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Romance Ek Duje ke Vaaste..

kas1709

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Update 43




एकांश अक्षिता को लेकर एक स्ट्रीट फूड मार्केट के पास आया था ताकि कुछ खा सके और वहा पहुच कर उसने अक्षिता को देखा तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, अपने सामने अलग अलग चाट की गाड़िया देख अक्षिता के मुह मे पानी आने लगा था, अपनी तबीयत के चलते उसे बाहर का कुछ भी यू खाने की इजाजत नहीं थी, इसीलिए एकांश का उसे वहा लाना उसके लिए फिलहाल तो एक बेहतरीन ट्रीट था

वही एकांश को भी अब ये एहसास हो गया था के उसे यहा नहीं आना चाहिए था, फ़्लो फ़्लो मे अक्षिता और अपना मूड ठीक करने कुछ थोड़ा खाने वो यहा आया था लेकिन यहा की गर्दी और खाने पीने का महोल अक्षिता और उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं है इसका एहसास उसे हो गया था और वैसे ही उसने अक्षिता को वहा से चलने के लिए कह दिया था....

अक्षिता अभी चाट की एक रेडी की ओर बढ़ ही रही थी के एकांश ने उसका हाथ पकड़ा

"अक्षिता, चलो..." एकांश ने कहा

"हा हा चलो वहा से शुरुवात करते है" अक्षिता ने एक और इशारा करते हुए कहा, उसे एकांश के चलो का मतलब ही नहीं समझ आया था, वो तो कुछ बढ़िया खाने के लिए उत्सुक थी

"अक्षिता, यहा से चलो, किसी बढ़िया रेस्टोरेंट में खायेंगे" एकांश ने अपनी बात रखते हुए कहा ये जानते हुए के अक्षिता को अब यहा से ले जाना उसके लिए मुश्किल होने वाला था

"पर क्यों??? अभी अभी तो आए है यही से कुछ खा कर चलते है ना" अक्षिता ने कहा

"कही और बढ़िया जगह खा लेंगे पर यहा नही" एकांश ने कहा, उसे अब अक्षिता को यहा लाने का अफसोस हो रहा था साथ ही डर भी लग रहा था के यहा का खाना खा कर उसकी तबियत बिगड़ जाएगी वही अक्षिता जो तो उसकी मन पसंद चीज दिख रही थी तो वो तो अब वहा से हटने वाली नही थी

"अब चलो भी अक्षिता" एकांश ने वापिस नही

"यही कुछ खा लेते है ना, प्लीज" अक्षिता ने कहा

"नही"

"प्लीज प्लीज प्लीज"

"No!"

"तो फिर मुझे यहा लेकर ही क्यों आए थे" अब अक्षिता ने थोड़ा गुस्से में कहा

"गलती हो गई मुझसे, मैं भूल गया था के स्ट्रीट फूड ठीक नहीं है तुम्हारे लिए" एकांश ने कहा

"बकवास मत करो ठीक है, थोड़ा बहुत स्ट्रीट फूड खाने से कुछ नही होने वाला"

"अक्षिता, प्लीज, तुम्हे खुद की सेहत का ध्यान रखना चाहिए और वैसे भी ये सब खाना तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं है" एकांश ने अक्षिता को समझाते हुए कहा

"थोड़ा खाने से कुछ नही होने वाला, और अब तुम चाहे मानो या ना मानो मैं यहा से अपनी पसंद की चीजे खाए बगैर नही जा रही" अक्षिता ने कहा और अब एकांश के पास भी उसकी बात मानने के अलावा कोई रास्ता ही नही था

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी" एकांश ने कहा

"ओह हेलो मुझे वैसे भी मेरी पसंद का खाने के लिए तुम्हारी परमिशन नही चाहिए समझे ना"

"तो फिर ये प्लीज प्लीज किस बात का कह रही थी"

"वो तो मुझे लगा तुम सडा सा मुंह बना के कुछ नही खाओगे तो तुम्हे मेरे साथ खाने के लिए कह रही थी" अक्षिता ने कहा, उसे एकांश की आदत पता थी, वो अपनी डायट का ध्यान रखने वाला था और उनके रिलेशनशिप के दौरान भी उसने उसे कभी स्ट्रीट फूड खाते नही देखा था और आज भी वो नही खायेगा उसका अक्षिता को अंदाजा था

"अब चलो भी मुझे भूख लगी है" अक्षिता ने एकांश का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाते हुए कहा, एकांश भी कुछ नही बोला वो बस अक्षिता के साथ मिले इस पल को एंजॉय करना चाहता था...

अक्षिता अलग अलग चीजे खा रही थी और एकांश बस उसे खाते हुए देख रहा था, वो बस उस पल को इन्जॉय कर रहा था और इस पल मे अक्षिता को खुश करने के लिए उसे बचाने के लिए वो अपना सब कुछ कुर्बान करने को तयार था, अक्षिता को खो देने के खयाल से ही उसकी आँखों मे पानी आने लगा था और वो अक्षिता न देख ले इसीलिए उसने झट से अपने ईमोशनस् पर कंट्रोल करते हुए अपनी आंखे साफ की

अक्षिता ने वहा अपनी पसंद की सभी चीजे खाई थी और एकांश को भी खिलाई थी और पानी पूरी वाले के पास से हट कर वो एकांश के पास आई तो एकांश ने पूछा



"अब कहाँ?" एकांश ने पूछा

"I just want to sleep now" अक्षिता ने थोड़े थके हुए अंदाज मे कहा और एकांश भी उसे देख कर समझ गया के वो काफी थक गई थी और उसे दवाईया भी लेनी थी

"ठीक है तो फिर घर चलते है" एकांश ने कहा और वो दोनों उसकी कार की ओर बढ़ गए

"एकांश..."

"हम्म...."

"थैंक यू" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा

"अब ये क्यू?" एकांश ने चौक कर पूछा

"मुझे अपने साथ पार्टी में ले जाने के लिए, मेरे साथ स्ट्रीट फूड खाने के लिए और मेरे दिन को इतना खास बनाने के लिए" अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए कहा वही एकांश को समझ नहीं आ रहा था के इसपर क्या बोले

"अरे ठीक है यार, तुम्हें अच्छा लगा न बात खतम" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"इस दिन को यादगार बनाने के लिए थैंक्स, क्योंकि मैं अपनी आखिरी सांस तक इन यादों को अपने साथ रखूंगी" अक्षिता ने स्माइल के साथ कहा, जबकि एकांश की मुस्कान ये सुनकर गायब हो गई

"चलो चलते है" एकांश ने नीचे देखते हुए कहा और वो दोनों कार मे जाकर बैठे

अक्षिता सीट पर सिर टिकाकर बैठी थी और एकांश ने कार चला रहा था, उसके दिमाग में इस वक्त कई विचार चल रहे थे, उसे नहीं पता कि अक्षिता को कुछ हो गया तो वो क्या करेगा

अक्षिता खिड़की पर झुककर सो गई थी और एकांश चुपचाप गाड़ी चलाता रहा और बीच-बीच में उसे देखता रहा, वे घर पहुचने पर एकांश ने गाड़ी रोकी और जल्दी से नीचे उतरा और अक्षिता की साइड जाकर हल्के से दरवाजा खोला उसने बिना अक्षिता की नींद में खलल डाले उसे धीरे से अपनी बाहों में उठाया और उसे घर के अंदर ले आया

"ये सो गई?" सरिता जी ने दरवाज़ा खोलते हुए पूछा

"हाँ." एकांश ने धीमे से कहा और अक्षिता के कमरे की ओर बढ़ गया वही सरिता जी ने उसके लिए बेडरूम का दरवाजा खोला और एकांश ने आराम से अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसके माथे को चूमा

"उसनेन खाना खाया?" सरिता जी ने एकांश को देख पूछा

"हाँ" उसने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा

"और तुमने?" सरिता जी ने एकांश के सर पर हाथ रखते हुए पूछा जो अक्षिता के पास बेड पर बैठा हुआ था, एकांश ने बस हा मे अपना सर हिला दिया

"क्या हुआ एकांश?" सरिता जी ने पूछा, जबकि एकांश अभी भी बस अक्षिता को ही देख रहा था

एकांश से कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था और आखिर मे वो बोला

"मुझे डर लग रहा है आंटी" एकांश ने एकदम धीमी आवाज मे कहा और सरिता जी बस उसे देखती रही

"मुझे डर है कि अगर मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, तो वो गायब हो जाएगी, मुझे डर है कि अगर मैं एक मिनट के लिए भी उसके साथ नहीं रहा, तो मैं उसे फिर कभी नहीं देख पाऊँगा, मुझे डर है कि अगर उसे कुछ हो गया तो...." एकांश का गला रुँध गया था उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था, वो आगे कुछ बोलता तो शायद वही रो पड़ता

सरिता जी भी एकांश की इस उधेड़बुन को समझ रही थी, उसके मन मे मची उथल पुछल को भांप रही थी, एकांश भले ही ऊपर से अपने आप को मजबूत दिखने की कोशिश कर रहा था लेकिन अंदर ही अंदर अक्षिता को खोने के खयाल से हजार बार मर रहा था

सरिता जी को समझ नहीं आ रहा था के एकांश से क्या कहे, कैसे उसे सांत्वना दे क्योंकि वो खुद भी अपनी बेटी की जान के लिए डरी हुई थी इसलिए उन्होंने वही किया जो वो कर सकती थी

उन्होंने एकांश की पीठ सहलाते हुए उसे गले लगा लिया और जैसे ही एकांश ने सरिता जी के स्पर्श मे मा की ममता को महसूस किया उससे और नहीं रहा गया और वो उन्हे गले लगाये रो पड़ा

"तुम्हें अपने आप को संभालना होगा एकांश, चाहे जो हो जाए ऐसे टूटना नहीं है, वो भी यही चाहती है" सरिता जी ने एकांश को समझाते हुए कहा और एकांश ने भी हा मे गर्दन हिला दी

"आंटी, उसे जगाकर दवाई दे देना प्लीज" एकांश ने कहा और वहा जाने के लिए मुड़ा लेकिन फिर एक पल रुक कर उसने सऑटु हुई अक्षिता को देखा और मन ही कहा

"I will be strong for you and let nothing happen to you"



क्रमश:
Nice update....
 
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kas1709

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Update 44



"अंश..."

"अंश..."

"अंश...!"

अक्षिता बार बार एकांश को पुकार रही थी लेकिन वो कही नहीं था

एकांश को वहा ना पाकर अक्षिता घबरा गई और उसे ढूँढ़ते हुए ऊपर की ओर भागी, उसने उसके कमरे में जाकर उसे देखा लेकिन कमरा खाली था...

कमरा खाली था जैसे वहाँ कोई रहता ही न हो, अक्षिता ने अलमारी खोल कर देखि लेकिन वो भी खाली थी..

वो हांफ रही थी और उसका चेहरा पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था, ऐसा लग रहा था जैसे उसे पैनिक अटैक आ गया हो, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके आस-पास की दीवारें उसे निगल रही हों...

अक्षिता को अब सास लेने मे भी मुश्किल हो रही थी, वो सास नहीं ले पा रही थी और धीरे-धीरे वो उसके कमरे से बाहर चली आई, वो अपनी छाती पर हाथ रखे बैल्कनी से देख रही थी

आँखों मे भरे आँसुओं की वजह से उसे साफ दिखाई नहीं दे रहा था और जब उसे साफ साफ दिखने लगा तब उसने एकांश को देखा

उसने देखा कि उसका एकांश उससे दूर जा रहा है, उसके घर से दूर, उसकी जिंदगी से दूर, अपना सामान हाथ में लिए हुए...

वो अब जोर जोर से उसका नाम पुकारने लगी थी..

