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हमेशा ऐसे मौकों पर ही तुम्हारी गांड का कीड़ा ज्यादा कुलबुलाता है माँ। अरे इतने प्यार से तुम्हारा फटा भोसड़ा चाट रहा हूँ, उसे पूरे मन से चूस रहा हूँ और अपनी उंगलियों से चोद भी रहा हूँ पर तुम हो कि ...अब बकवास की तो याद रखना अपने लंड की सारी गर्मी सीधे तुम्हारी चूत चोदकर ही बाहर निकालूँगा" यह पहली बार था जो मुखमैथुन की शुरुआत करने के उपरान्त अभिमन्यु के मुँह से कोई स्वर फूटे थे, अपने झूठे क्रोध से अपनी माँ को निरुत्तर करने के पश्चयात वह अपनी जीभ को फौरन उसकी चूत की ऊपरी सतह पर घुमाने लगा, उसने पोर्न देखते हुए सैकड़ों बार नायिकाओं को अपने भग्नासे से खेलते देखा था, अपने पार्टनरों से भी चीख-चीखकर वह फिल्मी रंडियां उनके भग्नासे को चाटने व चूसने की गुहार लगाती नजर आती थीं। तत्काल वह किसी पारंगत मर्द की भांति हौले-हौले अपनी माँ के सूजे व नाजुक भांगुर को चाटने लगा, अपनी जीभ की नोंक से उसे सहलाने लगता है, खरोचने लगता है, बारम्बार उसे छीलने लगता है और जिसके प्रभाव से बिस्तर पर अपनी पीठ के बल लेती उसकी नंगी माँ अत्यंत तुरंत अपनी गुदाज गांड हवा मे उछालते हुए अपनी स्पंदनशील चूत को तीव्रता से उसके मुँह पर रगड़ने लगती है, अविलंब अपनी सकुचाती चूत से उसका मुँह चोदना आरंभ कर देती है।
"य ...यहीं मन्यु यहीं उफ्फ्ऽऽ! यहाँ ...यहाँ मुझे बहुत दर्द उठता है आईईऽऽ! जोर से ...जोर से चूस मेरे जवान मर्द, दांतों से चबा जा अपनी माँ के दाने को ...हाय! उखाड़ के थूक दे इसे फर्श पर"
अभिमन्यु की नुकीली जीभ का तरलता से भरपूर स्पर्श, उसकी लपलपाहट, प्राणघातक थिरकन अपने अतिसंवेदनशील नर्म भांगुर पर पाकर वैशाली की चीख अचनाक उसके बैडरूम की सीमित सीमा को भी लांघ जाती है और जिसके मूक जवाब में उसका बेटे ने उसके मोटे भांगुर को पलभर को चूम अत्यधिक प्रचंडता से उसकी चुसाई करना शुरू कर दी। बेटे की लार से भीगने के पश्चयात उस माँ का भांगुर पूर्व से कहीं ज्यादा चमकने लगा था, कहीं ज्यादा सूज गया था और जिसे चूसने मे अभिमन्यु ने मानो अपनी सारी ताकत झोंक दी थी, साथ ही साथ उसकी दोनों उंगलियां भी पूरे बल से उसकी माँ की कामरस से लबालब भर चुकी चूत की संकीर्ण परतों के धड़ाधड़ अंदर-बाहर होती जा रही थीं।
आहऽऽ! बहुत ...प्यार करती है तुम्हारी माँ तुमसे। चूसो मेरे दाने को मेरे लाल, उफ्फ्! पियो जितनी रज पी सको अपनी माँ की। मेरी इच्छा नही ...मेरी आज्ञा है मऽन्युऽऽ" रुआंसे स्वर मे ऐसा कहते हुए वैशाली का संपूर्ण बदन थरथरा उठा, सिर से पांव तक वह कंपकपाने लगी। उसकी चूत की आतंरिक गहराई मे अकस्मात् जैसे भूचाल-सा आ गया था, अंदरूनी ऐंठन एकाएक उसके नियंत्रण से बाहर हो चली थी और जिसके नतीजन उसकी चूत से रज बहने की मात्रा में भी सहसा बढ़ोतरी हो गयी। पूर्व मे अपनी माँ से किए वादे को निभाते हुए अभिमन्यु उसकी स्वादिष्ट रज का कतरा-कतरा अपने गले से नीचे उतरते हुए बेहद आनंदित होने लगा था, अपने बायीं हथेली से उसके बालों को नोंचती एवं दाएं से अपने कड़क निप्पलों को उमेठती उसकी माँ जोरों से रोते हुए अपनी दोनों चिकनी जांघें उसकी गर्दन के इर्द-इर्द लपेट लेती है।
