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Adultery Diwali ka Jua - 3 (Incest + Adultery)

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Update 3

अचानक रश्मी ने देखा की अपने दोनो हाथ उपर करके रुची ने अपनी टी शर्ट को उतार कर नीचे फेंक दिया...नीचे उसने एक सेक्सी सी ब्रा पहनी हुई थी..
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.जिसमे उसके 32 साइज़ के बूब्स क़ैद थे...फिर रश्मी के देखते ही देखते रुची ने अपनी स्कर्ट भी उतार दी...और अब वो उसके भाई के कमरे मे सिर्फ़ ब्रा-पेंटी मे खड़ी थी..





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पेंटी की हालत देखकर रश्मी समझ गयी की वो कितनी ज़्यादा उत्तेजित है...क्योंकि वो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी.
आज पहली बार रश्मी ने अपनी सहेली को ऐसी हालत मे देखा था...कपड़ो में तो वो साधारण सी ही लगती थी...पर अब उसका कसा हुआ बदन किसी लिंगरी मॉडेल से कम नही लग रहा था...बिल्कुल सही आकार के बूब्स थे उसके...सपाट पेट और भरी हुई सी गांड ...
वो उसकी सुंदरता का अवलोकन कर ही रही थी की रुची ने एक और दुसाहसी कदम उठाते हुए पहले अपनी पेंटी और फिर ब्रा भी खोल कर नीचे गिरा दी..और अब वो पूरी नंगी होकर खड़ी थी


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उस छोटे से कमरे मे...जहाँ उसका भाई गहरी नींद मे सोया हुआ था...
रश्मी समझ गयी की अब ये क्या करने वाली है...वैसे भी कल रात को ही मोनू ने बता दिया था की वो उसके साथ फकिंग कर चुका है...इसलिए उसे अभी चुदाई के लिए तैयार होते देखकर रश्मी को ज़्यादा आष्चर्य नही हुआ..
रुची ने अपना हाथ अपनी चूत पर रगड़ा और ढेर सारा शहद निकाल कर मोनू के लंड पर मल दिया...और फिर अपना मुँह नीचे करके उसने उस शहद से डूबे भुट्टे को अपने मुँह मे लिया और ज़ोर-2 से चूसने लगी...
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मोनू का शरीर कुछ देर के लिए कसमसाया...पर शायद गहरी नींद में था वो..इसलिए कुछ और नही किया...पर उसका सिर इधर-उधर होने लगा था...क्योंकि नींद मे ही सही, उसे ये एहसास हो रहा था की उसका लंड चूसा जा रहा है...
फिर रुची ने एक मिनट तक चूसने के बाद उसे बाहर निकाला और मोनू के पलंग पर चढ़ गयी ..उसके दोनों तरफ टांगे करते हुए उसने उसके लंड को ठीक अपनी चूत के उपर रखा और धप्प से उपर बैठ गयी..


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''अहह....... उम्म्म्मममममममममम ............ ओह .... मोनू .............. ''
और अपने लंड पर दबाव का एहसास और रुची की चीख सुनकर मोनू की नींद एकदम से खुल गयी..और सोते हुए वो ये सपना देखा रहा था की उसका लंड रश्मी चूस रही है..और चुदाई भी वो करवा रही है...इसलिए आँखे खुलने से पहले उसके मुँह से एक उत्तेजना से भारी आवाज़ निकली : "ओह ..... रश्मी ..........''
और फिर जब उसने आँखे खोलकर देखा की असल मे उसके उपर रुची है तो उसके तो जैसे होश ही उड़ गये...
मोनू : " ये...ये क्या ..... रुची ...... तू ....यहाँ ....और ये क्या है ..... श तेरी ......''
और रुची उसे शक भारी नज़रों से देखते हुए ,गुस्से मे भरकर बोली : "क्या बोला तू अभी....रश्मी बोला था न ...''
तब तक मोनू की नज़र बाहर छुपकर उनकी चुदाई देख रही रश्मी पर जा चुकी थी..और उसे समझते देर नही लगी की असल मे हो क्या रहा है वहाँ...
वो एकदम से बोला : "अरी बेवकूफ़...अपने पीछे देख...रश्मी दीदी खड़ी है..उन्हें देखकर बोला था मैं ''
और इतना कहते हुए उसने नीचे गिरी हुई चादर अपने और रुची के नंगे जिस्म पर खींच ली..
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रश्मी भी समझ गयी की अब छुपने का कोई फायदा नही है...वो बाहर निकल कर अंदर आ गयी..
और रुची की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे कोई चोर चोरी करते हुए पकड़ा गया हो...एक तो उसकी पुरानी सहेली , उपर से उससे बोलचाल बंद...और साथ ही वो उसके घर पर ही उसके भाई से चुदवाती हुई पकड़ी गयी..इससे ज़्यादा शरम की और क्या बात हो सकती है...
