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Incest Ladlaa dever dever bhabhi ki anokhi kahani

vhsaxena

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Update 15
भाभी चली गयी और मे अपना जी कड़ा करके उन्हें बस स्टॅंड तक विदा करके आया.मन्झ्ले भैया का ये फाइनल एअर था, उन्होने डिसाइड किया था कि वो इस साल के पीसीएस के एग्ज़ॅम में बैठेंगे… बड़े भैया की भी यही सलाह थी जिस पर पिताजी को भी कोई आपत्ति नही थी.
हम बेहन भाई की रास्ते की मस्तियाँ बंद हो गयी थी, लेकिन घर में हम एक दूसरे को छेड़ने का मौका निकाल लेते थे, अब इसमें रेखा दीदी भी शामिल हो गयी थी.
एक दिन दीदी मुझे गुदगुदाके भाग गयी, और दूर खड़ी अपनी जीभ निकाल कर चिढ़ा ने लगी तो मे भी उनकी तरफ भागा… लेकिन वो मेरे हाथ नही आ रही थी..फुर्रर इधर- तो फुर्रर उधर, किसी तितली की तरफ निकल जाती, एक दो बार हाथ आई भी तो झुक कर अपने को छुड़ा लेती और फिर दूर भाग जाती.. यहाँ तक कि हम दोनो की साँसें उखाड़ने लगी.अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे
 
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vhsaxena

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Update 16
अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…
मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे..
मेने एक लंबी सी छलान्ग लगाई और इससे पहले कि वो संभाल कर भाग पाती मेने पीछे से उनकी कमर में लपेटा मार दिया.
वो नीचे को झुकती चली गयी, मे उनके उपर था.. पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी, मेने उनको अपनी बाजुओं में कस कर उठा लिया.. वो खिल-खिला रही थी, और मुझसे छोड़ने के लिए बोलती जा रही थी.
उनके हाथ मेरे हाथों के उपर थे, लेकिन उनसे वो मेरे हाथों पर दबाब डाले थी, उन्हें छुड़ाने का कोई प्रयास नही था.
मेरी हाइट दीदी से कुच्छ ज़्यादा ही थी, उनको उपर उठाते हुए मेरे हाथ उनके पेट से सरक कर थोड़ा उपर को हो गये और उनके अमरूद के निचले हिस्से को टच होने लगे.
दीदी लगातार खिल-खिलाए जा रही थी और अपने हाथों से मेरे हाथों को और उपर को खिसकने की कोशिश कर रही थी, अब उनकी कमर का उपरी हिस्सा मेरे ठीक पप्पू के सामने था जो कमर के दबाब से फूलने लगा था.
दीदी ने अब अपने को छुड़ाने के बहाने अपने को और झुकाया और मेरी बाजुओं पर झूल गयी, अपने दोनो पैर हवा में उठा लिए और उन्हें मेरे घुटनों पर जमा लिया.
उसके बाद उन्होने अपनी कमर को और उपर की ओर उच्छला… अब उनके गोल-मटोल चुतड़ों की दरार ठीक मेरे अकड़ चुके पप्पू के सामने थी, वो लगातार मुझसे छोड़ने के लिए बोल रही थी और साथ ही अपने गांद को मेरे बाबू के उपर रगड़ रही थी.
हम दोनो के ही मुँह लाल पड़ गये थे… अभी कुच्छ और आगे होता उसके पहले बाहर के दरवाजे से एक और खिल-खिलाहट की आवाज़ सुनाई दी…मेने दीदी को छोड़ दिया और हम दोनो ने ही पीछे मुड़कर देखा, दरवाजे पर आशा दीदी खड़ी ताली बजा-बजा कर हमारा खेल देखते हुए हंस रही थी.
आशा – वाह ! भाई-बेहन अकेले अकेले ही खेल में लगे हो… अरे भाई हमें भी शामिल कर्लो…
रामा – देखो ना दीदी, ये छोटू बहुत तंग करता है मुझे, ऐसा कस कर पकड़ लिया कि छोड़ ही नही रहा था..
मे – अच्छा मेरे गुदगुदी किसने की थी हां ! अब बताओ दीदी को.. खुद शुरू करती है, और दोष मेरे उपर डाल रही है..
आशा – अरे बस करो तुम दोनो और बताओ कोई काम-वाम तो नही है तुम दोनो को..?
दोनो एक साथ – नही ऐसा तो कोई काम नही है..
आशा – तो चलो क्यों ना हम लोग खेतों में चलें, वही बाग़ में बैठ कर खेलते हैं, यहाँ कितनी गर्मी है..
मेने कहा – हां दीदी चलो वहीं चलते हैं…. फिर हम बाबूजी को बता कर तीनों खेतों की तरफ चल दिए, जो बस घर से कोई आधा किमी की दूरी पर ही थे…
हमारी लंबी चौड़ी ज़मीन थी, ज़मीन के लगभग सेंटर में 4 एकर का आम और अमरूद का बाग था, जिसमें और भी आमला, बेर जैसे पेड़ थे, लेकिन मुख्य तौर पर आम और अमरूद ही थे.
बगीचे के चारों तरफ के हिस्से बराबर -2 खेत चारों भाइयों में बँटे हुए थे. गाओं की तरफ का हमारा हिस्सा था, और उसके ठीक ऑपोसिट आशा दीदी के खेत थे, चारों की ज़मीन की सिंचाई हमारे ही टबवेल से होती थी.
ये सीज़न आमों का था, लेकिन कच्चे आम लगे थे, पकने में अभी कम से कम एक महीना और लगनेवाला था.
हम तीनों आम के बगीचे में जहाँ घने पेड़ थे उनके नीचे एक चादर बिछा कर बैठ गये, और कार्ड्स खेलने लगे गर्मियों की चिलचिलाती दोपहरी में घर से ज़्यादा यहाँ रहट थी, वैसे तो हवा ज़्यादा नही थी, फिर भी जब भी हवा का झोंका आता, तो बड़ी ठंडक पहुँचती उस तमतमाति गर्मी में.
कार्ड खेलते -2 हमें पूरी दोपहरी निकल गयी, 3 बजे रामा दीदी बोली, यार अब चलो, बोर हो गये खेलते-2…तभी आशा दीदी बोली चलो ठीक है, लेकिन कुच्छ आम ले लेते हैं, शाम को चटनी बनाने के काम आएँगे..
आशा दीदी बोली – छोटू तू ट्राइ करना कुच्छ आम तोड़ने की.. तो मे उचक कर कुच्छ नीचे की तरफ लटके आमों को तोड़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन काफ़ी कोशिश करने पर भी उन्तक पहुँच नही पाया.दोनो दीदी मिट्टी के ढेले उठाकर आमों को निशाना लगाकर तोड़ने की कोशिश करने लगी, लेकिन निशाना नही लग पा रहा था और एक-आध लगा भी तो कच्चे आम मिट्टी के ढेलों से नही टूट पाए..
आशा – छोटू यार ! तू घोड़ा बन जाय तो तेरे उपर चढ़ कर मे या रामा पहुँच सकती हैं आमों तक.
मे अपने घुटने टेक कर घोड़ा बन गया, पहले रामा दीदी ने ट्राइ किया लेकिन वो नही पहुँच पाई, फिर आशा दीदी ने भी ट्राइ किया, उनका वजन थोड़ा ज़्यादा था, लेकिन मेने उनको भी सहन कर लिया, लेकिन नतीजा वोही धाक के तीन पात.
आशा दीदी बोली, यार ! ये तो बात नही बन रही, तू पेड़ पर चढ़के नही तोड़ सकता क्या.. अब मे आज तक किसी पेड़ पर नही चढ़ा था,तो मेने मना कर दिया…
फिर वो बोली – तो एक काम कर, मुझे उचका दे… मे तोड़ लूँगी..
मेने रामा दीदी की ओर देखा, तो वो मन ही मन मुस्करा रही थी, लेकिन प्रत्यक्ष में कुच्छ नही बोली, मुझे चुप रहते हुए वो फिर बोली- अरे उचका ना ! बिंदास, सोच क्या रहा है.. तू भी ना… मेने आशा दीदी को जैसे ही पीछे से पकड़ने की कोशिश की तो वो पलट गयी और वॉली – आगे से उठा, जिससे तुझे भी दिखे कि और कितना उपर करना है…मेने थोड़ा झुक कर उनकी जांघों को अपने बाजुओं में लपेटा और उपर को उठाया...इस पोज़िशन में उनका यौनी प्रदेश मेरे कमर से थोड़ा उपर माने पेट पर था और उनके बूब्स मेरे मुँह से थोड़ा सा नीचे थे.उनकी मोटी-2 मांसल जांघों के एहसास ने मेरे शरीर में झुरजुरी सी दौड़ा दी, भारी-भारी गोल मुलायम चुचियों का उपरी भाग मेरी ठोडी को सहला रहा था.
दो-चार आम तो उनकी हद में आ गये और उन्होने उन्हें तोड़ लिया, लेकिन और भी तोड़ने के लिए अभी भी वो नही पहुँच पा रही थी..
आशा – छोटू ! भाई और थोड़ा उपर कर ना !
मेने उन्हें और 6-8” उपर किया तो मेरा मुँह ठीक उनके बूब्स के बीच में आ गया, मेरे गाल उनकी चुचियों पर थे…
अचानक उनके मुँह से एक हल्की से सिसकी निकल गयी.. ईीीइसस्स्शह…सीईईईईईई.., मेने कहा- क्या हुआ दीदी..? तो वो फ़ौरन बोली – कुच्छ नही तू ऐसे ही पकड़े रह बस मे आम को पकड़ने ही वाली हूँ… अरे हिल मत…ना..!
मेरा मुँह और नाक उनकी मोटी-2 चुचियों में दब रहा था, तो उसको थोड़ा इधर-उधर किया… इससे मेरी नाक उनकी चुचियों पर रगड़ने लगी…
वो तो आम तोड़ना भूल कर अपनी आँखें बंद करके मस्ती में खो गयी…
मेरा भी नीचे तंबू बनता जा रहा था, फिर अचानक रामा दीदी बोली – अरे दीदी ! तोडो ना आम जल्दी उसको प्राब्लम हो रही है, कब तक वो ऐसे उठाए खड़ा रहेगा..
आशा – अरे तोड़ तो रही हूँ… ! छोटू ! भैया थोडा पीछे को हो ना ! ये चार आम थोड़े तेरे पीछे को हैं..मे जैसे ही थोड़ा पीछे को हुआ, मुझे पता नही था कि ज़मीन थोड़ा उबड़-खाबड़ है, मेरा पैर एक गड्ढे में चला गया और मे पीछे को गिरने लगा…
छोटूऊऊऊऊऊओ….संभाअल… वो चिल्लाई… लेकिन एक बार बॅलेन्स क्या बिगड़ा कि धडाम से में पीछे को गिर पड़ा… आशा दीदी मेरे उपर… उनकी राम दुलारी मेरे आकड़े हुए पप्पू को किस कर रही थी…
उसके 34” के दोनो उभार मेरे सीने में दबे पड़े थे, उत्तेजना के कारण दीदी के निपल भी कड़े होकर मेरे सीने में चुभन पैदा कर रहे थे.
मेरे दोनो हाथ अभी भी उनकी मस्त गद्देदार गांद पर थे… मुझे पता नही चला कि कही चोट-वोट भी लगी है, मे तो बस उनके मादक शरीर के नीचे पड़ा उनकी आँखों में झाँक रहा था, जिसमें एक निमंत्रण दिखाई दिया…
वो भी ऐसे ही कुच्छ देर मज़े के आलम में खोई रही… रामा दीदी पास में खड़ी खिल-खिला रही थी…फिर मुझे अपनी पीठ में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ और मेने उनसे कहा- अरे दीदी ! उठो मेरी पीठ टूट गयी..!

