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Incest RISTON KE RAKH ( maa beta story)

parkas

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Got it! Here's the revised version without the headlines:

कहानी का नाम: रिश्तों की राख

मुख्य पात्र:

1. एरा (Era)
एरा एक खूबसूरत, आत्मनिर्भर महिला है और एक मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ है। उसने अपने माता-पिता के दबाव में आकर अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर अमेरिका में नई ज़िंदगी शुरू की थी। अब वो अपने फैसले पर पछता रही है और करण को ढूंढकर अपनी गलती सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।


2. करण (Karan)


एरा और अमर का बेटा। अपनी माँ के बिना बिता हुआ बचपन और पिता को खोने का दर्द करण को कठोर और आत्मनिर्भर बना चुका है। अपनी दादी के साथ गाँव में रहने वाला करण अब अपनी माँ से नफरत करता है और अपने दिल में बहुत सारे सवाल छिपाए हुए है।


3. अमर (Amar)
एरा के पति और करण के पिता। अमर ने एरा के जाने के बाद गहरे दुख में अपनी जान दे दी थी। उनकी मौत ने करण को गहरी चोट पहुंचाई और उसे जीवन के कठिन रास्तों पर अकेला छोड़ दिया।


4. दादी (Karan’s Grandmother)
करण की दादी, जिन्होंने अमर की मौत के बाद करण को अपनी गोद में पाला। वह करण के लिए माँ और पिता दोनों बनीं और उसकी परवरिश में अपने मूल्यों को प्राथमिकता दी





9. गीता शर्मा

एरा की सेक्रेटरी, जो हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है और एरा के दर्द को समझती है।

भविष्य में करन के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।








कहानी की थीम:

यह कहानी माँ-बेटे के बीच की नफरत, पछतावे और टूटे रिश्तों को जोड़ने की जद्दोजहद की है। रिश्तों की राख से एक नई शुरुआत करने की कोशिश, जहाँ हर पात्र अपनी गलतियों से सीखते हुए प्यार और माफी की ओर बढ़ता है।


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इरा एक खूबसूरत, आत्मविश्वासी और महत्वाकांक्षी महिला थी। वह अपने आकर्षक व्यक्तित्व और स्मार्ट फैसलों से हमेशा सबका ध्यान आकर्षित करती थी। उम्र के इस पड़ाव में भी, वह किसी युवा लड़की से कम नहीं लगती थी। उसकी हरी आँखें, घने काले बाल, और पतला सुंदर शरीर उसे सबकी नज़र में आकर्षक बनाते थे। इरा, जो अब अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की सीईओ के पद पर काबिज़ थी, एक समय में दुनिया के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक मानी जाती थी।

वह कंपनी की मीटिंग्स और ग्लोबल विस्तार योजनाओं की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने कर्मचारियों से संवाद करती। पर, उसके चेहरे पर एक गहरी चुप्प थी, एक ऐसा दर्द जिसे वह छुपाने की कोशिश करती थी, लेकिन कभी न कभी वह बाहर आ ही जाता था।

आज की मीटिंग में इरा ने एक नए प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए टीम को बुलाया था। उसका कार्यालय एक आलीशान और अत्याधुनिक था, जो उसकी सफलता को दिखाता था। उसके चारों ओर उसके कर्मचारी बैठकर उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। इरा की आवाज़ में एक विशेष कशिश थी, जो सभी को प्रभावित करती थी।

"हमें इस प्रोजेक्ट को अगले तीन महीनों में लांच करना है," इरा ने गंभीरता से कहा। "हमारे पास सही टीम है, और मैं जानती हूं कि हम इसे बिना किसी मुश्किल के पूरा कर सकते हैं। हर एक डिटेल को ध्यान से देखना है।"

"जी, मैम," सभी कर्मचारी सहमति में सिर हिलाते हैं।

"और ध्यान रखें," इरा ने फिर से अपनी आवाज़ को थोड़ी तीव्रता से उठाया, "हमारा उद्देश्य केवल मुनाफा नहीं है, बल्कि इस प्रोजेक्ट को समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के रूप में देखना है।"

कर्मचारी एक दूसरे को देखने लगे। इरा का नेतृत्व और दूरदृष्टि उन्हें प्रेरित करती थी, लेकिन एक बात जो सबको चौंकाती थी, वह यह थी कि इरा के भीतर एक हल्की सी उदासी छुपी रहती थी। कभी-कभी वह अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाती थी और फिर वही गहरी चुप्प उसे घेर लेती थी।

इरा का जीवन एक सुखद यात्रा नहीं था। उसकी सफलता की कुंजी उसके अंदर की इच्छाशक्ति और संघर्ष थी। एक वक्त था जब वह एक छोटे शहर की लड़की थी, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी उम्मीदों के साथ घर से निकली थी। उसने सबकुछ छोड़ा था, अपने बेटे करण को, अपने पति को, और अपने पुराने जीवन को।

"मैम, क्या सब कुछ ठीक है?" एक कर्मचारी, जिसे गीता नाम था, ने इरा से हल्के से पूछा। इरा की आँखों में एक आंसू था, जो वह तुरंत पोंछने की कोशिश करती थी, लेकिन गीता ने देख लिया।

"हाँ, गीता। सब ठीक है," इरा ने जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में वह विश्वास नहीं था, जो आमतौर पर होती थी। वह जानती थी कि गीता को उसका दर्द महसूस हो रहा था।

"अगर आपको कुछ चाहिए, तो बताइए," गीता ने समझदारी से कहा।

"नहीं, गीता। मुझे सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना है," इरा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन उसके भीतर का दर्द अब भी उसे परेशान कर रहा था।

हालाँकि इरा का बाहरी जीवन बेहद सफल था, पर उसकी निजी ज़िंदगी की स्थिति कुछ और ही थी। उसे अपने बेटे करण के बारे में बार-बार याद आता था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को छोड़ दिया था, और अब वह उसे ढूँढने की कोशिश कर रही थी। इरा को यह एहसास हो गया था कि अब वह जिस सफलता का स्वाद चख रही है, वह उसके बेटे के बिना अधूरी है।

कभी वह सोचती थी कि अगर वह उस वक्त करण को छोड़ने के बजाय उसे साथ लेकर जाती, तो उसका जीवन कितना अलग होता। लेकिन, एक गहरी चाहत थी कि वह अब सब कुछ ठीक कर ले, और वह अपने बेटे के पास वापस लौटे।

"मैम, आपको हमारे नए प्रोजेक्ट के लिए क्या उम्मीदें हैं?" एक कर्मचारी ने गंभीरता से पूछा।

"मैं उम्मीद करती हूँ कि आप लोग मेहनत करें और हर एक चुनौती का सामना करें। हमारा उद्देश्य इस प्रोजेक्ट को सफलता की ऊँचाईयों तक ले जाना है, लेकिन इसके लिए हमें सबका सहयोग चाहिए होगा," इरा ने आश्वस्त करते हुए कहा।

यह मीटिंग खत्म हो गई, लेकिन इरा के चेहरे पर गहरी चिंता थी। उसके अंदर एक ऐसी कशिश थी, जो किसी को दिखाई नहीं देती थी, लेकिन वह खुद जानती थी कि उसकी ज़िंदगी में कुछ जरूरी चीज़ें अधूरी हैं।

उसके मन में हमेशा एक सवाल रहता था - "क्या मैं अपने बेटे को फिर से पा सकूँगी?"

इरा ने अपने जीवन को साकार किया था, लेकिन वह यह जानती थी कि हर सफलता की एक कीमत होती है। और उसकी सफलता की कीमत थी, उसका बेटा। वह उसे ढूंढने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार थी, चाहे उसे अपने अतीत से जूझना पड़े या अपनी गलती को सुधारने के लिए अपनी सारी खुशियाँ छोड़नी pare


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इरा ऑफिस से घर लौटने के बाद अपने बेडरूम में आकर बिस्तर पर बैठ गई। दिन भर की व्यस्तता और जिम्मेदारियों के बाद, अब उसे अपने अकेलेपन का सामना करना था। वह गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे अपने जूते उतारती है और बिस्तर पर गिर पड़ती है। उसके मन में आज फिर वही सवाल उठता है, जो कई सालों से उसे परेशान कर रहा था – क्या उसने सही किया था? क्या वह कभी अपने बेटे को वापस पा सकेगी?

बेहद थकी हुई इरा ने अपना ध्यान बिस्तर के सामने रखे एक पुराने फ़्रेम की ओर मोड़ा। वह तस्वीर उसकी आँखों के सामने खड़ी हो गई, जिस पर उसके बेटे करण का चेहरा था। वह तस्वीर एक पुरानी याद को ताजा कर देती थी – वह दिन जब उसने उसे छोड़ दिया था, जब उसने अपना करियर बनाने के लिए उसे छोड़ दिया था। उसे याद था कि करण बहुत छोटा था उस समय, और वह बेहद नाज़ुक था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया।

इरा की आँखों में गहरी उदासी थी, और उसने धीरे से तस्वीर की ओर देखा। यह वही तस्वीर थी, जो उसने अपने बेटे के कमरे से ले ली थी। जब वह घर छोड़ने वाली थी, तब करण की छोटी सी मुस्कान और उसकी मासूमियत उसे हमेशा याद दिलाती थी। यह वही तस्वीर थी, जो वह अक्सर रात को अपने कमरे में देखती थी, जब अकेले होती थी, और अपने बेटे से बात करने की कोशिश करती थी।

इरा की आँखों में आंसू थे, जो धीरे-धीरे उसकी आँखों से बहने लगे। वह यह महसूस करती थी कि कितने सालों से वह अपनी सफलता की चादर ओढ़े हुए थी, लेकिन उसने अपनी खुशियाँ खो दी थीं। अपनी जड़ों को भूल चुकी थी, और अब वह अकेली थी।

"करण..." इरा ने धीमी आवाज में कहा। "क्या तुम मुझे माफ करोगे?" वह अपने बेटे से यह सवाल करती थी, लेकिन जवाब कभी नहीं आता था। क्या उसने अपने बेटे को छोड़कर सही किया था? क्या वह कभी उस प्यार को वापस पा सकेगी, जिसे उसने अपने बेटे से दूर रहकर खो दिया था?

इरा ने अपनी आँखों को पोंछते हुए फिर से तस्वीर की ओर देखा। "जब तुम छोटे थे, तब मैं तुम्हें हर दिन देखती थी, तुम्हारी छोटी सी मुस्कान को, तुम्हारी मासूम बातें। और अब, मैं अपनी आँखों में तुम्हारी यादों को संजोकर जी रही हूँ। क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए अब भी कोई जगह है, करण?" इरा ने अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा, उसकी आवाज में अब गहरी उदासी थी। "क्या तुम मुझे कभी अपनी माँ मान सकोगे?"

तस्वीर की ओर देखते हुए, उसकी आँखों में यह गहरी कशिश थी कि वह वापस लौट सके। वह चाहती थी कि उसे अपने बेटे से एक बार फिर वही प्यार और संबंध मिल जाए। वह चाहती थी कि उसका बेटा उसे फिर से अपने दिल से स्वीकार करे, लेकिन अब वह जानती थी कि ऐसा बहुत मुश्किल था। उसने जो गलती की थी, वह अब कभी सुधर नहीं सकती थी।

उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे, और उसका चेहरा गुस्से और पश्चाताप से भरा हुआ था। "मैं नहीं जानती कि तुम्हारा दिल मुझसे कभी मिलेगी या नहीं। लेकिन एक चीज़ मैं जानती हूँ कि मेरे दिल में तुम्हारी यादें हमेशा बनी रहेंगी।" इरा ने कहा, और उसकी आवाज में अब भी वही दुख था।

वह तस्वीर को अपने हाथों में उठाकर उसके करीब लाई और उसे अपने गालों पर रखा। "तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, करण। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकती। क्या तुम अब भी मुझे अपनी माँ के तौर पर अपनाना चाहोगे? क्या तुम्हारे दिल में वो प्यार फिर से जिंदा हो सकेगा?" इरा की आवाज में अब उम्मीद थी, लेकिन वह जानती थी कि यह उम्मीद शायद कभी पूरी नहीं होगी।

उसने तस्वीर को फिर से दीवार पर टांग दिया, लेकिन उसे महसूस हो रहा था कि इस तस्वीर के आगे वह खुद कितनी छोटी और अकेली थी। इरा जानती थी कि वह अब अपने बेटे को वापस पाने के लिए जो भी कर सकती थी, उसे करेगी। वह हर कोशिश करने के लिए तैयार थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका बेटा उसकी इस कोशिश को स्वीकार करेगा या नहीं।

"करण, मुझे तुमसे मिलने की एक आखिरी कोशिश करने का हक चाहिए," इरा ने अपनी आँखों में फिर से आशा भरते हुए कहा। "क्या तुम कभी मेरे पास आओगे, मुझे गले लगाओगे? क्या तुम मेरे लिए वह प्यार फिर से दे पाओगे?" उसकी आवाज़ अब बहुत हल्की थी, जैसे वह खुद भी अपनी उम्मीदों से टूट चुकी हो, लेकिन फिर भी अपने बेटे को पाकर उसे हर हाल में चाहती थी।

अब इरा ने खुद से वादा किया कि वह कभी हार नहीं मानेगी। चाहे जो भी हो, वह अपने बेटे को वापस पाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगी। उसकी आँखों में यह नयी उम्मीद थी।

इरा ने तस्वीर से फिर से आँखें हटाईं और खुद को समेटते हुए कहा, "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, करण, और मैं तुम्हे कभी नहीं छोड़ूंगी।"

इस समय, इरा को यह अहसास हुआ कि यह प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता। भले ही वह अपने बेटे से दूर थी, लेकिन उसका दिल हमेशा उसी के पास रहेगा।



एरा का दिल जैसे बर्फ से भी ठंडा हो गया था। वह तस्वीर में अपने बेटे को देख रही थी, और उसके अंदर का दर्द और बढ़ता जा रहा था। आँसुओं से भरी उसकी आँखें अब उसे ये समझाने की कोशिश कर रही थीं कि वह उस दर्द को महसूस करे जो उसने कभी न कभी किया था। जैसे ही एरा ने तस्वीर को फिर से देखा, उसे अपनी छोटी सी कटी-फटी यादें ताजा हो आईं। वो यादें जो उसकी आत्मा में हमेशा के लिए दर्ज हो गई थीं।

वह यादें, जब करण छोटा था, और वह अपनी माँ की गोदी में झूलते हुए अपनी प्यारी मुस्कान के साथ दुनिया से खेलता था। एरा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस छोटे से मासूम बेटे की मुस्कान को अपनी आँखों में बसाने की कोशिश की। उसे आज भी उसकी उस मुस्कान की जरुरत थी। लेकिन उसकी आँखों के सामने एक सन्नाटा था।

एरा के होंठ एक धीमी आवाज में कांपे। "करण, मुझे तुमसे बहुत प्यार था... लेकिन मैंने तुम्हें छोड़ दिया। क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगे?"

उसकी यह बात सिर्फ एक सवाल नहीं थी, बल्कि उसके दिल का एक टूटा हुआ टुकड़ा था, जिसे वह छुपा नहीं पाई। तस्वीर को देखते हुए उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे, लेकिन उसे लग रहा था कि ये आँसू अब उसे कोई राहत नहीं देंगे। उसे बस यह चाहिए था कि वह अपनी गलती का प्रायश्चित कर सके।

वह तस्वीर को अपनी आँखों से चिपकाकर देख रही थी और किसी तरह से सोच रही थी कि क्या वह कभी करण को फिर से अपनी माँ बना पाएगी? क्या वह कभी अपने बेटे का दिल फिर से जीत सकेगी? लेकिन उसके अंदर के सवालों का कोई जवाब नहीं था।

इतना ही नहीं, अचानक एरा को ऐसा महसूस हुआ कि कमरे में कुछ बदल रहा है। जैसे किसी ने उसके सामने आकर उसके साथ बातें की हो। उसे लगा जैसे करण सचमुच उसके पास हो, और उसकी आँखों में दर्द और सवाल था। "माँ, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया था?"

एरा के दिल में एक अजीब सा दर्द हुआ। उसकी हिम्मत अब टूट चुकी थी, और उसने अपने हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसका दिल जैसे चीरने वाला दर्द महसूस कर रहा था। "करण... मेरे बेटे... मुझे माफ़ कर दो। मैं जानती हूं कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है।"

उसकी आवाज़ में इतने कषट थे कि कमरे का हर कोना उसे सुन सकता था। उसकी आँखें जल चुकी थीं, और उसके चेहरे पर वो चुप्प थी जो कभी उसे समझ में नहीं आती थी।

लेकिन जैसे ही वह और रोई, उसे अचानक ऐसा लगा कि उसके सामने करण एक बार फिर खड़ा है। उसकी आँखों में वही मासूमियत और वही सवाल था। "माँ, क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगी?"

यह सवाल उसे अब और भी बेहोश करने वाला था। एरा अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई। "करण, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुम मेरी जिंदगी हो। मुझे माफ़ कर दो।"

उसकी आवाज में यह दर्द था, और वह चाहती थी कि वह अब कभी न रुक सके, लेकिन जैसे ही उसने पलटकर देखा, कमरे में सन्नाटा था। सब कुछ हलचल में डूबा हुआ था। और तभी उसे समझ में आया कि जो कुछ उसने महसूस किया वह सिर्फ एक सपना था। वह एक ऐसा सपना था जिसे वह खो चुकी थी।

कमरे में एक ठंडी हवा आई, जैसे वह सपना अचानक टूट चुका हो। एरा ने अपनी आँखें खोलीं, और वह यही सोचने लगी कि कहीं वह अपनी गलती के लिए कभी माफ़ी पा सकेगी या नहीं।

तभी, कमरे का दरवाजा खुला और उसकी माँ, पिता, भाई, और भाभी एक-एक करके कमरे में आए। वे एरा को देखते हुए चुपचाप खड़े थे। हर एक के चेहरे पर कुछ छिपा हुआ था। एरा ने जब उनकी आँखों में देखा, तो उसे समझ में आया कि वे सब उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे भी उस दर्द को महसूस नहीं कर पा रहे थे जो उसने खोया था।

उसका भाई, जो हमेशा उससे बात करने के लिए हिम्मत देता था, अब चुप था। उसकी आँखों में भी गहरी उदासी थी। वह बस खड़ा रहा, और उसके पास कोई शब्द नहीं थे।

एरा ने आँखों में आँसू समेटते हुए कहा, "मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि करण मुझे फिर से अपना पाएगा या नहीं?" उसकी आवाज़ अब भी कांप रही थी।

तभी उसके पिता ने धीरे से उसकी पीठ थपथपाई। "बिलकुल, एरा। समय कभी भी सजा नहीं देता। तुम जो कुछ भी कर सकती हो, करो। लेकिन तुम्हें एक बात याद रखनी होगी... कभी भी अपने फैसले के लिए खुद को दोषी मत समझो।"

एरा की आँखें एक पल के लिए और भर आईं, लेकिन उसने धीरे से उन्हें पोंछ लिया। उसे अब एक उम्मीद का नया सूरज दिखाई दे रहा था। वह जानती थी कि अब शायद वह करण से माफ़ी मांग सकेगी।

लेकिन वह जानती थी कि उसका सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। उसे अपने बेटे को खोने के बाद खुद को पाना था।

एरा अपने किए फैसलों पर पछता रही थी। वो सोच रही थी कि कैसे उसने अपनी खुशियों को छोड़कर अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। उसने अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर, अपनी मां-बाप के दबाव में आकर, अमरीका आकर एक नई जिंदगी शुरू की थी। वह मानती थी कि यह निर्णय सही था, लेकिन अब उसे यह समझ में आ रहा था कि कुछ फैसले एक व्यक्ति की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देते हैं, और उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे अब भुगतना पड़ रहा था।

एरा के दिल में यह सवाल बार-बार गूंजता था कि क्या उसने सही किया था? क्या अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपने माता-पिता की बातों को न मानती तो उसकी जिंदगी अलग होती? क्या अगर वह उनके साथ रहती, तो क्या वह आज खुश होती?

एरा के मन में यह विचार घूमते रहते थे कि उसने अपने बेटे करण को क्यों छोड़ा। उस वक्त, जब वह अमर और अपने बेटे के साथ खुश थी, उसे क्यों लगा कि वह अपनी मां-बाप के पास जा सकती थी, और फिर उसके बाद क्या हुआ, वह जानती थी। उसे यह भी समझ में आ रहा था कि उस समय उसके सामने कुछ और ही दृश्य थे, जो अब उसे साफ दिखाई दे रहे थे। उसकी मां-बाप ने उसके सामने एक अलग ही दुनिया का सपना रखा था, और वह इस सपने का पीछा करते हुए अपनी असल जिंदगी और असल खुशियों को भूल गई थी।

उसे याद था कि जब उसने अमर से शादी की थी, तब वह बहुत खुश थी। दोनों ने अपने रिश्ते को समझा, उसकी नींव मजबूत थी, और उनके बीच एक प्यार था, जो बहुत गहरा था। लेकिन फिर उसके माता-पिता का दबाव बढ़ा, और वह समझ नहीं पाई कि वह किसे चुनें—अपनी फैमिली या अपने पति और बेटे को। उसके माता-पिता ने उसे यह समझाया था कि अमरीका में एक नई जिंदगी शुरू करने से वह कुछ बड़ा हासिल कर सकती है, लेकिन उसकी यह सोच एक भटकाव की तरह साबित हुई।

आज एरा जानती थी कि उसने सब कुछ छोड़कर जो फैसला लिया था, वह गलत था। जब वह अपनी दुनिया छोड़कर अमरीका आई, तो उसका दिल टूट चुका था। वह अपनी मां-बाप के साथ भी खुश नहीं थी, क्योंकि वह हमेशा यह महसूस करती थी कि उसने किसी को छोड़ दिया था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को सबसे ज्यादा दुख पहुंचाया था, और इस दर्द को वह हमेशा महसूस करती थी।

वह सोचती थी कि क्या उसने सही किया? अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपनी मां-बाप के पास नहीं जाती, तो क्या वह आज खुश रहती? अब उसकी जिंदगी सिर्फ खालीपन से भरी हुई थी, और वह समझती थी कि इस खालीपन को भरने का कोई तरीका नहीं है।

उसे याद आया कि एक दिन उसने अमर से बात की थी, और वह उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह गलत कर रही है। अमर ने उससे कहा था, "तुम्हें हमारे साथ रहना चाहिए था, एरा। तुम्हें अपने बेटे के साथ रहना चाहिए था। तुमने अपनी खुशियों को छोड़ दिया है, और मैं जानता हूं कि तुम कभी भी अपनी गलतियों का पछतावा करोगी।"

आज एरा को यही बात महसूस हो रही थी। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को खो दिया था। उसने कभी उसे खुद के पास रखा था, और आज जब वह अपने बेटे के बारे में सोचती थी, तो उसे उसकी आँखों में वह मासूमियत और प्यार दिखता था, जो वह कभी छोड़ नहीं पाई थी। वह अब कभी भी उसे वापस नहीं पा सकती थी।

उसने अपने आप से कहा, "क्या मैं कभी करण को फिर से पा सकूँगी?" यह सवाल उसका पीछा नहीं छोड़ता था, और उसने अपने मन से इसका जवाब भी ढूंढ लिया था। वह जानती थी कि जो कुछ भी हुआ, अब वह उसे बदल नहीं सकती थी, और उसके फैसले ने उसे दर्द और अकेलेपन के रास्ते पर चला दिया था।

एरा की आँखों में आँसू थे, और उसने अपने हाथों से उन आँसुओं को पोंछा। वह जानती थी कि उसने जो किया, वह अब उसे कभी वापस नहीं पा सकती थी। लेकिन फिर भी, उसके मन में उम्मीद थी कि कभी न कभी वह अपने बेटे और पति को ढूंढ पाएगी। एरा का दिल अब भी वही चाहता था, जो उसने खो दिया था—अपना परिवार।

वह महसूस करती थी कि शायद अब वह अपने फैसलों को सुधार नहीं सकती, लेकिन वह चाहती थी कि किसी तरह उसे और अमर को फिर से मिलाया जाए। उसकी आत्मा, उसकी अंतरात्मा में यह विचार था कि क्या वह कभी अपने परिवार को सही तरीके से वापस पा सकती है?



एरा अपने अतीत के हर एक पल को याद करती थी, और जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसकी सज़ा और बढ़ती गई। वह खुद से सवाल करती थी, "क्या मैंने सही किया था? क्या सच में मुझे अपने बेटे और पति को छोड़कर अपनी मां-बाप के साथ जाना चाहिए था?"

उसने कई सालों तक इस सवाल से लड़ाई की थी, लेकिन अब भी उसे इसका जवाब नहीं मिल सका था। उस दिन के बाद, जब उसने अमर और करण को छोड़ा था, उसकी जिंदगी बस एक खामोशी और पछतावे में बदल गई थी। अब वह हर रात अपने बेटे के बारे में सोचती थी, और वह सोचने लगी थी कि क्या उसकी गलती की वजह से करण की ज़िंदगी भी नष्ट हो गई थी।

कभी-कभी, उसे ऐसा लगता था कि वह अमर और करण के बिना जी नहीं सकती थी। लेकिन फिर उसके मन में एक और सवाल उठता था, क्या वह सही कर रही थी? क्या वह इस दर्द को सहन करने के लिए तैयार थी?

एरा ने अपने बेटे करण को ढूंढने के लिए बहुत मेहनत की थी। उसने कई जांच एजेंसियों से संपर्क किया था, और उन्हें अपनी पूरी ज़िंदगी का हिसाब देने के लिए तैयार थी। वह जानती थी कि उसे अपने बेटे को वापस पाना था, और इसके लिए वह कोई भी रास्ता अपनाने के लिए तैयार थी।

धीरे-धीरे, उसने कुछ ऐसे डिटेक्टिव्स को हायर किया, जो इस काम में माहिर थे। उसे उम्मीद थी कि वे उसे करण तक पहुँचाने में मदद करेंगे। डिटेक्टिव्स ने कड़ी मेहनत की, और कुछ महीनों बाद, उन्होंने एरा को एक ख़बर दी, जो उसके दिल को तोड़ने वाली थी।

"मैम," एक डिटेक्टिव ने उसे बताया, "हमने कुछ जानकारियाँ हासिल की हैं। आपके बेटे करण के बारे में पता चला है। जब आप अमेरिका गईं थीं, उसके कुछ समय बाद अमर ने ग़म में अपनी जान दे दी थी। और उसके बाद, करण को उसकी दादी ने अपने साथ ले लिया और एक छोटे से गाँव में रहने लगे।"

यह खबर सुनते ही एरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसका दिल बुरी तरह से टूट गया, और उसके अंदर की सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गईं। वह बस एक ही बात बार-बार सोचने लगी थी, "क्यों? क्यों ऐसा हुआ? क्या मैंने गलत किया?"

"मुझे माफ़ कर दो, करण," उसने अपने बेटे के बारे में सोचते हुए धीमे से कहा, "मुझे माफ़ कर दो, कि मैंने तुम्हें छोड़ दिया। मुझे पता था कि तुम अकेले हो गए थे, और फिर भी मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकी।"

एरा को अब महसूस हो रहा था कि उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे हमेशा भुगतना होगा। वह जितना भी आगे बढ़ने की कोशिश करती थी, कुछ न कुछ उसे हमेशा उस अतीत की ओर खींच ले आता था।

"क्या तुम मुझे माफ करोगे, करण?" एरा ने अपने दिल से यह सवाल किया। "क्या तुम मुझे फिर से अपने पास आने दोगे? क्या तुम मुझे फिर से अपनी माँ के रूप में स्वीकार करोगे?"

वह बुरी तरह से रो रही थी। उसकी आँखों में वह हीन भावना और पछतावा था, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल था। वह जानती थी कि अब करण का वापस लौटना संभव नहीं था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को हमेशा के लिए खो दिया था।

अब एरा को यह समझ में आ गया था कि उसने अपनी जिंदगी के सबसे बड़े फैसले को कितना गलत लिया था। वह सोचती थी, "क्या मैं अब भी अपने बेटे के पास जा सकती हूँ? क्या मेरे पास उसे वापस पाने का कोई रास्ता है?"

फिर भी, एरा की उम्मीदें और उसकी आत्मा ने उसे कभी हार मानने की अनुमति नहीं दी। वह जानती थी कि एक दिन वह अपने बेटे को ढूंढ निकालेगी। वह जानती थी कि वह अपने बेटे से मिलकर उसे वो सारी चीज़ें दे सकती थी, जो उसने उसे नहीं दी थीं।

एरा अपने आप से कहती थी, "मैं कभी हार नहीं मानूंगी। मुझे बस अपने बेटे को वापस पाना है।"

लेकिन फिर उसे याद आया कि वह कितना भी कोशिश करे, वह कभी अपनी गलतियों को नहीं बदल सकती थी। उसे महसूस हुआ कि जो कुछ भी हो चुका है, वह अब कभी भी वापस नहीं आएगा। और यही सोचते हुए, एरा के दिल में एक गहरी उदासी भर गई थी।

उसने अपने आप से यह वादा किया, "मैं अब अपनी गलती का अहसास कर रही हूँ। मुझे पता है कि मैंने क्या खो दिया है, और अब मुझे इसे ठीक करना है।"

एरा को अब यह भी समझ में आ गया था कि वह जब तक अपने बेटे से नहीं मिलेगी, तब तक वह सुकून से नहीं जी सकती थी। वह सिर्फ एक ही चीज़ चाहती थी—अपने बेटे का चेहरा देखना। उसे बस यही लगता था कि अगर वह करण को फिर से देख पाएगी, तो शायद वह अपने दर्द और पछतावे को थोड़ा कम महसूस कर पाएगी।

उसने अपने अंदर एक नई ताकत पाई थी। अब वह जानती थी कि वह अपने बेटे को ढूंढेगी, चाहे जो भी हो। और इस बार, वह उसे कभी नहीं खोने देगी।




रात का समय था। एरा अपने माता-पिता, भाई, भाभी और उनके बच्चों के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई थी। मेज पर स्वादिष्ट पकवानों की भरमार थी, पर उस रात का माहौल खाने से ज़्यादा भावनाओं से भरा हुआ था। एरा ने अपनी प्लेट में खाना तो परोसा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। उसके मन में सिर्फ़ एक ही बात घूम रही थी—करन।

विक्रम (एरा के पिता):
"तो... एरा," उन्होंने एक लंबी सांस लेते हुए बात शुरू की, "हमने तय कर लिया है कि अगले हफ्ते भारत जाएंगे।"

टेबल पर अचानक शांति छा गई। हर कोई उनके शब्दों को समझने की कोशिश कर रहा था। एरा ने धीरे से अपना सिर उठाया और अपने पिता की ओर देखा।

एरा (चौंकते हुए):
"क्या... क्या कहा आपने? हम भारत जा रहे हैं?"

