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Horror He Loves Me..... He Loves Me Not!

Darkk Soul

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Anjaan.png

“देव, आज की मीटिंग में जा रहे हो क्या?”

नीचे गिरी स्यान रंग की ब्रा उठा कर पहनते हुए नेहा पूछी.

“हाँ, क्यों?”

विदेशी ब्रांड के पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर उसे सुलगाते हुए देव बोला.

हुक लगाते हुए नेहा बोली,

“कुछ नहीं.. बस ऐसे ही पूछ ली.” फ़िर थोड़ा रुक कर बोली,

“असल में कहना ये चाहती हूँ कि मीटिंग के चक्कर में समय पर अपनी दवाई लेना मत भूल जाना. एकदम याद से सही समय पर ज़रूर लेना. ओके?”

लगातार दो कश ले कर मुँह को थोड़ा ऊपर उठा कर धुआँ उड़ाते हुए देव बोला,

“यस डीयर, बिल्कुल लूँगा और टाइम पर लूँगा. पर....”

उसके इतना कहते ही नेहा तुनक कर लगभग डांटने के से अंदाज़ में बोली,

“कोई पर – वर नहीं; दवा हर हाल में लेना ही लेना है!”

नेहा की ओर असहाय भाव से देखते हुए देव बोला,

“लेकिन नेहा, मुझे दवा लेने की ऐसी भी कोई ज़रूरत नहीं है. मैं तो बिल्कुल ठीक....”

“हर तीस मार खां पेशेंट को ऐसा ही लगता है...थोड़े से उपचार के बाद ही खुद को निरोगी, सही सलामत मानने लगते हैं.”

नेहा अब बेड से उतर कर पास ही ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो अपने स्तनों को ब्रा कप्स में सेट करने लगी. ऐसा करते हुए बेड के बैक रेस्ट से पीठ टिका कर बैठे देव की ओर नज़रें तिरछी कर के देखी... देव अभी भी असहाय भाव से एक अजीब सा मुँह बनाया हुआ है देख कर उसकी हँसी छूटते छूटते रही. दोनों हाथों से बालों को पीछे कर पीठ पर फ़ैलाते हुए हँसी को कण्ट्रोल करते हुए बोली,

“बस... थोड़े दिन और.. फिर नहीं बोलूंगी. एकबार बस दवाओं का ये कोर्स पूरा हो जाय.”

देव बस कंधे उचकाकर एक असहमति वाली सहमति जताया और कश लगाता हुआ खिड़की से बाहर देखने लगा.



--------------------



“अभी कहाँ हो?”

“बिल्डिंग में ही.. मीटिंग जस्ट ख़त्म हुई.”

“मीटिंग हो गई?”

“हाँ.. हो गई.”

“बड़ी जल्दी हो गई?!”

“अरे जल्दी कहाँ...? ढाई घंटे लग गए. ऐसा लग रहा था मानो ये मीटिंग दिन भर चलेगी. पर थैंक गॉड की ये अब जा कर फाइनली ख़त्म हुई.”

“हम्म.. चलो अच्छा है.. कोई बात बनी?”

“बात? कैसी बात .. कौन सी बात?”

“अरे! मेरा मतलब है कि मीटिंग कैसी रही.. सक्सेसफुल?”

“हाँ. लगभग सक्सेसफुल ही रही. आई होप अब आगे का काम भी आसानी से हो जाय.”

“हम्म. मैं भी यही प्रे करुँगी.”

“हाँ.. ज़रूर करना.. हम दोनों के लिए ही अच्छा होगा.”

“अच्छा सुनो, तुमने दवा लिया?”

“हाँ, दो मिनट पहले ही लिया.”

“थैंक गॉड! मैं सोच रही थी कि कहीं तुम फ़िर से तो नहीं भूल गए.”

“हा हा हा! अरे नहीं भूला डीयर. मुझे दोबारा डांट नहीं खाना.”

“ह्म्म्म.. गुड. समझदार हो. ओके. अभी... (क्र्र्रर) .... हैलो...(किरररर्र)... .हैलो... देव... ये अचानक से क्या हुआ नेटवर्क को... देव... कहाँ हो अभी? बहुत आवाजें आ रही हैं पीछे से.”

