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Incest Kingdom ~ Alok and Sid in 14 century

Update Hindi main chahiye yaa hinglish

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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,744
57,519
259
अपडेट - 6

"तुम्हारी इतनी हिमाकत की तुम हमारा चहरा देखो , अगर जिंदा होते तो जहर दे कर मार देती, तुम्हे इतना नही पता

विषकन्या तनु हमारा नाम है, हमे छू सके अभी ऐसा कोई पैदा नही हुआ और तुमने हमे देख कैसे लिया"-

अब आगे --

"अरे कुत्ते ने हमारा पूरा मन खराब कर दिया"- वही तनु धीरे से आगे आती है और पानी में अपने टांग डाल कर धीरे से आहे भरती है और धीरे से अपने मन में बड़बड़ाती है।

"ये मुझे इतना क्रोध क्यों आ रहा है, ऐसा प्रतीत होता है किसी चीज पर मेरा हक है, लेकिन मुझे उस चीज़ को मारने का मन कर रहा है"-

"खैर ये मेरा वहम हो सकता है, लेकीन सिंध राज्य से अब कोई सूचना नही आ रही क्यों,"-

तनु अपनी सोच में डूबी हुई थी की अचानक वहा एक खबरी आता है," राजकुमारी तनु को हमारा नमन"-

तनु जो सरोवर में पैर डाले बैठी थी वो बिना उसकी तरफ देखे बोलती है ," हा बोलो जो बोलने आए हो वो बोलो, क्या खबर लाए हो"-

"राजकुमारी एक खराब खबर है, गढ़ी का रियासत जो हमारे अधीन हो गया है, और हमारा मित्र रियासत राखी उसकी इस्तित कमजोर हो गई है"-

ये सुनते ही तनु की आंख क्रोध से लाल हो जाती है और वो चिल्लाते हुए कहती है ," क्या बकते हो, और राखी की रियासत तो मानू के पास है और उसको मोहन जोदरो के सूबे का विश्वास मिला है फिर ये कैसे हो सकता है"-

"माफी चाहूंगा राजकुमारी मैं तो केवल एक खबरी हो, कदाचित आपको नही ज्यात लेकिन मानू के बेटे मोनू की आंख सिंध के नए नीति मंत्री सिद्धार्थ ने फोड़ दी"-

खबरी की बात सुन कर तनु को अजीब लगा और वो एक बार चुप हो गई और बार बार अपने मन में सिद्धार्थ के बारे में सोचती रही और फिर वो बोलती है,"ये सिद्धार्थ ने उसकी आंख क्यों फोड़ी? और एक मंत्री अपनी ही रियासत के रियासथदार के बेटे की आंखें कैसे फोड़ सकता है?, क्या उन्हें शक हो गया है"-

"कदाचित नही राजकुमारी, उनकी आंखे इसलिए फोड़ी क्युकी उन्होंने काव्या को देखा जो उनकी पत्नी है"-

इसके पहले की खबरी आगे कुछ बोलता तनु को अचानक गुस्सा आ गया और बोली चिल्लाते हुए बोली ," किसकी इतनी हिमाकत हम पूरे सिंध को समशान बना देंगे , हमे जल्द से जल्द मोनू का सिर हमारे सामने चाहिए"-

"जजज्ज जैसे आपकी आज्ञा राजकुमारी"-

ये कहते हुआ खबरी वहा से भाग गया और कहता है," आज पहली बार हमने तनु को इतना क्रोधित देखा"-


मोहंजो दरों महल के समीप

" पता नही, इन्हे रह रह कर क्या हो जाता है भला ऐसे सब के सामने कौन करता है ये"-

इधर सिद्धार्थ चुप चाप खड़ा था और वो भी अपनी नजरे दूसरी तरफ़ घुमा लेता है और चुप चाप काव्या की तरफ़ चल देता है.

काव्या सिद्धार्थ को देख देख कर अपना पल्लू जोर से पकड़ लेती है और धीरे से कहती है," हम अंदर जा रहा है आप आ जाइए जल्दी से हम खाना बना देते है"-

ये कहते हुआ काव्या चलीं जाती है और आस्था भी उसके पीछे अपनी झोपड़ी में चली जाती हैं और खाने बनाना की प्रकिया करने लगती है।

इधर आलोक गांव वालो को कई भाग में बाट चुका था और उन्हें कुछ बता रहा था, और तभी गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग आ कर सिद्धार्थ को आशीर्वाद देते है और कहते है ," बेटा सब कुछ तुम संभाल लिया और बस हमारी नहर की व्यस्तता करवा देते तो पूरा गांव तुम्हारा भरोसे मंद रहेगा"-

"जरूर "-

सिद्धार्थ और आलोक अब बहुत थक चुका थे आज सुबह से उनके लिए दिन बहुत थका देने वाला था और इधर सिद्धार्थ जैसे ही अपने घर में आता हैं तो सबसे पहले दरवाज़ा बंद कर देता है और खुले आंगन में आ कर बैठ जाता है जहा पास मैं नीम का पेड़ था और ठंडी ठंडी हवा उसके माथे को छू कर जा रही थी।

चलती हुई ठंडी ठंडी हवाएं और नीम के पत्तो की मनमोहक आवाज किसी के भी दिल को भा सकती थी।

सिद्धार्थ जल्दी से अपने ऊपर के कपड़े उतार देता है और वही नीम के पेड़ के नीचे लेटे लेटे सिद्धार्थ हवा का आनंद ले रहा था और इधर काव्या पूरी तरह से एक टक उसको ही घूर रही थी और धीरे से अपना मन में सोचती है," आज कितना थक गया है , ये "ही

तभी अचानक सिद्धार्थ उठता है और अंदर रसोई में चलने लगता है और जैसे ही वो अंदर जाता हैं तो अंदर काव्या रसोई में काम कर रही होती है और लालटेन की हल्की सी रोशनी में उसकी पतली सी कमर को एक टक वो घूरने लगता है।

तभी काव्या को कुछ अहसास होता है और वो सिद्धार्थ को अपने आप को ऐसे घूरते देख शर्मा जाती हैं और धीरे से कहती है," ऐसे क्या देख रहे है कुछ चाहिए क्या आपको"-

"हा"-

सिद्धार्थ मुंह बना कर धीरे से कहता है और उसका मुंह देख कर काव्या हसने लगती है और अपना पसीना पोछती है और कहती है और हा आप बताइए आपको क्या चाहिए फिर बस कुछ देर में खाना बन जाएगा।

"तभी सिद्धार्थ वही काव्या को पकड़ कर धीरे से कहता है चलो ना बाहर"-

वही काव्या धीरे से शरमाते हुए कहती है ," ये क्या करते रहते है आप अब हा ऐसे कोई घूरता है"-

"तो हम कुछ गलत करते है क्या , अपनी पत्नी को घूरना गलत है , अब घरवाली इतनी सुंदर हो तो उसको घूरना भी गलत और अपनी वाली को ना घुरू तो किसको घुरू"-

उसकी बात सुन कर काव्या जो काम कर रही थी उसके पूरे गाल ही लाल पढ़ गया।

"वो वो वो , मैं कह रही थी आप जाइए बाहर मैं खाना ले कर आती हूं"-

काव्या की टूटती हुई आवाज सुन कर सिद्धार्थ को हसी आ गई और वो हसने लगता है और काव्या के दोनो कंधे पकड़ कर उसके गाल पर अपने होठ रख देता है और फिर स्माइल करते हुआ बाहर चला जाता है।

और बेचारी काव्या जो इस हमले से सिसक के रह जाती है उसका हाथ में जो लकड़ी थी वो छूट जाती है और वो वही जम सी जाती है।

"ये ये अभी इन्होने मुझे चूमा"-

काव्या अपने लाल गाल ले कर काम में जुट जाती है और जल्दी से खाना ले कर बाहर आती है और एक हाथ में लालटेन ली हुई थी।

