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Awesome update
aapka KNOLEALGE to bada kaamal ka h....
nice update... Waiting for your next update
Shandar jabardast update![]()
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Nice and superb update.....
Mast update
Bahut hi shaandar update diya hai Ghost Rider ❣️ bhai....
Nice and lovely update....
Jabardast update Bhai waiting for next update main jab bhi site open karta hu hamesha. Guest ban ke karta hu lekin buss iss story me comment karne ke liye login karta hu.
Superb story Bhai waiting for next update
Fir se gyab![]()
Ha to fyada kya...meko bhi
odo ki trh bolna padega.........KAAN ME......"TUM BADAL GAYE"
4 story incomplete..itne time se no update
u are that guy jisne ek time p din me 2 2 update diye h....
I am not saying
ki update do hi do....
per ase 2 3 din me ek aadha to
banata daily do to aapki Khushi
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Mahoday update bhi dedo....Ladki se setting hoti rahegi...
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Yep update needed.......
Congratulations ye new story ke liye
update posted bidu logDekhte h![]()
Interesting and majedaar updateअध्याय - 3 डकैती या समझौता, एक शुरुवात
"ललल लगता है हम गलत वक्त पर आ गया, अच्छा हम जा रहे है किसी और चीज की सब्जी बना लेंगे?"
मोहनजो- दरों - सिंध राज्य की राजधानी
महल~
"महाराज की जय हो, राजकुमारी साक्षी महल में नही है?"
"और महाराजा एक लड़का आज राजकुमारी साक्षी आज एक लड़के से मिली काया ने बताया और उससे मिलने के बाद राजकुमारी की काफी खिली खिली लग रही थी आपको इस सिलसिले में वैद जी बात करना चहिए और राजकुमारी यशस्वी कल सुबह महल में आ रही है, जो राखीगढ़ी रियासत मैं हुए विद्रोह को शांत करने गई थी हम बहुत बुरी हालत में है महाराज "
अब आगे --
"राखीगड़ी रियासत हमारी राजधानी मोहनजो- दरों के सबसे पास और महत्वपूर्ण रियासत है, और ये इस सूबे के पूरा केंद्र बिंदु है, क्युकी सभी नहर यही से जाती है।", महाराज जयराज अपना शरीर टिकाते हुए बोलते है।
और महाराज को ऐसे परेशान होते देख सेनापति मान बोलते हैं - " महाराज हो सकता है, कुछ हो मानू इस रियासत को चला रहा और अपनी मन मानी कर रहा , अगर उसकी जगह गगन होता तो शायद हम कुछ कर लेता, इस जंग के बाद जरूर हम कुछ करेंगे लेकिन अभी हमे मानू की जरूरत है।"
इसके पहले की राजा और सेनापति कुछ और बोलते उन्हे सैनिक की घोषणा करने की आवाज़ आई।
"होसियार! सिंध राज्य के कुल गुरु शक्ति दास प्रधार रहे है।"
जैसे ही कुल गुरु शक्ति दास आते है, राजा जयराज उन्हे आदर के साथ बैठने को बोलता है और इसके पहले की राजा उन्हे कुछ और बोलता कुल गुरु हस्ते हुए बोलते है।
"हा हा! जय राज, हमने तुम्हे पहले ही बोला था, वही होगा जो नियति मैं लिखा होगा , नियति के बाहर कुछ नही होगा।"-
"और नियति वक्त के साथ खुद बदलती है, हवाएं बदल रही है! दिशा बदल रही है, किसी और के कदम इस सल्तनत पर पढ चुके है और वक्त आने पर तुम्हें नतीज़ा लेना पड़ेगा की तुम उस नियति को अपना सकोगे या नहीं"-
कुलगुरु की बात सुन कर राजा जयराज और मान सोच मैं पढ़ जाते है।
"आपका क्या तात्पर्य है, कुल गुरु?"
"तुम्हारी बेटी ही तुम्हारी सल्तनत है ना, तो अपनी बेटी पर ध्यान दो, क्या पता तुम्हारी सारी रियासते सभलवा दे, क्या पता तुम्हारी बेटी का भाग्य एसो को ले आए जो तुम्हारी सल्तनत को सभाल ले"
"जैसी आपकी आज्ञा, कुल गुरु इतना तो मैं समझ गया की आपका उंगली किस तरफ है।"
"कुल गुरु, हमारी बेटी यस्यस्वी आ रही है, उसका क्रोध ही हमें डर हमें डरने पर मजबूर कर देता है।"
"क्या पता उसका क्रोध ही तुम्हारा , कार्य आसान कर दे , फिलहाल साक्षी की मनोदशा पर ध्यान दो, तुम्हारी बेटियां ही तुम्हारा सब कुछ है, और साक्षी की मनोदशा थोड़ी सही हुई है।"
ये सुन कर जयराज खड़ा हो जाता है और साक्षी के पास चल देता है और वो पूरे महल में ढूढने लगता है लेकिन उसको कही भी साक्षी नज़र नही आती।
जय राज गुस्सा मैं उठ कर कहता है ," हम इस लड़की से बहुत परेशान है, पता नहीं इस लड़की को खेलने के लिए पूरा महल क्यों कम पड गया है।"
मान हंसता है और धीरे से कहता है,"काया को बुलाओ और सैनिकों को तैनात करो, जरूर वो सरोवर पर होगी, तो उसके चारों तरफ़ तैनात रहो।"
मोहनजो- दरों और राखीगढ़ी
के बीच गांव ~
काव्या आस्था के जाने के बाद वही खटिया पर बैठ जाती है और जोर जोर से सांस लेने लगती हैं।
उसके सास तेज़ थी, जिससे वो पसीना से तर बतर हो गई थी।
तभी काव्या नज़र उठाती है तो देखती है उसके पास सिद्धार्थ आ रहा था।
और काव्या तेजी से सास ले रही थी और तभी उसके कान में सिद्धार्थ की आवाज़ आती है।
"ये लो जल पियो, शीतल जल है आपको ठंडक मिलेगी।"
काव्या कांपते हुए हाथों से जल पकड़ती है तो सिद्धार्थ उसके सर पर थपकी मारता है और कहता है,"अरे पगली ऐसे कांपते हुए हाथों से जल पकड़ोगी तो गिर जाएगा, रुको हम तुम्हे पिलाते है।"
तभी काव्या के होठों पर गिलास लगाता है और काव्या धीरे से पानी पीने लगती है, तभी उसको अपने कंधे पर सिद्धार्थ का हाथ महसूस होता है और काव्या पूरी तरह कपकपा जाती है।
और काव्या को कापते देख सिद्धार्थ धीरे से उसका शरीर देखता है पूरी तरह से दूध जैसा गोरा बदन, नाजुक उभार।
तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर, बाहर आंगन में आता है और ठंडी ठंडी हवा में पेड़ के पास खटिया पर बैठा देता है।
जब ठंडी ठंडी हवा, और पेड़ से हिलते हुए पत्ते की आवाज़ काव्या को अजीब सा अहसास करा रही थी और काव्या अपना पल्लू सही कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ उसको गुस्सा मैं कहता है, "तुम अपने पल्लू मैं ऐसा घुसी जा रही हो, जैसे मैं तुम्हारे वस्त्र ही खीच रहा हूं।"
"हा तुम घुस जाओ पल्लू में, एक काम करो चोली और ब्लाउज को रस्सी से बांध लो।"
ये कहते हुए सिद्धार्थ अंदर चला जाता है और उसके जाते ही काव्या धीरे से पलट कर सिद्धार्थ को देखती है चुपके से।
फिर धीरे से काव्या पलट कर सिद्धार्थ को चिड़ाती है।
"हा हा तुम चिड़ा लो, तुम्हे बतूंगा मैं।"
काव्या की खिलखिलाती हुई हसी पूरे आंगन में गूंज गई थी।
तभी हर तरफ शोर की आवाज़ आने लगी और देखते ही देखते बस शोर शराबा और अफरा तफरी वही ये सब सुन कर काव्या बहुत डर जाती है।
और डर से कांपने लगती है।
काव्या को ऐसे कांपते देख सिद्धार्थ जल्दी से काव्य को अपने बाहों में कैद कर लेता है और धीरे से कहता है," क्या हुआ हा ऐसे डर क्यों रही हो?"
और काव्या अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहती है,"वो वो वो आ गए , वो वो आ गए।"
"कौन आ गए , काव्या और तुम डरना बंद करो पहले की बात कुछ और थी और अब की बात कुछ और है अब तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है समझी, और बिना डरे बोलो क्या बात है?"
सिद्धार्थ की बाहों में काव्या को अब थोड़ा हौसला मिलता है और वो धीरे से कहती है ,"वो डाकू आए है, और उन डाकू मैं से एक हमारे पीछे है, इसीलिए आप बाहर मत जाइए, शादी के दिन ही आप चले गए और मुझे समाज मैं ना जाने क्या क्या सहना पड़ा और हम नही चाहते आप जाए आप हमे मत छोड़ कर मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को ऐसा डरते और कांपते देख उदास हो जाता है और उसका चहरा देखने लगता है जो पूरी तरह तनु का था, सिद्धार्थ एक टक उसको ही देखता रहता है और एक बार को वो सब कुछ भूल जाता है, और दोनो हाथों से काव्या के गाल पकड़ लेता है और उसके गुलाबी होठों को देखने लगता है।
वही अपने आप को ऐसे निहारते देख काव्या की सास रुक जाती है और उसकी आंखे अपने आप बंद हो जाती है।
तभी उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे दूर जा रहा है तो वो कस कर के सिद्धार्थ को पकड़ लेती है और रोने लगती है।
"नही आप बाहर नही जायेंगे, अगर आज हम दोनो का आखरी दिन है तो साथ में रहे"
काव्या के आसू बह रहे थे और उसने धीरे से कहा," आप मत जाइए, चाहे तो आप हमारे वस्त्र उतार लीजिए , हम आपको नही रोकेंगे आप जो चाहे कर लीजिए, हमारे पल्लू हमारी चोली हम सब उतार देंगे आप मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को गले लगा लेता है और उसकी बेबसी और लाचारी पर खुद उदास हो जाता है, " काव्या तुम्हे इतना डरने की जरूरत नही, तुम्हे रानी बनूंगा ये मेरा वादा है।"
"काव्या तुम्हे अपने वस्त्र उतारने की जरूरत नही, क्या दुनिया की कोई स्त्री ये बोलती तो हम बर्दास्त कर लेते लेकिन मेरी अपनी काव्या ये बोल रही, तुम अपने वस्त्र मत उतारो जब तक तुम हमारे साथ , अच्छा ना महसूस करो तब तक हम तुम्हे नही छुएंगे, ऐसे मजबूरी का फायदा सिद्धार्थ कभी नही उठाता।"
"अब तुम , चलो मेरे साथ बाहर।"
ये कह कर सिद्धार्थ काव्या को अच्छे से पल्लू से ढक देता है और कहता है "मेरी काव्या पर केवल मेरा हक है, तुम्हे हमारे सिवा कोई देखे ये हमको बर्दाश्त नही।"
"तुम दरवाज़ पर खड़ी रहना और हमे देखना हम आपकी नज़रों से दूर नही जायेंगे"
काव्या डर रही थी लेकिन सिद्धार्थ का साथ ने उसको हौसला दिया था, और वो दोनो बाहर आने लगते है।
आस्था की कुटिया~
वही एक कोने बैठा आलोक चुप चाप आंगन में बैठा अपनी तलवार की धार तेज रहा था और धीरे से कहता है।
"पता नही अपने आप को क्या, समझती है जैसे कही की महारानी हो , हमे धमकी दे रही की हम आंगन से बाहर नही आ सकते, क्यों ना आए ये हमारी भी कुटिया है।"
तभी धीरे से आलोक कहता है,"आस्था की चूचियां कितनी सॉफ्ट थी, हाय यार उफ्फ और इन सब से दूर उसकी गांड कितनी प्यारी शेप में थी, आधुनिक जमाने की लड़कियां मैं ये बात कहा।"
एक सेकंड कही आस्था उसी बात की वजह से तो नही रोते हुए हमे बाहर कर दिया घर से।
तभी आलोक को रोने की आवाज़ आती हैं और वो अपनी तलवार निकाल लेता है और धीरे से अपनी कुटिया में अंदर आता है।
और कहता है "आस्था कौन है जिसने तुम्हे रुलाया हमे बताओ, हमारी आस्था को रुलाने वाले के हम सर उड़ा देंगे"
तभी आस्था रोते हुए कहती है," सब खत्म हो गया, वो आ गए अब कोई नही बचेगा।"
आलोक धीरे से आस्था की ऊपर नीचे होती हुई चूचियों को देखता है और कहता है ," हा कुछ नही होगा आस्था, लेकिन तुम थोड़ा रो लो रोने से दुख कम होता है"
तभी वो धीरे धीरे आस्था के करीब आता है और उसके पेट को सहलाता है।
आस्था अपने आसू पोछती है, और धीरे से कहती है "भाई मुझे पता है, तुम बहुत स्नेह करते हो हमसे, हमे आंच नही आने दोगे, लेकिन शायद हमारा साथ यही तक था, हमे पता है सब आप हमे क्यों घूरते हो"
आस्था की सास अटकने लगती है और अब आलोक जो अभी तक मजाक के मूड में था वो थोड़ा सीरियस हो कर आस्था को गले लगा लेता है और अपने हाथ से आस्था को कस लेता है।
"आस्था हम पर विश्वास रखो तुम्हे कुछ नही होगा समझी, एक बार बताओ क्या हुआ"
"वो वो डाकू आए है, और उनका रियासत के मालिक हमारी मदद नही करेंगे इस विसय पर, और वो जब भी आते है सब खत्म कर देते है पूरा गांव तबाह कर देते है।"
वही ये बात सुन कर आलोक का दिमाग खराब हो जाता है और वो आस्था की गांड पर हाथ फेरने लगता है।
जैसे ही आस्था ये देखती है तो वो नज़र उठा कर आलोक को देखती है।
"आपको अगर अपनी बहन की इज्जत ले कर ही खुशी मिलेगी, तो हम खुद अपने वस्त्र उतार देते है, आइए और कर लीजिए , मिटा लीजिए अपनी हवस।"
तभी आलोक उसका मुंह दबा देता है और उसको बाहों में भरता है और कहता है।
"यह नही कमरे में चलो, वहा उतारो और तेल है?"
इतना सुनते ही आस्था जो अब तक रो रही थी वो धीरे से दूर हटती है और पास में पड़ी तलवार उठा लेती है।
आलोक ये देखते ही भाग जाता है और कहता है,"बाद में मना लेंगे ना, आस्था अभी रोना बंद करो।"
आस्था आलोक के पीछे बाहर आती है तो काव्या से टकरा जाती है।
"आह मां, क्या रे बावली हो गई है क्या, उफ्फ मां पूरा सर दर्द करने लगा।", काव्या अपना सर पकड़ते हुए कहती है।
और अब हैरान होने की पारी आस्था की थी और धीरे से कहती है।
"वो वो वो बिल्ली थी, ना काव्या उसी के पीछे भाग रहा थी।"
काव्या धीरे से कहती है ," मैं तो मान लूंगी, लेकिन गांव वालो को क्या बोलेगी?"
