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"व्हाट द हेल? हमे उनका अपॉइन्ट्मन्ट नहीं मिला से क्या मतलब है तुम्हारा?" एकांश फोन पर बात करते हुए चिल्लाया
“सॉरी सर, लेकिन हमने हमारी ओर से पूरी कोशिश की थी" दूसरी ओर से बात करते व्यक्ति ने डरते हुए कहा
"मुझे नहीं पता तुम क्या करोगे और कैसे करोगे.... मुझे जल्द से जल्द उनका अपॉइन्ट्मन्ट चाहिए..... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है....." एकांश ने फोन पर चिल्लाते हुए कहा और फोन काट दिया
अभी एकांश ने फोन काटा ही था के उसका फोन वापिस बज उठा और उसने देखा कि उसके पिता का फोन था और एकांश अभी उनसे बात नहीं करना चाहता था, असल में वो अभी किसी से भी बात नहीं करना चाहता
******
अक्षिता ने अपने सामने बैठे बंदे को देखा जो अपने सिर को हाथों में पकड़े हुए बिस्तर पर बैठा था और लगातार बज रहे अपने फोन को देख रहा था
उसने कल भी डाइनिंग टेबल पर देखा था जब एकांश ने किसी की कॉल को इग्नोर कर दिया था
अक्षिता ने एकांश को इतना चिंतित कभी नहीं देखा था
वो धीरे से उसके कमरे में गई और उसके फोन की तरफ देखा जो फिर से बज रहा था, एकांश की मा उसे बार बार कॉल कर रही थी और वो फोन नहीं उठा रहा था
"क्या हुआ?" अक्षिता ने धीरे से पूछा
एकांश अक्षिता की आवाज़ सुनकर चौका और उसने ऊपर देखा जहा अक्षिता खडी थी
"कुछ नहीं"
"एकांश, तुम बहुत परेशान लग रहे हो.... क्या हुआ है बताओगे?"
"कुछ नहीं हुआ है" एकांश ने अपना फोन बंद करते हुए कहा
"तुम अपनी माँ का फोन क्यों नहीं उठाते?"
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसके जवाब की राह देख रही थी लेकिन वो कुछ नहीं बोला
"मैंने तुमसे कुछ पूछा है एकांश" अक्षिता ने सीरीअस टोन मे कहा
"तुम्हारा इससे कुछ लेना देना नहीं है" एकांश ने कहा और वहा से जाने लगा लेकिन अक्षिता के शब्दों ने उसे रोक दिया
"अपनी मॉम को यू इग्नोर मत करो.... माना तुम उनसे नाराज हो या उनसे बात नहीं करना चाहते लेकिन उन्हे यू इग्नोर मत... हम नहीं जानते के हमारी जिंदगी मे आगे क्या होने वाला है... लाइफ इस अनप्रीडिक्टबल... ऐसा ना हो के आगे इस नाराजी पर पछताना पड़े और फिर माफी मांगने मे बहुत देर हो जाएगी, मुझे नहीं पता के क्या बात है लेकिन प्लीज उनसे बात करो और इसे सॉर्ट करो" अक्षिता ने कहा और अपने आँसू रोकते हुए वहाँ से चली गई
एकांश भी अक्षिता की कही बातों के बारे मे सोचने लगा था, उसकी बात एकदम सच थी, बाद मे पछताने से क्या ही होगा था और ये उसने अक्षिता के मामले मे पहले ही इक्स्पीरीअन्स किया था और अब वो ऐसा कोई रिस्क नहीं चाहता था, हालांकि वो अपनी मा की बात को भुला नहीं था वो आज भी अक्षिता की बीमारी उससे छिपाने को लेकर उनसे नाराज था लेकिन फिर अब एकांश ने उनसे बात करने इस मामले को सुलझाने का सोचा
वो तुरंत रेडी होकर अपने पेरेंट्स के घर की ओर निकल गया, एकांश को घर मे देख वो दोनों काफी खुश हुए और उसके पिता ने उसे गले लगा लिया वही उसकी मा उसके सामने आने से थोड़ा झिझक रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने उसे गले लगा लिया
एकांश ने बहुत दिनों बाद अपनी मा के उस ममतामई स्पर्श को महसूस किया था उसने भी अपनी मा को गले लगाया जिससे वो भी थोड़ी खुश हो गई
"एकांश, बेटा कैसे हो तुम?" एकांश की मा ने एकांश के गाल को सहलाते हुए पूछा
"ठीक हूं" एकांश ने धीरे से कहा
"तुम हमारी कॉल का जवाब क्यों नहीं दे रहे थे?" सीनियर रघुवंशी ने पूछा
"मैं बिजी था" एकांश ने अपने पिता से नजरे चुराते हुए कहा
"और तुम यहाँ क्यों आये हो?" एकांश के पिता ने आगे का सवाल किया
"यह घर है उसका... वह यहा कभी भी आ सकता है" एकांश की मा ने उसके पिता के सवाल का जवाब देते हुए कहा
"अरे सॉरी.... मुझे तो ये पूछना चाहिए था कि तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?" एकांश के पिता ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा
अब इसपर क्या बोले एकांश को समझ नहीं आ रहा था वो इधर उधर देखने लगा वही उसकी मा भी अपने पति के बोलने का मतलब समझ गई थी वो जान गई थी के एकांश को वापिस घर आने के लिए एक ही इंसान मना सकता था
"अब आप चुप रहो और मुझे मेरे बेटे से बात करने दो?" साधनाजी (एकांश की मा) ने मुकेशजी (एकांश के पिता) को चुप कराते हुए कहा जिसपर एकांश मुस्कुरा उठा
"अक्षिता कैसी है?" साधना जी ने चिंतित होकर पूछा और इस सवाल पर एकांश थोड़ा चौका
हालांकि वो जानता था कि उनलोगों को पहले से ही उसके ठिकाने के बारे में अंदाजा था, लेकिन उसने यह उम्मीद नहीं की थी कि उन्हें पता चल जाएगा कि वो अक्षिता के साथ था
"ठीक है......" एकांश ने हताश स्वर मे कहा
"सब ठीक है बेटे?" मुकेश जी ने भी चिंतित स्वर मे पूछा
"अभी तो ठीक ही है डैड.... लेकिन कभी भी कुछ भी हो सकता है" एकांश ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा
"हम उसके इलाज के लिए सबसे बढ़िया डॉक्टरों से कन्सल्ट करेंगे बेटा.... तुम चिंता मत करो" मुकेश जी ने मुस्कुराते हुए एकांश को आश्वासन दिया
"दरअसल, जर्मनी में एक डॉक्टर है जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है, मैंने उसे अक्षिता के मामले की जांच करने के लिए भारत आने के लिए राजी करने की कोशिश की, लेकिन वो बस एक पैशन्ट के लिए आने के लिए राजी नहीं हो रहा, कह रहा है जर्मनी मे कई पैशन्टस् को छोड़ना पड़ेगा" एकांश ने उदास होकर कहा
"तो फिर अब क्या करने का सोचा है?"
"मैं जर्मनी जाकर अपनी रिपोर्ट्स उसे दिखाने, उसकी सलाह लेने और उसे मनाने की सोच रहा हूँ" एकांश ने कहा
"ये ठीक रहेगा” साधना जी ने कहा
"हमें उसे ठीक करने के लिए हर कोशिश करके देखनी चाहिए" साधना जी ने एकांश को देखते हुए कहा और फ़र मुकेश जी की ओर मुड़ी
"आपका एक कोई दोस्त जर्मनी में है ना जिसकी फेमस होटल चैन है?" साधनाजी ने पूछा
"हाँ...."
"तो फिर उससे कहो कि वो एकांश की डॉक्टर से मिलने में मदद करे और डॉक्टर को भारत आने के लिए राजी भी करे" साधना जी ने सलाह दी और उनकी बात सुन एकांश और मुकेश जी ने भी इसमे हामी भारी क्युकी ये उपाय सही मे कारगर साबित हो सकता था और वो डॉक्टर भारत आने के लिए राजी हो सकता था
"मैं उसे अभी कान्टैक्ट करता हु" और मुकेश जी अपने जर्मनी वाले दोस्त को फोन करने चले गए वही साधना जी एकांश की ओर मुड़ी हो नाम आँखों से उन्हे देख रहा था
"एकांश?"