और काव्या को ऐसे आता देख सिद्धार्थ को उसकी नाजुक कमर को हल्की रोशनी में नजर आ रही थी वो देखते ही खुशी झलक आ जाती है और वो जल्दी से काव्या का हाथ से खाना ले लेता है और काव्या लालटेल अच्छा से रख देती है और खड़ी हो कर सिद्धार्थ को देखने लगती है।

सिद्धार्थ काव्या को ऐसे घूरता देख थोड़ा अजीब महसूस करता है और बोलता है ,"क्या है ऐसे क्यों खड़ी हो बैठो"-

काव्या सिद्धार्थ के बदन को निहार रही थी और वो उसी मैं खो गई थी जैसे ही उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे कुछ कह रहा है तो वो होश में आती है और कहती है।

"अरे वो तो मैं बस ऐसे ही, मेरा मतलब है की जबतक आप नही खा लेते तब तक मैं कैसे खाऊंगी"-

तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर खींच लेता हैं और काव्या जो खड़ी थी वो सिद्धार्थ की गोद में गिर जाती है।

"अअह्ह्ह्ह"-

काव्या के मुंह से एक सिसकी जोर से फूट पड़ती है और उसकी सास तेजी से चलने लगती हैं।

और काव्या की बंद आंखे और उसका ऊपर नीचे हो रहा बदन सिद्धार्थ को अजीब महसूस करा रहा था चांद की रोशनी में उसकी नशीली कमर और हवा से उड़ते उसके बाल ना जाने क्यों आज की रात सिद्धार्थ को उसको बार बार छूने का मन कर रहा था।

तभी सिद्धार्थ अपने आप को होश में लाता है और कहता है,"वैसे तुम अपनी आंखे खोलोगी"-

उसकी आवाज सुन कर काव्या अपनी आंखे खोलती है और सिद्धार्थ अपने हाथ से एक निवाला उसके मुंह में डाल देता है और काव्या बेचारी क्या बोलती आज उसका पति उसको अपनी गोद में भर के खाना खिला था वो क्या ही कहती बस चुप चाप इस पल का आनंद उठा रही थी।

सिद्धार्थ उसको खाना खिलाकर खुद खाता है और बीच बीच में उसकी नज़र काव्या की उभारों पर चली जाती है और अब ये अहसास होते ही काव्या को अजीब सी खुशी आ जाती है और वो उसके गाल पूरे लाल हुआ था।

काव्या धीरे से कहती है," बस अब हमे छोर दीजिए , हम खा चुके और अब तो खाना भी खत्म हो गया"-

नही -

अब सिद्धार्थ का मुंह बन गया और वो ना चाहते हुआ भी काव्या को छोर देता है और काव्या जैसे ही उठने लगती हैं तो अचानक उसकी एक सीत्कार फूट पड़ती है।

सिद्धार्थ कुछ समझ पाता उसके पहले ही काव्या बर्तन उठा कर भाग जाती है और उसकी सांसें इतनी तेज थी सिद्धार्थ की भी सांसें बढ़ा रही थी।

तभी उसकी नज़र अपने उभार पर जाती है तो वो जल्दी से अपना दिमाग दूसरी तरफ ले जाता है और उसकी याद फिर से तनु की तरफ़ जाती है और वो कब नींद के झरोखे में चला जाता है उसको अहसास ही नही होता सुबह की थकान और मेहनत अब नींद में बदल चुकी थी।

इधर काव्या जल्दी से बर्तन पानी के पास रख कर वही बैठ जाती है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगती हैं और अपना ऊपर नीचे होता बदन चुप चाप काबू में करती है और वो अहसास जो आज उसने महसूस किया वो कभी भी नही भूल सकती.

"बुधु पति हुम्ह्ह"-
"हमेशा हमे छेड़ते रहते है, कभी कहते है बिना मेरी मर्जी हमे नही छुएंगे और अब हमे अपना"-

"अरे ये हम क्या सोच रहे है खैर चलो काम कर लूं , बताओं बात बात में आज मुझे इतना ठूसा दिया"-

इधर काव्या काम खत्म करने के बाद जल्दी से आती है आंगन में ताकि सिद्धार्थ को कह सके की चले सोने का टाइम हो गया लेकिन वो कुछ कहती उसके पहले ही उसकी नज़र आंगन में सोए सिद्धार्थ पर पड़ती है जो बहुत थकान की वजह से सो गया था।

"अरे ये तो सो गया यही पर, खैर कोई नही आज इन्होने काम ही बहुत किया है आपने ऐसा काम किया की आपकी पत्नी का सर गर्व से उठ गया , आप मेरे सब कुछ है"-

"उफ्फ मां आज का दिन कितना थकान भरा था, थक गई मैं तो", ये कहते हुए काव्या लालटेन बुझा देती है और अपना पल्लू भी उतार देती है और बस चोली और ब्लाउज में आ जाती है जो उस समय का अहम पहनावा था।

"चलु अब जल्दी से खटिया लगा कर सो जाती हूं", ये काव्या कहती ही है की उसकी नज़र सिद्धार्थ के खटिया पर जाती है जहा सिद्धार्थ ने उसके लिए जगह खाली छोड़ दी थी और वहा तकिया भी थी।

उसकी नज़र वहा पड़ते ही काव्या के गाल फिर से लाल हो जाते है और वो चुपके से सिद्धार्थ को देखती है की सो गया या जाग रहा है।

"जरा देखू सो गया या फिर से हमे परेशान करने के लिया कोई नई चाल है इनकी , नही लगते तो नही ऐसा लगता है ये इस बार सच में सो गया"-

"उल्लू कही के सोनें के लिया इतनी छोटी खटिया लगाई जब जानते है हम दोनों साथ में सोएंगे तो बड़ी खटिया लगानी थी ना छोटी खटिया पर तो"-

जैसे ही उसको समझ आया वो लाल गाल ले कर चुप चाप लेट गई।

थोड़ी देर बाद काव्या की आंखें नींद के आगोश में जाने लगी तभी सिद्धार्थ अचानक करवट लेता है और अपना पैर काव्या की टांग पर लाद देता है।

वही अचानक हुए इस हमले की वजह से काव्या की सांसें थम सी गई और उसकी छाती अपने आप ही ऊपर नीचे होने लगी।

इधर सिद्धार्थ हमेशा ऐसे ही सोता था उसके लिया ये पहले की तरह नॉर्मल था लेकिन इस बार उसके बगल काव्या थी।

काव्या की सांसें तेज चल रही थी उसका पति से मिल रहा ये प्यार भरा अहसास उसे कुछ ऐसा आभास करा रहा था जो उसने कभी नही किया था, सिद्धार्थ का रवैया उसका ये ववहार काव्या को प्यार मैं डाल चुका था लेकिन काव्या और कुछ सोच नही पा रही थी तभी उसको अहसास हुआ को उसकी कमर पर एक हाथ जकड़ रहा है।

"आआआह्हह हम्म्म्म मां"-

ना चाहते हुआ भी काव्या के मुंह से एक सीत्कार फूट पड़ी और और उसको अपनी टांगों में सिद्धार्थ का कुछ चुभते हुए फील हो रहा था।

काव्या कुछ नही कह पा रही थी बस वो एक जगह जम सी गई थी और उसकी सासें इतनी तेज थी कि वो भूल गई उसके बगल सिद्धार्थ सोया है और उसको ऐसे ऊपर नीचे होते देख नींद में ही अपना हाथ काव्या के सर के नीचे रख कर उसको अपने से सटा लेता है।

और काव्या की कमर को तेजी से जकड़ लेता है और काव्या के मुंह से बस कुछ सिसकियां निकल रही थी और धीरे धीरे कब वो नींद में सिद्धार्थ के सीने में लिपट गई उसकी तरफ़ करवट ले कर ये काव्या को भी नी पता चला।

और सिद्धार्थ के सीने की गर्मी में वो कब की नीद में जा चुकी थी ।

*कांव कांव*
*कुहू कुहू*

सुबह के समय तेज तेज हवा और सूरज की हल्की सी आंच और तरह तरह के परिंदो की आवाज़ से काव्या की नींद खुलती है और थोड़ी देर तो वो नींद में ही वही पड़ी रहती है फिर काव्य धीरे से अपनी हालत देखती है तो उसके शरीर पर साप जैसे लोट जाते हो।

