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EroticaMERI JINDAGI KA SAFAR --- BY KUNAL (SHORT STORY) [completed]
मैं सुमन भाभी का देवर बन कर उनकी सहेली की शादी में मेरठ जा रहा था. बस में ही मैंने उनकी चूचियों से खेलना शुरू कर दिया था.
अब आगे---
अब सुमन भाभी मादक सिसकारियां लेने लगीं. मैंने उनके ब्लाउज का हुक खोल दिया.
वो कहने लगीं- रहने दो यार, कोई देख लेगा.
मैंने उनसे कहा- कोई नहीं देखेगा, बस आप चुप रहो.
अब भाभी भी चुप होकर मजे लेने लगीं. मैंने एक-एक करके उनके सारे हुक खोल दिए. भाभी का ब्लाउज पूरा खुल चुका था और मैं उनकी चूचियों को दबाने में जुटा था. भाभी की चूचियों की बात ही कुछ अलग थी … उन्हें जितना भी दबाओ … मन ही नहीं भर रहा था.
कुछ देर बाद भाभी और गर्म हो गईं. उन्होंने अपना बायां हाथ अपने पल्लू के अन्दर डाल कर मेरे हाथ को पकड़ लिया और अपनी चूची को कस-कस कर दबाने लगीं.
गर्म सिसकारियां लेते हुए भाभी ने अपना एक हाथ मेरे लौड़े पर रख दिया और उसे दबाने लगीं.
मैंने फिर से अपना एक हाथ भाभी की चुत पर रख दिया और उसको सहलाने लगा. दूसरी तरफ भाभी ने भी मेरा लंड पैंट से बाहर निकाल लिया था और बहुत तेज़ी से हिला रही थीं. अचानक भाभी की सांसें फूलने लगीं और उन्होंने मेरे लंड को ज़ोर से मुट्ठी में पकड़ लिया, जिससे मुझे दर्द हुआ.
तभी भाभी झड़ने लगीं. इधर मैं भी बस झड़ने ही वाला था, तो मैंने भाभी के हाथ को पकड़ के लंड को ऊपर नीचे करने लगा और मैं भी झड़ गया. मेरा सारा वीर्य भाभी के हाथ पर निकल गया, जिसे भाभी ने चाट लिया.
हमें ये सब करते हुए डेढ़ घंटे से ज़्यादा हो गया था. भाभी ने जल्दी से अपनी साड़ी और ब्लाउज ठीक किया और आंखें बंद करके लेट गईं. मैंने भी अपने कपड़े ठीक किए और सो गया. करीब एक घंटे बाद हम मेरठ पहुंच गए थे.
वहां से हमने टैक्सी ली और भाभी की सहेली के घर पहुंच गए. उस समय रात के एक बज रहे थे, जब हम वहां पहुंचे. सब रज़ाइयों में लेटे हुए सो रहे थे, सिर्फ भाभी की सहेली ही जाग रही थी. उनका नाम खुशी था.
भाभी ने वहां मेरा परिचय अपने देवर के रूप में कराया. कुछ देर भाभी ने अपनी सहेली से बातें की और हम दोनों सोने की तैयारी करने लगे.
मुझे सोने के लिए बाहर आंगन में एक चारपाई दे दी गयी थी. मैं उस पर आकर लेट गया, लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. मैं मोबाइल में फेसबुक चलाने लगा.
थोड़ी देर में भाभी का मैसेज आया- कुणाल नींद आ रही है क्या?
मैं- नहीं भाभी, आपकी याद आ रही है.
भाभी- एक काम करो, कुछ देर रुको. मैं तुम्हें मैसेज करती हूं तब तक सोना नहीं.
मैं- ओके जानू.
मैं भाभी के मैसेज का इन्तजार करने लगा. मैंने अपना फोन साईलेंट मोड में डाल दिया … ताकि किसी को पता ना चले.
रात को 2:30 बजे, जब सभी गहरी नींद में सो गए और मुझे भी नींद आने ही लगी थी कि तभी मेरे फोन पर भाभी का मैसेज आया कि छत पर मिलो.
सर्दी के दिन थे. रात में छत पर कोई नहीं जाता था. मैंने तेज खांसकर चैक किया कि सब सो गए हैं कि नहीं, सब गहरी नींद में थे.
मैं चुपचाप उठा और चारों तरफ देखा, कहीं कोई नहीं था. जब मैं छत पर पहुंचा तो भाभी वहां पहले से ही खड़ी थीं.
भाभी- खुशी अभी सोई है, सुबह होने वाली है प्लीज कुणाल … जो भी करना है … जल्दी करो.
मैं- पर भाभी, यहां पर कैसे?
भाभी- ये देखो, मैं अपना गद्दा लेकर आई हूं. अब ज़्यादा बातें मत करो.
मैं- भाभी आप तो बहुत तेज हो.
भाभी चुदासी सी बोल पड़ीं- जब नीचे आग लगी होती है, तो तेज तो होना ही पड़ता है. अब जल्दी से वो कोने में ही गद्दा बिछाओ और जो दो टीन की चादरें रखी हैं. उनको दीवार के सहारे लगाओ.
मैंने फटाफट बिल्कुल कोने में जीने से दूर गद्दा बिछाया और उसे दीवार के सहारे टीन की चादरें लगाकर ऊपर से ढंक दिया. छत पर पहले से ही बहुत अंधेरा था. फिर भी कोई आ गया, तो चादरों के नीचे कोई है, ये किसी को दिखाई नहीं देगा.
मैं भाभी के दिमाग को मान गया. भाभी रात में कोई झंझट ना हो, इसलिए वो साड़ी पहनकर आई थीं. मैंने भाभी को लेटने को कहा और खुद उनकी बगल में लेट गया और धीरे-धीरे उनके मम्मे दबाने लगा.
भाभी तो पहले से ही बहुत गर्म और चुदासी थीं. वो सीधे मेरे से चिपट गईं और मेरा लौड़ा पकड़ते हुए बोली- प्लीज कुणाल, जो भी करना है जल्दी करो. मैं बहुत दिनों से तड़प रही हूँ. जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो.
मैंने कहा- जरूर भाभी, पहले थोड़ा मजे तो ले लो.
उन्होंने मुझे पूरे कपड़े नहीं उतारने दिए, कहा- मजे फिर कभी ले लेना. आज जो भी मेन काम करना है, उसे फटाफट करो. मैं अब ये आग नहीं सह सकती.
फिर भी मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोल दिए और ब्रा को ऊपर उठाकर उनके निप्पल चूसने लगा. दूसरे हाथ से उनके पेटीकोट को ऊपर करके पैन्टी उतार दी और उनकी चूत सहलाने लगा.
वहां तो पहले से ही रस का दरिया बह रहा था. मैंने उन्हीं की पैन्टी से चूत साफ की और जीभ से चूत चाटने लगा. उन्हें मजा आने लगा.
फिर हम 69 अवस्था में आ गए और वो भी मेरा लंड चूसने लगीं. जब उन्हें मजा आने लगा, तो वो तेज-तेज मुँह चलाने लगीं.
मैंने मना किया- ऐसे तो मेरा माल गिर जाएगा.
तब उन्होंने मुझे अपने ऊपर से हटा लिया और किसी रांड की तरह टांगें चौड़ी करते हुए बोलीं- कुणाल अब मत सताओ, आ जाओ. मेरी चूत का काम तमाम कर दो.
मैं भी देर ना करते हुए उनकी टांगों के बीच में आ गया और अपना लंड उनकी चूत में लगाने लगा. मेरा लौड़ा बार-बार चूत के छेद से फिसल रहा था.
उन्होंने लंड हाथ से पकड़कर चूत के मुहाने पर रखा और कहा- अब धक्का लगाओ.
मैंने एक जोर का धक्का लगाया, तो उनके मुँह से एक चीख निकल गई. मैंने तुरंत अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए मैं थोड़ी देर वैसे ही पड़ा रहा और उनकी चूचियां मसलने लगा.
थोड़ी देर बाद मैंने होंठ हटाए और पूछा- चिल्लाई क्यों?
भाभी बोली- तुम्हारे भैया ने मुझे अपने काम के चक्कर में तीन महीनों से नहीं चोदा है और तुम्हारा उनसे लम्बा और मोटा है. इसलिए एक बच्चे की मां होने पर भी तुमने मेरी चीख निकाल दी.
मैं- बोलो, अब क्या करना है?
भाभी- अब धीरे-धीरे धक्के लगाओ.
मैं भाभी की चुत में लंड आगे पीछे करने लगा. भाभी का दर्द खत्म होने लगा.
थोड़ी देर में मुझे भी और भाभी को भी मजा आने लगा. मैंने स्पीड बढ़ा दी.
भाभी- आह्ह … आह … आह… और जोर से कुणाल आह्ह … और जोर से ओह्ह … मैं कब से तड़फ रही थी कुणाल … आज मेरी सारी प्यास बुझा दो कुणाल … आह बहुत मजा आ रहा है … कुणाल, आज मेरी चुत फाड़ दो. ओह … बहुत सताया है इसने मुझे … आज इसकी सारी गर्मी निकाल दो कुणाल … आह चोदो … और जोर से आह्ह … आहह.
उनके चूतड़ों का उछल-उछलकर लंड को निगलना देखते ही बन रहा था.
मैं- मेरा भी वही हाल था भाभी. जब से तुम्हें देखा है, रोज तुम्हारे नाम की मुठ मारता था.
भाभी- अब कभी मत मारना. जब भी मन करे, मुझे बता देना. पर अभी और जोर से कुणाल … आह रगड़ दो मुझे … आहह.
छत पर हमारी तेज-तेज आवाजें गूंजने लगीं. पर सर्दी की रात होने के कारण डर नहीं था और हम दोनों एकदूसरे को रौंदने में लगे थे. मैं पूरी ताकत से धक्के लगा रहा था और भाभी नीचे से गांड उठा-उठाकर मेरा पूरा साथ दे रही थीं.
थोड़ी देर बाद भाभी अकड़ते हुए बोलीं- मेरा होने वाला है. तुम जरा जल्दी करो.
कुछ धक्कों के बाद मैंने भी कहा- मेरा भी निकलने वाला है.
भाभी बोलीं- अन्दर मत गिराना. मेरे मुँह में गिराओ. मैं तुम्हारी जवानी का रस पीना चाहती हूँ.
मैंने फटाफट अपना हथियार निकालकर उनके मुँह में डाल दिया. लौड़े से दो-चार धक्के उनके मुँह में मारने के बाद लंड ने पिचकारी छोड़ दी. भाभी ने मेरा सारा रस निचोड़ लिया और लंड को चाटकर अच्छे से साफ भी कर दिया.
हम दोनों बहुत थक गए थे.