रश्मी के लिए ऐसे मोनू के कमरे मे खड़े रहना थोड़ा अजीब सा था...कल रात को उनके बीच वो बात चीत न हुई होती तो शायद मोनू के देख लेने के बाद वो भागकर नीचे चली जाती और बाद मे इस घटना के बारे मे कोई बात भी नही करती...पर अब दोनो के बीच हालात बदल चुके थे..
दूसरी तरफ मोनू को भी ज़्यादा डर नही लगा...क्योंकि इतनी अंडरस्टैंडिंग तो हो ही चुकी थी उनमें कल रात , जब वो अपनी बहन को देखकर और उसकी बहन उसको देखकर और वैसी बाते करके कितने उत्तेजित हो रहे थे...
रश्मी : "तो ये सब होता है रोज मेरे जाने के बाद...''
रुची ने अपना चेहरा चादर के अंदर छुपा लिया...बेचारी अपना मुँह तक नही दिखा पा रही थी अपनी पुरानी सहेली को..
रश्मी ने एकदम से हंसते हुए कहा : "इट्स ओके रुची ..... ऐसे शरमाने की या डरने की कोई ज़रूरत नही है... मुझे मोनू ने सब बता दिया है तुम दोनों के बारे में ...''
रुची ने एकदम से अपना सिर चादर से बाहर निकाला...और मोनू के चेहरे को घूरने लगी..
मोनू : "अरे .... कल रात ही बात हुई थी तुम्हे लेकर...इसलिए बताना पड़ा...डोंट वरी ... दीदी से डरने की कोई बात नही है..''
रश्मी : "हाँ ...रुची ....और मै किचन मे ही थी...जब तुम उपर आई...इसलिए मैने जब तक उपर आकर देखा की तुम क्या कर रही हो तो.....आधे से ज़्यादा मामला निपट चुका था....''
उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी.
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उसकी बात सुनकर रुची के साथ-2 मोनू भी शरमा गया.
रश्मी : "अब जल्दी से बाकी का काम निपटा लो मोनू ...और तैयार हो जाओ...हॉस्पिटल भी जाना है...में नीचे नाश्ता बना रही हू...''
इतना कहकर वो नीचे उतर गयी...उन दोनों को उसी हालत मे छोड़कर..
पर रश्मी ने नीचे उतरने के 5 मिनट बाद ही रुची भी नीचे उतरी और रश्मी से बिना कुछ बोले बाहर निकल गयी.शायद उन्होंने रश्मी के घर पर रहते चुदाई के इरादे को त्याग दिया था
आधे घंटे बाद मोनू भी तैयार होकर नीचे आ गया...और दोनो हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े..

 
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शाम तक दोनो अपनी माँ को डिसचार्ज करवाकर घर ले आए...और उन्होने संभलकर उन्हे उपर वाले कमरे मे भी पहुँचा दिया..डॉक्टर्स के परामर्श के अनुसार अब उन्हे अगले 5 दीनो तक वो इंजेक्शन लगना था..आज का वो लगवा कर ही आए थे....इसलिए 8 बजते-2 रश्मी ने खाना भी बना दिया और उन्हे खाना खिला कर सुला भी दिया..
मोनू बाहर गया हुआ था...रश्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम मे बैठकर टीवी देख रही थी की बाहर की बेल बजी..
उसने दरवाजा खोला तो बाहर मोनू अपने 2 दोस्तों के साथ खड़ा था.
मोनू : "आ जा भाई ....अपना ही घर समझ .... ''
और रश्मी को उनका परिचय करवाते हुए बोला : "दीदी ...ये मेरे दोस्त है .... ये रिशू, इसको तो आप जानती ही हो.... और ये है राजेंद्र...मतलब राजू ...''
दोनो ने रश्मी को नमस्ते की और अंदर आकर बैठ गये.
दोनो भाई बहन ने पहले से डिसाईड कर लिया था की कैसे वो योजना के अनुसार खेलने के लिए मैदान में उतरेगी..
सो अंदर आते ही मोनू शुरू हो गया : "दीदी ....अब आपके कहने पर ही में आज घर पर आकर खेल रहा हू...थोड़ा बहुत शोर शराबा हुआ तो आप बुरा मत मानना ..''
रश्मी : "अब तेरी दीवाली के दिनों मे जुआ खेलने की जिद्द है तो में क्या कर सकती हू ... जब तूने खेलना ही है तो घर पर ही खेल ना... माँ की तबीयत खराब हुई तो में अकेली कहाँ भागूँगी .तू घर पर रहेगा तो मुझे तसल्ली रहेगी..''
ये सब बातें वो अपनी बनाई योजना के अनुसार कर रहे थे..
उसके बाद वो तीनों वहीं टेबल के चारो तरफ बैठ गये...और पत्ते बाँटने लगे..
रश्मी भी मोनू के पास जाकर बैठ गयी और बोली : "अब मैने बोर तो होना नही है....में भी तुम्हारे पास बैठकर ये खेल देखूँगी..''
