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Incest Kingdom ~ Alok and Sid in 14 century

Update Hindi main chahiye yaa hinglish

  • Hindi main

    Votes: 19 45.2%
  • hinglish main

    Votes: 23 54.8%

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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
43,644
113,911
304

Ghost Rider ❣️

..BeLiEvE iN YoUrSeLf..
Banned
3,835
15,383
144
अपडेट - 6

"तुम्हारी इतनी हिमाकत की तुम हमारा चहरा देखो , अगर जिंदा होते तो जहर दे कर मार देती, तुम्हे इतना नही पता

विषकन्या तनु हमारा नाम है, हमे छू सके अभी ऐसा कोई पैदा नही हुआ और तुमने हमे देख कैसे लिया"-

अब आगे --

"अरे कुत्ते ने हमारा पूरा मन खराब कर दिया"- वही तनु धीरे से आगे आती है और पानी में अपने टांग डाल कर धीरे से आहे भरती है और धीरे से अपने मन में बड़बड़ाती है।

"ये मुझे इतना क्रोध क्यों आ रहा है, ऐसा प्रतीत होता है किसी चीज पर मेरा हक है, लेकिन मुझे उस चीज़ को मारने का मन कर रहा है"-

"खैर ये मेरा वहम हो सकता है, लेकीन सिंध राज्य से अब कोई सूचना नही आ रही क्यों,"-

तनु अपनी सोच में डूबी हुई थी की अचानक वहा एक खबरी आता है," राजकुमारी तनु को हमारा नमन"-

तनु जो सरोवर में पैर डाले बैठी थी वो बिना उसकी तरफ देखे बोलती है ," हा बोलो जो बोलने आए हो वो बोलो, क्या खबर लाए हो"-

"राजकुमारी एक खराब खबर है, गढ़ी का रियासत जो हमारे अधीन हो गया है, और हमारा मित्र रियासत राखी उसकी इस्तित कमजोर हो गई है"-

ये सुनते ही तनु की आंख क्रोध से लाल हो जाती है और वो चिल्लाते हुए कहती है ," क्या बकते हो, और राखी की रियासत तो मानू के पास है और उसको मोहन जोदरो के सूबे का विश्वास मिला है फिर ये कैसे हो सकता है"-

"माफी चाहूंगा राजकुमारी मैं तो केवल एक खबरी हो, कदाचित आपको नही ज्यात लेकिन मानू के बेटे मोनू की आंख सिंध के नए नीति मंत्री सिद्धार्थ ने फोड़ दी"-

खबरी की बात सुन कर तनु को अजीब लगा और वो एक बार चुप हो गई और बार बार अपने मन में सिद्धार्थ के बारे में सोचती रही और फिर वो बोलती है,"ये सिद्धार्थ ने उसकी आंख क्यों फोड़ी? और एक मंत्री अपनी ही रियासत के रियासथदार के बेटे की आंखें कैसे फोड़ सकता है?, क्या उन्हें शक हो गया है"-

"कदाचित नही राजकुमारी, उनकी आंखे इसलिए फोड़ी क्युकी उन्होंने काव्या को देखा जो उनकी पत्नी है"-

इसके पहले की खबरी आगे कुछ बोलता तनु को अचानक गुस्सा आ गया और बोली चिल्लाते हुए बोली ," किसकी इतनी हिमाकत हम पूरे सिंध को समशान बना देंगे , हमे जल्द से जल्द मोनू का सिर हमारे सामने चाहिए"-

"जजज्ज जैसे आपकी आज्ञा राजकुमारी"-

ये कहते हुआ खबरी वहा से भाग गया और कहता है," आज पहली बार हमने तनु को इतना क्रोधित देखा"-


मोहंजो दरों महल के समीप

" पता नही, इन्हे रह रह कर क्या हो जाता है भला ऐसे सब के सामने कौन करता है ये"-

इधर सिद्धार्थ चुप चाप खड़ा था और वो भी अपनी नजरे दूसरी तरफ़ घुमा लेता है और चुप चाप काव्या की तरफ़ चल देता है.

काव्या सिद्धार्थ को देख देख कर अपना पल्लू जोर से पकड़ लेती है और धीरे से कहती है," हम अंदर जा रहा है आप आ जाइए जल्दी से हम खाना बना देते है"-

ये कहते हुआ काव्या चलीं जाती है और आस्था भी उसके पीछे अपनी झोपड़ी में चली जाती हैं और खाने बनाना की प्रकिया करने लगती है।

इधर आलोक गांव वालो को कई भाग में बाट चुका था और उन्हें कुछ बता रहा था, और तभी गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग आ कर सिद्धार्थ को आशीर्वाद देते है और कहते है ," बेटा सब कुछ तुम संभाल लिया और बस हमारी नहर की व्यस्तता करवा देते तो पूरा गांव तुम्हारा भरोसे मंद रहेगा"-

"जरूर "-

सिद्धार्थ और आलोक अब बहुत थक चुका थे आज सुबह से उनके लिए दिन बहुत थका देने वाला था और इधर सिद्धार्थ जैसे ही अपने घर में आता हैं तो सबसे पहले दरवाज़ा बंद कर देता है और खुले आंगन में आ कर बैठ जाता है जहा पास मैं नीम का पेड़ था और ठंडी ठंडी हवा उसके माथे को छू कर जा रही थी।

चलती हुई ठंडी ठंडी हवाएं और नीम के पत्तो की मनमोहक आवाज किसी के भी दिल को भा सकती थी।

सिद्धार्थ जल्दी से अपने ऊपर के कपड़े उतार देता है और वही नीम के पेड़ के नीचे लेटे लेटे सिद्धार्थ हवा का आनंद ले रहा था और इधर काव्या पूरी तरह से एक टक उसको ही घूर रही थी और धीरे से अपना मन में सोचती है," आज कितना थक गया है , ये "ही

तभी अचानक सिद्धार्थ उठता है और अंदर रसोई में चलने लगता है और जैसे ही वो अंदर जाता हैं तो अंदर काव्या रसोई में काम कर रही होती है और लालटेन की हल्की सी रोशनी में उसकी पतली सी कमर को एक टक वो घूरने लगता है।

तभी काव्या को कुछ अहसास होता है और वो सिद्धार्थ को अपने आप को ऐसे घूरते देख शर्मा जाती हैं और धीरे से कहती है," ऐसे क्या देख रहे है कुछ चाहिए क्या आपको"-

"हा"-

सिद्धार्थ मुंह बना कर धीरे से कहता है और उसका मुंह देख कर काव्या हसने लगती है और अपना पसीना पोछती है और कहती है और हा आप बताइए आपको क्या चाहिए फिर बस कुछ देर में खाना बन जाएगा।

"तभी सिद्धार्थ वही काव्या को पकड़ कर धीरे से कहता है चलो ना बाहर"-

वही काव्या धीरे से शरमाते हुए कहती है ," ये क्या करते रहते है आप अब हा ऐसे कोई घूरता है"-

"तो हम कुछ गलत करते है क्या , अपनी पत्नी को घूरना गलत है , अब घरवाली इतनी सुंदर हो तो उसको घूरना भी गलत और अपनी वाली को ना घुरू तो किसको घुरू"-

उसकी बात सुन कर काव्या जो काम कर रही थी उसके पूरे गाल ही लाल पढ़ गया।

"वो वो वो , मैं कह रही थी आप जाइए बाहर मैं खाना ले कर आती हूं"-

काव्या की टूटती हुई आवाज सुन कर सिद्धार्थ को हसी आ गई और वो हसने लगता है और काव्या के दोनो कंधे पकड़ कर उसके गाल पर अपने होठ रख देता है और फिर स्माइल करते हुआ बाहर चला जाता है।

और बेचारी काव्या जो इस हमले से सिसक के रह जाती है उसका हाथ में जो लकड़ी थी वो छूट जाती है और वो वही जम सी जाती है।

"ये ये अभी इन्होने मुझे चूमा"-

काव्या अपने लाल गाल ले कर काम में जुट जाती है और जल्दी से खाना ले कर बाहर आती है और एक हाथ में लालटेन ली हुई थी।

