मन्यु! दरवाजा खोलो बेटा, मम्मी कितनी देर से खटखटा रही है" जब चार-पाँच बार दरवाजे पर थाप देने के बावजूद अभिमन्यु ने दरवाजा नही खोला तब वैशाली हाथ के थापों के साथ उसे आवाज भी देने लगी।
"वैसे तो दिन मे कभी नही सोता, जरूर मुट्ठ मारने की थकान से नींद लग गई होगी बेचारे की। हाय रे मेरी पेंटी, आज बुरी फंसी तू" अपनी ही ठरकी सोच पर वैशाली की हँसी छूट जाती है, अब इसे ठरक नही कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि बीते पिछले दो-तीन घंटे के घटनाक्रमों ने एक बेहद संस्कारी माँ को कितना अधिक बदल दिया था। तत्काल वह अपना बायां कान दरवाजे से चिपका देती है ताकि अगर उसका बेटा जानबूझकर दरवाजा नही खोल रहा हो तो वह कमरे के अंदर की हलचल सुनकर इस बात का अनुमान लगा सके।
"बेटा सो गए क्या?" अपने कान मे कोई हलचल सुनाई ना देने के उपरान्त वह फौरन अपने घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ गई और की-होल से कमरे के भीतर का जायजा लेने लगती है, अभिमन्यु बिस्तर पर औंधा डला था। एकपल को बेटे की नींद का ख्याल कर उसने उसे जगाने का विचार त्याग दिया मगर उसकी भूख के विषय मे सोच फर्श पर बैठे-बैठे ही वह उसे जोरों से पुकारने लगती है।
"क्या है मॉम, मैं सो रहा हूँ यार" अभिमन्यु नींद मे कसमसाते हुए बोला, वाकई वह बहुत गहरी नींद मे था।
"यार के बच्चे, दरवाजा खोलो। मुझे तुमसे बात करनी है" जवाब मे वैशाली चिल्लाकर बोली और अपनी उसी चिल्लाहट की आड़ मे हल्के हाथों से दरवाजे का नॉब घुमा देती है।
बाद मे मम्मी, बाद मे" अभिमन्यु पुनः कसमसाया।
"मैंने कहा ना मुझे तुमसे बात करनी है। अभी, इसी वक्त खोलो दरवाजा" वैशाली ने सहसा क्रोधित होने का नाटक किया और जिसके असर से अभिमन्यु तुरंत ही उठकर बैठ गया।
"खोलता हूँ, खोलता हूँ" एक लंबी जम्हाई लेते हुए वह बिस्तर से नीचे उतरकर आड़े-टेढ़े कदमों से दरवाजे के समीप आने लगा और तभी वैशाली भी फर्श से उठकर खड़ी हो जाती है।
"गेट शायद बाहर से लॉक है माँ" वह दरवाजा खींचने का प्रयास करते हुए बोला।
"मैंने ही लॉक किया था बाहर से" वैशाली जवाब मे बोली।
"क्यों? फिर क्यों नींद खराब की मेरी, जब गेट खोलना ही नही था? फौरन अभिमन्यु ने चिढ़ते हुए पूछा।
"भाई तुम्हारा क्या भरोसा, अंदर किस हाल मे हो। कपड़े तो पहने हैं ना तुमने या फिर नंगे हो?" वैशाली ने अपनी रोके ना रुकाए हँसी को काबू मे करने की कोशिश करते हुए पूछा, यकीनन अब ठरक उसके सिर चढ़कर बोल रही थी।
"नंगा!" अपनी माँ के इस अजीब से प्रश्न पर अभिमन्यु जैसे चौंक सा जाता है, उसके हैरत से खुल चुके मुंह से मात्र इतना ही बाहर आ सका।
"अरे दिन मे तुम कुछ न्यूडिटी-व्यूडिटी की बात कर रहे थे ना तो मुझे लगा कि तुम कहीं ....." वैशाली ने अपने कथन को अधूरा छोड़ते हुए कहा।
"खोलू दरवाजा? सच मे नंगे नही हो ना?" उसने पिछले कथन मे जोड़ा और बेटे के जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही झटके से दरवाजा खोल देती है।
