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Bahut hi shaandar update diya hai Ghost Rider ❣️ bhai....अध्याय - 4 साक्षी और सिंध राजा से पहली मुलाकात
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
अब आगे --
रूही उस लड़की की बात सुन कर थोड़ा हैरान होती है और धीरे से कहती है।
"आज कुछ अजब हुआ , दीदी"
वही वो लड़की जो रूही की बहन और डाकुओं की सरदारनी थी वो हुक्का पीते हुए कहती है,"ऐसे क्या हो गया , जो तू इतना बावली हुए जा रही है, ज्यादा लोगो को मार दिया क्या?"-
रूही हंसते हुए कहती है," अरे दीदी मारने की जरूरत नही पड़ी , बिना मारे ही कर मिल गया, गांव वालो की तरफ से"-
इतना कहते हुआ रूही सब कुछ उसको बताने लगती है और सारी सचाई सुनने के बाद वो लड़की कहती है,"अजीब बात है ये तो, ऐसा आज तक तो हुआ नही हुआ"-
"रूही इसके बारे मैं अच्छे से पता कर, तो डाकू से कोई ऐसे बात नही करते"-
"जी आप निभर रहो, जब मै इससे मिलूंगी तो आपसे भी कह दूंगी"-
"अपने सभी रियासतों से सैनिक बुलावा लो, मैं नही चाहती इस युद्ध मै मेरे आदमी कमजोर पड़े, पूरे सिंध राज्य में 4 सूबे है , और एक सूबे में 2 रियासते है, और हमारे पास मालवा के ज्यादा सूबे नही है , क्युकी वहा की भी स्थिति सही नही, गुजरात और सिंध का युद्ध हमे ही नुकसान होगा"-
तभी रूही कहती है, " लेकिन बहन हम चाहे तो मालवा पर हमला कर के वो राज्य अपने अधीन कर सकते है"-
उसकी बात सुन कर वो लड़की हस्ती है और कहती है ,"नही! बाकी राजा को ये बर्दास्त नि होगा, लेकिन हमे कोई ऐसा ढूढना पड़ेगा जो राजा तो हो , लेकिन राज हमारा हो"-
रूही धीरे से कहती है,"वो दोनो लड़के बहन, मुझे यकीन है उन दोनो के दिमाग मैं कुछ चल रहा है , उनकी सोच युद्ध , और रणनीति दोनो में पारंगत है"-
"देखते है , अभी राजपूत रियासते जो हमारी मित्र है, उन्हे सिंध और गुजरात दोनो पर नज़र रखने को बोलो। गुजरात के सल्तनत से मिले है कुछ रियासतें , इसीलिए सिंध हार रहा है , राखीगढ़ी इसका गढ़ है"-
राखीगड़ी रियासत ~
इधर काव्या और आस्था हैरान हो कर सब देख रही थी, और उनके दिलों की धड़कन जो तेज थी , और डर खत्म हो गया और उसकी जगह एक अजीब से प्रेम ने ले ली।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की जय कार होने लगी , और सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान थी और उसने हस्ते हुए मन में कहा " यही तो करना था"-
तभी सिद्धार्थ ने आलोक को इशारा किया और आलोक ने इशारा समझते हुआ गांव वालो की तरफ़ चलना शुरू कर दिया।
और इधर सिद्धार्थ ने हल्के से स्माइल के साथ गगन को आजाद किया और उसके का कंधे पर हाथ रखा और कहा," उत्तम योद्धा है आप गगन, आपका साहस ही आपका परिचय है"-
गगन जो आज मौत के करीब था उसके पास एक औरत आती है और उसको उठाने लगती है और वो सिद्धार्थ के आगे हाथ जोड़ कर घुटने के बल बैठ जाती है।
"मेरा सुहाग बचाने के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद"-
उनको देख कर सिद्धार्थ हस्ता है और उनको उठने के लिया बोलता है तभी गगन की आवाज सुनाई पड़ती है।
"हम कहा से इतनी मोहरे और अनाज देंगे, हमे नहर का पानी नही मिलता , यह के रियासत दार मानू हमे कुछ पानी नही देता ,हमारी स्तिथि कमजोर है"-
सिद्धार्थ उसको कहता है," जानते हो गगन तुम आज हारे कैसे और मैं जीता कैसे?"-
गगन हैरानी मैं था और अपना सर झुका लिया।
"क्युकी तुम, योद्धा तो उत्तम हो लेकिन मार्ग सही नही चुन पाते, अगर रियासत ही हमारी हो तो?"-
गगन उसकी बात सुन कर झेप जाता है और कहता है,"हमारे पास अस्त्र और शस्त्र नही है, हमारे पास घोड़े नही है"-
सिद्धार्थ उसकी तरफ देखा और ऊपर चांद देखते हुए कहता है," देखो गगन तुम्हारी जान बचाई है? ना मैने तो बाकी चीज मैं देख लूंगा रात्रि काफी हो गई है, जाओ आराम करो , जो चोट आई है उन्हे लेप लगा लेना"-
तभी गगन अपना सर उठा कर सिद्धार्थ को देखता है और अपना मुकुट जो उस समय के लोगो की सबसे बड़ी इज्जत थी उसको सिद्धार्थ के पैर के सामने रखते हुए कहता है," आज से ये गगन आपका गुलाम सिद्धार्थ, जब तक मेरे प्राण रहेंगे तब तक आपका जान को आंच नही आने दूंगा"-
तभी सिद्धार्थ उसका मुकुट वापिस उसके सर पर रखते हुए कहता है," एक राजा के लिया , सम्मान की बात तब होती है जब उसके आदमियों का सर गर्व से ऊंचा रहे , तो गगन अपना सर हमेशा ऊंचा रखो"-
"अभी तो तुम्हे बहुत सी जंग लड़नी है, बहुत सी सल्तनत को गिराना है"-
तभी उसकी बात सुन कर गगन हैरान हो कर कहता है , आपको राजा बनाना है
उसकी बात सुन कर आलोक जो अभी आ गया था वो हस्ते हुए कहता है,"आलोक हम राजा नही, सम्राट बनेंगे हम दोनो वो महाराजा बनेंगे जिसके आगे राजाओं का सर जुकेगा"-
इधर आलोक गांव वालो को सब समझाने चला जाता है और गगन सिद्धार्थ के घर के सामने और अगल बगल उसके आदमी को कुछ इशारा करता है।
इधर सिद्धार्थ के पास काव्या आती है और उसके हल्के आवाज से कहती है," चलिए घर में , मैं खाना बनाती हूं"-
सिद्धार्थ काव्या को देख कर हस्त है काव्या को देख कर कोई भी एक बार को पिगल जाए , काव्या सिद्धार्थ को अंदर ले जाना चाहती थी, और अपने हक जता कर सब को जैसे साबित कर रही हो ये मेरा है।
तभी काव्या अपनी कुटिया में चली जाती है और आस्था उसके पीछे पीछे इधर सिद्धार्थ देखता है की कई आंखे उसको और आलोक को देख रही थी, और सिद्धार्थ की नज़र उन सब पर पड़ती है तो उसका रोए ही खड़े हो जाते है।
सिद्धार्थ की कुटिया~
"अरे काव्या तू इतनी जल्दी मैं कहा जा रही है?"-
काव्या जो जल्दी से अपने आंगन में बाल्टी जो साफ जल से भरी थी उसको बैल के पास फेक कर बाल्टी खाली कर देती है।
"ये तूने बाल्टी क्यों खाली कर दी ?"-
आस्था की आवाज सुन कर काव्या उसको गुस्से में देखती है," मैने कहा खाली की बाल्टी"-
उसको गुस्से में देख कर आस्था कहती है,"हा हा तूने नही की खाली"-
काव्या जल्दी से खाली बाल्टी ले कर सिद्धार्थ के पास आती है और कहती है ,"ये लीजिए जाइए सरोवर से पानी ले आइए , तब तक हम खाना बना देते है"-
सिद्धार्थ बाल्टी उठा कर चल देता है और पलट कर जैसे ही देखता है उसकी नज़र काव्या की गांड पर पड़ती है जो देख कर ही सिद्धार्थ का लोड़ा खड़ा हो जाता है।
काव्या को कुछ आभास होता है और वो पलट कर देखती है तो उसकी सास अटक जाती है और भाग कर कुटिया में घुस जाती है और उसकी छाती ऊपर नीचे होने लगती है।
"ऐसे कौन देखता है खुले आम"-
"शर्म हया सब बेच आए है क्या ये"-
इधर काव्या धीरे से कहती है "माना भी कर नही सकती"-
इधर सिद्धार्थ हल्के से हस्ते हुए अपने आप को कंट्रोल करते हुए कहता है" नही नही,! वो मेरी बेटी है नही, मैं ये क्या कर रहा हूं , खैर ये उसकी गलती है इतनी सुंदर है पूरा तनु पर गई है"-
ऐसे ही अपने में बडबड़ते हुए सिद्धार्थ जैसे ही झरने के पास आता है उसके हाथ से बाल्टी गिर पड़ती है और वो हैरान हो कर सामने देखता है।
"साक्षी"-
सामने साक्षी को देख सिद्धार्थ हैरान हो जाता है और उसके कुछ समझ नही आता है।
"इतनी रात ये लड़की, पानी में स्नान कर रही है वो भी इसका दिमाग सही नही है, बच्चों जैसे है, इतनी रात कौन नहाता है वो भी इतने थंडे पानी में"-
तभी सिद्धार्थ देखता है आस पास कोई सैनिक नही तो वो साक्षी के पास जाने लगता है।
साक्षी पूरी पानी में थी उसका गठीला बदन, गीले बाल कमल के फूल जैसी खुशबू, महकता हुआ बदन, दूर से ही सिद्धार्थ की सांसें बढ़ा दे रहे थे, सिद्धार्थ के सामने उसकी साक्षी खड़ी थी।
"चल कर देखू इतनी रात मोहतरमा यहा क्या कर रही है, एक चीज तो है मेरी साक्षी और तनु जहा रहती है वहा ही बवाल मचाई रहती है, इनकी हरकतें अलग ही लेवल पर रहती है"-
इधर सिद्धार्थ साक्षी के पास जाने के लिया पानी में उतर गया और उसकी तरफ चलने लगा।
अचानक साक्षी को लगता है कोई उसकी तरफ़ आ रहा है तो साक्षी तुरंत पलट कर देखती है तो वहा सिद्धार्थ को देख कर हैरान हो जाती है।
"अरे तुम यहा क्या कर रहे हो?"-
साक्षी की मीठी आवाज सुन कर सिद्धार्थ कहता है," तुम क्या कर रही हो"-
"अरे मैं तो खेल रही हो , मछली मछली"-
"ही ही ही!" हस्ते हुए साक्षी बोलती है और सिद्धार्थ अपना सर पकड़ लेता है और धीरे से दाए बाए देखता है और धीरे से कहता है," हमे भी खेला लो ना अपने साथ"-
साक्षी के बदन को निहारते हुए वो प्यार से कहता है और साक्षी कहती है," क्या खेलोगे हमारे साथ"-
सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," वो वो वो , हा हा हम दोनो पकड़म पकड़ाई खेलते है ना, अभी बाद में सुबह कुछ और खेलेंगे"-
साक्षी खुशी से ताली बजाने लगती है और धीरे से भागते हुए कहती है ,"तुम हमे पकड़ो , मैं बहुत तेज हूं फुर्र से भाग जाती हूं"-
साक्षी की आवाज सुन कर सिद्धार्थ हस्त है और थोड़ी देर उसको देखता है और फिर उसके तरफ भाग जाता है और उसके पास आ कर साक्षी थोड़ा धीरे धीरे भाग रही थी और हस हस कर पलट पलट के सिद्धार्थ को देखती है की वो चला तो नही गया।
थोड़ी देर में साक्षी थोड़ा हैरान हो कर पलट कर देखती है की सिद्धार्थ उसको नही दिखा तो वो थोड़ा रोवासी हो जाती है और रोते हुए कहती है," मेरा साथ कोई नही खेलता , सब हमे अकेला छोड़ देता है"-
तभी साक्षी को अपनी कमर पर किसी के हाथ का आभास होता है तो वो पलट कर देखती है तो उसकी नाक सिद्धार्थ के नाक पर लग जाती है और साक्षी को अपने से चिपका देख सिद्धार्थ उसको अपने से सटा लेता है और उसका लन्ड तो पहले से ही खड़ा था जो साक्षी के पीछे थोड़ा चुभने लगता है।
साक्षी भले ही दिमाग से कमजोर थी लेकिन थी तो एक स्त्री ही, थी तो वो सिद्धार्थ की उसके आंखे कब बंद हो गई उसको आभास हो नही हुआ।
तभी साक्षी जो अपनी आंखे बंद कर के धीरे से वही खड़ी थी वो सिद्धार्थ की आवाज सुन कर आंखे खोलती है।
"क्या हुआ साक्षी, इतनी चुप क्यों हो?"