"आईईईऽऽ अभि ...मन्यु, मैं आईईईऽऽऽ" वैशाली की गांड के छेद मे संसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ते ही उसका छेद सिकुड़ कर रह गया और आखिरकार भर्राए गले से बारम्बार अपने जवान बेटे का नाम पुकारती उसकी अत्यंत सुंदर अधेड़ माँ उसी क्षण अनियंत्रित ढंग से स्खलित होने लगती है। उसके गदराए बदन मे झटके पर झटके लग रहे थे, अजीब--सी सिरहन से खलबली मच गयी थी। जबड़े स्वतः ही भिंच गए थे, कमर धनुषाकार हो बिस्तर से ऊपर उठ गयी थी। मांसल जाँघों ने बेटे की नाजुक गर्दन को बेरहमी से जकड़ लिया था, जिसके पार निकली उसकी पिडलियों के साथ उसके पैरों की उंगलियां तक अकड़ गयी थीं। मनभावन स्खलनस्वरूप उसकी चूत की फूली फांकों से लगातार बाहर आती अतिगाढ़े
कामरस की लंबी-लंबी फुहारें अभिमन्यु सीधे अपने कठोर होंठों की सहायता से सुड़क-सुड़ककर निरंतर अपने गले से नीचे उतारता रहा, तबतक पीता रहा, चूसता रहा, चाटता रहा जबतक उसकी माँ की चूत से बहती रज के बहाव का पूर्णरूप से अंत नही हो गया। अंततः निढाल होकर बिस्तर पर पसर चुकी, जोरदार हंपायी लेती अपनी माँ की सुर्ख नम आँखों मे प्रेमपूर्वक झांकते हुए वह उसकी कोमल जाँघों को अपनी हथेलियों सहलाने लगता है, उसकी माँ की आँखों मे उसे अखंड संतुष्टि की झलक दिख रही थी और जिसे देख तत्काल वह नवयुवक गर्व से मुस्कुरा उठता है।
"ऐसे ...ऐसे क्या देख रहे हो? अब छोड़ो मेरी टांगों को" जोरदार स्खलन की प्राप्ति के उपरान्त वैशाली अपने बेटे की आँखें, उसके मुस्कुराते चेहरे का तेज बरदाश्त नही कर पाती, वह बेहद धीमे स्वर मे फुसफुसाती है। उसकी उत्तेजना का कण-कण अभिमन्यु इतने प्रेमपूर्वक ग्रहण कर गया था जैसे उसकी रज रज ना होकर किसी दिव्य मूरत का चरणामृत था।
"अपनी माँ की सुंदरता को आँखों से पी रहा हूँ, उसकी शर्म का आनंद ले रहा हूँ, उसकी खुशी मे झूम रहा हूँ, उसके प्यार मे खो गया हूँ। उफ्फ् मम्मी! तुम इतनी प्यारी कैसे हो? मेरी खुशकिस्मती पर रस्क है मुझे" उत्साहित स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु उसकी अत्यन्त कोमल मांसल जाँघों को बारी-बारी चूमने लगता है, उसकी आँखों का जुड़ाव उसकी माँ की कजरारी आँखों से अब भी अपलक जुड़ा हुआ था।
तो क्या अपनी इस प्यारी माँ के सीने से नही लगोगे? तुम्हें अपने आँचल मे समाने के लिए मैं मरी जा रही हूँ मन्यु, फर्क इतना है कि इस वक्त मैं नंगी हूँ, तुम्हें अपने आँचल मे समाऊँ भी तो कैसे भला" विह्वल वैशाली सिसकते हुए बोली।
"चलो खिसको ऊपर, आज तुम्हारे सीने से लगकर सोऊंगा माँ और रही बात तुम्हारे आँचल की तो तुम्हारा यह नंगा बदन भी मेरे लिए किसी आँचल से कम नही" गंभीर स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु ने अपनी गरदन से लिपटी अपनी माँ की जाँघों को बिस्तर पर रख दिया, वैशाली पीछे सरकती हुयी पुनः बिस्तर की पुश्त तक पहुँच चुकी थी और जल्द ही वह भी अपनी माँ के समानांतर लेट जाता है।
