होगा

मैं- वो ही रास्ता तो नहीं है मेरे पास

नीनू ने एक गहरी नजर मेरे बनाये मैप पर डाली और बोली- हम लगता है की हमे इनमे से एक को उठाना होगा और अपने तरीके से पूछना होगा वैसे भी जो गुंडे उस मुठभेड़ में बच गये थे मैंने उनके बयां ले लिए है पर ताज्जुब ये की उनको किसी औरत ने भेजा था ना की रतिया काका ने तो बात उलझ गयी है अब औरत दो है या तो बिमला या फिर मामी
बिमला बाहुबली है उसके लिए गुंडे भेजना मुश्किल नहीं जबकि मामी भी ये काम करवा सकती है पैसो के दम पे

मैं- तो बात घूम फिर के जहा से चली है वहा पर आ जाती है देखो घूमफिर कर हम लोग हर बार इसी पॉइंट पर आ जाते है मतलब की हम लोग गलत तरीके से सोच रहे है कई बार ऐसा भी होता है की कोई और फायदा ले जाता है जबकि शक किसी और पर होता है

नेनू- पर तुम्हारे मामले में ये थ्योरी गलत है क्योंकि गाँव में तुम्हारे परिवार की किसी से दुश्मनी थी नहीं ये सब जब हुआ जब तुमने चुनाव में बिमला से धोखा किया ये जो भी पंगा है ये फॅमिली का है अब दुश्मनी वाला एंगल ले भी तो कैसे जब किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और वैसे भी अपने ही सबसे बड़े दुश्मन होते है अगर वो ठान ले तो

मैं- तो क्या करू

पिस्ता- हमे मामी को उठना चाहिए जब मैं सेवा करुँगी उसकी तो बताएगी वो

मैं- नहीं रे पगली, सीधा सीधा उठा लेंगे तो कही काम बिगड़ ना जायेगा

नीनू- क्यों न हम उस पूरी जमीन की खुदाई करवाए

मैं- पागल हुई हो क्या कितनी जमीन है वो और सीधी बात है अगर पिताजी ने भी वहा से सोना निकाल लिया था तो वो उसे वही जमीन में बिलकुल नहीं छुपायेंगे

माधुरी –भाई आप इन सब चीज़ के बीच ये क्यों भूल रहे है की कंवर को किसने मारा अगर उस एंगल से सोचेंगे तो शायद कोई बात बने

वाह रे छुटकी, क्या बात पकड़ी थी जबसे इस खजाने की बात आई थी ये बात सूझी ही नहीं थी अब उस रात गाँव में किसी ने तो कंवर को देखा होगा अब जुगाड़ करके किसी न किसी से तो कुछ उगलवाना था पर मेरे दिमाग में उसके आलावा हरिया काका की भी मौत का कारण था हो ना हो दोनों की मौत तकरीबन उसी टाइम पीरियड में हुई थी मतलब साफ़ था की कुछ तो गड़बड़ है मतलब ऐसा भी हो सकता था की कंवर को भी सोने वाली बात पता चल गयी हो ,


ये फिर चाचा ने उसका पत्ता काट दिया ताकि वो उसके और बिमला के बीच ना सके या फिर इसलिए की कोई नहीं चाहता था की घर का वारिस आये आज मेरा दिमाग पूरी तरह से घुमा हुआ था तो मैंने ठेके पे जाने का सोचा हल्का हल्का अँधेरा हो रहा था करीब आधे घंटे में मैं वहा पर पंहुचा अपना ऑर्डर लिया और वही बैठ गया गाँव के कई लोग वहा पर बैठे थे एक बुद्धे को मैं पहचान गया उसे राम राम की तो वो मेरे पास आ गया


मैं- ताऊ, लोगे

वो- नहीं बेटा, मेरा कोटा हो गया है

मैं- कोई ना ताऊ एक तो ले लो मैंने आवाज मारके ताऊ के लिए गिलास मंगाया वो बैठ गया

मैं- ताऊ, और बताओ गाँव के क्या हाल चाल है

वो- बस बेटा जी रहे है ज्यादा गुजर गयी अब तो थोड़ी बची

मैं- वो तो है ताऊ

मैंने पेग बना के उसको दिया

हमारी बाते होने लगी

मैं- ताऊ क्या करते हो

वो- बेटा शहर में pwd में माली हु तुम्हारे चाचा की मेहर है उन्होंने ही जुगाड़ करवा दिया

मैं- ताऊ उधर तो वो हरिया काका भी लगा हुआ था न

वो- अरे बेटा , उसको मरे कई साल हुए पर आदमी बढ़िया था

मैंने एक पेग और सरकाया

मैं- ताऊ वो आपका दोस्त था ना

वो- दोस्त ही कह लो उम्र में तो काफी छोटा था पर दोनों साथ काम करते थे तो दोस्ती सी ही थी

मैं- दारू का रसिया था वो भी

वो- ना रे बेटा, उसने छोड़ दी थी बस अपने काम में ही मस्त, कहता था बहुत पी ली अब खोयी इज्जत कमानी है अब एक ही लड़की थी ब्याह दी थी उसकी औरत भी बहुत ही नेक थी कई बार मैं जाता था उसके घर दारू छोड़ने से फिर से रोनक हो गयी थी उसके घर

मैं- पर वो मारा कैसे ताऊ

वो- बेटा बुरा मत मानना सब समझते है की उसको तुम्हारी भाभी ने मरवाया है पर मुझे ऐसा नहीं लगता

मैं- क्यों ताऊ , ये बोलके मैंने उसे एक पेग और दिया

वो- बेटा, उसकी मौत से कुछ दिन पहले वो बहुत बुझा बुझा सा था तो मैंने पूछ लिया उसने बताया की उसे वो बानिया है ना रतिया

मैं- हां

वो- वो उसे परेशान कर रहा था अब बात क्या थी ये तो उसने नहीं बताई पर वो बहुत मुसीबत में लगता था उसके बाद वो दो तीन दिन काम पे भी नहीं आया फिर उसकी लाश ही मिली थी

मैं- ताऊ, कहा मिली लाश

वो- बेटा वो जो परली पार खेत है ना तुम्हारे चाचा के उधर ही मरा मिला था वो

ओह! तो उसके बाद ही चाचा ने खेतो की तरफ जाना छोड़ दिया था अब सबूत तो कुछ मिलना था नहीं वहा पर पर एक नजर देखना तो बनता था

मैं- ताऊ, घनी हो गई चले अब

वो- हा, बेटा

मैं- बैठ ले गाडी में

उसके बाद रस्ते भर मैंने ताऊ से बात की पर कुछ खास ना पता चला बात घूम फिर कर वही आ गयी थी अब ये पता करना था की रतिया काका से उसका क्या पंगा हुआ था जहाँ मैं रतिया काका को बेहद शरीफ समझता था वहा उसका नया चेहरा ही समझ आ रहा था झोल पे झोल हुए जा रहा था हर तरफ बस शक ही शक कोई राह नहीं बस भटकते रहो अँधेरे में


अब इन हत्याओ को हो भी तो बहुत समय गया था सबूत कहा से ढूंढ कर लाऊ चारो तरफ भुस सवाल थे और जवाब दने वाला कोई नहीं था कौन करे मेरी मदद खैर, घर आया बैठक में सब घर वालो की तस्वीर लगी थी आखिर ये लोग मुझे क्यों छोड़ कर चले गए मैं बहुत देर वहा बडबडाता रहा फिर मैं पिताजी के कमरे में चला गया मैं समझ रहा था की पिताजी ने जरुर कोई सुराग छोड़ा होगा सब कुछ किस्मत के हवाले तो नहीं कर सकता था मैं मैंने पिताजी की हर चीज़ की बारीकी से तलाशी ली पर कुछ नहीं मिला फिर नींद कब आई कुछ पता नहीं

अगले दिन मैं और नीनू निकल गए घूमने मंदिर की तरफ चले गए दर्शन किये बाबा के नए मंदिर का काम चल रहा थोडा देखा कुछ बाते पुजारी जी से हुई हम चलने को ही थे की बिमला आ गयी अब सरपंच होने के नाते वो मंदिर का निर्माण देखने आती रहती थी तो हमसे भी बात हो गयी हम लोग एक पेड़ के निचे बैठ गए ऐसे भी नार्मल बात हो रही थी मेरे मन में एक दो बात थी पर मैंने टाल दी फिर बिमला चली गयी हम बैठे रहे

नीनू-क्या लगता है



मैं- किस बारे में



वो – हम अभी तक सोने के बारे में ही सोच रहे है इतना कैश निकला है उसका क्या वो कैश ही है सोनी को बेच कर नहीं कमाया गया है वैसे भी करोडो के सोने को बेचना कोई आसान तो है नहीं



मैं- क्या कहना चाहती हो



वो –यही की नगद रकम का मामला अलग है



मैं- भाड़ में जाए , सोना हो या रकम मुझे कोई वास्ता नहीं मुझे मेरा चैन सुकून वापिस मिल जाये और कुछ नहीं चाहिए मुझे दो पल जिंदगी आराम से जी लू वही बहुत है



वो- उसी जिंदगी के लिए तो हम सब कर रहे है ना



मैं- वो दिन भी क्या दिन थे ना कोई चिंता थी ना कोई फ़िक्र



वो- तुम तब भी आवारा थे आज भी हो , याद है मैं तुम्हरे ही गाँव में तो पढने आती थी वो साइकिल चलाना कई बार रस्ते में गीत गुनगुना अब तो मोबाइल हो गए वो इशारो वाले ज़माने गए



मैं- सही कहती हो अपने टाइम की बात ही अलग थी



कई बार मैं जा रहा होता था तुम साइड से घंटी बजा के निकल जाया करती थी अब वो बात कहा काश कोई लौटा दे मेरे बीते दिन , वो जब तुम टिफिन में मेरे लिए आधा खाना छोड़ दिया करती थी आचार कितना अच्छा बनाती थी तुम



वो- हां, माँ आचार सबसे बढ़िया बनाती थी मैं उंगलिया चाटने लग जाती थी पर अब कहा वो स्वाद, अब तो बात ही गयी



मैं- बात कैसे गयी और हाँ वैसे भी इन सब टेंशन के बीच हम तुम्हरे घर जाना तो भूल ही गए एक काम करो हम भी तुम्हारे गाँव चल रहे है



नीनू- नहीं देव, अब जो पीछे छूट गया उसका क्या फायदा उस घर के दरवाजे बरसो पहले मेरे लिए बंद हो चुके है वहाँ जाके कुछ हासिल नहीं होना सिवाय दर्द के



मैं- नीनू, दर्द पर मरहम भी लगता है हम बस चल रहे है अभी इसी वक़्त



वैसे भी कौन सा दूर था मेरे गाँव से अगला गाँव तो था ही करीब पन्द्रह मिनट बाद हम लोग नीनू के घर के लिए जो मोड़ जाता तह वहा थे तर्रक्की को गयी थी पक्की सड़के बन गयी थी पहले इधर बस नीनू का ही घर था पर अब तो अच्छा खासा मोहल्ला बन गया था



नीनू- देव, गाडी वापिस मोड़ लो वहा काफी रोना पीटना होगा शायद तुम्हे भी कुछ बोल दे और वो बेइज्जती मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी



मैं- रे पगली, तेरे घरवाले मेरे भी घरवाले है कुछ बोल देंगे तो क्या आफत आ जानी है हम किसी गैर के घर नहीं आये है हम अपनों के घर आये है



मैंने गाडी आगे बढाई नीनू थोड़ी नर्वस होने लगी थी पर अब जाना तो जाना ही था पांच मिनट बाद मैंने गाड़ी नीनू के आँगन में रोक दी उसके पिता वही बैठे थे हुक्का पी रहे थे हम गाड़ी से उतरे नीनू को देख कर एक पल उनकी चेहरे के भाव बदले पर वो उठे नहीं बस बैठे ही रहे हम लोग वहा गए मैंने उनके चरण स्पर्श किये तो वो कुछ नहीं बोले
तभी नीनू की माँ भी आ गयी वो हमारी तरफ आने लगी पर फिर देहलीज पर ही रुक गयी



मैं- नीनू बात करो



नीनू- पापा बोली वो भराए गले से



पापा- जब तुम चली ही गयी थी तो क्या लेने आई हो अब



मैं- पापा, हमारी बात सुनो एक पल



वो- तुम कौन हो



मैं- इसका पति



वो- अच्छा तो तू है जिसने मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद कर दी



मैं- आप हमारी बात सुनिए बेटी बरसो बाद घर आई है कम से कम झूठा ही सही मुस्कुरा तो दीजिये



मैंने मांजी की तरफ देखा और बोला- ये तो आना नही चाहती थी पर वो क्या है ना मैंने सुना की मांजी आचार बहुत अच्छा बनाती है तो मैं खुद को रोक ना सका और दौड़ा आया



मांजी ये सुनते ही मुस्कुरा पड़ी मैं समझ गया काम बन जायेगा





पापा- बात तो बहुत मीठी करता है तभी मेरी बेटी को फांस लिया



मैं- पापा आपके मन में जी इतने दिनों से नीनू की प्रति गलतफहमी है वो दूर करने आया हु ये ना तब गलत थी ना अब गलत है पर पहले थोडा पानी वानी तो पिला दो



पापा उठे और हमे अन्दर आने का कहा नीनू की धडकनों को महसूस कर लिया मैंने , बरसो बाद वो अपने कदम रखने जा रही थी अपने घर में पानी पिया उसके बाद मैंने सारी बात बता दी उनको और साथ ही ये भी की मैं किस गाँव का हु और किस परिवार का हु



पिताजी का नाम सुनते ही नीनू के पिताजी की आँखे चमक उठी बोले- बस बेटे और कुछ कहने की जरुरत नहीं तुम्हारे परिवार से तो बरसो से उठना बैठना था हमारा अरे तुम्हारे ताऊ और मैं फौज में साथ ही नौकरी करते थे वो थोडा पहले रिटायर हो गया था मैं थोडा बाद में पर फिर पता लगा की पूरा परिवार ही ख़तम हो गया तो बड़ा दुःख हुआ



और ये भी पगली, इसने अगर साफ़ साफ़ बता दिया होता तो मैं खुद आगे चल कर तुम दोनों का ब्याह करवा देता इसको बता देना चाहिए था इतने दिन से चिंता थी की बेटी कैसी है किस हाल में होगी पर अब चिंता दूर , शायद इसे ही कहते है विधि का विधान अब मैं लोगो को गर्व से बताऊंगा की मेरी बेटी भाग के नहीं गयी थी बल्कि किस खानदान की बहु है



पापा की आँखों से आंसू निकलने लगी नीनू अपने पिता के गले लग गयी फिर मा के थोडा भावुक सा माहौल हो गया था उसके घरवाले सज्जन लोग थे पल में ही सब गिले शिकवे ख़तम हो गए थे अपने को और क्या चाहिए था घरवाली खुश हो गयी थी तो अपन भी खुश थे बातो बातो में शाम हो गयी थी अब चलने का समय हो गया था पर नीनू के पापा की जिद थी की रात का खाना खाकर ही जाए तो फिर और देर हो गयी उसकी मा चाहती थी की नीनू कुछ दिन और रहे तो मैंने कहा जल्दी ही वो आ जाएगी