विक्रम ने सिर हिलाकर हामी भरी।

विक्रम:
"हां। करन को ढूंढने के लिए।"

यह सुनते ही एरा की आंखों में आंसू छलक पड़े। वह इतनी भावुक हो गई कि बोल भी नहीं पा रही थी। उसके दिल में करन की यादें हिलोरें मारने लगीं।

संध्या (एरा की मां):
"हम सब तुम्हारे साथ हैं, बेटा। अब और विलंब नहीं करेंगे। करन को वापस लाना ही होगा।"

एरा की आंखें भर आईं। उसने अपनी मां के हाथ थाम लिए।

एरा (आवाज़ भर्राई हुई):
"मां, मैंने करन को बहुत दर्द दिया है। क्या वो मुझे कभी माफ करेगा?"

संध्या:
"वक़्त हर जख्म को भर देता है, बेटी। पर तुम्हें अपना दिल मज़बूत रखना होगा। करन तुम्हारा खून है। वो तुम्हें ज़रूर माफ करेगा।"

इस बातचीत के बीच एरा का भाई, अभिषेक, जो आमतौर पर हंसी-मज़ाक में माहिर था, गंभीर हो गया।

अभिषेक:
"दीदी, तुमने जो किया वो आसान नहीं था, लेकिन अब पीछे मुड़ने का समय नहीं है। करन को ढूंढकर ही चैन मिलेगा।"

अंजलि (अभिषेक की पत्नी):
"और हम सब तुम्हारे साथ हैं।"

एरा ने सबकी ओर देखा। वह भावनाओं के जाल में फंसी हुई थी। इतने सालों से जो बोझ उसके दिल पर था, वह अब धीरे-धीरे हल्का महसूस कर रही थी।

एरा:
"पापा, क्या आपने सारी तैयारी कर ली है?"

विक्रम:
"हां, टिकट्स और रहने का इंतज़ाम हो गया है। हमने डिटेक्टिव्स को भी निर्देश दे दिए हैं। हमें बस करन के गांव जाना है।"

अभिषेक (हल्की मुस्कान के साथ):
"और हां, तुम टेंशन मत लेना। हम वहां घूमने भी जाएंगे।"

इस पर सभी हंस पड़े, माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

एरा (थोड़ी मुस्कुराते हुए):
"अभि, तुम हमेशा मेरी टेंशन कम कर देते हो।"

अभिषेक:
"क्या करूं, दीदी? तुम्हें हंसाना मेरी ड्यूटी है।"

रात के खाने के बाद भी एरा का दिल करन की यादों में डूबा हुआ था। उसने अपने पिता के फैसले को दिल से स्वीकार कर लिया था।

एरा (अपने आप से):
"करन, मैं आ रही हूं। इस बार तुम्हें अपनी मां का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।"

उसकी आंखों में दृढ़ निश्चय की चमक थी।


करण का परिचय

करण, एरा का बेटा, जो कि अब कई सालों से अपनी दादी के साथ गाँव में रहता है, अपनी ज़िन्दगी में एक अजनबी सा मोड़ लेकर आगे बढ़ रहा था। बचपन की वो हंसी-खुशी, प्यार और ममता, जो उसे अपनी मां और पिता से मिली थी, अब उसकी यादों में धुंधली हो गई थी। वह एक इंट्रोवर्ट और सख्त दिल का लड़का बन चुका था। उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल अपनी दादी का साथ देना और अपनी छोटी सी दुकान चलाना था।

वह गाँव के चौराहे पर एक छोटी सी मैकेनिक की दुकान चलाता था। वहाँ लोग अपनी बाइक और गाड़ी की मरम्मत के लिए आते थे, और करण को देखकर लगता था जैसे वो किसी फिल्म का हीरो हो। उसकी चौड़ी कांधें, मजबूत कद, और घुंघराले बाल उसकी अलग पहचान बनाते थे। उसकी आँखें, जो हमेशा शांत और गंभीर रहती थीं, कभी भी किसी से मिलकर हंसती नहीं थीं।

करण का रूप और व्यक्तित्व

करण का चेहरा किसी आदर्श युवक जैसा था, काले बाल घुंघराले, जो उसके माथे पर हमेशा गिरे रहते थे। उसकी आँखों में गहरी नीली चमक थी, जैसे सागर की लहरें हो। उसकी मजबूत कद-काठी और चौड़े कंधे उसे और भी आकर्षक बनाते थे। जब वह गाँव की गलियों से गुजरता, तो लोग उसे दूर से पहचान लेते थे। उसकी आँखों में एक गहरी चुप सी थी, एक ऐसा ग़म जो उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।

उसकी शरीर की ताकत को देखकर लगता था कि वह किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है, लेकिन उसकी व्यक्तित्व में एक ठंडी शांति थी। वह दूसरों से मेल-मिलाप करने में बहुत ही कम रुचि दिखाता था। उसकी दुकान पर आकर लोग काम करवाते, लेकिन करण हमेशा बिना किसी से ज्यादा बात किए बस अपने काम में व्यस्त रहता था। उसकी स्थिति यही थी कि वह ज्यादा किसी से घुलता-मिलता नहीं था, और न ही कोई उसे जान पाता था।

करण का जीवन और उसकी दादी

करण का जीवन, अपनी दादी के साथ बिताने में गुजर रहा था। उसकी दादी, जो बहुत ही सख्त और समझदार महिला थी, ने उसे अपना जीवन सिखाया था। वह जब भी किसी के पास से गुजरता, उसकी आँखों में एक शांति का सा अहसास होता था, जैसे वह दुनिया से कटकर बस अपनी दादी के पास ही जीता था।

गाँव के लोग करण को जानते थे, लेकिन कोई उसे करीब से जानने की कोशिश नहीं करता था। वह हमेशा अकेला ही रहता था, अपने काम में व्यस्त और अपने दादी के साथ। उसकी दादी ने उसे इस काबिल बनाया था कि वह खुद की मदद कर सके, लेकिन करण का दिल अब भी उसके माता-पिता की यादों से भरा था। उसे यह समझने में वक्त लगा था कि उसकी मां ने उसे छोड़ दिया, और वह कभी भी अपने पिता के पास वापस नहीं जाएगा।

करण का ठंडा और चुप्पा व्यक्तित्व

उसके अंदर एक ठंडी खामोशी थी, जो उसे औरों से अलग करती थी। वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस वही करता था जो उसे करना था। उसका चुप्पापन उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुका था। गाँव के लोग कहते थे कि करण कभी किसी से बात नहीं करता, लेकिन जब भी वह अपने काम में व्यस्त होता, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक होती।

करण की दुनिया अब बस उसकी दुकान और दादी तक सीमित थी। एक दिन, जब वह अपनी दुकान पर बैठा था और किसी ग्राहक की गाड़ी की मरम्मत कर रहा था, तभी एक बच्चा आया और उसने पूछा,
बच्चा: "भैया, आप इतने अच्छे क्यों हो?"
करण ने सिर उठाया, लेकिन कुछ नहीं बोला। उसने बस हल्की सी मुस्कान के साथ काम करना जारी रखा।

इस छोटी सी घटना ने उसके चुप रहने के कारणों को और भी गहरा कर दिया था। करण का दिल बहुत बड़ा था, लेकिन वह उसे किसी से साझा नहीं करना चाहता था। वह अपने अंदर के जख्मों को दबाए हुए था, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।



हालाँकि, वह अपने जीवन में खुश था, लेकिन उसकी यादों में एक खालीपन था, जो कभी पूरा नहीं हो सका। वह नहीं जानता था कि उसकी मां एरा कभी उसे ढूंढने आई थी। एरा ने कभी उससे मिलने की कोशिश नहीं की, और अब वह यही सोचता था कि शायद वह कभी अपनी मां से मिल भी नहीं पाएगा। उसकी दुनिया में सिर्फ उसकी दादी थी, और वह बस अपनी दिनचर्या में खोया रहता था।

लेकिन एक दिन, उसके जीवन में बदलाव आ सकता था, जब उसकी माँ एरा, भारत लौटने का निश्चय करेगी।



गाँव में रहते हुए, करण की दुकान के आसपास कुछ खास लड़कियाँ थीं, जिनकी आँखों में हमेशा एक अलग सा आकर्षण और आँख मिचौली करने का अंदाज़ था। वे गाँव के चौराहे पर आतीं और एक-दूसरे से बातें करतीं, कभी हँसते हुए, कभी शरारत से। उनके बीच करण का नाम हमेशा ही चर्चा का विषय रहता था। कोई भी लड़की जब भी अपनी सहेलियों के साथ वहाँ से गुजरती, तो उसकी नज़रें स्वाभाविक रूप से करण पर ही होतीं।

सपने, शरारतें और छोटी-छोटी चहक—इन सबमें करण की छवि कहीं न कहीं सबसे पहले आ जाती थी। उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखें और घुंघराले बाल जैसे उन लड़कियों के दिलों में हलचल पैदा कर देते थे। वे हमेशा से ही करण के इर्द-गिर्द अपना ध्यान बनाए रखतीं। कभी कभार, वे दुकान के पास से गुज़रते हुए जान-बूझकर आवाज़ में कुछ कह देतीं, ताकि करण उनकी तरफ देखे। उनका दिल उसी पल धड़क उठता था, जैसे ही करण की आँखें उन पर पड़ती थीं।

"किसी दिन तो करण भैया को देखना है ना!"
"तुम्हें क्या लगता है, आज वह फिर हमें देखेगा?"
"मुझे तो लगता है कि वो जानबूझकर ध्यान नहीं देता।"

ऐसी ही चहकती आवाज़ें दिनभर गाँव के चौराहे के आस-पास गूंजती रहतीं। लड़कियाँ हमेशा एक-दूसरे से करण के बारे में बात करतीं, उसकी कद-काठी, उसकी आँखों की चमक, उसकी मुस्कान—सभी कुछ उन्हे खास ही लगता था। कभी कभी, एक लड़की किसी तरह की टिपण्णी करती,
"देखो, इस बार तो करण ने हमें ध्यान से देखा, लगता है वो मुझसे कुछ कहने वाला है।"

और फिर उसकी सहेलियाँ मजाक में कह देतीं, "पागल! वो कभी किसी से बात नहीं करता, छोड़ो! खुद को धोखा दे रही हो।"
लेकिन फिर भी वह लड़की अपनी बात पर अड़ी रहती।

"क्या तुमने देखा, उसकी आँखें कितनी गहरी हैं, जैसे उसमें दुनिया की सारी कहानियाँ समाई हुई हों।"

ऐसे ही छोटे-छोटे वार्तालापों में करण का नाम हमेशा आता रहता। लड़कियाँ उसे लेकर चहकतीं, कभी बग़ैर उसकी तरफ देखे, कभी बिना किसी उद्देश्य के दुकान के पास से गुजरतीं। उनका उद्देश्य सिर्फ करण की आँखों का सामना करना था।

एक दिन की बात है, जब गाँव में मेला लगा था। सभी लड़कियाँ जश्न में शामिल होने के लिए तैयार हो रही थीं। कुछ लड़कियाँ गाने की तैयारी कर रही थीं, कुछ सज-धज कर मेला देखने जा रही थीं, और कुछ ने तो करण को देखने के लिए खास कोशिश की थी। वे जानती थीं कि करण उस दिन भी अपनी दुकान पर बैठा होगा। उनका मन चाहता था कि करण के पास जाकर कुछ बातें करें।

"चलो, आज मैं जाकर करण से बात करती हूँ!" एक लड़की ने साहस जुटाते हुए कहा।
"क्या तुम पागल हो? वो तो हमारी तरफ देखता भी नहीं।" दूसरी लड़की ने चुटकी ली।
"नहीं, देखना! आज तो मैं उसे ज़रूर पकड़ लूंगी!"

आखिरकार, लड़की ने अपनी सहेलियों की बातों को नजरअंदाज करते हुए दुकान की तरफ कदम बढ़ाया। उसके साथ उसकी दूसरी सहेली भी चल पड़ी, और दोनों करण की दुकान के पास पहुँच गईं। करण उस वक्त अपनी दुकान पर ही खड़ा था, किसी बाइक के इंजन को ठीक कर रहा था। लड़कियाँ दूर से उसे देख रही थीं, लेकिन उनमें से एक लड़की ने हिम्मत जुटाते हुए पास जाकर करण से कहा,
"क्या आप मेरी बाइक ठीक कर सकते हैं?"

करण ने उसे देखा, फिर बिना कुछ कहे, सिर झुकाकर बाइक को देखा। लड़कियों की दिल की धड़कन बढ़ गई थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब करण उनसे कुछ बात करेगा। लेकिन करण ने अपनी आँखों को नीचे किया और काम पर ध्यान केंद्रित किया।

"इसकी चाबी दो। मैं देखता हूँ।" करण की आवाज़ में वही ठंडक थी, जो हमेशा रहती थी।

लड़कियाँ थोड़ी मायूस हो गईं, लेकिन फिर भी उनके दिल में ख़ुशी थी, क्योंकि करण ने कम से कम उनसे बात की। वे अपनी चहकते हुए एक-दूसरे से बातें करने लगीं,
"देखा! करण भाई ने हमसे बात की! अब देखो, अगले दिन से हम और भी आसानी से मिल पाएंगे!"

"तुम सही कह रही हो, आज तो वह बहुत शांत लग रहा था। शायद हमें फिर से कोशिश करनी चाहिए।"

वहाँ पर थोड़ी देर और खड़ी रहने के बाद, लड़कियाँ मुस्कुराती हुई चली गईं, लेकिन उनके मन में करण के प्रति एक अजीब सी दीवानगी थी। वे सब एक-दूसरे से कह रही थीं,
"अगर कभी वो हमारी तरफ ध्यान दे, तो हम उसे क्या कहेंगे?"
"मैं तो बस ये कहना चाहूंगी, 'हाय! करण भाई!' और फिर देखते हैं क्या होता
है।"

"मुझे लगता है, करण को हमारी तरह से भी कुछ समझ में आता है। हम फिर से कोशिश करेंगे।"

गाँव में करण को लेकर ये चहक हमेशा बनी रहती थी।

गाँव में एक मेला लग रहा था, और लोग दूर-दूर से इस मेले का हिस्सा बनने के लिए आ रहे थे। वहाँ हर तरफ रौनक थी – रंग-बिरंगे झूले, स्टॉल्स, हंसी-खुशियाँ, और बच्चे खुशियों से झूम रहे थे। लेकिन करण के लिए यह सब कुछ भी मायने नहीं रखता था। वह अपने दो दोस्तों के साथ मेले में आया था, लेकिन उसका ध्यान किसी और चीज़ पर था। उसकी दादी ने उसे जबर्दस्ती मेले में ले जाने की जिद की थी, और अब वह वहाँ खड़ा था, अपने दोस्तों के साथ, जहाँ लड़कियाँ लगातार उसकी तरफ देख रही थीं और कुछ न कुछ बोलने की कोशिश कर रही थीं।

लड़कियाँ उसे देखतीं और उसकी ओर आकर्षित होतीं, लेकिन करण की आँखों में एक गहरी उदासी थी। वह जानता था कि वह इन चीज़ों से दूर रहकर अपनी दुनिया में शांत रहना चाहता था। वह जानता था कि लड़कियाँ उसे आकर्षक समझती थीं, लेकिन वह कभी किसी के साथ अपने दिल की बात नहीं करना चाहता था। उसकी खामोशी में गहरे राज छुपे थे, जो उसने कभी किसी को नहीं बताए थे।

करण और उसके दोस्त

करण के साथ दो और दोस्त थे – अली और मोहन। अली थोड़ा चुलबुला था, और हमेशा किसी न किसी लड़की के साथ बातें करने की कोशिश करता था। वहीं मोहन शांत और विचारशील था, ठीक करण जैसा, लेकिन वह थोड़ी ज्यादा हिम्मत दिखाता था। तीनों दोस्त एक साथ खड़े थे, लेकिन करण का मन कहीं और था।

अली ने देखा कि करण किसी लड़की से बात करने की बजाय, अपने दोस्तों से बातचीत में ज्यादा ध्यान दे रहा था, तो उसने मजाक किया,
"करण, यार, तू तो जैसे लड़की के नाम से डरता है, लड़कियाँ तेरे पास आकर लाइन मारती हैं, और तू उनसे दूर भागता है।" अली ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

करण ने सिर झुका लिया और बस हल्का सा मुस्कुराया। वह जानता था कि अली मजाक कर रहा है, लेकिन वह इस तरह की बातें कभी नहीं समझ पाता था। मोहन ने बीच में आते हुए कहा,
"तुम दोनों ही लड़की के बारे में कुछ नहीं समझते।"

अली और करण दोनों ही मोहन की तरफ देखने लगे। मोहन थोड़ा गंभीर हो गया और बोला,
"लड़कियाँ कोई खिलौना नहीं होतीं, जिन्हें हम अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल करें। वे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन यह सब केवल तभी सही होता है, जब हम किसी को सच में प्यार करते हैं।"

अली थोड़ा चौंकते हुए बोला,
"क्या बात कर रहे हो तुम? तुम तो हमेशा कहते हो कि लड़की के साथ टाइम पास करो, जब तक मस्ती कर सको। अब क्या हो गया?"

मोहन ने गहरी साँस ली और जवाब दिया,
"देखो, अली, मैं तुमसे ज्यादा बड़ा नहीं हूँ, लेकिन मेरी सोच में एक फर्क है। प्यार सिर्फ एक आकर्षण नहीं होता। यह एक गहरी भावना है, जो कभी भी किसी के साथ गलत नहीं होनी चाहिए। जब तुम किसी को दिल से चाहो, तो तुम्हें सिर्फ उसे ही चाहना चाहिए, न कि अपने फायदे के लिए।"

करण, जो अब तक खामोश था, अपने दोस्तों की बातों को सुनते हुए धीरे से बोला,
"तुम दोनों कुछ भी समझ नहीं पा रहे हो। लड़कियाँ अपनी चाहत नहीं दिखातीं, वे जो महसूस करती हैं, वही कहती हैं। लेकिन प्यार सिर्फ कहने की बात नहीं है। यह तब होता है, जब हम किसी के साथ अपने दर्द और खुशी को साझा करने के लिए तैयार होते हैं। मैं जानता हूँ कि इस वक़्त लड़कियाँ मेरे पास आकर बात करती हैं, लेकिन क्या फर्क पड़ता है? क्या मेरी चुप्पी से किसी का दिल टूटता है?"

अली और मोहन दोनों चुप हो गए। वे समझ गए कि करण की खामोशी में कुछ गहरी बातें थीं, जो उसने अभी तक किसी से नहीं साझा की थीं। अली ने सिर झुका लिया और धीरे से कहा,
"मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम बस डरते हो, करण। डरते हो ये सोचने से कि अगर तुम किसी से अपने दिल की बात करोगे, तो वह तुम्हारे जैसा नहीं होगा।"

करण की आँखों में गहरी उदासी छा गई। वह जानता था कि उसके दोस्तों को वह महसूस नहीं करवा सकता था, जो वह महसूस कर रहा था। वह जानता था कि उसकी खामोशी एक रक्षा कवच है, जो उसे अपनी भावनाओं से दूर रखता है।

"ये सब बातें आसान नहीं हैं, अली।" करण ने कहा, "तुम नहीं समझ पाओगे। जब तुम किसी से प्यार करते हो, तो वह प्यार तुम्हें पूरे दिल से चाहिए होता है। और जब तुम्हारे पास वह नहीं होता, तो तुम बस खामोशी में डूब जाते हो, जैसे मैं डूबता हूँ। यह सिर्फ एक भावना नहीं होती, यह एक असलियत होती है, जो हमें चुप रहने पर मजबूर करती है।"

मोहन ने सिर झुका लिया और कहा,
"तुम सही कह रहे हो, करण। प्यार सिर्फ दिल से नहीं, बल्कि समझ से भी होता है। जब तक तुम किसी को समझने की कोशिश नहीं करोगे, तब तक तुम कभी भी पूरी तरह से उस व्यक्ति से प्यार नहीं कर पाओगे।"

अली चुप हो गया और अपनी सोच में खो गया। वह जानता था कि करण की चुप्पी में बहुत कुछ छिपा था, जो उसने कभी खुद महसूस नहीं किया था।

अचानक, मेले में कुछ हंसी की आवाज़ें आईं। लड़कियाँ फिर से करण के पास आईं, लेकिन इस बार वह बिना किसी झिझक के अपनी बातचीत में शामिल होने का इरादा रखते हुए, उसे चिढ़ाने लगीं।

"देखो, करण! तुम तो हमेशा खामोश रहते हो, क्या तुम्हारा दिल नहीं चाहता कि तुम हमसे बात करो?" एक लड़की ने चिढ़ाते हुए पूछा।

करण ने सिर झुका लिया, फिर एक हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आप लोग अच्छे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मेरी दुनिया में और भी बहुत कुछ है, जो मुझे समझने की जरूरत है।"

यह सुनकर लड़कियाँ थोड़ी चौंकीं, लेकिन फिर भी वे उसी तरह से उसके आस-पास घूमने लगीं। करण अब भी अपनी दुनिया में खोया हुआ था, जो कभी भी किसी के लिए नहीं खुलती थी।

बातचीत खत्म हुई, और तीनों दोस्त फिर से अपने रास्ते पर बढ़ गए। करण जानता था कि इस सबका कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उसके लिए प्यार और रिश्ते हमेशा कुछ गहरे थे, जो उसने कभी किसी से नहीं कहा था।

अंत में, करण की खामोशी ही उसकी ताकत थी, और लड़कियाँ चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वह हमेशा अपनी दुनिया में ही रहकर अपने दिल की बातों को सितारों के बीच खो देता था।


Karan मेले से सीधा अपने पापा की कब्र पर गया। रात का समय था, आसमान में घने बादल थे, और हवा में ठंडक बढ़ रही थी। चाँद की रोशनी भी दब सी गई थी, और आसपास का वातावरण शांति में डूबा हुआ था। केवल दूर कहीं कुछ आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन यहाँ सब कुछ शांत था, जैसे दुनिया के बाकी हिस्से से यह जगह एकदम अलग हो।

क़ब्र के पास पहुँचते ही, Karan ने अपनी आँखें बंद की और गहरी सांस ली। उस क़ब्र के पास उसकी पूरी ज़िंदगी की अनकही बातें, वह सारी यादें थीं जो उसने कभी किसी से नहीं बाँटी थीं। क़ब्र के सामने खड़े होकर, Karan ने धीरे से अपना सिर झुका लिया और बोला,

“पापा, तुमसे कुछ बातें करनी हैं। बहुत दिन हो गए, तुमसे कुछ भी कहे बिना। आज बहुत समय बाद लगता है कि शायद तुम मुझे सुन सकोगे।“

Karan के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी, आँखों में कुछ बुझी सी लाली थी। उसके लिए यह एक सामान्य दिन नहीं था, बल्कि वह अपने पिता के सामने खड़ा होकर उन सवालों का जवाब ढूंढ रहा था, जो उसने कभी खुद से पूछे थे।

“पापा, तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया। मुझे कभी समझ नहीं आया कि तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया। क्या तुम्हें कभी मेरा ध्यान नहीं आया? क्या तुमने कभी सोचा कि मेरे बिना तुम्हारे बिना मैं क्या करूँगा?”

Karan की आवाज़ में दर्द और गुस्सा था, लेकिन उसका दिल टूटकर भी शांत था। वह अपनी सारी बातें अब अपने पापा से कह रहा था, जैसे यह एक आखिरी मौका था।

“तुम्हें याद है, पापा, जब मैं छोटा था, तब हम दोनों कितने खुश रहते थे। तुम्हारी बाहों में छिपकर मैं दुनिया से लड़ने का साहस पाता था। लेकिन जब तुम मुझे छोड़ गए, तो सब कुछ बदल गया। मैं अकेला हो गया। क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं तुम्हारे बिना टूट गया था? क्या तुम नहीं जानते थे कि मुझे किस हद तक तुम्हारी ज़रूरत थी? कभी सोचो, पापा, मैं तो तुम्हारे बिना जी ही नहीं सका।”

Karan ने एक गहरी सांस ली, और फिर आँखें बंद कर लीं। उसे जैसे अपने पापा के साथ बिताए गए वक्त की यादें फिर से ताज़ा हो रही थीं। उसने सिर झुका लिया, और धीरे से बोला,

“मैंने कभी भी किसी से अपने दिल की बात नहीं की। सब मुझसे डरते थे, सब मुझसे दूर रहते थे। क्या तुम नहीं जानते थे, पापा, मुझे प्यार की दरकार थी, मगर मुझे कभी किसी से सच्चा प्यार नहीं मिला। मेरे दिल में हमेशा एक कमी सी थी, और अब तक वो कमी पूरी नहीं हुई। तुम ही तो थे, जिनसे मैं प्यार करना चाहता था, मगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया।”

क़ब्र के पास खड़े होकर Karan ने कई बातें की, कुछ अपने मन की, कुछ उन सवालों की जो वह कभी खुद से नहीं पूछ सकता था। उसने कहा,

“क्या तुम जानते हो पापा, कि मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुमसे दूर जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी की दिशा ही बदल गई। मुझे आज भी लगता है कि अगर तुम होते, तो मेरी ज़िंदगी में वो सब होता जो मैं आज तक चाह रहा था। क्या तुमने कभी सोचा कि अगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, तो मेरे साथ क्या हुआ होगा?”

Karan की आवाज़ में गहरी उदासी थी, जैसे वह किसी गहरे अंधकार में खो गया हो। वह अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शब्द उसके पास नहीं थे। उसके लिए शब्दों से ज्यादा ज़रूरी था अपनी आँखों से उन दर्द भरे पलो को महसूस करना, जो वह बहुत पहले अपनी मां के बिना जी चुका था।

“पापा, तुमने हमेशा मुझे ताकत दी थी, और आज मैं खुद को टूटता हुआ महसूस कर रहा हूँ। मुझे अब यह समझ में आ गया है कि तुम्हारी मुझसे दूर जाने के बाद, मुझे वह ताकत खुद से ढूँढनी पड़ी। तुमसे दूर जाने के बाद मैंने जो संघर्ष किए, वह कभी खत्म नहीं हुए। तुम्हारा प्यार और आशीर्वाद मुझे कभी भी समझ में नहीं आया, और अब तक मैंने किसी से वह प्यार नहीं पाया, जो मुझे तुमसे चाहिए था। क्या तुम नहीं जानते थे कि तुम्हारे बिना मैं ज़िंदगी को सही से समझ नहीं पा रहा था?”

क़ब्र के पास खड़ा Karan अब रोने लगा था। उसकी आँखों में आँसू थे, जो अब तक उसने किसी से नहीं दिखाए थे। उसकी पूरी ज़िंदगी एक सवाल बनकर रह गई थी, और वह किसी से उन सवालों का जवाब नहीं पा सका था।

“पापा, तुम्हें याद है कि तुम मुझे हमेशा कहते थे कि लड़ाई और संघर्ष से कभी मत भागो। आज भी मैं उसी रास्ते पर हूँ, उसी संघर्ष में हूँ। लेकिन आज तक मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुम मुझे क्यों छोड़ गए। क्या तुमने कभी सोचा था कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मैं कैसे जी पाऊँगा? तुमसे मिले हुए वो प्यार भरे पल अब भी मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। जब भी मैं किसी मुश्किल में फंसता हूँ, तब मुझे लगता है कि तुम मेरे पास हो, लेकिन जब मैं देखता हूँ कि तुम नहीं हो, तो फिर से टूट जाता हूँ। तुमसे प्यार करने की इच्‍छा कभी खत्म नहीं होती, पापा।“

Karan फिर से अपनी पूरी ताकत से बोलने लगा,

“तुमसे मिली हुई वो सारी यादें, वो बातें, वे लम्हे, सब कुछ मेरे भीतर हैं। मुझे लगता है कि तुम अभी भी कहीं पास हो, सिर्फ मुझे समझने के लिए नहीं आए। काश, तुम मुझे समझ पाते कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी, पापा। काश तुम मुझे कभी न छोड़ते।”

Karan अब धीरे-धीरे खड़ा होने लगा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। उसने सिर उठाकर एक आखिरी बार क़ब्र को देखा और फिर अपना चेहरा फिर से झुका लिया।

“पापा, शायद मैं अब समझ चुका हूँ कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे खुद को ढूँढना होगा। शायद यही वह रास्ता है, जो मुझे खुद से और तुम्हारे प्यार से जोड़ता है। शायद अब मुझे उस प्यार को अपने भीतर तलाशना होगा, जो तुमने मुझे कभी दिया था। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता, और शायद यही वह प्यार है, जो मुझे आगे बढ़ने के लिए ताकत देता है।”

क़ब्र के पास खड़ा Karan एक गहरी साँस लेकर वापस मुड़ने लगा। उसकी आँखों में अब भी आँसू थे, लेकिन उसका दिल थोड़ी रा
हत महसूस कर रहा था। शायद अब वह अपने पापा के बिना भी अपनी ज़िंदगी को समझने में सक्षम था।




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Nice and beautiful update....
 

Hamantstar666

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I think bhai aap tarak mehta ka ulta chasma bhot dekhta ho jo ki story me bas sara character achi achi baatein kar raha hai bus pure gaon ko bas karan ki fikra hai jo ki ak machanic hai aur yha irawati ko itna understand nahi ho raha ki jab uske maa baap apne matlab ka liya uska ghar barbad kar sakta hai to aga bhi asa kar sakta hai but bhai aap ki khani bilkul boring aur unrealistic hai
Nhi bahi me nhi dekhta wo show ...and abhi to do he episode huwe hai kon bura hai kon acha yaa kisme kitne hawas hai aur kon hawas ke khatir apne subse kimti chij ko bhi nuksaan pahucha sakta hai ye dhire dhire pata chale ga ...
 
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Hamantstar666

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Finally iravati India wapas aa gyi aur usko apna beta Karan ka baare mai bhi pta lag gya. ... Bahut emotional tha ... Ye update ... Baki next update ka intezaar rahega ...


Mera hisab sa sayad Karan ka andar jo ghe

ra ghaw hai woh Karan ko itni jaldi irawati ko maaf karna nhi dega ... Uska andar nafrat bhari Hui hai irawati ka leeya ... Mazza aayega next update mai 🎉🎉
Thanks bhai ese he support banaye rekhna ...app first rider hote ho ..iske liye dil se sukrya👑
 
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Motaland2468

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इरावती का बॉयफ्रेंड अर्जुन मेहरा है। वह एक आकर्षक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है, जिसकी उम्र लगभग 45 साल है। वह बाहरी रूप से बेहद सफल बिजनेसमैन है, लेकिन उसकी असली दिलचस्पी सिर्फ इरावती की संपत्ति और हैसियत में है। अर्जुन बहुत चालाक और महत्वाकांक्षी है। वह इरावती के माता-पिता को प्रभावित करने में सफल रहा है, खासकर विक्रम। अर्जुन का मकसद है इरावती के परिवार के संसाधनों पर कब्जा जमाना और अपनी कंपनी के विस्तार के लिए उनका इस्तेमाल करना।

अर्जुन का एक बेटा आर्यन मेहरा है, जिसकी उम्र लगभग 23 साल है, यानि करन के बराबर। आर्यन अपने पिता की तरह महत्वाकांक्षी नहीं है, बल्कि एक शांत और संवेदनशील लड़का है। हालांकि वह अर्जुन के प्रभाव में पला-बढ़ा है, लेकिन उसके भीतर एक मानवीय पक्ष है जो उसे अपने पिता से अलग करता है। आर्यन का व्यक्तित्व करन से बिलकुल अलग है—जहाँ करन मजबूत और कठोर है, वहीं आर्यन विनम्र और सहनशील है।

इरावती आर्यन को देखकर अक्सर करन की परछाईं देखती है। आर्यन का मासूम चेहरा और उसकी आँखों में करुणा उसे बार-बार करन की याद दिलाती है। जब भी आर्यन उसके सामने होता है, इरावती का दिल भारी हो जाता है, और वह खुद को करन के बारे में सोचने से रोक नहीं पाती। आर्यन के प्रति उसकी संवेदनशीलता उसे एक द्वंद्व में डाल देती है—क्या वह आर्यन के जरिए करन के प्यार को फिर से महसूस कर सकती है, या यह केवल एक भ्रम है?

