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Romance Ek Duje ke Vaaste..

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Adirshi

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इस कहानी में अभी तक जितनी भी घटनाएं घटी या एकांश ने जिस तरह का बर्ताव अक्षिता के साथ किया ये सभी सिर्फ एकांश की विक्षिप्त मानसिकता या फिर उसके सोच में आए परिवर्तन का नतीजा हैं।

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि दो घटनाएं पहला एकांश के साथ लिफ्ट में न जाना और अक्षिता का यह कहना कि मैं सीढ़ियों से ज्यादातर आया जाया करता हूं और दूसरी घटना राकेश का आलिंगन करना। इसके बाद तो मानो एकांश जैसे किसी बोध हीन इंसान की तरह वो सभी काम करवाया जिसकी जरूरत शायद ही था।

अब मैं उस वक्त की कल्पना कर रहा हूं जब एकांश के सामने सच्चाई आएगी तब यहां कहानी कौन सा मोड़ लेगा।
jisse aap bepanah mohabbat kare usse achanak mila dhoka aur usse dobara milne ke baad insan use chidh ke sath hi dekhta hai bas isiliye ekansh ka ye kuch behaviour hai :D
Thank you for the review bhai :thanx:
 

Adirshi

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सच कहूं तो इस अंश को पढ़ने के बाद मुझे जोर जोर से हंसने का मन किया कारण ये नहीं कि इस अंश में कोई कॉमेडी सीन हो। ऐसा कोई सीन इस पूरे अंश में कही नहीं था फिर भी मुझे हँसी आने का कारण सिर्फ और सिर्फ एकांश पे बस इसी कारण मैंने हंसने की इमोजी को लाईक में दिया

इसे पहले के ही अपडेट में मैंने कहा था कि जब सच्चाई सामने आयेगा तब एकांश क्या करेगा और देखो अगले ही अंश में एक सच्चाई सामने आ गई और वह हैं अक्षिता का एक मानसिक रोग जिसमें उसे कम, बंद और अंधेरी वाली जगहों से डर लगता हैं जिस कारण वहां लिफ्ट इस्तेमाल नहीं करती है।

अब एक सवाल कि अक्षिता को इतना अजीब मानसिक बीमारी था तो उसे उस बंद अंधेरे कमरे में जाने को हामी नहीं भरना चाहिए था। लेकिन उसने माना नहीं क्या क्यों, आखिर क्यों?
Ego bhai ego ke iske samne to haar nahi manungi ya ise kamjori nahi pata lagne dungi bas isiliye akshita waha gayi :D
Thank you for the review bhai :thanx:
 

Adirshi

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अभी तक की कहानी को पढ़के जितना मै समझ पाया हूं उससे ये साफ दिखता हैं कि इस कहानी में लेखक महोदय माइंड गेम खेल रहे हैं। जो रीडर्स की माइंड में ब्रेन स्टोर्म ला दे और ऐसा मै इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पिछले कुछ भागों में कुछ घटनाएं जो थीं तो सामान्य लेकिन कहानी के लिए विशिष्ट मोड़ लाने वाला था।



पहली घटना अक्षिता का अचानक छूटी पे जाना और बहाना सिर्फ वायरल फीवर का बनाना हालांकि यहां बहाना स्वरा ने अपने से बनाया था लेकिन सच कुछ और ही हो सकता हैं कारण अक्षिता तो जाना ही नहीं चाहती थीं। उसको ब्रेन बॉश करके भेजा गया और भेजने वाले उसके दोनों प्रिय शखा स्वरा और रोहित ही थे।



दूसरी घटना एकांश का अक्षिता को अपने घर ले जाना और वहां कोइंसिडेंटली एकांश की मां और अक्षिता की मुलाकात होना और उस वक्त जैसा रिएक्शन एकांश की मां का रहा उससे यहां तो साफ हैं कि एकांश की मां अक्षिता को पहले से जानती हैं अगर एकांश ने अपने और अक्षिता की लव रिलेशन और उसके बाद विच्छेद के बारे में बताया हैं तो भी ये सामान्य घटना नहीं हो सकता और अगर नहीं बताया तो उन दोनों की मुलाकाते पहले कहा और कैसे हुआ ये इस कहानी की एक विशिष्ट घटना हो सकता हैं।



तीसरी घटना एकांश के दोस्त अमर का अक्षिता का पीछा करना भला कोई क्यों किसी ऐसे लड़की का पीछा करेंगे जिसके बारे में वह जनता है कि ये लकड़ी उसके दोस्त की पूर्व प्रेमिका रहा हैं। इस घटना के पीछे दो कारण हो सकता हैं। एक अमर का अपना हित सोचना दूसरा अपने दोस्त और उसके प्रेमिका के बीच, विच्छेद के कारणों का पता लगाना और दोनों को फिर से एक करना क्योंकि हो सकता हैं कि अमर अपने दोस्त एकांश के बीते डेढ़ वर्षों से भलीभांति परिचित हो।



खैर ये कुछ प्वाइंट था जिसपे मैने ध्यान दिया और ये शायद इस कारण दे पाया क्योंकि कहानी आगे बढ़ चुका हैं और मैं एक के बाद एक भाग पढ़ता आ रहा हूं जिससे मुझे अगले भाग के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ रहा हैं।


बहुत अच्छा लिख रहे हों और अभी तक एक अनुभवी राइटर होने का पूरा पूरा
प्रमाण दिया हैं।
Bahut sahi points pakde hai bhai aapne and yes there is a reason behind everything jo jaise jaise aap aage padhenge pata chalte jayega :D
Thank you so much for this wonderful review bhai :thanx:
 

Adirshi

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Update 55



"I love you."

अक्षिता ने ये शब्द बिल्कुल साफ़-साफ़ सुने थे और उसका अवचेतन मन ये पहचान गया था कि ये आवाज़ उसी की थी जिससे वो बेइंतहा मोहब्बत करती थी...

वो उसे जवाब देना चाहती थी… कहना चाहती थी, "मुझे भी तुमसे बहुत प्यार है अंश..."

लेकिन चाहकर भी नहीं कह पाई...

वो उसकी हर बात सुन सकती थी... उसकी सिसकियाँ… उसका रोज़-रोज़ उसे उठने के लिए कहना, उसका रोना… उसका टूट कर रिक्वेस्ट करना हर चीज़ उसके अंदर तक जा रही थी.. वो सब सुन रही थी महसूस कर रही थी, एकांश की चीखें, उसकी तकलीफ़… सब कुछ...

कई बार वो जागने की कोशिश करती थी, चीख कर कहने की कोशिश करती थी कि "मैं यहीं हूँ!"

लेकिन कैसे?

एक वक़्त ऐसा आया जब उसने हिम्मत छोड़ दी थी... उसने हार मान ली थी मानो जीने की कोशिशें जैसे थम सी गई थीं... उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था… और दिमाग जैसे किसी गहरी धुंध में खो गया था... बस एक ही चीज़ थी जो उसे अब तक ज़िंदा रखे हुए थी.... एकांश की आवाज़...

वरना तो वो कब का अंधेरे में समा चुकी होती… सब कुछ छोड़कर.. उसने सारी उम्मीदें छोड़ मौत से समझौता कर लिया था...

लेकिन तभी…

उसने फिर से वही आवाज सुनी

लगा मानो सालों बाद उसने उसे पुकारा हो… उस आवाज़ को फिर से सुनना ऐसा था जैसे अंधेरे में एकदम से रौशनी चमक गई हो... और उस रौशनी का नाम था एकांश...

