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Romance Ek Duje ke Vaaste..

Sushil@10

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Superb update
Update 52



एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
Superb update
 

parkas

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Update 52



एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
Welcome back Adirshi bhai....
Bahut hi shaandar update diya hai Adirshi bhai....
Nice and lovely update....
And ab ho sake to regular update dene ki koshish kijiyega....
 
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Aankh se aansu aa gaye. Shabd nahin hai dil ki feelings ko bolne ke liye.
Bus yeh hi kahunga writer ko- Saadar Namaskar
 
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Update 52



एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
"दिल तोड़ देने वाली इमोशनल रोलरकोस्टर!"

हे भगवान, मैं शुरुआत भी कहाँ से करूँ? ये कहानी मेरे दिल को टुकड़े-टुकड़े करके फिर से जोड़ती है, और फिर तोड़ देती है! 😭💔

भावनाएँ:
पहली लाइन से ही मैं बंध गई। टेंशन, प्यार, बेबसी—सब कुछ इतना रॉ और रियल लगा। अक्षिता और अंश की लव स्टोरी सिर्फ एक रोमांस नहीं, बल्कि भावनाओं का तूफान है। अंश का उसके लिए लड़ना, उसकी मजबूरी, उसका ब्रेकडाउन—मुझे रुला दिया! और अक्षिता? वो किसी भी बॉलीवुड हीरोइन से ज्यादा स्ट्रॉन्ग है। वो मर रही है, लेकिन उसे बस अपनों की चिंता है। उफ्फ, मेरा दिल!

किरदार:
- अंश – प्रोटेक्टिव, पैशनेट और बेहद प्यार करने वाला। डॉक्टर पर चिल्लाने का सीन? रिलेटेबल! जब उसने कहा, "मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता," मैं बिखर गई। 😭
- अक्षिता सेल्फलेस, बहादुर और प्यार से भरी हुई। उसकी चुप्पी में छुपी ताकत ने मुझे तोड़ दिया। जब वो अंश का दर्द रोकने के लिए उसे किस करती है? मास्टरपीस।
- पैरेंट्स उनका साइलेंट सफरिंग सीन इतना डीप था। जब अंश रोते हुए अक्षिता की माँ को माँ कहता है? मैं फूट-फूट कर रो पड़ी।

ट्विस्ट:
वो एंडिंग?! मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी। जब अक्षिता का ट्यूमर उनके इमोशनल मोमेंट के बाद फटता है, मैं चीख पड़ी। और अंश का ये सोचकर जाना कि वो वापस आएगा और अक्षिता उसका इंतज़ार कर रही होगी... लेकिन उसे सर्जरी में पाता है? क्रूयल। लेकिन ब्रिलियंट।

राइटिंग स्टाइल:
भावनाएँ इतनी जीवंत थीं कि हर शब्द महसूस हुआ। चुप्पियाँ, अनकही बातें, अक्षिता का डर छुपाकर दूसरों को सहारा देना बेहतरीन। हॉस्पिटल के सीन, डायलॉग्स, छोटे-छोटे मोमेंट्स (जैसे अंश का अक्षिता के बाल संवारना) इतने इंटीमेट और टचिंग थे।

फाइनल वर्ड:
ये कहानी प्यार और दर्द की मास्टरपीस है।
 
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park

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Update 52



एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
Nice and superb update....
 

kas1709

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Update 52



एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
Nice update....
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Hello everyone!
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"Win cash prizes up to Rs 8500!"


Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 8000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 25th March ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 25th April 2025 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.

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dhparikh

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एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
Nice update....
 

Tiger 786

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Update 52



एकांश इस वक्त अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी… जल्दी से जल्दी डॉक्टर जर्मनी से इंडिया आ जाए... उसने पहले ही डॉक्टर के लिए गाड़ी अरेंज कर दी थी, ताकि डॉक्टर एयरपोर्ट से बिना किसी देरी के सीधा हॉस्पिटल आ सकें,

एकांश अक्षिता के कमरे के बाहर खड़ा था और उसने कांच के दरवाज़े से अंदर झांका तो देखा, अक्षिता गहरी नींद में थी, उसका चेहरा और भी ज़्यादा कमजोर लग रहा था, जैसे पिछले कुछ दिनों में उसकी हालत और बिगड़ गई हो.. एकांश का दिल कसक उठा... उसे अक्षिता को बचाना था… किसी भी हाल में... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए..

उन्हे हॉस्पिटल मे आए दो दिन हो चुके थे, हर ज़रूरी टेस्ट करवाया जा चुका था, हर रिपोर्ट चेक की जा रही थी, लेकिन ये कहना कि एकांश टेंशन में था, बहुत हल्का होगा वो अंदर से बिल्कुल टूटा हुआ था... उसे लग रहा था जैसे सबकुछ उसके हाथ से निकलता जा रहा हो और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा…

पर अक्षिता... उसे अपने लिए कोई डर नहीं था, उसे बस अपने मम्मी-पापा और एकांश की फिक्र थी अगर उसे कुछ हो गया, तो ये सब अपने आप को कैसे संभालेंगे?