"कुछ नही , हमे अजीब लग रहा है हमारा जी मिचला रहा है चलो सरोवर से बाहर चलते है?"-
तभी साक्षी को सिद्धार्थ छोर देता है और उससे दूर हट जाता है और साक्षी उससे धीरे से कहती है।
"तुम हमसे रुष्ठ हो गए?, अब हमसे बात नही करोगे ना *sniff* *Sniff*"-
तभी सिद्धार्थ उससे कहता है ,"नही हम रुष्ठ नही हुए लेकिन हमे तो आप पकड़ी ही नही इसीलिए हम नाराज़ है तनिक"-
साक्षी उससे धीरे से कहती है एक मीठे से स्वर में -" हम बाद में खेल लेंगे ना"-
तभी सिद्धार्थ कहता है "हमे छोटा सा खेल खेलने दीजिए ना बस 2 मिनट लगेंगे, फिर आप जो कहेंगी वो खेलेंगे हम हमेशा"-
साक्षी कहती है "फिर तुम हमसे रुष्ठ नहीं होगे ना"-
सिद्धार्थ कहता है," हा हा , पक्का"-
साक्षी धीरे से कहती है ," चलो फिर बताओ कौन सा खेल है जो इतनी जल्दी खत्म हो जाता है जिससे हमारे मित्र की गुस्सा शांत हो जाएगा"-
सिद्धार्थ साक्षी को अपने पास बुलाया और अपने सीधे सामने खड़ा कर दिया, और उसने साक्षी का हाथ अपने कंधे पर रखवा दिया और जैसे ही साक्षी ने अपना हाथ सिद्धार्थ के कंधे पर रखा सिद्धार्थ ने उसकी कमर जकड़ कर उसको अपनी गिरफ्त में ले लिया।
उसने साक्षी को अपनी गिरफ्त में ले लिया और अपनी नाक साक्षी की नाक पर रख कर धीरे से कहा "आपको अपनी आंखे 2 मिनट तक नही खोलनी"-
इधर सिद्धार्थ के सामने ही उसकी सबसे खास औरत खड़ी थी जिससे सिद्धार्थ बेइंतहा प्यार करता था और सिद्धार्थ अपना होश खो बैठा और साक्षी को अपने पूरा बदन से चिपका लिया और उसके सीने के उभार को अपने सीने पर महसूस करने लगा ,और धीरे से कुछ बढ़बड़ा रहा था।
और इधर साक्षी की दिल की धड़कन बहुत जोरो से चल रही थी उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थी , उसको अहसास था की ये खेल अजीब था लेकिन किसी कारणवस वो सिद्धार्थ के करीब अच्छा महसूस कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ के हाथ साक्षी को अपने झांग पर महसूस होता है और सिद्धार्थ ने साक्षी के दोनो पैर अपनी कमर के आस पास जकड़वा दिया।
और साक्षी की मन में अजीब सी आवाज़ उठने लगी।
तभी साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज़ पड़ती है जो बहुत धीरे थी जैसे सिद्धार्थ बडबडा रहा हो -
"मेरी साक्षी, मेरी साक्षी , हमसे दूर मत हो, आप सिर्फ मेरी है आपका रोम रोम बस मेरा है"--
यही बड़बड़ाते उसके हाथ साक्षी के गालों पर चले गए और साक्षी के कपड़े जो पूरे उसके बदन को ढके हुए थे उसको सिद्धार्थ ने कंधे से थोड़ा हटा दिया और साक्षी को अपने से चिपका लिया
इधर साक्षी की मुंह से हल्की सी सीत्कार फूट रही और साक्षी को अपने कमर में कुछ चुभन महसूस होने लगी और उसको जैसे ही आभास हुआ कि उसके वस्त्र उतर रहे थे तो उसको कुछ याद आया और वो एक पल को रुक गई और मन में सोचती है, " नही ये कोई खेल नही, क्या ये गलत कर रहा है कुछ हमारे साथ"-
साक्षी और कुछ सोचती उसके पहले साक्षी को आभास होता है कोई उसके होठों को चूम रहा है और उसके दोनो गाल पकड़ रखे है -
सिद्धार्थ एक पल को इतना खो गया था की अब उसको इतना भी अहसास नही था की उसके सामने वो पहले वाली साक्षी नही थी -
जैसे ही सिद्धार्थ को इस चीज का अहसास होता है तो वो जल्दी से दूर हट जाता है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगता है, और उसी समय बिना वक्त गंवाए उसने साक्षी के कंधे वापिस धक दिए , बाकी सब साक्षी का पहले ही ढका हुआ था।
और उसने धीरे से साक्षी से कहा ," चलो सरोवर से बाहर चलते है"-
साक्षी कुछ बोल नहीं पा रही थी बस काप रही थी और उसका सिद्धार्थ ने हाथ हाथ थामा और सरोवर से बाहर ले कर चलने लगा।
साक्षी को अपना हाथ थाम कर चलता देख साक्षी बस अपने सांसें कंट्रोल कर रही थी और सिद्धार्थ के पीछे पीछे चल रही थी।
"आप ठीक तो है मित्र"-
जैसे ही साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज जाती है वो अपनी सोच से बाहर आती है और धीरे से रुकते रुकते बोलती है," आप आप आप हमारे साथ कुछ गलत तो नही कर रहे थे, हमारी बहन कहती है कोई आपके वस्त्र उतारे और आपके नज़दीक आए तो उसको मार देना"-
तभी सिद्धार्थ जो आग जला रहा था वो आग जलाते जलाते रोने लगता है -
*Sniff sniff*
"आप हमे मार देगी *sniff* मेरी मित्र हमे मार देगी *snifff* "-
यही कहते हुआ सिद्धार्थ जोर जोर से रोने लगता है और उसको रोता देख साक्षी अपना सर पकड़ लेती है," ये तो हमसे भी ज्यादा रोता है"
"हम तो आपके साथ खेल रहे थे आप हमे मार देगी, *sniff sniff* "-
"तो आपने हमारे वस्त्र क्यों उतारे? और आपने जो वो किया वो क्या था हमे सच सच बताओ फिर हम आपको नही मारेंगे और खेलने भी देंगे", साक्षी आग में अपने हाथ गर्म करते हुए कहती है।
तभी सिद्धार्थ अपने आसू पोछता है और धीरे से कहता ," वो वो ना एक बहुत खास चीज़ थी , जब कोई दो दोस्त नए नए बनते है ना तो ये खेल खेलते है इससे वो दोनो हमेशा साथ रहते है जिदंगी भर , अगर आप चाहते हो की आपके सामने वाला केवल आपका रहे तो आप उसके होठ अपने होठ से मिला दो, इससे सामने वाला केवल आपका हो जाता है फिर आपको उसकी सारी बात माननी पड़ती है, उसको खुश रखना पड़ता है"-
उसकी बात सुन कर साक्षी कहती है," अच्छा ऐसा है, तो इसका मलतब अब मैं केवल तुम्हारी हो गई?"-
उसकी बात सुन कर सिद्धार्थ कहता है ," हा केवल मेरी "-
साक्षी कहती है"ठीक है हम बहन को बता देंगे अब"--
"नही नही नही नही, साक्षी ऐसा मत करना कृपया कर केहम मर जाएंगे"-, ये बोलते हुए सिद्धार्थ की गांड इस बार सच में फटी हुई थी।
तभी साक्षी कहती है ," तो तुम्हे ये बता कर ये करना था ना? और अगर तुमने हमारे वस्त्र अब उतारे तो हम पापा को बता देंगे और बिना वजह हमे छुना मत , और ये तुम्हारा जो भी था हमे नही पसंद हमसे बिना पूछे ये भी मत करना, हमसे बिना पूछ कुछ भी मत करना। और ये तुम्हारा जो भी था होठ वैगरा ये भी हमसे बिना पूछे मत करना हमसे दूर रहना"-
उसकी पूरी बात सुन कर सिद्धार्थ का तो मुंह लटक जाता है और धीरे से कहता है ,"ठीक है"-
"फिर नही बातूंगी में किसी को भी। वैसे अब तुम्हारी हूं ना, मैं तो तुम हमेशा मेरी बात मानोगे ना, तुम्हे हमेसा माननी पड़ेगी", साक्षी एक अजीब सी मुस्कान के साथ बोली।
सिद्धार्थ ने जैसे ही ये सुना उसकी सिटी पीटी गुल हो गई , सिद्धार्थ जानता था साक्षी को साक्षी के साथ वो हमेशा रहा है उसकी यादें उसकी हरकते जब वो ऐसा बोलती है तो इसका एक ही मतलब है ,"लोड़े लगने वाले है"-
और साक्षी सिद्धार्थ को ऐसे डरता देख , हसने लगती है और धीरे से कहती है ," इतना मत सोचो , अब तुमने मुझे अपना बना लिया है तुमने ही कहा था मेरी बात माननी पड़ेगी"-
सिद्धार्थ धीरे से सास लेते हुए बोलता हैं मैं ही मादरचोद हूं , थोड़ी देर हवस कंट्रोल नही कर सकता था तभी वो धीरे से आहे भरता हुआ कहता है," हा मानूंगा"-
साक्षी धीरे से हसती हैं और ताली बजती है और खुश हो कर उछलने लगती है और उसको ऐसे खुश होता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वो बस साक्षी को देखता रहता है।
साक्षी फिर नीचे बैठ कर कहती है ,"तुम हमेशा हमेशा हमसे मिलने आना"-
"जैसे अपनी आज्ञा मेरी राजकुमारी"-
सिद्धार्थ की आवाज सुन कर साक्षी खिल खिलकर हसने लगती है और तभी सिद्धार्थ उससे कहता है -
"सुनो वो वो , हम कभी कभी तुम्हें छू सकते हैं और आज वो जो किया व"-
सिद्धार्थ बात पूरी कर पाता उसके पहले ही साक्षी कहती है "बहन"-
सिद्धार्थ: मैं तो मजाक कर रहा था।
तभी यह पर हर तरफ़ से सैनिक आने लगते है और सिद्धार्थ जल्दी से साक्षी का दुप्पटा ले कर उसको अच्छे से ढक देता है और धीरे से कहता है,"मुझे एक चीज चाहिए"-
साक्षी एकाएक सिद्धार्थ को सीरियस होते देख होती है तो धीरे से कहती है ," हम्म्म बोलो"-
"आज जो मैने तुम्हे किया, तुम्हे छूआ वो गलत नही था लेकिन तुम हमे वादा करो तुम्हे मेरे आलावा कोई और नही छुएगा"-
साक्षी धीरे से कहती है ," ठीक है वादा करती हूं, तुमने हमे अब अपना बना लिया तो तुम्हारे आलावा कोई और नही छुएगा"-
तभी साक्षी धीरे से कहती है, "क्या तुम हमसे पहले कभी मिले हो?"
साक्षी के सवाल का जवाब दे पाता उसके पहले सिद्धार्थ और साक्षी के पास बहुत सारे सैनिक और घुड़सवार आ कर खड़े हो जाते है।
और एक रथ से राजा जयराज और उसकी बेटी यशस्वी रथ से बाहर आती है और साक्षी को खुश हो कर कूदते हुए देखते है तो उसके चहरे पर अजीब सी मुस्कान आ जाती है।
यशस्वी धीरे से कहती है ," पिताश्री ये तो वही है जो पूरे गांव को डाकू से बचाया था"
तभी काया धीरे से कहती है, "महाराज ये वही लड़का है , जो सुबह राजकुमारी साक्षी को छेड़ रहा था"
यशस्वी जैसे ही ये सुनती है तो अपनी तलवार निकाल लेती है और धीरे से कहती है ," बदजात तुम्हारी हिम्मत"-
तभी काया की आवाज आती है -
"राजकुमारी उसके साथ होने पर, साक्षी राजकुमारी खुश होती है, और आप भी जानती है साक्षी का गुस्सा"
तभी राजा हसने लगता है और सिद्धार्थ को देखता है और यशस्वी को कहता है ," शांत पुत्री उसने कुछ गलत नही किया, और तो और हमे उसकी जरूरत है , सामने आने वाला हर कोई शत्रु नही होता, हमे उससे बात करने की जरूरत है"-
तभी उसके मन में कुल गुरु शक्ति दास की बात याद आती है," नियति बदल रही है और हम इस समय ऐसे बुरे वक्त में हम हार तो रहे ही है। तो क्या गुरु ने इसी लड़के की बात की थी"-
"तुम्हारी पुत्री की नियति ऐसे लड़के को खींच के लाएगी अब वो नियति मेरे ऊपर है"-
तभी राजा जयराज सिद्धार्थ की तरफ़ आता है
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. To be continued .... update posted.... Ab raja jayraj kya karte hai aur sidharth kaise sab Handel karta hai... ek taraf daaku ek taraf riyasat se dusmani... ab direct sindh ke raja.... Stay tunned ..... like target - 10 ... review dena ka .... And word around 3.7k .... stay tunned...
Bahut bahut accha hai brooo,,, ekdum lovelyअध्याय - 4 साक्षी और सिंध राजा से पहली मुलाकात
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
अब आगे --
रूही उस लड़की की बात सुन कर थोड़ा हैरान होती है और धीरे से कहती है।
"आज कुछ अजब हुआ , दीदी"
वही वो लड़की जो रूही की बहन और डाकुओं की सरदारनी थी वो हुक्का पीते हुए कहती है,"ऐसे क्या हो गया , जो तू इतना बावली हुए जा रही है, ज्यादा लोगो को मार दिया क्या?"-
रूही हंसते हुए कहती है," अरे दीदी मारने की जरूरत नही पड़ी , बिना मारे ही कर मिल गया, गांव वालो की तरफ से"-
इतना कहते हुआ रूही सब कुछ उसको बताने लगती है और सारी सचाई सुनने के बाद वो लड़की कहती है,"अजीब बात है ये तो, ऐसा आज तक तो हुआ नही हुआ"-
"रूही इसके बारे मैं अच्छे से पता कर, तो डाकू से कोई ऐसे बात नही करते"-
"जी आप निभर रहो, जब मै इससे मिलूंगी तो आपसे भी कह दूंगी"-
"अपने सभी रियासतों से सैनिक बुलावा लो, मैं नही चाहती इस युद्ध मै मेरे आदमी कमजोर पड़े, पूरे सिंध राज्य में 4 सूबे है , और एक सूबे में 2 रियासते है, और हमारे पास मालवा के ज्यादा सूबे नही है , क्युकी वहा की भी स्थिति सही नही, गुजरात और सिंध का युद्ध हमे ही नुकसान होगा"-
तभी रूही कहती है, " लेकिन बहन हम चाहे तो मालवा पर हमला कर के वो राज्य अपने अधीन कर सकते है"-
उसकी बात सुन कर वो लड़की हस्ती है और कहती है ,"नही! बाकी राजा को ये बर्दास्त नि होगा, लेकिन हमे कोई ऐसा ढूढना पड़ेगा जो राजा तो हो , लेकिन राज हमारा हो"-
रूही धीरे से कहती है,"वो दोनो लड़के बहन, मुझे यकीन है उन दोनो के दिमाग मैं कुछ चल रहा है , उनकी सोच युद्ध , और रणनीति दोनो में पारंगत है"-
"देखते है , अभी राजपूत रियासते जो हमारी मित्र है, उन्हे सिंध और गुजरात दोनो पर नज़र रखने को बोलो। गुजरात के सल्तनत से मिले है कुछ रियासतें , इसीलिए सिंध हार रहा है , राखीगढ़ी इसका गढ़ है"-
राखीगड़ी रियासत ~
इधर काव्या और आस्था हैरान हो कर सब देख रही थी, और उनके दिलों की धड़कन जो तेज थी , और डर खत्म हो गया और उसकी जगह एक अजीब से प्रेम ने ले ली।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की जय कार होने लगी , और सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान थी और उसने हस्ते हुए मन में कहा " यही तो करना था"-
तभी सिद्धार्थ ने आलोक को इशारा किया और आलोक ने इशारा समझते हुआ गांव वालो की तरफ़ चलना शुरू कर दिया।
और इधर सिद्धार्थ ने हल्के से स्माइल के साथ गगन को आजाद किया और उसके का कंधे पर हाथ रखा और कहा," उत्तम योद्धा है आप गगन, आपका साहस ही आपका परिचय है"-
गगन जो आज मौत के करीब था उसके पास एक औरत आती है और उसको उठाने लगती है और वो सिद्धार्थ के आगे हाथ जोड़ कर घुटने के बल बैठ जाती है।
"मेरा सुहाग बचाने के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद"-
उनको देख कर सिद्धार्थ हस्ता है और उनको उठने के लिया बोलता है तभी गगन की आवाज सुनाई पड़ती है।
"हम कहा से इतनी मोहरे और अनाज देंगे, हमे नहर का पानी नही मिलता , यह के रियासत दार मानू हमे कुछ पानी नही देता ,हमारी स्तिथि कमजोर है"-
सिद्धार्थ उसको कहता है," जानते हो गगन तुम आज हारे कैसे और मैं जीता कैसे?"-
गगन हैरानी मैं था और अपना सर झुका लिया।
"क्युकी तुम, योद्धा तो उत्तम हो लेकिन मार्ग सही नही चुन पाते, अगर रियासत ही हमारी हो तो?"-
गगन उसकी बात सुन कर झेप जाता है और कहता है,"हमारे पास अस्त्र और शस्त्र नही है, हमारे पास घोड़े नही है"-
सिद्धार्थ उसकी तरफ देखा और ऊपर चांद देखते हुए कहता है," देखो गगन तुम्हारी जान बचाई है? ना मैने तो बाकी चीज मैं देख लूंगा रात्रि काफी हो गई है, जाओ आराम करो , जो चोट आई है उन्हे लेप लगा लेना"-
तभी गगन अपना सर उठा कर सिद्धार्थ को देखता है और अपना मुकुट जो उस समय के लोगो की सबसे बड़ी इज्जत थी उसको सिद्धार्थ के पैर के सामने रखते हुए कहता है," आज से ये गगन आपका गुलाम सिद्धार्थ, जब तक मेरे प्राण रहेंगे तब तक आपका जान को आंच नही आने दूंगा"-