एकांश से और नहीं रुका जा रहा था और उसने कस कर अपनी मा को गले लगा लिया
एकांश के इस रिएक्शन से साधनाजी थोड़ा चौकी, लेकिन वो खुश थी, उनका बेटा उनके पास था और जब उन्होंने उसे रोते सुना तो वो उसे चुप कराने लगी, उन्होंने एकांश को रोने देना ही बेहतर समझा, वो एकांश की पीठ सहला रही थी वो जानती थी के एकांश अपने अंदर बहुत कुछ दबाए था जिसका बाहर निकालना जरूरी था
"मॉम, मुझे बहुत डर लग रहा है" एकांश ने धीमे से कहा वही साधना जी चुप चाप उसकी बात सुनती रही
"मुझे डर लग रहा है कि उसे कुछ हो न जाए, अगर मैं उसे नहीं बचा पाया तो मैं जी नहीं पाऊंगा मॉम...... मैं जी नहीं पाऊंगा......" एकांश ने रोते हुए कहा, साधना जी की भी आंखे नम थी
इतने दिनों से एकांश के अंदर दबे सभी ईमोशनस् बाहर आ रहे थे
"शशश...... उसे कुछ नहीं होगा बेटे, वो बहुत अच्छी लड़की है..... उसके लिए तुम्हारा प्यार और उसे बचाने की तुम्हारी इच्छाशक्ति जरूर उसकी जान बचाएगी, जब तक तुम उसके साथ हो उसे कुछ नहीं होगा और मुझे अपने बेटे पर भरोसा है कि वो अपने प्यार को कुछ नहीं होने देगा" उन्होंने एकांश के चेहरे से आँसू साफ करते हुए कहा
"यू नीड़ टु बी स्ट्रॉंग बच्चा, तुम्हें अक्षिता के लिए स्ट्रॉंग रहना होन" साधना जी ने एकांश का मठ चूमते हुए कहा
"आइ मिसड् यू मॉम" एकांश ने अपना सर अपनी मा की गोद मे टिकाते हुए कहा और साधना जी की आँखों से भी आँसू बह निकले, उन्हे नहीं पता के वो क्यू रो रही थी, ये आँसू खुशी के थे या गम के, उन्हे समझ नहीं आ रहा था के बेटा वापिस मिल गया इसपर खुश हो या आने वाले भविष्य मे बेटे को मिलने वाले दर्द के लिए दुखी
"आइ मिसड् यू टू बेटा" उन्होंने एकांश की पीठ थपथपाते हुए कहा और वो उनकी गोद में एक बच्चे की तरह सो गया
मुकेश जी अपनी पत्नी और बेटे के बीच के इस पूरे सीन को देख रहे थे, उनकी आँखों में भी आँसू थे, उन्हें खुशी थी कि आखिरकार उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया था , लेकिन आने वाले समय मे क्या होगा ये सोचकर उनका मन भी डर रहा था... वो जानते थे के उनका बीटा उस राह पर था जहा उसका दिल टूटने के चांस बहुत ज्यादा थे और यही सोच उनका दिल बैठा जा रहा था...
******
एकांश जब घर में आया और उसने चारो ओर देखा तो घर में एकदम शांति थी, चारो ओर सन्नाटा था और घर एकदम खाली था
"एकांश ?"
आवाज सुनकर एकांश मुडा तो उसने देखा के अक्षिता के पिता वहा खड़े थे
"तुम्हें कुछ चाहिए?" उन्होंने पूछा
"आंटी कहाँ हैं?"
"वो पड़ोस में गई है वहा कुछ प्रोग्राम है तो, अभी आजाएगी" अक्षिता के पिता ने जूते पहनते हुए कहा
"आप कहाँ जा रहे हो?" एकांश ने उनसे पूछा
"मैं अपने दोस्त से मिलने जा रहा हूँ, अपनी आंटी से कहना कि मेरा इंतज़ार न करें..... मुझे देर हो जाएगी" अंकल में कहा
"ओके अंकल"
"अपना और अक्षिता का ख्याल रखना" अंकल ने कहा और वहा से चले गए
अब एकांश वहा अक्षिता को ढूंढने लगा लेकिन वो घर में थी थी नही
" अक्षिता ? " एकांश ने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला
वो अक्षिता के कमरे की ओर गया और और दरवाजे पर नॉक किया लेकिन हालत वही रही कोई जवाब नही जिसके बाद एकांश ने दरवाज़ा खोला और अंदर कमरे में देखा तो कमरा खाली था, वो रूम वापिस बंद करके ऊपर अपने अपने की ओर बढ़ गया
एकांश अक्षिता के बारे में सोचते हुए अपने कमरे की और बढ़ गया और जैसे ही उसने दरवाजा खोला और अपने कमरे में आया तो वो थोड़ा चौका और जहा था वही खड़ा रह जहा
अक्षिता उसके बेड पर उसकी शर्ट को सीने से चिपकाए सो रही थी, अक्षिता को वहा यू देख एकांश के मन में क्या इमोशंस आ रहे थे वो बताना मुश्किल था, वो धीरे-धीरे उसके पास गया और बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया
उसने अक्षिता के चेहरे पर आए बाल हटाए और उसके शांत चेहरे को देखा, फिर अपनी शर्ट को देखा जो उसके शरीर से चिपकी हुई थी, उसे अपनी उस शर्ट से जलन हो रही थी क्योंकि उसे लग रहा था के काश उस शर्ट की जगह वो खुद होता
उसे उस चीज से जलन हो रही थी जो बेजान थी और उसकी अपनी थी
अपने ही ख्यालों पर एकांश को हसी आ गई और वो फ्रेश हो e बाथरूम की ओर चला गया, फिर बाहर आकर टेबल पर बैठ कुछ फाइल्स देखने लगा, वैसे तो एकांश अपना काम कर रहा था लेकिन दिमाग में ये बात भी चल रही थी के अक्षिता को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, क्यों अक्षिता को इतने दर्द का सामना करना पड़ रहा है
उसने तो कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया था
वो तो सपने में भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकती थी
तो फिर इतना सब क्यूं
एकांश ने अपने कमरे में रखी भगवान की मूर्ति की ओर देखा जो सरिताजी ने वहा एक एक शेल्फ में रखी थी
एकांश अभी अपने ख्यालों में ही खोया था के तभी उसके डैड का फोन आया और उसने फोन उठाया
उसके डैड ने बताया कि उन्हें जर्मनी में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट मिल गया है और एकांश को एक हफ्ते में जर्मनी के लिए रवाना होना था
एकांश अपने डैड की बात सुन काफी खुश हुआ, अक्षिता को बचाने को वो ये पहला कदम था जी सफल हुआ था, उसने अपने डैड को थैंक्स कहा और फोन रखा
एकांश ने एक नजर बेड पर सोती अक्षिता को देखा और सोचा के अब सबसे मुश्किल काम अक्षिता को मनाना है, उसके नही पता था के उसके जाने की बात पर अक्षिता किस तरह रिएक्ट करेगी क्युकी आजकल वो ये सोचकर भी घबरा जाती थी के एकांश उसे छोड़कर चला जायेगा
एकांश अपने कमरे से बाहर आया और अपने दोस्तों को फोन करके ये खबर सुनाई और अक्षिता के बारे में अपनी चिंता भी जाहिर की, डॉक्टर के अपॉइंटमेंट की बात सुन सभी खुश हुए और उससे वादा किया कि वो उसके वहा ना रहने पर अक्षिता के साथ रहेंगे उसका खयाल रखेंगे
एकांश ने अब एक राहत की सास की और वापिस अंदर जाकर।देखा तो अक्षिता नींद में करवाते बदल रही थी, वो चुपचाप जाकर खुर्ची पर बैठ गया और लैपटॉप पर काम करने लगा क्योंकि अब उसे एक हफ़्ते में अपना सारा काम पूरा करना था
"एकांश ?"
एकांश ने अक्षिता को अपना नाम पुकारते सुना तो उसने उसकी तरफ देखा जो बेड पर बैठी थी और आधी बंद आंखो से उसे देख रही थी और काफी प्यारी लग रही थी
"अंश?" अक्षिता ने उसे थोड़ा जोर से पुकारा और एकांश अपने ख्यालों से बाहर आया
" हाँ"
"तुम कब आये?" अक्षिता ने अपनी आँखें मलते हुए पूछा
"मुझे घर आये एक घंटा हो गया है"
"तो तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?"
"अब तुम मेरी शर्ट को पकड़ कर शांति से सो रही थी तो मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता थोड़ा शर्मासी गई, उसे पता ही नही चला था के कब वो उसकी शर्ट को पकड़ कर से गई थी
"तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने बेड से उठते हुए बात बदलते हुए पूछा
"मैं घर चला गया था" एकांश ने लैपटॉप की ओर मुड़ते हुए कहा
"तुमने अपने मॉम डैड से बात की?" अक्षिता ने पूछा
"हाँ" एकांश ने कहा और अक्षिता ने मुस्कुराते हुए उसे देखा
और एकांश उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखने के लिए कुछ भी कर सकता था
"गुड बॉय" अक्षिता ने एकांश के बालों को सहलाते हुए कहा
"ओय! आई एम नॉट ए बॉय, आई एम ए मैन..... एक्चुअली a हॉट एंड हैंडसम मैन" एकांश ने कहा
अक्षिता एकांश की बात सुन दबी आवाज में उसे सेल्फ ऑबसेड लेकिन एकांश ने सुन लिया
"तुमने कुछ कहा?" एकांश ने उसके पास जाकर पूछा
"नही... कुछ नहीं" अक्षिता ने पीछे हटते हुए कहा
"सेल्फ ऑबसेस्ड, और क्या?" एकांश ने पूछा और अक्षिता हंसते हुए वहा से भाग ली और एकांश उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा
वो दोनों हँसते हुए कमरे में इधर उधर भाग रहे थे और आखिर में एकांश ने उसे पकड़ लिया और वो उसे गुदगुदी करने लगा और वो जोर-जोर से हंसने लगी।l
"अंश रुको!" अक्षिता ने हंसते हुए कहा
एकांश ने उसकी कमर को पीछे से पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया और जब उसने उसे वैसे ही घूमने लगा और वो जोर से हंसने लगी
कुछ देर बाद एकांश ने अक्षिता को नीचे उतारा, दोनो ही हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख हस रहे थे
सरिताजी भी अब तक घर आ चुकी थी और उन्हें ढूँढते हुए ऊपर आई थी और उनकी हरकतें देखकर वहीं खड़ी रह गई थी
एकांश और अक्षिता को वैसे एकदूसरे के साथ देख उनकी आंखे भर आई थी
बहुत दिनों बाद उन दोनों को ऐसे देखकर सरिताजी को खुशी और उम्मीद की किरण दिख रही थी, उन्होंने आसमान की तरफ देखा और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की कि वे दोनों हमेशा ऐसे ही खुश रहें और साथ रहें...