उसे अच्छी तरह पता था कि एकांश कितना परेशान है, कितना डरा हुआ है... वो उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.. पर वो ये भी जानती थी कि कुछ चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होतीं.. जो किस्मत मे लिखा होगा वो होकर ही रहेगा...

अक्षिता बस इतना चाहती थी के उसके जाने के बाद उसके मम्मी-पापा और एकांश ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएं… वो जानती थी कि ये उनके लिए सबसे मुश्किल काम होगा, लेकिन उन्हें ये करना ही होगा...


अचानक अक्षिता की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि एकांश फोन पर किसी से बात कर रहा था.. उसकी आवाज़ तेज़ नहीं थी, लेकिन चेहरे पर टेंशन साफ़-साफ़ दिख रही थी...

अक्षिता ने गहरी सांस ली… वो समझ सकती थी कि ये टेंशन सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी की वजह से थी…

थोड़ी देर बाद, एकांश ने फोन रखा और अंदर आया… उसने देखा कि अक्षिता उसे ही देख रही थी, हल्की सी मुस्कान लिए...

"तुम जाग गई?" एकांश ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हल्के से सिर हिलाया

एकांश उसके पास आया और उसने बेड के किनारे बैठकर उसका हाथ पकड़ लिया...

"डॉक्टर जर्मनी से आ चुके हैं, बस हॉस्पिटल पहुंचने वाले हैं... अब सब ठीक हो जाएगा, वो तुम्हें बिल्कुल ठीक कर देंगे!" उसकी आवाज़ में एक अलग ही भरोसा था...

अक्षिता उसकी आंखों में देखती रही... वो जानती थी कि हालात उतने अच्छे नहीं थे, जितना एकांश सोच रहा था पर उसने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया, वो उसकी उम्मीद को तोड़ना नहीं चाहती थी..

थोड़ी देर तक वो दोनों बातें करते रहे, कुछ भी… ज़िंदगी की बातें, पुरानी यादें, बेवजह की बातें… जो भी उस पल में उन्हें सुकून दे सके

तभी नर्स ने आकर बताया, "डॉक्टर आ चुके हैं, आपको बुला रहे हैं"

एकांश ने एक गहरी सांस ली और अक्षिता की तरफ़ देखा

"चलो," उसने हल्के से कहा और अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा किया, उसके चेहरे पर कुछ बाल आ गए थे, जिन्हें उसने बड़े प्यार से उसके कान के पीछे कर दिया

"अक्षिता, बी स्ट्रॉंग… और उम्मीद मत छोड़ना… कम से कम मेरे लिए तो," एकांश ने अक्षिता के माथे पर हल्का सा किस करते हुए कहा...

अक्षिता ने एकांश को चौंककर देखा, ये कैसे जान गया कि उसके मन में क्या चल रहा था?

उसने उसकी आंखों में झांका और हल्की आवाज़ में बोली, "तुम्हें भी स्ट्रॉन्ग रहना पड़ेगा, अंश… चाहे जो भी हो… कम से कम मेरे और हमारे मम्मी-पापा के लिए"

उसने एकांश का हाथ पकड़कर हल्के से चूमा...

एकांश कुछ नहीं बोल पाया... बस उसकी आंखों में देखता रहा.. अक्षिता की आंख से एक आंसू टपक पड़ा,

"चलो," उसने धीरे से कहा और दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ़ चल पड़े...

जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट्स देख रहे थे... उन्होंने नज़र उठाकर उन्हें देखा और बैठने का इशारा किया...

"हैलो मिस्टर रघुवंशी! गुड टु सी यू अगैन एण्ड यू मस्ट बी मिस अक्षिता, राइट?" डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा...

अक्षिता ने धीरे से सिर हिला दिया..

"ओह, nice to meet you! I am Dr. Heinrich Fischer," उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना हाथ बढ़ाया और अक्षिता ने भी हल्की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया...

"See, I’ve already met your concerned doctor here and Dr. Awasthi explained me about your case and reports too, Now the thing is I want to discuss this case with you… only you” उन्होंने रिपोर्ट्स पर नज़र डालते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से हा मे सिर हिला दिया और एकांश की तरफ देखा

एकांश ने एक हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा, लेकिन अक्षिता जानती थी कि वो सिर्फ़ अपनी टेंशन छुपा रहा था... फिर बिना कुछ कहे एकांश उठकर कमरे से बाहर चला गया और बाहर आकर उसने देखा कि अक्षिता के मम्मी-पापा वहीं बाहर वेटिंग एरिया में बैठे थे, टेंशन में एक-दूसरे को देख रहे थे...