और काव्या को ऐसे आता देख सिद्धार्थ को उसकी नाजुक कमर को हल्की रोशनी में नजर आ रही थी वो देखते ही खुशी झलक आ जाती है और वो जल्दी से काव्या का हाथ से खाना ले लेता है और काव्या लालटेल अच्छा से रख देती है और खड़ी हो कर सिद्धार्थ को देखने लगती है।

सिद्धार्थ काव्या को ऐसे घूरता देख थोड़ा अजीब महसूस करता है और बोलता है ,"क्या है ऐसे क्यों खड़ी हो बैठो"-

काव्या सिद्धार्थ के बदन को निहार रही थी और वो उसी मैं खो गई थी जैसे ही उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे कुछ कह रहा है तो वो होश में आती है और कहती है।

"अरे वो तो मैं बस ऐसे ही, मेरा मतलब है की जबतक आप नही खा लेते तब तक मैं कैसे खाऊंगी"-

तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर खींच लेता हैं और काव्या जो खड़ी थी वो सिद्धार्थ की गोद में गिर जाती है।

"अअह्ह्ह्ह"-

काव्या के मुंह से एक सिसकी जोर से फूट पड़ती है और उसकी सास तेजी से चलने लगती हैं।

और काव्या की बंद आंखे और उसका ऊपर नीचे हो रहा बदन सिद्धार्थ को अजीब महसूस करा रहा था चांद की रोशनी में उसकी नशीली कमर और हवा से उड़ते उसके बाल ना जाने क्यों आज की रात सिद्धार्थ को उसको बार बार छूने का मन कर रहा था।

तभी सिद्धार्थ अपने आप को होश में लाता है और कहता है,"वैसे तुम अपनी आंखे खोलोगी"-

उसकी आवाज सुन कर काव्या अपनी आंखे खोलती है और सिद्धार्थ अपने हाथ से एक निवाला उसके मुंह में डाल देता है और काव्या बेचारी क्या बोलती आज उसका पति उसको अपनी गोद में भर के खाना खिला था वो क्या ही कहती बस चुप चाप इस पल का आनंद उठा रही थी।

सिद्धार्थ उसको खाना खिलाकर खुद खाता है और बीच बीच में उसकी नज़र काव्या की उभारों पर चली जाती है और अब ये अहसास होते ही काव्या को अजीब सी खुशी आ जाती है और वो उसके गाल पूरे लाल हुआ था।

काव्या धीरे से कहती है," बस अब हमे छोर दीजिए , हम खा चुके और अब तो खाना भी खत्म हो गया"-

नही -

अब सिद्धार्थ का मुंह बन गया और वो ना चाहते हुआ भी काव्या को छोर देता है और काव्या जैसे ही उठने लगती हैं तो अचानक उसकी एक सीत्कार फूट पड़ती है।

सिद्धार्थ कुछ समझ पाता उसके पहले ही काव्या बर्तन उठा कर भाग जाती है और उसकी सांसें इतनी तेज थी सिद्धार्थ की भी सांसें बढ़ा रही थी।

तभी उसकी नज़र अपने उभार पर जाती है तो वो जल्दी से अपना दिमाग दूसरी तरफ ले जाता है और उसकी याद फिर से तनु की तरफ़ जाती है और वो कब नींद के झरोखे में चला जाता है उसको अहसास ही नही होता सुबह की थकान और मेहनत अब नींद में बदल चुकी थी।

इधर काव्या जल्दी से बर्तन पानी के पास रख कर वही बैठ जाती है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगती हैं और अपना ऊपर नीचे होता बदन चुप चाप काबू में करती है और वो अहसास जो आज उसने महसूस किया वो कभी भी नही भूल सकती.

"बुधु पति हुम्ह्ह"-
"हमेशा हमे छेड़ते रहते है, कभी कहते है बिना मेरी मर्जी हमे नही छुएंगे और अब हमे अपना"-

"अरे ये हम क्या सोच रहे है खैर चलो काम कर लूं , बताओं बात बात में आज मुझे इतना ठूसा दिया"-

इधर काव्या काम खत्म करने के बाद जल्दी से आती है आंगन में ताकि सिद्धार्थ को कह सके की चले सोने का टाइम हो गया लेकिन वो कुछ कहती उसके पहले ही उसकी नज़र आंगन में सोए सिद्धार्थ पर पड़ती है जो बहुत थकान की वजह से सो गया था।

"अरे ये तो सो गया यही पर, खैर कोई नही आज इन्होने काम ही बहुत किया है आपने ऐसा काम किया की आपकी पत्नी का सर गर्व से उठ गया , आप मेरे सब कुछ है"-

"उफ्फ मां आज का दिन कितना थकान भरा था, थक गई मैं तो", ये कहते हुए काव्या लालटेन बुझा देती है और अपना पल्लू भी उतार देती है और बस चोली और ब्लाउज में आ जाती है जो उस समय का अहम पहनावा था।

"चलु अब जल्दी से खटिया लगा कर सो जाती हूं", ये काव्या कहती ही है की उसकी नज़र सिद्धार्थ के खटिया पर जाती है जहा सिद्धार्थ ने उसके लिए जगह खाली छोड़ दी थी और वहा तकिया भी थी।

उसकी नज़र वहा पड़ते ही काव्या के गाल फिर से लाल हो जाते है और वो चुपके से सिद्धार्थ को देखती है की सो गया या जाग रहा है।

"जरा देखू सो गया या फिर से हमे परेशान करने के लिया कोई नई चाल है इनकी , नही लगते तो नही ऐसा लगता है ये इस बार सच में सो गया"-

"उल्लू कही के सोनें के लिया इतनी छोटी खटिया लगाई जब जानते है हम दोनों साथ में सोएंगे तो बड़ी खटिया लगानी थी ना छोटी खटिया पर तो"-

जैसे ही उसको समझ आया वो लाल गाल ले कर चुप चाप लेट गई।

थोड़ी देर बाद काव्या की आंखें नींद के आगोश में जाने लगी तभी सिद्धार्थ अचानक करवट लेता है और अपना पैर काव्या की टांग पर लाद देता है।

वही अचानक हुए इस हमले की वजह से काव्या की सांसें थम सी गई और उसकी छाती अपने आप ही ऊपर नीचे होने लगी।

इधर सिद्धार्थ हमेशा ऐसे ही सोता था उसके लिया ये पहले की तरह नॉर्मल था लेकिन इस बार उसके बगल काव्या थी।

काव्या की सांसें तेज चल रही थी उसका पति से मिल रहा ये प्यार भरा अहसास उसे कुछ ऐसा आभास करा रहा था जो उसने कभी नही किया था, सिद्धार्थ का रवैया उसका ये ववहार काव्या को प्यार मैं डाल चुका था लेकिन काव्या और कुछ सोच नही पा रही थी तभी उसको अहसास हुआ को उसकी कमर पर एक हाथ जकड़ रहा है।

"आआआह्हह हम्म्म्म मां"-

ना चाहते हुआ भी काव्या के मुंह से एक सीत्कार फूट पड़ी और और उसको अपनी टांगों में सिद्धार्थ का कुछ चुभते हुए फील हो रहा था।

काव्या कुछ नही कह पा रही थी बस वो एक जगह जम सी गई थी और उसकी सासें इतनी तेज थी कि वो भूल गई उसके बगल सिद्धार्थ सोया है और उसको ऐसे ऊपर नीचे होते देख नींद में ही अपना हाथ काव्या के सर के नीचे रख कर उसको अपने से सटा लेता है।

और काव्या की कमर को तेजी से जकड़ लेता है और काव्या के मुंह से बस कुछ सिसकियां निकल रही थी और धीरे धीरे कब वो नींद में सिद्धार्थ के सीने में लिपट गई उसकी तरफ़ करवट ले कर ये काव्या को भी नी पता चला।

और सिद्धार्थ के सीने की गर्मी में वो कब की नीद में जा चुकी थी ।

*कांव कांव*
*कुहू कुहू*

सुबह के समय तेज तेज हवा और सूरज की हल्की सी आंच और तरह तरह के परिंदो की आवाज़ से काव्या की नींद खुलती है और थोड़ी देर तो वो नींद में ही वही पड़ी रहती है फिर काव्य धीरे से अपनी हालत देखती है तो उसके शरीर पर साप जैसे लोट जाते हो।

