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महेन्द्र - उसे disturb होगा बहू.. तू एक काम कर दरवाजा बाहर से बंद करके आ जा l
(महेन्द्र ने जैसे माया की मन की बात पढ़ ली हो इस situation में माया को भी यही बात अच्छी लगी )
वो हामी भरती हुई उठ कर door के पास आयी देखा तो मानस सो रहा था वो धीरे से door खींची अजीब सी feeling थी माया के मन में उस वक़्त जैसे कोई पाप करने जा रही हो... और नहीं भी.... आखिरकार वो मानस को बेवजह किसी परेशानी में नहीं पड़ने देना चाहती थी l
भाग 11
माया दरवाजा बंद कर दी बाहर से और वापस सोफे के पास आकर खड़ी हो गई l
महेन्द्र - बंद कर दी बहू l
माया - हाँ बाबूजी l
महेन्द्र - तो आ बैठ मेरे पास (महेन्द्र ने बहू को खींच के सोफे पे अपने बिलकुल करीब बैठा दिया )
बहू के कमर में हाथ डाल एक बार फिर उसे अपने करीब खींच लिया l
माया का एक हाथ महेन्द्र के सीने पे था l महेन्द्र ने प्यार से माया का हाथ पकड़ा l
हाथ की रेखा देखते... अरे बहू तुम तो बड़ी भाग्यशाली हो l
माया - क्या मतलब बाबूजी l
महेन्द्र - ये देखो ये किस्मत की rekha होती है और ये धन की l
माया - आपको हाथ देखना आता है ?
महेन्द्र - हाँ हाथ, चेहरा, handwriting सब देखना आता है, जब मैं मुंबई में था आज से 8 साल पहले तब मैं एक फ्रेंड के साथ रहता था उसके अंकल बहुत बड़े astrologer थे l मेरा interest भी था तो उनसे 2 साल शिक्षा ली l
माया - wow बाबूजी आपने कभी बताया नहीं l अच्छा तो मेरी हाथ क्या कहती है l
(महेंद्र बहुत chalak था माया के पापा उसके बहुत अच्छे दोस्त हैं, शादी के दिनों में माया के बारे में बहुत सी जानकारी दी थी, महेन्द्र ने सोचा यही मौका है बहू का भरोसा paane का )
महेन्द्र माया के हाँथ देख उसे पढ़ने की कोशिश करने लगा और बातें बनाने लगा l
महेन्द्र - ओके बहू तुम्हारी ये जो line है वो तुम्हारे बचपन को बयान करती है l तुम्हारा बचपन बहुत अच्छा नहीं था है ना l
माया - उम्म्म हाँ but किस बारे में
महेन्द्र - दुबारा देखते हुवे... तुम्हारी हेल्थ ठीक नहीं रहती थी और शायद तुम बहुत बीमार भी रहती थी किसी कारणवश, क्या कोई हादसा भी हुवा है तुम्हारे साथ बचपन में ?