अंदर, डॉक्टर ने अक्षिता से उसकी तबीयत और लक्षणों के बारे में कई सवाल पूछे और अक्षिता ने हर सवाल का जवाब दिया, और डॉक्टर ने सारी डिटेल्स नोट कर लीं.. कुछ देर बाद, अक्षिता बाहर आ गई और डॉक्टर ने एकांश और उसके मम्मी-पापा को अंदर बुला लिया...

डॉ.फिशर ने गहरी सांस ली और बोले, "मुझे पता है कि आप सब बहुत टेंशन में हैं और सच कहूं तो, अक्षिता जैसी स्ट्रॉन्ग पैशन्ट मैंने बहुत कम देखी है.. उसने अब तक हर मुश्किल को मुस्कुराकर फेस किया है, और ये कोई छोटी बात नहीं है"

वो कुछ सेकंड के लिए रुके और अक्षिता के मम्मी-पापा की तरफ देखा, जिन्होंने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन उनकी आंखों में गहरी चिंता साफ़ झलक रही थी..

फिर डॉक्टर ने हल्के से गर्दन झुकाई और बोले, "लेकिन... मुझे आपको ये बताना पड़ेगा कि अभी मैं सर्जरी नहीं कर सकता....”

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया

"क्यों?" एकांश का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा

"क्योंकि ट्यूमर अब उस स्टेज पर पहुंच चुका है, जहां उसे हटाना बहुत ज्यादा रिस्की हो गया है.... अगर अभी सर्जरी की, तो..." डॉक्टर ने गहरी सांस ली, "...उसके बचने के चांसेज बहुत कम होंगे..."

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में जकड़ लिया हो…

"क्या?" वो लगभग चिल्ला पड़ा

डॉक्टर ने गंभीर लहजे में कहा, "मिस्टर रघुवंशी, अभी सर्जरी करना बहुत खतरे से भरा होगा और हम ये रिस्क नहीं ले सकते"

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" एकांश की आवाज़ अब गुस्से और बेबसी से भरी थी, "बस बैठकर देखते रहें? इंतज़ार करें कि वो..." वो बोलते-बोलते रुक गया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू छलक आए

"एकांश बेटा..." अक्षिता की माँ ने धीरे से उसे शांत करने की कोशिश की

लेकिन एकांश ने उनकी बात सुनी ही नहीं... उसका दिमाग़ एक ही बात पर अटक गया था..."सर्जरी नहीं हो सकती"

"आप जर्मनी से सिर्फ़ ये बताने आए हैं कि कुछ नहीं हो सकता?" उसने रोते हुए डॉक्टर को घूरा

डॉ.फिशर ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये सुनना कितना मुश्किल है, लेकिन प्लीज़, सिचुएशन को समझने की कोशिश कीजिए"

"नहीं! आप समझ ही नहीं सकते!" एकांश का धैर्य अब जवाब दे चुका था

उसकी आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो गई थीं, और गुस्से से उसकी आंखें लाल पड़ गई थीं

"आपको पता है कैसा लगता है, जब पता चले कि जिसे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो, वो तुम्हारी आंखों के सामने... धीरे-धीरे मौत के करीब जा रहा है, और तुम कुछ नहीं कर सकते?"

"क्या तुम समझ सकते हो कि हर दिन उसे और ज़्यादा कमजोर होते देखना कैसा लगता है?"

"क्या तुम जान सकते हो कि रात को सोते हुए हर पल ये डर लगा रहता है कि सुबह उठूंगा, तो वो शायद मेरे साथ न हो?"

"क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि जब तुम्हारे पास दुनिया की हर चीज़ हो, लेकिन तुम उस इंसान को बचा न सको जिससे तुम सबसे ज्यादा प्यार करते हो तो वो दर्द कैसा होता है?"

एकांश की आवाज़ पूरी तरह टूट चुकी थी

आखिर में उसकी टांगों ने जवाब दे दिया और वो वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा

उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे

अक्षिता के मम्मी-पापा ने जब एकांश को इस हालत में देखा तो दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रो पड़े… उनका अकेला सहारा पहले ही तकलीफ़ में था और अब एकांश की ये हालत देखना उनके लिए और भी दर्दनाक था..

डॉ. अवस्थी की आंखें भी भर आई थीं, और डॉ. फिशर के लिए भी ये सब देखना आसान नहीं था

अक्षिता की माँ घुटनों के बल बैठ गई और रोते हुए एकांश को गले से लगा लिया.. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाई, जैसे कह रही हो.. "सब ठीक हो जाएगा, बेटा..."

लेकिन एकांश की आवाज़ कांप रही थी, "मुझे नहीं पता... अगर उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा... मैं उसके बिना नहीं रह सकता माँ"

एकांश अक्षिता की माँ से लिपटकर रो रहा था "मैं उसे बचाना चाहता हूँ... हमारी बस एक ही उम्मीद थी... और अब वो भी नहीं रही..."

