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पूछो।‘‘ ‘‘ये दोनों कत्ल तुमने किये हैं?‘‘ जवाब में उसने बड़े ही असहाय भाव से मेरी ओर देखा। ‘‘जवाब ये सोचकर देना कि उससे तुम्हारा बचाव करने की मेरी मुहीम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।‘‘ ‘‘नहीं! - वो बेहिचक बोला - कभी खयाल तक नहीं आया कि मुझे किसी के खून से अपने हाथ रंगने पड़ेंगे।‘‘ ‘‘मंदिरा चावला से वाकिफ थे तुम!‘‘ ‘‘हां जानता था मैं उसे।‘‘ ‘‘कैसे जानते थे?‘‘ ‘‘तीन महीने पहले एक पार्टी में मुलाकात हुई थी। वहीं जान-पहचान हो गयी। पार्टी आधी रात तक चलती रही थी, उस दौरान हम काफी घुल-मिल गये। पार्टी के बाद मैं उसे उसके फ्लैट तक छोड़कर आया था। हालिया मुलाकात की बात करूं तो वो करीब एक महीने पहले हुई थी। उस रोज मैंने उसे लंच पर इनवाइट किया था। लंच के दौरान कुछ हल्की-फुल्की बातें हुई हमारे बीच, फिर हम दोनों अपनी अपनी राह लग लिए।‘‘ ‘‘कल वो तुम्हारे फ्लैट पर आई थी।‘‘ ‘‘अरे हां, उसका जिक्र करना तो मैं भूल ही गया।‘‘ ‘‘आई थी!‘‘