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Incest Mukkader ka sikander

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Hamantstar666

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story kaise lag rahe hai plzzz mujhe bataoo.. Ager tum sub batoge nhi to me sudhar kaise karunga...



अलिना का ऑफिस — शाम का वक़्त
कमरे में सन्नाटा है।
दीवारों पर झूमर की रोशनी, टेबल पर नीले फाइलों का ढेर और शीशे के पार शहर की रौशनी टिमटिमा रही है।

मुसताक अहमद हाथ में एक फाइल लिए अलिना के सामने खड़ा है।

मुसताक (संकोच में):
"मैडम… तो क्या अब… हम अहमदनगर वालो को उनकी ज़मीन के काग़ज़ वापस कर दें?


अलिना कुर्सी पर झूलती है, उसकी नज़रें छत की ओर हैं… लेकिन मन कहीं और।

अलिना (धीरे और सख्त लहजे में):
"नहीं मुसताक… अब बिल्कुल नहीं।"

मुसताक (हैरानी से):
"पर मैडम... आपका बेटा..."

अलिना (धीरे से मुस्कुरा कर, ):
" मेरा बेटा मुझसे और दूर चला गया।

वो जो आंखें मुझसे नफरत करती हैं…
वो जो आवाज़ मुझे अम्मी नहीं कहती…
क्या तुम समझ सकते हो मुसताक,
मैं कैसा महसूस करती हूं जब वो मुझे देखता है जैसे मैं उसकी सबसे बड़ी दुश्मन हूं?"



अलिना (गुस्से में उठकर):

वो मोहल्ला, वो झोपड़ियां, वो टूटा-फूटा कमरा —
वहीं उसकी ज़िंदगी बन गई… और मैं बस एक चेहरा बनकर रह गई जो उसे जला देता है।"तो अब मै उसकी ज़िन्दगी मे मुस्किले पैदा करुँगी... ताकि वो टूट जाये और भागता हुवा मेरे पास आ जाये..

(वो तेज़ी से फाइल उठाती है और मेज़ पर पटकती है)

अलिना (आँखों में एक पागलपन सा):
"अगर मुझे मेरा बेटा वापस चाहिए,
तो मुझे उसे मजबूर करना होगा कि वो मेरे पास खुद चले आए।
मजबूरी की आग ही रिश्तों को मोम करती है, मुसताक…
मैं चाहती हूं वो चीख-चीख कर कहे — ‘अम्मी, मेरी मदद करो’…
और उस वक़्त मैं उसका इंतज़ार कर रही होऊंगी — अपने खुले दरवाज़े और खुली बाहो के साथ ।पर ध्यान रखना मुस्ताक उसे कोई बाहरी चोट नहीं आनी चाहिए.."

मुसताक (धीरे से):
"तो अब क्या करेंगे?"

अलिना (धीरे और ठंडे लहजे में):
"अब उन लोगों पर और ज़ोर डालो…
बिजली काट दो… पानी की सप्लाई रोक दो…
जो दवा-सप्लाई आती है मोहल्ले में, उसमें अड़चन डालो…
मुझे कुछ दिन में उनकी चीखें सुनाई देनी चाहिए।
और हाँ, ये सब इस तरह करना कि नाम हमारा न आए।
उन लोगों को नहीं पता — पर वो मेरे बेटे को मुझ तक लौटाने का जरिया हैं।"

(एक लंबा सन्नाटा… अलिना खिड़की की ओर मुड़ जाती है, )



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आसमान में बादल हैं… हवा में नमी और मौसम में मोहब्बत का इशारा।

घर के आंगन में अली, रुकसार और आसिम साहब बैठे हैं। सामने चाय की केतली और मिट्टी की कुल्हड़ों में भाप उठती है। ज़ोया भी वहीं है, एक किताब गोद में रखे हुए।
सबके चेहरों पर हल्की मुस्कान है। लंबे वक्त के बाद ऐसा सुकून भरा दिन है।

तभी दरवाज़े से सिकंदर आता है। हल्की नीली शर्ट, जीन्स और गले में अपना पुराना दुपट्टा डाला हुआ। चेहरे पर एक सलीकेदार मुस्कान, लेकिन नज़रें सिर्फ ज़ोया को ढूंढ रही हैं।

सिकंदर (नज़दीक आकर, अदब से):
"सलाम, आसिम साहब… एक बात कहनी थी आपसे।"

आसिम साहब (चाय की चुस्की लेते हुए):
"सलाम बेटा… कहो, क्या बात है?"

सिकंदर (हल्का मुस्कुरा कर ज़ोया की तरफ देखते हुए):
"वो… ज़ोया को लेकर थोड़ा बाहर जाना चाहता हूँ।
थोड़ा घूमने… थोड़ी ठंडी हवा लेगी तो इसका भी दिमाग़ हल्का हो जायेगा...
आपकी इजाज़त चाहिए।"

(सभी के चेहरे पर चौंकने और मुस्कुराने की मिली-जुली प्रतिक्रिया। ज़ोया की आंखें झुक जाती हैं)

रुकसार (मुस्कराते हुए):
"बाप रे! आज तो बड़ा सीधा बनकर आया है…"

अली (चुटकी लेते हुए):
"और ज़ोया बीबी, ये किताब छोड़िए… आज तो आपको राइड मिलने वाली है!"

आसिम साहब (हंसते हुए, सिकंदर की पीठ थपथपाते हैं):
"जाओ बेटा… ले जाओ।
पर हाँ, टाइम से वापस आ जाना दोनों"

सिकंदर (हल्के झुके हुए):
"शुक्रिया, असीम साहब। भरोसा रखिए — आपकी अमानत हमेशा महफूज़ रखूँगा...।"


सड़क पर हल्की हवा चल रही है, पेड़ झूम रहे हैं।
सिकंदर बाइक चला रहा है, और ज़ोया उसके पीछे बैठी है, धीरे से उसकी पीठ को पकड़े हुए।
सड़क के किनारे फूलों के पेड़ झूमते हैं और दूर से बच्चों की हँसी सुनाई देती है।

ज़ोया (धीरे से, कान के पास):
"तुमने ये सब कुछ अचानक कैसे सोच लिया?

सिकंदर (मुस्कुराकर, बिना पीछे देखे):
"पता है, कुछ बातें दिल से करनी चाहिए… और कुछ बड़ों से।
आज दोनों किया मैंने।"

ज़ोया (हौले से हँसते हुए):
"तुम्हारी बातों में अब शेरों की मिठास भी आने लगी है। पहले तो बस सर्द हवा की तरह लगते थे।"

सिकंदर (हल्की मस्ती में):
"तुम्हारे साथ रहकर हवा भी गुलाब की खुशबू हो गई है।
वैसे… मुझे डर है कहीं तुम ही ठंडी न पड़ जाओ — शॉल लेकर आई हो?"