"तुम मुझसे नाराज तो नही हो ना? मैंने जाने-अनजाने आज तुम्हें बहुत बुरा-भला कहा, तुम्हारे पति की बेज्जती की और तो और अपनी बड़ी बहन तक को नही छोड़ा मगर सच तो यह है माँ कि चाहे तुम्हें कपड़ों से लदा देखूँ या नंगी, तुम मुझे देवी--सी नजर आती हो, तुम्हारी पूजा करने को दिल कहता है" कहते हुए अभिमन्यु ने अपनी माँ की हृष्ट-पुष्ट छाती के बीच अपना चेहरा छुपा लिया, उसकी माँ के मानसिक व शारीरिक भावों को परखने से मानो उसे अब कोई सरोकार नही रहा था।
"मैं नाराज नही हूँ मन्यु, हैरान हूँ। कहाँ से सीखी तुमने ऐसी बड़ी-बड़ी बातें? तुम्हारे शब्द, तुम्हारी हरकतों को देखकर कौन मानेगा कि तुम एक इन्जनिरिंग स्टूडेंट हो। तुम्हारी कुछ-कुछ बातें तो मेरे भी सिर के ऊपर से गुजर गई थीं पर एक नई बात जरूर समझ आई और वह यह कि सेक्स जितना खुला हो, जितना गंदा हो उतना ही मजा देता है। मुझ जैसी लाखों औरतें चारदीवारी के अंदर कैद होकर चुदने को ही असली चुदाई समझती हैं मगर बंदिशों को तोड़कर आजादी से चुदवाने का सुख शब्दों मे भी बयान नही
किया सकता" वैशाली बिना किसी अतिरिक्त झिझक के कहती है, उसकी बाएं उंगलियां कब उससे चिपककर लेटे बेटे के बालों मे चहुंओर विचरण करने लगी थीं वह स्वयं अंजान थी। पूर्व मे अभिमन्यु की गरम साँसों के झोंके जो उसे घड़ी-घड़ी उत्तेजित पर उत्तेजित कर रहे थे, तात्कालिक क्षणों मे उस माँ को सुकून से भर दिया था।
"तो तुम्हारी इसी आजादी के नाम, तुम्हारे बेटे का कलाम ...बहुत हुआ सम्मान तुम्हारी माँ का चोदें, सुबह से हो गयी शाम तुम्हारी ..." एकाएक अभिमन्यु की जयघोष से पूरा बैडरूम गूँज उठा, वह चिल्लाता ही जाता यदि उसके बचकाने पर खिलखिला पड़ी वैशाली जबरन उसके मुँह को अपनी दोनों हथेलियों से बंद नही करती।
"पागल कहीं के ...अब सो जाओ, बाद मे मुझे खाना भी बनाना है" जोरों से हँसती बैशाली अपने बेटे को स्वयं अपनी छाती से चिपकाते हुए बोली और अतिशीघ्र उसकी नग्न पीठ पर थपकियाँ देते हुए उसे सुलाने के अपने ममतामयी कार्य मे जुट जाती है। थका-हारा अभिमन्यु पलों मे नींद के आगोश मे पहुँच गया था और उसके सोते मासूम चेहरे के दाहिने कोण को टकटकी लगाए निहारती उसकी माँ भी गहन निद्रा की गहराइयों में खो जाती है।
"य ...यहीं मन्यु यहीं उफ्फ्ऽऽ! यहाँ ...यहाँ मुझे बहुत दर्द उठता है आईईऽऽ! जोर से ...जोर से चूस मेरे जवान मर्द, दांतों से चबा जा अपनी माँ के दाने को ...हाय! उखाड़ के थूक दे इसे फर्श पर"
अभिमन्यु की नुकीली जीभ का तरलता से भरपूर स्पर्श, उसकी लपलपाहट, प्राणघातक थिरकन अपने अतिसंवेदनशील नर्म भांगुर पर पाकर वैशाली की चीख अचनाक उसके बैडरूम की सीमित सीमा को भी लांघ जाती है और जिसके मूक जवाब में उसका बेटे ने उसके मोटे भांगुर को पलभर को चूम अत्यधिक प्रचंडता से उसकी चुसाई करना शुरू कर दी। बेटे की लार से भीगने के पश्चयात उस माँ का भांगुर पूर्व से कहीं ज्यादा चमकने लगा था, कहीं ज्यादा सूज गया था और जिसे चूसने मे अभिमन्यु ने मानो अपनी सारी ताकत झोंक दी थी, साथ ही साथ उसकी दोनों उंगलियां भी पूरे बल से उसकी माँ की कामरस से लबालब भर चुकी चूत की संकीर्ण परतों के धड़ाधड़ अंदर-बाहर होती जा रही थीं।