काव्या सिद्धार्थ की तरफ करवट ली हुई थी और उसके सीने में घुसी हुई थी और उसका सर सिद्धार्थ के हाथ पर था।

काव्या ये जानते ही थोड़ा हकबाका जाती है और उसकी सासें तो उसी तेजी से चलने लगती है, लाल गाल शर्म से पूरे तभी वो अपनें पैर की तरफ देखती है तो उसकी हालत और खराब हो जाती है।

काव्या के पैर सिद्धार्थ के पैर के बीच में था और सिद्धार्थ ने उसकी झाग के ऊपर अपनी टांग रखी थी और उसकी कमर कस के पकड़ कर सोया था।

छोटी सी खटिया पर काव्या और सिद्धार्थ आधे पर ही सोए थे काव्या थोड़ा हिलती है तभी उसे अहसास होता है की सिद्धार्थ हल्का कप रहा है तो वो डरते डरते अपने कापटे हुए हाथ सिद्धार्थ की पीठ पर रखती है और धीरे से उन्हें कस लेती है उसकी लिए ये करना एक बहुत बहादुरी का काम था।

तभी काव्या धीरे से आंखे खोलती है और सिद्धार्थ के सीने की तरफ देखती है और शर्म से जल्दी से उन्हें ढक देती है।

"आह मम्मी यार ये मैना क्या कर दिया, उनके सीने पर तो बस मेरे दातों के निशान है"-

तभी काव्या अपना सर उठाती है और सिद्धार्थ का सर देखती है और सिद्धार्थ नींद में ही कुछ इधर उधर कर रहा था और काव्या को कस रहा था।

काव्या सिद्धार्थ को ऐसे देख हसने लगती है और अपना मुंह इधर उधर करने लगती है और एक जगह रुक जाती है ये देखने के लिए ये क्या करना चाहते है जैसे ही वो रुकती है सिद्धार्थ उसके हाथ समझ कर उसकी नाक की तरफ आता है और ना जाने कैसे वो थोड़ा नीचे हो जाता है और उसके होठ काव्या के होठ के जस्ट सामने आ गया और ये देख कर काव्या अपनी आंखें बंद कर लेती है और वो बहुत जोर से कांपने लगती है, सिद्धार्थ को काव्या की गरम गरम सासें फील हो रही थी।

इसके पहले की दोनो के होठ मिलते एक जोरदार आवाज़ आती है।

"अरे ए बावली काव्या चल जल्दी वर्ना सूरज आ जाएगा तो दिक्कत होगी चल"-

जैसे ही इतनी तेज आवाज आती है और आंगन में दरवाजा खटखटा जाता है सिद्धार्थ चिहुक जाता है और उसकी नींद खुल जाती है और काव्या की भी आंखे खुल जाती है और वो सिद्धार्थ को देखती है जो कच्ची नींद में ऐसे जगा था और उसको ऐसे कच्ची नींद में जागते देख काव्या थोड़ा उदास हो जाती है।

और सिद्धार्थ कहता है," क्या हुआ"

काव्या धीरे से कहती है," वो वो सुबह हो गई , हमे छोड़ दीजिए वर्ना सूरज आ जायेगा तो दिक्कत होगी हम फ्रेश हो कर तैयार हो जाते है"-

तभी सिद्धार्थ को अहसास होता है की उसने काव्या को पूरी तरह से दबा रखा है तो वो थोड़ा शर्मिंदा हो जाता है और डरते हुआ कहता है," हमे माफ कर हम ये"-

सिद्धार्थ आगे कुछ कहता उसका पहले ही काव्या उसको गले लगा लेती है और धीरे से कहती है," आप स्माइल करते हुआ अच्छे लगते है और स्माइल ही करते रहिए समझे और मेरी जगह तो आपके आगोश में है ऐसे उदास ना हो रात तो आती रहेगी"-

ये कह कर वो बहुत तेजी से भागना चाहती थी लेकिन भाग नी सकी क्युकी सिद्धार्थ की पकड़ और कस गई और सिद्धार्थ के कांप रहे होठ अपने आप काव्या की तरफ़ बढ़ने लगते है और और उसने काव्या को कस के अपने ऊपर ले लिया था और दोनो इस समय बस सुबह की ठंड का साथ अपने प्यार का आगाज़ करना चाहते थे लेकिन तभी

"अरे काव्या"-

वही ये सुन कर सिद्धार्थ काव्या को छोर देता है और काव्या की आंखें गुस्सा में लाल हो गई।

और सिद्धार्थ जल्दी से करवट बदल कर लेता जाता है और काव्या जल्दी से अपनी चोली और ब्लाउज पहनती है जो खुल गई थी। और जल्दी से दरवाजा की तरफ चल पड़ती है।


और वो तेजी से दरवाज़ा खोलती है और गुस्से में आस्था को देखती है.
.
.
.
.
To Be continue .... Target - 10 like waise toh maina socha tha aage ki story update ka update dun but maina socha thoda romance add kar dun.. taaki next update se gujraat aur sindh dispute par dhyaan dunga... Stay tunned... aur late hua uske liya sorry badalte masum ke sath thodi si gaand fat gai thi meri well update ab regular aayga yaa toh har dusre din bhala thoda chota rhe bt aayga but plss support kro...
 
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Ghost Rider ❣️

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Apun ki one of favourite.....aa gayi.....wooooooooou🥰🥰🥰...
That's why tum daat kahte ho🥺7 ka bolke 8 ko🤧but still lovely updates ..jao maaf kiya

Ohhh BC,,, kya jbardst update hai,,, bhut badhiya.,, 😍😍

Awwwww ,, hau chweet 😁😅😅

Bahut hi badhiya update diya hai Ghost Rider ❣️ bhai....
Nice and beautiful update....

Shandar jabardast faddu update 👌

currently the best moments are going on between Kavya and Siddharth and you are making it more interesting 😉
......in this adventures era of past i want you to make yashasvi fall for sidharth too😜

Mind blowing update and superb started 👌🏻 ab is kahani me bhi system ghusa diya to kya bole? Itne character hai ki sala yaad bhi nahi rahenge😄 baaki sid ki to moj hai aate hi lugaai mil gayi use, dekhte hai aage kya hota hai?
Nice update 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻❣️❣️❣️❣️💥

Bhaii ji next scene,,,


intezaar rahega Ghost Rider ❣️ bhai....

Bro lajwab updated

Dhasu update, 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻 waise kuch jyada hi uljha diya hai sory ko? Sala samjhne me hi dimak ghoom jata hai😄 lets see what is next :approve:
Mind blowing update ghosty 👌🏻👌🏻👌🏻❣️❣️❣️🔥🔥🔥💥💥💥💥😘
😘😘

Ghost Rider ❣️ bhai next update kab tak aayega?

Update Bhai

Kya huaa,,, ????

Bhai Maine mazaak me bol diya tha ki Werewolf Bhai ka record toddena

Apne to unka late dene ka record toddena ka intazam kar Diya.

(Isss baar mention
kar diya hai Werewolf Bhai )

Kyaa huaa yrr ghosty bro,,, any problem or urgency,,,,

Ahhshh,,, finally 😍😍🫶👌

What happens bro give update before 9 pm
Thanks

Intzar hai 😏

intezaar rahega next update ka Ghost Rider ❣️ bhai....
update posted - tahe dil se maafi chahunga guyssss :cleanteeth: gaand fat gai thi bimar ho gya tha...
 