थोड़ी देर सुस्ताने के बाद भाभी बोलीं- कुणाल, तुमने मुझे आज बहुत मजा दिया. इसके लिए मैं कब से तड़प रही थी. मेरे पति जब भी आते हैं थक-हारकर सो जाते हैं और मेरी तरफ देखते भी नहीं. मेरी 18 साल में शादी हो गई थी और जल्दी ही एक बच्चा भी हो गया. पर अभी तो मैं पूरी जवानी में आई हूँ. उन्हें मेरी कोई फिक्र ही नहीं है. कुणाल तुम इसी तरह मेरा साथ देते रहना.
मैं- ठीक है भाभी, चलो एक राउण्ड और हो जाए. अभी मन नहीं भरा.
भाभी- अरे नहीं, अभी और नहीं. अब तो मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ. अभी तो खेल शुरू हुआ है. सब्र रखो, सब्र का फल मीठा होता है.
मैंने हंसते हुए कहा- हां … वो तो मैंने चख कर देख लिया … बहुत मीठा रस था … हाहाहा.
भाभी- चलो अब जल्दी नीचे चलो. कहीं कोई जाग ना जाए. नहीं तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी. बाकी कल देखेंगे.
मैं- अच्छा चलो एक चुम्मा तो दे दो.
भाभी ने जल्दी से होंठों पर एक चुम्मा दिया. मैंने तुरंत उनके मम्में दबा दिए. भाभी ने एक प्यारी सी ‘आह …’ निकाली और नीचे भाग गईं.
थोड़ी देर बाद मैं भी नीचे आ गया.
सुबह मेरी आंख भाभी के उठाने की वजह से खुली.
भाभी घबराई हुई थीं.
मैंने जब वजह पूछी, तो भाभी ने बताया कि उनके हस्बैंड का एक्सीडेंट हो गया है और वो हॉस्पिटल में एडमिट हैं. हमें अभी फ़ौरन ही जाना पड़ेगा.
मैं जल्दी से उठा और कपड़े-वपड़े पैक किए और हम बिना शादी अटेंड किए ही वहां से वापस आ गए. आते ही सीधे हॉस्पिटल पहुंचे, तो वहां पर भाभी के पति के साथ एक औरत थी. जिसको भाभी दीदी बुला रही थीं.
भाभी के पति आईसीयू में थे, एक्सीडेंट ज़्यादा बड़ा हुआ था. उनके साथ में एक टूरिस्ट भी घायल हुआ था, लेकिन उसकी हालत ज़्यादा खराब नहीं थी. भाभी रोये जा रही थीं. मुझे भी बुरा लग रहा था.
खैर … कभी मैं, तो कभी वो दीदी जिनका नाम रुक्मणी था, वो भाभी को चुप कराए जा रही थीं. रुक्मणी जी देखने में सुमन भाभी से किसी भी हालत में कम मस्त नहीं लग रही थीं. मगर अभी हालत कुछ इस तरह के थे कि कुछ दिमाग लगाया ही नहीं जा सकता था.
थोड़ी देर बाद डॉक्टर जब अपने डेली चैकअप के लिए आया, तो मैंने डॉक्टर से पूछा.
डॉक्टर ने बोला कि घबराने की कोई बात नहीं है, बस अभी एक हफ्ता इन्हें हॉस्पिटल ही रहना पड़ेगा. उसके बाद एक महीना आराम करना होगा … क्योंकि इनकी एक टांग फ्रेक्चर हो गयी है, तो उसे रिकवर होने में समय लगेगा.
रात को मैंने भाभी को बोला- मैं जा रहा हूँ.
तो भाभी ने पूछा- कहां जा रहे हो?
मैंने बोला- मैं अपने घर जा रहा हूँ. सुबह ही आ जाऊंगा, ये हॉस्पिटल वाले भी बोल रहे हैं कि मरीज के साथ सिर्फ कोई एक ही रुक सकता है. अगर आपको घर जाना हो, तो मैं आपको छोड़ दूंगा.
इस पर भाभी ने बोला- नहीं मैं यही रुकूंगी. आप रुक्मणी दीदी को ले जाओ और रात को घर पर ही रुक जाना. कहीं दीदी को अकेले डर न लगे.
मैंने बोला- ठीक है.
फिर भाभी ने अपनी दीदी से बात की, तो वो मेरे साथ जाने को राजी हो गईं. मैं उन्हें ऑटो से लेकर घर पहुंचा. दीदी के साथ भाभी का बेबी भी था, जो कि अब तक सो चुका था. मैंने घर का दरवाजा खोला और दीदी को अन्दर भेजकर उनसे कहा कि मैं होटल से खाना लेकर आता हूं, तब तक आप फ्रेश हो जाएं.
मैं पास के एक होटल पर गया. वहां से खाना पैक कराया और वापस घर आ गया.
तब तक भाभी की दीदी नहा कर फ्रेश हो चुकी थीं.
मैंने उनको खाना दिया और खुद मुँह हाथ धोने बाथरूम में घुस गया. फिर हमने साथ बैठकर खाना खाया और वहीं सोफे पर बैठ गए.
अचानक भाभी की दीदी ने मुझे देखा और सवाल किया कि आप कौन हैं और सुमन के साथ कैसे आए आप! वो तो शादी में गयी हुई थी, फिर आप दोनों एक साथ कैसे आए.
ये सब पूछ कर वो मुझे घूरने लगीं.
मैं उनके इस तरह से सवाल करने पर हड़बड़ा गया. फिर खुद को संभालते हुए बोला- मैं खुशी का कजिन हूँ. जब पता चला कि जीजाजी का एक्सीडेंट हो गया है, तो खुशी ने मुझे भाभी के साथ भेज दिया.
मुझे अचानक ओर कुछ नहीं सूझा, तो मैंने उनसे यही झूठ बोल दिया.
फिर वो वहां से उठ कर चली गईं और मैं वहीं बैठा रहा. थोड़ी देर बाद मैं उठा और किचन में चला गया. वहां पर 2 कप चाय बनाई और उनके पास चल दिया. वो भाभी के कमरे में लेटी हुई थीं.
मैंने बाहर से दरवाज़ा खटखटाया, तो उन्होंने आंख खोल कर मुझे देखा और उठ कर बैठ गईं.
मैं- भाभी अन्दर आ जाऊं?
रुक्मणी- क्यों रे … तुझे मैं भाभी नजर आ रही हूँ?
मैं- भाभी को भाभी ना कहूँ, तो क्या कहूँ?
रुक्मणी- मेरी उम्र का तो ख्याल कर जरा?
मैं- क्यों 30 साल की ही तो लग रही हो.
मैंने झूठ बोला.
रुक्मणी- अच्छा, झूठ मत बोल.
मैं- नहीं भाभी, झूठ नहीं बोल रहा हूँ. आप तो इस उम्र में भी हर मामले में जवान लड़कियों को फेल कर दोगी.
इस बार वो भी हंसने लगीं.
मैं सुमन भाभी का देवर बन कर उनकी सहेली की शादी में मेरठ जा रहा था. बस में ही मैंने उनकी चूचियों से खेलना शुरू कर दिया था.
अब आगे---
अब सुमन भाभी मादक सिसकारियां लेने लगीं. मैंने उनके ब्लाउज का हुक खोल दिया.
वो कहने लगीं- रहने दो यार, कोई देख लेगा.
मैंने उनसे कहा- कोई नहीं देखेगा, बस आप चुप रहो.
अब भाभी भी चुप होकर मजे लेने लगीं. मैंने एक-एक करके उनके सारे हुक खोल दिए. भाभी का ब्लाउज पूरा खुल चुका था और मैं उनकी चूचियों को दबाने में जुटा था. भाभी की चूचियों की बात ही कुछ अलग थी … उन्हें जितना भी दबाओ … मन ही नहीं भर रहा था.
कुछ देर बाद भाभी और गर्म हो गईं. उन्होंने अपना बायां हाथ अपने पल्लू के अन्दर डाल कर मेरे हाथ को पकड़ लिया और अपनी चूची को कस-कस कर दबाने लगीं.
गर्म सिसकारियां लेते हुए भाभी ने अपना एक हाथ मेरे लौड़े पर रख दिया और उसे दबाने लगीं.
मैंने फिर से अपना एक हाथ भाभी की चुत पर रख दिया और उसको सहलाने लगा. दूसरी तरफ भाभी ने भी मेरा लंड पैंट से बाहर निकाल लिया था और बहुत तेज़ी से हिला रही थीं. अचानक भाभी की सांसें फूलने लगीं और उन्होंने मेरे लंड को ज़ोर से मुट्ठी में पकड़ लिया, जिससे मुझे दर्द हुआ.
तभी भाभी झड़ने लगीं. इधर मैं भी बस झड़ने ही वाला था, तो मैंने भाभी के हाथ को पकड़ के लंड को ऊपर नीचे करने लगा और मैं भी झड़ गया. मेरा सारा वीर्य भाभी के हाथ पर निकल गया, जिसे भाभी ने चाट लिया.
हमें ये सब करते हुए डेढ़ घंटे से ज़्यादा हो गया था. भाभी ने जल्दी से अपनी साड़ी और ब्लाउज ठीक किया और आंखें बंद करके लेट गईं. मैंने भी अपने कपड़े ठीक किए और सो गया. करीब एक घंटे बाद हम मेरठ पहुंच गए थे.
वहां से हमने टैक्सी ली और भाभी की सहेली के घर पहुंच गए. उस समय रात के एक बज रहे थे, जब हम वहां पहुंचे. सब रज़ाइयों में लेटे हुए सो रहे थे, सिर्फ भाभी की सहेली ही जाग रही थी. उनका नाम खुशी था.
भाभी ने वहां मेरा परिचय अपने देवर के रूप में कराया. कुछ देर भाभी ने अपनी सहेली से बातें की और हम दोनों सोने की तैयारी करने लगे.
मुझे सोने के लिए बाहर आंगन में एक चारपाई दे दी गयी थी. मैं उस पर आकर लेट गया, लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. मैं मोबाइल में फेसबुक चलाने लगा.
थोड़ी देर में भाभी का मैसेज आया- कुणाल नींद आ रही है क्या?
मैं- नहीं भाभी, आपकी याद आ रही है.
भाभी- एक काम करो, कुछ देर रुको. मैं तुम्हें मैसेज करती हूं तब तक सोना नहीं.
मैं- ओके जानू.
मैं भाभी के मैसेज का इन्तजार करने लगा. मैंने अपना फोन साईलेंट मोड में डाल दिया … ताकि किसी को पता ना चले.
रात को 2:30 बजे, जब सभी गहरी नींद में सो गए और मुझे भी नींद आने ही लगी थी कि तभी मेरे फोन पर भाभी का मैसेज आया कि छत पर मिलो.
सर्दी के दिन थे. रात में छत पर कोई नहीं जाता था. मैंने तेज खांसकर चैक किया कि सब सो गए हैं कि नहीं, सब गहरी नींद में थे.
मैं चुपचाप उठा और चारों तरफ देखा, कहीं कोई नहीं था. जब मैं छत पर पहुंचा तो भाभी वहां पहले से ही खड़ी थीं.