ज़ोया (मुस्कुरा कर, उसका दुपट्टा खींचती है):
"तुम्हारा दुपट्टा ही काफी है।


सिकंदर (हल्के झटके में बाइक रोकता है):
"अच्छा सिर्फ दुप्पटा ही चाहिए या मेरा कुछ और भी लेना हैं..


ज़ोया ( उसकी बातों को समझ गई फिर भी ना समझ बनते हुवे) - और क्या है तुम्हारे पास...

सिकंदर - चलो दिखता हूँ तिम्हे... क्या हैं..




दोनों दिल्ली से बाहर मनाली की ठंडी वादियों मै पहुंच जाते हैं... सिकंदर एक सुनसान जंगल मै गाड़ी रोकता है...



सिकंदर (धीरे से उसकी तरफ देखते हुए):
"सिकंदर जोया को अपने पास खींचते हुवे... आजा मेरी जान तुझे दिखता हूँ... अपना मुसल...


ज़ोया उसकी दोहरी बात को पहले समझ नहीं पाती.... उसे लगता हैं सिकंदर किसी जगह की बात कर रहा हैं.. पर जब उसे समझ आता हैं... तो उसकी आँखे बड़ी हो जाती है...


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सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था, हल्की सी ठंडी हवा दोनों के बीच शांति बनाए रखे हुए थी। सिकंदर और ज़ोया कुछ देर और वक्त साथ बिता रहे थे। अब वो एक पत्थर पर बैठे थे, और सिकंदर के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, और ज़ोया का चेहरा लाल हुवा परा था..

सिकंदर (धीरे से, हल्की हंसी के साथ):
"क्या हुवा.... नहीं देखना क्या.. Huunnn

ज़ोया (नज़रे झुकाते हुए, मुस्कुराते हुए):
"गंदे इंसान गन्दी बातें भी करते हो तुम... घर चलो अम्मी को बताउंगी.. के आपकी बेटी को बाहर ले जाकर गन्दी वाते करता हैं आपका होने वाला दामाद..."

सिकंदर (मुस्कुरा कर):
"अच्छा..? फिर क्या लगता हैं तुम्हारी अम्मी तुम्हे मुझसे बचा लेगी क्या...फिर तो दोनों माँ बेटी को अपना मुसल दिखाना पड़ेगा...


सिकंदर:
वैसे... तुम्हारी अम्मी की औखली मेरे मुसल के लिए परफेक्ट होगी... क्यों की उसकी औखली तुमसे बड़ी होगी ना.."

ज़ोया (कुछ रुककर, फिर धीरे से मुस्कुराती है):
"पागल... अम्मी के साथ कुछ किया तो टांगे तोर देगी तुम्हारी.."

सिकंदर- टांगे तोर नहीं देगी.. टांगे फैला देगी... कितना मज़ा आएगा ना दोनों माँ बेटी को एक साथ पुरे घर मै दौरा दौरा कर... ह्यूमच ह्यूमच कर चोदने मे...


ज़ोया की बुर से अब मावा निकलने लगा था... उसे अब पैसाब आने लगा... वो सिकंदर से बिना सरमाए बोलती हैं छोड़ो मुझे पैसाब जाना हैं...

सिकंदर - अरे.. अरे..इतनी जल्दी मूत निकल गयी..... मेरे लाडो जब मे तेरे ऊपर चढ़ूंगा तो तू तो फवारे छोरे गी...


अब ज़ोया को लगा सिकंदर उसे कम समझ रहा हैं... अब ये तो औरतों की अदाए हैं... सारी दुनयाँ के सामने सलीके वाले होती हैं पर अपने मरद के सामने एकदम रंडी... ज़ोया भी पीछे नहीं हटी... वो आकर सिकंदर के गले लग जाती हैं... और उसके गले मे अपनी दोनों बाहें डाल उसे जोर से पकड़ लेती हैं...

ज़ोया सिकंदर के पैरो पर अपने पैर रख अपने दोनों हाथ उसके गले मे लपेटे हुवे..... उस से चिपक जाती हैं... अब ज़ोया सिकंदर के इतने करीब थी की दोनों की साँसो.. की गर्मी एक दूसरे को महसूस हो रही थी...

ज़ोया - क्या कहा तुम ने... मेरे अम्मी को चोदोगे... हूँननननननन...

वो सिकंदर के होठों को अपने होठों से पकड़ लेती हैं और अपना एक हाथ निचे ले जाकर अपने सलवार का नारा खोल देती हैं... और उसके बाद अपनी पेंटी नीच करती हैं... सिकंदर कुछ समझ पाता उस से पहले ही... वो उसे जोर से पकड़ लेती हैं... जैसे उसे अपने कब्जे मे ले रही हो... और फिर....


सुरररर..... सुररररररर........ सुरररररररर...... सुररररररर.

जी हैं ज़ोया ने सिकंदर के शरीर पर पैसाब कर दिया था... सिकंदर को जब अहसास होता हैं तो वो जोया को खुद से अलग करने की कोशिस करता हैं पर जोया उसे छोड़ने का नाम नहीं लेती... जब तक जोया की बुर से एक एक बून्द पैसाब टपक नहीं जाता वो सिकंदर को नहीं छोड़ती.... साथ ही साथ उसने कई जगह सिकंदर को काट भी लिया था.... उसके गाल.. गर्दन पर जोया के दांतो के निसान साफ दिख रहे थे..सिकंदर का पूरा पेंट भींग चूका था.. जोया के मूत से...


सिकंदर ( जोया को दूर करते हुवे) - गन्दी लड़की.. ये क्या किया तुमने...

जोया ( इठलाती हुवी) - नजर नहीं आता.. सुसु किया हैं तुम्हारे ऊपर...

सिकंदर - और इसकी वजह बताएंगी मोहतरमा....


जोया ( अपने आँखे घुमाते हुवे) -अपना गंध छोड़ रही थी तुमपर अब कोई लड़की तुम्हारे पास नहीं आएगी... ये हम लड़कियों का तरीका हैं.. अपने अपने.. मर्दों पर अपना गंध छोड़ने का...हुऊह... बड़े आये... सहजादी जोया से पन्गा लेने....

सिकंदर - चलो इसी बहाने तुम्हारी बुर तो दिख गई मुझे...



ज़ोया ( अपनी पेंटी और सलवार ऊपर करते हुवे )- हुँह... जाहिल बगैरत गंदे कहीं के...

जोया - ये तुम बुर बुर क्या लगा रखे हो.... वो मेरी सहेली हैं... उसका नाम पुपु है... समझे...

सिकंदर मुस्कुराता हुवा..- तो फिर अब तुम्हारे पुपु की खैर नहीं...



खैर ऐसी नटखट लारायों मे बाद सिकंदर ज़ोया को घर छोड़ देता है.....और अपना पेंट चेंज करने के बाद राहिल के तरफ निकल जाता है...


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सिकंदर, रहिल और साद एक जगह बैठकर अपने अगले कदमों के बारे में सोच रहे थे। उन सबके चेहरे पर चिंता थी। सोने को बेचने के लिए कोई भरोसेमंद ग्राहक नहीं मिल रहा था, और अब वो किसी रास्ते की तलाश में थे।

साद (घबराते हुए):
"यार, कहीं से भी कस्टमर नहीं मिल रहा है.... दिल्ली मे सायद इतने पैसे ही नहीं हैं किसी के पास..."