"व्हाट द हेल? हमे उनका अपॉइन्ट्मन्ट नहीं मिला से क्या मतलब है तुम्हारा?" एकांश फोन पर बात करते हुए चिल्लाया
“सॉरी सर, लेकिन हमने हमारी ओर से पूरी कोशिश की थी" दूसरी ओर से बात करते व्यक्ति ने डरते हुए कहा
"मुझे नहीं पता तुम क्या करोगे और कैसे करोगे.... मुझे जल्द से जल्द उनका अपॉइन्ट्मन्ट चाहिए..... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है....." एकांश ने फोन पर चिल्लाते हुए कहा और फोन काट दिया
अभी एकांश ने फोन काटा ही था के उसका फोन वापिस बज उठा और उसने देखा कि उसके पिता का फोन था और एकांश अभी उनसे बात नहीं करना चाहता था, असल में वो अभी किसी से भी बात नहीं करना चाहता
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अक्षिता ने अपने सामने बैठे बंदे को देखा जो अपने सिर को हाथों में पकड़े हुए बिस्तर पर बैठा था और लगातार बज रहे अपने फोन को देख रहा था
उसने कल भी डाइनिंग टेबल पर देखा था जब एकांश ने किसी की कॉल को इग्नोर कर दिया था
अक्षिता ने एकांश को इतना चिंतित कभी नहीं देखा था
वो धीरे से उसके कमरे में गई और उसके फोन की तरफ देखा जो फिर से बज रहा था, एकांश की मा उसे बार बार कॉल कर रही थी और वो फोन नहीं उठा रहा था
"क्या हुआ?" अक्षिता ने धीरे से पूछा
एकांश अक्षिता की आवाज़ सुनकर चौका और उसने ऊपर देखा जहा अक्षिता खडी थी
"कुछ नहीं"
"एकांश, तुम बहुत परेशान लग रहे हो.... क्या हुआ है बताओगे?"
"कुछ नहीं हुआ है" एकांश ने अपना फोन बंद करते हुए कहा
"तुम अपनी माँ का फोन क्यों नहीं उठाते?"
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसके जवाब की राह देख रही थी लेकिन वो कुछ नहीं बोला
"मैंने तुमसे कुछ पूछा है एकांश" अक्षिता ने सीरीअस टोन मे कहा
"तुम्हारा इससे कुछ लेना देना नहीं है" एकांश ने कहा और वहा से जाने लगा लेकिन अक्षिता के शब्दों ने उसे रोक दिया
"अपनी मॉम को यू इग्नोर मत करो.... माना तुम उनसे नाराज हो या उनसे बात नहीं करना चाहते लेकिन उन्हे यू इग्नोर मत... हम नहीं जानते के हमारी जिंदगी मे आगे क्या होने वाला है... लाइफ इस अनप्रीडिक्टबल... ऐसा ना हो के आगे इस नाराजी पर पछताना पड़े और फिर माफी मांगने मे बहुत देर हो जाएगी, मुझे नहीं पता के क्या बात है लेकिन प्लीज उनसे बात करो और इसे सॉर्ट करो" अक्षिता ने कहा और अपने आँसू रोकते हुए वहाँ से चली गई
एकांश भी अक्षिता की कही बातों के बारे मे सोचने लगा था, उसकी बात एकदम सच थी, बाद मे पछताने से क्या ही होगा था और ये उसने अक्षिता के मामले मे पहले ही इक्स्पीरीअन्स किया था और अब वो ऐसा कोई रिस्क नहीं चाहता था, हालांकि वो अपनी मा की बात को भुला नहीं था वो आज भी अक्षिता की बीमारी उससे छिपाने को लेकर उनसे नाराज था लेकिन फिर अब एकांश ने उनसे बात करने इस मामले को सुलझाने का सोचा
वो तुरंत रेडी होकर अपने पेरेंट्स के घर की ओर निकल गया, एकांश को घर मे देख वो दोनों काफी खुश हुए और उसके पिता ने उसे गले लगा लिया वही उसकी मा उसके सामने आने से थोड़ा झिझक रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने उसे गले लगा लिया
एकांश ने बहुत दिनों बाद अपनी मा के उस ममतामई स्पर्श को महसूस किया था उसने भी अपनी मा को गले लगाया जिससे वो भी थोड़ी खुश हो गई
"एकांश, बेटा कैसे हो तुम?" एकांश की मा ने एकांश के गाल को सहलाते हुए पूछा
"ठीक हूं" एकांश ने धीरे से कहा
"तुम हमारी कॉल का जवाब क्यों नहीं दे रहे थे?" सीनियर रघुवंशी ने पूछा
"मैं बिजी था" एकांश ने अपने पिता से नजरे चुराते हुए कहा
"और तुम यहाँ क्यों आये हो?" एकांश के पिता ने आगे का सवाल किया
"यह घर है उसका... वह यहा कभी भी आ सकता है" एकांश की मा ने उसके पिता के सवाल का जवाब देते हुए कहा
"अरे सॉरी.... मुझे तो ये पूछना चाहिए था कि तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?" एकांश के पिता ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा
अब इसपर क्या बोले एकांश को समझ नहीं आ रहा था वो इधर उधर देखने लगा वही उसकी मा भी अपने पति के बोलने का मतलब समझ गई थी वो जान गई थी के एकांश को वापिस घर आने के लिए एक ही इंसान मना सकता था
"अब आप चुप रहो और मुझे मेरे बेटे से बात करने दो?" साधनाजी (एकांश की मा) ने मुकेशजी (एकांश के पिता) को चुप कराते हुए कहा जिसपर एकांश मुस्कुरा उठा
"अक्षिता कैसी है?" साधना जी ने चिंतित होकर पूछा और इस सवाल पर एकांश थोड़ा चौका
हालांकि वो जानता था कि उनलोगों को पहले से ही उसके ठिकाने के बारे में अंदाजा था, लेकिन उसने यह उम्मीद नहीं की थी कि उन्हें पता चल जाएगा कि वो अक्षिता के साथ था
"ठीक है......" एकांश ने हताश स्वर मे कहा
"सब ठीक है बेटे?" मुकेश जी ने भी चिंतित स्वर मे पूछा
"अभी तो ठीक ही है डैड.... लेकिन कभी भी कुछ भी हो सकता है" एकांश ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा
"हम उसके इलाज के लिए सबसे बढ़िया डॉक्टरों से कन्सल्ट करेंगे बेटा.... तुम चिंता मत करो" मुकेश जी ने मुस्कुराते हुए एकांश को आश्वासन दिया
"दरअसल, जर्मनी में एक डॉक्टर है जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है, मैंने उसे अक्षिता के मामले की जांच करने के लिए भारत आने के लिए राजी करने की कोशिश की, लेकिन वो बस एक पैशन्ट के लिए आने के लिए राजी नहीं हो रहा, कह रहा है जर्मनी मे कई पैशन्टस् को छोड़ना पड़ेगा" एकांश ने उदास होकर कहा
"तो फिर अब क्या करने का सोचा है?"
"मैं जर्मनी जाकर अपनी रिपोर्ट्स उसे दिखाने, उसकी सलाह लेने और उसे मनाने की सोच रहा हूँ" एकांश ने कहा
"ये ठीक रहेगा” साधना जी ने कहा
"हमें उसे ठीक करने के लिए हर कोशिश करके देखनी चाहिए" साधना जी ने एकांश को देखते हुए कहा और फ़र मुकेश जी की ओर मुड़ी
"आपका एक कोई दोस्त जर्मनी में है ना जिसकी फेमस होटल चैन है?" साधनाजी ने पूछा
"हाँ...."
"तो फिर उससे कहो कि वो एकांश की डॉक्टर से मिलने में मदद करे और डॉक्टर को भारत आने के लिए राजी भी करे" साधना जी ने सलाह दी और उनकी बात सुन एकांश और मुकेश जी ने भी इसमे हामी भारी क्युकी ये उपाय सही मे कारगर साबित हो सकता था और वो डॉक्टर भारत आने के लिए राजी हो सकता था
"मैं उसे अभी कान्टैक्ट करता हु" और मुकेश जी अपने जर्मनी वाले दोस्त को फोन करने चले गए वही साधना जी एकांश की ओर मुड़ी हो नाम आँखों से उन्हे देख रहा था
"एकांश?"
एकांश से और नहीं रुका जा रहा था और उसने कस कर अपनी मा को गले लगा लिया
एकांश के इस रिएक्शन से साधनाजी थोड़ा चौकी, लेकिन वो खुश थी, उनका बेटा उनके पास था और जब उन्होंने उसे रोते सुना तो वो उसे चुप कराने लगी, उन्होंने एकांश को रोने देना ही बेहतर समझा, वो एकांश की पीठ सहला रही थी वो जानती थी के एकांश अपने अंदर बहुत कुछ दबाए था जिसका बाहर निकालना जरूरी था
"मॉम, मुझे बहुत डर लग रहा है" एकांश ने धीमे से कहा वही साधना जी चुप चाप उसकी बात सुनती रही
"मुझे डर लग रहा है कि उसे कुछ हो न जाए, अगर मैं उसे नहीं बचा पाया तो मैं जी नहीं पाऊंगा मॉम...... मैं जी नहीं पाऊंगा......" एकांश ने रोते हुए कहा, साधना जी की भी आंखे नम थी
इतने दिनों से एकांश के अंदर दबे सभी ईमोशनस् बाहर आ रहे थे
"शशश...... उसे कुछ नहीं होगा बेटे, वो बहुत अच्छी लड़की है..... उसके लिए तुम्हारा प्यार और उसे बचाने की तुम्हारी इच्छाशक्ति जरूर उसकी जान बचाएगी, जब तक तुम उसके साथ हो उसे कुछ नहीं होगा और मुझे अपने बेटे पर भरोसा है कि वो अपने प्यार को कुछ नहीं होने देगा" उन्होंने एकांश के चेहरे से आँसू साफ करते हुए कहा
"यू नीड़ टु बी स्ट्रॉंग बच्चा, तुम्हें अक्षिता के लिए स्ट्रॉंग रहना होन" साधना जी ने एकांश का मठ चूमते हुए कहा
"आइ मिसड् यू मॉम" एकांश ने अपना सर अपनी मा की गोद मे टिकाते हुए कहा और साधना जी की आँखों से भी आँसू बह निकले, उन्हे नहीं पता के वो क्यू रो रही थी, ये आँसू खुशी के थे या गम के, उन्हे समझ नहीं आ रहा था के बेटा वापिस मिल गया इसपर खुश हो या आने वाले भविष्य मे बेटे को मिलने वाले दर्द के लिए दुखी
"आइ मिसड् यू टू बेटा" उन्होंने एकांश की पीठ थपथपाते हुए कहा और वो उनकी गोद में एक बच्चे की तरह सो गया
मुकेश जी अपनी पत्नी और बेटे के बीच के इस पूरे सीन को देख रहे थे, उनकी आँखों में भी आँसू थे, उन्हें खुशी थी कि आखिरकार उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया था , लेकिन आने वाले समय मे क्या होगा ये सोचकर उनका मन भी डर रहा था... वो जानते थे के उनका बीटा उस राह पर था जहा उसका दिल टूटने के चांस बहुत ज्यादा थे और यही सोच उनका दिल बैठा जा रहा था...