वो – तो पहले तू मुझे छोड़ तो सही, तभी तो मे उठुँगी…! तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरे दोनो हाथ उसके चुतड़ों पर कसे हुए हैं.
जब मेने उन्हें छोड़ा, तो अपनी चूत को मेरे पप्पू के उपर ज़ोर से रगड़ा और एक मादक सिसकी भरती हुई वो मेरे उपर से उठ गयी…
मे जैसे ही खड़ा हुआ तब मुझे अपनी पीठ में दर्द का एहसास हुआ.. क्योंकि जहाँ में गिरा था, वहाँ एक छोटा सा ब्रिक (एंट) का टुकड़ा पड़ा हुआ था और उस साले ने मेरी पीठ को चटका दिया था.
मे आहह भरते हुए उठा… तो रामा दीदी बोली – क्या हुआ छोटू..? चोट लग गयी क्या..?
मे – हां दीदी इस पत्थर से मेरी पीठ टूट गई शायद, तो आशा दीडे ने मेरी शर्ट उपर करके अपने हाथ से कुच्छ देर सहलाया और बोली- रामा घर जाकर थोड़ा इयोडीक्स की मालिश कर देना ठीक हो जाएगा..
इसी तरह की चुहल बाज़ियों में समय व्यतीत हो रहा था, मेरी दोनो बहनें मेरे साथ दिनो दिन खुलती जा रही थी.. और मे उनकी हरकतों से बुरी तरह उत्तेजित हो जाता था, लेकिन कुच्छ कर नही पाता…मेने अभी तक अपने लौडे को हाथ में लेकर सिवाय मुताने के और कोई उसे नही किया था.. मन ही मन सोचता था, कि काश इसके आगे भी कुच्छ कर पाता.. लेकिन क्या ? ये कोई आइडिया नही था..
मेरा कोई ऐसा दोस्त भी नही था जिससे मे इस तरह की बातें शेयर कर पाता.. वो दोनो तो मुझे गरम करके अपना काम निकाल कर अपने रास्ते हो लेती और मे यूँ ही चूतिया बना रह जाता…
 