राहिल :
"अबे मै एक औरत को जनता हूँ... साली बहुत अमीर हैं.. पर पहले उसकी रेखी करनी परे गी..
वो मुझे सिक्योरिटी गार्ड के जॉब का ऑफर दे रही है, तो क्या बोलते हो तुम दोनों.. लग जाऊं.. रेखी पर.."

सिकंदर (चिंतित होते हुए, फिर गंभीर होकर):
"संभाल कर भाई... कहीं हम फस ना जाये..


राहिल (आंखों में एक योजना):
"अबे रुकजा मै तीनो माँ बेटी को कैसे अपने जाल मै फसता हूँ.... पहले ती तीनो को चोदुँगा... फिर आगे की बात करूँगा... तुम दोनों मुझपर भरोसा रखो...

साद :
" साले तेरे तो लॉटरी लग गई... हाहा.."

सिकंदर (मौन रहते हुए, फिर सर झुकाते हुए):
"ठीक है, कर के देख.. नहीं तो दूसरा कस्टमर ढूंढ़गे..."

[राहिल और साद दोनों सिकंदर के फैसले से खुश होते हैं, और अब वो अगले कदम की ओर बढ़ने के लिए तैयार हैं।]


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राहिल एक ऑटो से उतरकर सामने देखता है — एक शानदार बंगला, सफेद संगमरमर से बना हुआ, बड़ी-बड़ी झरोखियों से सजा हुआ। गेट पर सिक्योरिटी गार्ड, दोनों तरफ हरे-भरे लॉन, और एक तरफ स्वीमिंग पूल की झलक।

राहिल (आँखें फाड़ते हुए, हल्के से):
"साला क्या घर हैं... और बहनचोद एक हम हैं... साला छत पर सोते हैं... रोज रात को बादल आकर पूछता हैं..
" भाई नींद मै डिस्टर्ब तो नहीं किया ना "....चल बेटा राहिल लग जा काम पर...

वो गेट पार करता है, तभी इरा और सुहाना छत की रेलिंग से उसे देख रही होती हैं।

सुहाना (हँसी दबाते हुए):
"दीदी, ये देखो, हमारा नया बाउंसर आया है, लगता है 'गली बॉय' के सेट से निकला है।"

इरा (हँसते हुए, धीमे से):
"हाँ और जिस तरह चल रहा है, लगता है ‘हीरो’ बनने आया है, बाउंसर तो बैकग्राउंड डांसर लगता है।"

राहिल (नीचे से चिल्लाता है, अंदाज़ में):
"ओए राजकुमारियों... मज़ाक बाद में करना, पहले दरवाज़ा खोल दो!
कहीं ऐसा ना हो कि मैं सीधा हॉलिवुड की फिल्म में घुस जाऊँ… फिर तो तुम्हें मुझे साइन करना पड़ेगा।"



बंगले का इंटीरियर बेहद क्लासिक और रॉयल — क्रिस्टल झूमर, पर्शियन कालीन, रेशमी परदे और लकड़ी की नक्काशीदार फर्नीचर। मालिका एक सिल्क की साड़ी में, एक रॉयल सोफे पर बैठी होती है।

मालिका (सिगार का केस रखते हुए, मुस्कुराकर):
"तुम्हे हम तीनो का धयान रखना है... और मेरी बेटियों को एक खरोच भी नहीं आना चाहिए... दोनों मेरी जान हैं"

राहिल (थोड़ा झुकते हुए, स्टाइल में):
"मैडम, आपकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी…
और वैसे भी, मैं जान पे खेल जाता हूँ… सिर्फ चंद पैसो के लिए....

सुहाना (हँसी रोकते हुए):
"बहुत डायलॉगबाज़ी करता है, लेकिन है क्यूट।"

इरा (सर हिलाते हुए):
"बस अब प्लीज़ कोई गाना मत गा देना… नहीं तो कुत्ते भी भाग जाएंगे।"

राहिल की नज़र दीवार पर लगे एक फोटो फ्रेम पर जाती है

तस्वीर में एक नबजात बच्चा है मलिका के गोद मै लेता हुवा नाजुक, गोरा-चिट्टा, ऑक्सीजन मास्क के साथ एक हॉस्पिटल बेड पर लेटा हुआ है।

राहिल (धीरे से, थोड़े गंभीर होकर):
"ये… ये बच्चा कौन है?
इरा या सुहाना की बचपन की तस्वीर हैं किया?"

मालिका (चुप होकर कुछ पल देखती है तस्वीर को, फिर धीमे से बोलती है):
"नहीं… ये मेरा बेटा था।
ज़िंदगी ने मौका नहीं दिया मुझे उसे बड़ा करने का…
पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही…मर गया..

एक लंबी खामोशी

राहिल (धीरे से):
"माफ़ कीजिए… मुझे नहीं पता था।
आपके चेहरे पे इतनी ताकत देखी, सोचा आपके पास सब कुछ होगा…
पर कुछ दर्द तो ऐसा होता है जो कोई देख नहीं सकता।"

मालिका (हल्की सी मुस्कान के साथ, आँखें चमकते हुए):
"किसने कहा मै दर्द मै हूँ.. मुझे कोई दर्द नहीं.. वैसे भी मुझे वो नहीं चाहिए था... अनचाहा था...


राहिल - आरे मैडम जी... अगर आपको फर्क नहीं पड़ता तो आप उसकी तस्वीर भी यु सामने ना लगाती...



सुहाना:
"तो कल से हमारा सुपरहीरो हमारे बंगले के बाहर खड़ा रहेगा, देखना… मोहल्ले की लड़कियाँ लाइन लगाएँगी।"

राहिल (कंधा उचकाकर):
"लाइन तो पहले से ही लगी है, पर अब तुम लोगों की गली में आ गया हूँ… तो VIP एंट्री है।"

[तीनों हँसते हैं — इरा, सुहाना और मालिका — और पहली बार बंगले में गर्मी सी महसूस होती है… जैसे राहिल ने उस तस्वीर के दर्द में भी थोड़ा रंग भर दिया हो।]




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आसमान पर गुलाबी सूरज धीरे-धीरे छिप रहा होता है। कमरे के बालकनी में हल्की ठंडी हवा आ रही थी। रुक्सार और ज़ोया एक किनारे पर बिछे दीवान पर बैठी होती हैं, रुक्सार के हाथ में चाय का कप और ज़ोया के चेहरे पर एक हल्की सी शरारती मुस्कान।

रुक्सार (नज़रें टेढ़ी कर के, मुस्कुराकर):
"तो... और क्या बोल रहा था सिकंदर... "

ज़ोया (कनखियों से देखती है, मुस्कुराकर धीरे से):
"अम्मी... आप भी ना! वैसे ही मैं हिम्मत करके आपको बता रही हूँ... और आप इस तरह छेड़ रही हैं।"

रुक्सार (हँसते हुए):
"अरे छेड़ नहीं रही मेरी लाडो... पूछ रही हूँ। बता तो, कहाँ ले गया था मेरा दामाद?"

