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Incest Ladlaa dever dever bhabhi ki anokhi kahani

vhsaxena

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Update 8
रोज़ तो भाभी सोते हुए झुक कर मेरे माथे पर किस करती थी, और बड़े प्यार से आवाज़ देकर मुझे उठाती थी, मे बिना आँखें खोले उनके गले लग जाता था.

आज ऐसा नही हुआ, दीदी ने आते ही सीधा मुझे ज़ोर से हिलाया और ज़ोर से आवाज़ देने लगी, छोटू…छोटू… उठ जा 8 बज गये, कब तक सोएगा..

मेने सोचा भाभी ही होंगी, सो दोनो हाथ उनके गले लगने के लिए उपर किए…

भाभी होती तो झुक कर उठती, दीदी पलंग के साइड में बैठ कर हिला रही थी, आँखें बंद किए ही मेने जैसे ही अपने दोनो हाथ उपर किए तो वो उनके बूब्स से टकरा गये….

मुझे बंद आँखों से कोई अंदाज़ा नही लगा, सोचा भाभी का गला और थोड़ा उपर को है, तो ऐसे ही हाथों को उनके बदन से रगड़ते हुए उपर ले जाने लगा.
उनके बूब मेरे हाथों से एक तरह से मसल गये…

हाथ लगते ही पहले तो दीदी ने सोचा ग़लती से लग गये होंगे.. और उन्हें ज़्यादा कुच्छ फील नही हुआ, लेकिन जब मेरे हाथों से उनके रूई जैसे मुलायम बूब्स मसल गये तो वो थोड़ा सॉक्ड हो गयी…

उसके कुंवारे मन की भावनाओ को करेंट सा लगा, और उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर ज़ोर्से झटक दिया..

मेरा हाथ चारपाई की पाटी से जा टकराया, खटक से मेरी आँखें खुल गयी और मे उठकर अपना हाथ झटकने लगा…मेरे हाथ में दर्द होने लगा और मैं ज़ोर से दीदी के उपर चिल्लाया…

क्या करती हो, मेरा हाथ तोड़ दिया… माआ…. आह्ह्ह्ह…

दीदी गुस्से से चिल्लाती हुई बोली – ये क्या कर रहा था तू ..? हां..!

मे और ज़ोर्से चिल्लाया – आप यहाँ क्या कर रही थी ?

आवाज़ सुन कर भाभी दौड़ी हुई आई और बोली – अरे ! आप दोनो क्यों गुस्सा हो रहे हो..? हुआ क्या है..?

मे – देखो ना भाभी, दीदी ने मेरा हाथ तोड़ दिया, कितना दर्द हो रहा है.. और उल्टा मुझ पर ही चिल्ला रही है..

भाभी ने दीदी की तरफ देखा… तो वो नज़र नीची करके बिना कुच्छ बोले वहाँ से चली गयी…

भाभी ने मेरे पास बैठ कर मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर सहलाया और फिर प्यार से मेरे गाल पर हाथ रख कर बोली – कोई बात नही मेरे प्यारे लल्ला जी.. चलो अब उठ जाओ, मे आयोडेक्स लगा दुगी ठीक हो जाएगा.

मे उठकर फ्रेश होने चला गया, दूसरी तरफ भाभी ने दीदी से उस घटना के बारे में पुछा तो उन्होने सकुचाते हुए सब बता दिया…

भाभी थोड़ी देर मॅन ही मन मुस्काराई, फिर बोली – ये उस बेचारे ने जान बुझ कर तो नही किया होगा, उसको लगा होगा कि रोज़ की तरह में उसे उठाती हूँ, तो वो मेरे गले लग जाते हैं, बस यही सोच कर गले लगने जा रहे होंगे और ग़लती से हाथ टच हो गया होगा, इतना माइंड मत किया करो ठीक है..,!

रामा – लेकिन भाभी आप भी उसे ज़्यादा सर मत चढ़ाओ, अब वो भी बड़ा हो रहा है…!

मोहिनी – मेरे लिए तो तुम दोनो बच्चे ही हो, तुम दोनो को संभालने की मेरी ज़िम्मेदारी है.. तुम छोटू के बारे में चिंता ना करो और मुझपे भरोसा रखो…..!!
 

vhsaxena

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Update 9
हम दोनो तैयार होकर स्कूल के लिए निकल लिए. दोनो एक ही साइकल से स्कूल जाते थे, मे साइकल लेके घर से बाहर निकला तो देखा दीदी अपना बॅग लिए मेरे इंतजार में ही खड़ी थी.

मे भी अपने पिताजी और भाइयों की तरह काफ़ी तंदुरुस्त शरीर का था, इस उमर में भी मेरी हाइट भाभी के बराबर थी (5’5”) दीदी से लंबा था..

अच्छा खाना पीना दूध घी का, उपर से भाभी का एक्सट्रा लाड प्यार, तो थोड़ा भारी भी होता जा रहा था मेरा शरीर.

वैसे तो माँ का दर्जा तो कोई और नही ले सकता, पर सच कहूँ तो भाभी के लाड प्यार ने मुझे अपनी माँ की ममता को भी भूलने पर विवश कर दिया था.

मेने दीदी को अनदेखा करके साइकल लेके चल दिया, तो दीदी ने आवाज़ देकर रुकने को कहा और बोली – अरे ! मुझे कॉन ले जाएगा..? तू तो अकेला ही भगा जा रहा है..

मेने साइकल तो रोक ली लेकिन कोई जबाब नही दिया और उल्टे अपने गाल फूला लिए, जैसे मे उनसे बहुत ज़्यादा नाराज़ हूँ.
दीदी मेरे पास आई और अपने दोनो कानों को पकड़ कर सॉरी बोला – छोटू ! भैया अपनी दीदी को माफ़ कर्दे..!
मेने कहा ठीक है.. माफ़ किया.. लेकिन मेरे हाथ में अभी भी दर्द है तो मुझसे डबल बिठा कर साइकल नही चलेगी, आप चलो…
मजबूरी में दीदी ने साइकल लेली, और में पीछे कॅरियर पर बैठ गया. गाओं से निकल कर हम सड़क पर आ गये, लेकिन दीदी की साँस फूलने लगी, और वो साइकल खड़ी करके हाँफने लगी…
आ..स्सा..आ..सससा.. उफ़फ्फ़…छोटू.. तू बहुत भारी है रे… मेरे से नही चलेगी.. तू जा अकेला.. मे पैदल ही आ जाती हूँ… ज्यदा दूर भी नही है… थोड़ा लेट ही होंगी और क्या..?
मे – हूंम्म… फिर शाम को बाबूजी से जूते पड़वाना हैं…! अगर उन्हें पता चला कि आप अकेली पैदल स्कूल गयी हो तो जानती हो ना क्या करेंगे वो…?
वो – तो फिर क्या करें..? तेरे हाथ में तो दर्द है, डबल सवारी हॅंडल कैसे साधेगा तू..?
मे – एक काम हो सकता है, आप हॅंडल पकडो, मे कॅरियर पर दोनो ओर को पैर करके पेडल मारता हूँ..!
वो – चला पाएगा तू ऐसे.. ?
मे – हां आप शुरू करो.. . फिर हम ने ऐसे ही साइकल चलाना शुरू कर दिया, मे पीछे से पेडल मारने लगा, लेकिन बिना कुच्छ पकड़े ताक़त लग ही नही पा रही थी..
नोट : जिन लोगों ने इस तरह से साइकल चलाई हो वो इस सिचुयेशन को भली भाँति समझ सकते हैं..
मे – दीदी ! बिना कुच्छ पकड़े मेरी ताक़त पेडल के उपर नही लग पा रही, क्या करूँ?
दीदी- तो सीट को आगे से पकड़ ले..
मेने दोनो हाथों को सीट के आगे ले गया लेकिन उनकी दोनो जांघे बीच में आ रही थी, मेने कहा दीदी अपने पैर तो उपर करो, तो उन्होने अपने दोनो पैर उठा कर आगे सामने वाले फ्रेम के डंडे पर रख लिए..
मेने सीट के दोनो साइड से हाथ आगे ले जाकर अपने हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे में फँसा लिया और साइकल पर पेडल मारने लगा, अब मुझे ताक़त लगाने में आसानी हो रही थी.
लेकिन दीदी अपने पैर ज़्यादा देर तक डंडे से टिका नही पाई और उनके पैर नीचे की ओर सरकने लगे जिससे उनकी मोटी-2 मुलायम जांघे मेरी कलाईयों पर टिक गयी.
जोरे लगाने में मेरा सर भी आगे पीछे को होता तो मेरी नाक और सर उनकी पीठ से टच होने लगते.
रामा को आज दूसरी बार अपने भाई के शरीर के टच का अनुभव हो रहा था, जो शुरू तो मजबूरी से हुआ लेकिन अब उसके कोमल मन की भावनाएँ कुच्छ और ही तरह से उठने लगी.
जांघों पर हाथों का स्पर्श, पीठ पर नाक और सर के बार टच होने से उसको सुबह अपने स्तनों पर हुए अपने भाई के हाथों का मसलना याद आने लगा, उसके कोमल अंगों में सुरसूराहट होने लगी.
ना चाहते हुए भी वो थोड़ा सा और आगे को खिसक गयी और आगे-पीछे हिला-हिलाकर अपनी मुनिया को अपने भाई की उंगलियों से टच करने लगी.
उसकी पेंटी में गीला पन का एहसास उसे साफ महसूस हुआ और वो मन ही मन गुड-गुडाने लगी. वो अपने आप को कोस रही थी कि क्यों उसने सुबह अपने भाई को नाराज़ किया, थोड़ी देर और अपने स्तनों को मसलवा लेती तो कितना मज़ा आता.
यही सब सोचती हुई वो मन ही मन खुश हो रही थी, और अब उसने अपने भाई को और अपने पास आने का मंसूबा बना लिया.
वो दोनो स्कूल पहुँचे और अपनी-2 क्लास में जा कर पढ़ाई में लग गये.
उमर कोई भी हो, साथ के यार दोस्त सब तरह की बातें तो करते ही हैं, आप चाहो या ना चाहो, वो सब बातें आपको भी असर तो डालती ही हैं.
रामा की भी क्लास में कुच्छ ऐसी लड़कियाँ थी, जो इस उमर में भी लंड का स्वाद ले चुकी थी, और आपस में वो एक दूसरे से इस तरह की बातें भी करती थी.
तो ऐसा तो बिल्कुल भी नही था कि रामा को इन सब बातों की कोई समझ ही ना हो, लेकिन वो उन दूसरी लड़कियों जैसी नही थी की कहीं भी किसी के भी साथ मज़े ले सके.
उसके अपने घर के संस्कार इसके लिए कतई उसको इस तरह की इज़ाज़त नही दे सकते थे..
सारे दिन रामा का पढ़ाई में मन नही लगा, रह-रह कर आज उसको दिन की घटनयें याद आ रही थी,और उनसे पैदा हुई अनुभूतयों को सोच-2 कर रोमांचित होती रही.