vhsaxena

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Update 17
आख़िरकार छुट्टियों के दिन बीत गये.. और मेने 11थ में अड्मिशन ले लिया.. स्कूल शुरू होने के कुच्छ दिन बाद ही भाभी लौट आई, मतलब बड़े भैया ले आए अपनी ससुराल जाकर…
आख़िर उनके भी तो लौडे में खुजली होती ही होगी…भाभी ने आते ही मेरी क्लास ले ली, और वो जो टाइम टेबल बना कर गयी थी, उसके बारे में पुछा जिसे मे एक अग्यकारी शिष्य की तरह ईमानदारी से पालन कर रहा था.
उन्होने मुझे गले से लगा लिया और मेरा माथा चूम कर मुझे अपनी गोद में लिटाया और बीते दिनो का सारा प्यार उडेल दिया.
मे अकेला स्कूल जाने वाला ही रह गया था, मनझले चाचा के बच्चे तो अपने मामा के यहाँ शहर में रह कर पढ़ रहे थे. और मेरी दीदी समेत वाकी की 12थ तक की पढ़ाई पूरी हो गयी थी.
भाभी की प्रेग्नेन्सी को जैसे -2 दिन बढ़ रहे थे, उनके शरीर में कुच्छ ज़्यादा ही बदलाव दिखने लगे थे, उनके वक्ष और कूल्हे एक दम ऑपोसिट साइड को बाहर निकलते जा रहे थे.
यही नही, वो दिनो दिन बोल्ड भी होती जा रही थी. एक दिन मालिश करते-2 भाभी ने मेरी हालत बहुत खराब कर दी.
ना जाने आज उनको क्या सूझी की अपनी साड़ी उतार कर एक तरफ रख दी, और मात्र ब्लाउस और पेटिकोट में मेरे पप्पू के उपर अपनी उभरी हुई गांद टिका कर मेरे सीने पर मालिश करने लगी.
आगे-पीछे होते हुए उनकी गांद मेरे लंड पर रगड़ा दे रही थी, जिसकी वजह से मेरे लंड महाराज बुरी तरह अकड़ गये, फिर तो उसकी ऐसी रेल बनी कि पुछो मत.उधर ब्लाउस में कसे उनके उरोज बिल्कुल मेरी आँखों के सामने थे जो झटकों के साथ उच्छल-2 कर बाहर को निकलने पर आमादा दिखाई दे रहे थे.फिर ना जाने भाभी को क्या सूझी कि वो मेरे उपर ही पसर गयी और उन्होने मेरे होठ अपने होठों में भर लिए, मुझे बड़ा अजीब लगा कि ये कर क्या रही हैं,
जिंदगी में पहली बार किसी ने मेरे होठों को चूमा था… यही नही, वो अपनी कमर को लगातार ज़ोर-ज़ोर्से मेरे लंड पर घिसने लगी.
15 मिनिट में उन्होने मेरी हालत बैरंग करदी, उनका मुँह लाल भभुका हो गया, बदन भट्टी की तरह तप रहा था, मानो बुखार चढ़ गया हो.
फिर अचानक ही वो शांत पड़ गयी और कुच्छ देर बाद मेरे उपर से उतर कर अपनी साड़ी उठाई और नीचे भाग गयी.मे बड़ा असमजस में पड़ गया और सोचने लगा कि शायद भाभी को कहीं बुखार तो नही आ गया, जिसकी वजह से वो ऐसी हरकत कर रही थी..इधर मेरा बुरा हाल था, मेरा मन कर रहा था, कि अपने पप्पू को अंडरवेर से बाहर निकल लूँ और ज़ोर-2 से हिलाऊ, उसे सहलाऊ…. !
आख़िरकार मेने आज पहली बार उसको बाहर निकाल ही लिया और ज़ोर-2 से मसल्ने लगा.
इधर जैसे ही मेरे लंड के टोपे की खाल उपर को खिंची, मुझे बेहद दर्द का भी एहसास हुआ… लेकिन मन करे कि ज़ोर्से इसको रागड़ूं, मसलूं…
अभी मे इसी कस्मकस में था कि क्या और कैसे करूँ कि अचानक भाभी की आवाज़ सुनाई दी….
लल्लाजी !..... ये क्या हो रहा है..?
मेने गर्दन घूमाकर देखा, तो भाभी जीने की सबसे उपरी सीढ़ी पर अपनी कमर पर हाथ रखे खड़ी थी..मेरी तो गांद ही फट गयी, इधर मेरा पप्पू फुल अकड़ में था… मेने झट से उसे अपने पेट की तरफ लिटाया और अपने शॉर्ट को उपर की तरह खींच कर एलास्टिक छोड़ दी..चटकककक ! शॉर्ट की टाइट एलास्टिक लंड के ठीक टोपे पर जहाँ उसकी स्किन काजॉइंटथावहाँपड़ी…..अरईईई…..मैय्ाआआआआअ…मररर्र्र्र्र्र्र्ररर…..गय्ाआआ……..रीईईईईईईईईईई…दर्द के मारे मेरी हालत पतली हो गयी और में करवट लेते हुए, अपने घुटनों को पेट पर मोड़ कर लॉट-पॉट होने लगा…!
मुझे दर्द से तड़प्ता देख भाभी दौड़ कर मेरे पास आई, और मेरे सर के पास बैठ, हाथ फेरते हुए बोली – क्या हुआ मेरे राजा मुन्ना को, बताओ मुझे… क्या हुआ..?मेरे मुँह से कोई शब्द ही नही निकल पा रहे थे… मे लगातार कभी करवट से हो जाता तो कभी पीठ के बल, मेरे घुटने मुड़े ही हुए थे…मेरी आँखों से पानी निकल आया.. तेज दर्द की लहर मेरी जान ही निकाले दे रही थी.. भाभी मेरे सर को लगातार सहलाए जा रही थी और बार -2 पुछ्ने की कोशिश कर रही थी कि आख़िर मुझे हुआ क्या है..?जब थोड़ा दर्द में राहत हुई और मेरा चीखना कम हो गया तो उन्होने फिरसे पुछा… देखो लल्लाजी मुझे बताओ…. क्या हुआ है तुम्हें..?
आह्ह्ह्ह…. भाभी मेरे पेट में बहुत तेज दर्द है… मेने बात को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा.
मे नही चाहता था कि भाभी को पता चले कि मे क्या कर रहा था..?
वो – देखो झूठ मत बोलो,… पेट दर्द में कोई ऐसा नही बिलबिलाता है… सच-2 बताओ… शरमाओ नही… कहीं कुच्छ बड़ी प्राब्लम हो गयी तो लेने के देने पड़ जाएँगे…
दरअसल उन्होने मुझे वो करते हुए तो देख ही लिया था, तो प्राब्लम भी कोई उसी से रिलेटेड होगी.. इसलिए वो जानना चाहती थी..
मे – नही भाभी सच में मेरे पेट में ही दर्द है.. मेने फिरसे छिपाने की कोशिश की…
वो थोड़ा बनावटी गुस्सा अपने चेहरे पर ला कर बोली – लल्लाजी..! मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी कि मुझसे तुम कोई बात छिपाओगे…!
सच बताओ क्या बात है.. कहीं कुच्छ ज़्यादा प्राब्लम हो गयी तो सब मुझे ही दोष देंगे…, कैसी भाभी है ये..? बिन माँ के बच्चे का ख्याल भी नही रख सकी.. क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारी भाभी किसी से बात करने लायक ना रहे..?
अब मेरे पास सच बताने के अलावा और कोई चारा नही बचा था… उन्होने एमोशनली मुझे फँसा दिया था..
मेरा दर्द भी अब जा चुका था तो मे उनकी गोद में अपना सर रख कर बोला – भाभी मेरी सू सू मेरे शॉर्ट की एलास्टिक से दब गयी थी.. बस और कुच्छ नही...
वो – लेकिन तुम कर क्या रहे थे सो तुम्हारी वो दब गयी… और इतनी ज़ोर से कैसे दबी कि इतना दर्द हुआ…?
मे – जाने दो ना भाभी.. ! अब सब ठीक है..!
वो – तो तुम मुझे सच-सच नही बताओगे.. हां ! कोई बात नही, आज के बाद मेरे से कभी बात मत करना और उन्होने मेरा सर अपनी गोद से उठा दिया और उठ कर जाने लगी…
मेने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला – मे सब सच बताता हूँ… लेकिन प्लीज़ भाभी मुझसे नाराज़ मत हो.. वरना मे कैसे जी पाउन्गा…?
उन्होने लाद से मुझे अपने सीने में दबा लिया.. उनके मुलायम दूध मेरे मुँह पर दब गये.. कुच्छ देर बाद उन्होने मुझे अलग किया और मेरा माथा चूमकर मेरी ओर देखने लगी…!
मे – भाभी जब आप मालिश कर रही थी, तो आपके चुतड़ों की रगड़ से मेरी सू सू अकड़ने लगी.. मेरे अंदर उत्तेजना बढ़ने लगी… जो निरंतर बढ़ती ही गयी..
जब आप उठकर चली गयी.. तो लाख कोशिश के बाद भी मे अपने आप को रोक ना सका और अपनी लुल्ली को बाहर निकाल कर मसल्ने लगा… लेकिन आपकी आवाज़ सुन कर मेने जल्दबाज़ी में उसको छुपाना चाहा और झटके से एलास्टिक छूट कर उसके उपर लगी….
भाभी कुच्छ देर चुप रही… और मेरे मासूम चेहरे की ओर देखती रही.. फिर ना जाने क्या सोचकर वो मुस्कराने लगी और मेरे नंगे बदन पर हाथ फेरते हुए बोली – लाओ दिखाओ तो मुझे.. क्या हुआ है वहाँ..?
मेने शर्म से अपने घुटने जोड़ लिए ताकि भाभी कहीं जबर्जस्ती मेरे शॉर्ट को ना खींच दें.. और बोला – नही भाभी ऐसा कुच्छ भी नही हुआ है.. अब दर्द भी नही हो रहा आप रहने दो..!
वो अपनी आँखें तरेर कर बोली – तुम अभी बच्चे हो…, अभी दर्द नही है तो इसका मतलब ये तो नही हुआ कि सब कुच्छ सही है… कही अंदुरूनी चोट हुई तो, बाद में परेशान कर सकती है..
देखो ये शर्म छोड़ो और मुझे देखने दो… फिर उन्होने मुझे लिटा दिया और मेरे शॉर्ट को नीचे करने लगी.. मेने एक लास्ट कोशिश की और उनके हाथ पकड़ लिया..उन्होने एक हाथ से मेरा हाथ हटा दिया और मेरा शॉर्ट नीचे खिसका कर घुटनो तक कर दिया….
हइई… दैयाआआआअ…….ये क्या है लल्लाआ………? मेरा लंड देखकर उनका मुँह खुला का खुला रह गया और अपने खुले मुँह पर हाथ रख कर वो कुच्छ देर तक.. टक-टॅकी लगाए वो मेरे पप्पू की सुंदर्दता को देखती रह गयी..!
मे – क्यों क्या हुआ भाभी…? ये मेरी लुल्ली ही तो है…!
वो – हे भगवान..! तुम इसे अभी भी लुल्ली ही समझ रहे हो..? ये तो पूरा मस्त हथियार हो गया है..
फिर वो उसकी जड़ को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर इधर-उधर घुमा फिरा कर देखने लगी….
जब उन्होने मेरे टोपे की खाल को पीछे करने की कोशिश की तो वो बस अपना घूँघट की खोल पाया कि मुझे दर्द होने लगा…
अह्ह्ह्ह… भाभी नही … खोलो मत.. दर्द होता है.. जब भाबी ने सुपाडे के पीछे देखा तो मेरी खाल के होल से कोई आधा-पोना इंच नीचे ही जुड़ी हुई थी, जिसे खींचने पर दर्द होने लगता था.
हाए लल्लाजी… तुम्हारा हथियार तो अभी तक कोरा ही है… कभी कुच्छ किया नही इससे..?
मे – हां ! रोज़ ही करता हूँ…. पेसाब..!
वो – खाली पेसाब ?.... और कुच्छ नही..?
मे – नही..! और भी कुच्छ होता है इससे..?
वो – हां लल्लाजी ! और बहुत कुच्छ होता है.. लेकिन ताज्जुब है..! जब तुमने और कुच्छ भी नही किया है अबतक.. तो फिर ये इतना लंबा और मोटा कैसे हो गया…?
मे क्या जानू… ? मेने जबाब दिया तो वो बोली – तो फिर अभी क्यों हिला रहे थे..?
मे – सच कहूँ भाभी.. आपजब भी मालिश करती हो और आपका बदन इससे रगड़ा ख़ाता है… तो मे इतना एक्शिटेड हो जाता हूँ कि कुच्छ पुछो मत…