ज़ोया (शरमाकर, धीमे से):
"वो... आज वो अब्बा से इजाज़त लेकर मुझे बाहर घुमाने ले गया। पहले एक छोटी सी म्युसियम में, फिर चाय पीने और फिर... एक कस्बे के तालाब किनारे ।"

रुक्सार (हैरानी से, मुस्कुराकर):
"तालाब किनारे? वाह! फिल्मी जोड़ा बनकर घूमने निकल गई तू? और कुछ हुआ?"

ज़ोया (शर्मीली हँसी के साथ):
"नहीं... बस बातें कीं। और बहुत अच्छा लगा अम्मी। पहली बार ऐसा लगा... जैसे कोई मुझे बिना किसी मतलब के समझना चाहता हो।"

[दूसरी तरफ — ड्राइंग रूम में, अली एक हाथ में रिमोट और दूसरे हाथ में पैक खोले हुए बैठा होता है। उसका हाथ अब ठीक हो चुका है, पट्टी उतर चुकी है। सामने टीवी पर इंडिया-पाकिस्तान का मैच चल रहा है।**

अली (टीवी की ओर चिल्लाते हुए):
"हट बहनचोद.... कैच छोड़ दिया बे! धोनी होता तो पकड़ लेता! ये साले नए लड़के सारा खेल बिगाड़ रहे हैं!"

रुक्सार ( अपने मुँह पर हाथ रखते हुवे) - हए रब्बा.. ज़ोया देख तो इसे कैसी गन्दी गन्दी गालियां दे रहा है... अली... तू मार खायेगा...

अली - अरे अम्मी... देखों ना इनको कैसी कैच छोड़ रहे हैं...



[उसी वक्त ज़ोया का मोबाइल वाइब्रेट करता है। वो चुपके से स्क्रीन देखती है — "सहबाज भाई"]

ज़ोया (धीरे से फुसफुसाकर):
"अब ये क्यों massage कर रहा हैं...



ज़ोया (फोन पढ़ते हुए, हल्की आवाज़ में):
" ‘कैसी हो ज़ोया


[अब वो दोनों फोन पर मैसेजिंग करने लगते हैं,]

सहबाज (टेक्स्ट):
“कल अस्पताल से छुट्टी मिल रही है… घर जा रहा हूँ।”

ज़ोया (टेक्स्ट):
“अल्ला@ह का शुक्र है… अब तबीयत कैसी है?”

सहबाज (टेक्स्ट):
“अब ठीक हूँ… पर एक बात कहनी थी।”

ज़ोया (टेक्स्ट):
“हाँ बोलो दोस्त..।”

सहबाज (टेक्स्ट):
“कल discharge के बाद अगर तुम मेरे घर आ जाओ मिलने… तो मुझे अच्छा लगेगा।


[ज़ोया मोबाइल देखते हुए थोड़ी देर सोचती है। पास बैठी रुक्सार धीरे से पूछती हैं:]

रुक्सार:
"क्या हुवा किसका मैसेज हैं..."

ज़ोया (धीरे से, आँखें नीची करके):
एक सहेली का है अम्मी... कल घर बुला रही हैं.."

रुक्सार (थोड़ी सोचकर):
"अली के साथ चली जा...

ज़ोया (धीरे से मुस्कुराकर):
"अली क्या करेगा जाकर अकेली चली जाउंगी...

[उसी वक्त टीवी से आवाज़ आती है — "और ये गया छक्का!" अली दोनों हाथ हवा में लहराता है]

अली (चिल्लाकर):
"देखा?! ऐसे बोलते हैं ‘बाप बाप होता है!’

रुक्सार (हँसते हुए):
तू कब सुधरेगा...

ज़ोया (हँसती है, थोड़ा भावुक होकर अपनी अम्मी के कंधे से सिर टिका देती है)
"अम्मी… अल्लाह करे अब अच्छा ही हो… बस अब और आँसू नहीं चाहिए।"


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धूप की पहली किरण खिड़कियों से होकर कमरे में उतरती है, हल्की सी ठंडक और सन्नाटा। सहबाज धीरे-धीरे अपने बिस्तर से उठाया जा रहा है, नर्स व्हीलचेयर तैयार कर रही है। बाहर अस्पताल की लॉबी में एक भीड़ जमा है — अलीना, उसकी भाभी, अम्मी, अब्बू, और सबसे आख़िर में ज़ोया, जो चुपचाप खड़ी है।

लेकिन कोई नहीं है — हसन।
सहबाज चारों तरफ नज़र घुमाता है। हसन की तलाश करता है, मगर हसन कहीं नहीं दिखता।

सहबाज (धीरे से, टूटी आवाज़ में):
"अब्बू... नहीं आए?"

अलीना (कंधे पर हाथ रखकर, झूठी मुस्कान के साथ):
"शायद... तुम्हें इस हाल में देख नहीं पाएंगे। वो थोड़ी देर में आएंगे।"

सहबाज (फुसफुसाकर):
"या शायद... देखना ही नहीं चाहते।"


सहबाज को अब व्हीलचेयर पर शिफ्ट किया जा चुका है। बाहर एक काली Mercedes गाड़ी खड़ी है।


---

आलीशान बंगला, संगमरमर की सीढ़ियाँ, ऊँचे दरवाज़े, और अंदर की दीवारों पर भारी पेंटिंग्स

ज़ोया पहली बार इस दुनिया में कदम रखती है। उसकी आँखें चारों तरफ घूमती हैं — झूमर, फव्वारा, खिड़की से दिखती बगिया और दीवारों पर लटकी नामी पेंटिंग्स।

ज़ोया (धीरे से फुसफुसाकर):
"इतना बड़ा घर... ये लोग दुख भी कितने शान से जीते हैं..."

भीतर सहबाज को कमरे में ले जाया जा रहा है, नर्स उसे आराम से लिटा रही है। अलीना उसे हल्के हाथ से कंबल ओढ़ा देती है।

अलीना (धीरे से ज़ोया की तरफ मुड़कर):
"ज़ोया... शुक्रिया जो तू आई। और अब... एक और काम भी है।"

ज़ोया (थोड़ा झिझककर):
"जी?"

अलीना (गंभीर स्वर में):
"मैं जानती हूँ... सिकंदर से तेरी नज़दीकी बढ़ी है। देख... मैं तुझे रोकती नहीं। लेकिन मेरी एक दरख्वास्त है — उसका ख्याल रख।


ज़ोया (धीरे से, मगर मजबूती से):
"आपको सिकंदर की इतनी फ़िक्र क्यों हैं... क्या रिस्ता हैं आपका उस से....