तभी सिद्धार्थ उसका मुकुट वापिस उसके सर पर रखते हुए कहता है," एक राजा के लिया , सम्मान की बात तब होती है जब उसके आदमियों का सर गर्व से ऊंचा रहे , तो गगन अपना सर हमेशा ऊंचा रखो"-
"अभी तो तुम्हे बहुत सी जंग लड़नी है, बहुत सी सल्तनत को गिराना है"-
तभी उसकी बात सुन कर गगन हैरान हो कर कहता है , आपको राजा बनाना है
उसकी बात सुन कर आलोक जो अभी आ गया था वो हस्ते हुए कहता है,"आलोक हम राजा नही, सम्राट बनेंगे हम दोनो वो महाराजा बनेंगे जिसके आगे राजाओं का सर जुकेगा"-
इधर आलोक गांव वालो को सब समझाने चला जाता है और गगन सिद्धार्थ के घर के सामने और अगल बगल उसके आदमी को कुछ इशारा करता है।
इधर सिद्धार्थ के पास काव्या आती है और उसके हल्के आवाज से कहती है," चलिए घर में , मैं खाना बनाती हूं"-
सिद्धार्थ काव्या को देख कर हस्त है काव्या को देख कर कोई भी एक बार को पिगल जाए , काव्या सिद्धार्थ को अंदर ले जाना चाहती थी, और अपने हक जता कर सब को जैसे साबित कर रही हो ये मेरा है।
तभी काव्या अपनी कुटिया में चली जाती है और आस्था उसके पीछे पीछे इधर सिद्धार्थ देखता है की कई आंखे उसको और आलोक को देख रही थी, और सिद्धार्थ की नज़र उन सब पर पड़ती है तो उसका रोए ही खड़े हो जाते है।
सिद्धार्थ की कुटिया~
"अरे काव्या तू इतनी जल्दी मैं कहा जा रही है?"-
काव्या जो जल्दी से अपने आंगन में बाल्टी जो साफ जल से भरी थी उसको बैल के पास फेक कर बाल्टी खाली कर देती है।
"ये तूने बाल्टी क्यों खाली कर दी ?"-
आस्था की आवाज सुन कर काव्या उसको गुस्से में देखती है," मैने कहा खाली की बाल्टी"-
उसको गुस्से में देख कर आस्था कहती है,"हा हा तूने नही की खाली"-
काव्या जल्दी से खाली बाल्टी ले कर सिद्धार्थ के पास आती है और कहती है ,"ये लीजिए जाइए सरोवर से पानी ले आइए , तब तक हम खाना बना देते है"-
सिद्धार्थ बाल्टी उठा कर चल देता है और पलट कर जैसे ही देखता है उसकी नज़र काव्या की गांड पर पड़ती है जो देख कर ही सिद्धार्थ का लोड़ा खड़ा हो जाता है।
काव्या को कुछ आभास होता है और वो पलट कर देखती है तो उसकी सास अटक जाती है और भाग कर कुटिया में घुस जाती है और उसकी छाती ऊपर नीचे होने लगती है।
"ऐसे कौन देखता है खुले आम"-
"शर्म हया सब बेच आए है क्या ये"-
इधर काव्या धीरे से कहती है "माना भी कर नही सकती"-
इधर सिद्धार्थ हल्के से हस्ते हुए अपने आप को कंट्रोल करते हुए कहता है" नही नही,! वो मेरी बेटी है नही, मैं ये क्या कर रहा हूं , खैर ये उसकी गलती है इतनी सुंदर है पूरा तनु पर गई है"-
ऐसे ही अपने में बडबड़ते हुए सिद्धार्थ जैसे ही झरने के पास आता है उसके हाथ से बाल्टी गिर पड़ती है और वो हैरान हो कर सामने देखता है।
"साक्षी"-
सामने साक्षी को देख सिद्धार्थ हैरान हो जाता है और उसके कुछ समझ नही आता है।
"इतनी रात ये लड़की, पानी में स्नान कर रही है वो भी इसका दिमाग सही नही है, बच्चों जैसे है, इतनी रात कौन नहाता है वो भी इतने थंडे पानी में"-
तभी सिद्धार्थ देखता है आस पास कोई सैनिक नही तो वो साक्षी के पास जाने लगता है।
साक्षी पूरी पानी में थी उसका गठीला बदन, गीले बाल कमल के फूल जैसी खुशबू, महकता हुआ बदन, दूर से ही सिद्धार्थ की सांसें बढ़ा दे रहे थे, सिद्धार्थ के सामने उसकी साक्षी खड़ी थी।
"चल कर देखू इतनी रात मोहतरमा यहा क्या कर रही है, एक चीज तो है मेरी साक्षी और तनु जहा रहती है वहा ही बवाल मचाई रहती है, इनकी हरकतें अलग ही लेवल पर रहती है"-
इधर सिद्धार्थ साक्षी के पास जाने के लिया पानी में उतर गया और उसकी तरफ चलने लगा।
अचानक साक्षी को लगता है कोई उसकी तरफ़ आ रहा है तो साक्षी तुरंत पलट कर देखती है तो वहा सिद्धार्थ को देख कर हैरान हो जाती है।
"अरे तुम यहा क्या कर रहे हो?"-
साक्षी की मीठी आवाज सुन कर सिद्धार्थ कहता है," तुम क्या कर रही हो"-
"अरे मैं तो खेल रही हो , मछली मछली"-
"ही ही ही!" हस्ते हुए साक्षी बोलती है और सिद्धार्थ अपना सर पकड़ लेता है और धीरे से दाए बाए देखता है और धीरे से कहता है," हमे भी खेला लो ना अपने साथ"-
साक्षी के बदन को निहारते हुए वो प्यार से कहता है और साक्षी कहती है," क्या खेलोगे हमारे साथ"-
सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," वो वो वो , हा हा हम दोनो पकड़म पकड़ाई खेलते है ना, अभी बाद में सुबह कुछ और खेलेंगे"-
साक्षी खुशी से ताली बजाने लगती है और धीरे से भागते हुए कहती है ,"तुम हमे पकड़ो , मैं बहुत तेज हूं फुर्र से भाग जाती हूं"-
साक्षी की आवाज सुन कर सिद्धार्थ हस्त है और थोड़ी देर उसको देखता है और फिर उसके तरफ भाग जाता है और उसके पास आ कर साक्षी थोड़ा धीरे धीरे भाग रही थी और हस हस कर पलट पलट के सिद्धार्थ को देखती है की वो चला तो नही गया।
थोड़ी देर में साक्षी थोड़ा हैरान हो कर पलट कर देखती है की सिद्धार्थ उसको नही दिखा तो वो थोड़ा रोवासी हो जाती है और रोते हुए कहती है," मेरा साथ कोई नही खेलता , सब हमे अकेला छोड़ देता है"-
तभी साक्षी को अपनी कमर पर किसी के हाथ का आभास होता है तो वो पलट कर देखती है तो उसकी नाक सिद्धार्थ के नाक पर लग जाती है और साक्षी को अपने से चिपका देख सिद्धार्थ उसको अपने से सटा लेता है और उसका लन्ड तो पहले से ही खड़ा था जो साक्षी के पीछे थोड़ा चुभने लगता है।
साक्षी भले ही दिमाग से कमजोर थी लेकिन थी तो एक स्त्री ही, थी तो वो सिद्धार्थ की उसके आंखे कब बंद हो गई उसको आभास हो नही हुआ।
तभी साक्षी जो अपनी आंखे बंद कर के धीरे से वही खड़ी थी वो सिद्धार्थ की आवाज सुन कर आंखे खोलती है।
"क्या हुआ साक्षी, इतनी चुप क्यों हो?"
"कुछ नही , हमे अजीब लग रहा है हमारा जी मिचला रहा है चलो सरोवर से बाहर चलते है?"-
तभी साक्षी को सिद्धार्थ छोर देता है और उससे दूर हट जाता है और साक्षी उससे धीरे से कहती है।
"तुम हमसे रुष्ठ हो गए?, अब हमसे बात नही करोगे ना *sniff* *Sniff*"-
तभी सिद्धार्थ उससे कहता है ,"नही हम रुष्ठ नही हुए लेकिन हमे तो आप पकड़ी ही नही इसीलिए हम नाराज़ है तनिक"-
साक्षी उससे धीरे से कहती है एक मीठे से स्वर में -" हम बाद में खेल लेंगे ना"-
तभी सिद्धार्थ कहता है "हमे छोटा सा खेल खेलने दीजिए ना बस 2 मिनट लगेंगे, फिर आप जो कहेंगी वो खेलेंगे हम हमेशा"-
साक्षी कहती है "फिर तुम हमसे रुष्ठ नहीं होगे ना"-
सिद्धार्थ कहता है," हा हा , पक्का"-
साक्षी धीरे से कहती है ," चलो फिर बताओ कौन सा खेल है जो इतनी जल्दी खत्म हो जाता है जिससे हमारे मित्र की गुस्सा शांत हो जाएगा"-
सिद्धार्थ साक्षी को अपने पास बुलाया और अपने सीधे सामने खड़ा कर दिया, और उसने साक्षी का हाथ अपने कंधे पर रखवा दिया और जैसे ही साक्षी ने अपना हाथ सिद्धार्थ के कंधे पर रखा सिद्धार्थ ने उसकी कमर जकड़ कर उसको अपनी गिरफ्त में ले लिया।
उसने साक्षी को अपनी गिरफ्त में ले लिया और अपनी नाक साक्षी की नाक पर रख कर धीरे से कहा "आपको अपनी आंखे 2 मिनट तक नही खोलनी"-
इधर सिद्धार्थ के सामने ही उसकी सबसे खास औरत खड़ी थी जिससे सिद्धार्थ बेइंतहा प्यार करता था और सिद्धार्थ अपना होश खो बैठा और साक्षी को अपने पूरा बदन से चिपका लिया और उसके सीने के उभार को अपने सीने पर महसूस करने लगा ,और धीरे से कुछ बढ़बड़ा रहा था।
और इधर साक्षी की दिल की धड़कन बहुत जोरो से चल रही थी उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थी , उसको अहसास था की ये खेल अजीब था लेकिन किसी कारणवस वो सिद्धार्थ के करीब अच्छा महसूस कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ के हाथ साक्षी को अपने झांग पर महसूस होता है और सिद्धार्थ ने साक्षी के दोनो पैर अपनी कमर के आस पास जकड़वा दिया।
और साक्षी की मन में अजीब सी आवाज़ उठने लगी।
तभी साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज़ पड़ती है जो बहुत धीरे थी जैसे सिद्धार्थ बडबडा रहा हो -
"मेरी साक्षी, मेरी साक्षी , हमसे दूर मत हो, आप सिर्फ मेरी है आपका रोम रोम बस मेरा है"--
यही बड़बड़ाते उसके हाथ साक्षी के गालों पर चले गए और साक्षी के कपड़े जो पूरे उसके बदन को ढके हुए थे उसको सिद्धार्थ ने कंधे से थोड़ा हटा दिया और साक्षी को अपने से चिपका लिया
इधर साक्षी की मुंह से हल्की सी सीत्कार फूट रही और साक्षी को अपने कमर में कुछ चुभन महसूस होने लगी और उसको जैसे ही आभास हुआ कि उसके वस्त्र उतर रहे थे तो उसको कुछ याद आया और वो एक पल को रुक गई और मन में सोचती है, " नही ये कोई खेल नही, क्या ये गलत कर रहा है कुछ हमारे साथ"-
साक्षी और कुछ सोचती उसके पहले साक्षी को आभास होता है कोई उसके होठों को चूम रहा है और उसके दोनो गाल पकड़ रखे है -
सिद्धार्थ एक पल को इतना खो गया था की अब उसको इतना भी अहसास नही था की उसके सामने वो पहले वाली साक्षी नही थी -
जैसे ही सिद्धार्थ को इस चीज का अहसास होता है तो वो जल्दी से दूर हट जाता है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगता है, और उसी समय बिना वक्त गंवाए उसने साक्षी के कंधे वापिस धक दिए , बाकी सब साक्षी का पहले ही ढका हुआ था।
और उसने धीरे से साक्षी से कहा ," चलो सरोवर से बाहर चलते है"-
साक्षी कुछ बोल नहीं पा रही थी बस काप रही थी और उसका सिद्धार्थ ने हाथ हाथ थामा और सरोवर से बाहर ले कर चलने लगा।
साक्षी को अपना हाथ थाम कर चलता देख साक्षी बस अपने सांसें कंट्रोल कर रही थी और सिद्धार्थ के पीछे पीछे चल रही थी।
"आप ठीक तो है मित्र"-
जैसे ही साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज जाती है वो अपनी सोच से बाहर आती है और धीरे से रुकते रुकते बोलती है," आप आप आप हमारे साथ कुछ गलत तो नही कर रहे थे, हमारी बहन कहती है कोई आपके वस्त्र उतारे और आपके नज़दीक आए तो उसको मार देना"-
तभी सिद्धार्थ जो आग जला रहा था वो आग जलाते जलाते रोने लगता है -
*Sniff sniff*
"आप हमे मार देगी *sniff* मेरी मित्र हमे मार देगी *snifff* "-
यही कहते हुआ सिद्धार्थ जोर जोर से रोने लगता है और उसको रोता देख साक्षी अपना सर पकड़ लेती है," ये तो हमसे भी ज्यादा रोता है"
"हम तो आपके साथ खेल रहे थे आप हमे मार देगी, *sniff sniff* "-
"तो आपने हमारे वस्त्र क्यों उतारे? और आपने जो वो किया वो क्या था हमे सच सच बताओ फिर हम आपको नही मारेंगे और खेलने भी देंगे", साक्षी आग में अपने हाथ गर्म करते हुए कहती है।
तभी सिद्धार्थ अपने आसू पोछता है और धीरे से कहता ," वो वो ना एक बहुत खास चीज़ थी , जब कोई दो दोस्त नए नए बनते है ना तो ये खेल खेलते है इससे वो दोनो हमेशा साथ रहते है जिदंगी भर , अगर आप चाहते हो की आपके सामने वाला केवल आपका रहे तो आप उसके होठ अपने होठ से मिला दो, इससे सामने वाला केवल आपका हो जाता है फिर आपको उसकी सारी बात माननी पड़ती है, उसको खुश रखना पड़ता है"-
उसकी बात सुन कर साक्षी कहती है," अच्छा ऐसा है, तो इसका मलतब अब मैं केवल तुम्हारी हो गई?"-
उसकी बात सुन कर सिद्धार्थ कहता है ," हा केवल मेरी "-
साक्षी कहती है"ठीक है हम बहन को बता देंगे अब"--
"नही नही नही नही, साक्षी ऐसा मत करना कृपया कर केहम मर जाएंगे"-, ये बोलते हुए सिद्धार्थ की गांड इस बार सच में फटी हुई थी।
तभी साक्षी कहती है ," तो तुम्हे ये बता कर ये करना था ना? और अगर तुमने हमारे वस्त्र अब उतारे तो हम पापा को बता देंगे और बिना वजह हमे छुना मत , और ये तुम्हारा जो भी था हमे नही पसंद हमसे बिना पूछे ये भी मत करना, हमसे बिना पूछ कुछ भी मत करना। और ये तुम्हारा जो भी था होठ वैगरा ये भी हमसे बिना पूछे मत करना हमसे दूर रहना"-
उसकी पूरी बात सुन कर सिद्धार्थ का तो मुंह लटक जाता है और धीरे से कहता है ,"ठीक है"-
"फिर नही बातूंगी में किसी को भी। वैसे अब तुम्हारी हूं ना, मैं तो तुम हमेशा मेरी बात मानोगे ना, तुम्हे हमेसा माननी पड़ेगी", साक्षी एक अजीब सी मुस्कान के साथ बोली।
सिद्धार्थ ने जैसे ही ये सुना उसकी सिटी पीटी गुल हो गई , सिद्धार्थ जानता था साक्षी को साक्षी के साथ वो हमेशा रहा है उसकी यादें उसकी हरकते जब वो ऐसा बोलती है तो इसका एक ही मतलब है ,"लोड़े लगने वाले है"-
और साक्षी सिद्धार्थ को ऐसे डरता देख , हसने लगती है और धीरे से कहती है ," इतना मत सोचो , अब तुमने मुझे अपना बना लिया है तुमने ही कहा था मेरी बात माननी पड़ेगी"-
सिद्धार्थ धीरे से सास लेते हुए बोलता हैं मैं ही मादरचोद हूं , थोड़ी देर हवस कंट्रोल नही कर सकता था तभी वो धीरे से आहे भरता हुआ कहता है," हा मानूंगा"-
साक्षी धीरे से हसती हैं और ताली बजती है और खुश हो कर उछलने लगती है और उसको ऐसे खुश होता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वो बस साक्षी को देखता रहता है।
साक्षी फिर नीचे बैठ कर कहती है ,"तुम हमेशा हमेशा हमसे मिलने आना"-
"जैसे अपनी आज्ञा मेरी राजकुमारी"-
सिद्धार्थ की आवाज सुन कर साक्षी खिल खिलकर हसने लगती है और तभी सिद्धार्थ उससे कहता है -
"सुनो वो वो , हम कभी कभी तुम्हें छू सकते हैं और आज वो जो किया व"-
सिद्धार्थ बात पूरी कर पाता उसके पहले ही साक्षी कहती है "बहन"-
सिद्धार्थ: मैं तो मजाक कर रहा था।
तभी यह पर हर तरफ़ से सैनिक आने लगते है और सिद्धार्थ जल्दी से साक्षी का दुप्पटा ले कर उसको अच्छे से ढक देता है और धीरे से कहता है,"मुझे एक चीज चाहिए"-
साक्षी एकाएक सिद्धार्थ को सीरियस होते देख होती है तो धीरे से कहती है ," हम्म्म बोलो"-
"आज जो मैने तुम्हे किया, तुम्हे छूआ वो गलत नही था लेकिन तुम हमे वादा करो तुम्हे मेरे आलावा कोई और नही छुएगा"-
साक्षी धीरे से कहती है ," ठीक है वादा करती हूं, तुमने हमे अब अपना बना लिया तो तुम्हारे आलावा कोई और नही छुएगा"-
तभी साक्षी धीरे से कहती है, "क्या तुम हमसे पहले कभी मिले हो?"