माया - चौंकते हुवे l हाँ मेरी माँ बताती हैं की मैं बहुत बीमार रहती थी और बचपन में एक बार खेलते खेलते कुवें में गिर गई थी l लेकिन रस्सी में मेरा पाओं फंस गया था तो मैं बच गई गांव वालों ने बचाया था मुझे l
महेन्द्र - हम्म
माया की जिज्ञासा और बढ़ गई, कोई और बात बताइये ना मेरे प्रेजेंट या फ्यूचर के बारे में l
महेन्द्र - ओके ये रेखा देख रही हो ये कहता है की तुमहरे पास काफी पैसा होगा l
माया - ये तो झूठ है, कहाँ पैसा है l
महेन्द्र - वो भविष्य में होगा... अभी तो शुरुवात है बहू l और हाँ तुम्हारे 2 बच्चे होंगे l
माया शरमा गई l
माया - बाबूजी वो सब नहीं कुछ अच्छा बताइये ना, अच्छा मैं आपका टेस्ट लेती हूं l कुछ ऐसा बताइये जो मेरे present se जुड़ा हो देखूं कितना सच है l
महेन्द्र फंस चूका था, लेकिन उसे कुछ तो बोलना था तो उसने बहू की नेचर को धयान में रख बोला l
महेन्द्र - हम्म्म... तुम बहुत सुलझी हुई और सीधी हो किसी का दिल दुखाना नहीं चाहती अगर तुम्हारे पति कोई गलती भी करें तो तुम उसे अपने सर ले लेती हो l सबकी help करती हो, और तुम्हारा वैवाहिक जीवन बहुत सुखदाई हैl और हाँ तुमने एक बहुत बड़ा राज अपने पति से छुपाया है l
माया सुनकर shock हो जाती है, जबकि महेन्द्र ने तो केवल अपने अनुभव का उपयोग किया था l हर किसी के जीवन में कोई ना को कोई सीक्रेट तो होता ही है मगर माया को लगा की बाबूजी सच में कोई विद्वान हैं l
माया - बाबूजी.. आप तो सच में बहुत ज्ञानी है l
महेन्द्र - इतना ही नहीं बहू..... सिर्फ हाथ नहीं बहुत सी ऐसी चीज़ें होती हैं जिनसे हम भूत और भविष्य की बातें जान सकते हैं l
माया - वो क्या बाबूजी ?
(माया महेन्द्र की मीठी बातों के jaal में fansti जा रही थी )
महेन्द्र - जैसे की बहू हाथ की रेखा के साथ साथ, handwriting, नंबर, कलर, शरीर पे तिल वगैरह
माया - तिल.... तिल से भी ?
महेन्द्र - हाँ तिल से भी उसका आकार कलर का गहरापन इन सबसे भी पता चलता है l (महेन्द्र ने एक और जाल फेंका )
माया - मैं कुछ समझी नहीं बाबूजीl
महेन्द्र - कैसे समझाऊं... अच्छा सुन... जैसे मैंने बोला की तुम्हारी हाथ की रेखा तुम्हे धनवान होने की प्रमाण देती है l
माया - हाँ l
महेन्द्र - वैसे ही शरीर के हिस्से पे कोई ख़ास तिल esko होने या ना होने को सत्यापित भी करती है l
माया बड़े गौर से सब सुन रही थी l
अच्छा एक बात बताओ बहू..... शरीर का सबसे अभिन्न अंग क्या है ?
माया - उम्म्म..... पता नहीं
महेन्द्र - हमारा पेट, क्योंकि संसार में मनुष्य जो भी करता है पेट के लिए करता है है ना ? उसी तरह पैर जो हमें आगे बढ़ने में मदद करती है l
माया - हाँ समझी l
महेन्द्र - तो इनमे से किसी जगह पे अगर तिल हो तो वो आदमी या औरत बहुत धनवान होते है l
माया कुछ सोच में पड़ जाती है,
महेन्द्र - तुम्हारे पेट पे तिल है बहू ?
माया भोलेपन से बोली..... पेट पे कहाँ बाबूजी ?
महेन्द्र इस बात का फ़ायदा उठाते हुवे अपना दूसरा हाथ सीधा बहू के पेट पे रखता है l गाउन के ऊपर से सहलाते हुवे वो हथेली नाभि के ऊपर टिका देता है l
महेन्द्र - यहाँ बहू तुम्हारी नाभि पे l
माया शर्म से लाल हो जाती है और थोड़ी मचल भी जाती है l
तभी महेन्द्र वो कह देता है जो अबतक सिर्फ मानस ने उससे कहा था l
महेन्द्र - (नाभि सहलाते huwe) बहू तुम्हारी नाभि तो बहुत गहरी है l
माया महेन्द्र के हाथ के ऊपर हाथ रखती है मगर हटाती नहीं, और महेन्द्र उसकी नाभि पे उँगलियाँ फिरता रहता है l
महेन्द्र - बोलो ना बहू तिल है क्या यहाँ
माया - (नजरें झुकाये )....नहीं बाबूजी l
महेन्द्र - ओह फिर तो तुम्हारे पैर पे होना चाहिए l
(माया दोतरफा हमले से घिर सी गई थी l एक हाथ जो महेन्द्र उसकी कमर पे रगड़ रहा था और दूसरा हाथ उसकी नर्म नाभि पे l माया धीमी आवाज़ में बोली l )
माया - पता नहीं बाबूजी कभी ध्यान नहीं दी l
महेन्द्र - क्यों बहू नहाते हुवे तो देखा होगा....