अर्जुन, इरावती की भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करता है। वह जानता है कि इरावती अब भी अपने अतीत में फंसी हुई है, और वह इस मौके का उपयोग कर उसे अपने करीब लाने की कोशिश करता है। अर्जुन के इरादों को इरावती के परिवार के कुछ सदस्य नहीं समझते, लेकिन इरावती की मां सुमित्रा को अर्जुन पर शक है। वह अक्सर इरावती को सावधान रहने की सलाह देती हैं, लेकिन इरावती अभी तक अपने दिल और दिमाग के बीच फंसी हुई है।

आर्यन और करन के बीच यह समानता भविष्य में दोनों के रिश्ते को और जटिल बनाएगी। क्या आर्यन और करन कभी आमने-सामने होंगे? क्या इरावती अपनी भावनाओं के जाल से बाहर निकल पाएगी, या अर्जुन का छल उसे और गहराई में धकेल देगा? इन सवालों का जवाब समय के साथ सामने आएगा।

इराबती का नया दिन:

सूरज की किरणें खिड़की के पर्दों से छनकर इराबती के कमरे में फैल चुकी थीं। वो हल्के नीले रंग की साड़ी पहनकर दर्पण के सामने खड़ी थी। बालों को बांधते हुए उसने खुद को देखा—चमकती आँखें, लेकिन उनमें कहीं गहराई में छिपा हुआ दर्द। इराबती ने एक गहरी सांस ली और खुद को याद दिलाया कि आज का दिन नया है, और उसे अपने काम पर ध्यान देना है।

तभी नीचे से आवाजें आने लगीं। दरवाजे की घंटी बजी और नौकरानी ने दरवाजा खोला। इराबती ने अपनी डायरी बंद की और सीढ़ियों की ओर बढ़ी।

"इरावती!" आवाज़ अर्जुन की थी।

सीढ़ियों से उतरते हुए उसने देखा कि अर्जुन और आर्यन लॉबी में खड़े थे। अर्जुन हमेशा की तरह आकर्षक दिख रहा था। सफेद शर्ट के ऊपर काला ब्लेज़र, और चेहरे पर वो मुस्कान जो किसी का भी दिल जीत ले। आर्यन थोड़ी दूरी पर खड़ा था, जैसे उसे यहाँ होना नापसंद हो।

"अर्जुन, इतनी सुबह?" इरावती ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।

"तुमसे मिलने का वक्त कब देखा है?" अर्जुन ने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा।

इरावती ने अपनी मुस्कान को बनाए रखा, लेकिन उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। अर्जुन का यह अचानक आना उसे असहज कर रहा था।

"तुम्हारे ऑफिस जाने से पहले सोचा तुम्हें गुड मॉर्निंग कह दूं। और देखो, आर्यन को भी ले आया हूँ।" अर्जुन ने हँसते हुए कहा।

आर्यन ने हल्की सी मुस्कान दी और सिर हिलाया।

"गुड मॉर्निंग, आंटी।"

"आंटी नहीं, बस इरावती कहो," उसने आर्यन की ओर देख कर कहा।

"अरे छोड़ो ये फॉर्मल बातें।" अर्जुन ने इरावती के हाथ को पकड़ते हुए कहा, "मैंने सोचा था कि तुम्हारे साथ कुछ समय बिताऊं। वैसे भी तुम काम में इतनी व्यस्त रहती हो कि खुद को वक्त नहीं देती।"

इरावती ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया। "तुम जानते हो, मेरा काम मेरे लिए कितना ज़रूरी है।"

"पता है," अर्जुन ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "पर कभी-कभी तुम्हें भी आराम की ज़रूरत होती है। और शायद...थोड़ा प्यार की भी।"

इरावती ने अर्जुन के इस सीधेपन पर एक क्षण के लिए अपनी आँखें झुका लीं। उसे अर्जुन की बातों में एक अनजानी सी चुभन महसूस हुई। वो जानती थी कि अर्जुन का इरादा कुछ और था, लेकिन वो उसकी बातों में फंसना नहीं चाहती थी।

"चलो, बैठते हैं।" इरावती ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा।

वो सभी ड्राइंग रूम में आ गए। अर्जुन ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा, "याद है, जब पहली बार हम मिले थे? तुमने अपनी कंपनी को बचाने के लिए कितनी मेहनत की थी।"

"हाँ, और वो दिन अब भी याद हैं।" इरावती ने हल्के स्वर में जवाब दिया।

"मुझे तुम्हारा हौसला हमेशा से पसंद है, इरावती। तुम सिर्फ खूबसूरत नहीं हो, बल्कि एक मजबूत महिला भी हो।" अर्जुन की आवाज में एक अलग ही मिठास थी।

इरावती ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा।

"क्या मैं गलत कह रहा हूँ?" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"नहीं, लेकिन..." इरावती ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

अर्जुन ने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया। "तुम्हें खुद को थोड़ा खुला छोड़ने की ज़रूरत है। मैंने हमेशा तुम्हारे बारे में सोचा है, और आज भी सोचता हूँ।"

आर्यन, जो अब तक चुप था, ने हल्की खांसी की। "पापा, मुझे लगता है कि हमें चलना चाहिए। आंटी को ऑफिस जाना है।"

"आर्यन!" अर्जुन ने उसे डांटते हुए कहा।

"नहीं, आर्यन सही कह रहा है। मुझे निकलना होगा।" इरावती ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।

"ठीक है, लेकिन हम शाम को मिल रहे हैं, है ना?" अर्जुन ने पूछा।

इरावती ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। "देखती हूँ।"

अर्जुन और आर्यन जाने के लिए उठे। जाते-जाते अर्जुन ने कहा, "तुम्हारे बिना मेरी सुबह अधूरी है, इरावती।"

दरवाजा बंद होते ही इरावती ने एक गहरी सांस ली। उसे पता था कि अर्जुन के इरादे कुछ और हैं, और वह उसे इतनी आसानी से अपने जाल में फंसाने नहीं देगी।



सुबह की हल्की धूप ऑफिस की बड़ी खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी। इराबती अपनी कार में आर्यन के साथ बैठी हुई थी। दोनों के बीच अजीब सी चुप्पी थी। इराबती ने आर्यन की ओर देखा। वो खिड़की से बाहर झांक रहा था, जैसे सोच में डूबा हो।

"आर्यन," इराबती ने धीमे स्वर में कहा, "क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहोगे?"

आर्यन ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं आंटी...मेरा मतलब है, इराबती आंटी।"

इरावती ने गहरी सांस ली। उसे आर्यन के चेहरे पर एक अजीब सी दूरी महसूस हो रही थी। वो जानती थी कि आर्यन के लिए ये रिश्ता अब भी नया और असहज था। लेकिन कहीं न कहीं, उसके दिल में एक उम्मीद थी कि शायद आर्यन उसे अपनाने की कोशिश करेगा।

"आर्यन, क्या तुम आज मुझे सिर्फ 'माँ' कह सकते हो? बस एक बार।"

आर्यन ने चौककर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हल्का सा संकोच था। "आप...आप मुझे ऐसा क्यों कहने को कह रही हैं?"

"क्योंकि मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे एक माँ की तरह देखो। मैं जानती हूँ कि ये आसान नहीं है। लेकिन मैं कोशिश करना चाहती हूँ।"

आर्यन ने कुछ क्षण सोचा, फिर धीरे से कहा, "मैं...देखूंगा।"

इरावती ने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ थाम लिया। "बस इतना ही काफी है।"

कार ऑफिस के गेट पर रुकी। दोनों अंदर की ओर बढ़े। इराबती का ऑफिस बड़ा और भव्य था। सफेद दीवारों पर लगी पेंटिंग्स, चमचमाते फर्नीचर, और हर तरफ काम में डूबे लोग। इराबती का वहां एक अलग ही रुतबा था। हर कोई उसे आदर और सम्मान के साथ देखता था।

"माँ, ये ऑफिस कितना बड़ा है!" आर्यन ने हैरानी से कहा।

इरावती के दिल में हल्का सा सुकून आया। उसने 'माँ' शब्द सुना और उसकी आँखों में चमक आ गई।

"हाँ बेटा, और आज तुम भी इसका हिस्सा हो। चलो, मैं तुम्हें सब से मिलवाती हूँ।"

वो आर्यन का हाथ पकड़कर आगे बढ़ी। सबसे पहले वो अपने असिस्टेंट रोहन के पास पहुंची।

"रोहन, ये आर्यन है। आज से ये हमारे साथ रहेगा। इसे सब काम सिखाओ और ध्यान रखना कि इसे किसी तरह की दिक्कत न हो।"

रोहन ने मुस्कुराते हुए आर्यन से हाथ मिलाया। "स्वागत है आर्यन। यहाँ काम करना तुम्हें पसंद आएगा।"

इसके बाद इराबती ने आर्यन को अपने केबिन में ले जाकर कुर्सी पर बैठाया। "देखो आर्यन, ये ऑफिस सिर्फ एक काम करने की जगह नहीं है। ये मेरा सपना है, मेरी मेहनत है। और अब मैं चाहती हूँ कि तुम भी इस सपने का हिस्सा बनो।"

आर्यन ने सर हिलाते हुए कहा, "मैं कोशिश करूंगा।"

इरावती ने मुस्कुराकर कहा, "बस इतना ही काफी है। चलो, अब तुम्हें सब से मिलवाते हैं।"

वो आर्यन को लेकर बाकी कर्मचारियों के पास गई। हर किसी से आर्यन का परिचय करवाया। "ये आर्यन है, मेरा बेटा। आज से ये हमारे साथ काम सीखेगा।"

कर्मचारी हैरान थे। कई लोगों ने पहली बार सुना कि इराबती का एक बेटा भी है। लेकिन सबने मुस्कुराकर आर्यन का स्वागत किया।

"आपका बेटा तो बहुत होनहार लगता है," एक कर्मचारी ने कहा।

"हाँ, और मैं चाहती हूँ कि वो हर काम में निपुण बने," इराबती ने गर्व से कहा।

आर्यन ने सबकी ओर देखा। उसे एहसास हुआ कि यहाँ लोग इराबती का कितना सम्मान करते हैं। उसने मन ही मन सोचा कि शायद ये मौका उसकी जिंदगी बदल सकता है।

दिनभर के इस सफर में इराबती ने महसूस किया कि आर्यन थोड़ा खुलने लगा है। और शायद एक दिन वो उसे माँ के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर लेगा।



पूरा दिन इरावती ने आर्यन को अपने साथ रखा। हर बार जब वो आर्यन की तरफ देखती, उसकी आँखों में गहरी तड़प झलकती। आर्यन की मासूमियत, उसकी आँखों का चमकता हुआ नूर—सबकुछ उसे अपने बेटे करण की याद दिला रहा था।

वो अपने मन में बार-बार खुद से कहती, "मेरा करण भी ऐसा ही होगा... उतना ही मासूम, उतना ही होशियार। क्या वो भी ऐसे ही सवाल करता होगा? क्या वो भी ऐसे ही मुझे 'माँ' बुलाने का इंतजार कर रहा होगा?"

आर्यन ने जब देखा कि इरावती कहीं खोई हुई हैं, तो उसने धीरे से कहा, "आंटी... क्या हुआ? आप इतने ध्यान से मुझे क्यों देख रही हैं?"

इरावती चौंकी। उसने तुरंत खुद को संभाला और मुस्कुराने की कोशिश की। "कुछ नहीं बेटा, बस यूं ही...। तुम्हारी बातें सुनते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"

आर्यन ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा, "सच बताइए। कहीं आप मुझे किसी और से तो नहीं मिला रही?"

इरावती ने गहरी सांस ली। वो चाहती थी कि वो सब कुछ बता दे, लेकिन अभी वक्त सही नहीं था। उसने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं है। चलो, अब हम थोड़ी देर काम पर ध्यान दें।"


तभी गीता, इरावती की सेक्रेटरी, कमरे में दाखिल हुई। उसकी निगाहें आर्यन पर पड़ीं और उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तो ये हैं आपके नन्हे मेहमान?"

"हाँ गीता," इरावती ने मुस्कुराते हुए कहा, "आर्यन आज पूरा दिन हमारे साथ रहेगा। मैं चाहती हूँ कि तुम इसे ऑफिस के कामकाज समझाओ।"

गीता ने सिर हिलाया और आर्यन की तरफ मुड़कर कहा, "तुम्हें यहाँ कोई परेशानी तो नहीं हो रही?"

आर्यन ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, "नहीं, यहाँ सब बहुत अच्छे हैं। लेकिन ये सब काम मेरे लिए नया है।"

गीता ने हँसते हुए कहा, "कोई बात नहीं। मैं तुम्हें सब सिखा दूँगी। वैसे तुम्हें यहाँ आकर कैसा लग रहा है?"

आर्यन ने थोड़ा सोचकर कहा, "अच्छा लग रहा है...लेकिन थोड़ा अजीब भी।"

गीता ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "अजीब क्यों?"

आर्यन ने हल्के से मुस्कुराकर कहा, "क्योंकि मैं अब तक सोचता था कि ऑफिस का माहौल बहुत सख्त होता है। लेकिन यहाँ तो सब बहुत प्यार से बात कर रहे हैं। खासकर आंटी..."

इरावती ने गहरी मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि हम यहाँ सिर्फ काम नहीं करते, एक परिवार की तरह रहते हैं।"

गीता ने इरावती की ओर देखते हुए महसूस किया कि वो आर्यन के साथ एक खास जुड़ाव महसूस कर रही थीं। उसने मजाक में कहा, "लगता है आर्यन ने आपका दिल जीत लिया है।"

इरावती ने हल्के से हँसते हुए कहा, "क्यों नहीं? वो इतना प्यारा बच्चा है।"

गीता ने आर्यन की तरफ मुड़कर कहा, "चलो, अब मैं तुम्हें कुछ दस्तावेज दिखाती हूँ। तुम्हें जानना चाहिए कि यहाँ काम कैसे होता है।"

आर्यन ने उत्सुकता से सिर हिलाया और गीता के साथ जाने लगा। लेकिन जाते-जाते उसने पलटकर इरावती की तरफ देखा। उसकी आँखों में सवाल थे, जैसे वो जानना चाहता हो कि इरावती उससे कुछ क्यों छिपा रही हैं।


जब आर्यन और गीता चले गए, तो इरावती अपनी कुर्सी पर बैठ गई। उसने एक गहरी सांस ली और खुद से बुदबुदाई, "क्यों हर बार आर्यन को देखकर मुझे करण की याद आती है? क्या ये नियति का कोई संकेत है? या फिर मैं ही अपने बेटे को हर चेहरे में ढूंढने की कोशिश कर रही हूँ?"

उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने अपनी मेज पर रखी एक फोटो फ्रेम को उठाया, जिसमें करण की छोटी सी तस्वीर थी। वो तस्वीर उसने सालों से अपने दिल के करीब रखी थी।

"करण," उसने धीरे से कहा, "तुम्हारी माँ ने बहुत गलतियाँ की हैं। लेकिन मैं अब वापस आना चाहती हूँ...तुम्हारे पास। क्या तुम मुझे माफ करोगे?"


इस बीच, गीता आर्यन को दस्तावेज समझा रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम बहुत जल्दी सीख रहे हो। तुम्हें ऑफिस का काम पसंद आ रहा है?"

आर्यन ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, लेकिन मैं सोचता हूँ कि क्या मैं इसे लंबे समय तक कर पाऊँगा?"

गीता ने हँसते हुए कहा, "क्यों नहीं? तुममें वो सब कुछ है जो यहाँ चाहिए। और वैसे भी, इरावती मैम को तुम पर बहुत भरोसा है।"

आर्यन ने संजीदगी से कहा, "इरावती आंटी बहुत अच्छी हैं। लेकिन मुझे कभी-कभी लगता है कि वो मुझसे कुछ छिपा रही हैं।"

गीता ने हैरानी से पूछा, "तुम ऐसा क्यों सोचते हो?"

आर्यन ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "उनकी आँखों में कुछ दर्द है, कुछ अधूरी बातें। जैसे वो मुझे देखकर कुछ याद करती हैं।"

गीता ने गंभीर होकर कहा, "शायद उनके पास भी अपनी कहानियाँ हैं, जो वक्त आने पर सामने आएंगी। तब तक तुम्हें धैर्य रखना होगा।"

आर्यन ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "शायद तुम सही कह रही हो।"

गीता ने मुस्कुराते हुए कहा, "चलो, अब काम पर ध्यान दें। अगर ज्यादा सोचा, तो काम कैसे करेंगे?"

दोनों हँस पड़े और दस्तावेजों में डूब गए। लेकिन आर्यन के मन में अब भी सवाल थे। वहीं, इरावती अपने कमरे में करण की यादों में खोई हुई थी, उम्मीद करते हुए कि शायद एक दिन वो अपने बेटे से फिर मिल सकेगी।

गांव में सुबह का उजाला धीरे-धीरे हर ओर फैल रहा था। पंछियों की चहचहाहट और हल्की-हल्की ठंडी हवा वातावरण को ताजगी से भर रही थी। करण की दादी, जो रोज़ की तरह सूरज निकलने से पहले उठ चुकी थीं, धीरे-धीरे आंगन में आईं। उनकी आँखें करण को ढूँढ रही थीं, और जब उन्होंने देखा कि करण आंगन के एक कोने में अपने व्यायाम में मग्न है, तो उनके चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कान आ गई।

करण के घुंघराले बाल सुबह की रोशनी में चमक रहे थे। उनकी हरी आँखें मानो गहरे सागर की तरह गहराई से भरी हुई थीं। वह अपनी चौड़ी छाती और मज़बूत कंधों के साथ किसी योद्धा की तरह दिख रहा था। उनकी दादी ने जब उसे देखा तो उनका दिल गर्व से भर उठा।

"क्या ज़माना आ गया है," दादी ने मन ही मन सोचा। "आजकल के बच्चे इतनी मेहनत कहाँ करते हैं? लेकिन मेरा करण अलग है। मैंने इसे अच्छे संस्कार और अनुशासन में पाला है।"

करण ने अपनी एक्सरसाइज खत्म की और गहरी सांस लेते हुए सीधा खड़ा हो गया। पसीने की बूँदें उसके माथे पर चमक रही थीं। उसने पानी का घूंट लिया और जब मुड़ा तो उसकी नजरें दादी पर पड़ीं।

करण: "दादी, आप इतनी सुबह उठ गईं? आराम करना चाहिए था ना।"

दादी मुस्कुराते हुए पास आईं और उसके सिर पर हाथ फेरा।
दादी: "अरे, तेरे जैसा पोता हो तो नींद कहाँ आती है? तुझे यूँ मेहनत करते देखना मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।"

करण हल्का सा मुस्कुराया और कहा, "दादी, मेहनत तो करनी पड़ती है। आप ही ने तो सिखाया है कि बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता।"

दादी की आँखों में नमी आ गई। उन्होंने करण के चेहरे को अपने हाथों में लिया और कहा, "हाँ, बेटा। और तेरे जैसा पोता पाकर मैं खुद पर गर्व करती हूँ। तेरे पापा भी तुझ पर बहुत गर्व करते अगर आज जिंदा होते।"

यह सुनकर करण थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। वह हमेशा से अपने पिता के बारे में सोचता था, लेकिन उसने कभी इस बारे में ज्यादा बात नहीं की। उसने दादी के हाथों को पकड़ा और कहा, "दादी, आप हमेशा मुझे मजबूत बनाती हैं। और मैं वादा करता हूँ कि आपकी मेहनत कभी बेकार नहीं जाएगी।"

दादी ने करण को गले लगा लिया। उनके दिल में विश्वास था कि करण न केवल उनकी बल्कि उनके पिता की भी इच्छाओं को पूरा करेगा।

आंगन में यह दृश्य मानो गांव की उस शांति और प्यार का प्रतीक बन गया था, जो करण और उसकी दादी के रिश्ते में था।

गांव की उस शांत सुबह में हल्की ठंडी हवा बह रही थी। पंछियों की चहचहाहट के बीच करण अपनी दादी के साथ आंगन में बैठा था। दादी ने अपने हाथ में चाय का कप थामा हुआ था और उनकी नजरें करण पर टिकी थीं। वह अपने पोते की मेहनत और लगन पर गर्व कर रही थीं।

कुछ पलों की खामोशी के बाद दादी ने गहरी सांस ली और बोलीं, "बेटा, तुम्हारी माँ... इरावती..."

करण का चेहरा तुरंत सख्त हो गया। उसकी हरी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई, जो गुस्से और दर्द दोनों का मेल थी। उसने दादी की तरफ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा।

दादी ने अपनी बात जारी रखी, "वो चाहे जैसी भी थी, लेकिन तुम्हारी माँ थी। कभी सोचा है कि वो क्यों चली गई? शायद कोई मजबूरी रही हो।"

करण के हाथ में पकड़ी पानी की बोतल के ढक्कन पर उसकी पकड़ कस गई। वह गुस्से में बुदबुदाया, "मजबूरी? कैसी मजबूरी, दादी? एक माँ अपने बच्चे को छोड़ने की क्या मजबूरी बता सकती है?"

दादी ने उसकी आँखों में दर्द देखा। वह जानती थीं कि यह विषय करण के लिए कितना संवेदनशील है, लेकिन उन्होंने हिम्मत जुटाकर कहा, "बेटा, इंसान गलतियां करता है। हमें उसे माफ करना सीखना चाहिए।"

करण का गुस्सा अब खुलकर सामने आने लगा। उसने बोतल को ज़मीन पर रख दिया और खड़ा हो गया। "माफ करना? दादी, आप जानती हैं मैं क्या महसूस करता हूँ? उसने मुझे नहीं छोड़ा, उसने हमें बर्बाद कर दिया। मेरे पापा को उसकी यादों में घुट-घुटकर मरते देखा है मैंने। और आप मुझसे कहती हैं कि मैं उसे माफ कर दूँ?"

दादी ने अपनी जगह से उठते हुए कहा, "बेटा, मैं जानती हूँ तुम्हारे दिल में कितना दर्द है। लेकिन नफरत के साथ जीना आसान नहीं होता। तुम्हें खुद को इस बोझ से मुक्त करना होगा।"

करण की आँखों में आंसू नहीं थे, लेकिन उसकी आवाज़ कांप रही थी। "बोझ? दादी, बोझ तो वो था जिसे मेरे पापा उठाते रहे। उन्होंने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, वो मेरे साथ थे, लेकिन उन्होंने भी मुझसे बिना कुछ कहे चले जाने का फैसला किया। और इसकी वजह सिर्फ वही थी। मेरी माँ, आपकी बहू, इरावती।"

दादी चुपचाप करण की बातें सुनती रहीं। उन्हें पता था कि करण की नफरत सालों से उसके अंदर उबल रही थी। उन्होंने शांत स्वर में कहा, "बेटा, तुम्हारी माँ ने गलत किया, मैं मानती हूँ। लेकिन हर कहानी के दो पहलू होते हैं। तुमने कभी उसकी कहानी जानने की कोशिश की?"

करण ने गुस्से से अपनी दादी की तरफ देखा। "उसकी कहानी? मुझे उसकी कहानी नहीं जाननी। मुझे पता है कि एक माँ अपने बेटे के लिए क्या करती है। और उसने क्या किया? अपने बेटे और पति को छोड़कर चली गई। बस इतनी सी कहानी है।"

दादी ने उसकी पीठ थपथपाने की कोशिश की, लेकिन करण पीछे हट गया। "आपको नहीं पता, दादी। आपने हमेशा मेरे लिए सब कुछ किया, लेकिन वो औरत... उसने मुझे कभी कुछ नहीं दिया। मैं उसके बारे में और कुछ सुनना नहीं चाहता।"

दादी ने गहरी सांस ली। उन्होंने देखा कि करण का गुस्सा उसकी तकलीफ से उपजा था। वह जानती थीं कि इस नफरत को मिटाने के लिए वक्त और प्यार की जरूरत होगी।

दादी ने आखिरी बार कहा, "बेटा, जब वक्त आएगा, तब तुम जानोगे कि माफी में भी ताकत होती है। लेकिन तब तक, मैं तुम्हें नफरत में जलते हुए नहीं देख सकती।"

करण ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपना सिर झुकाया और वहाँ से चला गया। दादी उसकी पीठ पर निगाहें टिकाए रहीं, उनकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।

करण खेतों के बीच खड़ा था, उसकी आंखों में गुस्सा और दर्द एक साथ उमड़ रहे थे। उसकी मुट्ठियां भींची हुई थीं और सांसें तेज़ हो रही थीं। अचानक उसने ज़ोर से चिल्लाया, "इरावती! तूने हमें क्या समझ रखा था? खिलौना थे हम तेरे लिए? जब जी चाहा, छोड़ दिया!"

उसकी आवाज़ खेतों के शांत वातावरण में गूंज उठी। उसने घास पर ज़ोर से लात मारी और पत्थर दूर फेंक दिया। "कैसी माँ थी तू? अपने ही बेटे को छोड़कर चली गई, और क्यों? क्योंकि तुझे अपने आराम की पड़ी थी!"

उसके अंदर का गुस्सा बाहर निकल रहा था। उसकी आंखें आंसुओं से भर आई थीं लेकिन उसने उन्हें बहने नहीं दिया। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई, "करण... तुझे क्या हो गया है?"

करण ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा। वो सिया थी, उसकी बचपन की दोस्त, जो हमेशा से उसके साथ थी। सिया खेतों के किनारे खड़ी थी, उसके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी।

"तू यहाँ क्यों आई है, सिया? मुझे अकेला छोड़ दे!" करण ने गुस्से में कहा।

सिया धीरे-धीरे उसके करीब आई और शांत स्वर में बोली, "मैं तेरी आवाज़ सुनकर दौड़ी चली आई। तुझे इस तरह देख नहीं सकती। तुझे किस बात ने इतना तोड़ दिया है, करण?"

करण ने गुस्से में सिर हिलाते हुए कहा, "तुझे नहीं समझेगी सिया। ये मेरी लड़ाई है, मेरा दर्द है। तू इसमें मत पड़।"

सिया ने उसकी आंखों में देखा और बोली, "मैं तुझे तब से जानती हूं जब हम बच्चे थे। तेरा दर्द मेरा भी है, करण। लेकिन तू इसे अकेले सहता जा रहा है। ये सही नहीं है।"

करण ने गहरी सांस ली और नजरें फेर लीं। "मुझे नफरत है उससे... जिसने हमें छोड़ दिया। मेरे पिता को तोड़ दिया। मुझे इस दर्द के साथ जीने दिया। मुझे उससे नफरत है!"

सिया ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "नफरत तुझे अंदर से खा जाएगी, करण। ये तुझे कहीं नहीं ले जाएगी। तुझे इस नफरत से बाहर आना होगा।"

करण ने उसका हाथ झटकते हुए कहा, "मुझे नहीं चाहिए किसी का सहारा। नफरत ही मेरा सहारा है, और मैं इसे नहीं छोड़ सकता।"

सिया की आंखें नम हो गईं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "अगर तुझे मेरी जरूरत कभी भी महसूस हो, तो मैं हमेशा तेरे साथ हूं। पर खुद को इस नफरत में मत डुबा। मैं तुझे टूटते हुए नहीं देख सकती।"

करण ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस वहीं खड़ा रहा, उसकी आंखों में गुस्सा और दर्द भरा हुआ था। सिया ने उसे एक आखिरी बार देखा और धीरे-धीरे वहां से चली गई।

करण वहीं खड़ा रहा, अपने दर्द और नफरत के जाल में उलझा हुआ।


करण ने गहरी सांस ली और फिर से सिया की तरफ देखा, "मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हारे साथ गलत किया। गुस्से में आकर जो बातें मैंने कही, वो बिल्कुल गलत थीं। लेकिन अब मुझे यह समझ में आ रहा है कि तुमसे ऐसा बात करके मुझे सिर्फ अपने आप को चोट पहुंचाई। तुम्हारे साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए था, और मुझे खेद है कि मैंने ऐसा नहीं किया।"

सिया ने उसकी बातों को ध्यान से सुना, फिर उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "करण, हमें नहीं भूलना चाहिए कि हम सब इंसान हैं, और इंसान गलतियाँ करते हैं। लेकिन क्या तुम समझते हो कि जब तक हम अपनी गलतियों से नहीं सीखते, तब तक हम कभी बदल नहीं सकते?"

करण ने नर्म होते हुए सिर झुका लिया और धीमे से कहा, "हाँ, सिया, मैं समझता हूँ। और अब मुझे यह भी एहसास हुआ कि किसी से बुरा व्यवहार करने से सिर्फ दिल ही नहीं, आत्मा भी टूट जाती है।"

सिया ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर उसे थोड़ा समझाया, "तुम सही कह रहे हो, करण। लेकिन इस बार तुमने यह सब सिर्फ अपनी भावनाओं के कारण किया। फिर भी, इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्यों ऐसा कर रहे थे। जो महत्वपूर्ण है, वह यह है कि अब तुम्हारे भीतर बदलाव की चाह है, और यह मुझे लगता है कि तुम वाकई बदलने के लिए तैयार हो।"

करण ने हल्के से सिर झुकाते हुए कहा, "मैं यह समझ चुका हूँ, सिया। अब से मैं तुम्हारे साथ ऐसा कभी नहीं करूंगा। अगर मुझे कभी कुछ कहना हो, तो मैं सीधे तुमसे बात करूंगा। गुस्से में आकर या किसी और की बातों में बहकर मैं फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा।"

सिया ने थोड़ा और नरम होते हुए कहा, "यह अच्छा है, करण। लेकिन क्या तुम यह समझते हो कि अब से हमें एक दूसरे के साथ सच बोलना होगा, न कि सिर्फ वह बातें जो हमें सही लगें? क्योंकि सच हमेशा अच्छा होता है, और तुम्हें उसे मानने का हौसला रखना चाहिए।"

"मैं वादा करता हूँ, सिया," करण ने उसकी बातों को पूरी तरह से समझते हुए कहा। "अब से मैं कभी भी तुम्हारे साथ कोई छुपी बात नहीं करूंगा। और अगर कभी कुछ गलत हुआ तो मैं तुम्हारे सामने सच्चाई रखूँगा।"

सिया ने एक लंबी सांस ली और फिर कहा, "देखो, करण, हम सब इंसान हैं। कोई भी खुद को बदलने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता, लेकिन मुझे लगता है कि तुममें वह समझ और शक्ति है, जो तुम्हें सही रास्ते पर ले जाएगी।"

"मैं खुद को सुधारने की पूरी कोशिश करूंगा," करण ने कहा और फिर हल्की सी मुस्कान दी, "धन्यवाद, सिया, तुमने मुझे समझाया।"

सिया ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हें धन्यवाद नहीं, करण। यह सब तुम्हारे अपने लिए है। खुद को बेहतर बनाने के लिए।"

करण ने सिर हिलाया और कहा, "हां, मुझे एहसास है। और मैं इसे हमेशा याद रखूंगा।"

दोनों के बीच की बातचीत का यह पल अब एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहा था। इस समय दोनों ने अपने-अपने दिलों की बातों को एक दूसरे से साझा किया और समझा कि किसी भी रिश्ते में सिर्फ सच्चाई और एक-दूसरे की समझ से ही सफलता मिलती है।

ठीक है, अब मैं उसी सीन को नए नाम के साथ लिख रहा हूँ:


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यूएसए में, इरावती और परिवार के साथ डिनर कर रहे थे। साथ में अरजन और आर्यन भी थे। इरावती अपनी हाथों से अर्यन को खाना खिला रही थी। उसकी आँखों में एक गहरी भावनात्मक लहर थी, जैसे वह खुद अपने बेटे करण को खिला रही हो। हर निवाला जैसे एक अव्यक्त याद को ताजा कर रहा था। इरावती की नज़रें थोड़ी नम हो गईं, लेकिन उसने अपने आंसुओं को थाम लिया और मुस्कुराने की कोशिश की। वह यह महसूस कर रही थी कि उसकी दुनिया फिर से एक पल के लिए पूरी हो गई है, जैसे करण फिर से उसके पास हो।

उसी वक्त, अभिषेक की बेटी कियारा, जो इरावती की बिल्कुल सामने बैठी थी, मुस्कुराते हुए कहने लगी, "आंटी, आप तो जैसे अर्यन को खुद करण बना देती हैं। क्या आप भूल गईं कि करण यहाँ नहीं है?"

