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Erotica MERI JINDAGI KA SAFAR --- BY KUNAL (SHORT STORY) [completed]

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
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Ye story filhal start Nahi hogi

Meri yah story R.R.Raj ---Safar aadi se ant tak ke khatm hone ke bad ya Uske 80 se 90 update complete hone ke bad start hoga

Sorry for readers problem but mein ek sath 2 story start kar bhavishya ke liye problem nahin uthana chahta hun
 
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DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
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Chaliye aaj main apni ek aur story start kar raha hu. Jo main close kar di thi

Aap logon ko shayad pata hoga Ki Mera naam Raj hai.

Ab aap log yahan soch rahe honge Ki story me to Kunal likha hai

To main aap logon Ko bata do Ki meri story Nahin Hai. Yah mere dost ki story hai. Jiska naam Kunal hai

Story me Kunal ki jagah mai likhunga

otherwise
my other story.https://xforum.live/threads/raj-viraj-hero-devil-two-in-one.24647/post-2075619
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
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Yah ek sex related short Story Hai.
Jo ki one week tak chalegi

Story padhne ke liye sath bane rahiye

Jin logon Ka yah question hai Ki main apni order story kyon band kar di
to uska answer yah hai ki vah ek lambi Story thi.
Main pahle apni short story ko khatm karunga FIR Uske bad use story ko start karunga
 

DAIVIK-RAJ

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Next update very soon
 

DAIVIK-RAJ

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UPDATE 1
दोस्तो … मेरा नाम कुणाल (काल्पनिक) है. मैं उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले का रहने वाला हूं और फिलहाल नोएडा में रहता हूं.
मेरा सांवला रंग है … ना ज़्यादा गोरा और ना ही काला. मैं कोई ज़्यादा खूबसूरत नहीं हूँ और ना ही कोई मेरा कसरती बदन है … बस जैसा एक औसत व्यक्ति होता है, वैसा ही हूँ. मेरी हाइट 5 फुट 9 इंच की है, लंड का साइज इतना है कि आज तक मैंने जिस भी औरत को चोदा है, किसी ने भी मेरे लंड को लेकर कभी शिकायत नहीं की.

मैं X.froum का नियमित पाठक हूं और बहुत दिनों से चाहता था कि मैं भी एक सेक्स कहानी आप सब लोगों के साथ साझा करूं.
और आज आखिरकार कोशिश पूरी हो गयी है.

मेरी ये सेक्स कहानी वास्तविक है. मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी कहानी पसंद आएगी.
यह कहानी ज़्यादातर मेरे आस पास ही घूमेगी, बीच बीच में कुछ नए लोग इस कहानी में आएंगे, तो उनका परिचय उसी वक़्त आपसे करवाता चलूँगा.

ये बात उन दिनों की है, जब मैं 19 साल का हो चुका था और 12वीं क्लास में आया था. इधर मुझे पता चला कि ज़िन्दगी में पहली बार मुझे लड़कियों के साथ एक ही रूम में पढ़ना पड़ेगा. ये मेरे साथ अब तक नहीं हुआ था … इसलिए कुछ तरंगें सी उठने लगी थीं.

हमारे क्लास रूम में बैठने के लिए टेबलों की तीन लाइनें थीं, जिनमें से एक लड़कों की थी और दो लड़कियों की. लड़कों की लाइन पहले ही फुल हो चुकी थी. बाद में लड़कियों की टेबलें भी फुल हो गई थीं. लेकिन बीच वाली लाइन में एक सीट खाली थी, तो मुझे वहीं बैठना पड़ा.

मैं उस सीट के मिलने पर खुश भी था और दुखी भी था. खुश इसलिए था कि मेरे आगे भी लड़कियां थीं और मेरे साइड में भी लड़कियां थीं. लेकिन दुख इस बात का था कि मैं अकेला हो गया था. खैर … अब जो होना था, सो हो गया.

इसी तरह वक्त गुज़रने लगा. अर्ध वार्षिक इम्तिहान आए और चले गए. सभी छात्र इसमें पास हो गए थे.

इस बीच मेरा कितनी ही लड़कियों से आंखों ही आंखों में कनेक्शन बना और टूट गया … लेकिन किसी के भी साथ कहानी ज़्यादा आगे नहीं बढ़ी.

फिर ज़िन्दगी में अचानक से एक मोड़ आया. सालाना इम्तिहान से 2 महीने पहले ये हुआ था. सिर पर एग्जाम की टेंशन बहुत ज़्यादा थी. चूंकि बोर्ड के एग्जाम थे, बस पढ़ाई करने की धुन सवार थी कि कैसे भी करके एग्जाम अच्छे नम्बरों से पास करना था.

एक दिन की बात है. अंग्रेज़ी की मैडम (प्रिया) स्कूल तो आई थीं, लेकिन क्लास में नहीं आई थीं. मैं और क्लास मॉनिटर उनको बुलाने स्टाफ रूम में गए, लेकिन वो वहां भी नहीं थीं. पता करने पर पता कि वो साइंस वाले सर के साथ ऊपर लैब में गयी हैं

इस पर मॉनिटर ने मुझसे कहा कि तुम वहां जाकर मैडम को बुला लाओ.

मैं जल्दी से ऊपर लैब की तरफ गया, तो मुझे वहां कोई भी नहीं दिखाई दिया. मैंने इधर उधर देखा और वापस आने के लिए जैसे ही मुड़ा, मुझे हल्के से किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी. जैसे किसी को जब अचानक से सुई चुभ जाती है … तो वो उईईईईई करता है, ऐसे ही ये आवाज़ लैब की टॉयलेट से आई थी. मुझे कुछ अजीब सा लगा और मैं बिना किसी तरह की कोई आवाज़ किए, उधर ही कान लगाकर सुनने लगा.

मुझे फिर से ‘उईईईईई..’ की आवाज़ आई और साथ ही एक आवाज़ और आई.
ये आवाज मैडम की थी.

प्रिया- आराम से कीजिये सर और जल्दी कीजिये … कोई आ ना जाए.

प्रिया मैडम ऐसे बोल रही थीं, जैसे वो बहुत दूर से भाग कर आ रही हों और उनकी सांस फूल गयी हो. वो बार बार ‘उईईईई … आह..’ भी कर रही थीं.

मुझे लगा था कि प्रिया मैडम और कोई सर अन्दर हैं, लेकिन मुझे तब और भी ज़्यादा आश्चर्य हुआ, जब सर की आवाज़ सुनाई दी.

सर- प्रिया यार, ये साड़ी बीच में आ रही है, इसकी वजह से बार बार निशाना चूक रहा है … प्लीज साड़ी को ऊपर करके पकड़ लो.

ये हमारे प्रिंसिपल साहब की आवाज़ थी. इसका मतलब प्रिया मैडम और प्रिंसिपल सर बाथरूम में अन्दर चुदाई कर रहे थे.

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि मैडम के चीखने की आवाज़ आयी- उईईई ईईईई उम्म्ह… अहह… हय… याह… मां मर गयी …
सर- आहहहह अब लगा है निशाना … कितनी गर्म चूत है मैडम तुम्हारी आहह … लंड जल सा गया.

प्रिया- आंह सर दर्द हो रहा है … आपका बहुत मोटा है … प्लीज़ आराम से कीजिये प्लीज … उईई.
सर- बस अब थोड़ा सा और बाहर बचा है … वो भी अन्दर चला जाए, फिर दर्द नहीं होगा.

सर ने ये बात बोली ही थी कि अबकी बार फिर से मैडम के चीखने की आवाज़ आयी. ये पहले से ज़्यादा तेज़ थी और साथ ही मैडम की बातों से लग रहा, जैसे उन्हें बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा हो.

प्रिया- उईईईईई मां सर … प्लीज मर गयी मां बहुत दर्द हो रहा है … बहुत मोटा है आपका … प्लीज बाहर निकालिए … बहुत दर्द हो रहा है. … मेरी टांगें भी दुख रही हैं हाय मांआआआ मर गई … आह आह ओह मेरी जान श्श्श्श्श्श उन्ह आंह …
सर- बस थोड़ा सा बर्दाश्त कर लो मेरी जान … रुकने का टाइम नहीं है, पीरियड भी होने वाला होगा … कोई भी आ सकता है … बस थोड़ा सा और!

प्रिया- सर आहहह दर्द हो रहा है … थोड़ा धीरे कीजिए न प्लीज.
सर- आंह बहुत गर्म चूत है तुम्हारी जान … बहुत दिन से इस मौके की तलाश में था मैं … आह लंड को बहुत मज़ा आ रहा है.

