Update 46
एकांश अब अक्षिता के आसपास हमेशा थोड़ा सतर्क रहने लगा था वो तीन दिन से ऑफिस भी नहीं गया था क्योंकि वो अक्षिता को एक मिनट के लिए भी अपनी नजरों से दूर नहीं करना चाहता था
वो जानता है कि उसे अक्षिता को एक हफ्ते के लिए यहां छोड़कर जर्मनी जाना था, लेकिन अब वो अक्षिता बिहेवियर देखकर थोड़ा हिचकिचा रहा था...
उसने ये महसूस किया था के अक्षिता आजकल बहुत जाएगा चिंतित रहती थी, खास तौर पर उसे जुड़े मामलो को लेकर, एकांश ने पहली बार अक्षिता की आंखो में डर देखा था, हालांकि उसकी तबियत के बारे में वो अच्छी तरह जानती थी लेकिन उसने उस सिचुएशन में अपनी हिम्मत नही खोई थी लेकिन हालात बदल रहे थे
अक्षिता हर पल परेशान सी डरी हुई रहती थी और एकांश जब भी उसकी आंखो में डर देखता उसके दिल में चुभन सी होती थी और एकांश इसे दूर करने के लिए कुछ भी कर सकता था, बल्कि कर रहा था, वो जर्मनी जा रहा था ताकि अक्षिता को इस दर्द से तकलीफ से राहत दिला सके अब भले उसके लिए उसे उससे दूर ही क्यों न रहना पड़े और बस इसमें एक ही समस्या थी, उसे अक्षिता को बताना था के वो कुछ दिनों के लिए उसे दूर जा रहा है, उसे नही पता था के उसके जाने की बता पर अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी लेकिन उसे अक्षिता को समझाना था ही
एकांश ने अक्षिता को देखा जो मुस्कुरा रही थी, उसके चेहरे से मुस्कान हट नही रही थी, एकांश का ऑफिस ना जाना उसके साथ समय बिताना उसे खुश कर रहा था, और वो भी यही चाहता था की वो खुश रहे
एकांश अक्षितांके दिमाग में किसी तरह का तनाव नही लाना चाहता था और उसे डर था के जब उसे जर्मनी जाना पड़ेगा तब वो वापिस टेंशन लेना शुरू कर देगी
"एकांश?"
अक्षिता की आवाज़ ने एकांश को उसके ख्यालों से बाहर निकाला
"तुम क्या सोच रहे हो?"
"कुछ नहीं... बस कुछ ऑफिस के काम के बारे में सोच रहा था" उसने कहा
"तुम्हे ऑफिस जाना है क्या?" पूछते हुए अक्षिता का चेहरा उतर गया
"नहीं तो, मैंने कहा था न कि मैं आज भी ऑफिस नहीं जा रहा" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा और अक्षिता भी उसकी ओर देखकर मुस्कुराई
"आओ चलो लंच तैयार है"
"वैसे तुम इतनी खुश क्यों हो?" एकांश ने अक्षिता से पूछा
"मुझे नहीं पता, मैं बस खुश हूं" अक्षिता ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा
"हाँ, बस खुश हो, इसीलिए तो तुमने इतनी सब डिशेज बनाई हैं" सरिताजी ने डाइनिंग टेबल पर आते हुए कहा जिसपर अक्षिता चुप रही
"ये सब तुमने बनाया है?" एकांश ने आश्चर्य से पूछा और अक्षिता ने हाँ में अपना सिर हिला दिया
"वाह! खाना दिख तो बढ़िया रहा है बस उम्मीद है के इसका स्वाद भी बढ़िया हो" एकांश ने हर एक डिश को देखते हुए कहा जिसपर अक्षिता ने उसे घूरकर देखा, जबकि सरिताजी उनकी बात पर हंस रही थी
"अरे यार! मैं खाना बना सकती हूँ, तुम जानते हो और मैंने इतनी सब मेहनत की है, तुम्हारे लिए ये सब बनाया हैं और तुम यहा मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो" अक्षिता ने मुंह बनाते हुए कहा
"तुमने ये सब मेरे लिए बनाया है?" एकांश ने पूछा और अक्षिता बस उसे देखती रही
"हा मतलब मैंने ये सभी के लिए बनाया है" अक्षिता ने नीचे देखते हुए कहा
"अरे वाह! आज कुछ खास है क्या जो इतना सब बना है?" अक्षिता के पिता जी ने एकांश के बाजू की सीट पर बैठते हुए कहा
"ख़ास बात ये है कि आज आपकी बेटी ने ये सब बनाया हैं" सरिता जी ने कहा जिसपर अक्षिता वापिस से मुस्कुरा दी
"सच? एकांश बेटा, तुम जानते हो, अक्षिता बहुत अच्छा खाना बनाती है" अक्षिता के पापा ने कहा और खाना खाने लगे