भाभी- खुशी अभी सोई है, सुबह होने वाली है प्लीज कुणाल … जो भी करना है … जल्दी करो.
मैं- पर भाभी, यहां पर कैसे?
भाभी- ये देखो, मैं अपना गद्दा लेकर आई हूं. अब ज़्यादा बातें मत करो.
मैं- भाभी आप तो बहुत तेज हो.
भाभी चुदासी सी बोल पड़ीं- जब नीचे आग लगी होती है, तो तेज तो होना ही पड़ता है. अब जल्दी से वो कोने में ही गद्दा बिछाओ और जो दो टीन की चादरें रखी हैं. उनको दीवार के सहारे लगाओ.
मैंने फटाफट बिल्कुल कोने में जीने से दूर गद्दा बिछाया और उसे दीवार के सहारे टीन की चादरें लगाकर ऊपर से ढंक दिया. छत पर पहले से ही बहुत अंधेरा था. फिर भी कोई आ गया, तो चादरों के नीचे कोई है, ये किसी को दिखाई नहीं देगा.
मैं भाभी के दिमाग को मान गया. भाभी रात में कोई झंझट ना हो, इसलिए वो साड़ी पहनकर आई थीं. मैंने भाभी को लेटने को कहा और खुद उनकी बगल में लेट गया और धीरे-धीरे उनके मम्मे दबाने लगा.
भाभी तो पहले से ही बहुत गर्म और चुदासी थीं. वो सीधे मेरे से चिपट गईं और मेरा लौड़ा पकड़ते हुए बोली- प्लीज कुणाल, जो भी करना है जल्दी करो. मैं बहुत दिनों से तड़प रही हूँ. जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो.
मैंने कहा- जरूर भाभी, पहले थोड़ा मजे तो ले लो.
उन्होंने मुझे पूरे कपड़े नहीं उतारने दिए, कहा- मजे फिर कभी ले लेना. आज जो भी मेन काम करना है, उसे फटाफट करो. मैं अब ये आग नहीं सह सकती.
फिर भी मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोल दिए और ब्रा को ऊपर उठाकर उनके निप्पल चूसने लगा. दूसरे हाथ से उनके पेटीकोट को ऊपर करके पैन्टी उतार दी और उनकी चूत सहलाने लगा.
वहां तो पहले से ही रस का दरिया बह रहा था. मैंने उन्हीं की पैन्टी से चूत साफ की और जीभ से चूत चाटने लगा. उन्हें मजा आने लगा.
फिर हम 69 अवस्था में आ गए और वो भी मेरा लंड चूसने लगीं. जब उन्हें मजा आने लगा, तो वो तेज-तेज मुँह चलाने लगीं.
मैंने मना किया- ऐसे तो मेरा माल गिर जाएगा.
तब उन्होंने मुझे अपने ऊपर से हटा लिया और किसी रांड की तरह टांगें चौड़ी करते हुए बोलीं- कुणाल अब मत सताओ, आ जाओ. मेरी चूत का काम तमाम कर दो.
मैं भी देर ना करते हुए उनकी टांगों के बीच में आ गया और अपना लंड उनकी चूत में लगाने लगा. मेरा लौड़ा बार-बार चूत के छेद से फिसल रहा था.
उन्होंने लंड हाथ से पकड़कर चूत के मुहाने पर रखा और कहा- अब धक्का लगाओ.
मैंने एक जोर का धक्का लगाया, तो उनके मुँह से एक चीख निकल गई. मैंने तुरंत अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए मैं थोड़ी देर वैसे ही पड़ा रहा और उनकी चूचियां मसलने लगा.
थोड़ी देर बाद मैंने होंठ हटाए और पूछा- चिल्लाई क्यों?
भाभी बोली- तुम्हारे भैया ने मुझे अपने काम के चक्कर में तीन महीनों से नहीं चोदा है और तुम्हारा उनसे लम्बा और मोटा है. इसलिए एक बच्चे की मां होने पर भी तुमने मेरी चीख निकाल दी.
मैं- बोलो, अब क्या करना है?
भाभी- अब धीरे-धीरे धक्के लगाओ.
मैं भाभी की चुत में लंड आगे पीछे करने लगा. भाभी का दर्द खत्म होने लगा.
थोड़ी देर में मुझे भी और भाभी को भी मजा आने लगा. मैंने स्पीड बढ़ा दी.
भाभी- आह्ह … आह … आह… और जोर से कुणाल आह्ह … और जोर से ओह्ह … मैं कब से तड़फ रही थी कुणाल … आज मेरी सारी प्यास बुझा दो कुणाल … आह बहुत मजा आ रहा है … कुणाल, आज मेरी चुत फाड़ दो. ओह … बहुत सताया है इसने मुझे … आज इसकी सारी गर्मी निकाल दो कुणाल … आह चोदो … और जोर से आह्ह … आहह.
उनके चूतड़ों का उछल-उछलकर लंड को निगलना देखते ही बन रहा था.
मैं- मेरा भी वही हाल था भाभी. जब से तुम्हें देखा है, रोज तुम्हारे नाम की मुठ मारता था.
भाभी- अब कभी मत मारना. जब भी मन करे, मुझे बता देना. पर अभी और जोर से कुणाल … आह रगड़ दो मुझे … आहह.
छत पर हमारी तेज-तेज आवाजें गूंजने लगीं. पर सर्दी की रात होने के कारण डर नहीं था और हम दोनों एकदूसरे को रौंदने में लगे थे. मैं पूरी ताकत से धक्के लगा रहा था और भाभी नीचे से गांड उठा-उठाकर मेरा पूरा साथ दे रही थीं.
थोड़ी देर बाद भाभी अकड़ते हुए बोलीं- मेरा होने वाला है. तुम जरा जल्दी करो.
कुछ धक्कों के बाद मैंने भी कहा- मेरा भी निकलने वाला है.
भाभी बोलीं- अन्दर मत गिराना. मेरे मुँह में गिराओ. मैं तुम्हारी जवानी का रस पीना चाहती हूँ.
मैंने फटाफट अपना हथियार निकालकर उनके मुँह में डाल दिया. लौड़े से दो-चार धक्के उनके मुँह में मारने के बाद लंड ने पिचकारी छोड़ दी. भाभी ने मेरा सारा रस निचोड़ लिया और लंड को चाटकर अच्छे से साफ भी कर दिया.
हम दोनों बहुत थक गए थे.
थोड़ी देर सुस्ताने के बाद भाभी बोलीं- कुणाल, तुमने मुझे आज बहुत मजा दिया. इसके लिए मैं कब से तड़प रही थी. मेरे पति जब भी आते हैं थक-हारकर सो जाते हैं और मेरी तरफ देखते भी नहीं. मेरी 18 साल में शादी हो गई थी और जल्दी ही एक बच्चा भी हो गया. पर अभी तो मैं पूरी जवानी में आई हूँ. उन्हें मेरी कोई फिक्र ही नहीं है. कुणाल तुम इसी तरह मेरा साथ देते रहना.
मैं- ठीक है भाभी, चलो एक राउण्ड और हो जाए. अभी मन नहीं भरा.
भाभी- अरे नहीं, अभी और नहीं. अब तो मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ. अभी तो खेल शुरू हुआ है. सब्र रखो, सब्र का फल मीठा होता है.
मैंने हंसते हुए कहा- हां … वो तो मैंने चख कर देख लिया … बहुत मीठा रस था … हाहाहा.
भाभी- चलो अब जल्दी नीचे चलो. कहीं कोई जाग ना जाए. नहीं तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी. बाकी कल देखेंगे.
मैं- अच्छा चलो एक चुम्मा तो दे दो.
भाभी ने जल्दी से होंठों पर एक चुम्मा दिया. मैंने तुरंत उनके मम्में दबा दिए. भाभी ने एक प्यारी सी ‘आह …’ निकाली और नीचे भाग गईं.
थोड़ी देर बाद मैं भी नीचे आ गया.
सुबह मेरी आंख भाभी के उठाने की वजह से खुली.
भाभी घबराई हुई थीं.
मैंने जब वजह पूछी, तो भाभी ने बताया कि उनके हस्बैंड का एक्सीडेंट हो गया है और वो हॉस्पिटल में एडमिट हैं. हमें अभी फ़ौरन ही जाना पड़ेगा.
मैं जल्दी से उठा और कपड़े-वपड़े पैक किए और हम बिना शादी अटेंड किए ही वहां से वापस आ गए. आते ही सीधे हॉस्पिटल पहुंचे, तो वहां पर भाभी के पति के साथ एक औरत थी. जिसको भाभी दीदी बुला रही थीं.
भाभी के पति आईसीयू में थे, एक्सीडेंट ज़्यादा बड़ा हुआ था. उनके साथ में एक टूरिस्ट भी घायल हुआ था, लेकिन उसकी हालत ज़्यादा खराब नहीं थी. भाभी रोये जा रही थीं. मुझे भी बुरा लग रहा था.
खैर … कभी मैं, तो कभी वो दीदी जिनका नाम रुक्मणी था, वो भाभी को चुप कराए जा रही थीं. रुक्मणी जी देखने में सुमन भाभी से किसी भी हालत में कम मस्त नहीं लग रही थीं. मगर अभी हालत कुछ इस तरह के थे कि कुछ दिमाग लगाया ही नहीं जा सकता था.
थोड़ी देर बाद डॉक्टर जब अपने डेली चैकअप के लिए आया, तो मैंने डॉक्टर से पूछा.
डॉक्टर ने बोला कि घबराने की कोई बात नहीं है, बस अभी एक हफ्ता इन्हें हॉस्पिटल ही रहना पड़ेगा. उसके बाद एक महीना आराम करना होगा … क्योंकि इनकी एक टांग फ्रेक्चर हो गयी है, तो उसे रिकवर होने में समय लगेगा.
रात को मैंने भाभी को बोला- मैं जा रहा हूँ.
तो भाभी ने पूछा- कहां जा रहे हो?
मैंने बोला- मैं अपने घर जा रहा हूँ. सुबह ही आ जाऊंगा, ये हॉस्पिटल वाले भी बोल रहे हैं कि मरीज के साथ सिर्फ कोई एक ही रुक सकता है. अगर आपको घर जाना हो, तो मैं आपको छोड़ दूंगा.
इस पर भाभी ने बोला- नहीं मैं यही रुकूंगी. आप रुक्मणी दीदी को ले जाओ और रात को घर पर ही रुक जाना. कहीं दीदी को अकेले डर न लगे.
मैंने बोला- ठीक है.
फिर भाभी ने अपनी दीदी से बात की, तो वो मेरे साथ जाने को राजी हो गईं. मैं उन्हें ऑटो से लेकर घर पहुंचा. दीदी के साथ भाभी का बेबी भी था, जो कि अब तक सो चुका था. मैंने घर का दरवाजा खोला और दीदी को अन्दर भेजकर उनसे कहा कि मैं होटल से खाना लेकर आता हूं, तब तक आप फ्रेश हो जाएं.