टाय्लेट करते समय आज पहली बार उसका मन किया कि अपनी पूसी को सहलाया जाए, और ये ख्याल आते ही उसका हाथ स्वतः ही अपनी पयर मुनिया पर चला गया, और वो उसे सहलाने लगी.

थोड़ा अच्छा भी लगा उसे, पर अब वो अपनी बंद आँखों से इस आभास को अपने भाई की उंगलियों के टच से हुई अनुभूति से कंपेर करने लगी…..!

स्कूल 9 बजे सुबह शुरू होता था और 3 बजे ऑफ हो जाता था, छुट्टी के बाद दोनो भाई बेहन घर लौट लिए. रामा ने लौटते वक़्त का कुच्छ और ही प्लान सोच लिया था.

छुट्टी होते ही वो छोटू के पास आई जो स्टॅंड से अपनी साइकल निकाल कर पैदल ही गेट की तरफ आ रहा था. रामा पहले से ही गेट पर जाकर खड़ी हो गयी थी.

अपना स्कूल बॅग भी हॅड्ल पर लटकाते हुए बोली – भाई तेरे हाथ का दर्द अब कैसा है, कुच्छ कम हुआ या वैसा ही है..

मे – वैसे फील नही होता है, लेकिन कुच्छ करने पर थोड़ा दुख़्ता है..

रामा – मेने सोचा तुझे कॅरियर से पेडल मारने में थोड़ा ज़्यादा ताक़त लगानी पड़ रही थी ना सुबह, तो इधर से हम दोनो साथ में पेडल चलाएँगे…

मे – अरे ! लेकिन पेडल तो इतना छोटा है, उसपर दोनो के पैर कैसे आ पाएँगे..?
 

vhsaxena

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Update 10
मे – लेकिन दीदी ! अब मे पाकडूँगा कैसे..?

रामा – तू मेरी जांघों के उपर से सीट को पकड़ ले… और उसने अपनी एडियों से साइकल आगे बढ़ाई, मेने भी उसकी एडियों की बगल से बाहर की तरफ अपने पंजे जमा लिए और हम दोनो मिलकर पेडलों पर ज़ोर लगाने लगे.

जैसे ही स्कूल की भीड़ से बाहर निकले, रामा ने सीट पकड़ने के लिए कहा. मेने अपने दोनो हाथ उसकी कमर की साइड से लेजा कर सीट की आगे की नोक पर जमा लिए.

सुबह के मुकाबले अब मुझे ताक़त भी कम लगानी पड़ रही थी, रामा बोली- क्यों भाई अब तो ज़्यादा ज़ोर नही लगाना पड़ रहा तुझे…?

मे – हां दीदी ! अब सही है, और साइकल भी तेज चल रही है…

हम दोनो मिलकर साइकल चलने लगे, दीदी के शरीर से उठने वाले पसीने की गंध मेरी नाक से अंदर जा रही रही थी.. और धीरे-2 मेने अपना गाल उसकी पीठ पर टिका दिया.

उधर अपने भाई की बाजुओं का दबाब अपनी जांघों पर बिल्कुल उसकी पूसी के बगल से पाकर रामा की मुनिया में सुर-सुराहट होने लगी और वो उसे आगे-पीछे हिल-हिल कर उसके हाथों से रगड़ने लगी.

मज़े से उसकी आँखें बंद होने लगी, जिसकी वजह से साइकल लहराने लगी, छोटू को लगा कि साइकल गिरने वाली है, तो वो चिल्लाया – दीदी क्या कर रही हो..? साइकल गिर जाएगी..

अपने भाई की आवाज़ सुनकर रामा को होश आया और वो ठीक से बैठ कर हॅंडल पर फोकस करने लगी.

रामा – भाई तू मेरी पीठ से क्यों चिपका है.. ?
मे – अरे दीदी ! सीट पकड़ने के लिए हाथ आगे करूँगा तो मुझे भी आगे खिसक कर बैठना पड़ेगा ना..!

रामा – तो तू एक काम कर..! सीट की जगह मुझे पकड़ ले.. और अपने एक हाथ से मेरा उधर का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ के जोड़ पर अंदर की तरफ रख दिया और बोली- दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख ले… ठीक है..

मेने हां बोलकर दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख लिया, अब मेरे दोनो हाथों की उंगलिया एकदम उसकी पूसी के उपर थी, मेरे मन में ऐसी कोई भावना नही थी कि अपनी बेहन को टीज़ करूँ लेकिन वो आगे-पीछे होकर अब मेरे हाथों से अपनी मुनिया की फुल मसाज करा रही थी.

घर पहुँचते पहुँचते रामा इतनी एक्शिटेड हो गयी, की उसका फेस लाल भभुका हो गया, कान गरम हो गये, और उसकी पेंटी पूरी तरह गीली हो गयी, जो मुझे लगा शायद पसीने की वजह से हो.

घर पहुँचते ही वो जल्दी से साइकल मुझे पकड़ा कर बाथरूम को भागी, और करीब 10 मिनिट बाद उसमें से निकली, तब तक मेने साइकल आँगन में खड़ी की, दोनो बाग उतारे, और अपने कपड़े निकाल कर फ्रेश होने बाथ रूम की तरफ गया, वो उसमें से निकल रही थी.
मेने पुछा- दीदी इतनी तेज़ी से बाथरूम में क्यों भागी..? तो वो बोली- अरे यार बहुत ज़ोर्से बाथरूम लगी थी….. मेने सोचा शायद ठीक ही कह रही होगी.
मे फ्रेश होकर भाभी के रूम में चला गया, वो बेसूध होकर सो रही थी, अब मुझे तो पता नही था कि बेचारी, रात भर भैया के साथ पलंग तोड़ कुश्ती खेलती रही हैं.
सोते हुए वो इतनी प्यारी लग रही थी मानो कोई देवी की मूरत हो, साँसों के साथ उनका वक्ष उपर नीचे हो रहा था, जो आज कुच्छ ज़्यादा ही उठा हुआ लगा मुझे.
मे उनके पास बैठ गया और उनका एक हाथ अपने हाथों मे लेकर अपने गाल पर रख कर सहलाया और धीरे से आवाज़ लगाई… लेकिन वो गहरी नींद में थी सो कोई असर नही पड़ा.
तो मेने उनका हाथ हिलाकर थोड़ा उँची आवाज़ में पुकारा – भाभी ! भाभी .. उठिए ना… भूख लगी है.. खाना दो ..!
वो थोड़ा सा कुन्मुनाई और मेरी ओर करवट लेकर फिर सो गयी, करवट लेते समय उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघ पर आ गया. उनका साड़ी का पल्लू सीने से अलग हो गया और ब्लाउस में कसे उनके उरोजो का उपरी हिस्सा लगभग 1/3 दिखाई पड़ने लगा.
दोनो उरोज एक-दूसरे से सट गये थे, अब उन दोनो के बीच एक पतली सी दरार जैसी बनी हुई थी.
मेरा मन किया कि इस दरार में उंगली डाल कर देखूं, लेकिन एक ममतामयी भाभी की छवि ने मुझे रोक दिया, और मे उनके पास से चला आया.
बाहर आकर देखा तो दीदी खाना लेकर खा रही थी, मेने कहा – मुझे नही बुला सकती थी खाने के लिए.
वो बोली – मुझे लगा तू बिना भाभी के दिए नही खाएगा.. सो इसलिए नही पुछा, चल आजा मेरे साथ ही खाले दोनो मिलकर खाते हैं.
मे भी दीदी के साथ ही बैठ गया खाने और फिर हम दोनो बेहन भाई ने एक ही थाली में बैठ कर खाना खाया, जो मुझे कुच्छ ज़्यादा अच्छा लगा एक साथ खाने में.
आप भी कभी अपने परिवार के साथ एक थाली में ख़ाके देखना ज़्यादा टेस्टी लगेगा, ये मेरा अपना अनुभव है…शाम को भाभी टीवी के सामने बैठ कर सब्जी काट रही थी, दीदी बड़ी चाची के यहाँ गयी थी, नीलू भैया से नोट्स लेने.…

यहाँ थोड़ा अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के बारे में बताना ज़रूरी है..