उसके बाद हम अपने घर के लिए चले गाँव से बाहर आते ही नीनु ने मेरे हाथ को कस के पकड लिया मैंने गाड़ी रोक दी साइड में उसकी आँखों में आंसू थे दो पल उसने मेरी तरफ देखा और फिर अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए
बहुत देर तक वो मुझे चूमती रहे दीवानों की तरह जब तक की सांसे जिस्म से बगावत ना करने लगी बस उसने बिना कहे ही सब कुछ कह दिया था उसने मेरे कंधे पर सर रख दिया मैं गाडी धीरे धीरे चलाने लगा बस जीना चाहता था उन लम्हों को दिल दिल से बाते कर रहा था हवा अचानक से खुशगवार लगने लगी थी घर कब आ गया पता ही नहीं चला बेशक उसने लफ्जों में कुछ नहीं कहा था पर फिर भी मैंने समझ लिया था की उसके दिल में क्या है घर आने के बाद वो अपने कमरे में चली गयी



मैं बाहर ही चारपाई पर लेट गया मैं सोच रहा था अपने बारे में नीनू के बारे में हम सब के बारे में पहले सब कितना सही था पर अब हर पल पल पल जिंदगी में बस दुःख ही था अजीब सी लाइफ हो गयी थी सोने का पता दो लोगो को था फिर लोग जुड़ते गए आधा निकाला गया बाकि कोई और ले गया अब रतिया काका का चरित्र जिस तरह से निकला था उस से ये भी अंदेसा था की वो मुझसे झूठ बोल रहे हो ऐसा भी हो सकता था की उन्होंने पिताजी से पहले ही वो खजाना वहा से साफ़ कर दिया हो



और फिर अपना वो ही शराफत का नकाब ओढ़ लिया हो ऐसा हो भी सकता था पर उनका वो एक्सीडेंट बहुत ही मुस्किल से बचे थे वो तो फिर वो ऐसा जानलेवा रिस्क नहीं लेंगे, बात यहाँ पर आके अटक गयी थी और फिर कंवर को किसने मारा वो भी तो बात उलझी हुई थी अब उसके बारे में दो बात थी या तो उसको बिमला या चाचा ने मार दिया या फिर उसकी जान भी खजाने के चक्कर में गयी दूसरी बात की सम्भावना ज्यादा थी क्यंकि उसकी लाश भी तो उसी जमीन में मिली थी दूसरी तरफ हरिया काका उसकी मौत भी शायद इसलिए हुई थी की उसको भी कुछ मालूम था पर क्या ?


बस इसी सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास माधुरी ने सही कहा था एक बार कंवर की मौत कैसे हुई इस कड़ी को भी देखना चाहिय था पर पंगा ये था की टाइम बहुत बीत गया था तो हर कड़ी जैसे खो सी गयी थी उसकी मौत के बारे में हमे या फिर कातिल को ही पता था बिमला चाहे लाख नीच थी पर मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी की उसको बता सकू की वो जो सिन्दूर अपनी मांग में लगाती है पोंछ दे उसे तोड़ दे उन चूडियो को जो उसकी कलाई में सजी है



पर जो भी था इनसब के पीछे वो बहुत ही शातिर खेल खेल रहा था बिलकुल चुप था मैंने मंजू के रस्ते खजाने वाला दांव खेला तो था पर क्या होना था ये देखने वाली बात थी पैसे में बहुत शक्ति होती है और तभी मुझे याद आया की उन नकद रुपयों का क्या लेना देना है काका के अनुसार बस सोना ही था पर पिताजी के पास नकदी थी तो वो कहा से आई इस छोटे शहर में करोडो का सोना बेचना मुमकिन ही नहीं था शायद ये ऐसी ही बात थी की पिताजी ही जानते थे पर कैसे कोई तो सुराग कोई को बात होगी जिस से मुझे कुछ तो पता चले



कंवर बिमला की कोठी से निकला पर यहाँ नहीं पंहुचा उसकी लाश मिलती है अलग जगह पर , ओह तभी मुझे ध्यान आया वो रास्ता ममता जिस से भागी थी उस चोराहे से दो रस्ते जाते थे एक बिमला की तरफ और एक रतिया काका की फर्म पर तो शायद हुआ ऐसा होगा की बिमला से झगडे के बाद कंवर घर से निकला और रास्ते में उसके साथ कुछ हुआ पर वो सीधा गाँव के रस्ते को छोड़ कर उस रस्ते क्यों गया शायद वो कातिल को जानता था पर ऐसा क्या हुआ होगा की इंसान अपना सीधा रास्ता छोड़ कर उजाड़ का रास्ता लेगा सोचने वाली बात थी

बात ये भी थी की कातिल ने उसकी लाश को वही पर क्यों गाड़ा वो पूरा इलाका ही सुनसान है कही भी ये काम कर सकता था इसका मतलब ये था कंवर की मौत उसी जमीन पर हुई थी , और अगर ऐसा था तो इस बात की भी पूरी सम्भावना थी की उसको खजाने की जानकारी थी पर ये सिर्फ अनुमान भी हो सकता था पर तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया जिस से की बात बन सकती थी दांव तो मैं खेल ही चूका था बस एक चाल और चलने थी बस अब इंतजार था तो कल का ही अगले दिन मैं हमेशा की तरह लेट ही उठा था नीनू किसी काम से शहर गयी थी माधुरी भी उसके साथ ही थी मैं और पिस्ता ही थे



मैंने उसे पूरी बात बता दी ही थी बस देखना था की खजाने की बात से रतिया काका का रिएक्शन क्या होता है दिन गुजरने लगा पर ना मंजू आई ना रतिया काका का फ़ोन या फिर वो खुद जबकि इस बात से फरक तो पडता था उनको शाम होने को आई इधर मुझे चैन पड़े ना खजाना मिलना कोई छोटी बात तो थी नहीं हालाँकि झूठ था पर सामने वाले को थोड़ी ना पता था अब हुई रात , करीब नो बजे रतिया काका आये मैंने सोचा चलो आया तो सही



काका- बेटा तुमसे कुछ बात करनी थी



मैं- कहो काका



वो- थोडा अकेले में



हम चलते हुए थोडा आगे को आ गए



काका- वो मंजू कह रही थी की तुमने वो बाकि का खोया हुआ सोना ढूंढ लिया है





मैं- हाँ काका किस्मत थी मिल गया



काका की आँखे चमक उठी बोले- बेटा मैं उसी सिलसिले में बात करने आया हु देखो इतना सोना घर में रखना सेफ नहीं है तुम ऐसा करो उसे मेरे पास रख दो जब जरुरत हो ले लेना ,



मैं- काका वो सेफ है आप चिंता ना करे


वो- देव, तुम समझ नहीं रहे हो बेटे उसकी हिफाजत जरुरी है मैं नहीं चाहता की जिसके लिए इतना इंतजार किया वो चीज़ फिर से चोरी हो जाये और फिर उसमे



मैं- उसमे क्या ,,



वो- कुछ ,,,,,कुछ नहीं बेटे



मैं- आप शायद ये कहना चाहते थे की उसमे आपका भी हिस्सा है



काका चुप रहे



मै- काका मैंने कंवर भाई सा से बात करी थी वो तो कह रहे थे की काका अपना हिस्सा पहले ही ले चुके थे अब जो बचा है उसपे बस मेरा और भाई साहब का हक़ है काका



काका- कंवर से बात हुई तुम्हारी कब



मैं- कल रात को



वो- पर ऐसा कैसे ह.........
.



मैं- क्या काका



पर वो बात टाल गया था शतिर जो था फिर बोला- अच्छा बेटा कंवर ने ऐसा कहा तो ठीक ही है पर मैं तो इसलिए बोल रहा था की हिफाजत रहेगी सोने की बाकि तुम समझदार हो



मैं- काका आप बेफिक्र रहे मैं अपने सामान को खूब संभाल सकता हु



काका- बेटा मैं तो कह ही सकता था बाकि तुम्हारी मर्ज़ी है चलो चलता हु



काका कंवर की बात सुनकर चौंका तो था पर फिर संभल गया था कुछ शो नहीं किया था बल्कि फिर उसने अपने आधे हिस्से की बात भी नहीं दोहराई थी
पर मैं इतना अवश्य जानता था की कुछ तो खुराफात जरुर करेगा ये और मैं ये भी जानता था की कंवर की मौत का इसका भी पता है जरुर और अब ये ही हमे बताएगा लालच इन्सान से सब करवा देता है मैंने उसी टाइम एक प्लान बनाया और घर में जितना भी कैश और सोना था इकठ्ठा किया बस जरुरत का ही रखा अब हमारी बारी थी खेल खेलने की मैंने नीनू को वो सारा पैसा और सोना उसके घर रखने को कहा क्योंकि वो सेफ जगह थी अगले दिन मैं काका के घर गया और बोला की – घर का थोडा ध्यान रखना काका माल पड़ा है हमे एक काम से जरुरी जाना है आने में थोडा समय लग जायेगा


प्लान बहुत ही चुतिया टाइप का था पर लालच हमे बस ये देखना था की काका की असली औकात क्या है हालाँकि इसमें कोई भी समझदारी नहीं थी कोई भी समझ सकता था की ये एक ट्रैप है पर लालच खजाने का लालच और जब लालच की पट्टी इंसान की आँखों में पड़ी हो तो कुछ भी होसकता है अब अगर उसको लालच है तो घर खाली पड़ा है कोई तो आएगा ही आएगा बस इंतजार था सही मौके का जब हम उसको रंगे हाथ पकड सके


आज अमावस की रात ही दूर दूर तक अगर कुछ था तो बस फैला हुआ अँधेरा घर पूरी तरह से अँधेरे में डूबा हुआ था एक बल्ब भी नहीं जल रहा था इंतजार करते करते बारह से ऊपर को हो गया पर कोई नहीं आया था मैं नीनू और पिस्ता पूरी तरह से मुस्तैद थे पर अब निराशा होने लगी थी और तभी जैसी की मैंने पायल की झंकार सूनी कोई तेज कदमो से घर की तरफ आ रहा था हम चोकन्ने हुए जल्दी ही पता चल गया वो कोई औरत थी दबे पाँव वो घर में दाखिल हुई


मैं उसे पूरा मौका देना चाहता था तलाशी का पर ख्याल जब बदला जब मैंने एक् साये को और अन्दर घुसते देखा एक औरत एक मर्द अब मामला रोचक हुआ रतिया काका के साथ औरत कौन मामला पेचीदा और कमाल की बात की बत्ती नहीं जलाई उन्होंने ना कोई टोर्च ही हम भी दबे पाँव ख़ामोशी से अंदर हुए , पर वो आदमी था वो ऐसा लग रहा था की घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था अब अँधेरा इतना गहरा था की कुछ समझ नहीं आ रहा था और फिर हमारे कानो में कुछ आवाज आई

औरत- तुम ना सब्र नहीं होता तुमसे कभी मरवाओगे मुझे बोली वो फुसफुसाते हुए

आदमी- चल अब ज्यादा बात मत कर और आजा बहुत दिन हुए तेरा दीदार नहीं किया

अब ये साले कौन है अबे अफवाह उड़ाई थी खजाने की यहाँ तो चोदम चोदी का कार्यकर्म हो रहा था पिस्ता ने धीरे से पुछा की लाइट जला दू मैंने मना किया दरअसल मैं जानना चाहता था की इस कार्यवाही के बाद ये लोग कुछ बात चित भी करे है या नहीं

करीब आधे घंटे के इंतज़ार के बाद वो औरत बोली- देखो इस तरह से मत बुलाया करो जब हम बिना रोकटोक के मिल सकते है तो ऐसे चोरी क्यों

आदमी- बस ऐसे ही कभी कभी चोरी भी करनी चाहिए चलो इसी बहाने घर भी आना हुआ

घर मतलब , मतलब ये चाचा था पर ये औरत कौन थी पहले इनकी बाते सुनना जरुरी थी

औरत- देखो, देव को वो बाकि का सोना मिल गया है पिताजी चाहते थे की वो आधा हिस्सा उनको दे दे पर देव ने मना कर दिया
ओह! पिताजी, मतलब ये मंजू थी पर इसका चाचा के साथ क्या लेना देना

चाचा- क्या बात कर रही हो , देव ने कैसे पता लगा लिया , पर चलो अच्छा ही है उसके काम आ जायेगा वैसे भी बहुत दुःख झेला है उसने अब वो भी आराम से जिए

औरत- तुम्हे नहीं लगता की उस सोने में अपना भी हिस्सा होना चाहिए देव थोडा कम ले लेगा तो कोई आफत नहीं आ जानी

चाचा- और हम ना ले तो भी कोई आफत नहीं आनी देखो देव हमारा वारिस है खून है हमारा पहले ही सब बिखर चूका है मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूँगा बल्कि जो उसका फैसला है वो ही मेरा है मुझे बस मेरे बच्चे की सलामती की फ़िक्र है और तुमसे भी कहता हु की ऐसा कुछ मत करना जिससे उसको तकलीफ हो बेशक वो मुझे अपना नहीं मानता पर शायद इसी बहाने मेरे गुनाहों का प्रयाश्चित भी हो जाए अपने बच्चे की हिफाजत के लिए मैं हथियार उठाने से भी नहीं चुकूँगा

वो- मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी आखिर कब तक मैं उस घर में घुटन भरी जिन्दगी जिउंगी

चाचा- मौज में तो हो तुम फिर या लालच क्यों करती हो

वो- तुम्हे क्या लगता है देव न कैसे ढूँढा होगा उस खजाने को बल्कि मैं तो ये मानती हु की आपके बड़े भाई ने ही उसको वहा से निकाल के कही छुपाया होगा मतलब आपने पिताजी को चुतिया बना दिया

चाचा- देखो, मुझे सच में कुछ नहीं पता और तुम्हे क्या लगता है रतिया ने उस जगह की खूब तलाशी नहीं ली होगी वो घाग है पूरा मेरी चिंता यही है की कही सोने के लिए देव और उसके बीच कोई टेंशन ना हो जाये

और तभी मैंने लाइट जला दी पर जो मैंने देखा मेरे होश ही उड़ गए वो मंजू नहीं ममता थी दोनों नंगे सकपका गए जल्दी से कपडे लपेटे अपने बदन पर

मैं- ममता तुम चाचा के साथ और चाचा बेटी की उम्र की है तुम्हारी खैर आपसे तो उम्मीद करनी ही बेकार है पर ये चल क्या रहा है बताओ जरा

चाचा- देव, बस ये एक घिनोना दलदल है जिसमे हम धंसे हुए है इसके आलावा कुछ नहीं जहा रिश्ते नाते कुछ नहीं बचे बस कुछ है तो भूख जिस्मो के भूख जोकुछ तुमने देखा वो बस उसी भूख की कहानी है

मैं- तो ममता रानी , देखो मेरा ना दिमाग घुमा हुआ है इस से पहले की मैं शुरू करू तोते की तरह शुरू हो जाओ और सो भी चल रहा है जो भी प्लानिंग फटाफट बता दो सालो चुतिया समझ के रखा है