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Shandar jabardast update 👌
 
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"तुम्हारी इतनी हिमाकत की तुम हमारा चहरा देखो , अगर जिंदा होते तो जहर दे कर मार देती, तुम्हे इतना नही पता

विषकन्या तनु हमारा नाम है, हमे छू सके अभी ऐसा कोई पैदा नही हुआ और तुमने हमे देख कैसे लिया"-

अब आगे --

"अरे कुत्ते ने हमारा पूरा मन खराब कर दिया"- वही तनु धीरे से आगे आती है और पानी में अपने टांग डाल कर धीरे से आहे भरती है और धीरे से अपने मन में बड़बड़ाती है।

"ये मुझे इतना क्रोध क्यों आ रहा है, ऐसा प्रतीत होता है किसी चीज पर मेरा हक है, लेकिन मुझे उस चीज़ को मारने का मन कर रहा है"-

"खैर ये मेरा वहम हो सकता है, लेकीन सिंध राज्य से अब कोई सूचना नही आ रही क्यों,"-

तनु अपनी सोच में डूबी हुई थी की अचानक वहा एक खबरी आता है," राजकुमारी तनु को हमारा नमन"-

तनु जो सरोवर में पैर डाले बैठी थी वो बिना उसकी तरफ देखे बोलती है ," हा बोलो जो बोलने आए हो वो बोलो, क्या खबर लाए हो"-

"राजकुमारी एक खराब खबर है, गढ़ी का रियासत जो हमारे अधीन हो गया है, और हमारा मित्र रियासत राखी उसकी इस्तित कमजोर हो गई है"-

ये सुनते ही तनु की आंख क्रोध से लाल हो जाती है और वो चिल्लाते हुए कहती है ," क्या बकते हो, और राखी की रियासत तो मानू के पास है और उसको मोहन जोदरो के सूबे का विश्वास मिला है फिर ये कैसे हो सकता है"-

"माफी चाहूंगा राजकुमारी मैं तो केवल एक खबरी हो, कदाचित आपको नही ज्यात लेकिन मानू के बेटे मोनू की आंख सिंध के नए नीति मंत्री सिद्धार्थ ने फोड़ दी"-

खबरी की बात सुन कर तनु को अजीब लगा और वो एक बार चुप हो गई और बार बार अपने मन में सिद्धार्थ के बारे में सोचती रही और फिर वो बोलती है,"ये सिद्धार्थ ने उसकी आंख क्यों फोड़ी? और एक मंत्री अपनी ही रियासत के रियासथदार के बेटे की आंखें कैसे फोड़ सकता है?, क्या उन्हें शक हो गया है"-

"कदाचित नही राजकुमारी, उनकी आंखे इसलिए फोड़ी क्युकी उन्होंने काव्या को देखा जो उनकी पत्नी है"-

इसके पहले की खबरी आगे कुछ बोलता तनु को अचानक गुस्सा आ गया और बोली चिल्लाते हुए बोली ," किसकी इतनी हिमाकत हम पूरे सिंध को समशान बना देंगे , हमे जल्द से जल्द मोनू का सिर हमारे सामने चाहिए"-

"जजज्ज जैसे आपकी आज्ञा राजकुमारी"-

ये कहते हुआ खबरी वहा से भाग गया और कहता है," आज पहली बार हमने तनु को इतना क्रोधित देखा"-


मोहंजो दरों महल के समीप

" पता नही, इन्हे रह रह कर क्या हो जाता है भला ऐसे सब के सामने कौन करता है ये"-

इधर सिद्धार्थ चुप चाप खड़ा था और वो भी अपनी नजरे दूसरी तरफ़ घुमा लेता है और चुप चाप काव्या की तरफ़ चल देता है.

काव्या सिद्धार्थ को देख देख कर अपना पल्लू जोर से पकड़ लेती है और धीरे से कहती है," हम अंदर जा रहा है आप आ जाइए जल्दी से हम खाना बना देते है"-

ये कहते हुआ काव्या चलीं जाती है और आस्था भी उसके पीछे अपनी झोपड़ी में चली जाती हैं और खाने बनाना की प्रकिया करने लगती है।

इधर आलोक गांव वालो को कई भाग में बाट चुका था और उन्हें कुछ बता रहा था, और तभी गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग आ कर सिद्धार्थ को आशीर्वाद देते है और कहते है ," बेटा सब कुछ तुम संभाल लिया और बस हमारी नहर की व्यस्तता करवा देते तो पूरा गांव तुम्हारा भरोसे मंद रहेगा"-

"जरूर "-

सिद्धार्थ और आलोक अब बहुत थक चुका थे आज सुबह से उनके लिए दिन बहुत थका देने वाला था और इधर सिद्धार्थ जैसे ही अपने घर में आता हैं तो सबसे पहले दरवाज़ा बंद कर देता है और खुले आंगन में आ कर बैठ जाता है जहा पास मैं नीम का पेड़ था और ठंडी ठंडी हवा उसके माथे को छू कर जा रही थी।

चलती हुई ठंडी ठंडी हवाएं और नीम के पत्तो की मनमोहक आवाज किसी के भी दिल को भा सकती थी।

सिद्धार्थ जल्दी से अपने ऊपर के कपड़े उतार देता है और वही नीम के पेड़ के नीचे लेटे लेटे सिद्धार्थ हवा का आनंद ले रहा था और इधर काव्या पूरी तरह से एक टक उसको ही घूर रही थी और धीरे से अपना मन में सोचती है," आज कितना थक गया है , ये "ही

तभी अचानक सिद्धार्थ उठता है और अंदर रसोई में चलने लगता है और जैसे ही वो अंदर जाता हैं तो अंदर काव्या रसोई में काम कर रही होती है और लालटेन की हल्की सी रोशनी में उसकी पतली सी कमर को एक टक वो घूरने लगता है।

तभी काव्या को कुछ अहसास होता है और वो सिद्धार्थ को अपने आप को ऐसे घूरते देख शर्मा जाती हैं और धीरे से कहती है," ऐसे क्या देख रहे है कुछ चाहिए क्या आपको"-

"हा"-

सिद्धार्थ मुंह बना कर धीरे से कहता है और उसका मुंह देख कर काव्या हसने लगती है और अपना पसीना पोछती है और कहती है और हा आप बताइए आपको क्या चाहिए फिर बस कुछ देर में खाना बन जाएगा।

"तभी सिद्धार्थ वही काव्या को पकड़ कर धीरे से कहता है चलो ना बाहर"-

वही काव्या धीरे से शरमाते हुए कहती है ," ये क्या करते रहते है आप अब हा ऐसे कोई घूरता है"-

"तो हम कुछ गलत करते है क्या , अपनी पत्नी को घूरना गलत है , अब घरवाली इतनी सुंदर हो तो उसको घूरना भी गलत और अपनी वाली को ना घुरू तो किसको घुरू"-

उसकी बात सुन कर काव्या जो काम कर रही थी उसके पूरे गाल ही लाल पढ़ गया।

"वो वो वो , मैं कह रही थी आप जाइए बाहर मैं खाना ले कर आती हूं"-

काव्या की टूटती हुई आवाज सुन कर सिद्धार्थ को हसी आ गई और वो हसने लगता है और काव्या के दोनो कंधे पकड़ कर उसके गाल पर अपने होठ रख देता है और फिर स्माइल करते हुआ बाहर चला जाता है।

और बेचारी काव्या जो इस हमले से सिसक के रह जाती है उसका हाथ में जो लकड़ी थी वो छूट जाती है और वो वही जम सी जाती है।

"ये ये अभी इन्होने मुझे चूमा"-

काव्या अपने लाल गाल ले कर काम में जुट जाती है और जल्दी से खाना ले कर बाहर आती है और एक हाथ में लालटेन ली हुई थी।

और काव्या को ऐसे आता देख सिद्धार्थ को उसकी नाजुक कमर को हल्की रोशनी में नजर आ रही थी वो देखते ही खुशी झलक आ जाती है और वो जल्दी से काव्या का हाथ से खाना ले लेता है और काव्या लालटेल अच्छा से रख देती है और खड़ी हो कर सिद्धार्थ को देखने लगती है।

सिद्धार्थ काव्या को ऐसे घूरता देख थोड़ा अजीब महसूस करता है और बोलता है ,"क्या है ऐसे क्यों खड़ी हो बैठो"-

काव्या सिद्धार्थ के बदन को निहार रही थी और वो उसी मैं खो गई थी जैसे ही उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे कुछ कह रहा है तो वो होश में आती है और कहती है।

"अरे वो तो मैं बस ऐसे ही, मेरा मतलब है की जबतक आप नही खा लेते तब तक मैं कैसे खाऊंगी"-

तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर खींच लेता हैं और काव्या जो खड़ी थी वो सिद्धार्थ की गोद में गिर जाती है।

"अअह्ह्ह्ह"-

काव्या के मुंह से एक सिसकी जोर से फूट पड़ती है और उसकी सास तेजी से चलने लगती हैं।

और काव्या की बंद आंखे और उसका ऊपर नीचे हो रहा बदन सिद्धार्थ को अजीब महसूस करा रहा था चांद की रोशनी में उसकी नशीली कमर और हवा से उड़ते उसके बाल ना जाने क्यों आज की रात सिद्धार्थ को उसको बार बार छूने का मन कर रहा था।