“रोड के किनारे हूँ... गाड़ी के पास.”

“किसके... (किरर्र)... किसके पास?”

“अपनी गाड़ी के पास. क्या बात है.. नेटवर्क डिस्टर्ब है क्या?”

“हाँ...”

“ओह.. यहाँ तो ठीक है.”

“हम्म..अच्छा, तो मतलब होटल से निकल भी गए इतनी जल्दी?”

“हाँ.. अधिक देर तक रहा नहीं गया वहाँ बैठना, इसलिए मीटिंग खत्म होते ही निकल आया. मन में यही बेचैनी थी कि पता नहीं डील फाइनल होगी या नहीं; पर जब हो गयी तब चैन ही चैन मिला और फिर एक ही तमन्ना मन में रह गयी थी कि जल्दी से तुम्हारे साथ ये गुड न्यूज़ शेयर करूँ.”

“लेकिन कॉल तो मैंने किया न!” नेहा तुनक कर बोली.

“हाँ भई हाँ, तुमने ही किया. मैं तो मीटिंग रूम से निकलते ही मोबाइल निकाल लिया और तुम्हारे नाम पर डायल बटन को टच करने ही वाला था कि तुम्हारा कॉल आ गया.”

“हम्म. ओके. तो अभी का क्या प्लान है?”


“एक ही प्लान है कि मुझे अब जल्द से जल्द कॉलेज पहुँचना है.. बहुत काम है वहाँ. एक तो इतना...... ओह गॉड!!... इतना टाइम हो गया.. नेहा, मैं अब फ़ोन रखता हूँ. बाय.....”

“अरे अरे, सुनो तो!”


“अब क्या है नेहा?” देव के स्वर में अब थोड़ा झुँझलाहट का पुट आ गया. नेहा के वैसे बोलने पर उसे रुक जाना पड़ा... वो कार का दरवाज़ा खोले सड़क पर ही खड़ा हो गया और जल्दबाजी वाले स्वर में पूछा, “क्या हुआ नेहा; जल्दी बोलो.”


लेकिन कुछ सेकंड्स के लिए नेहा की ओर से कोई आवाज़ नहीं आई. फ़िर मोबाइल में डिस्टर्ब होने जैसी खरखराहट वाली आवाज़ सुने दी.... और फिर तुरंत ही दूसरी ओर से नेहा की ३ बार लगातार ‘हैलो, हैलो, हैलो’ सुनाई दी.

थोड़ी डिस्टर्बेंस फिर हुई और तब जा कर नेहा की आवाज़ सुनाई दी,

“हाँ, हैलो, सो सॉरी.. बहुत डिस्टर्ब हो रहा है.. पता नहीं क्यों? स... सा.... फ़... क... कु...छ.. सुना...ई.. नहीं... दे........”

देव को तो वैसे भी जल्दी थी इसलिए तुरंत ही बोल पड़ा,

“अच्छा कोई बात नहीं. मुझे देर हो रही है. आई ऍम आलरेडी हाफ़ एन आवर लेट. कॉलेज पहुँच कर कॉल करता हूँ. ओके. बाय स्वीटी.. टेक केयर.”


कहते हुए देव ने कॉल डिसकनेक्ट किया और ड्राइविंग सीट पर बैठने के लिए झुका ही कि तभी अत्यधिक पीड़ा से कराहते हुए छिटक कर २-३ कदम दूर जा कर गिर गया. अत्यधिक असहनीय पीड़ा से बंद होती आँखों के पूरी तरह से बंद होने से पहले एकबार अपने बाएँ कंधे को देखा... वहाँ से रक्त की एक धारा बह कर पहले उसके शर्ट, फिर कोट और फ़िर धीरे धीरे रोड पर फैलने लगा है.


देव कब बेहोश हो गया उसे पता ही नहीं चला.
 

Darkk Soul

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अपडेट 5

देव और डॉ. निमेष का वार्तालाप..

देव अपने साथ घटी घटनाओं की जिक्र करता है और उस अजीब सी प्रेम की मूर्ति या अपने लिए पागल उस लड़की से थोड़ा परेशान सा हो जाता है,

वो उसे जानता भी नही आखिर वो है कौन.!!

