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Horror Kala saya. (murder mystry)

gauravrani

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क्या हुआ?’’-मानसी चौंकी। ‘‘कुछ नहीं।’’-मोहित हड़बड़ा गया-"यही है वैशाली?" "हां। सचमुच अजीब बात है न? तुम दोनों इतने सालों बाद वापस आ रहे हो, एक ही फ्लाइट से आए हो लेकिन एक-दूसरे को नहीं जानते।" तब तक वैशाली भी वहां आकर खड़ी हो गई। उसने एक बार घूरकर मोहित की ओर देखा, फिर मानसी की ओर देखकर बोली-‘‘हाय, भाभी।’’ ‘‘हाय।’’-कहकर मानसी उससे गले मिली। फिर उससे बोली-‘‘वैशाली। इससे मिलो। ये है, मोहित, मेरा छोटा भाई। मोहित, ये है वैशाली।’’ ‘‘हाय।’’-उसने एक उड़ती-सी नजर मोहित पर डाली और फिर अपना मोबाइल निकालकर उसमें कुछ चैक करने का दिखावा करने लगी। मोहित ने उसके अभिवादन का प्रत्युत्तर दिया लेकिन उसके दिमाग में यही चल रहा था कि ये कितना अजीब संयोग था कि अभी-अभी कस्टम ऑफिसर पर टिप्पणी करने वाली वो लडक़ी उसकी रिश्तेदार निकल आई थी। वो भी ऐसी रिश्तेदार, जिसे उसने कभी जिंदगी में नहीं देखा था। जीजा की बहन। मोहित को इस बात की भी हैरानी थी कि वो दोनों एक ही फ्लाइट से एक साथ आ रहे थे, मानसी उन दोनों का इंतजार कर रही थी लेकिन उसने उसे इस बारे में कुछ नहीं बताया था। फिर वे तीनों एयरपोर्ट से बाहर निकले। कार पार्किंग में मानसी की कार खड़ी थी। मोहित ने अपना सामान कार की डिक्की में रखा, जिसके बाद तीनों कार में सवार हुए और कुछ ही देर में उनकी कार एयरपोर्ट से निकल सडक़ पर दौड़ रही थी। मोहित कार की खिडक़ी से बाहर झांक कर दिल्ली की सडक़ों का नजारा देख रहा था। इतने सालों बाद लौटने पर थोड़ा-बहुत बदलाव तो महसूस हो रहा था लेकिन विशेष कुछ नहीं बदला था। वही ट्रैफिक की भीड़-भाड़, वही रास्ते और वही सब कुछ! मोहित पिछली सीट पर बैठा था। कार मानसी चला रही थी और वैशाली उसके बगल में ही बैठी थी। मानसी वैशाली से उसकी पढ़ाई और अमेरिका के बारे में पूछ रही थी। “इतने लम्बे सफर के कारण पहले ही दिमाग खराब था-मानसी से बातें करती हुई वैशाली बोली-‘‘ऊपर से एयरपोर्ट पर कोरोना की जांच के नाम पर अलग से रोक लिया। वहां एक घंटा और लगाया। मेरा इतना दिमाग खराब हो गया था कि मैं वहां मौजूद उस बेचारे कस्टम ऑफिसर को ही उल्टा-सीधा बोल गई। बेचारा अच्छा आदमी था। पलटकर एक शब्द भी नहीं बोला मेरे से।’’ एक शब्द बोलने लायक मोहलत ही कहां दी थी तुमने उसे-मोहित ने मन ही मन सोचा। वैसे भी मोहित को लगा कि वैशाली वो बात मानसी को नहीं बता रही थी बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से मोहित को ही सफाई दे रही थी। मोहित ने उनकी बातचीत के बीच दखल नहीं दिया। बीच-बीच में मानसी उससे कुछ कहती भी तो वो संक्षिप्त बातचीत ही कर रहा था। वो उस समय बातचीत करने जैसा महसूस नहीं कर रहा था। उसने फिर आंखें मूंद कर अपने शरीर ढीला छोड़ दिया। तभी वैशाली की आवाज उसके कानों में पड़ी और उसने अपनी आंखें खोल दीं।
 