तभी सिद्धार्थ अपने आप को होश में लाता है और कहता है,"वैसे तुम अपनी आंखे खोलोगी"-

उसकी आवाज सुन कर काव्या अपनी आंखे खोलती है और सिद्धार्थ अपने हाथ से एक निवाला उसके मुंह में डाल देता है और काव्या बेचारी क्या बोलती आज उसका पति उसको अपनी गोद में भर के खाना खिला था वो क्या ही कहती बस चुप चाप इस पल का आनंद उठा रही थी।

सिद्धार्थ उसको खाना खिलाकर खुद खाता है और बीच बीच में उसकी नज़र काव्या की उभारों पर चली जाती है और अब ये अहसास होते ही काव्या को अजीब सी खुशी आ जाती है और वो उसके गाल पूरे लाल हुआ था।

काव्या धीरे से कहती है," बस अब हमे छोर दीजिए , हम खा चुके और अब तो खाना भी खत्म हो गया"-

नही -

अब सिद्धार्थ का मुंह बन गया और वो ना चाहते हुआ भी काव्या को छोर देता है और काव्या जैसे ही उठने लगती हैं तो अचानक उसकी एक सीत्कार फूट पड़ती है।

सिद्धार्थ कुछ समझ पाता उसके पहले ही काव्या बर्तन उठा कर भाग जाती है और उसकी सांसें इतनी तेज थी सिद्धार्थ की भी सांसें बढ़ा रही थी।

तभी उसकी नज़र अपने उभार पर जाती है तो वो जल्दी से अपना दिमाग दूसरी तरफ ले जाता है और उसकी याद फिर से तनु की तरफ़ जाती है और वो कब नींद के झरोखे में चला जाता है उसको अहसास ही नही होता सुबह की थकान और मेहनत अब नींद में बदल चुकी थी।

इधर काव्या जल्दी से बर्तन पानी के पास रख कर वही बैठ जाती है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगती हैं और अपना ऊपर नीचे होता बदन चुप चाप काबू में करती है और वो अहसास जो आज उसने महसूस किया वो कभी भी नही भूल सकती.

"बुधु पति हुम्ह्ह"-
"हमेशा हमे छेड़ते रहते है, कभी कहते है बिना मेरी मर्जी हमे नही छुएंगे और अब हमे अपना"-

"अरे ये हम क्या सोच रहे है खैर चलो काम कर लूं , बताओं बात बात में आज मुझे इतना ठूसा दिया"-

इधर काव्या काम खत्म करने के बाद जल्दी से आती है आंगन में ताकि सिद्धार्थ को कह सके की चले सोने का टाइम हो गया लेकिन वो कुछ कहती उसके पहले ही उसकी नज़र आंगन में सोए सिद्धार्थ पर पड़ती है जो बहुत थकान की वजह से सो गया था।

"अरे ये तो सो गया यही पर, खैर कोई नही आज इन्होने काम ही बहुत किया है आपने ऐसा काम किया की आपकी पत्नी का सर गर्व से उठ गया , आप मेरे सब कुछ है"-

"उफ्फ मां आज का दिन कितना थकान भरा था, थक गई मैं तो", ये कहते हुए काव्या लालटेन बुझा देती है और अपना पल्लू भी उतार देती है और बस चोली और ब्लाउज में आ जाती है जो उस समय का अहम पहनावा था।

"चलु अब जल्दी से खटिया लगा कर सो जाती हूं", ये काव्या कहती ही है की उसकी नज़र सिद्धार्थ के खटिया पर जाती है जहा सिद्धार्थ ने उसके लिए जगह खाली छोड़ दी थी और वहा तकिया भी थी।

उसकी नज़र वहा पड़ते ही काव्या के गाल फिर से लाल हो जाते है और वो चुपके से सिद्धार्थ को देखती है की सो गया या जाग रहा है।

"जरा देखू सो गया या फिर से हमे परेशान करने के लिया कोई नई चाल है इनकी , नही लगते तो नही ऐसा लगता है ये इस बार सच में सो गया"-

"उल्लू कही के सोनें के लिया इतनी छोटी खटिया लगाई जब जानते है हम दोनों साथ में सोएंगे तो बड़ी खटिया लगानी थी ना छोटी खटिया पर तो"-

जैसे ही उसको समझ आया वो लाल गाल ले कर चुप चाप लेट गई।

थोड़ी देर बाद काव्या की आंखें नींद के आगोश में जाने लगी तभी सिद्धार्थ अचानक करवट लेता है और अपना पैर काव्या की टांग पर लाद देता है।

वही अचानक हुए इस हमले की वजह से काव्या की सांसें थम सी गई और उसकी छाती अपने आप ही ऊपर नीचे होने लगी।

इधर सिद्धार्थ हमेशा ऐसे ही सोता था उसके लिया ये पहले की तरह नॉर्मल था लेकिन इस बार उसके बगल काव्या थी।

काव्या की सांसें तेज चल रही थी उसका पति से मिल रहा ये प्यार भरा अहसास उसे कुछ ऐसा आभास करा रहा था जो उसने कभी नही किया था, सिद्धार्थ का रवैया उसका ये ववहार काव्या को प्यार मैं डाल चुका था लेकिन काव्या और कुछ सोच नही पा रही थी तभी उसको अहसास हुआ को उसकी कमर पर एक हाथ जकड़ रहा है।

"आआआह्हह हम्म्म्म मां"-

ना चाहते हुआ भी काव्या के मुंह से एक सीत्कार फूट पड़ी और और उसको अपनी टांगों में सिद्धार्थ का कुछ चुभते हुए फील हो रहा था।

काव्या कुछ नही कह पा रही थी बस वो एक जगह जम सी गई थी और उसकी सासें इतनी तेज थी कि वो भूल गई उसके बगल सिद्धार्थ सोया है और उसको ऐसे ऊपर नीचे होते देख नींद में ही अपना हाथ काव्या के सर के नीचे रख कर उसको अपने से सटा लेता है।

और काव्या की कमर को तेजी से जकड़ लेता है और काव्या के मुंह से बस कुछ सिसकियां निकल रही थी और धीरे धीरे कब वो नींद में सिद्धार्थ के सीने में लिपट गई उसकी तरफ़ करवट ले कर ये काव्या को भी नी पता चला।

और सिद्धार्थ के सीने की गर्मी में वो कब की नीद में जा चुकी थी ।

*कांव कांव*
*कुहू कुहू*

सुबह के समय तेज तेज हवा और सूरज की हल्की सी आंच और तरह तरह के परिंदो की आवाज़ से काव्या की नींद खुलती है और थोड़ी देर तो वो नींद में ही वही पड़ी रहती है फिर काव्य धीरे से अपनी हालत देखती है तो उसके शरीर पर साप जैसे लोट जाते हो।

काव्या सिद्धार्थ की तरफ करवट ली हुई थी और उसके सीने में घुसी हुई थी और उसका सर सिद्धार्थ के हाथ पर था।

काव्या ये जानते ही थोड़ा हकबाका जाती है और उसकी सासें तो उसी तेजी से चलने लगती है, लाल गाल शर्म से पूरे तभी वो अपनें पैर की तरफ देखती है तो उसकी हालत और खराब हो जाती है।

काव्या के पैर सिद्धार्थ के पैर के बीच में था और सिद्धार्थ ने उसकी झाग के ऊपर अपनी टांग रखी थी और उसकी कमर कस के पकड़ कर सोया था।

छोटी सी खटिया पर काव्या और सिद्धार्थ आधे पर ही सोए थे काव्या थोड़ा हिलती है तभी उसे अहसास होता है की सिद्धार्थ हल्का कप रहा है तो वो डरते डरते अपने कापटे हुए हाथ सिद्धार्थ की पीठ पर रखती है और धीरे से उन्हें कस लेती है उसकी लिए ये करना एक बहुत बहादुरी का काम था।

तभी काव्या धीरे से आंखे खोलती है और सिद्धार्थ के सीने की तरफ देखती है और शर्म से जल्दी से उन्हें ढक देती है।