(नहीं बाबूजी )
महेन्द्र - अरे अच्छा एक काम करो पैर ऊपर करो l
इससे पहले की माया कुछ कहती महेन्द्र ने उसके दोनों पैर जमीन से उठाकर अपने पैरों यानी गोद में रख लिया l
ये इतनी तेजी से हुवा की माया को सँभलने का मौका नहीं मिला l वो सोफे पे लेट सी गई l
महेन्द्र ने भी तुरंत माया के पेट पे हाथ रख दिया ताकि वो उठ ना paaye l और माया को पीछे support के लिए एक तकिया दे दिया l
महेन्द्र ने पहले माया के पैर घुटनो से नीचे तक देखे l
माया को उसके ससुर का उसके खुले अंगो को देखना अजीब लग रहा था l
महेन्द्र - यहाँ to nahi है, (महेन्द्र गाउन को घुटनो से ऊपर खींचने लगा )
माया स्थिर सी लेटी रही,... ना जाने क्यों वो ससुर जी को रोक नहीं पाई l कुछ ही पलों में माया की दूधिया मांसल जाँघे पूरी नंगी हो गईं l महेन्द्र के लंड में उफान मचने लगा जो नीचे से माया की गांड पे चोट कर रहा था l
जवान बहू आधी नंगी महेन्द्र के गोद के ऊपर थी महेन्द्र ने इतने वर्षो मैं ऐसी मांसल जांघ इतने करीब से नहीं देखी थी l उसके सब्र का बांध टूटता जा रहा था l
उसने अपने हाथ बहू के खुले जांघ पे रख दी, इधर माया कसमसाई सी तकिये में अपना मुँह ढक ली l
माया की तरफ से कोई विरोध ना देख महेन्द्र ने उसकी जांघ को अंदर तक छुवा, इतना अंदर हाथ डालने के बावजूद महेन्द्र को कोई पैंटी नहीं मिली, उसका दिल जोर से धड़का क्या बहू गाउन के अंदर कुछ नहीं पहनी l
माया को जब ख्याल आया की उसने गाउन के अंदर panty नहीं पहनी है तो उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा वो शर्म के मारे अपनी दोनों जांघ को आपस में भींच ली l
महेन्द्र का हाथ माया के जांघो के बीच ही फंसा रह गया l माया के खुली चूत से निकलती गर्म भाप को महेन्द्र अपनी हथेली का पिछले हिस्से पे साफ़ महसूस कर सकता था l जांघो पे ससुर की हथेली का स्पर्श पाकर माया की बुर ने पानी छोड़ दिया था l
माया की गीली चूत मानो महेन्द्र के उँगलियों से बस 1 इंच के फासले पे थी l इस बात का अहसास माया को भी था l
लेकिन ये एक इंच का फासला तय करना आसान नहीं था, यहाँ से चीजें या तो बिगड़ सकती थीं या बन सकती थीं l
इसलिए महेन्द्र बड़ी सहजता से वहीँ रुका रहा l माया का चेहरा तकिये se ढका था तो वो समझ नहीं पा रहा था की जो हो रहा है क्या उसमे बहू की रजामंदी है,, कहीं बहू मुझे गन्दा आदमी समझ के अपनी लाइफ से ना निकाल दे हमेशा हमेशा के लिए l
उसने सोचा की बहू से बात करके पता लगाए की बहू के दिल में क्या है l तो उसने चुप्पी तोड़ी, क्या हुवा बहू नींद आ रही है क्या ?