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सनाया गौतम को पुलिस ने पकड़ लिया?’’ ‘‘नहीं’’-एक क्षण की खामोशी के बाद मानसी बोली, उसका स्वर गम्भीर था-‘‘अभी उसका कोई पता नहीं चल पाया है।’’ ‘‘बचकर कहां जाएगी’’-वैशाली बोली-‘‘एक न एक दिन तो पुलिस उसे पकड़ ही लेगी।’’ सनाया गौतम। वो नाम हथौड़े की तरह मोहित के दिमाग से टकराया। वे लोग नैनीताल स्थित मानसी और अरविंद के घर पहुंचे, जहां जीजा अरविंद सक्सेना ने गले लगा कर मोहित का स्वागत किया। मानसी का पति अरविंद सक्सेना क्रिमिनल लॉयर था और काफी खुशमिजाज इंसान था। अरविंद और मानसी की करीब डेढ़ साल पहले ही शादी हुई थी। दोनों इतने खुशमिजाज और उत्साही किस्म के जीव थे कि शादी को साल भर बीतने के बाद भी अब भी न्यूलीवेड्स कपल की तरह ही मस्ती करते थे। लेकिन करीब तीन माह पूर्व मानसी के पिता की हत्या की घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था। मानसी और अरविंद का नैनीताल के अलावा दिल्ली में भी एक मकान था। शादी से पहले तक वे नैनीताल में ही रहते थे। लेकिन शादी के बाद वे दिल्ली में रहने चले गए थे, जहां उन्होंने वो मकान लिया था। करीब साल भर तक उनके परिवार को किसी तरह की दिक्कत पेश नहीं आई लेकिन करीब तीन महीने पहले हुई घटना ने उनके परिवार की खुशियों को ग्रहण लगा दिया था। घर ज्यादा बड़ा नहीं था लेकिन काफी खुला-खुला सा था। खिड़कियां काफी बड़ी थीं। ऊपर से नैनीताल जैसा पर्यटन स्थल! खिड़कियों से बाहर का नजारा मन मोह लेता था। बाहर से आती ठण्डी हवा दिलोदिमाग को ताजा कर देती थी। अरविंद मोहित को एक कमरे में ले गया। ‘‘ये कमरा सैट किया है तुम्हारे लिए मानसी ने।’’-अरविंद प्रफुल्लित स्वर में बोला-‘‘पसंद आया?’’ मोहित ने कमरे में चारों तरफ नजर मारते हुए स्वीकृति में सिर हिलाया। ‘‘वैसे मैं ज्यादा दिनों तक यहां नहीं रहूंगा।’’-फिर वो अरविंद से बोला। ‘‘अरे, भाई, तुम्हारा घर है। ज्यादा-कम दिनों की बात मत करो। ये बताओ, वैशाली तुम्हें कहां मिली?’’ ‘‘एयरपोर्ट पर।’’ ‘‘जबकि तुम दोनों एक ही प्लेन से आए थे। ये वैशाली भी पूरी पागल है। एकदम से बिना बताए इस तरह आ गई। अगर मुझे बता देती कि वो उसी फ्लाइट से आ रही है, जिससे तुम आ रहे हो, तो मैं पहले ही तुम्हें बता देता। और उसे भी। तुम दोनों की रास्ते में ही मुलाकात हो जाती।’’ ‘‘इंस्पैक्टर साहब से बात हुई?’’-यकायक मोहित बोला। ‘‘इंस्पैक्टर? ओह हां। उनसे बात हो गई है। वो आज शाम को ही आ रहे हैं। हो सकता है रात हो जाए।’’ ‘‘ठीक है। थैंक्स जीजा जी।’’ ‘‘इसमें थैंक्स की क्या बात है।’’-अरविंद ने मोहित का कंधा थपथपाया-‘‘ये थैंक्स, सॉरी बोलना बंद करो। सारी खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ।’’
 
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“ठीक है। ठीक है।“-मोहित ने मुंह बनाया। अरविंद मुस्कराते हुए कमरे से बाहर निकल गया। शाम को डोरबेल की आवाज सुनकर मोहित घर के बाहर वाले कमरे में, जो कि एक छोटे हॉल जैसा था, पहुंचा तो उसने पाया कि अरविंद पहले ही वहां पहुंच चुका था और दरवाजा खोलने भी लगा था। मोहित अपनी जगह पर ही रूक गया। दरवाजा खुलते ही पुलिस की यूनीफॉर्म पहने एक शख्स ने हॉल में प्रवेश किया, जो कि 40 के पेटे में पहुंचा हुआ लग रहा था। सूरत से वो काफी गम्भीर लगने वाला शख्स था हालांकि गोरी रंगत और चेहरे पर किसी तरह का दाग-निशान न होने से उसे खूबसूरत-या इंग्लिश में मर्दों के लिए खूबसूरत लगने के सिलसिले में जो शब्द प्रयोग किया जाता है-हैण्डसम भी कहा जा सकता था। उसकी चेहरे पर मूंछें उसकी पर्सनालिटी में चार चांद लगा रहीं थीं। करीब 6 फीट लम्बे कद के मालिक उस शख्स का शरीर भी पहलवानों जैसा था। उसकी वर्दी में कंधे पर लगे तीन सितारों से पता चल रहा था कि वो पुलिस इंस्पेक्टर था। ‘‘आइये इंस्पैक्टर साहब।’’-अरविंद बोला-‘‘आज कुछ ठण्ड ज्यादा ही है।’’ उसने ‘हम्म’ के उच्चारण के साथ ही सिर को हल्के से जुम्बिश दी। कमरे में घूमती उसकी निगाह मोहित पर आकर जम गई। अरविंद ने उसकी नजरों का अनुसरण किया, फिर मोहित पर नजर पड़ते ही बोला-‘‘अरे, मोहित। तुम भी यहीं हों
चलो, अच्छा है। इनसे मिलो। ये हैं इंस्पेक्टर वैभव। वैभव शुक्ला। बड़े कडक़ इंस्पेक्टर हैं। अपराधी इनके नाम से थर-थर कांपते हैं। अंकल के केस की इन्वेस्टिगेशन यही कर रहे थे...।’’ ‘‘कर रहा था नहीं कर रहा हूं। केस अभी भी क्लोज नहीं हुआ है।’’-इंस्पेक्टर गम्भीर स्वर में बोला। ‘‘हां...हां...वही। कर रहे हैं।’’-अरविंद ने संशोधन किया-‘‘ये तुम्हें केस के बारे में पूरी जानकारी देंगें। जो भी तुम जानना चाहो। इंस्पेक्टर साहब मेरे दोस्त हैं इसलिए मेरे विशेष अनुरोध पर इन्होंने खास तौर पर इसी काम के लिए हमारा मेहमान बनना कुबूल किया है। और इंस्पेक्टर साहब। ये मेरे ब्रदर इन लॉ-मोहित वर्मा हैं, जिनके बारे में मैंने आपको बताया था।’’ ‘‘गिरिराज वर्मा के बेटे।’’-इंस्पेक्टर ने कहा। उसकी आवाज भी भारी और रौबदार थी। मोहित ने आगे बढक़र इंस्पेक्टर की ओर हाथ बढ़ा दिया। इंस्पेक्टर ने मोहित को गहरी निगाहों से देखते हुए उससे हाथ मिलाया। मोहित ने महसूस किया कि इंस्पेक्टर के हाथ की पकड़ लोहे के शिकंजे की तरह मजबूत थी।
 