"आह मम्मी यार ये मैना क्या कर दिया, उनके सीने पर तो बस मेरे दातों के निशान है"-

तभी काव्या अपना सर उठाती है और सिद्धार्थ का सर देखती है और सिद्धार्थ नींद में ही कुछ इधर उधर कर रहा था और काव्या को कस रहा था।

काव्या सिद्धार्थ को ऐसे देख हसने लगती है और अपना मुंह इधर उधर करने लगती है और एक जगह रुक जाती है ये देखने के लिए ये क्या करना चाहते है जैसे ही वो रुकती है सिद्धार्थ उसके हाथ समझ कर उसकी नाक की तरफ आता है और ना जाने कैसे वो थोड़ा नीचे हो जाता है और उसके होठ काव्या के होठ के जस्ट सामने आ गया और ये देख कर काव्या अपनी आंखें बंद कर लेती है और वो बहुत जोर से कांपने लगती है, सिद्धार्थ को काव्या की गरम गरम सासें फील हो रही थी।

इसके पहले की दोनो के होठ मिलते एक जोरदार आवाज़ आती है।

"अरे ए बावली काव्या चल जल्दी वर्ना सूरज आ जाएगा तो दिक्कत होगी चल"-

जैसे ही इतनी तेज आवाज आती है और आंगन में दरवाजा खटखटा जाता है सिद्धार्थ चिहुक जाता है और उसकी नींद खुल जाती है और काव्या की भी आंखे खुल जाती है और वो सिद्धार्थ को देखती है जो कच्ची नींद में ऐसे जगा था और उसको ऐसे कच्ची नींद में जागते देख काव्या थोड़ा उदास हो जाती है।

और सिद्धार्थ कहता है," क्या हुआ"

काव्या धीरे से कहती है," वो वो सुबह हो गई , हमे छोड़ दीजिए वर्ना सूरज आ जायेगा तो दिक्कत होगी हम फ्रेश हो कर तैयार हो जाते है"-

तभी सिद्धार्थ को अहसास होता है की उसने काव्या को पूरी तरह से दबा रखा है तो वो थोड़ा शर्मिंदा हो जाता है और डरते हुआ कहता है," हमे माफ कर हम ये"-

सिद्धार्थ आगे कुछ कहता उसका पहले ही काव्या उसको गले लगा लेती है और धीरे से कहती है," आप स्माइल करते हुआ अच्छे लगते है और स्माइल ही करते रहिए समझे और मेरी जगह तो आपके आगोश में है ऐसे उदास ना हो रात तो आती रहेगी"-

ये कह कर वो बहुत तेजी से भागना चाहती थी लेकिन भाग नी सकी क्युकी सिद्धार्थ की पकड़ और कस गई और सिद्धार्थ के कांप रहे होठ अपने आप काव्या की तरफ़ बढ़ने लगते है और और उसने काव्या को कस के अपने ऊपर ले लिया था और दोनो इस समय बस सुबह की ठंड का साथ अपने प्यार का आगाज़ करना चाहते थे लेकिन तभी

"अरे काव्या"-

वही ये सुन कर सिद्धार्थ काव्या को छोर देता है और काव्या की आंखें गुस्सा में लाल हो गई।

और सिद्धार्थ जल्दी से करवट बदल कर लेता जाता है और काव्या जल्दी से अपनी चोली और ब्लाउज पहनती है जो खुल गई थी। और जल्दी से दरवाजा की तरफ चल पड़ती है।


और वो तेजी से दरवाज़ा खोलती है और गुस्से में आस्था को देखती है.
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To Be continue .... Target - 10 like waise toh maina socha tha aage ki story update ka update dun but maina socha thoda romance add kar dun.. taaki next update se gujraat aur sindh dispute par dhyaan dunga... Stay tunned... aur late hua uske liya sorry badalte masum ke sath thodi si gaand fat gai thi meri well update ab regular aayga yaa toh har dusre din bhala thoda chota rhe bt aayga but plss support kro...
Bahut bahut beautiful 😍 ❤️ update bro,, aur koii naa viral fevel toh monsoon me ho he jata h,, always supported 🫶🫶
 
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mahesh_babu

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"तुम्हारी इतनी हिमाकत की तुम हमारा चहरा देखो , अगर जिंदा होते तो जहर दे कर मार देती, तुम्हे इतना नही पता

विषकन्या तनु हमारा नाम है, हमे छू सके अभी ऐसा कोई पैदा नही हुआ और तुमने हमे देख कैसे लिया"-

अब आगे --

"अरे कुत्ते ने हमारा पूरा मन खराब कर दिया"- वही तनु धीरे से आगे आती है और पानी में अपने टांग डाल कर धीरे से आहे भरती है और धीरे से अपने मन में बड़बड़ाती है।

"ये मुझे इतना क्रोध क्यों आ रहा है, ऐसा प्रतीत होता है किसी चीज पर मेरा हक है, लेकिन मुझे उस चीज़ को मारने का मन कर रहा है"-

"खैर ये मेरा वहम हो सकता है, लेकीन सिंध राज्य से अब कोई सूचना नही आ रही क्यों,"-

तनु अपनी सोच में डूबी हुई थी की अचानक वहा एक खबरी आता है," राजकुमारी तनु को हमारा नमन"-

तनु जो सरोवर में पैर डाले बैठी थी वो बिना उसकी तरफ देखे बोलती है ," हा बोलो जो बोलने आए हो वो बोलो, क्या खबर लाए हो"-

"राजकुमारी एक खराब खबर है, गढ़ी का रियासत जो हमारे अधीन हो गया है, और हमारा मित्र रियासत राखी उसकी इस्तित कमजोर हो गई है"-

ये सुनते ही तनु की आंख क्रोध से लाल हो जाती है और वो चिल्लाते हुए कहती है ," क्या बकते हो, और राखी की रियासत तो मानू के पास है और उसको मोहन जोदरो के सूबे का विश्वास मिला है फिर ये कैसे हो सकता है"-

"माफी चाहूंगा राजकुमारी मैं तो केवल एक खबरी हो, कदाचित आपको नही ज्यात लेकिन मानू के बेटे मोनू की आंख सिंध के नए नीति मंत्री सिद्धार्थ ने फोड़ दी"-

खबरी की बात सुन कर तनु को अजीब लगा और वो एक बार चुप हो गई और बार बार अपने मन में सिद्धार्थ के बारे में सोचती रही और फिर वो बोलती है,"ये सिद्धार्थ ने उसकी आंख क्यों फोड़ी? और एक मंत्री अपनी ही रियासत के रियासथदार के बेटे की आंखें कैसे फोड़ सकता है?, क्या उन्हें शक हो गया है"-

"कदाचित नही राजकुमारी, उनकी आंखे इसलिए फोड़ी क्युकी उन्होंने काव्या को देखा जो उनकी पत्नी है"-

इसके पहले की खबरी आगे कुछ बोलता तनु को अचानक गुस्सा आ गया और बोली चिल्लाते हुए बोली ," किसकी इतनी हिमाकत हम पूरे सिंध को समशान बना देंगे , हमे जल्द से जल्द मोनू का सिर हमारे सामने चाहिए"-

"जजज्ज जैसे आपकी आज्ञा राजकुमारी"-

ये कहते हुआ खबरी वहा से भाग गया और कहता है," आज पहली बार हमने तनु को इतना क्रोधित देखा"-


मोहंजो दरों महल के समीप

" पता नही, इन्हे रह रह कर क्या हो जाता है भला ऐसे सब के सामने कौन करता है ये"-

इधर सिद्धार्थ चुप चाप खड़ा था और वो भी अपनी नजरे दूसरी तरफ़ घुमा लेता है और चुप चाप काव्या की तरफ़ चल देता है.