कुछ देर बाद मैडम की दर्द भी सिसकारियों में बदल चुकी थीं और अब वो भी दबी हुई आवाज़ में सिसकारियां ले रही थीं.

प्रिया- आहह हहह हहह सर ऐसे ही कीजिये … मज़ा आ रहा है … आआहह … उह्ह्ह ह्ह हां … और ज़ोर से चोदो न … और ज़ोर से आईईई … सर प्लीज आह … मैं बस तुम्हारी हूं … हां और उह्ह्ह्ह ह्ह ज़ोर से चोद मुझे … उह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह. प्लीज जान मुझे अपनी रंडी बना ले … आज से तू जो कहेगा, मैं वो करूंगी … आआह तेज़ चोदो ना … हा ऐसे ही आहह उईईईई मां..

कुछ देर मस्त आवाजें आती रहीं. फिर सर की आवाज आई- मैं आ रहा हूँ जान.
प्रिया- सर प्लीज मेरी चुत में ही डाल दो, बहुत दिन से गर्म गर्म रस नहीं गया है मेरी चुत में … और ज़ोर से … आहहहह और ज़ोर से!

सर- आहह हहह मैं गया … बेबी आई लव यू जान … यू आर सो हॉट एंड सेक्सी … आंह.
प्रिया- आई लव यू टू जान … यू आल्सो सो मच हॉट एंड सेक्सी … आज मजा आ गया … कितना मस्त चोदते हो.
सर- अब कब मिलोगी अगली बार चुदने के लिए?
प्रिया- बहुत जल्द मिलूंगी सर … अब आपके बिना तो मुझे भी चैन नहीं आएगा.

तभी अगले पीरियड की बेल बज गई और मैं जल्दी से वहां से आ गया. मैं बहुत कामुक हो उठा था, इसलिए सीधे टॉयलेट में गया और मुठ मारी. तब जाकर चैन मिला. लेकिन मेरे मन में एक अजीब सी हलचल उठ गई थी.

मैं वहां से वापस आ गया. स्कूल की छुट्टी भी हो गयी, लेकिन मैडम और सर की आवाज़ें अभी भी दिमाग में घूम रही थीं.

मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा. मैंने हड़बड़ाकर जैसे ही पीछे मुड़ कर देखा, तो वहां आकांक्षा खड़ी हुई थी, जो मुस्कुरा भी रही थी. आकांक्षा मेरे ही क्लास में पढ़ती थी, जिससे मेरी हाफ इयरली के एग्जाम के दौरान बातचीत हुई थी.

हुआ कुछ यूं था कि आकांक्षा को ड्राइंग बनानी नहीं आती थी, तो मैंने उसके ड्राइंग में मोर बनाया था. तभी से हमारी हाई हैलो हो गयी थी.

आकांक्षा देखने में बहुत खूबसूरत थी. गोल गोल आंखें, सुतवां नाक, गुलाब जैसे होंठ, उसके नीचे संतरे जैसी चुचियां, फिर सुराही जैसी कमर … और आखिर में 34 साइज के कूल्हे. … कुल मिलाकर हुस्न परी थी वो … गज़ब की बला.

मैं कुछ लम्हे उसे देखता रहा. मेरी निंद्रा तब टूटी, जब उसने दोबारा हिलाकर कहा कि घर नहीं जाना क्या … छुट्टी हो गयी है?

मैं एकदम से शर्मिंदा सा हो गया और नज़रें नीची किए हुए जाने लगा. आकांक्षा भी भाग कर मेरे साइड में आ गयी और बोली- इतना सीरियस होकर क्या सोच रहा था?
मैं- कुछ भी तो नहीं … बस ऐसे ही बैठा था.
आकांक्षा- नहीं कुछ तो सोच रहा था … बता न क्या बात है?
मैं- अरे नहीं … बस ऐसे कुछ भी नहीं है.

आकांक्षा- मुझे पता है तू क्या सोच रहा था.
मैंने पहले उसे चौंक कर देखा और फिर पूछा- क्या?
आकांक्षा- तू प्रिया मैडम और सर के बारे में सोच रहा था ना!

मैं ये सुनकर चलते चलते रुक गया और एकटक उसे देखता रहा. मैं सोच रहा था कि इसे कैसे पता कि ऊपर क्या हो रहा था. मेरा ये शक भी उसने ही दूर कर दिया.

आकांक्षा- तेरे जाने से पहले में भी मैडम को बुलाने ऊपर गयी थी और वहां मैडम की आवाज़ सुनकर रुक गयी थी कि तभी किसी के आने की आवाज़ आई, तो मैं बराबर वाले टॉयलेट में चली गयी और वहीं बैठी रही. फिर जब मैडम और सर फ्री हो गए, तो जो आया था … वो चला गया. पीछे पीछे मैं भी वहां से निकली. मैंने तुझे वहां देखा, तो मैं समझ गयी कि तू ही आया था. फिर क्लास में तुझे गुमसुम देखकर यक़ीन भी हो गया कि तू ही था और अभी भी तू उन्हीं के बारे सोच रहा था.

मैंने एकदम से बहाना बनाया कि नहीं नहीं … मैं तो तभी गया था और तभी आ गया था, मैंने तो वहां ऐसा कुछ नहीं देखा या सुना था. तुम किस बात की कह रही हो … मेरी समझ में नहीं आ रहा है.

आकांक्षा ने तिरछी नज़र से मुझे देखा और मुस्कुराने लगी.
उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, बस बाय करके चली गई.

मैंने भी एक पल रुक कर उसे जाते हुए देखा और मैं भी अपने घर चला गया.

कुछ ही दिनों में एग्जाम हो गए, मैं पास हो गया था. उसके बाद मैंने अपने स्कूल के पास में ही डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया. जब मैं पहली बार क्लास में गया, तो पता चला कि मेरे क्लास की बहुत सी लड़कियों ने भी यहीं एडमिशन लिया था. सब बैठ गए, टीचर आए और हम सब पढ़ने लगे.

तभी किसी ने गेट पर आवाज़ दी- मे आई कम इन सर?

मैंने उधर देखा तो दरवाज़े पर आकांक्षा खड़ी थी. मैं तो उसे देखता ही रह गया. एक तो वो थी ही खूबसूरत, उस पर अब उसने चश्मा लगवा लिया था. सुतवां नाक पर गोल गोल ऐनक अलग ही गज़ब ढा रही थी. मुझे होश ही नहीं रहा कि कब सर ने परमिशन दी और कब आकांक्षा मेरे ही पास आकर बैठ गयी.

आकांक्षा- कब तक घूरेगा … क्या पहले कोई खूबसूरत लड़की नहीं देखी?
मैं- देखी तो बहुत हैं पर तू सबसे अलग है.
आकांक्षा- चल चल … अब ज्यादा बातें मत बना … मुझे सब पता है.
मैं- कसम से यार … आज वाक़यी में तुझसे नज़र हट ही नहीं रही है, क्या करूँ दिल बग़ावत कर रहा है.

आकांक्षा- गौर से देख मेरी जान … मैं प्रिया मैडम नहीं हूँ.
वो ये कह कर ज़ोर से हंस दी.

तभी सर की चौक आकर मेरे गाल पर लगी और जैसे ही हमने उधर देखा.
तो सर ने ग़ुस्से में कहा- गेट आउट.

हमने सॉरी भी बोला, लेकिन सर ने हमें बाहर कर दिया. जैसे ही हम बाहर आए मैंने एकदम आकांक्षा का हाथ पकड़ा ओर उसे साइड में ले गया.

मैंने पूछा- तुझे प्रिया मैडम वाली बात अभी भी याद है?
आकांक्षा- और नहीं तो क्या … ये भी कोई भूलने वाली बात है … क्या तू भूल गया?
मैं- नहीं यार, वो आवाजें रात को बहुत याद आती हैं.

मैं वापस से उन्हीं ख्यालों में खो गया, जिसका रिएक्शन सीधा मेरे लंड पर हुआ और मेरी पैंट आगे से उठने लगी. जिसको आकांक्षा ने भी नोटिस किया और उसका मुँह लाल होने लगा.

जब मैंने ये देखा, तो मुझे शरारत सूझी. मैंने आकांक्षा से पूछा- क्या हुआ आकांक्षा … तुझे बुखार हो रहा है क्या … तेरा पूरा मुँह लाल क्यों हो गया है?

आकांक्षा ने हड़बड़ाकर मेरी तरफ देखा और बिना कुछ बोले वो टॉयलेट की तरफ भाग गई.
मैं भी वहाँ से हटकर दूसरे कमरे में जा बैठा, वहां कोई नहीं था.

