• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance Ek Duje ke Vaaste..

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
18,289
36,552
259
वाह! क्या कहानी लिखी है आपने! पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगा जैसे मैं खुद अक्षिता और एकांश के साथ उस पानी में भीग रही हूं और पार्टी में उनके साथ खड़ी हूं। आपकी लेखनी इतनी प्रभावशाली और जीवंत है कि हर दृश्य मानो आंखों के सामने चलता हुआ सा महसूस हो रहा था।

अक्षिता और एकांश के बीच की केमिस्ट्री इतनी प्यारी और दिलचस्प है कि दिल बस और पढ़ने को करता है। पानी वाली मस्ती से लेकर साड़ी में अक्षिता का एकांश को मंत्रमुग्ध करना और फिर पार्टी के दौरान उनकी नजदीकियां – सब कुछ इतनी खूबसूरती से लिखा गया है कि एक-एक पल जैसे दिल को छू गया।

सबसे ज्यादा मज़ा तब आया जब एकांश अक्षिता को पार्टी में बुलाने आया और उसके इमोशन्स समझने के लिए अक्षिता ने थोड़ा नखरा दिखाया। इतना प्यारा और दिलकश मोमेंट! साथ ही, सरिताजी का हंसी-मजाक और उनकी बेटी के लिए साड़ी तैयार करना – बहुत रिलेटेबल और इमोशनल टच था।

अब बात करें क्लाइमैक्स की, तो जिस तरह पार्टी में एकांश और अक्षिता की आंखें मिलीं और वे पूरी दुनिया को भूल गए – उस मोमेंट पर दिल सच में थोड़ा फिसल गया। आपकी कहानियों में इमोशन्स इतने अच्छे से उभरकर आते हैं कि पढ़ते-पढ़ते दिल भारी हो जाता है।

लेखक जी, आपसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि अगली अपडेट जल्दी से जल्दी दीजिए! अक्षिता और एकांश की इस प्यारी सी लव स्टोरी का अगला हिस्सा जानने के लिए दिल अब और इंतजार नहीं कर सकता। इतना खूबसूरत लिखने के लिए आपको ढेर सारा धन्यवाद और प्यार! Keep writing, आप कमाल हैं!
एक बार तो मुझे लगा कि अपने SANJU ( V. R. ) भैया ने समीक्षा लिखी है 😌
 
10,036
41,947
258
एक बार तो मुझे लगा कि अपने SANJU ( V. R. ) भैया ने समीक्षा लिखी है 😌
आसिफा जी को आप मेरा ही :alias: समझ लीजिए । :D
वैसे यह हंसी-मजाक की बात है पर रियल यह है कि आसिफा बहुत ही इंटेलिजेंट और एनर्जिटिक युवती है ।
हिंदी पर उनका ज्ञान काबिलेतारीफ है । आप उनकी रोमांस प्रीफिक्स पर आधारित स्टोरी " तुम मेरे हो " से समझ सकते है ।
मै बहुत पहले स्टोरी पर दिए गए उनके रिव्यू से यह समझ गया था ।
आदि भाई के इस अपडेट पर इससे बेहतर रिव्यू मै भी नही दे सकता । आदि भाई , इस रिव्यू को मेरा भी रिव्यू समझ लीजिए !
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,152
22,357
173
Update 37



"क्या बकवास है? अब मैं ऑफिस कैसे जाऊं?"

अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था

"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा

"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा

"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा

"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा

"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा

"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा

"बस करो तुम दोनों।"

उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला

"I am calling a cab"

"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।

"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"

"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा

"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा

"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी

"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"

और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी

"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा

"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया

"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा

एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं

"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले

"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा

"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका

"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी

"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा

“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया

"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"

"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा

"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"

"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा

"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा

"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला

अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी

लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था

एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया

"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा

"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था

"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी

एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।

"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था

"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी

एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे

बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए

कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया



"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा



"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"



अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया

अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी

"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया

"क्या?"