काव्या सिद्धार्थ को देख देख कर अपना पल्लू जोर से पकड़ लेती है और धीरे से कहती है," हम अंदर जा रहा है आप आ जाइए जल्दी से हम खाना बना देते है"-

ये कहते हुआ काव्या चलीं जाती है और आस्था भी उसके पीछे अपनी झोपड़ी में चली जाती हैं और खाने बनाना की प्रकिया करने लगती है।

इधर आलोक गांव वालो को कई भाग में बाट चुका था और उन्हें कुछ बता रहा था, और तभी गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग आ कर सिद्धार्थ को आशीर्वाद देते है और कहते है ," बेटा सब कुछ तुम संभाल लिया और बस हमारी नहर की व्यस्तता करवा देते तो पूरा गांव तुम्हारा भरोसे मंद रहेगा"-

"जरूर "-

सिद्धार्थ और आलोक अब बहुत थक चुका थे आज सुबह से उनके लिए दिन बहुत थका देने वाला था और इधर सिद्धार्थ जैसे ही अपने घर में आता हैं तो सबसे पहले दरवाज़ा बंद कर देता है और खुले आंगन में आ कर बैठ जाता है जहा पास मैं नीम का पेड़ था और ठंडी ठंडी हवा उसके माथे को छू कर जा रही थी।

चलती हुई ठंडी ठंडी हवाएं और नीम के पत्तो की मनमोहक आवाज किसी के भी दिल को भा सकती थी।

सिद्धार्थ जल्दी से अपने ऊपर के कपड़े उतार देता है और वही नीम के पेड़ के नीचे लेटे लेटे सिद्धार्थ हवा का आनंद ले रहा था और इधर काव्या पूरी तरह से एक टक उसको ही घूर रही थी और धीरे से अपना मन में सोचती है," आज कितना थक गया है , ये "ही

तभी अचानक सिद्धार्थ उठता है और अंदर रसोई में चलने लगता है और जैसे ही वो अंदर जाता हैं तो अंदर काव्या रसोई में काम कर रही होती है और लालटेन की हल्की सी रोशनी में उसकी पतली सी कमर को एक टक वो घूरने लगता है।

तभी काव्या को कुछ अहसास होता है और वो सिद्धार्थ को अपने आप को ऐसे घूरते देख शर्मा जाती हैं और धीरे से कहती है," ऐसे क्या देख रहे है कुछ चाहिए क्या आपको"-

"हा"-

सिद्धार्थ मुंह बना कर धीरे से कहता है और उसका मुंह देख कर काव्या हसने लगती है और अपना पसीना पोछती है और कहती है और हा आप बताइए आपको क्या चाहिए फिर बस कुछ देर में खाना बन जाएगा।

"तभी सिद्धार्थ वही काव्या को पकड़ कर धीरे से कहता है चलो ना बाहर"-

वही काव्या धीरे से शरमाते हुए कहती है ," ये क्या करते रहते है आप अब हा ऐसे कोई घूरता है"-

"तो हम कुछ गलत करते है क्या , अपनी पत्नी को घूरना गलत है , अब घरवाली इतनी सुंदर हो तो उसको घूरना भी गलत और अपनी वाली को ना घुरू तो किसको घुरू"-

उसकी बात सुन कर काव्या जो काम कर रही थी उसके पूरे गाल ही लाल पढ़ गया।

"वो वो वो , मैं कह रही थी आप जाइए बाहर मैं खाना ले कर आती हूं"-

काव्या की टूटती हुई आवाज सुन कर सिद्धार्थ को हसी आ गई और वो हसने लगता है और काव्या के दोनो कंधे पकड़ कर उसके गाल पर अपने होठ रख देता है और फिर स्माइल करते हुआ बाहर चला जाता है।

और बेचारी काव्या जो इस हमले से सिसक के रह जाती है उसका हाथ में जो लकड़ी थी वो छूट जाती है और वो वही जम सी जाती है।

"ये ये अभी इन्होने मुझे चूमा"-

काव्या अपने लाल गाल ले कर काम में जुट जाती है और जल्दी से खाना ले कर बाहर आती है और एक हाथ में लालटेन ली हुई थी।

और काव्या को ऐसे आता देख सिद्धार्थ को उसकी नाजुक कमर को हल्की रोशनी में नजर आ रही थी वो देखते ही खुशी झलक आ जाती है और वो जल्दी से काव्या का हाथ से खाना ले लेता है और काव्या लालटेल अच्छा से रख देती है और खड़ी हो कर सिद्धार्थ को देखने लगती है।

सिद्धार्थ काव्या को ऐसे घूरता देख थोड़ा अजीब महसूस करता है और बोलता है ,"क्या है ऐसे क्यों खड़ी हो बैठो"-

काव्या सिद्धार्थ के बदन को निहार रही थी और वो उसी मैं खो गई थी जैसे ही उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे कुछ कह रहा है तो वो होश में आती है और कहती है।

"अरे वो तो मैं बस ऐसे ही, मेरा मतलब है की जबतक आप नही खा लेते तब तक मैं कैसे खाऊंगी"-

तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर खींच लेता हैं और काव्या जो खड़ी थी वो सिद्धार्थ की गोद में गिर जाती है।

"अअह्ह्ह्ह"-

काव्या के मुंह से एक सिसकी जोर से फूट पड़ती है और उसकी सास तेजी से चलने लगती हैं।

और काव्या की बंद आंखे और उसका ऊपर नीचे हो रहा बदन सिद्धार्थ को अजीब महसूस करा रहा था चांद की रोशनी में उसकी नशीली कमर और हवा से उड़ते उसके बाल ना जाने क्यों आज की रात सिद्धार्थ को उसको बार बार छूने का मन कर रहा था।

तभी सिद्धार्थ अपने आप को होश में लाता है और कहता है,"वैसे तुम अपनी आंखे खोलोगी"-

उसकी आवाज सुन कर काव्या अपनी आंखे खोलती है और सिद्धार्थ अपने हाथ से एक निवाला उसके मुंह में डाल देता है और काव्या बेचारी क्या बोलती आज उसका पति उसको अपनी गोद में भर के खाना खिला था वो क्या ही कहती बस चुप चाप इस पल का आनंद उठा रही थी।

सिद्धार्थ उसको खाना खिलाकर खुद खाता है और बीच बीच में उसकी नज़र काव्या की उभारों पर चली जाती है और अब ये अहसास होते ही काव्या को अजीब सी खुशी आ जाती है और वो उसके गाल पूरे लाल हुआ था।

काव्या धीरे से कहती है," बस अब हमे छोर दीजिए , हम खा चुके और अब तो खाना भी खत्म हो गया"-

नही -

अब सिद्धार्थ का मुंह बन गया और वो ना चाहते हुआ भी काव्या को छोर देता है और काव्या जैसे ही उठने लगती हैं तो अचानक उसकी एक सीत्कार फूट पड़ती है।

सिद्धार्थ कुछ समझ पाता उसके पहले ही काव्या बर्तन उठा कर भाग जाती है और उसकी सांसें इतनी तेज थी सिद्धार्थ की भी सांसें बढ़ा रही थी।

तभी उसकी नज़र अपने उभार पर जाती है तो वो जल्दी से अपना दिमाग दूसरी तरफ ले जाता है और उसकी याद फिर से तनु की तरफ़ जाती है और वो कब नींद के झरोखे में चला जाता है उसको अहसास ही नही होता सुबह की थकान और मेहनत अब नींद में बदल चुकी थी।

इधर काव्या जल्दी से बर्तन पानी के पास रख कर वही बैठ जाती है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगती हैं और अपना ऊपर नीचे होता बदन चुप चाप काबू में करती है और वो अहसास जो आज उसने महसूस किया वो कभी भी नही भूल सकती.