हाय! अपनी माँ की कच्छी का यह क्या हाल कर दिया तुमने? पापी!" दरवाजा खुलते ही वैशाली की नजर सर्वप्रथम नीचे फर्श पर पड़ी अपनी कच्छी पर गई तो उसने तत्काल अपने मुंह पर हाथ रखकर आश्चर्य से भरने का नाटक करते हुए पूछा, वह जानबूझकर 'पेंटी' की जगह पूर्णदेशी शब्द "कच्छी' का इस्तेमाल करती है और साथ ही उसने कच्छी शब्द के संग 'माँ' शब्द को भी जानकर जोड़ा था।
कुछ नींद की खुमारी और कुछ अपनी माँ के प्रश्नों से हतप्रभ हुए अभिमन्यु का ध्यान फर्श पर पहले से पड़ी वैशाली की कच्छी पर नही जा सका था और अपनी माँ के तात्कालिक प्रश्न को सुनकर तो मानो जैसे उसकी सांस ही गले मे अटक जाती है।
"वो माँ ...वो मैं ...." जवाब देते हुए वह मिमियाने लगता है, उसका हलक चिपक चुका था।
"एक तो तुमने माँ की कच्छी चुराई, दूसरे उससे मजे किए और जब मजा पूरा हो गया तो आखिर मे दुत्कारकर उसे फर्श पर फेंक दिया। वाह रे मर्द! तुम सब एक जैसे होते हो" वैशाली मनमसोसने का अभिनय करते हुए बोली और एक लंबी आह भरकर कमरे से बाहर जाने लगती है। वहीं अभिमन्यु ठगा सा, एकटक फर्श पर पड़ी अपनी माँ की कच्छी को ही घूरे जा रहा था, चाहता तो था कि वैशाली को बीती सत्यता से परिचत करवा दे मगर शर्मवश वह ऐसा कर नही पाता।
"खाना लगा रही हूँ, फ्रैश होकर सीधे बाहर आओ और हाँ! जाओ माफ किया" वैशाली कमरे से बाहर जाते-जाते बोली। अभिमन्यु ने फौरन अपना सिर उठाकर उसके चेहरे देखा, पलभर को मुस्कराकर वह तेजी से आगे बढ़ गई थी।
कुछ आधे घंटे पश्चात दोनो माँ-बेटे हॉल की डाइनिंग टेबल पर साथ बैठकर खाना खा रहे थे। हमेशा बकबक, हो-हल्ला करने वाले अभिमन्यु को यूं चुपचाप खाना खाते देख वैशाली को दुख हुआ। खाने को खाने की तरह खाता तब भी ठीक था, वह तो जैसे खाना चुग रहा था।
"मन्यु" जब हॉल मे पसरा मानवीय सन्नाटा वैशाली के बस से बाहर हो गया तब वह स्वयं ही उस सन्नाटे को भंग करते हुए बेटे को पुकारती है।
हुं!" जवाब मे अभिमन्यु अपना मुंह तक खोलना पसंद नही करता, अपने गले के स्वर से बस इतना ही गुनगुनाकर वह अपनी माँ के चेहरे को देखने लगता है। उसे एकाएक अचरज तब हुआ जब हैरत से बड़ी होती जाती उसकी आँखों मे झांकते हुए वैशाली अपने बाएं की उंगलियों की मदद से अचानक अपनी मैक्सी के ऊपरी बटन को खोलने लगती है, पहले उसने एक बटन खोला तत्पश्चात दूसरे को खोलने लगी।
अभिमन्यु की घिग्घी बंधी देख वैशाली को कुछ संतोष हुआ, संतोष इसलिए नही कि उसे अपने बेटे की परेशानी, घबराहट, उसकी मायूसी से कोई अतिरिक्त खुशी मिल रही थी बल्कि इसलिए कि उसे प्रत्यक्ष प्रमाण मिल चुका कि उसके बेटे की नजरों मे उसकी इज्जत अब भी बरकरार थी, वह तो हालात का खेल था जो एक ही वक्त मे दोनो माँ-बेटे एकसाथ बेशर्म बन गए थै। अपनी मैक्सी के दूसरे बटन को खोलते समय वैशाली ने यह