एकांश ने अक्षिता को देखा, जो शरमा कर नीचे देख रही थी
"म्म्म्म्म.... ये काफी टैस्टी है" एकांश ने अपनी उंगलियाँ चाटते हुए हुए कहा और अक्षिता ने मुस्कुराते हुए उसे और खाना परोसा वो सभी हँसते-बोलते हुए खुशी-खुशी अपने खाने का आनंद ले रहे थे
एकांश की इच्छा थी कि समय यहीं रुक जाए और ये खुशहाल परिवार हमेशा यू ही हसता रहे उसने अक्षिता को देखा जो काफी खुश लग रही थी और वो बस यही तो चाहता था
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"तुम्हें उसे बता देना चाहिए"
एकांश ने सुना और मुड़कर सरिताजी को देखा
"जानता हु.... बस समझ नहीं आ रहा के कैसे बताऊ"
"मैं सिर्फ़ जर्मनी की बात नहीं कर रही एकांश, मैं ये भी कह रही हूँ कि तुम्हें उसे सच बताना चाहिए कि तुम यहाँ क्यों हो" सरिताजी ने एकांश को देखते हुए कहा
"नहीं! मैं... मैं ये नहीं कर पाऊँगा, वो मुझे वापिस अपने से दूर कर देगी" एकांश ने जल्दी से कहा
"नहीं, वो तुम्हें काही जाने नहीं देगी, वो खुद तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती" सरिताजी ने कहा
" लेकिन...."
"बेहतर होगा कि तुम उसे सच बता दो, अगर उसे खुद ही पता चल गया तो शायद टूट जाएगी"
एकांश ने एक लंबी सास ली
उसे नहीं पता था कि ज़िंदगी उससे और कितने इम्तिहान लेगी, उसके लिए ये सब सहना पहले से ही बहुत मुश्किल था और अब अगर वो उससे सच बोल देगा..... तो उसे ये भी नहीं पता कि वो कैसे रीऐक्ट करेगी
वो सच बताकर उसे और चिंता मे नहीं लाना चाहता था , क्योंकि इससे उसकी हालत और खराब हो सकती थी
अभी के लिए उसे उसे कुछ भी न बताने का फैसला किया और जर्मनी से आने के बाद वो इस बारे में देखेगा ऐसा सोचा
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अगले दिन सुबह एकांश तैयार होकर नीचे चला आया तो उसने देखा कि अक्षिता बाहर पौधों को पानी दे रही थी
" अक्षिता?" एकांश की आवाज सुन अक्षिता उसकी ओर मुड़ी
"तुम कहीं जा रहे हो क्या?" अक्षिता ने एकांश से पूछा
"हाँ और तुम भी मेरे साथ चल रही हो" एकांश ने कहा
"कहाँ?"
"सवाल मत करो बस चलो.... जाओ और तैयार हो जाओ" एकांश ने कहा और अन्दर चला गया और अक्षिता भी उसे पीछे पीछे अंदर चली गई
अक्षिता तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आई तो उसने देखा कि एकांश कीसी से फोन पर बात कर रहा था और उसकी माँ उत्सुकता से उसकी ओर देख रही थी
"माँ?"
सरिता जी ने अक्षिता की ओए देखा और कहा
"जाओ, वो तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था"
अब एकांश ने मुड़कर उसकी ओर देखा
“चलो" एकांश ने कहा और बाहर चला गया और अक्षिता भी उसके पीछे बाहर आई और वो दोनों कार में बैठ गये और एकांश कार चलाने लगा
एकांश बिना किसी उद्देश्य के गाड़ी चला रहा था और सोच रहा था कि उसे कैसे बताए, जबकि अक्षिता इस बात से अब चिढ़ रही थी
"एकांश, हम कहाँ जा रहे हैं?" अक्षिता ने झुंझलाकर पूछा
"मुझे नहीं पता, मैं तो बस तुम्हें बाहर ले जाना चाहता था" एकांश ने आगे देखते हुए कहा और अक्षिता बस उसे देखने लगी
"और वो क्यों?" अक्षिता ने पूछा
"मैं बस तुमसे कुछ बात करना चाहता था, तुम्हारे दिमाग मे कोई जगह हो तो बताओ" एकांश ने कहा और वापिस गाड़ी चलाने पे ध्यान देने लगा वही अक्षिता ने खिड़की से बाहर देखने लगी
"एकांश रुको!" अक्षिता ने अचानक से जोर से कहा और एकांश को एकदम गाड़ी रोकने पे मजबूर कर दिया
"क्या हुआ?" एकांश ने पूछा
"चलो वहा चलते है" अक्षिता ने एक जगह की ओर इशारा करते हुए कहा
"मंदिर में?"