"बुधु पति हुम्ह्ह"-
"हमेशा हमे छेड़ते रहते है, कभी कहते है बिना मेरी मर्जी हमे नही छुएंगे और अब हमे अपना"-

"अरे ये हम क्या सोच रहे है खैर चलो काम कर लूं , बताओं बात बात में आज मुझे इतना ठूसा दिया"-

इधर काव्या काम खत्म करने के बाद जल्दी से आती है आंगन में ताकि सिद्धार्थ को कह सके की चले सोने का टाइम हो गया लेकिन वो कुछ कहती उसके पहले ही उसकी नज़र आंगन में सोए सिद्धार्थ पर पड़ती है जो बहुत थकान की वजह से सो गया था।

"अरे ये तो सो गया यही पर, खैर कोई नही आज इन्होने काम ही बहुत किया है आपने ऐसा काम किया की आपकी पत्नी का सर गर्व से उठ गया , आप मेरे सब कुछ है"-

"उफ्फ मां आज का दिन कितना थकान भरा था, थक गई मैं तो", ये कहते हुए काव्या लालटेन बुझा देती है और अपना पल्लू भी उतार देती है और बस चोली और ब्लाउज में आ जाती है जो उस समय का अहम पहनावा था।

"चलु अब जल्दी से खटिया लगा कर सो जाती हूं", ये काव्या कहती ही है की उसकी नज़र सिद्धार्थ के खटिया पर जाती है जहा सिद्धार्थ ने उसके लिए जगह खाली छोड़ दी थी और वहा तकिया भी थी।

उसकी नज़र वहा पड़ते ही काव्या के गाल फिर से लाल हो जाते है और वो चुपके से सिद्धार्थ को देखती है की सो गया या जाग रहा है।

"जरा देखू सो गया या फिर से हमे परेशान करने के लिया कोई नई चाल है इनकी , नही लगते तो नही ऐसा लगता है ये इस बार सच में सो गया"-

"उल्लू कही के सोनें के लिया इतनी छोटी खटिया लगाई जब जानते है हम दोनों साथ में सोएंगे तो बड़ी खटिया लगानी थी ना छोटी खटिया पर तो"-

जैसे ही उसको समझ आया वो लाल गाल ले कर चुप चाप लेट गई।

थोड़ी देर बाद काव्या की आंखें नींद के आगोश में जाने लगी तभी सिद्धार्थ अचानक करवट लेता है और अपना पैर काव्या की टांग पर लाद देता है।

वही अचानक हुए इस हमले की वजह से काव्या की सांसें थम सी गई और उसकी छाती अपने आप ही ऊपर नीचे होने लगी।

इधर सिद्धार्थ हमेशा ऐसे ही सोता था उसके लिया ये पहले की तरह नॉर्मल था लेकिन इस बार उसके बगल काव्या थी।

काव्या की सांसें तेज चल रही थी उसका पति से मिल रहा ये प्यार भरा अहसास उसे कुछ ऐसा आभास करा रहा था जो उसने कभी नही किया था, सिद्धार्थ का रवैया उसका ये ववहार काव्या को प्यार मैं डाल चुका था लेकिन काव्या और कुछ सोच नही पा रही थी तभी उसको अहसास हुआ को उसकी कमर पर एक हाथ जकड़ रहा है।

"आआआह्हह हम्म्म्म मां"-

ना चाहते हुआ भी काव्या के मुंह से एक सीत्कार फूट पड़ी और और उसको अपनी टांगों में सिद्धार्थ का कुछ चुभते हुए फील हो रहा था।

काव्या कुछ नही कह पा रही थी बस वो एक जगह जम सी गई थी और उसकी सासें इतनी तेज थी कि वो भूल गई उसके बगल सिद्धार्थ सोया है और उसको ऐसे ऊपर नीचे होते देख नींद में ही अपना हाथ काव्या के सर के नीचे रख कर उसको अपने से सटा लेता है।

और काव्या की कमर को तेजी से जकड़ लेता है और काव्या के मुंह से बस कुछ सिसकियां निकल रही थी और धीरे धीरे कब वो नींद में सिद्धार्थ के सीने में लिपट गई उसकी तरफ़ करवट ले कर ये काव्या को भी नी पता चला।

और सिद्धार्थ के सीने की गर्मी में वो कब की नीद में जा चुकी थी ।

*कांव कांव*
*कुहू कुहू*

सुबह के समय तेज तेज हवा और सूरज की हल्की सी आंच और तरह तरह के परिंदो की आवाज़ से काव्या की नींद खुलती है और थोड़ी देर तो वो नींद में ही वही पड़ी रहती है फिर काव्य धीरे से अपनी हालत देखती है तो उसके शरीर पर साप जैसे लोट जाते हो।

काव्या सिद्धार्थ की तरफ करवट ली हुई थी और उसके सीने में घुसी हुई थी और उसका सर सिद्धार्थ के हाथ पर था।

काव्या ये जानते ही थोड़ा हकबाका जाती है और उसकी सासें तो उसी तेजी से चलने लगती है, लाल गाल शर्म से पूरे तभी वो अपनें पैर की तरफ देखती है तो उसकी हालत और खराब हो जाती है।

काव्या के पैर सिद्धार्थ के पैर के बीच में था और सिद्धार्थ ने उसकी झाग के ऊपर अपनी टांग रखी थी और उसकी कमर कस के पकड़ कर सोया था।

छोटी सी खटिया पर काव्या और सिद्धार्थ आधे पर ही सोए थे काव्या थोड़ा हिलती है तभी उसे अहसास होता है की सिद्धार्थ हल्का कप रहा है तो वो डरते डरते अपने कापटे हुए हाथ सिद्धार्थ की पीठ पर रखती है और धीरे से उन्हें कस लेती है उसकी लिए ये करना एक बहुत बहादुरी का काम था।

तभी काव्या धीरे से आंखे खोलती है और सिद्धार्थ के सीने की तरफ देखती है और शर्म से जल्दी से उन्हें ढक देती है।

"आह मम्मी यार ये मैना क्या कर दिया, उनके सीने पर तो बस मेरे दातों के निशान है"-

तभी काव्या अपना सर उठाती है और सिद्धार्थ का सर देखती है और सिद्धार्थ नींद में ही कुछ इधर उधर कर रहा था और काव्या को कस रहा था।

काव्या सिद्धार्थ को ऐसे देख हसने लगती है और अपना मुंह इधर उधर करने लगती है और एक जगह रुक जाती है ये देखने के लिए ये क्या करना चाहते है जैसे ही वो रुकती है सिद्धार्थ उसके हाथ समझ कर उसकी नाक की तरफ आता है और ना जाने कैसे वो थोड़ा नीचे हो जाता है और उसके होठ काव्या के होठ के जस्ट सामने आ गया और ये देख कर काव्या अपनी आंखें बंद कर लेती है और वो बहुत जोर से कांपने लगती है, सिद्धार्थ को काव्या की गरम गरम सासें फील हो रही थी।

इसके पहले की दोनो के होठ मिलते एक जोरदार आवाज़ आती है।

"अरे ए बावली काव्या चल जल्दी वर्ना सूरज आ जाएगा तो दिक्कत होगी चल"-

जैसे ही इतनी तेज आवाज आती है और आंगन में दरवाजा खटखटा जाता है सिद्धार्थ चिहुक जाता है और उसकी नींद खुल जाती है और काव्या की भी आंखे खुल जाती है और वो सिद्धार्थ को देखती है जो कच्ची नींद में ऐसे जगा था और उसको ऐसे कच्ची नींद में जागते देख काव्या थोड़ा उदास हो जाती है।

और सिद्धार्थ कहता है," क्या हुआ"

काव्या धीरे से कहती है," वो वो सुबह हो गई , हमे छोड़ दीजिए वर्ना सूरज आ जायेगा तो दिक्कत होगी हम फ्रेश हो कर तैयार हो जाते है"-

तभी सिद्धार्थ को अहसास होता है की उसने काव्या को पूरी तरह से दबा रखा है तो वो थोड़ा शर्मिंदा हो जाता है और डरते हुआ कहता है," हमे माफ कर हम ये"-

सिद्धार्थ आगे कुछ कहता उसका पहले ही काव्या उसको गले लगा लेती है और धीरे से कहती है," आप स्माइल करते हुआ अच्छे लगते है और स्माइल ही करते रहिए समझे और मेरी जगह तो आपके आगोश में है ऐसे उदास ना हो रात तो आती रहेगी"-

ये कह कर वो बहुत तेजी से भागना चाहती थी लेकिन भाग नी सकी क्युकी सिद्धार्थ की पकड़ और कस गई और सिद्धार्थ के कांप रहे होठ अपने आप काव्या की तरफ़ बढ़ने लगते है और और उसने काव्या को कस के अपने ऊपर ले लिया था और दोनो इस समय बस सुबह की ठंड का साथ अपने प्यार का आगाज़ करना चाहते थे लेकिन तभी

"अरे काव्या"-

वही ये सुन कर सिद्धार्थ काव्या को छोर देता है और काव्या की आंखें गुस्सा में लाल हो गई।

और सिद्धार्थ जल्दी से करवट बदल कर लेता जाता है और काव्या जल्दी से अपनी चोली और ब्लाउज पहनती है जो खुल गई थी। और जल्दी से दरवाजा की तरफ चल पड़ती है।


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Raj_sharma

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