तभी आस्था काव्या की बात सुनती है और अपना हुलिया देखती है और जल्दी से काव्या के पीछे छुप जाती है।
"हमे बहुत डर लग रहा है, काव्या क्या होगा , तेरे पति ने तो रियासतदार के बेटे की आंखे फोड़ दी अब वो मदद करने से रहा ऊपर से जंग अलग करेगा, ऊपर से ये डाकू हमारी रक्षा और हमारे मान की रक्षा कौन करेगा।"
काव्या हस्ती है और कहती है "जो तेरी लूटने वाला था वो करेगा।"
तभी काव्या का जवाब सुन आस्था चुप हो जाती है और धीरे से कहती है ," चुप हो जा काव्या"
तभी काव्या धीरे से कहती है "हमे भी बहुत डर लग रहा, हम सिद्धार्थ के साथ ही मारेंगे या जिएंगे"
तभी उन दोनो की निगाहें आलोक और सिद्धार्थ पर जम जाती है।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की नज़र पीपल के पेड़ पर जाती है।
"गांव वालो , हमने कहा था जिस दिन हम आएंगे पूरे गांव को समशान और लाशों का ढेर बना देंगे।"
"कहा मर गए सारे गांव वालो, आओ या सब के सब चूड़ी पहन रखे है, आओ गांव वालो"-
"सभी के घर मै आग लगा दो, फिर जो बच जाएगा उसको ले चलेंगे"-
वही ये सब देख रहे आलोक कहता है," अबे सिद्धार्थ अबे ये बहेंचोद , डाकू है या सेना?"
"अबे इतने सारे ये तो कम से कम 300 तो होंगे"-
आलोक की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ हस्त है ," हा और उनकी सरदारनी को देख जो बीच में है"-
"अबे ये सब इतने खोंखार है, और सरदारनी का देख कर ही डर जाए कोई, क्या करे हम, चले युद्ध करे?", आलोक अपनी तलवार लेते हुए कहता है।
आलोक आगे जाता उसके पहले सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है," रुको जरा गांव वालो को बाहर आने दो, इससे अच्छा मौका कहा मिलेगा?"
इससे पहले की आलोक और सिद्धार्थ कुछ और करते
एका- एक कुछ घुड़सवार आ गए और युद्ध होने लगा।
घुड़सवार का मुखिया पूरा युद्ध कवच पहने थे तो कुछ पैदल सैनिक थे, पैदल सैनिकों की संख्या कम थी, उनकी युद्ध नीति सामने से युद्ध की थी लेकिन उनकी संख्या 50 के आस पास थी।
तभी डाकू की मुखिया जो बीच में थी वो हस्ती है।
"वाह वाह, अब इतनी बड़ी सेना से लड़ने कुछ चूहे आए है, आओ आओ , मारो।"
"गगन हम इन्हें नही हरा सकता", मुखिया की बात सुन कर एक लड़का जो गाववालो की तरफ़ से लड़ रहा था वो बोलता है।
तभी गगन की आवाज़ सुन कर हर किसी का हौसला बढ़ जाता है।
"तो ये हमारा अच्छा अंत होगा, मात भूमि पर मारेंग।"
धीरे धीरे युद्ध भयंकर होने लगा और बीच बीच में कही से कुछ उड़ते तीर सीधा कुछ डाकू को लगते और एक तीर सिद्धार्थ के पैर के पास आ कर गिरता है जैसे मानो कोई कह रहा हो , तुम शांत क्यों हो।
तभी धीरे धीरे सभी सैनिक पकड़ लिए गए, और उनका मुखिया गगन जिसको एक डाकू ने पकड़ रखा था।
वो मुखिया से कहता है," सरदारनी इनकी सेना खत्म क्या करे?"
उनकी सरदारनी कहती है ," हाथ काट दो , फिर बात करते है इससे और बाकी सभी को अभी ज़िंदा रखो , मौत नही बुरी मौत देना है।"
तभी वो डाकू जो तलवार उठाता है और तलवार से गगन पर हमला कर पता उसके पहले ही एक तीर सीधा उसके हाथ मै जा कर लगता है और उसका हाथ भेद देता है।
तभी सबकी नज़र उस तीर को चलाने वाले पर पड़ते है।
काव्या उस इंसान को देख कर सिहर उठती है और उसके आसू बहने लगते है।
वही अब सारे गांव वाले सिद्धार्थ को देखते हैं।
तभी उनका मुखिया , जो डाकू का प्रतिनिधि कर रहा था , और डाकुओं की सरदारनी के जस्ट बगल में था , वो तुरंत सिद्धार्थ को देख कर कहता है ," तू आज तू मरेगा और तेरा साथी भी मरेगा"
तभी सिद्धार्थ की हसी आवाज़ सुन कर वहा खड़ी सभी महिलाएं हैरान हो जाती है, अजब की सुंदरता थी उसमें और निडरता ऐसा गुण था जिसे इस जमाने में सबसे ऊपर माना जाता था।
तभी एक चाकू बहुत तेजी से सिद्धार्थ की तरफ आता है और इसके पहले की सिद्धार्थ को लगता , आलोक अपने हाथो में उस चाकू को पकड़ लेता है और उसका खून की बूंदे मिट्टी पर गिरने लगती है।
तभी सिद्धार्थ अपना धनुष उठा कर आलोक को देता है और सिद्धार्थ को धनुष उठते देख हर कोई वहा खड़ा हैरान हो जाता है और डाकू के बार को डर जाते है क्युकी तीरंदार उस समय सबसे बड़ी कमजोरी होती थी।
तभी सिद्धार्थ और आलोक निहते डाकू के बीच घुसते हुए, उनकी सरदारनी के ठीक सामने खड़ा हो कर गगन के कंधे पर हाथ रखता है।
और उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है और और मुखिया हस्त है और कहता है ," लो बिल्ली खुद जाल मैं आ गई।"
सिद्धार्थ उनकी सरदारनी से कहता है ," यह क्यों आई हो?"
सरदारनी सिद्धार्थ की बात सुन कर हस्ती है और कहती है," तेरे से बियाह करने, करेगा? बड़ा आया क्यों आई हो यह , अरे डाकू हो डकैती करने आई हो, ना जाने कितनी रियासते लूटी है, कितने सूबे हमने तबाह किया है, जहा हम गए वहा केवल मौते ही हुई है"
सिद्धार्थ हसता है और कहता है ," तो डैकती के लिया इतने सारे लोग ले कर , आना युद्ध करना क्यों?"-
अब सिद्धार्थ की बात सुन कर उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है, वही वो काले घोड़े से उतरती है उसका पूरा मुंह ढका हुआ था, पूरे शरीर पर बस कवच था , जिसमें खून के डब्बे थे।
तभी सरदारनी को उतरते देख बाकी सभी डाकू झुक जाते है, और उनके बीच फूस फुसाहट शुरू हो जाती है।
"अरे भाया अब ये मारा"-
"हा अब इसका बचना मुस्किल"-
वही सरदारनी को उतरता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक स्माइल आ जाती है और वो हस्ते हुए कहता है," तुम बहुत खूबसूरत हो"
"तुम्हे क्या लगता है, लूटने के लिया इतने सारे डाकू ना लाए तो क्या केवल कुछ को ले कर मर जाए?"
सरदारनी की बात सुन कर सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," मेरा मतलब ये नही था, मेरा आशय था की यह लूटने आने के लिया,इतने सैनिक लाना, लोगो की इज्जत लूटना और मारना क्यों?"
"ये सब केवल डैकती के लिए ना?"-
उनकी सरदारनी अब झेप जाती है और धीरे से कहती है ,"हा"
"अगर मैं ये सब खुद ही दे दूं तो?"-
अब ये सुन कर उनकी सरदारनी यह तक की गगन और पुरे गांव वाले हिल गया।
और उनकी सरदारनी अभी भी सोच मैं थी, अक्सर वो जहा लूट पात करती, वहा लोग गर्व से लड़ते और जान दे देते और एक लड़का आज खुद ही डकैती की रकम दे रहा।
"बस मेरी कुछ शर्त है।"-
अब सरदारनी कहती है ," कैसी शर्त"-
"डैकती की रकम हर महीने के आखिरी दिन दिया जाएगा , और ये रकम पूरा गांव की तरफ़ से में दूंगा, बस बदले में तुम इस गांव मैं जान नही लोगी, और कुछ जरूरत होगी तो मैं खुद तुम्हारी मदद करूंगा"-
सरदारनी का पूरा दिमाग हिल गया आज तक उसके पूरे जीवन काल में ऐसा नही हुआ था।
सिद्धार्थ हस्त है और कहता है मेरी दूसरी शर्त ,"आज पूरे युद्ध में जितने भी सैनिक तुमने पकड़े है, उन्हे आज़ाद कर दो, और तुम बोलो कितनी रकम चहिए"-
"6 bori अनाज , 4 बोरी गेहूं, और 200 सोने के सिक्के"-
[ note- yudh chal rha hai isiliye dakiti ki rakam kam hai]
सरदारनी की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ एक सोने से भरी पोटली पकड़ा देता है जिससे सरदारनी हैरान हो जाती है।
तभी सिद्धार्थ पलट कर जाने लगता है उसके पहले ही सरदारनी कहती है ," क्या नाम है तेरा, और ये क्यों कर रहा, तू चाहता तो युद्ध कर सकता था?"-
सिद्धार्थ हसने लगता है और धीरे से कहता है," हर जगह युद्ध नही होता"-
तभी सरदारनी घोड़े पर बैठ जाती है और वो एक बार पलट कर देखती है तो सिद्धार्थ उसको ही देख रहा था और सिद्धार्थ धीरे से कहता है," विवाह करने आई थी, बिना विवाह के जा रही , कम से कम दुबारा कहा मिलना है ये बता दो?"-
तभी वो सरदारनी कहती है,- " चलो सभी हमारा काम हो गया"-
देखते ही देखते सभी डाकू चले गया और पूरे गांव वाले यह तक की काव्य और आस्था हर कोई सिद्धार्थ को घूर रहा था।
वही गगन अपने मन मैं सोचता है," डाकू से बचने का ऐसा मार्ग भी है , हमने कभी नहीं सोचा था और आज डाकू से हमारी जान बक्श दी"-
हर किसी के मन मैं तरह तरह के सवाल थे और सबसे ज्यादा तो आलोक, और हर कोई अभी भी शाक मैं था की आज गांव बर्बाद नही हुआ।
वही दूर से राजा जय राज के सैनिक ये सारा मामला देख रहे थे, जिनके साथ एक राजकुमारि थी।
बीच जंगल , सिंध नदी का तट
"आज क्या हुआ , क्यों हुआ और क्या ये होना था?"-
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने
को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
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to be continued..... well well guys update posted .... update 3.5 k words ka hai something... toh tum logo like pelo aur alok aastha ko pale.... update timely rhegaa aur bda rhega...
Ruhiiii....अध्याय - 3 डकैती या समझौता, एक शुरुवात
"ललल लगता है हम गलत वक्त पर आ गया, अच्छा हम जा रहे है किसी और चीज की सब्जी बना लेंगे?"
मोहनजो- दरों - सिंध राज्य की राजधानी
महल~
"महाराज की जय हो, राजकुमारी साक्षी महल में नही है?"
"और महाराजा एक लड़का आज राजकुमारी साक्षी आज एक लड़के से मिली काया ने बताया और उससे मिलने के बाद राजकुमारी की काफी खिली खिली लग रही थी आपको इस सिलसिले में वैद जी बात करना चहिए और राजकुमारी यशस्वी कल सुबह महल में आ रही है, जो राखीगढ़ी रियासत मैं हुए विद्रोह को शांत करने गई थी हम बहुत बुरी हालत में है महाराज "
अब आगे --
"राखीगड़ी रियासत हमारी राजधानी मोहनजो- दरों के सबसे पास और महत्वपूर्ण रियासत है, और ये इस सूबे के पूरा केंद्र बिंदु है, क्युकी सभी नहर यही से जाती है।", महाराज जयराज अपना शरीर टिकाते हुए बोलते है।
और महाराज को ऐसे परेशान होते देख सेनापति मान बोलते हैं - " महाराज हो सकता है, कुछ हो मानू इस रियासत को चला रहा और अपनी मन मानी कर रहा , अगर उसकी जगह गगन होता तो शायद हम कुछ कर लेता, इस जंग के बाद जरूर हम कुछ करेंगे लेकिन अभी हमे मानू की जरूरत है।"
इसके पहले की राजा और सेनापति कुछ और बोलते उन्हे सैनिक की घोषणा करने की आवाज़ आई।
"होसियार! सिंध राज्य के कुल गुरु शक्ति दास प्रधार रहे है।"
जैसे ही कुल गुरु शक्ति दास आते है, राजा जयराज उन्हे आदर के साथ बैठने को बोलता है और इसके पहले की राजा उन्हे कुछ और बोलता कुल गुरु हस्ते हुए बोलते है।
"हा हा! जय राज, हमने तुम्हे पहले ही बोला था, वही होगा जो नियति मैं लिखा होगा , नियति के बाहर कुछ नही होगा।"-
"और नियति वक्त के साथ खुद बदलती है, हवाएं बदल रही है! दिशा बदल रही है, किसी और के कदम इस सल्तनत पर पढ चुके है और वक्त आने पर तुम्हें नतीज़ा लेना पड़ेगा की तुम उस नियति को अपना सकोगे या नहीं"-
कुलगुरु की बात सुन कर राजा जयराज और मान सोच मैं पढ़ जाते है।
"आपका क्या तात्पर्य है, कुल गुरु?"
"तुम्हारी बेटी ही तुम्हारी सल्तनत है ना, तो अपनी बेटी पर ध्यान दो, क्या पता तुम्हारी सारी रियासते सभलवा दे, क्या पता तुम्हारी बेटी का भाग्य एसो को ले आए जो तुम्हारी सल्तनत को सभाल ले"
"जैसी आपकी आज्ञा, कुल गुरु इतना तो मैं समझ गया की आपका उंगली किस तरफ है।"
"कुल गुरु, हमारी बेटी यस्यस्वी आ रही है, उसका क्रोध ही हमें डर हमें डरने पर मजबूर कर देता है।"
"क्या पता उसका क्रोध ही तुम्हारा , कार्य आसान कर दे , फिलहाल साक्षी की मनोदशा पर ध्यान दो, तुम्हारी बेटियां ही तुम्हारा सब कुछ है, और साक्षी की मनोदशा थोड़ी सही हुई है।"
ये सुन कर जयराज खड़ा हो जाता है और साक्षी के पास चल देता है और वो पूरे महल में ढूढने लगता है लेकिन उसको कही भी साक्षी नज़र नही आती।
जय राज गुस्सा मैं उठ कर कहता है ," हम इस लड़की से बहुत परेशान है, पता नहीं इस लड़की को खेलने के लिए पूरा महल क्यों कम पड गया है।"
मान हंसता है और धीरे से कहता है,"काया को बुलाओ और सैनिकों को तैनात करो, जरूर वो सरोवर पर होगी, तो उसके चारों तरफ़ तैनात रहो।"
मोहनजो- दरों और राखीगढ़ी
के बीच गांव ~
काव्या आस्था के जाने के बाद वही खटिया पर बैठ जाती है और जोर जोर से सांस लेने लगती हैं।
उसके सास तेज़ थी, जिससे वो पसीना से तर बतर हो गई थी।
तभी काव्या नज़र उठाती है तो देखती है उसके पास सिद्धार्थ आ रहा था।
और काव्या तेजी से सास ले रही थी और तभी उसके कान में सिद्धार्थ की आवाज़ आती है।
"ये लो जल पियो, शीतल जल है आपको ठंडक मिलेगी।"
काव्या कांपते हुए हाथों से जल पकड़ती है तो सिद्धार्थ उसके सर पर थपकी मारता है और कहता है,"अरे पगली ऐसे कांपते हुए हाथों से जल पकड़ोगी तो गिर जाएगा, रुको हम तुम्हे पिलाते है।"
तभी काव्या के होठों पर गिलास लगाता है और काव्या धीरे से पानी पीने लगती है, तभी उसको अपने कंधे पर सिद्धार्थ का हाथ महसूस होता है और काव्या पूरी तरह कपकपा जाती है।
और काव्या को कापते देख सिद्धार्थ धीरे से उसका शरीर देखता है पूरी तरह से दूध जैसा गोरा बदन, नाजुक उभार।
तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर, बाहर आंगन में आता है और ठंडी ठंडी हवा में पेड़ के पास खटिया पर बैठा देता है।
जब ठंडी ठंडी हवा, और पेड़ से हिलते हुए पत्ते की आवाज़ काव्या को अजीब सा अहसास करा रही थी और काव्या अपना पल्लू सही कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ उसको गुस्सा मैं कहता है, "तुम अपने पल्लू मैं ऐसा घुसी जा रही हो, जैसे मैं तुम्हारे वस्त्र ही खीच रहा हूं।"
"हा तुम घुस जाओ पल्लू में, एक काम करो चोली और ब्लाउज को रस्सी से बांध लो।"
ये कहते हुए सिद्धार्थ अंदर चला जाता है और उसके जाते ही काव्या धीरे से पलट कर सिद्धार्थ को देखती है चुपके से।
फिर धीरे से काव्या पलट कर सिद्धार्थ को चिड़ाती है।
"हा हा तुम चिड़ा लो, तुम्हे बतूंगा मैं।"
काव्या की खिलखिलाती हुई हसी पूरे आंगन में गूंज गई थी।
तभी हर तरफ शोर की आवाज़ आने लगी और देखते ही देखते बस शोर शराबा और अफरा तफरी वही ये सब सुन कर काव्या बहुत डर जाती है।
और डर से कांपने लगती है।
काव्या को ऐसे कांपते देख सिद्धार्थ जल्दी से काव्य को अपने बाहों में कैद कर लेता है और धीरे से कहता है," क्या हुआ हा ऐसे डर क्यों रही हो?"