एकांश रुका और उसने मूड कर अक्षिता की ओर देखा, वो उसे साफ साफ नहीं देख पा रही थी, आँसुओ की वजह से उसकी दृष्टि धुंधली हो गई थी

उसने एकांश अपनी ओर हाथ हिलाते हुए देखा और वो अगले ही पल उसकी नज़रों से ओझल हो गया...


"अंश...!"

अक्षिता चिल्ला उठी

"अक्षिता!" अक्षिता की चीख सुन सरिता जी उसके कमरे मे आ गई थी और वहा आकार उन्होंने देखा के अक्षिता रो रही है...

"अक्षिता, अक्षिता...... क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा

सरिता जी ने अक्षिता का चेहरा अपने हाथों मे थामा हुआ था और उसे शांत करा रही थी

"क्या हुआ अक्षु? तुम क्यों रो रही हो?" सरिताजी ने धीरे से पूछा

"माँ... माँ... एकांश ..." बोलते हुए अक्षिता वापिस रो पड़ी

"एकांश.... क्या?"

"एकांश मुझे छोड़कर चला गया" ये कहते हुए अक्षिता ने अपनी माँ को कसकर गले लगाया और वापिस रोने लगी...

"तुम क्या कह रही हो?"

"एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है माँ.... वो मुझसे नफरत करता है..." अक्षिता पागलों की तरह बस रोए जा रही थी...

सरिताजी ने अक्षिता को कसकर गले लगाया और उसकी पीठ सहलाने लगी और जब उसका रोना बंद हो गया तो वो उसकी पीठ थपथपाने लगी और उन्होंने उसे अपनी गोद में सुला लिया और उसके बालों को धीरे से सहलाना शुरू किया

सरिताजी भी अपनी बेटी की हालत देखकर चुपचाप रो रही थी, वो भी अक्षिता के लिए काफी चिंतित थी..... अक्षिता को बुरे सपने वापिस आने लगे थे और आज ऐसा बहुत समय बाद हुआ था, उसे वापिस एक बुरा सपना आया था और काफी समय बाद सरिताजी ने अक्षिता को उस तरह रोते हुए देखा था

उन्होंने समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे, उन्होंने सोचा के एकांश को इस सब के बारे मे बताना ही बेहतर होगा, शायद वो डॉक्टर से इस बारे में बात करेगा...

उन्होंने अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसका माथा चूमते हुए बाहर चली गई और सीधा एकांश के कमरे की को गई जिसका दरवाजा खुला था, वो अंदर आयो तो उन्होंने देखा के वो कमरा खाली था

उन्होंने सोचा के शायद एकांश अभी टक काम से लौटा नहीं था और यही सोचते हुए वो वापिस नीचे चली आई...

अक्षिता के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे

एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है...

उन्होंने एकांश के मोबाइल पर फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका फोन भी बंद था और अब सरिताजी ये सोचकर घबरा रही थी के काही अक्षिता की बात, जो उसने कहा वो सच तो नहीं था



"क्या वो सचमुच चला गया?"

और यही सब सोचते हुए उनकी आँखों मे भी आँसू आ गए थे और तभी गेट खुलने की आवाज आई और उन्होंने गेट की चरमराहट की आवाज की ओर देखा...

एकांश थका हुआ था और थका हुआ सा ही घर में दाखिल हुआ... सरिताजी ने उसे देखकर राहत की साँस ली और अब वो खुश थी कि एकांश वही था

वही एकांश ने चिंतित सरिताजी को देखा तो पूछा

"आंटी, क्या हुआ?" एकांश ने सरिताजी को कंधे से हिलाते हुए पूछा

सरिताजी ने एकांश का हाथ पकड़ लिया और अपना माथा उसके हाथ पर रख कर रोने लगी.. एकांश को समझ नहीं आ रहा था के सरिताजी यू रो क्यू रही है और तबही उसका ध्यान तुरंत अक्षिता पर चला गया और वो इस डर से काँप उठा कि कहीं अक्षिता को कुछ हो न गया हो

"आंटी, क्या हुआ? आप रो क्यू रही है? अक्षिता ठीक है न?" एकांश ने हकलाते हुए पूछा...

सरिताजी ने एकांश की ओर देखा और उनका आँसुओ से भीगा चेहरा देख एकांश का दिल डूब रहा था, उसने सरिताजी को हमेशा एक स्ट्रॉंग महिला के तौर पर देखा था, वही थी जिन्होंने उसे उस वक्त सपोर्ट किया था जब वो अपनी उम्मीद खोए जा रहा था, वो इस घर मे हर पल उसके साथ थी और अब उन्हे यू टूटते देख एकांश को यकीन हो गया था के हो ना हो अक्षिता को कुछ हुआ है वो ठीक नहीं है और बस इसी खयाल से उसका दिल बैठा जा रहा

"उसे वापिस बुरे सपने आ रहे हैं और उसे लगभग एक पैनिक अटैक आया था" सरिताजी ने खुदको शांत करने के बाद कहा

"क्या? क्यों?" एकांश ने पूछा

"मुझे नहीं पता... वो अचानक नींद से उठकर तुम्हारा नाम चिल्लाने लगी और जब मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ, तो वह पागलों की तरह ये कहने लगी कि तुमने उसे छोड़ दिया है और तुम उससे नफरत करते हो...." सरिताजी ने एकांश को देखते हुए वहा वही वो बस चुपचाप उनकी बात सुन रहा था

"मैं उसे क्यों छोड़ कर जाऊंगा? और मैं उससे नफरत क्यों करूँगा?" एकांश ने थोड़ा चौक कर पूछा

"शायद उसे यही बुरा सपना आया था कि तुम उसे छोड़कर चले गए हो..." सरिताजी ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला

"आंटी, आप प्लीज रोइए मत... प्लीज बी स्ट्रॉंग, मैं कही नहीं जाने वाला और उसे कुछ नहीं होगा..." एकांश ने सरिताजी को सांत्वना देते हुए कहा लेकिन अंदर ही अंदर वो भी डरा हुआ ही था

"एकांश, तुम समझ नहीं रहे हो... आज बहुत समय बाद ऐसा हुआ आई के उसे बुरे सपने आए है और मैंने उसे इस तरह रोते हुए देखा है और अब मुझे डर है के ये शायद उसकी बिगड़ती सेहत का ही असर" सरिताजी ने सोफ़े कर धम्म से बैठते हुए कहा वही एकांश अपने मन में अनेक विचार लिए चुपचाप खड़ा रहा...

"क्या हुआ?" उन दोनों ने एक आवाज़ सुनी और मुड़कर देखा तो वहा अक्षिता के पिता खड़े थे जिनके चेहरे पर डर का भाव था

सरिताजी उन्हे बताने लगी के क्या हुआ था, जबकि एकांश धीरे-धीरे अक्षिता के कमरे की ओर गया... उसने दरवाज़ा खोला और अक्षिता को सोते हुए देखा...

वो अंदर गया और उसके बिस्तर के पास घुटनों के बल बैठ गया.. उसने उसके चेहरे को देखा जिससे साफ पता चल रहा था कि वह बहुत रोई थी, एकांश ने अपने आंसू पोंछे और उसके माथे को चूमकर वो वापस लिविंग रूम में आया और उसने अक्षिता के पिता का चिंतित चेहरा देखा

"मैं डॉक्टर से बात करता हु" एकांश ने कहा और इससे पहले कि वो लोग उसकी आंखों में आंसू देख पाते, वो वहां से चला गया

******

अक्षिता अपनी नींद से उठी और दीवार पर टंगी एकांश की तस्वीरे देखने लगी, वो उसके मुस्कुराते चेहरे को देखकर मुस्कुराई और फिर अचानक पिछली रात का सपना उसकी आँखों के सामने घूम गया...

वो अपने कमरे से निकलकर भागकर ऊपर गई और उसने एकांश के कमरे का दरवाजा खोला

"एकांश..." उसने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला

कोई जवाब न सुन अक्षिता थोड़ा डर गई और घबराकर चारों ओर देखने लगी...

"अक्षिता?" अक्षिता ने एकांश की आवाज़ सुनी और अपना सिर बाथरूम की ओर घुमाया

वो वहीं खड़ा कन्फ़्युशन मे उसे देखता रहा

"अंश!"

अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा जो भाग कर उसके पास गई और उसे उसे कस कर गले लगा लिया, वो डर से थोड़ा कांप रही थी और एकांश उसकी पीठ सहलाने लगा

"मैं यहीं हूँ अक्षिता.... शांत हो जाओ" एकांश यही शब्द तब तक दोहराता रहा जब तक वो शांत नहीं हो गई

"अब बताओ क्या हुआ?" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने कुछ ना कहते हुए अपना सर ना मे हिला दिया

"यू वॉन्ट टू से सम्थिंग?" एकांश ने वापिस से पूछा

"कुछ नहीं" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ गई

"अक्षिता, अगर कोई बात है तो प्लीज बताओ मुझे" एकांश ने हताश स्वर मे कहा और अक्षिता जाते जाते रुक गई

"मैं अब ये लुका-छिपी का खेल और नहीं खेल सकता" एकांश ने गंभीरता से कहा और अक्षिता उसकी ओर देखने के लिए मुड़ी

“मैं चाहता हु तुम अपने खयाल अपनी फीलिंग सब मुझे बताओ, तुम मुझे बताओ के तुम क्यू परेशान हो मैं जानना चाहता हु के तुम क्यूँ घबरा रही हो क्या वजह है के रो रही हो” एकांश ने कहा

अक्षिता कुछ नहीं बोली बस चुपचाप खडी रही

वो उसे बताना चाहती थी कि वह उससे प्यार करती है

वो उसे बताना चाहती थी कि वही उसकी पूरी दुनिया है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो मर रही है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान के लिए डरी हुई है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो चाहती है कि वो आखिरी सांस तक उसके साथ रहे

वो उसे बताना चाहती थी कि उसके अंदर एक बड़ा डर पैदा हो गया है, उसके उसे छोड़ कर चले जाने का डर

वो उसे बताना चाहती थी कि उसे महसूस हो रहा है कि उसका जाने का टाइम नजदीक आ रहा है

वो अपने मन में चल रहे सभी खयालों के साथ उसे गौर से देख रही थी और उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे

लेकिन वो एक शब्द भी नहीं बोल पाई

वो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, उनके चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था और वे एक दूसरे के दिल की धड़कनें साफ साफ सुन सकते थे

एकांश का फ़ोन बजने से उसकी तंद्रा टूटी और एकांश ने फ़ोन उठाया वही अक्षिता मुड़ी और भारी मन से उसके कमरे से बाहर चली गई

"काश मैं कह पाती कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ"

अक्षिता ने अपने आप से कहा और अपने आँसू पोंछते हुए घर में चली गई



******



"डॉ. अवस्थी, मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे और कैसे करेंगे, लेकिन वो डॉक्टरस् जल्द से जल्द यहा आ जाने चाहिए उनसे कहिए कि वो जितना पैसा चाहें, हम देने को तैयार हैं"

"यदि उनके लिए जर्मनी से यहां आना पॉसिबल नहीं है तो इन्फॉर्म देम के हम जर्मनी आ रहे है"

"मुझे पता है कि ये आसान नहीं है लेकिन हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है, वो बहुत अलग बिहैव कर रही है और मैं उसे खोना नहीं चाहता"

"ठीक है, प्लीज ट्राइ टु अरेंज सम्थिंग, मैं कुछ भी बड़ा हादसा होने से पहले उसे बचाना चाहता हूँ"

और एकांश ने फोन काट दिया और नीचे चला गया

"आंटी, मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ इसलिए आप मेरा इंतजार मत करना" एकांश ने सरिताजी को बताया और अक्षिता की तरफ देखा जो उसे ऐसे देख रही थी जैसे वो हमेशा के लिए कही जा रहा हो

एकांश ने सरिताजी से कुछ कहा और उन्होंने सिर हिलाकर एकांश की बात पर अपनी सहमति जताई और वो बाहर आया और अपनी कार में बैठकर चला गया...