काव्या सिद्धार्थ की तरफ करवट ली हुई थी और उसके सीने में घुसी हुई थी और उसका सर सिद्धार्थ के हाथ पर था।

काव्या ये जानते ही थोड़ा हकबाका जाती है और उसकी सासें तो उसी तेजी से चलने लगती है, लाल गाल शर्म से पूरे तभी वो अपनें पैर की तरफ देखती है तो उसकी हालत और खराब हो जाती है।

काव्या के पैर सिद्धार्थ के पैर के बीच में था और सिद्धार्थ ने उसकी झाग के ऊपर अपनी टांग रखी थी और उसकी कमर कस के पकड़ कर सोया था।

छोटी सी खटिया पर काव्या और सिद्धार्थ आधे पर ही सोए थे काव्या थोड़ा हिलती है तभी उसे अहसास होता है की सिद्धार्थ हल्का कप रहा है तो वो डरते डरते अपने कापटे हुए हाथ सिद्धार्थ की पीठ पर रखती है और धीरे से उन्हें कस लेती है उसकी लिए ये करना एक बहुत बहादुरी का काम था।

तभी काव्या धीरे से आंखे खोलती है और सिद्धार्थ के सीने की तरफ देखती है और शर्म से जल्दी से उन्हें ढक देती है।

"आह मम्मी यार ये मैना क्या कर दिया, उनके सीने पर तो बस मेरे दातों के निशान है"-

तभी काव्या अपना सर उठाती है और सिद्धार्थ का सर देखती है और सिद्धार्थ नींद में ही कुछ इधर उधर कर रहा था और काव्या को कस रहा था।

काव्या सिद्धार्थ को ऐसे देख हसने लगती है और अपना मुंह इधर उधर करने लगती है और एक जगह रुक जाती है ये देखने के लिए ये क्या करना चाहते है जैसे ही वो रुकती है सिद्धार्थ उसके हाथ समझ कर उसकी नाक की तरफ आता है और ना जाने कैसे वो थोड़ा नीचे हो जाता है और उसके होठ काव्या के होठ के जस्ट सामने आ गया और ये देख कर काव्या अपनी आंखें बंद कर लेती है और वो बहुत जोर से कांपने लगती है, सिद्धार्थ को काव्या की गरम गरम सासें फील हो रही थी।

इसके पहले की दोनो के होठ मिलते एक जोरदार आवाज़ आती है।

"अरे ए बावली काव्या चल जल्दी वर्ना सूरज आ जाएगा तो दिक्कत होगी चल"-

जैसे ही इतनी तेज आवाज आती है और आंगन में दरवाजा खटखटा जाता है सिद्धार्थ चिहुक जाता है और उसकी नींद खुल जाती है और काव्या की भी आंखे खुल जाती है और वो सिद्धार्थ को देखती है जो कच्ची नींद में ऐसे जगा था और उसको ऐसे कच्ची नींद में जागते देख काव्या थोड़ा उदास हो जाती है।

और सिद्धार्थ कहता है," क्या हुआ"

काव्या धीरे से कहती है," वो वो सुबह हो गई , हमे छोड़ दीजिए वर्ना सूरज आ जायेगा तो दिक्कत होगी हम फ्रेश हो कर तैयार हो जाते है"-

तभी सिद्धार्थ को अहसास होता है की उसने काव्या को पूरी तरह से दबा रखा है तो वो थोड़ा शर्मिंदा हो जाता है और डरते हुआ कहता है," हमे माफ कर हम ये"-

सिद्धार्थ आगे कुछ कहता उसका पहले ही काव्या उसको गले लगा लेती है और धीरे से कहती है," आप स्माइल करते हुआ अच्छे लगते है और स्माइल ही करते रहिए समझे और मेरी जगह तो आपके आगोश में है ऐसे उदास ना हो रात तो आती रहेगी"-

ये कह कर वो बहुत तेजी से भागना चाहती थी लेकिन भाग नी सकी क्युकी सिद्धार्थ की पकड़ और कस गई और सिद्धार्थ के कांप रहे होठ अपने आप काव्या की तरफ़ बढ़ने लगते है और और उसने काव्या को कस के अपने ऊपर ले लिया था और दोनो इस समय बस सुबह की ठंड का साथ अपने प्यार का आगाज़ करना चाहते थे लेकिन तभी

"अरे काव्या"-

वही ये सुन कर सिद्धार्थ काव्या को छोर देता है और काव्या की आंखें गुस्सा में लाल हो गई।

और सिद्धार्थ जल्दी से करवट बदल कर लेता जाता है और काव्या जल्दी से अपनी चोली और ब्लाउज पहनती है जो खुल गई थी। और जल्दी से दरवाजा की तरफ चल पड़ती है।


और वो तेजी से दरवाज़ा खोलती है और गुस्से में आस्था को देखती है.
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To Be continue .... Target - 10 like waise toh maina socha tha aage ki story update ka update dun but maina socha thoda romance add kar dun.. taaki next update se gujraat aur sindh dispute par dhyaan dunga... Stay tunned... aur late hua uske liya sorry badalte masum ke sath thodi si gaand fat gai thi meri well update ab regular aayga yaa toh har dusre din bhala thoda chota rhe bt aayga but plss support kro...
Mind blowing update and superb must writing ✍️ Ghost Rider ❣️ ghosty 10 like 👍 ki kya baat karta hai tu meri story pe aaya kar 20 likes to tere coments pe aajayenge :declare:
 
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ashiq_bhai

ℂ𝕣𝕚𝕞𝕖 𝕜𝕚𝕝𝕝𝕖𝕣'𝕤
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"तुम्हारी इतनी हिमाकत की तुम हमारा चहरा देखो , अगर जिंदा होते तो जहर दे कर मार देती, तुम्हे इतना नही पता

विषकन्या तनु हमारा नाम है, हमे छू सके अभी ऐसा कोई पैदा नही हुआ और तुमने हमे देख कैसे लिया"-

अब आगे --

"अरे कुत्ते ने हमारा पूरा मन खराब कर दिया"- वही तनु धीरे से आगे आती है और पानी में अपने टांग डाल कर धीरे से आहे भरती है और धीरे से अपने मन में बड़बड़ाती है।

"ये मुझे इतना क्रोध क्यों आ रहा है, ऐसा प्रतीत होता है किसी चीज पर मेरा हक है, लेकिन मुझे उस चीज़ को मारने का मन कर रहा है"-

"खैर ये मेरा वहम हो सकता है, लेकीन सिंध राज्य से अब कोई सूचना नही आ रही क्यों,"-

तनु अपनी सोच में डूबी हुई थी की अचानक वहा एक खबरी आता है," राजकुमारी तनु को हमारा नमन"-

तनु जो सरोवर में पैर डाले बैठी थी वो बिना उसकी तरफ देखे बोलती है ," हा बोलो जो बोलने आए हो वो बोलो, क्या खबर लाए हो"-

"राजकुमारी एक खराब खबर है, गढ़ी का रियासत जो हमारे अधीन हो गया है, और हमारा मित्र रियासत राखी उसकी इस्तित कमजोर हो गई है"-

ये सुनते ही तनु की आंख क्रोध से लाल हो जाती है और वो चिल्लाते हुए कहती है ," क्या बकते हो, और राखी की रियासत तो मानू के पास है और उसको मोहन जोदरो के सूबे का विश्वास मिला है फिर ये कैसे हो सकता है"-

"माफी चाहूंगा राजकुमारी मैं तो केवल एक खबरी हो, कदाचित आपको नही ज्यात लेकिन मानू के बेटे मोनू की आंख सिंध के नए नीति मंत्री सिद्धार्थ ने फोड़ दी"-

खबरी की बात सुन कर तनु को अजीब लगा और वो एक बार चुप हो गई और बार बार अपने मन में सिद्धार्थ के बारे में सोचती रही और फिर वो बोलती है,"ये सिद्धार्थ ने उसकी आंख क्यों फोड़ी? और एक मंत्री अपनी ही रियासत के रियासथदार के बेटे की आंखें कैसे फोड़ सकता है?, क्या उन्हें शक हो गया है"-

"कदाचित नही राजकुमारी, उनकी आंखे इसलिए फोड़ी क्युकी उन्होंने काव्या को देखा जो उनकी पत्नी है"-

इसके पहले की खबरी आगे कुछ बोलता तनु को अचानक गुस्सा आ गया और बोली चिल्लाते हुए बोली ," किसकी इतनी हिमाकत हम पूरे सिंध को समशान बना देंगे , हमे जल्द से जल्द मोनू का सिर हमारे सामने चाहिए"-

"जजज्ज जैसे आपकी आज्ञा राजकुमारी"-

ये कहते हुआ खबरी वहा से भाग गया और कहता है," आज पहली बार हमने तनु को इतना क्रोधित देखा"-


मोहंजो दरों महल के समीप

" पता नही, इन्हे रह रह कर क्या हो जाता है भला ऐसे सब के सामने कौन करता है ये"-

इधर सिद्धार्थ चुप चाप खड़ा था और वो भी अपनी नजरे दूसरी तरफ़ घुमा लेता है और चुप चाप काव्या की तरफ़ चल देता है.

