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Romance Ek Duje ke Vaaste..

Raj_sharma

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Padho padho, mai to kehta to puri padh dalo :goteam:
Wo to padhunga hi, or padh daala:D
 

parkas

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Update 33



एक दो दिन ऐसे ही बीत गए, एकांश बिना किसी शक के घर में आता-जाता रहा और साथ ही अक्षिता पर नज़र भी रखता रहा उसके मन मे अब भी यही डर था के अगर अक्षिता उसे देख लेगी तो वापिस कही भाग जाएगी और ऐसा वो हरगिज नहीं चाहता था इसीलिए अक्षिता के सामने जाने की हिम्मत उसमे नहीं थी, हालांकि ये सब काफी बचकाना था पर यही था..

वहीं अक्षिता को नए किराएदार के बारे में थोड़ा डाउट होने लगा था क्योंकि उसने और उसके पेरेंट्स ने उसे कभी नहीं देखा था, उसने अपने मामा से इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने बताया था कि उनका किराएदार एक बहुत ही बिजी आदमी है और अपने मामा की बात सुनकर उसने इसे एक बार कोअनदेखा कर दिया था...

वही दूसरी तरफ एकांश भी उसके साथ एक ही छत के नीचे रहकर बहुत खुश था, खाने को लेकर उसे दिककते आ रही थी लेकिन उसने मैनेज कर लिया था, पिछले कुछ दिनों में उसने अक्षिता को अपने मा बाप से बात करते, कुछ बच्चों के साथ खेलते और घर के कुछ काम करते हुए खुशी-खुशी देखा... वो जब भी वहा होता उसकी नजरे बस अक्षिता को तलाशती रहती थी..

जब भी वो उसकी मां को उससे पूछते हुए सुनता कि वो दवाइयां ले रही है या नहीं तो उसे उसकी सेहत के बारे में सोचकर दुख होता था लेकिन उसे अपना ख्याल रखते हुए देखकर राहत भी मिलती..

--

एकांश ने बाहर से कीसी की हसने की आवाज सुनीं, वो अपने कमरे से बाहर निकला और उसने नीचे देखा, उसने देखा कि अक्षिता और कुछ लड़कियाँ घर दरवाज़े के सामने सीढ़ियों पर बैठी थीं

वैसे भी एकांश आज ऑफिस नहीं गया था, जब तक जरूरी न हो वो घर से काम करता था और ज़्यादातर समय अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करते हुए अक्षिता के बारे में जानकारी देता था और फोन पर स्वरा ने उस पर इतने सारे सवाल दागे कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसके सवालों का जवाब देते-देते रात हो गई थी...

एकांश को अब यहा का माहौल पसंद आने लगा था यहाँ के लोग अपना काम करके अपना बाकी समय अपने परिवार के साथ बिताते थे.. कोई ज्यादा तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई इधर-उधर भागना नहीं, कोई परेशानी नहीं उसे इस जगह शांति का एहसास होने लगा था...

उसने नीचे की ओर देखा और अक्षिता के सामने खेल रहे बच्चों को देखा जो रात के आसमान को निहार रहे थे उसने भी ऊपर देखा जहा सितारों से जगमगाता आसमान था...

वो अक्षिता के साथ आसमान को निहारने की अपनी यादों को याद करके मुस्कुराया, उसने अक्षिता की तरफ देखा और पाया कि वो भी मुस्कुरा रही है, उसे लगा कि शायद वो भी यही सोच रही होगी...

तभी एक छोटी लड़की आई और अक्षिता के पास बैठ गई और उसे देखने लगी...

"दीदी, तुम आसमान की ओर क्यों देख रही हो?" उस लड़की ने अक्षिता से पूछा और एकांश ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा

"क्योंकि मुझे रात के आकाश में तारों को निहारना पसंद है" अक्षिता ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"दीदी, मैंने सुना है कि जब कोई मरता है तो वो सितारा बन जाता है क्या ये सच है?" उस छोटी लड़की ने मासूमियत से पूछा..

उसका सवाल सुन अक्षिता की मुस्कान गायब हो गई और एकांश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई थी, दोनों ही इस वक्त एक ही बात सोच रहे थे

"शायद..." अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा

वो लड़की आसमान की ओर देख रही थी जबकि एकांश बस अक्षिता को देखता रहा..

"किसी दिन मैं भी स्टार बनूंगी और अपने चाहने वालों को नीचे देखूंगी" अक्षिता ने आंसुओं के साथ मुस्कुराते हुए धीमे से कहा

--

एकांश इधर उधर देखते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था देख रहा था कि कोई है या नहीं तभी गेट पर खड़ी अक्षिता को देखकर वो जल्दी से दीवार के पीछे छिप गया

उसने खुद को थोड़ा छिपाते हुए झाँका और देखा कि अक्षिता बिना हिले-डुले वहीं खड़ी थी, एकांश ने सोचा के इस वक्त वो वहा क्या कर रही है

अचानक अक्षिता ने अपने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया था और एकांश को क्या हो रहा था समझ नहीं आ रहा था उसने अक्षिता को देखा जो अब बेहोश होने के करीब थी और इसलिए वो उसके पास पहुचा और उसने उसे ज़मीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी तरफ़ देखा, अक्षिता बेहोश हो चुकी थी...

एकांश ने उसके गाल थपथपाते हुए उसे कई बार पुकारा लेकिन वो नहीं जागी

एकांश उसे गोद में उठाकर उठ खड़ा हुआ और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे में ले गया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया

घबराहट में उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.... उसने अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया

"हैलो?"

"डॉक्टर अवस्थी"

"मिस्टर रघुवंशी, क्या हुआ?" डॉक्टर ने चिंतित होकर पूछा

"अक्षिता बेहोश हो गई है मुझे... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा डॉक्टर?" उसने अक्षिता चेहरे को देखते हुए पूछा

"क्षांत हो जाइए और मुझे बताइए ये कैसे हुआ?" डॉक्टर ने जल्दी से पूछा

"वो दरवाजे के पास खड़ी थी और उसके सर मे शायद दर्द शुरू हुआ और उसने अपना सिर पकड़ लिया और अगले ही मिनट वो बेहोश हो गई"

" ओह...."

"डॉक्टर, उसे क्या हुआ? वो बेहोश क्यों हो गई? क्या कुछ गंभीर बात है? क्या मैं उसे वहाँ ले आऊ? या किसी पास के डॉक्टर के पास जाऊ? अब क्या करू बताओ डॉक्टर?" एकांश ने डरते हुए कई सवाल कर डाले

"मिस्टर रघुवंशी शांत हो जाइए क्या आपके पास वो ईमर्जन्सी वाली दवा है जो मैंने आपको दी थी?" डॉक्टर ने शांति से पूछा

"हाँ!" एकांश ने कहा.

"तो वो उसे दे दो, वो ठीक हो जाएगी" डॉक्टर ने कहा

"वो बेहोश है उसे दवा कैसे दूँ?" एकांश

"पहले उसके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़को" डॉक्टर भी अब इस मैटर को आराम से हँडल करना सीख गया था वो जानता था एकांश अक्षिता के मामले मे काफी पज़ेसिव था

"ठीक है" उसने कहा और अक्षिता चेहरे पर धीरे से पानी छिड़का

"अब आगे"

"क्या वो हिली?" डॉक्टर ने पूछा

"नहीं." एकांश फुसफुसाया.