मोनू कुछ बोल पता, इससे पहले ही रिशू बोल पड़ा : "हां ...हां ..रश्मी ..क्यों नही ...ज़रूर बैठो ....''
उसकी आँखो की चमक बता रही थी की वो रश्मी को ऐसे पत्तो के खेल मे इंटरस्ट लेते देखकर कितना खुश हो रहा था...अब उसकी खुशी के पीछे मंशा क्या थी,ये तो वो ही जाने, पर उसकी बात सुनकर रश्मी भी हँसती हुई सी मोनू के साथ बैठ गयी और फिर शुरू हुआ जुआ.
रश्मी सोफे के साइड मे हाथ रखने वाली जगह पर बैठी थी...मोनू के कंधे पर हाथ रखकर...उसके उपर झुकी हुई सी..मोनू को उसकी गर्म साँसे अपने कान और चेहरे पर सॉफ महसूस हो रही थी..
मोनू ने पत्ते बाँटे..और सभी ने बूट के 100 रुपय बीच मे रख दिए..
और उसके बाद सभी ने 2 बार ब्लाइंड भी चली 100-100 की..
सबसे पहले राजू ने अपने पत्ते उठा कर देखे..और देखने के साथ ही उसने 200 की चाल चल दी.
चाल देखते ही रिशू ने भी अपने पत्ते उठा कर देखे..पर देखने के साथ ही पैक भी कर दिया..
अब बारी थी मोनू की
मोनू ने मुड़कर रश्मी की तरफ देखा...उसने सिर हिला कर उसे इशारा किया और अगले ही पल मोनू ने फिर से ब्लाइंड चल दी
राजू बोला : "ओहो ..... इतना कॉन्फिडेन्स ....आज क्या हो गया तुझे...''
और हंसते हुए उसने फिर से 400 की चाल चल दी...डबल करते हुए.
अब तो मोनू को भी डर सा लगने लगा..उसने अपने पत्ते उठा कर देखे...एक-2 करते हुए..
पहला पत्ता था इक्का..
दूसरा निकला बादशाह...
मोनू का दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा...वो सोचने लगा की अगला पत्ता कोई भी आ जाए...बेगम आए तो सबसे बढ़िया ...वरना..एक और इक्का...या एक और बादशाह ...कलर तो बन नही सकता था...क्योंकि अभी तक के दोनो पत्ते अलग-2 थे..
उसने भगवान का नाम लेते हुए तीसरा पत्ता भी देखा...
वो गुलाम निकला..
शिट यार....ऐसा कैसे हो सकता है...शायद...मैं खेल रहा हू इसलिए...रश्मी खेलेगी तो उसके पास पत्ते आएँगे ना अच्छे ...मैं बेकार में ही इतना आगे खेल गया..पर फिर भी,शो माँगने लायक तो थे ही उसके पत्ते..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया..
राजू ने अपने पत्ते सामने फेंक दिए..उसके पास पान का कलर था..
मोनू ने अपने पत्ते नीचे पटक दिए..
राजू ने हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए..
रश्मी ने झुक कर राजू के पत्ते उठा कर देखे..शायद वो ये देखने की कोशिश कर रही थी की कही बीच मे पान के अलावा कोई दूसरा लाल रंग ना हो...
पर इतना ही समय काफ़ी था, राजू की तीखी नज़रों ने उसके गले की गहराई नाप ली...उसकी ब्लेक ब्रा मे कसे हुए उसके दोनो मुम्मे किसी टेनिस बॉल्स की तरह अपने जाल मे फँसे हुए दिख गये
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उसे...उसने गहरी मुस्कान के साथ रिशू की तरफ देखा...वो भी शायद उस गहराई को देख चुका था...दोनों के चेहरों पर कुटिलता से भरी हँसी आ गयी..और आँखो ही आँखो मे उन्होने रश्मी की जवानी से भरी छातियों का गुणगान कर दिया..
अगली गेम शुरू हुई...इस बार दो ब्लाइंड चलने के बाद रिशू ने पत्ते देखे और पेक कर दिया..दो और ब्लाइंड चलने के बाद मोनू ने पत्ते उठा लिए...वो अभी के लिए ज़्यादा रिस्क नही लेना चाहता था...पर उसके पास बड़े ही बेकार पत्ते आए...7, 3, 5.
उसने बिना शो माँगे ही पैक कर दिया...
राजू ने फिर से हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए.
मोनू : "आज तो लगता है इसी का दिन है...दो गेम में ही डेड -दो हज़ार जीत गया...''
राजू : "मोनू भाई, ये तो वक़्त-2 की बात है...कल तुम्हारा दिन था...आज मेरा दिन है...और वैसे भी, अभी तो खेल शुरू हुआ है...शायद तुम जीत जाओ आगे चलकर...''
मोनू ने मन मे सोचा 'वो तो होना ही है...एक बार रश्मी को आने दो बीच मे..फिर देखना, तुम्हारी जेब कैसे खाली करवाता हूँ मैं...''