डॉ निमेष किसी निष्कर्ष तक नही पहुंच पाते और अंत मे देव उनके केविन से निकल कर चला जाता है.

देव घर को निकलता है उसे देख कर दूर जो चाय की दुकान पर एक व्यक्ति उसे फॉलो कर रहा था वो किसी को देव के जाने का जिक्र करता है...

कौन है वो जो उसे फॉलो कर रहा .???
क्या ये उसी लड़की के लिए काम करने वाला कोई व्यक्ति है ??

प्रतीक्षा अगले अपडेट की

:waiting:


nice update ...dev apne doctor dost ko kuch baate batata hai jisme uska jhagda ek aadmi se hua tha aur us aadmi ko kisine peet diya aur us aadmi ke kehne ke mutabik peetne wala jyada taakadwar nahi tha to dev ye soch raha tha ki wo ladki ho sakti hai ..

khoon se likha tha wo letter aur ye sunkar nimesh shocked ho gaya ..

par ye kaun hai jo dev par najar rakhe huye hai 🤔🤔 aur kiske kehne par wo aisa kar raha hai 🤔🤔🤔..
kya wo dev ki biwi hai jo apne pati par najar rakhna chahti hai ..



nice update...
Nimesh confuse hone wala hai....bahut jyada...kyunki usko abhi alas baat ka pata hi nahi hai....aur Dev ne wo baat kahi bhi nahi hai kyunki sayad wo khud usko nakar raha ho...par kaise nakar sakta hai...dono Miya Biwi ne dekha tha uss saaye ko....sayad batane se ghabra rahe ho....kaise bata de...log to pagal hi kahna shru kar denge....

Ye jo bhi phone wala hai iske saath kuch bura hone wala hai.... :evillaugh: sayad ye nazar rakh raha ho kisi ke kahne pe Dev pe par isko pata nahi kiski nazar hai Dev pe...aur wo Dev ko kuch nahi hone degi...

Update thoda jaldi dena 🥺


मुझे क्षमा कीजियेगा मित्रों, 🙏

सब कुछ क्रैश हो गया था. बनवाने और खरीदने में टाइम लग गया. 😞
 

Moon Light

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Regular rahoge to padne me bhi thik lage koi kahani
Ab smjh hi nhi aaya kya hua tha phle kya ab hua
 

Darkk Soul

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IMG-20210316-085258.jpg

दो दिन हो गए देव को अस्पताल में एडमिट हुए.

ये जानते ही वहाँ तो जैसे जनसैलाब उमड़ पड़ा. अब चाहे उसके कॉलेज के स्टूडेंट्स हों या बिज़नेस पार्टनर्स, परिवार के लोग हों या रिश्तेदारी के, कहीं का चेयरमैन हो या चपरासी, सब के सब वहाँ पहुँच कर एकबार देव को देखना चाहते हैं. समाचार पत्रों में भी ये ख़बर छपी. जिन्होंने ख़बर पढ़ा और किसी कारणवश वहाँ अस्पताल में नहीं आ सकते थे; उन लोगों को भी चिंता हुई. सबके दिल-ओ-दिमाग में देव को लेकर उसकी सुरक्षा और स्वस्थता की बहुत चिंता चलने लगी. हॉस्पिटल मैनेजमेंट के लिए इस जनसैलाब को रोक पाना टेढ़ी खीर साबित होने लगी.

पुलिस बल से स्थिति थोड़ा नियंत्रण में आया.

३ दिन और गुज़रे....

छठे दिन देव को होश आया. शरीर, विशेष कर कंधे में अब भी दर्द है पर अब वो कम से कम ‘हाय - हैलो’ कर सकता है और थोड़ी बहुत बातचीत भी. लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से अपने सभी शुभ चिंतकों को स्वयं के ठीक होने की बात कह कर आश्वासन तो दे दिया गया पर देव को अब भी स्ट्रिक्ट ऑब्जरवेशन में रखा गया है.

एक दिन शाम में थाना इंचार्ज विक्रम देव से मिलने आया. साथ में दो सिपाही भी थे.

