महेन्द्र - आ ना मेरे पास बैठ, मुझसे बातें नहीं करेगी ? आज मुझे भी नींद नहीं आ रही l
माया - जी बाबूजी क्यों नहीं.... l
महेंद्र - मानस क्या कर रहा है l
माया - वो सो गए बाबूजी l
भाग 10
माया सोफे पे महेन्द्र के बगल में बैठ जाती है l
माया को पता था की बाबूजी सासू माँ को miss कर रहे हैं l
माया - क्या हुवा बाबूजी, सासू माँ की याद आ रही है ?
महेन्द्र - हाँ बहू, काफी दिन हो गए l कबतक तुम्हारे ऊपर बोझ बना रहूँगा l
(माया बड़े प्यार से बाबूजी को देखती है और कहती है )
माया - बोझ कहाँ बाबूजी उल्टा मैं आपका ध्यान नहीं रख पाती सासू माँ की तरह इसलिए आप जाना चाहते हैं हैं na?
(माया दुलार में बोली )
महेन्द्र - अरे नहीं बहू तू तो मेरी बेटी से बढ़कर है (महेन्द्र ने ये बात माया के करीब आकर उसकी गाल पे हाथ लगा के बोला था )
माया भी दुलार में पास आ जाती है महेन्द्र उसकी कंधे पे हाथ रख देता है l
उसकी बाहँ सहलाते वो माया की लम्बी लटक रही कान के झुमको से खेलता है l
महेन्द्र - बहू तुम खुश तो हो ना...
माया - हाँ बाबूजी l
महेन्द्र - मेरा बेटा थोड़ा नासमझ है बात बात पे गुस्सा हो जाता है l उसकी बातों का बुरा ना माना करो l एक बात पूछूं अगर तुम बुरा ना मानो तो l
माया - पूछिए ना बाबूजी l
महेन्द्र - बहू... मानस तुम्हे प्यार तो करता है ना ? मैं जब कमरे में था तो तुम्हारी आवाज़ आ रही थी.. क्या तुम दोनों झगड़ा कर रहे थे ?
(महेन्द्र सब जानते हुवे भी बड़े भोलेपन से सवाल किया )
माया शर्म से लाल हो गई... उसे समझ नहीं आ रहा था की सवाल का क्या उत्तर देl फिर वो बहाना की l
माया - ओह वो वो तो बाबूजी मेरे पैर में हल्का दर्द था तो मानस मेरी मालिश कर रहे थे l (माया को जल्दी में कोई और बहाना नहीं सूझा )
महेन्द्र - ओह बहू तू दिनभर इतना काम करती है अपना ध्यान रखा कर l कुछ दवा ली l
माया - नहीं बाबूजी उसकी जरुरत नहीं l
महेन्द्र - अरे कैसे जरुरत नहीं है, रुक मैं तेरे लिए एक दवा लाता हूं, मेरे पैरों में दर्द होता था तो एक पहचान के डॉ ने मुझे एक दवा prescribe किया l बहुत फैयदा हुवा उस दवा से, रुको बहू लाता हूं l
माया मना करती रही मगर महेन्द्र अपने कमरे में आ गया... बैग से एक दवा लेकर वापस माया के करीब आया l
ये लो बहू ये दवा पी लो सब दर्द ठीक हो जायेगा l माया को समझ नहीं आया क्या बोले वो तो बहाना की थी तो फिर एक और झूठ बोली l
माया - ओह बाबूजी ये तो आयुर्वेदिक दवा है, और मुझे आयर्वेद से एलर्जी है l इसलिए main ये दवा नहीं ले सकती l
महेन्द्र - ओह बहू तो और कोई दवा तो नहीं है मेरे पास (महेन्द्र उदास मन से बोला )
माया अपने ससुर को अपने लिए इतना परेशान देख भावुक सी हो गई l
माया - बाबूजी आप इतना क्यों परेशान हैं, main ठीक हूं l आप बैठिये (माया ये बात महेन्द्र का हाथ पकड़ बोली थी )
महेन्द्र इस बार माया से रगड़ के बैठा ख़ास कर माया की मोटी जांघ महेन्द्र की जांघो से चिपक सी गई थी l
महेन्द्र के शरीर में तो जैसे गरम खून दौड़ गया l माया की मांसल जांघ भी काफी गरम फील हो रही थी l वो सोच में डूब गया उसकी आँखों के सामने कुछ देर पहले का दृश्य उमड़ उठा जब माया अपनी भारी जांघ फैलाये मानस को बीच में ली थी और जोश में कमर hilaate चुदवा रही थी l सोचते ही लंड हवा में उठ गया, महेन्द्र एक हाथ से अपना erection छुपाने की नाकाम कोशिश किया l
माया थोड़ी असमंजस सी महेन्द्र के टांगों के बीच देखी तो उसे वहां उनका लंड हरकत करते दिखा साथ ही माया की नज़र वहाँ भीगे पायजामा पे भी पड़ी l माया के लिए ये काफी अजीब था एक अधेड़ उम्र का आदमी जो उसका ससुर है बिलकुल पास बैठा है और अपने शरारती लंड को छिपा रहा है, माया मन में सोच थोड़ा सा मुस्कुरा भी दी l
माया अपने ससुर को अकेला छोड़ना ही मुनासिब समझा, वो महेन्द्र से बोली l
माया - अच्छा बाबूजी सो जाइये अब, (कह के वो उठने वाली ही थी की महेन्द्र ने उसे रोकते हुवे अपना हाथ अनायास ही उसकी मांसल जांघो पे रख दिया l माया के बदन में तो जैसे करंट सा दौड़ गया l
महेन्द्र - बैठो ना बहू, अभी तो बैठना चाहती थी तुम l
अचानक ही सही मगर एक ससुर ने बहू की जांघ पे हाथ रख दिया था l सख्त हांथों का स्पर्श माया के बदन में भी झुरझुरी पैदा कर दिया l उसकी दिल की धड़कन तेज़ थी, उसने नज़रें नीची कर देखा तो महेन्द्र का लंड पायजामा में ऊपर नीचे हो रहा था l
माया - मुझे लगा आपको नींद आ रही है l
महेन्द्र - नहीं बहू नींद तो बिलकुल नहीं आ रही मुझे (महेन्द्र हिम्मत करके हाथ जांघ पे ही रहने दिया l जवान औरत की जांघ वो भी अपनी बहू की उफ्फ्फ... patle गाउन में महेन्द्र को ऐसा लग रहा था जैसे वो बहू की नंगी जांघ छू रहा हो l
महेन्द्र हल्का सा हाँथ बहू की जांघ पे फेरा और bola.. बहू तुम्हारा गाउन बहुत सुन्दर है l
माया कुछ ना बोल पाई उसने बस हामी में सर हिला दिया l महेन्द्र ने दुबारा सवाल किया.. बहू तुम क्या सोते हुवे हर रोज यही गाउन पहनती हो ?