"तो उस दवा को ले लो और इसे थोड़े पानी में घोलो और उसे पिलाओ" डॉक्टर ने आगे कहा

"ठीक है" यह कहकर एकांश ने वही करना शुरू कर दिया जो डॉक्टर ने कहा था

एकांश धीरे से अक्षिता सिर उठाया और दवा उसके मुँह में डाल दी, चूँकि दवा तरल रूप में थी, इसलिए दवा अपने आप उसके गले से नीचे उतर गई

"हो गया डॉक्टर, दवा दे दी है, मैं उसे अस्पताल ले आऊ? कही कुछ और ना हो?" एकांश ने कहा

"नहीं नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इस बीमारी मे ऐसा कई बार होता है अगर आप उसे यहाँ लाते तो मैं भी वही दवा देता, बस इंजेक्शन लगा देता अब वो ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है" डॉक्टर ने शांति से कहा

"ठीक है, तो वो कब तक जागेगी?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा

"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में, और अगर दोबारा कुछ लगे तो मुझे कॉल कर लीजिएगा" डॉक्टर ने कहा

"थैंक यू सो मच डॉक्टर" एकांश ने कहा और फोन काटा

एकांश ने राहत की सांस ली और अक्षिता की तरफ देखा जो अभी ऐसी लग रही थी जैसे आराम से सो रही हो, एकांश वही बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया और धीरे से अक्षिता के बालों को सहलाने लगा

"काश मैं तुम्हारा दर्द दूर कर पाता अक्षु" एकांश ने धीमे से कहा और उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद टपकी

उसने आगे झुक कर अक्षिता के माथे को चूम लिया जो की अपने में ही एक अलग एहसास था, एकांश अब शांत हो गया था अक्षिता अब ठीक थी और उसके साथ थी इसी बात से उसे राहत महसूस हुई थी

अक्षिता की आंखों के चारों ओर काले घेरे और उसकी कमज़ोरी देखकर उसका दिल बैठ रहा था उसने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ को चूमा

"मैं तुम्हें बचाने मे कोई कसर नहीं छोड़ूँगा अक्षु, मैं वादा करता हु तुम्हें कही नहीं जाने दूंगा" एकांश ने धीमे से अक्षिता का हाथ अपने दिल के पास पकड़ते हुए कहा

(पर बचाएगा कैसे जब खुद उसके सामने ही नही जा रहा🫠)

"लेकिन वो चाहती है के तुम उसे जाने को बेटे"

अचानक आई इस आवाज का स्त्रोत जानने के लिए एकांश ने अपना सिर दरवाजे की ओर घुमाया जहा अक्षिता की माँ आँखों में आँसू लिए खड़ी थी एकांश ने एक नजर अक्षिता को देखा और फिर उठ कर खड़ा हुआ

"जानता हु लेकिन मैं उसे जाने नहीं दे सकता, कम से कम अब तो नहीं जब वो मुझे मिल गई है" एकांश ने दृढ़तापूर्वक कहा

अक्षिता की मा बस उसे देखकर मुस्कुरायी.

"तुम्हें सब कुछ पता है, है न?" उन्होंने उदासी से नीचे देखते हुए उससे पूछा

"हाँ" एकांश ने कहा और वो दोनों की कुछ पल शांत खड़े रहे

"मुझे पता है कि तुम यहाँ रहने वाले किरायेदार हो" उसकी माँ ने कहा

"उम्म... मैं... मैं... वो...." एकांश को अब क्या बोले समझ नहीं आ रहा था क्युकी ये सामना ऐसे होगा ऐसा उसने नही नहीं सोचा था

"मुझे उसी दिन ही शक हो गया था जब मैंने देखा कि कुछ लोग तुम्हारे कमरे में बिस्तर लेकर आए थे और मैंने देखा कि एक आदमी सूट पहने हुए कमरे में आया था, मुझे शक था कि यह तुम ही हो क्योंकि यहाँ कोई भी बिजनेस सूट नहीं पहनता" उसकी माँ ने कहा

"मैंने भी यही सोचा था के शायद यहा नॉर्मल कपड़े ज्यादा ठीक रहेंगे लेकिन देर हो गई" एकांश ने पकड़े जाने पर हल्के से मुसकुराते हुए कहा

"और मैंने एक बार तुम्हें चुपके से अंदर आते हुए भी देखा था, तभी मुझे समझ में आया कि तुम ही यहां रहने आए हो"

एकांश कुछ नहीं बोला

"लेकिन तुम छिप क्यू रहे हो?" उन्होंने उससे पूछा.

"अगर अक्षिता को पता चल गया कि मैं यहा हूँ तो वो फिर से भाग सकती है और मैं नहीं चाहता कि वो अपनी ज़िंदगी इस डर में जिए कि कहीं मैं सच न जान जाऊँ और बार-बार मुझसे दूर भागती रहे, मैं तो बस यही चाहता हु कि वो अपनी जिंदगी शांति से जिए" एकांश ने कहा और अक्षिता की मा ने बस एक स्माइल दी

“तुम अच्छे लड़के को एकांश और मैं ऐसा इसीलिए नहीं कह रही के तुम अमीर हो इसके बावजूद यह इस छोटी सी जगह मे रह रहे हो या और कुछ बल्कि इसीलिए क्युकी मैंने तुम्हें देखा है के कैसे तुमने अभी अभी अक्षिता को संभाला उसकी देखभाल की” अक्षिता की मा ने कहा

"ऐसा कितनी बार होता है?" एकांश अक्षिता की ओर इशारा करते हुए पूछा।

"दवाओं की वजह से उसे थोड़ा चक्कर आता है, लेकिन वो बेहोश नहीं होती वो तब बेहोश होती है जब वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में होती है" उसकी माँ दुखी होकर कहा

"वो स्ट्रेस में है? क्यों?"

लेकिन अक्षिता की मा ने कुछ नहीं कहा

"आंटी प्लीज बताइए वो किस बात से परेशान है?" एकांश ने बिनती करते हुए पूछा

"तुम्हारी वजह से”

"मेरी वजह से?" अब एकांश थोड़ा चौका

" हाँ।"

"लेकिन क्यों?"

"उसे तुम्हारी चिंता है एकांश, कल भी वो मुझसे पूछ रही थी कि तुम ठीक होगे या नहीं, वो जानती है कि उसके गायब होने से तुम पर बहुत बुरा असर पड़ेगा वो सोचती है कि तुम उससे और ज्यादा नफरत करोगे लेकिन वो ये भी कहती है कि तुम उससे नफरत करने से ज्यादा उसकी चिंता करोगे उसने हाल ही में मीडिया में भी तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सुना था जिससे वो सोचने लगी कि तुम कैसे हो सकते हो और तुम्हारे सच जानने का डर उसे खाए जा रहा है इन सभी खयालों और चिंताओं ने उसे स्ट्रेस में डाल दिया और वो शायद इसी वजह से बेहोश हो गई होगी।" उसकी माँ ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला बस अक्षिता को देखता रहा और फिर उसने उसकी मा से कहा

"आंटी क्या आप मेरा एक काम कर सकती हैं?"

"क्या?"