और जी करने लगता है की इसको मसल डालूं…, कुचल कर रख दूं.. लेकिन दर्द की वजह से कुच्छ कर नही पाता….!

पर आज आपने इसे ज़्यादा ही रगड़ दिया तो मुझसे रहा नही गया और वो करने लगा..
 

vhsaxena

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Update 18
मेरा लंड अभी भी ज्यों का त्यों सोता सा एकदम 90 डिग्री पर खड़ा उनकी मुट्ठी में क़ैद था.. उन्होने उसको थोड़ा खोल कर उसके मूतने वाले छेद को अपनी उंगली से सहला दिया.. और बोली – तो अब कैसा लग रहा है..?
सीईईईई…. आहह.. भाभी ये सब मत करो… वरना ये फट जाएगा….
वो – तो इसको शांत कैसे करोगे अब…?
मे – पता नही भाभी इसके पहले ये इतना कभी नही फूला था.. आज तो हद ही हो गयी है.. और अब आपका हाथ लगते ही तो और हालत खराब हो रही है…अह्ह्ह्ह…
प्लीज़ भाभी कुच्छ करो ना ! प्लीज़…… वरना में कुच्छ कर बैठूँगा…!
वो – अच्छा..अच्छा.. शांत रहो.. ! मे कुच्छ करती हूँ, और फिर उसे हिलाने लगी, धीरे-2 बड़े एहतियात से उसको आगे पीछे करने लगी ताकि उसकी स्किन ज़्यादा ना खिंच जाए..
मज़े में मेरे मुँह से आहह….उउउहह…और जल्दीीई.. ऐसी आवाज़ें निकलने लगी… और वो उनकी मुट्ठी में और ज़्यादा फूलने लगा… उसकी नसें उभर आईं.
भाभी की भी एग्ज़ाइट्मेंट बढ़ने लगी, और किसी सम्मोहन सी शक्ति उनके चेहरे को मेरे लंड के नज़दीक और नज़दीक खींचने लगी…..
अब भाभी की गरम साँसें मेरे लंड पर महसूस हो रही थी… उत्तेजना में मेरे कान तक लाल हो गये थे.
आख़िरकार उनके होठों ने मेरे अधखुले सुपाडे को छू ही लिया…
उफफफफफफफफफफफ्फ़………….. मे तो जैसे स्वर्ग में ही उड़ने लगा… उनके होठों के स्पर्श होते ही मुझे एक सुकून सा मिला, और उनके रसीले होठ उसको अपनी क़ैद में लेते चले गये….