उसी की आवाज़ ने उसे अंधेरे से खींचकर वापस ज़िंदगी की तरफ मोड़ा.. उस आवाज़ में इतनी ताक़त थी कि उसे लड़ने की वजह मिल गई थी... अब वो हर दिन उसके कुछ कहने का इंतज़ार करती… हर आवाज़ को पकड़ने की कोशिश करती जब भी वो रोता, उसका दिल जैसे फटने लगता

वो सारे बंधन तोड़कर दौड़ जाना चाहती थी, उसे गले लगाना चाहती थी, उसे ये कहना चाहती थी कि "मैं यहीं हूँ…"

लेकिन हर बार जब वो ऐसा करती उसका दिमाग खिंचने लगता, नसों में तनाव भर जाता… दिल की धड़कनें तेज़ हो जातीं और सर दर्द से भर जाता... उसने बाकी लोगों की भी आवाज़ें सुनी थीं, अपने दोस्तों की, मम्मी-पापा की… पर उसके शरीर ने कभी किसी पर कोई रिएक्शन नहीं दिया था

सिर्फ एकांश ही था… जिसकी हर बात, हर स्पर्श उसे महसूस होता था... उसे नहीं पता वो कितने दिनों से कोमा में है… उसे ये भी नहीं मालूम कि और कितने दिनों तक इसी हाल में रहेगी... लेकिन एक बात वो पूरे दिल से जानती थी कि

"मैं आज भी ज़िंदा हूँ, सिर्फ़ उसकी वजह से"

अब भी वो उसकी बातें सुन सकती थी, उसे पास महसूस कर सकती थी

अभी वो अमर और श्रेया के बारे में कुछ कह रहा था... वो उसके पास जाना चाहती थी, उसका हाथ थामना चाहती थी, उसकी आँखों में देख कर कुछ कहना चाहती थी... पर... उसका सर बुरी तरह दुख रहा था… सीने में दिल जोर-जोर से धड़क रहा था... लेकिन जब एकांश ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया… तो पहली बार उसे अपने शरीर में हल्की सी गर्माहट महसूस हुई

सूरज की हल्की-हल्की किरणें जब उसके चेहरे पर पड़ीं… तो उसने अपनी आँखें खोलीं... उसे धीरे-धीरे होश आया… और उसने खुद को बिस्तर पर बैठे हुए पाया...
वो थोड़ा इधर-उधर देखने लगी, और उसकी नज़र सामने पड़ी कुर्सी पर गई....

वो वही बैठा था… उसका सिर उसके बिस्तर पर झुका हुआ था, और वो नींद में था.... उसने झुककर धीरे से उसके सिर को सहलाया…

नींद में भी एकांश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर आई थी... वही मासूम-सी मुस्कान, जो कभी उसे बहुत सुकून देती थी...

फिर उसने ध्यान से उसका चेहरा देखा... जो थोड़ा बदल गया था… बाल कुछ ज़्यादा लंबे लग रहे थे, दाढ़ी-मूंछें गाढ़ी और बिखरी हुई थीं... उसके माथे पर हल्की-सी झुर्रियाँ थीं, और चेहरा… चेहरा किसी गहरे दर्द से भरा हुआ लग रहा था...

उसने झुककर उसके गाल पर हल्का सा किस किया…

और फिर बस उसे यूँ ही देखती रही जैसे डर हो कि अगर पलक झपकी, तो वो गायब हो जाएगा... उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है... वो बिस्तर से उठी और धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ़ चली गई... थोड़ी देर तक बाहर झाँकती रही, लेकिन जब उसने पीछे मुड़कर देखा…

उसके कदम वहीं थम गए...

वो जहाँ की तहाँ जड़ हो गई...

उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं…

उसने खुद को देखा... वही बिस्तर पर, एकदम शांत, बेसुध लेटा हुआ शरीर...

और उसके पास वही एकांश जो अभी भी नींद में था...

उसने खुद को छूने की कोशिश की… और घबरा गई... ये क्या हो रहा था? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... वो धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ़ लौटी… और उसने अपने बेसुध शरीर को हिलाने की कोशिश की लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ...

उसने फिर से बिस्तर पर जाकर खुद को उसी जगह 'फिट' करने की कोशिश की… लेकिन उसका शरीर, उसकी आत्मा को स्वीकार ही नहीं कर रहा था..

"क्या मैं… मर गई हूँ?"

मन में ये ख्याल आते ही उसके पैर जैसे जवाब दे गए... वो वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर पड़ी… उसे यक़ीन नहीं हो रहा था… क्या वो अब सच में मर चुकी है?

"क्या मैं अब… भूत बन गई हूँ?"

उसने खुद से ये सवाल किया… और फिर फूट-फूट कर रोने लगी...

उसकी नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसकी मासूम नींद में था, बेख़बर… इस सब से अनजान...

"अगर उसे पता चल गया कि मैं मर चुकी हूँ तो… उसका क्या होगा? क्या वो ये सह पाएगा?"

ये ख्याल ही अक्षिता तोड़ने लगा... वो अंदर ही अंदर डरने लगी... वो भी अलग-अलग ख्यालों में डूबी थी… और तभी कमरे में डॉक्टर आ गए... उसने उनकी आवाज़ सुनी… और उनका चेहरा देखा... डॉक्टर के चेहरे पर चिंता साफ़ थी... उन्होंने एकांश की तरफ देखा और लंबी सांस लेते हुए उसकी तरफ बढ़े...

रोज़ की तरह उन्होंने उसका चेकअप शुरू किया… लेकिन इस बार… अक्षिता उनके हर एक्शन को देख रही थी, सुन रही थी... और अंदर ही अंदर डर रही थी

"कहीं डॉक्टर अभी उसकी मौत की खबर तो नहीं देने वाले?" उसने अपना दिल थाम लिया

इसी बीच मशीन की आवाज़ हुई… और एकांश नींद से उठ गया...

"वो कैसी है?" उसने उनींदी आँखों से अक्षिता की ओर देखते हुए डॉक्टर से पूछा..

अक्षिता ने दर्द से आंखें बंद कर लीं… और उसके आंसू बहने लगे.. डॉक्टर ने नज़रें झुका लीं, एक आह भरी और सिर्फ़ एक शब्द कहा

"Same."

अब अक्षिता की आंखे हैरत में फैल गई.. उसने अपने चेहरे को छुआ… हाथों को देखा…

"मैं मरी नहीं हूँ!"

"मैं अब भी ज़िंदा हूँ!"

"मैं अब भी साँस ले रही हूँ!"

उसके अंदर एक नई उम्मीद जगी लेकिन साथ ही एक और सवाल भी…

"तो फिर ये सब क्या है? मेरे साथ हो क्या रहा है?"

वो अभी ये सब समझने की कोशिश कर ही रही थी के एकांश की आवाज वहां एक बार फिर गूंजी

"6 महीने हो गए… कोई improvement क्यों नहीं है?"

अक्षिता वहीं खड़ी रह गई... बिल्कुल सुन्न!

"छह महीने…?"

"मैं इस हालत में पिछले 6 महीनों से पड़ी हूँ…?"

डॉक्टर ने बहुत धीमे और भारी आवाज़ में कहा,

"हाँ… 6 महीने हो गए.. कोई खास सुधार नहीं दिख रहा"

डॉक्टर की बात सुन एकांश का चेहरा सख़्त हो गया था

"डॉक्टर…"

उसकी आवाज़ में गुस्सा भी था और टूटन भी

"अब वक़्त आ गया है, एकांश…"

डॉ. अवस्थी अब पहली बार इन महीनों में अपने दिल की बात एकांश से कर रहे थे

"तुम खुद को इस इंतज़ार में खत्म कर रहे हो... मैं समझ सकता हूँ ये तुम्हारे लिए कितना मुश्किल है… लेकिन ज़रा अपने मम्मी-पापा के बारे में सोचो... तुम्हारी हालत देखकर वो रोज़ टूट रहे हैं... तुम्हें लगता है अक्षिता तुम्हें इस हालत में देखकर खुश होगी?"

"वो कभी नहीं चाहेगी कि तुम अपनी ज़िंदगी यूं रोक दो, सिर्फ़ उसके लिए... प्लीज़… try to move on…"

डॉक्टर की ये बात पहली बार डर की बजाय दिल से निकली हुई लग रही थी... जिसका जवाब अब एकांश ने देना था वही अक्षिता ये सब होता चुप चाप देख रही थी... भीगी आंखों से

एकांश का दर्द उसकी आंखों से साफ़ झलक रहा था… और अब वो उसे सह नहीं पा रही थी

"क्या आप लोग मुझसे आगे बढ़ने के लिए कहना बंद कर सकते हैं?" एकांश की आवाज़ एकदम तेज़ हो गई थी एकदम गुस्से से भरी हुई, लेकिन अंदर से पूरी तरह टूटी हुई...

"हर किसी से यही सुनकर थक गया हूँ मैं!"

"प्लीज़… मुझे मत बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए!"

अक्षिता ने आंसुओं से भरी आंखों से उसकी ओर देखा... एकांश के चेहरे पर गुस्सा कम और दर्द ज़्यादा था...

डॉक्टर खामोश खड़े रहे..

"तो आप क्या चाहते हैं? मैं बस उसे यूँ छोड़ दूं? भूल जाऊं कि वो है ही नहीं? अपनी ज़िंदगी में यूँ ही आगे बढ़ जाऊं?" बोलते हुए एकांश की आवाज़ कांप रही थी...

"For God's sake, वो मरी नहीं है… और ना ही मरेगी... वो ज़रूर जागेगी… मेरे लिए..." डॉक्टर आगे कुछ कहने ही वाले थे कि एकांश ने हाथ उठाकर उन्हें चुप करा दिया...