मेरे 3 चाचा : बड़े राम किशन पिताजी से दो साल छोटे खेती करते हैं, उमर 44, चाची जानकी देवी उमर 42 इनके 3 बच्चे हैं दो बड़ी बेटियाँ रेखा और आशा, उमर 22 और 19, बड़ी बेटी की शादी मेरे भैया से एक साल बाद ही हुई थी, तीसरा बेटा नीलू जो रामा दीदी के बराबर का उन्ही की क्लास में पढ़ता है.

दूसरे (मंझले) चाचा : रमेश उमर 41, ये भी खेती ही करते है, चाची निर्मला 38 की होंगी, इनके दो बच्चे हैं, दोनो ही लड़के हैं सोनू और मोनू.. सोनू मेरे से दो साल बड़ा है, और मोनू मेरी उमर का है लेकिन मेरे से एक क्लास पीछे है.

दो बुआ – मीरा और शांति 36 और 33 की उमर दोनो की शादी अच्छे घरों में हुई है ज़्यादा डीटेल समय आने पर..

तीसरे चाचा जो सब बेहन भाइयों में छोटे हैं नाम है राकेश 12थ तक पढ़े हैं, इसलिए पिताजी ने इन्हें स्कूल 4थ क्लास की नौकरी दिलवा दी और खेती तो है ही साथ में तो अच्छी कट रही है इनकी इस समय 30 के हो चुके हैं.

छोटी चाची रश्मि उमर 26 साल, सच पुछो तो चाचा के भाग ही खुल गये, चाची एकदम हेमा मालिनी जैसी लगती हैं.. शादी के 6 साल बाद भी अभी तक कोई बच्चा पैदा नही कर पाए हैं.भाभी सोफे पर बैठी सब्जी काट रही थी शाम के खाने के लिए, मे बाहर आँगन में चारपाई पर बैठा अपना आज का होम वर्क कर रहा था.

थोड़ी देर बाद भाभी मेरे पास आकर सिरहाने की तरफ बैठ गयी और पीछे से मेरे सर पर हाथ फेर्कर बोली – लल्ला ! होम वर्क कर रहे हो… !

मे – हां भाभी आज टीचर ने ढेर सारा होम वर्क दे दिया है, उसी को निपटा रहा हूँ. वैसे हो ही गया है बस थोड़ा सा ही और है.वो – दूध लाउ पीओगे..?

मे – नही अभी नही रात को खाने के बाद पी लूँगा… अरे हां भाभी ! याद आया, आपकी तबीयत कैसी है अब?

वो – हां ? मुझे क्या हुआ है..? भली चन्गि तो हूँ…!

मे – नही ! वो दो दिन से आप कुच्छ लंगड़ा कर चल रही थी, और जब मेने स्कूल से आके आपको बहुत जगाया, लेकिन आप उठी ही नही, सोचा शायद आपको कोई प्राब्लम हुई हो..?मेरे मुँह से चीख निकल गयी लेकिन उन्होने मेरा गाल नही छोड़ा और उसे अपने होठों में दबा कर पपोर लिया, और कुच्छ देर तक काटने वाली जगह पर अपने होठों से ही सहलाने लगी..
 

vhsaxena

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Update 11
मेरा दर्द पता नही कहाँ च्छूमंतर हो गया और मुझे मज़ा आने लगा, मेरी आँखें बंद हो गयी,
फिर उन्होने ऐसा ही दूसरे गाल पर भी किया, इस बार दर्द हुआ पर मे चीखा नही और उनके होठों के सहलाने का मज़ा लेता रहा.क्यों कैसा लगा मेरा चुम्मा जब भाभी ने पुछा तो मेने कहा – आहह.. भाभी मज़ा आ गया, ऐसा चुम्मा तो आप रोज़ लिया करो, और ये बोलकर मे उनकी जाँघ पर अपना सर रख कर लेट गया और उनकी पतली कमर में अपनी बाहें लपेट कर उनके ठंडे-2 पेट पर अपना मुँह रख कर बोला- भाभी आप कोई जादू तो नही जानती..?
वो – क्यों मेने क्या जादू कर दिया तुम पर..?
मे – कुच्छ देर पहले मेरा दिमाग़ थका-2 सा लग रहा था, लेकिन आपने सारी थकान ख़तम करदी मेरी, ये बोलकर मेने उनके ठंडे पेट को चूम लिया.. ..
वो मेरा सर चारपाई पर टिका कर हँसती हुई खाना बनाने चली गयी और मे फिर अपने होमे वर्क में लग गया…!
दूसरी सुबह हम फिर स्कूल के लिए रेडी होकर ले साइकल निकाल लिए.. आज मेरा हाथ एकदम फिट था, सो मेने साइकल बढ़ा दी और दीदी को बैठने के लिए बोला.

दीदी ने जैसे ही बैठने के लिए कॅरियर पकड़ा, वो सीट के नीचे वाले जॉइंट से अलग होकर पीछे को लटक गया.. दीदी चिल्लाई – छोटू रुक, ये कॅरियर तो निकल गया..
मे – तो अब क्या करें, चलो पैदल ही चलते हैं वहीं जाकर मेकॅनिक से ठीक करा लेंगे, बॅग दोनो साइकल पर टाँग उसके हॅड्ल को पकड़ कर हम दोनो निकल पड़े पैदल स्कूल को.
पीछे से नीलू भैया साइकल पर आ रहे थे, उनके पीछे आशा दीदी जो अब 12थ में थी, लेट पढ़ने बैठी थी इसलिए वो अभी 12थ में ही थी. दोनो भाई बेहन एक ही क्लास में थे.
हमें देख कर उन्होने भी अपनी साइकल रोकी और पुछा की क्या हुआ, हमने अपनी प्राब्लम बताई तो वो दोनो भी बोले कि ठीक है हम भी तुम दोनो के साथ पैदल ही निकलते हैं.
रामा दीदी ने उनको कहा- अरे नही आप लोग निकलो क्यों खम्खा हमारी वजह से लेट होते हो, तो वो निकल गये..जैसे ही हम सड़क पर पहुँचे.. तो दीदी बोली – छोटू ! भाई ऐसे तो हम लोग लेट हो जाएँगे, पहला पीरियड नही मिल पाएगा, वो भी मेरा तो फिज़िक्स का है..

मे – तो क्या करें आप ही बताओ..

वो – एक काम करते हैं, में आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ.. कैसा रहेगा
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है, आप बैठो.. तो वो आगे डंडे पर बैठ गयी और मे फिरसे साइकल चलाने लगा….!!

स्कूल के लिए थोड़ा लेट हो रहा था तो मेने साइकल को तेज चलाने के लिए ज़्यादा ताक़त लगाई जिससे मेरे दोनो घुटने अंदर की तरफ हो जाते और सीना आगे करना पड़ता पेडल पर ज़्यादा दबाब डालने के लिए.

मेरे लेफ्ट पैर का घुटना दीदी के घुटनो में अड़ने लगा तो वो और थोड़ा पीछे को हो गयी, जिससे उनके कूल्हे राइट साइड को ज़यादा निकल आए और उनकी पीठ मेरे पेट से सटने लगी.
मेरी राइट साइड की जाँघ उनके कूल्हे को रब करने लगी और लेफ्ट पैर उनकी टाँगों को..
उनके कूल्हे से मेरी जाँघ के बार-बार टच होने से मेरे शरीर में कुच्छ तनाव सा बढ़ने लगा, और मेरी पॅंट में क़ैद मेरी लुल्ली, जो अब धीरे-2 आकर लेती जा रही थी थी अकड़ने लगी.
दीदी भी अब जान बूझकर अपनी पीठ को मेरे पेट और कमर से रगड़ने लगी, अपना सर उन्होने और थोड़ा पीछे कर लिया और अपना एक गाल मेरे चेहरे से टच करने लगी.
ज़ोर लगाने के लिए मे जब आगे को झुकता तो हम दोनो के गाल एक दूसरे से रगड़ जाते.. और पूरे शरीर में एक सनसनी सी फैलने लगती.
आधे रास्ते पहुँच, दीदी बोली- छोटू थोड़ा और तेज कर ना लेट हो रहे हैं.. तो मेने अपने दोनो हाथ हॅंडल के बीच की ओर लाया जिससे और अच्छे से दम लगा सकूँ..
लेकिन सही से पकड़ नही पा रहा था…. हॅंडल….! क्योंकि दीदी के दोनो बाजू बीच में आ रहे थे. तो उसने आइडिया निकाला और अपने दोनो बाजू मेरे बाजुओं के उपर से लेजाकर हॅंडल के दस्तानों को पकड़ लिया, जहाँ नोर्मली चलाने वाला पकड़ता है.

हॅंडल को बीच की तरफ पकड़कर अब साइकल चलाने में दम तो लग रहा था और साइकल भी अब बहुत तेज-तेज चल रही थी लेकिन अब मेरे लेफ्ट साइड की बाजू दीदी के बूब्स को रगड़ने लगी.
दूसरी ओर मेरी दाई जाँघ दीदी के मुलायम चूतड़ को रगड़ा दे रही थीमेरे शरीर का करेंट बढ़ता ही जा रहा था, उधर दीदी की तो आँखें ही बंद हो गयी, वो और ज़्यादा अपने बूब्स को जानबूझ कर मेरे बाजू पर दबाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर-ज़ोर्से भींचने लगी.