ऐसे ही बैठे हुए मैं आकांक्षा के बारे में सोच रहा था कि आकांक्षा रूम में आई और कहने लगी- फिर से कहां ग़ुम हो गए? प्रिया मैडम का सेक्स फिर ख्यालों में आने लगीं क्या?
मैं- नहीं … अबकी बार ख्यालों में तू आई है … तेरा लाल सुर्ख चेहरा आंखों में घूम रहा है … मैं कोशिश कर रहा हूँ कि ये सब दिमाग से निकाल दूँ, पर निकल ही नहीं रहा.

अब मैं खड़ा हुआ और आकांक्षा के पास जाकर उसका हाथ पकड़ कर उससे बोला- यार प्लीज मुझे माफ़ कर देना, मैं पता नहीं मैं क्यों तेरी तरफ खुद ब खुद खिंचा जा रहा हूँ. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा कि ये सब क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है. अजीब सी हलचल दिल में हो रही है, दिल कह रहा कि तुझे गले से लगा लूं और प्यार करूं. पर दिमाग कह रहा है कि ये सब ग़लत है, दिल कह रहा है कि अपने हाथों में तेरा हाथ लूं और तेरी आंखों में आंखें डालकर तुझे बात किए जाऊं … पर दिमाग फिर रोक देता है. दिल कह रहा है कि बस मेरी आंखों में तेरे ही सपने हों, पर दिमाग रोक रहा है. अब तू ही बता क्या करूँ?

एकदम अचानक से आकांक्षा मेरे नज़दीक आयी और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैं अपनी सुध-बुध खो चुका था, लेकिन ये मेरी ज़िंदगी का पहला किस था, जिसने मुझे हवा में तैरना सिखा दिया. मैं क्या बताऊं, उस किस में कितना मज़ा था.

उस वक्त मुझे एक गीत के बोल याद आए- आज मैं ऊपर … आसमान नीचे, आज मैं आगे … ज़माना है पीछे.

मैं तो अभी भी ख्यालों में ही था कि अचनाक से ऐसा लगा, जैसे किसी ने जन्नत के दरवाजे तक ले जाकर वापस कर दिया हो. अब मेरे और आकांक्षा के होंठ अलग हो चुके थे. मैं अभी भी गुमसुम सा खड़ा, आकांक्षा को जाते हुए देख रहा था. वो मुस्कुरा रही थी.

अभी के लिए इतना ही


धन्यवाद
 
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दोस्तो … मेरा नाम कुणाल (काल्पनिक) है. मैं उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले का रहने वाला हूं और फिलहाल नोएडा में रहता हूं.
मेरा सांवला रंग है … ना ज़्यादा गोरा और ना ही काला. मैं कोई ज़्यादा खूबसूरत नहीं हूँ और ना ही कोई मेरा कसरती बदन है … बस जैसा एक औसत व्यक्ति होता है, वैसा ही हूँ. मेरी हाइट 5 फुट 9 इंच की है, लंड का साइज इतना है कि आज तक मैंने जिस भी औरत को चोदा है, किसी ने भी मेरे लंड को लेकर कभी शिकायत नहीं की.

मैं X.froum का नियमित पाठक हूं और बहुत दिनों से चाहता था कि मैं भी एक सेक्स कहानी आप सब लोगों के साथ साझा करूं.
और आज आखिरकार कोशिश पूरी हो गयी है.

मेरी ये सेक्स कहानी वास्तविक है. मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी कहानी पसंद आएगी.
यह कहानी ज़्यादातर मेरे आस पास ही घूमेगी, बीच बीच में कुछ नए लोग इस कहानी में आएंगे, तो उनका परिचय उसी वक़्त आपसे करवाता चलूँगा.

ये बात उन दिनों की है, जब मैं 19 साल का हो चुका था और 12वीं क्लास में आया था. इधर मुझे पता चला कि ज़िन्दगी में पहली बार मुझे लड़कियों के साथ एक ही रूम में पढ़ना पड़ेगा. ये मेरे साथ अब तक नहीं हुआ था … इसलिए कुछ तरंगें सी उठने लगी थीं.

हमारे क्लास रूम में बैठने के लिए टेबलों की तीन लाइनें थीं, जिनमें से एक लड़कों की थी और दो लड़कियों की. लड़कों की लाइन पहले ही फुल हो चुकी थी. बाद में लड़कियों की टेबलें भी फुल हो गई थीं. लेकिन बीच वाली लाइन में एक सीट खाली थी, तो मुझे वहीं बैठना पड़ा.

मैं उस सीट के मिलने पर खुश भी था और दुखी भी था. खुश इसलिए था कि मेरे आगे भी लड़कियां थीं और मेरे साइड में भी लड़कियां थीं. लेकिन दुख इस बात का था कि मैं अकेला हो गया था. खैर … अब जो होना था, सो हो गया.

इसी तरह वक्त गुज़रने लगा. अर्ध वार्षिक इम्तिहान आए और चले गए. सभी छात्र इसमें पास हो गए थे.

इस बीच मेरा कितनी ही लड़कियों से आंखों ही आंखों में कनेक्शन बना और टूट गया … लेकिन किसी के भी साथ कहानी ज़्यादा आगे नहीं बढ़ी.

फिर ज़िन्दगी में अचानक से एक मोड़ आया. सालाना इम्तिहान से 2 महीने पहले ये हुआ था. सिर पर एग्जाम की टेंशन बहुत ज़्यादा थी. चूंकि बोर्ड के एग्जाम थे, बस पढ़ाई करने की धुन सवार थी कि कैसे भी करके एग्जाम अच्छे नम्बरों से पास करना था.

एक दिन की बात है. अंग्रेज़ी की मैडम (प्रिया) स्कूल तो आई थीं, लेकिन क्लास में नहीं आई थीं. मैं और क्लास मॉनिटर उनको बुलाने स्टाफ रूम में गए, लेकिन वो वहां भी नहीं थीं. पता करने पर पता कि वो साइंस वाले सर के साथ ऊपर लैब में गयी हैं

इस पर मॉनिटर ने मुझसे कहा कि तुम वहां जाकर मैडम को बुला लाओ.

मैं जल्दी से ऊपर लैब की तरफ गया, तो मुझे वहां कोई भी नहीं दिखाई दिया. मैंने इधर उधर देखा और वापस आने के लिए जैसे ही मुड़ा, मुझे हल्के से किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी. जैसे किसी को जब अचानक से सुई चुभ जाती है … तो वो उईईईईई करता है, ऐसे ही ये आवाज़ लैब की टॉयलेट से आई थी. मुझे कुछ अजीब सा लगा और मैं बिना किसी तरह की कोई आवाज़ किए, उधर ही कान लगाकर सुनने लगा.

मुझे फिर से ‘उईईईईई..’ की आवाज़ आई और साथ ही एक आवाज़ और आई.
ये आवाज मैडम की थी.

प्रिया- आराम से कीजिये सर और जल्दी कीजिये … कोई आ ना जाए.

प्रिया मैडम ऐसे बोल रही थीं, जैसे वो बहुत दूर से भाग कर आ रही हों और उनकी सांस फूल गयी हो. वो बार बार ‘उईईईई … आह..’ भी कर रही थीं.

मुझे लगा था कि प्रिया मैडम और कोई सर अन्दर हैं, लेकिन मुझे तब और भी ज़्यादा आश्चर्य हुआ, जब सर की आवाज़ सुनाई दी.

सर- प्रिया यार, ये साड़ी बीच में आ रही है, इसकी वजह से बार बार निशाना चूक रहा है … प्लीज साड़ी को ऊपर करके पकड़ लो.

ये हमारे प्रिंसिपल साहब की आवाज़ थी. इसका मतलब प्रिया मैडम और प्रिंसिपल सर बाथरूम में अन्दर चुदाई कर रहे थे.

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि मैडम के चीखने की आवाज़ आयी- उईईई ईईईई उम्म्ह… अहह… हय… याह… मां मर गयी …
सर- आहहहह अब लगा है निशाना … कितनी गर्म चूत है मैडम तुम्हारी आहह … लंड जल सा गया.

प्रिया- आंह सर दर्द हो रहा है … आपका बहुत मोटा है … प्लीज़ आराम से कीजिये प्लीज … उईई.
सर- बस अब थोड़ा सा और बाहर बचा है … वो भी अन्दर चला जाए, फिर दर्द नहीं होगा.

