Darkk Soul
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६)
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“देव, आज की मीटिंग में जा रहे हो क्या?”
नीचे गिरी स्यान रंग की ब्रा उठा कर पहनते हुए नेहा पूछी.
“हाँ, क्यों?”
विदेशी ब्रांड के पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर उसे सुलगाते हुए देव बोला.
हुक लगाते हुए नेहा बोली,
“कुछ नहीं.. बस ऐसे ही पूछ ली.” फ़िर थोड़ा रुक कर बोली,
“असल में कहना ये चाहती हूँ कि मीटिंग के चक्कर में समय पर अपनी दवाई लेना मत भूल जाना. एकदम याद से सही समय पर ज़रूर लेना. ओके?”
लगातार दो कश ले कर मुँह को थोड़ा ऊपर उठा कर धुआँ उड़ाते हुए देव बोला,
“यस डीयर, बिल्कुल लूँगा और टाइम पर लूँगा. पर....”
उसके इतना कहते ही नेहा तुनक कर लगभग डांटने के से अंदाज़ में बोली,
“कोई पर – वर नहीं; दवा हर हाल में लेना ही लेना है!”
नेहा की ओर असहाय भाव से देखते हुए देव बोला,
“लेकिन नेहा, मुझे दवा लेने की ऐसी भी कोई ज़रूरत नहीं है. मैं तो बिल्कुल ठीक....”
“हर तीस मार खां पेशेंट को ऐसा ही लगता है...थोड़े से उपचार के बाद ही खुद को निरोगी, सही सलामत मानने लगते हैं.”
नेहा अब बेड से उतर कर पास ही ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो अपने स्तनों को ब्रा कप्स में सेट करने लगी. ऐसा करते हुए बेड के बैक रेस्ट से पीठ टिका कर बैठे देव की ओर नज़रें तिरछी कर के देखी... देव अभी भी असहाय भाव से एक अजीब सा मुँह बनाया हुआ है देख कर उसकी हँसी छूटते छूटते रही. दोनों हाथों से बालों को पीछे कर पीठ पर फ़ैलाते हुए हँसी को कण्ट्रोल करते हुए बोली,
“बस... थोड़े दिन और.. फिर नहीं बोलूंगी. एकबार बस दवाओं का ये कोर्स पूरा हो जाय.”
देव बस कंधे उचकाकर एक असहमति वाली सहमति जताया और कश लगाता हुआ खिड़की से बाहर देखने लगा.
--------------------
“अभी कहाँ हो?”
“बिल्डिंग में ही.. मीटिंग जस्ट ख़त्म हुई.”
“मीटिंग हो गई?”
“हाँ.. हो गई.”
“बड़ी जल्दी हो गई?!”
“अरे जल्दी कहाँ...? ढाई घंटे लग गए. ऐसा लग रहा था मानो ये मीटिंग दिन भर चलेगी. पर थैंक गॉड की ये अब जा कर फाइनली ख़त्म हुई.”
“हम्म.. चलो अच्छा है.. कोई बात बनी?”
“बात? कैसी बात .. कौन सी बात?”
“अरे! मेरा मतलब है कि मीटिंग कैसी रही.. सक्सेसफुल?”
“हाँ. लगभग सक्सेसफुल ही रही. आई होप अब आगे का काम भी आसानी से हो जाय.”
“हम्म. मैं भी यही प्रे करुँगी.”
“हाँ.. ज़रूर करना.. हम दोनों के लिए ही अच्छा होगा.”
“अच्छा सुनो, तुमने दवा लिया?”
“हाँ, दो मिनट पहले ही लिया.”
“थैंक गॉड! मैं सोच रही थी कि कहीं तुम फ़िर से तो नहीं भूल गए.”
“हा हा हा! अरे नहीं भूला डीयर. मुझे दोबारा डांट नहीं खाना.”
“ह्म्म्म.. गुड. समझदार हो. ओके. अभी... (क्र्र्रर) .... हैलो...(किरररर्र)... .हैलो... देव... ये अचानक से क्या हुआ नेटवर्क को... देव... कहाँ हो अभी? बहुत आवाजें आ रही हैं पीछे से.”
“रोड के किनारे हूँ... गाड़ी के पास.”
“किसके... (किरर्र)... किसके पास?”
“अपनी गाड़ी के पास. क्या बात है.. नेटवर्क डिस्टर्ब है क्या?”
“हाँ...”
“ओह.. यहाँ तो ठीक है.”
“हम्म..अच्छा, तो मतलब होटल से निकल भी गए इतनी जल्दी?”
“हाँ.. अधिक देर तक रहा नहीं गया वहाँ बैठना, इसलिए मीटिंग खत्म होते ही निकल आया. मन में यही बेचैनी थी कि पता नहीं डील फाइनल होगी या नहीं; पर जब हो गयी तब चैन ही चैन मिला और फिर एक ही तमन्ना मन में रह गयी थी कि जल्दी से तुम्हारे साथ ये गुड न्यूज़ शेयर करूँ.”