मैं पास के एक होटल पर गया. वहां से खाना पैक कराया और वापस घर आ गया.
तब तक भाभी की दीदी नहा कर फ्रेश हो चुकी थीं.
मैंने उनको खाना दिया और खुद मुँह हाथ धोने बाथरूम में घुस गया. फिर हमने साथ बैठकर खाना खाया और वहीं सोफे पर बैठ गए.
अचानक भाभी की दीदी ने मुझे देखा और सवाल किया कि आप कौन हैं और सुमन के साथ कैसे आए आप! वो तो शादी में गयी हुई थी, फिर आप दोनों एक साथ कैसे आए.
ये सब पूछ कर वो मुझे घूरने लगीं.
मैं उनके इस तरह से सवाल करने पर हड़बड़ा गया. फिर खुद को संभालते हुए बोला- मैं खुशी का कजिन हूँ. जब पता चला कि जीजाजी का एक्सीडेंट हो गया है, तो खुशी ने मुझे भाभी के साथ भेज दिया.
मुझे अचानक ओर कुछ नहीं सूझा, तो मैंने उनसे यही झूठ बोल दिया.
फिर वो वहां से उठ कर चली गईं और मैं वहीं बैठा रहा. थोड़ी देर बाद मैं उठा और किचन में चला गया. वहां पर 2 कप चाय बनाई और उनके पास चल दिया. वो भाभी के कमरे में लेटी हुई थीं.
मैंने बाहर से दरवाज़ा खटखटाया, तो उन्होंने आंख खोल कर मुझे देखा और उठ कर बैठ गईं.
मैं- भाभी अन्दर आ जाऊं?
रुक्मणी- क्यों रे … तुझे मैं भाभी नजर आ रही हूँ?
मैं- भाभी को भाभी ना कहूँ, तो क्या कहूँ?
रुक्मणी- मेरी उम्र का तो ख्याल कर जरा?
मैं- क्यों 30 साल की ही तो लग रही हो.
मैंने झूठ बोला.
रुक्मणी- अच्छा, झूठ मत बोल.
मैं- नहीं भाभी, झूठ नहीं बोल रहा हूँ. आप तो इस उम्र में भी हर मामले में जवान लड़कियों को फेल कर दोगी.
इस बार वो भी हंसने लगीं.
मैंने रुक्मणी भाभी के लिए चाय बनाई और उनके कमरे में आ गया.
अब आगे---
रुक्मणी- बोल, क्यों आया है?
मैं- वो भाभी मैंने सोचा कि आप थक गई होंगी, तो चाय बना लाया.
रुक्मणी- ठीक है, वहां सामने टेबल पर रख दे. मैं बाद में उठा लूंगी. अभी मैं जरा अपने बाल सुखा लूं.
मैंने भी चाय टेबल पर रख दी और चलने लगा- अच्छा भाभी चलता हूँ. मैंने आपको भाभी कहा, आपको बुरा तो नहीं लगा?
रुक्मणी- नहीं, बुरा क्यों मानूंगी. चल अब जा.
मैं बाहर आ गया और दूसरे कमरे में जाकर लेट गया. पूरे दिन का थका हुआ था, तो जल्दी नींद आ गयी.
फिर दो दिन तक मेरा यही काम था. सुबह में रुक्मणी भाभी को हॉस्पिटल ले जाना और रात में वापस ले आना. इन दो दिनों में रुक्मणी भाभी मुझसे काफी घुल मिल गयी थीं, मुझसे हंसी मज़ाक करने लगी थीं.
कभी कभी जब मैं उन्हें घूरता था, तो वो मुझे चोर नज़रों से देखा करती थीं और मुस्कुरा देती थीं. जिससे मुझे भी ऐसा लगता था, जैसे वो मुझमें इंटरेस्ट ले रही हों.
अब मैं भी कोई न कोई मौका ढूंढता रहता था कि कैसे न कैसे करके भाभी से मज़ाक किया जाए और उनके क़रीब जाने की कोशिश की जाए. क्या पता एक और नई चुत मिल जाए.
उधर सुमन भाभी के पति को भी होश आया गया था, लेकिन मैं अभी तक उनके सामने नहीं गया था वरना हमारा राज़ खुल सकता था.
तीसरे दिन सुबह मैं सोकर उठा, तो मैंने देखा, रुक्मणी भाभी बाहर सोफे पर बैठी टीवी देख रही थीं. शायद वो अभी नहा कर आई थीं, उनके बाल गीले थे. वो बहुत खूबसूरत लग रही थीं. मैं अपने लिए चाय बनाकर भाभी के पास सोफे पर जाकर बैठ गया और उनको ऐसे ही घूरने लगा.
भाभी ने मेरी तरफ देखा और बोलीं- क्या हुआ, क्या देख रहा है?
मैं- आपको देख रहा हूँ … आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हो.
भाभी बस शर्मा दीं और मुस्कुराकर थैंक्स बोलीं.
मैंने कहा- भाभी एक बात पूछूं, आप बुरा तो नहीं मानोगी?
रुक्मणी भाभी- पूछो… क्यों बुरा मानूंगी भला?
मैं- भाभी, तुम दिन पर दिन जवान और खूबसूरत होती जा रही हो. इसका क्या राज है?
वो शर्माने लगीं- नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं … ऐसा तुम्हें लगता है?
मैं- नहीं भाभी, मैं सच बोल रहा हूँ. अब आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी करता है कि …
रुक्मणी भाभी ने मेरी तरफ मस्ती से देखते हुए कहा- क्या जी करता है तेरा कुणाल?
मैं- कि आपको बांहों में भरकर आपकी जुल्फों में खो जाऊं.
रुक्मणी- कुणाल, तुझे ऐसी बातें करते शर्म नहीं आती? तू आज मुझे जरूर मार खाएगा.
मैं- अरे भाभी, जो मेरे मन में था … वो बोल दिया. अगर सच कहने में मार पड़ती है, तो वो भी मंजूर है. पर मारना आप ही.
रुक्मणी- तू बड़ा बदमाश हो गया है. बस अब जल्दी तैयार हो जा, हॉस्पिटल भी जाना है.
मेरा तो दिमाग खराब हो गया. अपने से तो कुछ हुआ नहीं. इसलिए मन ही मन ऊपर वाले से दुआ मांगी कि कुछ ऐसा कर दे कि ये खुद मेरे लंड के नीचे आ जाए. कहते है ना कि सच्चे मन से किसी की लेनी हो, तो वो मिलती ही है.
वो जैसे ही उठने को हुईं. पता नहीं कहां से उनके कपड़ों के अन्दर चींटी घुस गई. उन्होंने उसे निकालने के लिए अपना हाथ कमीज के अन्दर डाला, तो चींटी पीछे को चली गई.
रुक्मणी- कुणाल, कोई कीड़ा मेरे सूट के अन्दर चला गया है … और मेरी पीठ पर रेंग रहा है. प्लीज़ उसे निकाल दो.
मैं- भाभी, उसके लिए मुझे अपना हाथ आपकी पीठ पर लगाना होगा. आप कहीं नाराज़ ना हो जाओ.
रुक्मणी- कुणाल मजाक नहीं करो. उसे जल्दी निकालो. कहीं वो मुझे काट न ले.
मैं उनके ठीक सामने खड़ा हो गया और हाथ को उनके सूट के अन्दर डालकर उनकी पीठ पर फिराने लगा. बड़ा अजीब सा मजा आ रहा था. कितने सालों के बाद उन्हें भी मर्द का हाथ मिल रहा था. उन्हें भी अच्छा लग रहा था.
रुक्मणी- कुणाल कुछ मिला?
मैं- नहीं भाभी. ढूंढ रहा हूँ.
तभी चींटी ने उनकी पीठ पर काट लिया. वो मुझसे चिपक गईं- उई … कुणाल, उसने मुझे काट लिया. प्लीज … उसे जल्दी से बाहर निकालो.
मैं- पर भाभी, वो मिल ही नहीं रही है. मैंने हाथ फेरना चालू रखा. मेरी सांसें उनकी सांसों से टकरा रही थीं.
रुक्मणी- कुणाल, वो आगे की तरफ रेंग रही है. जल्दी कुछ करो.
मैं- भाभी, तब तो आप शर्ट उतारकर उसे एक बार अच्छी तरह से झाड़ लो, कहीं एक से ज्यादा ना हों.
रुक्मणी- तुम्हारे सामने कैसे?
मैं- तो क्या हुआ? मैं दरवाजा बंद कर लेता हूँ और मुँह फेर लेता हूँ.
रुक्मणी- ठीक है, तुम मुँह उधर फेर लो.
मैंने दरवाजा बंद किया और मुँह फेरकर खड़ा हो गया. नीचे फर्श पर देखा, तो चीनी का डब्बा खुला होने के कारण बहुत सारी चींटियां जमीन पर घूम रही थीं. मुझे अपना काम बनाने की एक तरकीब सूझी. मैंने चार-पांच चींटियां उठाईं और मुट्ठी में बंद कर लीं.
रुक्मणी- इसमें तो कुछ भी नहीं है.
मैं- भाभी यहां देखो, बहुत सारी चींटियां हैं. शायद सलवार के सहारे चढ़ गई हों. आप मुँह फेर लो, मैं देख लेता हूँ.
भाभी- हां जल्दी से करो, मुझे जलन सी हो रही है.
वो मुँह फेरकर खड़ी हो गईं, तो मैंने चैक करने के बहाने पीछे से उनकी सलवार को थोड़ा सा खींचा और मुठ्ठी में दबाई हुई चींटियां उसके अन्दर डाल दीं. जो जल्दी ही अन्दर घुस गईं.
मैं- भाभी, आपकी कमर पर और पीठ पर चींटी ने काटा है. पीठ लाल हो गई है. आप कहो, तो तेल लगा दूं. आपकी जलन कम हो जाएगी.
उनके ‘हां ..’ कहते ही मैंने तेल लगाने के बहाने उनकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया. उन्हें भी अच्छा लग रहा था.
मैं- भाभी, आपकी ब्रा को पीछे से खोलना पड़ेगा. नहीं तो उसमें सारा तेल लग जाएगा. आप आगे से उसे हाथ से पकड़ लो. मैं पीछे से इसे खोल रहा हूँ.
वो बोलीं- ठीक है.
मैंने उनकी ब्रा खोल दी … जिसे उन्होंने आगे से हाथ लगाकर संभाल लिया. मैं पूरी पीठ पर और कमर पर आराम से तेल लगा रहा था. जिससे उन्हें आराम मिल रहा था. तभी नीचे सलवार में डाली चींटियों ने काम करना शुरू कर दिया. वो दोनों टांगों से बाहर आने का रास्ता ढूंढने लगीं.