"मैं यहा रह रहा हु ये बात आप प्लीज अक्षिता को मत बताना"

"लेकिन क्यों? "

"उसे ये पसंद नहीं आएगा और हो सकता है कि वो फिर से मुझसे दूर भागने का प्लान बना ले"

"लेकिन तुम जानते हो ना ये बात उसे वैसे भी पता चल ही जाएगी उसे पहले ही थोड़ा डाउट हो गया है" उन्होंने कहा

"जानता हु लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है आप प्लीज उसे कुछ मत बताना, उसे खुद पता चले तो अलग बात है जब उसे पता चलेगा, तो मैं पहले की तरह उससे बेरुखी से पेश आ जाऊंगा मेरे लिए भी ये आसान हो जाएगा और उसे यह भी नहीं पता होना चाहिए कि मैं उसे यहाँ लाया हूँ और दवा दी है"

अक्षिता की मा को पहले तो एकांश की बात समझ नहीं आई लेकिन फिर भी उन्होंने उसने हामी भर दी

"वैसे इससे पहले कि वो जाग जाए तुम उसे उसके कमरे मे छोड़ दो तो बेहतर रहेगा" अक्षिता की मा ने कहा जिसपर एकांश ने बस हा मे गर्दन हिलाई और वो थोड़ा नीचे झुका और अक्षिता को अपनी बाहों में उठा लिया उसकी माँ कुछ देर तक उन्हें ऐसे ही देखती रही जब एकांश ने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि कुछ नहीं हुआ और नीचे चली गई

एकांश उनके पीछे पीछे घर के अंदर चला गया अक्षिता की माँ ने उसे अक्षिता का बेडरूम दिखाया और वो अंदर गया और उसने अक्षिता को देखा जो उसकी बाहों में शांति से सो रही थी

अक्षिता की माँ भी अंदर आई और उन्होंने देखा कि एकांश ने अक्षिता को कितने प्यार से बिस्तर पर लिटाया और उसे रजाई से ढक दिया उसने उसके चेहरे से बाल हटाए और उसके माथे पर चूमा..

एकांश खड़ा हुआ और उसने कमरे मे इधर-उधर देखा और वो थोड़ा चौका दीवारों पर उसकी बहुत सी तस्वीरें लगी थीं कुछ तो उसकी खूबसूरत यादों की थीं, लेकिन बाकी सब सिर्फ उसकी तस्वीरें थीं...

"वो जहाँ भी रहती है, अपना कमरा हमेशा तुम्हारी तस्वीरों से सजाती है" अक्षिता की माँ ने एकांश हैरान चेहरे को देखते हुए कहा

एकांश के मुँह शब्द नहीं निकल रहे थे वो बस आँसूओ के साथ तस्वीरों को देख रहा था

"वो कहती है कि उसके पास अब सिर्फ यादें ही तो बची हैं" सरिता जी ने अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए कहा

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले और इस बार उसने उन्हें छिपाने की ज़हमत नहीं उठाई

वो उसके कमरे से बाहर चला गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी......



क्रमश:
Welcome back Adirshi bhai....
Bahut hi badhiya update diya hai Adirshi bhai....
Nice and beautiful update....
And an ho sake to regular update dene ki koshish kijiyega.....
 
Last edited:

Raj_sharma

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Update 34





जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था

कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था

एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी

काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे

आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था

सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले

एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...

जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया

वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...

वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया

अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...

वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी

जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...

अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था

"अंश..."

उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा

अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था

एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....

"तुम यहा क्या......."

लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा

उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की

"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा

"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा

"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा

"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा

"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"

एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था

"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा

"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी

“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा

“क्या कहा?”

“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा

अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...

"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता

"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था

"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा

एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी

"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा

लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..

एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची

"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”

"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा

"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की

अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...

एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।

"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा

लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..

"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला

"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"

एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है

दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे

"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा

"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"

"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो

"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..

"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी

"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा

"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"

"नही!!"

"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"

"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती

पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था

"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा

"मैंने ऐसा कब कहा?"

"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा

"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला

"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा

"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी

"मैं क्या?"

"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा

"नहीं."

"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था

"हम्म"

"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा

और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है

"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला

"लेकिन...."

"आउट!"

और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा

'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा

अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी

वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा

एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी

"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा

"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।

"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया

"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा

"जानता हु..."

"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा

"आप बस मेरी एक मदद करो"

"क्या?"

"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा

"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"

"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"

बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और

फिर कंट्रोल नही हुआ

सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी

क्रमश:
Mind blowing updates brother :claps::claps::claps: To Ekansh or Akshita ki mulakaat ho hi gai, usne kaafi kosis ki ekansh se sach ugalwane ki lekin usne baat ko taal diya, mujhe lagta hai ki akshita ko shak ho gaya hai uske yaha hone ki wajah ko lekar, chalo acha hi hai agar dono me kisi bhi tarah se wapas baat ban jaye to, dil ko chuu liya bhai👌🏻👌🏻 awesome 👌🏻
 

parkas

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Update 34





जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था

कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था

एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी

काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे

आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था

सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले

एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...

जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया

वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...

वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया

अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...

वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी

जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...

अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था

"अंश..."

उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा

अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था

एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....

"तुम यहा क्या......."

लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा

उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की

"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा

"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा

"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा

"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा

"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"

एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था

"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा

"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी

“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा

“क्या कहा?”

“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा

अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...

"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता

"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था

"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा

एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी

"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा

लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..

एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची

"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”

"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा

"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की

अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...

एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।

"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा

लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..

"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला

"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"

एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है

दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे

"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा

"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"

"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो

"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..

"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी

"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा

"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"

"नही!!"

"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"

"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती

पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था

"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा

"मैंने ऐसा कब कहा?"

"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा

"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला

"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा

"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी

"मैं क्या?"

"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा

"नहीं."

"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था

"हम्म"

"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा

और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है

"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला

"लेकिन...."

"आउट!"

और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा

'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा

अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी

वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा

एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी

"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा

"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।

"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया

"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा

"जानता हु..."

"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा

"आप बस मेरी एक मदद करो"

"क्या?"

"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा

"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"

"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"

बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और

फिर कंट्रोल नही हुआ

सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी

क्रमश:
Bahut hi shaandar update diya hai Adirshi bhai....
Nice and lovely update....
 

Sushil@10

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Update 33



एक दो दिन ऐसे ही बीत गए, एकांश बिना किसी शक के घर में आता-जाता रहा और साथ ही अक्षिता पर नज़र भी रखता रहा उसके मन मे अब भी यही डर था के अगर अक्षिता उसे देख लेगी तो वापिस कही भाग जाएगी और ऐसा वो हरगिज नहीं चाहता था इसीलिए अक्षिता के सामने जाने की हिम्मत उसमे नहीं थी, हालांकि ये सब काफी बचकाना था पर यही था..

वहीं अक्षिता को नए किराएदार के बारे में थोड़ा डाउट होने लगा था क्योंकि उसने और उसके पेरेंट्स ने उसे कभी नहीं देखा था, उसने अपने मामा से इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने बताया था कि उनका किराएदार एक बहुत ही बिजी आदमी है और अपने मामा की बात सुनकर उसने इसे एक बार कोअनदेखा कर दिया था...

वही दूसरी तरफ एकांश भी उसके साथ एक ही छत के नीचे रहकर बहुत खुश था, खाने को लेकर उसे दिककते आ रही थी लेकिन उसने मैनेज कर लिया था, पिछले कुछ दिनों में उसने अक्षिता को अपने मा बाप से बात करते, कुछ बच्चों के साथ खेलते और घर के कुछ काम करते हुए खुशी-खुशी देखा... वो जब भी वहा होता उसकी नजरे बस अक्षिता को तलाशती रहती थी..

जब भी वो उसकी मां को उससे पूछते हुए सुनता कि वो दवाइयां ले रही है या नहीं तो उसे उसकी सेहत के बारे में सोचकर दुख होता था लेकिन उसे अपना ख्याल रखते हुए देखकर राहत भी मिलती..