सर ने ये बात बोली ही थी कि अबकी बार फिर से मैडम के चीखने की आवाज़ आयी. ये पहले से ज़्यादा तेज़ थी और साथ ही मैडम की बातों से लग रहा, जैसे उन्हें बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा हो.

प्रिया- उईईईईई मां सर … प्लीज मर गयी मां बहुत दर्द हो रहा है … बहुत मोटा है आपका … प्लीज बाहर निकालिए … बहुत दर्द हो रहा है. … मेरी टांगें भी दुख रही हैं हाय मांआआआ मर गई … आह आह ओह मेरी जान श्श्श्श्श्श उन्ह आंह …
सर- बस थोड़ा सा बर्दाश्त कर लो मेरी जान … रुकने का टाइम नहीं है, पीरियड भी होने वाला होगा … कोई भी आ सकता है … बस थोड़ा सा और!

प्रिया- सर आहहह दर्द हो रहा है … थोड़ा धीरे कीजिए न प्लीज.
सर- आंह बहुत गर्म चूत है तुम्हारी जान … बहुत दिन से इस मौके की तलाश में था मैं … आह लंड को बहुत मज़ा आ रहा है.

कुछ देर बाद मैडम की दर्द भी सिसकारियों में बदल चुकी थीं और अब वो भी दबी हुई आवाज़ में सिसकारियां ले रही थीं.

प्रिया- आहह हहह हहह सर ऐसे ही कीजिये … मज़ा आ रहा है … आआहह … उह्ह्ह ह्ह हां … और ज़ोर से चोदो न … और ज़ोर से आईईई … सर प्लीज आह … मैं बस तुम्हारी हूं … हां और उह्ह्ह्ह ह्ह ज़ोर से चोद मुझे … उह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह. प्लीज जान मुझे अपनी रंडी बना ले … आज से तू जो कहेगा, मैं वो करूंगी … आआह तेज़ चोदो ना … हा ऐसे ही आहह उईईईई मां..

कुछ देर मस्त आवाजें आती रहीं. फिर सर की आवाज आई- मैं आ रहा हूँ जान.
प्रिया- सर प्लीज मेरी चुत में ही डाल दो, बहुत दिन से गर्म गर्म रस नहीं गया है मेरी चुत में … और ज़ोर से … आहहहह और ज़ोर से!

सर- आहह हहह मैं गया … बेबी आई लव यू जान … यू आर सो हॉट एंड सेक्सी … आंह.
प्रिया- आई लव यू टू जान … यू आल्सो सो मच हॉट एंड सेक्सी … आज मजा आ गया … कितना मस्त चोदते हो.
सर- अब कब मिलोगी अगली बार चुदने के लिए?
प्रिया- बहुत जल्द मिलूंगी सर … अब आपके बिना तो मुझे भी चैन नहीं आएगा.

तभी अगले पीरियड की बेल बज गई और मैं जल्दी से वहां से आ गया. मैं बहुत कामुक हो उठा था, इसलिए सीधे टॉयलेट में गया और मुठ मारी. तब जाकर चैन मिला. लेकिन मेरे मन में एक अजीब सी हलचल उठ गई थी.

मैं वहां से वापस आ गया. स्कूल की छुट्टी भी हो गयी, लेकिन मैडम और सर की आवाज़ें अभी भी दिमाग में घूम रही थीं.

मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा. मैंने हड़बड़ाकर जैसे ही पीछे मुड़ कर देखा, तो वहां आकांक्षा खड़ी हुई थी, जो मुस्कुरा भी रही थी. आकांक्षा मेरे ही क्लास में पढ़ती थी, जिससे मेरी हाफ इयरली के एग्जाम के दौरान बातचीत हुई थी.

हुआ कुछ यूं था कि आकांक्षा को ड्राइंग बनानी नहीं आती थी, तो मैंने उसके ड्राइंग में मोर बनाया था. तभी से हमारी हाई हैलो हो गयी थी.

आकांक्षा देखने में बहुत खूबसूरत थी. गोल गोल आंखें, सुतवां नाक, गुलाब जैसे होंठ, उसके नीचे संतरे जैसी चुचियां, फिर सुराही जैसी कमर … और आखिर में 34 साइज के कूल्हे. … कुल मिलाकर हुस्न परी थी वो … गज़ब की बला.

मैं कुछ लम्हे उसे देखता रहा. मेरी निंद्रा तब टूटी, जब उसने दोबारा हिलाकर कहा कि घर नहीं जाना क्या … छुट्टी हो गयी है?

मैं एकदम से शर्मिंदा सा हो गया और नज़रें नीची किए हुए जाने लगा. आकांक्षा भी भाग कर मेरे साइड में आ गयी और बोली- इतना सीरियस होकर क्या सोच रहा था?
मैं- कुछ भी तो नहीं … बस ऐसे ही बैठा था.
आकांक्षा- नहीं कुछ तो सोच रहा था … बता न क्या बात है?
मैं- अरे नहीं … बस ऐसे कुछ भी नहीं है.

आकांक्षा- मुझे पता है तू क्या सोच रहा था.
मैंने पहले उसे चौंक कर देखा और फिर पूछा- क्या?
आकांक्षा- तू प्रिया मैडम और सर के बारे में सोच रहा था ना!

मैं ये सुनकर चलते चलते रुक गया और एकटक उसे देखता रहा. मैं सोच रहा था कि इसे कैसे पता कि ऊपर क्या हो रहा था. मेरा ये शक भी उसने ही दूर कर दिया.

आकांक्षा- तेरे जाने से पहले में भी मैडम को बुलाने ऊपर गयी थी और वहां मैडम की आवाज़ सुनकर रुक गयी थी कि तभी किसी के आने की आवाज़ आई, तो मैं बराबर वाले टॉयलेट में चली गयी और वहीं बैठी रही. फिर जब मैडम और सर फ्री हो गए, तो जो आया था … वो चला गया. पीछे पीछे मैं भी वहां से निकली. मैंने तुझे वहां देखा, तो मैं समझ गयी कि तू ही आया था. फिर क्लास में तुझे गुमसुम देखकर यक़ीन भी हो गया कि तू ही था और अभी भी तू उन्हीं के बारे सोच रहा था.

मैंने एकदम से बहाना बनाया कि नहीं नहीं … मैं तो तभी गया था और तभी आ गया था, मैंने तो वहां ऐसा कुछ नहीं देखा या सुना था. तुम किस बात की कह रही हो … मेरी समझ में नहीं आ रहा है.

आकांक्षा ने तिरछी नज़र से मुझे देखा और मुस्कुराने लगी.
उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, बस बाय करके चली गई.

मैंने भी एक पल रुक कर उसे जाते हुए देखा और मैं भी अपने घर चला गया.

कुछ ही दिनों में एग्जाम हो गए, मैं पास हो गया था. उसके बाद मैंने अपने स्कूल के पास में ही डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया. जब मैं पहली बार क्लास में गया, तो पता चला कि मेरे क्लास की बहुत सी लड़कियों ने भी यहीं एडमिशन लिया था. सब बैठ गए, टीचर आए और हम सब पढ़ने लगे.

तभी किसी ने गेट पर आवाज़ दी- मे आई कम इन सर?

मैंने उधर देखा तो दरवाज़े पर आकांक्षा खड़ी थी. मैं तो उसे देखता ही रह गया. एक तो वो थी ही खूबसूरत, उस पर अब उसने चश्मा लगवा लिया था. सुतवां नाक पर गोल गोल ऐनक अलग ही गज़ब ढा रही थी. मुझे होश ही नहीं रहा कि कब सर ने परमिशन दी और कब आकांक्षा मेरे ही पास आकर बैठ गयी.

आकांक्षा- कब तक घूरेगा … क्या पहले कोई खूबसूरत लड़की नहीं देखी?
मैं- देखी तो बहुत हैं पर तू सबसे अलग है.
आकांक्षा- चल चल … अब ज्यादा बातें मत बना … मुझे सब पता है.
मैं- कसम से यार … आज वाक़यी में तुझसे नज़र हट ही नहीं रही है, क्या करूँ दिल बग़ावत कर रहा है.

आकांक्षा- गौर से देख मेरी जान … मैं प्रिया मैडम नहीं हूँ.
वो ये कह कर ज़ोर से हंस दी.

तभी सर की चौक आकर मेरे गाल पर लगी और जैसे ही हमने उधर देखा.
तो सर ने ग़ुस्से में कहा- गेट आउट.

हमने सॉरी भी बोला, लेकिन सर ने हमें बाहर कर दिया. जैसे ही हम बाहर आए मैंने एकदम आकांक्षा का हाथ पकड़ा ओर उसे साइड में ले गया.