"अक्षिता आओ, चलें" सरिताजी ने कहा

"कहाँ?"

"डॉक्टर साहब से मिलने, मैंने तुम्हारे लिए अपॉइंटमेंट ले लिया है" सरिताजी ने अपना पर्स लेते हुए कहा

" लेकिन......"

"कोई लेकिन नहीं... मैं तुम्हारी हेल्थ के बारे में डॉक्टर से बात करना चाहती हूँ" सरिताजी ने कहा और अक्षिता ने भी उनकी बात मान ली

अस्पताल जाने के बाद अक्षिता पर कई तरह के टेस्ट किए गए और उन्हें रिपोर्ट आने तक का इंतज़ार करना पड़ा, जिसमे कई घंटों का समझ लग गया

जब टेस्टस् चल रहे थे एकांश भी अस्पताल में ही था

टेस्टस् हो जाने के बाद अक्षिता और सरिताजी घर वापस आ गईं थी जबकि एकांश अस्पताल में रुक कर डॉक्टर से बात कर रहा था

वो कुछ विदेशी डॉक्टरों को भारत लाने की कोशिश कर रहे थे जो ऐसे मामलों के स्पेशलिस्ट थे, एकांश ने अपने और अपने पिता के कोंटकट्स का भी इस्टमाल किया लेकिन उन डॉक्टरस् के लिए पैशन्टस् और सर्जरी की लाइन लगी हुई थी और उनके पास बस एक पैशन्ट के लिए भारत आना पॉसिबल नहीं था

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या करे, वो काफी ज्यादा टेंशन मे था, वो कीसी भी कीमत पर अक्षिता को बचाना चाहता था और अब उसे समझ नहीं आ रहा था के उसे बचाने के लिए क्या करे....



क्रमश:
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एकांश अक्षिता को लेकर एक स्ट्रीट फूड मार्केट के पास आया था ताकि कुछ खा सके और वहा पहुच कर उसने अक्षिता को देखा तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, अपने सामने अलग अलग चाट की गाड़िया देख अक्षिता के मुह मे पानी आने लगा था, अपनी तबीयत के चलते उसे बाहर का कुछ भी यू खाने की इजाजत नहीं थी, इसीलिए एकांश का उसे वहा लाना उसके लिए फिलहाल तो एक बेहतरीन ट्रीट था

वही एकांश को भी अब ये एहसास हो गया था के उसे यहा नहीं आना चाहिए था, फ़्लो फ़्लो मे अक्षिता और अपना मूड ठीक करने कुछ थोड़ा खाने वो यहा आया था लेकिन यहा की गर्दी और खाने पीने का महोल अक्षिता और उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं है इसका एहसास उसे हो गया था और वैसे ही उसने अक्षिता को वहा से चलने के लिए कह दिया था....

अक्षिता अभी चाट की एक रेडी की ओर बढ़ ही रही थी के एकांश ने उसका हाथ पकड़ा

"अक्षिता, चलो..." एकांश ने कहा

"हा हा चलो वहा से शुरुवात करते है" अक्षिता ने एक और इशारा करते हुए कहा, उसे एकांश के चलो का मतलब ही नहीं समझ आया था, वो तो कुछ बढ़िया खाने के लिए उत्सुक थी

"अक्षिता, यहा से चलो, किसी बढ़िया रेस्टोरेंट में खायेंगे" एकांश ने अपनी बात रखते हुए कहा ये जानते हुए के अक्षिता को अब यहा से ले जाना उसके लिए मुश्किल होने वाला था

"पर क्यों??? अभी अभी तो आए है यही से कुछ खा कर चलते है ना" अक्षिता ने कहा

"कही और बढ़िया जगह खा लेंगे पर यहा नही" एकांश ने कहा, उसे अब अक्षिता को यहा लाने का अफसोस हो रहा था साथ ही डर भी लग रहा था के यहा का खाना खा कर उसकी तबियत बिगड़ जाएगी वही अक्षिता जो तो उसकी मन पसंद चीज दिख रही थी तो वो तो अब वहा से हटने वाली नही थी

"अब चलो भी अक्षिता" एकांश ने वापिस नही

"यही कुछ खा लेते है ना, प्लीज" अक्षिता ने कहा

"नही"

"प्लीज प्लीज प्लीज"

"No!"

"तो फिर मुझे यहा लेकर ही क्यों आए थे" अब अक्षिता ने थोड़ा गुस्से में कहा

"गलती हो गई मुझसे, मैं भूल गया था के स्ट्रीट फूड ठीक नहीं है तुम्हारे लिए" एकांश ने कहा

"बकवास मत करो ठीक है, थोड़ा बहुत स्ट्रीट फूड खाने से कुछ नही होने वाला"

"अक्षिता, प्लीज, तुम्हे खुद की सेहत का ध्यान रखना चाहिए और वैसे भी ये सब खाना तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं है" एकांश ने अक्षिता को समझाते हुए कहा

"थोड़ा खाने से कुछ नही होने वाला, और अब तुम चाहे मानो या ना मानो मैं यहा से अपनी पसंद की चीजे खाए बगैर नही जा रही" अक्षिता ने कहा और अब एकांश के पास भी उसकी बात मानने के अलावा कोई रास्ता ही नही था

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी" एकांश ने कहा

"ओह हेलो मुझे वैसे भी मेरी पसंद का खाने के लिए तुम्हारी परमिशन नही चाहिए समझे ना"

"तो फिर ये प्लीज प्लीज किस बात का कह रही थी"

"वो तो मुझे लगा तुम सडा सा मुंह बना के कुछ नही खाओगे तो तुम्हे मेरे साथ खाने के लिए कह रही थी" अक्षिता ने कहा, उसे एकांश की आदत पता थी, वो अपनी डायट का ध्यान रखने वाला था और उनके रिलेशनशिप के दौरान भी उसने उसे कभी स्ट्रीट फूड खाते नही देखा था और आज भी वो नही खायेगा उसका अक्षिता को अंदाजा था

"अब चलो भी मुझे भूख लगी है" अक्षिता ने एकांश का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाते हुए कहा, एकांश भी कुछ नही बोला वो बस अक्षिता के साथ मिले इस पल को एंजॉय करना चाहता था...

अक्षिता अलग अलग चीजे खा रही थी और एकांश बस उसे खाते हुए देख रहा था, वो बस उस पल को इन्जॉय कर रहा था और इस पल मे अक्षिता को खुश करने के लिए उसे बचाने के लिए वो अपना सब कुछ कुर्बान करने को तयार था, अक्षिता को खो देने के खयाल से ही उसकी आँखों मे पानी आने लगा था और वो अक्षिता न देख ले इसीलिए उसने झट से अपने ईमोशनस् पर कंट्रोल करते हुए अपनी आंखे साफ की

अक्षिता ने वहा अपनी पसंद की सभी चीजे खाई थी और एकांश को भी खिलाई थी और पानी पूरी वाले के पास से हट कर वो एकांश के पास आई तो एकांश ने पूछा



"अब कहाँ?" एकांश ने पूछा

"I just want to sleep now" अक्षिता ने थोड़े थके हुए अंदाज मे कहा और एकांश भी उसे देख कर समझ गया के वो काफी थक गई थी और उसे दवाईया भी लेनी थी

"ठीक है तो फिर घर चलते है" एकांश ने कहा और वो दोनों उसकी कार की ओर बढ़ गए

"एकांश..."

"हम्म...."

"थैंक यू" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा

"अब ये क्यू?" एकांश ने चौक कर पूछा

"मुझे अपने साथ पार्टी में ले जाने के लिए, मेरे साथ स्ट्रीट फूड खाने के लिए और मेरे दिन को इतना खास बनाने के लिए" अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए कहा वही एकांश को समझ नहीं आ रहा था के इसपर क्या बोले

"अरे ठीक है यार, तुम्हें अच्छा लगा न बात खतम" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"इस दिन को यादगार बनाने के लिए थैंक्स, क्योंकि मैं अपनी आखिरी सांस तक इन यादों को अपने साथ रखूंगी" अक्षिता ने स्माइल के साथ कहा, जबकि एकांश की मुस्कान ये सुनकर गायब हो गई

"चलो चलते है" एकांश ने नीचे देखते हुए कहा और वो दोनों कार मे जाकर बैठे

अक्षिता सीट पर सिर टिकाकर बैठी थी और एकांश ने कार चला रहा था, उसके दिमाग में इस वक्त कई विचार चल रहे थे, उसे नहीं पता कि अक्षिता को कुछ हो गया तो वो क्या करेगा

अक्षिता खिड़की पर झुककर सो गई थी और एकांश चुपचाप गाड़ी चलाता रहा और बीच-बीच में उसे देखता रहा, वे घर पहुचने पर एकांश ने गाड़ी रोकी और जल्दी से नीचे उतरा और अक्षिता की साइड जाकर हल्के से दरवाजा खोला उसने बिना अक्षिता की नींद में खलल डाले उसे धीरे से अपनी बाहों में उठाया और उसे घर के अंदर ले आया

"ये सो गई?" सरिता जी ने दरवाज़ा खोलते हुए पूछा

"हाँ." एकांश ने धीमे से कहा और अक्षिता के कमरे की ओर बढ़ गया वही सरिता जी ने उसके लिए बेडरूम का दरवाजा खोला और एकांश ने आराम से अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसके माथे को चूमा

"उसनेन खाना खाया?" सरिता जी ने एकांश को देख पूछा

"हाँ" उसने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा

"और तुमने?" सरिता जी ने एकांश के सर पर हाथ रखते हुए पूछा जो अक्षिता के पास बेड पर बैठा हुआ था, एकांश ने बस हा मे अपना सर हिला दिया

"क्या हुआ एकांश?" सरिता जी ने पूछा, जबकि एकांश अभी भी बस अक्षिता को ही देख रहा था

एकांश से कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था और आखिर मे वो बोला

"मुझे डर लग रहा है आंटी" एकांश ने एकदम धीमी आवाज मे कहा और सरिता जी बस उसे देखती रही

"मुझे डर है कि अगर मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, तो वो गायब हो जाएगी, मुझे डर है कि अगर मैं एक मिनट के लिए भी उसके साथ नहीं रहा, तो मैं उसे फिर कभी नहीं देख पाऊँगा, मुझे डर है कि अगर उसे कुछ हो गया तो...." एकांश का गला रुँध गया था उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था, वो आगे कुछ बोलता तो शायद वही रो पड़ता

सरिता जी भी एकांश की इस उधेड़बुन को समझ रही थी, उसके मन मे मची उथल पुछल को भांप रही थी, एकांश भले ही ऊपर से अपने आप को मजबूत दिखने की कोशिश कर रहा था लेकिन अंदर ही अंदर अक्षिता को खोने के खयाल से हजार बार मर रहा था

सरिता जी को समझ नहीं आ रहा था के एकांश से क्या कहे, कैसे उसे सांत्वना दे क्योंकि वो खुद भी अपनी बेटी की जान के लिए डरी हुई थी इसलिए उन्होंने वही किया जो वो कर सकती थी

उन्होंने एकांश की पीठ सहलाते हुए उसे गले लगा लिया और जैसे ही एकांश ने सरिता जी के स्पर्श मे मा की ममता को महसूस किया उससे और नहीं रहा गया और वो उन्हे गले लगाये रो पड़ा

"तुम्हें अपने आप को संभालना होगा एकांश, चाहे जो हो जाए ऐसे टूटना नहीं है, वो भी यही चाहती है" सरिता जी ने एकांश को समझाते हुए कहा और एकांश ने भी हा मे गर्दन हिला दी

"आंटी, उसे जगाकर दवाई दे देना प्लीज" एकांश ने कहा और वहा जाने के लिए मुड़ा लेकिन फिर एक पल रुक कर उसने सऑटु हुई अक्षिता को देखा और मन ही कहा

"I will be strong for you and let nothing happen to you"



क्रमश:
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Update 44



"अंश..."