देखते-2 उनके होठों ने मेरे पूरे 2” लंबे सुपाडे को जो दहक कर लाल शिमला के सेब जैसा दिख रहा था गडप्प कर लिया….
एक थन्न्न्न्न्न्न्दक्क्क… सी पड़ गयी मेरे लंड में… जैसे किसी गरम चीज़ को एक साथ पानी में डाल दिया हो…
उनकी जीभ मेरे पी होल पर गोल-गोल घूम रही थी… आनंद के मारे मेरी आँखें बंद हो चुकी थी और कमर थर-थराने लगी..
भाभी मेरे पप्पू को अंदर और अंदर अपने मुँह में लेती जेया रही थी, लेकिन खूब कोशिश करके वो उसे करीब आधा ही ले पाई और उतने पर ही अपने होठों से मालिश देने लगी.
भाभी मेरे बगल में ही उकड़ू बैठी थी, लॉड को अंदर-बाहर करते समय उनके मस्त मुलायम बूब्स मेरे पेट और कमर पर रगड़ खा रहे थे.
लंड का जड़ वाला हिस्सा अभी भी भाभी की मुट्ठी में ही था और वो मुँह के साथ-साथ अपने हाथ से भी उसे मसल्ति जा रही थी.
20-25 मिनिट की चुसाई के बाद भी मेरा कुच्छ नही हुआ तो भाभी ने अपना मुँह हटाया और मेरी ओर देख कर बोली – कुच्छ हुआ कि नही..?
मे – बहुत अच्छा लग रहा है भाभी… प्लीज़ रूको मत ऐसे ही करती रहो..!
वो – तुम्हें तो मज़ा आरहा है.. लेकिन मेरा तो मुँह दुखने लगा, और तुम्हारा माल अभी तक नही निकला…
फिर वो मेरी कमर के नीचे की साइड में आकर बैठ गयी और फिरसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगी, अब साथ-2 उनकी उंगलियाँ मेरे टट्टों से खेल रही थी..
मेरा तो मज़ा ही दुगना हो गया और मे अपनी कमर उचका-2 कर उनके मुँह में लंड पेलने की कोशिश करने लगा…
अब भाभी जल्दी से जल्दी मेरा पानी निकालना चाहती थी, क्योंकि उनका मुँह दर्द करने लगा था, बीच बीच में वो अपना एक हाथ अपनी चूत के पास ले जाती.. और उपर से उसकी सहला देती…
अब वो मेरे टट्टों और गांद के होल के बीच की जगह पर नाख़ून से खुरचने लगी…
ऐसा करने से मेरे उस जगह पर करेंट जैसा लगा और मुझे उस जगह से कुच्छ उठता सा महसूस होने लगा.
मेने भाभी के सर पर हाथ रखा और ज़ोर्से अपनी कमर उचका कर अपना ज़्यादा से ज़्यादा लंड उनके मुँह में ठूंस दिया… उनका गला चोक हो गया, में दनादन धक्के मारकर उनके सर को दबाए हुए था.
वो मेरे हाथों को हटाने की जी तोड़ कोशिश कर रही थी, लेकिन अब में अपने होशो-हवास खो चुका था…,
फिर कुच्छ ऐसा हुआ मानो मेरे टट्टों से कोई बिजली सी दौड़ती हुई मेरे लंड में प्रवेश कर रही हो और मे उनका सर अपने लंड पर कसकर पिचकारी छोड़ने लगा.
मुझे लगा जैसे कोई गरम लावा जैसा मेरे लंड से निकल कर भाभी के मुँह में भर रहा हो.
दो मिनिट तक देदनादन पिचकारी मारने के बाद मेने अपना हाथ उनके सर से हटाया और अपनी कमर को फर्श पर लॅंड करा दिया…..!!
झट से उन्होने अपना सर उपर किया… फल्फला कर ढेर सारी मलाई जैसी उनके मुँह से निकल कर मेरे पेट पर गिरी… उनका मुँह लाल सुर्ख हो रहा था… वो खों-खों करके खांसने लगी, फिर भागते हुए छत पर लगे नल से पानी लेकर मुँह साफ किया..
मे बैठ कर उन्हें ही देख रहा था, मुँह साफ करके वो वापस लौटी और एक प्यार भरी धौल मेरी पीठ पर जमाई और बोली –
जंगली कहीं के… मेरी दम निकालना चाहते थे..? हां ! पता है ! मेरी साँसें बंद होने लगी थी..
मे – सॉरी भाभी वो मे … मुझे… होश ही नही रहा…
भाभी मुस्करा के बोली… मे समझ सकती हूँ.. अच्छा ये बताओ अब कैसा लग रहा है.. कुच्छ हल्का फील हुआ या नही..मे – हां भाभी ! थॅंक्स.. ! अब मेरी उत्तेजना कुच्छ कम हो गयी है..

भाभी – लेकिन तुम्हारा ये हथियार तो ज्यों का त्यों खड़ा है.. जाओ बाथरूम में जाकर कुच्छ देर इसपर ठंडा पानी डाल लो..

आज पहली बार मुझे पता चला कि लंड से पेसाब के अलावा और भी कुच्छ निकलता है, जो इतना आनंद देता है….

अब तो मे अपने हाथ से भी उस मज़े को लेने की कोशिश करने लगा, लेकिन वो मज़ा नही मिला जो भाभी के चूसने से मिला था.

फिर एक दिन बाथरूम में खड़ा मे अपने लंड को सहला रहा था कि भाभी ने देख लिया और वो डाँट पिलाई कि पुछो मत..

जब मेने कारण पुछा तो वो समझाने लगी – लल्ला देखो ये रोज़-रोज़ की आदत मत लगाओ… ठीक नही है, इससे तुम्हारा शरीर कमजोर होने लगेगा, हो सकता है कोई बीमारी भी लग जाए..

कभी-2 कर लेने में कोई बुराई नही है, पर हाथ से नही… हाथ से करने को मूठ मारना बोलते हैं.. और लिमिट से ज़्यादा मूठ मारने से इसकी (लिंग) नसें कमजोर पड़ जाती हैं..,

यहाँ तक कि आदमी ना मर्द भी हो जाते हैं, और सदी के बाद वो किसी काम के नही रह पाते..

मेने पुछा कि भाभी तो और कॉन कॉन से तरीके हैं उस आनंद को लेने के.. तो वो मुस्काराई… और बोली – लल्ला तुम तो आज ही सब कुच्छ जानना चाहते हो..!

फिर कुच्छ सोच कर वो बोली – उस दिन मेने जिस तरह से तुम्हें रिलीस किया था उसको मुख मैथुन (ब्लोव्जोब) कहते हैं.. असल में तो वो भी सही तरीका नही है..

मे – तो सही क्या है भाभी…?

भाभी – स्त्री-पुरुष के बीच संभोग ही सही तरीका होता है, जो प्राकृतिक माना जाता है.. लेकिन उसके लिए अभी तुम्हारी उमर नही हुई है,

तुम्हारे लिंग की स्किन जो जुड़ी हुई है ना वो भी तभी अलग होगी जब तुम किसी के साथ ये सब करोगे..