अक्षिता की माँ सुन्न हो गई थी उन्हे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस बात पर खुश हो कि पहली बार एकांश ने उन्हे 'माँ' कहा... या इस बात पर रोए कि उसने ऐसा दर्द में कहा...

डॉ. फिशर उसके पास आए और हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखा

"एकांश... I am sorry..." उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा… "I know की मेरी वजह से तुमने उम्मीद बंद रखी थी but the fact is अभी सर्जरी नहीं हो सकती अगर हमने अभी ऑपरेशन किया, तो उसके बचने के चांसेज़ ना के बराबर होंगे"

एकांश ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आंखें अब भी आंसुओं से भरी थीं...

"मैं जर्मनी सिर्फ़ ये कहने नहीं आया था कि कुछ नहीं हो सकता..." डॉक्टर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "मैं यहाँ इसलिए आया क्योंकि तुमने मुझे मजबूर कर दिया था... अगर मैं यही बात वहां से कहता, तो तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करते, मैंने तुम्हारी आंखों में जो देखा, वो पहले कभी नहीं देखा था... तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बेबसी, तुम्हारी उम्मीद... मैं ये सब देखना चाहता था... इसलिए मैं खुद यहां आया, ताकि मैं तुम्हें ठीक से समझा सकूं"

डॉक्टर की बातें सुनकर एकांश का गुस्सा जैसे ठंडा पड़ गया, उसकी आंखों में अब भी आंसू थे, लेकिन इस बार वो दर्द की जगह गहरी सोच में था

उसने धीरे से कहा, "सॉरी डॉक्टर... मुझे आप पर इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था..." उसकी आवाज़ धीमी थी, जैसे खुद को दोष दे रहा हो

डॉ. फिशर हल्के से मुस्कुराए "कोई बात नहीं, और तुम मुझे हेनरी कह सकते हो"

उन्होंने हाथ बढ़ाया, और इस बार एकांश ने बिना झिझके उसे थाम लिया, उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए उठ खड़ा हुआ

तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई... सभी ने एक साथ उस ओर देखा अक्षिता कमरे मे आ रही थी और उसने कमरे में फैला अजीब सा सन्नाटा और एकांश के लाल पड़े चेहरे को देखा

"अंश?" उसने हल्की आवाज़ में कहा

एकांश ने तुरंत अपनी आंखें पोंछी और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही ना हो

"माँ, मैंने किसी को चिल्लाते सुना..." उसने हल्की टेंशन के साथ कहा, उसकी नज़र अब भी एकांश पर थी

उससे पहले कि कोई कुछ कहता, उसके पापा ने उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराने की कोशिश की, "कुछ नहीं बेटा हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे"

लेकिन अक्षिता को एहसास हो गया था कि कुछ ना कुछ तो ज़रूर हुआ है

अक्षिता ने महसूस किया की कमरे का माहौल अजीब सा था, उसने पहले अपनी माँ-पापा की ओर देखा, फिर एकांश की ओर, जो अब भी उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ा था

उसने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा, "अंश?"

कोई जवाब नहीं आया

वो दो कदम उसकी तरफ़ बढ़ी और फिर पूछा, "क्या तुम ही चिल्ला रहे थे?"

"नहीं," एकांश ने बस इतना कहा, लेकिन अक्षिता की ओर नहीं देखा

अक्षिता का दिल बैठ गया, उसने उसे फिर धीरे से पुकारा, "अंश?"

इस बार उसने एकांश का कंधा पकड़ा और उसे हल्के से अपनी ओर घुमा दिया और जैसे ही अक्षिता ने उसका चेहरा देखा, वो वहीं सन्न खड़ी रह गई..

एकांश की आंखें लाल थीं... आंसू अब भी उसके गालों पर बहे चले जा रहे थे

"तुम रो रहे थे?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा

एकांश ने बिना कुछ कहे बस हल्के से ना सिर हिला दिया पर अक्षिता जानती थी कि वो झूठ बोल रहा है

उसने बाकी सबकी तरफ़ देखा, लेकिन सबके चेहरे पर वही उदासी थी

"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ मे डर था

"कुछ नहीं हुआ है अक्षु" उसके पापा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उनकी आवाज़ में मजबूरी साफ़ झलक रही थी

अक्षिता ने पलभर के लिए सबकी आंखों में देखा, फिर सीधा डॉ. फिशर की ओर मुड़ी

"डॉक्टर, क्या मैं आपसे अकेले में बात कर सकती हूँ?"