कियारा की बात सुनते ही इरावती के चेहरे पर थोड़ी असहजता आ गई। वह कुछ पल के लिए चुप हो गई, लेकिन कियारा ने उस पर जोर देते हुए कहा, "सच में आंटी, अगर करण यहाँ होता तो क्या आप उसे भी अर्यन की तरह खिलातीं?"

इसी दौरान, अर्यन ने कियारा की बात पर हंसते हुए कहा, "क्या मतलब है तुम्हारा, कियारा? आप क्या मेरे साथ मजाक कर रही हो?"

कियारा ने हंसते हुए कहा, "नहीं, नहीं! मैं तो सिर्फ ये देख रही थी कि आंटी को कितना प्यार है अर्यन से।"

इरावती ने कियारा की ओर देखा और एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "तुम्हें क्या लगता है, कियारा? मैं किसी और को इतना प्यार कर सकती हूं, जो करण से ज्यादा हो?"

कियारा ने एक चुटीली मुस्कान के साथ कहा, "लेकिन आंटी, आप तो अब अर्यन को ज्यादा समय देती हो, और वह भी आपके खाने से खुश है।"

इसी बीच, अर्यन ने कियारा की तरफ देखा और कहा, "अब देखो, कियारा! तुम कभी भी मजाक नहीं छोड़ सकती हो। पर इरावती आंटी के बारे में ऐसा मत बोलो। वह मेरे लिए बहुत खास हैं।"

इरावती की आँखों में एक भावुकता आई और उसने हल्का सा सिर झुकाते हुए कहा, "हर इंसान की यादें, उनकी ज़िंदगी के बहुत अहम हिस्से होते हैं, कियारा। कभी-कभी हम अपने अतीत को छोड़ नहीं पाते, लेकिन जो हमारे पास होता है, उस पर हमें ध्यान देना चाहिए।"

कियारा थोड़ा चुप हो गई, उसकी आँखों में एक गहरी समझ थी। वह अब इरावती की बातों को हलके में नहीं ले रही थी। अर्यन की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई, जैसे कि वह कह रही हो कि "ठीक है, अब समझ गई।"

इसी दौरान, इरावती ने अपनी नजरें अर्यन पर डाली और धीरे से कहा, "कभी सोचा है कि मैं तुम्हारे साथ कितना खुश हूं?" यह एक सवाल था, लेकिन जवाब अर्यन की आँखों में पहले से ही था। वह हल्के से सिर झुका दिया और एक चुप्प मुस्कान के साथ इरावती का हाथ थाम लिया।

डिनर के बाद, इरावती और अर्जुन अकेले समय बिता रहे थे। दोनों एक शांत जगह पर बैठे थे, जहां रात का माहौल और हल्की सी ठंडी हवा उनके बीच की दूरी को और भी कम कर रही थी। इरावती थोड़ी चुप थी, जैसे वो कुछ सोच रही हो। अर्जुन ने उसे देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा,

"इरावती, तुम्हारी आँखों में कुछ गहरी सी उदासी है। क्या बात है, क्या तुम सोच रही हो?"

इरावती ने धीरे से सिर उठाया और अर्जुन की आँखों में देखा। "मैं सिर्फ ये सोच रही थी कि इंडिया लौटने के बाद सब कुछ कैसा होगा। वहां बहुत कुछ बदल चुका है। लेकिन तुम... तुम मेरे साथ हो, ये सोच कर अच्छा लगता है।"

अर्जुन ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर थोड़ा करीब होकर बोला, "तुम्हें हमेशा मेरे पास मिलेगा, इरावती। चाहे तुम कहीं भी हो, तुम्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दूंगा।"

इरावती की आँखों में एक नर्मी थी। वह धीरे से मुस्कराई और कहा, "तुमसे बात करके, अर्जुन, मुझे लगता है कि कभी भी कुछ भी आसान हो सकता है। तुम्हारा साथ सच में बहुत खास है।"

अर्जुन ने उसकी हाथों को धीरे से पकड़ा और कहा, "तुम्हारे साथ हर मुश्किल आसान लगती है। मुझे लगता है, हम दोनों में एक अजीब सा तालमेल है।"

इरावती ने धीरे से अपनी आँखें बंद की और हल्का सा सांस लिया, जैसे वह उसकी बातों को पूरी तरह से महसूस कर रही हो। फिर उसने अपनी आँखें खोलते हुए कहा, "मैंने कभी सोचा नहीं था कि किसी के साथ इतनी गहरी कनेक्शन महसूस करूंगी, लेकिन तुम्हारे साथ... यह सब कुछ बहुत अलग सा है।"

अर्जुन ने उसकी आंखों में प्यार से देखा और कहा, "कभी सोचा नहीं था, लेकिन अब सब कुछ बहुत साफ है। तुम और मैं, दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं। मैं तुम्हारे साथ हर पल जीना चाहता हूं।"

इरावती ने उसकी तरफ देखा, और उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "अर्जुन, तुम बहुत सच्चे हो। तुमसे ज्यादा और क्या चाहिए? तुम मेरे जीवन में वो चीज हो, जो कभी मैंने सोचा नहीं था।"

अर्जुन ने धीरे से उसके चेहरे के पास अपना हाथ बढ़ाया और उसकी बालों को झुका कर कहा, "और मैं तुम्हारे बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहीं कर सकता, इरावती। तुम ही मेरी दुनिया हो।"

इरावती का दिल थोड़ा तेज़ धड़कने लगा, और उसने अपना चेहरा उसकी तरफ झुका दिया। "तुमसे मिलकर मुझे लगा कि सब कुछ सही हो जाएगा। और अब मैं जानती हूं कि कुछ भी हो, तुम्हारे साथ सब कुछ ठीक रहेगा।"

अर्जुन ने हल्के से उसकी ठोड़ी को पकड़ते हुए कहा, "और मैं तुम्हारे साथ हूं, इरावती। हमेशा तुम्हारे साथ।"

दोनों की आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे दोनों एक-दूसरे के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। यह रात उनके लिए बहुत खास थी, क्योंकि इस रात ने दोनों के रिश्ते को एक नई दिशा दी थी, जहां प्यार और विश्वास के साए में उनका भविष्य चमकता हुआ नजर आ रहा था।


एक हफ्ता बीत चुका था, और अब सब इंडिया के लिए निकलने की तैयारी में थे। इरावती इस दौरान अपने कमरे में बैठी हुई थी, और उसके हाथ में एक तस्वीर थी – वही तस्वीर, जिसमें करन का चेहरा था। वह उसे घूरे जा रही थी, जैसे हर एक नज़र में अपने बेटे के साथ बिताए गए पल उसे फिर से जीने का मौका दे रहे हों। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन आंखों में एक गहरी उदासी थी।

"मैं आ रही हूँ, मेरे बच्चे," इरावती धीरे से अपनी हँसी दबाते हुए बुदबुदाई, जैसे वह करन से बात कर रही हो, "माँ आकर तुझे अपने सीने से लगा लेगी, तेरे पास, जैसे पहले कभी मैं तेरे पास थी। सब कुछ ठीक हो जाएगा, मेरे बेटे।"

वह तस्वीर को देखते हुए एक बार फिर से वो सभी यादें ताजा करने की कोशिश कर रही थी, जब वह करन को अपने पास रखती थी। फिर एक दिन, सब कुछ छूट गया। वह अपना सब कुछ छोड़कर चली आई थी, लेकिन अब वह वापस लौटने की कोशिश कर रही थी, उस गलती को सुधारने के लिए जो उसने की थी।

लेकिन तभी, अचानक बाहर से अरायण के चिल्लाने की आवाजें आईं। इरावती की सोच अचानक टूट गई। वह डरते हुए खड़ी हुई और बिना सोचे-समझे दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी। उसे इस बात का होश भी नहीं था कि उसके हाथ में पकड़ कर रखे हुए तसवीर के कागज पर से स्याही फैल रही थी और वो फट कर गिर चुका था, ज़मीन पर बिखर गया था।

अरायण की आवाज़ सुनते ही इरावती की तम्मनाओं ने उसे पूरी तरह से घेर लिया। उसे यह भी याद नहीं रहा कि उसकी ज़रा सी असावधानी से तस्वीर अब टूट चुकी थी, और वह ज़मीन पर गिर गई थी। उसकी आँखों में अचानक यह ख्याल आया कि अगर वह सही समय पर करन के पास वापस लौट पाई तो क्या होगा? क्या उसे फिर से अपनाया जाएगा? या वह अब भी वैसे ही अस्वीकार कर दिया जाएगा, जैसा पहले हुआ था?

वह बेसुध होकर दरवाजे की ओर दौड़ रही थी, जैसे किसी ने उसे किसी अनजानी ताकत से खींच लिया हो। उसकी चप्पलें ज़मीन पर बेतहाशा गिर रही थीं, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह बस बाहर पहुंचने के लिए बेताब थी।

"अरायण! क्या हुआ?" इरावती तेजी से बाहर भागते हुए चिल्लाई। उसकी आँखों में हल्की घबराहट और बेचैनी थी।

यहाँ पर कुछ सुधार किए गए हैं ताकि यह वाक्य सही और स्पष्ट हो:


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इरावती भागते हुए बाहर आईं और देखा कि काइरा अरायन को परेशान कर रही थी। यह देख इरावती काइरा को डांटते हुए कहती हैं, "तुम क्या कर रही हो?" और अरायन को अपने पास खींचती हैं। काइरा शरारत से मुस्कुराते हुए कहती है, "मैं तो बस मज़ाक कर रही थी," लेकिन इरावती का ग़ुस्सा बढ़ता जाता है। इरावती ने काइरा को सख्त तरीके से कहा, "तुम्हारे मज़ाक के लिए वह लड़का इतना सहन नहीं कर सकता। यह खेल नहीं है!" फिर इरावती अरायन की ओर मुड़ती हैं और प्यार से कहती हैं, "क्या तुम ठीक हो?"

अरायन हल्के से सिर हिलाता है, लेकिन इरावती उसकी आँखों में स्पष्ट रूप से डर और बेचैनी देख सकती हैं। वह उसे शांत करने के लिए उसके कंधे पर हाथ रखती हैं। "तुम कमरे में जाओ, काइरा!" इरावती ने सख्त आवाज में कहा। "हम बाद में बात करेंगे।"

काइरा नाराज होकर मुंह लटकाती है, पर वह बिना कुछ कहे कमरे में चली जाती है।

इरावती थोड़ी देर वहीं खड़ी रहती हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि काइरा वहां से जा चुकी है, फिर वह धीरे-धीरे वापस कमरे में जाती हैं। जैसे ही वह कमरे में प्रवेश करती हैं, उसकी नजरें उन तसवीरों पर जाती हैं, जो अब टूट चुकी हैं। करण की तस्वीर, जो कभी उसकी खुशी का प्रतीक थी, अब बिखरी हुई पड़ी थी। उस दृश्य ने इरावती के दिल को चीर डाला।

वह तस्वीर के पास जाती हैं और टूटी हुई तस्वीरों को इकट्ठा करने लगती हैं। "मैंने इसे कैसे होने दिया?" इरावती की आवाज में दर्द था। तस्वीर के टूटने के साथ ही इरावती की आत्मा भी टूट चुकी थी। करण का चेहरा उसकी यादों में था, लेकिन अब वह केवल एक दर्द बनकर रह गया था।

वह जमीन पर घुटनों के बल बैठकर करण की तस्वीर को उठा लेती है। उसकी आँखों में आँसू होते हैं, और वह खुद को कस कर कोसने लगती हैं, "मैंने तुम्हें छोड़ दिया, करण। मैं तुम्हारा साथ नहीं दे पाई।"

वह खुद को माफ़ नहीं कर पा रही थी। काइरा से पहले ही उलझन और ग़ुस्से में वह अपने बेटे से अलग हो गई थी। अब वह दर्द और पछतावे से घिरी हुई थी, और यह सोचने में बर्बाद हो गई थी कि उसकी गलती क्या थी।

काइरा से कुछ समय पहले ही वह यह सोच रही थी कि शायद उसके पास अब कोई उम्मीद बची नहीं है, लेकिन यह तस्वीर, यह दर्द, अब उसके सामने था। अब इरावती को लगता था कि शायद करण के साथ ही उसकी सारी

उम्मीदें और जीवन का एक हिस्सा भी खत्म हो गया।

"मैंने तुम्हें खो दिया, करण," इरावती फुसफुसाती हैं।

इरावती की नज़रें खिड़की से बाहर आकाश की ओर चिपकी हुई थीं। फ्लाइट का सफर लंबा था, लेकिन उसकी नजरों में बस एक ही चेहरा था — करण का। उसकी आंखों के सामने वही चेहरा घूम रहा था, जो कभी उसे अपनी गोदी में खेलता हुआ नज़र आता था, जो अब एक अजनबी सा लगता था, क्योंकि वक्त के साथ उसकी यादें भी जैसे फीकी पड़ गई थीं।

कभी उसकी गोदी में खिलते हुए उस छोटे से बच्चे के नन्हे हाथों ने उसे मां का एहसास कराया था। अब वह बचपन कहीं खो चुका था। क्या करण का चेहरा वैसा ही होगा, जैसा इरावती के दिल में था, या फिर वह भी वक्त की धारा में बदल चुका होगा? इरावती के मन में तमाम सवालों का जाल था। उसकी आँखें किसी खास इमोशन से भर गईं थीं, और उसे महसूस हो रहा था कि कहीं न कहीं उसके दिल में एक दर्द था, जो कभी खत्म नहीं हो सकता था।

वो फ्लाइट के भीतर अकेली बैठी थी, लेकिन उसके दिमाग में बस करण ही था। यादों के जाले ने उसे जकड़ लिया था। जब वह अपने बेटे से दूर हो गई थी, तो उसके दिल में जो खालीपन था, वह आज भी नहीं भरा था। करण का चेहरा उसकी आंखों के सामने था, जैसे वह अब भी उसकी गोदी में खेल रहा हो, जैसे वह उसे छोड़कर कहीं नहीं गया था।

“क्या तुम अब भी मेरे जैसा दिखते हो?” इरावती ने अपने आप से पूछा, जब उसने करण की टूटी हुई तस्वीर को देखा था। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने उन्हें रोक लिया। वो सोचने लगी, "क्या वो भी मेरे जैसा ही दिखता है? क्या उसकी आँखों में वही दर्द है, जो मेरे दिल में था? क्या उसने भी मुझे याद किया?"

उसने सोचा, क्या वह लड़का अब बड़ा हो गया होगा, जैसा वो कभी चाहती थी? क्या वह वही शांत, गंभीर लड़का था, जिसकी उसने कभी कल्पना की थी, या फिर वो वक्त के साथ बदल चुका होगा, जैसा सभी लोग बदलते हैं? उसकी आँखों में वो झलक थी, जो एक मां की होती है।

वो धीरे से मुस्कुराई, "हे भगवान, क्या मैं इतनी बड़ी हो गई हूँ कि अब तुम्हारी यादों को भी पूरा कर नहीं पा रही हूँ?" उसकी हंसी हल्की थी, लेकिन उसके दिल का दर्द बहुत गहरा था। वह जानती थी कि इस दर्द को खत्म करने का कोई तरीका नहीं था, लेकिन फिर भी वह उम्मीद करती थी कि एक दिन वह अपने बेटे को अपनी गोदी में फिर से पाएगी।

फ्लाइट के दौरान उसकी सोचों में अक्सर करण का चेहरा आता और वह उसे महसूस करती थी। वह सोचती, "क्या उसने मेरी यादों को तहेदिल से अपनाया है, या फिर उसने मुझे भुला दिया है?" इन सवालों का कोई उत्तर नहीं था, लेकिन वह फिर भी अपने दिल की सुनने की कोशिश करती थी।

उसे याद आया कि जब वह छोटी थी, तो अपनी मां के पास बैठकर अक्सर उसी तरह से सपने देखा करती थी। लेकिन अब उसे अपनी जिंदगी के फैसले पर अफसोस था, जिसने उसे अपने बेटे से दूर कर दिया। वह सोचती थी कि क्या उसकी तन्हाई में वह कभी ऐसा महसूस करेगा, जैसा वह खुद महसूस कर रही थी।

इतना सोचते-सोचते वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गई, लेकिन फिर उसकी आँखों में चमक आ गई, जैसे उसे किसी बात का अहसास हुआ हो। उसकी आँखों में एक नयी उम्मीद थी। उसने खुद से कहा, "मैं उसे हर हाल में वापस लाऊँगी। वह मुझे कभी न कभी जरूर मिलेगा।"

वह जानती थी कि उसे अपने बेटे से मिलने के लिए और संघर्ष करना होगा, लेकिन इस बार वह किसी भी हालत में हारने वाली नहीं थी। यह था उसका निर्णय।

फ्लाइट की खामोशी में, इरावती ने एक गहरी सांस ली और खुद को मजबूत किया। उसकी सोच में अब एक नई उम्मीद और संघर्ष का आलम था।


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इरावती की माँ का नाम "संध्या" और भाई का नाम "अभिषेक" कर दिया गया है। अब कहानी का अद्यतन संस्करण कुछ इस प्रकार है:


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जैसे ही फ्लाइट भारत की ज़मीन पर लैंड हुई, इरावती की आँखें भर आईं। उसने खिड़की से बाहर झांकते हुए मिट्टी को देखा और गहरी साँस ली। ऐसा लगा जैसे उसने अपनी खोई हुई ज़िंदगी को फिर से पा लिया हो।

"हम वापस आ गए," उसने धीमी आवाज़ में कहा।

उसके पिता विक्रम ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, "हाँ, बेटी। घर वापस। ये मिट्टी हमें फिर से अपने से जोड़ेगी।"

इरावती ने अपने भाई अभिषेक की ओर देखा, जो हल्की मुस्कान के साथ उनकी बातचीत सुन रहा था।

फ्लाइट से बाहर निकलते ही इरावती का दिल तेजी से धड़कने लगा। हर चेहरा उसे करण जैसा लग रहा था।

"माँ, वो देखो, वो रहा करण!" इरावती की आवाज़ में एक मासूम उत्सुकता थी।

संध्या ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "बेटी, वो करण नहीं है। इतनी बेसब्र क्यों हो रही हो?"

"माँ, मुझे लग रहा है जैसे वो यहीं आसपास है। हर चेहरा मुझे उसी की याद दिला रहा है," इरावती ने बेचैनी से कहा।

अभिषेक ने हँसते हुए कहा, "दीदी, हर लड़का करण कैसे लग सकता है? थोड़ा शांत रहो।"

"अभिषेक, मज़ाक मत करो। मुझे सच में ऐसा लग रहा है," इरावती की आवाज़ गंभीर हो गई।

अभिषेक ने समझदारी से कहा, "ठीक है दीदी, होटल पहुँच कर आराम करो। फिर हम सब मिलकर करण को ढूँढेंगे।"

टैक्सी में बैठते ही इरावती ने माँ से सवाल करना शुरू कर दिया।

"माँ, क्या करण मुझे पहचानने से इनकार कर देगा?"

"ऐसा क्यों सोच रही हो?" संध्या ने हैरानी से पूछा।

"क्योंकि मैंने उसे इतने साल पहले छोड़ दिया था। क्या वो मुझसे नफरत करेगा?"

संध्या ने प्यार से कहा, "माँ-बेटे का रिश्ता माफी का नहीं होता। ये दिल से दिल का रिश्ता है। समय चाहे कितना भी बदल जाए, ममता हमेशा कायम रहती है।"

अभिषेक ने माहौल हल्का करने के लिए कहा, "चलो दीदी, ये सब बातें बाद में करेंगे। पहले होटल चलो, आराम करो।"

इरावती ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए फिर से एक लड़के की ओर इशारा किया, "माँ, वो करण जैसा लग रहा है!"

संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटी, तुम्हारा दिल तुम्हें हर जगह करण दिखा रहा है। लेकिन चिंता मत करो, जल्द ही तुम्हें असली करण से मिलने का मौका मिलेगा।"

इरावती ने करण की तस्वीर निकाली और उसे ध्यान से देखते हुए बुदबुदाई, "मैं आ रही हूँ, मेरे बच्चे। तुम्हारी माँ तुम्हें अब कभी अकेला नहीं छोड़ेगी।"

अभिषेक ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "दीदी, करण से मिलने की कोई योजना है?"

"हाँ, लेकिन पहले मैं उसे ढूँढूंगी। चाहे कुछ भी हो जाए," इरावती की आवाज़ में दृढ़ता थी।

संध्या ने उसे गले लगाते हुए कहा, "सब सही होगा, बेटी। बस विश्वास रखो।"

लेकिन इरावती के दिल में बस एक ही बात थी — करण से मिलना और उसे अपनी बाहों में भरना।



होटल के गेट पर कार रुकते ही इरावती ने गहरी साँस ली। उनके दिल में हलचल थी, लेकिन चेहरा शांत दिखाने की कोशिश कर रही थी। आर्यन और अरजुन पहले से ही होटल में मौजूद थे।

जैसे ही परिवार होटल की लॉबी में दाखिल हुआ, आर्यन ने इरावती की ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ स्वागत किया।

"आखिरकार आप सब आ ही गए," आर्यन ने कहा।

"हाँ, रास्ता लंबा था," इरावती ने जवाब दिया।

सबके चेहरे पर थकान के बावजूद राहत का अहसास था।



सब अपना सामान लेकर रूम्स की ओर बढ़ने लगे। तभी काइरा आर्यन के करीब आकर बोली, "तो जनाब, आजकल बहुत बिज़ी हो गए हो। इंडिया आने के बाद टाइम मिलेगा या वहीं से नज़रअंदाज करोगे?"

आर्यन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे ताने तो यहाँ भी पहुँच गए।"

काइरा हँसते हुए बोली, "तुम्हें ताने सुनने की आदत डालनी चाहिए। वैसे भी, तुम्हारे चेहरे पर गुस्सा आना बहुत प्यारा लगता है।"

आर्यन ने अपनी भौहें चढ़ाते हुए कहा, "अगर तुम चाहती हो कि मैं सीरियस रहूँ, तो ये बातें बंद करो।"

काइरा ने शरारत से कहा, "तुम्हारी सीरियसनेस और मेरी शरारत का कोई मुकाबला ही नहीं। वैसे, जब से यहाँ आए हो, इरावती आंटी बस तुम्हें ही देखती जा रही हैं। कहीं तुम्हें करण समझ तो नहीं रही?"

यह सुनते ही इरावती जो थोड़ी दूर खड़ी थी, हल्की-सी चौंकी।



इरावती ने धीरे से काइरा को डाँटा, "काइरा, ये क्या मज़ाक है? ऐसे ताने मत मारो।"

काइरा ने मासूमियत से कहा, "आंटी, मज़ाक ही तो कर रही थी। वैसे भी, आर्यन की सीरियसनेस इतनी भारी है कि हल्की-फुल्की बातें ज़रूरी हो जाती हैं।"

आर्यन ने इरावती की ओर देखते हुए कहा, "आप परेशान मत हों, आंटी। मैं काइरा को झेलने की आदत डाल चुका हूँ।"

इरावती हल्का सा मुस्कुराई और सोचने लगी, अगर मेरा करण यहाँ होता तो शायद कुछ ऐसा ही जवाब देता।



रूम में पहुँचने के बाद इरावती ने दरवाज़ा बंद किया और गहरी साँस ली। उनकी नज़र पास रखी करण की तस्वीर पर पड़ी जो टूट चुकी थी। तस्वीर के टूटने का खयाल आते ही उनकी आँखों में आँसू भर आए।

उन्होंने तस्वीर उठाई और उसे हल्के से सहलाते हुए कहा, "मैं आ रही हूँ, करण... तुम्हारी माँ आ रही है तुम्हें अपने सीने से लगाने। पता नहीं तुम कैसे दिखते हो अब... कहीं तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो? क्या तुम मुझे पहचानोगे भी?"

उनकी आँखों से बहते आँसू इस दर्द को और गहरा कर रहे थे। तभी बाहर से हल्की खटपट की आवाज़ आई।

इरावती ने खुद को सँभालते हुए दरवाज़ा खोला तो देखा आर्यन खड़ा था।

"आप ठीक हैं?" आर्यन ने चिंतित होकर पूछा।

"हाँ... बस थोड़ी थकान है," इरावती ने झूठी मुस्कान के साथ कहा।

"आराम कर लीजिए, आंटी। कल का दिन भी भारी रहेगा," आर्यन ने कहा और वापस चला गया।

इरावती ने उसे जाते हुए देखा और फिर तस्वीर की ओर मुड़कर बुदबुदाई, "तुम्हारी उम्र का ही है, लेकिन उसे देखकर बस तुम्हारी याद आती है, करण। कहीं मेरा बेटा भी ऐसा ही तो नहीं होगा?"
रात का डिनर: परिवार के बीच उथल-पुथल

होटल के बड़े डाइनिंग हॉल में रात के डिनर का माहौल बहुत खास था। पूरा परिवार एक ही टेबल पर इकट्ठा था। हर कोई हल्की-फुल्की बातों में लगा हुआ था। काइरा अपनी शरारती मुस्कान के साथ आर्यन को चिढ़ाने में लगी थी, जबकि इरावती के चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी।

जैसे ही डिनर सर्व किया जाने लगा, होटल के स्टाफ ने एक व्यक्ति को डाइनिंग हॉल में प्रवेश करने की अनुमति दी। वह व्यक्ति साधारण कपड़ों में था, लेकिन उसकी आँखों में गहरी समझ और चेहरे पर गंभीरता थी।

"यह कौन है?" अरजुन ने चौंकते हुए पूछा।

"ये हमारे डिटेक्टिव्स हैं," इरावती ने शांत स्वर में कहा।

डिटेक्टिव्स को बुलाने का निर्णय इरावती का था, और यह निर्णय उनके बेटे करण की खोज के लिए था। परिवार को अब तक यही बताया गया था कि डिटेक्टिव्स इरावती के पुराने मामलों पर काम कर रहे हैं।



डिटेक्टिव ने हाथ में पकड़ी फाइल टेबल पर रखी और गंभीर स्वर में कहा, "मिस्टर और मिसेज़, हमारी जांच पूरी हो चुकी है। हमें एक महत्वपूर्ण सुराग मिला है।"

इरावती के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। उनकी आँखें डिटेक्टिव पर टिक गईं।

डिटेक्टिव ने अपनी रिपोर्ट जारी रखते हुए कहा, "हमने आपके बेटे करण के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हुए यह पाया कि वह एक गाँव के आस-पास देखा गया है। उस गाँव के पास ही एक पुरानी कब्र मिली है, जिस पर 'अमर' नाम लिखा हुआ है।"

"अमर?" अरजुन ने चौंककर पूछा।

"हाँ, अमर। हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि यह वही अमर है जो करण के जीवन में किसी महत्वपूर्ण भूमिका में था। यह कब्र गाँव के ठीक बाहर स्थित है। इससे यह संकेत मिलता है कि करण वहीं आसपास हो सकता है।"



यह सुनते ही इरावती के चेहरे की रंगत उड़ी हुई लगने लगी। उनकी साँसें रुक-सी गईं। उनके हाथ कांपने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनकी भावनाओं का सैलाब खोल दिया हो।

"आपका मतलब है कि... करण उस गाँव में है?" इरावती ने धीमी, डरी हुई आवाज़ में पूछा।

"हमें पूरा यकीन है, मैम। गाँव के लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, करण एक गैराज चलाता है और वहीं रहता है।"

इरावती ने गहरी साँस ली, उनकी आँखों में आँसू थे। उनका मन एक ही सवाल पूछ रहा था, क्या मेरा बेटा मुझे पहचान पाएगा? क्या वह मुझे माफ़ करेगा?

इस खबर के बाद टेबल पर सन्नाटा छा गया। सबकी निगाहें इरावती पर थीं। कोई नहीं जानता था कि क्या कहना चाहिए।

"माँ... आप ठीक हैं?" Aryan ने धीमी आवाज़ में पूछा।

इरावती ने खुद को संभालते हुए कहा, "हाँ, मैं ठीक हूँ। बस... मैं सोच रही हूँ कि करण कैसा होगा। क्या वो हमें देखेगा तो खुश होगा या नाराज़?"