लेकिन ग़लती से भी किसी के साथ ऐसे वैसे संबंध बनाने की कोशिश भी मत करना..वरना… ! मुझसे बुरा कोई नही होगा..! जब भी वो समय आएगा, मे खुद तुम्हारी मदद करूँगी…

मेरे उन मेच्यूर दिमाग़ में कुच्छ पल्ले पड़ा कुच्छ नही, पर मे इतना ज़रूर समझ गया, कि भाभी मेरी सब जायज़, नाजायज़ ज़रूरतों का ख्याल रखती हैं, और जब जिस काम की ज़रूरत होगी वो ज़रूर करेंगी.
 

vhsaxena

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Update 19
मे खाना खाकर पढ़ने बैठ गया… सारा काम निपटाकर भाभी मेरे लिए बादाम का दूध लेकर आई और मुझे दूध देते हुए बोली – लो पहले इसे ख़तम करो, फिर पढ़ लेना..
मेने उनके हाथ से दूध का ग्लास लिया और पीने लगा.. तभी भाभी बोली – देखो लल्लाजी .. चाची के साथ आज जो हुआ है, उसे इसके आगे मत होने देना.. !
मेने दूध ख़तम करके खाली ग्लास टेबल पर रखा और उनकी तरफ देखते हुए कहा..
भाभी अब मे बड़ा हो गया हूँ.. , अब मुझसे ये सब और ज़्यादा कंट्रोल नही हो पाता…
उपर से आप ना जाने मेरे साथ क्या खेल खेल रहीहो… ऐसा ना हो कि किसी दिन मेरे ना चाहते हुए वो सब हो जाए जो आप नही चाहती.. !
मेने खुले शब्दों में एक तरह से अपने मन की बात कह दी थी..!
वो कुच्छ देर तक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, अनायास ही उनके चेहरे पर गुस्से जैसे भाव आगये.. और वो ठंडे लहजे में बोली –
जान ले लूँगी तुम्हारी अगर ऐसा वैसा कुच्छ किया भी तुमने तो…!
मे भी बिफर पड़ा और झुझलाकर बोला – आख़िर आप चाहती क्या हैं..?
वो भभक्ते हुए एक झटके में बोल पड़ी – अपना हक़..!
मे – मतलव… कॉन्सा हक़..? और कैसा हक़..?
गुस्से में बोले हुए अपने शब्दों का जब उन्हें एहसास हुआ तो उनकी नज़र स्वतः ही झुक गयी… और वो आगे कुच्छ बोल नही पाई…!
जब अपने सवाल का कोई जबाब मुझे ना मिला तो मेने उनके कंधे पकड़ कर झकझोरते हुए पुछा..
बताइए ना भाभी… आप कोन्से हक़ की बात कर रही थी…?
उन्होने नज़र नीची किए हुए अपने नीचे के होठ को चवाते हुए कहा – तुम्हारे कुंवारेपन को पाने का हक़ सबसे पहले मेरा है..

कुच्छ देर तक तो उनकी बात मेरी समझ में ही नही आई, लेकिन जैसे ही मुझे समझ पड़ी… मे उनके गले से लग गया और बोला –
सच भाभी … आप मेरे साथ…वो…वो..सब… करेंगी….बोलिए…!
भाभी मुझसे बिना नज़र मिलाए ही बोली – हां लल्लाजी… पर समय आने पर..,
याद है मेने पहले भी कहा था… कि समय पर तुम्हें हर वो चीज़ मिलेगी जिसकी तुम इच्छा रखते हो..
ओह्ह्ह्ह… थॅंक यू भाभी ! आइ लव यू.. ! आप सच में बहुत अच्छी हैं……. पर वो समय कब आएगा भाभी..?
भाभी – तुम्हारे बोर्ड एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट के बाद, तुम्हारे बर्तडे पर…तब तक तुम इस बारे में कोई बात नही करोगे…!
और हां ! रिज़ल्ट मुझे फर्स्ट डिविषन में चाहिए…!
इतना कह कर वो उठकर अपने रूम में चली गयी.. मे बस उन्हें जाते हुए देखता रहा.. और फिर अपनी पढ़ाई में जुट गया….!

अब मेरे दिमाग़ से सारे फितूर निकल चुके थे… उस दिन के बाद भाभी कुच्छ सीरीयस हो गयी और में भी.. उनकी भावना को समझ चुका था,
वो जो भी कर रही थी, मेरी खातिर ही कर रही थी…..
मे दिन-रात एक करके पढ़ाई में जुट गया था… पिताजी मुझे सीरियस्ली पढ़ते हुए देखकर अति-प्रसन्न थे, और उन्हें आशा थी कि मे अच्छे नंबरों से ये बोर्ड की परीक्षा पास कर लूँगा.
आख़िरकार मेरे एग्ज़ॅम भी आगये, और मेने पूरे कॉन्सेंट्रेशन के साथ सारे पेपर दिए.
जब सारे पेपर ख़तम हो गये और मे लास्ट पेपर देकर आया, तो भाभी ने मुझे अपनी छाती से किसी बच्चे की तरह लगा लिया और सुबक्ते हुए बोली…
मुझे माफ़ करदेना मेरे बच्चे.. मेने ये सब तुम्हारी भलाई के लिए ही किया है..!
अब तुम अपने रिज़ल्ट तक आज़ाद हो, जैसे चाहे मज़े ले सकते हो, लेकिन एक लिमिट में…!
मे – लेकिन अपना वादा तो याद है ना आपको..?
भाभी – वो मे कैसे भूल सकती हूँ…! जिसका मेने इतने वर्ष इंतेज़ार किया है..
मे – आप सच कह रही हैं.. ! क्या आप पहले से ये सब डिसाइड कर चुकी थी..?
भाभी – हां.. ! जब मेने पहली बार तुम्हें उस तकलीफ़ से निकालने के लिए वो सब किया था, तभी मेने ये डिसाइड कर लिया था, कि तुम्हारी वर्जिनिटी में ही
तुडवाउन्गी…!

मेरे रिज़ल्ट के ठीक एक हफ्ते बाद ही मेरा बर्त डे था, अब हम दोनो ही बड़ी बेसब्री से उस दिन का इंतेज़ार कर रहे थे….!

लेकिन अब में किसी के साथ भी कैसे भी मज़ा कर सकता था, सिवाय सेक्स के……………………………………क्षकशकशकशकशकश!

मेरे चचेरे भाई सोनू और मोनू भी छुट्टियों में घर आए हुए थे, सोनू मेरे से दो साल बड़ा था, और मोनू मेरे बराबर का ही था…

हम तीनों मिलकर सारे दिन धमाल करते रहते, और एक दूसरे से हर तरह की बातें भी कर लेते थे.. वो दोनो भाई तो आपस में बिल्कुल खुले हुए थे..

बातों-2 में उन्होने बताया कि वो अपने मामी और उसकी एक बेटी जो सोनू के बराबर की थी, उनके साथ मज़े भी कर चुके हैं..

मे ये सुनकर बड़ा सर्प्राइज़ हुआ कि वो दोनो साले अपनी मामी के साथ भी जो उसकी माँ से भी बड़ी थी मज़े ले चुके थे.

पता नही क्यों, छोटी चाची इन दोनो भाइयों को बिल्कुल पसंद नही करती थी, तो ये दोनो भी उनके घर कभी नही जाते थे…!