महेन्द्र ने अपना सवाल पूरा भी नहीं किया था की तभी पावर कट हो गया और पुरे कमरे में अँधेरा छा गया l
अँधेरे ने महेन्द्र की हिम्मत बढ़ा दी, उसने हथेली की उंगलियां खोली और बहू की बुर की फांक से दो उंगलि टच हो गई l
माया सिहर उठी उसकी बुर का रस महेन्द्र की उँगलियों पे बह गया l
माया - बाबूजी मैं मोमबत्ती जलाती हूं l (माया ने सर उठा के ऐसे रियेक्ट किया जैसे उसे कुछ नहीं पता लेकिन उसकी बोली और उसका शरीर अलग अलग हरकत कर रही थी )
माया उठने के बहाने अपनी कमर नीचे की ओर दबाई, जैसे वो सख्त उँगलियों को अपने अंदर भींचना चाहती हो l
महेन्द्र को लगा की माया अगर चली गई तो उसे दुबारा ऐसा मौका नहीं मिलेगा, वो तो हर हाल में बहू की बूर को अच्छी तरह फील करना चाहता था l महेन्द्र ने इसी बहाने हथेली सीधी कर एकदम से बहू की नंगी बुर को छू लिया l
महेन्द्र - रहने दे बहू मोमबत्ती की क्या जरुरत l
माया - नहीं बाबूजी लाती हूँ, माया उठ गई थी महेन्द्र ने भी हाथ हटा लिया था l माया उठकर किचन में आयी उसकी बुर कामरस में पूरी तरह गीली हो गई थी l
इधर महेन्द्र की हालत ऐसी थी जैसे हाथ लगा खजाना गुम हो गया हो l वो अपनी हथेली को नाक के पास रगड़ कर बहू की जवान बुर की महक ले रहा था l
(महेन्द्र ने जैसे माया की मन की बात पढ़ ली हो इस situation में माया को भी यही बात अच्छी लगी )
वो हामी भरती हुई उठ कर door के पास आयी देखा तो मानस सो रहा था वो धीरे से door खींची अजीब सी feeling थी माया के मन में उस वक़्त जैसे कोई पाप करने जा रही हो... और नहीं भी.... आखिरकार वो मानस को बेवजह किसी परेशानी में नहीं पड़ने देना चाहती थी l
भाग 11
माया दरवाजा बंद कर दी बाहर से और वापस सोफे के पास आकर खड़ी हो गई l
महेन्द्र - बंद कर दी बहू l
माया - हाँ बाबूजी l
महेन्द्र - तो आ बैठ मेरे पास (महेन्द्र ने बहू को खींच के सोफे पे अपने बिलकुल करीब बैठा दिया )
बहू के कमर में हाथ डाल एक बार फिर उसे अपने करीब खींच लिया l
माया का एक हाथ महेन्द्र के सीने पे था l महेन्द्र ने प्यार से माया का हाथ पकड़ा l
हाथ की रेखा देखते... अरे बहू तुम तो बड़ी भाग्यशाली हो l
माया - क्या मतलब बाबूजी l
महेन्द्र - ये देखो ये किस्मत की rekha होती है और ये धन की l
माया - आपको हाथ देखना आता है ?