रुक्मणी- हाय राम … लगता है, चींटियां सलवार के अन्दर भी हैं. वो पूरी टांगों पर रेंग रही हैं.
मेरा काम बनने लगा था.
मैंने कहा- भाभी, तब तो तुम जल्दी से सलवार भी उतारकर झाड़ लो. कहीं गलत जगह काट लिया तो … आपको दर्द के कारण अभी डाक्टर के पास भी जाना पड़ सकता है.
रुक्मणी- मैं इस वक्त डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती. वैसे भी कुछ देर में हॉस्पिटल जाना है. सलवार ही उतारनी पड़ेगी. पर कैसे करूं .. मैंने तो अपने हाथों से ब्रा पकड़ रखी है!
मैं- भाभी, आप चिन्ता ना करो. मैं आपकी मदद करता हूँ.
मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. सलवार फिसल कर नीचे गिर गई. उनकी लाल पैन्टी दिखाई देने लगी. मैं पैन्टी को ही देखे जा रहा था और सोच रहा था कि अभी कितनी देर और लगेगी इसे उतरने में, कब इनकी चूत के दर्शन होंगे.
रुक्मणी- कुणाल क्या देख रहे हो? जल्दी से मेरी सलवार झाड़ो और मुझे पहनाओ.
मैंने उनके पैरों से सलवार निकाली और उसे तीन-चार बार झाड़ा. मैंने सोचा ऐसे तो काम बनेगा नहीं. मुझे ही कुछ करना पड़ेगा. नहीं तो हाथ आई चूत बिना दर्शन के ही वापस जा सकती है.
मैं चिल्लाया- भाभी, दो चींटियां आपकी पैन्टी के अन्दर घुस रही हैं. कहीं आपको ‘उधर ..’ काट ना लें.
रुक्मणी- कुणाल, उन्हें जल्दी से हटाओ नहीं तो वो मुझे काट लेंगी. पर खबरदार पैन्टी मत खोलना.
मैं- ठीक है भाभी.
मैंने जल्दी से सलवार एक तरफ फैंकी और उनके पीछे जाकर अपने हाथ उनके आगे ले जाकर उनकी चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगा.
रुक्मणी- ओह्ह … कुणाल, यह क्या कर रहे हो तुम?
मैं- भाभी, आपने ही तो बोला था कि पैन्टी मत खोलना. चींटियां तो दिख नहीं रही हैं. इसलिए बाहर से ही मसल रहा हूँ. ताकि उससे अन्दर गई चींटियां मर जाएं. आप थोड़ा धैर्य तो रखो.
रुक्मणी- ठीक है, करो फिर.
मैं एक हाथ से उनकी टांगों के बीच सहला रहा था. दूसरे हाथ से उनकी कमर पकड़े था … ताकि बीच में ही भाभी भाग ना जाएं. धीरे-धीरे मैं उनकी पैन्टी के किनारे से हाथ डालकर उनकी चूत सहलाने लगा.
उन्हें भी मर्द का हाथ आनन्द दे रहा था इसलिए वे कुछ नहीं बोलीं. थोड़ी ही देर में वो चुत की रगड़ाई से गर्म हो गईं और अपनी पैन्टी गीली कर बैठीं.
मैं समझ गया कि माल अब गर्म है. मैंने उसी पल अपना लंड उनकी गांड से सटा दिया और उनकी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करने लगा.
भाभी को मेरे इरादे का पता चल गया, वो बोलीं- ओह कुणाल … तू ये क्या कर रहा है. अगर किसी को पता चल गया, तो मैं बदनाम हो जाऊंगी.
मैं- भाभी, आप किसी को बताओगी क्या?
रुक्मणी- मैं क्यों बताऊंगी?
मैं- मैं तो बताने से रहा. आप नहीं बताओगी तो किसी को पता कैसे चलेगा. वैसे भी आपका भी मन ये सब करने को है ही. तभी तो आपकी पैन्टी गीली हो गई है. अब शर्माओ मत और खुलकर मेरा साथ दो. जिससे आपको दुगुना मजा आएगा.
अब भाभी ने भी शर्म उतार फैंकी और दोनों हाथ ब्रा से हटा दिए. भाभी के हाथ हटाते ही उनके कबूतर पिंजरे से आजाद हो गए. मैंने भी उनकी पैन्टी उनके जिस्म से अलग कर दी.
मैं- वाह भाभी क्या मस्त जिस्म है आपका … देखते ही मजा आ गया.
रुक्मणी- कुणाल, तुमने मेरा सब कुछ देख लिया है. मुझे भी तो अपना दिखाओ ना. कितने समय से उसके दर्शन नहीं हुए हैं. मैं देखने को मरी जा रही हूँ, जल्दी से अपने कपड़े उतारो.
मैंने फटाफट कपड़े उतार दिए. अगले ही पल मेरा मोटा हथियार उनके सामने था.
रुक्मणी- कुणाल, मैं इसे हाथ में पकड़कर चूम लूं?
मैं- भाभी, आपकी अमानत है. जो मर्जी है वो करो.
उन्होंने फटाफट लंड लपक लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगीं.
मैं- भाभी इसे पूरा मुँह में ले लो … आपको और भी मजा आएगा.
उन्होंने लौड़े को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं. मुझे बड़ा मजा आ रहा था. क्योंकि पहली भाभी ने लंड चुसवाने की आदत डाल दी थी. मुझे लंड चुसवाने में बड़ा मजा आता है. आज बहुत दिनों बाद कोई लंड चूस रहा था. वह बड़े तरीके से लंड चूस रही थीं, जिसमें वो माहिर थीं.
लौड़े को चाट और चूसकर उन्होंने मेरा बुरा हाल कर दिया. तो मैं भी उनके सर को पकड़कर उनके मुँह में लंड को अन्दर-बाहर करने लगा. मेरा माल निकलने वाला था. वो मस्त होकर चूस रही थीं.
उनका सारा ध्यान लंड चूसने में था. मैं जोर-जोर से उनके सर को लंड पर दबाने लगा. थोड़ी ही देर में सात-आठ पिचकारियां मेरे लंड से निकलीं, जो सीधे उनके गले के अन्दर चली गईं. उन्होंने सर हटाना चाहा. पर जब तक वह पूरा माल निगल नहीं गईं, मैंने लंड निकालने नहीं दिया. इसलिए उन्हें सारा माल पीना ही पड़ा. तब मैंने लंड बाहर निकाला.
मैं- भाभी, कैसा लगा मर्द का मक्खन?
रुक्मणी- कुणाल, मुझे बता तो देते. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. पर जो भी किया, अच्छा किया. तेरा बहुत गाढ़ा मक्खन था. पीने में बड़ा मजा आया.
मैं- चलो भाभी, अब मैं तुम्हें मजा देता हूँ. तुम बेड पर टांगें चौड़ी करके बैठ जाओ.
वो बैठ गईं. चूत बिल्कुल ही ऐसी चिकनी थी, जैसे आज-कल में ही सारे बाल बनाए हों.
मैं- भाभी आपकी चूत के बाल तो बिल्कुल साफ हैं. ऐसा लगता है आप चुदने ही आई थीं. फिर नखरे क्यों कर रही थीं?
रुक्मणी- कुणाल, जब से तुम मुझ पर डोरे डाल रहे थे. तब से मैं समझ गई कि तुम मुझे चोदना चाहते हो. तभी से मेरी चूत भी बहुत खुजला रही थी. पर अपने बेटे से डरती थी कि उसे पता ना चल जाए. पर एक हफ्ते से रहा ही नहीं जा रहा था. कितनी उंगली कर ली, पर निगोड़ी चूत की खुजली मिट ही नहीं रही थी. आज इसकी सारी खुजली मिटा दो.
मैंने भाभी की चूत पर मुँह लगाकर जीभ अन्दर सरका दी और दाने को रगड़ना शुरू कर दिया. उन्हें मजा आने लगा. उन्होंने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया. मैंने एक उंगली चूत में डाल दी और जीभ से चूत चाटने लगा. वो मजे ले-लेकर चूत चुसवाए जा रही थीं. उनकी चूत पूरी गीली हो गई.
रुक्मणी- कुणाल, बस अब और मत तड़फाओ. अपना लंड मेरी चूत में डाल दो और मुझे चोद डालो.
मैंने भी देरी करना ठीक नहीं समझा और अपना लंड उनकी गीली चूत पर टिका दिया.
जैसे ही धक्का दिया, उनकी मीठी ‘आहह …’ निकल गई- कुणाल आराम से चोद … एक अरसे बाद चुदवा रही हूँ. दर्द हो रहा है.
उनकी चूत सच में टाइट थी. मैंने जैसे ही दूसरा धक्का मारा, उनकी चीख निकल गई.
रुक्मणी- कुणाल ओह्ह … तेरा बहुत मोटा है .. जल्दी से इसे बाहर निकालो. मैं मर गई, मुझे नहीं चुदवाना. तुम तो मेरी चूत फाड़ ही डालोगे. कोई ऐसा करता है भला?
मैं- भाभी, बस हो गया. अब बस आपको मजा ही मजा मिलेगा. आओ आपको अब जन्नत की सैर करवाता हूँ. वो भी अपने
लंड से.
मेरा पूरा लंड उनकी चूत में जा चुका था. मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए. धीरे-धीरे उन्हें भी आराम मिलने लगा. उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया.
मैंने रुक्मणी भाभी के लिए चाय बनाई और उनके कमरे में आ गया.
अब आगे---
रुक्मणी- बोल, क्यों आया है?
मैं- वो भाभी मैंने सोचा कि आप थक गई होंगी, तो चाय बना लाया.
रुक्मणी- ठीक है, वहां सामने टेबल पर रख दे. मैं बाद में उठा लूंगी. अभी मैं जरा अपने बाल सुखा लूं.
मैंने भी चाय टेबल पर रख दी और चलने लगा- अच्छा भाभी चलता हूँ. मैंने आपको भाभी कहा, आपको बुरा तो नहीं लगा?
रुक्मणी- नहीं, बुरा क्यों मानूंगी. चल अब जा.
मैं बाहर आ गया और दूसरे कमरे में जाकर लेट गया. पूरे दिन का थका हुआ था, तो जल्दी नींद आ गयी.
फिर दो दिन तक मेरा यही काम था. सुबह में रुक्मणी भाभी को हॉस्पिटल ले जाना और रात में वापस ले आना. इन दो दिनों में रुक्मणी भाभी मुझसे काफी घुल मिल गयी थीं, मुझसे हंसी मज़ाक करने लगी थीं.
कभी कभी जब मैं उन्हें घूरता था, तो वो मुझे चोर नज़रों से देखा करती थीं और मुस्कुरा देती थीं. जिससे मुझे भी ऐसा लगता था, जैसे वो मुझमें इंटरेस्ट ले रही हों.
अब मैं भी कोई न कोई मौका ढूंढता रहता था कि कैसे न कैसे करके भाभी से मज़ाक किया जाए और उनके क़रीब जाने की कोशिश की जाए. क्या पता एक और नई चुत मिल जाए.