ममता-जेठ जी मुझे कुछ नहीं पता मैं तो वो ही कर रही थी जो पिताजी ने कहा था

मैं- पिताजी की तो गांड तोड़ दूंगा मैं पर तेरी पहले टूटेगी

इस से पहले की मेरी बात ख़तम होती नीनू ने उसको बालो से पकड़ा और पटक मारा फर्श पर ममता दर्द से कराही और नीनु ने दो चार लात जमा दी

नीनू- देख, अब बकना शुरू कर वरना मैं तो फिर भी दया कर दूंगी पर पिस्ता को तो जानती होगी उसना होगा उसके बारे में वो फिर नहीं रुकेगी

ममता-जेठानी जी, मुझे पिताजी ने कहा था जेठ जी को अपने जाल में फंसाने के लिए ताकि सही समय पर वो खजाने का बाकि हिस्सा हडप सके कायदे से तो पिताजी का आधा हिस्सा था पर जेठ जी ने मना कर दिया तो हमारा यही प्लान था पर चाचा से भी सम्बन्ध है इसने यहाँ बुलाया था और हम पकडे गए

पिस्ता- चुतिया मत बना साली कुतिया सब बोल शुरू से आखिरी तक ये तो हमे भी पता है की काका सोना लेना चाहता है और क्या कह रही थी तू की देव का कुछ करना होगा साली ये खड़ा तेरे सामने दिखा क्या करके दिखाएगी
ममता- मुझे तो पिताजी ने बस इतना ही कहा था की तू किसी तरह से देव को फंसा ले और उससे खजाने की बात उगलवा ले बस मेरा इतना ही है बाकि चाचा और पिताजी एक नंबर के रंडी बाज़ है पिताजी ने मुझे चाचा के आगे परोसा और इसने मामी को पिताजी के आगे बस तब से ऐसा ही चला रहा है



नीनू- देव्, मैं तो तुम्हे ही समझती थी बाकि पूरा कुनबा ही रंगीला है



ममता रही थी झीख रही थी पर पिसता उसका अच्छे से इलाज कर रही थी



मैं- चाचा कंवर की मौत के बारे में आप क्या जानते है




वो- मौत, कंवर की पर वो तो दुबई है ना


मैं- मेरा दिमाग और ख़राब मत करो किसी को भी नहीं पता चलेगा दो लोग कहा गायब हो गए आपको नहीं पता कंवर को मरे करीब तीन साढ़े तीन साल हुए



वो- मेरे बच्चे मुझे तुम्हारी कसम मुझ को कुछ नहीं पता इस मामले में



मैं- तो हरिया काका का तो पता होगा या उसका भी नहीं है



चाचा अब चुप


मैं- मुझे सच जानना है हर कीमत पर की कैसे क्या हुआ और टाइम नहीं है मेरे पास



चाचा- उसको रतिया ने मारा ,

एक पल के लिए कमरे में ख़ामोशी छा गयी थी चाचा ने अपना गला खंखारा और बताना शुरू किया तुम्हे याद तो होगा की रतिया का एक्सीडेंट हुआ था जिसमे वो बुरी तरह से घायल था बस बच गया था किस्मत से , उसको ठीक होते होते थोडा टाइम लग गया इधर हरिया को मैंने माली लगवा ही दिया था उसका काम सही चल रहा था वोटो में भी उसने अपने लिए खूब मेहनत की थी पर रतिया ने ठीक होने पर जासूसी करवाई तो पता चला की जिस ट्रक से उसका एक्सीडेंट हुआ था उस पर हरिया काम करता था तो रतिया के दिमाग में ये बात बैठ गयी थी की जरुर हरिया ने ही उसको मारना चाहा था



इस बाबत मैंने भी हरिया से पुछा था तो उसने साफ़ बता दिया था की वो ट्रक चलाता था जरुर पर जब ड्राईवर छुट्टी पे होता था बाकि समय तो उस सेठ की चोकिदारी ही करता था और वैसे भी हादसे से कुछ दिन पहले उसने वहा से काम छोड़ दिया था हरिया की बात एक दम सही थी सोलह आने खरी मैंने खुद पड़ताल की थी उस सेठ का ट्रक चोरी हो गया था कुछ दिन पहले ही एक्सीडेंट के जिसकी पुलिस में भी शिकायत दर्ज हुई थी पर रतिया के दिमाग में हरिया खटक रहा था किसी नासूर की तरह वो उसेही दोषी मान रहा था



हरिया ने मुझसे कई बार बात भी की थी की रतिया उसे बेवजह तंग कर रहा था मैंने रतिया को खूब समझाया भी था पर फिर कुछ ऐसा हुआ की जिसकी वजह से बात हद से ज्यादा बिगड़ गयी



मैं- क्या हुआ था



चाचा- बताता हु, एक दिन हरिया सुनार के पास गया कुछ बेचने पर सुनार को हरिया की औकात का अच्छे पता था की उसके पास सोने का बिस्कुट कहा से आया होगा तो उसने उस से ओने पोने दाम में वो खरीद लिया अब हुआ यु की सुनार का लें दें था रतिया से तो उसने बातो बातो में जिक्र कर दिया की हरिया सोने का बिस्कुट बेच कर गया है अब सोना का तो पंगा था ही हरिया के पास सोना , रतिया को लगा की जरुर हरिया ने वो सोना पार कर दिया वहा से बस उसी दिन से उनकी दुश्मनी सी हो गयी थी



मैं- तो आपने बीच बचाव नहीं किया



वो- मैंने हरिया से बात की थी तो उसने बताया की तुम्हारे पिताजी ने उसको दो बिस्कुट दिए थे की बुरे समय में इनको बेच देना धन का जुगाड़ हो जायेगा उसने एक बेचा और दूसरा मुझे वापिस कर दिया था तो वो सच्चा था मैंने रतिया को खूब समझाया पर शायद उसको तो लगन लग गयी थी सोने की और एक दिन ऐसे ही खेतो में दोनों का तगड़ा पंगा हुआ अब हरिया क पास सोना था ही नहीं तो वो कहा से देता थोड़ी पिलमा-झिलमी हो गयी और उसी बीच रतिया के हाथ से गोली चल गयी



अब घबरा तो रतिया भी गया था उसने मुझे बुलाया जैसे तैसे करके बात को दबाई



मैं- बात को दबा दिया वाह बहुत बढ़िया शाबाशी मिली अरे सोचा नहीं ताई पर क्या गुजरी होगी वो अकेली जी रही है क्या उसको साथी की जरुरत नहीं क्या उसको ताऊ की याद नहीं आती होगी वाह रे कलियुगी इंसानों कल को तो रतिया काका इस सोने के लिए मुझे भी मार सकते है ऐसा भी क्या लालच वो तो शुक्र है मेहर हो गयी इनपर जो सोना मिल गया मुझे तो शक होने लगा है की कही परिवार को भी तो रतिया काका ने नहीं ख़त्म करवा दिया हो



चाचा- ऐसा नही है देव


मैं- तो कैसा है किस पर विश्वास करू मैं मेरी भाभी जो सारे आम मुझे बरबा करने की धमकी देती है, मेरी मामी को मेरे सीने को छलनी कर देती है मेरा चाचा जिसे अयाशी से फुर्सत नहीं जो भागीदार है एक निर्दोष इंसान के कतल का एक तरफ मुझे मेरे भाई की लाश मिलती है जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं वाह रे कलियुग के रिश्तेदारों जब अपने तुम्हारे जैसे है तो दुश्मनों की क्या जरुरत कंवर के कातिल का तो मैं पता लगा ही लूँगा और याद रखना की अगर उसमे तुम्हारा या बिमला का हाथ हुआ तो फैसला कानून नहीं मैं करूँगा



मैं-नीनू अभी पुलिस बुलाओ और काका को गिरफ्तार करवाओ



नीनू- पंद्रह बीस मिनट में आ रहे है



मैं- बढ़िया ,ममता तू घर जा और आगे से चाचा से कोई वास्ता नहीं अपनी जिंदगी अपने पती के साथ जी अब तुझे इस दलदल में कोई नहीं धकेलेगा और इस काबिल बनना की कोई तुमपे विश्वास कर सके



चाचा, वैसे तो तुम भी गुनेहगार हो पर मामी जुडी है तुमसे तो ये मत समझना की तुम बच गए काका के खिलाफ गवाही देनी होगी तुम्हे और ताई की मदद भी ताकि उसकी आनेवाली जिंदगी थोडा सुख से गुजरे



मेरी बात ख़तम ही हुई थी की तभी मुझे एक फ़ोन आया , फ़ोन वो भी रात के तीन बजे मैंने अपने कान से लगया और जो मैंने सुना मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी

पिस्ता- क्या हुआ देव
मैं- रतिया काका की लाश मिली है खेतो में राहुल का फ़ोन था


सबने अपना माथा पीट लिया था अब काका को किसने पेल दिया जो एक कड़ी थी वो भी हाथ से गयी सारा खेल ही उल्टा हो गया था पर अब जो भी था जाना था तो सब लोग हम थोड़ी देर में वहा पहुचे लोहे के तार से गले को घोंटा गया था ऐसा लगता था की थोडा बहुत संघर्ष किया होगा जान बचाने को आँखे जैसे बाहर को आ गयी थी मैंने बॉडी चेक की कुछ नहीं था सिवाय कुछ कागजों के हां पर शायद उन्होंने शराब पि राखी थी खैर, जिसको पकड़ना था वो तो निकल लिया था घर में रोना पीटना मच गया था अब मौत हुई थी तो ये सब होना ही था पर मेरे को दुःख नहीं था खैर बॉडी को पोस्त्मर्तम के लिए भेजा गया कुछ कर्यवाही करनी थी तो हम हॉस्पिटल चले गए अब गए तो इर बॉडी वापिस लेकर ही आनी थी चिता को अग्नि मिलते मिलते शाम हो चली थी


अब मर्डर था तो नीनू को ऑफिसियल भी देखना था मेटर को पर बात बनी नहीं कोई सुराग नहीं मिला खेत में पैरो के निशान भी बस थोड़ी ही दूर तक थे कुत्ते की मदद भी ली पर एक सिमित दूरी के बाद वो भी कुछ नहीं कर पाया मतलब किसी को ये तो अंदाजा था की रतिया काका को हम पकड़ने वाले है या फिर किसी ने पर्सनल रंजिश में पेल दिया था उनको पर किसने अब ये कौन बताये


कुछ दिन ऐसे ही गुजर गये थे हरिया काका की तो गुत्थी सुलझ गयी थी उनको रतिया काका ने मारा था पर कंवर को किसने मारा हो ना हो जिसने पुरे परिवार को ख़तम किया उसने ही कंवर को भी मारा , कंवर यहाँ रहता तो बिमला और चाचा के लिए पंगा था पर वो तो अलग हो गए तो फिर क्या बात हो सकती थी ऐसे ही मैं सोच रहा था अब दिन चल रहे थे तो रतिया काका के घर भी जाना होता था उस दिन अवंतिका आई हुई थी तो मैंने पूछ लिया की बड़ी बिजी रेहती हो कितने दिन हुए ऐसी भी क्या नाराजगी


वो- तुम्हे तो पता ही है की मेरे पति का इलाज चल रहा है तो बस यहाँ से जयपुर वहा से यहाँ इसमें ही बिजी हु वर्ना कब का आती तुमसे मिलने


मैं- अब कब तक हो


वो- दो तीन दिन इधर ही हु

मैं- तो आज मिले ,


वो- शाम को



मैं- रात को


वो- मुश्किल होगा


मैं- कहती क्यों नही की अब तुम बस बच रही हो


वो- बचकर कहा जाना कर्जदार हु तुम्हारी


मैं- सो तो है , पर बात को बदलो मत


वो- ठीक है रात दस बजे मेरे घर के बाहर इंतजार करुँगी


मैं- पक्का फिर मिलते है रात को



उसने एक गहरी मुस्कान से मेरी तरफ देखा और आगे बढ़ गयी मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा मैं सीढियों पे बैठा था मंजू मेरे पास आई एक कप चाय का मुझे दिया और खुद मेरे बाजु में बैठ गयी , मैंने एक दो घूँट भरे फिर वो बोली- क्या लगता है किसने मारा होगा बापू को



मैं- अभी कह नहीं सकते पर इतना वादा है कातिल बच नहीं पायेगा



वो- पर बापू को क्यों मारा



मै- अभी टाइम सही नहीं है इन बातो का घरवालो को संभाल पहले



वो- देव, कही तूने तो ........ देख तुझे खजाना भी मिल गया था तो क्या



मैं- तुझे क्या लगता है



वो- मेरा दिल तो ना कह रहा है पर



मैं- मंजू कुछ चीजों को राज़ ही रहने देना चाहिए पर तू मानने वाली तो है नहीं तो ऊपर आ मैं तुझे सच बता देता हु कई बार सच वैसा नहीं होता जैसा हम लोग सोचते है मैं नहीं जानता की सच सुनने पर तुझपे क्या बीतेगी पर अगर तू सोचती है की तुझे जानना जरुरी है तो ठीक है थोड़ी देर में मुझे छत पर मिलना मैं बता देता हु



हालाँकि ये समय इन सब बातो के लिए नहीं था पर मंजू मुझ पर शक कर रही थी तो मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था मंजू छत पर आई और मैंने उसे रतिया काका का वो अंजाना सच बता दिया की उसका बापू कैसे कर्जे के सूद के रूप में जिस्मो से खेलता था कैसे उसने सिर्फ शक के आधार हरिया ताऊ को मार दिया था उसका बाप लालच की किस हद तक गिरा हुआ था और साथ ही ये भी बता दिया की अगर वो जिन्दा होता तो आज हवालात में होता



मंजू तो उसकी बेटी थी जो अपनी बेटी को चोद सकता है उस से इंसानियत की उम्मीद भी क्या लगाई जा सकती है अपने बापू की असलियत सुन कर मंजू फफक फफक कर रो पड़ी पर मैंने उसको चुप करवाने की कोशिश भी नहीं की वो रोती रही मैं निचे आ गया और कुछ देर बाद मैं अपने घर आ गया , तो मैंने देखा की पिस्ता बाहर चबूतरे पर ही बैठी थी किसी गहरी सोच में खोयी हुई



मैं- क्या हुआ मेमसाब बड़ी गुमसुम सी है



वो- देव, तुम्हे क्या लगता है पिताजी ने वो सोना कहा छुपाया होगा और ऐसा भी तो हो सकता है की किसी और ने ही हाथ साफ कर दिया हो



मैं- होने को तो कुछ भी हो सकता है अगर पिताजी ने कही छपा भी है तो मुझे नहीं चाहिए गुजारे लायक तो है अपने पास और वैसे भी अगर अपनी कमाई में पार न पड़ी तो फिर कभी नहीं पड़ेगी



वो- बात सही है पर सोचो इतना खजाना ना जाने कहा है



मैं- देखो, वो जिसको भी मिला वो उसके हक़दार नहीं थे जबसे वो सोना आया सब ख़त्म हो गया कुछ नहीं बचा तो छोड़ो उसको और अपनी बात करो