“लेकिन कॉल तो मैंने किया न!” नेहा तुनक कर बोली.
“हाँ भई हाँ, तुमने ही किया. मैं तो मीटिंग रूम से निकलते ही मोबाइल निकाल लिया और तुम्हारे नाम पर डायल बटन को टच करने ही वाला था कि तुम्हारा कॉल आ गया.”
“हम्म. ओके. तो अभी का क्या प्लान है?”
“एक ही प्लान है कि मुझे अब जल्द से जल्द कॉलेज पहुँचना है.. बहुत काम है वहाँ. एक तो इतना...... ओह गॉड!!... इतना टाइम हो गया.. नेहा, मैं अब फ़ोन रखता हूँ. बाय.....”
“अरे अरे, सुनो तो!”
“अब क्या है नेहा?” देव के स्वर में अब थोड़ा झुँझलाहट का पुट आ गया. नेहा के वैसे बोलने पर उसे रुक जाना पड़ा... वो कार का दरवाज़ा खोले सड़क पर ही खड़ा हो गया और जल्दबाजी वाले स्वर में पूछा, “क्या हुआ नेहा; जल्दी बोलो.”
लेकिन कुछ सेकंड्स के लिए नेहा की ओर से कोई आवाज़ नहीं आई. फ़िर मोबाइल में डिस्टर्ब होने जैसी खरखराहट वाली आवाज़ सुने दी.... और फिर तुरंत ही दूसरी ओर से नेहा की ३ बार लगातार ‘हैलो, हैलो, हैलो’ सुनाई दी.
थोड़ी डिस्टर्बेंस फिर हुई और तब जा कर नेहा की आवाज़ सुनाई दी,
“हाँ, हैलो, सो सॉरी.. बहुत डिस्टर्ब हो रहा है.. पता नहीं क्यों? स... सा.... फ़... क... कु...छ.. सुना...ई.. नहीं... दे........”
देव को तो वैसे भी जल्दी थी इसलिए तुरंत ही बोल पड़ा,
“अच्छा कोई बात नहीं. मुझे देर हो रही है. आई ऍम आलरेडी हाफ़ एन आवर लेट. कॉलेज पहुँच कर कॉल करता हूँ. ओके. बाय स्वीटी.. टेक केयर.”
कहते हुए देव ने कॉल डिसकनेक्ट किया और ड्राइविंग सीट पर बैठने के लिए झुका ही कि तभी अत्यधिक पीड़ा से कराहते हुए छिटक कर २-३ कदम दूर जा कर गिर गया. अत्यधिक असहनीय पीड़ा से बंद होती आँखों के पूरी तरह से बंद होने से पहले एकबार अपने बाएँ कंधे को देखा... वहाँ से रक्त की एक धारा बह कर पहले उसके शर्ट, फिर कोट और फ़िर धीरे धीरे रोड पर फैलने लगा है.
देव कब बेहोश हो गया उसे पता ही नहीं चला.
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नीचे गिरी स्यान रंग की ब्रा उठा कर पहनते हुए नेहा पूछी.
“हाँ, क्यों?”
विदेशी ब्रांड के पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर उसे सुलगाते हुए देव बोला.
हुक लगाते हुए नेहा बोली,
“कुछ नहीं.. बस ऐसे ही पूछ ली.” फ़िर थोड़ा रुक कर बोली,
“असल में कहना ये चाहती हूँ कि मीटिंग के चक्कर में समय पर अपनी दवाई लेना मत भूल जाना. एकदम याद से सही समय पर ज़रूर लेना. ओके?”
लगातार दो कश ले कर मुँह को थोड़ा ऊपर उठा कर धुआँ उड़ाते हुए देव बोला,
“यस डीयर, बिल्कुल लूँगा और टाइम पर लूँगा. पर....”
उसके इतना कहते ही नेहा तुनक कर लगभग डांटने के से अंदाज़ में बोली,
“कोई पर – वर नहीं; दवा हर हाल में लेना ही लेना है!”
नेहा की ओर असहाय भाव से देखते हुए देव बोला,
“लेकिन नेहा, मुझे दवा लेने की ऐसी भी कोई ज़रूरत नहीं है. मैं तो बिल्कुल ठीक....”
“हर तीस मार खां पेशेंट को ऐसा ही लगता है...थोड़े से उपचार के बाद ही खुद को निरोगी, सही सलामत मानने लगते हैं.”
नेहा अब बेड से उतर कर पास ही ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो अपने स्तनों को ब्रा कप्स में सेट करने लगी. ऐसा करते हुए बेड के बैक रेस्ट से पीठ टिका कर बैठे देव की ओर नज़रें तिरछी कर के देखी... देव अभी भी असहाय भाव से एक अजीब सा मुँह बनाया हुआ है देख कर उसकी हँसी छूटते छूटते रही. दोनों हाथों से बालों को पीछे कर पीठ पर फ़ैलाते हुए हँसी को कण्ट्रोल करते हुए बोली,
“बस... थोड़े दिन और.. फिर नहीं बोलूंगी. एकबार बस दवाओं का ये कोर्स पूरा हो जाय.”