"हाँ" अक्षिता ने कहा और उसे मना करने का मौका दिए बिना कार से नीचे उतर गई
"तुम यहीं रुको, मैं जाकर कार पार्क करके आता हूँ" एकांश ने कहा और अक्षिता उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और एकांश अपनी कार पार्क करने चला गया
दोनों मंदिर मे आए और हाथ जोड़े भगवान के दर्शन करने लगे, अक्षिता अपनी आंखे बंद कर भगवान से प्रार्थना कर रही थी वही एकांश वही उसके बगल मे खड़ा बस उसे देख रहा था, उसे भगवान की मूर्ति की ओर देखा और हाथ जोड़ कर उनसे अक्षिता को बचाने की बिनती करने लगा और भगवान से अक्षिता की सलामती मांगते हुए उसकी आंखे भाग आई थी लेकिन ये अक्षिता देखे उससे पहले उसने अपने आँसू पोंछ लिए
पंडित जी उन दोनों को प्रसाद दिया और उन दोनों को कपल समझते हुए हमेशा स्वस्थ और खुश रहने का आशीर्वाद दिया
एकांश भी यही कामना करते हुए मुस्कुराया जबकि अक्षिता चुप थी
वो उसे मंदिर के दूसरी ओर ले गई जहा का वातावरण एकदम शान्त था
"अब कहो क्या बात करनी है" अक्षिता ने कहा और एकांश ने उसकी ओर देखा और एक लंबी सास ली
"मुझे जर्मनी जाना है" उसने सीधे उसकी आँखों में देखते हुए कहा और ये बात सुन एकदम से अक्षिता के चेहरे का रंग उड गया और एकांश ने उसकी आँखों मे डर की झलक देखि
"क्यों?" उसने धीमे से पूछा
"ऑफिस का काम है.... मुझे वहाँ एक डील फाइनल करनी है" एकांश ने आगे कहा
"कितने दिनों के लिए?"
"शायद एक हफ्ते के लिए" एकांश ने कहा और अक्षिता चुप हो गई और कुछ सोचते हुए नीचे देखने लगी वही एकांश भी थोड़ा डर था था,
अक्षिता एकदम उदास हो गई थी, उसे नहीं पता था कि उसके पास कितना समय बचा था और वो एकांश के साथ अपनी ज़िंदगी का हर पल जीना चाहती थी अब उसे स्वार्थी कहो या कुछ और लेकिन वो नहीं चाहती थी कि एकांश उसे छोड़कर कही भी जाए
"जाना ज़रूरी है अक्षिता, वरना मैं नहीं जाता... देखो मैं वादा करता हूँ कि मैं तुम्हें रोज़ाना फ़ोन करूँगा और तुमसे बात करूँगा... ठीक है" एकांश ने सीरीअस टोन से कहा और अक्षिता बस उसकी आँखों मे देख रही थी
"कब जा रहे हो?" अक्षिता ने पूछा
"दो दिन बाद" एकांश ने कहा
"ठीक है" अक्षिता ने उदास होकर नीचे देखते हुए कहा अब एकांश कुछ कहने की वाला था के अक्षिता ने उसे बीच मे ही रोक दिया
"लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं" अक्षिता ने कहा
"शर्तें?" एकांश ने अक्षिता को गौर से देखते पूछा
"हाँ" अक्षिता ने भी एकांश की आंखो में देखते हुए कहा
"और क्या शर्ते है तुम्हारी?" एकांश ने अक्षिता के प्यार से देखते हुए पूछा
"एक ये की तुम दो दिनों बाद जाने वाले वो इसीलिए ये पूरे दो दिन तुम मेरे साथ बिताओगे और कोई काम नहीं होगा"
"मंजूर... और कुछ?" एकांश ने अपनी मुस्कान छुपाते हुए कहा
"और वहां जाने के बाद तुम मुझे फोन नही करोगे...." अक्षिता अभी आगे बोलने की वाली थी के एकांश बोल पड़ा
"क्या? लेकिन अक्षिता...." लेकिन अक्षिता ने हाथ दिखा कर उसे रोका
"एकांश, पहले पूरी बात सुन तो लो" अक्षिता ने थोड़ा झल्लाकर कहा
"तुम्हें मुझे सिर्फ फोन ही नही करोगे बल्कि वीडियो कॉल भी करोगे ताकि मुझे पता चल जाए कि तुम ठीक हो" अक्षिता ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा
"अक्षिता मैडम आपकी यू शर्त भी मंजूर, मुझे भी पता चल जाएगा कि तुम ठीक हो" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा
"तुम्हें अपना खयाल रखोगे, खाना टाइम पर खाओगे और टाइम पर नींद लोगे, मुझे पता है कि तुम काम करते वक्त सब कुछ भूल जाते हो" अक्षिता ने कहा
"ये भी मंजूर...... और कुछ?" एकांश ने अक्षिता को सैल्यूट मारते हुए कहा जिसपर वो हस दी
"अगर मुझे कुछ और याद आया तो मैं तुम्हारे जाने से पहले तुम्हे बता दूंगी" अक्षिता ने मुस्कुराते हुए कहा
"डन, लेकिन मुझे भी तुमसे वादा चाहिए तुम अपना भी ख्याल रखोगी" एकांश ने कहा और अक्षिता ने हा में सिर हिलाते हुए उसकी तरफ देखा और अक्षिता प्यार से एकांश को निहार रही थी, वो उसकी कितनी केयर करता है वो जानती थी और वो सच रही थी के वो कितनी लकी है के एकांश उसकी जिंदगी में है
वो चाहती थी कि वो हमेशा उसके साथ रहे, उसका बस चलता तो वो एकांश को एक पल अपनी नजरो से ओझल नहीं होने देती, लेकिन वो तो ये भी नहीं जानती थी कि वो उसके वापस आने तक जिंदा रहेगी भी या नहीं.. वो बस एकांश को अपनी नजरो में भर लेना चाहती थी
एकांश भी एकटक अक्षिता को निहार रहा था उसकी आंखो में देख रहा था जिसमे डर और उदासी थी लेकिन एक और भाव भी था, उसने अक्षिता की आंखो में अपने लिए प्यार देखा था और वो पूरी जिंदगी उसे यू ही देख सकता था
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अगले दो दिन एकांश और अक्षिता साथ ही थे, अक्षिता एकांश को अपने से दूर नही जाने देना चाहती थी लेकिन वो ये भी जानती थी के वो हमेशा के लिए एकांश को बांध कर नही रख सकती थी, उसे भी काम थे उसे भी एक कंपनी चलानी थी और वो अब कमसे कम से इस बार से तो खुश थी के उसे एकांश के साथ वक्त बिताने मिला था और वो उसे छोड़ इन दो दिनों में कही नही गया था
अक्षिता ने की तरफ देखा जो अपना बैग पैक कर रहा था, वो आज सुबह ही अपने घर हो आया था था ताकि वहा से कुछ कपड़े, बैग और बाकी ज़रूरी सामान ला सके जो उसे जर्मनी जाने के लिए चाहिए था, वो कल जा रहा था अक्षिता बस उसे देख रही थी अपनी आंखों में भर रही थी वो इस डर में थी के शायद वो एकांश को अब दोबारा फिर कभी देख न पाए
अक्षिता की आंखे भर आ रही थी लेकिन वो अपने आंसुओं को रोक रही थी क्युकी वो एकांश को परेशान नही करना चाहती थी और बस इसीलिए उसके सामने मुस्कुरा रही थी
एकांश भी अक्षिता के मन मस्तिष्क में चल रही इस उथल पुथल को अच्छी तरह समझ रहा था, वो जान रहा था के अक्षिता के दिमाग में क्या चल रहा होगा लेकिन इस मामले में वो कुछ नही कर सकता था, उसने बस ऊपरवाले से प्रार्थना की के अक्षिता को कुछ ना हो,
एकांश को उसके दिमाग में चल रही उथल-पुथल समझ आ गई। वह समझ गया कि वह क्या सोच रही है और उसने भगवान से प्रार्थना की कि उसकी अक्षिता पस्थिति में उसे कुछ न हो
"अक्षिता , मैं काम खत्म होते ही मैं वापस आ जाऊंगा" एकांश ने अक्षिता का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा और अक्षिता ने भी हा में सर हिला दिया
"अब मुस्कुरा भी दो" एकांश ने स्माइल के साथ कहा और अक्षिता भी नाम आंखो के साथ मुस्कुरा दी