भी स्पष्ट देखा कि भले ही अभिमन्यु ने अत्यंत-तुरंत अपनी आँखें अपनी माँ से हटाकर विपरीत दिशा मे मोड़ दी थीं मगर उनकी किनोर से अब भी वह उसकी उंगलियों की हरकत पर ही गौर फरमा रहा था। मैक्सी के दूसरे बटन के खुलते ही वैशाली अपने उसी बाएं हाथ की उंगलियां हौले-हौले अपने मम्मों के ऊपरी फुलाव पर रगड़ते हुए पहले उन्हें अपनी मैक्सी और फिर सीधे अपनी ब्रा के दाहिने खोल के भीतर घुसेड़ देती है।
"तुम्हारी पॉकेटमनी" वैशाली बेटे का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बोली मगर अपना बाएं हाथ उसने अबतक अपनी ब्रा से बाहर नही निकाला था। दोनो माँ-बेटे की आँखें आपस मे जुड़ चुकी थीं और फिर कुछ ऐसा जताते हुए कि उसकी ब्रा बेहद तंग है, वह अजीब सा आड़ा-टेढ़ा मुंह बनाने लगती है।
वो काफी दिनों से शॉपिंग नही की ना तो थोड़ा साइज इश्यू है" वैशाली अपनी हरकत के समर्थन मे बोली।
"मेरी कच्छियों का भी यही हाल है" मायूसी से उसने पिछले कथन मे जोड़ा।
"कोई बात नही मॉम और वैसे भी मुझे पॉकेटमनी नही चाहिए, मेरी पनिशमेंट अभी पूरी नही हुई" अपने ठीक सामने बैठी अपनी माँ को उसकी तंग ब्रा से जूझते देख अभिमन्यु हौले से बुदबुदाया। वैशाली की लाल ब्रा उसकी बेवजह की खींचा-तानी के कारण उसकी मैक्सी के खुले गले से आधी बाहर निकल आई थी और उसके गोल-मटोल मम्मों का प्रभावशाली ऊपरी उभार अभिमन्यु को तत्काल उत्तेजना से भरने लगा था। अपनी माँ की बोली मे आए खुलेपन से भी वह थोड़ा सकते मे था।
"बस हो गया। हाँ ये लो, पूरे सात हजार हैं" वैशाली नोटों के बंडल को बेटे की ओर बढ़ते हुए बोली मगर अपने पिछले कथन पर अटल अभिमन्यु फौरन ना के इशारे मे अपना सिर हिला देता है।
"पनिशमेंट जारी थी और जारी ही रहेगी, पॉकेटमनी तुम अपने पास रख सकते हो पर तुम्हारा घर से बाहर आना-जाना बंद ही रहेगा" वह रुपयों का बंडल टेबल पर उसके सामने रखते हुए बोली।
"थेंक्स मॉम, खाली जेब मुझे कैसा फील हो रहा था मैं ही जानता हूँ" अभिमन्यु अत्यंत तुरंत बंडल पर झपटते हुए बोला, बिन पैसों के एक जवान लड़के की कैसी हालत होती है स्वयं वैशाली को भी प्रत्यक्ष समझ आ गया। अपने दोनों हाथ कैंची के आकार मे ढा़ल वह उन्हें अपनी अधखुली छाती के इर्द-गिर्द लपेटकर बैठ गई थी, जिसका दबाव उसके पुष्ट मम्मों के निचले भाग पर हो रहा था। अकस्मात् उसके मम्मों का ऊपरी उभार पहले से अधिक नुमाइंदा हो गया, जिसके नतीजतन एसी की मनभावन ठंडक वह अपने तेजी से ऐंठते जा रहे निप्पलों पर भी साफ महसूस करने लगी थी।
मुझे लगता है कि मुझे सुधा से माफी मांगनी चाहिए, आखिर यह कोई छोटी-मोटी बात नही कि तुमने बहाने से उसके घर जाकर जानबूझकर उसकी कच्छी को चुराया था" अपने बेटे की चोर नजरों को बरबस अपने अधनंगे मम्मों पर गड़ते देख वैशाली बोली।