अगला खेल शुरू हुआ..तभी मोनू बोला : "मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हू...तुम मेरे पत्ते रश्मी को बाँट दो...तब तक ये खेल लेगी...''
इसमे भला उन दोनो को क्या परेशानी हो सकती थी..उनके तो चेहरे और भी ज़्यादा चमक उठे..
मोनू उठकर उपर चला गया..
रश्मी सोफे पर बैठी..उसका दिल अब जोरो से धड़क रहा था..राजू ने गड्डी को रश्मी की तरफ बढ़ाया .ताकि वो उसे काट सके..जैसे ही रश्मी ने गड्डी पर हाथ रखा, राजू ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखकर उसे दबोच लिया..
राजू : "अर्रे...अर्रे ....ऐसे नही....इतने पत्ते मत निकालो...थोड़ा आराम से...आधे से कम काटो...आराम से...''
और ये सब कहते-2 वो रश्मी के नर्म और मुलायम हाथ को अपने कठोर हाथों से सहला भी रहा था..
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रश्मी भी उसके ऐसे स्पर्श के महसूस करके कसमसा उठी..उसके शरीर के रोँये खड़े हो गये...क्योंकि आज तक उसे किसी ने इस तरह से छुआ नही था..कल अपने भाई का स्पर्श और अब इस राजू का...दो दिन मे दो मर्दों के शरीर ने उसे छुआ था..ये एक कुँवारी लड़की के लिए एक शॉक से कम नही होता..
रश्मी ने थोड़े से ही पत्ते उठाए और ताश को काट कर नीचे रख दिया.राजू ने पत्ते बाँटे.
बूट के बाद सभी ने 3-3 बार ब्लाइंड चली..रश्मी वैसे तो निश्चिन्त ही थी, क्योंकि उसे पता था की उसके पत्ते अच्छे ही निकलेंगे..पर एक डर भी लग रहा था..की कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए...
और ऐसा सोचते-2 उसने एकदम से अपने पत्ते उठा लिए...उन्हे देखकर उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था...एक बादशाह था...दूसरी बेगम....और तीसरा दस.
मोनू ने तो कहा था की उसके पत्ते हमेशा चाल चलने लायक होते हैं...उसने गेम समझ तो ली थी..पर अभी तक सही से वो अपने दिमाग़ मे बिठा नही पाई थी..पर फिर भी मोनू की बात को याद करते हुए उसने चाल चल दी ..
रिशू तो रश्मी के हुस्न का दीदार करने मे मस्त था...वो उसकी छातियों को टकटकी लगाकर देखे जा रहा था..और उसका साइज़ क्या होगा ये सोचने मे मग्न था...उसके निप्पल किस पॉइंट पर होंगे, वो उसकी रूपरेखा बना रहा था...ब्रा तो वो देख ही चुका था उसकी, ब्लैक कलर की..अगर वो ब्रा में ही बैठकर खेले तो कितना मज़ा मिलेगा..
और रिशू को अपनी तरफ ऐसे देखते देखकर रश्मी का दिल भी हिचकोले खा रहा था...और उसके दोनो निप्पल एकदम से सख़्त होकर सूट के कपड़े मे उभर आए...
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और रिशू का अंदाज़ा बिल्कुल सही निकला, उसने जिस जगह पर सोचा था, वहीं पर उसे हल्के-2 निप्पल्स उभरते हुए दिख गये..वो अपनी क़ाबलियत पर खुश हो गया.
पर रश्मी को चाल चलते देखकर उसने एकदम से अपने पत्ते उठाए...उसके पास इक्का और दो छोटे पत्ते थे...चाल चलने या शो माँगने का सवाल नही था, क्योंकि राजू ने अभी तक अपने पत्ते देखे भी नही थे..
रिशू ने पेक कर दिया.
अब राजू की बारी थी....उसने अपने पत्ते उठाए...उसके पास इक्का, बादशाह और दुग्गी थी...उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे...क्योंकि सामने से चाल आ चुकी थी...पर वो इतने पैसे जीत चुका था अभी तक की शो माँगकर भी वो ही फायदे में ही रहता...और वैसे भी वो देखना चाहता था की रश्मी के पत्ते कैसे हैं...उसे खेलना भी आता है या नही..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया..
और रश्मी के पत्ते देखकर वो ज़ोर-2 से हँसने लगा..और सारे पैसे बीच मे से उठा कर अपनी तरफ कर लिए...रिशू भी रश्मी के पत्ते देखकर मुस्कुरा दिया और बोला : "अभी तुम्हे सही से खेलना आता नही है रश्मी...या फिर तुम ब्लफ खेल रही थी...''
तब तक उपर से मोनू भी आ गया...उसने भी बीच मे पड़े रश्मी और राजू के पत्ते देखे...उसे तो विश्वास ही नही हो रहा था की रश्मी अपनी पहली ही गेम में हार गयी...उसने तो क्या-2 सोचा हुआ था..पर ऐसे रश्मी को हारता हुआ देखकर उसे अपनी सारी प्लानिंग फैल सी होती दिख रही थी..