साक्षी के सवाल का जवाब दे पाता उसके पहले सिद्धार्थ और साक्षी के पास बहुत सारे सैनिक और घुड़सवार आ कर खड़े हो जाते है।
और एक रथ से राजा जयराज और उसकी बेटी यशस्वी रथ से बाहर आती है और साक्षी को खुश हो कर कूदते हुए देखते है तो उसके चहरे पर अजीब सी मुस्कान आ जाती है।
यशस्वी धीरे से कहती है ," पिताश्री ये तो वही है जो पूरे गांव को डाकू से बचाया था"
तभी काया धीरे से कहती है, "महाराज ये वही लड़का है , जो सुबह राजकुमारी साक्षी को छेड़ रहा था"
यशस्वी जैसे ही ये सुनती है तो अपनी तलवार निकाल लेती है और धीरे से कहती है ," बदजात तुम्हारी हिम्मत"-
तभी काया की आवाज आती है -
"राजकुमारी उसके साथ होने पर, साक्षी राजकुमारी खुश होती है, और आप भी जानती है साक्षी का गुस्सा"
तभी राजा हसने लगता है और सिद्धार्थ को देखता है और यशस्वी को कहता है ," शांत पुत्री उसने कुछ गलत नही किया, और तो और हमे उसकी जरूरत है , सामने आने वाला हर कोई शत्रु नही होता, हमे उससे बात करने की जरूरत है"-
तभी उसके मन में कुल गुरु शक्ति दास की बात याद आती है," नियति बदल रही है और हम इस समय ऐसे बुरे वक्त में हम हार तो रहे ही है। तो क्या गुरु ने इसी लड़के की बात की थी"-
"तुम्हारी पुत्री की नियति ऐसे लड़के को खींच के लाएगी अब वो नियति मेरे ऊपर है"-
तभी राजा जयराज सिद्धार्थ की तरफ़ आता है
.
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. To be continued .... update posted.... Ab raja jayraj kya karte hai aur sidharth kaise sab Handel karta hai... ek taraf daaku ek taraf riyasat se dusmani... ab direct sindh ke raja.... Stay tunned ..... like target - 10 ... review dena ka .... And word around 3.7k .... stay tunned...
Ohkeyhahaha...!!! ruchi is back... and dusri kaun hai wo time par pta chal jayga but first update main maina hint diya tha wo kaun hai ab aage pta chal jayga wo kaun hai... abhi 4 update pado![]()
Bhot hi saaandaar dilchasp or dilfek updateअध्याय - 4 साक्षी और सिंध राजा से पहली मुलाकात
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
अब आगे --
रूही उस लड़की की बात सुन कर थोड़ा हैरान होती है और धीरे से कहती है।
"आज कुछ अजब हुआ , दीदी"
वही वो लड़की जो रूही की बहन और डाकुओं की सरदारनी थी वो हुक्का पीते हुए कहती है,"ऐसे क्या हो गया , जो तू इतना बावली हुए जा रही है, ज्यादा लोगो को मार दिया क्या?"-
रूही हंसते हुए कहती है," अरे दीदी मारने की जरूरत नही पड़ी , बिना मारे ही कर मिल गया, गांव वालो की तरफ से"-
इतना कहते हुआ रूही सब कुछ उसको बताने लगती है और सारी सचाई सुनने के बाद वो लड़की कहती है,"अजीब बात है ये तो, ऐसा आज तक तो हुआ नही हुआ"-
"रूही इसके बारे मैं अच्छे से पता कर, तो डाकू से कोई ऐसे बात नही करते"-
"जी आप निभर रहो, जब मै इससे मिलूंगी तो आपसे भी कह दूंगी"-
"अपने सभी रियासतों से सैनिक बुलावा लो, मैं नही चाहती इस युद्ध मै मेरे आदमी कमजोर पड़े, पूरे सिंध राज्य में 4 सूबे है , और एक सूबे में 2 रियासते है, और हमारे पास मालवा के ज्यादा सूबे नही है , क्युकी वहा की भी स्थिति सही नही, गुजरात और सिंध का युद्ध हमे ही नुकसान होगा"-
तभी रूही कहती है, " लेकिन बहन हम चाहे तो मालवा पर हमला कर के वो राज्य अपने अधीन कर सकते है"-
उसकी बात सुन कर वो लड़की हस्ती है और कहती है ,"नही! बाकी राजा को ये बर्दास्त नि होगा, लेकिन हमे कोई ऐसा ढूढना पड़ेगा जो राजा तो हो , लेकिन राज हमारा हो"-
रूही धीरे से कहती है,"वो दोनो लड़के बहन, मुझे यकीन है उन दोनो के दिमाग मैं कुछ चल रहा है , उनकी सोच युद्ध , और रणनीति दोनो में पारंगत है"-
"देखते है , अभी राजपूत रियासते जो हमारी मित्र है, उन्हे सिंध और गुजरात दोनो पर नज़र रखने को बोलो। गुजरात के सल्तनत से मिले है कुछ रियासतें , इसीलिए सिंध हार रहा है , राखीगढ़ी इसका गढ़ है"-
राखीगड़ी रियासत ~
इधर काव्या और आस्था हैरान हो कर सब देख रही थी, और उनके दिलों की धड़कन जो तेज थी , और डर खत्म हो गया और उसकी जगह एक अजीब से प्रेम ने ले ली।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की जय कार होने लगी , और सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान थी और उसने हस्ते हुए मन में कहा " यही तो करना था"-
तभी सिद्धार्थ ने आलोक को इशारा किया और आलोक ने इशारा समझते हुआ गांव वालो की तरफ़ चलना शुरू कर दिया।
और इधर सिद्धार्थ ने हल्के से स्माइल के साथ गगन को आजाद किया और उसके का कंधे पर हाथ रखा और कहा," उत्तम योद्धा है आप गगन, आपका साहस ही आपका परिचय है"-
गगन जो आज मौत के करीब था उसके पास एक औरत आती है और उसको उठाने लगती है और वो सिद्धार्थ के आगे हाथ जोड़ कर घुटने के बल बैठ जाती है।
"मेरा सुहाग बचाने के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद"-
उनको देख कर सिद्धार्थ हस्ता है और उनको उठने के लिया बोलता है तभी गगन की आवाज सुनाई पड़ती है।
"हम कहा से इतनी मोहरे और अनाज देंगे, हमे नहर का पानी नही मिलता , यह के रियासत दार मानू हमे कुछ पानी नही देता ,हमारी स्तिथि कमजोर है"-
सिद्धार्थ उसको कहता है," जानते हो गगन तुम आज हारे कैसे और मैं जीता कैसे?"-
गगन हैरानी मैं था और अपना सर झुका लिया।
"क्युकी तुम, योद्धा तो उत्तम हो लेकिन मार्ग सही नही चुन पाते, अगर रियासत ही हमारी हो तो?"-
गगन उसकी बात सुन कर झेप जाता है और कहता है,"हमारे पास अस्त्र और शस्त्र नही है, हमारे पास घोड़े नही है"-
सिद्धार्थ उसकी तरफ देखा और ऊपर चांद देखते हुए कहता है," देखो गगन तुम्हारी जान बचाई है? ना मैने तो बाकी चीज मैं देख लूंगा रात्रि काफी हो गई है, जाओ आराम करो , जो चोट आई है उन्हे लेप लगा लेना"-
तभी गगन अपना सर उठा कर सिद्धार्थ को देखता है और अपना मुकुट जो उस समय के लोगो की सबसे बड़ी इज्जत थी उसको सिद्धार्थ के पैर के सामने रखते हुए कहता है," आज से ये गगन आपका गुलाम सिद्धार्थ, जब तक मेरे प्राण रहेंगे तब तक आपका जान को आंच नही आने दूंगा"-
तभी सिद्धार्थ उसका मुकुट वापिस उसके सर पर रखते हुए कहता है," एक राजा के लिया , सम्मान की बात तब होती है जब उसके आदमियों का सर गर्व से ऊंचा रहे , तो गगन अपना सर हमेशा ऊंचा रखो"-
"अभी तो तुम्हे बहुत सी जंग लड़नी है, बहुत सी सल्तनत को गिराना है"-
तभी उसकी बात सुन कर गगन हैरान हो कर कहता है , आपको राजा बनाना है
उसकी बात सुन कर आलोक जो अभी आ गया था वो हस्ते हुए कहता है,"आलोक हम राजा नही, सम्राट बनेंगे हम दोनो वो महाराजा बनेंगे जिसके आगे राजाओं का सर जुकेगा"-
इधर आलोक गांव वालो को सब समझाने चला जाता है और गगन सिद्धार्थ के घर के सामने और अगल बगल उसके आदमी को कुछ इशारा करता है।
इधर सिद्धार्थ के पास काव्या आती है और उसके हल्के आवाज से कहती है," चलिए घर में , मैं खाना बनाती हूं"-
सिद्धार्थ काव्या को देख कर हस्त है काव्या को देख कर कोई भी एक बार को पिगल जाए , काव्या सिद्धार्थ को अंदर ले जाना चाहती थी, और अपने हक जता कर सब को जैसे साबित कर रही हो ये मेरा है।
तभी काव्या अपनी कुटिया में चली जाती है और आस्था उसके पीछे पीछे इधर सिद्धार्थ देखता है की कई आंखे उसको और आलोक को देख रही थी, और सिद्धार्थ की नज़र उन सब पर पड़ती है तो उसका रोए ही खड़े हो जाते है।
सिद्धार्थ की कुटिया~
"अरे काव्या तू इतनी जल्दी मैं कहा जा रही है?"-
काव्या जो जल्दी से अपने आंगन में बाल्टी जो साफ जल से भरी थी उसको बैल के पास फेक कर बाल्टी खाली कर देती है।
"ये तूने बाल्टी क्यों खाली कर दी ?"-
आस्था की आवाज सुन कर काव्या उसको गुस्से में देखती है," मैने कहा खाली की बाल्टी"-
उसको गुस्से में देख कर आस्था कहती है,"हा हा तूने नही की खाली"-
काव्या जल्दी से खाली बाल्टी ले कर सिद्धार्थ के पास आती है और कहती है ,"ये लीजिए जाइए सरोवर से पानी ले आइए , तब तक हम खाना बना देते है"-
सिद्धार्थ बाल्टी उठा कर चल देता है और पलट कर जैसे ही देखता है उसकी नज़र काव्या की गांड पर पड़ती है जो देख कर ही सिद्धार्थ का लोड़ा खड़ा हो जाता है।
काव्या को कुछ आभास होता है और वो पलट कर देखती है तो उसकी सास अटक जाती है और भाग कर कुटिया में घुस जाती है और उसकी छाती ऊपर नीचे होने लगती है।
"ऐसे कौन देखता है खुले आम"-
"शर्म हया सब बेच आए है क्या ये"-
इधर काव्या धीरे से कहती है "माना भी कर नही सकती"-
इधर सिद्धार्थ हल्के से हस्ते हुए अपने आप को कंट्रोल करते हुए कहता है" नही नही,! वो मेरी बेटी है नही, मैं ये क्या कर रहा हूं , खैर ये उसकी गलती है इतनी सुंदर है पूरा तनु पर गई है"-
ऐसे ही अपने में बडबड़ते हुए सिद्धार्थ जैसे ही झरने के पास आता है उसके हाथ से बाल्टी गिर पड़ती है और वो हैरान हो कर सामने देखता है।
"साक्षी"-
सामने साक्षी को देख सिद्धार्थ हैरान हो जाता है और उसके कुछ समझ नही आता है।
"इतनी रात ये लड़की, पानी में स्नान कर रही है वो भी इसका दिमाग सही नही है, बच्चों जैसे है, इतनी रात कौन नहाता है वो भी इतने थंडे पानी में"-
तभी सिद्धार्थ देखता है आस पास कोई सैनिक नही तो वो साक्षी के पास जाने लगता है।
साक्षी पूरी पानी में थी उसका गठीला बदन, गीले बाल कमल के फूल जैसी खुशबू, महकता हुआ बदन, दूर से ही सिद्धार्थ की सांसें बढ़ा दे रहे थे, सिद्धार्थ के सामने उसकी साक्षी खड़ी थी।
"चल कर देखू इतनी रात मोहतरमा यहा क्या कर रही है, एक चीज तो है मेरी साक्षी और तनु जहा रहती है वहा ही बवाल मचाई रहती है, इनकी हरकतें अलग ही लेवल पर रहती है"-
इधर सिद्धार्थ साक्षी के पास जाने के लिया पानी में उतर गया और उसकी तरफ चलने लगा।
अचानक साक्षी को लगता है कोई उसकी तरफ़ आ रहा है तो साक्षी तुरंत पलट कर देखती है तो वहा सिद्धार्थ को देख कर हैरान हो जाती है।
"अरे तुम यहा क्या कर रहे हो?"-
साक्षी की मीठी आवाज सुन कर सिद्धार्थ कहता है," तुम क्या कर रही हो"-
"अरे मैं तो खेल रही हो , मछली मछली"-
"ही ही ही!" हस्ते हुए साक्षी बोलती है और सिद्धार्थ अपना सर पकड़ लेता है और धीरे से दाए बाए देखता है और धीरे से कहता है," हमे भी खेला लो ना अपने साथ"-
साक्षी के बदन को निहारते हुए वो प्यार से कहता है और साक्षी कहती है," क्या खेलोगे हमारे साथ"-
सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," वो वो वो , हा हा हम दोनो पकड़म पकड़ाई खेलते है ना, अभी बाद में सुबह कुछ और खेलेंगे"-
साक्षी खुशी से ताली बजाने लगती है और धीरे से भागते हुए कहती है ,"तुम हमे पकड़ो , मैं बहुत तेज हूं फुर्र से भाग जाती हूं"-
साक्षी की आवाज सुन कर सिद्धार्थ हस्त है और थोड़ी देर उसको देखता है और फिर उसके तरफ भाग जाता है और उसके पास आ कर साक्षी थोड़ा धीरे धीरे भाग रही थी और हस हस कर पलट पलट के सिद्धार्थ को देखती है की वो चला तो नही गया।
थोड़ी देर में साक्षी थोड़ा हैरान हो कर पलट कर देखती है की सिद्धार्थ उसको नही दिखा तो वो थोड़ा रोवासी हो जाती है और रोते हुए कहती है," मेरा साथ कोई नही खेलता , सब हमे अकेला छोड़ देता है"-
तभी साक्षी को अपनी कमर पर किसी के हाथ का आभास होता है तो वो पलट कर देखती है तो उसकी नाक सिद्धार्थ के नाक पर लग जाती है और साक्षी को अपने से चिपका देख सिद्धार्थ उसको अपने से सटा लेता है और उसका लन्ड तो पहले से ही खड़ा था जो साक्षी के पीछे थोड़ा चुभने लगता है।
साक्षी भले ही दिमाग से कमजोर थी लेकिन थी तो एक स्त्री ही, थी तो वो सिद्धार्थ की उसके आंखे कब बंद हो गई उसको आभास हो नही हुआ।
तभी साक्षी जो अपनी आंखे बंद कर के धीरे से वही खड़ी थी वो सिद्धार्थ की आवाज सुन कर आंखे खोलती है।
"क्या हुआ साक्षी, इतनी चुप क्यों हो?"