काइरा ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा, "aunty आप करण से मिलते ही सब ठीक हो जाएगा। देखना, वो आपकी बाहों में झूल जाएगा।"

इरावती ने हल्की मुस्कान दी लेकिन उनकी आँखों में अब भी दर्द था।



इरावती अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर बैठ गईं। करण की तस्वीर उनके हाथ में थी। उनकी आँखों में आँसू थे।

"मैं आ रही हूँ, मेरे बच्चे। तुम्हारी माँ आ रही है तुम्हें देखने... तुम्हारे गले लगाने। मैं जानती हूँ कि मैंने तुम्हें

बहुत दर्द दिया है, लेकिन अब और नहीं। मैं तुम्हें ढूंढ लूँगी।"

उनकी आँखों से बहते आँसू उनकी इच्छा शक्ति को और मजबूत कर रहे थे। उनका दिल कह रहा था कि करण उनसे दूर नहीं है।






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Karan
Shaandar update bhai ek request hai story main jab sex seen aye tab pics or gif bhi add karna
 

parkas

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इरावती का बॉयफ्रेंड अर्जुन मेहरा है। वह एक आकर्षक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है, जिसकी उम्र लगभग 45 साल है। वह बाहरी रूप से बेहद सफल बिजनेसमैन है, लेकिन उसकी असली दिलचस्पी सिर्फ इरावती की संपत्ति और हैसियत में है। अर्जुन बहुत चालाक और महत्वाकांक्षी है। वह इरावती के माता-पिता को प्रभावित करने में सफल रहा है, खासकर विक्रम। अर्जुन का मकसद है इरावती के परिवार के संसाधनों पर कब्जा जमाना और अपनी कंपनी के विस्तार के लिए उनका इस्तेमाल करना।

अर्जुन का एक बेटा आर्यन मेहरा है, जिसकी उम्र लगभग 23 साल है, यानि करन के बराबर। आर्यन अपने पिता की तरह महत्वाकांक्षी नहीं है, बल्कि एक शांत और संवेदनशील लड़का है। हालांकि वह अर्जुन के प्रभाव में पला-बढ़ा है, लेकिन उसके भीतर एक मानवीय पक्ष है जो उसे अपने पिता से अलग करता है। आर्यन का व्यक्तित्व करन से बिलकुल अलग है—जहाँ करन मजबूत और कठोर है, वहीं आर्यन विनम्र और सहनशील है।

इरावती आर्यन को देखकर अक्सर करन की परछाईं देखती है। आर्यन का मासूम चेहरा और उसकी आँखों में करुणा उसे बार-बार करन की याद दिलाती है। जब भी आर्यन उसके सामने होता है, इरावती का दिल भारी हो जाता है, और वह खुद को करन के बारे में सोचने से रोक नहीं पाती। आर्यन के प्रति उसकी संवेदनशीलता उसे एक द्वंद्व में डाल देती है—क्या वह आर्यन के जरिए करन के प्यार को फिर से महसूस कर सकती है, या यह केवल एक भ्रम है?

अर्जुन, इरावती की भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करता है। वह जानता है कि इरावती अब भी अपने अतीत में फंसी हुई है, और वह इस मौके का उपयोग कर उसे अपने करीब लाने की कोशिश करता है। अर्जुन के इरादों को इरावती के परिवार के कुछ सदस्य नहीं समझते, लेकिन इरावती की मां सुमित्रा को अर्जुन पर शक है। वह अक्सर इरावती को सावधान रहने की सलाह देती हैं, लेकिन इरावती अभी तक अपने दिल और दिमाग के बीच फंसी हुई है।

आर्यन और करन के बीच यह समानता भविष्य में दोनों के रिश्ते को और जटिल बनाएगी। क्या आर्यन और करन कभी आमने-सामने होंगे? क्या इरावती अपनी भावनाओं के जाल से बाहर निकल पाएगी, या अर्जुन का छल उसे और गहराई में धकेल देगा? इन सवालों का जवाब समय के साथ सामने आएगा।

इराबती का नया दिन:

सूरज की किरणें खिड़की के पर्दों से छनकर इराबती के कमरे में फैल चुकी थीं। वो हल्के नीले रंग की साड़ी पहनकर दर्पण के सामने खड़ी थी। बालों को बांधते हुए उसने खुद को देखा—चमकती आँखें, लेकिन उनमें कहीं गहराई में छिपा हुआ दर्द। इराबती ने एक गहरी सांस ली और खुद को याद दिलाया कि आज का दिन नया है, और उसे अपने काम पर ध्यान देना है।

तभी नीचे से आवाजें आने लगीं। दरवाजे की घंटी बजी और नौकरानी ने दरवाजा खोला। इराबती ने अपनी डायरी बंद की और सीढ़ियों की ओर बढ़ी।

"इरावती!" आवाज़ अर्जुन की थी।

सीढ़ियों से उतरते हुए उसने देखा कि अर्जुन और आर्यन लॉबी में खड़े थे। अर्जुन हमेशा की तरह आकर्षक दिख रहा था। सफेद शर्ट के ऊपर काला ब्लेज़र, और चेहरे पर वो मुस्कान जो किसी का भी दिल जीत ले। आर्यन थोड़ी दूरी पर खड़ा था, जैसे उसे यहाँ होना नापसंद हो।

"अर्जुन, इतनी सुबह?" इरावती ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।

"तुमसे मिलने का वक्त कब देखा है?" अर्जुन ने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा।

इरावती ने अपनी मुस्कान को बनाए रखा, लेकिन उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। अर्जुन का यह अचानक आना उसे असहज कर रहा था।

"तुम्हारे ऑफिस जाने से पहले सोचा तुम्हें गुड मॉर्निंग कह दूं। और देखो, आर्यन को भी ले आया हूँ।" अर्जुन ने हँसते हुए कहा।

आर्यन ने हल्की सी मुस्कान दी और सिर हिलाया।

"गुड मॉर्निंग, आंटी।"

"आंटी नहीं, बस इरावती कहो," उसने आर्यन की ओर देख कर कहा।

"अरे छोड़ो ये फॉर्मल बातें।" अर्जुन ने इरावती के हाथ को पकड़ते हुए कहा, "मैंने सोचा था कि तुम्हारे साथ कुछ समय बिताऊं। वैसे भी तुम काम में इतनी व्यस्त रहती हो कि खुद को वक्त नहीं देती।"

इरावती ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया। "तुम जानते हो, मेरा काम मेरे लिए कितना ज़रूरी है।"

"पता है," अर्जुन ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, "पर कभी-कभी तुम्हें भी आराम की ज़रूरत होती है। और शायद...थोड़ा प्यार की भी।"

इरावती ने अर्जुन के इस सीधेपन पर एक क्षण के लिए अपनी आँखें झुका लीं। उसे अर्जुन की बातों में एक अनजानी सी चुभन महसूस हुई। वो जानती थी कि अर्जुन का इरादा कुछ और था, लेकिन वो उसकी बातों में फंसना नहीं चाहती थी।

"चलो, बैठते हैं।" इरावती ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा।

वो सभी ड्राइंग रूम में आ गए। अर्जुन ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा, "याद है, जब पहली बार हम मिले थे? तुमने अपनी कंपनी को बचाने के लिए कितनी मेहनत की थी।"

"हाँ, और वो दिन अब भी याद हैं।" इरावती ने हल्के स्वर में जवाब दिया।

"मुझे तुम्हारा हौसला हमेशा से पसंद है, इरावती। तुम सिर्फ खूबसूरत नहीं हो, बल्कि एक मजबूत महिला भी हो।" अर्जुन की आवाज में एक अलग ही मिठास थी।

इरावती ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा।

"क्या मैं गलत कह रहा हूँ?" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"नहीं, लेकिन..." इरावती ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

अर्जुन ने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया। "तुम्हें खुद को थोड़ा खुला छोड़ने की ज़रूरत है। मैंने हमेशा तुम्हारे बारे में सोचा है, और आज भी सोचता हूँ।"

आर्यन, जो अब तक चुप था, ने हल्की खांसी की। "पापा, मुझे लगता है कि हमें चलना चाहिए। आंटी को ऑफिस जाना है।"

"आर्यन!" अर्जुन ने उसे डांटते हुए कहा।

"नहीं, आर्यन सही कह रहा है। मुझे निकलना होगा।" इरावती ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।

"ठीक है, लेकिन हम शाम को मिल रहे हैं, है ना?" अर्जुन ने पूछा।

इरावती ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। "देखती हूँ।"

अर्जुन और आर्यन जाने के लिए उठे। जाते-जाते अर्जुन ने कहा, "तुम्हारे बिना मेरी सुबह अधूरी है, इरावती।"

दरवाजा बंद होते ही इरावती ने एक गहरी सांस ली। उसे पता था कि अर्जुन के इरादे कुछ और हैं, और वह उसे इतनी आसानी से अपने जाल में फंसाने नहीं देगी।



सुबह की हल्की धूप ऑफिस की बड़ी खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी। इराबती अपनी कार में आर्यन के साथ बैठी हुई थी। दोनों के बीच अजीब सी चुप्पी थी। इराबती ने आर्यन की ओर देखा। वो खिड़की से बाहर झांक रहा था, जैसे सोच में डूबा हो।

"आर्यन," इराबती ने धीमे स्वर में कहा, "क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहोगे?"

आर्यन ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं आंटी...मेरा मतलब है, इराबती आंटी।"

इरावती ने गहरी सांस ली। उसे आर्यन के चेहरे पर एक अजीब सी दूरी महसूस हो रही थी। वो जानती थी कि आर्यन के लिए ये रिश्ता अब भी नया और असहज था। लेकिन कहीं न कहीं, उसके दिल में एक उम्मीद थी कि शायद आर्यन उसे अपनाने की कोशिश करेगा।

"आर्यन, क्या तुम आज मुझे सिर्फ 'माँ' कह सकते हो? बस एक बार।"

आर्यन ने चौककर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हल्का सा संकोच था। "आप...आप मुझे ऐसा क्यों कहने को कह रही हैं?"

"क्योंकि मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे एक माँ की तरह देखो। मैं जानती हूँ कि ये आसान नहीं है। लेकिन मैं कोशिश करना चाहती हूँ।"

आर्यन ने कुछ क्षण सोचा, फिर धीरे से कहा, "मैं...देखूंगा।"

इरावती ने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ थाम लिया। "बस इतना ही काफी है।"

कार ऑफिस के गेट पर रुकी। दोनों अंदर की ओर बढ़े। इराबती का ऑफिस बड़ा और भव्य था। सफेद दीवारों पर लगी पेंटिंग्स, चमचमाते फर्नीचर, और हर तरफ काम में डूबे लोग। इराबती का वहां एक अलग ही रुतबा था। हर कोई उसे आदर और सम्मान के साथ देखता था।

"माँ, ये ऑफिस कितना बड़ा है!" आर्यन ने हैरानी से कहा।

इरावती के दिल में हल्का सा सुकून आया। उसने 'माँ' शब्द सुना और उसकी आँखों में चमक आ गई।

"हाँ बेटा, और आज तुम भी इसका हिस्सा हो। चलो, मैं तुम्हें सब से मिलवाती हूँ।"

वो आर्यन का हाथ पकड़कर आगे बढ़ी। सबसे पहले वो अपने असिस्टेंट रोहन के पास पहुंची।

"रोहन, ये आर्यन है। आज से ये हमारे साथ रहेगा। इसे सब काम सिखाओ और ध्यान रखना कि इसे किसी तरह की दिक्कत न हो।"

रोहन ने मुस्कुराते हुए आर्यन से हाथ मिलाया। "स्वागत है आर्यन। यहाँ काम करना तुम्हें पसंद आएगा।"

इसके बाद इराबती ने आर्यन को अपने केबिन में ले जाकर कुर्सी पर बैठाया। "देखो आर्यन, ये ऑफिस सिर्फ एक काम करने की जगह नहीं है। ये मेरा सपना है, मेरी मेहनत है। और अब मैं चाहती हूँ कि तुम भी इस सपने का हिस्सा बनो।"

आर्यन ने सर हिलाते हुए कहा, "मैं कोशिश करूंगा।"

इरावती ने मुस्कुराकर कहा, "बस इतना ही काफी है। चलो, अब तुम्हें सब से मिलवाते हैं।"

वो आर्यन को लेकर बाकी कर्मचारियों के पास गई। हर किसी से आर्यन का परिचय करवाया। "ये आर्यन है, मेरा बेटा। आज से ये हमारे साथ काम सीखेगा।"

कर्मचारी हैरान थे। कई लोगों ने पहली बार सुना कि इराबती का एक बेटा भी है। लेकिन सबने मुस्कुराकर आर्यन का स्वागत किया।

"आपका बेटा तो बहुत होनहार लगता है," एक कर्मचारी ने कहा।

"हाँ, और मैं चाहती हूँ कि वो हर काम में निपुण बने," इराबती ने गर्व से कहा।

आर्यन ने सबकी ओर देखा। उसे एहसास हुआ कि यहाँ लोग इराबती का कितना सम्मान करते हैं। उसने मन ही मन सोचा कि शायद ये मौका उसकी जिंदगी बदल सकता है।

दिनभर के इस सफर में इराबती ने महसूस किया कि आर्यन थोड़ा खुलने लगा है। और शायद एक दिन वो उसे माँ के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर लेगा।



पूरा दिन इरावती ने आर्यन को अपने साथ रखा। हर बार जब वो आर्यन की तरफ देखती, उसकी आँखों में गहरी तड़प झलकती। आर्यन की मासूमियत, उसकी आँखों का चमकता हुआ नूर—सबकुछ उसे अपने बेटे करण की याद दिला रहा था।

वो अपने मन में बार-बार खुद से कहती, "मेरा करण भी ऐसा ही होगा... उतना ही मासूम, उतना ही होशियार। क्या वो भी ऐसे ही सवाल करता होगा? क्या वो भी ऐसे ही मुझे 'माँ' बुलाने का इंतजार कर रहा होगा?"

आर्यन ने जब देखा कि इरावती कहीं खोई हुई हैं, तो उसने धीरे से कहा, "आंटी... क्या हुआ? आप इतने ध्यान से मुझे क्यों देख रही हैं?"

इरावती चौंकी। उसने तुरंत खुद को संभाला और मुस्कुराने की कोशिश की। "कुछ नहीं बेटा, बस यूं ही...। तुम्हारी बातें सुनते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"

आर्यन ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा, "सच बताइए। कहीं आप मुझे किसी और से तो नहीं मिला रही?"

इरावती ने गहरी सांस ली। वो चाहती थी कि वो सब कुछ बता दे, लेकिन अभी वक्त सही नहीं था। उसने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं है। चलो, अब हम थोड़ी देर काम पर ध्यान दें।"


तभी गीता, इरावती की सेक्रेटरी, कमरे में दाखिल हुई। उसकी निगाहें आर्यन पर पड़ीं और उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तो ये हैं आपके नन्हे मेहमान?"

"हाँ गीता," इरावती ने मुस्कुराते हुए कहा, "आर्यन आज पूरा दिन हमारे साथ रहेगा। मैं चाहती हूँ कि तुम इसे ऑफिस के कामकाज समझाओ।"

गीता ने सिर हिलाया और आर्यन की तरफ मुड़कर कहा, "तुम्हें यहाँ कोई परेशानी तो नहीं हो रही?"

आर्यन ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, "नहीं, यहाँ सब बहुत अच्छे हैं। लेकिन ये सब काम मेरे लिए नया है।"

गीता ने हँसते हुए कहा, "कोई बात नहीं। मैं तुम्हें सब सिखा दूँगी। वैसे तुम्हें यहाँ आकर कैसा लग रहा है?"

आर्यन ने थोड़ा सोचकर कहा, "अच्छा लग रहा है...लेकिन थोड़ा अजीब भी।"

गीता ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "अजीब क्यों?"

आर्यन ने हल्के से मुस्कुराकर कहा, "क्योंकि मैं अब तक सोचता था कि ऑफिस का माहौल बहुत सख्त होता है। लेकिन यहाँ तो सब बहुत प्यार से बात कर रहे हैं। खासकर आंटी..."

इरावती ने गहरी मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि हम यहाँ सिर्फ काम नहीं करते, एक परिवार की तरह रहते हैं।"

गीता ने इरावती की ओर देखते हुए महसूस किया कि वो आर्यन के साथ एक खास जुड़ाव महसूस कर रही थीं। उसने मजाक में कहा, "लगता है आर्यन ने आपका दिल जीत लिया है।"

इरावती ने हल्के से हँसते हुए कहा, "क्यों नहीं? वो इतना प्यारा बच्चा है।"

गीता ने आर्यन की तरफ मुड़कर कहा, "चलो, अब मैं तुम्हें कुछ दस्तावेज दिखाती हूँ। तुम्हें जानना चाहिए कि यहाँ काम कैसे होता है।"

आर्यन ने उत्सुकता से सिर हिलाया और गीता के साथ जाने लगा। लेकिन जाते-जाते उसने पलटकर इरावती की तरफ देखा। उसकी आँखों में सवाल थे, जैसे वो जानना चाहता हो कि इरावती उससे कुछ क्यों छिपा रही हैं।


जब आर्यन और गीता चले गए, तो इरावती अपनी कुर्सी पर बैठ गई। उसने एक गहरी सांस ली और खुद से बुदबुदाई, "क्यों हर बार आर्यन को देखकर मुझे करण की याद आती है? क्या ये नियति का कोई संकेत है? या फिर मैं ही अपने बेटे को हर चेहरे में ढूंढने की कोशिश कर रही हूँ?"

उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने अपनी मेज पर रखी एक फोटो फ्रेम को उठाया, जिसमें करण की छोटी सी तस्वीर थी। वो तस्वीर उसने सालों से अपने दिल के करीब रखी थी।

"करण," उसने धीरे से कहा, "तुम्हारी माँ ने बहुत गलतियाँ की हैं। लेकिन मैं अब वापस आना चाहती हूँ...तुम्हारे पास। क्या तुम मुझे माफ करोगे?"


इस बीच, गीता आर्यन को दस्तावेज समझा रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम बहुत जल्दी सीख रहे हो। तुम्हें ऑफिस का काम पसंद आ रहा है?"

आर्यन ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, लेकिन मैं सोचता हूँ कि क्या मैं इसे लंबे समय तक कर पाऊँगा?"

गीता ने हँसते हुए कहा, "क्यों नहीं? तुममें वो सब कुछ है जो यहाँ चाहिए। और वैसे भी, इरावती मैम को तुम पर बहुत भरोसा है।"

आर्यन ने संजीदगी से कहा, "इरावती आंटी बहुत अच्छी हैं। लेकिन मुझे कभी-कभी लगता है कि वो मुझसे कुछ छिपा रही हैं।"

गीता ने हैरानी से पूछा, "तुम ऐसा क्यों सोचते हो?"

आर्यन ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "उनकी आँखों में कुछ दर्द है, कुछ अधूरी बातें। जैसे वो मुझे देखकर कुछ याद करती हैं।"

गीता ने गंभीर होकर कहा, "शायद उनके पास भी अपनी कहानियाँ हैं, जो वक्त आने पर सामने आएंगी। तब तक तुम्हें धैर्य रखना होगा।"

आर्यन ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "शायद तुम सही कह रही हो।"

गीता ने मुस्कुराते हुए कहा, "चलो, अब काम पर ध्यान दें। अगर ज्यादा सोचा, तो काम कैसे करेंगे?"

दोनों हँस पड़े और दस्तावेजों में डूब गए। लेकिन आर्यन के मन में अब भी सवाल थे। वहीं, इरावती अपने कमरे में करण की यादों में खोई हुई थी, उम्मीद करते हुए कि शायद एक दिन वो अपने बेटे से फिर मिल सकेगी।

गांव में सुबह का उजाला धीरे-धीरे हर ओर फैल रहा था। पंछियों की चहचहाहट और हल्की-हल्की ठंडी हवा वातावरण को ताजगी से भर रही थी। करण की दादी, जो रोज़ की तरह सूरज निकलने से पहले उठ चुकी थीं, धीरे-धीरे आंगन में आईं। उनकी आँखें करण को ढूँढ रही थीं, और जब उन्होंने देखा कि करण आंगन के एक कोने में अपने व्यायाम में मग्न है, तो उनके चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कान आ गई।

करण के घुंघराले बाल सुबह की रोशनी में चमक रहे थे। उनकी हरी आँखें मानो गहरे सागर की तरह गहराई से भरी हुई थीं। वह अपनी चौड़ी छाती और मज़बूत कंधों के साथ किसी योद्धा की तरह दिख रहा था। उनकी दादी ने जब उसे देखा तो उनका दिल गर्व से भर उठा।

"क्या ज़माना आ गया है," दादी ने मन ही मन सोचा। "आजकल के बच्चे इतनी मेहनत कहाँ करते हैं? लेकिन मेरा करण अलग है। मैंने इसे अच्छे संस्कार और अनुशासन में पाला है।"

करण ने अपनी एक्सरसाइज खत्म की और गहरी सांस लेते हुए सीधा खड़ा हो गया। पसीने की बूँदें उसके माथे पर चमक रही थीं। उसने पानी का घूंट लिया और जब मुड़ा तो उसकी नजरें दादी पर पड़ीं।

करण: "दादी, आप इतनी सुबह उठ गईं? आराम करना चाहिए था ना।"

दादी मुस्कुराते हुए पास आईं और उसके सिर पर हाथ फेरा।
दादी: "अरे, तेरे जैसा पोता हो तो नींद कहाँ आती है? तुझे यूँ मेहनत करते देखना मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।"

करण हल्का सा मुस्कुराया और कहा, "दादी, मेहनत तो करनी पड़ती है। आप ही ने तो सिखाया है कि बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता।"

दादी की आँखों में नमी आ गई। उन्होंने करण के चेहरे को अपने हाथों में लिया और कहा, "हाँ, बेटा। और तेरे जैसा पोता पाकर मैं खुद पर गर्व करती हूँ। तेरे पापा भी तुझ पर बहुत गर्व करते अगर आज जिंदा होते।"

यह सुनकर करण थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। वह हमेशा से अपने पिता के बारे में सोचता था, लेकिन उसने कभी इस बारे में ज्यादा बात नहीं की। उसने दादी के हाथों को पकड़ा और कहा, "दादी, आप हमेशा मुझे मजबूत बनाती हैं। और मैं वादा करता हूँ कि आपकी मेहनत कभी बेकार नहीं जाएगी।"

दादी ने करण को गले लगा लिया। उनके दिल में विश्वास था कि करण न केवल उनकी बल्कि उनके पिता की भी इच्छाओं को पूरा करेगा।

आंगन में यह दृश्य मानो गांव की उस शांति और प्यार का प्रतीक बन गया था, जो करण और उसकी दादी के रिश्ते में था।

गांव की उस शांत सुबह में हल्की ठंडी हवा बह रही थी। पंछियों की चहचहाहट के बीच करण अपनी दादी के साथ आंगन में बैठा था। दादी ने अपने हाथ में चाय का कप थामा हुआ था और उनकी नजरें करण पर टिकी थीं। वह अपने पोते की मेहनत और लगन पर गर्व कर रही थीं।

कुछ पलों की खामोशी के बाद दादी ने गहरी सांस ली और बोलीं, "बेटा, तुम्हारी माँ... इरावती..."

करण का चेहरा तुरंत सख्त हो गया। उसकी हरी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई, जो गुस्से और दर्द दोनों का मेल थी। उसने दादी की तरफ देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा।

दादी ने अपनी बात जारी रखी, "वो चाहे जैसी भी थी, लेकिन तुम्हारी माँ थी। कभी सोचा है कि वो क्यों चली गई? शायद कोई मजबूरी रही हो।"

करण के हाथ में पकड़ी पानी की बोतल के ढक्कन पर उसकी पकड़ कस गई। वह गुस्से में बुदबुदाया, "मजबूरी? कैसी मजबूरी, दादी? एक माँ अपने बच्चे को छोड़ने की क्या मजबूरी बता सकती है?"

दादी ने उसकी आँखों में दर्द देखा। वह जानती थीं कि यह विषय करण के लिए कितना संवेदनशील है, लेकिन उन्होंने हिम्मत जुटाकर कहा, "बेटा, इंसान गलतियां करता है। हमें उसे माफ करना सीखना चाहिए।"

करण का गुस्सा अब खुलकर सामने आने लगा। उसने बोतल को ज़मीन पर रख दिया और खड़ा हो गया। "माफ करना? दादी, आप जानती हैं मैं क्या महसूस करता हूँ? उसने मुझे नहीं छोड़ा, उसने हमें बर्बाद कर दिया। मेरे पापा को उसकी यादों में घुट-घुटकर मरते देखा है मैंने। और आप मुझसे कहती हैं कि मैं उसे माफ कर दूँ?"

दादी ने अपनी जगह से उठते हुए कहा, "बेटा, मैं जानती हूँ तुम्हारे दिल में कितना दर्द है। लेकिन नफरत के साथ जीना आसान नहीं होता। तुम्हें खुद को इस बोझ से मुक्त करना होगा।"

करण की आँखों में आंसू नहीं थे, लेकिन उसकी आवाज़ कांप रही थी। "बोझ? दादी, बोझ तो वो था जिसे मेरे पापा उठाते रहे। उन्होंने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, वो मेरे साथ थे, लेकिन उन्होंने भी मुझसे बिना कुछ कहे चले जाने का फैसला किया। और इसकी वजह सिर्फ वही थी। मेरी माँ, आपकी बहू, इरावती।"

दादी चुपचाप करण की बातें सुनती रहीं। उन्हें पता था कि करण की नफरत सालों से उसके अंदर उबल रही थी। उन्होंने शांत स्वर में कहा, "बेटा, तुम्हारी माँ ने गलत किया, मैं मानती हूँ। लेकिन हर कहानी के दो पहलू होते हैं। तुमने कभी उसकी कहानी जानने की कोशिश की?"

करण ने गुस्से से अपनी दादी की तरफ देखा। "उसकी कहानी? मुझे उसकी कहानी नहीं जाननी। मुझे पता है कि एक माँ अपने बेटे के लिए क्या करती है। और उसने क्या किया? अपने बेटे और पति को छोड़कर चली गई। बस इतनी सी कहानी है।"

दादी ने उसकी पीठ थपथपाने की कोशिश की, लेकिन करण पीछे हट गया। "आपको नहीं पता, दादी। आपने हमेशा मेरे लिए सब कुछ किया, लेकिन वो औरत... उसने मुझे कभी कुछ नहीं दिया। मैं उसके बारे में और कुछ सुनना नहीं चाहता।"

दादी ने गहरी सांस ली। उन्होंने देखा कि करण का गुस्सा उसकी तकलीफ से उपजा था। वह जानती थीं कि इस नफरत को मिटाने के लिए वक्त और प्यार की जरूरत होगी।

दादी ने आखिरी बार कहा, "बेटा, जब वक्त आएगा, तब तुम जानोगे कि माफी में भी ताकत होती है। लेकिन तब तक, मैं तुम्हें नफरत में जलते हुए नहीं देख सकती।"

करण ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपना सिर झुकाया और वहाँ से चला गया। दादी उसकी पीठ पर निगाहें टिकाए रहीं, उनकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।

करण खेतों के बीच खड़ा था, उसकी आंखों में गुस्सा और दर्द एक साथ उमड़ रहे थे। उसकी मुट्ठियां भींची हुई थीं और सांसें तेज़ हो रही थीं। अचानक उसने ज़ोर से चिल्लाया, "इरावती! तूने हमें क्या समझ रखा था? खिलौना थे हम तेरे लिए? जब जी चाहा, छोड़ दिया!"

उसकी आवाज़ खेतों के शांत वातावरण में गूंज उठी। उसने घास पर ज़ोर से लात मारी और पत्थर दूर फेंक दिया। "कैसी माँ थी तू? अपने ही बेटे को छोड़कर चली गई, और क्यों? क्योंकि तुझे अपने आराम की पड़ी थी!"

उसके अंदर का गुस्सा बाहर निकल रहा था। उसकी आंखें आंसुओं से भर आई थीं लेकिन उसने उन्हें बहने नहीं दिया। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई, "करण... तुझे क्या हो गया है?"

करण ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा। वो सिया थी, उसकी बचपन की दोस्त, जो हमेशा से उसके साथ थी। सिया खेतों के किनारे खड़ी थी, उसके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी।

"तू यहाँ क्यों आई है, सिया? मुझे अकेला छोड़ दे!" करण ने गुस्से में कहा।

सिया धीरे-धीरे उसके करीब आई और शांत स्वर में बोली, "मैं तेरी आवाज़ सुनकर दौड़ी चली आई। तुझे इस तरह देख नहीं सकती। तुझे किस बात ने इतना तोड़ दिया है, करण?"

करण ने गुस्से में सिर हिलाते हुए कहा, "तुझे नहीं समझेगी सिया। ये मेरी लड़ाई है, मेरा दर्द है। तू इसमें मत पड़।"

सिया ने उसकी आंखों में देखा और बोली, "मैं तुझे तब से जानती हूं जब हम बच्चे थे। तेरा दर्द मेरा भी है, करण। लेकिन तू इसे अकेले सहता जा रहा है। ये सही नहीं है।"

करण ने गहरी सांस ली और नजरें फेर लीं। "मुझे नफरत है उससे... जिसने हमें छोड़ दिया। मेरे पिता को तोड़ दिया। मुझे इस दर्द के साथ जीने दिया। मुझे उससे नफरत है!"

सिया ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "नफरत तुझे अंदर से खा जाएगी, करण। ये तुझे कहीं नहीं ले जाएगी। तुझे इस नफरत से बाहर आना होगा।"

करण ने उसका हाथ झटकते हुए कहा, "मुझे नहीं चाहिए किसी का सहारा। नफरत ही मेरा सहारा है, और मैं इसे नहीं छोड़ सकता।"

सिया की आंखें नम हो गईं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "अगर तुझे मेरी जरूरत कभी भी महसूस हो, तो मैं हमेशा तेरे साथ हूं। पर खुद को इस नफरत में मत डुबा। मैं तुझे टूटते हुए नहीं देख सकती।"

करण ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस वहीं खड़ा रहा, उसकी आंखों में गुस्सा और दर्द भरा हुआ था। सिया ने उसे एक आखिरी बार देखा और धीरे-धीरे वहां से चली गई।

करण वहीं खड़ा रहा, अपने दर्द और नफरत के जाल में उलझा हुआ।


करण ने गहरी सांस ली और फिर से सिया की तरफ देखा, "मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हारे साथ गलत किया। गुस्से में आकर जो बातें मैंने कही, वो बिल्कुल गलत थीं। लेकिन अब मुझे यह समझ में आ रहा है कि तुमसे ऐसा बात करके मुझे सिर्फ अपने आप को चोट पहुंचाई। तुम्हारे साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए था, और मुझे खेद है कि मैंने ऐसा नहीं किया।"

सिया ने उसकी बातों को ध्यान से सुना, फिर उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "करण, हमें नहीं भूलना चाहिए कि हम सब इंसान हैं, और इंसान गलतियाँ करते हैं। लेकिन क्या तुम समझते हो कि जब तक हम अपनी गलतियों से नहीं सीखते, तब तक हम कभी बदल नहीं सकते?"