"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा

एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा

जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है

एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था

अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी

एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था

"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा

एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली

"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"

"थैंक्स"

"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा

"रुको! तुम जाओगी कैसे?"

"जैसे अभी आए है, बस से"

तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive :sigh: )

"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”

"क्या? क्यों?"

"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा

"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा

"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा

“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया

"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा

"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा

"ओके सर"

"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी

लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा

"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा

"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा

"नहीं."

"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा

"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा

"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला

"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी

******

मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था

घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की

"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया

"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा

"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"

"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा

"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा

"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी

"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया

वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी

"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे



क्रमश:
Bohot badiya update
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,152
22,357
173
Update 37



"क्या बकवास है? अब मैं ऑफिस कैसे जाऊं?"

अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था

"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा

"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा

"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा

"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा

"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा

"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा

"बस करो तुम दोनों।"

उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला

"I am calling a cab"

"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।

"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"

"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा

"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा

"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी

"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"

और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी

"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा

"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया

"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा

एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं

"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले

"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा

"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका

"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी

"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा

“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया

"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"

"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा

"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"

"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा

"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा

"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला

अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी

लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था

एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया

"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा

"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था

"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी

एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।

"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था

"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी

एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे

बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए

कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया



"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा



"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"



अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया

अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी

"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया

"क्या?"

"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा

एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा

जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है

एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था

अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी

एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था

"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा

एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली

"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"

"थैंक्स"

"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा

"रुको! तुम जाओगी कैसे?"

"जैसे अभी आए है, बस से"

तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive :sigh: )

"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”

"क्या? क्यों?"

"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा

"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा

"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा

“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया

"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा

"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा

"ओके सर"

"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी

लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा

"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा

"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा

"नहीं."

"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा

"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा

"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला

"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी

******

मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था

घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की

"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया

"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा

"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"

"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा

"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा

"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी

"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया

वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी

"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे



क्रमश:
Bohot badiya update
Update 38



एकांश खुश था..... बल्कि बहुत ज्यादा खुश था

रीजन?

अक्षिता!

अक्षिता बहुत अच्छी थी, उसकी सेहत में भी सुधार हो रहा था, उसके चेहरे पर चमक लौट आई थी, उसके चेहरे पर उसकी खूबसूरत मुस्कान भी लौट आई थी

रीजन?

एकांश!

वो दोनो एक दूसरे की खुशी का कारण थे

एकांश ने जब अक्षिता की सुधरती हालत के बारे में डॉक्टर से बात की तो उन्होंने भी बताया के अक्षिता का खुश रहना कितना जरूरी है, इससे जबरदस्ती के स्ट्रेस से बचा जा सकता है जो अक्षिता की सेहत के लिए बिल्कुल भी सही नही था

अक्षिता के माता-पिता अपनी बेटी के मुस्कुराते चेहरे को देखकर बहुत खुश थे, वो अपनी बेटी को जानते थे वो जानते थे के अक्षिता भले की उनके सामने मुस्कुरा देती हो लेकिन उसकी वो मुस्कान फीकी थी, वो अपना दर्द छुपाने में माहिर थी

लेकिन अब हालत अलग थी उनकी बेटी खुश थी और मुस्कुरा रही थी और वो जानते थे कि ये सब एकांश की वजह से है, अक्षिता के खुश रहने के पीछे एकांश का वहा होना ही था

एकांश उसके सामने था, वो रोज उसे देख पा रही थी इसीलिए उसे अब रोज रोज एकांश को चिंता नहीं होती थी और इन्ही सब चीजों ने मानो अक्षिता के जीवन को तनावमुक्त बना दिया था जिसका उसकी तबियत पर पॉजिटिव असर हो रहा था, उसकी सेहत सुधर रही थी