मैंने पूछा- तुझे प्रिया मैडम वाली बात अभी भी याद है?
आकांक्षा- और नहीं तो क्या … ये भी कोई भूलने वाली बात है … क्या तू भूल गया?
मैं- नहीं यार, वो आवाजें रात को बहुत याद आती हैं.

मैं वापस से उन्हीं ख्यालों में खो गया, जिसका रिएक्शन सीधा मेरे लंड पर हुआ और मेरी पैंट आगे से उठने लगी. जिसको आकांक्षा ने भी नोटिस किया और उसका मुँह लाल होने लगा.

जब मैंने ये देखा, तो मुझे शरारत सूझी. मैंने आकांक्षा से पूछा- क्या हुआ आकांक्षा … तुझे बुखार हो रहा है क्या … तेरा पूरा मुँह लाल क्यों हो गया है?

आकांक्षा ने हड़बड़ाकर मेरी तरफ देखा और बिना कुछ बोले वो टॉयलेट की तरफ भाग गई.
मैं भी वहाँ से हटकर दूसरे कमरे में जा बैठा, वहां कोई नहीं था.

ऐसे ही बैठे हुए मैं आकांक्षा के बारे में सोच रहा था कि आकांक्षा रूम में आई और कहने लगी- फिर से कहां ग़ुम हो गए? प्रिया मैडम का सेक्स फिर ख्यालों में आने लगीं क्या?
मैं- नहीं … अबकी बार ख्यालों में तू आई है … तेरा लाल सुर्ख चेहरा आंखों में घूम रहा है … मैं कोशिश कर रहा हूँ कि ये सब दिमाग से निकाल दूँ, पर निकल ही नहीं रहा.

अब मैं खड़ा हुआ और आकांक्षा के पास जाकर उसका हाथ पकड़ कर उससे बोला- यार प्लीज मुझे माफ़ कर देना, मैं पता नहीं मैं क्यों तेरी तरफ खुद ब खुद खिंचा जा रहा हूँ. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा कि ये सब क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है. अजीब सी हलचल दिल में हो रही है, दिल कह रहा कि तुझे गले से लगा लूं और प्यार करूं. पर दिमाग कह रहा है कि ये सब ग़लत है, दिल कह रहा है कि अपने हाथों में तेरा हाथ लूं और तेरी आंखों में आंखें डालकर तुझे बात किए जाऊं … पर दिमाग फिर रोक देता है. दिल कह रहा है कि बस मेरी आंखों में तेरे ही सपने हों, पर दिमाग रोक रहा है. अब तू ही बता क्या करूँ?

एकदम अचानक से आकांक्षा मेरे नज़दीक आयी और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैं अपनी सुध-बुध खो चुका था, लेकिन ये मेरी ज़िंदगी का पहला किस था, जिसने मुझे हवा में तैरना सिखा दिया. मैं क्या बताऊं, उस किस में कितना मज़ा था.

उस वक्त मुझे एक गीत के बोल याद आए- आज मैं ऊपर … आसमान नीचे, आज मैं आगे … ज़माना है पीछे.

मैं तो अभी भी ख्यालों में ही था कि अचनाक से ऐसा लगा, जैसे किसी ने जन्नत के दरवाजे तक ले जाकर वापस कर दिया हो. अब मेरे और आकांक्षा के होंठ अलग हो चुके थे. मैं अभी भी गुमसुम सा खड़ा, आकांक्षा को जाते हुए देख रहा था. वो मुस्कुरा रही थी.

आज के लिए इतना ही


धन्यवाद
Update 1 posted
 

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UPDATE 2
अब तक आपने पढ़ा कि---
मेरी टीचर की चुदाई स्कूल के प्रिन्सिपल सर ने बाथरूम में की थी, जिसे मैंने और मेरे साथ पढ़ने वाली आकांक्षा ने देखा था. उसके काफी बाद आकांक्षा से मेरी इस बात की वजह से दोस्ती हो गई थी. स्कूल से कॉलेज तक के सफ़र के बाद आकांक्षा से मुझे प्यार हो गया और उसने मुझे चूम लिया.

अब आगे---

उसने जाते जाते पलट कर एक बात बोली- जानू सुनो सबकी, पर मानो दिल की!
वो ये कह कर मुस्कुराते हुए बाहर निकल गयी.

समय बीतता गया. अब मेरे और आकांक्षा के बीच काफी कुछ परवान चढ़ने लगा था. हम दोनों में काफी शरारतें होने लगी थीं. किस करना, एक दूसरे को यहां वहां टच करना आम हो गया था.
रातों को दो दो बजे तक हम दोनों के बीच चैट होती थी. कभी कभी सेक्सी बातें भी होतीं और दोनों गर्म हो जाते. उसका तो नहीं पता, पर मुझे बिना मुठ मारे नींद नहीं आती थी.

एक दिन हमने डेट का प्लान बनाया कि अगले संडे मूवी देखने चलते हैं. मैंने जानबूझ कर वो सिनेमा जाना चुना, जहां लोग कम होते थे. मैंने सीट भी कॉर्नर की ली. क्योंकि मैं आज आकांक्षा के साथ कुछ आगे बढ़ना चाहता था.

वक़्त पर हम दोनों सिनेमा हॉल में पहुंच गए, मूवी शुरू हो गयी.

रमैया वस्तावैया मूवी थी. कुछ देर मैं यूं ही मूवी देखता रहा. फिर मैंने धीरे से अपना एक हाथ डरते हुए आकांक्षा की जांघ पर रखा. आकांक्षा ने कोई रिएक्शन नहीं दिया. अब मैं अपने हाथ को थोड़ा थोड़ा हिलाने लगा और आकांक्षा की जांघ को सहलाने लगा.

जब मैंने देखा कि आकांक्षा का कोई रिएक्शन नहीं आ रहा, तो मेरी हिम्मत बढ़ गयी. मैं अब हाथ को उसकी दोनों टांगों के जोड़ के आखिरी तक सहलाने लगा. इस पर जब मेरा हाथ आकांक्षा की चूत के आस पास छूता, तो उसकी सिसकारी निकल जाती. पर उसने मुझे रोका नहीं.

मैं ऐसे ही उसकी चुत के इर्द गिर्द सहलाता रहा. फिर मैंने एकदम से हाथ आकांक्षा की चूत पर रख दिया, तो उसने हड़बड़ाकर मेरी तरफ देखा और मेरा हाथ पकड़ लिया.

मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने किसी गर्म भट्टी पर हाथ रख दिया हो. आकांक्षा मेरा हाथ पकड़े हुए ही फिर से मूवी देखने लगी, लेकिन उसने मेरा हाथ वहां से हटाया नहीं.
मैंने अब अपनी उंगली से उसकी चुत को छेड़ा, तो आकांक्षा ने फिर मेरी तरफ देखा. इस बार मैंने जल्दी से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पागलों की तरह किस करने लगा.

किस के साथ ही साथ मैं उसकी चूत को उंगली से कुरेद रहा था, जो अब तक गीली हो चुकी थी. कुछ देर किस करने के बाद मैंने अपना दूसरे हाथ से आकांक्षा की एक चूची को पकड़ लिया और सहलाने लगा.

अब आकांक्षा की पकड़ मेरे हाथ पर ढीली हो गई थी, जिससे मैं उसकी चूत को और अच्छी तरह से मसलने लगा. आकांक्षा ने अपनी आंखें बंद की हुई थीं और बहुत धीरे धीरे से सिसकारियां ले रही थी- आह हह उईई ईईई ओह … हहह!

इतने में इंटरवल हो गया. हमने जल्दी जल्दी कपड़े सही किए और बाहर आ गए.

आकांक्षा सीधे टॉयलेट चली गयी. तब तक मैं एक नया प्लान बना चुका था. मैंने अपने एक दोस्त को फ़ोन किया और उससे उसके रूम की चाबी मांगी. तो उसने बताया कि वो वहीं रूम के बाहर गमले के नीचे रखी है. इतने में मुझे सामने से आकांक्षा आती हुई दिखाई दी.

मैंने जल्दी से दोस्त को बाई बोला और कॉल काट दी. मैं भी आकांक्षा की तरफ बढ़ गया.

जब मैं आकांक्षा के पास पहुंचा, तो मैंने उससे बोला- कहीं और चलते हैं … आगे मूवी बोरिंग है.

आकांक्षा ने कुछ नहीं कहा, बस सर झुकाए हुए ही हां में गर्दन हिला दी. मैंने जल्दी से पार्किंग से बाइक निकाली आकांक्षा को बिठाया और दोस्त के रूम पर पहुंच गया. बाहर रखे गमले के नीचे से चाबी निकाली और लॉक खोल कर आकांक्षा को अन्दर बुला कर अन्दर से दरवाज़ा बंद कर दिया.