मोनू : "अरे नही....ब्लफ भला ये क्या जाने...हम दोनो बस घर बैठकर थोड़ा बहुत खेल लेते हैं, बस वही आता है इसे...चलो, एक बार और बाँटो पत्ते...देखते हैं की इसकी कैसी किस्मत है ...''
रश्मी के साथ एक बार
और खेलने की बात सुनकर रिशू और राजू मुस्कुरा दिए...पर रश्मी ने धीरे से मोनू के कान मे कहा : "नही मोनू...तुम ही खेलो...मुझे नही लगता की मैं कल की तरह जीत पाऊँगी ..वो शायद कोई इत्तेफ़ाक था...ऐसे ही बेकार मे अपने पैसे मत बर्बाद करो...''
मोनू फुसफुसाया : "नही दीदी....एक और गेम खेलो...शायद इस बार अच्छे पत्ते आ जाए..प्लीज़ ...मेरे कहने पर...''
और मोनू के ज़ोर देने पर रश्मी फिर से खेलने लगी.
उसके निप्पल का साइज़ और भी ज़्यादा बड़ चुका था...शायद परेशानी में भी लड़कियो के निप्पल खड़े हो जाते हैं, जैसे उत्तेजना के वक़्त होते हैं...
वो दोनो हरामी तो उसकी छातियों पर लगे छोटे-2 बल्ब देखकर अपने लंड सहला रहे थे.

..मोनू का ध्यान इस बात पर नही था अभी...उसे तो चिंता सता रही थी की अगली गेम वो जीतेगा या नही..
पत्ते फिर से बाँटे गये...बूट के बाद 2-2 बार ब्लाइंड भी चली गयी...रिशू ने फिर से अपने पत्ते उठाए...और पहली बार वो अपने पत्ते देखकर खुश हुआ...और उसने 200 की चाल चल दी..
रिशू के बाद राजू ने भी अपने पत्ते देखे और चाल चल दी..
मोनू ने रश्मी को भी अपने पत्ते उठाने के लिए कहा..
रश्मी ने काँपते हाथों से एक-2 करके अपने पत्ते उठाए..
पहला 7 नंबर था..
दूसरा पत्ता 9 नंबर था...और अभी तक के दोनो पत्ते हुक्म के थे..
 
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मोनू मन ही मन खुश हो रहा था...उसे तो जैसे पूरा विश्वास था की इस बार या तो 8 आएगा, जिसकी वजह से 7,8,9 का सीक़वेंस बन जाएगा...या फिर एक और हुक्म का पत्ता आएगा जिसकी वजह से कलर बन सकेगा...अगर दोनो मे से कुछ भी नही आया तो पेयर बनाने के लिए 7 या 9 में से कुछ भी आ जाएगा..
पर जैसे ही रश्मी का तीसरा पत्ता देखा, उसका दिल धक से रह गया..वो ईंट का 4 था..
ये तो हद ही हो गयी...ऐसे बेकार पत्ते तो उसके पास भी नही आते थे...और ये अब रश्मी के पास आ रहे हैं...ऐसा कैसे हो सकता है...क्यों कल की तरह रश्मी के पास अच्छे पत्ते नही आ रहे...क्यों वो हार रही है...
उसने अपने दाँत पीस लिए और रश्मी को पेक करने के लिए कहा..
रश्मी ने पत्ते फेंक दिए..और मोनू से धीरे से बोली : "मैने कहा था ना...कल शायद कोई इत्तेफ़ाक था...तुम बेकार मे मुझसे खिलवा रहे हो और हार भी रहे हो...''
और इतना कहकर वो भागती हुई सी किचन मे चली गयी...ये कहकर की चाय बना कर लाती हूँ सबके लिए..
मोनू कुछ नही बोल पाया..
इसी बीच रिशू और राजू चाल पर चाल चल रहे थे...दोनो ही झुकने को तैयार नही थे...मोनू भी समझ गया की दोनो के पास अच्छे पत्ते आए होंगे...
बीच मे लगभग 8 हज़ार रुपय इकट्ठे हो चुके थे...आख़िर मे जाकर राजू ने शो माँगा..रिशू ने अपने पत्ते दिखाए...उसके पास सीक़वेंस आया था..5,6,7
और रिशू के पास कलर था, ईंट का..उसने अपना माथा पीट लिया...वो जीते हुए पैसो के अलावा अपनी जेब से भी 3 हज़ार हार चुका था..
रिशू ने हंसते हुए सारे पैसे समेत लिए..
रिशू : "हा हा हा ...सो सुनार की और एक लोहार की ...''
मोनू बोला : "मैं ज़रा रश्मी को देखकर आता हू, उसे शायद लग रहा है की उसकी वजह से मैं हार गया...''