******

"एकांश, तुम कितने चिड़चिड़े हो यार!" अक्षिता ने एकांश से कहा

"तुम मुझे मस्त नींद से जगाकर अपने साथ खेलने ले आई और मैं चिड़चिड़ भी न करू" एकांश ने झल्लाकर जवाब दिया

"बिल्कुल”

"मैं सोना चाहता हु अक्षिता" एकांश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा

"नहीं क्युकी अभी हमे एक प्लेयर की जरूरत है"

"मैं खेलने के मूड में नहीं हूँ" एकांश कहा और आँखें बंद करके दीवार से टिक गया

"अरे चलो भी! आज तुम्हारी छुट्टी है"

" करेक्ट! आज मेरी छुट्टी है और मैं सोना चाहता हूँ"

"एकांश, प्लीज" अक्षिता ने प्यार से कहा और एकांश ने बस उसकी ओर देखा

"प्लीज़......" अक्षिता ने दोबारा प्यार से अपनी पलकें झपकाते हुए कहा

" उर्ग्घघ्ह्ह्हह्ह......."

"प्लीज......" और जब एकांश प्यार से नहीं माना तो अक्षिता ने इस बार हल्के गुस्से से कहा

“ठीक है...... चलो" और एकांश उसके साथ चला गया

खेलना भी क्या था अक्षिता को मोहल्ले के बच्चों के साथ टाइमपास करना था जिसके लिए वो एकांश को भी अपने साथ ले आई थी जिसमे एकांश का बिल्कुल इंटेरेस्ट नहीं था, वो पूरा टाइम अक्षिता को देखता रहा और उसे देखने के अलावा उसके कुछ नहीं किया, वो जब जीतती तो उसके चेहरे की हसी देख कर ही एकांश को सुकून मिल रहा था

कुल मिला कर अब हालत सुधर रहे थे अक्षिता की सेहत का सुधार देख सब खुश थे, डॉक्टर ने उन्हे बताया था के हाल ही के रेपोर्ट्स जो विदेशी डॉक्टर को बताए थे उनसे सलाह लेकर अक्षिता की दवाईया बदल दी गई थी जिससे उसकी सेहत को और फायदा होने वाला था

और सबसे ज्यादा एकांश इसीलिए खुश था के अक्षिता के उसे उसके वहा रहने पर परेशान करना बंद कर दिया था हालांकि ये बात वो जानता था के वो जानती है के वो वहा उसके लिए था लेकिन दोनों ही इस मामले मे चुप थे क्युकी यही सबके लिए अच्छा था

एकांश की नजरे इस वक्त अक्षिता पर टिकी हुई थी जो बच्चों के साथ खेल रही थी उन्हे चिढ़ा रही थी हास रही थी थी और उसके हसते देख एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान थी साथ हाइ वो ऊपरवाले से प्रार्थना भी कर रहा था के अक्षिता की ये हसी कभी ना खोए

पिछले कुछ दिन वाकई बहुत अच्छे रहे थे, वो उसके लिए खाना लाती थी, उसके ऑफिस के काम में उसकी मदद करती थी दोनों काफी टाइम साथ रहते थे और एकांश समय-समय पर उसके डॉक्टर से संपर्क में रहता था ताकि वह उसके हेल्थ में हो रहे सुधार के बारे में जान सके

एकांश गेट के पास खड़ा होकर अक्षिता को बच्चों के साथ खेलते हुए देखता रहा, जब तक कि उसे एक जानी-पहचानी शख़्सियत अपनी ओर आती हुई नहीं दिखी, उसने याद करने की कोशिश की कि उसने उस शख़्स को कहा देखा था, लेकिन जब तक वो शख़्स उसके सामने नहीं आ गया, तब तक उसे समझ नहीं आया





" मिस्टर रघुवंशी"

उस शक्स ने कहा और अब एकांश ने उसे पहचान लिया था

"तुम यहा क्या कर रही हो?" एकांश ने हैरान होते हुए पूछा

"आपसे मिलने आई हु"

"क्यों? आपका पेमेंट सही नहीं हुआ था क्या" एकांश ने उससे पूछा

"वो बात नहीं है वो... दरअसल... क्या हम कहीं और जाकर अकेले में बात कर सकते हैं?"