उधर सुमन भाभी के पति को भी होश आया गया था, लेकिन मैं अभी तक उनके सामने नहीं गया था वरना हमारा राज़ खुल सकता था.
तीसरे दिन सुबह मैं सोकर उठा, तो मैंने देखा, रुक्मणी भाभी बाहर सोफे पर बैठी टीवी देख रही थीं. शायद वो अभी नहा कर आई थीं, उनके बाल गीले थे. वो बहुत खूबसूरत लग रही थीं. मैं अपने लिए चाय बनाकर भाभी के पास सोफे पर जाकर बैठ गया और उनको ऐसे ही घूरने लगा.
भाभी ने मेरी तरफ देखा और बोलीं- क्या हुआ, क्या देख रहा है?
मैं- आपको देख रहा हूँ … आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हो.
भाभी बस शर्मा दीं और मुस्कुराकर थैंक्स बोलीं.
मैंने कहा- भाभी एक बात पूछूं, आप बुरा तो नहीं मानोगी?
रुक्मणी भाभी- पूछो… क्यों बुरा मानूंगी भला?
मैं- भाभी, तुम दिन पर दिन जवान और खूबसूरत होती जा रही हो. इसका क्या राज है?
वो शर्माने लगीं- नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं … ऐसा तुम्हें लगता है?
मैं- नहीं भाभी, मैं सच बोल रहा हूँ. अब आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी करता है कि …
रुक्मणी भाभी ने मेरी तरफ मस्ती से देखते हुए कहा- क्या जी करता है तेरा कुणाल?
मैं- कि आपको बांहों में भरकर आपकी जुल्फों में खो जाऊं.
रुक्मणी- कुणाल, तुझे ऐसी बातें करते शर्म नहीं आती? तू आज मुझे जरूर मार खाएगा.
मैं- अरे भाभी, जो मेरे मन में था … वो बोल दिया. अगर सच कहने में मार पड़ती है, तो वो भी मंजूर है. पर मारना आप ही.
रुक्मणी- तू बड़ा बदमाश हो गया है. बस अब जल्दी तैयार हो जा, हॉस्पिटल भी जाना है.
मेरा तो दिमाग खराब हो गया. अपने से तो कुछ हुआ नहीं. इसलिए मन ही मन ऊपर वाले से दुआ मांगी कि कुछ ऐसा कर दे कि ये खुद मेरे लंड के नीचे आ जाए. कहते है ना कि सच्चे मन से किसी की लेनी हो, तो वो मिलती ही है.
वो जैसे ही उठने को हुईं. पता नहीं कहां से उनके कपड़ों के अन्दर चींटी घुस गई. उन्होंने उसे निकालने के लिए अपना हाथ कमीज के अन्दर डाला, तो चींटी पीछे को चली गई.
रुक्मणी- कुणाल, कोई कीड़ा मेरे सूट के अन्दर चला गया है … और मेरी पीठ पर रेंग रहा है. प्लीज़ उसे निकाल दो.
मैं- भाभी, उसके लिए मुझे अपना हाथ आपकी पीठ पर लगाना होगा. आप कहीं नाराज़ ना हो जाओ.
रुक्मणी- कुणाल मजाक नहीं करो. उसे जल्दी निकालो. कहीं वो मुझे काट न ले.
मैं उनके ठीक सामने खड़ा हो गया और हाथ को उनके सूट के अन्दर डालकर उनकी पीठ पर फिराने लगा. बड़ा अजीब सा मजा आ रहा था. कितने सालों के बाद उन्हें भी मर्द का हाथ मिल रहा था. उन्हें भी अच्छा लग रहा था.
रुक्मणी- कुणाल कुछ मिला?
मैं- नहीं भाभी. ढूंढ रहा हूँ.
तभी चींटी ने उनकी पीठ पर काट लिया. वो मुझसे चिपक गईं- उई … कुणाल, उसने मुझे काट लिया. प्लीज … उसे जल्दी से बाहर निकालो.
मैं- पर भाभी, वो मिल ही नहीं रही है. मैंने हाथ फेरना चालू रखा. मेरी सांसें उनकी सांसों से टकरा रही थीं.
रुक्मणी- कुणाल, वो आगे की तरफ रेंग रही है. जल्दी कुछ करो.
मैं- भाभी, तब तो आप शर्ट उतारकर उसे एक बार अच्छी तरह से झाड़ लो, कहीं एक से ज्यादा ना हों.
रुक्मणी- तुम्हारे सामने कैसे?
मैं- तो क्या हुआ? मैं दरवाजा बंद कर लेता हूँ और मुँह फेर लेता हूँ.
रुक्मणी- ठीक है, तुम मुँह उधर फेर लो.
मैंने दरवाजा बंद किया और मुँह फेरकर खड़ा हो गया. नीचे फर्श पर देखा, तो चीनी का डब्बा खुला होने के कारण बहुत सारी चींटियां जमीन पर घूम रही थीं. मुझे अपना काम बनाने की एक तरकीब सूझी. मैंने चार-पांच चींटियां उठाईं और मुट्ठी में बंद कर लीं.
रुक्मणी- इसमें तो कुछ भी नहीं है.
मैं- भाभी यहां देखो, बहुत सारी चींटियां हैं. शायद सलवार के सहारे चढ़ गई हों. आप मुँह फेर लो, मैं देख लेता हूँ.
भाभी- हां जल्दी से करो, मुझे जलन सी हो रही है.
वो मुँह फेरकर खड़ी हो गईं, तो मैंने चैक करने के बहाने पीछे से उनकी सलवार को थोड़ा सा खींचा और मुठ्ठी में दबाई हुई चींटियां उसके अन्दर डाल दीं. जो जल्दी ही अन्दर घुस गईं.
मैं- भाभी, आपकी कमर पर और पीठ पर चींटी ने काटा है. पीठ लाल हो गई है. आप कहो, तो तेल लगा दूं. आपकी जलन कम हो जाएगी.
उनके ‘हां ..’ कहते ही मैंने तेल लगाने के बहाने उनकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया. उन्हें भी अच्छा लग रहा था.
मैं- भाभी, आपकी ब्रा को पीछे से खोलना पड़ेगा. नहीं तो उसमें सारा तेल लग जाएगा. आप आगे से उसे हाथ से पकड़ लो. मैं पीछे से इसे खोल रहा हूँ.
वो बोलीं- ठीक है.
मैंने उनकी ब्रा खोल दी … जिसे उन्होंने आगे से हाथ लगाकर संभाल लिया. मैं पूरी पीठ पर और कमर पर आराम से तेल लगा रहा था. जिससे उन्हें आराम मिल रहा था. तभी नीचे सलवार में डाली चींटियों ने काम करना शुरू कर दिया. वो दोनों टांगों से बाहर आने का रास्ता ढूंढने लगीं.
रुक्मणी- हाय राम … लगता है, चींटियां सलवार के अन्दर भी हैं. वो पूरी टांगों पर रेंग रही हैं.
मेरा काम बनने लगा था.
मैंने कहा- भाभी, तब तो तुम जल्दी से सलवार भी उतारकर झाड़ लो. कहीं गलत जगह काट लिया तो … आपको दर्द के कारण अभी डाक्टर के पास भी जाना पड़ सकता है.
रुक्मणी- मैं इस वक्त डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती. वैसे भी कुछ देर में हॉस्पिटल जाना है. सलवार ही उतारनी पड़ेगी. पर कैसे करूं .. मैंने तो अपने हाथों से ब्रा पकड़ रखी है!
मैं- भाभी, आप चिन्ता ना करो. मैं आपकी मदद करता हूँ.
मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. सलवार फिसल कर नीचे गिर गई. उनकी लाल पैन्टी दिखाई देने लगी. मैं पैन्टी को ही देखे जा रहा था और सोच रहा था कि अभी कितनी देर और लगेगी इसे उतरने में, कब इनकी चूत के दर्शन होंगे.
रुक्मणी- कुणाल क्या देख रहे हो? जल्दी से मेरी सलवार झाड़ो और मुझे पहनाओ.
मैंने उनके पैरों से सलवार निकाली और उसे तीन-चार बार झाड़ा. मैंने सोचा ऐसे तो काम बनेगा नहीं. मुझे ही कुछ करना पड़ेगा. नहीं तो हाथ आई चूत बिना दर्शन के ही वापस जा सकती है.
मैं चिल्लाया- भाभी, दो चींटियां आपकी पैन्टी के अन्दर घुस रही हैं. कहीं आपको ‘उधर ..’ काट ना लें.
रुक्मणी- कुणाल, उन्हें जल्दी से हटाओ नहीं तो वो मुझे काट लेंगी. पर खबरदार पैन्टी मत खोलना.
मैं- ठीक है भाभी.
मैंने जल्दी से सलवार एक तरफ फैंकी और उनके पीछे जाकर अपने हाथ उनके आगे ले जाकर उनकी चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगा.
रुक्मणी- ओह्ह … कुणाल, यह क्या कर रहे हो तुम?
मैं- भाभी, आपने ही तो बोला था कि पैन्टी मत खोलना. चींटियां तो दिख नहीं रही हैं. इसलिए बाहर से ही मसल रहा हूँ. ताकि उससे अन्दर गई चींटियां मर जाएं. आप थोड़ा धैर्य तो रखो.
रुक्मणी- ठीक है, करो फिर.
मैं एक हाथ से उनकी टांगों के बीच सहला रहा था. दूसरे हाथ से उनकी कमर पकड़े था … ताकि बीच में ही भाभी भाग ना जाएं. धीरे-धीरे मैं उनकी पैन्टी के किनारे से हाथ डालकर उनकी चूत सहलाने लगा.
उन्हें भी मर्द का हाथ आनन्द दे रहा था इसलिए वे कुछ नहीं बोलीं. थोड़ी ही देर में वो चुत की रगड़ाई से गर्म हो गईं और अपनी पैन्टी गीली कर बैठीं.
मैं समझ गया कि माल अब गर्म है. मैंने उसी पल अपना लंड उनकी गांड से सटा दिया और उनकी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करने लगा.
भाभी को मेरे इरादे का पता चल गया, वो बोलीं- ओह कुणाल … तू ये क्या कर रहा है. अगर किसी को पता चल गया, तो मैं बदनाम हो जाऊंगी.
मैं- भाभी, आप किसी को बताओगी क्या?
रुक्मणी- मैं क्यों बताऊंगी?
मैं- मैं तो बताने से रहा. आप नहीं बताओगी तो किसी को पता कैसे चलेगा. वैसे भी आपका भी मन ये सब करने को है ही. तभी तो आपकी पैन्टी गीली हो गई है. अब शर्माओ मत और खुलकर मेरा साथ दो. जिससे आपको दुगुना मजा आएगा.