काव्या सिद्धार्थ को देख देख कर अपना पल्लू जोर से पकड़ लेती है और धीरे से कहती है," हम अंदर जा रहा है आप आ जाइए जल्दी से हम खाना बना देते है"-

ये कहते हुआ काव्या चलीं जाती है और आस्था भी उसके पीछे अपनी झोपड़ी में चली जाती हैं और खाने बनाना की प्रकिया करने लगती है।

इधर आलोक गांव वालो को कई भाग में बाट चुका था और उन्हें कुछ बता रहा था, और तभी गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग आ कर सिद्धार्थ को आशीर्वाद देते है और कहते है ," बेटा सब कुछ तुम संभाल लिया और बस हमारी नहर की व्यस्तता करवा देते तो पूरा गांव तुम्हारा भरोसे मंद रहेगा"-

"जरूर "-

सिद्धार्थ और आलोक अब बहुत थक चुका थे आज सुबह से उनके लिए दिन बहुत थका देने वाला था और इधर सिद्धार्थ जैसे ही अपने घर में आता हैं तो सबसे पहले दरवाज़ा बंद कर देता है और खुले आंगन में आ कर बैठ जाता है जहा पास मैं नीम का पेड़ था और ठंडी ठंडी हवा उसके माथे को छू कर जा रही थी।

चलती हुई ठंडी ठंडी हवाएं और नीम के पत्तो की मनमोहक आवाज किसी के भी दिल को भा सकती थी।

सिद्धार्थ जल्दी से अपने ऊपर के कपड़े उतार देता है और वही नीम के पेड़ के नीचे लेटे लेटे सिद्धार्थ हवा का आनंद ले रहा था और इधर काव्या पूरी तरह से एक टक उसको ही घूर रही थी और धीरे से अपना मन में सोचती है," आज कितना थक गया है , ये "ही

तभी अचानक सिद्धार्थ उठता है और अंदर रसोई में चलने लगता है और जैसे ही वो अंदर जाता हैं तो अंदर काव्या रसोई में काम कर रही होती है और लालटेन की हल्की सी रोशनी में उसकी पतली सी कमर को एक टक वो घूरने लगता है।

तभी काव्या को कुछ अहसास होता है और वो सिद्धार्थ को अपने आप को ऐसे घूरते देख शर्मा जाती हैं और धीरे से कहती है," ऐसे क्या देख रहे है कुछ चाहिए क्या आपको"-

"हा"-

सिद्धार्थ मुंह बना कर धीरे से कहता है और उसका मुंह देख कर काव्या हसने लगती है और अपना पसीना पोछती है और कहती है और हा आप बताइए आपको क्या चाहिए फिर बस कुछ देर में खाना बन जाएगा।

"तभी सिद्धार्थ वही काव्या को पकड़ कर धीरे से कहता है चलो ना बाहर"-

वही काव्या धीरे से शरमाते हुए कहती है ," ये क्या करते रहते है आप अब हा ऐसे कोई घूरता है"-

"तो हम कुछ गलत करते है क्या , अपनी पत्नी को घूरना गलत है , अब घरवाली इतनी सुंदर हो तो उसको घूरना भी गलत और अपनी वाली को ना घुरू तो किसको घुरू"-

उसकी बात सुन कर काव्या जो काम कर रही थी उसके पूरे गाल ही लाल पढ़ गया।

"वो वो वो , मैं कह रही थी आप जाइए बाहर मैं खाना ले कर आती हूं"-

काव्या की टूटती हुई आवाज सुन कर सिद्धार्थ को हसी आ गई और वो हसने लगता है और काव्या के दोनो कंधे पकड़ कर उसके गाल पर अपने होठ रख देता है और फिर स्माइल करते हुआ बाहर चला जाता है।

और बेचारी काव्या जो इस हमले से सिसक के रह जाती है उसका हाथ में जो लकड़ी थी वो छूट जाती है और वो वही जम सी जाती है।

"ये ये अभी इन्होने मुझे चूमा"-

काव्या अपने लाल गाल ले कर काम में जुट जाती है और जल्दी से खाना ले कर बाहर आती है और एक हाथ में लालटेन ली हुई थी।

और काव्या को ऐसे आता देख सिद्धार्थ को उसकी नाजुक कमर को हल्की रोशनी में नजर आ रही थी वो देखते ही खुशी झलक आ जाती है और वो जल्दी से काव्या का हाथ से खाना ले लेता है और काव्या लालटेल अच्छा से रख देती है और खड़ी हो कर सिद्धार्थ को देखने लगती है।

सिद्धार्थ काव्या को ऐसे घूरता देख थोड़ा अजीब महसूस करता है और बोलता है ,"क्या है ऐसे क्यों खड़ी हो बैठो"-

काव्या सिद्धार्थ के बदन को निहार रही थी और वो उसी मैं खो गई थी जैसे ही उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे कुछ कह रहा है तो वो होश में आती है और कहती है।

"अरे वो तो मैं बस ऐसे ही, मेरा मतलब है की जबतक आप नही खा लेते तब तक मैं कैसे खाऊंगी"-

तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर खींच लेता हैं और काव्या जो खड़ी थी वो सिद्धार्थ की गोद में गिर जाती है।

"अअह्ह्ह्ह"-

काव्या के मुंह से एक सिसकी जोर से फूट पड़ती है और उसकी सास तेजी से चलने लगती हैं।

और काव्या की बंद आंखे और उसका ऊपर नीचे हो रहा बदन सिद्धार्थ को अजीब महसूस करा रहा था चांद की रोशनी में उसकी नशीली कमर और हवा से उड़ते उसके बाल ना जाने क्यों आज की रात सिद्धार्थ को उसको बार बार छूने का मन कर रहा था।

तभी सिद्धार्थ अपने आप को होश में लाता है और कहता है,"वैसे तुम अपनी आंखे खोलोगी"-

उसकी आवाज सुन कर काव्या अपनी आंखे खोलती है और सिद्धार्थ अपने हाथ से एक निवाला उसके मुंह में डाल देता है और काव्या बेचारी क्या बोलती आज उसका पति उसको अपनी गोद में भर के खाना खिला था वो क्या ही कहती बस चुप चाप इस पल का आनंद उठा रही थी।

सिद्धार्थ उसको खाना खिलाकर खुद खाता है और बीच बीच में उसकी नज़र काव्या की उभारों पर चली जाती है और अब ये अहसास होते ही काव्या को अजीब सी खुशी आ जाती है और वो उसके गाल पूरे लाल हुआ था।

काव्या धीरे से कहती है," बस अब हमे छोर दीजिए , हम खा चुके और अब तो खाना भी खत्म हो गया"-

नही -

अब सिद्धार्थ का मुंह बन गया और वो ना चाहते हुआ भी काव्या को छोर देता है और काव्या जैसे ही उठने लगती हैं तो अचानक उसकी एक सीत्कार फूट पड़ती है।

सिद्धार्थ कुछ समझ पाता उसके पहले ही काव्या बर्तन उठा कर भाग जाती है और उसकी सांसें इतनी तेज थी सिद्धार्थ की भी सांसें बढ़ा रही थी।

तभी उसकी नज़र अपने उभार पर जाती है तो वो जल्दी से अपना दिमाग दूसरी तरफ ले जाता है और उसकी याद फिर से तनु की तरफ़ जाती है और वो कब नींद के झरोखे में चला जाता है उसको अहसास ही नही होता सुबह की थकान और मेहनत अब नींद में बदल चुकी थी।

इधर काव्या जल्दी से बर्तन पानी के पास रख कर वही बैठ जाती है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगती हैं और अपना ऊपर नीचे होता बदन चुप चाप काबू में करती है और वो अहसास जो आज उसने महसूस किया वो कभी भी नही भूल सकती.