एकांश को पहले तो कुछ समझ नहीं आया के वो क्या बोल रही है इसीलिए उसने वही बात करने का फैसला किया

"मेरी हिसाब से ये जगह ही सही है बताइए क्या कहना है आपको" एकांश ने कहा लेकिन वो शक्स कुछ नहीं बोली

"अब बोलो भी?" एकांश ने वापिस कहा

" I want you!"

एकांश ये सुनकर दंग रह गया था उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था

"क्या?" एकांश ने चौक कर पूछा

"Yes, I want you!" उसने कहा

"मिस अमृता, क्या आप पागल हो गई हैं?" एकांश ने गुस्से मे कहा

वो डिटेक्टिव अमृता थी जिसने अभी अभी एकांश को एक हिसाब से प्रपोज ही कर दिया था

"No, I am in Love" अमृता रुकी फिर आगे कहा "with you!"

एकांश तो उसकी बात सुन कर ही सुन्न हो गया था

अमृता ने उसके हाथ अपने हाथों में लिए और बोलना शुरू किया

"मुझे नहीं पता कि ये कैसे और कब हुआ, लेकिन यह हुआ, I was tired of guys and their ways around me but you were different, I know you were my client and trust me I am very professional to fall in love with my client but it happened हालांकि तुमने भले ही मेरी साथ हमेशा रुख ही व्यवहार किया लेकिन मैंने तुम्हारी आँखों में जो ईमोशनस् देखे थे बस उन्होंने ही मुझे तुम्हारी ओर खींचा, उस दिन तुमसे दूर जाना मेरे लिए काफी मुश्किल था और उसके बाद जब मैं घर गई तो मेरी दिमाग मे सिर्फ तुम ही थे, तभी मुझे ये एहसास हुआ कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ I am madly in love with you" अमृता ने एकांश की आँखों में गौर से देखते हुए सब कुछ कहा

अमृता ही बात सुन एकांश काफी ज्यादा शॉक था उसने उसकी तरफ देखा जो उम्मीद से उसे ही देख रही थी, सब कुछ शांत था और फिर अचानक एकांश को एहसास हुआ कि वो इस वक्त बाहर खड़ा था और उनके आसपास काफी लोग थे

उसने अपना सिर अक्षिता की ओर घुमाया जो वहीं खड़ी उसे और अमृता को ही देख रही थी जब उसने देखा कि अक्षिता चेहरे पर सूनापन लिए उसे देखते हुए ही घर के अंदर जा रही है तब वो थोड़ा घबराया और जल्दी से अमृता के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया

" Leave!"

एकांश ने कहा लेकिन शायद अमृता को वो सुनाई ना दिया

"क्या?"

"Just Leave!" एकांश ने अपने दाँत पीसते हुए थोड़े गुस्से मे कहा, हालांकि उनका अमृता के लिए ये रवैया सही नहीं ठहराया जा सकता था लेकिन वो अक्षिता को लेके इस वक्त इतना पज़ेसिव था के सही गलत या अक्षिता के सामने कीसी और की फीलिंगस का उसके सामने इस वक्त तो कोई मोल नहीं था और जब उसके अक्षिता को उदास चेहरे के साथ घर मे जाते देखा तो अब उसका गुस्सा अमृता पर निकलने तयार था

"But I Love you" अमृता ने कहने की कोशिश की लेकिन एकांश ने गुस्से से अपना सिर उसकी ओर घुमाया जिससे थोड़ा डर कर वो पीछे हट गई

"तुम जानती भी हो कि प्यार क्या होता है?" एकांश ने पूछा

"Do you know what love does to you?"

"तुम जानती हो तुमने अभी अभी क्या किया है और तुम्हारे बिना सोचे समझे किए इस काम का क्या परिणाम हो सकता है?"