एकांश अपने कपड़े लेकर नहाने चला गया और अक्षिता बालकनी की ओर चली गई और वहीं खड़ी होकर रात के आसमान को देखती रही तभी उसने कुछ शोर सुना और अंदर जाकर देखा तो एकांश टूटे हुए कांच के टुकड़े उठा रहा था
"क्या हुआ?" उसने एकांश के पास घुटनों के बल बैठते हुए पूछा
"मैंने गलती से शीशा तोड़ दिया" एकांश ने कहा, उसके मन में इस वक्त कई तरह से विचार घूम रहे थे
"मैं उन्हें साफ कर दूंगी.... तुम जाओ और कपड़े पहन लो"
अक्षिता ने कांच के टुकड़े उठाए और उन्हें डस्टबिन में फेंक दिया और वो जैसे ही मुड़ी एकांश से टकरा गई और उसका बैलेंस बिगड़ा और वो गिरने ही वाली थी के एकांश ने उसे थाम लिया
अक्षिता के गिरने से बचाने के लिए एकांश उसे थामे हुए था, उसे अभी भी पूरे कपड़े नही पहने थे और ऊपर से वो।बगैर शर्ट के ही था और एकांश उसे उसे यू पकड़ने से अक्षिता के साथ उसने नंगे सीने और कंधे पर टिके हुए थे और दोनो की नजरे आपस में मिली हुई थी
एक बहुत की रोमांटिक सा मोमेंट बनने लगा था और एकांश का अब अपने आप पर से कंट्रोल छूट रहा था, अक्षिता के कोमल होठ उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे
अक्षिता ने भी अपनी आंखे बंद कर ली थी और तभी एकांश को ध्यान आया के वो भावनाओ के आवेग में सीमा लांघने वाला है और इसके साथ ही वो अक्षिता से थोड़ा दूर पीछे हट गया और अपनी शर्ट पहनने लगा
अक्षिता के सामने एकांश की पीठ थी, वो अच्छी तरह समझ रही थी के एकांश क्या चाहता था साथ ही वो क्या चाहती थी ये भी उसे पता था
"अंश.." अक्षिता ने धीमे से उसे पुकारा
"हम्म्म.." एकांश ने कहा लेकिन वो उसकी ओर मुड़ा नही
"मैने कहा था ना अगर मुझे और कुछ याद आया तो तुम्हारे जाने से पहले तुम्हे बता दूंगी?" अक्षिता ने कहा
"हम्म.. बताओ क्या चाहिए" एकांश ने कहा
"मैं जो मांगूंगी मुझे दोगे?" अक्षिता ने सवाल किया
"हा, जो तुम कहो" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए कहा
"I.. I want you to kiss me" अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा
जब कुछ पलों तक एकांश कुछ नही बोला तो उसने एकांश को देखा जो अपनी जगह जमा हुआ सा खड़ा होकर उसे देख रहा था
"भूल जाओ मैंने कुछ कहा था" अक्षिता ने अचानक उदास चेहरे के साथ कहा और जाने के लिए मुड़ी और इससे पहले के वो कोई कदम आगे बढ़ती एकांश के उसका हाथ पकड़ कर उसे रोका और वो कुछ कह पाती इससे पहले ही उन दोनो के होठ आपस में मिल चुके थे.....
क्रमश:
यह कहानी एक गहरे भावनात्मक और रोमांटिक सफर को दर्शाती है। लेखक ने मुख्य पात्र एकांश और अक्षिता के बीच की केमिस्ट्री को बखूबी उकेरा है। दोनों किरदारों के बीच की जटिलता और उनके भावनात्मक संघर्ष को बहुत प्रभावी तरीके से पेश किया गया है।
कहानी में पात्रों की मनोदशा और उनके परस्पर जुड़ाव को छोटे-छोटे विवरणों के माध्यम से दिखाना बहुत प्रभावी रहा। एकांश का अक्षिता की फिक्र करना और अक्षिता का एकांश को खोने का डर, दोनों ही भावनाएं कहानी को पाठक के साथ जोड़ने में सफल होती हैं।
कहानी में सस्पेंस का भी अच्छा उपयोग किया गया है, खासकर एकांश के जर्मनी जाने और अक्षिता को सच बताने के तनाव से। यह पाठक को लगातार बांधे रखता है।