"अंश..."

"अंश...!"

अक्षिता बार बार एकांश को पुकार रही थी लेकिन वो कही नहीं था

एकांश को वहा ना पाकर अक्षिता घबरा गई और उसे ढूँढ़ते हुए ऊपर की ओर भागी, उसने उसके कमरे में जाकर उसे देखा लेकिन कमरा खाली था...

कमरा खाली था जैसे वहाँ कोई रहता ही न हो, अक्षिता ने अलमारी खोल कर देखि लेकिन वो भी खाली थी..

वो हांफ रही थी और उसका चेहरा पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था, ऐसा लग रहा था जैसे उसे पैनिक अटैक आ गया हो, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके आस-पास की दीवारें उसे निगल रही हों...

अक्षिता को अब सास लेने मे भी मुश्किल हो रही थी, वो सास नहीं ले पा रही थी और धीरे-धीरे वो उसके कमरे से बाहर चली आई, वो अपनी छाती पर हाथ रखे बैल्कनी से देख रही थी

आँखों मे भरे आँसुओं की वजह से उसे साफ दिखाई नहीं दे रहा था और जब उसे साफ साफ दिखने लगा तब उसने एकांश को देखा

उसने देखा कि उसका एकांश उससे दूर जा रहा है, उसके घर से दूर, उसकी जिंदगी से दूर, अपना सामान हाथ में लिए हुए...

वो अब जोर जोर से उसका नाम पुकारने लगी थी..

एकांश रुका और उसने मूड कर अक्षिता की ओर देखा, वो उसे साफ साफ नहीं देख पा रही थी, आँसुओ की वजह से उसकी दृष्टि धुंधली हो गई थी

उसने एकांश अपनी ओर हाथ हिलाते हुए देखा और वो अगले ही पल उसकी नज़रों से ओझल हो गया...


"अंश...!"

अक्षिता चिल्ला उठी

"अक्षिता!" अक्षिता की चीख सुन सरिता जी उसके कमरे मे आ गई थी और वहा आकार उन्होंने देखा के अक्षिता रो रही है...

"अक्षिता, अक्षिता...... क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा

सरिता जी ने अक्षिता का चेहरा अपने हाथों मे थामा हुआ था और उसे शांत करा रही थी

"क्या हुआ अक्षु? तुम क्यों रो रही हो?" सरिताजी ने धीरे से पूछा

"माँ... माँ... एकांश ..." बोलते हुए अक्षिता वापिस रो पड़ी

"एकांश.... क्या?"

"एकांश मुझे छोड़कर चला गया" ये कहते हुए अक्षिता ने अपनी माँ को कसकर गले लगाया और वापिस रोने लगी...

"तुम क्या कह रही हो?"

"एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है माँ.... वो मुझसे नफरत करता है..." अक्षिता पागलों की तरह बस रोए जा रही थी...

सरिताजी ने अक्षिता को कसकर गले लगाया और उसकी पीठ सहलाने लगी और जब उसका रोना बंद हो गया तो वो उसकी पीठ थपथपाने लगी और उन्होंने उसे अपनी गोद में सुला लिया और उसके बालों को धीरे से सहलाना शुरू किया

सरिताजी भी अपनी बेटी की हालत देखकर चुपचाप रो रही थी, वो भी अक्षिता के लिए काफी चिंतित थी..... अक्षिता को बुरे सपने वापिस आने लगे थे और आज ऐसा बहुत समय बाद हुआ था, उसे वापिस एक बुरा सपना आया था और काफी समय बाद सरिताजी ने अक्षिता को उस तरह रोते हुए देखा था

उन्होंने समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे, उन्होंने सोचा के एकांश को इस सब के बारे मे बताना ही बेहतर होगा, शायद वो डॉक्टर से इस बारे में बात करेगा...

उन्होंने अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसका माथा चूमते हुए बाहर चली गई और सीधा एकांश के कमरे की को गई जिसका दरवाजा खुला था, वो अंदर आयो तो उन्होंने देखा के वो कमरा खाली था

उन्होंने सोचा के शायद एकांश अभी टक काम से लौटा नहीं था और यही सोचते हुए वो वापिस नीचे चली आई...

अक्षिता के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे

एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है...

उन्होंने एकांश के मोबाइल पर फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका फोन भी बंद था और अब सरिताजी ये सोचकर घबरा रही थी के काही अक्षिता की बात, जो उसने कहा वो सच तो नहीं था



"क्या वो सचमुच चला गया?"

और यही सब सोचते हुए उनकी आँखों मे भी आँसू आ गए थे और तभी गेट खुलने की आवाज आई और उन्होंने गेट की चरमराहट की आवाज की ओर देखा...

एकांश थका हुआ था और थका हुआ सा ही घर में दाखिल हुआ... सरिताजी ने उसे देखकर राहत की साँस ली और अब वो खुश थी कि एकांश वही था

वही एकांश ने चिंतित सरिताजी को देखा तो पूछा

"आंटी, क्या हुआ?" एकांश ने सरिताजी को कंधे से हिलाते हुए पूछा

सरिताजी ने एकांश का हाथ पकड़ लिया और अपना माथा उसके हाथ पर रख कर रोने लगी.. एकांश को समझ नहीं आ रहा था के सरिताजी यू रो क्यू रही है और तबही उसका ध्यान तुरंत अक्षिता पर चला गया और वो इस डर से काँप उठा कि कहीं अक्षिता को कुछ हो न गया हो

"आंटी, क्या हुआ? आप रो क्यू रही है? अक्षिता ठीक है न?" एकांश ने हकलाते हुए पूछा...

सरिताजी ने एकांश की ओर देखा और उनका आँसुओ से भीगा चेहरा देख एकांश का दिल डूब रहा था, उसने सरिताजी को हमेशा एक स्ट्रॉंग महिला के तौर पर देखा था, वही थी जिन्होंने उसे उस वक्त सपोर्ट किया था जब वो अपनी उम्मीद खोए जा रहा था, वो इस घर मे हर पल उसके साथ थी और अब उन्हे यू टूटते देख एकांश को यकीन हो गया था के हो ना हो अक्षिता को कुछ हुआ है वो ठीक नहीं है और बस इसी खयाल से उसका दिल बैठा जा रहा

"उसे वापिस बुरे सपने आ रहे हैं और उसे लगभग एक पैनिक अटैक आया था" सरिताजी ने खुदको शांत करने के बाद कहा

"क्या? क्यों?" एकांश ने पूछा

"मुझे नहीं पता... वो अचानक नींद से उठकर तुम्हारा नाम चिल्लाने लगी और जब मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ, तो वह पागलों की तरह ये कहने लगी कि तुमने उसे छोड़ दिया है और तुम उससे नफरत करते हो...." सरिताजी ने एकांश को देखते हुए वहा वही वो बस चुपचाप उनकी बात सुन रहा था

"मैं उसे क्यों छोड़ कर जाऊंगा? और मैं उससे नफरत क्यों करूँगा?" एकांश ने थोड़ा चौक कर पूछा

"शायद उसे यही बुरा सपना आया था कि तुम उसे छोड़कर चले गए हो..." सरिताजी ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला

"आंटी, आप प्लीज रोइए मत... प्लीज बी स्ट्रॉंग, मैं कही नहीं जाने वाला और उसे कुछ नहीं होगा..." एकांश ने सरिताजी को सांत्वना देते हुए कहा लेकिन अंदर ही अंदर वो भी डरा हुआ ही था

"एकांश, तुम समझ नहीं रहे हो... आज बहुत समय बाद ऐसा हुआ आई के उसे बुरे सपने आए है और मैंने उसे इस तरह रोते हुए देखा है और अब मुझे डर है के ये शायद उसकी बिगड़ती सेहत का ही असर" सरिताजी ने सोफ़े कर धम्म से बैठते हुए कहा वही एकांश अपने मन में अनेक विचार लिए चुपचाप खड़ा रहा...

"क्या हुआ?" उन दोनों ने एक आवाज़ सुनी और मुड़कर देखा तो वहा अक्षिता के पिता खड़े थे जिनके चेहरे पर डर का भाव था

सरिताजी उन्हे बताने लगी के क्या हुआ था, जबकि एकांश धीरे-धीरे अक्षिता के कमरे की ओर गया... उसने दरवाज़ा खोला और अक्षिता को सोते हुए देखा...

वो अंदर गया और उसके बिस्तर के पास घुटनों के बल बैठ गया.. उसने उसके चेहरे को देखा जिससे साफ पता चल रहा था कि वह बहुत रोई थी, एकांश ने अपने आंसू पोंछे और उसके माथे को चूमकर वो वापस लिविंग रूम में आया और उसने अक्षिता के पिता का चिंतित चेहरा देखा

"मैं डॉक्टर से बात करता हु" एकांश ने कहा और इससे पहले कि वो लोग उसकी आंखों में आंसू देख पाते, वो वहां से चला गया

******

अक्षिता अपनी नींद से उठी और दीवार पर टंगी एकांश की तस्वीरे देखने लगी, वो उसके मुस्कुराते चेहरे को देखकर मुस्कुराई और फिर अचानक पिछली रात का सपना उसकी आँखों के सामने घूम गया...

वो अपने कमरे से निकलकर भागकर ऊपर गई और उसने एकांश के कमरे का दरवाजा खोला

"एकांश..." उसने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला

कोई जवाब न सुन अक्षिता थोड़ा डर गई और घबराकर चारों ओर देखने लगी...

"अक्षिता?" अक्षिता ने एकांश की आवाज़ सुनी और अपना सिर बाथरूम की ओर घुमाया

वो वहीं खड़ा कन्फ़्युशन मे उसे देखता रहा

"अंश!"

अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा जो भाग कर उसके पास गई और उसे उसे कस कर गले लगा लिया, वो डर से थोड़ा कांप रही थी और एकांश उसकी पीठ सहलाने लगा

"मैं यहीं हूँ अक्षिता.... शांत हो जाओ" एकांश यही शब्द तब तक दोहराता रहा जब तक वो शांत नहीं हो गई

"अब बताओ क्या हुआ?" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने कुछ ना कहते हुए अपना सर ना मे हिला दिया

"यू वॉन्ट टू से सम्थिंग?" एकांश ने वापिस से पूछा

"कुछ नहीं" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ गई

"अक्षिता, अगर कोई बात है तो प्लीज बताओ मुझे" एकांश ने हताश स्वर मे कहा और अक्षिता जाते जाते रुक गई

"मैं अब ये लुका-छिपी का खेल और नहीं खेल सकता" एकांश ने गंभीरता से कहा और अक्षिता उसकी ओर देखने के लिए मुड़ी

“मैं चाहता हु तुम अपने खयाल अपनी फीलिंग सब मुझे बताओ, तुम मुझे बताओ के तुम क्यू परेशान हो मैं जानना चाहता हु के तुम क्यूँ घबरा रही हो क्या वजह है के रो रही हो” एकांश ने कहा

अक्षिता कुछ नहीं बोली बस चुपचाप खडी रही

वो उसे बताना चाहती थी कि वह उससे प्यार करती है

वो उसे बताना चाहती थी कि वही उसकी पूरी दुनिया है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो मर रही है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान के लिए डरी हुई है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो चाहती है कि वो आखिरी सांस तक उसके साथ रहे

वो उसे बताना चाहती थी कि उसके अंदर एक बड़ा डर पैदा हो गया है, उसके उसे छोड़ कर चले जाने का डर

वो उसे बताना चाहती थी कि उसे महसूस हो रहा है कि उसका जाने का टाइम नजदीक आ रहा है

वो अपने मन में चल रहे सभी खयालों के साथ उसे गौर से देख रही थी और उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे

लेकिन वो एक शब्द भी नहीं बोल पाई

वो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, उनके चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था और वे एक दूसरे के दिल की धड़कनें साफ साफ सुन सकते थे

एकांश का फ़ोन बजने से उसकी तंद्रा टूटी और एकांश ने फ़ोन उठाया वही अक्षिता मुड़ी और भारी मन से उसके कमरे से बाहर चली गई

"काश मैं कह पाती कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ"

अक्षिता ने अपने आप से कहा और अपने आँसू पोंछते हुए घर में चली गई



******



"डॉ. अवस्थी, मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे और कैसे करेंगे, लेकिन वो डॉक्टरस् जल्द से जल्द यहा आ जाने चाहिए उनसे कहिए कि वो जितना पैसा चाहें, हम देने को तैयार हैं"

"यदि उनके लिए जर्मनी से यहां आना पॉसिबल नहीं है तो इन्फॉर्म देम के हम जर्मनी आ रहे है"

"मुझे पता है कि ये आसान नहीं है लेकिन हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है, वो बहुत अलग बिहैव कर रही है और मैं उसे खोना नहीं चाहता"

"ठीक है, प्लीज ट्राइ टु अरेंज सम्थिंग, मैं कुछ भी बड़ा हादसा होने से पहले उसे बचाना चाहता हूँ"

और एकांश ने फोन काट दिया और नीचे चला गया

"आंटी, मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ इसलिए आप मेरा इंतजार मत करना" एकांश ने सरिताजी को बताया और अक्षिता की तरफ देखा जो उसे ऐसे देख रही थी जैसे वो हमेशा के लिए कही जा रहा हो

एकांश ने सरिताजी से कुछ कहा और उन्होंने सिर हिलाकर एकांश की बात पर अपनी सहमति जताई और वो बाहर आया और अपनी कार में बैठकर चला गया...