--

एकांश ने बाहर से कीसी की हसने की आवाज सुनीं, वो अपने कमरे से बाहर निकला और उसने नीचे देखा, उसने देखा कि अक्षिता और कुछ लड़कियाँ घर दरवाज़े के सामने सीढ़ियों पर बैठी थीं

वैसे भी एकांश आज ऑफिस नहीं गया था, जब तक जरूरी न हो वो घर से काम करता था और ज़्यादातर समय अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करते हुए अक्षिता के बारे में जानकारी देता था और फोन पर स्वरा ने उस पर इतने सारे सवाल दागे कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसके सवालों का जवाब देते-देते रात हो गई थी...

एकांश को अब यहा का माहौल पसंद आने लगा था यहाँ के लोग अपना काम करके अपना बाकी समय अपने परिवार के साथ बिताते थे.. कोई ज्यादा तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई इधर-उधर भागना नहीं, कोई परेशानी नहीं उसे इस जगह शांति का एहसास होने लगा था...

उसने नीचे की ओर देखा और अक्षिता के सामने खेल रहे बच्चों को देखा जो रात के आसमान को निहार रहे थे उसने भी ऊपर देखा जहा सितारों से जगमगाता आसमान था...

वो अक्षिता के साथ आसमान को निहारने की अपनी यादों को याद करके मुस्कुराया, उसने अक्षिता की तरफ देखा और पाया कि वो भी मुस्कुरा रही है, उसे लगा कि शायद वो भी यही सोच रही होगी...

तभी एक छोटी लड़की आई और अक्षिता के पास बैठ गई और उसे देखने लगी...

"दीदी, तुम आसमान की ओर क्यों देख रही हो?" उस लड़की ने अक्षिता से पूछा और एकांश ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा

"क्योंकि मुझे रात के आकाश में तारों को निहारना पसंद है" अक्षिता ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"दीदी, मैंने सुना है कि जब कोई मरता है तो वो सितारा बन जाता है क्या ये सच है?" उस छोटी लड़की ने मासूमियत से पूछा..

उसका सवाल सुन अक्षिता की मुस्कान गायब हो गई और एकांश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई थी, दोनों ही इस वक्त एक ही बात सोच रहे थे

"शायद..." अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा

वो लड़की आसमान की ओर देख रही थी जबकि एकांश बस अक्षिता को देखता रहा..

"किसी दिन मैं भी स्टार बनूंगी और अपने चाहने वालों को नीचे देखूंगी" अक्षिता ने आंसुओं के साथ मुस्कुराते हुए धीमे से कहा

--

एकांश इधर उधर देखते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था देख रहा था कि कोई है या नहीं तभी गेट पर खड़ी अक्षिता को देखकर वो जल्दी से दीवार के पीछे छिप गया

उसने खुद को थोड़ा छिपाते हुए झाँका और देखा कि अक्षिता बिना हिले-डुले वहीं खड़ी थी, एकांश ने सोचा के इस वक्त वो वहा क्या कर रही है

अचानक अक्षिता ने अपने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया था और एकांश को क्या हो रहा था समझ नहीं आ रहा था उसने अक्षिता को देखा जो अब बेहोश होने के करीब थी और इसलिए वो उसके पास पहुचा और उसने उसे ज़मीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी तरफ़ देखा, अक्षिता बेहोश हो चुकी थी...

एकांश ने उसके गाल थपथपाते हुए उसे कई बार पुकारा लेकिन वो नहीं जागी

एकांश उसे गोद में उठाकर उठ खड़ा हुआ और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे में ले गया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया

घबराहट में उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.... उसने अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया

"हैलो?"

"डॉक्टर अवस्थी"

"मिस्टर रघुवंशी, क्या हुआ?" डॉक्टर ने चिंतित होकर पूछा

"अक्षिता बेहोश हो गई है मुझे... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा डॉक्टर?" उसने अक्षिता चेहरे को देखते हुए पूछा

"क्षांत हो जाइए और मुझे बताइए ये कैसे हुआ?" डॉक्टर ने जल्दी से पूछा

"वो दरवाजे के पास खड़ी थी और उसके सर मे शायद दर्द शुरू हुआ और उसने अपना सिर पकड़ लिया और अगले ही मिनट वो बेहोश हो गई"

" ओह...."

"डॉक्टर, उसे क्या हुआ? वो बेहोश क्यों हो गई? क्या कुछ गंभीर बात है? क्या मैं उसे वहाँ ले आऊ? या किसी पास के डॉक्टर के पास जाऊ? अब क्या करू बताओ डॉक्टर?" एकांश ने डरते हुए कई सवाल कर डाले

"मिस्टर रघुवंशी शांत हो जाइए क्या आपके पास वो ईमर्जन्सी वाली दवा है जो मैंने आपको दी थी?" डॉक्टर ने शांति से पूछा

"हाँ!" एकांश ने कहा.

"तो वो उसे दे दो, वो ठीक हो जाएगी" डॉक्टर ने कहा

"वो बेहोश है उसे दवा कैसे दूँ?" एकांश

"पहले उसके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़को" डॉक्टर भी अब इस मैटर को आराम से हँडल करना सीख गया था वो जानता था एकांश अक्षिता के मामले मे काफी पज़ेसिव था

"ठीक है" उसने कहा और अक्षिता चेहरे पर धीरे से पानी छिड़का

"अब आगे"

"क्या वो हिली?" डॉक्टर ने पूछा

"नहीं." एकांश फुसफुसाया.

"तो उस दवा को ले लो और इसे थोड़े पानी में घोलो और उसे पिलाओ" डॉक्टर ने आगे कहा

"ठीक है" यह कहकर एकांश ने वही करना शुरू कर दिया जो डॉक्टर ने कहा था

एकांश धीरे से अक्षिता सिर उठाया और दवा उसके मुँह में डाल दी, चूँकि दवा तरल रूप में थी, इसलिए दवा अपने आप उसके गले से नीचे उतर गई

"हो गया डॉक्टर, दवा दे दी है, मैं उसे अस्पताल ले आऊ? कही कुछ और ना हो?" एकांश ने कहा

"नहीं नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इस बीमारी मे ऐसा कई बार होता है अगर आप उसे यहाँ लाते तो मैं भी वही दवा देता, बस इंजेक्शन लगा देता अब वो ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है" डॉक्टर ने शांति से कहा

"ठीक है, तो वो कब तक जागेगी?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा

"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में, और अगर दोबारा कुछ लगे तो मुझे कॉल कर लीजिएगा" डॉक्टर ने कहा

"थैंक यू सो मच डॉक्टर" एकांश ने कहा और फोन काटा

एकांश ने राहत की सांस ली और अक्षिता की तरफ देखा जो अभी ऐसी लग रही थी जैसे आराम से सो रही हो, एकांश वही बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया और धीरे से अक्षिता के बालों को सहलाने लगा

"काश मैं तुम्हारा दर्द दूर कर पाता अक्षु" एकांश ने धीमे से कहा और उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद टपकी

उसने आगे झुक कर अक्षिता के माथे को चूम लिया जो की अपने में ही एक अलग एहसास था, एकांश अब शांत हो गया था अक्षिता अब ठीक थी और उसके साथ थी इसी बात से उसे राहत महसूस हुई थी

अक्षिता की आंखों के चारों ओर काले घेरे और उसकी कमज़ोरी देखकर उसका दिल बैठ रहा था उसने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ को चूमा

"मैं तुम्हें बचाने मे कोई कसर नहीं छोड़ूँगा अक्षु, मैं वादा करता हु तुम्हें कही नहीं जाने दूंगा" एकांश ने धीमे से अक्षिता का हाथ अपने दिल के पास पकड़ते हुए कहा

(पर बचाएगा कैसे जब खुद उसके सामने ही नही जा रहा🫠)

"लेकिन वो चाहती है के तुम उसे जाने को बेटे"

अचानक आई इस आवाज का स्त्रोत जानने के लिए एकांश ने अपना सिर दरवाजे की ओर घुमाया जहा अक्षिता की माँ आँखों में आँसू लिए खड़ी थी एकांश ने एक नजर अक्षिता को देखा और फिर उठ कर खड़ा हुआ

"जानता हु लेकिन मैं उसे जाने नहीं दे सकता, कम से कम अब तो नहीं जब वो मुझे मिल गई है" एकांश ने दृढ़तापूर्वक कहा

अक्षिता की मा बस उसे देखकर मुस्कुरायी.