डॉ. फिशर ने तुरंत हा मे सिर हिला दिया, "बिल्कुल"

बाकी लोग समझ गए थे कि अब अक्षिता को सब बताया जाएगा… वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर चले गए... एकांश भी चुपचाप निकल गया



कमरे में अब सिर्फ़ अक्षिता और डॉ. फिशर थे

डॉक्टर ने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे उसे उसकी हेल्थ कंडीशन के बारे में बताया पर ये सब सुनके अक्षिता के चेहरे पर कोई खास रिएक्शन नहीं आया था

ना डर, ना दुख, ना गुस्सा... कुछ भी नहीं

वो बस खिड़की से बाहर देखती रही, जैसे अब इस बात से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता हो

फिर उसने एक लंबी सांस ली और बहुत हल्की आवाज़ में बोली, "कोई बात नहीं डॉक्टर... आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है... मुझे अपनी हालत पहले से पता था... मैं इसे महसूस कर सकती थी"

उसकी आंखें अब भी बाहर कहीं दूर टिकी थीं,

"मुझे अपनी नहीं… उसकी चिंता है"

डॉक्टर ने उसके चेहरे की ओर देखा, फिर उसकी नजरों का पीछा किया... वो एकांश को देख रही थी... जो बाहर सामने की कुर्सी पर बैठा था, सिर झुकाए, डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी... अक्षिता की आंखों में आंसू आ चुके थे, लेकिन उसने उन्हें गिरने नहीं दिया उसकी आवाज़ धीमी थी, पर हर शब्द में दर्द था...

"वो इसे सहन नहीं कर पाएगा... और कोई भी ऐसा नहीं होगा जो उसे संभाल सके..."

अब अक्षिता की आवाज़ कांपने लगी थी, "मुझे डर है कि मेरी मौत के बाद वो अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा..."

वो अब भी एकांश को ही देख रही थी

डॉ. फिशर ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका और उन्हें देख कर वो वही चीज़ महसूस कर सकते थे, जो उन्होंने थोड़ी देर पहले एकांश की आंखों में देखी थी...

प्यार...!

बेइंतेहा, हद से ज़्यादा, हर हद पार कर जाने वाला...

उन्होंने ज़िंदगी में बहुत से पेशेंट देखे थे... बहुत से रिश्ते देखे थे.. लेकिन ऐसा प्यार? जहां दोनों की पूरी दुनिया ही बस एक-दूसरे की सलामती पर टिकी हो? बहुत कम देखने को मिलता है..

अक्षिता ने धीरे से अपनी पलकें झपकाईं और उसकी आंखों से आंसू बह निकले... उसने डॉक्टर की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई

"थैंक यू डॉक्टर... जर्मनी से यहां तक आने के लिए... मेरी जाँच करने के लिए"

डॉक्टर को समझ नहीं आया कि वो इस मुस्कान का जवाब कैसे दें, एक लड़की... जो खुद अपनी मौत से सिर्फ़ कुछ दिन दूर थी, उसके चेहरे पर ये सुकून कहां से आया था? उसे अपनी मौत का कोई डर नहीं था… उसे अपनी ज़िंदगी के खत्म होने की चिंता नहीं थी… जो चीज़ उसे परेशान कर रही थी, वो थी उसके अपनों का दर्द… एकांश का, उसके मम्मी-पापा का…

वो अंदर से कितनी भी तकलीफ़ में हो, लेकिन उसने अपने चेहरे पर वही मुस्कान बनाए रखी थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से कोई और कमजोर पड़े...

अक्षिता डॉक्टर के केबिन से बाहर निकली और उसने देखा कि उसके मम्मी-पापा कुर्सी पर चुपचाप बैठे थे

"माँ, पापा… आपलोग प्लीज़ मेरी टेंशन मत लो," उसने उनके पास जाते हुए कहा

उन्होंने उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में वही चिंता थी, जो हर माँ-बाप की होती है जब उनके बच्चे तकलीफ में होते हैं

"एकांश कहाँ है?" उसने इधर-उधर देखते हुए पूछा।

उसके पापा ने सिर झुकाकर कहा, "वो बाहर गार्डन की ओर गया है"

अक्षिता ने सिर हिलाया और वहां जाने के लिए मुड़ी, वो हॉस्पिटल के बाहर आई और उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई… कुछ ही दूर एकांश खड़ा था, बिलकुल चुप… बस कहीं दूर टकटकी लगाए देख रहा था...

अक्षिता को समझते देर नहीं लगी कि वो क्या सोच रहा है… वो जानती थी।

वो अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा था… अपने मन में उठ रहे हर नेगेटिव ख़्याल को रोकने की कोशिश कर रहा था

उसने कुछ पल के लिए एकांश को देखा और फिर वापस अंदर चली गई

"शायद उसे अभी अकेले रहने देना बेहतर होगा," अक्षिता ने खुद से कहा

वो अपने कमरे में गई और एक किताब खोल ली, पर पढ़ने का सवाल ही नहीं था उसके दिमाग़ में बस एक ही चीज़ चल रही थी, "अगर मैं चली गई तो अंश कैसे रहेगा?"


थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई...