दोनों ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया. विक्रम वहीँ बगल में ही एक चेयर लेकर बैठ गया.

थोड़े से प्राथमिकताओं के बाद विक्रम ने साथ आये दो में से एक सिपाही की ओर हाथ बढ़ा कर उससे एक पेन और डायरी लिया और कुर्सी पर आराम से बैठ कर ---- डायरी के कुछ पन्ने पलट कर एक फ्रेश पन्ना निकाला ---- और फिर देव की ओर देख कर बोला,

“अच्छा सर, मैं आप से कुछ प्रश्न करूँगा......”

विक्रम को बीच में ही रोकते हुए देव बोल पड़ा,

“मुझे तो ज्यादा कुछ याद नहीं. क्या बता पाऊँ या न पाऊँ; पता नहीं. (धीरे से) और ये क्या सर सर लगा रखे हो?”

सुन कर विक्रम के चेहरे पर एक अर्थपूर्ण हँसी खेल गई.

ख़ुशी और गर्व से बोला,

“अभी तो यूनिफार्म में हूँ न ---- ड्यूटी में हूँ!”

देव भी मुस्करा उठा. हाथ के इशारे से प्रश्न करने को बोला.

विक्रम ने एकबार देव के पैरों के पास बैठी नेहा की ओर देखा और फ़िर देव की ओर जिज्ञासु दृष्टि से देखा.

देव उसका आशय समझ कर आश्वासन भरे स्वर में बोला,

“आप प्रश्न कीजिए ---- आई ट्रस्ट हर --- एंड यू कैन टू.”

विक्रम को ये पसंद तो न आया की नेहा वहाँ रहे पर ऐसा कोई स्ट्रिक्ट एक्शन या निर्देश देने की कोई आवश्यकता भी तो नहीं थी. इसलिए उस समय ज्यादा ज़रूरी लगने वाले अपने काम पर ध्यान देना उचित समझा.

घटना वाले दिन के सारी बातें कहने को बोला.

देव ने भी जितना याद था और जो याद आ रहा था ---- सब कहने लगा.

विक्रम के हाथ तेज़ी से डायरी पर चलने लगे.

पूरी घटना सुनाने के बाद जब देव चुप हुआ; तब विक्रम बोला,

“अच्छा सर, एक बात फ़िर से बताइए... और थोड़ा सोच कर... क्या आपको पता था कि आपको उस समय क्या हुआ था --- जब खून बहने लगा और आप दर्द से तड़प रहे थे?”

असहाय भाव से कंधे उचका कर देव ने प्रत्युत्तर दिया,

“नहीं. बिल्कुल नहीं.”

“अच्छे से याद कीजिए.”

२ मिनट सोच कर देव बोला,

“नहीं.. कुछ भी नहीं पता था.”

“बेहोश होने से पहले?”

देव ने इंकार में सर हिला कर जवाब दिया.

तभी देव का ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर भीतर कदम रखा.

डॉक्टर साकेत मारवाड़!

वहाँ पुलिस को देख कर एक बार के लिए साकेत बुरी तरह से चौंक उठा --- पर अगले ही क्षण स्वयं को सम्भाल लिया.

मुस्करा कर हैलो बोला और देव से उसके हेल्थ से संबंधित कुछ पूछताछ करने लगा.

डॉक्टर को देखते ही विक्रम के मन में कुछ खटका ---

तुरंत पूछा,

“हैलो डॉक्टर. मैं थाना इंचार्ज विक्रम सिंह.”

“हैलो इंस्पेक्टर... माइसेल्फ डॉक्टर साकेत मारवाड़.” विक्रम की ओर हाथ बढ़ाते हुए साकेत बोला.

दोनों ने अच्छे से हाथ मिलाया.

“आपने ही ऑपरेशन किया था इनका?”

“यस. आई डीड!”

“क्या हुआ था इनको? एक्साक्ट्ली?”

“आपको नहीं पता?”

“नहीं. आप तो जानते ही हैं डॉक्टर, असल बात को मीडिया से छुपा दिया गया है.”

“ह्म्म्म.. यस यस. राईट.”

“तो....??”

“तो?!”

“क्या हुआ था इनको?”