सामने एक तख्त रखा था, आकांक्षा उस पर बैठ गयी थी. वो सिर झुकाए हुए बैठी थी. मैं भी जाकर उसके पास बैठ गया और अपना हाथ आकांक्षा की जांघ पर रख दिया. उसने कुछ नहीं कहा, तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है.

मैंने झट से दूसरा हाथ उसकी चुचियों पर ले गया और उन्हें मसलने लगा. अब आकांक्षा भी गर्म होने लगी थी. मैंने आकांक्षा को धीरे से पीछे बेड पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर आकर उसे किस करने लगा. मेरे हाथ अभी भी आकांक्षा की चुचियों को सहला रहे थे.

अब आकांक्षा भी थोड़ा थोड़ा खुलने लगी थी और वो भी मुझे किस कर रही थी.

मैंने उसकी गर्दन पर किस करना शुरू किया. फिर उसके कान को मुँह में लेकर चूसा. आकांक्षा पूरी मदहोश हो चुकी थी. उसकी आंखें बंद थीं और मुँह से बस ‘उह हहह यह हहह’ की आवाज़ आ रही थी.

कुछ देर बाद मैं खड़ा हुआ और आकांक्षा को उठाकर उसके कपड़े उतारने लगा. पहले तो उसने मना किया, लेकिन फिर मान गयी. मुझे पता था कि जो भी करना है, मुझे ही करना है … क्योंकि आकांक्षा शर्मा रही थी.

पहले मैंने आकांक्षा की कमीज उतारी. उसके अन्दर उसने बेबी पिंक कलर की ब्रा पहनी हुई थी. उसकी 32 साइज की दूध जैसे सफेद चुचियां और ऊपर से पिंक ब्रा … आह मेरी तो नज़र ही नहीं हट रही थी.

मुझे ऐसे घूरते हुए देख कर आकांक्षा ने शर्मा कर दूसरी तरफ मुँह कर लिया. मैंने जल्दी जल्दी अपने सारे कपड़े उतारे और पीछे से जाकर आकांक्षा को बांहों में ले लिया. जैसे ही हमारा नंगा बदन एक दूसरे से टच हुआ, हम दोनों की ही सिसकारी निकल गई- आह हहह हहहह!

मैंने ब्रा के ऊपर से ही अपने दोनों हाथ चूचियों पर रख दिए और सहलाने लगा. उसकी गर्दन पर किस करने लगा. आकांक्षा मदहोशी में बस ‘उम्म आंह..’ कर रही थी.

अब मैंने हाथ नीचे ले जाकर सलवार का नाड़ा भी खोल दिया. नाड़ा खुलते ही सलवार नीचे पैरों में जा गिरी. मैंने जल्दी से उसे पैरों में से निकाला और आकांक्षा को अपनी गोद में उठाकर तख्त पर लिटा दिया. खुद भी उसके ऊपर आ गया.

एक बार फिर से हमारे होंठ एक दूसरे से चिपक गए. अबकी बार आकांक्षा के हाथ मेरे सिर पर थे और मेरे सर को अपनी तरफ खींच रहे थे.

बार बार मेरा लंड चूत से टच होता, तो आकांक्षा के बदन में कंपकंपी सी बढ़ जाती.

अब मैं थोड़ा नीचे की तरफ सरका और अपने होंठ सीधे आकांक्षा के एक निप्पल पर रख दिए. अचानक से आकांक्षा का बदन पूरा अकड़ गया, जैसे कि वो झाड़ रही हो. उसने अपने ऊपर वाले होंठ को अपने दांतों में दबा रखा था ताकि मुँह से आवाज़ न निकले.

अब मैंने अपनी जीभ को निप्पल पर फिराया, तो आकांक्षा ने सिसकारी ली- सी … ईईई … आहहह … आह..ई … आह … ईश्श्श … आह … ई … ई!

मैंने अब पूरे निप्पल को मुँह में ले लिया था और चूसने लगा था. आकांक्षा की सिसकारियां निकली जा रही थीं. फिर भी वो कोशिश कर रही थी कि आवाज़ बाहर न जाए.

अब मैंने एक हाथ आकांक्षा की कच्छी में घुसा कर उसकी चुत पर रख दिया, जिससे आकांक्षा कसमसाने लगी ‘सी … ईईई … आहहह!’

मैं अब कभी उंगली से चुत को सहलाता, तो कभी चूत को पूरी मुट्ठी में भर कर भींच देता. आकांक्षा मेरे नीचे तड़प रही थी. ऊपर चूची की चुसाई और नीचे चूत की रगड़ाई हम दोनों को गर्म किए जा रही थी.

फिर मैंने चूची को छोड़ा और उठकर आकांक्षा की पेंटी को उतारा. कसम से बता नहीं सकता कि कितनी प्यारी चुत थी … बिल्कुल पिंक. ऐसा मन कर रहा था कि अभी किस कर लूं, लेकिन वक़्त बहुत हो गया था, तो मैंने सोचा कि अब फाइनल राउंड हो जाए.

बाकी सबके लिए बाद में बहुत टाइम मिलेगा, सो मैंने आकांक्षा की तरफ देखा और आंखों ही आंखों में उससे इजाज़त मांगी … जो उसने दे दी.

इसके बाद मैंने आकांक्षा की दोनों टांगों को खोला और खुद बीच में बैठ गया. मैं अपने लंड को चुत पर रगड़ने लगा.

आकांक्षा कसमसा रही थी और धीरे धीरे सिसकारियां ले रही थी, जिससे मेरा जोश बढ़ता ही जा रहा था.

‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ह्म्म्म … अमन्न आह अआआह आह.’

फिर मैंने इधर उधर देखा, तो तख्त के सिरहाने मुझे पोंड्स क्रीम दिखी. मैंने वो उठाई और थोड़ी अपने लंड पर लगा ली. थोड़ी क्रीम आकांक्षा की गुलाबी चुत पर मल दी. फिर चुत के मुँह पर लंड रख कर आकांक्षा को किस करने लगा.

किस करते करते मैंने एक जोरदार झटका दे मारा, जिससे मेरे लंड का सुपारा चुत के अन्दर चला गया और इसी के साथ आकांक्षा के मुँह से चीख निकल गई- उईईई मां … आह हहहह … कुणाल रहने दो, बहुत दर्द हो रहा है. मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूं, मैं मर जाऊंगी, प्लीज छोड़ दो … प्लीज छोड़ दो.

लेकिन मैंने उसकी किसी बातों पर ध्यान नहीं दिया और लंड को पूरा चूत के अन्दर डाल दिया.
उसकी सील टूट चुकी थी क्योंकि मेरा लंड चिपचिपाने लगा था.

वो अभी भी लगातार मुझसे छूटने के प्रयास कर रही थी. उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन आंसू उसके गालों पर बह रहे थे.
ये देख कर मैंने थोड़ी देर रुकना ही सही समझा.

मैं अब धक्के नहीं लगा रहा था, पर उसकी गर्दन पर किस कर रहा था. उसके कानों को चुभला रहा था. कभी उसके चूचों को सहलाता, तो कभी मुँह में लेकर चूसने लगता. इसका ये असर हुआ कि आकांक्षा का दर्द कम होने लगा और उसकी चुत भी अन्दर से गीली होने लगी थी.

अब मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किए. वैसे तो उसे अभी भी दर्द हो रहा था … लेकिन मज़ा भी आ रहा था. क्योंकि अब अबकी सिस्कारियां दर्द वाली नहीं … मज़े वाली आ रही थीं. मैंने भी स्पीड बढ़ा दी.

आकांक्षा भी नीचे से कूल्हे हिलाने लगी थी और मस्ती आवाजें निकलाने लगी थी- उन्ह … हाँ कुणाल … बहुत अच्छा लग रहा है … उह हहह आह हहहह … बस ऐसे ही करो.
पूरे कमरे में हमारे मिलन की आवाज़ गूंज रही थी.

तकरीबन 10 मिनट की चुदाई के बाद आकांक्षा एकदम अकड़ने लगी. मैं समझ गया कि आकांक्षा झड़ रही है. मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी. दस बारह धक्के मारने के बाद मैं भी आकांक्षा के अन्दर ही झड़ गया और आकांक्षा के ऊपर ही लेट गया.

हम दोनों की ही सांस फूली हुई थी.

कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद आकांक्षा ने धीरे से मेरे कान में कहा- बाबू अब हटो न … मुझे पेशाब लगी है … मुझे बाथरूम जाना है.