अक्षिता ने सिर उठाया तो देखा, नर्स खाने की ट्रे लेकर आई थी, उसने ट्रे की तरफ़ देखा और फिर हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, "अभी नहीं… थोड़ी देर में खा लूंगी"

नर्स कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन फिर बिना कुछ बोले वापस चली गई और अक्षिता उठकर खिड़की के पास चली गई, बाहर अंधेरा हो रहा था… हल्की ठंडी हवा चल रही थी, पर वो इन सब चीज़ों को नोटिस ही नहीं कर रही थी, वो सिर्फ़ खोई हुई थी... अपने ही ख़्यालों में...

तभी दरवाज़ा खुला और एकांश अंदर आया... अक्षिता अब भी खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसने उसकी आहट पहचान ली थी

एकांश ने कमरे में आते ही सबसे पहले टेबल पर रखी खाने की ट्रे की तरफ़ देखा....

"तुमने खाना नहीं खाया?" उसने हल्की सख्ती से पूछा

अक्षिता ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अब भी बाहर देख रही थी

एकांश ने दोबारा कहा, "अक्षिता, तुमने खाना नहीं खाया"

इस बार उसने जवाब दिया, "तुमने भी तो नहीं खाया"

एकांश थोड़ा चौंका, फिर झुंझलाकर बोला, "आओ, तुम खाना खा लो" उसने ट्रे का ढक्कन हटाते हुए कहा

अक्षिता ने उसकी तरफ़ देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, "और तुम?"

"मुझे भूख नहीं है।" उसने जवाब दिया और पानी का गिलास भरने लगा

अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "अंश, तुम मेरी कोई हेल्प नहीं कर रहे हो"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा और अपनी भौंहें सिकोड़ीं, "मतलब?"

अक्षिता ने अब कुछ ऐसा कहा जो सीधे उसके दिल में उतर गया, अक्षिता ने एक गहरी सांस ली और हल्की, थकी हुई आवाज़ में बोली,

"अंश, तुम जो कर रहे हो, उससे मुझे कोई राहत नहीं मिल रही है, अगर तुम खुद को ऐसे ही इग्नोर करते रहे, तो मैं कभी सुकून से नहीं रह पाऊँगी"

वो बिस्तर पर बैठ गई और मायूसी से आगे बोली,

"मैं तभी चैन से रह सकती हूँ, जब तुम खुश रहोगे"

कमरे में एकदम साइलेंस छा गया

एकांश के पास कोई जवाब नहीं था वो बस चुप बैठा रहा..

कुछ मिनटों तक दोनों के बीच शांति बनी रही और फिर अचानक, अक्षिता ने उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा,

"तुम किस्मत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर लेते, अंश?"

एकांश ने उसकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा

"अगर तुम इसे अपना लोगे, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा"

बस, इतना सुनना था कि एकांश का सब्र जवाब दे गया

"Shut Up!" एकांश ने अचानक गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा

अक्षिता चौंक गई, उसने पहले कभी उसे इतना गुस्से में नहीं देखा था

उसकी आँखों में कुछ था... दर्द, गुस्सा, बेबसी... सब एक साथ

"तुम कह रही हो कि मैं इसे अपना लूं? मैं इसे एक्सेप्ट कर लूं?"

उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं उसकी आवाज़ दर्द से भरी हुई थी

"अगर तुम सिर्फ़ एक बार मेरी जगह खड़े होकर देखो… सिर्फ़ एक बार मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश करो, तो तुम्हें खुद ही जवाब मिल जाएगा!"

अक्षिता उसे बस देखती रह गई

"क्या कभी तुम्हें ये ख्याल आया कि शायद… शायद मैं भूलना ही नहीं चाहता?"

अब उसकी आवाज़ हल्की पड़ने लगी थी, लेकिन उसका दर्द और गहरा हो चुका था...

"शायद मैं आगे बढ़ना ही नहीं चाहता?" उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे

"क्योंकि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि मैं कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता!" वो अपने हाथों से चेहरा छुपा कर रोने लगा था

अक्षिता की भी आँखें भीग गईं थी

"अंश... मैं..." पर उसके पास कोई शब्द नहीं थे, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो उस पर इस तरह चिल्लाएगा

"आज डॉक्टर ने जो कहा वो सोच सोच कर मेरी हालत खराब हुए जा रही है, लेकिन यहाँ तुम सिर्फ़ यही सोच रही हो कि मैं आगे बढ़ जाऊं? तुम्हें भूल जाऊं? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो, अक्षिता? क्या ये इतना आसान है? क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा प्यार इतना कमजोर है? मैं हार चुका हु अक्षिता! I Failed! I crushed your and your parents hope on me… I failed!! I failed again…"

और इससे आगे एकांश कुछ कहता उससे पहले ही... अगले ही पल, अक्षिता ने एकांश के होंठों पर अपने होंठ रख दिए... एकांश एकदम स्तब्ध रह गया

अक्षिता ने एकांश के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और उसेने उस एक किस में अपनी सारी भावनाएँ डाल दीं... सारा प्यार, सारा डर, सारी बेचैनी

लेकिन इससे पहले कि एकांश उस किस का रीस्पान्स कर पाता और अक्षिता धीरे से पीछे हट गई

उसने एकांश की आँखों में देखा, "तुमने किसी को निराश नहीं किया, अंश..."