“गोली लगी थी!” ऐसा कहते ही जैसे डॉक्टर ने वहाँ धमाका कर दिया.

“व्हाट?!”

“यस. आपने सही सुना. गोली चलाई गई थी इनपर.!”

विक्रम को यकीन नहीं हुआ. विस्मय से एक बार देव की ओर देखा, फिर डॉक्टर की ओर, फिर नेहा की ओर और फ़िर देव को देखते हुए डॉक्टर पर दृष्टि जमाया.


कुछ क्षण तो उसे ये सोचने में लग गए की अब आगे क्या कहे ---- क्योंकि ये उत्तर उसके लिए बहुत अप्रत्याशित था. देव के फैमिली और क्लोज़ फ्रेंड्स की ओर से मीडिया को ये बताया गया था कि देव पर जानलेवा हमला हुआ था --- पर एक्साक्ट्ली क्या हुआ था; ये नहीं बताया गया था. देव के ठीक होने तक उसके पिताजी द्वारा सख्त हिदायत दी गयी थी कि किसी भी मीडिया पर्सन को उसके वार्ड के दस कदम दूरी तक भी न फटकने दिया जाए. शहर के गणमान्य लोग होने के कारण ये केस जितना हाई प्रोफाइल हो गया था उतना ही दिलचस्प भी.

“गोली कहाँ है?” प्रश्न किया विक्रम ने.

“एक मिनट.”

कह कर डॉक्टर साकेत देव के सिरहाने जा कर बगल में रखे तीन मीडियम और छोटे साइज़ के टेबल में से एक के ऊपर रखे एक बाउल में से अपने ग्लव्स पहने दाएँ हाथ की ऊँगली और अँगूठे से एक बहुत छोटी सी एक चीज़ सावधानी पूर्वक पकड़ कर चलते हुए देव के बेड के दूसरी ओर चेयर पर बैठे विक्रम के पास पहुँचा और बड़ी ही सावधानी से सामने फैलाए हथेली पर रख कर पीछे हट गया..

विक्रम ने गोली को अच्छे से देखा.

उसकी पारखी नज़रों ने उस गोली को पहचान लिया.


ये एक स्नाइपर बुलेट है. मतलब दूर से निशाना बनाया गया था देव को --- काफ़ी दूर से.

“मैं इसे ले जाना चाहूँगा --- फॉरेंसिक पर्पस.” गंभीर आवाज़ में विक्रम ने कहा और इससे पहले की डॉक्टर साकेत कोई प्रत्युत्तर दे पाते; विक्रम ने पास खड़े एक सिपाही की ओर गोली बढ़ा दिया. सिपाही ने तुरंत अपने पॉकेट से प्लास्टिक का एक बहुत छोटा सा बैग निकाला और उसमें गोली को डाल कर उस प्लास्टिक बैग को वापस अपने पॉकेट में रख लिया.

जब विक्रम ने गोली ले जाने की बात कही तभी साकेत ने भी कुछ कहने के लिए मुँह खोला था पर विक्रम के दृढ़ निश्चय वाले बॉडी लैंग्वेज को देख कर चुप रहना ही उचित समझा. वैसे भी गोली ले जाए या न ले जाए --- साकेत को कोई अंतर नहीं पड़ने वाला क्योंकि उसने पुलिस को गोली दिखा देने का अपना काम कर दिया. अब आगे पुलिस जाने और उनका काम जाने.


थोड़ी सी और पूछताछ के बाद विक्रम उठ कर जाने लगा --- दोनों सिपाहियों को आगे जाने के लिए बोल कर खुद कुछ सोचता हुआ जाने लगा. दरवाज़े के पास रुक कर साकेत की ओर घूम कर देखा और पूछा,

“इन्हें यहाँ कौन ले कर आया था?”

“था नहीं --- ‘थी’ !”

“क्या? थी?!!”

“जी सर.”

“कौन?”

इस पर साकेत तनिक हिचकिचा कर बोला,

“अम्म... पता नहीं.”

साकेत से इस उत्तर की अपेक्षा नहीं किया था विक्रम ने --- पूरी तरह से घूम कर साकेत की आँखों में देखते हुए पूछा,

“व्हाट डू यू मीन--- पता नहीं?!”