वो- अपनी बात से याद आया आज मेरा मूड हो रहा है



मै- आज नहीं कल डार्लिंग आज मुझे कुछ जरुरी काम निपटाना है



वो- क्या



मैं- दरअसल आज किसी से मिलना है कुछ काम के सिलसिले में , अब जबकि मैं यहाँ नहीं रहूँगा तो सबकी हिफाज़त की जिम्मेदारी तुम्हारी है थोडा सतर्क रहना रात को



वो- तुम सच में बहुत चिंता करते हो



मै- सबको तो खो ही चूका हु अब कही तुम लोगो के साथ कुछ हो गया तो थोडा डर लगा रहता है



वो- तुम आराम से अपना काम करो सब ठीक रहेगा

पर आज चुक जाना था , लोग कहते थे की हमारी और उनमे दुश्मनी सी है पर मुझे ऐसा कभी नहीं लगा आज से पहले मैं बस एक बार उसके घर गया था और आज जा रहा था मेरे मन में अजीब सी फीलिंग आ रही थी , काश की मेरे पास शब्द होते तो मैं उस फीलिंग को यहाँ लिख पाता पर जाने दो ठीक दस बजे मैं उसके घर के सामने था हल्का सा अँधेरा था गली में मैंने उसे फ़ोन किया और तुरंत ही वो बाहर आई हम अन्दर पहुचे
 

Incest

Supreme
432
859
64
काली साडी में क्या गजब लग रही थी वो हल्का सा मेकअप किया हुआ था टाइट कसे ब्लाउज में उसके उभार जैसे की उस कैद को तोड़कर बाहर खुली हवा में साँस लेने को पूरी तरह से आतुर थे उसके बदन से उडती वो खुसबू जैसे मेरे रोम रोम में बस गयी थी वो थोडा सा मेरे आगे थी तो मेरी नजर उसकी बड़ी से गांड पर पड़ी उफ्फ्फ अवंतिका बीते समय में तुम और भी खूबसूरत हो गयी थी



वो- ऐसे क्या देख रहे हो


मैं- आज से पहले तुम्हे इस नजर से देखा भी तो नहीं


वो- देव,


मै- कोई नहीं है


वो- तभी तो तुम्हे बुलाया है बस तुम हो मैं हु और ये रात है देखो देव ये तुम्हारी मांगी रात है


मैंने उसका हाथ पकड लिया और बोला- अवंतिका


उसने अपनी नजरे झुका ली कसम से नजरो से ही मार डालने का इरादा था उसका तो धीरे से वो मेरे आगोश में आ गयी उसकी छातिया मेरे सीने से जा टकराई मेरे हाथ उसकी कोमल पीठ पर रेंगने लगी ना वो कुछ बोल रही थी ना मैं बस साँसे ही उलझी पड़ी थी साँसों से धड़कने बढ़ सी गयी थी कुछ पसीना सा बह चला था गर्दन के पीछे से जैसे जैसे वो मेरी बाहों में कसती जा रही थी एक रुमानियत सी छाने लगी थी

उसकी गर्म सांसो को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था मैं,फिर वो आहिस्ता से अलग हुई थी की मैंने फिर से उसको खींच लिया अपनी और इस बार मेरे हाथ उसके नितंबो से जा टकराये थे, उसके रुई से गद्देदार कूल्हों को मेरे कठोर हाथो ने कस कर दबाया तो अवंतिका के गले से एक आह निकली उसकी नशीली आँखे जैसे ही मेरी नजरो से मिली मैंने अपने प्यासे होंठ उसके सुर्ख होंठो से जोड़ दिए उफ्फ इस उम्र में भी इतने मीठे होंठ ऐसा लगा की जैसे चाशनी में डूबे हुए हो, इतने मुलायम की मक्खन भी शर्मा जाये ,उसके होंठ जरा सा खुले और मेरी जीभ् को अंदर जाने का रास्ता मिल गया मैं साडी के ऊपर से ही उसके मदमस्त कर देने वाले नितंबो को मसल रहा था अवंतिका की आँखे बंद थी


हमारी जीभ एक दूसरे से टक्कर ले रही थी आपस में रगड़ खा रही थी इसी बीच उसकी साडी का पल्लू आगे से सरक गया काले ब्लाउज़ में कैद वो खरबूजे से मोटे उभार मेरी आँखों के सामने थे मैंने हलके हलके उनको दबाना शुरू किया बस सहला भर ही देने जैसा, किसी गर्म चॉकलेट की तरह अवंतिका पिघल रही थी आहिस्ता आहिस्ता से मैंने उसके जुड़े में लगी पिन को खोला उसके रेशमी लंबे बाल कमर तक फैल गए अब मैंने उसकी साडी का एक छोर पकड़ा और वो गोल गोल घूमने लगी साडी उतरने लगी और कुछ पलों बाद वो बस पेटीकोट और ब्लाउज़ में मेरी आँखों के सामने थी

उफ्फ्फ खूबसुरती की हद अगर थी तो बस अवंतिका वो ख्वाब जो कभी मैंने देखा था आज उस ख्वाब को हकीकत होना था ,एक बार फिर से हमारे होंठ आपस में टकराने लगे थे उसके रूप का नशा होंठो से होते हुए मेरे दिल में उतरने लगा था मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसको खोल दिया संगमरमर सी जांघो को चूमते हुए पेटीकोट फिसल कर नीचे जा गिरा उसके गोरे बदन पर वो जालीदार काली कच्छी उफ्फ्फ आग ही लगा दी थी उसने मैंने बिना देर किये अपने कपडे उतारने शुरू किया उसने अपना ब्लाउज़ खुद उतार दिया


जल्दी ही मैं भी बस कच्छे में ही था अपने आप में इठलाती वो बस ब्रा-पेंटी में मुझ पर अपने हुस्न की बिजलिया गिरा रही थी उसकी नजर मेरे कच्छे में बने उभार पर पड़ी तो वो बोली- ऊपर बेडरूम में चलते है


मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और सीढिया चढ़ने लगा अवंतिका ने अपनी गोरी बाहे मेरे गले में डाल दी ऊपर आये उने मुझे बताया किस तरफ और फिर हम उसके बेडरूम में थे , जैसे ही अन्दर गए उफ़ क्या जबरदस्त नजारा था कमरे में चारो तरफ मोमबत्तियो की रौशनी फैली थी पुरे कमरे में गुलाब की पंखुड़िया फैली हुई थी अवंतिका मेरी गोद से उतरी पर मैंने फिर से उसको अपने से चिपका लिया मेरा लंड उसकी गांड की दरार में घुसने को बेताब था मैं ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियो से खेलने लगा वो अपने कुलहो को धीरे धीरे हिलाने लगी


धीरे से मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और उसकी पीठ को चूमने लगा जगह जगह से काटने लगा अवंतिका के अन्दर आग भड़कने लगी उसने मेरे कच्छे में हाथ डाल दिया और मेरे औज़ार को सहलाने लगी , मचलने लगी मेरी बाहों में उसने खुद ही अपने अंतिम वस्त्र को भी त्याग दिया मेरा लंड उसने अपनी जांघो के बीच दबा दिया और बस अपने बोबो को दबवाती रही जब तक की उसकी गोरी छातिया लाल ना होगई उसके काले निप्पल बाहर को निकल आये
“ओह!देव, बस भी करो ना ”

“अभी तो शुरू भी नहीं हुआ और तुम बस बस करने लगी हो ”

मैंने अवंतिका को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी नाभि पर जीभ फेरने लगा उसको गुदगुदी सी होने लगी थी धीरे धीरे मैं उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चाटते हुए उसकी योनी की तरफ बढ़ रहा था उफ्फ्फ बिना बालो की किसी ब्रेड की तरह फूली हुई हलकी गुलाबी रंगत लिए हुए कसम से जी किया की झट से इसके अंदर घुस जाऊ

वो भी जान गयी थी की मैं क्या चाहता हु उसने अपने पैरो को फैला लिया और अपने कुल्हे थोडा सा ऊपर को उठाये अवंतिका की गुलाबी योनी मुझे चूमने का निमंत्रण दे रही थी तो भला मैं कैसे पीछे रहने वाला था मैंने अपनी गीली, लिजलिजी जीभ से उसके भाग्नासे को छुआ और अवंतिका के बदन में जैसे बिजलिया ही गिरने लगी थी
“आः ओफफ्फ्फ्फ़ हम्म्म्म ”
मुझे किसी बाद को कोई जल्दी नहीं थी बस वो थी मैं था और हमारी ये मांगी हुई रात थी उसकी चूत का पानी थोडा खारा सा था पर जल्दी ही मुह को लग गया बड़ी ही हसरत से मैं अपनी जीभ को उसकी योनी द्वार पर घुमा रहा था अवंतिका लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी कभी बिस्तर की चादर को मुट्ठी में कस्ती तो कभी अपने कुलहो को ऊपर उठाती उसकी बेकरारी बढती पल पल और जब मैंने उसकी भाग्नासे को अपने दांतों में दबा कर चुसना शुरू किया तो अवंतिका बिलकुल होश में नहीं रही उसका बदन ढीला पड़ने लगा आँखे बंद होने लगी मस्ती के सागर में डूबने लगी वो ,
और तभी मैंने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया मैं नहीं चाहता था की वो इस तरह से झड़े , मैं उसके ऊपर से हट गया और तभी वो मेरे ऊपर चढ़ गयी और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी हमारी सांसे सांसो में घुलने लगी थी उसका थूक मेरे पुरे चेहरे पर फैला हुआ था और फिर वो मेरी टांगो की तरफ आई मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और बड़े प्यार से उस से खेलने लगी उसकी आँखों में गुलाबी डोरे तैर रहे थे और मैं जानता था की आज की रत वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी उसके इरादों को भांप लिया था मैंने
उसने अपने सर को मेरे लंड पर झुकाया और हौले हौले से उसकी पप्पिया लेने लगी कुछ देर वो बस ऐसे ही करती रही फिर उसने गप्प से मेरे सुपाडे को अपने मुह में ले लिया और उसको किसी कुल्फी की तरह चूसने लगी मेरे होंठो से बहुत देर से दबी आह बाहर निकली वो बस सुपाडे को ही चूस रही थी जब जब उसकी जीभ रगड खाती मेरे बदन में एक झनझनाहट होती एक आग बढती पर उसे क्या परवाह थी उसे तो बस खेलना था अपने मनपसंद खिलोने से अपनी उंगलियों से वो मेरी गोलियों से खेलते हुए मुझे मुखमैथुन का सुख प्रदान कर रही थी
जब उसका मुह थकने लगा तो उसने लंड को बाहर निकाला और फिर मेरी गोली को मुह में ले लिया उसकी गर्म सांसो ने जैसे जादू सा कर दिया था मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा वो इतना ऐंठ रहा था की मुझे दर्द होने लगा आग इतनी लग चुकी थी की दिल बेक़रार था उस आग में पिघल जाने को हां मैं देव इस आग में अपने जिस्म को अपने वजूद को झुलसा देना चाहता था अवंतिका रुपी इस आग में क़यामत तक जल जाना चाहता था मैं और शायद वो भी मुझमे समा कर पूरा हो जाना चाहती थी
जैसे ही वो लेटी उसने अपने पैरो को फैला कर मुझे जन्नत के रस्ते की और बढ़ने का निमन्त्रण दिया जिसे मैं अस्वीकार करने की अवस्था में बिलकुल नहीं था जैसे ही मेरे लंड ने उसके अंग को छुआ अवंतिका ने एक आह ली और अगले ही पल चूत की मुलायम फांको को फैलाते हुए मेरा लंड उस चूत में जा रहा था जिसकी हसरत थी मुझे कभी पर मुराद आज पूरी हुई थी थोडा थोडा दवाब देते हुए मैं उसकी गर्म चूत म अपने लंड को डालता जा रहा था अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भरना शुरू किया और फिर मेरा लंड जहा तक जा सकता था पहुच गया
“चीर ही दिया दर्द कर दिया अन्दर तक अड़ गया है “
“तभी तो तुमको वो सुख मिलेगा अवंतिका ”
मैंने अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा और फिर झटके से वापिस डाला ऐसे मैंने कई बार किया
“तडपाना कोई तुमसे सीखे अब मैं जानी क्यों औरते तुम्हारी दीवानी थी ”
“मेरा साथ दो, तुम पर भी रंग ना चढ़ जाए तो कहना ”
“मुझ पर तो बहुत पहले रंग लगा था आज तक नहीं उतरा देव मैं तो बहुत पहले तुम्हरी हो गयी थी बस आज पूरी हो जाउंगी इस मिलन के बाद मुझ प्यासी जमीन पर अम्बर बन कर बरस जाओ देव , आज मुझ पर यु बरसो की मैं महकती रहू दमकती रहू पल पल मुझे अगर कुछ याद रहे तो बस तुम और ये रात ”
मैंने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करना शुर किया अवंतिका भी मेरी ताल से ताल मिलाने लगी थी कभी मुझे अपनी बाहों में कस्ती तो कभी अपनी टांगो को मेरी कमर पे लपेटती कभी खुद निचे से धक्के लगाती हम दोनों हर गुजरते लम्हे के साथ पागल हुए जा रहे थे अवन्तिका के नाख़ून मेरी पीठ को रगड रहे थे जल्दी ही मैं उस पर पूरी तरह से छा गया था ठप्प थोप्प इ आवाज ही थी जो उस कमरे में गूँज रही थी
उसकी चूत की बढती चिकनाई में सना मेरा लंड हर झटके के साथ अवंतिका को सुख की और आगे ले जा रहा था उसके गालो पर मेरे दांतों के निशान अपनी छाप छोड़ गए थे , एक मस्ती फैली थी उस कमरे में हम दोनों इस तरह से समाये हुए थे की साँस भी जैसे उलझ गयी थी मरे धक्को की रफ़्तार तेज होती जा रही थी उसकी चूत के छल्ले ने मेरे लंड को कस लिया था बुरी तरह से अवंतिका की टाँगे अब M शेप में थी वो कभी अपने हाथ मेरे सीने पर रखती तो कभी अपने बोबो को संभालती जो की बुरी तरह से हिल रहे थे अवंतिका की चूत से रिश्ता पानी मेरे अन्डकोशो तक को गीला कर चूका था

अवंतिका और मैं दोनों काफी देर से लगे हुए थे जिस्म तो हरकत कर रहा था वो अपनी आँखे बंद किये मुझसे चिपकी पड़ी थी उसके झटके कहते बदन से मैं समझ गया था की बस गिरने वाली है तो मैंने पूरा जोर लाते हुए धक्के लगाने शुरू किये अवंतिका बस जोर जोर से बडबडा रही थी उसने मेरे होंठ अपने होंठो में दबा लिया और अपने बदन को मेरे हवाले कर दिया अवंतिका की चूत में गर्मी बहुत बढ़ गयी थी वो झड़ने लगी थी और उसकी चूत की गर्मी ने मेरे को भी पिघला दिया मैंने अपना पानी उसकी गर्म चूत में उड़ेल दिया और उसके ऊपर ही ढह गया