"कुछ नही , हमे अजीब लग रहा है हमारा जी मिचला रहा है चलो सरोवर से बाहर चलते है?"-
तभी साक्षी को सिद्धार्थ छोर देता है और उससे दूर हट जाता है और साक्षी उससे धीरे से कहती है।
"तुम हमसे रुष्ठ हो गए?, अब हमसे बात नही करोगे ना *sniff* *Sniff*"-
तभी सिद्धार्थ उससे कहता है ,"नही हम रुष्ठ नही हुए लेकिन हमे तो आप पकड़ी ही नही इसीलिए हम नाराज़ है तनिक"-
साक्षी उससे धीरे से कहती है एक मीठे से स्वर में -" हम बाद में खेल लेंगे ना"-
तभी सिद्धार्थ कहता है "हमे छोटा सा खेल खेलने दीजिए ना बस 2 मिनट लगेंगे, फिर आप जो कहेंगी वो खेलेंगे हम हमेशा"-
साक्षी कहती है "फिर तुम हमसे रुष्ठ नहीं होगे ना"-
सिद्धार्थ कहता है," हा हा , पक्का"-
साक्षी धीरे से कहती है ," चलो फिर बताओ कौन सा खेल है जो इतनी जल्दी खत्म हो जाता है जिससे हमारे मित्र की गुस्सा शांत हो जाएगा"-
सिद्धार्थ साक्षी को अपने पास बुलाया और अपने सीधे सामने खड़ा कर दिया, और उसने साक्षी का हाथ अपने कंधे पर रखवा दिया और जैसे ही साक्षी ने अपना हाथ सिद्धार्थ के कंधे पर रखा सिद्धार्थ ने उसकी कमर जकड़ कर उसको अपनी गिरफ्त में ले लिया।
उसने साक्षी को अपनी गिरफ्त में ले लिया और अपनी नाक साक्षी की नाक पर रख कर धीरे से कहा "आपको अपनी आंखे 2 मिनट तक नही खोलनी"-
इधर सिद्धार्थ के सामने ही उसकी सबसे खास औरत खड़ी थी जिससे सिद्धार्थ बेइंतहा प्यार करता था और सिद्धार्थ अपना होश खो बैठा और साक्षी को अपने पूरा बदन से चिपका लिया और उसके सीने के उभार को अपने सीने पर महसूस करने लगा ,और धीरे से कुछ बढ़बड़ा रहा था।
और इधर साक्षी की दिल की धड़कन बहुत जोरो से चल रही थी उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थी , उसको अहसास था की ये खेल अजीब था लेकिन किसी कारणवस वो सिद्धार्थ के करीब अच्छा महसूस कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ के हाथ साक्षी को अपने झांग पर महसूस होता है और सिद्धार्थ ने साक्षी के दोनो पैर अपनी कमर के आस पास जकड़वा दिया।
और साक्षी की मन में अजीब सी आवाज़ उठने लगी।
तभी साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज़ पड़ती है जो बहुत धीरे थी जैसे सिद्धार्थ बडबडा रहा हो -
"मेरी साक्षी, मेरी साक्षी , हमसे दूर मत हो, आप सिर्फ मेरी है आपका रोम रोम बस मेरा है"--
यही बड़बड़ाते उसके हाथ साक्षी के गालों पर चले गए और साक्षी के कपड़े जो पूरे उसके बदन को ढके हुए थे उसको सिद्धार्थ ने कंधे से थोड़ा हटा दिया और साक्षी को अपने से चिपका लिया
इधर साक्षी की मुंह से हल्की सी सीत्कार फूट रही और साक्षी को अपने कमर में कुछ चुभन महसूस होने लगी और उसको जैसे ही आभास हुआ कि उसके वस्त्र उतर रहे थे तो उसको कुछ याद आया और वो एक पल को रुक गई और मन में सोचती है, " नही ये कोई खेल नही, क्या ये गलत कर रहा है कुछ हमारे साथ"-
साक्षी और कुछ सोचती उसके पहले साक्षी को आभास होता है कोई उसके होठों को चूम रहा है और उसके दोनो गाल पकड़ रखे है -
सिद्धार्थ एक पल को इतना खो गया था की अब उसको इतना भी अहसास नही था की उसके सामने वो पहले वाली साक्षी नही थी -
जैसे ही सिद्धार्थ को इस चीज का अहसास होता है तो वो जल्दी से दूर हट जाता है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगता है, और उसी समय बिना वक्त गंवाए उसने साक्षी के कंधे वापिस धक दिए , बाकी सब साक्षी का पहले ही ढका हुआ था।
और उसने धीरे से साक्षी से कहा ," चलो सरोवर से बाहर चलते है"-
साक्षी कुछ बोल नहीं पा रही थी बस काप रही थी और उसका सिद्धार्थ ने हाथ हाथ थामा और सरोवर से बाहर ले कर चलने लगा।
साक्षी को अपना हाथ थाम कर चलता देख साक्षी बस अपने सांसें कंट्रोल कर रही थी और सिद्धार्थ के पीछे पीछे चल रही थी।
"आप ठीक तो है मित्र"-
जैसे ही साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज जाती है वो अपनी सोच से बाहर आती है और धीरे से रुकते रुकते बोलती है," आप आप आप हमारे साथ कुछ गलत तो नही कर रहे थे, हमारी बहन कहती है कोई आपके वस्त्र उतारे और आपके नज़दीक आए तो उसको मार देना"-
तभी सिद्धार्थ जो आग जला रहा था वो आग जलाते जलाते रोने लगता है -
*Sniff sniff*
"आप हमे मार देगी *sniff* मेरी मित्र हमे मार देगी *snifff* "-
यही कहते हुआ सिद्धार्थ जोर जोर से रोने लगता है और उसको रोता देख साक्षी अपना सर पकड़ लेती है," ये तो हमसे भी ज्यादा रोता है"
"हम तो आपके साथ खेल रहे थे आप हमे मार देगी, *sniff sniff* "-
"तो आपने हमारे वस्त्र क्यों उतारे? और आपने जो वो किया वो क्या था हमे सच सच बताओ फिर हम आपको नही मारेंगे और खेलने भी देंगे", साक्षी आग में अपने हाथ गर्म करते हुए कहती है।
तभी सिद्धार्थ अपने आसू पोछता है और धीरे से कहता ," वो वो ना एक बहुत खास चीज़ थी , जब कोई दो दोस्त नए नए बनते है ना तो ये खेल खेलते है इससे वो दोनो हमेशा साथ रहते है जिदंगी भर , अगर आप चाहते हो की आपके सामने वाला केवल आपका रहे तो आप उसके होठ अपने होठ से मिला दो, इससे सामने वाला केवल आपका हो जाता है फिर आपको उसकी सारी बात माननी पड़ती है, उसको खुश रखना पड़ता है"-
उसकी बात सुन कर साक्षी कहती है," अच्छा ऐसा है, तो इसका मलतब अब मैं केवल तुम्हारी हो गई?"-
उसकी बात सुन कर सिद्धार्थ कहता है ," हा केवल मेरी "-
साक्षी कहती है"ठीक है हम बहन को बता देंगे अब"--
"नही नही नही नही, साक्षी ऐसा मत करना कृपया कर केहम मर जाएंगे"-, ये बोलते हुए सिद्धार्थ की गांड इस बार सच में फटी हुई थी।
तभी साक्षी कहती है ," तो तुम्हे ये बता कर ये करना था ना? और अगर तुमने हमारे वस्त्र अब उतारे तो हम पापा को बता देंगे और बिना वजह हमे छुना मत , और ये तुम्हारा जो भी था हमे नही पसंद हमसे बिना पूछे ये भी मत करना, हमसे बिना पूछ कुछ भी मत करना। और ये तुम्हारा जो भी था होठ वैगरा ये भी हमसे बिना पूछे मत करना हमसे दूर रहना"-
उसकी पूरी बात सुन कर सिद्धार्थ का तो मुंह लटक जाता है और धीरे से कहता है ,"ठीक है"-
"फिर नही बातूंगी में किसी को भी। वैसे अब तुम्हारी हूं ना, मैं तो तुम हमेशा मेरी बात मानोगे ना, तुम्हे हमेसा माननी पड़ेगी", साक्षी एक अजीब सी मुस्कान के साथ बोली।
सिद्धार्थ ने जैसे ही ये सुना उसकी सिटी पीटी गुल हो गई , सिद्धार्थ जानता था साक्षी को साक्षी के साथ वो हमेशा रहा है उसकी यादें उसकी हरकते जब वो ऐसा बोलती है तो इसका एक ही मतलब है ,"लोड़े लगने वाले है"-
और साक्षी सिद्धार्थ को ऐसे डरता देख , हसने लगती है और धीरे से कहती है ," इतना मत सोचो , अब तुमने मुझे अपना बना लिया है तुमने ही कहा था मेरी बात माननी पड़ेगी"-
सिद्धार्थ धीरे से सास लेते हुए बोलता हैं मैं ही मादरचोद हूं , थोड़ी देर हवस कंट्रोल नही कर सकता था तभी वो धीरे से आहे भरता हुआ कहता है," हा मानूंगा"-
साक्षी धीरे से हसती हैं और ताली बजती है और खुश हो कर उछलने लगती है और उसको ऐसे खुश होता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वो बस साक्षी को देखता रहता है।
साक्षी फिर नीचे बैठ कर कहती है ,"तुम हमेशा हमेशा हमसे मिलने आना"-
"जैसे अपनी आज्ञा मेरी राजकुमारी"-
सिद्धार्थ की आवाज सुन कर साक्षी खिल खिलकर हसने लगती है और तभी सिद्धार्थ उससे कहता है -
"सुनो वो वो , हम कभी कभी तुम्हें छू सकते हैं और आज वो जो किया व"-
सिद्धार्थ बात पूरी कर पाता उसके पहले ही साक्षी कहती है "बहन"-
सिद्धार्थ: मैं तो मजाक कर रहा था।
तभी यह पर हर तरफ़ से सैनिक आने लगते है और सिद्धार्थ जल्दी से साक्षी का दुप्पटा ले कर उसको अच्छे से ढक देता है और धीरे से कहता है,"मुझे एक चीज चाहिए"-
साक्षी एकाएक सिद्धार्थ को सीरियस होते देख होती है तो धीरे से कहती है ," हम्म्म बोलो"-
"आज जो मैने तुम्हे किया, तुम्हे छूआ वो गलत नही था लेकिन तुम हमे वादा करो तुम्हे मेरे आलावा कोई और नही छुएगा"-
साक्षी धीरे से कहती है ," ठीक है वादा करती हूं, तुमने हमे अब अपना बना लिया तो तुम्हारे आलावा कोई और नही छुएगा"-
तभी साक्षी धीरे से कहती है, "क्या तुम हमसे पहले कभी मिले हो?"
साक्षी के सवाल का जवाब दे पाता उसके पहले सिद्धार्थ और साक्षी के पास बहुत सारे सैनिक और घुड़सवार आ कर खड़े हो जाते है।
और एक रथ से राजा जयराज और उसकी बेटी यशस्वी रथ से बाहर आती है और साक्षी को खुश हो कर कूदते हुए देखते है तो उसके चहरे पर अजीब सी मुस्कान आ जाती है।
यशस्वी धीरे से कहती है ," पिताश्री ये तो वही है जो पूरे गांव को डाकू से बचाया था"
तभी काया धीरे से कहती है, "महाराज ये वही लड़का है , जो सुबह राजकुमारी साक्षी को छेड़ रहा था"
यशस्वी जैसे ही ये सुनती है तो अपनी तलवार निकाल लेती है और धीरे से कहती है ," बदजात तुम्हारी हिम्मत"-
तभी काया की आवाज आती है -
"राजकुमारी उसके साथ होने पर, साक्षी राजकुमारी खुश होती है, और आप भी जानती है साक्षी का गुस्सा"
तभी राजा हसने लगता है और सिद्धार्थ को देखता है और यशस्वी को कहता है ," शांत पुत्री उसने कुछ गलत नही किया, और तो और हमे उसकी जरूरत है , सामने आने वाला हर कोई शत्रु नही होता, हमे उससे बात करने की जरूरत है"-
तभी उसके मन में कुल गुरु शक्ति दास की बात याद आती है," नियति बदल रही है और हम इस समय ऐसे बुरे वक्त में हम हार तो रहे ही है। तो क्या गुरु ने इसी लड़के की बात की थी"-
"तुम्हारी पुत्री की नियति ऐसे लड़के को खींच के लाएगी अब वो नियति मेरे ऊपर है"-
तभी राजा जयराज सिद्धार्थ की तरफ़ आता है
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. To be continued .... update posted.... Ab raja jayraj kya karte hai aur sidharth kaise sab Handel karta hai... ek taraf daaku ek taraf riyasat se dusmani... ab direct sindh ke raja.... Stay tunned ..... like target - 10 ... review dena ka .... And word around 3.7k .... stay tunned...