"बुधु पति हुम्ह्ह"-
"हमेशा हमे छेड़ते रहते है, कभी कहते है बिना मेरी मर्जी हमे नही छुएंगे और अब हमे अपना"-

"अरे ये हम क्या सोच रहे है खैर चलो काम कर लूं , बताओं बात बात में आज मुझे इतना ठूसा दिया"-

इधर काव्या काम खत्म करने के बाद जल्दी से आती है आंगन में ताकि सिद्धार्थ को कह सके की चले सोने का टाइम हो गया लेकिन वो कुछ कहती उसके पहले ही उसकी नज़र आंगन में सोए सिद्धार्थ पर पड़ती है जो बहुत थकान की वजह से सो गया था।

"अरे ये तो सो गया यही पर, खैर कोई नही आज इन्होने काम ही बहुत किया है आपने ऐसा काम किया की आपकी पत्नी का सर गर्व से उठ गया , आप मेरे सब कुछ है"-

"उफ्फ मां आज का दिन कितना थकान भरा था, थक गई मैं तो", ये कहते हुए काव्या लालटेन बुझा देती है और अपना पल्लू भी उतार देती है और बस चोली और ब्लाउज में आ जाती है जो उस समय का अहम पहनावा था।

"चलु अब जल्दी से खटिया लगा कर सो जाती हूं", ये काव्या कहती ही है की उसकी नज़र सिद्धार्थ के खटिया पर जाती है जहा सिद्धार्थ ने उसके लिए जगह खाली छोड़ दी थी और वहा तकिया भी थी।

उसकी नज़र वहा पड़ते ही काव्या के गाल फिर से लाल हो जाते है और वो चुपके से सिद्धार्थ को देखती है की सो गया या जाग रहा है।

"जरा देखू सो गया या फिर से हमे परेशान करने के लिया कोई नई चाल है इनकी , नही लगते तो नही ऐसा लगता है ये इस बार सच में सो गया"-

"उल्लू कही के सोनें के लिया इतनी छोटी खटिया लगाई जब जानते है हम दोनों साथ में सोएंगे तो बड़ी खटिया लगानी थी ना छोटी खटिया पर तो"-

जैसे ही उसको समझ आया वो लाल गाल ले कर चुप चाप लेट गई।

थोड़ी देर बाद काव्या की आंखें नींद के आगोश में जाने लगी तभी सिद्धार्थ अचानक करवट लेता है और अपना पैर काव्या की टांग पर लाद देता है।

वही अचानक हुए इस हमले की वजह से काव्या की सांसें थम सी गई और उसकी छाती अपने आप ही ऊपर नीचे होने लगी।

इधर सिद्धार्थ हमेशा ऐसे ही सोता था उसके लिया ये पहले की तरह नॉर्मल था लेकिन इस बार उसके बगल काव्या थी।

काव्या की सांसें तेज चल रही थी उसका पति से मिल रहा ये प्यार भरा अहसास उसे कुछ ऐसा आभास करा रहा था जो उसने कभी नही किया था, सिद्धार्थ का रवैया उसका ये ववहार काव्या को प्यार मैं डाल चुका था लेकिन काव्या और कुछ सोच नही पा रही थी तभी उसको अहसास हुआ को उसकी कमर पर एक हाथ जकड़ रहा है।

"आआआह्हह हम्म्म्म मां"-

ना चाहते हुआ भी काव्या के मुंह से एक सीत्कार फूट पड़ी और और उसको अपनी टांगों में सिद्धार्थ का कुछ चुभते हुए फील हो रहा था।

काव्या कुछ नही कह पा रही थी बस वो एक जगह जम सी गई थी और उसकी सासें इतनी तेज थी कि वो भूल गई उसके बगल सिद्धार्थ सोया है और उसको ऐसे ऊपर नीचे होते देख नींद में ही अपना हाथ काव्या के सर के नीचे रख कर उसको अपने से सटा लेता है।

और काव्या की कमर को तेजी से जकड़ लेता है और काव्या के मुंह से बस कुछ सिसकियां निकल रही थी और धीरे धीरे कब वो नींद में सिद्धार्थ के सीने में लिपट गई उसकी तरफ़ करवट ले कर ये काव्या को भी नी पता चला।

और सिद्धार्थ के सीने की गर्मी में वो कब की नीद में जा चुकी थी ।

*कांव कांव*
*कुहू कुहू*

सुबह के समय तेज तेज हवा और सूरज की हल्की सी आंच और तरह तरह के परिंदो की आवाज़ से काव्या की नींद खुलती है और थोड़ी देर तो वो नींद में ही वही पड़ी रहती है फिर काव्य धीरे से अपनी हालत देखती है तो उसके शरीर पर साप जैसे लोट जाते हो।

काव्या सिद्धार्थ की तरफ करवट ली हुई थी और उसके सीने में घुसी हुई थी और उसका सर सिद्धार्थ के हाथ पर था।

काव्या ये जानते ही थोड़ा हकबाका जाती है और उसकी सासें तो उसी तेजी से चलने लगती है, लाल गाल शर्म से पूरे तभी वो अपनें पैर की तरफ देखती है तो उसकी हालत और खराब हो जाती है।

काव्या के पैर सिद्धार्थ के पैर के बीच में था और सिद्धार्थ ने उसकी झाग के ऊपर अपनी टांग रखी थी और उसकी कमर कस के पकड़ कर सोया था।

छोटी सी खटिया पर काव्या और सिद्धार्थ आधे पर ही सोए थे काव्या थोड़ा हिलती है तभी उसे अहसास होता है की सिद्धार्थ हल्का कप रहा है तो वो डरते डरते अपने कापटे हुए हाथ सिद्धार्थ की पीठ पर रखती है और धीरे से उन्हें कस लेती है उसकी लिए ये करना एक बहुत बहादुरी का काम था।

तभी काव्या धीरे से आंखे खोलती है और सिद्धार्थ के सीने की तरफ देखती है और शर्म से जल्दी से उन्हें ढक देती है।

"आह मम्मी यार ये मैना क्या कर दिया, उनके सीने पर तो बस मेरे दातों के निशान है"-

तभी काव्या अपना सर उठाती है और सिद्धार्थ का सर देखती है और सिद्धार्थ नींद में ही कुछ इधर उधर कर रहा था और काव्या को कस रहा था।

काव्या सिद्धार्थ को ऐसे देख हसने लगती है और अपना मुंह इधर उधर करने लगती है और एक जगह रुक जाती है ये देखने के लिए ये क्या करना चाहते है जैसे ही वो रुकती है सिद्धार्थ उसके हाथ समझ कर उसकी नाक की तरफ आता है और ना जाने कैसे वो थोड़ा नीचे हो जाता है और उसके होठ काव्या के होठ के जस्ट सामने आ गया और ये देख कर काव्या अपनी आंखें बंद कर लेती है और वो बहुत जोर से कांपने लगती है, सिद्धार्थ को काव्या की गरम गरम सासें फील हो रही थी।