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अरविंद ने उन्हें सोफे पर बैठने का इशारा किया और कुछ चाय-नाश्ते की व्यवस्था करने की बात कह कर वहां से चला गया। मोहित और इंस्पेक्टर आमने-सामने सोफे पर बैठ गए। ‘‘आपको यूएसए से वापस आने की फुर्सत मिल गई?’’-इंस्पेक्टर वैभव ने गम्भीर स्वर में कहा। मोहित चौंका। वो प्रत्यक्षत: एक व्यंग ही लग रहा था लेेकिन इंस्पेक्टर की आवाज सामान्य थी। एक अनजान शख्स से इस तरह का ताना फौरन मूड खराब करने के लिए काफी था लेकिन एक तो वो पुलिस वाला था, दूसरे वो वो पुलिस वाला था, जो मोहित के पिता के मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहा था और तीसरे वो वहां आया ही मोहित की मदद करने के लिए था। मोहित को उसके पिता के मर्डर केस के बारे में डिटेल से बताने के लिए। ‘‘जी हां।’’-मोहित अपने स्वर को सामान्य बनाए रखने की कोशिश करते हुए बोला-‘‘विदेश में काम करने का यही झंझट होता है। एकदम से आना सम्भव नहीं हो पाता।’’-फिर वो थोड़ा ठहरकर बोला-‘‘चाहे बाप का अंतिम संस्कार ही क्यों न करना हो।’’ इंस्पेक्टर ने चौंककर मोहित की ओर देखा। फिर मोहित के चेहरे पर छाई गम्भीरता देख कर उसके चेहरे की गम्भीरता में थोड़ी कमी आई। कुछ क्षण दोनों के बीच मौन छाया रहा, फिर इंस्पेक्टर ने ही कहा-‘‘वकील साहब की खास रिक्वेस्ट है कि मैं इस मर्डर केस की पूरी डिटेल्स आपको बताऊं। आपके सारे सवालों के जवाब दूं, उन सवालों के, जिनके जवाब मेरे पास हैं। जिनमें जाहिर है ये सवाल शामिल नहीं है कि मुजरिम इस वक्त कहां है। लेकिन उससे पहले मैं ये जानना चाहता हूं कि आप ये सब क्यों जानना चाहते हैं?’’ ‘‘आप मुझसे पूछ रहे हैं कि मैं इस केस के बारे में क्यों जानना चाहता हूं?’’-मोहित के स्वर में हैरानी थी ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि इस जानकारी से आपको क्या हासिल होगा? मोटी-मोटी जो जानकारी है, वो तो आपको पता ही होगी। अखबारों वगैरह में भी छपा था और आप भले ही यहां नहीं आ पाए लेकिन आपकी बहन के माध्यम से वो सारी जानकारी तो आपको मिल ही गई होगी। तो मेरा सवाल ये है कि इस सबका रिपीट टेलीकास्ट मुझसे क्यों सुनना चाहते हैं? और क्या आपका इरादा इस जानकारी का कोई विशेष उपयोग करने का है?’’