अब हटो भी किती देर से ऊपर पड़े हो ”

मैं साइड में लेट गया वो उठी और नंगी ही कमरे से बाहर चली गयी करीब पन्द्रह मिनट बाद आई शायद फ्रेश होने गयी थी वापिस मेरी बगल में लेट गयी मैंने अपना हाथ उसके थोड़े फुले हुए पेट पर रख दिया वो मुझसे चिपक गयी खेलने लगी मेरे लंड से , उसके हाथो का कामुक स्पर्श पाकर मैं फिर से मचलने लगा


“जानते हो देव, करीब दो साल बाद आज मैंने सेक्स किया है ”

मैं- अच्छा लगा


वो- बहुत


मैं- जानती हो जब पहली बार तुम्हे देखा था तभी मर मिटा था तुम पर


वो- गीता ने बताया था मुझे की कितना पेला है तुमने उसको पिस्ता तो हमेशा मेरे साथ रहती थी पर मजे अकले ले गयी वो


मैं- उसकी बात सबसे अलग है पता नहीं कब मैं उस से इतना जुड़ गया


अवंतिका ने एक बार फिर से खिलोने को मुह में ले लिया था और चूसने लगी थी उसकी हरकतों की वजह से मैं फिर से उत्तेजित हो रहा था जल्दी ही हम दोनों 69 में आके एक दुसरे के अंगो का रसपान कर रहे थे उसकी गांड को सहलाते हुए मैं उसकी चूत का पानी पी रहा था बार बार उसके चुतड हिलते धीरे धीरे मैं उसकी गांड के छेद से खेल रहा था जल्दी ही उसके थूक में सना मेरा लंड एक बार इर से तैयार था उसकी भोसड़ी से टक्कर लेने को


मैंने उसको घोड़ी बनने को कहा और उसके पीछे आ गया वास्तव में ही उसकी गांड गीता की 44 इंची गांड के बराबर ही थी कम बिलकुल ही नही थी शायद ताई की फिटनेस जबर्दस्त थी इसलिए उनका बदन ज्यादा सुडौल था मैंने अपने लंड को चूत पे टिकाया और फिर शुरू हो गए हम दोनों अवंतिका जब मैं रुक जाता तो अपनी गांड को आगे पीछे करती मैं उसके कुलहो को थामे इत्मिनान से उसको चोद रहा था कभी कभी मैं ब्द्र्दी से तेज तेज झटके लगा तो कभी बिलकुल आराम से


पूरी मजबूती से उसकी कमर को थामे मैं उसको पूरा मजा दे रहा था उसकी सांस फूल आई थी पर वो लगी हुई थी उसने अपने धड को नीच कर लिया और चूतडो को खूब ऊपर कर लिया जिस इ मैं अब आसानी से उसकी चूत मार रहा था चूत के आस पास वाला पूरा हिस्स लाल हुआ पड़ा था बड़ा सुंदर लग रहा था करीब दस मिनट बाद मैं वहा से हट गया अब मैं निचे था वो मेरे लंड पर बैठी थी और अपनी गांड हिला रही थी उसके दोनों हाथ मेरे सीने पर थे ऐसा लग रहा था अब वो मुझे चोद रही थी


मैंने उसकी चूची पीना शुरू किया तो अवंतिका और मस्त गयी और जोर जोर से अपनी गांड को पटकने लगी जैसे जैसे मैं उसकी चूची पी रहा था वो और मस्त रही थी और उसकी रफ्तार भी बढ़ रही थी करीब पांच मिनट बाद उसने मुझे ऊपर आने को कहा और फिर से वो चुदने लगी उसकी पकड़ टाइट होते जा रही थी मेर जिस्म पर अवंतिका की सांस काफी फूल गयी थी और फिर लगभग चीखते हुए ही वो झड़ने लगी इस बार थोडा ज्यादा झड़ी थी वो रुक रुक कर वो झड़ रही थी और मैं तेज धक्के मारते हुए उसके इस सुख को कई गुना बढ़ा रहा था


झड़ने के साथ ही उसने मुझे इस तरह अपनी बाहों में कस लिया की मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाया एक बार फिर से मेरे गर्म वीर्य ने उसकी योंनि को भर दिया मिलन का एक दुआर और संपन्न हुआ बुरी तरह से थके हुए हम लोग एक दुसरे की बाहों में पड़े रहे गला सुख गया था मैंने उस से कुछ पीने को कहा तो वो बोली अभी लाती हु
मैंने तकिये को एडजस्ट किया और बेड के सिराहने से अपना सर टिका दिया अवंतिका को भी पा लिया था मैंने सची ही तो कहती थी नीनू साला सारा कुनबा ही थर्कियो का है घर में दो दो लुगाई थी तब भी बाहर मुह मार रहा था था पर मेरे ये रिश्ते भी अजीब थी हर कोई मेरा अपना ही था कम से कम मैं तो ऐसा ही मानता था कुछ देर बाद अवंतिका आई मैंने थोडा पानी पिया


“कुछ खाओगे ”

मैं- तुम्हे


वो- हाँ वो तो खा लेना इतनी मेहनत की है थोड़े थक गए हो


मैं- कहा ना अभी बस तुम्हे ही खाना है


मैंने उसको इशारा किया तो वो मेरी गोद में आके बैठ गयी मेरा लंड उसकी गांड की दरार पर सेट हुआ पड़ा था मैं उसके बॉब को फिर से मसलने लगा


वो- तुम कभी थकते नहीं हो ना


मै- अपना ऐसा ही है और वैसे भी तुम जब साथ हो बस एक रात के लिए तो फिर तुम्ही बताओ मैं कैसे रुकू
मैंने उसकी गर्दन को चूमना शुरू किया वो मचलने लगी जल्दी ही उसकी चूचियो के निप्पल फिर से कडक होने लगे थे पर इस बार मेरा इरादा कुछ और था मेरा दिल आ गया था उसकी गांड पर जैसे ही मेरा लंड तना वो मेरी गोद से उठ गयी मैंने उसे उल्टा लिटा दिया बिस्तर पर और उसकी गांड के भूरे छेद से खेलने लगा


“तुम मर्दों, को ये इतना क्यों भाति है ”

मैं- बस अच्छी लगती है तुम्हारे इतने मोटे चुतड देख कर मैं खोद को रोक नहीं पा रहा हु


वो- ड्रावर म वसेलीन पड़ी है निकाल लो वर्ना कल चालला भी नहीं जायेगा मुझसे


मैंने वेसलीन ली और खूब सारी उसके छेद पर लगाई इर अपनी ऊँगली को गांड ममे डाल के अंदर बाहर करने आगा अवंतिका अपने चुत्डो को कसने लगी


“इतना जोर से मत घुमाओ ऊँगली को देव दर्द होता है मैं तुम्हे करने को मना नहीं कर रही पर प्यार से ”

मैं कुछ देर तक ऐसे ही ऊँगली से उसकी गांड स्से खेलता रहा फिर मैंने कुछ जेल अपने लंड पर भी लगाई और उसको अवंतिका की गांड पर रख दिया उसने अपने हाथो से अपने कुलहो को फैलाया और मैंने दवाब डालना शुरू किया


“तुम्हारा बहुत मोटा है आराम से डालो आःह्ह्ह्ह धीरे ”

“बस हो गया हो गया ”

जैसे ही मेरा सुपाडा गांड को फैलाते हुए अंदर घुसा अवंतिका दर्द के मरे ज्यादा परेशान हो गयी पर उसको भी पता था दो मिनट की बाद है धीरे धीरे बड़े प्यार से मैंने पूरा अन्दर डाल दिया और बस उसके ऊपर लेट गया और उस से बाते करने लगा उसके गालो को चूमने लगा करीब पांच मिनत बाद मैंने अपनी कमर उच्कानी शुरू की और उसने दर्द भरी सिस्कारिया लेना चालू किया


जल्दी ही अवंतिका भी मजे लेने लगी और मैं अब तेज तेज धक्के लगते हुए उसके पिछवाड़े का मजा ले रहा था बस अगर कुछ था तो हवस जो हमारे जिस्मो को नचा रही थी अपनी ताल पे मेरी गोलिया हर धक्के पे उसके मुलायम कुलहो पर टकराती अवंतिका की गांड बहुत ही टाइट थी मुझे लगा की कही मेरा लंड छिल ना जाए पर ऐसी गांड पर ही तो लंड की मजबूती नाप जा सकती थी करीब बीस बाईस मिनट तक उसकी गांड जम के मारी और फिर मैंने अपना पानी वही छोड़ दिया

उस पूरी रात हम दोनों ने एक पल के लिए भी आँखे नहीं मीची बस चुदाई ही चुदाई चलती रही जब मैं जाने लगा तो उसने कहा की नाश्ता करके जाओ वो भी अकेली है थोडा अच्छा लगेगा और जल्दी ही हम नाश्ता कर रहे थे तभी मेरी नजर वहा लगी एक पेंटिंग पर पड़ी शायद कोई राजस्थानी पेंटिंग थी जिसमे तीन राजा लग रहे थे



मैं- अवन्तिका, ये पेंटिंग किस की है



वो- ये त्रिदेव है ससुर जी लाये थे इस पेंटिंग को तीन भाइयो की तस्वीर है बस इतना ही पता है मुझे वैसे अच्छी है ना
मैं- हाँ ऐसा लग था है की अभी बोल पड़ेंगे पुराने ज़माने की शान ही और होती थी त्रिदेव वाह क्या बात है



फिर ऐसे ही हलकी फुलकी बाते करते हुए हम नाश्ता करते रहे और तभी चाय का कप मेरे हाथो से छुट गया ओह तेरी त्रिदेव तो ये बात थी मैं भी कितना बुद्धू था मुझे ये बात पहले ही समझ जानी चाहिए थे ओह मेरे रब्बा हद है यार, अगर वहा वो सब हुआ तो मान ग

या पिताजी ने बहुत सोचकर वहा पर छुपाया होगा मैं जैसे ख़ुशी से नाच ही था था मैंने अवंतिका के होंठ चूम लिए
“क्या हुआ देव ऐसा क्या मिल गया बताओ तो सही ”


मैं- अवंतिका तुम नहीं जानती तुमने अनजाने में मेरी मदद कर दी है अगर सचमुच वैसा हुआ जैसा मैं सोच रहा हु तो गजब हो जायेगा ओह मेरी जान अवंतिका तुम सस्च में गजब हो यार कल मेरा यहाँ आना और इस तस्वीर को देखना त्रिदेव, कसम से जान अभी जाना होगा शाम को इंतज़ार करना मेरे फ़ोन का भी मुझे जाना होगा मिलते है
उसको वहा छोड़कर मैं सीधा घर आया और सबको मेरे साथ आने को कहा साथ ही कहा की खुदाई का सामान भी ले ले



पिस्ता- कुछ बताओ तो सही कहा जाना है



मैं- चुप रहो बस चलो मेरे साथ



मैंने सबको गाडी में बिठाया और गाड़ी को भगा दी करीब आधे घंटे बाद हम लोग उसी जमीन पर थे जहा ये सब खेल शुरू हुआ था गाडी तो आगे जा सकती नहीं थी उसको वही खड़ी किया और अब करीब दो कोस पैदल चलते हुए जा रहे थे



नीनू- देव, हम वापिस इस जगह क्यों



मैं- खुद ही देख लेना अगर मेरा अंदाजा सही है तो मैंने अपना हिस्सा ढूंढ लिया है



“क्या ”वो तीनो एक साथ चिल्लाई



मैं- क्या हुआ चुप नहीं रह सकती क्या अभी मेरा अंदाजा ही है बस पर तीर लग गया तो पार ही है



नेनू- पर कैसे



मैं- चलो तो सही पहले



सबलोग एकदम से रोमांचित हो गए थे थे जोश जोश में हम वहा पहुचे पूरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था पर अब किसे गर्मी लगनी थी और फिर हम वहा आये जहा पर वो तीन पेड़ थे , त्रिदेव ही तो थे वो तीन बरगद के पेड़ एक जड से निकले हुए जैसे तीन भाई एक माँ की कोख से पैदा होते है



मैं- देखो मैंने कहा था ना की इन पेड़ो में कुछ तो अजीब बात है और वो अजीब बात ये है की ये त्रिदेव है



पिस्ता- पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो साफ साफ क्यों नहीं बताते



मैं – खजाने का आधा हिस्सा इनमे इ किसी एक पेड़ के निचे या अस पास है



नीनू- देव, हम चबूतरे के पास खोद चुके है और जानते हो ना हमे क्या मिला था



मैं- एक चीज़ होती है किस्मत नीनू पर ये सारी बाते खोखली हो जाएँगी अगर वो चीज़ हमे नहीं मिली जिसकी हमे तलाश है तो इस चबूतरे को बिलकुल मत छेड़ना और बाकी जगहों पर खोदना शुरू करो अब थोड़ी मेहनत तो कर ही सकते है तो चलो शुरू हो जाओ

अगले घंटे भर तक हम खोदते रहे पर कुछ नहीं मिला दो घंटे हुए पर खाली हाथ सब तरफ से करीब तीन तीन फीट खुदाई हो चुकी थी पिस्ता ने तो अपनी कुदाल फेक ही दी थी



वो- देव, तुम्हारे फ़ालतू के ख्याल ने मेहनत जाया करवा दी है



मैं- पिस्ता हार मत मानो हम 6 फीट तक देखेंगे मेरे हिसाब से इतने में काम बन जाना चाहिए वर्ना बाकि अपना नसीब पर मेरा दिल कहता है हम उस चीज़ के बेहद करीब है जिसके बारे में लोगो ने बस सुना ही होता है



तो एक बार फिर जोश के साथ हम जुट गए पर जैसे जैसे खुदाई होते जा रही थी उम्मीद कम हो रही थी और फिर नीनू की गैंती किसी धातु से टकराई जैसे उलझी हो उसमे औ जी ही नीनू ने गैंती को बाहर खीचा उसके साथ लिपटा हुआ आया कुछ ये एक हार था मिटटी में सना हुआ पर बात बन गयी थी सभी के चेहरे दमक उठे थे अब हम सारे उस जगह को लगे खोदने और फिर दो बड़े से संदूक जिनमे वो सारा माल भरा था जो रह गया था मतलब संदूक में ना समा पाया था उसे साथ ही दफना दिया गया था




अथक मेहनत के बाद सारे माल को धरातल तक खीचा हमने वाह री किस्मत तेरे अजब खेल कितना पास होकर भी वो खजाना सबके इतना नजदीक था त्रिदेव, आखिर क्यों कोई इस बात को पहल्ले नहीं समझ पाया था



पिस्ता- देव, खजाना , तुम्हारा हिस्सा



मैं- कह सकती हो पर ये मेरा हिस्सा नहीं है शायद हुआ यु होगा की शायद पिताजी ने वहा से यहाँ इसको हिफाजत के लिए छपाया होगा की बाद में ले लेंगे पर वो बाद कभी आ ही नहीं पाया