"क्या कभी आपके मन में ये सवाल आया… कि वो ज़िंदा है… और मैं बस उसका इंतज़ार कर रहा हूँ?"

वो धीरे से नीचे देखने लगा… उसकी आंखें भर आई थीं

"मैं उसके जागने का इंतज़ार कर रहा हूँ… ताकि हम साथ में अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू कर सकें... और यकीन मानिए डॉक्टर मैं इस इंतज़ार में खुश हूँ" फिर उसकी आवाज़ और भी टूटने लगी..

"आप सब यही चाहते हो ना कि मैं उसे भूलकर आगे बढ़ जाऊँ? पर क्या आपको लगता है कि ऐसा करके मैं वाकई खुश रहूंगा?"

उसने अक्षिता की ओर देखा और उसकी आँखों में सिर्फ़ एक सवाल था कि क्या तुम भी यही चाहती हो?

"नहीं!"

"वो मेरी ज़िंदगी है… मेरी खुशी है… मेरा सबकुछ है"

"अगर वो वापस नहीं आई… तो मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूंगा… लेकिन एक बात पक्की है, मैं उसके बिना कभी भी सच में खुश नहीं रह पाऊँगा"

उसने अक्षिता का हाथ पकड़ लिया और फूट-फूटकर रोने लगा... अक्षिता की आंखों से भी आंसू बह निकले, वो भी एकांश के साथ रो रही थी…

डॉक्टर थोड़ा झुके, और उन्होंने एकांश की पीठ पर हाथ रखा

"मैं समझता हूँ… और मैं ये सब इसलिए कह रहा था क्योंकि मैंने देखा है, तुमसे प्यार करने वाले लोग तुम्हारे लिए रोज कितना तड़पतेहैं…"

डॉक्टर की आवाज़ इस बार नर्म थी वो अब सलाह नहीं दे रहे थे, बस सच बोल रहे थे..

"लेकिन एक बात है… कभी-कभी छोड़ना ज़रूरी होता है एकांश और अगर वो सच में तुम्हारी है… तो वो ज़रूर लौटेगी"

एकांश ने अक्षिता का हाथ और कसकर पकड़ लिया जैसे अगर उसने उसे छोड़ा, तो सब कुछ खो देगा...

डॉक्टर थोड़ा पीछे हटे और धीरे से बोले,

"प्लीज़… अब उसे छोड़ दो"

"नहीं!"

एकांश अचानक उठ खड़ा हुआ

"कभी नहीं!"

उसकी आवाज़ फट पड़ी… और वो गुस्से से कमरे से बाहर चला गया

डॉक्टर ने एक लंबी सांस ली और बस भगवान से यही दुआ की के “कुछ ऐसा कर दो… जो सब ठीक कर दे”

अक्षिता जल्दी से एकांश के पीछे भागी

उसने देखा कि वो सीधा अपनी कार की तरफ़ बढ़ा, और अंदर बैठते ही बुरी तरह रोने लगा... वो वहीं बाहर खड़ी थी… बस उसे देख रही थी... उस हाल में, उस टूटन में… जिसमें वो सिर्फ़ उसकी वजह से था...

पर अफ़सोस…

वो कुछ नहीं कर सकती थी...
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब उसके साथ हो क्या रहा है...

'मैं कोमा में हूँ, फिर भी मैं सब देख रही हूँ? मैं ज़िंदा हूँ, फिर भी मेरी आत्मा बाहर कैसे आ गई? और… मैं कुछ देर पहले उसे छू भी तो पाई थी… तो अब क्यों नहीं?'

क्या अब भी वो उसे छू सकती है?

धीरे-धीरे वो कार की तरफ़ बढ़ी… और उसने उसके सिर के पास पहुंचकर स्टेयरिंग व्हील पर रखा उसका सर धीरे से छुआ...

अगले ही पल...

एकांश का सिर एकदम से ऊपर उठा...

उसने इधर-उधर देखा, जैसे किसी एहसास ने उसे छुआ हो...

"अक्षु… मैं तुम्हें महसूस कर सकता हूँ.... कहाँ हो तुम?"

"मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ… प्लीज़ वापस आ जाओ…" वो सिर पकड़कर फिर से फूट पड़ा

अक्षिता वहीं थी... उसी के पास... वो भी रो रही थी… उसके साथ....

उसे लग रहा था जैसे कोई उसे किसी जंजीर से बांधे हुए है...

वो जागना चाहती थी, उसकी बाहों में वापस लौटना चाहती थी… पर कुछ था… जो उसे रोक रहा था

और तभी... उसे एहसास हुआ की वो उससे दूर जा रही है

जैसे कोई उसे खींच रहा हो… उससे अलग कर रहा हो उसने उसे पुकारा… छूने की कोशिश की… पर एकांश अब उससे दूर जा रहा था...

उसने देखा कि वो कार स्टार्ट कर चुका था और बहुत तेज़ रफ्तार में सड़क पर निकल गया... वो धीरे-धीरे उसकी आँखों से ओझल हो रहा था… और अक्षिता… बस उसे पकड़ने की कोशिश करती रही... लेकिन वो लुप्त होती जा रही थी… और अंत में, वो अंधेरे में खो गई... वो धीरे-धीरे धुंध में गुम हो गई… और अगले ही पल, अंधेरे में समा गई जैसे कोई रोशनी बुझ गई हो...

हॉस्पिटल के उस शांत कमरे में अचानक हलचल मच गई... डॉक्टर की नज़र जब मॉनिटर पर गई तो उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं... बीप की आवाज़ लगातार तेज़ होती जा रही थी... अक्षिता की नब्ज गिर रही थी… दिल की धड़कनें बेकाबू थीं मानो जैसे उसका शरीर और आत्मा किसी अलग-अलग दिशा में खींचे जा रहे हों...

डॉक्टर कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है... वो बार-बार उसकी हालत संभालने की कोशिश करते… दवाइयाँ चेक करते… मशीन सेटिंग्स देख रहे थे पर कुछ भी काम नहीं कर रहा था

कमरे में Code Blue की घोषणा हुई और अचानक वहां आपात स्थिति बन गई... नर्सें दौड़कर आईं, डिफिब्रिलेटर तैयार किया गया… डॉक्टर की आवाज़ में घबराहट थी और उनकी आँखों में डर...

उसी वक्त अक्षिता के मम्मी-पापा कमरे में दाखिल हुए और जैसे ही उन्होंने अपनी बेटी की हालत देखी… उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई, वो वहीं खड़े रह गए, बेसुध-सी हालत में, एक-दूसरे का हाथ थामे… आँखों में खौफ और दिल में टूटी हुई उम्मीद लिए

डॉक्टर अवस्थी ने डॉ. फिशर को फ़ोन किया और जल्दी-जल्दी सारी रिपोर्ट्स समझाईं… पर जवाब वहीं था: “हमें समझ नहीं आ रहा कि ये क्यों हो रहा है”

लेकिन अंदर से… सब जान रहे थे...

वो जा रही थी...

और कोई कुछ नहीं कर सकता था...

कमरे में मौजूद हर एक शख्स का चेहरा एक ही बात कह रहा था.. सब… ख़त्म हो गया

अक्षिता के पेरेंट्स ने एकांश को कॉल करने की कोशिश की… पर उसका फ़ोन unreachable था...

वो दोनों अब बस अपनी बेटी के सिरहाने खड़े थे, एक-दूसरे के कंधे पर सिर टिकाए.. रोते हुए… और एकांश के लिए दुआ करते हुए...

वहीं दूसरी ओर एकांश अब भी कार चला रहा था… बुरी तरह रोते हुए, उसकी आंखें धुंधली थीं… और दिमाग़ सुन्न... उसने सामने से आ रहे ट्रक को देखा ही नहीं...

और अगले ही पल...

तेज़ रफ्तार में उसकी कार एकदम से जंगल की तरफ मुड़ी… और फिर...

धड़ाम!

कार एक पेड़ से इतनी ज़ोर से टकराई कि उसका पूरा ढांचा मुड़ गया

एकांश हवा में उछलकर ज़मीन पर गिरा.. खून से लथपथ

पास से गुज़र रहे ट्रक ड्राइवर ने ये हादसा देखा और उसने फ़ौरन एम्बुलेंस को कॉल किया और एकांश की ओर भागा...

ज़मीन पर पड़े एकांश ने धीरे-धीरे अपनी आधी खुली आंखों से ऊपर आसमान की तरफ देखा…

और वहाँ उसे दिखा… अक्षिता का मुस्कुराता चेहरा...