देव बस कंधे उचकाकर एक असहमति वाली सहमति जताया और कश लगाता हुआ खिड़की से बाहर देखने लगा.
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“अभी कहाँ हो?”
“बिल्डिंग में ही.. मीटिंग जस्ट ख़त्म हुई.”
“मीटिंग हो गई?”
“हाँ.. हो गई.”
“बड़ी जल्दी हो गई?!”
“अरे जल्दी कहाँ...? ढाई घंटे लग गए. ऐसा लग रहा था मानो ये मीटिंग दिन भर चलेगी. पर थैंक गॉड की ये अब जा कर फाइनली ख़त्म हुई.”
“हम्म.. चलो अच्छा है.. कोई बात बनी?”
“बात? कैसी बात .. कौन सी बात?”
“अरे! मेरा मतलब है कि मीटिंग कैसी रही.. सक्सेसफुल?”
“हाँ. लगभग सक्सेसफुल ही रही. आई होप अब आगे का काम भी आसानी से हो जाय.”
“हम्म. मैं भी यही प्रे करुँगी.”
“हाँ.. ज़रूर करना.. हम दोनों के लिए ही अच्छा होगा.”
“अच्छा सुनो, तुमने दवा लिया?”
“हाँ, दो मिनट पहले ही लिया.”
“थैंक गॉड! मैं सोच रही थी कि कहीं तुम फ़िर से तो नहीं भूल गए.”
“हा हा हा! अरे नहीं भूला डीयर. मुझे दोबारा डांट नहीं खाना.”
“ह्म्म्म.. गुड. समझदार हो. ओके. अभी... (क्र्र्रर) .... हैलो...(किरररर्र)... .हैलो... देव... ये अचानक से क्या हुआ नेटवर्क को... देव... कहाँ हो अभी? बहुत आवाजें आ रही हैं पीछे से.”
“रोड के किनारे हूँ... गाड़ी के पास.”
“किसके... (किरर्र)... किसके पास?”
“अपनी गाड़ी के पास. क्या बात है.. नेटवर्क डिस्टर्ब है क्या?”
“हाँ...”
“ओह.. यहाँ तो ठीक है.”
“हम्म..अच्छा, तो मतलब होटल से निकल भी गए इतनी जल्दी?”
“हाँ.. अधिक देर तक रहा नहीं गया वहाँ बैठना, इसलिए मीटिंग खत्म होते ही निकल आया. मन में यही बेचैनी थी कि पता नहीं डील फाइनल होगी या नहीं; पर जब हो गयी तब चैन ही चैन मिला और फिर एक ही तमन्ना मन में रह गयी थी कि जल्दी से तुम्हारे साथ ये गुड न्यूज़ शेयर करूँ.”
“लेकिन कॉल तो मैंने किया न!” नेहा तुनक कर बोली.
“हाँ भई हाँ, तुमने ही किया. मैं तो मीटिंग रूम से निकलते ही मोबाइल निकाल लिया और तुम्हारे नाम पर डायल बटन को टच करने ही वाला था कि तुम्हारा कॉल आ गया.”
“हम्म. ओके. तो अभी का क्या प्लान है?”
“एक ही प्लान है कि मुझे अब जल्द से जल्द कॉलेज पहुँचना है.. बहुत काम है वहाँ. एक तो इतना...... ओह गॉड!!... इतना टाइम हो गया.. नेहा, मैं अब फ़ोन रखता हूँ. बाय.....”
“अरे अरे, सुनो तो!”
“अब क्या है नेहा?” देव के स्वर में अब थोड़ा झुँझलाहट का पुट आ गया. नेहा के वैसे बोलने पर उसे रुक जाना पड़ा... वो कार का दरवाज़ा खोले सड़क पर ही खड़ा हो गया और जल्दबाजी वाले स्वर में पूछा, “क्या हुआ नेहा; जल्दी बोलो.”
लेकिन कुछ सेकंड्स के लिए नेहा की ओर से कोई आवाज़ नहीं आई. फ़िर मोबाइल में डिस्टर्ब होने जैसी खरखराहट वाली आवाज़ सुने दी.... और फिर तुरंत ही दूसरी ओर से नेहा की ३ बार लगातार ‘हैलो, हैलो, हैलो’ सुनाई दी.
थोड़ी डिस्टर्बेंस फिर हुई और तब जा कर नेहा की आवाज़ सुनाई दी,
“हाँ, हैलो, सो सॉरी.. बहुत डिस्टर्ब हो रहा है.. पता नहीं क्यों? स... सा.... फ़... क... कु...छ.. सुना...ई.. नहीं... दे........”
देव को तो वैसे भी जल्दी थी इसलिए तुरंत ही बोल पड़ा,
“अच्छा कोई बात नहीं. मुझे देर हो रही है. आई ऍम आलरेडी हाफ़ एन आवर लेट. कॉलेज पहुँच कर कॉल करता हूँ. ओके. बाय स्वीटी.. टेक केयर.”
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देव कब बेहोश हो गया उसे पता ही नहीं चला.