Nice and superb update....अध्याय - 4 साक्षी और सिंध राजा से पहली मुलाकात
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
अब आगे --
रूही उस लड़की की बात सुन कर थोड़ा हैरान होती है और धीरे से कहती है।
"आज कुछ अजब हुआ , दीदी"
वही वो लड़की जो रूही की बहन और डाकुओं की सरदारनी थी वो हुक्का पीते हुए कहती है,"ऐसे क्या हो गया , जो तू इतना बावली हुए जा रही है, ज्यादा लोगो को मार दिया क्या?"-
रूही हंसते हुए कहती है," अरे दीदी मारने की जरूरत नही पड़ी , बिना मारे ही कर मिल गया, गांव वालो की तरफ से"-
इतना कहते हुआ रूही सब कुछ उसको बताने लगती है और सारी सचाई सुनने के बाद वो लड़की कहती है,"अजीब बात है ये तो, ऐसा आज तक तो हुआ नही हुआ"-
"रूही इसके बारे मैं अच्छे से पता कर, तो डाकू से कोई ऐसे बात नही करते"-
"जी आप निभर रहो, जब मै इससे मिलूंगी तो आपसे भी कह दूंगी"-
"अपने सभी रियासतों से सैनिक बुलावा लो, मैं नही चाहती इस युद्ध मै मेरे आदमी कमजोर पड़े, पूरे सिंध राज्य में 4 सूबे है , और एक सूबे में 2 रियासते है, और हमारे पास मालवा के ज्यादा सूबे नही है , क्युकी वहा की भी स्थिति सही नही, गुजरात और सिंध का युद्ध हमे ही नुकसान होगा"-
तभी रूही कहती है, " लेकिन बहन हम चाहे तो मालवा पर हमला कर के वो राज्य अपने अधीन कर सकते है"-
उसकी बात सुन कर वो लड़की हस्ती है और कहती है ,"नही! बाकी राजा को ये बर्दास्त नि होगा, लेकिन हमे कोई ऐसा ढूढना पड़ेगा जो राजा तो हो , लेकिन राज हमारा हो"-
रूही धीरे से कहती है,"वो दोनो लड़के बहन, मुझे यकीन है उन दोनो के दिमाग मैं कुछ चल रहा है , उनकी सोच युद्ध , और रणनीति दोनो में पारंगत है"-
"देखते है , अभी राजपूत रियासते जो हमारी मित्र है, उन्हे सिंध और गुजरात दोनो पर नज़र रखने को बोलो। गुजरात के सल्तनत से मिले है कुछ रियासतें , इसीलिए सिंध हार रहा है , राखीगढ़ी इसका गढ़ है"-
राखीगड़ी रियासत ~
इधर काव्या और आस्था हैरान हो कर सब देख रही थी, और उनके दिलों की धड़कन जो तेज थी , और डर खत्म हो गया और उसकी जगह एक अजीब से प्रेम ने ले ली।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की जय कार होने लगी , और सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान थी और उसने हस्ते हुए मन में कहा " यही तो करना था"-
तभी सिद्धार्थ ने आलोक को इशारा किया और आलोक ने इशारा समझते हुआ गांव वालो की तरफ़ चलना शुरू कर दिया।
और इधर सिद्धार्थ ने हल्के से स्माइल के साथ गगन को आजाद किया और उसके का कंधे पर हाथ रखा और कहा," उत्तम योद्धा है आप गगन, आपका साहस ही आपका परिचय है"-
गगन जो आज मौत के करीब था उसके पास एक औरत आती है और उसको उठाने लगती है और वो सिद्धार्थ के आगे हाथ जोड़ कर घुटने के बल बैठ जाती है।
"मेरा सुहाग बचाने के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद"-
उनको देख कर सिद्धार्थ हस्ता है और उनको उठने के लिया बोलता है तभी गगन की आवाज सुनाई पड़ती है।
"हम कहा से इतनी मोहरे और अनाज देंगे, हमे नहर का पानी नही मिलता , यह के रियासत दार मानू हमे कुछ पानी नही देता ,हमारी स्तिथि कमजोर है"-
सिद्धार्थ उसको कहता है," जानते हो गगन तुम आज हारे कैसे और मैं जीता कैसे?"-
गगन हैरानी मैं था और अपना सर झुका लिया।
"क्युकी तुम, योद्धा तो उत्तम हो लेकिन मार्ग सही नही चुन पाते, अगर रियासत ही हमारी हो तो?"-
गगन उसकी बात सुन कर झेप जाता है और कहता है,"हमारे पास अस्त्र और शस्त्र नही है, हमारे पास घोड़े नही है"-
सिद्धार्थ उसकी तरफ देखा और ऊपर चांद देखते हुए कहता है," देखो गगन तुम्हारी जान बचाई है? ना मैने तो बाकी चीज मैं देख लूंगा रात्रि काफी हो गई है, जाओ आराम करो , जो चोट आई है उन्हे लेप लगा लेना"-
तभी गगन अपना सर उठा कर सिद्धार्थ को देखता है और अपना मुकुट जो उस समय के लोगो की सबसे बड़ी इज्जत थी उसको सिद्धार्थ के पैर के सामने रखते हुए कहता है," आज से ये गगन आपका गुलाम सिद्धार्थ, जब तक मेरे प्राण रहेंगे तब तक आपका जान को आंच नही आने दूंगा"-
तभी सिद्धार्थ उसका मुकुट वापिस उसके सर पर रखते हुए कहता है," एक राजा के लिया , सम्मान की बात तब होती है जब उसके आदमियों का सर गर्व से ऊंचा रहे , तो गगन अपना सर हमेशा ऊंचा रखो"-
"अभी तो तुम्हे बहुत सी जंग लड़नी है, बहुत सी सल्तनत को गिराना है"-
तभी उसकी बात सुन कर गगन हैरान हो कर कहता है , आपको राजा बनाना है
उसकी बात सुन कर आलोक जो अभी आ गया था वो हस्ते हुए कहता है,"आलोक हम राजा नही, सम्राट बनेंगे हम दोनो वो महाराजा बनेंगे जिसके आगे राजाओं का सर जुकेगा"-
इधर आलोक गांव वालो को सब समझाने चला जाता है और गगन सिद्धार्थ के घर के सामने और अगल बगल उसके आदमी को कुछ इशारा करता है।
इधर सिद्धार्थ के पास काव्या आती है और उसके हल्के आवाज से कहती है," चलिए घर में , मैं खाना बनाती हूं"-
सिद्धार्थ काव्या को देख कर हस्त है काव्या को देख कर कोई भी एक बार को पिगल जाए , काव्या सिद्धार्थ को अंदर ले जाना चाहती थी, और अपने हक जता कर सब को जैसे साबित कर रही हो ये मेरा है।
तभी काव्या अपनी कुटिया में चली जाती है और आस्था उसके पीछे पीछे इधर सिद्धार्थ देखता है की कई आंखे उसको और आलोक को देख रही थी, और सिद्धार्थ की नज़र उन सब पर पड़ती है तो उसका रोए ही खड़े हो जाते है।
सिद्धार्थ की कुटिया~
"अरे काव्या तू इतनी जल्दी मैं कहा जा रही है?"-
काव्या जो जल्दी से अपने आंगन में बाल्टी जो साफ जल से भरी थी उसको बैल के पास फेक कर बाल्टी खाली कर देती है।
"ये तूने बाल्टी क्यों खाली कर दी ?"-
आस्था की आवाज सुन कर काव्या उसको गुस्से में देखती है," मैने कहा खाली की बाल्टी"-
उसको गुस्से में देख कर आस्था कहती है,"हा हा तूने नही की खाली"-
काव्या जल्दी से खाली बाल्टी ले कर सिद्धार्थ के पास आती है और कहती है ,"ये लीजिए जाइए सरोवर से पानी ले आइए , तब तक हम खाना बना देते है"-
सिद्धार्थ बाल्टी उठा कर चल देता है और पलट कर जैसे ही देखता है उसकी नज़र काव्या की गांड पर पड़ती है जो देख कर ही सिद्धार्थ का लोड़ा खड़ा हो जाता है।
काव्या को कुछ आभास होता है और वो पलट कर देखती है तो उसकी सास अटक जाती है और भाग कर कुटिया में घुस जाती है और उसकी छाती ऊपर नीचे होने लगती है।
"ऐसे कौन देखता है खुले आम"-
"शर्म हया सब बेच आए है क्या ये"-
इधर काव्या धीरे से कहती है "माना भी कर नही सकती"-
इधर सिद्धार्थ हल्के से हस्ते हुए अपने आप को कंट्रोल करते हुए कहता है" नही नही,! वो मेरी बेटी है नही, मैं ये क्या कर रहा हूं , खैर ये उसकी गलती है इतनी सुंदर है पूरा तनु पर गई है"-
ऐसे ही अपने में बडबड़ते हुए सिद्धार्थ जैसे ही झरने के पास आता है उसके हाथ से बाल्टी गिर पड़ती है और वो हैरान हो कर सामने देखता है।
"साक्षी"-
सामने साक्षी को देख सिद्धार्थ हैरान हो जाता है और उसके कुछ समझ नही आता है।
"इतनी रात ये लड़की, पानी में स्नान कर रही है वो भी इसका दिमाग सही नही है, बच्चों जैसे है, इतनी रात कौन नहाता है वो भी इतने थंडे पानी में"-
तभी सिद्धार्थ देखता है आस पास कोई सैनिक नही तो वो साक्षी के पास जाने लगता है।
साक्षी पूरी पानी में थी उसका गठीला बदन, गीले बाल कमल के फूल जैसी खुशबू, महकता हुआ बदन, दूर से ही सिद्धार्थ की सांसें बढ़ा दे रहे थे, सिद्धार्थ के सामने उसकी साक्षी खड़ी थी।
"चल कर देखू इतनी रात मोहतरमा यहा क्या कर रही है, एक चीज तो है मेरी साक्षी और तनु जहा रहती है वहा ही बवाल मचाई रहती है, इनकी हरकतें अलग ही लेवल पर रहती है"-
इधर सिद्धार्थ साक्षी के पास जाने के लिया पानी में उतर गया और उसकी तरफ चलने लगा।
अचानक साक्षी को लगता है कोई उसकी तरफ़ आ रहा है तो साक्षी तुरंत पलट कर देखती है तो वहा सिद्धार्थ को देख कर हैरान हो जाती है।
"अरे तुम यहा क्या कर रहे हो?"-
साक्षी की मीठी आवाज सुन कर सिद्धार्थ कहता है," तुम क्या कर रही हो"-
"अरे मैं तो खेल रही हो , मछली मछली"-
"ही ही ही!" हस्ते हुए साक्षी बोलती है और सिद्धार्थ अपना सर पकड़ लेता है और धीरे से दाए बाए देखता है और धीरे से कहता है," हमे भी खेला लो ना अपने साथ"-
साक्षी के बदन को निहारते हुए वो प्यार से कहता है और साक्षी कहती है," क्या खेलोगे हमारे साथ"-
सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," वो वो वो , हा हा हम दोनो पकड़म पकड़ाई खेलते है ना, अभी बाद में सुबह कुछ और खेलेंगे"-
साक्षी खुशी से ताली बजाने लगती है और धीरे से भागते हुए कहती है ,"तुम हमे पकड़ो , मैं बहुत तेज हूं फुर्र से भाग जाती हूं"-
साक्षी की आवाज सुन कर सिद्धार्थ हस्त है और थोड़ी देर उसको देखता है और फिर उसके तरफ भाग जाता है और उसके पास आ कर साक्षी थोड़ा धीरे धीरे भाग रही थी और हस हस कर पलट पलट के सिद्धार्थ को देखती है की वो चला तो नही गया।
थोड़ी देर में साक्षी थोड़ा हैरान हो कर पलट कर देखती है की सिद्धार्थ उसको नही दिखा तो वो थोड़ा रोवासी हो जाती है और रोते हुए कहती है," मेरा साथ कोई नही खेलता , सब हमे अकेला छोड़ देता है"-
तभी साक्षी को अपनी कमर पर किसी के हाथ का आभास होता है तो वो पलट कर देखती है तो उसकी नाक सिद्धार्थ के नाक पर लग जाती है और साक्षी को अपने से चिपका देख सिद्धार्थ उसको अपने से सटा लेता है और उसका लन्ड तो पहले से ही खड़ा था जो साक्षी के पीछे थोड़ा चुभने लगता है।
साक्षी भले ही दिमाग से कमजोर थी लेकिन थी तो एक स्त्री ही, थी तो वो सिद्धार्थ की उसके आंखे कब बंद हो गई उसको आभास हो नही हुआ।
तभी साक्षी जो अपनी आंखे बंद कर के धीरे से वही खड़ी थी वो सिद्धार्थ की आवाज सुन कर आंखे खोलती है।
"क्या हुआ साक्षी, इतनी चुप क्यों हो?"
"कुछ नही , हमे अजीब लग रहा है हमारा जी मिचला रहा है चलो सरोवर से बाहर चलते है?"-
तभी साक्षी को सिद्धार्थ छोर देता है और उससे दूर हट जाता है और साक्षी उससे धीरे से कहती है।
"तुम हमसे रुष्ठ हो गए?, अब हमसे बात नही करोगे ना *sniff* *Sniff*"-
तभी सिद्धार्थ उससे कहता है ,"नही हम रुष्ठ नही हुए लेकिन हमे तो आप पकड़ी ही नही इसीलिए हम नाराज़ है तनिक"-
साक्षी उससे धीरे से कहती है एक मीठे से स्वर में -" हम बाद में खेल लेंगे ना"-
तभी सिद्धार्थ कहता है "हमे छोटा सा खेल खेलने दीजिए ना बस 2 मिनट लगेंगे, फिर आप जो कहेंगी वो खेलेंगे हम हमेशा"-
साक्षी कहती है "फिर तुम हमसे रुष्ठ नहीं होगे ना"-
सिद्धार्थ कहता है," हा हा , पक्का"-
साक्षी धीरे से कहती है ," चलो फिर बताओ कौन सा खेल है जो इतनी जल्दी खत्म हो जाता है जिससे हमारे मित्र की गुस्सा शांत हो जाएगा"-
सिद्धार्थ साक्षी को अपने पास बुलाया और अपने सीधे सामने खड़ा कर दिया, और उसने साक्षी का हाथ अपने कंधे पर रखवा दिया और जैसे ही साक्षी ने अपना हाथ सिद्धार्थ के कंधे पर रखा सिद्धार्थ ने उसकी कमर जकड़ कर उसको अपनी गिरफ्त में ले लिया।
उसने साक्षी को अपनी गिरफ्त में ले लिया और अपनी नाक साक्षी की नाक पर रख कर धीरे से कहा "आपको अपनी आंखे 2 मिनट तक नही खोलनी"-
इधर सिद्धार्थ के सामने ही उसकी सबसे खास औरत खड़ी थी जिससे सिद्धार्थ बेइंतहा प्यार करता था और सिद्धार्थ अपना होश खो बैठा और साक्षी को अपने पूरा बदन से चिपका लिया और उसके सीने के उभार को अपने सीने पर महसूस करने लगा ,और धीरे से कुछ बढ़बड़ा रहा था।
और इधर साक्षी की दिल की धड़कन बहुत जोरो से चल रही थी उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थी , उसको अहसास था की ये खेल अजीब था लेकिन किसी कारणवस वो सिद्धार्थ के करीब अच्छा महसूस कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ के हाथ साक्षी को अपने झांग पर महसूस होता है और सिद्धार्थ ने साक्षी के दोनो पैर अपनी कमर के आस पास जकड़वा दिया।
और साक्षी की मन में अजीब सी आवाज़ उठने लगी।
तभी साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज़ पड़ती है जो बहुत धीरे थी जैसे सिद्धार्थ बडबडा रहा हो -
"मेरी साक्षी, मेरी साक्षी , हमसे दूर मत हो, आप सिर्फ मेरी है आपका रोम रोम बस मेरा है"--
यही बड़बड़ाते उसके हाथ साक्षी के गालों पर चले गए और साक्षी के कपड़े जो पूरे उसके बदन को ढके हुए थे उसको सिद्धार्थ ने कंधे से थोड़ा हटा दिया और साक्षी को अपने से चिपका लिया
इधर साक्षी की मुंह से हल्की सी सीत्कार फूट रही और साक्षी को अपने कमर में कुछ चुभन महसूस होने लगी और उसको जैसे ही आभास हुआ कि उसके वस्त्र उतर रहे थे तो उसको कुछ याद आया और वो एक पल को रुक गई और मन में सोचती है, " नही ये कोई खेल नही, क्या ये गलत कर रहा है कुछ हमारे साथ"-
साक्षी और कुछ सोचती उसके पहले साक्षी को आभास होता है कोई उसके होठों को चूम रहा है और उसके दोनो गाल पकड़ रखे है -
सिद्धार्थ एक पल को इतना खो गया था की अब उसको इतना भी अहसास नही था की उसके सामने वो पहले वाली साक्षी नही थी -
जैसे ही सिद्धार्थ को इस चीज का अहसास होता है तो वो जल्दी से दूर हट जाता है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगता है, और उसी समय बिना वक्त गंवाए उसने साक्षी के कंधे वापिस धक दिए , बाकी सब साक्षी का पहले ही ढका हुआ था।
और उसने धीरे से साक्षी से कहा ," चलो सरोवर से बाहर चलते है"-
साक्षी कुछ बोल नहीं पा रही थी बस काप रही थी और उसका सिद्धार्थ ने हाथ हाथ थामा और सरोवर से बाहर ले कर चलने लगा।
साक्षी को अपना हाथ थाम कर चलता देख साक्षी बस अपने सांसें कंट्रोल कर रही थी और सिद्धार्थ के पीछे पीछे चल रही थी।
"आप ठीक तो है मित्र"-
जैसे ही साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज जाती है वो अपनी सोच से बाहर आती है और धीरे से रुकते रुकते बोलती है," आप आप आप हमारे साथ कुछ गलत तो नही कर रहे थे, हमारी बहन कहती है कोई आपके वस्त्र उतारे और आपके नज़दीक आए तो उसको मार देना"-
तभी सिद्धार्थ जो आग जला रहा था वो आग जलाते जलाते रोने लगता है -
*Sniff sniff*
"आप हमे मार देगी *sniff* मेरी मित्र हमे मार देगी *snifff* "-
यही कहते हुआ सिद्धार्थ जोर जोर से रोने लगता है और उसको रोता देख साक्षी अपना सर पकड़ लेती है," ये तो हमसे भी ज्यादा रोता है"
"हम तो आपके साथ खेल रहे थे आप हमे मार देगी, *sniff sniff* "-
"तो आपने हमारे वस्त्र क्यों उतारे? और आपने जो वो किया वो क्या था हमे सच सच बताओ फिर हम आपको नही मारेंगे और खेलने भी देंगे", साक्षी आग में अपने हाथ गर्म करते हुए कहती है।
तभी सिद्धार्थ अपने आसू पोछता है और धीरे से कहता ," वो वो ना एक बहुत खास चीज़ थी , जब कोई दो दोस्त नए नए बनते है ना तो ये खेल खेलते है इससे वो दोनो हमेशा साथ रहते है जिदंगी भर , अगर आप चाहते हो की आपके सामने वाला केवल आपका रहे तो आप उसके होठ अपने होठ से मिला दो, इससे सामने वाला केवल आपका हो जाता है फिर आपको उसकी सारी बात माननी पड़ती है, उसको खुश रखना पड़ता है"-
उसकी बात सुन कर साक्षी कहती है," अच्छा ऐसा है, तो इसका मलतब अब मैं केवल तुम्हारी हो गई?"-
उसकी बात सुन कर सिद्धार्थ कहता है ," हा केवल मेरी "-
साक्षी कहती है"ठीक है हम बहन को बता देंगे अब"--
"नही नही नही नही, साक्षी ऐसा मत करना कृपया कर केहम मर जाएंगे"-, ये बोलते हुए सिद्धार्थ की गांड इस बार सच में फटी हुई थी।
तभी साक्षी कहती है ," तो तुम्हे ये बता कर ये करना था ना? और अगर तुमने हमारे वस्त्र अब उतारे तो हम पापा को बता देंगे और बिना वजह हमे छुना मत , और ये तुम्हारा जो भी था हमे नही पसंद हमसे बिना पूछे ये भी मत करना, हमसे बिना पूछ कुछ भी मत करना। और ये तुम्हारा जो भी था होठ वैगरा ये भी हमसे बिना पूछे मत करना हमसे दूर रहना"-
उसकी पूरी बात सुन कर सिद्धार्थ का तो मुंह लटक जाता है और धीरे से कहता है ,"ठीक है"-
"फिर नही बातूंगी में किसी को भी। वैसे अब तुम्हारी हूं ना, मैं तो तुम हमेशा मेरी बात मानोगे ना, तुम्हे हमेसा माननी पड़ेगी", साक्षी एक अजीब सी मुस्कान के साथ बोली।
सिद्धार्थ ने जैसे ही ये सुना उसकी सिटी पीटी गुल हो गई , सिद्धार्थ जानता था साक्षी को साक्षी के साथ वो हमेशा रहा है उसकी यादें उसकी हरकते जब वो ऐसा बोलती है तो इसका एक ही मतलब है ,"लोड़े लगने वाले है"-
और साक्षी सिद्धार्थ को ऐसे डरता देख , हसने लगती है और धीरे से कहती है ," इतना मत सोचो , अब तुमने मुझे अपना बना लिया है तुमने ही कहा था मेरी बात माननी पड़ेगी"-
सिद्धार्थ धीरे से सास लेते हुए बोलता हैं मैं ही मादरचोद हूं , थोड़ी देर हवस कंट्रोल नही कर सकता था तभी वो धीरे से आहे भरता हुआ कहता है," हा मानूंगा"-
साक्षी धीरे से हसती हैं और ताली बजती है और खुश हो कर उछलने लगती है और उसको ऐसे खुश होता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वो बस साक्षी को देखता रहता है।
साक्षी फिर नीचे बैठ कर कहती है ,"तुम हमेशा हमेशा हमसे मिलने आना"-
"जैसे अपनी आज्ञा मेरी राजकुमारी"-
सिद्धार्थ की आवाज सुन कर साक्षी खिल खिलकर हसने लगती है और तभी सिद्धार्थ उससे कहता है -
"सुनो वो वो , हम कभी कभी तुम्हें छू सकते हैं और आज वो जो किया व"-
सिद्धार्थ बात पूरी कर पाता उसके पहले ही साक्षी कहती है "बहन"-
सिद्धार्थ: मैं तो मजाक कर रहा था।
तभी यह पर हर तरफ़ से सैनिक आने लगते है और सिद्धार्थ जल्दी से साक्षी का दुप्पटा ले कर उसको अच्छे से ढक देता है और धीरे से कहता है,"मुझे एक चीज चाहिए"-
साक्षी एकाएक सिद्धार्थ को सीरियस होते देख होती है तो धीरे से कहती है ," हम्म्म बोलो"-
"आज जो मैने तुम्हे किया, तुम्हे छूआ वो गलत नही था लेकिन तुम हमे वादा करो तुम्हे मेरे आलावा कोई और नही छुएगा"-
साक्षी धीरे से कहती है ," ठीक है वादा करती हूं, तुमने हमे अब अपना बना लिया तो तुम्हारे आलावा कोई और नही छुएगा"-
तभी साक्षी धीरे से कहती है, "क्या तुम हमसे पहले कभी मिले हो?"