रिशू : "हाँ भाई...जाओ ...मना कर लाओ उसको ...ऐसे दिल छोटा नही करते....मैं भी तो इतनी गेम हारने के बाद जीता हूँ ..वो भी जीतेगी..जाओ बुला लाओ उसको...तब तक हम इंतजार करते है...''
मोनू भागकर किचन मे गया...रश्मी रुंआसी सी होकर चाय बना रही थी..
मोनू : "क्या दीदी...आप भी ना....ऐसे अपना मूड मत खराब करो...''
रश्मी एक दम से रो पड़ी और मोनू से लिपट गयी : "मैने कहा था ना, मुझसे नही होगा ये...तुमने बेकार मे अपने इतने पैसे बर्बाद किए मेरी वजह से...ऐसे ही चलता रहा तो कल वाले सारे पैसे हार जाओगे...माँ का इलाज कैसे करवाएँगे...''
मोनू उसकी पीठ सहलाता हुआ बोला : "ऐसा मत सोचो दीदी ....चलो चुप हो जाओ...कोई ना कोई बात तो ज़रूर है...मेरा अंदाज़ा खाली नही जाता ऐसे...''
और फिर कुछ देर चुप रहकर वो बोला : "दीदी...ये टोटके बाजी वाला खेल होता है...अगर तुम जीत रहे हो तो तुमने क्या पहना था ये याद रखो..किस सीट पर बैठे थे वो याद रखो....''
रश्मी : "मतलब ??"
मोनू : "मतलब ये की तुम शायद उन्ही चीज़ो की वजह से जीत रही थी जो उस वक़्त वहाँ मोजूद थी...जैसे तुम्हारे कपड़े...तुमने कल रात को अपना नाइट सूट पहना हुआ था..वही पहन कर आओ...शायद उसकी वजह से तुम जीत रही थी कल...''
रश्मी : "तू पागल हो गया है...तेरे सामने अलग बात थी..पर इन दोनो के सामने मैं नाइट सूट क्यो पहनू ....नही मैं नही पहनने वाली....मुझसे नही होगा..''
अब भला वो अपने भाई से क्या बोलती की वो नाइट सूट क्यो नही पहनना चाहती..उसका गला इतना चोडा है की उसकी क्लीवेज साफ दिखाई देती है उसमे...और उसकी कसी हुई जांघों की बनावट भी उभरकर आती है उसमे क्योंकि उसका पायज़ामा काफ़ी टाइट है...
मोनू : "दीदी ...आप समझने की कोशिश करो...मैने कहा ना, इनसे घबराने की ज़रूरत नही है...इन्हे भी अपना भाई समझो...जाओ जल्दी से पहन कर आओ...मैं चाय लेकर जाता हुआ अंदर...''
और रश्मी की बात सुने बिना ही वो चाय लेकर अंदर आ गया...बेचारी रश्मी बुरी तरह से फँस चुकी थी...वो बड़बड़ाती हुई सी उपर अपने कमरे मे चल दी...अपना नाइट सूट पहनने...
अगली गेम से पहले सभी चाय पीने लगे...रिशू ने पत्ते बाँटने के लिए गड्डी उठाई ही थी की मोनू बोला : "रूको ...रश्मी को भी आने दो...वो बेचारी समझ रही है की उसकी वजह से मैं हार गया...एक-दो गेम और खेलने दो बेचारी को...शायद जीत जाए...वरना रोती रहेगी की उसकी वजह से मैं हार गया.."
उन दोनो को भला क्या परेशानी हो सकती थी...वो तो खुद रश्मी के हुस्न को देखते हुए खेलना चाहते थे...
राजू बोला : "पर रश्मी आएगी कब ?"
तभी उसके पीछे से आवाज़ आई : "आ गयी मैं ...''
और सभी की नज़रें रश्मी की तरफ घूम गयी...और उसे उसकी नाइट ड्रेस मे देखकर सभी की आँखे फटी रह गयी...




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छोटी सी नाईटी में दीदी सेक्स बॉम्ब जैसी लग रही थी...वो दोनो तो आँखो ही आँखो मे उसे चोदने लगे...
और मोनू अगली गेम में जीतने वाले पैसों के बारे मे सोचने लगा..
अब तो मोनू को पूरा भरोसा था की अगली गेम रश्मी ही जीतेगी..उसने रश्मी को अपनी सीट पर बिठाया और बोला : "चलो ....अब आप खेलो दीदी .....देखना , इस बार आप जीतकर रहोगी...''
बैठने के साथ ही उसकी दोनो बॉल्स झटके से उपर नीचे हुई..

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.और उसकी क्लिवेज और भी ज़्यादा उभरकर बाहर आ गयी..मोनू की नज़रें तो पत्तो पर थी पर रिशू और राजू के मुँह से तो पानी ही टपकने लगा बाहर...उन्होने अपनी जीभ को होंठों पर फेर कर सारा रस निगल लिया..