एक दिन हम तीनों ने मिलकर घर पर वीसीआर ला कर फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया … ये बात सुन कर घर के सभी लोग बड़े खुश
 

Vishalji1

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Amazing story but thoda fast ho gya chachi wala part bataya nhi sirf jikr kiya ki chachi ke sath to kuch hua hai use bhi de dete aur maza aata
 

vhsaxena

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update 20
टाउन से हमने पूरी रात के लिए वीसीआर किराए से लिया और 3-4 मूवी ले आए, जिनमें 2 फॅमिली ड्रामा, एक पूर्ली आक्षन मूवी और 1 एक्सएक्स देशी मूवी की सीडी थी, जो सोनू ने ही सेलेक्ट की, मुझे तो इन सब का कोई नालेज नही था.
हमारा आँगन काफ़ी लंबा चौड़ा था, सो एक साइड में टीवी और वीसीर लगा कर हमने ज़मीन पर ही गद्दे डाल लिए, चारों परिवार के सभी सद्स्य आज काफ़ी दिनो के बाद एक साथ बैठ कर रात एंजाय करने वाले थे.
रेखा दीदी भी आजकल आई हुई थी, जो अब एक बच्चे की माँ थी, उनका बेटा भी लगभग मेरी भतीजी रूचि के साथ ही पैदा हुआ था…
रेखा दीदी का बदन अब काफ़ी भर चुका था, हाइट कम होने की वजह से वो कुच्छ ज़्यादा ही चौड़ी सी दिखती थी, उनके स्तन तो छोटी चाची से भी बड़े हो गये थे..
घर के काम-काज निपटाते 9 बज गये, सब लोग आकर ज़मीन पर पड़े गद्दों पर अपनी सुविधनुसार आकर बैठ गये….
शुरुआत में सोनू ने फॅमिली ड्रामा ही लगाई, सब मूवी एंजाय कर रहे थे, दोनो बड़ी चाचियाँ और चाचा आगे बैठे थे… !
चाचा और बड़ी चाचियाँ तो दूसरी मूवी के शुरू होते ही ऊंघने लगे और एक-एक करके वो उठकर जाने लगे.. दूसरी मूवी के ख़तम होते-होते भाभी समेत सभी बड़े लोग सोने चले गये…
अब हम बस तीन भाई और तीनों बहनें ही बैठे रह गये…
तीसरी सोनू ने आक्षन वाली फिल्म लगा दी… मे सबसे लास्ट मे बैठा था, और मेरे बगल में रेखा दीदी थी, जो बीच-2 में मुझे छेड़ देती थी, लेकिन मे उनके लिए कोई ऐसी वैसी बात मन में अभी तक नही लाया था..
हमारे आगे रामा और आशा दीदी थी, और उन दोनो के आजू बाजू सोनू और मोनू बैठे थे, मोनू रामा दीदी की तरफ और सोनू आशा दीदी की तरफ.
जब बैठे-2 बोर हो जाते तो कोई किसी की जाँघ पर सर रख कर लेट जाता, तो कभी कोई..
तीसरी मूवी के शुरू होने के कुच्छ देर बाद ही रेखा दीदी बोली – सोनू ये तूने क्या बकवास मूवी लगा दी है, कोई और नही है..?
सोनू – है तो सही दीदी लेकिन… वो आप लोगों के लायक नही है..
वो – क्यों ? ऐसा क्या है उसमें…?
सोनू – अरे दीदी ! समझा करो यार ! क्षकश मूवी है आप क्या करोगी देख कर..
वो – अच्छा तो तेरे देखने लायक है, हमारे नही.. लगा तू.. देखें तो सही कैसी एक्सएक्स है..?
मजबूर होकर उसने वो सीडी लगाड़ी… ये एक भोजपुरी भाषा की बी ग्रेड मूवी थी, जिसमें एक लड़का और लड़की आधे अधूरे कपड़ों में जंगल में भटक रहे होते हैं..
अपना मन बहलाने के लिए कभी-2 वो एकदुसरे के साथ छेड़-छाड़ करने लगते हैं, एकदुसरे को किस करने लगते है,
कपड़ों के उपर से जो केवल नाम मात्र के लिए थे उनके शरीरों पर एक दूसरे के नाज़ुक अंगों को सहलाने-पकड़ने लगते हैं..
जैसे-2 मूवी में सेक्स बढ़ता जाराहा था, वहाँ पर बैठे सभी लोग एक्शिटेड होते जा रहे थे, और ना चाहते हुए ही एक दूसरे के साथ खेलने लगते हैं..
जैसे-2 मूवी में सेक्स बढ़ता जाराहा था, वहाँ पर बैठे सभी लोग एक्शिटेड होते जा रहे थे, और ना चाहते हुए ही एक दूसरे के साथ खेलने लगते हैं..
रामा दीदी को ये ज़्यादा अच्छा नही लगा या वो ये सब नही करना चाहती होगी सबके सामने तो वो उठकर सोने चली गयी…
सोनू आशा दीदी के साथ चिपका हुआ था, और अपने हाथ इधर-उधर डाल देता, जिसे वो कभी-2 रोक देती जिससे वो अपनी सीमा में ही रहे..
इधर रेखा दीदी ने मेरे उपर हल्ला ही बोल दिया था…! वो मेरे उपर एक तरह से पसर ही गयी थी.. उसके बड़े-2 भारी भरकम चुचे मेरे साइड से दबे हुए थे..
उत्तेजना से मेरा लंड अकड़ गया, जिसे उन्होने अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने मम्मे पर रख लिया..
मेरी सहन शक्ति जबाब देती जा रही थी, धीरे-2 वो वाइल्ड होती जा रही थी, यहाँ तक की उन्होने मेरा एक हाथ अपनी चूत के उपर रख दिया और उसे दबाने सहलाने लगी.. उनकी पाजामी गीली होती जा रही थी..
जब मुझसे और सहन नही हुआ तो मे ये कहकर कि मुझे तो अब नींद आरहि है मे उठ खड़ा हुआ..
दीदी प्यासी सी मेरी ओर देखने लगी और उन्होने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली – अरे छोटू बैठ ना.. दिन में नींद पूरी कर लेना..
मे – नही दीदी, अब मेरा सर भारी होने लगा है.. अब मेरे से नही बैठा जाएगा..
वो तीनों तो मूवी में ही खोए हुए थे.. इधर जब मेने उनकी बात नही मानी तो उन्होने मुझे ज़ोर का झटका देकर अपने उपर खींच लिया, जिससे मे उनके उपर गिर पड़ा..
झटका अचानक इतना ज़ोर का था कि वो खुद भी गद्दे पर गिर पड़ी और मे उनके उपर..
उन्होने मुझे अपनी बाहों में कस लिया जिसके कारण उनके दोनो गद्दे जैसे चुचे मेरे सीने में दब गये,
मेरा खड़ा लंड उनकी मोटी-मोटी जांघों के बीच फँस गया, जिसे उन्होने अपनी जांघों को और जोरेसे भींच कर दबा दिया.
वो मुझे किस करने ही वाली थी कि मे उनके उपर से उठ खड़ा हुआ, और तेज़ी से वहाँ से निकल गया और सीधा बाथरूम में घुस गया….
मेने बाथरूम में अपनी टंकी रिलीस की और जाकर अपने बिस्तर पर सो गया, जो छत पर पड़ा हुआ था, मेरे बाजू में ही रामा दीदी का बिस्तर था.