करण ने नर्म होते हुए सिर झुका लिया और धीमे से कहा, "हाँ, सिया, मैं समझता हूँ। और अब मुझे यह भी एहसास हुआ कि किसी से बुरा व्यवहार करने से सिर्फ दिल ही नहीं, आत्मा भी टूट जाती है।"

सिया ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर उसे थोड़ा समझाया, "तुम सही कह रहे हो, करण। लेकिन इस बार तुमने यह सब सिर्फ अपनी भावनाओं के कारण किया। फिर भी, इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्यों ऐसा कर रहे थे। जो महत्वपूर्ण है, वह यह है कि अब तुम्हारे भीतर बदलाव की चाह है, और यह मुझे लगता है कि तुम वाकई बदलने के लिए तैयार हो।"

करण ने हल्के से सिर झुकाते हुए कहा, "मैं यह समझ चुका हूँ, सिया। अब से मैं तुम्हारे साथ ऐसा कभी नहीं करूंगा। अगर मुझे कभी कुछ कहना हो, तो मैं सीधे तुमसे बात करूंगा। गुस्से में आकर या किसी और की बातों में बहकर मैं फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा।"

सिया ने थोड़ा और नरम होते हुए कहा, "यह अच्छा है, करण। लेकिन क्या तुम यह समझते हो कि अब से हमें एक दूसरे के साथ सच बोलना होगा, न कि सिर्फ वह बातें जो हमें सही लगें? क्योंकि सच हमेशा अच्छा होता है, और तुम्हें उसे मानने का हौसला रखना चाहिए।"

"मैं वादा करता हूँ, सिया," करण ने उसकी बातों को पूरी तरह से समझते हुए कहा। "अब से मैं कभी भी तुम्हारे साथ कोई छुपी बात नहीं करूंगा। और अगर कभी कुछ गलत हुआ तो मैं तुम्हारे सामने सच्चाई रखूँगा।"

सिया ने एक लंबी सांस ली और फिर कहा, "देखो, करण, हम सब इंसान हैं। कोई भी खुद को बदलने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता, लेकिन मुझे लगता है कि तुममें वह समझ और शक्ति है, जो तुम्हें सही रास्ते पर ले जाएगी।"

"मैं खुद को सुधारने की पूरी कोशिश करूंगा," करण ने कहा और फिर हल्की सी मुस्कान दी, "धन्यवाद, सिया, तुमने मुझे समझाया।"

सिया ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हें धन्यवाद नहीं, करण। यह सब तुम्हारे अपने लिए है। खुद को बेहतर बनाने के लिए।"

करण ने सिर हिलाया और कहा, "हां, मुझे एहसास है। और मैं इसे हमेशा याद रखूंगा।"

दोनों के बीच की बातचीत का यह पल अब एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहा था। इस समय दोनों ने अपने-अपने दिलों की बातों को एक दूसरे से साझा किया और समझा कि किसी भी रिश्ते में सिर्फ सच्चाई और एक-दूसरे की समझ से ही सफलता मिलती है।

ठीक है, अब मैं उसी सीन को नए नाम के साथ लिख रहा हूँ:


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यूएसए में, इरावती और परिवार के साथ डिनर कर रहे थे। साथ में अरजन और आर्यन भी थे। इरावती अपनी हाथों से अर्यन को खाना खिला रही थी। उसकी आँखों में एक गहरी भावनात्मक लहर थी, जैसे वह खुद अपने बेटे करण को खिला रही हो। हर निवाला जैसे एक अव्यक्त याद को ताजा कर रहा था। इरावती की नज़रें थोड़ी नम हो गईं, लेकिन उसने अपने आंसुओं को थाम लिया और मुस्कुराने की कोशिश की। वह यह महसूस कर रही थी कि उसकी दुनिया फिर से एक पल के लिए पूरी हो गई है, जैसे करण फिर से उसके पास हो।

उसी वक्त, अभिषेक की बेटी कियारा, जो इरावती की बिल्कुल सामने बैठी थी, मुस्कुराते हुए कहने लगी, "आंटी, आप तो जैसे अर्यन को खुद करण बना देती हैं। क्या आप भूल गईं कि करण यहाँ नहीं है?"

कियारा की बात सुनते ही इरावती के चेहरे पर थोड़ी असहजता आ गई। वह कुछ पल के लिए चुप हो गई, लेकिन कियारा ने उस पर जोर देते हुए कहा, "सच में आंटी, अगर करण यहाँ होता तो क्या आप उसे भी अर्यन की तरह खिलातीं?"

इसी दौरान, अर्यन ने कियारा की बात पर हंसते हुए कहा, "क्या मतलब है तुम्हारा, कियारा? आप क्या मेरे साथ मजाक कर रही हो?"

कियारा ने हंसते हुए कहा, "नहीं, नहीं! मैं तो सिर्फ ये देख रही थी कि आंटी को कितना प्यार है अर्यन से।"

इरावती ने कियारा की ओर देखा और एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "तुम्हें क्या लगता है, कियारा? मैं किसी और को इतना प्यार कर सकती हूं, जो करण से ज्यादा हो?"

कियारा ने एक चुटीली मुस्कान के साथ कहा, "लेकिन आंटी, आप तो अब अर्यन को ज्यादा समय देती हो, और वह भी आपके खाने से खुश है।"

इसी बीच, अर्यन ने कियारा की तरफ देखा और कहा, "अब देखो, कियारा! तुम कभी भी मजाक नहीं छोड़ सकती हो। पर इरावती आंटी के बारे में ऐसा मत बोलो। वह मेरे लिए बहुत खास हैं।"

इरावती की आँखों में एक भावुकता आई और उसने हल्का सा सिर झुकाते हुए कहा, "हर इंसान की यादें, उनकी ज़िंदगी के बहुत अहम हिस्से होते हैं, कियारा। कभी-कभी हम अपने अतीत को छोड़ नहीं पाते, लेकिन जो हमारे पास होता है, उस पर हमें ध्यान देना चाहिए।"

कियारा थोड़ा चुप हो गई, उसकी आँखों में एक गहरी समझ थी। वह अब इरावती की बातों को हलके में नहीं ले रही थी। अर्यन की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई, जैसे कि वह कह रही हो कि "ठीक है, अब समझ गई।"

इसी दौरान, इरावती ने अपनी नजरें अर्यन पर डाली और धीरे से कहा, "कभी सोचा है कि मैं तुम्हारे साथ कितना खुश हूं?" यह एक सवाल था, लेकिन जवाब अर्यन की आँखों में पहले से ही था। वह हल्के से सिर झुका दिया और एक चुप्प मुस्कान के साथ इरावती का हाथ थाम लिया।

डिनर के बाद, इरावती और अर्जुन अकेले समय बिता रहे थे। दोनों एक शांत जगह पर बैठे थे, जहां रात का माहौल और हल्की सी ठंडी हवा उनके बीच की दूरी को और भी कम कर रही थी। इरावती थोड़ी चुप थी, जैसे वो कुछ सोच रही हो। अर्जुन ने उसे देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा,

"इरावती, तुम्हारी आँखों में कुछ गहरी सी उदासी है। क्या बात है, क्या तुम सोच रही हो?"

इरावती ने धीरे से सिर उठाया और अर्जुन की आँखों में देखा। "मैं सिर्फ ये सोच रही थी कि इंडिया लौटने के बाद सब कुछ कैसा होगा। वहां बहुत कुछ बदल चुका है। लेकिन तुम... तुम मेरे साथ हो, ये सोच कर अच्छा लगता है।"

अर्जुन ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर थोड़ा करीब होकर बोला, "तुम्हें हमेशा मेरे पास मिलेगा, इरावती। चाहे तुम कहीं भी हो, तुम्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दूंगा।"

इरावती की आँखों में एक नर्मी थी। वह धीरे से मुस्कराई और कहा, "तुमसे बात करके, अर्जुन, मुझे लगता है कि कभी भी कुछ भी आसान हो सकता है। तुम्हारा साथ सच में बहुत खास है।"

अर्जुन ने उसकी हाथों को धीरे से पकड़ा और कहा, "तुम्हारे साथ हर मुश्किल आसान लगती है। मुझे लगता है, हम दोनों में एक अजीब सा तालमेल है।"

इरावती ने धीरे से अपनी आँखें बंद की और हल्का सा सांस लिया, जैसे वह उसकी बातों को पूरी तरह से महसूस कर रही हो। फिर उसने अपनी आँखें खोलते हुए कहा, "मैंने कभी सोचा नहीं था कि किसी के साथ इतनी गहरी कनेक्शन महसूस करूंगी, लेकिन तुम्हारे साथ... यह सब कुछ बहुत अलग सा है।"

अर्जुन ने उसकी आंखों में प्यार से देखा और कहा, "कभी सोचा नहीं था, लेकिन अब सब कुछ बहुत साफ है। तुम और मैं, दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं। मैं तुम्हारे साथ हर पल जीना चाहता हूं।"

इरावती ने उसकी तरफ देखा, और उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "अर्जुन, तुम बहुत सच्चे हो। तुमसे ज्यादा और क्या चाहिए? तुम मेरे जीवन में वो चीज हो, जो कभी मैंने सोचा नहीं था।"

अर्जुन ने धीरे से उसके चेहरे के पास अपना हाथ बढ़ाया और उसकी बालों को झुका कर कहा, "और मैं तुम्हारे बिना अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी नहीं कर सकता, इरावती। तुम ही मेरी दुनिया हो।"

इरावती का दिल थोड़ा तेज़ धड़कने लगा, और उसने अपना चेहरा उसकी तरफ झुका दिया। "तुमसे मिलकर मुझे लगा कि सब कुछ सही हो जाएगा। और अब मैं जानती हूं कि कुछ भी हो, तुम्हारे साथ सब कुछ ठीक रहेगा।"

अर्जुन ने हल्के से उसकी ठोड़ी को पकड़ते हुए कहा, "और मैं तुम्हारे साथ हूं, इरावती। हमेशा तुम्हारे साथ।"

दोनों की आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे दोनों एक-दूसरे के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। यह रात उनके लिए बहुत खास थी, क्योंकि इस रात ने दोनों के रिश्ते को एक नई दिशा दी थी, जहां प्यार और विश्वास के साए में उनका भविष्य चमकता हुआ नजर आ रहा था।


एक हफ्ता बीत चुका था, और अब सब इंडिया के लिए निकलने की तैयारी में थे। इरावती इस दौरान अपने कमरे में बैठी हुई थी, और उसके हाथ में एक तस्वीर थी – वही तस्वीर, जिसमें करन का चेहरा था। वह उसे घूरे जा रही थी, जैसे हर एक नज़र में अपने बेटे के साथ बिताए गए पल उसे फिर से जीने का मौका दे रहे हों। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन आंखों में एक गहरी उदासी थी।

"मैं आ रही हूँ, मेरे बच्चे," इरावती धीरे से अपनी हँसी दबाते हुए बुदबुदाई, जैसे वह करन से बात कर रही हो, "माँ आकर तुझे अपने सीने से लगा लेगी, तेरे पास, जैसे पहले कभी मैं तेरे पास थी। सब कुछ ठीक हो जाएगा, मेरे बेटे।"

वह तस्वीर को देखते हुए एक बार फिर से वो सभी यादें ताजा करने की कोशिश कर रही थी, जब वह करन को अपने पास रखती थी। फिर एक दिन, सब कुछ छूट गया। वह अपना सब कुछ छोड़कर चली आई थी, लेकिन अब वह वापस लौटने की कोशिश कर रही थी, उस गलती को सुधारने के लिए जो उसने की थी।

लेकिन तभी, अचानक बाहर से अरायण के चिल्लाने की आवाजें आईं। इरावती की सोच अचानक टूट गई। वह डरते हुए खड़ी हुई और बिना सोचे-समझे दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी। उसे इस बात का होश भी नहीं था कि उसके हाथ में पकड़ कर रखे हुए तसवीर के कागज पर से स्याही फैल रही थी और वो फट कर गिर चुका था, ज़मीन पर बिखर गया था।

अरायण की आवाज़ सुनते ही इरावती की तम्मनाओं ने उसे पूरी तरह से घेर लिया। उसे यह भी याद नहीं रहा कि उसकी ज़रा सी असावधानी से तस्वीर अब टूट चुकी थी, और वह ज़मीन पर गिर गई थी। उसकी आँखों में अचानक यह ख्याल आया कि अगर वह सही समय पर करन के पास वापस लौट पाई तो क्या होगा? क्या उसे फिर से अपनाया जाएगा? या वह अब भी वैसे ही अस्वीकार कर दिया जाएगा, जैसा पहले हुआ था?

वह बेसुध होकर दरवाजे की ओर दौड़ रही थी, जैसे किसी ने उसे किसी अनजानी ताकत से खींच लिया हो। उसकी चप्पलें ज़मीन पर बेतहाशा गिर रही थीं, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह बस बाहर पहुंचने के लिए बेताब थी।

"अरायण! क्या हुआ?" इरावती तेजी से बाहर भागते हुए चिल्लाई। उसकी आँखों में हल्की घबराहट और बेचैनी थी।

यहाँ पर कुछ सुधार किए गए हैं ताकि यह वाक्य सही और स्पष्ट हो:


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इरावती भागते हुए बाहर आईं और देखा कि काइरा अरायन को परेशान कर रही थी। यह देख इरावती काइरा को डांटते हुए कहती हैं, "तुम क्या कर रही हो?" और अरायन को अपने पास खींचती हैं। काइरा शरारत से मुस्कुराते हुए कहती है, "मैं तो बस मज़ाक कर रही थी," लेकिन इरावती का ग़ुस्सा बढ़ता जाता है। इरावती ने काइरा को सख्त तरीके से कहा, "तुम्हारे मज़ाक के लिए वह लड़का इतना सहन नहीं कर सकता। यह खेल नहीं है!" फिर इरावती अरायन की ओर मुड़ती हैं और प्यार से कहती हैं, "क्या तुम ठीक हो?"

अरायन हल्के से सिर हिलाता है, लेकिन इरावती उसकी आँखों में स्पष्ट रूप से डर और बेचैनी देख सकती हैं। वह उसे शांत करने के लिए उसके कंधे पर हाथ रखती हैं। "तुम कमरे में जाओ, काइरा!" इरावती ने सख्त आवाज में कहा। "हम बाद में बात करेंगे।"

काइरा नाराज होकर मुंह लटकाती है, पर वह बिना कुछ कहे कमरे में चली जाती है।

इरावती थोड़ी देर वहीं खड़ी रहती हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि काइरा वहां से जा चुकी है, फिर वह धीरे-धीरे वापस कमरे में जाती हैं। जैसे ही वह कमरे में प्रवेश करती हैं, उसकी नजरें उन तसवीरों पर जाती हैं, जो अब टूट चुकी हैं। करण की तस्वीर, जो कभी उसकी खुशी का प्रतीक थी, अब बिखरी हुई पड़ी थी। उस दृश्य ने इरावती के दिल को चीर डाला।

वह तस्वीर के पास जाती हैं और टूटी हुई तस्वीरों को इकट्ठा करने लगती हैं। "मैंने इसे कैसे होने दिया?" इरावती की आवाज में दर्द था। तस्वीर के टूटने के साथ ही इरावती की आत्मा भी टूट चुकी थी। करण का चेहरा उसकी यादों में था, लेकिन अब वह केवल एक दर्द बनकर रह गया था।

वह जमीन पर घुटनों के बल बैठकर करण की तस्वीर को उठा लेती है। उसकी आँखों में आँसू होते हैं, और वह खुद को कस कर कोसने लगती हैं, "मैंने तुम्हें छोड़ दिया, करण। मैं तुम्हारा साथ नहीं दे पाई।"

वह खुद को माफ़ नहीं कर पा रही थी। काइरा से पहले ही उलझन और ग़ुस्से में वह अपने बेटे से अलग हो गई थी। अब वह दर्द और पछतावे से घिरी हुई थी, और यह सोचने में बर्बाद हो गई थी कि उसकी गलती क्या थी।

काइरा से कुछ समय पहले ही वह यह सोच रही थी कि शायद उसके पास अब कोई उम्मीद बची नहीं है, लेकिन यह तस्वीर, यह दर्द, अब उसके सामने था। अब इरावती को लगता था कि शायद करण के साथ ही उसकी सारी

उम्मीदें और जीवन का एक हिस्सा भी खत्म हो गया।

"मैंने तुम्हें खो दिया, करण," इरावती फुसफुसाती हैं।

इरावती की नज़रें खिड़की से बाहर आकाश की ओर चिपकी हुई थीं। फ्लाइट का सफर लंबा था, लेकिन उसकी नजरों में बस एक ही चेहरा था — करण का। उसकी आंखों के सामने वही चेहरा घूम रहा था, जो कभी उसे अपनी गोदी में खेलता हुआ नज़र आता था, जो अब एक अजनबी सा लगता था, क्योंकि वक्त के साथ उसकी यादें भी जैसे फीकी पड़ गई थीं।

कभी उसकी गोदी में खिलते हुए उस छोटे से बच्चे के नन्हे हाथों ने उसे मां का एहसास कराया था। अब वह बचपन कहीं खो चुका था। क्या करण का चेहरा वैसा ही होगा, जैसा इरावती के दिल में था, या फिर वह भी वक्त की धारा में बदल चुका होगा? इरावती के मन में तमाम सवालों का जाल था। उसकी आँखें किसी खास इमोशन से भर गईं थीं, और उसे महसूस हो रहा था कि कहीं न कहीं उसके दिल में एक दर्द था, जो कभी खत्म नहीं हो सकता था।

वो फ्लाइट के भीतर अकेली बैठी थी, लेकिन उसके दिमाग में बस करण ही था। यादों के जाले ने उसे जकड़ लिया था। जब वह अपने बेटे से दूर हो गई थी, तो उसके दिल में जो खालीपन था, वह आज भी नहीं भरा था। करण का चेहरा उसकी आंखों के सामने था, जैसे वह अब भी उसकी गोदी में खेल रहा हो, जैसे वह उसे छोड़कर कहीं नहीं गया था।

“क्या तुम अब भी मेरे जैसा दिखते हो?” इरावती ने अपने आप से पूछा, जब उसने करण की टूटी हुई तस्वीर को देखा था। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने उन्हें रोक लिया। वो सोचने लगी, "क्या वो भी मेरे जैसा ही दिखता है? क्या उसकी आँखों में वही दर्द है, जो मेरे दिल में था? क्या उसने भी मुझे याद किया?"

उसने सोचा, क्या वह लड़का अब बड़ा हो गया होगा, जैसा वो कभी चाहती थी? क्या वह वही शांत, गंभीर लड़का था, जिसकी उसने कभी कल्पना की थी, या फिर वो वक्त के साथ बदल चुका होगा, जैसा सभी लोग बदलते हैं? उसकी आँखों में वो झलक थी, जो एक मां की होती है।

वो धीरे से मुस्कुराई, "हे भगवान, क्या मैं इतनी बड़ी हो गई हूँ कि अब तुम्हारी यादों को भी पूरा कर नहीं पा रही हूँ?" उसकी हंसी हल्की थी, लेकिन उसके दिल का दर्द बहुत गहरा था। वह जानती थी कि इस दर्द को खत्म करने का कोई तरीका नहीं था, लेकिन फिर भी वह उम्मीद करती थी कि एक दिन वह अपने बेटे को अपनी गोदी में फिर से पाएगी।

फ्लाइट के दौरान उसकी सोचों में अक्सर करण का चेहरा आता और वह उसे महसूस करती थी। वह सोचती, "क्या उसने मेरी यादों को तहेदिल से अपनाया है, या फिर उसने मुझे भुला दिया है?" इन सवालों का कोई उत्तर नहीं था, लेकिन वह फिर भी अपने दिल की सुनने की कोशिश करती थी।

उसे याद आया कि जब वह छोटी थी, तो अपनी मां के पास बैठकर अक्सर उसी तरह से सपने देखा करती थी। लेकिन अब उसे अपनी जिंदगी के फैसले पर अफसोस था, जिसने उसे अपने बेटे से दूर कर दिया। वह सोचती थी कि क्या उसकी तन्हाई में वह कभी ऐसा महसूस करेगा, जैसा वह खुद महसूस कर रही थी।

इतना सोचते-सोचते वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गई, लेकिन फिर उसकी आँखों में चमक आ गई, जैसे उसे किसी बात का अहसास हुआ हो। उसकी आँखों में एक नयी उम्मीद थी। उसने खुद से कहा, "मैं उसे हर हाल में वापस लाऊँगी। वह मुझे कभी न कभी जरूर मिलेगा।"

वह जानती थी कि उसे अपने बेटे से मिलने के लिए और संघर्ष करना होगा, लेकिन इस बार वह किसी भी हालत में हारने वाली नहीं थी। यह था उसका निर्णय।

फ्लाइट की खामोशी में, इरावती ने एक गहरी सांस ली और खुद को मजबूत किया। उसकी सोच में अब एक नई उम्मीद और संघर्ष का आलम था।


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इरावती की माँ का नाम "संध्या" और भाई का नाम "अभिषेक" कर दिया गया है। अब कहानी का अद्यतन संस्करण कुछ इस प्रकार है:


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जैसे ही फ्लाइट भारत की ज़मीन पर लैंड हुई, इरावती की आँखें भर आईं। उसने खिड़की से बाहर झांकते हुए मिट्टी को देखा और गहरी साँस ली। ऐसा लगा जैसे उसने अपनी खोई हुई ज़िंदगी को फिर से पा लिया हो।

"हम वापस आ गए," उसने धीमी आवाज़ में कहा।

उसके पिता विक्रम ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, "हाँ, बेटी। घर वापस। ये मिट्टी हमें फिर से अपने से जोड़ेगी।"

इरावती ने अपने भाई अभिषेक की ओर देखा, जो हल्की मुस्कान के साथ उनकी बातचीत सुन रहा था।

फ्लाइट से बाहर निकलते ही इरावती का दिल तेजी से धड़कने लगा। हर चेहरा उसे करण जैसा लग रहा था।

"माँ, वो देखो, वो रहा करण!" इरावती की आवाज़ में एक मासूम उत्सुकता थी।

संध्या ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "बेटी, वो करण नहीं है। इतनी बेसब्र क्यों हो रही हो?"

"माँ, मुझे लग रहा है जैसे वो यहीं आसपास है। हर चेहरा मुझे उसी की याद दिला रहा है," इरावती ने बेचैनी से कहा।

अभिषेक ने हँसते हुए कहा, "दीदी, हर लड़का करण कैसे लग सकता है? थोड़ा शांत रहो।"

"अभिषेक, मज़ाक मत करो। मुझे सच में ऐसा लग रहा है," इरावती की आवाज़ गंभीर हो गई।

अभिषेक ने समझदारी से कहा, "ठीक है दीदी, होटल पहुँच कर आराम करो। फिर हम सब मिलकर करण को ढूँढेंगे।"

टैक्सी में बैठते ही इरावती ने माँ से सवाल करना शुरू कर दिया।

"माँ, क्या करण मुझे पहचानने से इनकार कर देगा?"

"ऐसा क्यों सोच रही हो?" संध्या ने हैरानी से पूछा।

"क्योंकि मैंने उसे इतने साल पहले छोड़ दिया था। क्या वो मुझसे नफरत करेगा?"

संध्या ने प्यार से कहा, "माँ-बेटे का रिश्ता माफी का नहीं होता। ये दिल से दिल का रिश्ता है। समय चाहे कितना भी बदल जाए, ममता हमेशा कायम रहती है।"

अभिषेक ने माहौल हल्का करने के लिए कहा, "चलो दीदी, ये सब बातें बाद में करेंगे। पहले होटल चलो, आराम करो।"

इरावती ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए फिर से एक लड़के की ओर इशारा किया, "माँ, वो करण जैसा लग रहा है!"

संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटी, तुम्हारा दिल तुम्हें हर जगह करण दिखा रहा है। लेकिन चिंता मत करो, जल्द ही तुम्हें असली करण से मिलने का मौका मिलेगा।"

इरावती ने करण की तस्वीर निकाली और उसे ध्यान से देखते हुए बुदबुदाई, "मैं आ रही हूँ, मेरे बच्चे। तुम्हारी माँ तुम्हें अब कभी अकेला नहीं छोड़ेगी।"

अभिषेक ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "दीदी, करण से मिलने की कोई योजना है?"

"हाँ, लेकिन पहले मैं उसे ढूँढूंगी। चाहे कुछ भी हो जाए," इरावती की आवाज़ में दृढ़ता थी।

संध्या ने उसे गले लगाते हुए कहा, "सब सही होगा, बेटी। बस विश्वास रखो।"

लेकिन इरावती के दिल में बस एक ही बात थी — करण से मिलना और उसे अपनी बाहों में भरना।



होटल के गेट पर कार रुकते ही इरावती ने गहरी साँस ली। उनके दिल में हलचल थी, लेकिन चेहरा शांत दिखाने की कोशिश कर रही थी। आर्यन और अरजुन पहले से ही होटल में मौजूद थे।

जैसे ही परिवार होटल की लॉबी में दाखिल हुआ, आर्यन ने इरावती की ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ स्वागत किया।

"आखिरकार आप सब आ ही गए," आर्यन ने कहा।

"हाँ, रास्ता लंबा था," इरावती ने जवाब दिया।

सबके चेहरे पर थकान के बावजूद राहत का अहसास था।



सब अपना सामान लेकर रूम्स की ओर बढ़ने लगे। तभी काइरा आर्यन के करीब आकर बोली, "तो जनाब, आजकल बहुत बिज़ी हो गए हो। इंडिया आने के बाद टाइम मिलेगा या वहीं से नज़रअंदाज करोगे?"

आर्यन ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे ताने तो यहाँ भी पहुँच गए।"

काइरा हँसते हुए बोली, "तुम्हें ताने सुनने की आदत डालनी चाहिए। वैसे भी, तुम्हारे चेहरे पर गुस्सा आना बहुत प्यारा लगता है।"

आर्यन ने अपनी भौहें चढ़ाते हुए कहा, "अगर तुम चाहती हो कि मैं सीरियस रहूँ, तो ये बातें बंद करो।"

काइरा ने शरारत से कहा, "तुम्हारी सीरियसनेस और मेरी शरारत का कोई मुकाबला ही नहीं। वैसे, जब से यहाँ आए हो, इरावती आंटी बस तुम्हें ही देखती जा रही हैं। कहीं तुम्हें करण समझ तो नहीं रही?"

यह सुनते ही इरावती जो थोड़ी दूर खड़ी थी, हल्की-सी चौंकी।



इरावती ने धीरे से काइरा को डाँटा, "काइरा, ये क्या मज़ाक है? ऐसे ताने मत मारो।"

काइरा ने मासूमियत से कहा, "आंटी, मज़ाक ही तो कर रही थी। वैसे भी, आर्यन की सीरियसनेस इतनी भारी है कि हल्की-फुल्की बातें ज़रूरी हो जाती हैं।"

आर्यन ने इरावती की ओर देखते हुए कहा, "आप परेशान मत हों, आंटी। मैं काइरा को झेलने की आदत डाल चुका हूँ।"

इरावती हल्का सा मुस्कुराई और सोचने लगी, अगर मेरा करण यहाँ होता तो शायद कुछ ऐसा ही जवाब देता।



रूम में पहुँचने के बाद इरावती ने दरवाज़ा बंद किया और गहरी साँस ली। उनकी नज़र पास रखी करण की तस्वीर पर पड़ी जो टूट चुकी थी। तस्वीर के टूटने का खयाल आते ही उनकी आँखों में आँसू भर आए।

उन्होंने तस्वीर उठाई और उसे हल्के से सहलाते हुए कहा, "मैं आ रही हूँ, करण... तुम्हारी माँ आ रही है तुम्हें अपने सीने से लगाने। पता नहीं तुम कैसे दिखते हो अब... कहीं तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो? क्या तुम मुझे पहचानोगे भी?"

उनकी आँखों से बहते आँसू इस दर्द को और गहरा कर रहे थे। तभी बाहर से हल्की खटपट की आवाज़ आई।

इरावती ने खुद को सँभालते हुए दरवाज़ा खोला तो देखा आर्यन खड़ा था।

"आप ठीक हैं?" आर्यन ने चिंतित होकर पूछा।

"हाँ... बस थोड़ी थकान है," इरावती ने झूठी मुस्कान के साथ कहा।

"आराम कर लीजिए, आंटी। कल का दिन भी भारी रहेगा," आर्यन ने कहा और वापस चला गया।

इरावती ने उसे जाते हुए देखा और फिर तस्वीर की ओर मुड़कर बुदबुदाई, "तुम्हारी उम्र का ही है, लेकिन उसे देखकर बस तुम्हारी याद आती है, करण। कहीं मेरा बेटा भी ऐसा ही तो नहीं होगा?"
रात का डिनर: परिवार के बीच उथल-पुथल

होटल के बड़े डाइनिंग हॉल में रात के डिनर का माहौल बहुत खास था। पूरा परिवार एक ही टेबल पर इकट्ठा था। हर कोई हल्की-फुल्की बातों में लगा हुआ था। काइरा अपनी शरारती मुस्कान के साथ आर्यन को चिढ़ाने में लगी थी, जबकि इरावती के चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी।

जैसे ही डिनर सर्व किया जाने लगा, होटल के स्टाफ ने एक व्यक्ति को डाइनिंग हॉल में प्रवेश करने की अनुमति दी। वह व्यक्ति साधारण कपड़ों में था, लेकिन उसकी आँखों में गहरी समझ और चेहरे पर गंभीरता थी।

"यह कौन है?" अरजुन ने चौंकते हुए पूछा।

"ये हमारे डिटेक्टिव्स हैं," इरावती ने शांत स्वर में कहा।

डिटेक्टिव्स को बुलाने का निर्णय इरावती का था, और यह निर्णय उनके बेटे करण की खोज के लिए था। परिवार को अब तक यही बताया गया था कि डिटेक्टिव्स इरावती के पुराने मामलों पर काम कर रहे हैं।



डिटेक्टिव ने हाथ में पकड़ी फाइल टेबल पर रखी और गंभीर स्वर में कहा, "मिस्टर और मिसेज़, हमारी जांच पूरी हो चुकी है। हमें एक महत्वपूर्ण सुराग मिला है।"

इरावती के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। उनकी आँखें डिटेक्टिव पर टिक गईं।

डिटेक्टिव ने अपनी रिपोर्ट जारी रखते हुए कहा, "हमने आपके बेटे करण के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हुए यह पाया कि वह एक गाँव के आस-पास देखा गया है। उस गाँव के पास ही एक पुरानी कब्र मिली है, जिस पर 'अमर' नाम लिखा हुआ है।"

"अमर?" अरजुन ने चौंककर पूछा।

"हाँ, अमर। हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि यह वही अमर है जो करण के जीवन में किसी महत्वपूर्ण भूमिका में था। यह कब्र गाँव के ठीक बाहर स्थित है। इससे यह संकेत मिलता है कि करण वहीं आसपास हो सकता है।"



यह सुनते ही इरावती के चेहरे की रंगत उड़ी हुई लगने लगी। उनकी साँसें रुक-सी गईं। उनके हाथ कांपने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनकी भावनाओं का सैलाब खोल दिया हो।

"आपका मतलब है कि... करण उस गाँव में है?" इरावती ने धीमी, डरी हुई आवाज़ में पूछा।

"हमें पूरा यकीन है, मैम। गाँव के लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, करण एक गैराज चलाता है और वहीं रहता है।"

इरावती ने गहरी साँस ली, उनकी आँखों में आँसू थे। उनका मन एक ही सवाल पूछ रहा था, क्या मेरा बेटा मुझे पहचान पाएगा? क्या वह मुझे माफ़ करेगा?

इस खबर के बाद टेबल पर सन्नाटा छा गया। सबकी निगाहें इरावती पर थीं। कोई नहीं जानता था कि क्या कहना चाहिए।

"माँ... आप ठीक हैं?" Aryan ने धीमी आवाज़ में पूछा।

इरावती ने खुद को संभालते हुए कहा, "हाँ, मैं ठीक हूँ। बस... मैं सोच रही हूँ कि करण कैसा होगा। क्या वो हमें देखेगा तो खुश होगा या नाराज़?"