आहऽऽ! बहुत ...प्यार करती है तुम्हारी माँ तुमसे। चूसो मेरे दाने को मेरे लाल, उफ्फ्! पियो जितनी रज पी सको अपनी माँ की। मेरी इच्छा नही ...मेरी आज्ञा है मऽन्युऽऽ" रुआंसे स्वर मे ऐसा कहते हुए वैशाली का संपूर्ण बदन थरथरा उठा, सिर से पांव तक वह कंपकपाने लगी। उसकी चूत की आतंरिक गहराई मे अकस्मात् जैसे भूचाल-सा आ गया था, अंदरूनी ऐंठन एकाएक उसके नियंत्रण से बाहर हो चली थी और जिसके नतीजन उसकी चूत से रज बहने की मात्रा में भी सहसा बढ़ोतरी हो गयी। पूर्व मे अपनी माँ से किए वादे को निभाते हुए अभिमन्यु उसकी स्वादिष्ट रज का कतरा-कतरा अपने गले से नीचे उतरते हुए बेहद आनंदित होने लगा था, अपने बायीं हथेली से उसके बालों को नोंचती एवं दाएं से अपने कड़क निप्पलों को उमेठती उसकी माँ जोरों से रोते हुए अपनी दोनों चिकनी जांघें उसकी गर्दन के इर्द-इर्द लपेट लेती है।
"आईईईऽऽ अभि ...मन्यु, मैं आईईईऽऽऽ" वैशाली की गांड के छेद मे संसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ते ही उसका छेद सिकुड़ कर रह गया और आखिरकार भर्राए गले से बारम्बार अपने जवान बेटे का नाम पुकारती उसकी अत्यंत सुंदर अधेड़ माँ उसी क्षण अनियंत्रित ढंग से स्खलित होने लगती है। उसके गदराए बदन मे झटके पर झटके लग रहे थे, अजीब--सी सिरहन से खलबली मच गयी थी। जबड़े स्वतः ही भिंच गए थे, कमर धनुषाकार हो बिस्तर से ऊपर उठ गयी थी। मांसल जाँघों ने बेटे की नाजुक गर्दन को बेरहमी से जकड़ लिया था, जिसके पार निकली उसकी पिडलियों के साथ उसके पैरों की उंगलियां तक अकड़ गयी थीं। मनभावन स्खलनस्वरूप उसकी चूत की फूली फांकों से लगातार बाहर आती अतिगाढ़े
कामरस की लंबी-लंबी फुहारें अभिमन्यु सीधे अपने कठोर होंठों की सहायता से सुड़क-सुड़ककर निरंतर अपने गले से नीचे उतारता रहा, तबतक पीता रहा, चूसता रहा, चाटता रहा जबतक उसकी माँ की चूत से बहती रज के बहाव का पूर्णरूप से अंत नही हो गया। अंततः निढाल होकर बिस्तर पर पसर चुकी, जोरदार हंपायी लेती अपनी माँ की सुर्ख नम आँखों मे प्रेमपूर्वक झांकते हुए वह उसकी कोमल जाँघों को अपनी हथेलियों सहलाने लगता है, उसकी माँ की आँखों मे उसे अखंड संतुष्टि की झलक दिख रही थी और जिसे देख तत्काल वह नवयुवक गर्व से मुस्कुरा उठता है।
"ऐसे ...ऐसे क्या देख रहे हो? अब छोड़ो मेरी टांगों को" जोरदार स्खलन की प्राप्ति के उपरान्त वैशाली अपने बेटे की आँखें, उसके मुस्कुराते चेहरे का तेज बरदाश्त नही कर पाती, वह बेहद धीमे स्वर मे फुसफुसाती है। उसकी उत्तेजना का कण-कण अभिमन्यु इतने प्रेमपूर्वक ग्रहण कर गया था जैसे उसकी रज रज ना होकर किसी दिव्य मूरत का चरणामृत था।
"अपनी माँ की सुंदरता को आँखों से पी रहा हूँ, उसकी शर्म का आनंद ले रहा हूँ, उसकी खुशी मे झूम रहा हूँ, उसके प्यार मे खो गया हूँ। उफ्फ् मम्मी! तुम इतनी प्यारी कैसे हो? मेरी खुशकिस्मती पर रस्क है मुझे" उत्साहित स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु उसकी अत्यन्त कोमल मांसल जाँघों को बारी-बारी चूमने लगता है, उसकी आँखों का जुड़ाव उसकी माँ की कजरारी आँखों से अब भी अपलक जुड़ा हुआ था।