अलीना :
बहुत गहरा रिस्ता हैं... इतना की उसके लिए मै जान भी दे दू... पर तू ये सवाल उस से पूछना...अच्छा सुना ना... तेरे पास सिकंदर की कोई तस्वीर हैं क्या...





[ज़ोया चुपचाप अपने फोन से सिकंदर की एक तस्वीर भेजती है — एक सिंपल फोटो जिसमें वो अपने पुराने घर की छत पर खड़ा है, आँखों में ठंढी गहराई और होठों पर खामोशी।]

ज़ोया (फोन पकड़ाते हुए, ):
"ये रही।

अलीना (तस्वीर देखते हुए, गहरी सांस लेकर):
कितना प्यारा लगता हैं ना... जैसे कोई फरिश्ता हो..."

ज़ोया उठने लगती है, बाहर जाने को होती है। तभी सहबाज की आवाज़ सुनाई देती है:

सहबाज (धीरे से, ज़ोया की तरफ देखते हुए):
"ज़ोया... शुक्रिया। अब तक जो भी किया तूने...


ज़ोया थोड़ा मुस्कुराती है, फिर बिना कुछ कहे पलटकर दरवाज़े की ओर बढ़ती है।





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मलिका का आलीशान बंगला — शाम का वक्त, ड्राइंग रूम में हल्की रौशनी, मखमली परदे... से सजी सोफे पर बैठी मलिका...

राहिल अब मलिका का ऑफिशियल बॉडीगार्ड बन चुका है। पूरे दिन की ड्यूटी के बाद आज पहली बार वो मलिका के साथ अकेला बैठा है — सोफ़े के एक कोने पर।

मलिका (हल्के मुस्कान के साथ):
"राहिल… तुमने तो आते ही मेरे घर की हवा ही बदल दी है। अब तो लगने लगा है… कोई वाकई मेरी हिफाज़त कर रहा है…"

राहिल (टपोरी अंदाज़ में):
"अरे मैडम, जब से आया हूँ, किसी ने आपकी तरफ आँख उठा के भी देखा क्या? जो देखता उसकी आँख hi उतार देता!"

[मलिका हँसती है, धीरे से अपने बालों को पीछे ले जाती है — गला खुलता है, कॉलरबोन की झलक।]

मलिका (आवाज़ धीमी मगर गहराई लिए हुए):
"बिलकुल... और कुछ चीज़ों की हिफाज़त... थोड़ी करीब से करनी पड़ती है ना, मिस्टर बॉडीगार्ड?"

राहिल (आँख दबा कर):
"जितना पास आओगी, उतनी मज़बूती से बचाऊंगा।
बस… कोई कहे ना कि बचाने वाले से ही खतरा है!"

मलिका (हँसकर, अपनी साड़ी का पल्लू संभालते हुए, जिसे जानबूझकर थोड़ा सरकने देती है):
"वैसे तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड हैं की नहीं..."

राहिल (होंठों पर हल्की मुस्कान):
"कहाँ मैडम जी... मुझे कम उम्र की लड़कियां.. पसंद कहाँ आती हैं... मुझे तो बड़ी उम्र की मादा पसंद आती हैं...

[मलिका उसके पास आकर एक गिलास वाइन देती है, हाथ उसके हाथ से छू जाता है। वह धीमे से पूछती है:]

मलिका (धीरे, आँखों में गहराई लेकर):
"राहिल… सच-सच बताओ, क्या तुमने कभी किसी अमीर औरत को चाहा है?"

राहिल (घूरते हुए, मुस्कुराकर):
"नहीं मैडम जी.. हम जैसो से अमीर औरतें कहाँ सेट होती हैं...

मलिका.. राहिल को दिखाती हुवी अपने सारी के ऊपर से अपने बुर को एक बार खुजला देती हैं.. राहिल ये देखता हैं... पर दोनों बस मुस्कुराते रहते हैं...

मलिका (धीरे, सांस रोकती सी):
"और अगर वो औरत खुद तुम्हें अपने पास रखना चाहे.. तो..

राहिल (धीमे मगर शरारती अंदाज़ में):
"फिर तो मै उसका और उसकी बेटियों का बहुत ख्याल रखूँगा...











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ठंडी हवा, सन्नाटा, और एक तन्हा लड़का
पुरानी छत पर अकेला साया — सिकंदर।
वो आसमान की ओर देख रहा है… टिमटिमाते हुए तारों में शायद सुकून ढूँढ रहा है…



एक ठंडी हवा उसके बालों को छू कर गुजरती है… आँखों में नींद नहीं… सिर्फ़ पुरानी जलती हुई यादें।

फ्लैशबैक — कई साल पहले का दिन – हवेली का स्कूल ड्रेस में सिकंदर

वो स्कूल नहीं गया था उस दिन — जाने-अनजाने शायद अलिना के बनाए उस नकली परफेक्ट बच्चे के साँचे से बाहर आ गया था।

अलिना (गुस्से में चिल्लाते हुए):
"तू फिर से स्कूल नहीं गया? कितनी बार कहा है, तू मेरे नाम पे धब्बा है… हर जगह मेरी बेइज़्जती कराता है!"

थप्पड़ की आवाज़… एक के बाद एक
सिकंदर खामोश खड़ा रहता है।
ये पहली बार नहीं था… रोज़ की कहानी थी।
पर उस दिन कुछ बदल गया।

अलिना:
"अब सज़ा मिलेगी! आज पूरा दिन तू स्टोर रूम में बंद रहेगा… वहीं सड़!"

दरवाज़ा बंद होता है, ताले की खटाक — अंधेरा, बंद स्टोर रूम में बस धूल और पुरानी चीज़ें



वो कोने में बैठा-बैठा एक पुराना बॉक्स देखता है। धूल में लिपटा… उस पर लिखा है –
"Sikander - Birth Record DVD"

सिकंदर (हैरानी से):
"ये क्या है...?"

वो उसे चुपचाप अपने कपड़ों में छुपा लेता है… आँखों में कुछ चमक… जैसे पहली बार कुछ जानने की उम्मीद मिली हो।

कुछ घंटो बाद अमीना ( अलीना की भाभी) आती हैं और उसे बाहर निकलती हैं...

अमीना - क्यों नहीं गया स्कूल... क्यों इतनी सरारत करता हैं...


सिकंदर - सरारत करू या ना करू... मार तो परनी ही हैं... अम्मी को पाता नहीं क्या हो गया हैं... हमेसा मुझसे रूठी रहती हैं....

अमीना - कोई बात नहीं... जल्दी से बड़ा हो जा... फिर कोई नहीं मारे गा मेरे राजा बेटे को....



कमरे की नीली रौशनी — pc ऑन होता है
वो DVD लगाता है…

स्क्रीन पर चलता है — "Maternity Ward – Day of Birth – sikander abdul rahaman"... ये नाम सुनकर उसे बड़ा अच्छा लगा... सिकंदर अब्दुल रहमान..

कैमरा अंदर जाता है अस्पताल के वार्ड में… एक रोती हुई औरत… डॉक्टर के हाथ में एक बच्चा।

नर्स:
"Congratulations madam… it's a boy."