उत्तेजना के मारे हम दोनो के ही शरीर गरम होने लगे थे.

स्कूल पहुँच दीदी ने साइकल से उतरते ही मेरे गाल पर एक किस कर दिया और थॅंक यू बोलकर भागती हुई अपनी क्लास रूम में चली गयी.

छुट्टी के बाद लौटते वक़्त जब मेने दीदी को पुछा की आपने थॅंक्स क्यो बोला था, तो बोली – अरे यार समय पर स्कूल पहुँचा दिया तूने इसके लिए और क्या..! वैसे तू क्या समझा था..?

मे – कुच्छ नही, मे क्या समझूंगा.., आज पहली बार आपने थॅंक्स बोला इसलिए पुछा. वो नज़र नीची करके स्माइल करने लगी.

घर लौटते वक़्त भी ऐसा ही कुच्छ हमारे साथ हुआ, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर दीदी ने अपनी लेफ्ट बाजू मेरी जाँघ पर ही रखड़ी थी और अपने अल्प-विकसित उभारों को मेरी बाजू से रग़ाद-2 कर खुद भी उत्तेजित होती रही और मुझे भी बहाल कर दिया.

अब ये हमारा रोज़ का ही रूटिन सा बन गया था, दिन में एक बार कम से कम मे भाभी का चुम्मा लेता, बदले में वो भी मेरे गाल काट कर अपने होठों से सहला देती, कभी-2 तो मे अपना सर या गाल या फिर मुँह उनके स्तनों पर रख कर रगड़ देता.

दूसरी तरफ दीदी और मे भी दिनों दिन मस्ती-मज़ाक में बढ़ते ही जा रहे थे, लेकिन सीमा में रह कर.

ऐसे ही मस्ती मज़ाक में दिन गुज़रते चले गये, और ये साल बीत गया, मे अब नयी क्लास में आ गया था, दीदी 12थ में पहुँच गयी, ये साल हम दोनो का ही बोर्ड था, सो शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करना शुरू कर दिया….

उधर बड़े भैया का बी.एड कंप्लीट होने को था, घर में खर्चे भी कंट्रोल में होने शुरू हो गये थे क्योंकि बड़े भैया की पढ़ाई का खर्चा तो अब नही रहा था, और आने वाले कुच्छ महीनो में अब वो भी जॉब करने वाले थे.

हम दोनो भाई-बेहन ने भाभी से जुगाड़ लगा कर एक व्हीकल लेने के लिए पहले भैया के कानो तक बात पहुँचाई और फिर हम सबने मिलकर बाबूजी को भी कन्विन्स कर लिया, जिसमें छोटे भैया का भी सपोर्ट रहा.
अब घर के सभी सदस्यों की बात टालना भी बाबूजी के लिए संभव नही था, ऐसा नही था कि उनको पैसों का कोई प्राब्लम था, लेकिन एक डर था कि मे व्हीकल मॅनेज कर पाउन्गा या नही.
सबके रिक्वेस्ट करने पर वो मान गये और उन्होने एक बिना गियर की टू वीलर दिलवा दी, अब हम दोनो भाई-बेहन टाइम से स्कूल पहुँच जाते थे.
दीदी ने भी चलाना सीख लिया तो कभी मे ले जाता और कभी वो, जब मे चलाता तो वो मेरे से चिपक कर बैठती और अपने नये विकसित हो रहे उरोजो को मेरी पीठ से सहला देती.
जब वो चलती तो जानबूझ कर अपने हिप्स मेरे आगे रगड़ देती, जिससे मेरा पप्पू बेचारा पॅंट में टाइट हो जाता और कुच्छ और ना पता देख मन मसोस कर रह जाता, लेकिन दीदी उसे अच्छे से फील करके गरम हो जाती.
ऐसे ही कुच्छ महीने और निकल गये, इतने में बड़े भैया को भी एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गयी, लेकिन शहर में ही जिससे उनके घर आने के रूटिन में कोई तब्दीली नही हुई.
इस बार स्कूल में आन्यूयल स्पोर्ट्स दे मानने का आदेश आया था, रूरल एरिया का स्कूल था सो सभी देहाती टाइप के देशी गेम होने थे, जैसे खो-खो, कबड्डी, लोंग जंप, हाइ जंप…लड़कियों के लिए अंताक्षरी, संगीत, डॅन्स…
मेरी बॉडी अपने क्लास के हिसाब से बहुत अच्छी थी, सो स्पोर्ट्स टीचर ने मेरे बिना पुच्छे ही मेरा नाम स्पोर्ट्स के लिए लिख लिया, और सबसे प्रॅक्टीस कराई, जिसमें
मेरा कबड्डी और लोंग जंप में अच्छा प्रद्र्षन रहा और मे उन दोनो खेलों के लिए सेलेक्ट कर लिया.
सारे दिन खेलते रहने की वजह से शरीर तक के चूर हो रहा था, पहले से कभी कुच्छ खेलता नही था, तो थकान ज़्यादा महसूस हो रही थी.
स्कूल से लौटते ही मेने बॅग एक तरफ को पटका और बिना चेंज किए ही आँगन में पड़ी चारपाई पर पसर गया. सारे कपड़े पसीने और मिट्टी से गंदे हो रखे थे.
थोड़ी ही देर में मेरी झपकी लग गयी, जब भाभी ने आकर मुझे इस हालत में देखा तो वो मेरे बगल में आकर बैठ गयी, और मेरे बालों में उंगलिया फिराते हुए मुझे आवाज़ दी.

मेने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखा तो वो बोली – क्या हुआ, आज ऐसे आते ही पड़ गये, ना कपड़े चेंज किए, और देखो तो क्या हालत बना रखी है कपड़ों की.. बॅग भी ऐसे ही उल्टा पड़ा है
किसी से कुस्ति करके आए हो..? मेने कहा नही भाभी, असल में आज स्कूल में स्पोर्ट्स दे के लिए गेम हुए, और मेरा दो खेलों के लिए सेलेक्षन हो गया है.
सारे दिन खेलते-2 बदन टूट रहा है, कभी खेलता नही हूँ ना.. इसलिए.. प्लीज़ थोड़ी देर सोने दो ना भाभी..
अरे.. ! ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में कैसे नींद आ सकती है, शरीर में कीटाणु लगे हुए हैं, चलो उठो ! पहले नहा के फ्रेश हो जाओ, कुच्छ खा पीलो, फिरर देखना अपनी भाभी के हाथों का चमत्कार, कैसे शरीर की थकान छुमन्तर करती हूँ.. चलो.. अब उठो..!

और उन्होने जबर्दुस्ति हाथ से पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया, और पीठ पर हाथ रख कर जबर्जस्ति पीछे से धकेलते हुए बाथरूम में भेज दिया….
 