"उसकी जिंदगी पहले की तरह नॉर्मल बनाने मे कितना वक्त और मेहनत लगी है जानती हो?"

"हमारी जिंदगी की जरा भी भनक आपको होती मैडम डिटेक्टिव तो तुम यहा नहीं आती तुम जानती हो हम इस वक्त किस फेज से गुजर रहे है?"

"अपना हर पल बस इसी डर में जी रहे हैं कि आगे क्या होगा"

"जानती भी हो की मुझपर इस वक्त क्या बीत रही है यह जानते हुए कि कुछ ही समय में सब कुछ खत्म हो जाएगा?"

एकांश ने अमृता पर एक के बाद एक सवाल दाग दिए वही अमृता उसके चेहरे पर आया दर्द और गुस्सा देख अचंभे मे थी

"देखो अमृता मैं नहीं जानता के तुमने मुझमे ऐसा क्या देखा या मैंने कभी भी तुम्हें कोई ऐसा हिंट नहीं दिया जिससे लगे के हमारा कुछ हो सकता है इसीलिए ये बात दिमाग मे डाल लो की मैं तुमसे प्यार नहीं करता और न कभी करूंगा, ये बात बोलने मे मैं थोड़ा तुम्हें रुड लगूँगा लेकिन यही सच है अब प्लीज यहां से चली जाओ और मुझसे दोबारा मुझसे मिलने की कोशिश ना करना" एकांश ने सख्ती से कहा और घर मे जाने के लिए मूडा

"तुम उससे प्यार करते हो, है न?" अमृता ने पूछा

"हाँ, मैं उससे और सिर्फ़ उससे ही प्यार करता हूँ और आखिरी साँस तक उसीसे करत रहूँगा" एकांश ने कहा और घर मे चला गया

अमृता वही वही खडी रही, उसके एकांश की आँखों मे प्यार देखा था लेकिन वो उसके लिए नहीं था और बस यही सोचते हुए उसकी आँख भरने लगी थी, उसे इस बात का भी अफसोस हो रहा था के उसे ये बात पहले ही समझ जानी चाहिए थे जब उसने एकांश को अक्षिता के लिए इतना व्याकुल देखा था, शायद वो समझ भी गई थी लेकिन शायद उसका दिल मानने को राजी नहीं था और इसीलिए शायद वो यहा आई थी अपने प्यार का इजहार करने जो शायद उसे कभी ना मिले और अब वहा रुकने का और कोई रीज़न नहीं था तो उसने एक बार जाते हुए एकांश को देखा और वहा से चली गई



इधर एकांश जब घर के अन्दर आया तो उसे अक्षिता कही दिखाई नहीं दी

"अक्षिता कहाँ है?" एकांश ने सरिताजी से पूछा

"वो अपने कमरे में है और और उसने खुद को अंदर से बंद कर लिया है, चिंता मत करो उसे अकेले रहना होता है तब वो ऐसा ही करती है" सरिताजी ने एकांश के चिंतित चेहरे को देखते हुए कहा

"ओह."

"एकांश कुछ हुआ है क्या बेटा?"

"नहीं कुछ नहीं... मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ आंटी आप प्लीज उसका ख्याल रखना" एकांश ने कहा

"हा बेटा.... लेकिन तुम ठीक तो हो?" उसने चिंतित होकर पूछा

"मैं ठीक हूँ" ये कहकर एकांश मुड़ा और अपने कमरे में चला गया

जैसे ही वो अपने कमरे में दाखिल हुआ, वो यह सोचकर घबरा गया कि अक्षिता क्या सोच रही होगी और क्या सब कुछ फिर से पहले जैसा हो जाएगा...

उसने भगवान से बस यही प्रार्थना की कि इसका असर उनकी सेहत पर न पड़े

******

" हैलो?"

"....."

" हैलो?"

"....."

"कौन है?" रोहन ने पूछा

"हमारे उस बेवकूफ बॉस ने मुझे फोन किया है लेकिन कुछ बोल नहीं रहा"

"हैलो? एकांश?"

"हैलो."