नीनू- पर जब उन्होंने वहा से यहाँ तक लाया तो घर भी तो ल जा सकते थे



मैं- शायद उस समय हालात ऐसे नहीं था चुनाव थे घर में कलेश था ऊपर से रतिया काका का एक्सीडेंट यहाँ सिर्फ इसलिए रखा गया होगा की उस उवे का पता किसी को चल भी गया हो तो और कोई चुरा ना सके


पिस्ता- एक वजह और हो सकती है देव



मैं- क्या



वो- लालच की क्यों बंटवारा किया जाये देखो देव बुरा मत मानना पर ऐसा भी तो हो सकता है की लालच हो की रतिया तो बचे ना बचे तो सारा माल अपना अब उसके बारे में बस दो लोग तो जानते थे की है कहा और ये भी तो हो सकता है की हिस्सेदार को रस्ते से हटाने के लिए अब इन्सान की फितरत कब बदल जाए और यहाँ तो मामला खजाने का है अभी भी इन संदूको में और बाहर का मिला कर 50-60 किलो तो है ही



मैं- देखो पिस्ता मैं तुम्हरी बात को समर्थन देता पर जिनको खजाना मिला वो दोनों ही लोग इस दुनिया में नहीं है और मैं इस बात की पुष्टि करता हु की दोनों की मौत का कारण लालच तो हो सकता है पर खजाना हरगिज़ नहीं है



पर तुम्हारी इस बात ने मेरे मन में कुछ ऐसी बात ला दी है जो शायद मुझे नहीं करनी चाहिए पर तर्क जरुरी है देखो दो लंगोटिया यार जिनमे भाइयो जैसा प्यार , एक महा ठरकी, तो ऐसा होनाही सकता की दुसरे को उसके बारे में पता ना हो माना की मेरे पिता थे उनमे से एक और ऐसी बात करना उचित भी नहीं पर देखो हम दोस्तों के कई गुण-अवगुण अनजाने में ही ले लेते है तो ऐसा भी हो सकता है की पिताजी पता नही मैं आगे की बात क्यों नहीं कह पाया



“पिताजी भी रतिया काका के हर पाप में भागीदार रहे हो ”नीनू ने मेरी बात पूरी की



नहीं पिताजी की जो छवि मेरे मन म थी वो तद्कने लगी थी अगर ऐया हुआ तो पर इनकार भी तो नहीं किया जा सकता था सम्भावना से जिंदगी ये कैसे मोड़ पर ले आई थी मेरे मन में नीनू की वो बात आने लगी की सारा कुनबा ही ठरकी है

नीनू- देखो जब तक हमे कोई ठोस सबूत नहीं मिल जाता आकलन करने से क्या फायदा अब सवाल ये है की गाड़ी दूर है इतने वजन को कौन ढोयेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात की ये पता कैसे चला की ये सोना यहाँ है


मैं- किस्मत नीनू किस्मत बस हमारी अच्छी थी और उसकी ख़राब जिसने कवर की लाश को यहाँ गाडा देखो दोनों में बस थोड़ी ही दूरी है उसने भी कम से कम पांच फीट खुदाई की थी लाश को छुपाने की पर यही तो खेल है कीमत का अगर वो बीच की जगह यहाँ खोदता तो आज इस सोने का मालिक वो होता

देखो इस पूरी जमीन में ये पेड़ सबसे अलग दीखते है क्योंकि ये बरगद के तीन पेड़ एक जद से निकले है और एक साथ है ये निशानी है तीन भाइयो की ये तीन त्रिदेव हा जबकि हमने उस दिन इन्हें त्रिवेणी समझ लिया था पर पिताजी ने इन्हें त्रिदेव समझा ये पेड़ तीन भाई है और पिताजी हर भी तीन भाई थे वो इस दुनिया में सबसे ज्यादा किसी को चाहते थे तो बस अपने परिवार को अपने भाइयो को ये बात सबको पता है इन तीन पेड़ो में उन्होंने खुद को अपने भाइयो को देखा और शायद इसलिए ही उन्होंने खजाना यहाँ छुपाया


मतलब हम इंसानों की फितरत अजीब होती है, कई बार छोटी छोटी चीज़े हमे टच कर जाती है जैसे मैं आज भी रडियो सुनता हु , केसेट सुनता हु जबकि अरसा हुआ केसेट आणि बंद हुए तो शायद ऐसे ही इमोशनल टच कह सकते है और शायद ये ही कारण हो क उनके वारिस को आज वो सब मिला है जो कभी उन्हें मिला था किसी ने मुझे तीन भाइयो त्रिदेव के बारे में बताया था बातो बातो में बताया था और तभी मुझे ये ख्याल आया


तो चलो , अब हमे यहाँ से निकलना चाहिए हम इस वक़्त सेफ नहीं है अगर दुश्मन की नजर में है तो अब गाडी तो आ नहीं सकती जैसे तैसे करके गाड़ी तक सामान को घसीटना ही होगा


पिस्ता- अगर हम गाड़ी को उस तरफ से ले आये जिस तरफ से ममता भागी थी तो घसीटना ना पड़े


मैं- पिस्ता गाड़ी उस तरफ लाने के लिए बहुत दूर का चक्कर लगाना पड़ेगा और जितनी देर लगेगी उस से आधी में तो हम लोग पैदल गाड़ी तक पहुच जायेंगे


बोलने को आसन था पर करना बहुत मुस्किल दम निकल आया सबका बुरा हाल हुआ पड़ा था पर गाड़ी तक जाना ही था करीब करीब डेढ़ घंटा तो लगा ही होगा बल्कि ज्यादा है खैर उसको लादा गाडी में और फिर चले हम घर के लिए सूरज ढलने लगा था पूरा दिन ही बीत गया था मैंने सुबह से बस थोडा बहुत अवंतिका के साथ ही खाया था तो भूख लगी पड़ी थी पर सब थके हुए पड़े थी इधर उधर आखिर नीनू ने ही हिम्मत की और कुछ बनाने रसोई में चली गयी
मैंने अंदर पुराना सामान देखा तो कुछ बट्टे और पुराना तराजू मिल गया तो मैंने सारे सोने को तोलना शुरू किया तो करीब वो 62 किलो के आस पास था मैंने कहा देखो सब इस को अपने अपने हिसाब से बाँट लो


पिस्ता- देव तुम ये बात कह कर हमे शर्मिंदा करते हो


मैं- तो जैसे रखना है तुम जानो मुझे बड़ी भूख लगी है बस खाने को कुछ दो यार


फिर खाना वाना खाके थोड़ी जान आई फिर कोई नहाने चला गया कोई आराम करने आज मजदुर लोग पैसा मांग रहे थे तो मैं उनका हिसाब करने लग गया तो उसमे बहुत देर लग गयी मैंने फ्फिर अवंतिका को फोन किया तो पता चला की वो फार्म हाउस पर है तो मैंने कहा मैं वही आ रहा हु घंटे भर में अब अवंतिका ने ही तो वो क्लू दिया था तो मैंने सोचा की उसको भी हिस्सा देना चाहिए तो मैंने एक बैग में सोना भरा और फिर बहाना बना के गाड़ी को मोड़ दी फार्म हाउस की तरफ


पर रस्ते भर मैं यही सोचता रहा की आखिर वो कौन दुश्मन हो सकता है हमारा जो मेरे पास होकर भी इतना दूर है रतिया काका तो रहे नहीं थे बचे चाचा, बिमला और मामी स्लै सब ढोंग कर रहे थे अपना होने का पर कालान्तर में इन्होने ही मारी थी मेरी साला दर्द भी अपना और दर्द देने वाले भी अपने मेरे तन पे मेरे मन पे मेरे अपनों के ही तो ज़ख्म थे कहने को तो परिवार ख़तम होने के बाद ये मेरे अपने थे पर सालो ने एक दिन भी नहीं संभाला चाचा और बिमला को तो कभी अपनी प्यास से फुर्सत ही नहीं आई


और नाना मामा सब साले चोर किसी को ये परवाह नहीं की मेरे मन में क्या है सब को बस लालच सबके मन में हवस किसी न य्नाही सोचा की देव भी कोई है माना की मुझसे गलति हुई अपने लालच की वजह से मैं माँ सामान भाभी के रिश्ते को कलंकित किया वो सही कहती थी उसको ये राह मैंने ही दिखाही थी वो मैं ही था जिसने खून को गन्दा किया था अगर कोई सबसे बड़ा दोषी था वो मैं ही था ये अजीब खेल जिंदगी के आंसू भी अपना नमक दर्द भी अपना और दिलदार भी अपना


जहाँ देखो बस गम ही गम है सोचते क्सोहते मैं अवंतिका के फार्महाउस पर पंहुचा वो अकेली ही थी हम अन्दर आये मैंने उसको बैग दिया


वो- क्या है इसमें


मैं- तुम्हारे लिए मेरी तरफ से कुछ


उसने जैसे ही बैग खोला उसकी आँखे फटी रह गयी


वो- ये,,,,,,,,,,,,,,,,,, ये सब क्या है देव


मैं- तोहफा है तुम्हारे लिए मेरी तरफ से


वो- पर मैं इतना सोना कैसे


मैं- अवंतिका तुम्हे मेरी कसम ये लेना ही होगा


उसने बैग साइड में रख दिया और मेरे पास आके बैठ गयी


बोली- तुमने कभी मोहब्बत की है देव


मैं- पता नहीं कभी आवारापन से फुर्सत ही नहीं आई तुम्हे तो सब पता ही है ना


वो- देखो, जिंदगी वैसी भी नहीं होती जैसा हम सोचते है अक्सर हम लोगो के बस एक टैग दे देते है की वो ऐसा है वो वैसा है जब मैंने पहली बार तुम्हारे बारे में सुना था की बस तुम ही हो जो चुनावो में मेरी नैया को पार लगा सकता है मैने सुना तुम्हरे बारे में गाँव के छैल छबीले नोजवान पर मैं सोचती थी की क्या ये लड़का मेरे लिए अपने परिवार को हरवा देगा क्योंकि हमारे लिए तो परिवार ही सबकुछ होता है और वो भी जब तुम्हरे और मेरे परिवार में सम्बन्ध ठीक नहीं थे


जब तुमने वो एक रात वाली शर्त रखी तो मैंने तुम्हे तोलने का सोचा और हाँ कर दी मेरे मन में ये था की शायद तुम अपने परिवार से धोका नहीं करोगे पर तुमने अपना वादा निभाया और उसके बाद भी तुमने उस रात वाली बात का जिक्र नहीं किया मैं सोचने लगी तुम्हारे बारे में हर पल पल पल मैं सोचती की क्या कहूँगी जब तुम अपना वचन निभाने को कहोगे क्योंकि आसन कहा होता है किसी भी औरत के लिए वो सब , जबकि मेरी दो खास पिस्ता और गीता तुम्हरी बड़ाई करते नहीं थकती थी ये कैसा जादू सा था जो उनके साथ साथ मुझ पर भी अपना रंग चढाने लगा था

और फिर ना जाने कब मैं तुमसे जुड़ने लगी हर पल सोचती थी की कब तुम पहल करोगे पर फिर वो हादसा हो गया जिसने सब बदल कर रख दिया इस से पहले की मैं तुम से मिल पाती तुम गाँव छोड़ गए , और फिर मुलाकात हुई भी तो किस हाल में तुम घायल थे तदप रहे थे वो बस किस्मत की ही बात थी खैर, तुम बिना बताये गायब हो गए वक़्त बड़ा गया यादे धुंधला गयी अपने अजनबी हो गए

मैं- अवन्त्का कुछ बाते बस याद ही रहनी चाहिए मेरी जिंदगी का एक मात्र उद्देश्य उस इन्सान की तलाश है जिसने मेरे परिवार को मार डाला मुझे अनाथ बना दिया जानती हो हर पल उस आग में जलता हु मैं जब उस दिन मैं हॉस्पिटल पंहुचा तो पिताजी की सांस चल रही थी खून से लथपथ जब मैंने देखा उनको तो जानती हो क्या गुजरेगी उस बेटे पर जिका बाप पल पल मौत की तरफ बढ़ रहा हो , जब उनकी सांसो की डोर टूटी उनका हाथ मेरे हाथ में था

मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया था अवंतिका मेरे सर से छत टूट गयी थी एक पल को मेरे पिताजी जिन्होंने हर परिस्तिथि में ढाल बन कर मेरा संरक्षण किया था पल भर में ही एक इंसान लाश बन गया था क्या नहीं था मेरे पर फिर भी मैं अपने पिता को नहीं बचा पाया था बहुत देर तक उनको अपने आप से अलगाए मैं रोता रहा एक आस थी की वो अपने बेटे से बात करेंगे पर वो जा चुकेथे सोचो जरा उस बेटे पर क्या गुरी होगी जब उसने कफ़न उठा कर अपनी माँ को देखा होगा वो मुस्कुराता चेहरा रक्त-रंजित पड़ा था सर फट गया था साइड से कोई कोई और देखता तो उलटी कर देता पर मेरी माँ थी वो


जिसकी वजह से मैं इस दुनिया में था जिसके आँचल के तले मैंने जीना सीखा था जिसकी गोद में सर रखने भर से मैं चिंता मुक्त हो जाता था जब वो प्यार से मेरे बालो में हाथ फेरती थी तो लगता था की ज़माने भर की ख़ुशी पा ली है मैंने जब किसी गलती पे पिताजी से डांट पड़ती तो वो माँ ही थी जो मेरा पक्ष लिया करती थी समय अपनी रातर से बढ़ गया पर अवंतिका मैं आज भी उसी मोड़ पर खड़ा हु जहा उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा था


वो मासूम बच्चे, ताऊ-ताई सब ख़ाक हो गया और जो बचा है वो उत्महरे सामने है तुम ही बताओ इन नालायको को कैसे अपनाऊ मैं कैसे सीने से लगाऊ इन को सब डूबे है अपनी हवस में अपने काम से काम है पर ये कोई नहीं पूछता की देव कैसा है किस तकलीफ से गुजर रहा है देव


अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया पर कुछ बोली नहीं शायद वो भी जानती थी की इस दर्द से बस मुझे ही जूझना है सोचा तो था की अवंतिका को एक रात और रगड़ना है पर साला मूड सैड सैड हो गया था अब ऐसे में अपने से चूत मारी जाती रात भी काफी हो गयी थी अवंतिका ने काह की मैं यही रुक जाऊ सुबह साथ चलेंगे पर दिल टूट सा रहा था बिन पिए ही नशा सा होने लगा था अवंतिका ने बार बार कहा की मैं रुक जाऊ गाँव दूर है पर अब इसे होनी कह लो या फिर जिद अब कहा किसी की सुननी थी माननी थी


जैसे तैसे करके गाँव तक आया मैंने गाड़ी को रतिया काका की जो पुरानी दुकान होती थी वही लगा दिया क्योंकि गली में और साधन खड़े थे शायद रिश्तेदारों के हो पेशाब आ रहा था बड़ी तेज से तो तो मैं साइड में जाके पेशाब करने लगा चारो तरफ संन्नाता था बस हवा चल रही थी टाइम पता नहीं कितना हो रहा था मूत के आ रहा था की मैंने देखा कोई औरत खेतो की तरफ जा रही थी गली की इस तरफ रौशनी थोड़ी कम थी पर मैंने उसको पहचान लिया था वो मंजू थी