और काव्या अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहती है,"वो वो वो आ गए , वो वो आ गए।"
"कौन आ गए , काव्या और तुम डरना बंद करो पहले की बात कुछ और थी और अब की बात कुछ और है अब तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है समझी, और बिना डरे बोलो क्या बात है?"
सिद्धार्थ की बाहों में काव्या को अब थोड़ा हौसला मिलता है और वो धीरे से कहती है ,"वो डाकू आए है, और उन डाकू मैं से एक हमारे पीछे है, इसीलिए आप बाहर मत जाइए, शादी के दिन ही आप चले गए और मुझे समाज मैं ना जाने क्या क्या सहना पड़ा और हम नही चाहते आप जाए आप हमे मत छोड़ कर मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को ऐसा डरते और कांपते देख उदास हो जाता है और उसका चहरा देखने लगता है जो पूरी तरह तनु का था, सिद्धार्थ एक टक उसको ही देखता रहता है और एक बार को वो सब कुछ भूल जाता है, और दोनो हाथों से काव्या के गाल पकड़ लेता है और उसके गुलाबी होठों को देखने लगता है।
वही अपने आप को ऐसे निहारते देख काव्या की सास रुक जाती है और उसकी आंखे अपने आप बंद हो जाती है।
तभी उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे दूर जा रहा है तो वो कस कर के सिद्धार्थ को पकड़ लेती है और रोने लगती है।
"नही आप बाहर नही जायेंगे, अगर आज हम दोनो का आखरी दिन है तो साथ में रहे"
काव्या के आसू बह रहे थे और उसने धीरे से कहा," आप मत जाइए, चाहे तो आप हमारे वस्त्र उतार लीजिए , हम आपको नही रोकेंगे आप जो चाहे कर लीजिए, हमारे पल्लू हमारी चोली हम सब उतार देंगे आप मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को गले लगा लेता है और उसकी बेबसी और लाचारी पर खुद उदास हो जाता है, " काव्या तुम्हे इतना डरने की जरूरत नही, तुम्हे रानी बनूंगा ये मेरा वादा है।"
"काव्या तुम्हे अपने वस्त्र उतारने की जरूरत नही, क्या दुनिया की कोई स्त्री ये बोलती तो हम बर्दास्त कर लेते लेकिन मेरी अपनी काव्या ये बोल रही, तुम अपने वस्त्र मत उतारो जब तक तुम हमारे साथ , अच्छा ना महसूस करो तब तक हम तुम्हे नही छुएंगे, ऐसे मजबूरी का फायदा सिद्धार्थ कभी नही उठाता।"
"अब तुम , चलो मेरे साथ बाहर।"
ये कह कर सिद्धार्थ काव्या को अच्छे से पल्लू से ढक देता है और कहता है "मेरी काव्या पर केवल मेरा हक है, तुम्हे हमारे सिवा कोई देखे ये हमको बर्दाश्त नही।"
"तुम दरवाज़ पर खड़ी रहना और हमे देखना हम आपकी नज़रों से दूर नही जायेंगे"
काव्या डर रही थी लेकिन सिद्धार्थ का साथ ने उसको हौसला दिया था, और वो दोनो बाहर आने लगते है।
आस्था की कुटिया~
वही एक कोने बैठा आलोक चुप चाप आंगन में बैठा अपनी तलवार की धार तेज रहा था और धीरे से कहता है।
"पता नही अपने आप को क्या, समझती है जैसे कही की महारानी हो , हमे धमकी दे रही की हम आंगन से बाहर नही आ सकते, क्यों ना आए ये हमारी भी कुटिया है।"
तभी धीरे से आलोक कहता है,"आस्था की चूचियां कितनी सॉफ्ट थी, हाय यार उफ्फ और इन सब से दूर उसकी गांड कितनी प्यारी शेप में थी, आधुनिक जमाने की लड़कियां मैं ये बात कहा।"
एक सेकंड कही आस्था उसी बात की वजह से तो नही रोते हुए हमे बाहर कर दिया घर से।
तभी आलोक को रोने की आवाज़ आती हैं और वो अपनी तलवार निकाल लेता है और धीरे से अपनी कुटिया में अंदर आता है।
और कहता है "आस्था कौन है जिसने तुम्हे रुलाया हमे बताओ, हमारी आस्था को रुलाने वाले के हम सर उड़ा देंगे"
तभी आस्था रोते हुए कहती है," सब खत्म हो गया, वो आ गए अब कोई नही बचेगा।"
आलोक धीरे से आस्था की ऊपर नीचे होती हुई चूचियों को देखता है और कहता है ," हा कुछ नही होगा आस्था, लेकिन तुम थोड़ा रो लो रोने से दुख कम होता है"
तभी वो धीरे धीरे आस्था के करीब आता है और उसके पेट को सहलाता है।
आस्था अपने आसू पोछती है, और धीरे से कहती है "भाई मुझे पता है, तुम बहुत स्नेह करते हो हमसे, हमे आंच नही आने दोगे, लेकिन शायद हमारा साथ यही तक था, हमे पता है सब आप हमे क्यों घूरते हो"
आस्था की सास अटकने लगती है और अब आलोक जो अभी तक मजाक के मूड में था वो थोड़ा सीरियस हो कर आस्था को गले लगा लेता है और अपने हाथ से आस्था को कस लेता है।
"आस्था हम पर विश्वास रखो तुम्हे कुछ नही होगा समझी, एक बार बताओ क्या हुआ"
"वो वो डाकू आए है, और उनका रियासत के मालिक हमारी मदद नही करेंगे इस विसय पर, और वो जब भी आते है सब खत्म कर देते है पूरा गांव तबाह कर देते है।"
वही ये बात सुन कर आलोक का दिमाग खराब हो जाता है और वो आस्था की गांड पर हाथ फेरने लगता है।
जैसे ही आस्था ये देखती है तो वो नज़र उठा कर आलोक को देखती है।
"आपको अगर अपनी बहन की इज्जत ले कर ही खुशी मिलेगी, तो हम खुद अपने वस्त्र उतार देते है, आइए और कर लीजिए , मिटा लीजिए अपनी हवस।"
तभी आलोक उसका मुंह दबा देता है और उसको बाहों में भरता है और कहता है।
"यह नही कमरे में चलो, वहा उतारो और तेल है?"
इतना सुनते ही आस्था जो अब तक रो रही थी वो धीरे से दूर हटती है और पास में पड़ी तलवार उठा लेती है।
आलोक ये देखते ही भाग जाता है और कहता है,"बाद में मना लेंगे ना, आस्था अभी रोना बंद करो।"
आस्था आलोक के पीछे बाहर आती है तो काव्या से टकरा जाती है।
"आह मां, क्या रे बावली हो गई है क्या, उफ्फ मां पूरा सर दर्द करने लगा।", काव्या अपना सर पकड़ते हुए कहती है।
और अब हैरान होने की पारी आस्था की थी और धीरे से कहती है।
"वो वो वो बिल्ली थी, ना काव्या उसी के पीछे भाग रहा थी।"
काव्या धीरे से कहती है ," मैं तो मान लूंगी, लेकिन गांव वालो को क्या बोलेगी?"
तभी आस्था काव्या की बात सुनती है और अपना हुलिया देखती है और जल्दी से काव्या के पीछे छुप जाती है।
"हमे बहुत डर लग रहा है, काव्या क्या होगा , तेरे पति ने तो रियासतदार के बेटे की आंखे फोड़ दी अब वो मदद करने से रहा ऊपर से जंग अलग करेगा, ऊपर से ये डाकू हमारी रक्षा और हमारे मान की रक्षा कौन करेगा।"
काव्या हस्ती है और कहती है "जो तेरी लूटने वाला था वो करेगा।"
तभी काव्या का जवाब सुन आस्था चुप हो जाती है और धीरे से कहती है ," चुप हो जा काव्या"
तभी काव्या धीरे से कहती है "हमे भी बहुत डर लग रहा, हम सिद्धार्थ के साथ ही मारेंगे या जिएंगे"
तभी उन दोनो की निगाहें आलोक और सिद्धार्थ पर जम जाती है।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की नज़र पीपल के पेड़ पर जाती है।
"गांव वालो , हमने कहा था जिस दिन हम आएंगे पूरे गांव को समशान और लाशों का ढेर बना देंगे।"
"कहा मर गए सारे गांव वालो, आओ या सब के सब चूड़ी पहन रखे है, आओ गांव वालो"-
"सभी के घर मै आग लगा दो, फिर जो बच जाएगा उसको ले चलेंगे"-
वही ये सब देख रहे आलोक कहता है," अबे सिद्धार्थ अबे ये बहेंचोद , डाकू है या सेना?"
"अबे इतने सारे ये तो कम से कम 300 तो होंगे"-
आलोक की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ हस्त है ," हा और उनकी सरदारनी को देख जो बीच में है"-
"अबे ये सब इतने खोंखार है, और सरदारनी का देख कर ही डर जाए कोई, क्या करे हम, चले युद्ध करे?", आलोक अपनी तलवार लेते हुए कहता है।
आलोक आगे जाता उसके पहले सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है," रुको जरा गांव वालो को बाहर आने दो, इससे अच्छा मौका कहा मिलेगा?"
इससे पहले की आलोक और सिद्धार्थ कुछ और करते
एका- एक कुछ घुड़सवार आ गए और युद्ध होने लगा।
घुड़सवार का मुखिया पूरा युद्ध कवच पहने थे तो कुछ पैदल सैनिक थे, पैदल सैनिकों की संख्या कम थी, उनकी युद्ध नीति सामने से युद्ध की थी लेकिन उनकी संख्या 50 के आस पास थी।
तभी डाकू की मुखिया जो बीच में थी वो हस्ती है।
"वाह वाह, अब इतनी बड़ी सेना से लड़ने कुछ चूहे आए है, आओ आओ , मारो।"
"गगन हम इन्हें नही हरा सकता", मुखिया की बात सुन कर एक लड़का जो गाववालो की तरफ़ से लड़ रहा था वो बोलता है।
तभी गगन की आवाज़ सुन कर हर किसी का हौसला बढ़ जाता है।
"तो ये हमारा अच्छा अंत होगा, मात भूमि पर मारेंग।"
धीरे धीरे युद्ध भयंकर होने लगा और बीच बीच में कही से कुछ उड़ते तीर सीधा कुछ डाकू को लगते और एक तीर सिद्धार्थ के पैर के पास आ कर गिरता है जैसे मानो कोई कह रहा हो , तुम शांत क्यों हो।
तभी धीरे धीरे सभी सैनिक पकड़ लिए गए, और उनका मुखिया गगन जिसको एक डाकू ने पकड़ रखा था।
वो मुखिया से कहता है," सरदारनी इनकी सेना खत्म क्या करे?"
उनकी सरदारनी कहती है ," हाथ काट दो , फिर बात करते है इससे और बाकी सभी को अभी ज़िंदा रखो , मौत नही बुरी मौत देना है।"
तभी वो डाकू जो तलवार उठाता है और तलवार से गगन पर हमला कर पता उसके पहले ही एक तीर सीधा उसके हाथ मै जा कर लगता है और उसका हाथ भेद देता है।
तभी सबकी नज़र उस तीर को चलाने वाले पर पड़ते है।
काव्या उस इंसान को देख कर सिहर उठती है और उसके आसू बहने लगते है।
वही अब सारे गांव वाले सिद्धार्थ को देखते हैं।
तभी उनका मुखिया , जो डाकू का प्रतिनिधि कर रहा था , और डाकुओं की सरदारनी के जस्ट बगल में था , वो तुरंत सिद्धार्थ को देख कर कहता है ," तू आज तू मरेगा और तेरा साथी भी मरेगा"
तभी सिद्धार्थ की हसी आवाज़ सुन कर वहा खड़ी सभी महिलाएं हैरान हो जाती है, अजब की सुंदरता थी उसमें और निडरता ऐसा गुण था जिसे इस जमाने में सबसे ऊपर माना जाता था।
तभी एक चाकू बहुत तेजी से सिद्धार्थ की तरफ आता है और इसके पहले की सिद्धार्थ को लगता , आलोक अपने हाथो में उस चाकू को पकड़ लेता है और उसका खून की बूंदे मिट्टी पर गिरने लगती है।
तभी सिद्धार्थ अपना धनुष उठा कर आलोक को देता है और सिद्धार्थ को धनुष उठते देख हर कोई वहा खड़ा हैरान हो जाता है और डाकू के बार को डर जाते है क्युकी तीरंदार उस समय सबसे बड़ी कमजोरी होती थी।
तभी सिद्धार्थ और आलोक निहते डाकू के बीच घुसते हुए, उनकी सरदारनी के ठीक सामने खड़ा हो कर गगन के कंधे पर हाथ रखता है।
और उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है और और मुखिया हस्त है और कहता है ," लो बिल्ली खुद जाल मैं आ गई।"
सिद्धार्थ उनकी सरदारनी से कहता है ," यह क्यों आई हो?"
सरदारनी सिद्धार्थ की बात सुन कर हस्ती है और कहती है," तेरे से बियाह करने, करेगा? बड़ा आया क्यों आई हो यह , अरे डाकू हो डकैती करने आई हो, ना जाने कितनी रियासते लूटी है, कितने सूबे हमने तबाह किया है, जहा हम गए वहा केवल मौते ही हुई है"
सिद्धार्थ हसता है और कहता है ," तो डैकती के लिया इतने सारे लोग ले कर , आना युद्ध करना क्यों?"-
अब सिद्धार्थ की बात सुन कर उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है, वही वो काले घोड़े से उतरती है उसका पूरा मुंह ढका हुआ था, पूरे शरीर पर बस कवच था , जिसमें खून के डब्बे थे।
तभी सरदारनी को उतरते देख बाकी सभी डाकू झुक जाते है, और उनके बीच फूस फुसाहट शुरू हो जाती है।
"अरे भाया अब ये मारा"-
"हा अब इसका बचना मुस्किल"-
वही सरदारनी को उतरता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक स्माइल आ जाती है और वो हस्ते हुए कहता है," तुम बहुत खूबसूरत हो"
"तुम्हे क्या लगता है, लूटने के लिया इतने सारे डाकू ना लाए तो क्या केवल कुछ को ले कर मर जाए?"
सरदारनी की बात सुन कर सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," मेरा मतलब ये नही था, मेरा आशय था की यह लूटने आने के लिया,इतने सैनिक लाना, लोगो की इज्जत लूटना और मारना क्यों?"