"वह मम्मी ... वह, तुम उस बात को भूल क्यों नही जातीं, अबतक तो मिसिज मेहता भी उसे भूल ही चुकी होंगीं" आंतरिक शर्म से बेहाल अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, उसकी शर्माहट का एक मुख्य विषय यह भी था की अपनी माँ के मम्मों की सुंदरता को निहारने का इतना करीबी मौका उसे पहली बार प्राप्त हुआ था ऊपर से वैशाली का लगातार देशी भाषा प्रयोग उसे बेहद अटपटा-सा लग रहा था, रह-रहकर उसके संपूर्ण बदन मे फुरफुरी सी छूटती जा रही थी।
"तुम्हारी माँ होने के नाते भूल जाऊँ तो मैं वाकई उसे भूल चुकी हूँ और तुम्हें माफ भी कर दिया है मगर एक औरत होकर दूसरी औरत की बेज्जती कैसे सह लूं। तुम्हें पता नही मन्यु कि तुम्हारे बचाव मे मैंने उसे क्या-क्या गलत-शलत नही बोला, यह जानते हुए भी कि गलत वह नही मेरा अपना बेटा है" वैशाली एक लंबी आह भरते हुये बोली, अपना चेहरा नीचे को झुकाकर वह अपने मम्मों के अधनंगे ऊपरी उभार और उनके बीच की खुली दरार का स्वयं अवलोकन करने लगी। उस अत्यधिक कामुक माँ ने उस वक्त अपने बेटे को जैसे चौंका ही दिया जब अपने अंगप्रदर्शन को जानकर भी कोई विशेष महत्व दिए बगैर वह तत्काल अपना चेहरा ऊपर उठाकर पुनः उसकी आँखों मे झांकने लगती है।
अगर तुम्हारी ही उम्र का कोई लड़का इस तरह की बेहूदगी से तुम्हारी अपनी माँ की कच्छी को चुरा ले जाए तब तुम्हारी माँ के दिल पर क्या बीतेगी, कभी सोचा है तुमने? फिर सुधा ने तो तुम्हारे और उसके अपने बच्चों की बीच कभी कोई फर्क नही किया" वैशाली ने शांत स्वर मे पूछा। अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न और उसमे उसका स्वयं का उदाहरण देना अभिमन्यु को स्पष्ट दर्शाता है कि वाकई अपने कथन को लेकर वह कितनी अधिक गंभीर थी। उसने सहसा निर्णय लिया कि वह अपनी माँ की अधनंगी छाती को अब और नही घूरेगा मगर पलभर भी नही बीत सका और दोबारा उसकी आँखें उसी उत्तेजक दृश्य पर वापस लौट आईं।
"तुम्हें उनसे माफी मांगने की कोई जरूरत नही, गलती मैंने की है तो माफी भी उनसे मैं ही मागूंगा" अभिमन्यु ने जवाब मे कहा, मानो अपनी बीती गलती और तात्कालिक गलती की वजह से खुद को लताड़ने का प्रयास कर रहा हो। स्वतः ही वह यह भी महसूस करता है कि उसकी सगी माँ के प्रति उसके मन-मस्तिष्क मे कितनी अधिक गंध भर चुकी है और जो वह चाहकर भी उस गंध को मिटा नही पाता। जहां संसार इस उदाहरण से पटा पड़ा है कि एक पुत्र का सही स्थान सदैव उसकी माँ के चरणों मे ही होता है और एक पुत्र वह स्वयं है जो अपनी माँ के चरण तो दूर, दिन-रात बस उसके नंगे बदन की ही वर्जित कल्पनाओं मे खोया रहता है।
