बेहतरीन कहानी है, लिखने का अंदाज़ भी बेहद उम्दा है और आगाज़ ने तो आग ही लगा दी है
कहानी क्योंकि अभी शुरू हुई है, तो कुछ कहना चाहूंगी।
प्लीज़ कहानी को सीधी रेखा मे चलाए, बहुत सारी, छोटे किस्से, किरदार व मुख्यधरा से भिन्न किस्सो मे ना जाए
मां रेणुका दूबे को ही मुख्य किरदार, हीरोइन बनाकर रखे, तथा कहानी मे रेणुका की भावनाओं, जज़्बात, डर, शर्म, मादकता, बेशर्मी को भी महत्व दे। एक स्त्री के लिए क्रिया से अधिक भावनात्मक एहसास महत्वपूर्ण होता है
बेटे को सिर्फ़ सूत्रधार बना रहने दे, सीधा साधा, परिस्थितियों मे एक मजबूर cuckson
कहानी चलती रहे, बीच मझधार मे बंद ना हो, बस यही आशा है