"तुम्हें सब कुछ पता है, है न?" उन्होंने उदासी से नीचे देखते हुए उससे पूछा

"हाँ" एकांश ने कहा और वो दोनों की कुछ पल शांत खड़े रहे

"मुझे पता है कि तुम यहाँ रहने वाले किरायेदार हो" उसकी माँ ने कहा

"उम्म... मैं... मैं... वो...." एकांश को अब क्या बोले समझ नहीं आ रहा था क्युकी ये सामना ऐसे होगा ऐसा उसने नही नहीं सोचा था

"मुझे उसी दिन ही शक हो गया था जब मैंने देखा कि कुछ लोग तुम्हारे कमरे में बिस्तर लेकर आए थे और मैंने देखा कि एक आदमी सूट पहने हुए कमरे में आया था, मुझे शक था कि यह तुम ही हो क्योंकि यहाँ कोई भी बिजनेस सूट नहीं पहनता" उसकी माँ ने कहा

"मैंने भी यही सोचा था के शायद यहा नॉर्मल कपड़े ज्यादा ठीक रहेंगे लेकिन देर हो गई" एकांश ने पकड़े जाने पर हल्के से मुसकुराते हुए कहा

"और मैंने एक बार तुम्हें चुपके से अंदर आते हुए भी देखा था, तभी मुझे समझ में आया कि तुम ही यहां रहने आए हो"

एकांश कुछ नहीं बोला

"लेकिन तुम छिप क्यू रहे हो?" उन्होंने उससे पूछा.

"अगर अक्षिता को पता चल गया कि मैं यहा हूँ तो वो फिर से भाग सकती है और मैं नहीं चाहता कि वो अपनी ज़िंदगी इस डर में जिए कि कहीं मैं सच न जान जाऊँ और बार-बार मुझसे दूर भागती रहे, मैं तो बस यही चाहता हु कि वो अपनी जिंदगी शांति से जिए" एकांश ने कहा और अक्षिता की मा ने बस एक स्माइल दी

“तुम अच्छे लड़के को एकांश और मैं ऐसा इसीलिए नहीं कह रही के तुम अमीर हो इसके बावजूद यह इस छोटी सी जगह मे रह रहे हो या और कुछ बल्कि इसीलिए क्युकी मैंने तुम्हें देखा है के कैसे तुमने अभी अभी अक्षिता को संभाला उसकी देखभाल की” अक्षिता की मा ने कहा

"ऐसा कितनी बार होता है?" एकांश अक्षिता की ओर इशारा करते हुए पूछा।

"दवाओं की वजह से उसे थोड़ा चक्कर आता है, लेकिन वो बेहोश नहीं होती वो तब बेहोश होती है जब वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में होती है" उसकी माँ दुखी होकर कहा

"वो स्ट्रेस में है? क्यों?"

लेकिन अक्षिता की मा ने कुछ नहीं कहा

"आंटी प्लीज बताइए वो किस बात से परेशान है?" एकांश ने बिनती करते हुए पूछा

"तुम्हारी वजह से”

"मेरी वजह से?" अब एकांश थोड़ा चौका

" हाँ।"

"लेकिन क्यों?"

"उसे तुम्हारी चिंता है एकांश, कल भी वो मुझसे पूछ रही थी कि तुम ठीक होगे या नहीं, वो जानती है कि उसके गायब होने से तुम पर बहुत बुरा असर पड़ेगा वो सोचती है कि तुम उससे और ज्यादा नफरत करोगे लेकिन वो ये भी कहती है कि तुम उससे नफरत करने से ज्यादा उसकी चिंता करोगे उसने हाल ही में मीडिया में भी तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सुना था जिससे वो सोचने लगी कि तुम कैसे हो सकते हो और तुम्हारे सच जानने का डर उसे खाए जा रहा है इन सभी खयालों और चिंताओं ने उसे स्ट्रेस में डाल दिया और वो शायद इसी वजह से बेहोश हो गई होगी।" उसकी माँ ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला बस अक्षिता को देखता रहा और फिर उसने उसकी मा से कहा

"आंटी क्या आप मेरा एक काम कर सकती हैं?"

"क्या?"

"मैं यहा रह रहा हु ये बात आप प्लीज अक्षिता को मत बताना"

"लेकिन क्यों? "

"उसे ये पसंद नहीं आएगा और हो सकता है कि वो फिर से मुझसे दूर भागने का प्लान बना ले"

"लेकिन तुम जानते हो ना ये बात उसे वैसे भी पता चल ही जाएगी उसे पहले ही थोड़ा डाउट हो गया है" उन्होंने कहा

"जानता हु लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है आप प्लीज उसे कुछ मत बताना, उसे खुद पता चले तो अलग बात है जब उसे पता चलेगा, तो मैं पहले की तरह उससे बेरुखी से पेश आ जाऊंगा मेरे लिए भी ये आसान हो जाएगा और उसे यह भी नहीं पता होना चाहिए कि मैं उसे यहाँ लाया हूँ और दवा दी है"

अक्षिता की मा को पहले तो एकांश की बात समझ नहीं आई लेकिन फिर भी उन्होंने उसने हामी भर दी

"वैसे इससे पहले कि वो जाग जाए तुम उसे उसके कमरे मे छोड़ दो तो बेहतर रहेगा" अक्षिता की मा ने कहा जिसपर एकांश ने बस हा मे गर्दन हिलाई और वो थोड़ा नीचे झुका और अक्षिता को अपनी बाहों में उठा लिया उसकी माँ कुछ देर तक उन्हें ऐसे ही देखती रही जब एकांश ने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि कुछ नहीं हुआ और नीचे चली गई

एकांश उनके पीछे पीछे घर के अंदर चला गया अक्षिता की माँ ने उसे अक्षिता का बेडरूम दिखाया और वो अंदर गया और उसने अक्षिता को देखा जो उसकी बाहों में शांति से सो रही थी

अक्षिता की माँ भी अंदर आई और उन्होंने देखा कि एकांश ने अक्षिता को कितने प्यार से बिस्तर पर लिटाया और उसे रजाई से ढक दिया उसने उसके चेहरे से बाल हटाए और उसके माथे पर चूमा..

एकांश खड़ा हुआ और उसने कमरे मे इधर-उधर देखा और वो थोड़ा चौका दीवारों पर उसकी बहुत सी तस्वीरें लगी थीं कुछ तो उसकी खूबसूरत यादों की थीं, लेकिन बाकी सब सिर्फ उसकी तस्वीरें थीं...

"वो जहाँ भी रहती है, अपना कमरा हमेशा तुम्हारी तस्वीरों से सजाती है" अक्षिता की माँ ने एकांश हैरान चेहरे को देखते हुए कहा

एकांश के मुँह शब्द नहीं निकल रहे थे वो बस आँसूओ के साथ तस्वीरों को देख रहा था

"वो कहती है कि उसके पास अब सिर्फ यादें ही तो बची हैं" सरिता जी ने अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए कहा

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले और इस बार उसने उन्हें छिपाने की ज़हमत नहीं उठाई

वो उसके कमरे से बाहर चला गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी......



क्रमश:
Lovely update
Update 34





जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था

कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था

एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी

काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे

आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था

सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले

एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...

जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया

वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...

वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया

अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...

वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी

जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...

अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था

"अंश..."

उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा

अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था

एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....

"तुम यहा क्या......."

लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा

उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की

"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा

"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा

"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा

"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा

"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"

एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था

"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा

"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी

“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा

“क्या कहा?”

“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा

अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...

"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता

"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था

"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा

एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी

"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा

लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..

एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची

"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”

"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा

"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की

अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...

एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।

"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा

लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..

"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला

"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"

एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है

दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे

"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा

"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"

"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो

"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..

"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी

"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा

"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"

"नही!!"

"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"

"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती

पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था

"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा

"मैंने ऐसा कब कहा?"

"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा

"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला

"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा

"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी

"मैं क्या?"

"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा

"नहीं."

"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था

"हम्म"

"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा

और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है

"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला

"लेकिन...."

"आउट!"

और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा

'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा

अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी

वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा

एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी

"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा

"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।

"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया

"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा

"जानता हु..."

"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा

"आप बस मेरी एक मदद करो"

"क्या?"

"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा

"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"

"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"

बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और

फिर कंट्रोल नही हुआ

सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी

क्रमश:
Excellent update and lovely story
 

आसिफा

Family Love 😘😘
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Itne
Update 34





जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था

कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था

एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी

काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे

आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था

सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले

एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...

जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया

वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...

वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया

अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...

वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी

जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...

अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था

"अंश..."

उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा

अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था

एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....

"तुम यहा क्या......."

लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा

उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की

"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा

"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा

"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा

"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा

"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"

एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था

"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा

"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी

“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा

“क्या कहा?”

“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा

अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...

"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता

"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था

"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा

एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी

"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा

लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..

एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची

"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”

"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा

"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की

अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...

एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।

"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा

लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..

"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला

"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"

एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है

दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे

"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा

"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"

"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो

"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..

"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी

"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा

"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"

"नही!!"

"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"

"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती

पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था

"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा

"मैंने ऐसा कब कहा?"

"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा

"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला

"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा

"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी

"मैं क्या?"

"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा

"नहीं."

"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था

"हम्म"

"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा

और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है

"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला

"लेकिन...."

"आउट!"

और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा

'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा

अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी

वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा

एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी

"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा

"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।

"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया

"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा

"जानता हु..."

"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा

"आप बस मेरी एक मदद करो"

"क्या?"

"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा

"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"

"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"

बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और

फिर कंट्रोल नही हुआ

सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी

क्रमश:
Itne Dino Ke Baad Update Diya Maza Aa Gya Padh Ke
 

आसिफा

Family Love 😘😘
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Itne
Update 34





जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था

कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था

एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी

काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे

आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था

सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले

एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...

जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया

वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...

वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया

अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...

वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी

जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...

अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था

"अंश..."

उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा

अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था

एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....

"तुम यहा क्या......."

लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा

उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की

"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा

"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा

"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा

"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा

"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"

एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था

"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा

"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी

“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा

“क्या कहा?”

“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा

अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...

"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता

"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था

"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा

एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी

"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा

लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..

एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची

"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”

"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा

"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की

अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...

एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।

"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा

लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..

"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला

"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"

एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है

दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे

"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा

"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"

"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो

"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..

"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी

"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा

"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"

"नही!!"

"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"

"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती

पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था

"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा

"मैंने ऐसा कब कहा?"

"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा

"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला

"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा

"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी

"मैं क्या?"

"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा

"नहीं."

"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था

"हम्म"

"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा

और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है

"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला

"लेकिन...."

"आउट!"

और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा

'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा

अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी

वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा

एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी

"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा

"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।

"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया

"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा

"जानता हु..."

"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा

"आप बस मेरी एक मदद करो"

"क्या?"

"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा

"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"

"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"

बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और

फिर कंट्रोल नही हुआ

सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी

क्रमश:
Itne Dino Ke Baad Update Diya Maza Aa Gya Padh Ke
 

park

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Update 33



एक दो दिन ऐसे ही बीत गए, एकांश बिना किसी शक के घर में आता-जाता रहा और साथ ही अक्षिता पर नज़र भी रखता रहा उसके मन मे अब भी यही डर था के अगर अक्षिता उसे देख लेगी तो वापिस कही भाग जाएगी और ऐसा वो हरगिज नहीं चाहता था इसीलिए अक्षिता के सामने जाने की हिम्मत उसमे नहीं थी, हालांकि ये सब काफी बचकाना था पर यही था..

वहीं अक्षिता को नए किराएदार के बारे में थोड़ा डाउट होने लगा था क्योंकि उसने और उसके पेरेंट्स ने उसे कभी नहीं देखा था, उसने अपने मामा से इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने बताया था कि उनका किराएदार एक बहुत ही बिजी आदमी है और अपने मामा की बात सुनकर उसने इसे एक बार कोअनदेखा कर दिया था...

वही दूसरी तरफ एकांश भी उसके साथ एक ही छत के नीचे रहकर बहुत खुश था, खाने को लेकर उसे दिककते आ रही थी लेकिन उसने मैनेज कर लिया था, पिछले कुछ दिनों में उसने अक्षिता को अपने मा बाप से बात करते, कुछ बच्चों के साथ खेलते और घर के कुछ काम करते हुए खुशी-खुशी देखा... वो जब भी वहा होता उसकी नजरे बस अक्षिता को तलाशती रहती थी..

जब भी वो उसकी मां को उससे पूछते हुए सुनता कि वो दवाइयां ले रही है या नहीं तो उसे उसकी सेहत के बारे में सोचकर दुख होता था लेकिन उसे अपना ख्याल रखते हुए देखकर राहत भी मिलती..

--

एकांश ने बाहर से कीसी की हसने की आवाज सुनीं, वो अपने कमरे से बाहर निकला और उसने नीचे देखा, उसने देखा कि अक्षिता और कुछ लड़कियाँ घर दरवाज़े के सामने सीढ़ियों पर बैठी थीं

वैसे भी एकांश आज ऑफिस नहीं गया था, जब तक जरूरी न हो वो घर से काम करता था और ज़्यादातर समय अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करते हुए अक्षिता के बारे में जानकारी देता था और फोन पर स्वरा ने उस पर इतने सारे सवाल दागे कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसके सवालों का जवाब देते-देते रात हो गई थी...

एकांश को अब यहा का माहौल पसंद आने लगा था यहाँ के लोग अपना काम करके अपना बाकी समय अपने परिवार के साथ बिताते थे.. कोई ज्यादा तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई इधर-उधर भागना नहीं, कोई परेशानी नहीं उसे इस जगह शांति का एहसास होने लगा था...

उसने नीचे की ओर देखा और अक्षिता के सामने खेल रहे बच्चों को देखा जो रात के आसमान को निहार रहे थे उसने भी ऊपर देखा जहा सितारों से जगमगाता आसमान था...

वो अक्षिता के साथ आसमान को निहारने की अपनी यादों को याद करके मुस्कुराया, उसने अक्षिता की तरफ देखा और पाया कि वो भी मुस्कुरा रही है, उसे लगा कि शायद वो भी यही सोच रही होगी...

तभी एक छोटी लड़की आई और अक्षिता के पास बैठ गई और उसे देखने लगी...