vhsaxena

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Update 12
बीते एक साल में मोहिनी का बदन पहले से भर गया था, उसके बूब्स भी अब ज़्यादा बड़े-2 दिखने लगे थे, कुल्हों का उठान अब साड़ी में साफ-2 दिखता था. कुल मिलकर अब वो एकदम कड़क माल होती जा रही थी.
सनडे के सनडे राम मोहन अपनी प्यारी पत्नी की अच्छे से सर्विस जो कर जाते थे.
फ्रेश होकर मुझे भाभी ने बादाम वाला दूध दिया और साथ में कुच्छ बिस्कट बगैरह दे दिए, मेने कहा भाभी इनसे क्या होगा, मुझे तो खाना खाना है,
तो उन्होने प्यार से झिड़कते हुए कहा – नही आज से इस टाइम तुम खाना नही खाओगे, खाना में स्कूल के लिए रख दिया करूँगी, तो रिसेस में खा लिया करना, घर आकर बस हल्का फूलका और खाना सीधे रात को ही.
अब तुम्हें मे .मेन बना के छोड़ूँगी… मे चाहती हूँ मेरा देवर अपने पूरे परिवार में सबसे ज़्यादा ताक़तवर हो… जब सीना तान कर चले तो लगे मानो कोई शेर आ रहा हो..
मेने हँसते हुए कहा क्यों भाभी खाम्खा मुझे चढ़ा रही हो..
तो वो बोली – तुम इसे मज़ाक समझ रहे हो.. चलो अब छत पर ! तुमहरे बदन की मालिश करनी है फिर देखना कैसा तुम्हारी थकान कोसों दूर खड़ी दिखेगी.
हम दोनो छत पर आ गये, हमारे आधे पोर्षन पर दो-मंज़िला बना हुआ था, वाकई हमारे अलावा आस-पास किसी का इतना उँचा मकान नही था.
गाओं के दूसरे छोर पर सिर्फ़ प्रधान का ही घर हमारे से उँचा था, लेकिन बहुत दूर था वो हमसे.
उपर दो बड़े-2 कमरे और उनके आगे एक वरांडे, इस सबकी एक कंबाइंड छत काफ़ी लंबी चौड़ी थी, जो चारों तरफ 2.5 फीट उँची बाउंड्री से कवर की हुई थी.
भाभी ने एक बिछावन नीचे डाला और मुझे अपनी बनियान उतारकर उसपर लेटने को कहा, नीचे में बस एक टाइट हाफपेंट ही पहने हुए था.
भाभी ने अपनी साड़ी के पल्लू को दुपट्टा की तरह अपने सीने पर कसकर लपेटा और उसे पीठ पर से लाते हुए अपनी कमर में खोंस लिया, कसे हुए ब्लाउस और साड़ी के बाहर से ही उनके सुडौल बूब्स एकदम उभर कर बाहर को निकल आए.
वो मेरे बाजू में उकड़ू बैठ गयी, अपने साथ लाई एक कटोरी जिसमें गुनगुना सरसों का तेल था उसे मेरे सर पास रख दिया, फिर अपने हाथों में ढेर सारा तेल ले कर मेरे सीने और कंधों की मालिश करने लगी.
भाभी के गोरे-2 मुलायम हाथ मेरे शरीर पर उपर-नीचे हो रहे थे, उनकी एक साइड की मांसल जाँघ मेरी कमर से रगड़ रही थी, जब वो उपर को आती तो जाँघ के साथ-2 उनके पेट का हिस्सा भी मेरे शरीर से रगड़ जाता.
मे अपनी आँखें बंद किए हुए ये सब फील कर रहा था, और धीरे-2 एक अजीब सी उत्तेजना मेरे शरीर में भरती जा रही थी.
सीने और कंधों की मालिश के बाद वो थोड़ा नीचे की तरफ हुई और अब उनकी जांघों का एहसास मुझे अपनी जाँघ के निचले भाग पर हुआ, अब वो मेरे पेट और उसके साइड की मालिश करने लगी.
जब उनके हाथ मेरे दूसरी साइड की मालिश करते तो उन्हें ज़्यादा झुकना पड़ता जिससे उनका पेट मेरे कमर से टच होता. ना चाहते हुए भी मेरे हाफपेंट में उभार सा बनाने लगा.
फिर उन्होने मेरे पैरों की तरफ रुख़ किया और पैर के पंजों से शुरू करते हुए वो उपर की तरफ आने लगी, घुटनो के उपर उनके हाथों को फील करते ही मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी और मेरी लुल्ली कड़क हो गयी.
भाभी के हाथ जांघों की मालिश करते हुए उपर और उपर की तरफ आते जा रहे मेने हल्के से अपनी आखें खोलकर देखा तो मालिश करते हुए उनकी नज़र मेरे उभार पर ही टिकी हुई थी और मंद-मंद मुस्करा रही थी.
अब भाभी ने मुझे पलटने के लिए कहा- तो में अपने पेट के बल लेट गया. उन्होने अपनी साड़ी को घुटनों तक चढ़ाया और मेरे उपर दोनो तरफ को पैर करके अपने घुटनो पर बैठ गयी..
लाख कोशिशों के बबजूद भी जब वो मालिश करते हुए हाथ अपनी तरफ करती तो उनके गद्दे जैसे मुलायम नितंब मेरी कमर से टच हो जाते, फिर वो जैसे-2 नीचे को खिसकती गयी अब उनके मोटे-2 चूतड़ मेरी गांद के उपर थे.
जब वो अपना दबाब मेरे उपर डालती तो मेरी नीचे कड़ी हुई नुन्नि जो छाती से दबी हुई थी और ज़्यादा फूलने लगी, मारे उत्तेजना के मेरे मुँह से सिसकी निकलने लगी..
भाभी मन ही मन हसते हुए बोली – क्या हुआ लल्ला जी.. कोई प्राब्लम है..?
अब मे उनको क्या बताऊ कि मुझे क्या प्राब्लम है.. ? फिर भी मेने उनको कहा – आह.. भाभी ज़ोर्से अपना वजन मत रखो, मुझे छत के फर्श से दुख रहा है..
वो – कहाँ दुख रहा है… ?
मे – अरे समझा करो भाभी आप भी ना ! मेरी कमर में और कहाँ ..
वो – ओह्ह्ह.. तो मालिश बंद कर्दु.. ?
मे – नही ! लेकिन थोड़ा वजन कम रखो ना प्लीज़ … फिर वो थोड़ा नीचे को मेरी जांघों के उपर बैठ गयी तो मुझे कुच्छ राहत मिली, लेकिन अब उन्हें मेरे कंधों तक पहुँचने में ज़्यादा झुकना पड़ रहा था तो उनकी मुनिया मेरी गांद से रगड़ खाने लगी. उन्हें अब और ज़्यादा मज़ा आने लगा और मालिश के बहाने और तेज-2 हाथ चलाने लगी, कुच्छ देर बाद ही वो अपनी रामदुलारी को मेरी गांद के उपर चेंप कर हाथों को मेरी पीठ पर टिकाए अकड़ कर बैठ गयी और कुच्छ देर ऐसे ही शांत बैठी रही.

मेने सर घूमाकर पीछे देखने की कोशिश की तो उन्होने अपने हाथों का दबाब मेरी पीठ पर और बढ़ा दिया जिसके कारण में देख नही पाया कि वो ऐसे क्यों शांत बैठी हैं..

मालिश करने के बाद जब वो मेरे उपर से उठ गई, तो मे कुच्छ देर यूँही उल्टा पड़ा रहा, क्योंकि मे अपने उभार को दिखाना नही चाहता था.

वाकाई में मेरे शरीर की अकड़न एक दम चली गयी थी, वो बिना कुच्छ कहे अपने कपड़े ठीक करके नीचे चली गयी और मे वहीं पड़े-2 नींद में डूबता चला गया…

अब भाभी रोज़ सुबह 5 बजे मुझे जगा देती, और फ्रेश होके कसरत करवाती, वोही देशी डंड बैठक.. और कुच्छ देशी एक्सर्साइज़.. उसके बाद नहाना-धोना, स्कूल के रेडी होकर एक लीटर बादाम का दूध पिलाती.

स्कूल में भी रोज़ गेम्स की प्रॅक्टीस होती, फिर शाम को मालिश, भाभी की मस्तियाँ बढ़ती जा रही थी, लेकिन एक अनदेखी दीवार थी जो हम दोनो को रोके हुए थी अपनी हदें पार करने से.

दूसरी ओर रामा दीदी भी मौका निकाल ही लेती मौज मस्ती का. अब उन दोनो के साथ क्या होता था, मुझे नही पता, लेकिन ऐसे मौकों पर मेरा हाल बहाल हो जाता था, और कुच्छ कर भी नही सकता था, क्योंकि यही पता नही था कि करूँ तो क्या..?

स्पोर्ट्स डे तक मेरा शरीर भाभी की मालिश, खेलों की प्रॅक्टीस और कसरतों की वजह से एक दम पत्थर जैसा हो चुका था,

लोंग जंप में, मे अपने स्कूल में सबसे आगे था, और कबड्डी में भी मेरी वजह से हमारी क्लास के आगे 12थ की भी टीम हार जाती थी.
 