इसके पहले की दोनो के होठ मिलते एक जोरदार आवाज़ आती है।

"अरे ए बावली काव्या चल जल्दी वर्ना सूरज आ जाएगा तो दिक्कत होगी चल"-

जैसे ही इतनी तेज आवाज आती है और आंगन में दरवाजा खटखटा जाता है सिद्धार्थ चिहुक जाता है और उसकी नींद खुल जाती है और काव्या की भी आंखे खुल जाती है और वो सिद्धार्थ को देखती है जो कच्ची नींद में ऐसे जगा था और उसको ऐसे कच्ची नींद में जागते देख काव्या थोड़ा उदास हो जाती है।

और सिद्धार्थ कहता है," क्या हुआ"

काव्या धीरे से कहती है," वो वो सुबह हो गई , हमे छोड़ दीजिए वर्ना सूरज आ जायेगा तो दिक्कत होगी हम फ्रेश हो कर तैयार हो जाते है"-

तभी सिद्धार्थ को अहसास होता है की उसने काव्या को पूरी तरह से दबा रखा है तो वो थोड़ा शर्मिंदा हो जाता है और डरते हुआ कहता है," हमे माफ कर हम ये"-

सिद्धार्थ आगे कुछ कहता उसका पहले ही काव्या उसको गले लगा लेती है और धीरे से कहती है," आप स्माइल करते हुआ अच्छे लगते है और स्माइल ही करते रहिए समझे और मेरी जगह तो आपके आगोश में है ऐसे उदास ना हो रात तो आती रहेगी"-

ये कह कर वो बहुत तेजी से भागना चाहती थी लेकिन भाग नी सकी क्युकी सिद्धार्थ की पकड़ और कस गई और सिद्धार्थ के कांप रहे होठ अपने आप काव्या की तरफ़ बढ़ने लगते है और और उसने काव्या को कस के अपने ऊपर ले लिया था और दोनो इस समय बस सुबह की ठंड का साथ अपने प्यार का आगाज़ करना चाहते थे लेकिन तभी

"अरे काव्या"-

वही ये सुन कर सिद्धार्थ काव्या को छोर देता है और काव्या की आंखें गुस्सा में लाल हो गई।

और सिद्धार्थ जल्दी से करवट बदल कर लेता जाता है और काव्या जल्दी से अपनी चोली और ब्लाउज पहनती है जो खुल गई थी। और जल्दी से दरवाजा की तरफ चल पड़ती है।


और वो तेजी से दरवाज़ा खोलती है और गुस्से में आस्था को देखती है.
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To Be continue .... Target - 10 like waise toh maina socha tha aage ki story update ka update dun but maina socha thoda romance add kar dun.. taaki next update se gujraat aur sindh dispute par dhyaan dunga... Stay tunned... aur late hua uske liya sorry badalte masum ke sath thodi si gaand fat gai thi meri well update ab regular aayga yaa toh har dusre din bhala thoda chota rhe bt aayga but plss support kro...
Waiting
 

maakaLover

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aur late hua uske liya sorry badalte masum ke sath thodi si gaand fat gai thi meri well update ab regular aayga yaa toh har dusre din bhala thoda chota rhe bt aayga but plss support kro...
Kab de rhe hoo,,,
 

virus20

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Bhai superb update kafi time baad romantic senses aaya.

Main ajj dekha apka update thoda late ho gaya padne me

Bhai. Request hai kiii ab story thodi fast track me layo Bhai.

Iss baar kafi wait karwa Diya apne 🙃

Waiting for next update jaldi Dena
Target poora kar diya main apni like bhi deke
 

ashiq_bhai

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Bhai superb update kafi time baad romantic senses aaya.

Main ajj dekha apka update thoda late ho gaya padne me

Bhai. Request hai kiii ab story thodi fast track me layo Bhai.

Iss baar kafi wait karwa Diya apne 🙃

Waiting for next update jaldi Dena
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Jab writer hi nhi hai fast to kaha se story me update fast dega har bar ki tarah bolta hai regular update aayega lekin update kahi nazar nahi aata
 
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Looteraaa

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Bohot achhe har scene bohot hi khoobsurati se likha h........first part k baad second part v utna hii mast h writing style v change nhi hua story ka jbki kuchh writers ka break k bad likhne ka andaz badal jata h
 
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pussylover1

Milf lover.
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अध्याय - 1 नई शुरुआत

"का हो भैया , और बतावा कैसेन आहा?"

"अब का ही बताई हो लाखन , तू तो जानत आहा बहुत बेकार हाल बा और तो ऊपर से इ बारिश साली होत ही नही बा अगर एह बार बारिश ना होए तो बहुत नुकसान होई जाए?".

"यार भाया बारिश के वजह से तो हमारो बहुत चीज़ रुकी बा , ऊपर से सिंध के राजा ने फसल पर 35% कर लगाए हायेन और डाकू अनुराधा को भी देना पड़ता है बहुत दिक्कत बा हो ऊपर से जंगली जानवरों का अलग खतरा".

"भाया नहर से पानी अगर मिल जाए तो हम सब किसानन के फसलीय बच जाए".

"नाही हो लाखन , बहुत मुस्किल बा मुल्तान से आनी वाली नदी के पानी के मुल्तान रोक देह बा और अभी सिंध और गुजरात के बीच के मोहाल बहुत खराब बा और अभिन सिंध के राजा जयराज गुजरात से मुद्दा सुलझाने में बहुत बिजी आहे".

"चला हो तब अपन नहर से पानी ले के फसल तक डाले और एह मामले के बिना हम सब के यहा के सूबेदार से बात करना पड़ेगा".

वही इन सब बात करते हुए चले जा रहे था और नहर के काम में जूट गया और नहर के पानी को मोड़ते वक्त पानी दूसरी दिशा में मुड़ जाता है जहा दूसरी बड़ी पहाड़ी थी और उस बहते पानी की कुछ बूंदे वहा लेटे एक लड़के पर पड़ती है।

"अह्ह्ह्ह मम्मी मैं कहा हूं"ही
"पूरा सर फटा जा रहा इसकी बहन का पकोड़ा".

"आस पास कोई है भी नही , की मैं उनसे पूछ लूं?, तनु दीदी ने कहा था मैं किसी अलग डाइमेंशन में चला जाऊंगा?"

आलोक वही उठ कर आस पास कुछ ढूढने लगता है तभी उसके कान में कुछ आवाज़ पड़ती है.

"आह्ह्ह यार क्या हो रहा है , पता नही कौन कौन आ जाता है सही से चोदने भी नही देता?"-

आलोक सीड की आवाज सुन कर हैरान हो जाता है और कहता है ," अबे बहनचोद सिद्धार्थ तू यह क्या कर रहा है बे ?"

जैसे ही सीड वो आवाज सुनता है तो और हैरान हो जाता है

"अरे तेरी मां की मैं यहां कैसे आ गया? मैं तो रूही की बजा रहा था और ...."।

उसकी आवाज सुन कर आलोक हसने लगता है और कहता है "तू भी मेरी तरह यह गायब हो गया"।

सीड उसकी बात सुन कर इरिटेट हो जाता है और कहता है,"गांडू तेरी वजह से मैं यहां आ गया और साला तू आया तो आया मैं क्या आ गया".