"दीदी, तुम आसमान की ओर क्यों देख रही हो?" उस लड़की ने अक्षिता से पूछा और एकांश ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा

"क्योंकि मुझे रात के आकाश में तारों को निहारना पसंद है" अक्षिता ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"दीदी, मैंने सुना है कि जब कोई मरता है तो वो सितारा बन जाता है क्या ये सच है?" उस छोटी लड़की ने मासूमियत से पूछा..

उसका सवाल सुन अक्षिता की मुस्कान गायब हो गई और एकांश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई थी, दोनों ही इस वक्त एक ही बात सोच रहे थे

"शायद..." अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा

वो लड़की आसमान की ओर देख रही थी जबकि एकांश बस अक्षिता को देखता रहा..

"किसी दिन मैं भी स्टार बनूंगी और अपने चाहने वालों को नीचे देखूंगी" अक्षिता ने आंसुओं के साथ मुस्कुराते हुए धीमे से कहा

--

एकांश इधर उधर देखते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था देख रहा था कि कोई है या नहीं तभी गेट पर खड़ी अक्षिता को देखकर वो जल्दी से दीवार के पीछे छिप गया

उसने खुद को थोड़ा छिपाते हुए झाँका और देखा कि अक्षिता बिना हिले-डुले वहीं खड़ी थी, एकांश ने सोचा के इस वक्त वो वहा क्या कर रही है

अचानक अक्षिता ने अपने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया था और एकांश को क्या हो रहा था समझ नहीं आ रहा था उसने अक्षिता को देखा जो अब बेहोश होने के करीब थी और इसलिए वो उसके पास पहुचा और उसने उसे ज़मीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी तरफ़ देखा, अक्षिता बेहोश हो चुकी थी...

एकांश ने उसके गाल थपथपाते हुए उसे कई बार पुकारा लेकिन वो नहीं जागी

एकांश उसे गोद में उठाकर उठ खड़ा हुआ और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे में ले गया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया

घबराहट में उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.... उसने अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया

"हैलो?"

"डॉक्टर अवस्थी"

"मिस्टर रघुवंशी, क्या हुआ?" डॉक्टर ने चिंतित होकर पूछा

"अक्षिता बेहोश हो गई है मुझे... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा डॉक्टर?" उसने अक्षिता चेहरे को देखते हुए पूछा

"क्षांत हो जाइए और मुझे बताइए ये कैसे हुआ?" डॉक्टर ने जल्दी से पूछा

"वो दरवाजे के पास खड़ी थी और उसके सर मे शायद दर्द शुरू हुआ और उसने अपना सिर पकड़ लिया और अगले ही मिनट वो बेहोश हो गई"

" ओह...."

"डॉक्टर, उसे क्या हुआ? वो बेहोश क्यों हो गई? क्या कुछ गंभीर बात है? क्या मैं उसे वहाँ ले आऊ? या किसी पास के डॉक्टर के पास जाऊ? अब क्या करू बताओ डॉक्टर?" एकांश ने डरते हुए कई सवाल कर डाले

"मिस्टर रघुवंशी शांत हो जाइए क्या आपके पास वो ईमर्जन्सी वाली दवा है जो मैंने आपको दी थी?" डॉक्टर ने शांति से पूछा

"हाँ!" एकांश ने कहा.

"तो वो उसे दे दो, वो ठीक हो जाएगी" डॉक्टर ने कहा

"वो बेहोश है उसे दवा कैसे दूँ?" एकांश

"पहले उसके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़को" डॉक्टर भी अब इस मैटर को आराम से हँडल करना सीख गया था वो जानता था एकांश अक्षिता के मामले मे काफी पज़ेसिव था

"ठीक है" उसने कहा और अक्षिता चेहरे पर धीरे से पानी छिड़का

"अब आगे"

"क्या वो हिली?" डॉक्टर ने पूछा

"नहीं." एकांश फुसफुसाया.

"तो उस दवा को ले लो और इसे थोड़े पानी में घोलो और उसे पिलाओ" डॉक्टर ने आगे कहा

"ठीक है" यह कहकर एकांश ने वही करना शुरू कर दिया जो डॉक्टर ने कहा था

एकांश धीरे से अक्षिता सिर उठाया और दवा उसके मुँह में डाल दी, चूँकि दवा तरल रूप में थी, इसलिए दवा अपने आप उसके गले से नीचे उतर गई

"हो गया डॉक्टर, दवा दे दी है, मैं उसे अस्पताल ले आऊ? कही कुछ और ना हो?" एकांश ने कहा

"नहीं नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इस बीमारी मे ऐसा कई बार होता है अगर आप उसे यहाँ लाते तो मैं भी वही दवा देता, बस इंजेक्शन लगा देता अब वो ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है" डॉक्टर ने शांति से कहा

"ठीक है, तो वो कब तक जागेगी?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा

"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में, और अगर दोबारा कुछ लगे तो मुझे कॉल कर लीजिएगा" डॉक्टर ने कहा

"थैंक यू सो मच डॉक्टर" एकांश ने कहा और फोन काटा

एकांश ने राहत की सांस ली और अक्षिता की तरफ देखा जो अभी ऐसी लग रही थी जैसे आराम से सो रही हो, एकांश वही बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया और धीरे से अक्षिता के बालों को सहलाने लगा

"काश मैं तुम्हारा दर्द दूर कर पाता अक्षु" एकांश ने धीमे से कहा और उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद टपकी

उसने आगे झुक कर अक्षिता के माथे को चूम लिया जो की अपने में ही एक अलग एहसास था, एकांश अब शांत हो गया था अक्षिता अब ठीक थी और उसके साथ थी इसी बात से उसे राहत महसूस हुई थी

अक्षिता की आंखों के चारों ओर काले घेरे और उसकी कमज़ोरी देखकर उसका दिल बैठ रहा था उसने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ को चूमा

"मैं तुम्हें बचाने मे कोई कसर नहीं छोड़ूँगा अक्षु, मैं वादा करता हु तुम्हें कही नहीं जाने दूंगा" एकांश ने धीमे से अक्षिता का हाथ अपने दिल के पास पकड़ते हुए कहा

(पर बचाएगा कैसे जब खुद उसके सामने ही नही जा रहा🫠)

"लेकिन वो चाहती है के तुम उसे जाने को बेटे"

अचानक आई इस आवाज का स्त्रोत जानने के लिए एकांश ने अपना सिर दरवाजे की ओर घुमाया जहा अक्षिता की माँ आँखों में आँसू लिए खड़ी थी एकांश ने एक नजर अक्षिता को देखा और फिर उठ कर खड़ा हुआ

"जानता हु लेकिन मैं उसे जाने नहीं दे सकता, कम से कम अब तो नहीं जब वो मुझे मिल गई है" एकांश ने दृढ़तापूर्वक कहा

अक्षिता की मा बस उसे देखकर मुस्कुरायी.

"तुम्हें सब कुछ पता है, है न?" उन्होंने उदासी से नीचे देखते हुए उससे पूछा

"हाँ" एकांश ने कहा और वो दोनों की कुछ पल शांत खड़े रहे

"मुझे पता है कि तुम यहाँ रहने वाले किरायेदार हो" उसकी माँ ने कहा

"उम्म... मैं... मैं... वो...." एकांश को अब क्या बोले समझ नहीं आ रहा था क्युकी ये सामना ऐसे होगा ऐसा उसने नही नहीं सोचा था

"मुझे उसी दिन ही शक हो गया था जब मैंने देखा कि कुछ लोग तुम्हारे कमरे में बिस्तर लेकर आए थे और मैंने देखा कि एक आदमी सूट पहने हुए कमरे में आया था, मुझे शक था कि यह तुम ही हो क्योंकि यहाँ कोई भी बिजनेस सूट नहीं पहनता" उसकी माँ ने कहा

"मैंने भी यही सोचा था के शायद यहा नॉर्मल कपड़े ज्यादा ठीक रहेंगे लेकिन देर हो गई" एकांश ने पकड़े जाने पर हल्के से मुसकुराते हुए कहा

"और मैंने एक बार तुम्हें चुपके से अंदर आते हुए भी देखा था, तभी मुझे समझ में आया कि तुम ही यहां रहने आए हो"

एकांश कुछ नहीं बोला

"लेकिन तुम छिप क्यू रहे हो?" उन्होंने उससे पूछा.