सॉरी आंटी! मैंने आपकी कच्छी चुराई और फिर भी आपसे माफी मिलने की चाहत लिए आपके पास आया हूँ। क्या यह कहोगे उससे? वाट इज रॉंग विद यू मन्यु। माला के साथ भी तुम जबरदस्ती कर रहे थे, जबकि तुम्हें अच्छे से पता है कि वह मोहल्ले के अॉलमोस्ट हर घर मे काम करती है। तुम्हें पता नही मगर उसने मुझे खुद बताया था कि तुम उसके साथ छेड़छाड़ करते हो, उसके प्राइवेट पार्ट्स को छूते हो और पैसे का लालच देकर तुमने उससे साथ सैक्स करने की डिमांड भी की थी। तुम्हारी माँ होकर भला मैं कबतब लोगों के गंदे-गंदे ताने सुनती रहूँगी? जबकि खोट मेरी परवरिश मे नही खुद तुममे है" कहने को तो वैशाली इतनी विस्फोटक बातें कह गई मगर फौरन कुर्सी खिसकाकर वह बेटे के नजदीक आ जाती है और सीधे उसने अभिमन्यु का चेहरा अपनी अधनंगी छाती से चिपका दिया।
"मैं तुम्हारी टीन एज को नेगलेक्ट नही कर रही, मुझे सचमुच पता है बेटा कि तुम जवानी के किस नाजुक दौर से गुजर रहे हो। तुम अपनी माँ को अपना बैस्ट फ्रैंड बनाना चाहते थे तो चलो, मैंने तुम्हारा प्रपोजल ऐकसेप्ट किया लेकिन तुम्हें भी मुझसे प्रॉमिज करना होगा कि तुम अपनी इस बैस्ट फ्रैंड से कुछ भी नही छुपाओगे। नाउ कमअॉन टेल मी द ट्रुथ, तुम्हारे दिल और दिमाग मे क्या चल रहा है?" वह प्यार से बेटे के बालों मे अपनी उंगलियां घुमाते हुए बोली। माना कि इस मार्मिक क्षण मे भावुकता उत्तेजना पर भारी थी मगर कहीं ना कहीं उनके शारीरिक सम्पर्क से दोनो माँ-बेटे रोमांचित भी थे। अपने मम्मों की गहरी घाटी के बीचोंबीच अपने बेटे की गर्म सांसों के अहसास मात्र से वैशाली का दिल जोरों से थड़कने लगा और
साथ ही वह अपनी चूत की अंदरूनी गहराई मे एकाएक स्पन्दन शुरू होता महसूस करने लगती है। उनका यह शारीरिक सम्पर्क वह माँ तब झटके तोड़ने पर मजबूर हो गई जब अभिमन्यु की गीली जीभ का स्पर्श अचानक से वह अपने बाएं मम्मे के ऊपरी फूले उभार से होता पाती है।
"आई एम ... आई एम जस्ट क्यूरियस मॉम। जस्ट क्यूरियस, नथिंग एल्स" अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, वह भी समझ गया था कि क्यों उसकी माँ ने एकदम से उसका चेहरा अपने मम्मो से दूर ढ़केला था। उसकी माँ की मैक्सी उसके बाएं कंधे से लगभग पूरी ही सरक चुकी थी और जिसके कारण उसकी लाल ब्रा का बायां स्ट्रैप भी अब स्पष्ट दिखने लगा था, यहां तक कि अगर आगामी समय मे वह थोडा--सा भी हिलती-डुलती तो उसकी ब्रा का सम्पूर्ण बाएं हिस्सा फौरन बेपर्दा हो जाना था।
"क्यूरियस अबाउट वाट? अबाउट दिस, हम्म?" अपने सगे जवान बेटे की बेशर्म आँखों को यूं खुलेआम अपने अधनंगे मम्मों गडी़ पाकर वैशाली बहुत उत्साहित थी, उसने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपने दाएं हाथ से सीधे अपने अधनंगे मम्मों की ओर इशारा करते हुए पूछा।
"मॉऽऽम!" अपनी माँ के प्रश्न और उसके दाएं हाथ के इशारे को समझ सहसा अभिमन्यु कुर्सी से उछल पड़ता है, इस पूरे वार्तालाप मे मानो पहली बार उसे शर्म महसूस हुई थी।
अरे! अरे! अरे! नाउ वाट हैप्पन टू योर दोज वर्ड्स? वी बोथ आर अडल्ट मम्मी और अगर हम दोस्त बने तो हमारी शर्म खत्म हो जाएगी" वैशाली हँसते हुए बोली तो साथ मैं अभिमन्यु भी हँसने लगता है।
"तुम वाकई बहुत गंदे लड़के हो मन्यु पर क्या करूं, मेरे इकलौते बेटे हो तो मैं ठीक से तुम्हें डांट भी नही पाती" उसने पिछले कथन मे जोड़ा।