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एकांश जब घर में आया और उसने चारो ओर देखा तो घर में एकदम शांति थी, चारो ओर सन्नाटा था और घर एकदम खाली था
"एकांश ?"
आवाज सुनकर एकांश मुडा तो उसने देखा के अक्षिता के पिता वहा खड़े थे
"तुम्हें कुछ चाहिए?" उन्होंने पूछा
"आंटी कहाँ हैं?"
"वो पड़ोस में गई है वहा कुछ प्रोग्राम है तो, अभी आजाएगी" अक्षिता के पिता ने जूते पहनते हुए कहा
"आप कहाँ जा रहे हो?" एकांश ने उनसे पूछा
"मैं अपने दोस्त से मिलने जा रहा हूँ, अपनी आंटी से कहना कि मेरा इंतज़ार न करें..... मुझे देर हो जाएगी" अंकल में कहा
"ओके अंकल"
"अपना और अक्षिता का ख्याल रखना" अंकल ने कहा और वहा से चले गए
अब एकांश वहा अक्षिता को ढूंढने लगा लेकिन वो घर में थी थी नही
" अक्षिता ? " एकांश ने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला
वो अक्षिता के कमरे की ओर गया और और दरवाजे पर नॉक किया लेकिन हालत वही रही कोई जवाब नही जिसके बाद एकांश ने दरवाज़ा खोला और अंदर कमरे में देखा तो कमरा खाली था, वो रूम वापिस बंद करके ऊपर अपने अपने की ओर बढ़ गया
एकांश अक्षिता के बारे में सोचते हुए अपने कमरे की और बढ़ गया और जैसे ही उसने दरवाजा खोला और अपने कमरे में आया तो वो थोड़ा चौका और जहा था वही खड़ा रह जहा
अक्षिता उसके बेड पर उसकी शर्ट को सीने से चिपकाए सो रही थी, अक्षिता को वहा यू देख एकांश के मन में क्या इमोशंस आ रहे थे वो बताना मुश्किल था, वो धीरे-धीरे उसके पास गया और बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया
उसने अक्षिता के चेहरे पर आए बाल हटाए और उसके शांत चेहरे को देखा, फिर अपनी शर्ट को देखा जो उसके शरीर से चिपकी हुई थी, उसे अपनी उस शर्ट से जलन हो रही थी क्योंकि उसे लग रहा था के काश उस शर्ट की जगह वो खुद होता
उसे उस चीज से जलन हो रही थी जो बेजान थी और उसकी अपनी थी
अपने ही ख्यालों पर एकांश को हसी आ गई और वो फ्रेश हो e बाथरूम की ओर चला गया, फिर बाहर आकर टेबल पर बैठ कुछ फाइल्स देखने लगा, वैसे तो एकांश अपना काम कर रहा था लेकिन दिमाग में ये बात भी चल रही थी के अक्षिता को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, क्यों अक्षिता को इतने दर्द का सामना करना पड़ रहा है
उसने तो कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया था
वो तो सपने में भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकती थी
तो फिर इतना सब क्यूं
एकांश ने अपने कमरे में रखी भगवान की मूर्ति की ओर देखा जो सरिताजी ने वहा एक एक शेल्फ में रखी थी
एकांश अभी अपने ख्यालों में ही खोया था के तभी उसके डैड का फोन आया और उसने फोन उठाया
उसके डैड ने बताया कि उन्हें जर्मनी में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट मिल गया है और एकांश को एक हफ्ते में जर्मनी के लिए रवाना होना था
एकांश अपने डैड की बात सुन काफी खुश हुआ, अक्षिता को बचाने को वो ये पहला कदम था जी सफल हुआ था, उसने अपने डैड को थैंक्स कहा और फोन रखा
एकांश ने एक नजर बेड पर सोती अक्षिता को देखा और सोचा के अब सबसे मुश्किल काम अक्षिता को मनाना है, उसके नही पता था के उसके जाने की बात पर अक्षिता किस तरह रिएक्ट करेगी क्युकी आजकल वो ये सोचकर भी घबरा जाती थी के एकांश उसे छोड़कर चला जायेगा
एकांश अपने कमरे से बाहर आया और अपने दोस्तों को फोन करके ये खबर सुनाई और अक्षिता के बारे में अपनी चिंता भी जाहिर की, डॉक्टर के अपॉइंटमेंट की बात सुन सभी खुश हुए और उससे वादा किया कि वो उसके वहा ना रहने पर अक्षिता के साथ रहेंगे उसका खयाल रखेंगे
एकांश ने अब एक राहत की सास की और वापिस अंदर जाकर।देखा तो अक्षिता नींद में करवाते बदल रही थी, वो चुपचाप जाकर खुर्ची पर बैठ गया और लैपटॉप पर काम करने लगा क्योंकि अब उसे एक हफ़्ते में अपना सारा काम पूरा करना था
"एकांश ?"
एकांश ने अक्षिता को अपना नाम पुकारते सुना तो उसने उसकी तरफ देखा जो बेड पर बैठी थी और आधी बंद आंखो से उसे देख रही थी और काफी प्यारी लग रही थी
"अंश?" अक्षिता ने उसे थोड़ा जोर से पुकारा और एकांश अपने ख्यालों से बाहर आया
" हाँ"
"तुम कब आये?" अक्षिता ने अपनी आँखें मलते हुए पूछा
"मुझे घर आये एक घंटा हो गया है"
"तो तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?"
"अब तुम मेरी शर्ट को पकड़ कर शांति से सो रही थी तो मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता थोड़ा शर्मासी गई, उसे पता ही नही चला था के कब वो उसकी शर्ट को पकड़ कर से गई थी
"तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने बेड से उठते हुए बात बदलते हुए पूछा
"मैं घर चला गया था" एकांश ने लैपटॉप की ओर मुड़ते हुए कहा
"तुमने अपने मॉम डैड से बात की?" अक्षिता ने पूछा
"हाँ" एकांश ने कहा और अक्षिता ने मुस्कुराते हुए उसे देखा
और एकांश उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखने के लिए कुछ भी कर सकता था
"गुड बॉय" अक्षिता ने एकांश के बालों को सहलाते हुए कहा
"ओय! आई एम नॉट ए बॉय, आई एम ए मैन..... एक्चुअली a हॉट एंड हैंडसम मैन" एकांश ने कहा
अक्षिता एकांश की बात सुन दबी आवाज में उसे सेल्फ ऑबसेड लेकिन एकांश ने सुन लिया
"तुमने कुछ कहा?" एकांश ने उसके पास जाकर पूछा
"नही... कुछ नहीं" अक्षिता ने पीछे हटते हुए कहा
"सेल्फ ऑबसेस्ड, और क्या?" एकांश ने पूछा और अक्षिता हंसते हुए वहा से भाग ली और एकांश उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा
वो दोनों हँसते हुए कमरे में इधर उधर भाग रहे थे और आखिर में एकांश ने उसे पकड़ लिया और वो उसे गुदगुदी करने लगा और वो जोर-जोर से हंसने लगी।l
"अंश रुको!" अक्षिता ने हंसते हुए कहा
एकांश ने उसकी कमर को पीछे से पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया और जब उसने उसे वैसे ही घूमने लगा और वो जोर से हंसने लगी
कुछ देर बाद एकांश ने अक्षिता को नीचे उतारा, दोनो ही हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख हस रहे थे
सरिताजी भी अब तक घर आ चुकी थी और उन्हें ढूँढते हुए ऊपर आई थी और उनकी हरकतें देखकर वहीं खड़ी रह गई थी
एकांश और अक्षिता को वैसे एकदूसरे के साथ देख उनकी आंखे भर आई थी
बहुत दिनों बाद उन दोनों को ऐसे देखकर सरिताजी को खुशी और उम्मीद की किरण दिख रही थी, उन्होंने आसमान की तरफ देखा और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की कि वे दोनों हमेशा ऐसे ही खुश रहें और साथ रहें...