"अगर अक्षिता को पता चल गया कि मैं यहा हूँ तो वो फिर से भाग सकती है और मैं नहीं चाहता कि वो अपनी ज़िंदगी इस डर में जिए कि कहीं मैं सच न जान जाऊँ और बार-बार मुझसे दूर भागती रहे, मैं तो बस यही चाहता हु कि वो अपनी जिंदगी शांति से जिए" एकांश ने कहा और अक्षिता की मा ने बस एक स्माइल दी

“तुम अच्छे लड़के को एकांश और मैं ऐसा इसीलिए नहीं कह रही के तुम अमीर हो इसके बावजूद यह इस छोटी सी जगह मे रह रहे हो या और कुछ बल्कि इसीलिए क्युकी मैंने तुम्हें देखा है के कैसे तुमने अभी अभी अक्षिता को संभाला उसकी देखभाल की” अक्षिता की मा ने कहा

"ऐसा कितनी बार होता है?" एकांश अक्षिता की ओर इशारा करते हुए पूछा।

"दवाओं की वजह से उसे थोड़ा चक्कर आता है, लेकिन वो बेहोश नहीं होती वो तब बेहोश होती है जब वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में होती है" उसकी माँ दुखी होकर कहा

"वो स्ट्रेस में है? क्यों?"

लेकिन अक्षिता की मा ने कुछ नहीं कहा

"आंटी प्लीज बताइए वो किस बात से परेशान है?" एकांश ने बिनती करते हुए पूछा

"तुम्हारी वजह से”

"मेरी वजह से?" अब एकांश थोड़ा चौका

" हाँ।"

"लेकिन क्यों?"

"उसे तुम्हारी चिंता है एकांश, कल भी वो मुझसे पूछ रही थी कि तुम ठीक होगे या नहीं, वो जानती है कि उसके गायब होने से तुम पर बहुत बुरा असर पड़ेगा वो सोचती है कि तुम उससे और ज्यादा नफरत करोगे लेकिन वो ये भी कहती है कि तुम उससे नफरत करने से ज्यादा उसकी चिंता करोगे उसने हाल ही में मीडिया में भी तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सुना था जिससे वो सोचने लगी कि तुम कैसे हो सकते हो और तुम्हारे सच जानने का डर उसे खाए जा रहा है इन सभी खयालों और चिंताओं ने उसे स्ट्रेस में डाल दिया और वो शायद इसी वजह से बेहोश हो गई होगी।" उसकी माँ ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला बस अक्षिता को देखता रहा और फिर उसने उसकी मा से कहा

"आंटी क्या आप मेरा एक काम कर सकती हैं?"

"क्या?"

"मैं यहा रह रहा हु ये बात आप प्लीज अक्षिता को मत बताना"

"लेकिन क्यों? "

"उसे ये पसंद नहीं आएगा और हो सकता है कि वो फिर से मुझसे दूर भागने का प्लान बना ले"

"लेकिन तुम जानते हो ना ये बात उसे वैसे भी पता चल ही जाएगी उसे पहले ही थोड़ा डाउट हो गया है" उन्होंने कहा

"जानता हु लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है आप प्लीज उसे कुछ मत बताना, उसे खुद पता चले तो अलग बात है जब उसे पता चलेगा, तो मैं पहले की तरह उससे बेरुखी से पेश आ जाऊंगा मेरे लिए भी ये आसान हो जाएगा और उसे यह भी नहीं पता होना चाहिए कि मैं उसे यहाँ लाया हूँ और दवा दी है"

अक्षिता की मा को पहले तो एकांश की बात समझ नहीं आई लेकिन फिर भी उन्होंने उसने हामी भर दी

"वैसे इससे पहले कि वो जाग जाए तुम उसे उसके कमरे मे छोड़ दो तो बेहतर रहेगा" अक्षिता की मा ने कहा जिसपर एकांश ने बस हा मे गर्दन हिलाई और वो थोड़ा नीचे झुका और अक्षिता को अपनी बाहों में उठा लिया उसकी माँ कुछ देर तक उन्हें ऐसे ही देखती रही जब एकांश ने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि कुछ नहीं हुआ और नीचे चली गई

एकांश उनके पीछे पीछे घर के अंदर चला गया अक्षिता की माँ ने उसे अक्षिता का बेडरूम दिखाया और वो अंदर गया और उसने अक्षिता को देखा जो उसकी बाहों में शांति से सो रही थी

अक्षिता की माँ भी अंदर आई और उन्होंने देखा कि एकांश ने अक्षिता को कितने प्यार से बिस्तर पर लिटाया और उसे रजाई से ढक दिया उसने उसके चेहरे से बाल हटाए और उसके माथे पर चूमा..

एकांश खड़ा हुआ और उसने कमरे मे इधर-उधर देखा और वो थोड़ा चौका दीवारों पर उसकी बहुत सी तस्वीरें लगी थीं कुछ तो उसकी खूबसूरत यादों की थीं, लेकिन बाकी सब सिर्फ उसकी तस्वीरें थीं...

"वो जहाँ भी रहती है, अपना कमरा हमेशा तुम्हारी तस्वीरों से सजाती है" अक्षिता की माँ ने एकांश हैरान चेहरे को देखते हुए कहा

एकांश के मुँह शब्द नहीं निकल रहे थे वो बस आँसूओ के साथ तस्वीरों को देख रहा था

"वो कहती है कि उसके पास अब सिर्फ यादें ही तो बची हैं" सरिता जी ने अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए कहा

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले और इस बार उसने उन्हें छिपाने की ज़हमत नहीं उठाई

वो उसके कमरे से बाहर चला गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी......



क्रमश:
Nice and superb update....
 

park

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Update 34





जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था

कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था

एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी

काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे

आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था

सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले

एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...

जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया

वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...

वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया

अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...

वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी

जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...

अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था

"अंश..."

उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा

अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था

एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....

"तुम यहा क्या......."

लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा

उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की

"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा

"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा

"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा

"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा

"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"

एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था

"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा

"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी

“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा

“क्या कहा?”

“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा

अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...

"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता

"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था

"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा

एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी

"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा

लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..

एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची

"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”

"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा

"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की

अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...

एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।

"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा

लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..

"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला

"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"

एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है

दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे

"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा

"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"

"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो

"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..

"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी

"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा

"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"

"नही!!"

"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"

"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती

पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था

"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा

"मैंने ऐसा कब कहा?"

"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा

"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला

"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा

"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी

"मैं क्या?"

"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा

"नहीं."

"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था

"हम्म"

"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा

और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है

"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला

"लेकिन...."

"आउट!"

और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा

'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा

अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी

वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा

एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी

"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा

"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।

"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया

"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा

"जानता हु..."

"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा

"आप बस मेरी एक मदद करो"

"क्या?"

"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा

"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"

"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"

बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और

फिर कंट्रोल नही हुआ

सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी

क्रमश:
Nice and superb update....
 
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