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Update 12
बीते एक साल में मोहिनी का बदन पहले से भर गया था, उसके बूब्स भी अब ज़्यादा बड़े-2 दिखने लगे थे, कुल्हों का उठान अब साड़ी में साफ-2 दिखता था. कुल मिलकर अब वो एकदम कड़क माल होती जा रही थी.
सनडे के सनडे राम मोहन अपनी प्यारी पत्नी की अच्छे से सर्विस जो कर जाते थे.
फ्रेश होकर मुझे भाभी ने बादाम वाला दूध दिया और साथ में कुच्छ बिस्कट बगैरह दे दिए, मेने कहा भाभी इनसे क्या होगा, मुझे तो खाना खाना है,
तो उन्होने प्यार से झिड़कते हुए कहा – नही आज से इस टाइम तुम खाना नही खाओगे, खाना में स्कूल के लिए रख दिया करूँगी, तो रिसेस में खा लिया करना, घर आकर बस हल्का फूलका और खाना सीधे रात को ही.
अब तुम्हें मे .मेन बना के छोड़ूँगी… मे चाहती हूँ मेरा देवर अपने पूरे परिवार में सबसे ज़्यादा ताक़तवर हो… जब सीना तान कर चले तो लगे मानो कोई शेर आ रहा हो..
मेने हँसते हुए कहा क्यों भाभी खाम्खा मुझे चढ़ा रही हो..
तो वो बोली – तुम इसे मज़ाक समझ रहे हो.. चलो अब छत पर ! तुमहरे बदन की मालिश करनी है फिर देखना कैसा तुम्हारी थकान कोसों दूर खड़ी दिखेगी.
हम दोनो छत पर आ गये, हमारे आधे पोर्षन पर दो-मंज़िला बना हुआ था, वाकई हमारे अलावा आस-पास किसी का इतना उँचा मकान नही था.
गाओं के दूसरे छोर पर सिर्फ़ प्रधान का ही घर हमारे से उँचा था, लेकिन बहुत दूर था वो हमसे.
उपर दो बड़े-2 कमरे और उनके आगे एक वरांडे, इस सबकी एक कंबाइंड छत काफ़ी लंबी चौड़ी थी, जो चारों तरफ 2.5 फीट उँची बाउंड्री से कवर की हुई थी.
भाभी ने एक बिछावन नीचे डाला और मुझे अपनी बनियान उतारकर उसपर लेटने को कहा, नीचे में बस एक टाइट हाफपेंट ही पहने हुए था.
भाभी ने अपनी साड़ी के पल्लू को दुपट्टा की तरह अपने सीने पर कसकर लपेटा और उसे पीठ पर से लाते हुए अपनी कमर में खोंस लिया, कसे हुए ब्लाउस और साड़ी के बाहर से ही उनके सुडौल बूब्स एकदम उभर कर बाहर को निकल आए.
वो मेरे बाजू में उकड़ू बैठ गयी, अपने साथ लाई एक कटोरी जिसमें गुनगुना सरसों का तेल था उसे मेरे सर पास रख दिया, फिर अपने हाथों में ढेर सारा तेल ले कर मेरे सीने और कंधों की मालिश करने लगी.
भाभी के गोरे-2 मुलायम हाथ मेरे शरीर पर उपर-नीचे हो रहे थे, उनकी एक साइड की मांसल जाँघ मेरी कमर से रगड़ रही थी, जब वो उपर को आती तो जाँघ के साथ-2 उनके पेट का हिस्सा भी मेरे शरीर से रगड़ जाता.
मे अपनी आँखें बंद किए हुए ये सब फील कर रहा था, और धीरे-2 एक अजीब सी उत्तेजना मेरे शरीर में भरती जा रही थी.
सीने और कंधों की मालिश के बाद वो थोड़ा नीचे की तरफ हुई और अब उनकी जांघों का एहसास मुझे अपनी जाँघ के निचले भाग पर हुआ, अब वो मेरे पेट और उसके साइड की मालिश करने लगी.
जब उनके हाथ मेरे दूसरी साइड की मालिश करते तो उन्हें ज़्यादा झुकना पड़ता जिससे उनका पेट मेरे कमर से टच होता. ना चाहते हुए भी मेरे हाफपेंट में उभार सा बनाने लगा.
फिर उन्होने मेरे पैरों की तरफ रुख़ किया और पैर के पंजों से शुरू करते हुए वो उपर की तरफ आने लगी, घुटनो के उपर उनके हाथों को फील करते ही मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी और मेरी लुल्ली कड़क हो गयी.
भाभी के हाथ जांघों की मालिश करते हुए उपर और उपर की तरफ आते जा रहे मेने हल्के से अपनी आखें खोलकर देखा तो मालिश करते हुए उनकी नज़र मेरे उभार पर ही टिकी हुई थी और मंद-मंद मुस्करा रही थी.
अब भाभी ने मुझे पलटने के लिए कहा- तो में अपने पेट के बल लेट गया. उन्होने अपनी साड़ी को घुटनों तक चढ़ाया और मेरे उपर दोनो तरफ को पैर करके अपने घुटनो पर बैठ गयी..
लाख कोशिशों के बबजूद भी जब वो मालिश करते हुए हाथ अपनी तरफ करती तो उनके गद्दे जैसे मुलायम नितंब मेरी कमर से टच हो जाते, फिर वो जैसे-2 नीचे को खिसकती गयी अब उनके मोटे-2 चूतड़ मेरी गांद के उपर थे.
जब वो अपना दबाब मेरे उपर डालती तो मेरी नीचे कड़ी हुई नुन्नि जो छाती से दबी हुई थी और ज़्यादा फूलने लगी, मारे उत्तेजना के मेरे मुँह से सिसकी निकलने लगी..
भाभी मन ही मन हसते हुए बोली – क्या हुआ लल्ला जी.. कोई प्राब्लम है..?
अब मे उनको क्या बताऊ कि मुझे क्या प्राब्लम है.. ? फिर भी मेने उनको कहा – आह.. भाभी ज़ोर्से अपना वजन मत रखो, मुझे छत के फर्श से दुख रहा है..
वो – कहाँ दुख रहा है… ?
मे – अरे समझा करो भाभी आप भी ना ! मेरी कमर में और कहाँ ..
वो – ओह्ह्ह.. तो मालिश बंद कर्दु.. ?
मे – नही ! लेकिन थोड़ा वजन कम रखो ना प्लीज़ … फिर वो थोड़ा नीचे को मेरी जांघों के उपर बैठ गयी तो मुझे कुच्छ राहत मिली, लेकिन अब उन्हें मेरे कंधों तक पहुँचने में ज़्यादा झुकना पड़ रहा था तो उनकी मुनिया मेरी गांद से रगड़ खाने लगी. उन्हें अब और ज़्यादा मज़ा आने लगा और मालिश के बहाने और तेज-2 हाथ चलाने लगी, कुच्छ देर बाद ही वो अपनी रामदुलारी को मेरी गांद के उपर चेंप कर हाथों को मेरी पीठ पर टिकाए अकड़ कर बैठ गयी और कुच्छ देर ऐसे ही शांत बैठी रही.

मेने सर घूमाकर पीछे देखने की कोशिश की तो उन्होने अपने हाथों का दबाब मेरी पीठ पर और बढ़ा दिया जिसके कारण में देख नही पाया कि वो ऐसे क्यों शांत बैठी हैं..

मालिश करने के बाद जब वो मेरे उपर से उठ गई, तो मे कुच्छ देर यूँही उल्टा पड़ा रहा, क्योंकि मे अपने उभार को दिखाना नही चाहता था.

वाकाई में मेरे शरीर की अकड़न एक दम चली गयी थी, वो बिना कुच्छ कहे अपने कपड़े ठीक करके नीचे चली गयी और मे वहीं पड़े-2 नींद में डूबता चला गया…

अब भाभी रोज़ सुबह 5 बजे मुझे जगा देती, और फ्रेश होके कसरत करवाती, वोही देशी डंड बैठक.. और कुच्छ देशी एक्सर्साइज़.. उसके बाद नहाना-धोना, स्कूल के रेडी होकर एक लीटर बादाम का दूध पिलाती.

स्कूल में भी रोज़ गेम्स की प्रॅक्टीस होती, फिर शाम को मालिश, भाभी की मस्तियाँ बढ़ती जा रही थी, लेकिन एक अनदेखी दीवार थी जो हम दोनो को रोके हुए थी अपनी हदें पार करने से.

दूसरी ओर रामा दीदी भी मौका निकाल ही लेती मौज मस्ती का. अब उन दोनो के साथ क्या होता था, मुझे नही पता, लेकिन ऐसे मौकों पर मेरा हाल बहाल हो जाता था, और कुच्छ कर भी नही सकता था, क्योंकि यही पता नही था कि करूँ तो क्या..?

स्पोर्ट्स डे तक मेरा शरीर भाभी की मालिश, खेलों की प्रॅक्टीस और कसरतों की वजह से एक दम पत्थर जैसा हो चुका था,

लोंग जंप में, मे अपने स्कूल में सबसे आगे था, और कबड्डी में भी मेरी वजह से हमारी क्लास के आगे 12थ की भी टीम हार जाती थी.
Good going brother..
 