काइरा ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा, "aunty आप करण से मिलते ही सब ठीक हो जाएगा। देखना, वो आपकी बाहों में झूल जाएगा।"

इरावती ने हल्की मुस्कान दी लेकिन उनकी आँखों में अब भी दर्द था।



इरावती अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर बैठ गईं। करण की तस्वीर उनके हाथ में थी। उनकी आँखों में आँसू थे।

"मैं आ रही हूँ, मेरे बच्चे। तुम्हारी माँ आ रही है तुम्हें देखने... तुम्हारे गले लगाने। मैं जानती हूँ कि मैंने तुम्हें

बहुत दर्द दिया है, लेकिन अब और नहीं। मैं तुम्हें ढूंढ लूँगी।"

उनकी आँखों से बहते आँसू उनकी इच्छा शक्ति को और मजबूत कर रहे थे। उनका दिल कह रहा था कि करण उनसे दूर नहीं है।






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Karan
Nice and lovely update....
 

kamdev99008

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Got it! Here's the revised version without the headlines:

कहानी का नाम: रिश्तों की राख

मुख्य पात्र:

1. एरा (Era)
एरा एक खूबसूरत, आत्मनिर्भर महिला है और एक मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ है। उसने अपने माता-पिता के दबाव में आकर अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर अमेरिका में नई ज़िंदगी शुरू की थी। अब वो अपने फैसले पर पछता रही है और करण को ढूंढकर अपनी गलती सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।


2. करण (Karan)


एरा और अमर का बेटा। अपनी माँ के बिना बिता हुआ बचपन और पिता को खोने का दर्द करण को कठोर और आत्मनिर्भर बना चुका है। अपनी दादी के साथ गाँव में रहने वाला करण अब अपनी माँ से नफरत करता है और अपने दिल में बहुत सारे सवाल छिपाए हुए है।


3. अमर (Amar)
एरा के पति और करण के पिता। अमर ने एरा के जाने के बाद गहरे दुख में अपनी जान दे दी थी। उनकी मौत ने करण को गहरी चोट पहुंचाई और उसे जीवन के कठिन रास्तों पर अकेला छोड़ दिया।


4. दादी (Karan’s Grandmother)
करण की दादी, जिन्होंने अमर की मौत के बाद करण को अपनी गोद में पाला। वह करण के लिए माँ और पिता दोनों बनीं और उसकी परवरिश में अपने मूल्यों को प्राथमिकता दी





9. गीता शर्मा

एरा की सेक्रेटरी, जो हमेशा उसके साथ खड़ी रहती है और एरा के दर्द को समझती है।

भविष्य में करन के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।








कहानी की थीम:

यह कहानी माँ-बेटे के बीच की नफरत, पछतावे और टूटे रिश्तों को जोड़ने की जद्दोजहद की है। रिश्तों की राख से एक नई शुरुआत करने की कोशिश, जहाँ हर पात्र अपनी गलतियों से सीखते हुए प्यार और माफी की ओर बढ़ता है।


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इरा एक खूबसूरत, आत्मविश्वासी और महत्वाकांक्षी महिला थी। वह अपने आकर्षक व्यक्तित्व और स्मार्ट फैसलों से हमेशा सबका ध्यान आकर्षित करती थी। उम्र के इस पड़ाव में भी, वह किसी युवा लड़की से कम नहीं लगती थी। उसकी हरी आँखें, घने काले बाल, और पतला सुंदर शरीर उसे सबकी नज़र में आकर्षक बनाते थे। इरा, जो अब अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की सीईओ के पद पर काबिज़ थी, एक समय में दुनिया के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक मानी जाती थी।

वह कंपनी की मीटिंग्स और ग्लोबल विस्तार योजनाओं की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने कर्मचारियों से संवाद करती। पर, उसके चेहरे पर एक गहरी चुप्प थी, एक ऐसा दर्द जिसे वह छुपाने की कोशिश करती थी, लेकिन कभी न कभी वह बाहर आ ही जाता था।

आज की मीटिंग में इरा ने एक नए प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए टीम को बुलाया था। उसका कार्यालय एक आलीशान और अत्याधुनिक था, जो उसकी सफलता को दिखाता था। उसके चारों ओर उसके कर्मचारी बैठकर उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। इरा की आवाज़ में एक विशेष कशिश थी, जो सभी को प्रभावित करती थी।

"हमें इस प्रोजेक्ट को अगले तीन महीनों में लांच करना है," इरा ने गंभीरता से कहा। "हमारे पास सही टीम है, और मैं जानती हूं कि हम इसे बिना किसी मुश्किल के पूरा कर सकते हैं। हर एक डिटेल को ध्यान से देखना है।"

"जी, मैम," सभी कर्मचारी सहमति में सिर हिलाते हैं।

"और ध्यान रखें," इरा ने फिर से अपनी आवाज़ को थोड़ी तीव्रता से उठाया, "हमारा उद्देश्य केवल मुनाफा नहीं है, बल्कि इस प्रोजेक्ट को समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के रूप में देखना है।"

कर्मचारी एक दूसरे को देखने लगे। इरा का नेतृत्व और दूरदृष्टि उन्हें प्रेरित करती थी, लेकिन एक बात जो सबको चौंकाती थी, वह यह थी कि इरा के भीतर एक हल्की सी उदासी छुपी रहती थी। कभी-कभी वह अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाती थी और फिर वही गहरी चुप्प उसे घेर लेती थी।

इरा का जीवन एक सुखद यात्रा नहीं था। उसकी सफलता की कुंजी उसके अंदर की इच्छाशक्ति और संघर्ष थी। एक वक्त था जब वह एक छोटे शहर की लड़की थी, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी उम्मीदों के साथ घर से निकली थी। उसने सबकुछ छोड़ा था, अपने बेटे करण को, अपने पति को, और अपने पुराने जीवन को।

"मैम, क्या सब कुछ ठीक है?" एक कर्मचारी, जिसे गीता नाम था, ने इरा से हल्के से पूछा। इरा की आँखों में एक आंसू था, जो वह तुरंत पोंछने की कोशिश करती थी, लेकिन गीता ने देख लिया।

"हाँ, गीता। सब ठीक है," इरा ने जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में वह विश्वास नहीं था, जो आमतौर पर होती थी। वह जानती थी कि गीता को उसका दर्द महसूस हो रहा था।

"अगर आपको कुछ चाहिए, तो बताइए," गीता ने समझदारी से कहा।

"नहीं, गीता। मुझे सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना है," इरा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन उसके भीतर का दर्द अब भी उसे परेशान कर रहा था।

हालाँकि इरा का बाहरी जीवन बेहद सफल था, पर उसकी निजी ज़िंदगी की स्थिति कुछ और ही थी। उसे अपने बेटे करण के बारे में बार-बार याद आता था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को छोड़ दिया था, और अब वह उसे ढूँढने की कोशिश कर रही थी। इरा को यह एहसास हो गया था कि अब वह जिस सफलता का स्वाद चख रही है, वह उसके बेटे के बिना अधूरी है।

कभी वह सोचती थी कि अगर वह उस वक्त करण को छोड़ने के बजाय उसे साथ लेकर जाती, तो उसका जीवन कितना अलग होता। लेकिन, एक गहरी चाहत थी कि वह अब सब कुछ ठीक कर ले, और वह अपने बेटे के पास वापस लौटे।

"मैम, आपको हमारे नए प्रोजेक्ट के लिए क्या उम्मीदें हैं?" एक कर्मचारी ने गंभीरता से पूछा।

"मैं उम्मीद करती हूँ कि आप लोग मेहनत करें और हर एक चुनौती का सामना करें। हमारा उद्देश्य इस प्रोजेक्ट को सफलता की ऊँचाईयों तक ले जाना है, लेकिन इसके लिए हमें सबका सहयोग चाहिए होगा," इरा ने आश्वस्त करते हुए कहा।

यह मीटिंग खत्म हो गई, लेकिन इरा के चेहरे पर गहरी चिंता थी। उसके अंदर एक ऐसी कशिश थी, जो किसी को दिखाई नहीं देती थी, लेकिन वह खुद जानती थी कि उसकी ज़िंदगी में कुछ जरूरी चीज़ें अधूरी हैं।

उसके मन में हमेशा एक सवाल रहता था - "क्या मैं अपने बेटे को फिर से पा सकूँगी?"

इरा ने अपने जीवन को साकार किया था, लेकिन वह यह जानती थी कि हर सफलता की एक कीमत होती है। और उसकी सफलता की कीमत थी, उसका बेटा। वह उसे ढूंढने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार थी, चाहे उसे अपने अतीत से जूझना पड़े या अपनी गलती को सुधारने के लिए अपनी सारी खुशियाँ छोड़नी pare


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इरा ऑफिस से घर लौटने के बाद अपने बेडरूम में आकर बिस्तर पर बैठ गई। दिन भर की व्यस्तता और जिम्मेदारियों के बाद, अब उसे अपने अकेलेपन का सामना करना था। वह गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे अपने जूते उतारती है और बिस्तर पर गिर पड़ती है। उसके मन में आज फिर वही सवाल उठता है, जो कई सालों से उसे परेशान कर रहा था – क्या उसने सही किया था? क्या वह कभी अपने बेटे को वापस पा सकेगी?

बेहद थकी हुई इरा ने अपना ध्यान बिस्तर के सामने रखे एक पुराने फ़्रेम की ओर मोड़ा। वह तस्वीर उसकी आँखों के सामने खड़ी हो गई, जिस पर उसके बेटे करण का चेहरा था। वह तस्वीर एक पुरानी याद को ताजा कर देती थी – वह दिन जब उसने उसे छोड़ दिया था, जब उसने अपना करियर बनाने के लिए उसे छोड़ दिया था। उसे याद था कि करण बहुत छोटा था उस समय, और वह बेहद नाज़ुक था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया।

इरा की आँखों में गहरी उदासी थी, और उसने धीरे से तस्वीर की ओर देखा। यह वही तस्वीर थी, जो उसने अपने बेटे के कमरे से ले ली थी। जब वह घर छोड़ने वाली थी, तब करण की छोटी सी मुस्कान और उसकी मासूमियत उसे हमेशा याद दिलाती थी। यह वही तस्वीर थी, जो वह अक्सर रात को अपने कमरे में देखती थी, जब अकेले होती थी, और अपने बेटे से बात करने की कोशिश करती थी।

इरा की आँखों में आंसू थे, जो धीरे-धीरे उसकी आँखों से बहने लगे। वह यह महसूस करती थी कि कितने सालों से वह अपनी सफलता की चादर ओढ़े हुए थी, लेकिन उसने अपनी खुशियाँ खो दी थीं। अपनी जड़ों को भूल चुकी थी, और अब वह अकेली थी।

"करण..." इरा ने धीमी आवाज में कहा। "क्या तुम मुझे माफ करोगे?" वह अपने बेटे से यह सवाल करती थी, लेकिन जवाब कभी नहीं आता था। क्या उसने अपने बेटे को छोड़कर सही किया था? क्या वह कभी उस प्यार को वापस पा सकेगी, जिसे उसने अपने बेटे से दूर रहकर खो दिया था?

इरा ने अपनी आँखों को पोंछते हुए फिर से तस्वीर की ओर देखा। "जब तुम छोटे थे, तब मैं तुम्हें हर दिन देखती थी, तुम्हारी छोटी सी मुस्कान को, तुम्हारी मासूम बातें। और अब, मैं अपनी आँखों में तुम्हारी यादों को संजोकर जी रही हूँ। क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए अब भी कोई जगह है, करण?" इरा ने अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा, उसकी आवाज में अब गहरी उदासी थी। "क्या तुम मुझे कभी अपनी माँ मान सकोगे?"

तस्वीर की ओर देखते हुए, उसकी आँखों में यह गहरी कशिश थी कि वह वापस लौट सके। वह चाहती थी कि उसे अपने बेटे से एक बार फिर वही प्यार और संबंध मिल जाए। वह चाहती थी कि उसका बेटा उसे फिर से अपने दिल से स्वीकार करे, लेकिन अब वह जानती थी कि ऐसा बहुत मुश्किल था। उसने जो गलती की थी, वह अब कभी सुधर नहीं सकती थी।

उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे, और उसका चेहरा गुस्से और पश्चाताप से भरा हुआ था। "मैं नहीं जानती कि तुम्हारा दिल मुझसे कभी मिलेगी या नहीं। लेकिन एक चीज़ मैं जानती हूँ कि मेरे दिल में तुम्हारी यादें हमेशा बनी रहेंगी।" इरा ने कहा, और उसकी आवाज में अब भी वही दुख था।

वह तस्वीर को अपने हाथों में उठाकर उसके करीब लाई और उसे अपने गालों पर रखा। "तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, करण। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकती। क्या तुम अब भी मुझे अपनी माँ के तौर पर अपनाना चाहोगे? क्या तुम्हारे दिल में वो प्यार फिर से जिंदा हो सकेगा?" इरा की आवाज में अब उम्मीद थी, लेकिन वह जानती थी कि यह उम्मीद शायद कभी पूरी नहीं होगी।

उसने तस्वीर को फिर से दीवार पर टांग दिया, लेकिन उसे महसूस हो रहा था कि इस तस्वीर के आगे वह खुद कितनी छोटी और अकेली थी। इरा जानती थी कि वह अब अपने बेटे को वापस पाने के लिए जो भी कर सकती थी, उसे करेगी। वह हर कोशिश करने के लिए तैयार थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका बेटा उसकी इस कोशिश को स्वीकार करेगा या नहीं।

"करण, मुझे तुमसे मिलने की एक आखिरी कोशिश करने का हक चाहिए," इरा ने अपनी आँखों में फिर से आशा भरते हुए कहा। "क्या तुम कभी मेरे पास आओगे, मुझे गले लगाओगे? क्या तुम मेरे लिए वह प्यार फिर से दे पाओगे?" उसकी आवाज़ अब बहुत हल्की थी, जैसे वह खुद भी अपनी उम्मीदों से टूट चुकी हो, लेकिन फिर भी अपने बेटे को पाकर उसे हर हाल में चाहती थी।

अब इरा ने खुद से वादा किया कि वह कभी हार नहीं मानेगी। चाहे जो भी हो, वह अपने बेटे को वापस पाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगी। उसकी आँखों में यह नयी उम्मीद थी।

इरा ने तस्वीर से फिर से आँखें हटाईं और खुद को समेटते हुए कहा, "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, करण, और मैं तुम्हे कभी नहीं छोड़ूंगी।"

इस समय, इरा को यह अहसास हुआ कि यह प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता। भले ही वह अपने बेटे से दूर थी, लेकिन उसका दिल हमेशा उसी के पास रहेगा।



एरा का दिल जैसे बर्फ से भी ठंडा हो गया था। वह तस्वीर में अपने बेटे को देख रही थी, और उसके अंदर का दर्द और बढ़ता जा रहा था। आँसुओं से भरी उसकी आँखें अब उसे ये समझाने की कोशिश कर रही थीं कि वह उस दर्द को महसूस करे जो उसने कभी न कभी किया था। जैसे ही एरा ने तस्वीर को फिर से देखा, उसे अपनी छोटी सी कटी-फटी यादें ताजा हो आईं। वो यादें जो उसकी आत्मा में हमेशा के लिए दर्ज हो गई थीं।

वह यादें, जब करण छोटा था, और वह अपनी माँ की गोदी में झूलते हुए अपनी प्यारी मुस्कान के साथ दुनिया से खेलता था। एरा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस छोटे से मासूम बेटे की मुस्कान को अपनी आँखों में बसाने की कोशिश की। उसे आज भी उसकी उस मुस्कान की जरुरत थी। लेकिन उसकी आँखों के सामने एक सन्नाटा था।

एरा के होंठ एक धीमी आवाज में कांपे। "करण, मुझे तुमसे बहुत प्यार था... लेकिन मैंने तुम्हें छोड़ दिया। क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगे?"

उसकी यह बात सिर्फ एक सवाल नहीं थी, बल्कि उसके दिल का एक टूटा हुआ टुकड़ा था, जिसे वह छुपा नहीं पाई। तस्वीर को देखते हुए उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे, लेकिन उसे लग रहा था कि ये आँसू अब उसे कोई राहत नहीं देंगे। उसे बस यह चाहिए था कि वह अपनी गलती का प्रायश्चित कर सके।

वह तस्वीर को अपनी आँखों से चिपकाकर देख रही थी और किसी तरह से सोच रही थी कि क्या वह कभी करण को फिर से अपनी माँ बना पाएगी? क्या वह कभी अपने बेटे का दिल फिर से जीत सकेगी? लेकिन उसके अंदर के सवालों का कोई जवाब नहीं था।

इतना ही नहीं, अचानक एरा को ऐसा महसूस हुआ कि कमरे में कुछ बदल रहा है। जैसे किसी ने उसके सामने आकर उसके साथ बातें की हो। उसे लगा जैसे करण सचमुच उसके पास हो, और उसकी आँखों में दर्द और सवाल था। "माँ, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया था?"

एरा के दिल में एक अजीब सा दर्द हुआ। उसकी हिम्मत अब टूट चुकी थी, और उसने अपने हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसका दिल जैसे चीरने वाला दर्द महसूस कर रहा था। "करण... मेरे बेटे... मुझे माफ़ कर दो। मैं जानती हूं कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है।"

उसकी आवाज़ में इतने कषट थे कि कमरे का हर कोना उसे सुन सकता था। उसकी आँखें जल चुकी थीं, और उसके चेहरे पर वो चुप्प थी जो कभी उसे समझ में नहीं आती थी।

लेकिन जैसे ही वह और रोई, उसे अचानक ऐसा लगा कि उसके सामने करण एक बार फिर खड़ा है। उसकी आँखों में वही मासूमियत और वही सवाल था। "माँ, क्या तुम मुझे फिर से अपना सकोगी?"

यह सवाल उसे अब और भी बेहोश करने वाला था। एरा अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई। "करण, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुम मेरी जिंदगी हो। मुझे माफ़ कर दो।"

उसकी आवाज में यह दर्द था, और वह चाहती थी कि वह अब कभी न रुक सके, लेकिन जैसे ही उसने पलटकर देखा, कमरे में सन्नाटा था। सब कुछ हलचल में डूबा हुआ था। और तभी उसे समझ में आया कि जो कुछ उसने महसूस किया वह सिर्फ एक सपना था। वह एक ऐसा सपना था जिसे वह खो चुकी थी।

कमरे में एक ठंडी हवा आई, जैसे वह सपना अचानक टूट चुका हो। एरा ने अपनी आँखें खोलीं, और वह यही सोचने लगी कि कहीं वह अपनी गलती के लिए कभी माफ़ी पा सकेगी या नहीं।

तभी, कमरे का दरवाजा खुला और उसकी माँ, पिता, भाई, और भाभी एक-एक करके कमरे में आए। वे एरा को देखते हुए चुपचाप खड़े थे। हर एक के चेहरे पर कुछ छिपा हुआ था। एरा ने जब उनकी आँखों में देखा, तो उसे समझ में आया कि वे सब उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे भी उस दर्द को महसूस नहीं कर पा रहे थे जो उसने खोया था।

उसका भाई, जो हमेशा उससे बात करने के लिए हिम्मत देता था, अब चुप था। उसकी आँखों में भी गहरी उदासी थी। वह बस खड़ा रहा, और उसके पास कोई शब्द नहीं थे।

एरा ने आँखों में आँसू समेटते हुए कहा, "मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि करण मुझे फिर से अपना पाएगा या नहीं?" उसकी आवाज़ अब भी कांप रही थी।

तभी उसके पिता ने धीरे से उसकी पीठ थपथपाई। "बिलकुल, एरा। समय कभी भी सजा नहीं देता। तुम जो कुछ भी कर सकती हो, करो। लेकिन तुम्हें एक बात याद रखनी होगी... कभी भी अपने फैसले के लिए खुद को दोषी मत समझो।"

एरा की आँखें एक पल के लिए और भर आईं, लेकिन उसने धीरे से उन्हें पोंछ लिया। उसे अब एक उम्मीद का नया सूरज दिखाई दे रहा था। वह जानती थी कि अब शायद वह करण से माफ़ी मांग सकेगी।

लेकिन वह जानती थी कि उसका सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। उसे अपने बेटे को खोने के बाद खुद को पाना था।

एरा अपने किए फैसलों पर पछता रही थी। वो सोच रही थी कि कैसे उसने अपनी खुशियों को छोड़कर अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। उसने अपने पति अमर और बेटे करण को छोड़कर, अपनी मां-बाप के दबाव में आकर, अमरीका आकर एक नई जिंदगी शुरू की थी। वह मानती थी कि यह निर्णय सही था, लेकिन अब उसे यह समझ में आ रहा था कि कुछ फैसले एक व्यक्ति की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देते हैं, और उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे अब भुगतना पड़ रहा था।

एरा के दिल में यह सवाल बार-बार गूंजता था कि क्या उसने सही किया था? क्या अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपने माता-पिता की बातों को न मानती तो उसकी जिंदगी अलग होती? क्या अगर वह उनके साथ रहती, तो क्या वह आज खुश होती?

एरा के मन में यह विचार घूमते रहते थे कि उसने अपने बेटे करण को क्यों छोड़ा। उस वक्त, जब वह अमर और अपने बेटे के साथ खुश थी, उसे क्यों लगा कि वह अपनी मां-बाप के पास जा सकती थी, और फिर उसके बाद क्या हुआ, वह जानती थी। उसे यह भी समझ में आ रहा था कि उस समय उसके सामने कुछ और ही दृश्य थे, जो अब उसे साफ दिखाई दे रहे थे। उसकी मां-बाप ने उसके सामने एक अलग ही दुनिया का सपना रखा था, और वह इस सपने का पीछा करते हुए अपनी असल जिंदगी और असल खुशियों को भूल गई थी।

उसे याद था कि जब उसने अमर से शादी की थी, तब वह बहुत खुश थी। दोनों ने अपने रिश्ते को समझा, उसकी नींव मजबूत थी, और उनके बीच एक प्यार था, जो बहुत गहरा था। लेकिन फिर उसके माता-पिता का दबाव बढ़ा, और वह समझ नहीं पाई कि वह किसे चुनें—अपनी फैमिली या अपने पति और बेटे को। उसके माता-पिता ने उसे यह समझाया था कि अमरीका में एक नई जिंदगी शुरू करने से वह कुछ बड़ा हासिल कर सकती है, लेकिन उसकी यह सोच एक भटकाव की तरह साबित हुई।

आज एरा जानती थी कि उसने सब कुछ छोड़कर जो फैसला लिया था, वह गलत था। जब वह अपनी दुनिया छोड़कर अमरीका आई, तो उसका दिल टूट चुका था। वह अपनी मां-बाप के साथ भी खुश नहीं थी, क्योंकि वह हमेशा यह महसूस करती थी कि उसने किसी को छोड़ दिया था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को सबसे ज्यादा दुख पहुंचाया था, और इस दर्द को वह हमेशा महसूस करती थी।

वह सोचती थी कि क्या उसने सही किया? अगर वह अमर और करण को छोड़कर अपनी मां-बाप के पास नहीं जाती, तो क्या वह आज खुश रहती? अब उसकी जिंदगी सिर्फ खालीपन से भरी हुई थी, और वह समझती थी कि इस खालीपन को भरने का कोई तरीका नहीं है।

उसे याद आया कि एक दिन उसने अमर से बात की थी, और वह उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह गलत कर रही है। अमर ने उससे कहा था, "तुम्हें हमारे साथ रहना चाहिए था, एरा। तुम्हें अपने बेटे के साथ रहना चाहिए था। तुमने अपनी खुशियों को छोड़ दिया है, और मैं जानता हूं कि तुम कभी भी अपनी गलतियों का पछतावा करोगी।"

आज एरा को यही बात महसूस हो रही थी। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे करण को खो दिया था। उसने कभी उसे खुद के पास रखा था, और आज जब वह अपने बेटे के बारे में सोचती थी, तो उसे उसकी आँखों में वह मासूमियत और प्यार दिखता था, जो वह कभी छोड़ नहीं पाई थी। वह अब कभी भी उसे वापस नहीं पा सकती थी।

उसने अपने आप से कहा, "क्या मैं कभी करण को फिर से पा सकूँगी?" यह सवाल उसका पीछा नहीं छोड़ता था, और उसने अपने मन से इसका जवाब भी ढूंढ लिया था। वह जानती थी कि जो कुछ भी हुआ, अब वह उसे बदल नहीं सकती थी, और उसके फैसले ने उसे दर्द और अकेलेपन के रास्ते पर चला दिया था।

एरा की आँखों में आँसू थे, और उसने अपने हाथों से उन आँसुओं को पोंछा। वह जानती थी कि उसने जो किया, वह अब उसे कभी वापस नहीं पा सकती थी। लेकिन फिर भी, उसके मन में उम्मीद थी कि कभी न कभी वह अपने बेटे और पति को ढूंढ पाएगी। एरा का दिल अब भी वही चाहता था, जो उसने खो दिया था—अपना परिवार।

वह महसूस करती थी कि शायद अब वह अपने फैसलों को सुधार नहीं सकती, लेकिन वह चाहती थी कि किसी तरह उसे और अमर को फिर से मिलाया जाए। उसकी आत्मा, उसकी अंतरात्मा में यह विचार था कि क्या वह कभी अपने परिवार को सही तरीके से वापस पा सकती है?



एरा अपने अतीत के हर एक पल को याद करती थी, और जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसकी सज़ा और बढ़ती गई। वह खुद से सवाल करती थी, "क्या मैंने सही किया था? क्या सच में मुझे अपने बेटे और पति को छोड़कर अपनी मां-बाप के साथ जाना चाहिए था?"

उसने कई सालों तक इस सवाल से लड़ाई की थी, लेकिन अब भी उसे इसका जवाब नहीं मिल सका था। उस दिन के बाद, जब उसने अमर और करण को छोड़ा था, उसकी जिंदगी बस एक खामोशी और पछतावे में बदल गई थी। अब वह हर रात अपने बेटे के बारे में सोचती थी, और वह सोचने लगी थी कि क्या उसकी गलती की वजह से करण की ज़िंदगी भी नष्ट हो गई थी।

कभी-कभी, उसे ऐसा लगता था कि वह अमर और करण के बिना जी नहीं सकती थी। लेकिन फिर उसके मन में एक और सवाल उठता था, क्या वह सही कर रही थी? क्या वह इस दर्द को सहन करने के लिए तैयार थी?

एरा ने अपने बेटे करण को ढूंढने के लिए बहुत मेहनत की थी। उसने कई जांच एजेंसियों से संपर्क किया था, और उन्हें अपनी पूरी ज़िंदगी का हिसाब देने के लिए तैयार थी। वह जानती थी कि उसे अपने बेटे को वापस पाना था, और इसके लिए वह कोई भी रास्ता अपनाने के लिए तैयार थी।

धीरे-धीरे, उसने कुछ ऐसे डिटेक्टिव्स को हायर किया, जो इस काम में माहिर थे। उसे उम्मीद थी कि वे उसे करण तक पहुँचाने में मदद करेंगे। डिटेक्टिव्स ने कड़ी मेहनत की, और कुछ महीनों बाद, उन्होंने एरा को एक ख़बर दी, जो उसके दिल को तोड़ने वाली थी।

"मैम," एक डिटेक्टिव ने उसे बताया, "हमने कुछ जानकारियाँ हासिल की हैं। आपके बेटे करण के बारे में पता चला है। जब आप अमेरिका गईं थीं, उसके कुछ समय बाद अमर ने ग़म में अपनी जान दे दी थी। और उसके बाद, करण को उसकी दादी ने अपने साथ ले लिया और एक छोटे से गाँव में रहने लगे।"

यह खबर सुनते ही एरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसका दिल बुरी तरह से टूट गया, और उसके अंदर की सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गईं। वह बस एक ही बात बार-बार सोचने लगी थी, "क्यों? क्यों ऐसा हुआ? क्या मैंने गलत किया?"

"मुझे माफ़ कर दो, करण," उसने अपने बेटे के बारे में सोचते हुए धीमे से कहा, "मुझे माफ़ कर दो, कि मैंने तुम्हें छोड़ दिया। मुझे पता था कि तुम अकेले हो गए थे, और फिर भी मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकी।"

एरा को अब महसूस हो रहा था कि उसने जो किया, उसका खामियाजा उसे हमेशा भुगतना होगा। वह जितना भी आगे बढ़ने की कोशिश करती थी, कुछ न कुछ उसे हमेशा उस अतीत की ओर खींच ले आता था।

"क्या तुम मुझे माफ करोगे, करण?" एरा ने अपने दिल से यह सवाल किया। "क्या तुम मुझे फिर से अपने पास आने दोगे? क्या तुम मुझे फिर से अपनी माँ के रूप में स्वीकार करोगे?"

वह बुरी तरह से रो रही थी। उसकी आँखों में वह हीन भावना और पछतावा था, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल था। वह जानती थी कि अब करण का वापस लौटना संभव नहीं था। वह जानती थी कि उसने अपने बेटे को हमेशा के लिए खो दिया था।

अब एरा को यह समझ में आ गया था कि उसने अपनी जिंदगी के सबसे बड़े फैसले को कितना गलत लिया था। वह सोचती थी, "क्या मैं अब भी अपने बेटे के पास जा सकती हूँ? क्या मेरे पास उसे वापस पाने का कोई रास्ता है?"

फिर भी, एरा की उम्मीदें और उसकी आत्मा ने उसे कभी हार मानने की अनुमति नहीं दी। वह जानती थी कि एक दिन वह अपने बेटे को ढूंढ निकालेगी। वह जानती थी कि वह अपने बेटे से मिलकर उसे वो सारी चीज़ें दे सकती थी, जो उसने उसे नहीं दी थीं।

एरा अपने आप से कहती थी, "मैं कभी हार नहीं मानूंगी। मुझे बस अपने बेटे को वापस पाना है।"

लेकिन फिर उसे याद आया कि वह कितना भी कोशिश करे, वह कभी अपनी गलतियों को नहीं बदल सकती थी। उसे महसूस हुआ कि जो कुछ भी हो चुका है, वह अब कभी भी वापस नहीं आएगा। और यही सोचते हुए, एरा के दिल में एक गहरी उदासी भर गई थी।

उसने अपने आप से यह वादा किया, "मैं अब अपनी गलती का अहसास कर रही हूँ। मुझे पता है कि मैंने क्या खो दिया है, और अब मुझे इसे ठीक करना है।"

एरा को अब यह भी समझ में आ गया था कि वह जब तक अपने बेटे से नहीं मिलेगी, तब तक वह सुकून से नहीं जी सकती थी। वह सिर्फ एक ही चीज़ चाहती थी—अपने बेटे का चेहरा देखना। उसे बस यही लगता था कि अगर वह करण को फिर से देख पाएगी, तो शायद वह अपने दर्द और पछतावे को थोड़ा कम महसूस कर पाएगी।

उसने अपने अंदर एक नई ताकत पाई थी। अब वह जानती थी कि वह अपने बेटे को ढूंढेगी, चाहे जो भी हो। और इस बार, वह उसे कभी नहीं खोने देगी।




रात का समय था। एरा अपने माता-पिता, भाई, भाभी और उनके बच्चों के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई थी। मेज पर स्वादिष्ट पकवानों की भरमार थी, पर उस रात का माहौल खाने से ज़्यादा भावनाओं से भरा हुआ था। एरा ने अपनी प्लेट में खाना तो परोसा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। उसके मन में सिर्फ़ एक ही बात घूम रही थी—करन।

विक्रम (एरा के पिता):
"तो... एरा," उन्होंने एक लंबी सांस लेते हुए बात शुरू की, "हमने तय कर लिया है कि अगले हफ्ते भारत जाएंगे।"

टेबल पर अचानक शांति छा गई। हर कोई उनके शब्दों को समझने की कोशिश कर रहा था। एरा ने धीरे से अपना सिर उठाया और अपने पिता की ओर देखा।

एरा (चौंकते हुए):
"क्या... क्या कहा आपने? हम भारत जा रहे हैं?"