महेन्द्र - हाँ हाथ, चेहरा, handwriting सब देखना आता है, जब मैं मुंबई में था आज से 8 साल पहले तब मैं एक फ्रेंड के साथ रहता था उसके अंकल बहुत बड़े astrologer थे l मेरा interest भी था तो उनसे 2 साल शिक्षा ली l
माया - wow बाबूजी आपने कभी बताया नहीं l अच्छा तो मेरी हाथ क्या कहती है l
(महेंद्र बहुत chalak था माया के पापा उसके बहुत अच्छे दोस्त हैं, शादी के दिनों में माया के बारे में बहुत सी जानकारी दी थी, महेन्द्र ने सोचा यही मौका है बहू का भरोसा paane का )
महेन्द्र माया के हाँथ देख उसे पढ़ने की कोशिश करने लगा और बातें बनाने लगा l
महेन्द्र - ओके बहू तुम्हारी ये जो line है वो तुम्हारे बचपन को बयान करती है l तुम्हारा बचपन बहुत अच्छा नहीं था है ना l
माया - उम्म्म हाँ but किस बारे में
महेन्द्र - दुबारा देखते हुवे... तुम्हारी हेल्थ ठीक नहीं रहती थी और शायद तुम बहुत बीमार भी रहती थी किसी कारणवश, क्या कोई हादसा भी हुवा है तुम्हारे साथ बचपन में ?
माया - चौंकते हुवे l हाँ मेरी माँ बताती हैं की मैं बहुत बीमार रहती थी और बचपन में एक बार खेलते खेलते कुवें में गिर गई थी l लेकिन रस्सी में मेरा पाओं फंस गया था तो मैं बच गई गांव वालों ने बचाया था मुझे l
महेन्द्र - हम्म
माया की जिज्ञासा और बढ़ गई, कोई और बात बताइये ना मेरे प्रेजेंट या फ्यूचर के बारे में l
महेन्द्र - ओके ये रेखा देख रही हो ये कहता है की तुमहरे पास काफी पैसा होगा l
माया - ये तो झूठ है, कहाँ पैसा है l
महेन्द्र - वो भविष्य में होगा... अभी तो शुरुवात है बहू l और हाँ तुम्हारे 2 बच्चे होंगे l
माया शरमा गई l
माया - बाबूजी वो सब नहीं कुछ अच्छा बताइये ना, अच्छा मैं आपका टेस्ट लेती हूं l कुछ ऐसा बताइये जो मेरे present se जुड़ा हो देखूं कितना सच है l
महेन्द्र फंस चूका था, लेकिन उसे कुछ तो बोलना था तो उसने बहू की नेचर को धयान में रख बोला l
महेन्द्र - हम्म्म... तुम बहुत सुलझी हुई और सीधी हो किसी का दिल दुखाना नहीं चाहती अगर तुम्हारे पति कोई गलती भी करें तो तुम उसे अपने सर ले लेती हो l सबकी help करती हो, और तुम्हारा वैवाहिक जीवन बहुत सुखदाई हैl और हाँ तुमने एक बहुत बड़ा राज अपने पति से छुपाया है l
माया सुनकर shock हो जाती है, जबकि महेन्द्र ने तो केवल अपने अनुभव का उपयोग किया था l हर किसी के जीवन में कोई ना को कोई सीक्रेट तो होता ही है मगर माया को लगा की बाबूजी सच में कोई विद्वान हैं l
माया - बाबूजी.. आप तो सच में बहुत ज्ञानी है l
महेन्द्र - इतना ही नहीं बहू..... सिर्फ हाथ नहीं बहुत सी ऐसी चीज़ें होती हैं जिनसे हम भूत और भविष्य की बातें जान सकते हैं l
माया - वो क्या बाबूजी ?
(माया महेन्द्र की मीठी बातों के jaal में fansti जा रही थी )
महेन्द्र - जैसे की बहू हाथ की रेखा के साथ साथ, handwriting, नंबर, कलर, शरीर पे तिल वगैरह
माया - तिल.... तिल से भी ?