vhsaxena

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Update 13
फाइनल डे को जो होना था वही हुआ, लास्ट में कुस्ति की प्रतियोगिता भी हुई, जिसमें मेने हिस्सा तो नही लिया था, लेकिन 11थ का एक लड़का जो चॅंपियन हो गया था पास के ही गाओं का, वो घमंड में आगया और उसने पूरे स्कूल के बच्चों में ओपन चॅलेंज कर दिया.
टीचर्स को उसकी ये बात बुरी लगी, तो प्रिन्सिपल ने अपनी तरफ से बड़ा सा इनाम घोसित करके बोले- सभी बच्चो सुनो, तुम लोगों में से जो भी बच्चा इस लड़के को हरा देगा उसे में अपनी तरफ से **** इनाम दूँगा..
जब कोई आगे नही आया तो मेरे क्लास टीचर बोले – क्यों अंकुश तुम भी नही लड़ सकते इससे..?
मे – नही सर ! मुझे कुस्ति लड़ने का कोई आइडिया नही है, और ना ही मे लड़ना चाहता हूँ.. .
वो मेरे पास आए और धीमी आवाज़ में बोले- मे जानता हूँ तुम्हारे अंदर इससे बहुत ज़्यादा ताक़त है, बस इसके पैंट्रों पर नज़र रखना और अपना बचाव करते रहना.
जब ये थकने लगे तभी उठाके पटक देना… देखो ये अपने स्कूल की इज़्ज़त का सवाल है, ये लड़का इतनी बदतमीज़ी से सबको चॅलेंज कर रहा है, और .अब तो अपने प्रिन्सिपल साब की भी इज़्ज़त दाँव पर लग गयी है.
मेने कहा ठीक है सर अगर आप चाहते हैं तो मे कोशिश ज़रूर करूँगा.
उन्होने फिर अपनी तरफ से ही अनाउन्स कर दिया कि इससे अंकुश लड़ेगा.
फिर हम दोनो में कुस्ति हुई, वो दाँव पेच में माहिर था, लेकिन ताक़त में मेरे मुकाबले बहुत कम, तो जैसे मेरे टीचर ने बोला था में कुच्छ देर उसके दाव बचाता रहा, फिर एक बार फुर्ती से में उसके पीछे आया और उसकी कमर में लपेटा मारकर दे मारा ज़मीन पर.
लेकिन साला हवा में ही पलटी खा गया और चीत नही हुआ, अब में उसके उपर सवार था और उसको चीत करने की कोशिश करने लगा. जब उसे लगा कि अब वो ज़्यादा देर तक मेरे सामने नही टिक पाएगा, तो उसने अपनी मुट्ठी में रेत भरकर मेरी आँखों में मार दी.
मे बिल-बिलाकर उसे छोड़ कर अपनी आँखो पर हाथ रख कर चीखने लगा, मौका देख कर वो मेरे पीछे आया और मेरी कमर में लपेटा लगा कर मुझे उठाना चाह रहा था, मॅच रफ्फेरी फाउल की विज़ल बजा रहा था लेकिन उसने उसकी नही सुनी.
जैसे ही उसने मुझे उठाने की कोशिश की मेने अपनी एक टाँग उसकी टाँग में अदा दी और ताक़त के ज़ोर्से मेने उसके हाथों से अपने को आज़ाद किया, और पलट कर एक हाथ उसकी गर्दन में लपेटा,
मेने बंद आँखों से ही उसकी गर्दन को कस दिया.
उसने अपनी गर्दन छुड़ाने की लाख कोशिश की लेकिन टस से मस नही हुई, आख़िरकार उसकी साँसें फूलने लगी और रेफ़री ने आकर उसे मेरी गिरफ़्त से छुड़ा लिया.
कोई मेरे लिए पानी ले आया था तो मेने मिट्टी को धोने के बाद अपनी आँखों में पानी मारा, आँखें खुलने तो लगी लेकिन सुर्ख लाल हो चुकी थी.
जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो अभी भी वो ज़ोर-ज़ोर से साँसें ले रहा था और मुझे खजाने वाली नज़रों से घूर रहा था.
प्रिन्सिपल ने उसकी जीत का इनाम उसे नही दिया, और दोनो इनाम मुझे देने लगे, तो मेने मना कर दिया.. और कहा – सर क़ायदे से तो वो अपना मॅच जीत ही गया था, अब ठीक है घमंड में आकर चॅलेंज दे बैठा.
मेरी बात मान कर उसको उसका इनाम दे दिया गया. मुझे तुरंत डॉक्टर को दिखाया और दवा डलवाकर और अपना इनाम लेकर हम घर लौट आए…
बाहर चौपाल पर ही बाबूजी बैठे थे, उन्होने मेरी आखें देखकर पुछ लिया तो दीदी ने उन्हें सारी बात बता दी.
उन्होने मुझे शाबासी दी और अपने गले से लगा लिया
मेरे हाथों में दो-दो ट्रोफी देखकर भाभी फूली नही समाई, और उन्होने मुझे अपने सीने से कस लिया, उनकी आँखें डब-डबा गयी…
मेने कारण पुछा तो वो बोली – आज मे अपनी ज़िम्मेदारियों में पास हो गयी, इससे ज़्यादा मेरे लिए और क्या खुशी की बात हो सकती है, माजी ने जिस विश्वास से तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में सौंपा था उसमें मे कितना सफल हुई हूँ ये मुझे इन ट्रॉफिशन के रूप में दिख रहा है...
बाबूजी दरवाजे के पीछे से ये सारी बातें सुन रहे थे, उनसे भी रहा नही गया और अंदर आते हुए बोले- सच कहा बहू तुमने..
आज तुम्हारे कारण मेरा बेटा ये सब कर पाया है.. शायद विमला भी इतना नही कर पाती जितना तुमने इन बच्चों के लिए किया है..
पिताजी की आवाज़ सुन कर भाभी ने झट से अपने सर पर पल्लू डाला और उनके पैर पड़ गयी…
जुग-जुग जियो मेरी बच्ची… तुमने साबित कर दिया कि तुम्हारे संस्कार कितने महान हैं, इतने कम उमर में तुमने इस घर को इतने अच्छे से संभाला है.
मे हर रोज़ भगवान का कोटि-2 धन्यवाद करता हूँ, कि उन्होने हमें एक दुख के बदले तुम्हारे रूप में इतनी बड़ी सौगात दी है.. जीती रहो बेटा.. और अपने घर को इसी तरह सजाती संवारती रहो.. इतना बोल अपनी भीगी आँखें पोन्छ्ते हुए बाबूजी बाहर चले गये….
ऐसी ही कुच्छ खट्टी-मीठी, यादों के सहारे, आपस में मौज मस्ती करते हुए समय अपनी गति से बढ़ता रहा, और देखते-2 हमारे एग्ज़ॅम की डेट भी आ गई..
हम दोनो बेहन भाई पढ़ाई में जुट गये, हम दोनो देर रात तक जाग-2 कर पढ़ते रहते, बीच-2 में आकर भाभी देखने आ जाती की किसी चीज़ की ज़रूरत तो नही है.
दोनो बड़े भाई भी बीच-2 में घर आते और हमें अपने एग्ज़ॅम के एक्सपीरियेन्सस शेयर करके एनकरेज करते.
एक दिन पढ़ते-2 मे थक गया, तो पालग पर लंबा होकर पढ़ने लगा, ना जाने कब मेरी आँख लग गयी और अपने सीने पर खुली बुक रखकर गहरी नींद में सो गया.
पढ़ते-2 रामा जब बोर होने लगी, रात काफ़ी हो गयी थी, आँखों में नींद की खुमारी आने लगी थी, अपनी किताबें उसने टेबल पर रखी. जब उसकी नज़र अपने छोटे भाई पर पड़ी, तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी.
कुच्छ देर वो अपने भाई के मासूम चेहरे को देखती रही, जो सोते हुए किसी मासूम से बच्चे की तरह लग रहा था. उसने धीरे से उसके हाथों के बीच से उसकी बुक निकाली और टेबल पर रख दी.
कुच्छ सोच कर एक शरारत उसके चेहरे पर उभरी और लाइट ऑफ करके वो उसीके बगल में लेट गयी.
छोटू पीठ के बल सीधा लेटा हुआ था, उसके दोनो हाथ उसके सीने पर थे, रामा कुच्छ देर दूसरी ओर करवट लिए पड़ी रही फिर उसका मन नही माना तो वो अपने भाई की तरफ पलट गयी.
अपने एक बाजू को वी शेप में मोड़ कर अपने गाल के नीचे टीकाया और अपने सर को उँचा करके उसने छोटू के चेहरे को देखा, वो अभी भी बेसूध सोया हुआ था.
रामा थोड़ी सी उसकी तरफ खिसकी और हल्के से उसने अपने शारीर को अपने भाई से सटा लिया, और अपनी उपर वाली टाँग उठाकर छोटू के ठीक जांघों के जोड़के उपर रख लिया. कुच्छ देर वो योनि पड़ी रही, फिर वो अपनी टाँग को उसके हाफ पॅंट के उपर रगड़ने लगी.
उसकी टाँग की रगड़ से छोटू की लुल्ली जो अब एक मस्त लंड होती जा रही थी, धीरे-2 अपनी औकात में आने लगा. उसके लौडे का साइज़ फूलता देख रामा कुच्छ सहम सी गयी और उसने अपनी टाँग की घिसाई बंद करदी.
लेकिन कुच्छ देर तक भी छोटू के शरीर में कोई हलचल नही हुई, तो उसकी हिम्मत और बढ़ी और उसने उसके हाथ को अपने सीने पर रख लिया और उपर से अपना हाथ रख कर अपने मुलायम कच्चे -2 अमरूदो पर रगड़ने लगी.
छोटू के हाथ को अपने अमरूदो पर फील करके वो अपनी आँखें बंद करके मुँह से हल्की-2 सिसकियाँ लेने लगी. जैसे-2 उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, उसकी झिझक, उसकी शर्म, भाई-बेहन वाला बंधन सब सिसकियों के माध्यम से बाहर होते जा रहे थे.
उसका शरीर अब मन-माने तरीक़े से थिरकने लगा, और अब वो उसके हाथ के साथ-2 अपनी प्यारी दुलारी मुनिया को अपने भाई की जाँघ से सटा कर उपर-नीचे को होने लगी.
छोटू को नींद में किसी दूसरे शरीर की गर्मी का एहसास हुआ तो उसकी नींद खुल गयी, एक बार उसने अपनी बेहन की तरफ देखा और उसने फिर से अपनी आँखें कस्के बंद कर ली और वो भी मज़ा लेने लगा.
रामा की पाजामी अब थोड़ी-2 गीली होने लगी थी, उसके गीलेपन का एहसास उसकी नंगी जाँघ पर हो रहा था.
अब रामा ने उसका हाथ अपनी गीली चूत के उपर रख दिया और उसे मसलवाने लगी. थोड़ी देर तक अपनी बेहन के हाथ के इशारे से ही वो उसकी गीली चूत को सहलाता रहा, फिर अचानक अपनी उंगली मोड़ कर उसकी चूत जो केवल पाजामी में ही थी, के उपर से सी कुरेदने लगा.
रामा उत्तेजना के आवेग में सब कुच्छ भूल गयी और उसे ये भी एहसास नही रहा कि उसके भाई की उंगली उसकी मुनियाँ को कुरेद रही है, वो बस अपनी बंद आँखों से नीची आवाज़ में मोन करने में लगी अपने कमरको तेज़ी से हिलाए जा रही थी.
एक साथ ही उसका पूरा बदन इतनी ज़ोर से आकड़ा और उसने छोटू के हाथ को बुरी तरह से अपनी राजकुंवर के उपर दबा दिया और उससे चिपक गयी…दो मिनिट तक वो ऐसे ही चिपकी रही, फिर जब उसका ऑरगसम हो गया तब उसे होश आया और वो उससे अलग होकर लेट गयी.कुच्छ देर पहले हुए आक्षन को जब उसने अपने दिमाग़ में रीवाइंड किया तब उसे ध्यान आया कि कैसे उसके भाई की उंगली उसकी चूत में घुसी जा रही थी. झट से उसके दिमाग़ ने झटका खाया, कि ये सब उसने नींद में नही किया है.
 