मैंने पहले आकांक्षा को देखा, उसने शर्मा कर अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने उसके माथे पर प्यार किया और एक तरफ को लुढ़क गया.

आकांक्षा ने उठना चाहा, लेकिन दर्द के मारे उससे उठा नहीं गया. उसने मेरी तरफ देखा, तो मैं समझ गया. मैं उठा और उसे गोद में उठाकर टॉयलेट में लेकर गया. वहां उसको टॉयलेट करवाया और वापस लेकर आया.

आकर मैंने देखा कि बेडशीट पर खून लगा है. आकांक्षा ये देख कर घबरा गई- अब क्या होगा … ये तो सारी चादर खून में खराब हो गयी.
मैं- कोई बात नहीं, ये मैं बदल दूंगा. ये वाली बेडशीट में ले जाऊंगा. आखिर ये हमारे प्यार की पहली निशानी है.

इतना सुनते ही आकांक्षा शर्मा गयी और उसने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

कुछ देर हम वहीं रहे … आराम किया. जब आकांक्षा का दर्द कम हुआ, तो हम वहां से बाहर निकले. जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, सामने वाले घर के बाहर एक शादीशुदा महिला बैठी थी, जो हमें ही घूर रही थी.

पहले तो मैंने इग्नोर किया और वापस मुड़कर ताला लगाया. फिर जैसे ही पीछे पलटा वो औरत अभी भी घूर रही थी.

तब तक आकांक्षा बाइक के पास जा चुकी थी, लेकिन दर्द की वजह से उसकी चाल में अभी भी लंगड़ापन दिख रहा था.

मैंने जल्दी से बाइक स्टार्ट की, आकांक्षा को बिठाया और वहां से आ गया.



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मेरी टीचर की चुदाई स्कूल के प्रिन्सिपल सर ने बाथरूम में की थी, जिसे मैंने और मेरे साथ पढ़ने वाली आकांक्षा ने देखा था. उसके काफी बाद आकांक्षा से मेरी इस बात की वजह से दोस्ती हो गई थी. स्कूल से कॉलेज तक के सफ़र के बाद आकांक्षा से मुझे प्यार हो गया और उसने मुझे चूम लिया.

अब आगे---

उसने जाते जाते पलट कर एक बात बोली- जानू सुनो सबकी, पर मानो दिल की!
वो ये कह कर मुस्कुराते हुए बाहर निकल गयी.

समय बीतता गया. अब मेरे और आकांक्षा के बीच काफी कुछ परवान चढ़ने लगा था. हम दोनों में काफी शरारतें होने लगी थीं. किस करना, एक दूसरे को यहां वहां टच करना आम हो गया था.
रातों को दो दो बजे तक हम दोनों के बीच चैट होती थी. कभी कभी सेक्सी बातें भी होतीं और दोनों गर्म हो जाते. उसका तो नहीं पता, पर मुझे बिना मुठ मारे नींद नहीं आती थी.

एक दिन हमने डेट का प्लान बनाया कि अगले संडे मूवी देखने चलते हैं. मैंने जानबूझ कर वो सिनेमा जाना चुना, जहां लोग कम होते थे. मैंने सीट भी कॉर्नर की ली. क्योंकि मैं आज आकांक्षा के साथ कुछ आगे बढ़ना चाहता था.

वक़्त पर हम दोनों सिनेमा हॉल में पहुंच गए, मूवी शुरू हो गयी.

रमैया वस्तावैया मूवी थी. कुछ देर मैं यूं ही मूवी देखता रहा. फिर मैंने धीरे से अपना एक हाथ डरते हुए आकांक्षा की जांघ पर रखा. आकांक्षा ने कोई रिएक्शन नहीं दिया. अब मैं अपने हाथ को थोड़ा थोड़ा हिलाने लगा और आकांक्षा की जांघ को सहलाने लगा.

जब मैंने देखा कि आकांक्षा का कोई रिएक्शन नहीं आ रहा, तो मेरी हिम्मत बढ़ गयी. मैं अब हाथ को उसकी दोनों टांगों के जोड़ के आखिरी तक सहलाने लगा. इस पर जब मेरा हाथ आकांक्षा की चूत के आस पास छूता, तो उसकी सिसकारी निकल जाती. पर उसने मुझे रोका नहीं.

मैं ऐसे ही उसकी चुत के इर्द गिर्द सहलाता रहा. फिर मैंने एकदम से हाथ आकांक्षा की चूत पर रख दिया, तो उसने हड़बड़ाकर मेरी तरफ देखा और मेरा हाथ पकड़ लिया.

मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने किसी गर्म भट्टी पर हाथ रख दिया हो. आकांक्षा मेरा हाथ पकड़े हुए ही फिर से मूवी देखने लगी, लेकिन उसने मेरा हाथ वहां से हटाया नहीं.
मैंने अब अपनी उंगली से उसकी चुत को छेड़ा, तो आकांक्षा ने फिर मेरी तरफ देखा. इस बार मैंने जल्दी से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पागलों की तरह किस करने लगा.

किस के साथ ही साथ मैं उसकी चूत को उंगली से कुरेद रहा था, जो अब तक गीली हो चुकी थी. कुछ देर किस करने के बाद मैंने अपना दूसरे हाथ से आकांक्षा की एक चूची को पकड़ लिया और सहलाने लगा.

अब आकांक्षा की पकड़ मेरे हाथ पर ढीली हो गई थी, जिससे मैं उसकी चूत को और अच्छी तरह से मसलने लगा. आकांक्षा ने अपनी आंखें बंद की हुई थीं और बहुत धीरे धीरे से सिसकारियां ले रही थी- आह हह उईई ईईई ओह … हहह!

इतने में इंटरवल हो गया. हमने जल्दी जल्दी कपड़े सही किए और बाहर आ गए.

आकांक्षा सीधे टॉयलेट चली गयी. तब तक मैं एक नया प्लान बना चुका था. मैंने अपने एक दोस्त को फ़ोन किया और उससे उसके रूम की चाबी मांगी. तो उसने बताया कि वो वहीं रूम के बाहर गमले के नीचे रखी है. इतने में मुझे सामने से आकांक्षा आती हुई दिखाई दी.

मैंने जल्दी से दोस्त को बाई बोला और कॉल काट दी. मैं भी आकांक्षा की तरफ बढ़ गया.

जब मैं आकांक्षा के पास पहुंचा, तो मैंने उससे बोला- कहीं और चलते हैं … आगे मूवी बोरिंग है.

आकांक्षा ने कुछ नहीं कहा, बस सर झुकाए हुए ही हां में गर्दन हिला दी. मैंने जल्दी से पार्किंग से बाइक निकाली आकांक्षा को बिठाया और दोस्त के रूम पर पहुंच गया. बाहर रखे गमले के नीचे से चाबी निकाली और लॉक खोल कर आकांक्षा को अन्दर बुला कर अन्दर से दरवाज़ा बंद कर दिया.

सामने एक तख्त रखा था, आकांक्षा उस पर बैठ गयी थी. वो सिर झुकाए हुए बैठी थी. मैं भी जाकर उसके पास बैठ गया और अपना हाथ आकांक्षा की जांघ पर रख दिया. उसने कुछ नहीं कहा, तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है.

मैंने झट से दूसरा हाथ उसकी चुचियों पर ले गया और उन्हें मसलने लगा. अब आकांक्षा भी गर्म होने लगी थी. मैंने आकांक्षा को धीरे से पीछे बेड पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर आकर उसे किस करने लगा. मेरे हाथ अभी भी आकांक्षा की चुचियों को सहला रहे थे.

अब आकांक्षा भी थोड़ा थोड़ा खुलने लगी थी और वो भी मुझे किस कर रही थी.

मैंने उसकी गर्दन पर किस करना शुरू किया. फिर उसके कान को मुँह में लेकर चूसा. आकांक्षा पूरी मदहोश हो चुकी थी. उसकी आंखें बंद थीं और मुँह से बस ‘उह हहह यह हहह’ की आवाज़ आ रही थी.

कुछ देर बाद मैं खड़ा हुआ और आकांक्षा को उठाकर उसके कपड़े उतारने लगा. पहले तो उसने मना किया, लेकिन फिर मान गयी. मुझे पता था कि जो भी करना है, मुझे ही करना है … क्योंकि आकांक्षा शर्मा रही थी.

पहले मैंने आकांक्षा की कमीज उतारी. उसके अन्दर उसने बेबी पिंक कलर की ब्रा पहनी हुई थी. उसकी 32 साइज की दूध जैसे सफेद चुचियां और ऊपर से पिंक ब्रा … आह मेरी तो नज़र ही नहीं हट रही थी.