अब इतनी रात को इसको क्या चुदास लगी है ये कहा जा रही है एक पल को सोचा की शायद टट्टी जा रही होगी पर इतनी रात को किसी को साथ ले जाती कुछ गड़बड़ सी लगी और कल उसने मुझसे अलग तरीके से बात की तो मेरे मन में हुड़क लगी की ये कहा जा रही है तो मैं छुपते छुपते उसके पीछे चलने लगा , बस्ती पीछे रह गयी थी सेर सुरु हो गया था दोनों तरफ पेड़ थे खेत थे पर वो चलती जा रही थी अपनी धुन में


ये तो हमारे कुवे पर आ गयी थी मैंने सोचा कही कुवे में कूद के जान तो ना देगी हो भी सके था मैं पास में ही चुप चाप खड़ा हो गया वो कुवे की मुंडेर पर ही बैठ गयी बस बैठी रही पांच मिनट दस मिनट खामोश शायद इंतजार था किसी का या अपने आप ही शायद वो रो रही थी मैं उसके पास गया वो मुझे देख कर चौंक गयी


मंजू- देव, तू यहाँ क्या कर रहा है


मैं- मेरी छोड़ तू इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही है


वो- दिल नहीं लग रहा था नींद नहीं आ रही थी जबसे तूने बापू के बारे में बताया कुछ भी अच्छा नहीं लगता तो सोचा इधर आके बैठ जाऊ क्या पता मन हल्का हो जाये


मैं- देख, मंजू मैं तुझे बताना नहीं चाहता था पर मेरे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था अब हमे इसी सच के साथ जीना होगा



वो- देव, ये सच हर पल मुझे तड्पाएगा जब भी बापू का ख्याल आएगा मैं क्या सोचूंगी


मैं- मंजू, उन्होंने गलत किया था हरिया काका को मारना कहा का इन्साफ था किस लिए मारा उनको की बस शक था ,शक तो मुझे भी सब पे है तो क्या सबको मार दू काका ने पैसे के दम पे गाँव की कितनी औरतो का शोषण किया उन्होंने क्या दुआए दी होंगी तुम्हारे पिता को जिस भी औरत की तरफ देखा उसे अपने बिस्तर पर घसीट लिया चलो कोई सेटिंग हो तो अलग बात होती है पर मजलूमों का शोषण किस लिए सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए और भूख भी ये जो कभी मिटती ही नहीं


उन्होंने तो अपनी बेटी को भी नहीं छोड़ा चढ़ गया उस पर भी , गलत हम सब है तुम, मैं , राहुल भाई बहन के रिशतो की धज्जिया उड़ा डाली ये हवस हमे विरासत में मिली है मंजू हम जिए भी इसके साथ ही पर उनमे और हममे ये फरक है की हमने किसी को मजबूर नहीं किया हमने जो किया अपनी मर्ज़ी से किया
मंजू- ये तो वो बात हुई की तुम्हारा पापा ज्यादा है मेरा कम कम


मैं- हमाम में तो सब नंगे है मंजू


वो- देव, तुझे क्या लगता है बापू को किसने मारा होगा


“मैंने ” मैंने मारा है उस दुष्ट, घटिया पतित इंसान को मैंने आवाज बिलकुल मेरे पीछे से आई थी मैं मुड़ा और तभीईईई

आवाज बिलकुल मेरे पीछे से आई थी और जैसे ही मैं पीछे को मुड़ा बदन में दर्द सा हुआ आँखे जैसे बाहर को आ गयी चक्कू मेरे पेट में घुस गया था आँख से आंसू निकल पड़े इस से पहले की मैं कुछ भी समझ पता क्योंकि उसके चेहरे को देखते ही मुझे यकीन नहीं हुआ की ये जिसपे मैंने हद से ज्यादा विश्वास किया वो मेरे साथ ऐसा करेगी उसने तुरंत ही एक और वार किया खून की धारा बह निकली थी पर वो नहीं रुकी एक के बाद एक वार करती ही गयी पेट पूरा काट डाला उसने मुह ने नाक से खून बह चला मैं लहरा कर गिरा जमीन पर


बस कुछ ही देर में उसने अपना काम कर दिया था वो हंसी जोरो से हाँ मैं देव हां मैं
“देव, ”मंजू जोर से चीखी


मैं- bhaaggggggggggggggggggggggggggg मंजू भाग यहाँ से


पर वो तो जैसे जाम ही हो गयी थी , उसने मुंडेर के पास पड़ी बाल्टी दे मंजू के सर पर चीख मारते हुए वो लहरा कर गिरी निचे मैं चिल्लाया पर कोई फायदा नहीं था


“चिल्ला ले, देव जितना चीखना है चीख ले पर आज तेरी कोई नहीं सुनने वाला कोई नहीं सुनेगा , और तू ऐसे नहीं मरेगा मरने से पहले तुझे ये जानने का पूरा हक़ है की आखिर क्यों तेरी जान जा रही है , जान जैसे तेरे बाप की गयी थी जैसे रतिया की गयी थी वैसे ही तेरी ”

तेरे लिए ये समझना मुश्किल होगा की आखिर क्यों मैंने ये सब किया जबकि तूने हद से ज्यादा मेरा भरोसा किया इतना विश्वास कोई अपनों पर नहीं करता जितना तूने मुझे किया, ये कहना झूठ होगा की तुझे मारते हुए मुझे तकलीफ नहीं होगी पर क्या करू कलेजे पर पत्थर तो रखना ही होगा य भी सच है मुझे अच्छा लगता था तू बहुत अच्छा ये कहू की शायद चाह सी होने लगी थी तेरी तो गलत नहीं होगा पर तुझे भी मरना होगा , तुझे भी मरना होगा


“आह , तुझे मेरी जान चाहिए ना तो ले लेले अरे एक बार कह देती तुझे भी मैंने खूब चाहता क्या नहीं किया तेरे लिए पर अगर तुझे मेरे खून की प्यास है तो ठीक है मार दे मुझे पर ये बात मेरी मौत के साथ ही ख़तम हो जानी चाहिए वर्ना कल को कोई किसी पर भरोसा नहीं करेगा ”

वो- भरोसा, देव कितना अच्छा लगता है ये सुनने में भरोसा कभी मैंने भी किया था भरोसा पर क्या मिला मुझे कुछ नहीं सिवाय दर्द के उअर ये दर्द उसने दिया जिसे जिसपे मैंने भरोसा किया था तेरे बाप पे टूट की भरोसा किया था पर क्या मिला मुझे क्या मिला वो चीखीईईईईईईईईइ


वो- ये जो हवस तुम्हे हर समय चढ़ी रहती है ना ये तुम्हे विरासत में मिली है अपने बाप से वो भी तुम्हारी ही तरह था बिलकुल ऐसे ही और उसको भी बड़ी चाह थी मेरी, जैसे तुम मेरी फ़िक्र करते हो वैसे ही वो भी करता था एक जमाना था जब मेरी जवानी जोरो पे थी जब मैं इठला के चलती थी तो ना जाने कितनो के दिल आहे भरते थे तुम्हारे पिता रोज खेत में जाते मैं आती तुम्हारे खेतो में काम करने नजरो ने नजरो को पढ़ लिया था दिल धड़क उठे थे और ना जाने कब मैंने खुद को तुम्हारे पिता को समर्पित कर दिया


उसकी दीवानगी भी ठीक ऐसे ही थी जैसी तुम्हारी है मेरे लिए जब मेरी जिंदगी में तुम आये और जिस तरह से तुम मेरे तन मन पे छा गए मुझे ऐसा लगता की मैं आज भी तुम्हारे पिता की बाँहों में हु दिन गुजरते गए जिंदगी आगे बढ़ने लगी तुम्हारे पिता और मैं पहले की तरह नहीं मिल पाते पर उसने कभी मुझे कोई कमी नहीं होने दी


मैं- तो फिर क्यों .......................... क्यों तुमने मारा , मेरी माँ उसका क्या दोष था और बाकि घरवाले क्यों ....
.
वो- किसी क कोई दोष नहीं था सिवाय तेरे बाप का सुन मैं बताती हु तुझे की उसका क्या दोष था सब सही चल रहा था पर मेरे पति ने अपनी गन्दी आदतों के लिए रतिया से कुछ कर्जा ले लिया जब मुझे पता चला तो खूब कलेश हुआ क्योंकि वो एक नीच आदमी था मेरा पति कहा से चुकता वो कर्जा हार कर मैंने तुम्हारे पिता से बात की उसने कहा की वो संभाल लेगा उसने मुझे पैसे भी दिए की मैं रतिया को लौटा सकू मैं पैसे देने गयी उस नीच को पर उसने मेरे पति का अंगूठा कोरे कागज़ पर लगवा लिया था


उसने एक बहुत बड़ी रकम मांगी कहा से देती मैं , वो मेरे पिच्छे ही पड़ गया रस्ते में गली में रोक लेता मैं बहुत परेशान थी मैंने तेर बाप को बताई पर वो अपने घर की लड़ाई में बीजी था ऊपर से चुनाव आने वाले थे और फिर एक दिन उस अतिया ने अपनी नीचता दिखाई उसने कहा की वो मेरा सारा कर्जा माफ़ कर देगा अगर मैं उसकी रखैल बन जाऊ, रखैल


सोच सकता है क्या गुजरी होगी मेरे ऊपर जब एक भेड़िया मेरी बोटी बोटी नोचने को तैयार था उस दिन मैं बहुत रोई घर आके मेरे पास बस तुम्हारे बाप का ही सहारा था मैंने उसे अपनी परेशानी बताई जैसा की मैंने कहा उसे मेरी उतनी ही फ़िक्र थी जितना तुझे है उसने रतिया से बात करने का आश्वासन दिया , पर उस नीच इन्सान को कहा किसी की परवाह थी उसे तो मैं एक माल नारज आ रही थी जसे वो अपने निचे लिटाना चाहता था तुम्हारा बाप खुद की परेशानी में ज्यादा उलझा हुआ था इधर रतिया ने मेरा जीना हराम किया हुआ और जब तुम्हरे पिता ने उस से इस बारे में बात की तो वो वो और ज्यादा परेशान करने लगा



मैं कब तक सहती उसने तो अपने भाई जैसे दोस्त का मान भी ना रखा था और तुम्हरे पिता अपनी दोस्ती की वजह से उस पर ज्या दवाब भी नहीं दे पा रहे थे , और इर एक रात वो मेरे घर आया उसी कागज को लेकर उसने मुझसे कहा की अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो चोरी के इल्जाम में मेरे पति को जेल में बंद करवा देगा और उस कागज़ पे मेरे पति का अंगूठा लगा है ये घर बार सब वो छीन लेगा मैं हद से ज्यादा मजबूर थी एक औअत की मज़बूरी की कीमत बहुत होती है

शिकारी शिकार के तैयार था मैंने रतिया से आधे घंटे की मोहलत मांगी और भागके तुम्हारे घर आई तेरे बाप के पास उस दिन टाइम नहीं था उसने कहा की बाद में मिलेगा अरे क्या बाद में दो मिनट नहीं थे उसके पास मेरी बात सुनने को आजतक उसका ही सहारा तो था मुझे उसके सिवा और किस दरवाजे पर जाती मैं मेरी आँखों से आंसू बह निकले हमारा नाता टूट गया उस दिन मैं रोते हुए घर आई पूरी रात उस दरिन्दे ने रौंदा मुझे उस रात मेरी आत्मा तार तार हो गयी


जिस्म लुट जाने से ज्यादा मुझे आघात तेरे बाप ने दिया था अरे इतने बरस का उसका और मेरा साथ रहा एक मिनट मेरी बात सुनने लायक नहीं हुआ वो जिस इन्सान से आपको आ हो और वो ही आस तोड़े तो बहुत बुरा लगता है पर मैंने भी सोच लिया था की अब कभी भी तुम्हारे घर का दरवाजा नहीं देखूंगी चाहे कुछ भी हो रतिया लगातार मेरा शोषण करता रहा मैं लुटती रही मेरी आत्मा लहू लुहान होती रही पल पल मैं कोसती खुद को


जी तो रही थी पर मर मर के और फिर मैंने तुमको देखा जब तुम लादेन को मार रहे थे मैंने उस दिन सोचा की मुझे भी अपना सहारा खुद बनना होगा और मैंने निर्णय लिया की मैं बदला लुंगी रतिया से चाहे कुछ भी करना पड़े याद है तुम्हे उस दिन जब मैं रतिया की दुकान पे थी जब तुम भी वहा आ गए थे थोड़ी देर पहले ही उसने लूटा था मुझे तुम मेरे घर आये मेरी मदद की पर जल्दी ही तुमने भी अपना रंग दिखा दिया आखिर हो भी तो उसी इन्सान के


रतिया का एक्सीडेंट मैंने करवाया पर साला बच गया तुम्हारे बाप की जान था वो उसने पूरा जोर लगा दिया ढूँढने को की किसने किया उस रात वो आया मेरे पास वो बोलता रहा मैं सुनता रहा बहुत गुस्से में था उसने हाथ उठा दिया मुझ पर, मुझ पर जिसने एक पत्नी से बढ़ कर प्यार किया उसको पर शायद यही मेरी औकात थी , मैंने बताया उसको की उसके दोस्त ने क्या किया था मेरे साथ पर जानते वो देव तुम्हारी और तुम्हरे पिता की यही एक कमी थी की वो हमेशा गलत लोगो पर भरोसा कर लेते थे


वो ये मानने को तैयार ही नहीं था की उसका जिगरी इतनी घिनोनी हरकत कर सकता था वो भी जब की उसने खुद उसे मना किया था उसे मेरी आँखों में सच नहीं दिखा उसकी दोस्ती के आगे मेरा रिश्ता कमजोर पड़ गया मैने लाख दुहाई दी पर एक औरत की बात का कोई मोल नहीं होता जब देखो किसी खिलोने की तरह इस्तेमाल किया और फेक दिया , आज भी कुछ ऐसा ही था क्या मेरा रिश्ता इतना कच्चा था , शायद तभी तो उसने मेरी बात नहीं सूनी


तेरे बाप को उस नीच की जान की फ़िक्र थी मेरे आंसुओ की क्या कीमत थी सोच के देख मेरी हालत क्या हुई होगी उस समय वो रात क़यामत की रात थी मेरी आँखों में कुछ था तो प्रतिशोध मैंने कह दिया था की रतिया को मैं मार डालूंगी पर बीच में वो दिवार थी जिसे शायद मेरे पक्ष ममे खड़ा होना था पर चलो ये ही सही मैंने हॉस्पिटल में उसको मारना चाह पर तुम्हरे पिता उसकी ढाल बनके खड़े थे ना चाहते हुए भी उस गाड़ी के ब्रेक मैंने ही फ़ैल किये दिल बहुत रोया था मेरा पर जिस आग में मैं जल रही थी उसमे सबको झुलसना था