vhsaxena

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तो क्या वो जाग रहा था..?? उसने डरी-डरी आँखों से एक बार फिर अपने भाई की तरफ देखा, और जब उसे उसी तरह सोता हुआ पाया तो उसने अपने दिमाग़ को झटक दिया.. और मन ही मन फ़ैसला भी सुना दिया कि ऐसा कुच्छ भी नही हुआ, वो तो सो रहा है.. और अपने मन को तसल्ली देकर वो भी अपने बिसतर पर जाकर लेट गयी, और कुच्छ ही देर में नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया.….सुबह में जल्दी उठ गया था, फ्रेश-व्रेश होकर भाभी किचेन में थी, उन्होने मुझे चाइ दी बाबूजी को देने के लिए, मेने बाहर जा कर बाबूजी को चाइ दी,
उन्होने मुझे अपने पास बिठाया और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए मुझे एग्ज़ॅम की तैयारियों के बारे में पुछा.
फिर उनका खाली कप लेकर किचेन में रखा, और आँगन में आकर चारपाई पर बैठ गया. थोड़ी देर में दीदी भी फ्रेश होकर बाथरूम से निकली, मेने उन्हें गुड मॉर्निंग विश उन्होने बड़ी बारीकी से मेरे चेहरे को देखा जब मेरे चेहरे पर उन्हें सामान्य से ही भाव दिखे तो मुस्कराते हुए उन्होने मेरे विश का जबाब दिया और मेरे माथे पर एक किस करके मेरे पास बैठ गयी.
हम दोनो ने साथ में नाश्ता किया, कुच्छ देर भाभी के साथ हसी ठिठोली की और फिर बैठ गये पढ़ाई करने…..!हमारे बोर्ड एग्ज़ॅम ख़तम हो चुके थे और सम्मर वाकेशन चल रहा था.. आगे दीदी का ग्रॅजुयेशन करने का विचार था, लेकिन बाबूजी उन्हें शहर भेजना नही चाहते थे, तो प्राइवेट करने का फ़ैसला लिया.
बड़े भैया शहर में रहकर जॉब कर रहे थे, और हर सॅटर्डे की शाम घर आते, मंडे अर्ली मॉर्निंग निकल जाते. जॉब के साथ-2 बड़े भैया ने पोस्ट ग्रॅजुयेशन भी शुरू कर दिया था, आगे उनका प्लान पीएचडी करके प्रोफेसर बनाने का था.कभी-2 मनझले भैया भी आ जाते थे और अब वो ग्रॅजुयेशन के फाइनल एअर में आने वाले थे.
जब रामा दीदी के प्राइवेट ग्रॅजुयेशन करने की बात चली, तो मेने भैया को सजेशन दिया कि क्यों ना भाभी को भी फॉर्म भरवा दिया जाए, वो भी ग्रॅजुयेशन कर लेंगी.बाबूजी समेत सब मेरी तरफ देखने लगे, भाभी तो मेरी ओर बलिहारी नज़रों से देख रही थी.
दोनो भाइयों ने कुच्छ देर बाद मेरी बात का समर्थन किया, अब सिर्फ़ पिताजी के जबाब की प्रतीक्षा थी. सब की नज़रें उनकी ही तरफ थी.
बाबूजी – तुम क्या कहती हो बहू..? क्या तुम आगे पढ़ना चाहती हो..?
भाभी ने घूँघट में से ही अपना सर हां में हिला दिया… तो बाबूजी ने मुझे अपने पास आने का इशारा किया..
मे डरते-2 उनके पास गया.. उन्होने मेरे माथे पर एक किस किया और बोले – मेरा बेटा अब समझदार हो गया है .. है ना बहू.. जुग-जुग जियो मेरे बच्चे.. मे तो चाहता हूँ कि शिक्षा का अधिकार समान रूप से सबको मिले.. यही बात मेने अपने भाइयों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन तब उनकी समझ में मेरी बात नही आई, लेकिन अब वो भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे.. चलो देर से ही सही शिक्षा का महत्व समझ तो आया उनकी.भाभी का मन गद-गद हो रहा था, जैसा ही अकेले में उन्हें मौका मिला, अपने सीने से भींच लिया मुझे और मेरे चेहरे पर चुम्मनों की झड़ी लगा दी…मे डरते-2 उनके पास गया.. उन्होने मेरे माथे पर एक किस किया और बोले – मेरा बेटा अब समझदार हो गया है .. है ना बहू.. जुग-जुग जियो मेरे बच्चे.. मे तो चाहता हूँ कि शिक्षा का अधिकार समान रूप से सबको मिले.. यही बात मेने अपने भाइयों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन तब उनकी समझ में मेरी बात नही आई,

लेकिन अब वो भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे.. चलो देर से ही सही शिक्षा का महत्व समझ तो आया उनकी.

भाभी का मन गद-गद हो रहा था, जैसा ही अकेले में उन्हें मौका मिला, अपने सीने से भींच लिया मुझे और मेरे चेहरे पर चुम्मनों की झड़ी लगा दी…
थॅंक यू लल्लाजी, तुमने मेरे दिल की बात सबके सामने कह कर मुझे बिनमोल खरीद लिया. आगे पढ़ने की मेरी कितनी ख्वाइश थी, लेकिन जल्दी शादी होने से मन की मन में ही रह गयी.
उस दिन के बाद भाभी का झुकाव मेरी तरफ और ज़्यादा हो गया, और वो हर संभव मुझे अधिक से अधिक खुशी देने की कोशिश करती.
एक दिन सभी भाई घर पर ही थे, बाबूजी बाहर चौपाल पर बैठे, लोगों के साथ गॅप-सडाके में लगे थे.. कि अचानक भाभी का जी मिचलाने लगा और वो श्रिंक मे जा कर उल्टियाँ करने लगी.अब घर में और कोई बुजुर्ग महिला होती तो वो उनकी परेशानी को समझती.. आनन फानन में बड़े भैया ने उनको स्कूटी पर बिठाया और कस्बे में डॉक्टर को दिखाने चल दिए.ना जाने क्या हुआ होगा, ये सोचकर मे भी अपनी साइकल जो काफ़ी दिनो से कम यूज़ हो रही थी, उठाई और उनके पीछे-2 चल पड़ा.डॉक्टर ने उनका चेक-अप किया और भैया से बोले- बधाई हो राम मोहन, तुम बाप बनाने वाले हो..
भैया की खुशी का ठिकाना नही रहा, फिर डॉक्टर की फीस देकर वो बोले- छोटू तू अपनी भाभी को लेकर घर चल में साइकल से आता हूँ, कुच्छ मिठाई-विठाई लेकर..रास्ते में मेने भाभी को छेड़ा – क्यों भाभी बधाई हो, अब तो आप माँ बनोगी.. लेकिन अपने बच्चे की खुशी में अपने इस नालयक देवर को मत भूल जाना..
वो मेरी पीठ पर अपना गाल सटा कर मुझसे लिपट गयी और बोली- तुम मेरे बच्चे नही हो..? जो मे भूल जाउन्गी..! हां ! आइन्दा ऐसी बात भी मत करना.. वरना में तुमसे कभी बात नही करूँगी.. समझे…
मे – अरे भाभी ! मे तो मज़ाक कर रहा था.. क्या मुझे पता नही है कि आप मुझसे कितना प्यार करती है..
ऐसी ही बातें करते-2 हम घर आ गये… जब घर पर सबको ये खुशख़बरी सुनाई तो सब खुशी से नाचने लगे..घर में उत्सव जैसा माहौल बन गया था, भैया ने पूरे गाओं में मिठाई बँटवाई, हमारे पूरे परिवार ने मिलकर हमारी इस खुशी में साथ दिया.
भाभी जा रही थी.... पता नही मेरे मन में दो तरह के भाव क्यों आ रहे थे, बोले तो डबल माइंड.. एक तो इस बात की खुशी थी कि भाभी इतने सालों में अपने घर जा रही थी, दूसरा उनसे इतने सालों बाद बिछड़ना हो रहा था.सच कहूँ तो मुझे उनकी आदत सी हो गयी थी, उनके जाने के समय कुच्छ उदास सा हो गया.. जिसे भाभी ने ताड़ लिया और मुझे अकेले में लेजा कर समझाने लगी..
लल्लाजी क्या हुआ..? मेरे जाने से खुश नही हो..?
मे – नही भाभी ! आपको इतने सालों बाद अपने घर जाने का मौका मिला है, मे भला क्यों खुश नही होऊँगा..?
वो – (मेरे गाल पकड़ते हुए), तो फिर ऐसे मुँह क्यों लटका रखा है..?
मे – पता नही भाभी एक तरफ तो आपके जाने की खुशी भी है कि चलो इतने दिनो बाद आपको अपने घर जाने का मौका मिल रहा है, दूसरी ओर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंदर से कोई चीज़ निकल कर आपके साथ जा रही हो, और मे खाली-2 सा होता जा रहा हूँ.. भाभी कुच्छ देर शांत खड़ी मेरे चेहरे को देखती रही.. फिर अचानक उनकी पलकें भीग गयी, और रुँधे स्वर में बोली – ये मेरे प्रति तुम्हारा लगाव है, जो स्वाभाविक है.. और ऐसा नही कि ये स्थिति केवल तुम्हारी ही है… मेरा भी कुच्छ ऐसा ही हाल है.
तुम्हारी भावना तो केवल मेरे लिए ही हैं तब इतना दुख हो रहा है, लेकिन मेरा तो पूरे घर के साथ है तो सोचो मेरा क्या हाल हो रहा होगा…
फिर भी अगर तुम नही चाहते कि मे जौन तो नही जाउन्गि…
मे – नही..नही..! भाभी प्लीज़ आप मेरी वजह से अपनी खुशी कुर्बान मत करिए, दो महीने की ही तो बात है..
 
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