"ये सब केवल डैकती के लिए ना?"-
उनकी सरदारनी अब झेप जाती है और धीरे से कहती है ,"हा"
"अगर मैं ये सब खुद ही दे दूं तो?"-
अब ये सुन कर उनकी सरदारनी यह तक की गगन और पुरे गांव वाले हिल गया।
और उनकी सरदारनी अभी भी सोच मैं थी, अक्सर वो जहा लूट पात करती, वहा लोग गर्व से लड़ते और जान दे देते और एक लड़का आज खुद ही डकैती की रकम दे रहा।
"बस मेरी कुछ शर्त है।"-
अब सरदारनी कहती है ," कैसी शर्त"-
"डैकती की रकम हर महीने के आखिरी दिन दिया जाएगा , और ये रकम पूरा गांव की तरफ़ से में दूंगा, बस बदले में तुम इस गांव मैं जान नही लोगी, और कुछ जरूरत होगी तो मैं खुद तुम्हारी मदद करूंगा"-
सरदारनी का पूरा दिमाग हिल गया आज तक उसके पूरे जीवन काल में ऐसा नही हुआ था।
सिद्धार्थ हस्त है और कहता है मेरी दूसरी शर्त ,"आज पूरे युद्ध में जितने भी सैनिक तुमने पकड़े है, उन्हे आज़ाद कर दो, और तुम बोलो कितनी रकम चहिए"-
"6 bori अनाज , 4 बोरी गेहूं, और 200 सोने के सिक्के"-
[ note- yudh chal rha hai isiliye dakiti ki rakam kam hai]
सरदारनी की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ एक सोने से भरी पोटली पकड़ा देता है जिससे सरदारनी हैरान हो जाती है।
तभी सिद्धार्थ पलट कर जाने लगता है उसके पहले ही सरदारनी कहती है ," क्या नाम है तेरा, और ये क्यों कर रहा, तू चाहता तो युद्ध कर सकता था?"-
सिद्धार्थ हसने लगता है और धीरे से कहता है," हर जगह युद्ध नही होता"-
तभी सरदारनी घोड़े पर बैठ जाती है और वो एक बार पलट कर देखती है तो सिद्धार्थ उसको ही देख रहा था और सिद्धार्थ धीरे से कहता है," विवाह करने आई थी, बिना विवाह के जा रही , कम से कम दुबारा कहा मिलना है ये बता दो?"-
तभी वो सरदारनी कहती है,- " चलो सभी हमारा काम हो गया"-
देखते ही देखते सभी डाकू चले गया और पूरे गांव वाले यह तक की काव्य और आस्था हर कोई सिद्धार्थ को घूर रहा था।
वही गगन अपने मन मैं सोचता है," डाकू से बचने का ऐसा मार्ग भी है , हमने कभी नहीं सोचा था और आज डाकू से हमारी जान बक्श दी"-
हर किसी के मन मैं तरह तरह के सवाल थे और सबसे ज्यादा तो आलोक, और हर कोई अभी भी शाक मैं था की आज गांव बर्बाद नही हुआ।
वही दूर से राजा जय राज के सैनिक ये सारा मामला देख रहे थे, जिनके साथ एक राजकुमारि थी।
बीच जंगल , सिंध नदी का तट
"आज क्या हुआ , क्यों हुआ और क्या ये होना था?"-
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने
को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
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to be continued..... well well guys update posted .... update 3.5 k words ka hai something... toh tum logo like pelo aur alok aastha ko pale.... update timely rhegaa aur bda rhega...
Nice and superb update....अध्याय - 3 डकैती या समझौता, एक शुरुवात
"ललल लगता है हम गलत वक्त पर आ गया, अच्छा हम जा रहे है किसी और चीज की सब्जी बना लेंगे?"
मोहनजो- दरों - सिंध राज्य की राजधानी
महल~
"महाराज की जय हो, राजकुमारी साक्षी महल में नही है?"
"और महाराजा एक लड़का आज राजकुमारी साक्षी आज एक लड़के से मिली काया ने बताया और उससे मिलने के बाद राजकुमारी की काफी खिली खिली लग रही थी आपको इस सिलसिले में वैद जी बात करना चहिए और राजकुमारी यशस्वी कल सुबह महल में आ रही है, जो राखीगढ़ी रियासत मैं हुए विद्रोह को शांत करने गई थी हम बहुत बुरी हालत में है महाराज "
अब आगे --
"राखीगड़ी रियासत हमारी राजधानी मोहनजो- दरों के सबसे पास और महत्वपूर्ण रियासत है, और ये इस सूबे के पूरा केंद्र बिंदु है, क्युकी सभी नहर यही से जाती है।", महाराज जयराज अपना शरीर टिकाते हुए बोलते है।
और महाराज को ऐसे परेशान होते देख सेनापति मान बोलते हैं - " महाराज हो सकता है, कुछ हो मानू इस रियासत को चला रहा और अपनी मन मानी कर रहा , अगर उसकी जगह गगन होता तो शायद हम कुछ कर लेता, इस जंग के बाद जरूर हम कुछ करेंगे लेकिन अभी हमे मानू की जरूरत है।"
इसके पहले की राजा और सेनापति कुछ और बोलते उन्हे सैनिक की घोषणा करने की आवाज़ आई।
"होसियार! सिंध राज्य के कुल गुरु शक्ति दास प्रधार रहे है।"
जैसे ही कुल गुरु शक्ति दास आते है, राजा जयराज उन्हे आदर के साथ बैठने को बोलता है और इसके पहले की राजा उन्हे कुछ और बोलता कुल गुरु हस्ते हुए बोलते है।
"हा हा! जय राज, हमने तुम्हे पहले ही बोला था, वही होगा जो नियति मैं लिखा होगा , नियति के बाहर कुछ नही होगा।"-
"और नियति वक्त के साथ खुद बदलती है, हवाएं बदल रही है! दिशा बदल रही है, किसी और के कदम इस सल्तनत पर पढ चुके है और वक्त आने पर तुम्हें नतीज़ा लेना पड़ेगा की तुम उस नियति को अपना सकोगे या नहीं"-
कुलगुरु की बात सुन कर राजा जयराज और मान सोच मैं पढ़ जाते है।
"आपका क्या तात्पर्य है, कुल गुरु?"
"तुम्हारी बेटी ही तुम्हारी सल्तनत है ना, तो अपनी बेटी पर ध्यान दो, क्या पता तुम्हारी सारी रियासते सभलवा दे, क्या पता तुम्हारी बेटी का भाग्य एसो को ले आए जो तुम्हारी सल्तनत को सभाल ले"
"जैसी आपकी आज्ञा, कुल गुरु इतना तो मैं समझ गया की आपका उंगली किस तरफ है।"
"कुल गुरु, हमारी बेटी यस्यस्वी आ रही है, उसका क्रोध ही हमें डर हमें डरने पर मजबूर कर देता है।"
"क्या पता उसका क्रोध ही तुम्हारा , कार्य आसान कर दे , फिलहाल साक्षी की मनोदशा पर ध्यान दो, तुम्हारी बेटियां ही तुम्हारा सब कुछ है, और साक्षी की मनोदशा थोड़ी सही हुई है।"
ये सुन कर जयराज खड़ा हो जाता है और साक्षी के पास चल देता है और वो पूरे महल में ढूढने लगता है लेकिन उसको कही भी साक्षी नज़र नही आती।
जय राज गुस्सा मैं उठ कर कहता है ," हम इस लड़की से बहुत परेशान है, पता नहीं इस लड़की को खेलने के लिए पूरा महल क्यों कम पड गया है।"
मान हंसता है और धीरे से कहता है,"काया को बुलाओ और सैनिकों को तैनात करो, जरूर वो सरोवर पर होगी, तो उसके चारों तरफ़ तैनात रहो।"
मोहनजो- दरों और राखीगढ़ी
के बीच गांव ~
काव्या आस्था के जाने के बाद वही खटिया पर बैठ जाती है और जोर जोर से सांस लेने लगती हैं।
उसके सास तेज़ थी, जिससे वो पसीना से तर बतर हो गई थी।
तभी काव्या नज़र उठाती है तो देखती है उसके पास सिद्धार्थ आ रहा था।
और काव्या तेजी से सास ले रही थी और तभी उसके कान में सिद्धार्थ की आवाज़ आती है।
"ये लो जल पियो, शीतल जल है आपको ठंडक मिलेगी।"
काव्या कांपते हुए हाथों से जल पकड़ती है तो सिद्धार्थ उसके सर पर थपकी मारता है और कहता है,"अरे पगली ऐसे कांपते हुए हाथों से जल पकड़ोगी तो गिर जाएगा, रुको हम तुम्हे पिलाते है।"
तभी काव्या के होठों पर गिलास लगाता है और काव्या धीरे से पानी पीने लगती है, तभी उसको अपने कंधे पर सिद्धार्थ का हाथ महसूस होता है और काव्या पूरी तरह कपकपा जाती है।
और काव्या को कापते देख सिद्धार्थ धीरे से उसका शरीर देखता है पूरी तरह से दूध जैसा गोरा बदन, नाजुक उभार।
तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर, बाहर आंगन में आता है और ठंडी ठंडी हवा में पेड़ के पास खटिया पर बैठा देता है।
जब ठंडी ठंडी हवा, और पेड़ से हिलते हुए पत्ते की आवाज़ काव्या को अजीब सा अहसास करा रही थी और काव्या अपना पल्लू सही कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ उसको गुस्सा मैं कहता है, "तुम अपने पल्लू मैं ऐसा घुसी जा रही हो, जैसे मैं तुम्हारे वस्त्र ही खीच रहा हूं।"
"हा तुम घुस जाओ पल्लू में, एक काम करो चोली और ब्लाउज को रस्सी से बांध लो।"
ये कहते हुए सिद्धार्थ अंदर चला जाता है और उसके जाते ही काव्या धीरे से पलट कर सिद्धार्थ को देखती है चुपके से।
फिर धीरे से काव्या पलट कर सिद्धार्थ को चिड़ाती है।
"हा हा तुम चिड़ा लो, तुम्हे बतूंगा मैं।"
काव्या की खिलखिलाती हुई हसी पूरे आंगन में गूंज गई थी।
तभी हर तरफ शोर की आवाज़ आने लगी और देखते ही देखते बस शोर शराबा और अफरा तफरी वही ये सब सुन कर काव्या बहुत डर जाती है।
और डर से कांपने लगती है।
काव्या को ऐसे कांपते देख सिद्धार्थ जल्दी से काव्य को अपने बाहों में कैद कर लेता है और धीरे से कहता है," क्या हुआ हा ऐसे डर क्यों रही हो?"
और काव्या अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहती है,"वो वो वो आ गए , वो वो आ गए।"
"कौन आ गए , काव्या और तुम डरना बंद करो पहले की बात कुछ और थी और अब की बात कुछ और है अब तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है समझी, और बिना डरे बोलो क्या बात है?"
सिद्धार्थ की बाहों में काव्या को अब थोड़ा हौसला मिलता है और वो धीरे से कहती है ,"वो डाकू आए है, और उन डाकू मैं से एक हमारे पीछे है, इसीलिए आप बाहर मत जाइए, शादी के दिन ही आप चले गए और मुझे समाज मैं ना जाने क्या क्या सहना पड़ा और हम नही चाहते आप जाए आप हमे मत छोड़ कर मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को ऐसा डरते और कांपते देख उदास हो जाता है और उसका चहरा देखने लगता है जो पूरी तरह तनु का था, सिद्धार्थ एक टक उसको ही देखता रहता है और एक बार को वो सब कुछ भूल जाता है, और दोनो हाथों से काव्या के गाल पकड़ लेता है और उसके गुलाबी होठों को देखने लगता है।
वही अपने आप को ऐसे निहारते देख काव्या की सास रुक जाती है और उसकी आंखे अपने आप बंद हो जाती है।
तभी उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे दूर जा रहा है तो वो कस कर के सिद्धार्थ को पकड़ लेती है और रोने लगती है।
"नही आप बाहर नही जायेंगे, अगर आज हम दोनो का आखरी दिन है तो साथ में रहे"
काव्या के आसू बह रहे थे और उसने धीरे से कहा," आप मत जाइए, चाहे तो आप हमारे वस्त्र उतार लीजिए , हम आपको नही रोकेंगे आप जो चाहे कर लीजिए, हमारे पल्लू हमारी चोली हम सब उतार देंगे आप मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को गले लगा लेता है और उसकी बेबसी और लाचारी पर खुद उदास हो जाता है, " काव्या तुम्हे इतना डरने की जरूरत नही, तुम्हे रानी बनूंगा ये मेरा वादा है।"
"काव्या तुम्हे अपने वस्त्र उतारने की जरूरत नही, क्या दुनिया की कोई स्त्री ये बोलती तो हम बर्दास्त कर लेते लेकिन मेरी अपनी काव्या ये बोल रही, तुम अपने वस्त्र मत उतारो जब तक तुम हमारे साथ , अच्छा ना महसूस करो तब तक हम तुम्हे नही छुएंगे, ऐसे मजबूरी का फायदा सिद्धार्थ कभी नही उठाता।"
"अब तुम , चलो मेरे साथ बाहर।"
ये कह कर सिद्धार्थ काव्या को अच्छे से पल्लू से ढक देता है और कहता है "मेरी काव्या पर केवल मेरा हक है, तुम्हे हमारे सिवा कोई देखे ये हमको बर्दाश्त नही।"
"तुम दरवाज़ पर खड़ी रहना और हमे देखना हम आपकी नज़रों से दूर नही जायेंगे"
काव्या डर रही थी लेकिन सिद्धार्थ का साथ ने उसको हौसला दिया था, और वो दोनो बाहर आने लगते है।
आस्था की कुटिया~
वही एक कोने बैठा आलोक चुप चाप आंगन में बैठा अपनी तलवार की धार तेज रहा था और धीरे से कहता है।
"पता नही अपने आप को क्या, समझती है जैसे कही की महारानी हो , हमे धमकी दे रही की हम आंगन से बाहर नही आ सकते, क्यों ना आए ये हमारी भी कुटिया है।"
तभी धीरे से आलोक कहता है,"आस्था की चूचियां कितनी सॉफ्ट थी, हाय यार उफ्फ और इन सब से दूर उसकी गांड कितनी प्यारी शेप में थी, आधुनिक जमाने की लड़कियां मैं ये बात कहा।"
एक सेकंड कही आस्था उसी बात की वजह से तो नही रोते हुए हमे बाहर कर दिया घर से।
तभी आलोक को रोने की आवाज़ आती हैं और वो अपनी तलवार निकाल लेता है और धीरे से अपनी कुटिया में अंदर आता है।
और कहता है "आस्था कौन है जिसने तुम्हे रुलाया हमे बताओ, हमारी आस्था को रुलाने वाले के हम सर उड़ा देंगे"
तभी आस्था रोते हुए कहती है," सब खत्म हो गया, वो आ गए अब कोई नही बचेगा।"
आलोक धीरे से आस्था की ऊपर नीचे होती हुई चूचियों को देखता है और कहता है ," हा कुछ नही होगा आस्था, लेकिन तुम थोड़ा रो लो रोने से दुख कम होता है"
तभी वो धीरे धीरे आस्था के करीब आता है और उसके पेट को सहलाता है।
आस्था अपने आसू पोछती है, और धीरे से कहती है "भाई मुझे पता है, तुम बहुत स्नेह करते हो हमसे, हमे आंच नही आने दोगे, लेकिन शायद हमारा साथ यही तक था, हमे पता है सब आप हमे क्यों घूरते हो"
आस्था की सास अटकने लगती है और अब आलोक जो अभी तक मजाक के मूड में था वो थोड़ा सीरियस हो कर आस्था को गले लगा लेता है और अपने हाथ से आस्था को कस लेता है।
"आस्था हम पर विश्वास रखो तुम्हे कुछ नही होगा समझी, एक बार बताओ क्या हुआ"
"वो वो डाकू आए है, और उनका रियासत के मालिक हमारी मदद नही करेंगे इस विसय पर, और वो जब भी आते है सब खत्म कर देते है पूरा गांव तबाह कर देते है।"
वही ये बात सुन कर आलोक का दिमाग खराब हो जाता है और वो आस्था की गांड पर हाथ फेरने लगता है।
जैसे ही आस्था ये देखती है तो वो नज़र उठा कर आलोक को देखती है।
"आपको अगर अपनी बहन की इज्जत ले कर ही खुशी मिलेगी, तो हम खुद अपने वस्त्र उतार देते है, आइए और कर लीजिए , मिटा लीजिए अपनी हवस।"
तभी आलोक उसका मुंह दबा देता है और उसको बाहों में भरता है और कहता है।
"यह नही कमरे में चलो, वहा उतारो और तेल है?"