"व्हाट द हेल? हमे उनका अपॉइन्ट्मन्ट नहीं मिला से क्या मतलब है तुम्हारा?" एकांश फोन पर बात करते हुए चिल्लाया
“सॉरी सर, लेकिन हमने हमारी ओर से पूरी कोशिश की थी" दूसरी ओर से बात करते व्यक्ति ने डरते हुए कहा
"मुझे नहीं पता तुम क्या करोगे और कैसे करोगे.... मुझे जल्द से जल्द उनका अपॉइन्ट्मन्ट चाहिए..... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है....." एकांश ने फोन पर चिल्लाते हुए कहा और फोन काट दिया
अभी एकांश ने फोन काटा ही था के उसका फोन वापिस बज उठा और उसने देखा कि उसके पिता का फोन था और एकांश अभी उनसे बात नहीं करना चाहता था, असल में वो अभी किसी से भी बात नहीं करना चाहता
******
अक्षिता ने अपने सामने बैठे बंदे को देखा जो अपने सिर को हाथों में पकड़े हुए बिस्तर पर बैठा था और लगातार बज रहे अपने फोन को देख रहा था
उसने कल भी डाइनिंग टेबल पर देखा था जब एकांश ने किसी की कॉल को इग्नोर कर दिया था
अक्षिता ने एकांश को इतना चिंतित कभी नहीं देखा था
वो धीरे से उसके कमरे में गई और उसके फोन की तरफ देखा जो फिर से बज रहा था, एकांश की मा उसे बार बार कॉल कर रही थी और वो फोन नहीं उठा रहा था
"क्या हुआ?" अक्षिता ने धीरे से पूछा
एकांश अक्षिता की आवाज़ सुनकर चौका और उसने ऊपर देखा जहा अक्षिता खडी थी
"कुछ नहीं"
"एकांश, तुम बहुत परेशान लग रहे हो.... क्या हुआ है बताओगे?"
"कुछ नहीं हुआ है" एकांश ने अपना फोन बंद करते हुए कहा
"तुम अपनी माँ का फोन क्यों नहीं उठाते?"
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसके जवाब की राह देख रही थी लेकिन वो कुछ नहीं बोला
"मैंने तुमसे कुछ पूछा है एकांश" अक्षिता ने सीरीअस टोन मे कहा
"तुम्हारा इससे कुछ लेना देना नहीं है" एकांश ने कहा और वहा से जाने लगा लेकिन अक्षिता के शब्दों ने उसे रोक दिया
"अपनी मॉम को यू इग्नोर मत करो.... माना तुम उनसे नाराज हो या उनसे बात नहीं करना चाहते लेकिन उन्हे यू इग्नोर मत... हम नहीं जानते के हमारी जिंदगी मे आगे क्या होने वाला है... लाइफ इस अनप्रीडिक्टबल... ऐसा ना हो के आगे इस नाराजी पर पछताना पड़े और फिर माफी मांगने मे बहुत देर हो जाएगी, मुझे नहीं पता के क्या बात है लेकिन प्लीज उनसे बात करो और इसे सॉर्ट करो" अक्षिता ने कहा और अपने आँसू रोकते हुए वहाँ से चली गई
एकांश भी अक्षिता की कही बातों के बारे मे सोचने लगा था, उसकी बात एकदम सच थी, बाद मे पछताने से क्या ही होगा था और ये उसने अक्षिता के मामले मे पहले ही इक्स्पीरीअन्स किया था और अब वो ऐसा कोई रिस्क नहीं चाहता था, हालांकि वो अपनी मा की बात को भुला नहीं था वो आज भी अक्षिता की बीमारी उससे छिपाने को लेकर उनसे नाराज था लेकिन फिर अब एकांश ने उनसे बात करने इस मामले को सुलझाने का सोचा
वो तुरंत रेडी होकर अपने पेरेंट्स के घर की ओर निकल गया, एकांश को घर मे देख वो दोनों काफी खुश हुए और उसके पिता ने उसे गले लगा लिया वही उसकी मा उसके सामने आने से थोड़ा झिझक रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने उसे गले लगा लिया
एकांश ने बहुत दिनों बाद अपनी मा के उस ममतामई स्पर्श को महसूस किया था उसने भी अपनी मा को गले लगाया जिससे वो भी थोड़ी खुश हो गई
"एकांश, बेटा कैसे हो तुम?" एकांश की मा ने एकांश के गाल को सहलाते हुए पूछा
"ठीक हूं" एकांश ने धीरे से कहा
"तुम हमारी कॉल का जवाब क्यों नहीं दे रहे थे?" सीनियर रघुवंशी ने पूछा
"मैं बिजी था" एकांश ने अपने पिता से नजरे चुराते हुए कहा
"और तुम यहाँ क्यों आये हो?" एकांश के पिता ने आगे का सवाल किया
"यह घर है उसका... वह यहा कभी भी आ सकता है" एकांश की मा ने उसके पिता के सवाल का जवाब देते हुए कहा
"अरे सॉरी.... मुझे तो ये पूछना चाहिए था कि तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?" एकांश के पिता ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा
अब इसपर क्या बोले एकांश को समझ नहीं आ रहा था वो इधर उधर देखने लगा वही उसकी मा भी अपने पति के बोलने का मतलब समझ गई थी वो जान गई थी के एकांश को वापिस घर आने के लिए एक ही इंसान मना सकता था
"अब आप चुप रहो और मुझे मेरे बेटे से बात करने दो?" साधनाजी (एकांश की मा) ने मुकेशजी (एकांश के पिता) को चुप कराते हुए कहा जिसपर एकांश मुस्कुरा उठा
"अक्षिता कैसी है?" साधना जी ने चिंतित होकर पूछा और इस सवाल पर एकांश थोड़ा चौका
हालांकि वो जानता था कि उनलोगों को पहले से ही उसके ठिकाने के बारे में अंदाजा था, लेकिन उसने यह उम्मीद नहीं की थी कि उन्हें पता चल जाएगा कि वो अक्षिता के साथ था
"ठीक है......" एकांश ने हताश स्वर मे कहा
"सब ठीक है बेटे?" मुकेश जी ने भी चिंतित स्वर मे पूछा
"अभी तो ठीक ही है डैड.... लेकिन कभी भी कुछ भी हो सकता है" एकांश ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा
"हम उसके इलाज के लिए सबसे बढ़िया डॉक्टरों से कन्सल्ट करेंगे बेटा.... तुम चिंता मत करो" मुकेश जी ने मुस्कुराते हुए एकांश को आश्वासन दिया
"दरअसल, जर्मनी में एक डॉक्टर है जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है, मैंने उसे अक्षिता के मामले की जांच करने के लिए भारत आने के लिए राजी करने की कोशिश की, लेकिन वो बस एक पैशन्ट के लिए आने के लिए राजी नहीं हो रहा, कह रहा है जर्मनी मे कई पैशन्टस् को छोड़ना पड़ेगा" एकांश ने उदास होकर कहा
"तो फिर अब क्या करने का सोचा है?"
"मैं जर्मनी जाकर अपनी रिपोर्ट्स उसे दिखाने, उसकी सलाह लेने और उसे मनाने की सोच रहा हूँ" एकांश ने कहा
"ये ठीक रहेगा” साधना जी ने कहा
"हमें उसे ठीक करने के लिए हर कोशिश करके देखनी चाहिए" साधना जी ने एकांश को देखते हुए कहा और फ़र मुकेश जी की ओर मुड़ी
"आपका एक कोई दोस्त जर्मनी में है ना जिसकी फेमस होटल चैन है?" साधनाजी ने पूछा
"हाँ...."
"तो फिर उससे कहो कि वो एकांश की डॉक्टर से मिलने में मदद करे और डॉक्टर को भारत आने के लिए राजी भी करे" साधना जी ने सलाह दी और उनकी बात सुन एकांश और मुकेश जी ने भी इसमे हामी भारी क्युकी ये उपाय सही मे कारगर साबित हो सकता था और वो डॉक्टर भारत आने के लिए राजी हो सकता था
"मैं उसे अभी कान्टैक्ट करता हु" और मुकेश जी अपने जर्मनी वाले दोस्त को फोन करने चले गए वही साधना जी एकांश की ओर मुड़ी हो नाम आँखों से उन्हे देख रहा था
"एकांश?"
एकांश से और नहीं रुका जा रहा था और उसने कस कर अपनी मा को गले लगा लिया
एकांश के इस रिएक्शन से साधनाजी थोड़ा चौकी, लेकिन वो खुश थी, उनका बेटा उनके पास था और जब उन्होंने उसे रोते सुना तो वो उसे चुप कराने लगी, उन्होंने एकांश को रोने देना ही बेहतर समझा, वो एकांश की पीठ सहला रही थी वो जानती थी के एकांश अपने अंदर बहुत कुछ दबाए था जिसका बाहर निकालना जरूरी था
"मॉम, मुझे बहुत डर लग रहा है" एकांश ने धीमे से कहा वही साधना जी चुप चाप उसकी बात सुनती रही
"मुझे डर लग रहा है कि उसे कुछ हो न जाए, अगर मैं उसे नहीं बचा पाया तो मैं जी नहीं पाऊंगा मॉम...... मैं जी नहीं पाऊंगा......" एकांश ने रोते हुए कहा, साधना जी की भी आंखे नम थी
इतने दिनों से एकांश के अंदर दबे सभी ईमोशनस् बाहर आ रहे थे
"शशश...... उसे कुछ नहीं होगा बेटे, वो बहुत अच्छी लड़की है..... उसके लिए तुम्हारा प्यार और उसे बचाने की तुम्हारी इच्छाशक्ति जरूर उसकी जान बचाएगी, जब तक तुम उसके साथ हो उसे कुछ नहीं होगा और मुझे अपने बेटे पर भरोसा है कि वो अपने प्यार को कुछ नहीं होने देगा" उन्होंने एकांश के चेहरे से आँसू साफ करते हुए कहा
"यू नीड़ टु बी स्ट्रॉंग बच्चा, तुम्हें अक्षिता के लिए स्ट्रॉंग रहना होन" साधना जी ने एकांश का मठ चूमते हुए कहा
"आइ मिसड् यू मॉम" एकांश ने अपना सर अपनी मा की गोद मे टिकाते हुए कहा और साधना जी की आँखों से भी आँसू बह निकले, उन्हे नहीं पता के वो क्यू रो रही थी, ये आँसू खुशी के थे या गम के, उन्हे समझ नहीं आ रहा था के बेटा वापिस मिल गया इसपर खुश हो या आने वाले भविष्य मे बेटे को मिलने वाले दर्द के लिए दुखी
"आइ मिसड् यू टू बेटा" उन्होंने एकांश की पीठ थपथपाते हुए कहा और वो उनकी गोद में एक बच्चे की तरह सो गया
मुकेश जी अपनी पत्नी और बेटे के बीच के इस पूरे सीन को देख रहे थे, उनकी आँखों में भी आँसू थे, उन्हें खुशी थी कि आखिरकार उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया था , लेकिन आने वाले समय मे क्या होगा ये सोचकर उनका मन भी डर रहा था... वो जानते थे के उनका बीटा उस राह पर था जहा उसका दिल टूटने के चांस बहुत ज्यादा थे और यही सोच उनका दिल बैठा जा रहा था...
