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क्या हुआ?’’-मानसी चौंकी। ‘‘कुछ नहीं।’’-मोहित हड़बड़ा गया-"यही है वैशाली?" "हां। सचमुच अजीब बात है न? तुम दोनों इतने सालों बाद वापस आ रहे हो, एक ही फ्लाइट से आए हो लेकिन एक-दूसरे को नहीं जानते।" तब तक वैशाली भी वहां आकर खड़ी हो गई। उसने एक बार घूरकर मोहित की ओर देखा, फिर मानसी की ओर देखकर बोली-‘‘हाय, भाभी।’’ ‘‘हाय।’’-कहकर मानसी उससे गले मिली। फिर उससे बोली-‘‘वैशाली। इससे मिलो। ये है, मोहित, मेरा छोटा भाई। मोहित, ये है वैशाली।’’ ‘‘हाय।’’-उसने एक उड़ती-सी नजर मोहित पर डाली और फिर अपना मोबाइल निकालकर उसमें कुछ चैक करने का दिखावा करने लगी। मोहित ने उसके अभिवादन का प्रत्युत्तर दिया लेकिन उसके दिमाग में यही चल रहा था कि ये कितना अजीब संयोग था कि अभी-अभी कस्टम ऑफिसर पर टिप्पणी करने वाली वो लडक़ी उसकी रिश्तेदार निकल आई थी। वो भी ऐसी रिश्तेदार, जिसे उसने कभी जिंदगी में नहीं देखा था। जीजा की बहन। मोहित को इस बात की भी हैरानी थी कि वो दोनों एक ही फ्लाइट से एक साथ आ रहे थे, मानसी उन दोनों का इंतजार कर रही थी लेकिन उसने उसे इस बारे में कुछ नहीं बताया था। फिर वे तीनों एयरपोर्ट से बाहर निकले। कार पार्किंग में मानसी की कार खड़ी थी। मोहित ने अपना सामान कार की डिक्की में रखा, जिसके बाद तीनों कार में सवार हुए और कुछ ही देर में उनकी कार एयरपोर्ट से निकल सडक़ पर दौड़ रही थी। मोहित कार की खिडक़ी से बाहर झांक कर दिल्ली की सडक़ों का नजारा देख रहा था। इतने सालों बाद लौटने पर थोड़ा-बहुत बदलाव तो महसूस हो रहा था लेकिन विशेष कुछ नहीं बदला था। वही ट्रैफिक की भीड़-भाड़, वही रास्ते और वही सब कुछ! मोहित पिछली सीट पर बैठा था। कार मानसी चला रही थी और वैशाली उसके बगल में ही बैठी थी। मानसी वैशाली से उसकी पढ़ाई और अमेरिका के बारे में पूछ रही थी। “इतने लम्बे सफर के कारण पहले ही दिमाग खराब था-मानसी से बातें करती हुई वैशाली बोली-‘‘ऊपर से एयरपोर्ट पर कोरोना की जांच के नाम पर अलग से रोक लिया। वहां एक घंटा और लगाया। मेरा इतना दिमाग खराब हो गया था कि मैं वहां मौजूद उस बेचारे कस्टम ऑफिसर को ही उल्टा-सीधा बोल गई। बेचारा अच्छा आदमी था। पलटकर एक शब्द भी नहीं बोला मेरे से।’’ एक शब्द बोलने लायक मोहलत ही कहां दी थी तुमने उसे-मोहित ने मन ही मन सोचा। वैसे भी मोहित को लगा कि वैशाली वो बात मानसी को नहीं बता रही थी बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से मोहित को ही सफाई दे रही थी। मोहित ने उनकी बातचीत के बीच दखल नहीं दिया। बीच-बीच में मानसी उससे कुछ कहती भी तो वो संक्षिप्त बातचीत ही कर रहा था। वो उस समय बातचीत करने जैसा महसूस नहीं कर रहा था। उसने फिर आंखें मूंद कर अपने शरीर ढीला छोड़ दिया। तभी वैशाली की आवाज उसके कानों में पड़ी और उसने अपनी आंखें खोल दीं।