उसकी आवाज़ भले धीमी थी लेकिन उसमें भरोसा था

"तुम ही वो एकमात्र वजह हो, जो मैं अब तक ज़िंदा हूँ… और खुश हूँ"

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, लेकिन इस बार... उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी...

"I Love you, अंश।"

"I love you too, अक्षिता"

उन्होंने एक-दूसरे को कसकर गले लगा लिया.. जैसे दोनों इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहते थे… जैसे यह एक आखिरी बार हो सकता था, जब वो एक-दूसरे की गर्माहट को महसूस कर रहे थे…

काफी देर तक वे बस यूँ ही बैठे रहे, बातें करते हुए… पुरानी यादों में खोए हुए… उस ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए, जिसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ जीने का सपना देखा था…

तभी अचानक, एकांश का फोन बज उठा

उसने देखा, रोहन का कॉल था।

एकांश ने कॉल उठाया, और दूसरी तरफ से रोहन की हड़बड़ाई हुई आवाज़ आई, "भाई, एक अर्जेंट साइन चाहिए एक डील पर, तुम्हें अभी आना होगा"

एकांश ने सीधा मना कर दिया, "मैं अभी नहीं आ सकता रोहन"

रोहन कुछ कहता, इससे पहले ही फोन कट गया

पर तभी, स्वरा का फोन आ गया।

"एकांश प्लीज़! बस 10 मिनट लगेंगे तुम्हें बस एक साइन करना है और वापस चला जाना"

एकांश झुंझलाया... वो अक्षिता को इस हालत में छोड़कर जाना नहीं चाहता था.. पर अक्षिता ने उसका चेहरा पढ़ लिया था.. उसने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ा और कहा, "अंश, जाओ... सिर्फ़ 10 मिनट की तो बात है”

"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा..."

"प्लीज़?" उसने उसकी हथेलियों को हल्के से दबाते हुए कहा

एकांश उसकी आंखों में देखने लगा, वो उसे मना नहीं कर सकता था

उसने गहरी सांस ली, "ठीक है, लेकिन मैं जल्दी वापस आऊंगा"

वो दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा, लेकिन अचानक रुका, उसने पीछे मुड़कर देखा, अक्षिता मुस्कुरा रही थी… वो वापस लौटा, उसके पास बैठा और उसे ज़ोर से गले लगा लिया....

"अभी थोड़ी देर मे वापिस आता हु" उसने अक्षिता का माथा चूमते हुए कहा

अक्षिता ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बिल्कुल मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी"

उसकी मुस्कान एकांश के दिल में बस गई थी

"बस एक बेमतलब की मीटिंग ख़त्म करनी है और फिर मैं वापस तुम्हारे पास आ जाऊंगा," एकांश ने खुद से कहा और हॉस्पिटल से निकल गया

इधर ऑफिस में, एकांश ने जाली जल्दी मे डील साइन की, किसी ने कुछ कहा भी नहीं था कि वो सीधा वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया.. बिना किसी से बात किए, बिना एक मिनट रुके

उसे बस हॉस्पिटल वापस जाना था

जब वो हॉस्पिटल पहुंचा, तो उसने कार पार्क की और सीधा अक्षिता के रूम की तरफ़ बढ़ा..

लेकिन जैसे ही वो अंदर पहुंचा, रूम खाली था...

अक्षिता वहां नहीं थी....

उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़कने लगा

"शायद नर्स उसे कहीं लेकर गई होगी," उसने खुद को समझाने की कोशिश की, उसने तुरंत उसका फोन उठाया और कॉल किया

ट्रिन... ट्रिन...

घंटी कमरे के अंदर ही बज रही थी, उसने पलटकर देखा तो अक्षिता का फोन बिस्तर पर पड़ा था, अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी...

वो बाहर निकला और सीधा नर्स स्टेशन पर गया.... वहाँ उसने उस नर्स को ढूंढा, जो रोज़ अक्षिता को खाना देने आती थी...

"अक्षिता कहाँ है?" उसकी आवाज़ में एक अलग ही घबराहट थी

नर्स ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "वो ऊपर वाले फ्लोर पर है, सर..."

"ऊपर? क्यों?"

लेकिन जवाब सुनने का भी उसके पास वक्त नहीं था, उसने बस नर्स से रूम की डीटेल पूछी और लिफ्ट की ओर लपका, उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि वो अपनी ही धड़कनों को सुन सकता था, लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, और उसने बाहर निकलते ही सामने देखा... अक्षिता के पापा, एक कोने में खड़े थे... उनकी आँखें लाल थीं... वो रो रहे थे...