रामा दीदी इस समय अपने घुटने मोड़ कर करवट से गहरी नींद में थी, मे भी जाकर उनकी बगल मे लेट गया और जल्दी ही गहरी नींद में चला गया
मे उँचे और घने पेड़ों के बीच स्थित एक साफ पानी से भरे तलब के किनारे खड़ा हुआ था, अचानक मेरी नज़र तालाब में नहाती हुई एक कमसिन लड़की पर पड़ती है..
उसके बदन पर इस समय मात्र एक पतले कड़े की चुनरी जैसी थी, जो वो अपने शरीर पर लपेटे हुए थी, पानी से गीली होने बाद उसके शरीर का वो कपड़ा उसके बदन को ढकने की वजाय और उसके शरीर के उभारों को प्रदर्शित कर रहा था.
अचानक मुझे देख कर वो लड़की पानी में खड़ी हो जाती है, जिससे उसके कमर से उपर का भाग दिखाई पड़ने लगता है…
पतले गीले कपड़े से उसके गोल –गोल ठोस उरोज साफ-साफ दिखाई दे रहे थे, ब्राउन कलर के अंगूर के दाने जैसे उसके निपल पानी के ठंडे पानी से भीगने के बाद एकदम कड़े होकर उस कपड़े से बाहर निकलने के लिए जैसे व्याकुल हो उठे हों..
मे एकटक उसकी सुंदरता में खोगया, गोरी चिट्टी वो लड़की मेरी तरफ देख कर मंद-मंद मुस्करा रही थी..
अचानक धीरे-2 वो पानी से बाहर आने लगी, मे जड़वत किसी पत्थर की मूरत की तरह वहीं खड़ा उसका इंतेज़ार कर रहा था…
वो बाहर निकल कर ठीक मेरे सामने आकर खड़ी होगयि और उसने अपने गीले कड़क उरोज मेरे सीने में गढ़ा दिए.. और फिर अपने शरीर को उपर-नीचे करके अपने निप्प्लो को मेरे सीने से रगड़ने लगी..
मेरी आँखों में झाँकते हुए उसने अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड पर रख दिया और उसे सहलाने लगी…उत्तेजना मेरे सर चढ़ कर बोलने लगी थी, मेने उसे अपनी बाहों में कस लिया और उसके होठों को चूस्ते हुए उसके उरोजो को मसल्ने लगा…वो ज़ोर-ज़ोर से मेरे लंड को मसले जा रही थी… अब उसने मेरा लिंग अपनी यौनी के उपर रगड़ना शुरू कर दिया
मात्र एक झीने से कपड़े और वो भी पूरी तरह पानी से गीला होने के कारण मेरा लंड उसकी यौनी को अच्छे से फील कर रहा था…
मेने उसके गोल-मटोल कलश जैसे कुल्हों को अपने हाथों में कस लिया और अपनी कमर को एक झटका दिया…
उस झीने कपड़े समेत मेरा लिंग उसकी यौनी में प्रवेश करने लगा…मे अपनी कमर को और ज़्यादा उसकी तरफ पुश करने लगा… उसके चेहरे पर दर्द के भाव बढ़ते जा रहे थे…
मुझे लगा जैसे मेरा लंड पानी छोड़ देगा, मेने उसकी पीड़ा की परवाह ना करते हुए अपना लिंग और अंदर करना चाहा कि किसी ने मुझे झकझोर दिया…
हड़बड़ा कर मेने अपनी आँखें खोली तो देखा दीदी मेरे उपर झुकी हुई मुझे ज़ोर-ज़ोर से हिला रही थी… छोटू उठ जा अब देख कितनी धूप तेज हो गयी है, पसीने से तर हो गया है.. फिर भी सो रहा है…
मे उठकर बैठ गया… मुझे अभी भी ऐसा फील होरहा था, जैसे ये सब सपना नही हक़ीकत में मेरे साथ हो रहा था….मेरा लंड पूरी तरह अकड़ कर शॉर्ट को फाडे दे रहा था, एक सेकेंड और मेरी आँख नही खुली होती तो वो पिचकारी छोड़ चुका होता…
दीदी की नज़र मेरे शॉर्ट पर ही थी, जब मेने उसकी निगाहों का पीछा किया तब मुझे एहसास हुआ, और मेने अपनी जांघे भींच कर उसे छुपाने की कोशिश की..
दीदी झेंप गयी और नज़र नीची करके मुस्कराते हुए वहाँ से भाग गयी.. और सीधी के पास जाकर पलट कर बोली- अब सपने से बाहर आ गया हो तो नीचे आजा.. भाभी बुला रही हैं…!
मुझे बड़ी शर्म सी महसूस हुई, फिर कुच्छ देर बैठ कर अपने मन को इधर-उधर करने की कोशिश की लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ..
फिर उठकर फर्स्ट फ्लोर पर बने बाथरूम में घुस गया और पेसाब की धार मारी तब जाकर कुच्छ शांति मिली……..
चाय नाश्ता करने के बाद मेने अपनी गुड़िया रानी को गोद में लिया और भाभी को बोलकर बड़ी चाची के घर की तरफ निकल गया…
मेने उनके घर के अंदर जैसे ही पैर रखा, सामने ही वरान्डे में रेखा दीदी चारपाई पर बैठी अपने बेटे को दूध पिला रही थी,
उनका पपीते जैसा एक बोबा, कुर्ते के बाहर निकला हुआ था और उसका कागज़ी बादाम जैसा निपल उनके बेटे के मुँह में लगा हुआ था, और वो चुकुर-2 करके उसे चूस रहा था..
मेरे कदमों की आहट सुन कर उन्होने उसे ढकना चाहा, लेकिन जैसे ही उनकी नज़र मेरे उपर पड़ी.. तो उन्होने अपनी कमीज़ और उपर कर ली जिससे उनका पूरा पपीता मेरे सामने आगया….
मे – दीदी क्या हो रहा है…? और उनके पास बैठ कर उनके बेटे के सर पर हाथ फिराया और उनके बेटे से बोला – अले-अले..मम्मा.. का दुद्दु पी रहा है मेरा भांजा…दीदी ने जलती नज़रों से मुझे देखा लेकिन मेरी बात का कोई जबाब नही दिया..
मेने उनके पास बैठ के रूचि के गाल पर किस किया और उसे खिलाने लगा…वो बार-2 मेरा ध्यान अपनी ओर करने के लिए सस्सिईइ….आअहह…काट मत… जैसी आवाज़ें करने लगी.. लेकिन मे अपनी गुड़िया से ही खेलता रहा…
फिर जब उनकी एक तरफ की टंकी खाली हो गयी, तो उसे पलट कर दूसरे बोबे की तरफ किया और अपनी कमीज़ उठा कर उसको भी नंगा करके निपल उसके मुँह में दे दिया.. लेकिन पहले वाले को ढकने की कोशिश भी नही की..
अब उनकी कमीज़ उनके दोनो चुचियों के उपर टिकी हुई थी…मे कनखियों से उनको देख रहा था, और अपनी भतीजी से खेलता रहा…
वो मन ही मन भुन-भूना रही थी.. फिर मे बिना उनकी तरफ देखे ही बोला – दीदी घर में और कोई नही है…? उन्होने फिर भी सीधे -2 मेरी बात का कोई जबाब नही दिया और मुझे सुनकर अपने बेटे से बातें करने लगी.
ले बेटा ठूंस ले पेट भरके… यहाँ और कोई नही है, जो तेरी भूख शांत करे..
 
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