उस मुस्कान में जादू था… सुकून था… उम्मीद थी...

एकांश भी हल्का सा मुस्कुराया... जैसे उसकी सारी तकलीफें उसी पल कहीं छूमंतर हो गई हों

उसने धीरे से अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया… और अक्षिता ने उसका हाथ थाम लिया...

उसने आंखें बंद कीं…

और उस मुस्कान के साथ… सब कुछ थम गया....


क्रमश:
 

Adirshi

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Dekho maine aisa pehle kabhi nahi likha hai, ye update mere liye kuch alag hai, maine kahaniya likhi hai lekin sab simple thi normal romance ya straight thriller lekin itne complex emotions me main kabhi nahi utra tha iske pehle isiliye aapse request hai ke is update pe apne ko review chahiye hi chahiye, it will mean a lot to me in my writing journey.

koi jabardasti nahi hai but review de do yaar main itna kabhi bolta nahi hu :D

and yes don't worry ending sad nahi hone dunga :D
 

parkas

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"I love you."

अक्षिता ने ये शब्द बिल्कुल साफ़-साफ़ सुने थे और उसका अवचेतन मन ये पहचान गया था कि ये आवाज़ उसी की थी जिससे वो बेइंतहा मोहब्बत करती थी...

वो उसे जवाब देना चाहती थी… कहना चाहती थी, "मुझे भी तुमसे बहुत प्यार है अंश..."

लेकिन चाहकर भी नहीं कह पाई...

वो उसकी हर बात सुन सकती थी... उसकी सिसकियाँ… उसका रोज़-रोज़ उसे उठने के लिए कहना, उसका रोना… उसका टूट कर रिक्वेस्ट करना हर चीज़ उसके अंदर तक जा रही थी.. वो सब सुन रही थी महसूस कर रही थी, एकांश की चीखें, उसकी तकलीफ़… सब कुछ...

कई बार वो जागने की कोशिश करती थी, चीख कर कहने की कोशिश करती थी कि "मैं यहीं हूँ!"

लेकिन कैसे?

एक वक़्त ऐसा आया जब उसने हिम्मत छोड़ दी थी... उसने हार मान ली थी मानो जीने की कोशिशें जैसे थम सी गई थीं... उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था… और दिमाग जैसे किसी गहरी धुंध में खो गया था... बस एक ही चीज़ थी जो उसे अब तक ज़िंदा रखे हुए थी.... एकांश की आवाज़...

वरना तो वो कब का अंधेरे में समा चुकी होती… सब कुछ छोड़कर.. उसने सारी उम्मीदें छोड़ मौत से समझौता कर लिया था...

लेकिन तभी…

उसने फिर से वही आवाज सुनी

लगा मानो सालों बाद उसने उसे पुकारा हो… उस आवाज़ को फिर से सुनना ऐसा था जैसे अंधेरे में एकदम से रौशनी चमक गई हो... और उस रौशनी का नाम था एकांश...

उसी की आवाज़ ने उसे अंधेरे से खींचकर वापस ज़िंदगी की तरफ मोड़ा.. उस आवाज़ में इतनी ताक़त थी कि उसे लड़ने की वजह मिल गई थी... अब वो हर दिन उसके कुछ कहने का इंतज़ार करती… हर आवाज़ को पकड़ने की कोशिश करती जब भी वो रोता, उसका दिल जैसे फटने लगता

वो सारे बंधन तोड़कर दौड़ जाना चाहती थी, उसे गले लगाना चाहती थी, उसे ये कहना चाहती थी कि "मैं यहीं हूँ…"

लेकिन हर बार जब वो ऐसा करती उसका दिमाग खिंचने लगता, नसों में तनाव भर जाता… दिल की धड़कनें तेज़ हो जातीं और सर दर्द से भर जाता... उसने बाकी लोगों की भी आवाज़ें सुनी थीं, अपने दोस्तों की, मम्मी-पापा की… पर उसके शरीर ने कभी किसी पर कोई रिएक्शन नहीं दिया था

सिर्फ एकांश ही था… जिसकी हर बात, हर स्पर्श उसे महसूस होता था... उसे नहीं पता वो कितने दिनों से कोमा में है… उसे ये भी नहीं मालूम कि और कितने दिनों तक इसी हाल में रहेगी... लेकिन एक बात वो पूरे दिल से जानती थी कि

"मैं आज भी ज़िंदा हूँ, सिर्फ़ उसकी वजह से"

अब भी वो उसकी बातें सुन सकती थी, उसे पास महसूस कर सकती थी

अभी वो अमर और श्रेया के बारे में कुछ कह रहा था... वो उसके पास जाना चाहती थी, उसका हाथ थामना चाहती थी, उसकी आँखों में देख कर कुछ कहना चाहती थी... पर... उसका सर बुरी तरह दुख रहा था… सीने में दिल जोर-जोर से धड़क रहा था... लेकिन जब एकांश ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया… तो पहली बार उसे अपने शरीर में हल्की सी गर्माहट महसूस हुई

सूरज की हल्की-हल्की किरणें जब उसके चेहरे पर पड़ीं… तो उसने अपनी आँखें खोलीं... उसे धीरे-धीरे होश आया… और उसने खुद को बिस्तर पर बैठे हुए पाया...
वो थोड़ा इधर-उधर देखने लगी, और उसकी नज़र सामने पड़ी कुर्सी पर गई....

वो वही बैठा था… उसका सिर उसके बिस्तर पर झुका हुआ था, और वो नींद में था.... उसने झुककर धीरे से उसके सिर को सहलाया…

नींद में भी एकांश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर आई थी... वही मासूम-सी मुस्कान, जो कभी उसे बहुत सुकून देती थी...

फिर उसने ध्यान से उसका चेहरा देखा... जो थोड़ा बदल गया था… बाल कुछ ज़्यादा लंबे लग रहे थे, दाढ़ी-मूंछें गाढ़ी और बिखरी हुई थीं... उसके माथे पर हल्की-सी झुर्रियाँ थीं, और चेहरा… चेहरा किसी गहरे दर्द से भरा हुआ लग रहा था...

उसने झुककर उसके गाल पर हल्का सा किस किया…

और फिर बस उसे यूँ ही देखती रही जैसे डर हो कि अगर पलक झपकी, तो वो गायब हो जाएगा... उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है... वो बिस्तर से उठी और धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ़ चली गई... थोड़ी देर तक बाहर झाँकती रही, लेकिन जब उसने पीछे मुड़कर देखा…

उसके कदम वहीं थम गए...

वो जहाँ की तहाँ जड़ हो गई...

उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं…

उसने खुद को देखा... वही बिस्तर पर, एकदम शांत, बेसुध लेटा हुआ शरीर...

और उसके पास वही एकांश जो अभी भी नींद में था...

उसने खुद को छूने की कोशिश की… और घबरा गई... ये क्या हो रहा था? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... वो धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ़ लौटी… और उसने अपने बेसुध शरीर को हिलाने की कोशिश की लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ...

उसने फिर से बिस्तर पर जाकर खुद को उसी जगह 'फिट' करने की कोशिश की… लेकिन उसका शरीर, उसकी आत्मा को स्वीकार ही नहीं कर रहा था..

"क्या मैं… मर गई हूँ?"

मन में ये ख्याल आते ही उसके पैर जैसे जवाब दे गए... वो वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर पड़ी… उसे यक़ीन नहीं हो रहा था… क्या वो अब सच में मर चुकी है?

"क्या मैं अब… भूत बन गई हूँ?"

उसने खुद से ये सवाल किया… और फिर फूट-फूट कर रोने लगी...

उसकी नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसकी मासूम नींद में था, बेख़बर… इस सब से अनजान...

"अगर उसे पता चल गया कि मैं मर चुकी हूँ तो… उसका क्या होगा? क्या वो ये सह पाएगा?"

ये ख्याल ही अक्षिता तोड़ने लगा... वो अंदर ही अंदर डरने लगी... वो भी अलग-अलग ख्यालों में डूबी थी… और तभी कमरे में डॉक्टर आ गए... उसने उनकी आवाज़ सुनी… और उनका चेहरा देखा... डॉक्टर के चेहरे पर चिंता साफ़ थी... उन्होंने एकांश की तरफ देखा और लंबी सांस लेते हुए उसकी तरफ बढ़े...