गला खंखारते हुए साकेत बोला,

“अम्म.. एक्चुअली, वो लड़की काफ़ी डरी और परेशान थी. मेरे पास आ कर रोते हुए क्रिटिकल केस बोल कर मेरा हाथ पकड़ कर बाहर की ओर खींचने लगी --- मैंने ज्यादा सोचा नहीं--- तुरंत उसके साथ बाहर आया. देखा व्हील-स्ट्रेचर पर ये बेहोश लेटे हुए हैं और कंधे से इनके काफ़ी खून बह रहा है. मेरे कुछ पूछने से पहले ही वो लड़की बोली की उसने इनके ऑफिस और घर में फ़ोन कर दिया है. सब आते ही होंगे. मैं तो देखते ही समझ गया था कि इनको गोली लगी है और ऐसे केस में पुलिस को भी इन्फॉर्म करना होता है--- पर ये केस आम केस नहीं, हाई प्रोफाइल केस था. इसलिए मैं तुरंत ही मेडिकल असिस्टेंस देने की तैयारी में लग गया. ऑपरेशन थिएटर में ले जाते समय तक वो लड़की यहीं थी --- पर बाद में नहीं मिली.”


“जब ओ.टी. से निकले आप तब कौन था बाहर?”

“इनके कॉलेज का पियून था वहाँ.”

“घर परिवार के लोग?”

“पंद्रह - बीस मिनट के बाद पहुँचे थे.”

“पियून पहले पहुँचा था?”

“जी --- साथ में चार जन और थे--- (देव की ओर इशारा करते हुए) शायद इनके कोलीग होने.”

विक्रम ने देव की ओर जिज्ञासा से देखा ---

“कॉलेज के टीचर्स --- प्रोफ़ेसर थे.” देव ने मुस्कराते हुए जवाब दिया.

साकेत की ओर देख कर विक्रम ने अगला सवाल किया,

“एट लीस्ट आपने नाम तो पूछा ही हुआ होगा उस लड़की से? उस एंजेल गर्ल से?!”

इस पर साकेत चुप रहा --- होंठ काटते हुए सबसे परे देखने लगा.

विक्रम ने एक अफ़सोस और असहाय नज़र से उसे देखा और देव को बाय बोल कर वहाँ से चला गया.

पर .....


जाते समय किसी ने इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया की बाहर से वार्ड के ग्लास वॉल से अंदर लगातार बड़े ध्यान से एक लड़की सब कुछ नोटिस कर रही थी --- सब सुन रही थी.


उसकी आँखों में आँसू थे....


जैसे ही विक्रम और उसके दोनों असिस्टेंट्स बाहर निकले कमरे से --- वो उनकी ओर; उनको जाते हुए देखी.... और ठीक उसी क्षण---


उसकी दोनों आँखों की पुतलियाँ हल्की नीली रौशनी में बदल गयी !!
 
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nice update ..to goli chalayi thi dev par kisine ..
par ye angel girl kaun thi jisne dev ko hospital me admit kiya ..aur uski aankho ki putliya neeli hona matlab koi bhut ho sakti hai 🤔..
lagta hai vikram bhi dost hai dev ka .
 
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nice update ..to goli chalayi thi dev par kisine ..
par ye angel girl kaun thi jisne dev ko hospital me admit kiya ..aur uski aankho ki putliya neeli hona matlab koi bhut ho sakti hai 🤔..
lagta hai vikram bhi dost hai dev ka .


धन्यवाद :)
 
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Angel girl kaun hai ye jo hr bat dev ko bachaa rhi hai... Dev kI jo koi haani pahunchata hai uska bura haal ho jata hai... Ab sniper chlane wale ka kya baat hoga 😁😁


😁 😁


पता नहीं क्या होगा. जो भी होगा, हम और आप मिलकर देखेंगे. 😊
 
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Now I am become Death, the destroyer of worlds
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“देव, आज की मीटिंग में जा रहे हो क्या?”

नीचे गिरी स्यान रंग की ब्रा उठा कर पहनते हुए नेहा पूछी.

“हाँ, क्यों?”