अगली गेम शुरू हो गयी
सबने बूट के बाद 3-3 ब्लाइंड भी चल दी..
अगली ब्लाइंड की बारी रश्मी की थी...मोनू ने 100 के बदले सीधा 500 की ब्लाइंड चल दी..
हैरान होते हुए रिशू ने भी 500 की ब्लाइंड चल दी..
पर राजू इस बार डर सा गया...उसने अपने पत्ते उठा कर देखे...10 नंबर था उसका सबसे बड़ा...उसने बुरा सा मुँह बनाते हुए पॅक कर दिया.
मोनू ने फिर से 500 की ब्लाइंड चली..अब तो रिशू ने भी अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास सबसे बड़ा पत्ता बादशाह था...उसने रिस्क लेना सही नही समझा और पेक कर दिया..
उसके पेक करते ही मोनू खुशी से चिल्ला उठा : "देखा रश्मी, मैने कहा था...आप जीत गयी...''
पैसे भले ही ज़्यादा नही आए थे...पर पहली जीत थी वो रश्मी की, दोनों मन ही मन खुश हो गए की उनका टोटका काम कर गया
अब तो रश्मी भी मोनू की कपड़े बदलने वाली बात को सही मान रही थी, उसने कल भी यही कपड़े पहने थे और जीत रही थी...और अभी से पहले दूसरे कपड़े मे वो हार रही थी, पर कल वाले कपड़े पहनते ही वो फिर से जीत गयी...
मोनू ने बीच मे रखे सारे पैसे अपनी तरफ खिसका लिए..
और साथ ही साथ सारे पत्ते भी उठा कर वापिस गड्डी में लगा दिए..अभी तक किसी ने भी रश्मी के पत्ते देखे नही क्योंकि सामने से शो ही नही माँगा गया था..
मोनू ने रश्मी के पत्ते उठाए और गड्डी में डालने से पहले उन्हे देखा.
वो थे 2,5, 7
इतने छोटे पत्ते और वो भी बिना कलर के...उसने उपर वाले का शुक्र मनाया की सामने से किसी ने शो नही माँगा , वरना ये गेम भी वो हार जाते...क्योंकि उसे पूरा विश्वास था की दोनो में से किसी ना किसी के पत्ते तो उससे बड़े ही होते...
पर ऐसा क्यों हुआ....वो तो समझ रहा था की रश्मी के कपड़े बदल लेने के बाद वो जीतेगा ...पर उसका ये टोटका काम क्यो नही आया...ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था .
उसने मन ही मन कुछ सोच लिया और अगली गेम शुरू हुई.
और पत्ते बाँटने के बाद 2-2 ब्लाइंड चली गयी , पर इस बार मोनू ने तीसरी ब्लाइंड चलने से पहले ही रश्मी के पत्ते उठा कर देख लिए. रश्मी के पास थे 9,गुलाम और बादशाह
वो भी बिना कलर के..
पर फिर भी उसने रिस्क लेते हुए 200 की चाल चल दी.
राजू : "क्या हुआ मोनू...पिछली बार तो 500 की ब्लाइंड चल रहा था...और अब जीतने के बाद 100 से आगे ही नही बड़ा...सीधा चाल चल दी...''
मोनू कुछ नही बोला...वो तो अपनी केल्कुलेशन मे लगा हुआ था.
पर चाल बीच मे आ चुकी थी, इसलिए राजू ने अपने पत्ते उठा कर देखे...और देखने के साथ ही चाल चल दी.
रिशू ने अपने पत्ते देखे और उसने भी मंद-2 मुस्कुराते हुए चाल चल दी.
मोनू ने तो ब्लफ खेला था..उसके पास वैसे भी चाल चलने लायक पत्ते नही थे...उसने फ़ौरन पेक कर दिया..
अब खेल शुरू हुआ रिशू और राजू के बीच...दोनो चाल पर चाल चल रहे थे...और आख़िर मे जब बीच मे लगभग 6 हज़ार रुपय इकट्ठे हो गये तो रिशू ने शो माँग लिया...
राजू ने अपने पत्ते सामने फेंके..
वो थे 3,4,5 की सीक़वेंस..
उसे देखते ही रिशू ठहाका लगाकर हंस दिया...उसने अपने पत्ते सामने फेंक दिए
उसके पास थे 9,10,11 की सीक़वेंस.
वो जैसे ही सारे पैसे अपनी तरफ करने लगा, राजू ने रोक दिया और बोला : "मेरे पत्ते दोबारा देख भाई...इतना खुश मत हो अभी...''
रिशू और मोनू ने फिर से राजू के पत्तो की तरफ देखा..वो थे तो 3,4,5 पर साथ ही साथ वो कलर मे भी थे...लाल पान का कलर..यानी प्योर सीक़वेंस.
रिशू बुदबुदाया : "साला...हरामी...आज तो इसकी किस्मत अच्छी है..''