"अक्षिता आओ, चलें" सरिताजी ने कहा

"कहाँ?"

"डॉक्टर साहब से मिलने, मैंने तुम्हारे लिए अपॉइंटमेंट ले लिया है" सरिताजी ने अपना पर्स लेते हुए कहा

" लेकिन......"

"कोई लेकिन नहीं... मैं तुम्हारी हेल्थ के बारे में डॉक्टर से बात करना चाहती हूँ" सरिताजी ने कहा और अक्षिता ने भी उनकी बात मान ली

अस्पताल जाने के बाद अक्षिता पर कई तरह के टेस्ट किए गए और उन्हें रिपोर्ट आने तक का इंतज़ार करना पड़ा, जिसमे कई घंटों का समझ लग गया

जब टेस्टस् चल रहे थे एकांश भी अस्पताल में ही था

टेस्टस् हो जाने के बाद अक्षिता और सरिताजी घर वापस आ गईं थी जबकि एकांश अस्पताल में रुक कर डॉक्टर से बात कर रहा था

वो कुछ विदेशी डॉक्टरों को भारत लाने की कोशिश कर रहे थे जो ऐसे मामलों के स्पेशलिस्ट थे, एकांश ने अपने और अपने पिता के कोंटकट्स का भी इस्टमाल किया लेकिन उन डॉक्टरस् के लिए पैशन्टस् और सर्जरी की लाइन लगी हुई थी और उनके पास बस एक पैशन्ट के लिए भारत आना पॉसिबल नहीं था

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या करे, वो काफी ज्यादा टेंशन मे था, वो कीसी भी कीमत पर अक्षिता को बचाना चाहता था और अब उसे समझ नहीं आ रहा था के उसे बचाने के लिए क्या करे....



क्रमश:
Update 44



"अंश..."

"अंश..."

"अंश...!"

अक्षिता बार बार एकांश को पुकार रही थी लेकिन वो कही नहीं था

एकांश को वहा ना पाकर अक्षिता घबरा गई और उसे ढूँढ़ते हुए ऊपर की ओर भागी, उसने उसके कमरे में जाकर उसे देखा लेकिन कमरा खाली था...

कमरा खाली था जैसे वहाँ कोई रहता ही न हो, अक्षिता ने अलमारी खोल कर देखि लेकिन वो भी खाली थी..

वो हांफ रही थी और उसका चेहरा पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था, ऐसा लग रहा था जैसे उसे पैनिक अटैक आ गया हो, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके आस-पास की दीवारें उसे निगल रही हों...

अक्षिता को अब सास लेने मे भी मुश्किल हो रही थी, वो सास नहीं ले पा रही थी और धीरे-धीरे वो उसके कमरे से बाहर चली आई, वो अपनी छाती पर हाथ रखे बैल्कनी से देख रही थी

आँखों मे भरे आँसुओं की वजह से उसे साफ दिखाई नहीं दे रहा था और जब उसे साफ साफ दिखने लगा तब उसने एकांश को देखा

उसने देखा कि उसका एकांश उससे दूर जा रहा है, उसके घर से दूर, उसकी जिंदगी से दूर, अपना सामान हाथ में लिए हुए...

वो अब जोर जोर से उसका नाम पुकारने लगी थी..

एकांश रुका और उसने मूड कर अक्षिता की ओर देखा, वो उसे साफ साफ नहीं देख पा रही थी, आँसुओ की वजह से उसकी दृष्टि धुंधली हो गई थी

उसने एकांश अपनी ओर हाथ हिलाते हुए देखा और वो अगले ही पल उसकी नज़रों से ओझल हो गया...


"अंश...!"

अक्षिता चिल्ला उठी

"अक्षिता!" अक्षिता की चीख सुन सरिता जी उसके कमरे मे आ गई थी और वहा आकार उन्होंने देखा के अक्षिता रो रही है...

"अक्षिता, अक्षिता...... क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा

सरिता जी ने अक्षिता का चेहरा अपने हाथों मे थामा हुआ था और उसे शांत करा रही थी

"क्या हुआ अक्षु? तुम क्यों रो रही हो?" सरिताजी ने धीरे से पूछा

"माँ... माँ... एकांश ..." बोलते हुए अक्षिता वापिस रो पड़ी

"एकांश.... क्या?"

"एकांश मुझे छोड़कर चला गया" ये कहते हुए अक्षिता ने अपनी माँ को कसकर गले लगाया और वापिस रोने लगी...

"तुम क्या कह रही हो?"

"एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है माँ.... वो मुझसे नफरत करता है..." अक्षिता पागलों की तरह बस रोए जा रही थी...

सरिताजी ने अक्षिता को कसकर गले लगाया और उसकी पीठ सहलाने लगी और जब उसका रोना बंद हो गया तो वो उसकी पीठ थपथपाने लगी और उन्होंने उसे अपनी गोद में सुला लिया और उसके बालों को धीरे से सहलाना शुरू किया

सरिताजी भी अपनी बेटी की हालत देखकर चुपचाप रो रही थी, वो भी अक्षिता के लिए काफी चिंतित थी..... अक्षिता को बुरे सपने वापिस आने लगे थे और आज ऐसा बहुत समय बाद हुआ था, उसे वापिस एक बुरा सपना आया था और काफी समय बाद सरिताजी ने अक्षिता को उस तरह रोते हुए देखा था

उन्होंने समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे, उन्होंने सोचा के एकांश को इस सब के बारे मे बताना ही बेहतर होगा, शायद वो डॉक्टर से इस बारे में बात करेगा...

उन्होंने अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसका माथा चूमते हुए बाहर चली गई और सीधा एकांश के कमरे की को गई जिसका दरवाजा खुला था, वो अंदर आयो तो उन्होंने देखा के वो कमरा खाली था

उन्होंने सोचा के शायद एकांश अभी टक काम से लौटा नहीं था और यही सोचते हुए वो वापिस नीचे चली आई...

अक्षिता के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे

एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है...

उन्होंने एकांश के मोबाइल पर फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका फोन भी बंद था और अब सरिताजी ये सोचकर घबरा रही थी के काही अक्षिता की बात, जो उसने कहा वो सच तो नहीं था



"क्या वो सचमुच चला गया?"

और यही सब सोचते हुए उनकी आँखों मे भी आँसू आ गए थे और तभी गेट खुलने की आवाज आई और उन्होंने गेट की चरमराहट की आवाज की ओर देखा...

एकांश थका हुआ था और थका हुआ सा ही घर में दाखिल हुआ... सरिताजी ने उसे देखकर राहत की साँस ली और अब वो खुश थी कि एकांश वही था

वही एकांश ने चिंतित सरिताजी को देखा तो पूछा

"आंटी, क्या हुआ?" एकांश ने सरिताजी को कंधे से हिलाते हुए पूछा

सरिताजी ने एकांश का हाथ पकड़ लिया और अपना माथा उसके हाथ पर रख कर रोने लगी.. एकांश को समझ नहीं आ रहा था के सरिताजी यू रो क्यू रही है और तबही उसका ध्यान तुरंत अक्षिता पर चला गया और वो इस डर से काँप उठा कि कहीं अक्षिता को कुछ हो न गया हो

"आंटी, क्या हुआ? आप रो क्यू रही है? अक्षिता ठीक है न?" एकांश ने हकलाते हुए पूछा...

सरिताजी ने एकांश की ओर देखा और उनका आँसुओ से भीगा चेहरा देख एकांश का दिल डूब रहा था, उसने सरिताजी को हमेशा एक स्ट्रॉंग महिला के तौर पर देखा था, वही थी जिन्होंने उसे उस वक्त सपोर्ट किया था जब वो अपनी उम्मीद खोए जा रहा था, वो इस घर मे हर पल उसके साथ थी और अब उन्हे यू टूटते देख एकांश को यकीन हो गया था के हो ना हो अक्षिता को कुछ हुआ है वो ठीक नहीं है और बस इसी खयाल से उसका दिल बैठा जा रहा

"उसे वापिस बुरे सपने आ रहे हैं और उसे लगभग एक पैनिक अटैक आया था" सरिताजी ने खुदको शांत करने के बाद कहा

"क्या? क्यों?" एकांश ने पूछा

"मुझे नहीं पता... वो अचानक नींद से उठकर तुम्हारा नाम चिल्लाने लगी और जब मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ, तो वह पागलों की तरह ये कहने लगी कि तुमने उसे छोड़ दिया है और तुम उससे नफरत करते हो...." सरिताजी ने एकांश को देखते हुए वहा वही वो बस चुपचाप उनकी बात सुन रहा था

"मैं उसे क्यों छोड़ कर जाऊंगा? और मैं उससे नफरत क्यों करूँगा?" एकांश ने थोड़ा चौक कर पूछा

"शायद उसे यही बुरा सपना आया था कि तुम उसे छोड़कर चले गए हो..." सरिताजी ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला

"आंटी, आप प्लीज रोइए मत... प्लीज बी स्ट्रॉंग, मैं कही नहीं जाने वाला और उसे कुछ नहीं होगा..." एकांश ने सरिताजी को सांत्वना देते हुए कहा लेकिन अंदर ही अंदर वो भी डरा हुआ ही था

"एकांश, तुम समझ नहीं रहे हो... आज बहुत समय बाद ऐसा हुआ आई के उसे बुरे सपने आए है और मैंने उसे इस तरह रोते हुए देखा है और अब मुझे डर है के ये शायद उसकी बिगड़ती सेहत का ही असर" सरिताजी ने सोफ़े कर धम्म से बैठते हुए कहा वही एकांश अपने मन में अनेक विचार लिए चुपचाप खड़ा रहा...

"क्या हुआ?" उन दोनों ने एक आवाज़ सुनी और मुड़कर देखा तो वहा अक्षिता के पिता खड़े थे जिनके चेहरे पर डर का भाव था

सरिताजी उन्हे बताने लगी के क्या हुआ था, जबकि एकांश धीरे-धीरे अक्षिता के कमरे की ओर गया... उसने दरवाज़ा खोला और अक्षिता को सोते हुए देखा...