इतना सुनते ही आस्था जो अब तक रो रही थी वो धीरे से दूर हटती है और पास में पड़ी तलवार उठा लेती है।
आलोक ये देखते ही भाग जाता है और कहता है,"बाद में मना लेंगे ना, आस्था अभी रोना बंद करो।"
आस्था आलोक के पीछे बाहर आती है तो काव्या से टकरा जाती है।
"आह मां, क्या रे बावली हो गई है क्या, उफ्फ मां पूरा सर दर्द करने लगा।", काव्या अपना सर पकड़ते हुए कहती है।
और अब हैरान होने की पारी आस्था की थी और धीरे से कहती है।
"वो वो वो बिल्ली थी, ना काव्या उसी के पीछे भाग रहा थी।"
काव्या धीरे से कहती है ," मैं तो मान लूंगी, लेकिन गांव वालो को क्या बोलेगी?"
तभी आस्था काव्या की बात सुनती है और अपना हुलिया देखती है और जल्दी से काव्या के पीछे छुप जाती है।
"हमे बहुत डर लग रहा है, काव्या क्या होगा , तेरे पति ने तो रियासतदार के बेटे की आंखे फोड़ दी अब वो मदद करने से रहा ऊपर से जंग अलग करेगा, ऊपर से ये डाकू हमारी रक्षा और हमारे मान की रक्षा कौन करेगा।"
काव्या हस्ती है और कहती है "जो तेरी लूटने वाला था वो करेगा।"
तभी काव्या का जवाब सुन आस्था चुप हो जाती है और धीरे से कहती है ," चुप हो जा काव्या"
तभी काव्या धीरे से कहती है "हमे भी बहुत डर लग रहा, हम सिद्धार्थ के साथ ही मारेंगे या जिएंगे"
तभी उन दोनो की निगाहें आलोक और सिद्धार्थ पर जम जाती है।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की नज़र पीपल के पेड़ पर जाती है।
"गांव वालो , हमने कहा था जिस दिन हम आएंगे पूरे गांव को समशान और लाशों का ढेर बना देंगे।"
"कहा मर गए सारे गांव वालो, आओ या सब के सब चूड़ी पहन रखे है, आओ गांव वालो"-
"सभी के घर मै आग लगा दो, फिर जो बच जाएगा उसको ले चलेंगे"-
वही ये सब देख रहे आलोक कहता है," अबे सिद्धार्थ अबे ये बहेंचोद , डाकू है या सेना?"
"अबे इतने सारे ये तो कम से कम 300 तो होंगे"-
आलोक की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ हस्त है ," हा और उनकी सरदारनी को देख जो बीच में है"-
"अबे ये सब इतने खोंखार है, और सरदारनी का देख कर ही डर जाए कोई, क्या करे हम, चले युद्ध करे?", आलोक अपनी तलवार लेते हुए कहता है।
आलोक आगे जाता उसके पहले सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है," रुको जरा गांव वालो को बाहर आने दो, इससे अच्छा मौका कहा मिलेगा?"
इससे पहले की आलोक और सिद्धार्थ कुछ और करते
एका- एक कुछ घुड़सवार आ गए और युद्ध होने लगा।
घुड़सवार का मुखिया पूरा युद्ध कवच पहने थे तो कुछ पैदल सैनिक थे, पैदल सैनिकों की संख्या कम थी, उनकी युद्ध नीति सामने से युद्ध की थी लेकिन उनकी संख्या 50 के आस पास थी।
तभी डाकू की मुखिया जो बीच में थी वो हस्ती है।
"वाह वाह, अब इतनी बड़ी सेना से लड़ने कुछ चूहे आए है, आओ आओ , मारो।"
"गगन हम इन्हें नही हरा सकता", मुखिया की बात सुन कर एक लड़का जो गाववालो की तरफ़ से लड़ रहा था वो बोलता है।
तभी गगन की आवाज़ सुन कर हर किसी का हौसला बढ़ जाता है।
"तो ये हमारा अच्छा अंत होगा, मात भूमि पर मारेंग।"
धीरे धीरे युद्ध भयंकर होने लगा और बीच बीच में कही से कुछ उड़ते तीर सीधा कुछ डाकू को लगते और एक तीर सिद्धार्थ के पैर के पास आ कर गिरता है जैसे मानो कोई कह रहा हो , तुम शांत क्यों हो।
तभी धीरे धीरे सभी सैनिक पकड़ लिए गए, और उनका मुखिया गगन जिसको एक डाकू ने पकड़ रखा था।
वो मुखिया से कहता है," सरदारनी इनकी सेना खत्म क्या करे?"
उनकी सरदारनी कहती है ," हाथ काट दो , फिर बात करते है इससे और बाकी सभी को अभी ज़िंदा रखो , मौत नही बुरी मौत देना है।"
तभी वो डाकू जो तलवार उठाता है और तलवार से गगन पर हमला कर पता उसके पहले ही एक तीर सीधा उसके हाथ मै जा कर लगता है और उसका हाथ भेद देता है।
तभी सबकी नज़र उस तीर को चलाने वाले पर पड़ते है।
काव्या उस इंसान को देख कर सिहर उठती है और उसके आसू बहने लगते है।
वही अब सारे गांव वाले सिद्धार्थ को देखते हैं।
तभी उनका मुखिया , जो डाकू का प्रतिनिधि कर रहा था , और डाकुओं की सरदारनी के जस्ट बगल में था , वो तुरंत सिद्धार्थ को देख कर कहता है ," तू आज तू मरेगा और तेरा साथी भी मरेगा"
तभी सिद्धार्थ की हसी आवाज़ सुन कर वहा खड़ी सभी महिलाएं हैरान हो जाती है, अजब की सुंदरता थी उसमें और निडरता ऐसा गुण था जिसे इस जमाने में सबसे ऊपर माना जाता था।
तभी एक चाकू बहुत तेजी से सिद्धार्थ की तरफ आता है और इसके पहले की सिद्धार्थ को लगता , आलोक अपने हाथो में उस चाकू को पकड़ लेता है और उसका खून की बूंदे मिट्टी पर गिरने लगती है।
तभी सिद्धार्थ अपना धनुष उठा कर आलोक को देता है और सिद्धार्थ को धनुष उठते देख हर कोई वहा खड़ा हैरान हो जाता है और डाकू के बार को डर जाते है क्युकी तीरंदार उस समय सबसे बड़ी कमजोरी होती थी।
तभी सिद्धार्थ और आलोक निहते डाकू के बीच घुसते हुए, उनकी सरदारनी के ठीक सामने खड़ा हो कर गगन के कंधे पर हाथ रखता है।
और उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है और और मुखिया हस्त है और कहता है ," लो बिल्ली खुद जाल मैं आ गई।"
सिद्धार्थ उनकी सरदारनी से कहता है ," यह क्यों आई हो?"
सरदारनी सिद्धार्थ की बात सुन कर हस्ती है और कहती है," तेरे से बियाह करने, करेगा? बड़ा आया क्यों आई हो यह , अरे डाकू हो डकैती करने आई हो, ना जाने कितनी रियासते लूटी है, कितने सूबे हमने तबाह किया है, जहा हम गए वहा केवल मौते ही हुई है"
सिद्धार्थ हसता है और कहता है ," तो डैकती के लिया इतने सारे लोग ले कर , आना युद्ध करना क्यों?"-
अब सिद्धार्थ की बात सुन कर उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है, वही वो काले घोड़े से उतरती है उसका पूरा मुंह ढका हुआ था, पूरे शरीर पर बस कवच था , जिसमें खून के डब्बे थे।
तभी सरदारनी को उतरते देख बाकी सभी डाकू झुक जाते है, और उनके बीच फूस फुसाहट शुरू हो जाती है।
"अरे भाया अब ये मारा"-
"हा अब इसका बचना मुस्किल"-
वही सरदारनी को उतरता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक स्माइल आ जाती है और वो हस्ते हुए कहता है," तुम बहुत खूबसूरत हो"
"तुम्हे क्या लगता है, लूटने के लिया इतने सारे डाकू ना लाए तो क्या केवल कुछ को ले कर मर जाए?"
सरदारनी की बात सुन कर सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," मेरा मतलब ये नही था, मेरा आशय था की यह लूटने आने के लिया,इतने सैनिक लाना, लोगो की इज्जत लूटना और मारना क्यों?"
"ये सब केवल डैकती के लिए ना?"-
उनकी सरदारनी अब झेप जाती है और धीरे से कहती है ,"हा"
"अगर मैं ये सब खुद ही दे दूं तो?"-
अब ये सुन कर उनकी सरदारनी यह तक की गगन और पुरे गांव वाले हिल गया।
और उनकी सरदारनी अभी भी सोच मैं थी, अक्सर वो जहा लूट पात करती, वहा लोग गर्व से लड़ते और जान दे देते और एक लड़का आज खुद ही डकैती की रकम दे रहा।
"बस मेरी कुछ शर्त है।"-
अब सरदारनी कहती है ," कैसी शर्त"-
"डैकती की रकम हर महीने के आखिरी दिन दिया जाएगा , और ये रकम पूरा गांव की तरफ़ से में दूंगा, बस बदले में तुम इस गांव मैं जान नही लोगी, और कुछ जरूरत होगी तो मैं खुद तुम्हारी मदद करूंगा"-
सरदारनी का पूरा दिमाग हिल गया आज तक उसके पूरे जीवन काल में ऐसा नही हुआ था।
सिद्धार्थ हस्त है और कहता है मेरी दूसरी शर्त ,"आज पूरे युद्ध में जितने भी सैनिक तुमने पकड़े है, उन्हे आज़ाद कर दो, और तुम बोलो कितनी रकम चहिए"-
"6 bori अनाज , 4 बोरी गेहूं, और 200 सोने के सिक्के"-
[ note- yudh chal rha hai isiliye dakiti ki rakam kam hai]
सरदारनी की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ एक सोने से भरी पोटली पकड़ा देता है जिससे सरदारनी हैरान हो जाती है।
तभी सिद्धार्थ पलट कर जाने लगता है उसके पहले ही सरदारनी कहती है ," क्या नाम है तेरा, और ये क्यों कर रहा, तू चाहता तो युद्ध कर सकता था?"-
सिद्धार्थ हसने लगता है और धीरे से कहता है," हर जगह युद्ध नही होता"-
तभी सरदारनी घोड़े पर बैठ जाती है और वो एक बार पलट कर देखती है तो सिद्धार्थ उसको ही देख रहा था और सिद्धार्थ धीरे से कहता है," विवाह करने आई थी, बिना विवाह के जा रही , कम से कम दुबारा कहा मिलना है ये बता दो?"-
तभी वो सरदारनी कहती है,- " चलो सभी हमारा काम हो गया"-
देखते ही देखते सभी डाकू चले गया और पूरे गांव वाले यह तक की काव्य और आस्था हर कोई सिद्धार्थ को घूर रहा था।
वही गगन अपने मन मैं सोचता है," डाकू से बचने का ऐसा मार्ग भी है , हमने कभी नहीं सोचा था और आज डाकू से हमारी जान बक्श दी"-
हर किसी के मन मैं तरह तरह के सवाल थे और सबसे ज्यादा तो आलोक, और हर कोई अभी भी शाक मैं था की आज गांव बर्बाद नही हुआ।
वही दूर से राजा जय राज के सैनिक ये सारा मामला देख रहे थे, जिनके साथ एक राजकुमारि थी।
बीच जंगल , सिंध नदी का तट
"आज क्या हुआ , क्यों हुआ और क्या ये होना था?"-
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने
को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
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to be continued..... well well guys update posted .... update 3.5 k words ka hai something... toh tum logo like pelo aur alok aastha ko pale.... update timely rhegaa aur bda rhega...
but 13 din me 3rd update4 din se update
Bahut hi badhiya update diya hai Ghost Rider ❣️ bhai....अध्याय - 3 डकैती या समझौता, एक शुरुवात
"ललल लगता है हम गलत वक्त पर आ गया, अच्छा हम जा रहे है किसी और चीज की सब्जी बना लेंगे?"
मोहनजो- दरों - सिंध राज्य की राजधानी
महल~
"महाराज की जय हो, राजकुमारी साक्षी महल में नही है?"
"और महाराजा एक लड़का आज राजकुमारी साक्षी आज एक लड़के से मिली काया ने बताया और उससे मिलने के बाद राजकुमारी की काफी खिली खिली लग रही थी आपको इस सिलसिले में वैद जी बात करना चहिए और राजकुमारी यशस्वी कल सुबह महल में आ रही है, जो राखीगढ़ी रियासत मैं हुए विद्रोह को शांत करने गई थी हम बहुत बुरी हालत में है महाराज "
अब आगे --
"राखीगड़ी रियासत हमारी राजधानी मोहनजो- दरों के सबसे पास और महत्वपूर्ण रियासत है, और ये इस सूबे के पूरा केंद्र बिंदु है, क्युकी सभी नहर यही से जाती है।", महाराज जयराज अपना शरीर टिकाते हुए बोलते है।
और महाराज को ऐसे परेशान होते देख सेनापति मान बोलते हैं - " महाराज हो सकता है, कुछ हो मानू इस रियासत को चला रहा और अपनी मन मानी कर रहा , अगर उसकी जगह गगन होता तो शायद हम कुछ कर लेता, इस जंग के बाद जरूर हम कुछ करेंगे लेकिन अभी हमे मानू की जरूरत है।"
इसके पहले की राजा और सेनापति कुछ और बोलते उन्हे सैनिक की घोषणा करने की आवाज़ आई।
"होसियार! सिंध राज्य के कुल गुरु शक्ति दास प्रधार रहे है।"
जैसे ही कुल गुरु शक्ति दास आते है, राजा जयराज उन्हे आदर के साथ बैठने को बोलता है और इसके पहले की राजा उन्हे कुछ और बोलता कुल गुरु हस्ते हुए बोलते है।
"हा हा! जय राज, हमने तुम्हे पहले ही बोला था, वही होगा जो नियति मैं लिखा होगा , नियति के बाहर कुछ नही होगा।"-
"और नियति वक्त के साथ खुद बदलती है, हवाएं बदल रही है! दिशा बदल रही है, किसी और के कदम इस सल्तनत पर पढ चुके है और वक्त आने पर तुम्हें नतीज़ा लेना पड़ेगा की तुम उस नियति को अपना सकोगे या नहीं"-
कुलगुरु की बात सुन कर राजा जयराज और मान सोच मैं पढ़ जाते है।
"आपका क्या तात्पर्य है, कुल गुरु?"