विदेशी ब्रांड के पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर उसे सुलगाते हुए देव बोला.

हुक लगाते हुए नेहा बोली,

“कुछ नहीं.. बस ऐसे ही पूछ ली.” फ़िर थोड़ा रुक कर बोली,

“असल में कहना ये चाहती हूँ कि मीटिंग के चक्कर में समय पर अपनी दवाई लेना मत भूल जाना. एकदम याद से सही समय पर ज़रूर लेना. ओके?”

लगातार दो कश ले कर मुँह को थोड़ा ऊपर उठा कर धुआँ उड़ाते हुए देव बोला,

“यस डीयर, बिल्कुल लूँगा और टाइम पर लूँगा. पर....”

उसके इतना कहते ही नेहा तुनक कर लगभग डांटने के से अंदाज़ में बोली,

“कोई पर – वर नहीं; दवा हर हाल में लेना ही लेना है!”

नेहा की ओर असहाय भाव से देखते हुए देव बोला,

“लेकिन नेहा, मुझे दवा लेने की ऐसी भी कोई ज़रूरत नहीं है. मैं तो बिल्कुल ठीक....”

“हर तीस मार खां पेशेंट को ऐसा ही लगता है...थोड़े से उपचार के बाद ही खुद को निरोगी, सही सलामत मानने लगते हैं.”

नेहा अब बेड से उतर कर पास ही ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो अपने स्तनों को ब्रा कप्स में सेट करने लगी. ऐसा करते हुए बेड के बैक रेस्ट से पीठ टिका कर बैठे देव की ओर नज़रें तिरछी कर के देखी... देव अभी भी असहाय भाव से एक अजीब सा मुँह बनाया हुआ है देख कर उसकी हँसी छूटते छूटते रही. दोनों हाथों से बालों को पीछे कर पीठ पर फ़ैलाते हुए हँसी को कण्ट्रोल करते हुए बोली,

“बस... थोड़े दिन और.. फिर नहीं बोलूंगी. एकबार बस दवाओं का ये कोर्स पूरा हो जाय.”

देव बस कंधे उचकाकर एक असहमति वाली सहमति जताया और कश लगाता हुआ खिड़की से बाहर देखने लगा.



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“अभी कहाँ हो?”

“बिल्डिंग में ही.. मीटिंग जस्ट ख़त्म हुई.”

“मीटिंग हो गई?”

“हाँ.. हो गई.”

“बड़ी जल्दी हो गई?!”

“अरे जल्दी कहाँ...? ढाई घंटे लग गए. ऐसा लग रहा था मानो ये मीटिंग दिन भर चलेगी. पर थैंक गॉड की ये अब जा कर फाइनली ख़त्म हुई.”

“हम्म.. चलो अच्छा है.. कोई बात बनी?”

“बात? कैसी बात .. कौन सी बात?”

“अरे! मेरा मतलब है कि मीटिंग कैसी रही.. सक्सेसफुल?”

“हाँ. लगभग सक्सेसफुल ही रही. आई होप अब आगे का काम भी आसानी से हो जाय.”

“हम्म. मैं भी यही प्रे करुँगी.”

“हाँ.. ज़रूर करना.. हम दोनों के लिए ही अच्छा होगा.”

“अच्छा सुनो, तुमने दवा लिया?”

“हाँ, दो मिनट पहले ही लिया.”

“थैंक गॉड! मैं सोच रही थी कि कहीं तुम फ़िर से तो नहीं भूल गए.”

“हा हा हा! अरे नहीं भूला डीयर. मुझे दोबारा डांट नहीं खाना.”

“ह्म्म्म.. गुड. समझदार हो. ओके. अभी... (क्र्र्रर) .... हैलो...(किरररर्र)... .हैलो... देव... ये अचानक से क्या हुआ नेटवर्क को... देव... कहाँ हो अभी? बहुत आवाजें आ रही हैं पीछे से.”

“रोड के किनारे हूँ... गाड़ी के पास.”

“किसके... (किरर्र)... किसके पास?”

“अपनी गाड़ी के पास. क्या बात है.. नेटवर्क डिस्टर्ब है क्या?”

“हाँ...”