मुझे ऐसे घूरते हुए देख कर आकांक्षा ने शर्मा कर दूसरी तरफ मुँह कर लिया. मैंने जल्दी जल्दी अपने सारे कपड़े उतारे और पीछे से जाकर आकांक्षा को बांहों में ले लिया. जैसे ही हमारा नंगा बदन एक दूसरे से टच हुआ, हम दोनों की ही सिसकारी निकल गई- आह हहह हहहह!

मैंने ब्रा के ऊपर से ही अपने दोनों हाथ चूचियों पर रख दिए और सहलाने लगा. उसकी गर्दन पर किस करने लगा. आकांक्षा मदहोशी में बस ‘उम्म आंह..’ कर रही थी.

अब मैंने हाथ नीचे ले जाकर सलवार का नाड़ा भी खोल दिया. नाड़ा खुलते ही सलवार नीचे पैरों में जा गिरी. मैंने जल्दी से उसे पैरों में से निकाला और आकांक्षा को अपनी गोद में उठाकर तख्त पर लिटा दिया. खुद भी उसके ऊपर आ गया.

एक बार फिर से हमारे होंठ एक दूसरे से चिपक गए. अबकी बार आकांक्षा के हाथ मेरे सिर पर थे और मेरे सर को अपनी तरफ खींच रहे थे.

बार बार मेरा लंड चूत से टच होता, तो आकांक्षा के बदन में कंपकंपी सी बढ़ जाती.

अब मैं थोड़ा नीचे की तरफ सरका और अपने होंठ सीधे आकांक्षा के एक निप्पल पर रख दिए. अचानक से आकांक्षा का बदन पूरा अकड़ गया, जैसे कि वो झाड़ रही हो. उसने अपने ऊपर वाले होंठ को अपने दांतों में दबा रखा था ताकि मुँह से आवाज़ न निकले.

अब मैंने अपनी जीभ को निप्पल पर फिराया, तो आकांक्षा ने सिसकारी ली- सी … ईईई … आहहह … आह..ई … आह … ईश्श्श … आह … ई … ई!

मैंने अब पूरे निप्पल को मुँह में ले लिया था और चूसने लगा था. आकांक्षा की सिसकारियां निकली जा रही थीं. फिर भी वो कोशिश कर रही थी कि आवाज़ बाहर न जाए.

अब मैंने एक हाथ आकांक्षा की कच्छी में घुसा कर उसकी चुत पर रख दिया, जिससे आकांक्षा कसमसाने लगी ‘सी … ईईई … आहहह!’

मैं अब कभी उंगली से चुत को सहलाता, तो कभी चूत को पूरी मुट्ठी में भर कर भींच देता. आकांक्षा मेरे नीचे तड़प रही थी. ऊपर चूची की चुसाई और नीचे चूत की रगड़ाई हम दोनों को गर्म किए जा रही थी.

फिर मैंने चूची को छोड़ा और उठकर आकांक्षा की पेंटी को उतारा. कसम से बता नहीं सकता कि कितनी प्यारी चुत थी … बिल्कुल पिंक. ऐसा मन कर रहा था कि अभी किस कर लूं, लेकिन वक़्त बहुत हो गया था, तो मैंने सोचा कि अब फाइनल राउंड हो जाए.

बाकी सबके लिए बाद में बहुत टाइम मिलेगा, सो मैंने आकांक्षा की तरफ देखा और आंखों ही आंखों में उससे इजाज़त मांगी … जो उसने दे दी.

इसके बाद मैंने आकांक्षा की दोनों टांगों को खोला और खुद बीच में बैठ गया. मैं अपने लंड को चुत पर रगड़ने लगा.

आकांक्षा कसमसा रही थी और धीरे धीरे सिसकारियां ले रही थी, जिससे मेरा जोश बढ़ता ही जा रहा था.

‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ह्म्म्म … अमन्न आह अआआह आह.’

फिर मैंने इधर उधर देखा, तो तख्त के सिरहाने मुझे पोंड्स क्रीम दिखी. मैंने वो उठाई और थोड़ी अपने लंड पर लगा ली. थोड़ी क्रीम आकांक्षा की गुलाबी चुत पर मल दी. फिर चुत के मुँह पर लंड रख कर आकांक्षा को किस करने लगा.

किस करते करते मैंने एक जोरदार झटका दे मारा, जिससे मेरे लंड का सुपारा चुत के अन्दर चला गया और इसी के साथ आकांक्षा के मुँह से चीख निकल गई- उईईई मां … आह हहहह … कुणाल रहने दो, बहुत दर्द हो रहा है. मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूं, मैं मर जाऊंगी, प्लीज छोड़ दो … प्लीज छोड़ दो.

लेकिन मैंने उसकी किसी बातों पर ध्यान नहीं दिया और लंड को पूरा चूत के अन्दर डाल दिया.
उसकी सील टूट चुकी थी क्योंकि मेरा लंड चिपचिपाने लगा था.

वो अभी भी लगातार मुझसे छूटने के प्रयास कर रही थी. उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन आंसू उसके गालों पर बह रहे थे.
ये देख कर मैंने थोड़ी देर रुकना ही सही समझा.

मैं अब धक्के नहीं लगा रहा था, पर उसकी गर्दन पर किस कर रहा था. उसके कानों को चुभला रहा था. कभी उसके चूचों को सहलाता, तो कभी मुँह में लेकर चूसने लगता. इसका ये असर हुआ कि आकांक्षा का दर्द कम होने लगा और उसकी चुत भी अन्दर से गीली होने लगी थी.

अब मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किए. वैसे तो उसे अभी भी दर्द हो रहा था … लेकिन मज़ा भी आ रहा था. क्योंकि अब अबकी सिस्कारियां दर्द वाली नहीं … मज़े वाली आ रही थीं. मैंने भी स्पीड बढ़ा दी.

आकांक्षा भी नीचे से कूल्हे हिलाने लगी थी और मस्ती आवाजें निकलाने लगी थी- उन्ह … हाँ कुणाल … बहुत अच्छा लग रहा है … उह हहह आह हहहह … बस ऐसे ही करो.
पूरे कमरे में हमारे मिलन की आवाज़ गूंज रही थी.

तकरीबन 10 मिनट की चुदाई के बाद आकांक्षा एकदम अकड़ने लगी. मैं समझ गया कि आकांक्षा झड़ रही है. मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी. दस बारह धक्के मारने के बाद मैं भी आकांक्षा के अन्दर ही झड़ गया और आकांक्षा के ऊपर ही लेट गया.

हम दोनों की ही सांस फूली हुई थी.

कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद आकांक्षा ने धीरे से मेरे कान में कहा- बाबू अब हटो न … मुझे पेशाब लगी है … मुझे बाथरूम जाना है.

मैंने पहले आकांक्षा को देखा, उसने शर्मा कर अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने उसके माथे पर प्यार किया और एक तरफ को लुढ़क गया.

आकांक्षा ने उठना चाहा, लेकिन दर्द के मारे उससे उठा नहीं गया. उसने मेरी तरफ देखा, तो मैं समझ गया. मैं उठा और उसे गोद में उठाकर टॉयलेट में लेकर गया. वहां उसको टॉयलेट करवाया और वापस लेकर आया.

आकर मैंने देखा कि बेडशीट पर खून लगा है. आकांक्षा ये देख कर घबरा गई- अब क्या होगा … ये तो सारी चादर खून में खराब हो गयी.
मैं- कोई बात नहीं, ये मैं बदल दूंगा. ये वाली बेडशीट में ले जाऊंगा. आखिर ये हमारे प्यार की पहली निशानी है.

इतना सुनते ही आकांक्षा शर्मा गयी और उसने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

कुछ देर हम वहीं रहे … आराम किया. जब आकांक्षा का दर्द कम हुआ, तो हम वहां से बाहर निकले. जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, सामने वाले घर के बाहर एक शादीशुदा महिला बैठी थी, जो हमें ही घूर रही थी.

पहले तो मैंने इग्नोर किया और वापस मुड़कर ताला लगाया. फिर जैसे ही पीछे पलटा वो औरत अभी भी घूर रही थी.

तब तक आकांक्षा बाइक के पास जा चुकी थी, लेकिन दर्द की वजह से उसकी चाल में अभी भी लंगड़ापन दिख रहा था.

मैंने जल्दी से बाइक स्टार्ट की, आकांक्षा को बिठाया और वहां से आ गया.



धन्यवाद
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