अब भाभी ने भी शर्म उतार फैंकी और दोनों हाथ ब्रा से हटा दिए. भाभी के हाथ हटाते ही उनके कबूतर पिंजरे से आजाद हो गए. मैंने भी उनकी पैन्टी उनके जिस्म से अलग कर दी.
मैं- वाह भाभी क्या मस्त जिस्म है आपका … देखते ही मजा आ गया.
रुक्मणी- कुणाल, तुमने मेरा सब कुछ देख लिया है. मुझे भी तो अपना दिखाओ ना. कितने समय से उसके दर्शन नहीं हुए हैं. मैं देखने को मरी जा रही हूँ, जल्दी से अपने कपड़े उतारो.
मैंने फटाफट कपड़े उतार दिए. अगले ही पल मेरा मोटा हथियार उनके सामने था.
रुक्मणी- कुणाल, मैं इसे हाथ में पकड़कर चूम लूं?
मैं- भाभी, आपकी अमानत है. जो मर्जी है वो करो.
उन्होंने फटाफट लंड लपक लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगीं.
मैं- भाभी इसे पूरा मुँह में ले लो … आपको और भी मजा आएगा.
उन्होंने लौड़े को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं. मुझे बड़ा मजा आ रहा था. क्योंकि पहली भाभी ने लंड चुसवाने की आदत डाल दी थी. मुझे लंड चुसवाने में बड़ा मजा आता है. आज बहुत दिनों बाद कोई लंड चूस रहा था. वह बड़े तरीके से लंड चूस रही थीं, जिसमें वो माहिर थीं.
लौड़े को चाट और चूसकर उन्होंने मेरा बुरा हाल कर दिया. तो मैं भी उनके सर को पकड़कर उनके मुँह में लंड को अन्दर-बाहर करने लगा. मेरा माल निकलने वाला था. वो मस्त होकर चूस रही थीं.
उनका सारा ध्यान लंड चूसने में था. मैं जोर-जोर से उनके सर को लंड पर दबाने लगा. थोड़ी ही देर में सात-आठ पिचकारियां मेरे लंड से निकलीं, जो सीधे उनके गले के अन्दर चली गईं. उन्होंने सर हटाना चाहा. पर जब तक वह पूरा माल निगल नहीं गईं, मैंने लंड निकालने नहीं दिया. इसलिए उन्हें सारा माल पीना ही पड़ा. तब मैंने लंड बाहर निकाला.
मैं- भाभी, कैसा लगा मर्द का मक्खन?
रुक्मणी- कुणाल, मुझे बता तो देते. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. पर जो भी किया, अच्छा किया. तेरा बहुत गाढ़ा मक्खन था. पीने में बड़ा मजा आया.
मैं- चलो भाभी, अब मैं तुम्हें मजा देता हूँ. तुम बेड पर टांगें चौड़ी करके बैठ जाओ.
वो बैठ गईं. चूत बिल्कुल ही ऐसी चिकनी थी, जैसे आज-कल में ही सारे बाल बनाए हों.
मैं- भाभी आपकी चूत के बाल तो बिल्कुल साफ हैं. ऐसा लगता है आप चुदने ही आई थीं. फिर नखरे क्यों कर रही थीं?
रुक्मणी- कुणाल, जब से तुम मुझ पर डोरे डाल रहे थे. तब से मैं समझ गई कि तुम मुझे चोदना चाहते हो. तभी से मेरी चूत भी बहुत खुजला रही थी. पर अपने बेटे से डरती थी कि उसे पता ना चल जाए. पर एक हफ्ते से रहा ही नहीं जा रहा था. कितनी उंगली कर ली, पर निगोड़ी चूत की खुजली मिट ही नहीं रही थी. आज इसकी सारी खुजली मिटा दो.
मैंने भाभी की चूत पर मुँह लगाकर जीभ अन्दर सरका दी और दाने को रगड़ना शुरू कर दिया. उन्हें मजा आने लगा. उन्होंने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया. मैंने एक उंगली चूत में डाल दी और जीभ से चूत चाटने लगा. वो मजे ले-लेकर चूत चुसवाए जा रही थीं. उनकी चूत पूरी गीली हो गई.
रुक्मणी- कुणाल, बस अब और मत तड़फाओ. अपना लंड मेरी चूत में डाल दो और मुझे चोद डालो.
मैंने भी देरी करना ठीक नहीं समझा और अपना लंड उनकी गीली चूत पर टिका दिया.
जैसे ही धक्का दिया, उनकी मीठी ‘आहह …’ निकल गई- कुणाल आराम से चोद … एक अरसे बाद चुदवा रही हूँ. दर्द हो रहा है.
उनकी चूत सच में टाइट थी. मैंने जैसे ही दूसरा धक्का मारा, उनकी चीख निकल गई.
रुक्मणी- कुणाल ओह्ह … तेरा बहुत मोटा है .. जल्दी से इसे बाहर निकालो. मैं मर गई, मुझे नहीं चुदवाना. तुम तो मेरी चूत फाड़ ही डालोगे. कोई ऐसा करता है भला?
मैं- भाभी, बस हो गया. अब बस आपको मजा ही मजा मिलेगा. आओ आपको अब जन्नत की सैर करवाता हूँ. वो भी अपने
लंड से.
मेरा पूरा लंड उनकी चूत में जा चुका था. मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए. धीरे-धीरे उन्हें भी आराम मिलने लगा. उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया.
अभी रुक्मणी भाभी की चुदाई होना शुरू हुई ही थी. मैं लंड चुत में पेले पड़ा था. उनका दर्द खत्म हो गया था और अब वो मजा लेने लगी थीं.
अब आगे---
रुक्मणी भाभी बोलीं- कुणाल आहह … अब तेज तेज करो … ओहह … फाड़ डालो मेरी चूत … साली ने बहुत तड़पाया है … आह आज निकाल दो इसकी सारी अकड़ … ओहह दिखा दो, तुममें कितना दम है. चोद मेरी जान.
मैंने उनकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा.
उनकी ‘आहें …’ निकलने लगीं- आह्ह.. आह … इस्स्स .. उफ्फ.
मैं लंड पेले जा रहा था.
रुक्मणी भाभी- आहह … और जोर से. मजा आ गया कुणाल.
धीरे-धीरे हम दोनों पसीने से तर हो गए. पर दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था. मैं ताबड़तोड़ उनकी चूत पर लंड से वार किए जा रहा था. आखिर वो कब तक सहन करतीं. अन्त में उनका पानी निकल ही गया.
भाभी बोलीं- कुणाल … प्लीज थोड़ा रूको. मुझे अब दर्द हो रहा है.
मैंने लंड को चूत में ही रहने दिया और उनकी चूचियां मसलने लगा. थोड़ी देर में जब वो थोड़ा नार्मल हो गईं. तो मैंने लंड को चूत की दीवारों पर रगड़ना शुरू कर दिया. जल्दी ही वो फिर से गर्म हो गईं और बिस्तर पर फिर से तूफान आ गया.
अब भाभी गांड उठा-उठाकर मेरा साथ दे रही थीं.
मैं- भाभी कहां गिराऊं? मेरा होने वाला है.
रुक्मणी- कुणाल, तेज-तेज धक्के मारो … मेरा भी होने वाला है और सारा रस चूत में ही गिराना. सालों से प्यासी है … तर कर दो उसे. तुम चिन्ता मत करो मेरा ऑपरेशन हो चुका है.
ये सुनते ही मैंने रफ़्तार पकड़ी और कुछ ही देर में सारा माल उनकी चूत में भर दिया और उन्हीं के ऊपर लेट गया.
रुक्मणी- कुणाल अब उठो भी. हमें हॉस्पिटल भी जाना है.
मैं- ठीक है भाभी, पर ये तो बताओ आपको मेरे लंड पर जन्नत की सैर करके कैसा लगा?
रुक्मणी- बहुत मजा आया कुणाल. तुमने मेरी चूत की सारी खुजली भी मिटा दी और सालों से प्यासी चूत को पानी से लबालब भर भी दिया. देखो अब भी पानी छलक रहा है.
मैंने देखा, तो हम दोनों का माल उनकी चूत से निकलकर उनकी टांगों से चिपककर नीचे आ रहा है. मतलब समझकर हम दोनों हंसने लगे, फिर वो फटाफट कपड़े उठा कर बाथरूम में जाने लगीं.
मैं- भाभी, जिसने आपको इतना मजा दिया, उसे थोड़ा प्यार करके तो जाओ.
ये कहते हुए मैंने अपना मुरझाया लंड उनके आगे कर दिया.
भाभी ने एक बार उसे पूरा अपने मुँह में ले लिया. थोड़ी देर चूसा, आगे से जड़ तक चाटा. फिर सुपारे पर एक प्यारी सी चुम्मी दी और चली गईं.
भाभी के बाद में भी बाथरूम में जाकर नहाया. तब तक भाभी नाश्ता बना चुकी थीं.
हम जल्दी से हॉस्पिटल पहुंचे, वहां पर सबने साथ में नाश्ता किया. उसके बाद रुक्मणी भाभी अन्दर कमरे में चली गईं. मैं और सुमन भाभी बाहर ही रुक गए.
रुक्मणी भाभी के जाने के बाद मैंने सुमन भाभी को आज के बारे में सब बता दिया, जिस पर भाभी गुस्सा होने के बजाए मुस्कुराने लगीं.
फिर भाभी अचानक से बोलीं- कुणाल एक काम करना, तुम रुक्मणी को हमारे बारे में भी सब बता देना. अब वो किसी को कुछ नहीं बताएंगी. तो हमें भी थोड़ा डर से छुटकारा मिल जाएगा.
मैंने हां कह दी.
फिर मैं वहां से अपने घर आ गया. आते ही कमरे में जाकर सो गया. कोई 2 घंटे बाद मेरी आंख खुली, तो मैंने टाइम देखा 3 बज रहे थे. मैं उठा और नहाकर बाहर आया, तो मम्मी पापा बाहर बैठे टीवी देख रहे थे.
मुझे देख कर मम्मी बोलीं- उठ गए बेटा, खाना लगा दूं?
मैंने खाने के लिए मना कर दिया क्योंकि मुझे भूख नहीं थी.
मैं घर से बाहर निकल गया. बाहर आकर मैंने आकांक्षा को कॉल किया, लेकिन उसने पिक नहीं किया … शायद किसी काम में बिजी होगी. मैं थोड़ी देर ऐसे ही बाहर घूमता रहा, दोस्तों से मिला. फिर शाम 7 बजे में हॉस्पिटल के लिए चल दिया.
हॉस्पिटल जाते वक्त मैंने होटल से सभी के लिए खाना पैक कर लिया था. जब मैं हॉस्पिटल पहुंचा, तो पता चला कि सुमन भाभी घर गयी हैं क्योंकि वो दो दिन से नहाई नहीं थीं, तो आज रुक्मणी भाभी को हॉस्पिटल में रुकना था. मैंने रुक्मणी भाभी को खाना दिया और सुमन भाभी को खाने के लिए फोन किया. क्योंकि मैं सबका खाना लाया था.