******
एकांश जब घर में आया और उसने चारो ओर देखा तो घर में एकदम शांति थी, चारो ओर सन्नाटा था और घर एकदम खाली था
"एकांश ?"
आवाज सुनकर एकांश मुडा तो उसने देखा के अक्षिता के पिता वहा खड़े थे
"तुम्हें कुछ चाहिए?" उन्होंने पूछा
"आंटी कहाँ हैं?"
"वो पड़ोस में गई है वहा कुछ प्रोग्राम है तो, अभी आजाएगी" अक्षिता के पिता ने जूते पहनते हुए कहा
"आप कहाँ जा रहे हो?" एकांश ने उनसे पूछा
"मैं अपने दोस्त से मिलने जा रहा हूँ, अपनी आंटी से कहना कि मेरा इंतज़ार न करें..... मुझे देर हो जाएगी" अंकल में कहा
"ओके अंकल"
"अपना और अक्षिता का ख्याल रखना" अंकल ने कहा और वहा से चले गए
अब एकांश वहा अक्षिता को ढूंढने लगा लेकिन वो घर में थी थी नही
" अक्षिता ? " एकांश ने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला
वो अक्षिता के कमरे की ओर गया और और दरवाजे पर नॉक किया लेकिन हालत वही रही कोई जवाब नही जिसके बाद एकांश ने दरवाज़ा खोला और अंदर कमरे में देखा तो कमरा खाली था, वो रूम वापिस बंद करके ऊपर अपने अपने की ओर बढ़ गया
एकांश अक्षिता के बारे में सोचते हुए अपने कमरे की और बढ़ गया और जैसे ही उसने दरवाजा खोला और अपने कमरे में आया तो वो थोड़ा चौका और जहा था वही खड़ा रह जहा
अक्षिता उसके बेड पर उसकी शर्ट को सीने से चिपकाए सो रही थी, अक्षिता को वहा यू देख एकांश के मन में क्या इमोशंस आ रहे थे वो बताना मुश्किल था, वो धीरे-धीरे उसके पास गया और बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया
उसने अक्षिता के चेहरे पर आए बाल हटाए और उसके शांत चेहरे को देखा, फिर अपनी शर्ट को देखा जो उसके शरीर से चिपकी हुई थी, उसे अपनी उस शर्ट से जलन हो रही थी क्योंकि उसे लग रहा था के काश उस शर्ट की जगह वो खुद होता
उसे उस चीज से जलन हो रही थी जो बेजान थी और उसकी अपनी थी
अपने ही ख्यालों पर एकांश को हसी आ गई और वो फ्रेश हो e बाथरूम की ओर चला गया, फिर बाहर आकर टेबल पर बैठ कुछ फाइल्स देखने लगा, वैसे तो एकांश अपना काम कर रहा था लेकिन दिमाग में ये बात भी चल रही थी के अक्षिता को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, क्यों अक्षिता को इतने दर्द का सामना करना पड़ रहा है
उसने तो कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया था
वो तो सपने में भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकती थी
तो फिर इतना सब क्यूं
एकांश ने अपने कमरे में रखी भगवान की मूर्ति की ओर देखा जो सरिताजी ने वहा एक एक शेल्फ में रखी थी
एकांश अभी अपने ख्यालों में ही खोया था के तभी उसके डैड का फोन आया और उसने फोन उठाया
उसके डैड ने बताया कि उन्हें जर्मनी में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट मिल गया है और एकांश को एक हफ्ते में जर्मनी के लिए रवाना होना था
एकांश अपने डैड की बात सुन काफी खुश हुआ, अक्षिता को बचाने को वो ये पहला कदम था जी सफल हुआ था, उसने अपने डैड को थैंक्स कहा और फोन रखा
एकांश ने एक नजर बेड पर सोती अक्षिता को देखा और सोचा के अब सबसे मुश्किल काम अक्षिता को मनाना है, उसके नही पता था के उसके जाने की बात पर अक्षिता किस तरह रिएक्ट करेगी क्युकी आजकल वो ये सोचकर भी घबरा जाती थी के एकांश उसे छोड़कर चला जायेगा
एकांश अपने कमरे से बाहर आया और अपने दोस्तों को फोन करके ये खबर सुनाई और अक्षिता के बारे में अपनी चिंता भी जाहिर की, डॉक्टर के अपॉइंटमेंट की बात सुन सभी खुश हुए और उससे वादा किया कि वो उसके वहा ना रहने पर अक्षिता के साथ रहेंगे उसका खयाल रखेंगे
एकांश ने अब एक राहत की सास की और वापिस अंदर जाकर।देखा तो अक्षिता नींद में करवाते बदल रही थी, वो चुपचाप जाकर खुर्ची पर बैठ गया और लैपटॉप पर काम करने लगा क्योंकि अब उसे एक हफ़्ते में अपना सारा काम पूरा करना था
"एकांश ?"
एकांश ने अक्षिता को अपना नाम पुकारते सुना तो उसने उसकी तरफ देखा जो बेड पर बैठी थी और आधी बंद आंखो से उसे देख रही थी और काफी प्यारी लग रही थी
"अंश?" अक्षिता ने उसे थोड़ा जोर से पुकारा और एकांश अपने ख्यालों से बाहर आया
" हाँ"
"तुम कब आये?" अक्षिता ने अपनी आँखें मलते हुए पूछा
"मुझे घर आये एक घंटा हो गया है"
"तो तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?"
"अब तुम मेरी शर्ट को पकड़ कर शांति से सो रही थी तो मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता थोड़ा शर्मासी गई, उसे पता ही नही चला था के कब वो उसकी शर्ट को पकड़ कर से गई थी
"तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने बेड से उठते हुए बात बदलते हुए पूछा
"मैं घर चला गया था" एकांश ने लैपटॉप की ओर मुड़ते हुए कहा
"तुमने अपने मॉम डैड से बात की?" अक्षिता ने पूछा
"हाँ" एकांश ने कहा और अक्षिता ने मुस्कुराते हुए उसे देखा
और एकांश उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखने के लिए कुछ भी कर सकता था
"गुड बॉय" अक्षिता ने एकांश के बालों को सहलाते हुए कहा
"ओय! आई एम नॉट ए बॉय, आई एम ए मैन..... एक्चुअली a हॉट एंड हैंडसम मैन" एकांश ने कहा
अक्षिता एकांश की बात सुन दबी आवाज में उसे सेल्फ ऑबसेड लेकिन एकांश ने सुन लिया
"तुमने कुछ कहा?" एकांश ने उसके पास जाकर पूछा
"नही... कुछ नहीं" अक्षिता ने पीछे हटते हुए कहा
"सेल्फ ऑबसेस्ड, और क्या?" एकांश ने पूछा और अक्षिता हंसते हुए वहा से भाग ली और एकांश उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा
वो दोनों हँसते हुए कमरे में इधर उधर भाग रहे थे और आखिर में एकांश ने उसे पकड़ लिया और वो उसे गुदगुदी करने लगा और वो जोर-जोर से हंसने लगी।l
"अंश रुको!" अक्षिता ने हंसते हुए कहा
एकांश ने उसकी कमर को पीछे से पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया और जब उसने उसे वैसे ही घूमने लगा और वो जोर से हंसने लगी
कुछ देर बाद एकांश ने अक्षिता को नीचे उतारा, दोनो ही हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख हस रहे थे
सरिताजी भी अब तक घर आ चुकी थी और उन्हें ढूँढते हुए ऊपर आई थी और उनकी हरकतें देखकर वहीं खड़ी रह गई थी
एकांश और अक्षिता को वैसे एकदूसरे के साथ देख उनकी आंखे भर आई थी
बहुत दिनों बाद उन दोनों को ऐसे देखकर सरिताजी को खुशी और उम्मीद की किरण दिख रही थी, उन्होंने आसमान की तरफ देखा और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की कि वे दोनों हमेशा ऐसे ही खुश रहें और साथ रहें...