वो अंदर गया और उसके बिस्तर के पास घुटनों के बल बैठ गया.. उसने उसके चेहरे को देखा जिससे साफ पता चल रहा था कि वह बहुत रोई थी, एकांश ने अपने आंसू पोंछे और उसके माथे को चूमकर वो वापस लिविंग रूम में आया और उसने अक्षिता के पिता का चिंतित चेहरा देखा

"मैं डॉक्टर से बात करता हु" एकांश ने कहा और इससे पहले कि वो लोग उसकी आंखों में आंसू देख पाते, वो वहां से चला गया

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अक्षिता अपनी नींद से उठी और दीवार पर टंगी एकांश की तस्वीरे देखने लगी, वो उसके मुस्कुराते चेहरे को देखकर मुस्कुराई और फिर अचानक पिछली रात का सपना उसकी आँखों के सामने घूम गया...

वो अपने कमरे से निकलकर भागकर ऊपर गई और उसने एकांश के कमरे का दरवाजा खोला

"एकांश..." उसने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला

कोई जवाब न सुन अक्षिता थोड़ा डर गई और घबराकर चारों ओर देखने लगी...

"अक्षिता?" अक्षिता ने एकांश की आवाज़ सुनी और अपना सिर बाथरूम की ओर घुमाया

वो वहीं खड़ा कन्फ़्युशन मे उसे देखता रहा

"अंश!"

अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा जो भाग कर उसके पास गई और उसे उसे कस कर गले लगा लिया, वो डर से थोड़ा कांप रही थी और एकांश उसकी पीठ सहलाने लगा

"मैं यहीं हूँ अक्षिता.... शांत हो जाओ" एकांश यही शब्द तब तक दोहराता रहा जब तक वो शांत नहीं हो गई

"अब बताओ क्या हुआ?" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने कुछ ना कहते हुए अपना सर ना मे हिला दिया

"यू वॉन्ट टू से सम्थिंग?" एकांश ने वापिस से पूछा

"कुछ नहीं" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ गई

"अक्षिता, अगर कोई बात है तो प्लीज बताओ मुझे" एकांश ने हताश स्वर मे कहा और अक्षिता जाते जाते रुक गई

"मैं अब ये लुका-छिपी का खेल और नहीं खेल सकता" एकांश ने गंभीरता से कहा और अक्षिता उसकी ओर देखने के लिए मुड़ी

“मैं चाहता हु तुम अपने खयाल अपनी फीलिंग सब मुझे बताओ, तुम मुझे बताओ के तुम क्यू परेशान हो मैं जानना चाहता हु के तुम क्यूँ घबरा रही हो क्या वजह है के रो रही हो” एकांश ने कहा

अक्षिता कुछ नहीं बोली बस चुपचाप खडी रही

वो उसे बताना चाहती थी कि वह उससे प्यार करती है

वो उसे बताना चाहती थी कि वही उसकी पूरी दुनिया है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो मर रही है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान के लिए डरी हुई है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो चाहती है कि वो आखिरी सांस तक उसके साथ रहे

वो उसे बताना चाहती थी कि उसके अंदर एक बड़ा डर पैदा हो गया है, उसके उसे छोड़ कर चले जाने का डर

वो उसे बताना चाहती थी कि उसे महसूस हो रहा है कि उसका जाने का टाइम नजदीक आ रहा है

वो अपने मन में चल रहे सभी खयालों के साथ उसे गौर से देख रही थी और उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे

लेकिन वो एक शब्द भी नहीं बोल पाई

वो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, उनके चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था और वे एक दूसरे के दिल की धड़कनें साफ साफ सुन सकते थे

एकांश का फ़ोन बजने से उसकी तंद्रा टूटी और एकांश ने फ़ोन उठाया वही अक्षिता मुड़ी और भारी मन से उसके कमरे से बाहर चली गई

"काश मैं कह पाती कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ"

अक्षिता ने अपने आप से कहा और अपने आँसू पोंछते हुए घर में चली गई



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"डॉ. अवस्थी, मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे और कैसे करेंगे, लेकिन वो डॉक्टरस् जल्द से जल्द यहा आ जाने चाहिए उनसे कहिए कि वो जितना पैसा चाहें, हम देने को तैयार हैं"

"यदि उनके लिए जर्मनी से यहां आना पॉसिबल नहीं है तो इन्फॉर्म देम के हम जर्मनी आ रहे है"

"मुझे पता है कि ये आसान नहीं है लेकिन हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है, वो बहुत अलग बिहैव कर रही है और मैं उसे खोना नहीं चाहता"

"ठीक है, प्लीज ट्राइ टु अरेंज सम्थिंग, मैं कुछ भी बड़ा हादसा होने से पहले उसे बचाना चाहता हूँ"

और एकांश ने फोन काट दिया और नीचे चला गया

"आंटी, मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ इसलिए आप मेरा इंतजार मत करना" एकांश ने सरिताजी को बताया और अक्षिता की तरफ देखा जो उसे ऐसे देख रही थी जैसे वो हमेशा के लिए कही जा रहा हो

एकांश ने सरिताजी से कुछ कहा और उन्होंने सिर हिलाकर एकांश की बात पर अपनी सहमति जताई और वो बाहर आया और अपनी कार में बैठकर चला गया...

"अक्षिता आओ, चलें" सरिताजी ने कहा

"कहाँ?"

"डॉक्टर साहब से मिलने, मैंने तुम्हारे लिए अपॉइंटमेंट ले लिया है" सरिताजी ने अपना पर्स लेते हुए कहा

" लेकिन......"

"कोई लेकिन नहीं... मैं तुम्हारी हेल्थ के बारे में डॉक्टर से बात करना चाहती हूँ" सरिताजी ने कहा और अक्षिता ने भी उनकी बात मान ली

अस्पताल जाने के बाद अक्षिता पर कई तरह के टेस्ट किए गए और उन्हें रिपोर्ट आने तक का इंतज़ार करना पड़ा, जिसमे कई घंटों का समझ लग गया

जब टेस्टस् चल रहे थे एकांश भी अस्पताल में ही था

टेस्टस् हो जाने के बाद अक्षिता और सरिताजी घर वापस आ गईं थी जबकि एकांश अस्पताल में रुक कर डॉक्टर से बात कर रहा था

वो कुछ विदेशी डॉक्टरों को भारत लाने की कोशिश कर रहे थे जो ऐसे मामलों के स्पेशलिस्ट थे, एकांश ने अपने और अपने पिता के कोंटकट्स का भी इस्टमाल किया लेकिन उन डॉक्टरस् के लिए पैशन्टस् और सर्जरी की लाइन लगी हुई थी और उनके पास बस एक पैशन्ट के लिए भारत आना पॉसिबल नहीं था

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या करे, वो काफी ज्यादा टेंशन मे था, वो कीसी भी कीमत पर अक्षिता को बचाना चाहता था और अब उसे समझ नहीं आ रहा था के उसे बचाने के लिए क्या करे....



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एकांश अक्षिता को लेकर एक स्ट्रीट फूड मार्केट के पास आया था ताकि कुछ खा सके और वहा पहुच कर उसने अक्षिता को देखा तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, अपने सामने अलग अलग चाट की गाड़िया देख अक्षिता के मुह मे पानी आने लगा था, अपनी तबीयत के चलते उसे बाहर का कुछ भी यू खाने की इजाजत नहीं थी, इसीलिए एकांश का उसे वहा लाना उसके लिए फिलहाल तो एक बेहतरीन ट्रीट था

वही एकांश को भी अब ये एहसास हो गया था के उसे यहा नहीं आना चाहिए था, फ़्लो फ़्लो मे अक्षिता और अपना मूड ठीक करने कुछ थोड़ा खाने वो यहा आया था लेकिन यहा की गर्दी और खाने पीने का महोल अक्षिता और उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं है इसका एहसास उसे हो गया था और वैसे ही उसने अक्षिता को वहा से चलने के लिए कह दिया था....

अक्षिता अभी चाट की एक रेडी की ओर बढ़ ही रही थी के एकांश ने उसका हाथ पकड़ा

"अक्षिता, चलो..." एकांश ने कहा

"हा हा चलो वहा से शुरुवात करते है" अक्षिता ने एक और इशारा करते हुए कहा, उसे एकांश के चलो का मतलब ही नहीं समझ आया था, वो तो कुछ बढ़िया खाने के लिए उत्सुक थी

"अक्षिता, यहा से चलो, किसी बढ़िया रेस्टोरेंट में खायेंगे" एकांश ने अपनी बात रखते हुए कहा ये जानते हुए के अक्षिता को अब यहा से ले जाना उसके लिए मुश्किल होने वाला था

"पर क्यों??? अभी अभी तो आए है यही से कुछ खा कर चलते है ना" अक्षिता ने कहा

"कही और बढ़िया जगह खा लेंगे पर यहा नही" एकांश ने कहा, उसे अब अक्षिता को यहा लाने का अफसोस हो रहा था साथ ही डर भी लग रहा था के यहा का खाना खा कर उसकी तबियत बिगड़ जाएगी वही अक्षिता जो तो उसकी मन पसंद चीज दिख रही थी तो वो तो अब वहा से हटने वाली नही थी

"अब चलो भी अक्षिता" एकांश ने वापिस नही

"यही कुछ खा लेते है ना, प्लीज" अक्षिता ने कहा

"नही"

"प्लीज प्लीज प्लीज"

"No!"

"तो फिर मुझे यहा लेकर ही क्यों आए थे" अब अक्षिता ने थोड़ा गुस्से में कहा

"गलती हो गई मुझसे, मैं भूल गया था के स्ट्रीट फूड ठीक नहीं है तुम्हारे लिए" एकांश ने कहा

"बकवास मत करो ठीक है, थोड़ा बहुत स्ट्रीट फूड खाने से कुछ नही होने वाला"

"अक्षिता, प्लीज, तुम्हे खुद की सेहत का ध्यान रखना चाहिए और वैसे भी ये सब खाना तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं है" एकांश ने अक्षिता को समझाते हुए कहा

"थोड़ा खाने से कुछ नही होने वाला, और अब तुम चाहे मानो या ना मानो मैं यहा से अपनी पसंद की चीजे खाए बगैर नही जा रही" अक्षिता ने कहा और अब एकांश के पास भी उसकी बात मानने के अलावा कोई रास्ता ही नही था

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी" एकांश ने कहा

"ओह हेलो मुझे वैसे भी मेरी पसंद का खाने के लिए तुम्हारी परमिशन नही चाहिए समझे ना"

"तो फिर ये प्लीज प्लीज किस बात का कह रही थी"

"वो तो मुझे लगा तुम सडा सा मुंह बना के कुछ नही खाओगे तो तुम्हे मेरे साथ खाने के लिए कह रही थी" अक्षिता ने कहा, उसे एकांश की आदत पता थी, वो अपनी डायट का ध्यान रखने वाला था और उनके रिलेशनशिप के दौरान भी उसने उसे कभी स्ट्रीट फूड खाते नही देखा था और आज भी वो नही खायेगा उसका अक्षिता को अंदाजा था

"अब चलो भी मुझे भूख लगी है" अक्षिता ने एकांश का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाते हुए कहा, एकांश भी कुछ नही बोला वो बस अक्षिता के साथ मिले इस पल को एंजॉय करना चाहता था...