तो क्या अपनी इस प्यारी माँ के सीने से नही लगोगे? तुम्हें अपने आँचल मे समाने के लिए मैं मरी जा रही हूँ मन्यु, फर्क इतना है कि इस वक्त मैं नंगी हूँ, तुम्हें अपने आँचल मे समाऊँ भी तो कैसे भला" विह्वल वैशाली सिसकते हुए बोली।
"चलो खिसको ऊपर, आज तुम्हारे सीने से लगकर सोऊंगा माँ और रही बात तुम्हारे आँचल की तो तुम्हारा यह नंगा बदन भी मेरे लिए किसी आँचल से कम नही" गंभीर स्वर में ऐसा कहकर अभिमन्यु ने अपनी गरदन से लिपटी अपनी माँ की जाँघों को बिस्तर पर रख दिया, वैशाली पीछे सरकती हुयी पुनः बिस्तर की पुश्त तक पहुँच चुकी थी और जल्द ही वह भी अपनी माँ के समानांतर लेट जाता है।
"तुम मुझसे नाराज तो नही हो ना? मैंने जाने-अनजाने आज तुम्हें बहुत बुरा-भला कहा, तुम्हारे पति की बेज्जती की और तो और अपनी बड़ी बहन तक को नही छोड़ा मगर सच तो यह है माँ कि चाहे तुम्हें कपड़ों से लदा देखूँ या नंगी, तुम मुझे देवी--सी नजर आती हो, तुम्हारी पूजा करने को दिल कहता है" कहते हुए अभिमन्यु ने अपनी माँ की हृष्ट-पुष्ट छाती के बीच अपना चेहरा छुपा लिया, उसकी माँ के मानसिक व शारीरिक भावों को परखने से मानो उसे अब कोई सरोकार नही रहा था।
"मैं नाराज नही हूँ मन्यु, हैरान हूँ। कहाँ से सीखी तुमने ऐसी बड़ी-बड़ी बातें? तुम्हारे शब्द, तुम्हारी हरकतों को देखकर कौन मानेगा कि तुम एक इन्जनिरिंग स्टूडेंट हो। तुम्हारी कुछ-कुछ बातें तो मेरे भी सिर के ऊपर से गुजर गई थीं पर एक नई बात जरूर समझ आई और वह यह कि सेक्स जितना खुला हो, जितना गंदा हो उतना ही मजा देता है। मुझ जैसी लाखों औरतें चारदीवारी के अंदर कैद होकर चुदने को ही असली चुदाई समझती हैं मगर बंदिशों को तोड़कर आजादी से चुदवाने का सुख शब्दों मे भी बयान नही
किया सकता" वैशाली बिना किसी अतिरिक्त झिझक के कहती है, उसकी बाएं उंगलियां कब उससे चिपककर लेटे बेटे के बालों मे चहुंओर विचरण करने लगी थीं वह स्वयं अंजान थी। पूर्व मे अभिमन्यु की गरम साँसों के झोंके जो उसे घड़ी-घड़ी उत्तेजित पर उत्तेजित कर रहे थे, तात्कालिक क्षणों मे उस माँ को सुकून से भर दिया था।
"तो तुम्हारी इसी आजादी के नाम, तुम्हारे बेटे का कलाम ...बहुत हुआ सम्मान तुम्हारी माँ का चोदें, सुबह से हो गयी शाम तुम्हारी ..." एकाएक अभिमन्यु की जयघोष से पूरा बैडरूम गूँज उठा, वह चिल्लाता ही जाता यदि उसके बचकाने पर खिलखिला पड़ी वैशाली जबरन उसके मुँह को अपनी दोनों हथेलियों से बंद नही करती।
"पागल कहीं के ...अब सो जाओ, बाद मे मुझे खाना भी बनाना है" जोरों से हँसती बैशाली अपने बेटे को स्वयं अपनी छाती से चिपकाते हुए बोली और अतिशीघ्र उसकी नग्न पीठ पर थपकियाँ देते हुए उसे सुलाने के अपने ममतामयी कार्य मे जुट जाती है। थका-हारा अभिमन्यु पलों मे नींद के आगोश मे पहुँच गया था और उसके सोते मासूम चेहरे के दाहिने कोण को टकटकी लगाए निहारती उसकी माँ भी गहन निद्रा की गहराइयों में खो जाती है।
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