"आई नो मम्मी एण्ड देट्स वाए आई लव यू सो मच। उम्मऽऽ मुआऽऽ" अभिमन्यु ने फौरन उसकी ओर एक चुम्बन उछाल दिया।
"तो मैं सही हूँ, तुम्हारी क्युरीआसिटी औरतों के बदन से है" वैशाली ने अंधेरे मे तीर चलाते हुए कहा, हालांकि पूरी तरह से इसे अंधेरे मे तीर चलाना नही कहेंगे मगर उनके बीच चलते इस सामान्य से वार्तालाप को अब दूसरी दिशा मे मोड़ने हेतु उसे अभिमन्यु की भी सहमति की विशेष आवश्यकता थी। एक ऐसी सहमति जिसमे ना कोई शर्म हो, ना कोई हया हो महज सत्य ही सत्य हो।
"अब मैं बोलूंगा तो कहोगी मैं बेशर्म हूँ" अभिमन्यु दांत निकालते हुए कहता है। वह तो इस वक्त की प्रतीक्षा ना जाने कब से कर रहा था, जब उसकी माँ और वो दोनो ही खुलकर बातचीत कर सकते थे।
"जो लड़का किसी मजबूर कामवाली के साथ जबरदस्ती कर सकता है, अपनी माँ की बैस्ट फ्रैंड के घर से उसकी कच्छी चुरा सकता है और आज तो तुमने अपनी माँ की ही कच्छी चुरा ली। ऐसे बेशर्म को बेशर्म नही बोलूं को क्या शब्बाशी दूं" वैशाली का स्वर क्रोधित था मगर उसके भाव चहके हुए थे।
मैं खुद को बिलकुल नही रोक पाता मम्मी, जब एक बेहद सैक्सी एण्ड हॉट एम आई एल एफ दिनभर मेरे करीब रहती है। जो मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है, मुझे खाना खिलाती है, मेरा ख्याल रखती है, मुझे कभी नही रोने देती, टाइम से पॉकेटमनी देती है, मेरे गंदे कपड़े धोती है, मेरे ...." वह आगे बोलता ही जाता यदि वैशाली बीच मैं उसे नही टोकती।
"बस बस, बहुत मक्खन लगा लिया तुमने और मैं कोई एम आई एल ...." इस बार अभिमन्यु अपनी माँ को बीच मे टोक देता है।
"मुझे बोलने दो मम्मी। जिसे पता है कि मैं चोरी छिपे उसे नहाते देखता हूँ, उसे मुट्ठ मारते हुए देखता हूँ। जिसे पता है कि मैं खुद उसके नाम की मुट्ठ मारता हूँ, जिसे पता है कि मैं पॉर्न देखता हूँ, जिसे पता है मैं वर्जिन नही। जो मेरी रग-रग से वाकिफ है मगर फिर भी मेरी हर छोटी-बड़ी गलती को हमेशा माफ कर देती है ....." अपने बेटे के अश्लील कथन को सुनकर अकस्मात् वैशाली का सम्पूर्ण बदन कांप उठा, चेहरे पर लहू उतर आया, कमर चरमरा गई, निप्पल ऐंठ गए, कामरस से भीगी कच्छी थरथराती चूत के मुख से बुरी तरह चिपक गई और तत्काल वह झटके से कुर्सी से उठकर खड़ी हो जाती है। अभिमन्यु अब भी बोले ही जा रहा था, उसका हर शब्द वैशाली के कानों मे पिघले शीशे सा घुसता महसूस हो रहा था।
"मुझे ...मुझे काम है" कहकर वह सीधे किचन की ओर दौड़ पड़ती है।
"मैंने सिर्फ फ्रेंडशिप का प्रपोजल नही रखा था मॉम और भी बहुत से प्रपोजल थे मेरे। तो क्या मैं उन्हें भी मंजूर समझूं?" दौड़ लगती अपनी माँ को देख अभिमन्यु ने जोर से चिल्लाते हुए पूछा और उसके प्रश्न को सुन वैशाली बिना पीछे मुड़े अपने दाएं हाथ से अपना माथा ठोकते हुए मुस्कुराकर किचन के भीतर घुस जाती है।