अक्षिता अलग अलग चीजे खा रही थी और एकांश बस उसे खाते हुए देख रहा था, वो बस उस पल को इन्जॉय कर रहा था और इस पल मे अक्षिता को खुश करने के लिए उसे बचाने के लिए वो अपना सब कुछ कुर्बान करने को तयार था, अक्षिता को खो देने के खयाल से ही उसकी आँखों मे पानी आने लगा था और वो अक्षिता न देख ले इसीलिए उसने झट से अपने ईमोशनस् पर कंट्रोल करते हुए अपनी आंखे साफ की

अक्षिता ने वहा अपनी पसंद की सभी चीजे खाई थी और एकांश को भी खिलाई थी और पानी पूरी वाले के पास से हट कर वो एकांश के पास आई तो एकांश ने पूछा



"अब कहाँ?" एकांश ने पूछा

"I just want to sleep now" अक्षिता ने थोड़े थके हुए अंदाज मे कहा और एकांश भी उसे देख कर समझ गया के वो काफी थक गई थी और उसे दवाईया भी लेनी थी

"ठीक है तो फिर घर चलते है" एकांश ने कहा और वो दोनों उसकी कार की ओर बढ़ गए

"एकांश..."

"हम्म...."

"थैंक यू" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा

"अब ये क्यू?" एकांश ने चौक कर पूछा

"मुझे अपने साथ पार्टी में ले जाने के लिए, मेरे साथ स्ट्रीट फूड खाने के लिए और मेरे दिन को इतना खास बनाने के लिए" अक्षिता ने एकांश की आँखों मे देखते हुए कहा वही एकांश को समझ नहीं आ रहा था के इसपर क्या बोले

"अरे ठीक है यार, तुम्हें अच्छा लगा न बात खतम" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा

"इस दिन को यादगार बनाने के लिए थैंक्स, क्योंकि मैं अपनी आखिरी सांस तक इन यादों को अपने साथ रखूंगी" अक्षिता ने स्माइल के साथ कहा, जबकि एकांश की मुस्कान ये सुनकर गायब हो गई

"चलो चलते है" एकांश ने नीचे देखते हुए कहा और वो दोनों कार मे जाकर बैठे

अक्षिता सीट पर सिर टिकाकर बैठी थी और एकांश ने कार चला रहा था, उसके दिमाग में इस वक्त कई विचार चल रहे थे, उसे नहीं पता कि अक्षिता को कुछ हो गया तो वो क्या करेगा

अक्षिता खिड़की पर झुककर सो गई थी और एकांश चुपचाप गाड़ी चलाता रहा और बीच-बीच में उसे देखता रहा, वे घर पहुचने पर एकांश ने गाड़ी रोकी और जल्दी से नीचे उतरा और अक्षिता की साइड जाकर हल्के से दरवाजा खोला उसने बिना अक्षिता की नींद में खलल डाले उसे धीरे से अपनी बाहों में उठाया और उसे घर के अंदर ले आया

"ये सो गई?" सरिता जी ने दरवाज़ा खोलते हुए पूछा

"हाँ." एकांश ने धीमे से कहा और अक्षिता के कमरे की ओर बढ़ गया वही सरिता जी ने उसके लिए बेडरूम का दरवाजा खोला और एकांश ने आराम से अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसके माथे को चूमा

"उसनेन खाना खाया?" सरिता जी ने एकांश को देख पूछा

"हाँ" उसने अक्षिता की ओर देखते हुए कहा

"और तुमने?" सरिता जी ने एकांश के सर पर हाथ रखते हुए पूछा जो अक्षिता के पास बेड पर बैठा हुआ था, एकांश ने बस हा मे अपना सर हिला दिया

"क्या हुआ एकांश?" सरिता जी ने पूछा, जबकि एकांश अभी भी बस अक्षिता को ही देख रहा था

एकांश से कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था और आखिर मे वो बोला

"मुझे डर लग रहा है आंटी" एकांश ने एकदम धीमी आवाज मे कहा और सरिता जी बस उसे देखती रही

"मुझे डर है कि अगर मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, तो वो गायब हो जाएगी, मुझे डर है कि अगर मैं एक मिनट के लिए भी उसके साथ नहीं रहा, तो मैं उसे फिर कभी नहीं देख पाऊँगा, मुझे डर है कि अगर उसे कुछ हो गया तो...." एकांश का गला रुँध गया था उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था, वो आगे कुछ बोलता तो शायद वही रो पड़ता

सरिता जी भी एकांश की इस उधेड़बुन को समझ रही थी, उसके मन मे मची उथल पुछल को भांप रही थी, एकांश भले ही ऊपर से अपने आप को मजबूत दिखने की कोशिश कर रहा था लेकिन अंदर ही अंदर अक्षिता को खोने के खयाल से हजार बार मर रहा था

सरिता जी को समझ नहीं आ रहा था के एकांश से क्या कहे, कैसे उसे सांत्वना दे क्योंकि वो खुद भी अपनी बेटी की जान के लिए डरी हुई थी इसलिए उन्होंने वही किया जो वो कर सकती थी

उन्होंने एकांश की पीठ सहलाते हुए उसे गले लगा लिया और जैसे ही एकांश ने सरिता जी के स्पर्श मे मा की ममता को महसूस किया उससे और नहीं रहा गया और वो उन्हे गले लगाये रो पड़ा

"तुम्हें अपने आप को संभालना होगा एकांश, चाहे जो हो जाए ऐसे टूटना नहीं है, वो भी यही चाहती है" सरिता जी ने एकांश को समझाते हुए कहा और एकांश ने भी हा मे गर्दन हिला दी

"आंटी, उसे जगाकर दवाई दे देना प्लीज" एकांश ने कहा और वहा जाने के लिए मुड़ा लेकिन फिर एक पल रुक कर उसने सऑटु हुई अक्षिता को देखा और मन ही कहा

"I will be strong for you and let nothing happen to you"



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"अंश..."

"अंश..."

"अंश...!"

अक्षिता बार बार एकांश को पुकार रही थी लेकिन वो कही नहीं था

एकांश को वहा ना पाकर अक्षिता घबरा गई और उसे ढूँढ़ते हुए ऊपर की ओर भागी, उसने उसके कमरे में जाकर उसे देखा लेकिन कमरा खाली था...

कमरा खाली था जैसे वहाँ कोई रहता ही न हो, अक्षिता ने अलमारी खोल कर देखि लेकिन वो भी खाली थी..

वो हांफ रही थी और उसका चेहरा पसीने से पूरी तरह भीगा हुआ था, ऐसा लग रहा था जैसे उसे पैनिक अटैक आ गया हो, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके आस-पास की दीवारें उसे निगल रही हों...

अक्षिता को अब सास लेने मे भी मुश्किल हो रही थी, वो सास नहीं ले पा रही थी और धीरे-धीरे वो उसके कमरे से बाहर चली आई, वो अपनी छाती पर हाथ रखे बैल्कनी से देख रही थी

आँखों मे भरे आँसुओं की वजह से उसे साफ दिखाई नहीं दे रहा था और जब उसे साफ साफ दिखने लगा तब उसने एकांश को देखा

उसने देखा कि उसका एकांश उससे दूर जा रहा है, उसके घर से दूर, उसकी जिंदगी से दूर, अपना सामान हाथ में लिए हुए...

वो अब जोर जोर से उसका नाम पुकारने लगी थी..

एकांश रुका और उसने मूड कर अक्षिता की ओर देखा, वो उसे साफ साफ नहीं देख पा रही थी, आँसुओ की वजह से उसकी दृष्टि धुंधली हो गई थी

उसने एकांश अपनी ओर हाथ हिलाते हुए देखा और वो अगले ही पल उसकी नज़रों से ओझल हो गया...


"अंश...!"

अक्षिता चिल्ला उठी

"अक्षिता!" अक्षिता की चीख सुन सरिता जी उसके कमरे मे आ गई थी और वहा आकार उन्होंने देखा के अक्षिता रो रही है...

"अक्षिता, अक्षिता...... क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने चिंतित होकर पूछा

सरिता जी ने अक्षिता का चेहरा अपने हाथों मे थामा हुआ था और उसे शांत करा रही थी

"क्या हुआ अक्षु? तुम क्यों रो रही हो?" सरिताजी ने धीरे से पूछा

"माँ... माँ... एकांश ..." बोलते हुए अक्षिता वापिस रो पड़ी

"एकांश.... क्या?"

"एकांश मुझे छोड़कर चला गया" ये कहते हुए अक्षिता ने अपनी माँ को कसकर गले लगाया और वापिस रोने लगी...

"तुम क्या कह रही हो?"

"एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है माँ.... वो मुझसे नफरत करता है..." अक्षिता पागलों की तरह बस रोए जा रही थी...

सरिताजी ने अक्षिता को कसकर गले लगाया और उसकी पीठ सहलाने लगी और जब उसका रोना बंद हो गया तो वो उसकी पीठ थपथपाने लगी और उन्होंने उसे अपनी गोद में सुला लिया और उसके बालों को धीरे से सहलाना शुरू किया

सरिताजी भी अपनी बेटी की हालत देखकर चुपचाप रो रही थी, वो भी अक्षिता के लिए काफी चिंतित थी..... अक्षिता को बुरे सपने वापिस आने लगे थे और आज ऐसा बहुत समय बाद हुआ था, उसे वापिस एक बुरा सपना आया था और काफी समय बाद सरिताजी ने अक्षिता को उस तरह रोते हुए देखा था

उन्होंने समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे, उन्होंने सोचा के एकांश को इस सब के बारे मे बताना ही बेहतर होगा, शायद वो डॉक्टर से इस बारे में बात करेगा...

उन्होंने अक्षिता को बेड पर सुला दिया और उसका माथा चूमते हुए बाहर चली गई और सीधा एकांश के कमरे की को गई जिसका दरवाजा खुला था, वो अंदर आयो तो उन्होंने देखा के वो कमरा खाली था

उन्होंने सोचा के शायद एकांश अभी टक काम से लौटा नहीं था और यही सोचते हुए वो वापिस नीचे चली आई...

अक्षिता के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे

एकांश मुझे छोड़ कर चला गया... वो मुझसे नफरत करता है...

उन्होंने एकांश के मोबाइल पर फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका फोन भी बंद था और अब सरिताजी ये सोचकर घबरा रही थी के काही अक्षिता की बात, जो उसने कहा वो सच तो नहीं था



"क्या वो सचमुच चला गया?"

और यही सब सोचते हुए उनकी आँखों मे भी आँसू आ गए थे और तभी गेट खुलने की आवाज आई और उन्होंने गेट की चरमराहट की आवाज की ओर देखा...

एकांश थका हुआ था और थका हुआ सा ही घर में दाखिल हुआ... सरिताजी ने उसे देखकर राहत की साँस ली और अब वो खुश थी कि एकांश वही था

वही एकांश ने चिंतित सरिताजी को देखा तो पूछा

"आंटी, क्या हुआ?" एकांश ने सरिताजी को कंधे से हिलाते हुए पूछा

सरिताजी ने एकांश का हाथ पकड़ लिया और अपना माथा उसके हाथ पर रख कर रोने लगी.. एकांश को समझ नहीं आ रहा था के सरिताजी यू रो क्यू रही है और तबही उसका ध्यान तुरंत अक्षिता पर चला गया और वो इस डर से काँप उठा कि कहीं अक्षिता को कुछ हो न गया हो

"आंटी, क्या हुआ? आप रो क्यू रही है? अक्षिता ठीक है न?" एकांश ने हकलाते हुए पूछा...