To doctor ka appointment mil gaya, very good abhi ekansh to jayega hi Germany to fir kyu na akshita ko bhi saath le jaye, uski bhi ghumaai ho jayengi, or thoda hawa paani badlega, kaafi samay baad ekansh apne maa baap se mila, kuch purane gile sikve door huye, or unke chehre ki ronak apne laal ko dekh kar laut aayi, ekansh ka ghar jaana bhi uske liye faydemand hi sabit hua, kyu ki isi bahane unke pita ne dr. Ka appointment dilwa diya ek ummeed to jagi Aakhir, update ne ek bar fir bhavuk kar diya mitra, akshita aur ekansh ki nok jhok ant me khusi ka meetha sa ras bhi ghol gai, to is update me, complete package tha, bole to jhama-jham update, shandaar
"व्हाट द हेल? हमे उनका अपॉइन्ट्मन्ट नहीं मिला से क्या मतलब है तुम्हारा?" एकांश फोन पर बात करते हुए चिल्लाया
“सॉरी सर, लेकिन हमने हमारी ओर से पूरी कोशिश की थी" दूसरी ओर से बात करते व्यक्ति ने डरते हुए कहा
"मुझे नहीं पता तुम क्या करोगे और कैसे करोगे.... मुझे जल्द से जल्द उनका अपॉइन्ट्मन्ट चाहिए..... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है....." एकांश ने फोन पर चिल्लाते हुए कहा और फोन काट दिया
अभी एकांश ने फोन काटा ही था के उसका फोन वापिस बज उठा और उसने देखा कि उसके पिता का फोन था और एकांश अभी उनसे बात नहीं करना चाहता था, असल में वो अभी किसी से भी बात नहीं करना चाहता
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अक्षिता ने अपने सामने बैठे बंदे को देखा जो अपने सिर को हाथों में पकड़े हुए बिस्तर पर बैठा था और लगातार बज रहे अपने फोन को देख रहा था
उसने कल भी डाइनिंग टेबल पर देखा था जब एकांश ने किसी की कॉल को इग्नोर कर दिया था
अक्षिता ने एकांश को इतना चिंतित कभी नहीं देखा था
वो धीरे से उसके कमरे में गई और उसके फोन की तरफ देखा जो फिर से बज रहा था, एकांश की मा उसे बार बार कॉल कर रही थी और वो फोन नहीं उठा रहा था
"क्या हुआ?" अक्षिता ने धीरे से पूछा
एकांश अक्षिता की आवाज़ सुनकर चौका और उसने ऊपर देखा जहा अक्षिता खडी थी
"कुछ नहीं"
"एकांश, तुम बहुत परेशान लग रहे हो.... क्या हुआ है बताओगे?"
"कुछ नहीं हुआ है" एकांश ने अपना फोन बंद करते हुए कहा
"तुम अपनी माँ का फोन क्यों नहीं उठाते?"
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसके जवाब की राह देख रही थी लेकिन वो कुछ नहीं बोला
"मैंने तुमसे कुछ पूछा है एकांश" अक्षिता ने सीरीअस टोन मे कहा
"तुम्हारा इससे कुछ लेना देना नहीं है" एकांश ने कहा और वहा से जाने लगा लेकिन अक्षिता के शब्दों ने उसे रोक दिया
"अपनी मॉम को यू इग्नोर मत करो.... माना तुम उनसे नाराज हो या उनसे बात नहीं करना चाहते लेकिन उन्हे यू इग्नोर मत... हम नहीं जानते के हमारी जिंदगी मे आगे क्या होने वाला है... लाइफ इस अनप्रीडिक्टबल... ऐसा ना हो के आगे इस नाराजी पर पछताना पड़े और फिर माफी मांगने मे बहुत देर हो जाएगी, मुझे नहीं पता के क्या बात है लेकिन प्लीज उनसे बात करो और इसे सॉर्ट करो" अक्षिता ने कहा और अपने आँसू रोकते हुए वहाँ से चली गई
एकांश भी अक्षिता की कही बातों के बारे मे सोचने लगा था, उसकी बात एकदम सच थी, बाद मे पछताने से क्या ही होगा था और ये उसने अक्षिता के मामले मे पहले ही इक्स्पीरीअन्स किया था और अब वो ऐसा कोई रिस्क नहीं चाहता था, हालांकि वो अपनी मा की बात को भुला नहीं था वो आज भी अक्षिता की बीमारी उससे छिपाने को लेकर उनसे नाराज था लेकिन फिर अब एकांश ने उनसे बात करने इस मामले को सुलझाने का सोचा
वो तुरंत रेडी होकर अपने पेरेंट्स के घर की ओर निकल गया, एकांश को घर मे देख वो दोनों काफी खुश हुए और उसके पिता ने उसे गले लगा लिया वही उसकी मा उसके सामने आने से थोड़ा झिझक रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने उसे गले लगा लिया
एकांश ने बहुत दिनों बाद अपनी मा के उस ममतामई स्पर्श को महसूस किया था उसने भी अपनी मा को गले लगाया जिससे वो भी थोड़ी खुश हो गई
"एकांश, बेटा कैसे हो तुम?" एकांश की मा ने एकांश के गाल को सहलाते हुए पूछा
"ठीक हूं" एकांश ने धीरे से कहा
"तुम हमारी कॉल का जवाब क्यों नहीं दे रहे थे?" सीनियर रघुवंशी ने पूछा
"मैं बिजी था" एकांश ने अपने पिता से नजरे चुराते हुए कहा
"और तुम यहाँ क्यों आये हो?" एकांश के पिता ने आगे का सवाल किया
"यह घर है उसका... वह यहा कभी भी आ सकता है" एकांश की मा ने उसके पिता के सवाल का जवाब देते हुए कहा
"अरे सॉरी.... मुझे तो ये पूछना चाहिए था कि तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?" एकांश के पिता ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा
अब इसपर क्या बोले एकांश को समझ नहीं आ रहा था वो इधर उधर देखने लगा वही उसकी मा भी अपने पति के बोलने का मतलब समझ गई थी वो जान गई थी के एकांश को वापिस घर आने के लिए एक ही इंसान मना सकता था
"अब आप चुप रहो और मुझे मेरे बेटे से बात करने दो?" साधनाजी (एकांश की मा) ने मुकेशजी (एकांश के पिता) को चुप कराते हुए कहा जिसपर एकांश मुस्कुरा उठा
"अक्षिता कैसी है?" साधना जी ने चिंतित होकर पूछा और इस सवाल पर एकांश थोड़ा चौका
हालांकि वो जानता था कि उनलोगों को पहले से ही उसके ठिकाने के बारे में अंदाजा था, लेकिन उसने यह उम्मीद नहीं की थी कि उन्हें पता चल जाएगा कि वो अक्षिता के साथ था
"ठीक है......" एकांश ने हताश स्वर मे कहा
"सब ठीक है बेटे?" मुकेश जी ने भी चिंतित स्वर मे पूछा
"अभी तो ठीक ही है डैड.... लेकिन कभी भी कुछ भी हो सकता है" एकांश ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा
"हम उसके इलाज के लिए सबसे बढ़िया डॉक्टरों से कन्सल्ट करेंगे बेटा.... तुम चिंता मत करो" मुकेश जी ने मुस्कुराते हुए एकांश को आश्वासन दिया
"दरअसल, जर्मनी में एक डॉक्टर है जो ऐसे मामलों का स्पेशलिस्ट है, मैंने उसे अक्षिता के मामले की जांच करने के लिए भारत आने के लिए राजी करने की कोशिश की, लेकिन वो बस एक पैशन्ट के लिए आने के लिए राजी नहीं हो रहा, कह रहा है जर्मनी मे कई पैशन्टस् को छोड़ना पड़ेगा" एकांश ने उदास होकर कहा
"तो फिर अब क्या करने का सोचा है?"
"मैं जर्मनी जाकर अपनी रिपोर्ट्स उसे दिखाने, उसकी सलाह लेने और उसे मनाने की सोच रहा हूँ" एकांश ने कहा
"ये ठीक रहेगा” साधना जी ने कहा
"हमें उसे ठीक करने के लिए हर कोशिश करके देखनी चाहिए" साधना जी ने एकांश को देखते हुए कहा और फ़र मुकेश जी की ओर मुड़ी
"आपका एक कोई दोस्त जर्मनी में है ना जिसकी फेमस होटल चैन है?" साधनाजी ने पूछा
"हाँ...."
"तो फिर उससे कहो कि वो एकांश की डॉक्टर से मिलने में मदद करे और डॉक्टर को भारत आने के लिए राजी भी करे" साधना जी ने सलाह दी और उनकी बात सुन एकांश और मुकेश जी ने भी इसमे हामी भारी क्युकी ये उपाय सही मे कारगर साबित हो सकता था और वो डॉक्टर भारत आने के लिए राजी हो सकता था
"मैं उसे अभी कान्टैक्ट करता हु" और मुकेश जी अपने जर्मनी वाले दोस्त को फोन करने चले गए वही साधना जी एकांश की ओर मुड़ी हो नाम आँखों से उन्हे देख रहा था
"एकांश?"