महेन्द्र - हाँ तिल से भी उसका आकार कलर का गहरापन इन सबसे भी पता चलता है l (महेन्द्र ने एक और जाल फेंका )
माया - मैं कुछ समझी नहीं बाबूजीl
महेन्द्र - कैसे समझाऊं... अच्छा सुन... जैसे मैंने बोला की तुम्हारी हाथ की रेखा तुम्हे धनवान होने की प्रमाण देती है l
माया - हाँ l
महेन्द्र - वैसे ही शरीर के हिस्से पे कोई ख़ास तिल esko होने या ना होने को सत्यापित भी करती है l
माया बड़े गौर से सब सुन रही थी l
अच्छा एक बात बताओ बहू..... शरीर का सबसे अभिन्न अंग क्या है ?
माया - उम्म्म..... पता नहीं
महेन्द्र - हमारा पेट, क्योंकि संसार में मनुष्य जो भी करता है पेट के लिए करता है है ना ? उसी तरह पैर जो हमें आगे बढ़ने में मदद करती है l
माया - हाँ समझी l
महेन्द्र - तो इनमे से किसी जगह पे अगर तिल हो तो वो आदमी या औरत बहुत धनवान होते है l
माया कुछ सोच में पड़ जाती है,
महेन्द्र - तुम्हारे पेट पे तिल है बहू ?
माया भोलेपन से बोली..... पेट पे कहाँ बाबूजी ?
महेन्द्र इस बात का फ़ायदा उठाते हुवे अपना दूसरा हाथ सीधा बहू के पेट पे रखता है l गाउन के ऊपर से सहलाते हुवे वो हथेली नाभि के ऊपर टिका देता है l
महेन्द्र - यहाँ बहू तुम्हारी नाभि पे l
माया शर्म से लाल हो जाती है और थोड़ी मचल भी जाती है l
तभी महेन्द्र वो कह देता है जो अबतक सिर्फ मानस ने उससे कहा था l
महेन्द्र - (नाभि सहलाते huwe) बहू तुम्हारी नाभि तो बहुत गहरी है l
माया महेन्द्र के हाथ के ऊपर हाथ रखती है मगर हटाती नहीं, और महेन्द्र उसकी नाभि पे उँगलियाँ फिरता रहता है l
महेन्द्र - बोलो ना बहू तिल है क्या यहाँ
माया - (नजरें झुकाये )....नहीं बाबूजी l
महेन्द्र - ओह फिर तो तुम्हारे पैर पे होना चाहिए l
(माया दोतरफा हमले से घिर सी गई थी l एक हाथ जो महेन्द्र उसकी कमर पे रगड़ रहा था और दूसरा हाथ उसकी नर्म नाभि पे l माया धीमी आवाज़ में बोली l )
माया - पता नहीं बाबूजी कभी ध्यान नहीं दी l
महेन्द्र - क्यों बहू नहाते हुवे तो देखा होगा....
(नहीं बाबूजी )
महेन्द्र - अरे अच्छा एक काम करो पैर ऊपर करो l
इससे पहले की माया कुछ कहती महेन्द्र ने उसके दोनों पैर जमीन से उठाकर अपने पैरों यानी गोद में रख लिया l
ये इतनी तेजी से हुवा की माया को सँभलने का मौका नहीं मिला l वो सोफे पे लेट सी गई l
महेन्द्र ने भी तुरंत माया के पेट पे हाथ रख दिया ताकि वो उठ ना paaye l और माया को पीछे support के लिए एक तकिया दे दिया l
महेन्द्र ने पहले माया के पैर घुटनो से नीचे तक देखे l
माया को उसके ससुर का उसके खुले अंगो को देखना अजीब लग रहा था l
महेन्द्र - यहाँ to nahi है, (महेन्द्र गाउन को घुटनो से ऊपर खींचने लगा )
माया स्थिर सी लेटी रही,... ना जाने क्यों वो ससुर जी को रोक नहीं पाई l कुछ ही पलों में माया की दूधिया मांसल जाँघे पूरी नंगी हो गईं l महेन्द्र के लंड में उफान मचने लगा जो नीचे से माया की गांड पे चोट कर रहा था l