"अबे वो चूत मारी के मैं क्यों तेरे से जलने लगा बे, और तुझे लगता है तेरी पत्नियों की मर्जी के बिना तू यहाँ आ सकता है शायद वो खुद चाहती हो की तू ताकतवर बने और उन्हें हासिल करे साबित करे, और फिर क्या पता मेरे भाई क्या दिक्कत हुई हो"।

आलोक जैसे ही बोलना खत्म करता है सीड उससे बोलता है," जा बे झाटू तूने चूत मारी के अपनी मढ़ी खो दी और पूरे किए के लोड़े लगा दिए वैसे हम कहा है"।

"उठते ही कुत्ते की तरह मेरे ऊपर भौंकना शुरू कर दिया और मुझसे पूछ रहा हम कहा है तेरी गांड में है भूतनी के भाई भोस्डकी के हम 1400 के टाइम में आ गया है सिंध राज्य में"।

आलोक सीड को समझता है और कहता है "हमे अपना सब कुछ वापिस पाना होगा हमे अगर हमारी शक्तियां मिल गई तो हम वापिस जा पाएंगे लेकिन वो शक्तियां के लिए यह सब सुलझाना पड़ेगा और नागलोक का मंदिर ढूढना पड़ेगा और नाग मंदिर तब खुलेगा जब हमारी सारी पत्नियां मिल जाएगी और तब हमे हमारी शक्ति मिल जाएगी , और एक बात अब से सीड मत बोलना अपना नाम याद करो सिद्धार्थ है ये पुराने टाइम पर ये सब नाम नही होते थे शॉर्ट फॉर्म उसी टाइम के लिया सही होता था"।


जैसे ही आलोक बोलना बंद करता है सिद्धार्थ बोलना शुरू करता है ,"नही हमे हमारी शक्ति मिल जाएंगी लेकिन कुछ सही नही है टाइम के साथ छेड़ छाड़ हुई है, कोई नही चाहता की हम दोनो को सिस्टम मिला और कोई है जिसने टाइम मैं छेड़ छाड़ की है"।

सिद्धार्थ की बात सुन कर आलोक हैरान हो जाता है और कहता है ,"अगर ऐसा है तो अब समझ आया साक्षी ने हम सब को वहा से क्यों गायब कर दिया यानी उस टाइम में हम सब मर चुके है , साक्षी के पास हम सब को बचाने का यही तरीका था लेकिन वो जो भी है हम सब से आगे है"।

आलोक की बात सुन कर सिद्धार्थ कहता है ,"गांडू कोई तेरा साथ खेल के चला गया, तेरी गांड फाड़ गया और तेरा जरिए हमे समय में फसा गया और तू कहता है कहता है हा, अबे मादरचोद नादमंदिर में जो हमारा सिस्टम है वो हमे ऐसा मिल जाएगा क्या, और नाग मंदिर कहा है तुझे नहीं पता जिस राज्य में होगा वहा की सल्तनत हमे उसको लेने देगी ना?".

सिद्धार्थ की बात सुन कर आलोक कहता है, "हा हम कर लेंगे वैसे एक बात तो है, तू है बड़ा मादरचोद अगर टाइम पर इतना दिमाग लगा लेता तो हम यहां नही होते"।

आलोक की बात सुन कर सिद्धार्थ एक किनारे बैठ जाता है और धीरे से कहता है ," मुझे बहुत याद आ रही तुम सब की तनु"।

फिर अगले ही पल सिध्दार्थ और आलोक जो अपने अपना किए पर पछता रहे थे उन्हे अब समझ आ गया था की वो सब बस प्यादे थे तनु ने उन सब को बचाने के लिए सब कुछ खो दिया और जब तक तनु जिंदा थी उसने ये सच सामने नही आने दिया उन पर कोई आंच नही आने दी।

"सिद्धार्थ इस टाइमलाइन में तनु होगी सब होंगे हमारे पास मौका है, वो शक्तिशाली नही तो क्या हुआ हम तो बन सकता है तुम तो फिर भी ठीक हमारा सोचो?"।

तभी उन दोनो को कुछ आवाज़ आने लगती हैं।

"सैनिकों इन दोनो को बंदी बना लो"।

"हा हा हा हा हा"

आलोक और सिद्धार्त को घेरे हुए कई सैनिक जब हसी की आवाज़ सुनते है तो उनका मुखिया जो उस सैनिक दल का पभारी था वो थोड़ा हैरान हो जाता है और अपनी तलवार निकलता है।

तभी सिद्धार्थ उसकी तलवार निकालने से पहले ही उसका गला दबा देता है और बाकी के सैनिक अपनी तलवार और भाला ले कर सिद्धार्थ की तरफ आ जाते है और उसके पहले ही आलोक उन सब पर हमला कर देता है और उन्हें एक एक कर के मारने लगता है।

"आलोक किसी को भी मारना मत"।

"सिद्धार्थ ये तू क्या कह रहा है, हमारे पास अच्छा मौका है, ये हम दोनो को मारने आया थे, अभी ये सब बेहोश है " आलोक सिद्धार्थ को समझाने लगता है लेकिन उसके पहले ही उसके कान में आवाज़ आती है।

"हमला करने वाला हर कोई दुश्मन नही होता, आलोक ये यहां है तो जरूर इसके पीछे कुछ वजह होगी? , चलो यहां से" ये कहते हुए सिद्धार्थ आगे आता है और उनके प्रभारी को देखता हैं और उसके कपड़े उतारने लगता है।

उसकी ये हरकत देख कर आलोक हैरान हो जाता है और कहता है, " अब क्या लडको की भी गांड मारेगा मैं तो कहता हूं चलो मार देता है।"

"अबे गांडू अपने कपड़े बदल और चल यहां से", ये कहते हुए सिद्धार्थ आगे बढ़ जाता है और उसके पीछे आलोक भी आने लगता है।

आलोक सिद्धार्थ को ही देखता रहता है और मन मैं कहता है , "ये अभी ही इतना मजा दे रहा जबकि इसका मूड खराब है कुछ दिन मैं ये नॉर्मल हो जाएगा तो अपना रंग दिखाएगा थरकी , वैसे तुम्हारा जवाब नही सिद्धार्थ इसमें कोई डाउट नही की लड़कियां तेरी दीवानी थी"।

"वैसे सिद्धार्थ एक सवाल पूछूं?"

"हां पूछ ना"-

"तूने उन्हे क्यों नहीं मारा?"

"आलोक जिंदगी के दांव है और समय समय पर हमे दांव खेलना पड़ेगा , साम्राज्य केवल युद्ध से नही बनाएं जाते और बस मैंने एक दांव ही खेला है।"

"वैसे हम दोनो कहा चल रहे है"

"लड़कियां को नहाते हुए देखने", सिद्धार्थ ने एक प्यारी आवाज के साथ बोला।

सिद्धार्थ आगे कुछ बोलता उसके पहले ही उसको कुछ हसीं की आवाज़ सुनाई पड़ती है, और सिद्धार्थ उसी तरफ चल पड़ता है।


"ही ही ही मैं जा रही उड़ने, मुझे महल मैं अच्छा नही लगता , आपको नही पता दीदी , मैं उड़ने के लिए बनी हूं चिड़िया हूं मैं।"

"राजकुमारी साक्षी कृपया रुक जाइए वर्ना बड़ी राजकुमारी को पता चेलेगा की आप यहा है तो वो हम सब का खून पी जाएंगी"

"तो मत बताना तुम उन्हे , ही ही ही वैसे भी हमे वैद जी की कड़वी कड़वी दवा पीनी पड़ती है उन्हे बताओ तुम की मैं तो चिड़िया हूं ना, वो हमे उड़ने से रोक देते है।"

"राजकुमारी साक्षी कृपया रुकिए, हम आपके साथ सारे खेल खेलेंगे अभी रुक जाइए"

"वादा करो काया"

साक्षी काया से बोल ही रही थी की उसे एहसास हुआ की कोई उसको देख रहा है तो वो अपनी नज़र घुमा कर देखती है।


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"अरे तुम हमें चोरों के भाती हमे देखते हो, जानते नही हो अभी हमे हम सिंध की राजकुमारी साक्षी है"

साक्षी को अपनी तरफ़ देखते देख सिद्धार्थ तो जैसे एक जगह जम सा गया, उसकी ये हरकते बच्चों जैसी उसकी ये अटखेली

"अरे अब बोलते क्यों नही, चुप क्यों हो बोलो वर्ना सर कलम करवा देंगे तुम्हारा", साक्षी की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ अपने विचारो से बाहर आ जाता है।

"हा मैं तो तुम्हे देख रहा था, कोई मेरी तरह चिड़िया है तो मैं तुम्हे देखने लगा , क्या ये कोई गुनाह है सक्षुऊ"

"अरे हमारा नाम बिगाड़ते हो , और तुम चिड़िया नही हो वो तो मैं हूं"

साक्षी ने मुंह बनाते हुए बोलना शुरू किया और तभी उसके कान में आवाज़ आती है ,"चलो हमे पकड़ के दिखाओ फिर तुम्हारी बात मान लेंगे हम"

सिद्धार्थ की आवाज़ सुन कर साक्षी उसके पीछे भाग पड़ती है और सिद्धार्थ भी भागने लगता है और हसने लगता है।

तभी साक्षी की दासी काया उसको पकड़ लेती है और कहती है," राजकुमारी आप ये क्या कर रही है चलिए और तुम चले जाओ इसके पहले की हम तुम्हे कारागार में डलवा दे."

