नहीं महोदय।मुर्गा मिल रहा है, काट लो ना![]()
ईमानदारी नाम की भी कोई चीज होती है।
हम खुद नौकरीपेशा हैं तो हम किसी बिल क्यों भरवाएंगे।
नहीं महोदय।मुर्गा मिल रहा है, काट लो ना![]()
Ok gYe sab tharki log hai ju inse door raho
आप और हम जैसे लोग दोहरी जिंदगी जी रहे है, वास्तविक दुनिया में अलग और यहाँ आभाषि दुनिया में अलग। वास्तविक जीवन में हम बनावटी रूप से खुद को साबित करने के भरसक प्रयास कर रहे है, चाहे रिश्तों को निभाने में, जिम्मेदारियों को उठाने मे, रिश्तों नातो की मर्यादाओं में रहने का ये दिखावा करते करते जब हम थक जाते है तब इस आभाषि दुनिया में आते हैं। हालांकि आज के दौर में बहुत से ऐसे प्लेटफॉर्म है जैसे fb, insta, whtup etc etc लेकिन उसके बाबजूद हमने ये ही चुना जिसकी सबसे बड़ी वजह है कि "हम" यहाँ आकर "हम" हो जाते है, जैसे "हम" है, जैसे "हम" जीना चाहते है, बिना किसी दिखावे के, बिना किसी रिश्तों में बंधे हुए, जिम्मेदारियों से परे पूर्णता एकांत दुनियाँ में खुल कर लिखते है, कहते है, पढ़ते, अपने उन पंसदिदाद लोगों के साथ जिन्हे हम बिना किसी स्वार्थ के अपना मानते है, जो हमें समझते है हमारी भवानाओ को महसूस करते है।लड़की कुंवारी हो या शादीशुदा।
लड़कों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
और इस फोरम में आकर कुछ हद तक आप किसी बात का बुरा भी नहीं मान सकते।
एक और नया खर्चा, भाई अब इससे ज्यादा पैसे खर्च नही कर सकता, अपनी साइकिल बेचकर मुझे चुनाव नही जितनाफेक बिल बना लो, किसी को कुछ पता नही चलेगा
लड़की कुंवारी हो या शादीशुदा।
लड़कों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
और इस फोरम में आकर कुछ हद तक आप किसी बात का बुरा भी नहीं मान सकते।
नहीं महोदय।
ईमानदारी नाम की भी कोई चीज होती है।
हम खुद नौकरीपेशा हैं तो हम किसी बिल क्यों भरवाएंगे।
साइकिल बेच कर लोग फर्चनर ले रहे है और तुम बिल तक नही बनवा सकतेएक और नया खर्चा, भाई अब इससे ज्यादा पैसे खर्च नही कर सकता, अपनी साइकिल बेचकर मुझे चुनाव नही जितना![]()