रोज़ की तरह उन्होंने उसका चेकअप शुरू किया… लेकिन इस बार… अक्षिता उनके हर एक्शन को देख रही थी, सुन रही थी... और अंदर ही अंदर डर रही थी

"कहीं डॉक्टर अभी उसकी मौत की खबर तो नहीं देने वाले?" उसने अपना दिल थाम लिया

इसी बीच मशीन की आवाज़ हुई… और एकांश नींद से उठ गया...

"वो कैसी है?" उसने उनींदी आँखों से अक्षिता की ओर देखते हुए डॉक्टर से पूछा..

अक्षिता ने दर्द से आंखें बंद कर लीं… और उसके आंसू बहने लगे.. डॉक्टर ने नज़रें झुका लीं, एक आह भरी और सिर्फ़ एक शब्द कहा

"Same."

अब अक्षिता की आंखे हैरत में फैल गई.. उसने अपने चेहरे को छुआ… हाथों को देखा…

"मैं मरी नहीं हूँ!"

"मैं अब भी ज़िंदा हूँ!"

"मैं अब भी साँस ले रही हूँ!"

उसके अंदर एक नई उम्मीद जगी लेकिन साथ ही एक और सवाल भी…

"तो फिर ये सब क्या है? मेरे साथ हो क्या रहा है?"

वो अभी ये सब समझने की कोशिश कर ही रही थी के एकांश की आवाज वहां एक बार फिर गूंजी

"6 महीने हो गए… कोई improvement क्यों नहीं है?"

अक्षिता वहीं खड़ी रह गई... बिल्कुल सुन्न!

"छह महीने…?"

"मैं इस हालत में पिछले 6 महीनों से पड़ी हूँ…?"

डॉक्टर ने बहुत धीमे और भारी आवाज़ में कहा,

"हाँ… 6 महीने हो गए.. कोई खास सुधार नहीं दिख रहा"

डॉक्टर की बात सुन एकांश का चेहरा सख़्त हो गया था

"डॉक्टर…"

उसकी आवाज़ में गुस्सा भी था और टूटन भी

"अब वक़्त आ गया है, एकांश…"

डॉ. अवस्थी अब पहली बार इन महीनों में अपने दिल की बात एकांश से कर रहे थे

"तुम खुद को इस इंतज़ार में खत्म कर रहे हो... मैं समझ सकता हूँ ये तुम्हारे लिए कितना मुश्किल है… लेकिन ज़रा अपने मम्मी-पापा के बारे में सोचो... तुम्हारी हालत देखकर वो रोज़ टूट रहे हैं... तुम्हें लगता है अक्षिता तुम्हें इस हालत में देखकर खुश होगी?"

"वो कभी नहीं चाहेगी कि तुम अपनी ज़िंदगी यूं रोक दो, सिर्फ़ उसके लिए... प्लीज़… try to move on…"

डॉक्टर की ये बात पहली बार डर की बजाय दिल से निकली हुई लग रही थी... जिसका जवाब अब एकांश ने देना था वही अक्षिता ये सब होता चुप चाप देख रही थी... भीगी आंखों से

एकांश का दर्द उसकी आंखों से साफ़ झलक रहा था… और अब वो उसे सह नहीं पा रही थी

"क्या आप लोग मुझसे आगे बढ़ने के लिए कहना बंद कर सकते हैं?" एकांश की आवाज़ एकदम तेज़ हो गई थी एकदम गुस्से से भरी हुई, लेकिन अंदर से पूरी तरह टूटी हुई...

"हर किसी से यही सुनकर थक गया हूँ मैं!"

"प्लीज़… मुझे मत बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए!"

अक्षिता ने आंसुओं से भरी आंखों से उसकी ओर देखा... एकांश के चेहरे पर गुस्सा कम और दर्द ज़्यादा था...

डॉक्टर खामोश खड़े रहे..

"तो आप क्या चाहते हैं? मैं बस उसे यूँ छोड़ दूं? भूल जाऊं कि वो है ही नहीं? अपनी ज़िंदगी में यूँ ही आगे बढ़ जाऊं?" बोलते हुए एकांश की आवाज़ कांप रही थी...

"For God's sake, वो मरी नहीं है… और ना ही मरेगी... वो ज़रूर जागेगी… मेरे लिए..." डॉक्टर आगे कुछ कहने ही वाले थे कि एकांश ने हाथ उठाकर उन्हें चुप करा दिया...

"क्या कभी आपके मन में ये सवाल आया… कि वो ज़िंदा है… और मैं बस उसका इंतज़ार कर रहा हूँ?"

वो धीरे से नीचे देखने लगा… उसकी आंखें भर आई थीं

"मैं उसके जागने का इंतज़ार कर रहा हूँ… ताकि हम साथ में अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू कर सकें... और यकीन मानिए डॉक्टर मैं इस इंतज़ार में खुश हूँ" फिर उसकी आवाज़ और भी टूटने लगी..

"आप सब यही चाहते हो ना कि मैं उसे भूलकर आगे बढ़ जाऊँ? पर क्या आपको लगता है कि ऐसा करके मैं वाकई खुश रहूंगा?"

उसने अक्षिता की ओर देखा और उसकी आँखों में सिर्फ़ एक सवाल था कि क्या तुम भी यही चाहती हो?

"नहीं!"

"वो मेरी ज़िंदगी है… मेरी खुशी है… मेरा सबकुछ है"

"अगर वो वापस नहीं आई… तो मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूंगा… लेकिन एक बात पक्की है, मैं उसके बिना कभी भी सच में खुश नहीं रह पाऊँगा"

उसने अक्षिता का हाथ पकड़ लिया और फूट-फूटकर रोने लगा... अक्षिता की आंखों से भी आंसू बह निकले, वो भी एकांश के साथ रो रही थी…

डॉक्टर थोड़ा झुके, और उन्होंने एकांश की पीठ पर हाथ रखा

"मैं समझता हूँ… और मैं ये सब इसलिए कह रहा था क्योंकि मैंने देखा है, तुमसे प्यार करने वाले लोग तुम्हारे लिए रोज कितना तड़पतेहैं…"

डॉक्टर की आवाज़ इस बार नर्म थी वो अब सलाह नहीं दे रहे थे, बस सच बोल रहे थे..

"लेकिन एक बात है… कभी-कभी छोड़ना ज़रूरी होता है एकांश और अगर वो सच में तुम्हारी है… तो वो ज़रूर लौटेगी"

एकांश ने अक्षिता का हाथ और कसकर पकड़ लिया जैसे अगर उसने उसे छोड़ा, तो सब कुछ खो देगा...

डॉक्टर थोड़ा पीछे हटे और धीरे से बोले,

"प्लीज़… अब उसे छोड़ दो"

"नहीं!"

एकांश अचानक उठ खड़ा हुआ

"कभी नहीं!"

उसकी आवाज़ फट पड़ी… और वो गुस्से से कमरे से बाहर चला गया

डॉक्टर ने एक लंबी सांस ली और बस भगवान से यही दुआ की के “कुछ ऐसा कर दो… जो सब ठीक कर दे”

अक्षिता जल्दी से एकांश के पीछे भागी

उसने देखा कि वो सीधा अपनी कार की तरफ़ बढ़ा, और अंदर बैठते ही बुरी तरह रोने लगा... वो वहीं बाहर खड़ी थी… बस उसे देख रही थी... उस हाल में, उस टूटन में… जिसमें वो सिर्फ़ उसकी वजह से था...

पर अफ़सोस…

वो कुछ नहीं कर सकती थी...
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब उसके साथ हो क्या रहा है...

'मैं कोमा में हूँ, फिर भी मैं सब देख रही हूँ? मैं ज़िंदा हूँ, फिर भी मेरी आत्मा बाहर कैसे आ गई? और… मैं कुछ देर पहले उसे छू भी तो पाई थी… तो अब क्यों नहीं?'

क्या अब भी वो उसे छू सकती है?

धीरे-धीरे वो कार की तरफ़ बढ़ी… और उसने उसके सिर के पास पहुंचकर स्टेयरिंग व्हील पर रखा उसका सर धीरे से छुआ...

अगले ही पल...

एकांश का सिर एकदम से ऊपर उठा...

उसने इधर-उधर देखा, जैसे किसी एहसास ने उसे छुआ हो...

"अक्षु… मैं तुम्हें महसूस कर सकता हूँ.... कहाँ हो तुम?"

"मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ… प्लीज़ वापस आ जाओ…" वो सिर पकड़कर फिर से फूट पड़ा

अक्षिता वहीं थी... उसी के पास... वो भी रो रही थी… उसके साथ....

उसे लग रहा था जैसे कोई उसे किसी जंजीर से बांधे हुए है...