"तुम्हारी बेटी ही तुम्हारी सल्तनत है ना, तो अपनी बेटी पर ध्यान दो, क्या पता तुम्हारी सारी रियासते सभलवा दे, क्या पता तुम्हारी बेटी का भाग्य एसो को ले आए जो तुम्हारी सल्तनत को सभाल ले"
"जैसी आपकी आज्ञा, कुल गुरु इतना तो मैं समझ गया की आपका उंगली किस तरफ है।"
"कुल गुरु, हमारी बेटी यस्यस्वी आ रही है, उसका क्रोध ही हमें डर हमें डरने पर मजबूर कर देता है।"
"क्या पता उसका क्रोध ही तुम्हारा , कार्य आसान कर दे , फिलहाल साक्षी की मनोदशा पर ध्यान दो, तुम्हारी बेटियां ही तुम्हारा सब कुछ है, और साक्षी की मनोदशा थोड़ी सही हुई है।"
ये सुन कर जयराज खड़ा हो जाता है और साक्षी के पास चल देता है और वो पूरे महल में ढूढने लगता है लेकिन उसको कही भी साक्षी नज़र नही आती।
जय राज गुस्सा मैं उठ कर कहता है ," हम इस लड़की से बहुत परेशान है, पता नहीं इस लड़की को खेलने के लिए पूरा महल क्यों कम पड गया है।"
मान हंसता है और धीरे से कहता है,"काया को बुलाओ और सैनिकों को तैनात करो, जरूर वो सरोवर पर होगी, तो उसके चारों तरफ़ तैनात रहो।"
मोहनजो- दरों और राखीगढ़ी
के बीच गांव ~
काव्या आस्था के जाने के बाद वही खटिया पर बैठ जाती है और जोर जोर से सांस लेने लगती हैं।
उसके सास तेज़ थी, जिससे वो पसीना से तर बतर हो गई थी।
तभी काव्या नज़र उठाती है तो देखती है उसके पास सिद्धार्थ आ रहा था।
और काव्या तेजी से सास ले रही थी और तभी उसके कान में सिद्धार्थ की आवाज़ आती है।
"ये लो जल पियो, शीतल जल है आपको ठंडक मिलेगी।"
काव्या कांपते हुए हाथों से जल पकड़ती है तो सिद्धार्थ उसके सर पर थपकी मारता है और कहता है,"अरे पगली ऐसे कांपते हुए हाथों से जल पकड़ोगी तो गिर जाएगा, रुको हम तुम्हे पिलाते है।"
तभी काव्या के होठों पर गिलास लगाता है और काव्या धीरे से पानी पीने लगती है, तभी उसको अपने कंधे पर सिद्धार्थ का हाथ महसूस होता है और काव्या पूरी तरह कपकपा जाती है।
और काव्या को कापते देख सिद्धार्थ धीरे से उसका शरीर देखता है पूरी तरह से दूध जैसा गोरा बदन, नाजुक उभार।
तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर, बाहर आंगन में आता है और ठंडी ठंडी हवा में पेड़ के पास खटिया पर बैठा देता है।
जब ठंडी ठंडी हवा, और पेड़ से हिलते हुए पत्ते की आवाज़ काव्या को अजीब सा अहसास करा रही थी और काव्या अपना पल्लू सही कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ उसको गुस्सा मैं कहता है, "तुम अपने पल्लू मैं ऐसा घुसी जा रही हो, जैसे मैं तुम्हारे वस्त्र ही खीच रहा हूं।"
"हा तुम घुस जाओ पल्लू में, एक काम करो चोली और ब्लाउज को रस्सी से बांध लो।"
ये कहते हुए सिद्धार्थ अंदर चला जाता है और उसके जाते ही काव्या धीरे से पलट कर सिद्धार्थ को देखती है चुपके से।
फिर धीरे से काव्या पलट कर सिद्धार्थ को चिड़ाती है।
"हा हा तुम चिड़ा लो, तुम्हे बतूंगा मैं।"
काव्या की खिलखिलाती हुई हसी पूरे आंगन में गूंज गई थी।
तभी हर तरफ शोर की आवाज़ आने लगी और देखते ही देखते बस शोर शराबा और अफरा तफरी वही ये सब सुन कर काव्या बहुत डर जाती है।
और डर से कांपने लगती है।
काव्या को ऐसे कांपते देख सिद्धार्थ जल्दी से काव्य को अपने बाहों में कैद कर लेता है और धीरे से कहता है," क्या हुआ हा ऐसे डर क्यों रही हो?"
और काव्या अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहती है,"वो वो वो आ गए , वो वो आ गए।"
"कौन आ गए , काव्या और तुम डरना बंद करो पहले की बात कुछ और थी और अब की बात कुछ और है अब तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है समझी, और बिना डरे बोलो क्या बात है?"
सिद्धार्थ की बाहों में काव्या को अब थोड़ा हौसला मिलता है और वो धीरे से कहती है ,"वो डाकू आए है, और उन डाकू मैं से एक हमारे पीछे है, इसीलिए आप बाहर मत जाइए, शादी के दिन ही आप चले गए और मुझे समाज मैं ना जाने क्या क्या सहना पड़ा और हम नही चाहते आप जाए आप हमे मत छोड़ कर मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को ऐसा डरते और कांपते देख उदास हो जाता है और उसका चहरा देखने लगता है जो पूरी तरह तनु का था, सिद्धार्थ एक टक उसको ही देखता रहता है और एक बार को वो सब कुछ भूल जाता है, और दोनो हाथों से काव्या के गाल पकड़ लेता है और उसके गुलाबी होठों को देखने लगता है।
वही अपने आप को ऐसे निहारते देख काव्या की सास रुक जाती है और उसकी आंखे अपने आप बंद हो जाती है।
तभी उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे दूर जा रहा है तो वो कस कर के सिद्धार्थ को पकड़ लेती है और रोने लगती है।
"नही आप बाहर नही जायेंगे, अगर आज हम दोनो का आखरी दिन है तो साथ में रहे"
काव्या के आसू बह रहे थे और उसने धीरे से कहा," आप मत जाइए, चाहे तो आप हमारे वस्त्र उतार लीजिए , हम आपको नही रोकेंगे आप जो चाहे कर लीजिए, हमारे पल्लू हमारी चोली हम सब उतार देंगे आप मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को गले लगा लेता है और उसकी बेबसी और लाचारी पर खुद उदास हो जाता है, " काव्या तुम्हे इतना डरने की जरूरत नही, तुम्हे रानी बनूंगा ये मेरा वादा है।"
"काव्या तुम्हे अपने वस्त्र उतारने की जरूरत नही, क्या दुनिया की कोई स्त्री ये बोलती तो हम बर्दास्त कर लेते लेकिन मेरी अपनी काव्या ये बोल रही, तुम अपने वस्त्र मत उतारो जब तक तुम हमारे साथ , अच्छा ना महसूस करो तब तक हम तुम्हे नही छुएंगे, ऐसे मजबूरी का फायदा सिद्धार्थ कभी नही उठाता।"
"अब तुम , चलो मेरे साथ बाहर।"
ये कह कर सिद्धार्थ काव्या को अच्छे से पल्लू से ढक देता है और कहता है "मेरी काव्या पर केवल मेरा हक है, तुम्हे हमारे सिवा कोई देखे ये हमको बर्दाश्त नही।"
"तुम दरवाज़ पर खड़ी रहना और हमे देखना हम आपकी नज़रों से दूर नही जायेंगे"
काव्या डर रही थी लेकिन सिद्धार्थ का साथ ने उसको हौसला दिया था, और वो दोनो बाहर आने लगते है।
आस्था की कुटिया~
वही एक कोने बैठा आलोक चुप चाप आंगन में बैठा अपनी तलवार की धार तेज रहा था और धीरे से कहता है।
"पता नही अपने आप को क्या, समझती है जैसे कही की महारानी हो , हमे धमकी दे रही की हम आंगन से बाहर नही आ सकते, क्यों ना आए ये हमारी भी कुटिया है।"
तभी धीरे से आलोक कहता है,"आस्था की चूचियां कितनी सॉफ्ट थी, हाय यार उफ्फ और इन सब से दूर उसकी गांड कितनी प्यारी शेप में थी, आधुनिक जमाने की लड़कियां मैं ये बात कहा।"
एक सेकंड कही आस्था उसी बात की वजह से तो नही रोते हुए हमे बाहर कर दिया घर से।
तभी आलोक को रोने की आवाज़ आती हैं और वो अपनी तलवार निकाल लेता है और धीरे से अपनी कुटिया में अंदर आता है।
और कहता है "आस्था कौन है जिसने तुम्हे रुलाया हमे बताओ, हमारी आस्था को रुलाने वाले के हम सर उड़ा देंगे"
तभी आस्था रोते हुए कहती है," सब खत्म हो गया, वो आ गए अब कोई नही बचेगा।"
आलोक धीरे से आस्था की ऊपर नीचे होती हुई चूचियों को देखता है और कहता है ," हा कुछ नही होगा आस्था, लेकिन तुम थोड़ा रो लो रोने से दुख कम होता है"
तभी वो धीरे धीरे आस्था के करीब आता है और उसके पेट को सहलाता है।
आस्था अपने आसू पोछती है, और धीरे से कहती है "भाई मुझे पता है, तुम बहुत स्नेह करते हो हमसे, हमे आंच नही आने दोगे, लेकिन शायद हमारा साथ यही तक था, हमे पता है सब आप हमे क्यों घूरते हो"
आस्था की सास अटकने लगती है और अब आलोक जो अभी तक मजाक के मूड में था वो थोड़ा सीरियस हो कर आस्था को गले लगा लेता है और अपने हाथ से आस्था को कस लेता है।
"आस्था हम पर विश्वास रखो तुम्हे कुछ नही होगा समझी, एक बार बताओ क्या हुआ"
"वो वो डाकू आए है, और उनका रियासत के मालिक हमारी मदद नही करेंगे इस विसय पर, और वो जब भी आते है सब खत्म कर देते है पूरा गांव तबाह कर देते है।"
वही ये बात सुन कर आलोक का दिमाग खराब हो जाता है और वो आस्था की गांड पर हाथ फेरने लगता है।
जैसे ही आस्था ये देखती है तो वो नज़र उठा कर आलोक को देखती है।
"आपको अगर अपनी बहन की इज्जत ले कर ही खुशी मिलेगी, तो हम खुद अपने वस्त्र उतार देते है, आइए और कर लीजिए , मिटा लीजिए अपनी हवस।"
तभी आलोक उसका मुंह दबा देता है और उसको बाहों में भरता है और कहता है।
"यह नही कमरे में चलो, वहा उतारो और तेल है?"
इतना सुनते ही आस्था जो अब तक रो रही थी वो धीरे से दूर हटती है और पास में पड़ी तलवार उठा लेती है।
आलोक ये देखते ही भाग जाता है और कहता है,"बाद में मना लेंगे ना, आस्था अभी रोना बंद करो।"
आस्था आलोक के पीछे बाहर आती है तो काव्या से टकरा जाती है।
"आह मां, क्या रे बावली हो गई है क्या, उफ्फ मां पूरा सर दर्द करने लगा।", काव्या अपना सर पकड़ते हुए कहती है।
और अब हैरान होने की पारी आस्था की थी और धीरे से कहती है।
"वो वो वो बिल्ली थी, ना काव्या उसी के पीछे भाग रहा थी।"
काव्या धीरे से कहती है ," मैं तो मान लूंगी, लेकिन गांव वालो को क्या बोलेगी?"
तभी आस्था काव्या की बात सुनती है और अपना हुलिया देखती है और जल्दी से काव्या के पीछे छुप जाती है।
"हमे बहुत डर लग रहा है, काव्या क्या होगा , तेरे पति ने तो रियासतदार के बेटे की आंखे फोड़ दी अब वो मदद करने से रहा ऊपर से जंग अलग करेगा, ऊपर से ये डाकू हमारी रक्षा और हमारे मान की रक्षा कौन करेगा।"
काव्या हस्ती है और कहती है "जो तेरी लूटने वाला था वो करेगा।"
तभी काव्या का जवाब सुन आस्था चुप हो जाती है और धीरे से कहती है ," चुप हो जा काव्या"
तभी काव्या धीरे से कहती है "हमे भी बहुत डर लग रहा, हम सिद्धार्थ के साथ ही मारेंगे या जिएंगे"
तभी उन दोनो की निगाहें आलोक और सिद्धार्थ पर जम जाती है।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की नज़र पीपल के पेड़ पर जाती है।
"गांव वालो , हमने कहा था जिस दिन हम आएंगे पूरे गांव को समशान और लाशों का ढेर बना देंगे।"
"कहा मर गए सारे गांव वालो, आओ या सब के सब चूड़ी पहन रखे है, आओ गांव वालो"-
"सभी के घर मै आग लगा दो, फिर जो बच जाएगा उसको ले चलेंगे"-
वही ये सब देख रहे आलोक कहता है," अबे सिद्धार्थ अबे ये बहेंचोद , डाकू है या सेना?"
"अबे इतने सारे ये तो कम से कम 300 तो होंगे"-
आलोक की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ हस्त है ," हा और उनकी सरदारनी को देख जो बीच में है"-
"अबे ये सब इतने खोंखार है, और सरदारनी का देख कर ही डर जाए कोई, क्या करे हम, चले युद्ध करे?", आलोक अपनी तलवार लेते हुए कहता है।
आलोक आगे जाता उसके पहले सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है," रुको जरा गांव वालो को बाहर आने दो, इससे अच्छा मौका कहा मिलेगा?"
इससे पहले की आलोक और सिद्धार्थ कुछ और करते
एका- एक कुछ घुड़सवार आ गए और युद्ध होने लगा।
घुड़सवार का मुखिया पूरा युद्ध कवच पहने थे तो कुछ पैदल सैनिक थे, पैदल सैनिकों की संख्या कम थी, उनकी युद्ध नीति सामने से युद्ध की थी लेकिन उनकी संख्या 50 के आस पास थी।
तभी डाकू की मुखिया जो बीच में थी वो हस्ती है।
"वाह वाह, अब इतनी बड़ी सेना से लड़ने कुछ चूहे आए है, आओ आओ , मारो।"
"गगन हम इन्हें नही हरा सकता", मुखिया की बात सुन कर एक लड़का जो गाववालो की तरफ़ से लड़ रहा था वो बोलता है।
तभी गगन की आवाज़ सुन कर हर किसी का हौसला बढ़ जाता है।
"तो ये हमारा अच्छा अंत होगा, मात भूमि पर मारेंग।"
धीरे धीरे युद्ध भयंकर होने लगा और बीच बीच में कही से कुछ उड़ते तीर सीधा कुछ डाकू को लगते और एक तीर सिद्धार्थ के पैर के पास आ कर गिरता है जैसे मानो कोई कह रहा हो , तुम शांत क्यों हो।
तभी धीरे धीरे सभी सैनिक पकड़ लिए गए, और उनका मुखिया गगन जिसको एक डाकू ने पकड़ रखा था।
वो मुखिया से कहता है," सरदारनी इनकी सेना खत्म क्या करे?"
उनकी सरदारनी कहती है ," हाथ काट दो , फिर बात करते है इससे और बाकी सभी को अभी ज़िंदा रखो , मौत नही बुरी मौत देना है।"
तभी वो डाकू जो तलवार उठाता है और तलवार से गगन पर हमला कर पता उसके पहले ही एक तीर सीधा उसके हाथ मै जा कर लगता है और उसका हाथ भेद देता है।
तभी सबकी नज़र उस तीर को चलाने वाले पर पड़ते है।
काव्या उस इंसान को देख कर सिहर उठती है और उसके आसू बहने लगते है।
वही अब सारे गांव वाले सिद्धार्थ को देखते हैं।
तभी उनका मुखिया , जो डाकू का प्रतिनिधि कर रहा था , और डाकुओं की सरदारनी के जस्ट बगल में था , वो तुरंत सिद्धार्थ को देख कर कहता है ," तू आज तू मरेगा और तेरा साथी भी मरेगा"
तभी सिद्धार्थ की हसी आवाज़ सुन कर वहा खड़ी सभी महिलाएं हैरान हो जाती है, अजब की सुंदरता थी उसमें और निडरता ऐसा गुण था जिसे इस जमाने में सबसे ऊपर माना जाता था।
तभी एक चाकू बहुत तेजी से सिद्धार्थ की तरफ आता है और इसके पहले की सिद्धार्थ को लगता , आलोक अपने हाथो में उस चाकू को पकड़ लेता है और उसका खून की बूंदे मिट्टी पर गिरने लगती है।
तभी सिद्धार्थ अपना धनुष उठा कर आलोक को देता है और सिद्धार्थ को धनुष उठते देख हर कोई वहा खड़ा हैरान हो जाता है और डाकू के बार को डर जाते है क्युकी तीरंदार उस समय सबसे बड़ी कमजोरी होती थी।
तभी सिद्धार्थ और आलोक निहते डाकू के बीच घुसते हुए, उनकी सरदारनी के ठीक सामने खड़ा हो कर गगन के कंधे पर हाथ रखता है।
और उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है और और मुखिया हस्त है और कहता है ," लो बिल्ली खुद जाल मैं आ गई।"
सिद्धार्थ उनकी सरदारनी से कहता है ," यह क्यों आई हो?"