पर अगला वाक्य सिकंदर के रगों में आग भर देता है।

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रात का सन्नाटा, सिकंदर का कमरा, नीली रौशनी में डूबा स्क्रीन…


सिकंदर ने जैसे ही DVD को प्ले किया, एक अजीब सी कंपकंपी उसके जिस्म में उतर गई…
उसकी साँसें भारी होने लगीं… आँखें स्क्रीन पर जमी थीं, और दिल किसी तूफ़ान की आहट सुन रहा था।

वीडियो की शुरुआत होती है — एक अस्पताल का कमरा, दर्द से चीखती हुई एक औरत की आवाज़... फिर कैमरा सामने जाकर उस औरत का चेहरा दिखाता है… वो थी — अलिना।

नर्स (खुश होकर):
"मुबारक हो मैडम, लड़का हुआ है। बहुत प्यारा है… देखिए।"

[नर्स एक नवजात बच्चे को गोद में लेकर अलिना की ओर बढ़ती है]

अलिना (चेहरे पर घृणा, चीखते हुए):
"दूर हटाओ इसे! मुझे नहीं चाहिए ये हराम की औलाद!"

[नर्स और डॉक्टर एक-दूसरे को घबराकर देखते हैं]

अलिना (दाँत पीसते हुए, आँखों से जहर टपकाते हुए):
"अल्ला@ह सिकंदर जिन्दा क्यों हैं... अल्ला@ह जी ये आपकी हाथ मै था.. अपने सिकंदर को मार क्यों नहीं दिया...
"इसके जिस्म में उस रहमान का गंदा ख़ून बहता है… वो नामालूम… वो शैतान!"

[नर्स चौंक जाती है, डॉक्टर उसके पास आता है]
डॉक्टर:
"मैडम! बच्चा बिल्कुल ठीक है—"

अलिना (दरिंदगी से चीखते हुए):
नहीं चाहिए मुझे.... जाओ मार डालो सिकंदर को.."

[सिकंदर स्क्रीन के सामने जड़ हो चुका है। उसका चेहरा सफेद, शरीर बेजान… जैसे रूह वहीं कैद हो गई हो।]

सिकंदर (धीरे से, फुसफुसाते हुए):
"…हर दिन… तू मेरे लिए मौत माँगती रही?"

[उसके गालों से आँसू अब भरभरा कर गिरने लगे थे..

अब उसकी आँखों मे , सवाल नहीं… बस राख और आग थी..

सिकंदर (थरथराती आवाज़ में):
"जिसे मैं माँ समझता था … वो तो मुझे पैदा होते ही क़त्ल करवाना चाहती थी …"

[स्क्रीन पर अलिना की झुंझलाहट अब भी गूंज रही थी — "ये हराम हैं … मरना चाहिए इसे … इसे रहमान ने पैदा किया हैं … मेरा कुछ नहीं लगता..."

वीडियो बंद होता है। कमरे में सन्नाटा टूटता नहीं… सिर्फ़ घड़ी की टिक टिक… और सिकंदर की गहरी सांसें।

सिकंदर (अपने आप से, आँखें सुर्ख, होंठ थरथराते हुए):
"मुझे मारने वाली…




---


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रात का सन्नाटा, हवेली के गलियारों में मौत-सी ख़ामोशी पसरी हुई है। सिकंदर का चेहरा पत्थर की तरह सख़्त है, आँखों में तूफान, और हाथों की मुठ्ठियाँ इतनी कस चुकी हैं कि नाखूनों से चमड़ी छिलने लगी है।]

[सिकंदर धीमे-धीमे क़दमों से चलता हुआ अलिना के कमरे तक पहुंचता है। दरवाज़ा खुला है। अंदर का नज़ारा देख उसका दम घुटने लगता है।]

वो देखता है अलीना और सहबाज एक दूसरे से चिपक कर सोये हुवे है... साहबाज का सर अलीना के सीने मै धसा हुवा है.. अलीना बड़े प्यार से उसके बालों मे हाथ फेर रहे है...



सिकंदर का शरीर कांपता है, उसकी रगों में बर्फ की जगह आग बहने लगती है। उसकी आँखें सुर्ख़ हो उठती हैं।

वो पलटकर तेजी से बाहर निकलता है, एक कोने से मोटा-सा लकड़ी का डंडा उठाता है और सीधा कमरे में वापस आता है।

बिना कुछ बोले, बिना कोई चेतावनी दिए — सहबाज के ऊपर डंडे की बरसात शुरू कर देता है।

धप्प!! धप्प!! धप्प!!

सहबाज (आँखें खोलते हुए, चीखता है):
"भाई!!! ये क्या कर रहे हो!!! छोड़ो!!!"

अलिना (हकबकाकर):
"सिकंदर!!! पागल हो गए हो क्या!!! क्या कर रहे हो!!!"

सिकंदर का एक भी वार नहीं रुकता। उसकी साँसें फटी हुई हैं, आँखों में सिर्फ़ एक तस्वीर — उस DVD की, जिसमे ये औरत उसके मरने की दुआ कर रही थी… और ये लड़का उसके सीने से चिपका पड़ा है।

अलिना (सहबाज का ढाल बनते हुए):
"बस करो सिकंदर!!! मर जाएगा वो!!!"

[

सिकंदर एक झटके में अलिना को धक्का देता है — वो गिरती है, उसके चेहरे पर हैरानी, घबराहट और डर का तूफ़ान।


सिकंदर (गूँजती आवाज़ में, जैसे ज़मीन कांप उठे):
"तुझे मौत चाहिए थी ना मेरी!!!
अब देख मेरी आँखों में...


कुछ डंडे अलिना को भी लगते हैं। वो चीखती है।

अलिना (चीखती हुई):
" बंद करो!!! कोई है!!! कोई है!!!"बचाओओओओ...

सारे नोकर, हवलदार, उसके भाई-भाभी सब कमरे की ओर दौड़ते हैं। एक नौकर सिकंदर को पकड़ने की कोशिश करता है।

नौकर:
"सिकंदर बाबा!!! खुद को संभालिए!! बस करिए!!"

कई लोगों के ज़ोर लगाने पर सिकंदर को अलीना से अलग किया जाता है। सहबाज ज़मीन पर पड़ा हुआ है, बदन लहूलुहान। अलिना काँप रही है।

अलिना की आँखों में सिकंदर के लिए अब वो पुराना तिरस्कार नहीं, बल्के डर साफ़ झलकता है। पहली बार उसने सिकंदर की आँखों में वो दरिंदगी देखी थी, जो किसी वहशी बाग़ी की होती है।

अलिना (कांपते हुए, धीमे से):
"ए खुदा.... ये क्या हो गया मेरे सिकंदर को..."

सिकंदर धीरे-धीरे सबको हटाते हुए कमरे से निकलता है। उसका चेहरा शांत है — मगर उसकी आँखों में अब कोई मासूमियत बाकी नहीं...