वो जागना चाहती थी, उसकी बाहों में वापस लौटना चाहती थी… पर कुछ था… जो उसे रोक रहा था

और तभी... उसे एहसास हुआ की वो उससे दूर जा रही है

जैसे कोई उसे खींच रहा हो… उससे अलग कर रहा हो उसने उसे पुकारा… छूने की कोशिश की… पर एकांश अब उससे दूर जा रहा था...

उसने देखा कि वो कार स्टार्ट कर चुका था और बहुत तेज़ रफ्तार में सड़क पर निकल गया... वो धीरे-धीरे उसकी आँखों से ओझल हो रहा था… और अक्षिता… बस उसे पकड़ने की कोशिश करती रही... लेकिन वो लुप्त होती जा रही थी… और अंत में, वो अंधेरे में खो गई... वो धीरे-धीरे धुंध में गुम हो गई… और अगले ही पल, अंधेरे में समा गई जैसे कोई रोशनी बुझ गई हो...

हॉस्पिटल के उस शांत कमरे में अचानक हलचल मच गई... डॉक्टर की नज़र जब मॉनिटर पर गई तो उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं... बीप की आवाज़ लगातार तेज़ होती जा रही थी... अक्षिता की नब्ज गिर रही थी… दिल की धड़कनें बेकाबू थीं मानो जैसे उसका शरीर और आत्मा किसी अलग-अलग दिशा में खींचे जा रहे हों...

डॉक्टर कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है... वो बार-बार उसकी हालत संभालने की कोशिश करते… दवाइयाँ चेक करते… मशीन सेटिंग्स देख रहे थे पर कुछ भी काम नहीं कर रहा था

कमरे में Code Blue की घोषणा हुई और अचानक वहां आपात स्थिति बन गई... नर्सें दौड़कर आईं, डिफिब्रिलेटर तैयार किया गया… डॉक्टर की आवाज़ में घबराहट थी और उनकी आँखों में डर...

उसी वक्त अक्षिता के मम्मी-पापा कमरे में दाखिल हुए और जैसे ही उन्होंने अपनी बेटी की हालत देखी… उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई, वो वहीं खड़े रह गए, बेसुध-सी हालत में, एक-दूसरे का हाथ थामे… आँखों में खौफ और दिल में टूटी हुई उम्मीद लिए

डॉक्टर अवस्थी ने डॉ. फिशर को फ़ोन किया और जल्दी-जल्दी सारी रिपोर्ट्स समझाईं… पर जवाब वहीं था: “हमें समझ नहीं आ रहा कि ये क्यों हो रहा है”

लेकिन अंदर से… सब जान रहे थे...

वो जा रही थी...

और कोई कुछ नहीं कर सकता था...

कमरे में मौजूद हर एक शख्स का चेहरा एक ही बात कह रहा था.. सब… ख़त्म हो गया

अक्षिता के पेरेंट्स ने एकांश को कॉल करने की कोशिश की… पर उसका फ़ोन unreachable था...

वो दोनों अब बस अपनी बेटी के सिरहाने खड़े थे, एक-दूसरे के कंधे पर सिर टिकाए.. रोते हुए… और एकांश के लिए दुआ करते हुए...

वहीं दूसरी ओर एकांश अब भी कार चला रहा था… बुरी तरह रोते हुए, उसकी आंखें धुंधली थीं… और दिमाग़ सुन्न... उसने सामने से आ रहे ट्रक को देखा ही नहीं...

और अगले ही पल...

तेज़ रफ्तार में उसकी कार एकदम से जंगल की तरफ मुड़ी… और फिर...

धड़ाम!

कार एक पेड़ से इतनी ज़ोर से टकराई कि उसका पूरा ढांचा मुड़ गया

एकांश हवा में उछलकर ज़मीन पर गिरा.. खून से लथपथ

पास से गुज़र रहे ट्रक ड्राइवर ने ये हादसा देखा और उसने फ़ौरन एम्बुलेंस को कॉल किया और एकांश की ओर भागा...

ज़मीन पर पड़े एकांश ने धीरे-धीरे अपनी आधी खुली आंखों से ऊपर आसमान की तरफ देखा…

और वहाँ उसे दिखा… अक्षिता का मुस्कुराता चेहरा...

उस मुस्कान में जादू था… सुकून था… उम्मीद थी...

एकांश भी हल्का सा मुस्कुराया... जैसे उसकी सारी तकलीफें उसी पल कहीं छूमंतर हो गई हों

उसने धीरे से अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया… और अक्षिता ने उसका हाथ थाम लिया...

उसने आंखें बंद कीं…

और उस मुस्कान के साथ… सब कुछ थम गया....


क्रमश:
Bahut hi badhiya update diya hai Adirshi bhai....
Nice and beautiful update....
 

Aakash.

sᴡᴇᴇᴛ ᴀs ғᴜᴄᴋ
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Maut se bhi nahi haarege ye jasbaat,
Tere pyaar ne hi di hai ye saugaat,
Har baar maut se takrayege,
Tere liye hi jiyege Tere liye hi marege...
:love:
 

park

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Update 55



"I love you."

अक्षिता ने ये शब्द बिल्कुल साफ़-साफ़ सुने थे और उसका अवचेतन मन ये पहचान गया था कि ये आवाज़ उसी की थी जिससे वो बेइंतहा मोहब्बत करती थी...

वो उसे जवाब देना चाहती थी… कहना चाहती थी, "मुझे भी तुमसे बहुत प्यार है अंश..."

लेकिन चाहकर भी नहीं कह पाई...

वो उसकी हर बात सुन सकती थी... उसकी सिसकियाँ… उसका रोज़-रोज़ उसे उठने के लिए कहना, उसका रोना… उसका टूट कर रिक्वेस्ट करना हर चीज़ उसके अंदर तक जा रही थी.. वो सब सुन रही थी महसूस कर रही थी, एकांश की चीखें, उसकी तकलीफ़… सब कुछ...

कई बार वो जागने की कोशिश करती थी, चीख कर कहने की कोशिश करती थी कि "मैं यहीं हूँ!"

लेकिन कैसे?

एक वक़्त ऐसा आया जब उसने हिम्मत छोड़ दी थी... उसने हार मान ली थी मानो जीने की कोशिशें जैसे थम सी गई थीं... उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था… और दिमाग जैसे किसी गहरी धुंध में खो गया था... बस एक ही चीज़ थी जो उसे अब तक ज़िंदा रखे हुए थी.... एकांश की आवाज़...

वरना तो वो कब का अंधेरे में समा चुकी होती… सब कुछ छोड़कर.. उसने सारी उम्मीदें छोड़ मौत से समझौता कर लिया था...

लेकिन तभी…

उसने फिर से वही आवाज सुनी

लगा मानो सालों बाद उसने उसे पुकारा हो… उस आवाज़ को फिर से सुनना ऐसा था जैसे अंधेरे में एकदम से रौशनी चमक गई हो... और उस रौशनी का नाम था एकांश...

उसी की आवाज़ ने उसे अंधेरे से खींचकर वापस ज़िंदगी की तरफ मोड़ा.. उस आवाज़ में इतनी ताक़त थी कि उसे लड़ने की वजह मिल गई थी... अब वो हर दिन उसके कुछ कहने का इंतज़ार करती… हर आवाज़ को पकड़ने की कोशिश करती जब भी वो रोता, उसका दिल जैसे फटने लगता

वो सारे बंधन तोड़कर दौड़ जाना चाहती थी, उसे गले लगाना चाहती थी, उसे ये कहना चाहती थी कि "मैं यहीं हूँ…"

लेकिन हर बार जब वो ऐसा करती उसका दिमाग खिंचने लगता, नसों में तनाव भर जाता… दिल की धड़कनें तेज़ हो जातीं और सर दर्द से भर जाता... उसने बाकी लोगों की भी आवाज़ें सुनी थीं, अपने दोस्तों की, मम्मी-पापा की… पर उसके शरीर ने कभी किसी पर कोई रिएक्शन नहीं दिया था

सिर्फ एकांश ही था… जिसकी हर बात, हर स्पर्श उसे महसूस होता था... उसे नहीं पता वो कितने दिनों से कोमा में है… उसे ये भी नहीं मालूम कि और कितने दिनों तक इसी हाल में रहेगी... लेकिन एक बात वो पूरे दिल से जानती थी कि

"मैं आज भी ज़िंदा हूँ, सिर्फ़ उसकी वजह से"

अब भी वो उसकी बातें सुन सकती थी, उसे पास महसूस कर सकती थी

अभी वो अमर और श्रेया के बारे में कुछ कह रहा था... वो उसके पास जाना चाहती थी, उसका हाथ थामना चाहती थी, उसकी आँखों में देख कर कुछ कहना चाहती थी... पर... उसका सर बुरी तरह दुख रहा था… सीने में दिल जोर-जोर से धड़क रहा था... लेकिन जब एकांश ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया… तो पहली बार उसे अपने शरीर में हल्की सी गर्माहट महसूस हुई

सूरज की हल्की-हल्की किरणें जब उसके चेहरे पर पड़ीं… तो उसने अपनी आँखें खोलीं... उसे धीरे-धीरे होश आया… और उसने खुद को बिस्तर पर बैठे हुए पाया...
वो थोड़ा इधर-उधर देखने लगी, और उसकी नज़र सामने पड़ी कुर्सी पर गई....