साक्षी के सवाल का जवाब दे पाता उसके पहले सिद्धार्थ और साक्षी के पास बहुत सारे सैनिक और घुड़सवार आ कर खड़े हो जाते है।
और एक रथ से राजा जयराज और उसकी बेटी यशस्वी रथ से बाहर आती है और साक्षी को खुश हो कर कूदते हुए देखते है तो उसके चहरे पर अजीब सी मुस्कान आ जाती है।
यशस्वी धीरे से कहती है ," पिताश्री ये तो वही है जो पूरे गांव को डाकू से बचाया था"
तभी काया धीरे से कहती है, "महाराज ये वही लड़का है , जो सुबह राजकुमारी साक्षी को छेड़ रहा था"
यशस्वी जैसे ही ये सुनती है तो अपनी तलवार निकाल लेती है और धीरे से कहती है ," बदजात तुम्हारी हिम्मत"-
तभी काया की आवाज आती है -
"राजकुमारी उसके साथ होने पर, साक्षी राजकुमारी खुश होती है, और आप भी जानती है साक्षी का गुस्सा"
तभी राजा हसने लगता है और सिद्धार्थ को देखता है और यशस्वी को कहता है ," शांत पुत्री उसने कुछ गलत नही किया, और तो और हमे उसकी जरूरत है , सामने आने वाला हर कोई शत्रु नही होता, हमे उससे बात करने की जरूरत है"-
तभी उसके मन में कुल गुरु शक्ति दास की बात याद आती है," नियति बदल रही है और हम इस समय ऐसे बुरे वक्त में हम हार तो रहे ही है। तो क्या गुरु ने इसी लड़के की बात की थी"-
"तुम्हारी पुत्री की नियति ऐसे लड़के को खींच के लाएगी अब वो नियति मेरे ऊपर है"-
तभी राजा जयराज सिद्धार्थ की तरफ़ आता है
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. To be continued .... update posted.... Ab raja jayraj kya karte hai aur sidharth kaise sab Handel karta hai... ek taraf daaku ek taraf riyasat se dusmani... ab direct sindh ke raja.... Stay tunned ..... like target - 10 ... review dena ka .... And word around 3.7k .... stay tunned...
Bhot hi saaandaar dilchasp or dilfek updateagle update ka wait rahega
Bhut bhut mastअध्याय - 4 साक्षी और सिंध राजा से पहली मुलाकात
"वो युवक कौन था, जिसने हमसे बात करने का साहस किया , क्या हमारी दहशत खत्म हो गई है?"-
तभी वो लड़की अपना मास्क उतार देती है और चिल्लाती है," मुखिया"-
मुखिया दौड़ते हुए आता है और सरदारनी को गुस्सा मैं देख कर मूत देता है।
और सरदारनी उसको जाने को बोलती है।
"नही नही , दहशत तो है , मुझे उसके बारे में खुद पता करना पड़ेगा"-
वो लड़की वही खोई हुई थी तभी एक लड़की की आवाज आती हैं -
"क्या बात है रूही"
अब आगे --
रूही उस लड़की की बात सुन कर थोड़ा हैरान होती है और धीरे से कहती है।
"आज कुछ अजब हुआ , दीदी"
वही वो लड़की जो रूही की बहन और डाकुओं की सरदारनी थी वो हुक्का पीते हुए कहती है,"ऐसे क्या हो गया , जो तू इतना बावली हुए जा रही है, ज्यादा लोगो को मार दिया क्या?"-
रूही हंसते हुए कहती है," अरे दीदी मारने की जरूरत नही पड़ी , बिना मारे ही कर मिल गया, गांव वालो की तरफ से"-
इतना कहते हुआ रूही सब कुछ उसको बताने लगती है और सारी सचाई सुनने के बाद वो लड़की कहती है,"अजीब बात है ये तो, ऐसा आज तक तो हुआ नही हुआ"-
"रूही इसके बारे मैं अच्छे से पता कर, तो डाकू से कोई ऐसे बात नही करते"-
"जी आप निभर रहो, जब मै इससे मिलूंगी तो आपसे भी कह दूंगी"-
"अपने सभी रियासतों से सैनिक बुलावा लो, मैं नही चाहती इस युद्ध मै मेरे आदमी कमजोर पड़े, पूरे सिंध राज्य में 4 सूबे है , और एक सूबे में 2 रियासते है, और हमारे पास मालवा के ज्यादा सूबे नही है , क्युकी वहा की भी स्थिति सही नही, गुजरात और सिंध का युद्ध हमे ही नुकसान होगा"-
तभी रूही कहती है, " लेकिन बहन हम चाहे तो मालवा पर हमला कर के वो राज्य अपने अधीन कर सकते है"-
उसकी बात सुन कर वो लड़की हस्ती है और कहती है ,"नही! बाकी राजा को ये बर्दास्त नि होगा, लेकिन हमे कोई ऐसा ढूढना पड़ेगा जो राजा तो हो , लेकिन राज हमारा हो"-
रूही धीरे से कहती है,"वो दोनो लड़के बहन, मुझे यकीन है उन दोनो के दिमाग मैं कुछ चल रहा है , उनकी सोच युद्ध , और रणनीति दोनो में पारंगत है"-
"देखते है , अभी राजपूत रियासते जो हमारी मित्र है, उन्हे सिंध और गुजरात दोनो पर नज़र रखने को बोलो। गुजरात के सल्तनत से मिले है कुछ रियासतें , इसीलिए सिंध हार रहा है , राखीगढ़ी इसका गढ़ है"-
राखीगड़ी रियासत ~
इधर काव्या और आस्था हैरान हो कर सब देख रही थी, और उनके दिलों की धड़कन जो तेज थी , और डर खत्म हो गया और उसकी जगह एक अजीब से प्रेम ने ले ली।
इधर आलोक और सिद्धार्थ की जय कार होने लगी , और सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान थी और उसने हस्ते हुए मन में कहा " यही तो करना था"-
तभी सिद्धार्थ ने आलोक को इशारा किया और आलोक ने इशारा समझते हुआ गांव वालो की तरफ़ चलना शुरू कर दिया।
और इधर सिद्धार्थ ने हल्के से स्माइल के साथ गगन को आजाद किया और उसके का कंधे पर हाथ रखा और कहा," उत्तम योद्धा है आप गगन, आपका साहस ही आपका परिचय है"-
गगन जो आज मौत के करीब था उसके पास एक औरत आती है और उसको उठाने लगती है और वो सिद्धार्थ के आगे हाथ जोड़ कर घुटने के बल बैठ जाती है।
"मेरा सुहाग बचाने के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद"-
उनको देख कर सिद्धार्थ हस्ता है और उनको उठने के लिया बोलता है तभी गगन की आवाज सुनाई पड़ती है।
"हम कहा से इतनी मोहरे और अनाज देंगे, हमे नहर का पानी नही मिलता , यह के रियासत दार मानू हमे कुछ पानी नही देता ,हमारी स्तिथि कमजोर है"-
सिद्धार्थ उसको कहता है," जानते हो गगन तुम आज हारे कैसे और मैं जीता कैसे?"-
गगन हैरानी मैं था और अपना सर झुका लिया।
"क्युकी तुम, योद्धा तो उत्तम हो लेकिन मार्ग सही नही चुन पाते, अगर रियासत ही हमारी हो तो?"-
गगन उसकी बात सुन कर झेप जाता है और कहता है,"हमारे पास अस्त्र और शस्त्र नही है, हमारे पास घोड़े नही है"-
सिद्धार्थ उसकी तरफ देखा और ऊपर चांद देखते हुए कहता है," देखो गगन तुम्हारी जान बचाई है? ना मैने तो बाकी चीज मैं देख लूंगा रात्रि काफी हो गई है, जाओ आराम करो , जो चोट आई है उन्हे लेप लगा लेना"-
तभी गगन अपना सर उठा कर सिद्धार्थ को देखता है और अपना मुकुट जो उस समय के लोगो की सबसे बड़ी इज्जत थी उसको सिद्धार्थ के पैर के सामने रखते हुए कहता है," आज से ये गगन आपका गुलाम सिद्धार्थ, जब तक मेरे प्राण रहेंगे तब तक आपका जान को आंच नही आने दूंगा"-
तभी सिद्धार्थ उसका मुकुट वापिस उसके सर पर रखते हुए कहता है," एक राजा के लिया , सम्मान की बात तब होती है जब उसके आदमियों का सर गर्व से ऊंचा रहे , तो गगन अपना सर हमेशा ऊंचा रखो"-
"अभी तो तुम्हे बहुत सी जंग लड़नी है, बहुत सी सल्तनत को गिराना है"-
तभी उसकी बात सुन कर गगन हैरान हो कर कहता है , आपको राजा बनाना है
उसकी बात सुन कर आलोक जो अभी आ गया था वो हस्ते हुए कहता है,"आलोक हम राजा नही, सम्राट बनेंगे हम दोनो वो महाराजा बनेंगे जिसके आगे राजाओं का सर जुकेगा"-
इधर आलोक गांव वालो को सब समझाने चला जाता है और गगन सिद्धार्थ के घर के सामने और अगल बगल उसके आदमी को कुछ इशारा करता है।
इधर सिद्धार्थ के पास काव्या आती है और उसके हल्के आवाज से कहती है," चलिए घर में , मैं खाना बनाती हूं"-
सिद्धार्थ काव्या को देख कर हस्त है काव्या को देख कर कोई भी एक बार को पिगल जाए , काव्या सिद्धार्थ को अंदर ले जाना चाहती थी, और अपने हक जता कर सब को जैसे साबित कर रही हो ये मेरा है।
तभी काव्या अपनी कुटिया में चली जाती है और आस्था उसके पीछे पीछे इधर सिद्धार्थ देखता है की कई आंखे उसको और आलोक को देख रही थी, और सिद्धार्थ की नज़र उन सब पर पड़ती है तो उसका रोए ही खड़े हो जाते है।
सिद्धार्थ की कुटिया~
"अरे काव्या तू इतनी जल्दी मैं कहा जा रही है?"-
काव्या जो जल्दी से अपने आंगन में बाल्टी जो साफ जल से भरी थी उसको बैल के पास फेक कर बाल्टी खाली कर देती है।
"ये तूने बाल्टी क्यों खाली कर दी ?"-
आस्था की आवाज सुन कर काव्या उसको गुस्से में देखती है," मैने कहा खाली की बाल्टी"-
उसको गुस्से में देख कर आस्था कहती है,"हा हा तूने नही की खाली"-
काव्या जल्दी से खाली बाल्टी ले कर सिद्धार्थ के पास आती है और कहती है ,"ये लीजिए जाइए सरोवर से पानी ले आइए , तब तक हम खाना बना देते है"-
सिद्धार्थ बाल्टी उठा कर चल देता है और पलट कर जैसे ही देखता है उसकी नज़र काव्या की गांड पर पड़ती है जो देख कर ही सिद्धार्थ का लोड़ा खड़ा हो जाता है।
काव्या को कुछ आभास होता है और वो पलट कर देखती है तो उसकी सास अटक जाती है और भाग कर कुटिया में घुस जाती है और उसकी छाती ऊपर नीचे होने लगती है।
"ऐसे कौन देखता है खुले आम"-
"शर्म हया सब बेच आए है क्या ये"-
इधर काव्या धीरे से कहती है "माना भी कर नही सकती"-
इधर सिद्धार्थ हल्के से हस्ते हुए अपने आप को कंट्रोल करते हुए कहता है" नही नही,! वो मेरी बेटी है नही, मैं ये क्या कर रहा हूं , खैर ये उसकी गलती है इतनी सुंदर है पूरा तनु पर गई है"-
ऐसे ही अपने में बडबड़ते हुए सिद्धार्थ जैसे ही झरने के पास आता है उसके हाथ से बाल्टी गिर पड़ती है और वो हैरान हो कर सामने देखता है।
"साक्षी"-
सामने साक्षी को देख सिद्धार्थ हैरान हो जाता है और उसके कुछ समझ नही आता है।
"इतनी रात ये लड़की, पानी में स्नान कर रही है वो भी इसका दिमाग सही नही है, बच्चों जैसे है, इतनी रात कौन नहाता है वो भी इतने थंडे पानी में"-
तभी सिद्धार्थ देखता है आस पास कोई सैनिक नही तो वो साक्षी के पास जाने लगता है।
साक्षी पूरी पानी में थी उसका गठीला बदन, गीले बाल कमल के फूल जैसी खुशबू, महकता हुआ बदन, दूर से ही सिद्धार्थ की सांसें बढ़ा दे रहे थे, सिद्धार्थ के सामने उसकी साक्षी खड़ी थी।
"चल कर देखू इतनी रात मोहतरमा यहा क्या कर रही है, एक चीज तो है मेरी साक्षी और तनु जहा रहती है वहा ही बवाल मचाई रहती है, इनकी हरकतें अलग ही लेवल पर रहती है"-
इधर सिद्धार्थ साक्षी के पास जाने के लिया पानी में उतर गया और उसकी तरफ चलने लगा।
अचानक साक्षी को लगता है कोई उसकी तरफ़ आ रहा है तो साक्षी तुरंत पलट कर देखती है तो वहा सिद्धार्थ को देख कर हैरान हो जाती है।
"अरे तुम यहा क्या कर रहे हो?"-
साक्षी की मीठी आवाज सुन कर सिद्धार्थ कहता है," तुम क्या कर रही हो"-
"अरे मैं तो खेल रही हो , मछली मछली"-
"ही ही ही!" हस्ते हुए साक्षी बोलती है और सिद्धार्थ अपना सर पकड़ लेता है और धीरे से दाए बाए देखता है और धीरे से कहता है," हमे भी खेला लो ना अपने साथ"-
साक्षी के बदन को निहारते हुए वो प्यार से कहता है और साक्षी कहती है," क्या खेलोगे हमारे साथ"-
सिद्धार्थ हस्ते हुए कहता है," वो वो वो , हा हा हम दोनो पकड़म पकड़ाई खेलते है ना, अभी बाद में सुबह कुछ और खेलेंगे"-
साक्षी खुशी से ताली बजाने लगती है और धीरे से भागते हुए कहती है ,"तुम हमे पकड़ो , मैं बहुत तेज हूं फुर्र से भाग जाती हूं"-
साक्षी की आवाज सुन कर सिद्धार्थ हस्त है और थोड़ी देर उसको देखता है और फिर उसके तरफ भाग जाता है और उसके पास आ कर साक्षी थोड़ा धीरे धीरे भाग रही थी और हस हस कर पलट पलट के सिद्धार्थ को देखती है की वो चला तो नही गया।
थोड़ी देर में साक्षी थोड़ा हैरान हो कर पलट कर देखती है की सिद्धार्थ उसको नही दिखा तो वो थोड़ा रोवासी हो जाती है और रोते हुए कहती है," मेरा साथ कोई नही खेलता , सब हमे अकेला छोड़ देता है"-
तभी साक्षी को अपनी कमर पर किसी के हाथ का आभास होता है तो वो पलट कर देखती है तो उसकी नाक सिद्धार्थ के नाक पर लग जाती है और साक्षी को अपने से चिपका देख सिद्धार्थ उसको अपने से सटा लेता है और उसका लन्ड तो पहले से ही खड़ा था जो साक्षी के पीछे थोड़ा चुभने लगता है।
साक्षी भले ही दिमाग से कमजोर थी लेकिन थी तो एक स्त्री ही, थी तो वो सिद्धार्थ की उसके आंखे कब बंद हो गई उसको आभास हो नही हुआ।
तभी साक्षी जो अपनी आंखे बंद कर के धीरे से वही खड़ी थी वो सिद्धार्थ की आवाज सुन कर आंखे खोलती है।
"क्या हुआ साक्षी, इतनी चुप क्यों हो?"