"अरे हमने क्या किया हम तो बस राजकुमारी के साथ खेलने आए थे, राजकुमारी हमने कोई गलत बात कही?"

"ही ही ही, तुम्हारा क्या नाम है हा?"

सिद्धार्थ साक्षी के पास आता है और धीरे से कहता है "बताया तो चिड़िया"

"ही ही ही , मेरा नाम सिद्धार्थ वैसे आपके साथ भी कोई नही खेलता ना" सिद्धार्थ उदास होते हुआ बोलता है जिससे सुन कर साक्षी कहती है ," हा सब मुझे देख कर कहते है मेरा दिमाग नही है , बताओ तुम क्या मेरा दिमाग छोटा है नही ना"

सिद्धार्थ उसकी बात सुन कर कहता है ,"नही बिलकुल नही आपका दिमाग बच्चों जैसा बिल्कुल नही है आपका दिमाग तो बहुत प्यारा है"

"वैसे तुम्हारे साथ कोई क्यों नही खेलता हा तुम्हारे कोई दोस्त नहीं है क्या ?"

"नही कोई मेरा दोस्त ही नही बनता, हमे भगा देते है और कहता है जाओ राजकुमारी के साथ खेलो"

"ही ही ही कितना झूठ बोलते हो, हमसे झूट तो नही कह रहे ना जानते हो ना हम सिंध की राजकुमारी है।"

"राजकुमारी अपना पल्लू सही कीजिए और सैनिकों , सब के सब कहा मर गए।"

काया अब गुस्सा में थी और उसको गुस्सा में देख कर सिद्धार्थ भाग कर साक्षी के पीछे छुप जाता है और धीरे से कहता है देखो सखी ये मुझे डरा रही है।

तभी साक्षी अपनी आंखे खोलती है और सिद्धार्थ को देखते हुए कहती है ,"ही ही ही सखा, ठीक है हम हमारे साथ खेलने आना, तुम्हे कोई खेल आता है।"

"हा आता है ना , बहुत से खेल आते है हमे , हम आपको बहुत सारे खेल इतने सारे के आप खुद नही समझ पाएंगी, बस हमारी रक्षा करेंगी ना आप मेरी साक्षी।"

"ही ही तुम अच्छे लगे हमे, हम अब जा रहे है आपको बाद में मिलते है वर्ना हमारी बहन हमे बहुत डाटेंगी।"

तभी सारे सैनिक आ जाते है और काया राजकुमारी को ले कर जाने लगती है और धीरे से कहती है "मुझे रूही को बताना होगा कि अब साक्षी सुरक्षित नही , गुजरात के राजा अब साक्षी के लिए अपनी गतिविधि बढ़ा दिया है ये जरूर गुजरात का कोई होगा, तुम्हारी जान तो ये काया ही लेगी सिद्धार्थ"

जैसे ही वो लोग चले जाते है तो सीड आजू बाजू देखता है तो उसको आलोक नही मिलता ,"अरे मादरचोद ये कहा गया , वैसे साक्षी कितनी हॉट लग रही है उफ्फ रानी के वेश भूषा मैं वो सुंदर लगती है ।".

झरने के पास

"अरे ये आवाज़ कैसी , ये लड़की कौन है बड़ी प्यारी आवाज़ है देखू तो जरा।".

जैसे ही आलोक आगे आता है उसको झरने में एक लड़की नहाते हुए दिखाई पड़ती है।

उसको देखते ही एक बार आलोक की पूरी नियत डोल गई अब आलोक को समझ आया की उसने अपनी उस जिंदगी मैं क्या खो दिया पहली बार उसको किसी लड़की को देख कर उसकी दिल की धड़कन बढ़ गई है।

"आह्ह्ह्ह ये क्या हो रहा आज पहली बार मुझे चुम्बन मिलेगा।"

ये कहते हुए आलोक उसका गीला बदन देखता रहता है जो पानी मैं भीगा हुआ था और उसको देखते ही आलोक की सांसें बढ़ जाती है और अपने आप को कंट्रोल नही कर पाता और पानी मैं आ जाता है।

जैसे ही वो लड़की के पीछे आता है वो लड़की बिना पलते कहती है सखी कहा रह गई थी तू हा ," इतनी देर हो गई"

तभी उसको अहसास होता है की किसी का हाथ उसके मुलायम चूचों पर होता है और बहुत जोर से चिल्लाती है और पलट जाती है और सामने इंसान को देख कर उसकी सास अटक जाती है और वो एक थप्पड़ मारती है वही आलोक उसकी चूची को दबाते हुए कहता है "सॉफ्ट है", वही आलोक को वो लड़की बहुत जोर से धक्का देती है और रोने लगती है और आलोक को जो चाकू से हमला करने वाली होती है वो चाकू फेक कर रोने लगती है।

उसका शोर सुन कर आस पास से एक लड़की आती है और चिल्लाती है "क्या हुआ आस्था बोल मुझे?".

वही सीड जो साक्षी को सोचते हुआ बैठा था उसको जैसे ही चीख सुनाई पड़ती है तो वो है भागने लगता है और कहता है," ये बहन का चोदा पेलवा दिया मैं ही गांडू हो जो चूतिए को जाने दिया अकेले।"

जैसे ही सिद्धार्थ आता है और देखता है आलोक और 2 लड़की वही खड़े थे एक लड़की रो रही थी और दूसरी लड़की पूछ रही थी क्या हुआ।

"क क कुछ नही , मैं डर गई थी बहुत तो इसीलिए चिल्ला दी"

"तू भी ना आस्था की बच्ची , फालतू मैं डरवा दिया" तभी आस्था रोते हुए थोड़ा लड़के की तरफ इशारा करती है।

वो लड़की कहती है," आ आलोक भाई जिंदा हो"

"क्या हो रहा है यहा , आलोक?" सिद्धार्थ हापते हुए पूछता है।

वही वो दूसरी लड़की जो दूर खड़ी थी, वो सिद्धार्थ के लहराते हुए बाल और उसका मासूम चहरा देखती है तो उसकी आंखे नम हो जाती है।

और सिद्धार्थ उस लड़की को देखता है तो उसको तनु का छोटा सा अंश नजर आता है और वो मन मैं कहता है ,"मेरी बेटी काव्या"

वही काव्या दौड़ कर आती है और उसके गले लग जाती है ,"आप आप जिंदा है"

ये कहते हुए वो रोने लगती है फूट फूट कर और सीड उसमें तनु को देख कर खुश था।



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तभी जैसे ही आस्था अपनी सहेली को दूर जाते हुए देखती है वो कहती है रोते हुए आलोक से ,"भैया आपको अपनी ही बहन के साथ ऐसा करने मैं शर्म नही आई अपनी ही सगी बहन से।"

वही आलोक ये सुन कर डर जाता है और सीड के पास आ कर खड़ा हो जाता है और मन मैं कहता है ," बेटी चोद सिद्धार्थ ही ये सब सही कर सकता है।"

वो सीड से कहता है "चलो अब तुम खुश हो काव्या तुम्हारा भाई मिल गया तुम्हे क्यों सीड"

काव्या आलोक को ऐसे देखती है जैसे पागलखाने से कोई पागल आ गया हो।

तभी आस्था एक जोरदार तमाचा मारती है आलोक को और कहती है ,"माफ करना काव्या मेरा भाई पागल है तू खुश हो जा देख तेरा सुहाग आ गया है तेरी मांग का सिंदूर

तुझे मिल गया।"

वही ये सुन कर सीड कहता है," क्या बकवास है ये मां की चूत।"
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...

To be continued..... Update de diya ab review aur like thok dena ka.... Stay tunned guyss.... target - 10
Achhi शुरुआत
 

katana

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Bhai "Mysterious land " delete krti kya
 
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