वो वही बैठा था… उसका सिर उसके बिस्तर पर झुका हुआ था, और वो नींद में था.... उसने झुककर धीरे से उसके सिर को सहलाया…

नींद में भी एकांश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर आई थी... वही मासूम-सी मुस्कान, जो कभी उसे बहुत सुकून देती थी...

फिर उसने ध्यान से उसका चेहरा देखा... जो थोड़ा बदल गया था… बाल कुछ ज़्यादा लंबे लग रहे थे, दाढ़ी-मूंछें गाढ़ी और बिखरी हुई थीं... उसके माथे पर हल्की-सी झुर्रियाँ थीं, और चेहरा… चेहरा किसी गहरे दर्द से भरा हुआ लग रहा था...

उसने झुककर उसके गाल पर हल्का सा किस किया…

और फिर बस उसे यूँ ही देखती रही जैसे डर हो कि अगर पलक झपकी, तो वो गायब हो जाएगा... उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है... वो बिस्तर से उठी और धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ़ चली गई... थोड़ी देर तक बाहर झाँकती रही, लेकिन जब उसने पीछे मुड़कर देखा…

उसके कदम वहीं थम गए...

वो जहाँ की तहाँ जड़ हो गई...

उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं…

उसने खुद को देखा... वही बिस्तर पर, एकदम शांत, बेसुध लेटा हुआ शरीर...

और उसके पास वही एकांश जो अभी भी नींद में था...

उसने खुद को छूने की कोशिश की… और घबरा गई... ये क्या हो रहा था? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... वो धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ़ लौटी… और उसने अपने बेसुध शरीर को हिलाने की कोशिश की लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ...

उसने फिर से बिस्तर पर जाकर खुद को उसी जगह 'फिट' करने की कोशिश की… लेकिन उसका शरीर, उसकी आत्मा को स्वीकार ही नहीं कर रहा था..

"क्या मैं… मर गई हूँ?"

मन में ये ख्याल आते ही उसके पैर जैसे जवाब दे गए... वो वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर पड़ी… उसे यक़ीन नहीं हो रहा था… क्या वो अब सच में मर चुकी है?

"क्या मैं अब… भूत बन गई हूँ?"

उसने खुद से ये सवाल किया… और फिर फूट-फूट कर रोने लगी...

उसकी नज़र एकांश पर पड़ी जो अब भी उसकी मासूम नींद में था, बेख़बर… इस सब से अनजान...

"अगर उसे पता चल गया कि मैं मर चुकी हूँ तो… उसका क्या होगा? क्या वो ये सह पाएगा?"

ये ख्याल ही अक्षिता तोड़ने लगा... वो अंदर ही अंदर डरने लगी... वो भी अलग-अलग ख्यालों में डूबी थी… और तभी कमरे में डॉक्टर आ गए... उसने उनकी आवाज़ सुनी… और उनका चेहरा देखा... डॉक्टर के चेहरे पर चिंता साफ़ थी... उन्होंने एकांश की तरफ देखा और लंबी सांस लेते हुए उसकी तरफ बढ़े...

रोज़ की तरह उन्होंने उसका चेकअप शुरू किया… लेकिन इस बार… अक्षिता उनके हर एक्शन को देख रही थी, सुन रही थी... और अंदर ही अंदर डर रही थी

"कहीं डॉक्टर अभी उसकी मौत की खबर तो नहीं देने वाले?" उसने अपना दिल थाम लिया

इसी बीच मशीन की आवाज़ हुई… और एकांश नींद से उठ गया...

"वो कैसी है?" उसने उनींदी आँखों से अक्षिता की ओर देखते हुए डॉक्टर से पूछा..

अक्षिता ने दर्द से आंखें बंद कर लीं… और उसके आंसू बहने लगे.. डॉक्टर ने नज़रें झुका लीं, एक आह भरी और सिर्फ़ एक शब्द कहा

"Same."

अब अक्षिता की आंखे हैरत में फैल गई.. उसने अपने चेहरे को छुआ… हाथों को देखा…

"मैं मरी नहीं हूँ!"

"मैं अब भी ज़िंदा हूँ!"

"मैं अब भी साँस ले रही हूँ!"

उसके अंदर एक नई उम्मीद जगी लेकिन साथ ही एक और सवाल भी…

"तो फिर ये सब क्या है? मेरे साथ हो क्या रहा है?"

वो अभी ये सब समझने की कोशिश कर ही रही थी के एकांश की आवाज वहां एक बार फिर गूंजी

"6 महीने हो गए… कोई improvement क्यों नहीं है?"

अक्षिता वहीं खड़ी रह गई... बिल्कुल सुन्न!

"छह महीने…?"

"मैं इस हालत में पिछले 6 महीनों से पड़ी हूँ…?"

डॉक्टर ने बहुत धीमे और भारी आवाज़ में कहा,

"हाँ… 6 महीने हो गए.. कोई खास सुधार नहीं दिख रहा"

डॉक्टर की बात सुन एकांश का चेहरा सख़्त हो गया था

"डॉक्टर…"

उसकी आवाज़ में गुस्सा भी था और टूटन भी

"अब वक़्त आ गया है, एकांश…"

डॉ. अवस्थी अब पहली बार इन महीनों में अपने दिल की बात एकांश से कर रहे थे

"तुम खुद को इस इंतज़ार में खत्म कर रहे हो... मैं समझ सकता हूँ ये तुम्हारे लिए कितना मुश्किल है… लेकिन ज़रा अपने मम्मी-पापा के बारे में सोचो... तुम्हारी हालत देखकर वो रोज़ टूट रहे हैं... तुम्हें लगता है अक्षिता तुम्हें इस हालत में देखकर खुश होगी?"

"वो कभी नहीं चाहेगी कि तुम अपनी ज़िंदगी यूं रोक दो, सिर्फ़ उसके लिए... प्लीज़… try to move on…"

डॉक्टर की ये बात पहली बार डर की बजाय दिल से निकली हुई लग रही थी... जिसका जवाब अब एकांश ने देना था वही अक्षिता ये सब होता चुप चाप देख रही थी... भीगी आंखों से

एकांश का दर्द उसकी आंखों से साफ़ झलक रहा था… और अब वो उसे सह नहीं पा रही थी

"क्या आप लोग मुझसे आगे बढ़ने के लिए कहना बंद कर सकते हैं?" एकांश की आवाज़ एकदम तेज़ हो गई थी एकदम गुस्से से भरी हुई, लेकिन अंदर से पूरी तरह टूटी हुई...

"हर किसी से यही सुनकर थक गया हूँ मैं!"

"प्लीज़… मुझे मत बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए!"

अक्षिता ने आंसुओं से भरी आंखों से उसकी ओर देखा... एकांश के चेहरे पर गुस्सा कम और दर्द ज़्यादा था...

डॉक्टर खामोश खड़े रहे..

"तो आप क्या चाहते हैं? मैं बस उसे यूँ छोड़ दूं? भूल जाऊं कि वो है ही नहीं? अपनी ज़िंदगी में यूँ ही आगे बढ़ जाऊं?" बोलते हुए एकांश की आवाज़ कांप रही थी...

"For God's sake, वो मरी नहीं है… और ना ही मरेगी... वो ज़रूर जागेगी… मेरे लिए..." डॉक्टर आगे कुछ कहने ही वाले थे कि एकांश ने हाथ उठाकर उन्हें चुप करा दिया...

"क्या कभी आपके मन में ये सवाल आया… कि वो ज़िंदा है… और मैं बस उसका इंतज़ार कर रहा हूँ?"

वो धीरे से नीचे देखने लगा… उसकी आंखें भर आई थीं

"मैं उसके जागने का इंतज़ार कर रहा हूँ… ताकि हम साथ में अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू कर सकें... और यकीन मानिए डॉक्टर मैं इस इंतज़ार में खुश हूँ" फिर उसकी आवाज़ और भी टूटने लगी..