जब भी मैं पिस्ता और तुमको देखती मैं तुम लोगो में खुद को और तुम्हारे पिता को देखती तुम मेरी जिंदगी में आ गए थे पर पता नहीं क्यों जब तुम मुझे हाथ लगाते तो लगता की तुमहरा बाप मुझे टच कर रहा है मैंने तुम्हारे घर को बर्बाद कर दिया था जब भी तुम मेरी नजरो के सामने आते मेरा दिल तुम्हे देख के रोता ,तुमने अपनी जमीन मुझे दी तुम्हारा अहसान था पर मेरे अंदर प्रतिशोध की जवाला कह रही थी की मैं सबको ख़तम कर दू क्यंकि तुम् भी उसका ही खून थे तुम्हारी भी चाह मेरे जिस्म की थी तुमने पैसोके जोर पे मेरे जिस्म को पाया था

किस्मत से मैं तुम्हारे मामा से टकरा गयी थी अपने इसी जिस्म का इस्तेमाल किया मैंने उसको पैसो का लालच दिया वो भी तुमसे परेशान था क्योंकि तुमने अपनी हवस में उसकी बीवी को भी लपेट लिया था मैंने उसे एक झूठी रकम का लालच दिया पर ऐन वक़्त पर उसकी अंतरात्मा जाग गयी फिर मैंने जानकारी इकठ्ठा की पहले हमले में तुम बच गए थे तो मैं एक योजना बनवाई तुम्हरी मामी को ब्लैकमेल करके उसके हाथो से ही तुमको मरवाया


तुम गायब हो गए मैं बस अपने आखिरी दुश्मन को मारना चाहती थी पर देखो देव आठ साल लग गए हर टाइम उस कुत्ते के साथ सिक्यूरिटी होती मैंने बहुत प्रयास किये पर उसके आगे मेरी औकात भी छोटी पड़ जाती थी इस बीच तुम्हारा भाई आ गया बड़ा परेशान था वो पर वो भी तुम्हारी तरह जुगाडी था पर उसमे तुम्हारी तरफ हर किसी पे विश्वास करने वाली दिक्कत नहीं थी तुमहरा बाप डायरी लिखता था जिसमे उसने एक तरह से अपनी जिनदगी ही उतार ली थी कंवर को सब समझ आ गया था तो क्या करती उसको भी रस्ते से हटाया वो भी तुम्हारी तरह अपने परिवार को बहुत चाहता था उसे उस डायरी को पढ़ कर तुम्हारे पिता और मेरेसंबंध के बारे में सब पता चल गया थोड़ी मुस्किल हुई पर उस पर भी काबू पा ही लिया मैंने


दुनिया को कभी पता नहीं चला की कहाँ गायब हो गया सब जानते है की वो परदेस वापिस चला गया


मैं- - ताई, उसकी लाश को ढूंढ लिया था मैंने ,आह


दर्द बहुत हो रहा था ऐसा लगता था की जैसे किसी ने काफी सारा बोझ रख दिया था मैंने अपनी शर्ट की कतरनों से खून रोकने की नाकाम कोशिश की थोड़ी ही दूरी पर मंजू पड़ी थी जिन्दा थी या मर गयी कुछ पता नहीं मेरी आँखे बस बंद हो जाना चाहती थी


मैंने एक नजर उस औरत पर देखा जिसे अपने जिंदगी का एक अहम् हिस्सा माना था जो मेरी कुछ लगती थी गीता ताई जिस पर टूट के मुझे भरोसा था


मैं- ताई, भरोसा तोड़ दिया तूने तो ..........

वो- बस यही तेरे मुह से सुनना चाहती थी मैं , मैं चाहती थी की तू इस दर्द से गुजरे तू समझे की कैसा लगता है कब कोई अपना भरोसा तोड़ता है जिस्म का घाव भर जाता है देव पर ये जो ज़ख्म आत्मा पे लगे है इनका क्या अब तू जानेगा की औरत बस खिलौना नहीं है की जब जी आया खेला और ठुकरा दिया

गीता – औरत जब किसी को अपना दिल देती है तो बस जिस्म की प्यास ही सबकुछ नहीं होती मैंने टूट के भरोसा किया था तेरे बाप पर पर वो भी बस निकला तो एक फरेबी , और वो रतिया हर दिन तड़पती थी मैं जब भी उसको देखती थी आठ साल इंतजार किया और फिर मुझ को वो मौका मिला उस दिन वो खेत में अकेला था शराब के नशे में चूर मुझे और क्या चाहिए था तडपा तडपा कर मारा मैंने उसको उस दिन मेरी रूह को सुकून मिला


ये दिल भी अजीब होता है देव बेसह्क मुझे तुझसे नफरत थी पर जो तूने मेरे लिए किया कही मेरे दिल के किसी कोने में तेरे लिए जज्बात भी थे आज भी मैं टूट रही हु अन्दर ही अन्दर घायल है मेरा मन जो वार मैंने तुझ पर किये है वो मुझे लहुलुहान कर गए है पर मैं क्या करू तू तेरे पिता का ही अंश है तेरी रगों में भी उसी का खून दौड़ रहा है इस गंदे खून का बह जाना ही ठीक है देव बह जाना ही ठीक है देव , तूने भी तो औरत को बस एक भोग की चीज़ ही समझा था देव


मैंने उठने की कोशिश की तभी ताई न वो बाल्टी मेरे डर पर दे मारी मैं चीख कर गिरा निचे


“ना देव ना, ”क्या करोगे उठ कर मैं चाहती हु तुम महसूस करो इस दर्द को जैसे मैंने महसूस किया बस फर्क इतना है की मैं इस दर्द के साथ जियी हु तुम कुछ देर में शांत हो जाओगे फ़ना हो जाओगे


ताई का ध्यान मंजू पर गया और मैंने चुपके से अपना फ़ोन पिस्ता को मिलाया तभी ताई मेरी तरफ मुड़ी मैंने फ़ोन छुपा लिया मैं बस इतना चाहता था की वो सुन ले यहाँ जो भी हो रहा था क्योंकि वो ही उम्मीद थी मैंने ताई को बातो में उलझाना चाहां


मैं- ताई तुझे क्या पता था की इस वक़्त मैं यहाँ कुवे पर हु


वो- बहुत भोला है तू, मेरे घर के आगे से ही तो आये थे तुम किस्मत से मैं जाग रही थी बस मौका मिल गया और मैं आ गयी दबे पाँव और तुम्हारी किस्मत ख़राब थी देव जो इस समय तुम यहाँ हो पल पल मर रहे हो हो तुम पल पल
मैं- बहुत गलत किया तुमने ताई


मेरी बात बस अधूरी रह गयी उसका चाकू मेरी पसली को चीर गया था मैं भी जान गया था की अब मैं बचूंगा नहीं पर ऐसे नहीं मर सकता था देव ऐसे नहीं मरना चाहता था मेरी नजर मंजू के पास गयी ताई उस तक पहुच चुकी थी ताई का चाकू मंजू की गर्दन पर था वो चाकू को बेहोश मंजू पर ऐसे घुमा रही थी जैसे की कोई कसी किसी बकरे पर घुमाता है


“नहीं ताई ” नहीं तू मेरी जान ले ले मंजू को जाने दे इसका कोई लेना देना नहीं है इस से जाने दे मैं तेरे पाँव पड़ता हु मंजू को कुछ मत करना जाने दे उसको


वो- तेरी तरह इसकी रगों में भी गन्दाखून दौड़ रहा है ये भी एक गंदगी है आज इसको भी तू लेजा ऊपर अपने साथ वहा दोनों हवस का खेल खेलना


एक पल के लिए ताई की और मेरी आँखे मिली और अगले ही पल उसने मंजू का गला रेत दिया मैंने चीखा पर उस चीख में भी इतना दम नहीं था वो बेचारी तो चीख भी नहीं सकी थी उस से पहले ही उसकी आधी गर्दन कट गयी थी मंजू मैंने पुकारा पर इस पुकार को सुनने वाला कोई नहीं था कोई नहीं


ताई हौले हौले मेरी तरफ बढ़ी फिर बोली- तू ये सोच रहा होगा की एक गरीब गीता ताई ने ये सब कैसे कर दिया मैं जानती हु बस यही तेरा अंतिम सवाल है तो सुन


एक गरीब मजलूम औरत की हसियत कैसे हुई , तेरा बाप वो पता नहीं किस मिटटी का बना था जिसे अपना समझ लेता उसका हो जाया करता था बिलकुल तेरी ही तरह , तेरे ताऊ को उसने एक बड़ी रकम और कुछ सोने के गहने दिए थे अब ये बात मुझसे कैसे छिपि रहती उस इंसान ने मुझे रतिया से बचाने की जरा भी कोशिश नहीं की अरे मेरा तो उस से प्रेम का नाता था पर उसने ये पैसे और गहने देकर एक तमाचा मारा था मेरे प्रेम को मैंने उसी के दिए धन से तुम्हारे खिलाफ साजिश की


बस बहुत हुआ देव बहुत हुआ सवाल जवाब में रात निकल जानी है अब तेरे जाने का वक़्त हुआ ताई ने पास में पड़ी बाल्टी ली उअर मेरे सर पर मारन लगी धाड़ धड मरिया आँखों के आगे अँधेरा छा गया खून आंसुओ में मिलने लगा सर पट गया पर उसके हाथ नहीं रुके मेरे होश खोने लगे आँखे बंद होने लगी जो रवानी मेरी धडकनों में थी वो मंद पड़ने लगी


ताई- तुझे मारके मेरा बदला तो पूरा हो जायेगा पर जी मैं भी नहीं पाऊँगी दिल के किसी कोने में पता नहीं कब तूने कब्ज़ा कर लिया था मैंने बहुत कोशिश की पर देख मैंने हर गयी अपनी नफरत के आगे मैं हार गयी तेरे बिना मैं भी किस काम की और किस काम की ये जिनदगी


अपनी आधी बेहोश आँखों से मैंने देखा की की ताई ने कोई पुडिया सी निगल ली थी और जल्दी ही वो छात्पटाने लगी मुह से झाग निकलने लगा और फिर वो मेरे पास ही गिर गयी जिस्म अकड़ गया कुछ देर तडपी फिर वो शांत पड़ गयी इधर मेरी सांसो की डोर भी बस टूट ही रही थी की मेर कानो में एक आवाज सी आई देव

.......देव


मैंने अपनी आँखे खोलने की कोशिश की पर सिवाय अँधेरे के मुझे कुछ नहीं दिखा बोने की कोशिस की पर कोई लफ्ज़ ना निकला सांस तेज तेज चल रही थी मुह से खून निकल रहा था और फिर ऐसे लगा की किसी में मुझे अपनी गोद में लिया हो ऐसे लग रहा था की बस सब शांत होने वाला है सब जैसे रुक सा गया हो अपनी पूरी ताकत लगा कर मैंने आँखे खोली कुछ घुन्ध्ला से साये मुझे अपनी तरफ दिखे और फिर मेरे कानो में एक धीमी सी आवाज आई – पापा , पापा


ये बस एक आवाज नहीं थी मेरे खून की पुकार थी जो तदप उठा था मेरे लिए ऐसा ही कुछ मैंने पहले भी देखा था जब हॉस्पिटल में मैं और मेरे पिताजी थी कुछ आंसू मेरी आँखों से निकल जिन्हें कोई भी नहीं देख पाया अपनी टूटती सांसो से मैंने धीमे से अपने बेटे को पुकारा और तभी किसी ने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया
“आर्यन मेरे बेटे ”बस होंठो ने इतना ही फुसफुसाया और फिर डोर टूट गयी दिलवाला जी गया था अपनी जिंदगी धड़कन बंद हो गयी रह गयी तो बस कुछ यादे जिनके सहारे बाकि लोगो को अब जीना था शायद यही अंत था या फिर एक नयी शुरू आत थी एक नए आने वाले कल की





समाप्त
 

kamdev99008

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219
फिर से पढ़कर दिल में दर्द की चुभन जाग गई

दिल छू लेने वाली कहानी है
HalfbludPrince मनीष भाई आप भी यहां से बैकअप ले लो अपने पास
 

Lutgaya

Well-Known Member
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Writer ne meri story dilwale copy kar ke yaha chipka di hai
फौजी भाई आपकी हर कहानी में एक वात similar होती है दो तीन प्रेमिकाए और चाची या ताई का गदराया बदन हम पाठको को तरसाने के लिए।
हीरो सभी में फक्कड मस्त मौला और कच्ची उम्र का होता है पर एक नंबर का चूत खोर।
मजा आ जाता है आपकी कहानी पढ़कर
सलाम आपकी लेखनी को भाई
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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फिर से पढ़कर दिल में दर्द की चुभन जाग गई

दिल छू लेने वाली कहानी है
HalfbludPrince मनीष भाई आप भी यहां से बैकअप ले लो अपने पास
क्या करेंगे भाई बैकअप लेकर, एक ना एक दिन वक़्त हमे भुला ही देगा
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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फौजी भाई आपकी हर कहानी में एक वात similar होती है दो तीन प्रेमिकाए और चाची या ताई का गदराया बदन हम पाठको को तरसाने के लिए।
हीरो सभी में फक्कड मस्त मौला और कच्ची उम्र का होता है पर एक नंबर का चूत खोर।
मजा आ जाता है आपकी कहानी पढ़कर
सलाम आपकी लेखनी को भाई
ताई का किरदार मेरे मन के बहुत करीब है, इसे एक तरह का आदर कह सकते है, हमारे जीवन मे कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जो नहीं होना चाहिए पर वो जो हुआ उसे केवल आप समझते है, यही सार है ताई के किरदार का



रही बात दो तीन प्रेमिकाओं की तो ये एक राज की बात है इसे दबी ही रहने दीजिए
 

Lutgaya

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ताई का किरदार मेरे मन के बहुत करीब है, इसे एक तरह का आदर कह सकते है, हमारे जीवन मे कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जो नहीं होना चाहिए पर वो जो हुआ उसे केवल आप समझते है, यही सार है ताई के किरदार का



रही बात दो तीन प्रेमिकाओं की तो ये एक राज की बात है इसे दबी ही रहने दीजिए
फौजी भाई आपके दबे हुए राज बडे कातिलाना हैं।
धीरे धीरे खोलते जाइए।👁️
एकाध कहानी मां बेटे या भाई बहन पर भी✍️ लिखिए, गांव की मिट्टी से जुडी हुई🙏
 

Ag Mahan

:dazed:
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एकाध कहानी मां बेटे या भाई बहन पर भी✍️ लिखिए
Ye uska type nahi hai aur na hi kabhi likhega, ek baar try kiya tha chhota sa scene add karne ka behan bhai par lekin ho nahi paaya tha :D
 

kamdev99008

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क्या करेंगे भाई बैकअप लेकर, एक ना एक दिन वक़्त हमे भुला ही देगा
कहानियाँ और लेखक कालजयी होते हैं, ये न मरते हैं और न भुलाये जाते हैं....

इसीलिए आज ये थ्रेड बनाकर Incest भाई ने ना सिर्फ खुद आपको याद किया बल्कि और भी हजारों लाखों पाठकों को दोबारा याद दिलाया....
कालजयी.... अर्थात जो काल (समय/वक्त) के परिवर्तन (कालान्तर) के याथ भी जीवित रहते हैं
 
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