एकांश को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो

वो उनके पास भागा, "अंकल... अक्षिता कहाँ है?"

पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बस एक नज़र उठाकर उसे देखा... और उनकी आँखों में जो दर्द था, उसने एकांश की रूह को अंदर तक हिला दिया

"अ... अक्षिता ठीक तो है ना?" उसकी आवाज़ अब लड़खड़ा रही थी

उसने पलटकर देखा... अक्षिता की माँ कुर्सी पर बैठी थीं... उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.. वो एकदम सुन्न बैठी थीं, जैसे कुछ महसूस ही नहीं कर पा रही हों एकांश की सांसें तेज़ हो गईं...

"यह सब क्या हो रहा है?"

"मैं जो सोच रहा हूँ, वो सच तो नहीं है?"

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कहाँ भागे

उसका गला सूखने लगा था

उसने हिम्मत जुटाई और एक कदम आगे बढ़ाया

"अंकल... प्लीज़ बताइए... अक्षिता कहाँ है?"

"उसका ट्यूमर..."

उसके पिता के लफ्ज़ रुके...

"फट गया..."

और उस एक पल में, एकांश को लगा कि पूरी दुनिया थम गई है... उसका दिमाग़ इसे एक्सेप्ट करने के लिए तैयार ही नहीं था...

"आप मज़ाक कर रहे हो, ना?" उसने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "जब मैं गया था, तब तो वो ठीक थी... उसने खुद मुझे भेजा था... वो तो हंस रही थी!"

"डॉ. फिशर उसका ऑपरेशन कर रहे हैं," अक्षिता के पिता ने दूसरे कोने में ऑपरेशन थियेटर की ओर इशारा करते हुए कहा...

एकांश ने थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहां रेड लाइट जल रही थी

"ये कैसे हुआ?" उसने खुद से ही पूछा, जैसे उसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा था

उसके पिता ने गहरी सांस ली और कांपती आवाज़ में बोले,

"डॉ. फिशर उससे बात करने आए थे, वो हमें बता रहे थे कि कल वापस जर्मनी जा रहे हैं... तभी जैसे ही वो कमरे से बाहर जाने लगे, अचानक अक्षिता ने अपना सिर पकड़ लिया और ज़ोर से चीख पड़ी..."

उनकी आँखें भर आईं।

"वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी... दर्द इतना तेज़ था कि वो रोने लगी... हम कुछ समझ पाते, इससे पहले ही वो बेहोश हो गई"

एकांश की साँसें तेज़ हो गई थीं

"डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि ट्यूमर फट गया है… और अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया, तो..."

वो आगे कुछ नहीं कह पाए

"तो..."

"तो वो उसे खो सकते हैं"

एकांश सुन्न पड़ गया

उसकी आँखें अब भी ऑपरेशन थियेटर के दरवाज़े की तरफ़ थीं, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था… उसके कानों में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—

"ट्यूमर फट गया है।"

उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ने लगा था...

उसने धीमे कदमों से ऑपरेशन थियेटर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, जैसे खुद को यकीन दिलाने के लिए कि सब ठीक है...

उसने झांककर अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ भी नहीं दिखा

सिर्फ़ एक लाल लाइट... ऑपरेशन जारी है...

तभी...

उसके दिमाग़ में एक आखिरी बात घूम गई...

वो लम्हा, जब वो उसे छोड़कर गया था...

"मैं जल्दी वापिस आऊँगा"

"और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी..."

एकांश की आँखों से आँसू बह निकले, पर इस बार ये सिर्फ़ आँसू नहीं थे... ये उसके अंदर का डर था... ये उस अधूरी मोहब्बत का दर्द था, जो अब हमेशा के लिए खोने वाली थी...



क्रमश:
Mind-blowing amazing update
 
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अक्षिता की बीमारी और इस बीमारी से उत्पन्न हुए हालात , भगवान किसी दुश्मन को भी न दिखाए !
ट्यूमर ब्लास्ट हो चुका है । जर्मन डाॅक्टर आपरेशन कर रहे है । अब सब कुछ भगवान के हाथों मे है ।
ऐसी सिचुएशन मे अक्सर मरीज की मृत्यु ही होती है लेकिन कहते हैं जब तक सांस है तब तक आस है , इसलिए उम्मीद तो हम हरगिज नही छोड़ेंगे ।

आदि भाई , आप की कांटेस्ट की स्टोरी भी पढ़ा मैने ।
ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर आधारित प्रेम प्रसंग उस कहानी को बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने । आप की लेखनी के बारे मे क्या ही कहूं ! सोना घिस घिसकर पारस बन गया है ।

अद्भुत अपडेट भाई ।
 
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