इंस्पेक्टर साहब।’’-मोहित बोला-‘‘मुझे पता है कि आप बेहद व्यस्त आदमी हैं, आपको और भी बहुत से काम रहते हैं। और जीजा जी के कहने पर आप ये जो जानकारी मुझे देने वाले हैं, ऐसा करके आप उन्हीं के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ भी फेवर कर रहे हैं, जिसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूं। अब आपके सवालों का जवाब-आपने सही कहा कि मुझे अपनी बहन, अखबार वगैरह के माध्यम से मोटी-मोटी जानकारी मिल चुकी है लेकिन उस वक्त मैं अपने होश में नहीं था। उस खबर को सुनने के बाद ये समझ लीजिए कि मुझे अपना दिमाग ठिकाने पर लाने में ही तीन महीने लग गए हैं’’-मोहित इंस्पेक्टर से ये बात कह तो रहा था लेकिन उसे विश्वास था कि उसका दिमाग अभी भी ठिकाने पर नहीं था-‘‘और अब मैं उस घटना के बारे में डिटेल्ड जानकारी चाहता हूं। वो भी किसी विश्वसनीय सूत्र से। मैं इसके लिए पुलिस स्टेशन की दौड़ लगाने वाला था लेकिन जीजा जी ने बताया कि आप उनके गहरे दोस्त हैं और आप सीधे ये जानकारी मुझे दे सकते हैं। वैसे भी एक इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर के रूप में आपने इस मामले की पूरी पड़ताल की है। तो आपके माध्यम से मुझे जो भी जानकारी मिलेगी, वो पुख्ता ही होगी। हो सकता है मुझे उस घटना और उसकी इन्वेस्टिगेशन के बारे में बताते समय केस से जुड़ी कुछ बारीक चीजों पर आपका खुद ही ध्यान
 
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चला जाए। और इसलिए अगर मैं गलत नहीं हूं तो आपके लिए भी ये कसरत पूरी तरह टाइम वेस्टिंग साबित नहीं होगी। आप जानना चाहते हैं कि इस जानकारी का क्या उपयोग मेरे जेहन में है? तो इसका जवाब ये है कि’’-फिर मोहित थोड़ा ठहरकर बोला-‘‘आपको क्या लगता है?’’ इंस्पेक्टर होंठ भींचे मोहित के चेहरे को देखता रहा। मोहित के चेहरे पर गम्भीरता के साथ ही एक किस्म के जुनून की झलक भी दिख रही थी। उसका चेहरा शांत था लेकिन वो शांति किसी तूफान के आगमन से पहले की शांति की तरह ही थी। ‘‘रिवेंज।’’-फिर इंस्पेक्टर बोला। मोहित ने कुछ नहीं कहा। ‘‘तो आप बदला लेना चाहते हैं?’’ ‘‘मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा।’’-मोहित शांत स्वर में बोला। ‘‘खैर।’’-इंस्पेक्टर वैभव ने गहरी सांस लेकर कहा-‘‘वो कोई नाशुक्रा ही होगा, जो अपने पिता के कत्ल का बदला न लेना चाहता हो। लेकिन फिर भी कानून व्यवस्था भी एक चीज होती है। मेरी आपसे यही सलाह है कि जोश में आकर ऐसा कोई कदम न उठाएं, जिससे आपका नाम अपराधियों की लिस्ट में आ जाए।’’ ‘‘समझ लीजिए, मैं उसे गिरफ्तार कराकर ही अपना बदला लूंगा।’’-मोहित संयमित स्वर में बोला। ‘‘आप दिलचस्प आदमी हैं, मिस्टर मोहित। आप बोलते तो कुछ और हैं लेकिन सुनाई कुछ और देता है। बहरहाल, मैं यहां वकील साहब की रिक्वेस्ट पूरी करने आया हूं। बाकी बातें तो होती ही रहेंगीं। बताइए, क्या जानना चाहते हैं आप?’’ ‘‘सब कुछ।’’ ‘‘सब कुछ?’’ ‘‘वो भी शुरू से।’’ ‘‘तो फिर सुनिए...।’’ गिरिराज वर्मा शहर के नामी वकील थे। वकील होने के साथ ही वे बेहद संपन्न भी थे क्योंकि उनके पास पुरखों की छोड़ी गई अच्छी-खासी जायदाद भी थी और कुछ कम्पनियों के शेयर भी थे, जिनसे वे खूब मुनाफा कूटते थे। यानि पैसों की उनके पास कोई कमी नहीं थी। हिल रोड पर उनका एक घर था, जो ज्यादा भव्य तो नहीं था लेकिन बड़ा जरूर था। वो घर उन्होंने करीब साल भर पहले ही खरीदा था। घर में कई कमरे थे, जिसमें अच्छा-खासा बड़ा संयुक्त परिवार भी सुविधापूर्वक रह सकता था लेकिन अधिकांश लोगों को यही लगता था कि उस घर में गिरिराज वर्मा अकेले ही रहते थे। घर में दो सर्वेंट क्वार्टर भी थे लेकिन गिरिराज वर्मा के यहां कोई घरेलू नौकर नहीं था। परिवार के नाम पर उनकी दो संतानें थीं, एक बेटी मानसी और बेटा मोहित। मानसी की करीब डेढ़ साल पहले शादी हो गई थी। मोहित भी अमेरिका में जॉब लगने के बाद पिछले तीन सालों से बाहर ही रह रहा था। कुल मिलाकर गिरिराज वर्मा का जीवन काफी एकाकी हो चला था। लेकिन ये उनके लिए दुख का कारण नहीं था।
 
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वो असल में ऐसे शख्स थे, जो एकाकीपन में खुश रहते थे। शायद इसी कारण उन्होंने अपनी पत्नी के देहांत के बाद दूसरी शादी करने में भी कोई रूचि नहीं दिखाई। पत्नी के देहांत के समय वे 40 के आसपास थे और बच्चे भी कोई ज्यादा बड़े नहीं थे। लेकिन पत्नी के जाने के बाद गिरिराज वर्मा ने जीवन के एकाकीपन को साथी बना लिया और दूसरे जीवनसाथी के बारे में सोचना भी गवारा नहीं किया। उनके आदर्श चरित्र की लोग मिसालें देते थे। यहां तक कि उनके कभी किसी के साथ अफेयर जैसी बात भी सामने नहीं आई। वे काफी मिलनसार व्यक्ति भी थे, जिसके चलते उनके मित्रों, शुभचिंतकों की कोई कमी नहीं थी। नैनीताल में उनका अच्छा-खासा रूतबा था। बड़े-बड़े नेताओं, अधिकारियों के साथ उठना-बैठना भी रहता था। लगातार तीन साल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके होने के बाद वर्तमान में संरक्षक की भूमिका निभा रहे थे। समाजसेवी कार्यों में सबसे आगे रहते थे। दान-धर्म, पुण्य, समाजसेवा के कार्यों में लोगों को सबसे पहले उनकी याद आती थी। लेकिन फिर अचानक सब कुछ बदलने लगा। करीब साल भर पहले गिरिराज ने लोगों से दूरी बनाना शुरू कर दिया।
 
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वो अब पहले की तरह कार्यक्रमों में नहीं जाते थे। उन्होंने कोर्ट भी जाना कम कर दिया। वो जैसे अपने-आप में सिमटते जा रहे थे। और उन्होंने ये इतनी खामोशी के साथ, इस ढंग से किया कि लोग इस चीज को नोटिस भी नहीं कर पाए। जिन्होंने नोटिस किया और इसकी वजह जाननी चाही, उन्हें गिरिराज ने यही सफाई दी कि अब दुनिया की भागदौड़ में उनका मन नहीं लगता। अब वे अपना समय घर पर ही किताबें पढ़ते हुए या टीवी देखते हुए बिताते हैं। उनका इतना अपना तो कोई वहां था ही नहीं, जो उनके इस तरह समाज से अलग-थलग होने का कारण जानने या उन्हें वापस समाज से जोडऩे की कोशिश करने उन पर दबाव डाल पाता। मोहित अमेरिका में था और मानसी भी अपने पति अरविंद के साथ उस समय दिल्ली में रह रही थी। कुल मिलाकर गिरिराज के और उन्हीं के द्वारा चुने गए उनके एकाकीपन के जीवन के बीच में कोई बाधा नहीं थी। और इसी बीच गिरिराज वर्मा के हिल रोड स्थित घर में उनका कत्ल हो गया। गिरिराज वर्मा की लाश उनके घर के स्टडी रूम में उस रिवॉल्विंग चेयर पर पाई गई, जिस पर वो बैठा करते थे। रिवॉल्वर की गोली ने उनकी कनपटी में सुराख कर दिया
 