विक्रम ने सिर हिलाकर हामी भरी।

विक्रम:
"हां। करन को ढूंढने के लिए।"

यह सुनते ही एरा की आंखों में आंसू छलक पड़े। वह इतनी भावुक हो गई कि बोल भी नहीं पा रही थी। उसके दिल में करन की यादें हिलोरें मारने लगीं।

संध्या (एरा की मां):
"हम सब तुम्हारे साथ हैं, बेटा। अब और विलंब नहीं करेंगे। करन को वापस लाना ही होगा।"

एरा की आंखें भर आईं। उसने अपनी मां के हाथ थाम लिए।

एरा (आवाज़ भर्राई हुई):
"मां, मैंने करन को बहुत दर्द दिया है। क्या वो मुझे कभी माफ करेगा?"

संध्या:
"वक़्त हर जख्म को भर देता है, बेटी। पर तुम्हें अपना दिल मज़बूत रखना होगा। करन तुम्हारा खून है। वो तुम्हें ज़रूर माफ करेगा।"

इस बातचीत के बीच एरा का भाई, अभिषेक, जो आमतौर पर हंसी-मज़ाक में माहिर था, गंभीर हो गया।

अभिषेक:
"दीदी, तुमने जो किया वो आसान नहीं था, लेकिन अब पीछे मुड़ने का समय नहीं है। करन को ढूंढकर ही चैन मिलेगा।"

अंजलि (अभिषेक की पत्नी):
"और हम सब तुम्हारे साथ हैं।"

एरा ने सबकी ओर देखा। वह भावनाओं के जाल में फंसी हुई थी। इतने सालों से जो बोझ उसके दिल पर था, वह अब धीरे-धीरे हल्का महसूस कर रही थी।

एरा:
"पापा, क्या आपने सारी तैयारी कर ली है?"

विक्रम:
"हां, टिकट्स और रहने का इंतज़ाम हो गया है। हमने डिटेक्टिव्स को भी निर्देश दे दिए हैं। हमें बस करन के गांव जाना है।"

अभिषेक (हल्की मुस्कान के साथ):
"और हां, तुम टेंशन मत लेना। हम वहां घूमने भी जाएंगे।"

इस पर सभी हंस पड़े, माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

एरा (थोड़ी मुस्कुराते हुए):
"अभि, तुम हमेशा मेरी टेंशन कम कर देते हो।"

अभिषेक:
"क्या करूं, दीदी? तुम्हें हंसाना मेरी ड्यूटी है।"

रात के खाने के बाद भी एरा का दिल करन की यादों में डूबा हुआ था। उसने अपने पिता के फैसले को दिल से स्वीकार कर लिया था।

एरा (अपने आप से):
"करन, मैं आ रही हूं। इस बार तुम्हें अपनी मां का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।"

उसकी आंखों में दृढ़ निश्चय की चमक थी।


करण का परिचय

करण, एरा का बेटा, जो कि अब कई सालों से अपनी दादी के साथ गाँव में रहता है, अपनी ज़िन्दगी में एक अजनबी सा मोड़ लेकर आगे बढ़ रहा था। बचपन की वो हंसी-खुशी, प्यार और ममता, जो उसे अपनी मां और पिता से मिली थी, अब उसकी यादों में धुंधली हो गई थी। वह एक इंट्रोवर्ट और सख्त दिल का लड़का बन चुका था। उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल अपनी दादी का साथ देना और अपनी छोटी सी दुकान चलाना था।

वह गाँव के चौराहे पर एक छोटी सी मैकेनिक की दुकान चलाता था। वहाँ लोग अपनी बाइक और गाड़ी की मरम्मत के लिए आते थे, और करण को देखकर लगता था जैसे वो किसी फिल्म का हीरो हो। उसकी चौड़ी कांधें, मजबूत कद, और घुंघराले बाल उसकी अलग पहचान बनाते थे। उसकी आँखें, जो हमेशा शांत और गंभीर रहती थीं, कभी भी किसी से मिलकर हंसती नहीं थीं।

करण का रूप और व्यक्तित्व

करण का चेहरा किसी आदर्श युवक जैसा था, काले बाल घुंघराले, जो उसके माथे पर हमेशा गिरे रहते थे। उसकी आँखों में गहरी नीली चमक थी, जैसे सागर की लहरें हो। उसकी मजबूत कद-काठी और चौड़े कंधे उसे और भी आकर्षक बनाते थे। जब वह गाँव की गलियों से गुजरता, तो लोग उसे दूर से पहचान लेते थे। उसकी आँखों में एक गहरी चुप सी थी, एक ऐसा ग़म जो उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।

उसकी शरीर की ताकत को देखकर लगता था कि वह किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है, लेकिन उसकी व्यक्तित्व में एक ठंडी शांति थी। वह दूसरों से मेल-मिलाप करने में बहुत ही कम रुचि दिखाता था। उसकी दुकान पर आकर लोग काम करवाते, लेकिन करण हमेशा बिना किसी से ज्यादा बात किए बस अपने काम में व्यस्त रहता था। उसकी स्थिति यही थी कि वह ज्यादा किसी से घुलता-मिलता नहीं था, और न ही कोई उसे जान पाता था।

करण का जीवन और उसकी दादी

करण का जीवन, अपनी दादी के साथ बिताने में गुजर रहा था। उसकी दादी, जो बहुत ही सख्त और समझदार महिला थी, ने उसे अपना जीवन सिखाया था। वह जब भी किसी के पास से गुजरता, उसकी आँखों में एक शांति का सा अहसास होता था, जैसे वह दुनिया से कटकर बस अपनी दादी के पास ही जीता था।

गाँव के लोग करण को जानते थे, लेकिन कोई उसे करीब से जानने की कोशिश नहीं करता था। वह हमेशा अकेला ही रहता था, अपने काम में व्यस्त और अपने दादी के साथ। उसकी दादी ने उसे इस काबिल बनाया था कि वह खुद की मदद कर सके, लेकिन करण का दिल अब भी उसके माता-पिता की यादों से भरा था। उसे यह समझने में वक्त लगा था कि उसकी मां ने उसे छोड़ दिया, और वह कभी भी अपने पिता के पास वापस नहीं जाएगा।

करण का ठंडा और चुप्पा व्यक्तित्व

उसके अंदर एक ठंडी खामोशी थी, जो उसे औरों से अलग करती थी। वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस वही करता था जो उसे करना था। उसका चुप्पापन उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुका था। गाँव के लोग कहते थे कि करण कभी किसी से बात नहीं करता, लेकिन जब भी वह अपने काम में व्यस्त होता, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक होती।

करण की दुनिया अब बस उसकी दुकान और दादी तक सीमित थी। एक दिन, जब वह अपनी दुकान पर बैठा था और किसी ग्राहक की गाड़ी की मरम्मत कर रहा था, तभी एक बच्चा आया और उसने पूछा,
बच्चा: "भैया, आप इतने अच्छे क्यों हो?"
करण ने सिर उठाया, लेकिन कुछ नहीं बोला। उसने बस हल्की सी मुस्कान के साथ काम करना जारी रखा।

इस छोटी सी घटना ने उसके चुप रहने के कारणों को और भी गहरा कर दिया था। करण का दिल बहुत बड़ा था, लेकिन वह उसे किसी से साझा नहीं करना चाहता था। वह अपने अंदर के जख्मों को दबाए हुए था, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।



हालाँकि, वह अपने जीवन में खुश था, लेकिन उसकी यादों में एक खालीपन था, जो कभी पूरा नहीं हो सका। वह नहीं जानता था कि उसकी मां एरा कभी उसे ढूंढने आई थी। एरा ने कभी उससे मिलने की कोशिश नहीं की, और अब वह यही सोचता था कि शायद वह कभी अपनी मां से मिल भी नहीं पाएगा। उसकी दुनिया में सिर्फ उसकी दादी थी, और वह बस अपनी दिनचर्या में खोया रहता था।

लेकिन एक दिन, उसके जीवन में बदलाव आ सकता था, जब उसकी माँ एरा, भारत लौटने का निश्चय करेगी।



गाँव में रहते हुए, करण की दुकान के आसपास कुछ खास लड़कियाँ थीं, जिनकी आँखों में हमेशा एक अलग सा आकर्षण और आँख मिचौली करने का अंदाज़ था। वे गाँव के चौराहे पर आतीं और एक-दूसरे से बातें करतीं, कभी हँसते हुए, कभी शरारत से। उनके बीच करण का नाम हमेशा ही चर्चा का विषय रहता था। कोई भी लड़की जब भी अपनी सहेलियों के साथ वहाँ से गुजरती, तो उसकी नज़रें स्वाभाविक रूप से करण पर ही होतीं।

सपने, शरारतें और छोटी-छोटी चहक—इन सबमें करण की छवि कहीं न कहीं सबसे पहले आ जाती थी। उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखें और घुंघराले बाल जैसे उन लड़कियों के दिलों में हलचल पैदा कर देते थे। वे हमेशा से ही करण के इर्द-गिर्द अपना ध्यान बनाए रखतीं। कभी कभार, वे दुकान के पास से गुज़रते हुए जान-बूझकर आवाज़ में कुछ कह देतीं, ताकि करण उनकी तरफ देखे। उनका दिल उसी पल धड़क उठता था, जैसे ही करण की आँखें उन पर पड़ती थीं।

"किसी दिन तो करण भैया को देखना है ना!"
"तुम्हें क्या लगता है, आज वह फिर हमें देखेगा?"
"मुझे तो लगता है कि वो जानबूझकर ध्यान नहीं देता।"

ऐसी ही चहकती आवाज़ें दिनभर गाँव के चौराहे के आस-पास गूंजती रहतीं। लड़कियाँ हमेशा एक-दूसरे से करण के बारे में बात करतीं, उसकी कद-काठी, उसकी आँखों की चमक, उसकी मुस्कान—सभी कुछ उन्हे खास ही लगता था। कभी कभी, एक लड़की किसी तरह की टिपण्णी करती,
"देखो, इस बार तो करण ने हमें ध्यान से देखा, लगता है वो मुझसे कुछ कहने वाला है।"

और फिर उसकी सहेलियाँ मजाक में कह देतीं, "पागल! वो कभी किसी से बात नहीं करता, छोड़ो! खुद को धोखा दे रही हो।"
लेकिन फिर भी वह लड़की अपनी बात पर अड़ी रहती।

"क्या तुमने देखा, उसकी आँखें कितनी गहरी हैं, जैसे उसमें दुनिया की सारी कहानियाँ समाई हुई हों।"

ऐसे ही छोटे-छोटे वार्तालापों में करण का नाम हमेशा आता रहता। लड़कियाँ उसे लेकर चहकतीं, कभी बग़ैर उसकी तरफ देखे, कभी बिना किसी उद्देश्य के दुकान के पास से गुजरतीं। उनका उद्देश्य सिर्फ करण की आँखों का सामना करना था।

एक दिन की बात है, जब गाँव में मेला लगा था। सभी लड़कियाँ जश्न में शामिल होने के लिए तैयार हो रही थीं। कुछ लड़कियाँ गाने की तैयारी कर रही थीं, कुछ सज-धज कर मेला देखने जा रही थीं, और कुछ ने तो करण को देखने के लिए खास कोशिश की थी। वे जानती थीं कि करण उस दिन भी अपनी दुकान पर बैठा होगा। उनका मन चाहता था कि करण के पास जाकर कुछ बातें करें।

"चलो, आज मैं जाकर करण से बात करती हूँ!" एक लड़की ने साहस जुटाते हुए कहा।
"क्या तुम पागल हो? वो तो हमारी तरफ देखता भी नहीं।" दूसरी लड़की ने चुटकी ली।
"नहीं, देखना! आज तो मैं उसे ज़रूर पकड़ लूंगी!"

आखिरकार, लड़की ने अपनी सहेलियों की बातों को नजरअंदाज करते हुए दुकान की तरफ कदम बढ़ाया। उसके साथ उसकी दूसरी सहेली भी चल पड़ी, और दोनों करण की दुकान के पास पहुँच गईं। करण उस वक्त अपनी दुकान पर ही खड़ा था, किसी बाइक के इंजन को ठीक कर रहा था। लड़कियाँ दूर से उसे देख रही थीं, लेकिन उनमें से एक लड़की ने हिम्मत जुटाते हुए पास जाकर करण से कहा,
"क्या आप मेरी बाइक ठीक कर सकते हैं?"

करण ने उसे देखा, फिर बिना कुछ कहे, सिर झुकाकर बाइक को देखा। लड़कियों की दिल की धड़कन बढ़ गई थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब करण उनसे कुछ बात करेगा। लेकिन करण ने अपनी आँखों को नीचे किया और काम पर ध्यान केंद्रित किया।

"इसकी चाबी दो। मैं देखता हूँ।" करण की आवाज़ में वही ठंडक थी, जो हमेशा रहती थी।

लड़कियाँ थोड़ी मायूस हो गईं, लेकिन फिर भी उनके दिल में ख़ुशी थी, क्योंकि करण ने कम से कम उनसे बात की। वे अपनी चहकते हुए एक-दूसरे से बातें करने लगीं,
"देखा! करण भाई ने हमसे बात की! अब देखो, अगले दिन से हम और भी आसानी से मिल पाएंगे!"

"तुम सही कह रही हो, आज तो वह बहुत शांत लग रहा था। शायद हमें फिर से कोशिश करनी चाहिए।"

वहाँ पर थोड़ी देर और खड़ी रहने के बाद, लड़कियाँ मुस्कुराती हुई चली गईं, लेकिन उनके मन में करण के प्रति एक अजीब सी दीवानगी थी। वे सब एक-दूसरे से कह रही थीं,
"अगर कभी वो हमारी तरफ ध्यान दे, तो हम उसे क्या कहेंगे?"
"मैं तो बस ये कहना चाहूंगी, 'हाय! करण भाई!' और फिर देखते हैं क्या होता
है।"

"मुझे लगता है, करण को हमारी तरह से भी कुछ समझ में आता है। हम फिर से कोशिश करेंगे।"

गाँव में करण को लेकर ये चहक हमेशा बनी रहती थी।

गाँव में एक मेला लग रहा था, और लोग दूर-दूर से इस मेले का हिस्सा बनने के लिए आ रहे थे। वहाँ हर तरफ रौनक थी – रंग-बिरंगे झूले, स्टॉल्स, हंसी-खुशियाँ, और बच्चे खुशियों से झूम रहे थे। लेकिन करण के लिए यह सब कुछ भी मायने नहीं रखता था। वह अपने दो दोस्तों के साथ मेले में आया था, लेकिन उसका ध्यान किसी और चीज़ पर था। उसकी दादी ने उसे जबर्दस्ती मेले में ले जाने की जिद की थी, और अब वह वहाँ खड़ा था, अपने दोस्तों के साथ, जहाँ लड़कियाँ लगातार उसकी तरफ देख रही थीं और कुछ न कुछ बोलने की कोशिश कर रही थीं।

लड़कियाँ उसे देखतीं और उसकी ओर आकर्षित होतीं, लेकिन करण की आँखों में एक गहरी उदासी थी। वह जानता था कि वह इन चीज़ों से दूर रहकर अपनी दुनिया में शांत रहना चाहता था। वह जानता था कि लड़कियाँ उसे आकर्षक समझती थीं, लेकिन वह कभी किसी के साथ अपने दिल की बात नहीं करना चाहता था। उसकी खामोशी में गहरे राज छुपे थे, जो उसने कभी किसी को नहीं बताए थे।

करण और उसके दोस्त

करण के साथ दो और दोस्त थे – अली और मोहन। अली थोड़ा चुलबुला था, और हमेशा किसी न किसी लड़की के साथ बातें करने की कोशिश करता था। वहीं मोहन शांत और विचारशील था, ठीक करण जैसा, लेकिन वह थोड़ी ज्यादा हिम्मत दिखाता था। तीनों दोस्त एक साथ खड़े थे, लेकिन करण का मन कहीं और था।

अली ने देखा कि करण किसी लड़की से बात करने की बजाय, अपने दोस्तों से बातचीत में ज्यादा ध्यान दे रहा था, तो उसने मजाक किया,
"करण, यार, तू तो जैसे लड़की के नाम से डरता है, लड़कियाँ तेरे पास आकर लाइन मारती हैं, और तू उनसे दूर भागता है।" अली ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

करण ने सिर झुका लिया और बस हल्का सा मुस्कुराया। वह जानता था कि अली मजाक कर रहा है, लेकिन वह इस तरह की बातें कभी नहीं समझ पाता था। मोहन ने बीच में आते हुए कहा,
"तुम दोनों ही लड़की के बारे में कुछ नहीं समझते।"

अली और करण दोनों ही मोहन की तरफ देखने लगे। मोहन थोड़ा गंभीर हो गया और बोला,
"लड़कियाँ कोई खिलौना नहीं होतीं, जिन्हें हम अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल करें। वे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन यह सब केवल तभी सही होता है, जब हम किसी को सच में प्यार करते हैं।"

अली थोड़ा चौंकते हुए बोला,
"क्या बात कर रहे हो तुम? तुम तो हमेशा कहते हो कि लड़की के साथ टाइम पास करो, जब तक मस्ती कर सको। अब क्या हो गया?"

मोहन ने गहरी साँस ली और जवाब दिया,
"देखो, अली, मैं तुमसे ज्यादा बड़ा नहीं हूँ, लेकिन मेरी सोच में एक फर्क है। प्यार सिर्फ एक आकर्षण नहीं होता। यह एक गहरी भावना है, जो कभी भी किसी के साथ गलत नहीं होनी चाहिए। जब तुम किसी को दिल से चाहो, तो तुम्हें सिर्फ उसे ही चाहना चाहिए, न कि अपने फायदे के लिए।"

करण, जो अब तक खामोश था, अपने दोस्तों की बातों को सुनते हुए धीरे से बोला,
"तुम दोनों कुछ भी समझ नहीं पा रहे हो। लड़कियाँ अपनी चाहत नहीं दिखातीं, वे जो महसूस करती हैं, वही कहती हैं। लेकिन प्यार सिर्फ कहने की बात नहीं है। यह तब होता है, जब हम किसी के साथ अपने दर्द और खुशी को साझा करने के लिए तैयार होते हैं। मैं जानता हूँ कि इस वक़्त लड़कियाँ मेरे पास आकर बात करती हैं, लेकिन क्या फर्क पड़ता है? क्या मेरी चुप्पी से किसी का दिल टूटता है?"

अली और मोहन दोनों चुप हो गए। वे समझ गए कि करण की खामोशी में कुछ गहरी बातें थीं, जो उसने अभी तक किसी से नहीं साझा की थीं। अली ने सिर झुका लिया और धीरे से कहा,
"मुझे तो ऐसा लगता है कि तुम बस डरते हो, करण। डरते हो ये सोचने से कि अगर तुम किसी से अपने दिल की बात करोगे, तो वह तुम्हारे जैसा नहीं होगा।"

करण की आँखों में गहरी उदासी छा गई। वह जानता था कि उसके दोस्तों को वह महसूस नहीं करवा सकता था, जो वह महसूस कर रहा था। वह जानता था कि उसकी खामोशी एक रक्षा कवच है, जो उसे अपनी भावनाओं से दूर रखता है।

"ये सब बातें आसान नहीं हैं, अली।" करण ने कहा, "तुम नहीं समझ पाओगे। जब तुम किसी से प्यार करते हो, तो वह प्यार तुम्हें पूरे दिल से चाहिए होता है। और जब तुम्हारे पास वह नहीं होता, तो तुम बस खामोशी में डूब जाते हो, जैसे मैं डूबता हूँ। यह सिर्फ एक भावना नहीं होती, यह एक असलियत होती है, जो हमें चुप रहने पर मजबूर करती है।"

मोहन ने सिर झुका लिया और कहा,
"तुम सही कह रहे हो, करण। प्यार सिर्फ दिल से नहीं, बल्कि समझ से भी होता है। जब तक तुम किसी को समझने की कोशिश नहीं करोगे, तब तक तुम कभी भी पूरी तरह से उस व्यक्ति से प्यार नहीं कर पाओगे।"

अली चुप हो गया और अपनी सोच में खो गया। वह जानता था कि करण की चुप्पी में बहुत कुछ छिपा था, जो उसने कभी खुद महसूस नहीं किया था।

अचानक, मेले में कुछ हंसी की आवाज़ें आईं। लड़कियाँ फिर से करण के पास आईं, लेकिन इस बार वह बिना किसी झिझक के अपनी बातचीत में शामिल होने का इरादा रखते हुए, उसे चिढ़ाने लगीं।

"देखो, करण! तुम तो हमेशा खामोश रहते हो, क्या तुम्हारा दिल नहीं चाहता कि तुम हमसे बात करो?" एक लड़की ने चिढ़ाते हुए पूछा।

करण ने सिर झुका लिया, फिर एक हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आप लोग अच्छे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि मेरी दुनिया में और भी बहुत कुछ है, जो मुझे समझने की जरूरत है।"

यह सुनकर लड़कियाँ थोड़ी चौंकीं, लेकिन फिर भी वे उसी तरह से उसके आस-पास घूमने लगीं। करण अब भी अपनी दुनिया में खोया हुआ था, जो कभी भी किसी के लिए नहीं खुलती थी।

बातचीत खत्म हुई, और तीनों दोस्त फिर से अपने रास्ते पर बढ़ गए। करण जानता था कि इस सबका कोई मतलब नहीं था, क्योंकि उसके लिए प्यार और रिश्ते हमेशा कुछ गहरे थे, जो उसने कभी किसी से नहीं कहा था।

अंत में, करण की खामोशी ही उसकी ताकत थी, और लड़कियाँ चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वह हमेशा अपनी दुनिया में ही रहकर अपने दिल की बातों को सितारों के बीच खो देता था।


Karan मेले से सीधा अपने पापा की कब्र पर गया। रात का समय था, आसमान में घने बादल थे, और हवा में ठंडक बढ़ रही थी। चाँद की रोशनी भी दब सी गई थी, और आसपास का वातावरण शांति में डूबा हुआ था। केवल दूर कहीं कुछ आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन यहाँ सब कुछ शांत था, जैसे दुनिया के बाकी हिस्से से यह जगह एकदम अलग हो।

क़ब्र के पास पहुँचते ही, Karan ने अपनी आँखें बंद की और गहरी सांस ली। उस क़ब्र के पास उसकी पूरी ज़िंदगी की अनकही बातें, वह सारी यादें थीं जो उसने कभी किसी से नहीं बाँटी थीं। क़ब्र के सामने खड़े होकर, Karan ने धीरे से अपना सिर झुका लिया और बोला,

“पापा, तुमसे कुछ बातें करनी हैं। बहुत दिन हो गए, तुमसे कुछ भी कहे बिना। आज बहुत समय बाद लगता है कि शायद तुम मुझे सुन सकोगे।“

Karan के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी, आँखों में कुछ बुझी सी लाली थी। उसके लिए यह एक सामान्य दिन नहीं था, बल्कि वह अपने पिता के सामने खड़ा होकर उन सवालों का जवाब ढूंढ रहा था, जो उसने कभी खुद से पूछे थे।

“पापा, तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया। मुझे कभी समझ नहीं आया कि तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया। क्या तुम्हें कभी मेरा ध्यान नहीं आया? क्या तुमने कभी सोचा कि मेरे बिना तुम्हारे बिना मैं क्या करूँगा?”

Karan की आवाज़ में दर्द और गुस्सा था, लेकिन उसका दिल टूटकर भी शांत था। वह अपनी सारी बातें अब अपने पापा से कह रहा था, जैसे यह एक आखिरी मौका था।

“तुम्हें याद है, पापा, जब मैं छोटा था, तब हम दोनों कितने खुश रहते थे। तुम्हारी बाहों में छिपकर मैं दुनिया से लड़ने का साहस पाता था। लेकिन जब तुम मुझे छोड़ गए, तो सब कुछ बदल गया। मैं अकेला हो गया। क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं तुम्हारे बिना टूट गया था? क्या तुम नहीं जानते थे कि मुझे किस हद तक तुम्हारी ज़रूरत थी? कभी सोचो, पापा, मैं तो तुम्हारे बिना जी ही नहीं सका।”

Karan ने एक गहरी सांस ली, और फिर आँखें बंद कर लीं। उसे जैसे अपने पापा के साथ बिताए गए वक्त की यादें फिर से ताज़ा हो रही थीं। उसने सिर झुका लिया, और धीरे से बोला,

“मैंने कभी भी किसी से अपने दिल की बात नहीं की। सब मुझसे डरते थे, सब मुझसे दूर रहते थे। क्या तुम नहीं जानते थे, पापा, मुझे प्यार की दरकार थी, मगर मुझे कभी किसी से सच्चा प्यार नहीं मिला। मेरे दिल में हमेशा एक कमी सी थी, और अब तक वो कमी पूरी नहीं हुई। तुम ही तो थे, जिनसे मैं प्यार करना चाहता था, मगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, और मैं अकेला रह गया।”

क़ब्र के पास खड़े होकर Karan ने कई बातें की, कुछ अपने मन की, कुछ उन सवालों की जो वह कभी खुद से नहीं पूछ सकता था। उसने कहा,

“क्या तुम जानते हो पापा, कि मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुमसे दूर जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी की दिशा ही बदल गई। मुझे आज भी लगता है कि अगर तुम होते, तो मेरी ज़िंदगी में वो सब होता जो मैं आज तक चाह रहा था। क्या तुमने कभी सोचा कि अगर तुम मुझे छोड़कर चले गए, तो मेरे साथ क्या हुआ होगा?”

Karan की आवाज़ में गहरी उदासी थी, जैसे वह किसी गहरे अंधकार में खो गया हो। वह अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शब्द उसके पास नहीं थे। उसके लिए शब्दों से ज्यादा ज़रूरी था अपनी आँखों से उन दर्द भरे पलो को महसूस करना, जो वह बहुत पहले अपनी मां के बिना जी चुका था।

“पापा, तुमने हमेशा मुझे ताकत दी थी, और आज मैं खुद को टूटता हुआ महसूस कर रहा हूँ। मुझे अब यह समझ में आ गया है कि तुम्हारी मुझसे दूर जाने के बाद, मुझे वह ताकत खुद से ढूँढनी पड़ी। तुमसे दूर जाने के बाद मैंने जो संघर्ष किए, वह कभी खत्म नहीं हुए। तुम्हारा प्यार और आशीर्वाद मुझे कभी भी समझ में नहीं आया, और अब तक मैंने किसी से वह प्यार नहीं पाया, जो मुझे तुमसे चाहिए था। क्या तुम नहीं जानते थे कि तुम्हारे बिना मैं ज़िंदगी को सही से समझ नहीं पा रहा था?”

क़ब्र के पास खड़ा Karan अब रोने लगा था। उसकी आँखों में आँसू थे, जो अब तक उसने किसी से नहीं दिखाए थे। उसकी पूरी ज़िंदगी एक सवाल बनकर रह गई थी, और वह किसी से उन सवालों का जवाब नहीं पा सका था।

“पापा, तुम्हें याद है कि तुम मुझे हमेशा कहते थे कि लड़ाई और संघर्ष से कभी मत भागो। आज भी मैं उसी रास्ते पर हूँ, उसी संघर्ष में हूँ। लेकिन आज तक मुझे यह समझ में नहीं आया कि तुम मुझे क्यों छोड़ गए। क्या तुमने कभी सोचा था कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मैं कैसे जी पाऊँगा? तुमसे मिले हुए वो प्यार भरे पल अब भी मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। जब भी मैं किसी मुश्किल में फंसता हूँ, तब मुझे लगता है कि तुम मेरे पास हो, लेकिन जब मैं देखता हूँ कि तुम नहीं हो, तो फिर से टूट जाता हूँ। तुमसे प्यार करने की इच्‍छा कभी खत्म नहीं होती, पापा।“

Karan फिर से अपनी पूरी ताकत से बोलने लगा,

“तुमसे मिली हुई वो सारी यादें, वो बातें, वे लम्हे, सब कुछ मेरे भीतर हैं। मुझे लगता है कि तुम अभी भी कहीं पास हो, सिर्फ मुझे समझने के लिए नहीं आए। काश, तुम मुझे समझ पाते कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी, पापा। काश तुम मुझे कभी न छोड़ते।”

Karan अब धीरे-धीरे खड़ा होने लगा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। उसने सिर उठाकर एक आखिरी बार क़ब्र को देखा और फिर अपना चेहरा फिर से झुका लिया।

“पापा, शायद मैं अब समझ चुका हूँ कि तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे खुद को ढूँढना होगा। शायद यही वह रास्ता है, जो मुझे खुद से और तुम्हारे प्यार से जोड़ता है। शायद अब मुझे उस प्यार को अपने भीतर तलाशना होगा, जो तुमने मुझे कभी दिया था। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता, और शायद यही वह प्यार है, जो मुझे आगे बढ़ने के लिए ताकत देता है।”

क़ब्र के पास खड़ा Karan एक गहरी साँस लेकर वापस मुड़ने लगा। उसकी आँखों में अब भी आँसू थे, लेकिन उसका दिल थोड़ी रा
हत महसूस कर रहा था। शायद अब वह अपने पापा के बिना भी अपनी ज़िंदगी को समझने में सक्षम था।




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भाई कहानी का टॉपिक और शुरुआत दोनों अच्छी हैं। सबसे अच्छा तो ये है कि कहानी पूरी लिखने के बाद पोस्ट कर रहे हो
लेकिन
मुझे ये नहीं समझ आया कि
1- करन के पिता अमर की कब्र क्यों है, क्या किसी पाकिस्तानी कहानी को कॉपी करके एडिट कर रहे हो
2- इरा को अपने पति को छोड़ने और फिर उसकी मृत्यु का कोई पछतावा क्यों नहीं सिर्फ बेटे को याद करती है
सोचना.....
 
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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Who is the main character, what is the use of Aryan, story seems disoriented, narration aisa ki every character is going to fuck Irabati.
Arjun and Aryan ,why these characters added.

Sabhi bhai log ko ye bata du ye writer frod hai iski pahli story wo to hai albela hai.... Ye story complete nahi hue hai wo bich me story chod ke bhaag gaya tha or ek sonak naam ka membar bhi mila hua hai uske saath ... Ye writer hamantstar111 hi hai ......

I think bhai aap tarak mehta ka ulta chasma bhot dekhta ho jo ki story me bas sara character achi achi baatein kar raha hai bus pure gaon ko bas karan ki fikra hai jo ki ak machanic hai aur yha irawati ko itna understand nahi ho raha ki jab uske maa baap apne matlab ka liya uska ghar barbad kar sakta hai to aga bhi asa kar sakta hai but bhai aap ki khani bilkul boring aur unrealistic hai
आप लोगों की राय से सहमत हूं मैं
Agree
 
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Rudra Roy

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Bhai agar tum real hamanstar ho to bata du j really really like your story even tho jo complete nahi huyi. Achha laga ke wapas aye.....or agar nahi ho to Kam se Kam uski tarah likhna jaise wo likhta tha....👍
 
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