सरिताजी ने एकांश की ओर देखा और उनका आँसुओ से भीगा चेहरा देख एकांश का दिल डूब रहा था, उसने सरिताजी को हमेशा एक स्ट्रॉंग महिला के तौर पर देखा था, वही थी जिन्होंने उसे उस वक्त सपोर्ट किया था जब वो अपनी उम्मीद खोए जा रहा था, वो इस घर मे हर पल उसके साथ थी और अब उन्हे यू टूटते देख एकांश को यकीन हो गया था के हो ना हो अक्षिता को कुछ हुआ है वो ठीक नहीं है और बस इसी खयाल से उसका दिल बैठा जा रहा

"उसे वापिस बुरे सपने आ रहे हैं और उसे लगभग एक पैनिक अटैक आया था" सरिताजी ने खुदको शांत करने के बाद कहा

"क्या? क्यों?" एकांश ने पूछा

"मुझे नहीं पता... वो अचानक नींद से उठकर तुम्हारा नाम चिल्लाने लगी और जब मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ, तो वह पागलों की तरह ये कहने लगी कि तुमने उसे छोड़ दिया है और तुम उससे नफरत करते हो...." सरिताजी ने एकांश को देखते हुए वहा वही वो बस चुपचाप उनकी बात सुन रहा था

"मैं उसे क्यों छोड़ कर जाऊंगा? और मैं उससे नफरत क्यों करूँगा?" एकांश ने थोड़ा चौक कर पूछा

"शायद उसे यही बुरा सपना आया था कि तुम उसे छोड़कर चले गए हो..." सरिताजी ने कहा

एकांश कुछ नहीं बोला

"आंटी, आप प्लीज रोइए मत... प्लीज बी स्ट्रॉंग, मैं कही नहीं जाने वाला और उसे कुछ नहीं होगा..." एकांश ने सरिताजी को सांत्वना देते हुए कहा लेकिन अंदर ही अंदर वो भी डरा हुआ ही था

"एकांश, तुम समझ नहीं रहे हो... आज बहुत समय बाद ऐसा हुआ आई के उसे बुरे सपने आए है और मैंने उसे इस तरह रोते हुए देखा है और अब मुझे डर है के ये शायद उसकी बिगड़ती सेहत का ही असर" सरिताजी ने सोफ़े कर धम्म से बैठते हुए कहा वही एकांश अपने मन में अनेक विचार लिए चुपचाप खड़ा रहा...

"क्या हुआ?" उन दोनों ने एक आवाज़ सुनी और मुड़कर देखा तो वहा अक्षिता के पिता खड़े थे जिनके चेहरे पर डर का भाव था

सरिताजी उन्हे बताने लगी के क्या हुआ था, जबकि एकांश धीरे-धीरे अक्षिता के कमरे की ओर गया... उसने दरवाज़ा खोला और अक्षिता को सोते हुए देखा...

वो अंदर गया और उसके बिस्तर के पास घुटनों के बल बैठ गया.. उसने उसके चेहरे को देखा जिससे साफ पता चल रहा था कि वह बहुत रोई थी, एकांश ने अपने आंसू पोंछे और उसके माथे को चूमकर वो वापस लिविंग रूम में आया और उसने अक्षिता के पिता का चिंतित चेहरा देखा

"मैं डॉक्टर से बात करता हु" एकांश ने कहा और इससे पहले कि वो लोग उसकी आंखों में आंसू देख पाते, वो वहां से चला गया

******

अक्षिता अपनी नींद से उठी और दीवार पर टंगी एकांश की तस्वीरे देखने लगी, वो उसके मुस्कुराते चेहरे को देखकर मुस्कुराई और फिर अचानक पिछली रात का सपना उसकी आँखों के सामने घूम गया...

वो अपने कमरे से निकलकर भागकर ऊपर गई और उसने एकांश के कमरे का दरवाजा खोला

"एकांश..." उसने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला

कोई जवाब न सुन अक्षिता थोड़ा डर गई और घबराकर चारों ओर देखने लगी...

"अक्षिता?" अक्षिता ने एकांश की आवाज़ सुनी और अपना सिर बाथरूम की ओर घुमाया

वो वहीं खड़ा कन्फ़्युशन मे उसे देखता रहा

"अंश!"

अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा जो भाग कर उसके पास गई और उसे उसे कस कर गले लगा लिया, वो डर से थोड़ा कांप रही थी और एकांश उसकी पीठ सहलाने लगा

"मैं यहीं हूँ अक्षिता.... शांत हो जाओ" एकांश यही शब्द तब तक दोहराता रहा जब तक वो शांत नहीं हो गई

"अब बताओ क्या हुआ?" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने कुछ ना कहते हुए अपना सर ना मे हिला दिया

"यू वॉन्ट टू से सम्थिंग?" एकांश ने वापिस से पूछा

"कुछ नहीं" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ गई

"अक्षिता, अगर कोई बात है तो प्लीज बताओ मुझे" एकांश ने हताश स्वर मे कहा और अक्षिता जाते जाते रुक गई

"मैं अब ये लुका-छिपी का खेल और नहीं खेल सकता" एकांश ने गंभीरता से कहा और अक्षिता उसकी ओर देखने के लिए मुड़ी

“मैं चाहता हु तुम अपने खयाल अपनी फीलिंग सब मुझे बताओ, तुम मुझे बताओ के तुम क्यू परेशान हो मैं जानना चाहता हु के तुम क्यूँ घबरा रही हो क्या वजह है के रो रही हो” एकांश ने कहा

अक्षिता कुछ नहीं बोली बस चुपचाप खडी रही

वो उसे बताना चाहती थी कि वह उससे प्यार करती है

वो उसे बताना चाहती थी कि वही उसकी पूरी दुनिया है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो मर रही है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान के लिए डरी हुई है

वो उसे बताना चाहती थी कि वो चाहती है कि वो आखिरी सांस तक उसके साथ रहे

वो उसे बताना चाहती थी कि उसके अंदर एक बड़ा डर पैदा हो गया है, उसके उसे छोड़ कर चले जाने का डर

वो उसे बताना चाहती थी कि उसे महसूस हो रहा है कि उसका जाने का टाइम नजदीक आ रहा है

वो अपने मन में चल रहे सभी खयालों के साथ उसे गौर से देख रही थी और उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे

लेकिन वो एक शब्द भी नहीं बोल पाई

वो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, उनके चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था और वे एक दूसरे के दिल की धड़कनें साफ साफ सुन सकते थे

एकांश का फ़ोन बजने से उसकी तंद्रा टूटी और एकांश ने फ़ोन उठाया वही अक्षिता मुड़ी और भारी मन से उसके कमरे से बाहर चली गई

"काश मैं कह पाती कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ"

अक्षिता ने अपने आप से कहा और अपने आँसू पोंछते हुए घर में चली गई



******



"डॉ. अवस्थी, मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे और कैसे करेंगे, लेकिन वो डॉक्टरस् जल्द से जल्द यहा आ जाने चाहिए उनसे कहिए कि वो जितना पैसा चाहें, हम देने को तैयार हैं"

"यदि उनके लिए जर्मनी से यहां आना पॉसिबल नहीं है तो इन्फॉर्म देम के हम जर्मनी आ रहे है"

"मुझे पता है कि ये आसान नहीं है लेकिन हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है, वो बहुत अलग बिहैव कर रही है और मैं उसे खोना नहीं चाहता"

"ठीक है, प्लीज ट्राइ टु अरेंज सम्थिंग, मैं कुछ भी बड़ा हादसा होने से पहले उसे बचाना चाहता हूँ"

और एकांश ने फोन काट दिया और नीचे चला गया

"आंटी, मुझे कुछ जरूरी काम है, मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ इसलिए आप मेरा इंतजार मत करना" एकांश ने सरिताजी को बताया और अक्षिता की तरफ देखा जो उसे ऐसे देख रही थी जैसे वो हमेशा के लिए कही जा रहा हो

एकांश ने सरिताजी से कुछ कहा और उन्होंने सिर हिलाकर एकांश की बात पर अपनी सहमति जताई और वो बाहर आया और अपनी कार में बैठकर चला गया...

"अक्षिता आओ, चलें" सरिताजी ने कहा

"कहाँ?"

"डॉक्टर साहब से मिलने, मैंने तुम्हारे लिए अपॉइंटमेंट ले लिया है" सरिताजी ने अपना पर्स लेते हुए कहा

" लेकिन......"

"कोई लेकिन नहीं... मैं तुम्हारी हेल्थ के बारे में डॉक्टर से बात करना चाहती हूँ" सरिताजी ने कहा और अक्षिता ने भी उनकी बात मान ली

अस्पताल जाने के बाद अक्षिता पर कई तरह के टेस्ट किए गए और उन्हें रिपोर्ट आने तक का इंतज़ार करना पड़ा, जिसमे कई घंटों का समझ लग गया

जब टेस्टस् चल रहे थे एकांश भी अस्पताल में ही था

टेस्टस् हो जाने के बाद अक्षिता और सरिताजी घर वापस आ गईं थी जबकि एकांश अस्पताल में रुक कर डॉक्टर से बात कर रहा था

वो कुछ विदेशी डॉक्टरों को भारत लाने की कोशिश कर रहे थे जो ऐसे मामलों के स्पेशलिस्ट थे, एकांश ने अपने और अपने पिता के कोंटकट्स का भी इस्टमाल किया लेकिन उन डॉक्टरस् के लिए पैशन्टस् और सर्जरी की लाइन लगी हुई थी और उनके पास बस एक पैशन्ट के लिए भारत आना पॉसिबल नहीं था

एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या करे, वो काफी ज्यादा टेंशन मे था, वो कीसी भी कीमत पर अक्षिता को बचाना चाहता था और अब उसे समझ नहीं आ रहा था के उसे बचाने के लिए क्या करे....



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मुझे डर है कि अगर मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, तो वो गायब हो जाएगी, अगर मैं एक मिनट के लिए भी उसके साथ नहीं रहा, तो मैं उसे फिर कभी नहीं देख पाऊँगा, ----- ये भावनात्मक बहाव एक निश्छल प्रेम करने वाला ही व्यक्त कर सकता है मित्र, किसी भी स्वार्थ भरे मन मे ऐसा प्रेम पनप ही नही सकता :nope: अक्षिता ओर एकांश का ये प्रेम देख कर मन आज एक बार फिर भावुक हो गया मित्र :hug:आप बहुत अच्छा लिख रहे हो, स्ट्रीट फूड खाने के बाद कही अक्षिता कि तबीयत खराब तो नही हो जायेगी??
ओर कोई तो ईलाज होगा यार, कही तो होगा?
असंभव तो कुछ भी नही:nope: शानदार अपडेट, जानदार लिखावट :bow::bow:
ilaj hi to dhundhna hai :nervous:
Thank you for the review men :thanx:
 

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अक्षिता को ब्रेन ट्यूमर है । मै समझ सकता हूं कि यह बहुत ही खतरनाक रोग है , मरीज के बचने की चांसेज चार पांच प्रतिशत से भी कम है लेकिन हमे यह नही भूलना चाहिए कि बचने की चांसेज भले ही कम हो पर फिर भी कुछ तो है ।
पहले भी कहा था मैने कि अगर पेशेंट्स के जीने की चाह ही खत्म हो जाए , वो खुद को मृत्यु से पहले ही मरा हुआ मान ले तब भगवान भी कुछ नही कर सकता ।
अगर इच्छा शक्ति हो तो आप यमराज के द्वार से भी वापस आ सकते हैं ।
अक्षिता के मन बार-बार बदल रहे है । वह कभी खुशी कभी गम के साये मे जी रही है । यहां पर सबसे अधिक जरूरत है कि उसके मन मस्तिष्क मे यह बात डाली जाए कि वह हंड्रेड पर्सेंट स्वस्थ है । उसकी बीमारी महज चंद दिनो की बात है । और एकांश साहब यथासंभव कोशिश करें कि वो उसके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करे ! कोई भी भोजन डाॅक्टर की सलाह से लेकर उसे कराएं ।
बहुत दिन व्यर्थ की चीजों मे बर्बाद कर दिया एकांश साहब ने । डाॅक्टर के मशविरे के अनुसार फौरन ही उसे फाॅरेन ले जाना चाहिए था । अगर यह भी सम्भव नही तो कम से कम ईश्वर के दरबार तो अवश्य उसे लेकर जाना चाहिए था ।

वैसे रोहन साहब ने ऐसा क्या कह दिया जिसके बाद अक्षिता की तबीयत डांवाडोल होने लगी ?

खैर देखे अक्षिता के प्रारब्ध मे क्या लिखा है !
खुबसूरत अपडेट आदि भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
Thank you for this awesome review bhai :thanx:
 
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