- 910
- 1,312
- 123
और इस वक्त कैसी शरम से गड़ी जाने की एक्टिंग कर रही थी। सिर झुकाये हुए अंगूठे से फर्श को कुरेदने की कोशिश करती हुई। कमरे में खामोशी छाई हुई थी, मगर जूही और शीला की सूरतें बता रही थीं कि दोनों ठठाकर हंसना चाहती थीं, जैसे मेरी रैगिंग करके बहुत बड़ा तीर मार दिया हो। ‘‘कॉफी ठंडी हो रही है।‘‘ - कहते हुए जूही ने दो कपों में हमें कॉफी सर्व की और तीसरा खुद लेकर बेड पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गयी। ”अब बताओ किस्सा क्या है?“ जवाब में दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। शीला की निगाहें जूही पर टिकी थीं और जूही के चेहरे से यूं महसूस हो रहा था जैसे वो किसी दुविधा की शिकार हो। ”क्या हुआ?“ ”सोच रही हूँ“ - वह बोली - ”कहाँ से शुरू करूँ?“ ”फिर तो शुरू से ही शुरू करो, क्योंकि शुरूआत के लिए वही सबसे अच्छी जगह होती है।“ उसने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया फिर बोली - ”देखो मैं जो कुछ कहने जा रही हूँ वो सुनने में तो बेहद अटपटा लगता है, मगर सौ फीसदी सच है।“ ”सच कभी भी अटपटा नहीं होता ब्राईट आईज, तुम अपनी बात शुरू करो।“