माया कुछ समझ नहीं पा रही थी, आज बाबूजी मुझसे इतने प्राइवेट सवाल क्यों पूछ रहे हैं l या फिर सवाल नार्मल है शायद rishta अलग है जिससे वो इन सवालों से थोड़ी असहज थी l
माया ने फिर भी जवाब दिया... नहीं बाबूजी कुछ भी पहन के सो जाती हूं कल कुर्ती लेग्गिंग पहनी थी तो वही पहने सो गई l लेग्गिंग की बात सुनते ही महेन्द्र के आँखों के सामने माया की बड़ी गांड का मंज़र याद आ गया l
उसने हाथ का दबाव बढ़ाते हुवे कहा... ओह हाँ बहू... वैसे तुम कल बहुत सुन्दर लग रही थी.. ख़ास कर... (महेन्द्र कहते कहते रुक सा गया )
माया अपनी तारीफ सुन बहुत खुश हो गई और शर्मायी भी...कोई भी लड़की अपनी तारीफ सुन खुश हो जाती है चाहे कोई भी हो... लेकिन वहीँ महेन्द्र की अधूरी बात उसके मन में जिज्ञासा को जगा दी... क्या बाबूजी..?? वो सुनाना चाहती थी की बाबूजी क्या बोलना चाहते हैं l
महेन्द्र - बहुत सुन्दर लग रही थी tum...
माया - बेसब्री दिखाते हुवे लेकिन आप क्या बोल रहे थे क्या ख़ास...
महेन्द्र - वो वो..... तुम तुम... पे लेग्गिंग्स काफी अच्छी लगती है l महेन्द्र बिना रुके एक सांस में बोल गया l
(माया को भली भांति पता था की लेग्गिंग में कमर के नीचे का भाग उभर के दिखता है और कॉलेज में तो लड़कियाँ भी उसकी hip की साइज से जलती थीं l माया को तो बहुत लड़कों ने उसके curvy फिगर की तारीफ की थी आज पहली बार किसी उम्रदराज़ व्यक्ति के मुँह से अपनी तारीफ सुन वो फुले नहीं समा रही थी l)
माया - एक बात कहूं बाबूजी l
महेन्द्र - हाँ बोलो बहू l
माया - मैं ना शादी से पहले हमेशा सोचती थी की मेरा ससुराल कैसा होगा ससुराल के लोग कैसे होंगे क्या मुझे फ्रीडम मिलेगी क्या मैं मनचाहा काम कर सकूंगी मनचाहा कपड़े पहन सकूंगी, लेकिन मैं किस्मत वाली हूं जो आप जैसा पिता सामान ससुर मिला मुझे l(माया ये बात महेन्द्र के करीब आकर उनकी आँखो में देखते हुवे बोली )
महेन्द्र - ओह बहू मैंने कहा na.. तू तो मेरी बहू नहीं बेटी है l (महेन्द्र कहते हुवे माया की कमर में हाथ डाल उसे अपनी ओर खींच लिया, माया सम्भलते सम्भलते भी महेन्द्र के सीने पे आ गई, उसकी दायीं बूब महेन्द्र के सीने से सट गई l)
माया ससुर के साथ इतने करीब कभी नहीं बैठी ना ही कभी वो इस तरह प्यार भरी बातें की थी, वो असहज सी नज़रें अपने bedroom की तरफ घुमाई उसे डर था की कहीं मानस ना आ जाए l ऐसा नहीं था की वो कुछ गलत कर रही थी उसे तो बस चिंता थी की मानस उसे ससुर के इतना करीब देख गलत ना समझ ले l तभी महेन्द्र माया की कमर पे हाँथ फेरता बोला l
महेन्द्र - बहू... मानस सो रहा है ना.. ? कहीं ऐसा तो नहीं की hum इधर बातें कर रहे हो और उसकी नींद ख़राब हो l
माया - पता नहीं बाबूजी l
महेन्द्र - उसे disturb होगा बहू.. तू एक काम कर दरवाजा बाहर से बंद करके आ जा l
(महेन्द्र ने जैसे माया की मन की बात पढ़ ली हो इस situation में माया को भी यही बात अच्छी लगी )
वो हामी भरती हुई उठ कर door के पास आयी देखा तो मानस सो रहा था वो धीरे से door खींची अजीब सी feeling थी माया के मन में उस वक़्त जैसे कोई पाप करने जा रही हो... और नहीं भी.... आखिरकार वो मानस को बेवजह किसी परेशानी में नहीं पड़ने देना चाहती थी l