और अब ठहाका लगाने की बारी राजू की थी...उसने सारे पैसे बीच में से अपनी तरफ खिसका लिए.
अगली गेम शुरू होने को ही थी की मोनू बोल पड़ा : "यार...अभी और रहने देते हैं...माँ को दवाई भी देनी है और उन्हे इंजेक्शन भी लगाना है...बाकी कल खेलेंगे..''
रश्मी बोलने ही वाली थी की दवाई और इंजेक्शन तो दे ही चुके हैं...पर मोनू ने उसे इशारे से चुप करवा दिया.
अब वो दोनो भी क्या बोल सकते थे...मन मसोस कर दोनो वहाँ से चले गये.अगले दिन आने का वादा करके
उनके जाते ही रश्मी बोली : "तुमने ऐसा क्यो बोला...माँ को दवाई और इंजेक्शन तो दे ही चुके हो..और हम एक गेम भी तो जीत ही चुके थे..''
मोनू : "दीदी...वो गेम जो हमने जीती थी, उसमे पत्ते बड़े ही बेकार आए थे...वो तो शुक्र है की उन दोनो ने भी पेक कर दिया, वरना वो गेम भी हम हार जाते...''
रश्मी : "पर तुमने तो कहा था की कल वाले कपड़े पहन कर आओ, तो जीत जाएँगे...मैने तो पहले ही कहा था की ये सब तुक्का था...कल और बात थी...आज खेलने में सब सामने आ गया...''
मोनू उसकी बाते सुनता रहा...और कुछ देर चुप रहने के बाद बोला : "दीदी .... वो .....आपने ये कल वाले ही कपड़े पहने है ना..''
रश्मी : "हाँ ....ये वही है....''
मोनू (झिझकते हुए) : "और अंदर....''
उसकी आवाज़ बड़ी ही मुश्किल से निकली उसके मुँह से....नज़रें ज़मीन पर थी उसकी.
रश्मी : "अंदर...? मतलब ....''
पर अगले ही पल उसका मतलब समझ कर वो झेंप सी गयी...मोनू उसके अंडरगारमेंट्स के बारे मे पूछ रहा था..
रश्मी ने अपने दिमाग़ पर ज़ोर दिया , उसने अभी ब्लेक कलर की ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी ...पर कल....कल तो मोनू के साथ खेलते हुए उसने अंदर कुछ भी नही पहना था..
अब ये बात वो मोनू को कैसे बोलती..पर शायद ये वजह भी हो सकती है उसके हारने की..शायद कल वो बिना अंडरगारमेंट्स के थी, इसलिए जीत रही थी...
रश्मी : "तुम्हारे टोटके के हिसाब से क्या कल वाले कपड़े सेम तो सेम वही होने चाहिए...तभी मैं जीतूँगी क्या ??''
मोनू ने हाँ में सिर हिला दिया.
रश्मी : "चलो...वो भी देख लेते हैं ....तुम यही बैठो...मैं अभी आई...''
और इतना कहकर वो भागकर उपर अपने कमरे मे चली गयी..
अब मोनू उसे क्या बोलता, वो तो अच्छी तरह जानता था की कल रश्मी ने अंदर कुछ भी नहीं पहना हुआ था...उसके खड़े हुए निप्पल उसे अभी तक याद थे...आज तो उसने ब्रा पहनी हुई थी...उसकी बगल मे बैठकर वो ये तो अच्छी तरह से देख चुका था...पर उस वक़्त उसके मन मे ये बात नही आई थी..पर लास्ट गेम जो उसने जीती थी, उसके बाद उसके दिमाग़ मे वो बात कोंधी थी..पर उनके सामने ये कैसे बोलता, इसलिए आज के लिए अपने दोस्तों को भगा दिया था उसने...और उनके जाने के बाद बड़ी ही मुश्किल से उसने रश्मी को ये बोला...अपनी बड़ी बहन को उसके अंडरगारमेंट्स के लिए बोलना आज मोनू के लिए बड़ा मुश्किल था...पर अपनी तसल्ली के लिए वो ये देख लेना चाहता था की जो वो सोच रहा है वो सही है तो शायद कल वाली गेम में वो जीत जाएँ.
तभी उपर से रश्मी वापिस नीचे आती हुई दिखाई दी मोनू को...और उसकी नज़रें सीधा उसकी ब्रेस्ट वाली जगह पर जा चिपकी...और उसकी आशा के अनुरूप वहाँ ब्रा का नामोनिशान नही था ...उसकी गोल मटोल छातियाँ उस छोटी सी टी शर्ट मे अठखेलियाँ करती हुई उछल कूद मचा रही थी..और साथ ही साथ उसके खड़े हुए निप्पल उनकी सुंदरता मे चार चाँद लगा रहे थे
रश्मी आकर मोनू के सामने बैठ गयी, और बोली : "चलो...अब एक बार फिर से पत्ते बाँटो ...मैं भी देखना चाहती हू की तुम्हारी बात मे कितनी सच्चाई है..''
 
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