"आप सब यही चाहते हो ना कि मैं उसे भूलकर आगे बढ़ जाऊँ? पर क्या आपको लगता है कि ऐसा करके मैं वाकई खुश रहूंगा?"

उसने अक्षिता की ओर देखा और उसकी आँखों में सिर्फ़ एक सवाल था कि क्या तुम भी यही चाहती हो?

"नहीं!"

"वो मेरी ज़िंदगी है… मेरी खुशी है… मेरा सबकुछ है"

"अगर वो वापस नहीं आई… तो मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूंगा… लेकिन एक बात पक्की है, मैं उसके बिना कभी भी सच में खुश नहीं रह पाऊँगा"

उसने अक्षिता का हाथ पकड़ लिया और फूट-फूटकर रोने लगा... अक्षिता की आंखों से भी आंसू बह निकले, वो भी एकांश के साथ रो रही थी…

डॉक्टर थोड़ा झुके, और उन्होंने एकांश की पीठ पर हाथ रखा

"मैं समझता हूँ… और मैं ये सब इसलिए कह रहा था क्योंकि मैंने देखा है, तुमसे प्यार करने वाले लोग तुम्हारे लिए रोज कितना तड़पतेहैं…"

डॉक्टर की आवाज़ इस बार नर्म थी वो अब सलाह नहीं दे रहे थे, बस सच बोल रहे थे..

"लेकिन एक बात है… कभी-कभी छोड़ना ज़रूरी होता है एकांश और अगर वो सच में तुम्हारी है… तो वो ज़रूर लौटेगी"

एकांश ने अक्षिता का हाथ और कसकर पकड़ लिया जैसे अगर उसने उसे छोड़ा, तो सब कुछ खो देगा...

डॉक्टर थोड़ा पीछे हटे और धीरे से बोले,

"प्लीज़… अब उसे छोड़ दो"

"नहीं!"

एकांश अचानक उठ खड़ा हुआ

"कभी नहीं!"

उसकी आवाज़ फट पड़ी… और वो गुस्से से कमरे से बाहर चला गया

डॉक्टर ने एक लंबी सांस ली और बस भगवान से यही दुआ की के “कुछ ऐसा कर दो… जो सब ठीक कर दे”

अक्षिता जल्दी से एकांश के पीछे भागी

उसने देखा कि वो सीधा अपनी कार की तरफ़ बढ़ा, और अंदर बैठते ही बुरी तरह रोने लगा... वो वहीं बाहर खड़ी थी… बस उसे देख रही थी... उस हाल में, उस टूटन में… जिसमें वो सिर्फ़ उसकी वजह से था...

पर अफ़सोस…

वो कुछ नहीं कर सकती थी...
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब उसके साथ हो क्या रहा है...

'मैं कोमा में हूँ, फिर भी मैं सब देख रही हूँ? मैं ज़िंदा हूँ, फिर भी मेरी आत्मा बाहर कैसे आ गई? और… मैं कुछ देर पहले उसे छू भी तो पाई थी… तो अब क्यों नहीं?'

क्या अब भी वो उसे छू सकती है?

धीरे-धीरे वो कार की तरफ़ बढ़ी… और उसने उसके सिर के पास पहुंचकर स्टेयरिंग व्हील पर रखा उसका सर धीरे से छुआ...

अगले ही पल...

एकांश का सिर एकदम से ऊपर उठा...

उसने इधर-उधर देखा, जैसे किसी एहसास ने उसे छुआ हो...

"अक्षु… मैं तुम्हें महसूस कर सकता हूँ.... कहाँ हो तुम?"

"मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ… प्लीज़ वापस आ जाओ…" वो सिर पकड़कर फिर से फूट पड़ा

अक्षिता वहीं थी... उसी के पास... वो भी रो रही थी… उसके साथ....

उसे लग रहा था जैसे कोई उसे किसी जंजीर से बांधे हुए है...

वो जागना चाहती थी, उसकी बाहों में वापस लौटना चाहती थी… पर कुछ था… जो उसे रोक रहा था

और तभी... उसे एहसास हुआ की वो उससे दूर जा रही है

जैसे कोई उसे खींच रहा हो… उससे अलग कर रहा हो उसने उसे पुकारा… छूने की कोशिश की… पर एकांश अब उससे दूर जा रहा था...

उसने देखा कि वो कार स्टार्ट कर चुका था और बहुत तेज़ रफ्तार में सड़क पर निकल गया... वो धीरे-धीरे उसकी आँखों से ओझल हो रहा था… और अक्षिता… बस उसे पकड़ने की कोशिश करती रही... लेकिन वो लुप्त होती जा रही थी… और अंत में, वो अंधेरे में खो गई... वो धीरे-धीरे धुंध में गुम हो गई… और अगले ही पल, अंधेरे में समा गई जैसे कोई रोशनी बुझ गई हो...

हॉस्पिटल के उस शांत कमरे में अचानक हलचल मच गई... डॉक्टर की नज़र जब मॉनिटर पर गई तो उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं... बीप की आवाज़ लगातार तेज़ होती जा रही थी... अक्षिता की नब्ज गिर रही थी… दिल की धड़कनें बेकाबू थीं मानो जैसे उसका शरीर और आत्मा किसी अलग-अलग दिशा में खींचे जा रहे हों...

डॉक्टर कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है... वो बार-बार उसकी हालत संभालने की कोशिश करते… दवाइयाँ चेक करते… मशीन सेटिंग्स देख रहे थे पर कुछ भी काम नहीं कर रहा था

कमरे में Code Blue की घोषणा हुई और अचानक वहां आपात स्थिति बन गई... नर्सें दौड़कर आईं, डिफिब्रिलेटर तैयार किया गया… डॉक्टर की आवाज़ में घबराहट थी और उनकी आँखों में डर...

उसी वक्त अक्षिता के मम्मी-पापा कमरे में दाखिल हुए और जैसे ही उन्होंने अपनी बेटी की हालत देखी… उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई, वो वहीं खड़े रह गए, बेसुध-सी हालत में, एक-दूसरे का हाथ थामे… आँखों में खौफ और दिल में टूटी हुई उम्मीद लिए

डॉक्टर अवस्थी ने डॉ. फिशर को फ़ोन किया और जल्दी-जल्दी सारी रिपोर्ट्स समझाईं… पर जवाब वहीं था: “हमें समझ नहीं आ रहा कि ये क्यों हो रहा है”

लेकिन अंदर से… सब जान रहे थे...

वो जा रही थी...

और कोई कुछ नहीं कर सकता था...

कमरे में मौजूद हर एक शख्स का चेहरा एक ही बात कह रहा था.. सब… ख़त्म हो गया

अक्षिता के पेरेंट्स ने एकांश को कॉल करने की कोशिश की… पर उसका फ़ोन unreachable था...

वो दोनों अब बस अपनी बेटी के सिरहाने खड़े थे, एक-दूसरे के कंधे पर सिर टिकाए.. रोते हुए… और एकांश के लिए दुआ करते हुए...

वहीं दूसरी ओर एकांश अब भी कार चला रहा था… बुरी तरह रोते हुए, उसकी आंखें धुंधली थीं… और दिमाग़ सुन्न... उसने सामने से आ रहे ट्रक को देखा ही नहीं...

और अगले ही पल...

तेज़ रफ्तार में उसकी कार एकदम से जंगल की तरफ मुड़ी… और फिर...

धड़ाम!

कार एक पेड़ से इतनी ज़ोर से टकराई कि उसका पूरा ढांचा मुड़ गया

एकांश हवा में उछलकर ज़मीन पर गिरा.. खून से लथपथ

पास से गुज़र रहे ट्रक ड्राइवर ने ये हादसा देखा और उसने फ़ौरन एम्बुलेंस को कॉल किया और एकांश की ओर भागा...

ज़मीन पर पड़े एकांश ने धीरे-धीरे अपनी आधी खुली आंखों से ऊपर आसमान की तरफ देखा…

और वहाँ उसे दिखा… अक्षिता का मुस्कुराता चेहरा...

उस मुस्कान में जादू था… सुकून था… उम्मीद थी...

एकांश भी हल्का सा मुस्कुराया... जैसे उसकी सारी तकलीफें उसी पल कहीं छूमंतर हो गई हों

उसने धीरे से अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया… और अक्षिता ने उसका हाथ थाम लिया...

उसने आंखें बंद कीं…

और उस मुस्कान के साथ… सब कुछ थम गया....


क्रमश:
Nice and superb update....
 
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