"आह... फाइनली तुमने कुछ बोला हो” स्वरा ने झल्लाते हुए कहा

"स्वरा.... मैं...." एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या कहे

"एकांश क्या हुआ है तुम काफी परेशान साउन्ड कर रहे हो?" स्वरा ने चिंतित होकर पूछा।

"मैंने गड़बड़ कर दी.... मैं.."

"एकांश प्लीज हमें बताओ कि क्या हुआ है ऐसे डराओ मत, सब ठीक है न? अक्षु ठीक है ना?

"सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन फिर.... आज अमृता यहाँ आई और उसने मुझसे प्रपोज कर दिया और अक्षिता ने सब सुन लिया और अब उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया है" एकांश ने उदास होकर कहा

"WTH! और ये अमृता कौन है?" स्वरा ने कन्फ्यूज़ टोन मे पूछा

"अमृता वो प्राइवेट डिटेक्टिव है जिसे अमर ने अक्षिता को को ढूँढने के लिए हायर किया था" एकांश ने रोहन को स्वरा को समझाते हुए सुना वही स्वरा अमर को उलट सीधा बोलने लगी

"अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ तो प्लीज कोई रास्ता हो तो बताओ" एकांश ने स्वरा के चुप होते हो कहा

" बस जाओ और उससे बात करने की कोशिश करो" स्वरा ने कहा

" ठीक है"

"और चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा"

"थैंक्स" इतना कह कर एकांश ने फोन काट दिया

******

एकांश ने अपनी खिड़की से घर के अंदर झाँका लेकिन उसे अक्षिता कहीं नहीं दिखी वो अपने कमरे से बाहर आया और सीढ़ियों से नीचे चला गया जब उसने सीढ़ियों की आखिरी सीढ़ी पर बैठी अक्षिता को देखा तो वो रुक गया

जब उसने देखा कि यह अक्षिता थी तो उसने राहत की सास ली, अक्षिता अपना सिर दीवार पर टिकाए हुए थी और उसकी आँखें रात के आसमान में तारों को देख रही थीं

वो धीरे-धीरे उसके पास आया और उसके बगल में बैठ गया, एकांश अक्षिता को देख रहा जबकि अक्षिता आसमान को, उसने एकांश को अपने पास महसूस किया और ये भी महसूस किया कि वो उसे देख रहा था, लेकिन उसने उसकी तरफ़ नहीं देखा

बहुत दिनों बाद उन्हें अपने लिए वक्त मिला था..... अकेले, वो खुश थे कि वहाँ सिर्फ़ वो दोनों थे..... एकांश, अक्षिता और रात का आसमान

अक्षिता यही सोचकर मुस्कुराई और एकांश हैरान होकर उसकी ओर देखने लगा, वो जानना चाहता था कि वो क्या सोच रही थी

एकांश के सारे खयाल तब गायब हो गए जब उसने भी तारों से भरे आसमान को देखा जो एकदम शांत था और ऐसा सालों बाद हुआ था जब वो दोनों एक साथ बैठकर यू रात का आसमान निहार रहे थे और उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई

तभी हवा का एक झोंका उनके बीच से बहता हुआ उसके बालों को उड़ाता हुआ और उसके चेहरे पर मुस्कान लाता हुआ गया वहाँ सिर्फ़ वे ही थे..... सिर्फ वो दोनों और अभी के लिए एकांश बस यही चाहता था

उसने देखा के अक्षिता ने उसका एक हाथ पकड़ा हुआ था और वो उसकी ओर देख मुस्कुराई और उसने अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...

दूसरी तरफ एकांश उसकी हरकतों को देखकर हैरान था हालाँकि उसे इससे कोई दिक्कत नहीं थी और वो अंदर ही अंदर वह खुशी से झूम रहा उसका दिल जोरों से धडक रहा था

उसने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा और अपना सिर उसके सिर पर टिका दिया और दोनों एक साथ आकाश में तारों को देखने लगे, दोनों के ही चेहरों पर मुस्कान थी....




क्रमश:
Awesome update
 
Top