सिकंदर (बिलकुल ठंडी, मगर जानलेवा आवाज़ में):
साली रंडी... मादरचोद... हराम की जानी...साली तू दोनों बाप बेटे की रखैल हैं...




हवेली के ड्रॉइंग रूम में अफरा-तफरी के बाद पसरा सन्नाटा। कमरे के कोने में सहबाज बुरी तरह घायल पड़ा है, नौकरानी उसके जख्मों पर पट्टी कर रही है। सबके चेहरे पर दहशत छाई है। और वहीं बीच कमरे में सिकंदर खड़ा है — उसकी साँसें अभी भी तेज़ हैं, चेहरा पसीने और गुस्से से भीगा हुआ, आँखों में ऐसी नफ़रत जो सीधा दिल में उतर जाए।

अलिना, जिसका चेहरा सफेद पड़ चुका है, जिसके बाल सिकंदर की पकड़ में उलझकर बिखर चुके हैं, कांपती हुई उसकी ओर बढ़ती है। उसके जिस्म पर लाठी के निशान हैं — पीठ, कंधा और बाजू पर सुर्ख़ लकीरें हैं। उसकी चाल लड़खड़ा रही है, मगर आँखों में एक माँ की जिद है… एक माँ की वो दीवानगी जो किसी भी हालत में अपने बेटे को छोड़ नहीं सकती।


---

अलिना (कांपती आवाज़ में, फूटी साँसों में):
"सिकंदर... मेरी जान... क्या हो गया है तुझे...? क्यूँ कर रहा है ये सब...? इतनी नाराज़गी अम्मी से...?

सिकंदर अचानक पलटता है, उसकी आँखों में जहर है — माँ के लिए, उस औरत के लिए जिसने उसे सिर्फ जख्म दिए।

सिकंदर (बिलकुल ठंडी, मगर नुकीली आवाज़ में):
" साली तू क्या कर रही थी उस मादरचोद के साथ....?

अलिना की आँखें भर आती हैं, मगर वो फिर भी उसके पास बढ़ती है।

अलिना (हकलाती हुई):
"बेटा... जो तूने देखा... वो सब कुछ वैसा नहीं था जैसा तू समझ रहा है... सहबाज... बस..."

सिकंदर अचानक दहाड़ते हुए उसकी तरफ बढ़ता है, और उसके बालों को मुट्ठी में जकड़ लेता है। सब सिहर जाते हैं।

सिकंदर (बिलकुल वहशी बनकर):
"बस क्या? अम्मी थी तू...?
जो अपने बेटे को मरते देखने की दुआ करती थी?
तेरे मुंह से निकला एक एक लफ्ज़ … अल्लाह के नाम पे दिया हर लानत …
सब रिकॉर्ड मे हैं … DVD पे हैं … मेरे पास सब सबूत हैं!"

[
अलिना की आँखों से आँसू बह रहे हैं, मगर वो चीखती नहीं — वो उसे रोकने की कोशिश नहीं करती… बस चुपचाप उसकी आँखों में देखती है… क्योंकि अब उसे समझ आ चुका है — सिकंदर सब जान चुका है उसका सहजादा अब उस से रूठ चूका हैं.. वो हमेसा कोशिस करती सिकंदर को एक अच्छा इंसान बनाने की... उसे डर लगता कहीं सिकंदर अपने बाप जैसा ना बन जाये.. इस लिए वो उसपर सकती करती... उसे डाटती... मारती.. मगर ये सब उसका प्यार था.. पर अब सब ख़तम हो गया हैं...

अलिना (रोते हुए, टूटी आवाज़ में):
"नहीं मेरी जान... अम्मी कभी तेरे लिए ऐसा नहीं सोच सकती... उस वक्त मति मारी गयी थी मेरी.... मुझे माफ़ कर दे.... हए रब्बा.. जब मै वो सब बोल रही थी तूने मेरी जुबान क्यों नहीं सील दी....
हवेली के ड्रॉइंग रूम में अफरा-तफरी के बाद पसरा सन्नाटा। कमरे के कोने में सहबाज बुरी तरह घायल पड़ा है, नौकरानी उसके जख्मों पर पट्टी कर रही है। सबके चेहरे पर दहशत छाई है। और वहीं बीच कमरे में सिकंदर खड़ा है — उसकी साँसें अभी भी तेज़ हैं, चेहरा पसीने और गुस्से से भीगा हुआ, आँखों में ऐसी नफ़रत जो सीधा दिल में उतर जाए।

अलिना, जिसका चेहरा सफेद पड़ चुका है, जिसके बाल सिकंदर की पकड़ में उलझकर बिखर चुके हैं, कांपती हुई उसकी ओर बढ़ती है। उसके जिस्म पर लाठी के निशान हैं — पीठ, कंधा और बाजू पर सुर्ख़ लकीरें हैं। उसकी चाल लड़खड़ा रही है, मगर आँखों में एक माँ की जिद है… एक माँ की वो दीवानगी जो किसी भी हालत में अपने बेटे को छोड़ नहीं सकती।


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अलिना (कांपती आवाज़ में, फूटी साँसों में):
"सिकंदर... मेरी जान... क्या हो गया है तुझे...? क्यूँ कर रहा है ये सब...? इतनी नाराज़गी अम्मी से...?

सिकंदर अचानक पलटता है, उसकी आँखों में जहर है — माँ के लिए, उस औरत के लिए जिसने उसे सिर्फ जख्म दिए।

सिकंदर (बिलकुल ठंडी, मगर नुकीली आवाज़ में):
" साली तू क्या कर रही थी उस मादरचोद के साथ....?

अलिना की आँखें भर आती हैं, मगर वो फिर भी उसके पास बढ़ती है।

अलिना (हकलाती हुई):
"बेटा... जो तूने देखा... वो सब कुछ वैसा नहीं था जैसा तू समझ रहा है... सहबाज... बस..."

सिकंदर अचानक दहाड़ते हुए उसकी तरफ बढ़ता है, और उसके बालों को मुट्ठी में जकड़ लेता है। सब सिहर जाते हैं।

सिकंदर (बिलकुल वहशी बनकर):
"बस क्या? अम्मी थी तू...?
जो अपने बेटे को मरते देखने की दुआ करती थी?
तेरे मुंह से निकला एक एक लफ्ज़ … अल्लाह के नाम पे दिया हर लानत …
सब रिकॉर्ड मे हैं … DVD पे हैं … मेरे पास सब सबूत हैं!"

[
अलिना की आँखों से आँसू बह रहे हैं, मगर वो चीखती नहीं — वो उसे रोकने की कोशिश नहीं करती… बस चुपचाप उसकी आँखों में देखती है… क्योंकि अब उसे समझ आ चुका है — सिकंदर सब जान चुका है उसका सहजादा अब उस से रूठ चूका हैं.. वो हमेसा कोशिस करती सिकंदर को एक अच्छा इंसान बनाने की... उसे डर लगता कहीं सिकंदर अपने बाप जैसा ना बन जाये.. इस लिए वो उसपर सकती करती... उसे डाटती... मारती.. मगर ये सब उसका प्यार था.. पर अब सब ख़तम हो गया हैं...