इधर मैं रुक्मणी भाभी को छेड़ने लगा.
मैं- क्या भाभी, आग भड़का कर यहां रुक गयी हो, आज मेरे लंड का क्या होगा?
रुक्मणी धीरे बोलीं- धीरे बोल बदमाश .. कोई सुन लेगा, हॉस्पिटल है ये .. घर नहीं.
मैं- तो क्या हुआ अगर कोई सुन लेगा तो .. अगर मर्द ने सुना तो तुम्हें लंड मिल जाएगा .. और औरत ने सुना तो मुझे चुत मिल जाएगी.
ये कह कर मैं हंसने लगा.
रुक्मणी- बहुत बिगड़ गया है तू कुणाल, इलाज करना पड़ेगा तेरा!
मैं- मैं तो कह रहा हूँ भाभी चलो, अभी ही इलाज कर दो.
रुक्मणी- नहीं कुणाल आज मुझे यहीं रुकना पड़ेगा. सुमन घर गयी है. कल देखते हैं क्या होता है.
मैं- तो आज मेरा क्या होगा?
रुक्मणी- घर चला जा, क्या पता सुमन को तुझ पर तरस आ जाए.
मैं- आईडिया तो अच्छा है भाबी, वैसे भी सुमन तो जीजा जी से हफ्ते भर से दूर हैं.
रुक्मणी- अरे नहीं, मैं तो यूं ही मज़ाक कर रही थी.
मैं- चलो देखते हैं क्या होता है. मैं चलता हूं भाभी, सुमन भाभी भी खाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रही होंगी.
ये कहकर मैं वहां से आ गया और सीधा सुमन भाभी के घर पहुंच कर डोर बेल बजा दी.
एक मिनट बाद भाभी ने गेट खोला. मैं उनके पीछे पीछे अन्दर चला गया और खाने को टेबल पर रख कर बाथरूम में घुस गया. मुझे बहुत देर से पेशाब लगी थी, लेकिन अन्दर भाभी मौजूद थीं. शायद उन्होंने कपड़े धोये थे, वही उठा रही थीं. मुझे अन्दर देख कर वो बाहर चली गईं. मैंने पेशाब किया और बाहर आ गया.
आज भाभी चुप चुप थीं, तो मुझे लगा कि आज कुछ नहीं होने वाला. कुछ देर में भाभी ने खाना गर्म करके मुझे बुलाया. हम दोनों ने खाना खाया और टीवी देखने लगे. मैं और भाभी एक ही सोफे पर बैठे थे.
अचानक भाभी अपना सिर मेरी गोद में रख कर लेट गईं. उनका मादक स्पर्श पाकर मेरे लंड में हलचल होने लगी, जिसे भाभी ने भी महसूस कर लिया था.
उन्होंने सिर उठाकर मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर टीवी देखने लगीं. उनकी मुस्कुराहट से मुझे हरी झंडी मिल गयी थी. मैंने अपने हाथ भाभी के मम्मों पर रख दिए और उन्हें सहलाने लगा, जिससे भाभी भी गर्म होने लगी थीं.
फिर मैंने अपना एक हाथ भाभी की कमीज के अन्दर डाल दिया और ऐसे ही मम्मों को सहलाने लगा.
अचानक भाभी खड़ी हुईं और टीवी बंद करके अपने रूम की तरफ चल दीं. मैं भी भाभी के पीछे पीछे चल दिया. कमरे में अन्दर जाकर मैंने भाभी को पीछे से पकड़ लिया और उनकी गर्दन को चूमने लगा. भाभी धीरे धीरे गर्म सिसकारियां ले रही थीं.
अब जैसे ही मैं अपना हाथ भाभी की चुत के पास ले गया, भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझसे अलग होकर बेड पर बैठ गईं. शायद भाभी अपनी पति के बारे में सोच रही थीं, जिसकी वजह से उन्हें अब अच्छा नहीं लग रहा था.
मैं- क्या हुआ भाभी?
भाभी- कुणाल आज मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा है.
मैं- हम पहले भी तो ये सब कर ही चुके है ना! तो आज क्यों नहीं अच्छा लग रहा है?
भाभी बोलीं- नहीं कुणाल, अभी ये सब मैं नहीं करना चाहती.
तब तक मैं भी बेड पर बैठ चुका था और उनकी चूचियां दबानी शुरू कर दी थीं.
मैं बोला- ठीक है भाभी, मैं जबरदस्ती नहीं करूंगा. पर आप इसे शान्त तो कर सकती हो ना. देखो मेरा क्या बुरा हाल हो गया है.
यह कहकर मैंने पजामा नीचे उतार दिया. मेरा लंड अंडरवियर फाड़ने को तैयार खड़ा था.
भाभी लौड़ा देखकर बोलीं- ठीक है, मैं तुम्हारा हिला देती हूँ. पर बाकी आगे कुछ और नहीं करना. झड़ने के बाद तुम सीधा दूसरे रूम में जाओगे.
मैं बोला- ठीक है भाभी, मेरे लिए यही काफी है.
भाभी ने मेरा अंडरवियर उतारा और लंड को अपने हाथ में लेकर हिलाना शुरू कर दिया.
मुझे भाभी के हाथ से मजा तो बहुत आ रहा था. मैंने भाभी को बोला- भाभी, बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा है. प्लीज इसे मुँह में लेकर चूसो ना!
भाभी भी चुदासी सी हो चली थीं. सो उन्होंने लौड़े को अपने मुँह में ले लिया और जोर-जोर से चूसने लगीं. मैं भाभी की चूचियां दबा रहा था. इसलिए वो भी गर्म हो गईं.
मैं बोला- भाभी, चलो चुदवाओ मत. पर हम एक-दूसरे को मजा तो दे ही सकते हैं ना. मुझे अकेले करते ठीक नहीं लग रहा है. मैं आपको भी मजा देना चाहता हूँ.
भाभी बोलीं- ठीक है, पर कैसे?
अब उनकी गरमाई बोल रही थी.
मैं बोला- अभी आप अपने कपड़े उतार दो और आप मेरा लंड चूसो. मैं आपकी चूत चूसता हूँ. ऐसे ही मजे लेते हैं.
भाभी बोलीं- हां ये सही रहेगा. पर उससे आगे कुछ भी नहीं.
मैं बोला- ठीक है.
यह कहकर मैंने उनके सारे कपड़े उतार दिए और खुद भी नंगा हो गया. अब वो मेरा लंड चूस रही थीं और मैं भाभी की चूत चूस रहा था.
थोड़ी देर में ही वो खूब गर्म हो गईं. मैंने एक उंगली भी चूत में घुसेड़ दी, वो मचल गईं. अब उन्हें खूब मजा आ रहा था. तब मैंने अपना लंड उनके मुँह से निकाल लिया. चुत चूसना और उसमें उंगली करना छोड़ दिया. इससे वो पागल सी हो गईं.
मैं मुँह फेर कर लेट गया. भाभी को मैंने गर्म रेत पर छोड़ दिया था, उनकी चूत पानी टपका रही थी.
तो भाभी बोलीं- कुणाल, बहुत अच्छा लग रहा था … और चूसो ना. लंड क्यों निकाल दिया तुमने? और उंगली करो. ना!
भाभी मुझसे लिपट गईं और मेरा हाथ अपनी चूचियों पर रखवा लिया. फिर वासना से बोलीं- कुणाल इन्हें दबाओ न!
वो मेरे और पास खिसक आईं.
मैं समझ गया कि अब ये चुदवाने को तैयार हैं. मैं भी उनसे चिपक गया, जिससे मेरा लंड उनकी चूत के मुहाने से टकराने लगा.
जैसे ही उन्हें लंड का अहसास हुआ, उन्होंने खुद हाथ से उसे चूत के मुहाने पर सैट कर लिया.
भाभी बोलीं- प्लीज कुणाल, अब मत तड़फाओ. मैं पागल हो जाऊंगी. तुमने मेरा बुरा हाल कर दिया है. तुम्हें जो करना है, कर लो … पर प्यासा मत छोड़ो.
मैं बोला- भाभी, मुझे तुम्हारी चूत चाहिए … मैं तुम्हें चोदना चाहता हूँ.
वो बोलीं- अब कहां मना कर रही हूँ, देखो. मैंने तुम्हें खुद रास्ता दिखा दिया है. बस मेरी आग शान्त करो. जल्दी से चोद डालो मुझे.
मैं बोला- तो ठीक है भाभी, अब चुदाई के मजे लो और मेरे लंड के झूले में प्यार का झूला झूलो.
मैंने उनकी चूत पर लंड का दबाव देना शुरू किया. गीली चूत में ‘फच्च ..’ की आवाज से पूरा लंड अन्दर चला गया.
भाभी के मुँह से ‘आह …’ निकल गई.
मैंने होंठों से होंठों को लगाया और चोदने की रफ्तार बढ़ा दी. मैं और भाभी दोनों ही चुदासे और प्यासे थे. इसलिए 15 मिनट में ही दोनों खलास हो गए. कुछ देर बाद फिर मैंने उन्हें फिर गर्म करना शुरू कर दिया. मैंने फिर से उनकी जमकर चुदाई की और सारा माल चूत में भर दिया. उस रात मैंने उन्हें 3 बार चोदा. उनके चेहरे पर भी सन्तुष्टि के भाव थे.
भाभी बोलीं- कुणाल, अब तुम यहीं सो जाओ. अब तो तुमने सब कर ही लिया है और रुक्मणी को अब कुछ भी मत बताना, जैसा चल रहा है, उसे चलने दो.
मैं बोला- ठीक है भाभी. तुम चिन्ता मत करो और खुश रहो.
उसके बाद हम नंगे ही साथ-साथ सो गए.
सुबह उन्होंने मुझे जल्दी उठा दिया. मैंने उनकी एक चुम्मी ली और फ्रेश होने चला गया. वहां से में अपने घर चला गया और भाभी हॉस्पिटल चली गईं.
इस तरह तकरीबन डेढ़ साल तक हमने एक दूसरे को प्यार किया. उसके बाद भाभी दिल्ली शिफ्ट हो गईं. तो अब जब कभी कभी मैं दिल्ली जाता हूं, तो भाभी से मुलाक़ात होती है और सारी यादें ताज़ा हो जाती हैं.
रुक्मणी भाभी के बेटे की सरकारी नौकरी लग गयी थी और उसकी पोस्टिंग जयपुर हुई थी, तो रुक्मणी भाभी जयपुर चली गयी थीं. अब सुमन भाभी वाले फ्लैट को मैंने किराए पर ले लिया था, जहां पर मैं कभी कभी आकांक्षा को ले आता हूं.
कुछ सालों में मेरी भी नौकरी लग गई अब मैं मुंबई आ गया था. जहां पर मेरा इंतजार एक अलग ही दुनिया कर रही थी।
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