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था और रिवॉल्वर लाश के पास ही फर्श पर पड़ी मिली थी, जैसे हाथ से फिसल कर गिर पड़ी हो। पहली नजर में ये पूरी तरह सुसाइड केस था। पुलिस को कोई संदेह-शुबहा नहीं था। अकेलेपन से उदास अवसादग्रस्त एक अधेड़ व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी तो उसमें क्या हैरानी की बात हो सकती थी? लेकिन मृतक के जानने वाले इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे। उनके मुताबिक गिरिराज वर्मा काफी सुलझे हुए इंसान थे। वो आत्महत्या करना तो दूर, आत्महत्या करने की सोच भी नहीं सकते थे। फिर जो हुआ, वो कैसे हुआ? पुलिस के लिए ये एक ऐसी मिस्ट्री थी, जिसे सुलझाना बेहद मुश्किल दिखाई दे रहा था। और वो मुश्किल तब और भी बढ़ गई, जब मृतक की वसीयत पढ़ी गई।
 
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अपनी वसीयत में उसने अपनी सारी जायदाद अपने बेटे मोहित वर्मा के नाम नहीं की थी। अपनी बेटी मानसी सक्सेना के नाम नहीं की थी। अपने दामाद अरविंद सक्सेना के नाम नहीं की थी। मशहूर क्रिमिनल लॉयर गिरिराज वर्मा ने अपनी मृत्यु के बाद अपनी पूरी जायदाद-सारी चल-अचल सम्पत्ति, जिसकी वैल्यू करोड़ों रूपयों में थी-सनाया गौतम के नाम की थी।
 
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अब ये सनाया गौतम कौन थी? इसका पता पुलिस आज तक नहीं लगा पाई थी। पुलिस ने मृतक के परिजनों से लेकर उसके परिचितों से, सभी से पूछताछ की लेकिन कोई भी सनाया गौतम के बारे में कुछ भी नहीं बता पा रहा था। पुलिस के लिए ये एक बड़ी पहेली थी। आखिर एकदम से जमीन फाड़ कर ये सनाया गौतम कहां से निकल आई, जिसके नाम मृतक ने अपनी पूरी प्रॉपर्टी कर दी थी? सनाया गौतम का नाम सामने आने के बाद पूरा केस ही दक्षिण दिशा में घूम गया था। मृतक के परिजनों ने भी हत्या की आशंका व्यक्त करते हुए केस की नए सिरे से जांच की मांग की। वे पहले से ही मानने के लिए तैयार
नहीं थे कि गिरिराज वर्मा आत्महत्या कर सकते थे। अब सनाया गौतम के रूप में ये नया पेंच आने के बाद उनका संदेह यकीन में बदल गया था। पुलिस ने भी मृतक के परिजनों की मांग को स्वीकार करते हुए ‘आत्महत्या के अलावा कुछ और भी’ होने की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए जब नए सिरे से मामले की जांच शुरू की तो एक के बाद एक चौंका देने वाले खुलासे होने लगे। घर के एक कमरे में-जिसमें एक मजबूत सेफ रखी रहती थी-लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की जांच करने पर उसमें एक युवती सेफ खोल कर उसमें से नकद रकम व गहने निकाल कर एक बैग में भरती हुई साफ दिखाई दी। मृतक की बेटी मानसी ने पुलिस को बताया कि उस तिजोरी में किसी इमरजेंसी के लिए उसके पिता ने 20 लाख रूपए की रकम रख छोड़ी थी और इसके अलावा उसकी स्वर्गीय मां के सोने-चांदी के गहने भी थे, जिनकी कीमत करीब 25 लाख रूपए थी। यानी वो एक सीधा-सादा आत्महत्या का मामला नहीं था। वो तो एक हत्या और 45 लाख की लूट का हाईप्रोफाइल केस था।
 
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