सरदारनी सिद्धार्थ की बात सुन कर हस्ती है और कहती है," तेरे से बियाह करने, करेगा? बड़ा आया क्यों आई हो यह , अरे डाकू हो डकैती करने आई हो, ना जाने कितनी रियासते लूटी है, कितने सूबे हमने तबाह किया है, जहा हम गए वहा केवल मौते ही हुई है"
सिद्धार्थ हसता है और कहता है ," तो डैकती के लिया इतने सारे लोग ले कर , आना युद्ध करना क्यों?"-
अब सिद्धार्थ की बात सुन कर उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है, वही वो काले घोड़े से उतरती है उसका पूरा मुंह ढका हुआ था, पूरे शरीर पर बस कवच था , जिसमें खून के डब्बे थे।
तभी सरदारनी को उतरते देख बाकी सभी डाकू झुक जाते है, और उनके बीच फूस फुसाहट शुरू हो जाती है।
"अरे भाया अब ये मारा"-
"हा अब इसका बचना मुस्किल"-
वही सरदारनी को उतरता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक स्माइल आ जाती है और वो हस्ते हुए कहता है," तुम बहुत खूबसूरत हो"
"तुम्हे क्या लगता है, लूटने के लिया इतने सारे डाकू ना लाए तो क्या केवल कुछ को ले कर मर जाए?"
सरदारनी की बात सुन कर सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," मेरा मतलब ये नही था, मेरा आशय था की यह लूटने आने के लिया,इतने सैनिक लाना, लोगो की इज्जत लूटना और मारना क्यों?"
"ये सब केवल डैकती के लिए ना?"-
उनकी सरदारनी अब झेप जाती है और धीरे से कहती है ,"हा"
"अगर मैं ये सब खुद ही दे दूं तो?"-
अब ये सुन कर उनकी सरदारनी यह तक की गगन और पुरे गांव वाले हिल गया।
और उनकी सरदारनी अभी भी सोच मैं थी, अक्सर वो जहा लूट पात करती, वहा लोग गर्व से लड़ते और जान दे देते और एक लड़का आज खुद ही डकैती की रकम दे रहा।
"बस मेरी कुछ शर्त है।"-
अब सरदारनी कहती है ," कैसी शर्त"-
"डैकती की रकम हर महीने के आखिरी दिन दिया जाएगा , और ये रकम पूरा गांव की तरफ़ से में दूंगा, बस बदले में तुम इस गांव मैं जान नही लोगी, और कुछ जरूरत होगी तो मैं खुद तुम्हारी मदद करूंगा"-
सरदारनी का पूरा दिमाग हिल गया आज तक उसके पूरे जीवन काल में ऐसा नही हुआ था।
सिद्धार्थ हस्त है और कहता है मेरी दूसरी शर्त ,"आज पूरे युद्ध में जितने भी सैनिक तुमने पकड़े है, उन्हे आज़ाद कर दो, और तुम बोलो कितनी रकम चहिए"-
"6 bori अनाज , 4 बोरी गेहूं, और 200 सोने के सिक्के"-
[ note- yudh chal rha hai isiliye dakiti ki rakam kam hai]
सरदारनी की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ एक सोने से भरी पोटली पकड़ा देता है जिससे सरदारनी हैरान हो जाती है।
तभी सिद्धार्थ पलट कर जाने लगता है उसके पहले ही सरदारनी कहती है ," क्या नाम है तेरा, और ये क्यों कर रहा, तू चाहता तो युद्ध कर सकता था?"-
सिद्धार्थ हसने लगता है और धीरे से कहता है," हर जगह युद्ध नही होता"-
तभी सरदारनी घोड़े पर बैठ जाती है और वो एक बार पलट कर देखती है तो सिद्धार्थ उसको ही देख रहा था और सिद्धार्थ धीरे से कहता है," विवाह करने आई थी, बिना विवाह के जा रही , कम से कम दुबारा कहा मिलना है ये बता दो?"-
तभी वो सरदारनी कहती है,- " चलो सभी हमारा काम हो गया"-
देखते ही देखते सभी डाकू चले गया और पूरे गांव वाले यह तक की काव्य और आस्था हर कोई सिद्धार्थ को घूर रहा था।
वही गगन अपने मन मैं सोचता है," डाकू से बचने का ऐसा मार्ग भी है , हमने कभी नहीं सोचा था और आज डाकू से हमारी जान बक्श दी"-
हर किसी के मन मैं तरह तरह के सवाल थे और सबसे ज्यादा तो आलोक, और हर कोई अभी भी शाक मैं था की आज गांव बर्बाद नही हुआ।
वही दूर से राजा जय राज के सैनिक ये सारा मामला देख रहे थे, जिनके साथ एक राजकुमारि थी।
बीच जंगल , सिंध नदी का तट
"आज क्या हुआ , क्यों हुआ और क्या ये होना था?"-
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने
को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
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Kya baat h,,, ek aur new concept pr based ek new storyअध्याय - 3 डकैती या समझौता, एक शुरुवात
"ललल लगता है हम गलत वक्त पर आ गया, अच्छा हम जा रहे है किसी और चीज की सब्जी बना लेंगे?"
मोहनजो- दरों - सिंध राज्य की राजधानी
महल~
"महाराज की जय हो, राजकुमारी साक्षी महल में नही है?"
"और महाराजा एक लड़का आज राजकुमारी साक्षी आज एक लड़के से मिली काया ने बताया और उससे मिलने के बाद राजकुमारी की काफी खिली खिली लग रही थी आपको इस सिलसिले में वैद जी बात करना चहिए और राजकुमारी यशस्वी कल सुबह महल में आ रही है, जो राखीगढ़ी रियासत मैं हुए विद्रोह को शांत करने गई थी हम बहुत बुरी हालत में है महाराज "
अब आगे --
"राखीगड़ी रियासत हमारी राजधानी मोहनजो- दरों के सबसे पास और महत्वपूर्ण रियासत है, और ये इस सूबे के पूरा केंद्र बिंदु है, क्युकी सभी नहर यही से जाती है।", महाराज जयराज अपना शरीर टिकाते हुए बोलते है।
और महाराज को ऐसे परेशान होते देख सेनापति मान बोलते हैं - " महाराज हो सकता है, कुछ हो मानू इस रियासत को चला रहा और अपनी मन मानी कर रहा , अगर उसकी जगह गगन होता तो शायद हम कुछ कर लेता, इस जंग के बाद जरूर हम कुछ करेंगे लेकिन अभी हमे मानू की जरूरत है।"
इसके पहले की राजा और सेनापति कुछ और बोलते उन्हे सैनिक की घोषणा करने की आवाज़ आई।
"होसियार! सिंध राज्य के कुल गुरु शक्ति दास प्रधार रहे है।"
जैसे ही कुल गुरु शक्ति दास आते है, राजा जयराज उन्हे आदर के साथ बैठने को बोलता है और इसके पहले की राजा उन्हे कुछ और बोलता कुल गुरु हस्ते हुए बोलते है।
"हा हा! जय राज, हमने तुम्हे पहले ही बोला था, वही होगा जो नियति मैं लिखा होगा , नियति के बाहर कुछ नही होगा।"-
"और नियति वक्त के साथ खुद बदलती है, हवाएं बदल रही है! दिशा बदल रही है, किसी और के कदम इस सल्तनत पर पढ चुके है और वक्त आने पर तुम्हें नतीज़ा लेना पड़ेगा की तुम उस नियति को अपना सकोगे या नहीं"-
कुलगुरु की बात सुन कर राजा जयराज और मान सोच मैं पढ़ जाते है।
"आपका क्या तात्पर्य है, कुल गुरु?"
"तुम्हारी बेटी ही तुम्हारी सल्तनत है ना, तो अपनी बेटी पर ध्यान दो, क्या पता तुम्हारी सारी रियासते सभलवा दे, क्या पता तुम्हारी बेटी का भाग्य एसो को ले आए जो तुम्हारी सल्तनत को सभाल ले"
"जैसी आपकी आज्ञा, कुल गुरु इतना तो मैं समझ गया की आपका उंगली किस तरफ है।"
"कुल गुरु, हमारी बेटी यस्यस्वी आ रही है, उसका क्रोध ही हमें डर हमें डरने पर मजबूर कर देता है।"
"क्या पता उसका क्रोध ही तुम्हारा , कार्य आसान कर दे , फिलहाल साक्षी की मनोदशा पर ध्यान दो, तुम्हारी बेटियां ही तुम्हारा सब कुछ है, और साक्षी की मनोदशा थोड़ी सही हुई है।"
ये सुन कर जयराज खड़ा हो जाता है और साक्षी के पास चल देता है और वो पूरे महल में ढूढने लगता है लेकिन उसको कही भी साक्षी नज़र नही आती।
जय राज गुस्सा मैं उठ कर कहता है ," हम इस लड़की से बहुत परेशान है, पता नहीं इस लड़की को खेलने के लिए पूरा महल क्यों कम पड गया है।"
मान हंसता है और धीरे से कहता है,"काया को बुलाओ और सैनिकों को तैनात करो, जरूर वो सरोवर पर होगी, तो उसके चारों तरफ़ तैनात रहो।"
मोहनजो- दरों और राखीगढ़ी
के बीच गांव ~
काव्या आस्था के जाने के बाद वही खटिया पर बैठ जाती है और जोर जोर से सांस लेने लगती हैं।
उसके सास तेज़ थी, जिससे वो पसीना से तर बतर हो गई थी।
तभी काव्या नज़र उठाती है तो देखती है उसके पास सिद्धार्थ आ रहा था।
और काव्या तेजी से सास ले रही थी और तभी उसके कान में सिद्धार्थ की आवाज़ आती है।
"ये लो जल पियो, शीतल जल है आपको ठंडक मिलेगी।"
काव्या कांपते हुए हाथों से जल पकड़ती है तो सिद्धार्थ उसके सर पर थपकी मारता है और कहता है,"अरे पगली ऐसे कांपते हुए हाथों से जल पकड़ोगी तो गिर जाएगा, रुको हम तुम्हे पिलाते है।"
तभी काव्या के होठों पर गिलास लगाता है और काव्या धीरे से पानी पीने लगती है, तभी उसको अपने कंधे पर सिद्धार्थ का हाथ महसूस होता है और काव्या पूरी तरह कपकपा जाती है।
और काव्या को कापते देख सिद्धार्थ धीरे से उसका शरीर देखता है पूरी तरह से दूध जैसा गोरा बदन, नाजुक उभार।
तभी सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ कर, बाहर आंगन में आता है और ठंडी ठंडी हवा में पेड़ के पास खटिया पर बैठा देता है।
जब ठंडी ठंडी हवा, और पेड़ से हिलते हुए पत्ते की आवाज़ काव्या को अजीब सा अहसास करा रही थी और काव्या अपना पल्लू सही कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ उसको गुस्सा मैं कहता है, "तुम अपने पल्लू मैं ऐसा घुसी जा रही हो, जैसे मैं तुम्हारे वस्त्र ही खीच रहा हूं।"
"हा तुम घुस जाओ पल्लू में, एक काम करो चोली और ब्लाउज को रस्सी से बांध लो।"
ये कहते हुए सिद्धार्थ अंदर चला जाता है और उसके जाते ही काव्या धीरे से पलट कर सिद्धार्थ को देखती है चुपके से।
फिर धीरे से काव्या पलट कर सिद्धार्थ को चिड़ाती है।
"हा हा तुम चिड़ा लो, तुम्हे बतूंगा मैं।"
काव्या की खिलखिलाती हुई हसी पूरे आंगन में गूंज गई थी।
तभी हर तरफ शोर की आवाज़ आने लगी और देखते ही देखते बस शोर शराबा और अफरा तफरी वही ये सब सुन कर काव्या बहुत डर जाती है।
और डर से कांपने लगती है।
काव्या को ऐसे कांपते देख सिद्धार्थ जल्दी से काव्य को अपने बाहों में कैद कर लेता है और धीरे से कहता है," क्या हुआ हा ऐसे डर क्यों रही हो?"
और काव्या अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहती है,"वो वो वो आ गए , वो वो आ गए।"
"कौन आ गए , काव्या और तुम डरना बंद करो पहले की बात कुछ और थी और अब की बात कुछ और है अब तुम्हारा पति तुम्हारे साथ है समझी, और बिना डरे बोलो क्या बात है?"