जवान बहू आधी नंगी महेन्द्र के गोद के ऊपर थी महेन्द्र ने इतने वर्षो मैं ऐसी मांसल जांघ इतने करीब से नहीं देखी थी l उसके सब्र का बांध टूटता जा रहा था l
उसने अपने हाथ बहू के खुले जांघ पे रख दी, इधर माया कसमसाई सी तकिये में अपना मुँह ढक ली l
माया की तरफ से कोई विरोध ना देख महेन्द्र ने उसकी जांघ को अंदर तक छुवा, इतना अंदर हाथ डालने के बावजूद महेन्द्र को कोई पैंटी नहीं मिली, उसका दिल जोर से धड़का क्या बहू गाउन के अंदर कुछ नहीं पहनी l
माया को जब ख्याल आया की उसने गाउन के अंदर panty नहीं पहनी है तो उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा वो शर्म के मारे अपनी दोनों जांघ को आपस में भींच ली l
महेन्द्र का हाथ माया के जांघो के बीच ही फंसा रह गया l माया के खुली चूत से निकलती गर्म भाप को महेन्द्र अपनी हथेली का पिछले हिस्से पे साफ़ महसूस कर सकता था l जांघो पे ससुर की हथेली का स्पर्श पाकर माया की बुर ने पानी छोड़ दिया था l
माया की गीली चूत मानो महेन्द्र के उँगलियों से बस 1 इंच के फासले पे थी l इस बात का अहसास माया को भी था l
लेकिन ये एक इंच का फासला तय करना आसान नहीं था, यहाँ से चीजें या तो बिगड़ सकती थीं या बन सकती थीं l
इसलिए महेन्द्र बड़ी सहजता से वहीँ रुका रहा l माया का चेहरा तकिये se ढका था तो वो समझ नहीं पा रहा था की जो हो रहा है क्या उसमे बहू की रजामंदी है,, कहीं बहू मुझे गन्दा आदमी समझ के अपनी लाइफ से ना निकाल दे हमेशा हमेशा के लिए l
उसने सोचा की बहू से बात करके पता लगाए की बहू के दिल में क्या है l तो उसने चुप्पी तोड़ी, क्या हुवा बहू नींद आ रही है क्या ?
महेन्द्र ने अपना सवाल पूरा भी नहीं किया था की तभी पावर कट हो गया और पुरे कमरे में अँधेरा छा गया l
अँधेरे ने महेन्द्र की हिम्मत बढ़ा दी, उसने हथेली की उंगलियां खोली और बहू की बुर की फांक से दो उंगलि टच हो गई l
माया सिहर उठी उसकी बुर का रस महेन्द्र की उँगलियों पे बह गया l
माया - बाबूजी मैं मोमबत्ती जलाती हूं l (माया ने सर उठा के ऐसे रियेक्ट किया जैसे उसे कुछ नहीं पता लेकिन उसकी बोली और उसका शरीर अलग अलग हरकत कर रही थी )
माया उठने के बहाने अपनी कमर नीचे की ओर दबाई, जैसे वो सख्त उँगलियों को अपने अंदर भींचना चाहती हो l
महेन्द्र को लगा की माया अगर चली गई तो उसे दुबारा ऐसा मौका नहीं मिलेगा, वो तो हर हाल में बहू की बूर को अच्छी तरह फील करना चाहता था l महेन्द्र ने इसी बहाने हथेली सीधी कर एकदम से बहू की नंगी बुर को छू लिया l
महेन्द्र - रहने दे बहू मोमबत्ती की क्या जरुरत l
माया - नहीं बाबूजी लाती हूँ, माया उठ गई थी महेन्द्र ने भी हाथ हटा लिया था l माया उठकर किचन में आयी उसकी बुर कामरस में पूरी तरह गीली हो गई थी l
इधर महेन्द्र की हालत ऐसी थी जैसे हाथ लगा खजाना गुम हो गया हो l वो अपनी हथेली को नाक के पास रगड़ कर बहू की जवान बुर की महक ले रहा था l