"कुछ नही , हमे अजीब लग रहा है हमारा जी मिचला रहा है चलो सरोवर से बाहर चलते है?"-
तभी साक्षी को सिद्धार्थ छोर देता है और उससे दूर हट जाता है और साक्षी उससे धीरे से कहती है।
"तुम हमसे रुष्ठ हो गए?, अब हमसे बात नही करोगे ना *sniff* *Sniff*"-
तभी सिद्धार्थ उससे कहता है ,"नही हम रुष्ठ नही हुए लेकिन हमे तो आप पकड़ी ही नही इसीलिए हम नाराज़ है तनिक"-
साक्षी उससे धीरे से कहती है एक मीठे से स्वर में -" हम बाद में खेल लेंगे ना"-
तभी सिद्धार्थ कहता है "हमे छोटा सा खेल खेलने दीजिए ना बस 2 मिनट लगेंगे, फिर आप जो कहेंगी वो खेलेंगे हम हमेशा"-
साक्षी कहती है "फिर तुम हमसे रुष्ठ नहीं होगे ना"-
सिद्धार्थ कहता है," हा हा , पक्का"-
साक्षी धीरे से कहती है ," चलो फिर बताओ कौन सा खेल है जो इतनी जल्दी खत्म हो जाता है जिससे हमारे मित्र की गुस्सा शांत हो जाएगा"-
सिद्धार्थ साक्षी को अपने पास बुलाया और अपने सीधे सामने खड़ा कर दिया, और उसने साक्षी का हाथ अपने कंधे पर रखवा दिया और जैसे ही साक्षी ने अपना हाथ सिद्धार्थ के कंधे पर रखा सिद्धार्थ ने उसकी कमर जकड़ कर उसको अपनी गिरफ्त में ले लिया।
उसने साक्षी को अपनी गिरफ्त में ले लिया और अपनी नाक साक्षी की नाक पर रख कर धीरे से कहा "आपको अपनी आंखे 2 मिनट तक नही खोलनी"-
इधर सिद्धार्थ के सामने ही उसकी सबसे खास औरत खड़ी थी जिससे सिद्धार्थ बेइंतहा प्यार करता था और सिद्धार्थ अपना होश खो बैठा और साक्षी को अपने पूरा बदन से चिपका लिया और उसके सीने के उभार को अपने सीने पर महसूस करने लगा ,और धीरे से कुछ बढ़बड़ा रहा था।
और इधर साक्षी की दिल की धड़कन बहुत जोरो से चल रही थी उसकी सांसें ऊपर नीचे हो रही थी , उसको अहसास था की ये खेल अजीब था लेकिन किसी कारणवस वो सिद्धार्थ के करीब अच्छा महसूस कर रही थी।
तभी सिद्धार्थ के हाथ साक्षी को अपने झांग पर महसूस होता है और सिद्धार्थ ने साक्षी के दोनो पैर अपनी कमर के आस पास जकड़वा दिया।
और साक्षी की मन में अजीब सी आवाज़ उठने लगी।
तभी साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज़ पड़ती है जो बहुत धीरे थी जैसे सिद्धार्थ बडबडा रहा हो -
"मेरी साक्षी, मेरी साक्षी , हमसे दूर मत हो, आप सिर्फ मेरी है आपका रोम रोम बस मेरा है"--
यही बड़बड़ाते उसके हाथ साक्षी के गालों पर चले गए और साक्षी के कपड़े जो पूरे उसके बदन को ढके हुए थे उसको सिद्धार्थ ने कंधे से थोड़ा हटा दिया और साक्षी को अपने से चिपका लिया
इधर साक्षी की मुंह से हल्की सी सीत्कार फूट रही और साक्षी को अपने कमर में कुछ चुभन महसूस होने लगी और उसको जैसे ही आभास हुआ कि उसके वस्त्र उतर रहे थे तो उसको कुछ याद आया और वो एक पल को रुक गई और मन में सोचती है, " नही ये कोई खेल नही, क्या ये गलत कर रहा है कुछ हमारे साथ"-
साक्षी और कुछ सोचती उसके पहले साक्षी को आभास होता है कोई उसके होठों को चूम रहा है और उसके दोनो गाल पकड़ रखे है -
सिद्धार्थ एक पल को इतना खो गया था की अब उसको इतना भी अहसास नही था की उसके सामने वो पहले वाली साक्षी नही थी -
जैसे ही सिद्धार्थ को इस चीज का अहसास होता है तो वो जल्दी से दूर हट जाता है और अपनी सांसें कंट्रोल करने लगता है, और उसी समय बिना वक्त गंवाए उसने साक्षी के कंधे वापिस धक दिए , बाकी सब साक्षी का पहले ही ढका हुआ था।
और उसने धीरे से साक्षी से कहा ," चलो सरोवर से बाहर चलते है"-
साक्षी कुछ बोल नहीं पा रही थी बस काप रही थी और उसका सिद्धार्थ ने हाथ हाथ थामा और सरोवर से बाहर ले कर चलने लगा।
साक्षी को अपना हाथ थाम कर चलता देख साक्षी बस अपने सांसें कंट्रोल कर रही थी और सिद्धार्थ के पीछे पीछे चल रही थी।
"आप ठीक तो है मित्र"-
जैसे ही साक्षी के कानो में सिद्धार्थ की आवाज जाती है वो अपनी सोच से बाहर आती है और धीरे से रुकते रुकते बोलती है," आप आप आप हमारे साथ कुछ गलत तो नही कर रहे थे, हमारी बहन कहती है कोई आपके वस्त्र उतारे और आपके नज़दीक आए तो उसको मार देना"-
तभी सिद्धार्थ जो आग जला रहा था वो आग जलाते जलाते रोने लगता है -
*Sniff sniff*
"आप हमे मार देगी *sniff* मेरी मित्र हमे मार देगी *snifff* "-
यही कहते हुआ सिद्धार्थ जोर जोर से रोने लगता है और उसको रोता देख साक्षी अपना सर पकड़ लेती है," ये तो हमसे भी ज्यादा रोता है"
"हम तो आपके साथ खेल रहे थे आप हमे मार देगी, *sniff sniff* "-
"तो आपने हमारे वस्त्र क्यों उतारे? और आपने जो वो किया वो क्या था हमे सच सच बताओ फिर हम आपको नही मारेंगे और खेलने भी देंगे", साक्षी आग में अपने हाथ गर्म करते हुए कहती है।
तभी सिद्धार्थ अपने आसू पोछता है और धीरे से कहता ," वो वो ना एक बहुत खास चीज़ थी , जब कोई दो दोस्त नए नए बनते है ना तो ये खेल खेलते है इससे वो दोनो हमेशा साथ रहते है जिदंगी भर , अगर आप चाहते हो की आपके सामने वाला केवल आपका रहे तो आप उसके होठ अपने होठ से मिला दो, इससे सामने वाला केवल आपका हो जाता है फिर आपको उसकी सारी बात माननी पड़ती है, उसको खुश रखना पड़ता है"-
उसकी बात सुन कर साक्षी कहती है," अच्छा ऐसा है, तो इसका मलतब अब मैं केवल तुम्हारी हो गई?"-
उसकी बात सुन कर सिद्धार्थ कहता है ," हा केवल मेरी "-
साक्षी कहती है"ठीक है हम बहन को बता देंगे अब"--
"नही नही नही नही, साक्षी ऐसा मत करना कृपया कर केहम मर जाएंगे"-, ये बोलते हुए सिद्धार्थ की गांड इस बार सच में फटी हुई थी।
तभी साक्षी कहती है ," तो तुम्हे ये बता कर ये करना था ना? और अगर तुमने हमारे वस्त्र अब उतारे तो हम पापा को बता देंगे और बिना वजह हमे छुना मत , और ये तुम्हारा जो भी था हमे नही पसंद हमसे बिना पूछे ये भी मत करना, हमसे बिना पूछ कुछ भी मत करना। और ये तुम्हारा जो भी था होठ वैगरा ये भी हमसे बिना पूछे मत करना हमसे दूर रहना"-
उसकी पूरी बात सुन कर सिद्धार्थ का तो मुंह लटक जाता है और धीरे से कहता है ,"ठीक है"-
"फिर नही बातूंगी में किसी को भी। वैसे अब तुम्हारी हूं ना, मैं तो तुम हमेशा मेरी बात मानोगे ना, तुम्हे हमेसा माननी पड़ेगी", साक्षी एक अजीब सी मुस्कान के साथ बोली।
सिद्धार्थ ने जैसे ही ये सुना उसकी सिटी पीटी गुल हो गई , सिद्धार्थ जानता था साक्षी को साक्षी के साथ वो हमेशा रहा है उसकी यादें उसकी हरकते जब वो ऐसा बोलती है तो इसका एक ही मतलब है ,"लोड़े लगने वाले है"-
और साक्षी सिद्धार्थ को ऐसे डरता देख , हसने लगती है और धीरे से कहती है ," इतना मत सोचो , अब तुमने मुझे अपना बना लिया है तुमने ही कहा था मेरी बात माननी पड़ेगी"-
सिद्धार्थ धीरे से सास लेते हुए बोलता हैं मैं ही मादरचोद हूं , थोड़ी देर हवस कंट्रोल नही कर सकता था तभी वो धीरे से आहे भरता हुआ कहता है," हा मानूंगा"-
साक्षी धीरे से हसती हैं और ताली बजती है और खुश हो कर उछलने लगती है और उसको ऐसे खुश होता देख सिद्धार्थ के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वो बस साक्षी को देखता रहता है।
साक्षी फिर नीचे बैठ कर कहती है ,"तुम हमेशा हमेशा हमसे मिलने आना"-
"जैसे अपनी आज्ञा मेरी राजकुमारी"-
सिद्धार्थ की आवाज सुन कर साक्षी खिल खिलकर हसने लगती है और तभी सिद्धार्थ उससे कहता है -
"सुनो वो वो , हम कभी कभी तुम्हें छू सकते हैं और आज वो जो किया व"-
सिद्धार्थ बात पूरी कर पाता उसके पहले ही साक्षी कहती है "बहन"-
सिद्धार्थ: मैं तो मजाक कर रहा था।
तभी यह पर हर तरफ़ से सैनिक आने लगते है और सिद्धार्थ जल्दी से साक्षी का दुप्पटा ले कर उसको अच्छे से ढक देता है और धीरे से कहता है,"मुझे एक चीज चाहिए"-
साक्षी एकाएक सिद्धार्थ को सीरियस होते देख होती है तो धीरे से कहती है ," हम्म्म बोलो"-
"आज जो मैने तुम्हे किया, तुम्हे छूआ वो गलत नही था लेकिन तुम हमे वादा करो तुम्हे मेरे आलावा कोई और नही छुएगा"-
साक्षी धीरे से कहती है ," ठीक है वादा करती हूं, तुमने हमे अब अपना बना लिया तो तुम्हारे आलावा कोई और नही छुएगा"-
तभी साक्षी धीरे से कहती है, "क्या तुम हमसे पहले कभी मिले हो?"
साक्षी के सवाल का जवाब दे पाता उसके पहले सिद्धार्थ और साक्षी के पास बहुत सारे सैनिक और घुड़सवार आ कर खड़े हो जाते है।
और एक रथ से राजा जयराज और उसकी बेटी यशस्वी रथ से बाहर आती है और साक्षी को खुश हो कर कूदते हुए देखते है तो उसके चहरे पर अजीब सी मुस्कान आ जाती है।
यशस्वी धीरे से कहती है ," पिताश्री ये तो वही है जो पूरे गांव को डाकू से बचाया था"
तभी काया धीरे से कहती है, "महाराज ये वही लड़का है , जो सुबह राजकुमारी साक्षी को छेड़ रहा था"
यशस्वी जैसे ही ये सुनती है तो अपनी तलवार निकाल लेती है और धीरे से कहती है ," बदजात तुम्हारी हिम्मत"-
तभी काया की आवाज आती है -
"राजकुमारी उसके साथ होने पर, साक्षी राजकुमारी खुश होती है, और आप भी जानती है साक्षी का गुस्सा"
तभी राजा हसने लगता है और सिद्धार्थ को देखता है और यशस्वी को कहता है ," शांत पुत्री उसने कुछ गलत नही किया, और तो और हमे उसकी जरूरत है , सामने आने वाला हर कोई शत्रु नही होता, हमे उससे बात करने की जरूरत है"-
तभी उसके मन में कुल गुरु शक्ति दास की बात याद आती है," नियति बदल रही है और हम इस समय ऐसे बुरे वक्त में हम हार तो रहे ही है। तो क्या गुरु ने इसी लड़के की बात की थी"-
"तुम्हारी पुत्री की नियति ऐसे लड़के को खींच के लाएगी अब वो नियति मेरे ऊपर है"-
तभी राजा जयराज सिद्धार्थ की तरफ़ आता है
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. To be continued .... update posted.... Ab raja jayraj kya karte hai aur sidharth kaise sab Handel karta hai... ek taraf daaku ek taraf riyasat se dusmani... ab direct sindh ke raja.... Stay tunned ..... like target - 10 ... review dena ka .... And word around 3.7k .... stay tunned...