एकांश से और नहीं रुका जा रहा था और उसने कस कर अपनी मा को गले लगा लिया
एकांश के इस रिएक्शन से साधनाजी थोड़ा चौकी, लेकिन वो खुश थी, उनका बेटा उनके पास था और जब उन्होंने उसे रोते सुना तो वो उसे चुप कराने लगी, उन्होंने एकांश को रोने देना ही बेहतर समझा, वो एकांश की पीठ सहला रही थी वो जानती थी के एकांश अपने अंदर बहुत कुछ दबाए था जिसका बाहर निकालना जरूरी था
"मॉम, मुझे बहुत डर लग रहा है" एकांश ने धीमे से कहा वही साधना जी चुप चाप उसकी बात सुनती रही
"मुझे डर लग रहा है कि उसे कुछ हो न जाए, अगर मैं उसे नहीं बचा पाया तो मैं जी नहीं पाऊंगा मॉम...... मैं जी नहीं पाऊंगा......" एकांश ने रोते हुए कहा, साधना जी की भी आंखे नम थी
इतने दिनों से एकांश के अंदर दबे सभी ईमोशनस् बाहर आ रहे थे
"शशश...... उसे कुछ नहीं होगा बेटे, वो बहुत अच्छी लड़की है..... उसके लिए तुम्हारा प्यार और उसे बचाने की तुम्हारी इच्छाशक्ति जरूर उसकी जान बचाएगी, जब तक तुम उसके साथ हो उसे कुछ नहीं होगा और मुझे अपने बेटे पर भरोसा है कि वो अपने प्यार को कुछ नहीं होने देगा" उन्होंने एकांश के चेहरे से आँसू साफ करते हुए कहा
"यू नीड़ टु बी स्ट्रॉंग बच्चा, तुम्हें अक्षिता के लिए स्ट्रॉंग रहना होन" साधना जी ने एकांश का मठ चूमते हुए कहा
"आइ मिसड् यू मॉम" एकांश ने अपना सर अपनी मा की गोद मे टिकाते हुए कहा और साधना जी की आँखों से भी आँसू बह निकले, उन्हे नहीं पता के वो क्यू रो रही थी, ये आँसू खुशी के थे या गम के, उन्हे समझ नहीं आ रहा था के बेटा वापिस मिल गया इसपर खुश हो या आने वाले भविष्य मे बेटे को मिलने वाले दर्द के लिए दुखी
"आइ मिसड् यू टू बेटा" उन्होंने एकांश की पीठ थपथपाते हुए कहा और वो उनकी गोद में एक बच्चे की तरह सो गया
मुकेश जी अपनी पत्नी और बेटे के बीच के इस पूरे सीन को देख रहे थे, उनकी आँखों में भी आँसू थे, उन्हें खुशी थी कि आखिरकार उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया था , लेकिन आने वाले समय मे क्या होगा ये सोचकर उनका मन भी डर रहा था... वो जानते थे के उनका बीटा उस राह पर था जहा उसका दिल टूटने के चांस बहुत ज्यादा थे और यही सोच उनका दिल बैठा जा रहा था...
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एकांश जब घर में आया और उसने चारो ओर देखा तो घर में एकदम शांति थी, चारो ओर सन्नाटा था और घर एकदम खाली था
"एकांश ?"
आवाज सुनकर एकांश मुडा तो उसने देखा के अक्षिता के पिता वहा खड़े थे
"तुम्हें कुछ चाहिए?" उन्होंने पूछा
"आंटी कहाँ हैं?"
"वो पड़ोस में गई है वहा कुछ प्रोग्राम है तो, अभी आजाएगी" अक्षिता के पिता ने जूते पहनते हुए कहा
"आप कहाँ जा रहे हो?" एकांश ने उनसे पूछा
"मैं अपने दोस्त से मिलने जा रहा हूँ, अपनी आंटी से कहना कि मेरा इंतज़ार न करें..... मुझे देर हो जाएगी" अंकल में कहा
"ओके अंकल"
"अपना और अक्षिता का ख्याल रखना" अंकल ने कहा और वहा से चले गए
अब एकांश वहा अक्षिता को ढूंढने लगा लेकिन वो घर में थी थी नही
" अक्षिता ? " एकांश ने उसे पुकारा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला
वो अक्षिता के कमरे की ओर गया और और दरवाजे पर नॉक किया लेकिन हालत वही रही कोई जवाब नही जिसके बाद एकांश ने दरवाज़ा खोला और अंदर कमरे में देखा तो कमरा खाली था, वो रूम वापिस बंद करके ऊपर अपने अपने की ओर बढ़ गया
एकांश अक्षिता के बारे में सोचते हुए अपने कमरे की और बढ़ गया और जैसे ही उसने दरवाजा खोला और अपने कमरे में आया तो वो थोड़ा चौका और जहा था वही खड़ा रह जहा
अक्षिता उसके बेड पर उसकी शर्ट को सीने से चिपकाए सो रही थी, अक्षिता को वहा यू देख एकांश के मन में क्या इमोशंस आ रहे थे वो बताना मुश्किल था, वो धीरे-धीरे उसके पास गया और बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया
उसने अक्षिता के चेहरे पर आए बाल हटाए और उसके शांत चेहरे को देखा, फिर अपनी शर्ट को देखा जो उसके शरीर से चिपकी हुई थी, उसे अपनी उस शर्ट से जलन हो रही थी क्योंकि उसे लग रहा था के काश उस शर्ट की जगह वो खुद होता
उसे उस चीज से जलन हो रही थी जो बेजान थी और उसकी अपनी थी
अपने ही ख्यालों पर एकांश को हसी आ गई और वो फ्रेश हो e बाथरूम की ओर चला गया, फिर बाहर आकर टेबल पर बैठ कुछ फाइल्स देखने लगा, वैसे तो एकांश अपना काम कर रहा था लेकिन दिमाग में ये बात भी चल रही थी के अक्षिता को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, क्यों अक्षिता को इतने दर्द का सामना करना पड़ रहा है
उसने तो कभी किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया था
वो तो सपने में भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकती थी
तो फिर इतना सब क्यूं
एकांश ने अपने कमरे में रखी भगवान की मूर्ति की ओर देखा जो सरिताजी ने वहा एक एक शेल्फ में रखी थी
एकांश अभी अपने ख्यालों में ही खोया था के तभी उसके डैड का फोन आया और उसने फोन उठाया
उसके डैड ने बताया कि उन्हें जर्मनी में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट मिल गया है और एकांश को एक हफ्ते में जर्मनी के लिए रवाना होना था
एकांश अपने डैड की बात सुन काफी खुश हुआ, अक्षिता को बचाने को वो ये पहला कदम था जी सफल हुआ था, उसने अपने डैड को थैंक्स कहा और फोन रखा
एकांश ने एक नजर बेड पर सोती अक्षिता को देखा और सोचा के अब सबसे मुश्किल काम अक्षिता को मनाना है, उसके नही पता था के उसके जाने की बात पर अक्षिता किस तरह रिएक्ट करेगी क्युकी आजकल वो ये सोचकर भी घबरा जाती थी के एकांश उसे छोड़कर चला जायेगा
एकांश अपने कमरे से बाहर आया और अपने दोस्तों को फोन करके ये खबर सुनाई और अक्षिता के बारे में अपनी चिंता भी जाहिर की, डॉक्टर के अपॉइंटमेंट की बात सुन सभी खुश हुए और उससे वादा किया कि वो उसके वहा ना रहने पर अक्षिता के साथ रहेंगे उसका खयाल रखेंगे
एकांश ने अब एक राहत की सास की और वापिस अंदर जाकर।देखा तो अक्षिता नींद में करवाते बदल रही थी, वो चुपचाप जाकर खुर्ची पर बैठ गया और लैपटॉप पर काम करने लगा क्योंकि अब उसे एक हफ़्ते में अपना सारा काम पूरा करना था
"एकांश ?"
एकांश ने अक्षिता को अपना नाम पुकारते सुना तो उसने उसकी तरफ देखा जो बेड पर बैठी थी और आधी बंद आंखो से उसे देख रही थी और काफी प्यारी लग रही थी
"अंश?" अक्षिता ने उसे थोड़ा जोर से पुकारा और एकांश अपने ख्यालों से बाहर आया
" हाँ"
"तुम कब आये?" अक्षिता ने अपनी आँखें मलते हुए पूछा
"मुझे घर आये एक घंटा हो गया है"
"तो तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?"
"अब तुम मेरी शर्ट को पकड़ कर शांति से सो रही थी तो मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता थोड़ा शर्मासी गई, उसे पता ही नही चला था के कब वो उसकी शर्ट को पकड़ कर से गई थी
"तुम कहाँ थे?" अक्षिता ने बेड से उठते हुए बात बदलते हुए पूछा
"मैं घर चला गया था" एकांश ने लैपटॉप की ओर मुड़ते हुए कहा
"तुमने अपने मॉम डैड से बात की?" अक्षिता ने पूछा
"हाँ" एकांश ने कहा और अक्षिता ने मुस्कुराते हुए उसे देखा
और एकांश उसे इस तरह मुस्कुराते हुए देखने के लिए कुछ भी कर सकता था
"गुड बॉय" अक्षिता ने एकांश के बालों को सहलाते हुए कहा
"ओय! आई एम नॉट ए बॉय, आई एम ए मैन..... एक्चुअली a हॉट एंड हैंडसम मैन" एकांश ने कहा
अक्षिता एकांश की बात सुन दबी आवाज में उसे सेल्फ ऑबसेड लेकिन एकांश ने सुन लिया
"तुमने कुछ कहा?" एकांश ने उसके पास जाकर पूछा
"नही... कुछ नहीं" अक्षिता ने पीछे हटते हुए कहा
"सेल्फ ऑबसेस्ड, और क्या?" एकांश ने पूछा और अक्षिता हंसते हुए वहा से भाग ली और एकांश उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा
वो दोनों हँसते हुए कमरे में इधर उधर भाग रहे थे और आखिर में एकांश ने उसे पकड़ लिया और वो उसे गुदगुदी करने लगा और वो जोर-जोर से हंसने लगी।l
"अंश रुको!" अक्षिता ने हंसते हुए कहा
एकांश ने उसकी कमर को पीछे से पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया और जब उसने उसे वैसे ही घूमने लगा और वो जोर से हंसने लगी
कुछ देर बाद एकांश ने अक्षिता को नीचे उतारा, दोनो ही हाफ रहे थे और एकदूसरे को देख हस रहे थे
सरिताजी भी अब तक घर आ चुकी थी और उन्हें ढूँढते हुए ऊपर आई थी और उनकी हरकतें देखकर वहीं खड़ी रह गई थी
एकांश और अक्षिता को वैसे एकदूसरे के साथ देख उनकी आंखे भर आई थी
बहुत दिनों बाद उन दोनों को ऐसे देखकर सरिताजी को खुशी और उम्मीद की किरण दिख रही थी, उन्होंने आसमान की तरफ देखा और हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की कि वे दोनों हमेशा ऐसे ही खुश रहें और साथ रहें...