अलिना (रोते हुए, टूटी आवाज़ में):
"नहीं मेरी जान... अम्मी कभी तेरे लिए ऐसा नहीं सोच सकती... उस वक्त मति मारी गयी थी मेरी.... मुझे माफ़ कर दे.... हए रब्बा.. जब मै वो सब बोल रही थी तूने मेरी जुबान क्यों नहीं सील दी....

सिकंदर बालों से झटककर उसे ज़मीन पर गिरा देता है, उसके शब्दों में अब ज़हर की जगह ज्वालामुखी फूट पड़ा है।





सिकंदर बालों से झटककर उसे ज़मीन पर गिरा देता है, उसके शब्दों में अब ज़हर की जगह ज्वालामुखी फूट पड़ा है।











[हवेली में मौजूद लोग सिकंदर को पकड़कर अलिना से दूर करते हैं। अलिना फर्श पर बैठी है — उसके बाल बिखरे हुए हैं, कपड़े अस्त-व्यस्त, आँखें रो-रोकर सूज चुकी हैं। बदन पर जगह-जगह लाठी के नीले निशान हैं, और दिल... दिल जैसे हज़ार टुकड़ों में बंट गया हो।]

[वो खुद से बुदबुदा रही है, खुद को कोस रही है, और फिर काँपती हुई हाथ फैलाती है, जैसे अपने बेटे को आखिरी बार गले लगाने की भीख मांग रही हो।]



लेकिन सिकंदर अब उसकी तरफ देखता भी नहीं।


सिकंदर भारी कदमों से वहाँ से चला जाता है। अलिना फर्श पर ढह जाती है, उसका चेहरा आँसुओं से भीगा है… और बँगले में,सन्नाटा पसर जाता हैं... सब उस रात के बीतने का इंतज़ार कर रहे होते हैं.. क्यों की सुबह हसन नाम का तूफान आने वाला हैं...


---



2245677==--*%₹%55*--


दिन का समय, लेकिन माहौल भारी और दमघोंटू। घर की दीवारें भी शायद आज होने वाले तूफान से थर्रा रही थीं। दरवाज़ा ज़ोर से खुलता है और अंदर आते हैं – हसन। चेहरा गुस्से से लाल, आँखों में खून, और आवाज़ में आग।

हसन (गु्स्से में दहाड़ते हुए):
"साला तेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी और बेटे पे हाथ उठाने की...!!"
वो सिकंदर की गर्दन पकड़कर उसे हवा में उठा लेता है, जैसे कोई खिलौना हो।

हसन:
"तेरा औक़ात क्या है... नाजायज़ है तू! हरामी नस्ल का कीड़ा... अब अपनी औकात दिखाने लगा है??"

सिकंदर के गले में दबाव इतना बढ़ चुका है कि उसकी साँसें घुटने लगती हैं। वो हाथ-पैर मारता है, आँखें उलटने लगती हैं। सामने सब लोग खड़े हैं, कोई कुछ नहीं करता — सब सिर्फ तमाशा देख रहे हैं। एक 16 साल का लड़का क्या ही कर सकता है एक हट्टे-कट्टे मर्द के सामने...?

[तभी सीढ़ियों से भागती हुई आती है — अलिना। उसका चेहरा सफेद पड़ चुका है, जिस्म अब भी दर्द से टूटा हुआ है, लेकिन बेटे की ये हालत उससे देखी नहीं जाती।]

अलिना (चीखते हुए):
"हसन!! छोड़ दो उसे!! ये मर जाएगा!! छोड़ो मेरे बच्चे को!!"

[अलिना लपकती है, अपने पूरे ज़ोर से हसन को पीछे धकेलती है और किसी तरह सिकंदर को छुड़ा लेती है। सिकंदर ज़मीन पर गिरता है, ज़ोर-ज़ोर से खाँसता है, जैसे अभी-अभी मौत से लौटा हो।]

[अलिना उसके पास बैठती है, उसकी पीठ थपथपाती है, उसे थामने की कोशिश करती है

सिकंदर (जैसे किसी जहरीले साँप को देख लिया हो):
"हथ मत लगाना मुझे!! दूर रह मुझसे!!"

[वो उसका हाथ झटक देता है। अलिना वहीं बैठी रह जाती है — नज़रों में डर, दर्द, और एक माँ का टूटा हुआ दिल




खैर अब सिकंदर अपने यादों की दुनयाँ से बाहर आता है..
खुला आसमान, शांत वातावरण… बस हवा का हल्का झोंका और सिकंदर का अकेलापन। वो एक पुराने, पत्थर के स्लैब पर बैठा है… आँखें बंद किए, मगर दिमाग़ में आवाज़ों का तूफान मचा है।]

[पहली आवाज़ — हसन की, कहीं गूँजती हुई:]

हसन (गर्व से, मगर ज़हर से भरी):
"मैं इसे अपना नाम नहीं दे सकता, अलिना...
लोग क्या कहेंगे?
कि एक नवाब की बीवी पहले से ही एक नाजायज़ बच्चे की माँ है...?
मेरी इज़्ज़त का क्या होगा...?"

[दूसरी आवाज़ — अलिना की, मीठी मगर धोखा छुपाए हुए, धीरे-धीरे सिकंदर की आत्मा को तोड़ती हुई:]

अलिना (भावुक, मगर नकली ममता से लिपटी):
"सिकंदर बेटा...
तू मीडिया के सामने मत आना...
कोई पूछे तो बोलना... तू यहाँ काम करता है...
इतना तो कर सकता है ना अपनी अम्मी के लिए...?
मेरा प्यारा बेटा..."

[सिकंदर की आँखें खुलती हैं। वो अब पूरी तरह जाग चुका है — दर्द और नफ़रत की नींद से। उसकी आँखों में अब आँसू नहीं हैं —

सिकंदर (धीरे से, खुद से बुदबुदाता है):
"‘काम करता है...’
कितनी आसानी से कहा था ना तुने, अलिना...




वो आसमान की तरफ देखता है, जैसे कुछ पूछना चाहता हो — खुदा से, तक़दीर से या शायद खुद से...
"


---
 

Yashu7979

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Zoya ka character bahut ulja hua hsi ek taraf voh sikandar ka itne kareeb ho rahi hai aur vahi dusri taraf sehabaaz sa bhi nazdeekiyan basa rahi h.....rahil kahi fasa na de sikander ko...
 
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Alina ek or galti kar rhi h ye isi ke layak h . Bhai sikander kab jayega apne baap ko dundne. sikandar ka attitude girta hua dikh rha h.
 
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Reactions: Rajurajkr
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Yughandhar

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Bro jo ek bar galti kare sirp use hi maf Kiya jata he jo bar bar galti kare use sirf saja hi di jati he or Alina galti yo ki rani he use to sirf nark ki agg jese jalna chahiye or lekhak ki ekcha
 
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