“ओह.. यहाँ तो ठीक है.”

“हम्म..अच्छा, तो मतलब होटल से निकल भी गए इतनी जल्दी?”

“हाँ.. अधिक देर तक रहा नहीं गया वहाँ बैठना, इसलिए मीटिंग खत्म होते ही निकल आया. मन में यही बेचैनी थी कि पता नहीं डील फाइनल होगी या नहीं; पर जब हो गयी तब चैन ही चैन मिला और फिर एक ही तमन्ना मन में रह गयी थी कि जल्दी से तुम्हारे साथ ये गुड न्यूज़ शेयर करूँ.”

“लेकिन कॉल तो मैंने किया न!” नेहा तुनक कर बोली.

“हाँ भई हाँ, तुमने ही किया. मैं तो मीटिंग रूम से निकलते ही मोबाइल निकाल लिया और तुम्हारे नाम पर डायल बटन को टच करने ही वाला था कि तुम्हारा कॉल आ गया.”

“हम्म. ओके. तो अभी का क्या प्लान है?”


“एक ही प्लान है कि मुझे अब जल्द से जल्द कॉलेज पहुँचना है.. बहुत काम है वहाँ. एक तो इतना...... ओह गॉड!!... इतना टाइम हो गया.. नेहा, मैं अब फ़ोन रखता हूँ. बाय.....”

“अरे अरे, सुनो तो!”


“अब क्या है नेहा?” देव के स्वर में अब थोड़ा झुँझलाहट का पुट आ गया. नेहा के वैसे बोलने पर उसे रुक जाना पड़ा... वो कार का दरवाज़ा खोले सड़क पर ही खड़ा हो गया और जल्दबाजी वाले स्वर में पूछा, “क्या हुआ नेहा; जल्दी बोलो.”


लेकिन कुछ सेकंड्स के लिए नेहा की ओर से कोई आवाज़ नहीं आई. फ़िर मोबाइल में डिस्टर्ब होने जैसी खरखराहट वाली आवाज़ सुने दी.... और फिर तुरंत ही दूसरी ओर से नेहा की ३ बार लगातार ‘हैलो, हैलो, हैलो’ सुनाई दी.

थोड़ी डिस्टर्बेंस फिर हुई और तब जा कर नेहा की आवाज़ सुनाई दी,

“हाँ, हैलो, सो सॉरी.. बहुत डिस्टर्ब हो रहा है.. पता नहीं क्यों? स... सा.... फ़... क... कु...छ.. सुना...ई.. नहीं... दे........”

देव को तो वैसे भी जल्दी थी इसलिए तुरंत ही बोल पड़ा,

“अच्छा कोई बात नहीं. मुझे देर हो रही है. आई ऍम आलरेडी हाफ़ एन आवर लेट. कॉलेज पहुँच कर कॉल करता हूँ. ओके. बाय स्वीटी.. टेक केयर.”


कहते हुए देव ने कॉल डिसकनेक्ट किया और ड्राइविंग सीट पर बैठने के लिए झुका ही कि तभी अत्यधिक पीड़ा से कराहते हुए छिटक कर २-३ कदम दूर जा कर गिर गया. अत्यधिक असहनीय पीड़ा से बंद होती आँखों के पूरी तरह से बंद होने से पहले एकबार अपने बाएँ कंधे को देखा... वहाँ से रक्त की एक धारा बह कर पहले उसके शर्ट, फिर कोट और फ़िर धीरे धीरे रोड पर फैलने लगा है.


देव कब बेहोश हो गया उसे पता ही नहीं चला.
ek ek do update bich mein udda daale kya :?: waha bhootni dikhi thi dono ko ab dawa khaa rahe hai....aisa lag raha hai jaise kuch hua hi nahi hai....
Meeting sayad wo school ko leke hi ho rahi hogi....school kholna chahta tha naa ye Dev
Ye dawayi hai kis chizz ki....kya ye hum past mein challe aaye hai yaa fir...
Neha pe Bhutni ka kabza ho gaya hai....sayad ye ho sakta hai.....
lekin aise hamla ye kya tha.....
iss Dev ne past mein kuch to kiya hai tabhi lagi hai bhootni picche...
 
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