सिद्धार्थ की बाहों में काव्या को अब थोड़ा हौसला मिलता है और वो धीरे से कहती है ,"वो डाकू आए है, और उन डाकू मैं से एक हमारे पीछे है, इसीलिए आप बाहर मत जाइए, शादी के दिन ही आप चले गए और मुझे समाज मैं ना जाने क्या क्या सहना पड़ा और हम नही चाहते आप जाए आप हमे मत छोड़ कर मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को ऐसा डरते और कांपते देख उदास हो जाता है और उसका चहरा देखने लगता है जो पूरी तरह तनु का था, सिद्धार्थ एक टक उसको ही देखता रहता है और एक बार को वो सब कुछ भूल जाता है, और दोनो हाथों से काव्या के गाल पकड़ लेता है और उसके गुलाबी होठों को देखने लगता है।
वही अपने आप को ऐसे निहारते देख काव्या की सास रुक जाती है और उसकी आंखे अपने आप बंद हो जाती है।
तभी उसको अहसास होता है की सिद्धार्थ उससे दूर जा रहा है तो वो कस कर के सिद्धार्थ को पकड़ लेती है और रोने लगती है।
"नही आप बाहर नही जायेंगे, अगर आज हम दोनो का आखरी दिन है तो साथ में रहे"
काव्या के आसू बह रहे थे और उसने धीरे से कहा," आप मत जाइए, चाहे तो आप हमारे वस्त्र उतार लीजिए , हम आपको नही रोकेंगे आप जो चाहे कर लीजिए, हमारे पल्लू हमारी चोली हम सब उतार देंगे आप मत जाइए।"
तभी सिद्धार्थ काव्या को गले लगा लेता है और उसकी बेबसी और लाचारी पर खुद उदास हो जाता है, " काव्या तुम्हे इतना डरने की जरूरत नही, तुम्हे रानी बनूंगा ये मेरा वादा है।"
"काव्या तुम्हे अपने वस्त्र उतारने की जरूरत नही, क्या दुनिया की कोई स्त्री ये बोलती तो हम बर्दास्त कर लेते लेकिन मेरी अपनी काव्या ये बोल रही, तुम अपने वस्त्र मत उतारो जब तक तुम हमारे साथ , अच्छा ना महसूस करो तब तक हम तुम्हे नही छुएंगे, ऐसे मजबूरी का फायदा सिद्धार्थ कभी नही उठाता।"
"अब तुम , चलो मेरे साथ बाहर।"
ये कह कर सिद्धार्थ काव्या को अच्छे से पल्लू से ढक देता है और कहता है "मेरी काव्या पर केवल मेरा हक है, तुम्हे हमारे सिवा कोई देखे ये हमको बर्दाश्त नही।"
"तुम दरवाज़ पर खड़ी रहना और हमे देखना हम आपकी नज़रों से दूर नही जायेंगे"
काव्या डर रही थी लेकिन सिद्धार्थ का साथ ने उसको हौसला दिया था, और वो दोनो बाहर आने लगते है।
आस्था की कुटिया~
वही एक कोने बैठा आलोक चुप चाप आंगन में बैठा अपनी तलवार की धार तेज रहा था और धीरे से कहता है।
"पता नही अपने आप को क्या, समझती है जैसे कही की महारानी हो , हमे धमकी दे रही की हम आंगन से बाहर नही आ सकते, क्यों ना आए ये हमारी भी कुटिया है।"
तभी धीरे से आलोक कहता है,"आस्था की चूचियां कितनी सॉफ्ट थी, हाय यार उफ्फ और इन सब से दूर उसकी गांड कितनी प्यारी शेप में थी, आधुनिक जमाने की लड़कियां मैं ये बात कहा।"
एक सेकंड कही आस्था उसी बात की वजह से तो नही रोते हुए हमे बाहर कर दिया घर से।
तभी आलोक को रोने की आवाज़ आती हैं और वो अपनी तलवार निकाल लेता है और धीरे से अपनी कुटिया में अंदर आता है।
और कहता है "आस्था कौन है जिसने तुम्हे रुलाया हमे बताओ, हमारी आस्था को रुलाने वाले के हम सर उड़ा देंगे"
तभी आस्था रोते हुए कहती है," सब खत्म हो गया, वो आ गए अब कोई नही बचेगा।"
आलोक धीरे से आस्था की ऊपर नीचे होती हुई चूचियों को देखता है और कहता है ," हा कुछ नही होगा आस्था, लेकिन तुम थोड़ा रो लो रोने से दुख कम होता है"
तभी वो धीरे धीरे आस्था के करीब आता है और उसके पेट को सहलाता है।
आस्था अपने आसू पोछती है, और धीरे से कहती है "भाई मुझे पता है, तुम बहुत स्नेह करते हो हमसे, हमे आंच नही आने दोगे, लेकिन शायद हमारा साथ यही तक था, हमे पता है सब आप हमे क्यों घूरते हो"
आस्था की सास अटकने लगती है और अब आलोक जो अभी तक मजाक के मूड में था वो थोड़ा सीरियस हो कर आस्था को गले लगा लेता है और अपने हाथ से आस्था को कस लेता है।
"आस्था हम पर विश्वास रखो तुम्हे कुछ नही होगा समझी, एक बार बताओ क्या हुआ"
"वो वो डाकू आए है, और उनका रियासत के मालिक हमारी मदद नही करेंगे इस विसय पर, और वो जब भी आते है सब खत्म कर देते है पूरा गांव तबाह कर देते है।"
वही ये बात सुन कर आलोक का दिमाग खराब हो जाता है और वो आस्था की गांड पर हाथ फेरने लगता है।
जैसे ही आस्था ये देखती है तो वो नज़र उठा कर आलोक को देखती है।
"आपको अगर अपनी बहन की इज्जत ले कर ही खुशी मिलेगी, तो हम खुद अपने वस्त्र उतार देते है, आइए और कर लीजिए , मिटा लीजिए अपनी हवस।"
तभी आलोक उसका मुंह दबा देता है और उसको बाहों में भरता है और कहता है।
"यह नही कमरे में चलो, वहा उतारो और तेल है?"
इतना सुनते ही आस्था जो अब तक रो रही थी वो धीरे से दूर हटती है और पास में पड़ी तलवार उठा लेती है।
आलोक ये देखते ही भाग जाता है और कहता है,"बाद में मना लेंगे ना, आस्था अभी रोना बंद करो।"
आस्था आलोक के पीछे बाहर आती है तो काव्या से टकरा जाती है।
"आह मां, क्या रे बावली हो गई है क्या, उफ्फ मां पूरा सर दर्द करने लगा।", काव्या अपना सर पकड़ते हुए कहती है।
और अब हैरान होने की पारी आस्था की थी और धीरे से कहती है।
"वो वो वो बिल्ली थी, ना काव्या उसी के पीछे भाग रहा थी।"
काव्या धीरे से कहती है ," मैं तो मान लूंगी, लेकिन गांव वालो को क्या बोलेगी?"
तभी आस्था काव्या की बात सुनती है और अपना हुलिया देखती है और जल्दी से काव्या के पीछे छुप जाती है।
"हमे बहुत डर लग रहा है, काव्या क्या होगा , तेरे पति ने तो रियासतदार के बेटे की आंखे फोड़ दी अब वो मदद करने से रहा ऊपर से जंग अलग करेगा, ऊपर से ये डाकू हमारी रक्षा और हमारे मान की रक्षा कौन करेगा।"
काव्या हस्ती है और कहती है "जो तेरी लूटने वाला था वो करेगा।"
तभी काव्या का जवाब सुन आस्था चुप हो जाती है और धीरे से कहती है ," चुप हो जा काव्या"
तभी काव्या धीरे से कहती है "हमे भी बहुत डर लग रहा, हम सिद्धार्थ के साथ ही मारेंगे या जिएंगे"
तभी उन दोनो की निगाहें आलोक और सिद्धार्थ पर जम जाती है।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की नज़र पीपल के पेड़ पर जाती है।
"गांव वालो , हमने कहा था जिस दिन हम आएंगे पूरे गांव को समशान और लाशों का ढेर बना देंगे।"
"कहा मर गए सारे गांव वालो, आओ या सब के सब चूड़ी पहन रखे है, आओ गांव वालो"-
"सभी के घर मै आग लगा दो, फिर जो बच जाएगा उसको ले चलेंगे"-
वही ये सब देख रहे आलोक कहता है," अबे सिद्धार्थ अबे ये बहेंचोद , डाकू है या सेना?"
"अबे इतने सारे ये तो कम से कम 300 तो होंगे"-
आलोक की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ हस्त है ," हा और उनकी सरदारनी को देख जो बीच में है"-
"अबे ये सब इतने खोंखार है, और सरदारनी का देख कर ही डर जाए कोई, क्या करे हम, चले युद्ध करे?", आलोक अपनी तलवार लेते हुए कहता है।
आलोक आगे जाता उसके पहले सिद्धार्थ उसका हाथ पकड़ लेता है और कहता है," रुको जरा गांव वालो को बाहर आने दो, इससे अच्छा मौका कहा मिलेगा?"
इससे पहले की आलोक और सिद्धार्थ कुछ और करते
एका- एक कुछ घुड़सवार आ गए और युद्ध होने लगा।
घुड़सवार का मुखिया पूरा युद्ध कवच पहने थे तो कुछ पैदल सैनिक थे, पैदल सैनिकों की संख्या कम थी, उनकी युद्ध नीति सामने से युद्ध की थी लेकिन उनकी संख्या 50 के आस पास थी।
तभी डाकू की मुखिया जो बीच में थी वो हस्ती है।
"वाह वाह, अब इतनी बड़ी सेना से लड़ने कुछ चूहे आए है, आओ आओ , मारो।"
"गगन हम इन्हें नही हरा सकता", मुखिया की बात सुन कर एक लड़का जो गाववालो की तरफ़ से लड़ रहा था वो बोलता है।
तभी गगन की आवाज़ सुन कर हर किसी का हौसला बढ़ जाता है।
"तो ये हमारा अच्छा अंत होगा, मात भूमि पर मारेंग।"
धीरे धीरे युद्ध भयंकर होने लगा और बीच बीच में कही से कुछ उड़ते तीर सीधा कुछ डाकू को लगते और एक तीर सिद्धार्थ के पैर के पास आ कर गिरता है जैसे मानो कोई कह रहा हो , तुम शांत क्यों हो।
तभी धीरे धीरे सभी सैनिक पकड़ लिए गए, और उनका मुखिया गगन जिसको एक डाकू ने पकड़ रखा था।
वो मुखिया से कहता है," सरदारनी इनकी सेना खत्म क्या करे?"
उनकी सरदारनी कहती है ," हाथ काट दो , फिर बात करते है इससे और बाकी सभी को अभी ज़िंदा रखो , मौत नही बुरी मौत देना है।"
तभी वो डाकू जो तलवार उठाता है और तलवार से गगन पर हमला कर पता उसके पहले ही एक तीर सीधा उसके हाथ मै जा कर लगता है और उसका हाथ भेद देता है।
तभी सबकी नज़र उस तीर को चलाने वाले पर पड़ते है।
काव्या उस इंसान को देख कर सिहर उठती है और उसके आसू बहने लगते है।
वही अब सारे गांव वाले सिद्धार्थ को देखते हैं।
तभी उनका मुखिया , जो डाकू का प्रतिनिधि कर रहा था , और डाकुओं की सरदारनी के जस्ट बगल में था , वो तुरंत सिद्धार्थ को देख कर कहता है ," तू आज तू मरेगा और तेरा साथी भी मरेगा"
तभी सिद्धार्थ की हसी आवाज़ सुन कर वहा खड़ी सभी महिलाएं हैरान हो जाती है, अजब की सुंदरता थी उसमें और निडरता ऐसा गुण था जिसे इस जमाने में सबसे ऊपर माना जाता था।
तभी एक चाकू बहुत तेजी से सिद्धार्थ की तरफ आता है और इसके पहले की सिद्धार्थ को लगता , आलोक अपने हाथो में उस चाकू को पकड़ लेता है और उसका खून की बूंदे मिट्टी पर गिरने लगती है।
तभी सिद्धार्थ अपना धनुष उठा कर आलोक को देता है और सिद्धार्थ को धनुष उठते देख हर कोई वहा खड़ा हैरान हो जाता है और डाकू के बार को डर जाते है क्युकी तीरंदार उस समय सबसे बड़ी कमजोरी होती थी।
तभी सिद्धार्थ और आलोक निहते डाकू के बीच घुसते हुए, उनकी सरदारनी के ठीक सामने खड़ा हो कर गगन के कंधे पर हाथ रखता है।
और उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है और और मुखिया हस्त है और कहता है ," लो बिल्ली खुद जाल मैं आ गई।"
सिद्धार्थ उनकी सरदारनी से कहता है ," यह क्यों आई हो?"
सरदारनी सिद्धार्थ की बात सुन कर हस्ती है और कहती है," तेरे से बियाह करने, करेगा? बड़ा आया क्यों आई हो यह , अरे डाकू हो डकैती करने आई हो, ना जाने कितनी रियासते लूटी है, कितने सूबे हमने तबाह किया है, जहा हम गए वहा केवल मौते ही हुई है"
सिद्धार्थ हसता है और कहता है ," तो डैकती के लिया इतने सारे लोग ले कर , आना युद्ध करना क्यों?"-
अब सिद्धार्थ की बात सुन कर उनकी सरदारनी सिद्धार्थ को देखती है, वही वो काले घोड़े से उतरती है उसका पूरा मुंह ढका हुआ था, पूरे शरीर पर बस कवच था , जिसमें खून के डब्बे थे।
तभी सरदारनी को उतरते देख बाकी सभी डाकू झुक जाते है, और उनके बीच फूस फुसाहट शुरू हो जाती है।
"अरे भाया अब ये मारा"-
"हा अब इसका बचना मुस्किल"-
वही सरदारनी को उतरता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक स्माइल आ जाती है और वो हस्ते हुए कहता है," तुम बहुत खूबसूरत हो"
"तुम्हे क्या लगता है, लूटने के लिया इतने सारे डाकू ना लाए तो क्या केवल कुछ को ले कर मर जाए?"
सरदारनी की बात सुन कर सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," मेरा मतलब ये नही था, मेरा आशय था की यह लूटने आने के लिया,इतने सैनिक लाना, लोगो की इज्जत लूटना और मारना क्यों?"
"ये सब केवल डैकती के लिए ना?"-
उनकी सरदारनी अब झेप जाती है और धीरे से कहती है ,"हा"
"अगर मैं ये सब खुद ही दे दूं तो?"-
अब ये सुन कर उनकी सरदारनी यह तक की गगन और पुरे गांव वाले हिल गया।
और उनकी सरदारनी अभी भी सोच मैं थी, अक्सर वो जहा लूट पात करती, वहा लोग गर्व से लड़ते और जान दे देते और एक लड़का आज खुद ही डकैती की रकम दे रहा।
"बस मेरी कुछ शर्त है।"-
अब सरदारनी कहती है ," कैसी शर्त"-
"डैकती की रकम हर महीने के आखिरी दिन दिया जाएगा , और ये रकम पूरा गांव की तरफ़ से में दूंगा, बस बदले में तुम इस गांव मैं जान नही लोगी, और कुछ जरूरत होगी तो मैं खुद तुम्हारी मदद करूंगा"-
सरदारनी का पूरा दिमाग हिल गया आज तक उसके पूरे जीवन काल में ऐसा नही हुआ था।
सिद्धार्थ हस्त है और कहता है मेरी दूसरी शर्त ,"आज पूरे युद्ध में जितने भी सैनिक तुमने पकड़े है, उन्हे आज़ाद कर दो, और तुम बोलो कितनी रकम चहिए"-
"6 bori अनाज , 4 बोरी गेहूं, और 200 सोने के सिक्के"-
[ note- yudh chal rha hai isiliye dakiti ki rakam kam hai]
सरदारनी की आवाज़ सुन कर सिद्धार्थ एक सोने से भरी पोटली पकड़ा देता है जिससे सरदारनी हैरान हो जाती है।
तभी सिद्धार्थ पलट कर जाने लगता है उसके पहले ही सरदारनी कहती है ," क्या नाम है तेरा, और ये क्यों कर रहा, तू चाहता तो युद्ध कर सकता था?"-
सिद्धार्थ हसने लगता है और धीरे से कहता है," हर जगह युद्ध नही होता"-
तभी सरदारनी घोड़े पर बैठ जाती है और वो एक बार पलट कर देखती है तो सिद्धार्थ उसको ही देख रहा था और सिद्धार्थ धीरे से कहता है," विवाह करने आई थी, बिना विवाह के जा रही , कम से कम दुबारा कहा मिलना है ये बता दो?"-
तभी वो सरदारनी कहती है,- " चलो सभी हमारा काम हो गया"-
देखते ही देखते सभी डाकू चले गया और पूरे गांव वाले यह तक की काव्य और आस्था हर कोई सिद्धार्थ को घूर रहा था।
वही गगन अपने मन मैं सोचता है," डाकू से बचने का ऐसा मार्ग भी है , हमने कभी नहीं सोचा था और आज डाकू से हमारी जान बक्श दी"-
हर किसी के मन मैं तरह तरह के सवाल थे और सबसे ज्यादा तो आलोक, और हर कोई अभी भी शाक मैं था की आज गांव बर्बाद नही हुआ।
वही दूर से राजा जय राज के सैनिक ये सारा मामला देख रहे थे, जिनके साथ एक राजकुमारि थी।
बीच जंगल , सिंध नदी का तट
"आज क्या हुआ , क्यों हुआ और क्या ये होना था?"-
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने
को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
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to be continued..... well well guys update posted .... update 3.5 k words ka hai something... toh tum logo like pelo aur alok aastha ko pale.... update timely rhegaa aur bda rhega...
Tumhre baat kehne ka tarika mst h yrrRuhiiii...........wooow she is back.........and kon thi ye ladki jisne iska name liya .....
here is 2 options...
ya to ye ladki jo awaz de rahi h wo raajkumari h ya koi or......
chaliye dekhte h ye bhi agle update me.....ye update kafi manmohak tha...... shaandar or jaberdast...
but 13 din me 3rd update
4 din se update
chalo koi na kam se kam thode active to hue after a long time ummeed h updates bhi timely Dene lag jao