mahadev31
Active Member
- 1,207
- 3,361
- 144
me kahani pe comment karta hu writer pe nahi kisi bhi baat ka bura mat maanana ....
Thanks friend for reading and supporting ?kahani achchi hai .... par kabhi amar to kabhi ajay likhte ho ,thoda confusion ho jaata hai ... suspense kahani padhne me bahut maja aata hai ,aage ki kahani ka intejar .
Thanks Mahadev Ji for your review....par amar shweta ke ghar kyu gaya tha aur wahi uska murder ho gaya.... shadi me bhi hero par humla koi bahut badi saajish ho sakti hai .... amar ki maa paise kharch karne ko taiyar hai ye bhi sahi hai ab beta hi nahi raha to paiso ka kya karegi .... par itne gambhir mahaul me char dham ki yaatra jaruri hai kya .
Nahi nahi... maine kal hi yaha likha hai..aap sabhi apna review bina sankoch ke kare.me kahani pe comment karta hu writer pe nahi kisi bhi baat ka bura mat maanana ....
Superb update" वो शुरू से ही ऐसे थे । ज्यादा किसी से मतलब नहीं । अपने में ही खोया रहना " - चाची अपने शादी के समय को याद करते हुए बोली -" कालेज में खेलकूद में बहुत माहिर थे और खेलकूद के चलते ही नौकरी भी मिली थी । उन्होंने कई प्रतियोगिताएं भी जीती थी । मेरे मां बाप ने सरकारी नौकरी वाला लड़का देखा और फिर हमारी शादी हो गई । हमारे जमाने में लड़का लड़की देखने का रिवाज नहीं था । मां बाप अपने लड़के और लड़कियों की शादी फिक्स करते थे और शादी हो जाती थी ।"
" और यदि किसी को लड़का या किसी को लड़की पसंद ना आए तो ?"
" तो भी कुछ नहीं हो सकता था । एक बार शादी हो गई तो हो गई । भले ही लड़का या लड़की एक दुसरे को पसंद आए या ना आए , वे जिन्दगी भर के लिए शादी के डोर से बंध जाते थे । तुम्हारे मम्मी और डैडी की शादी भी तो बिना देखे हुए ही हुई थी ।"
" डैड को तो मैंने माॅम के सामने कभी तेज आवाज में बातें करते या लड़ते झगड़ते नहीं देखा है लेकिन तात श्री को कई बार आपसे लड़ते झगड़ते देखा है । उनके खौफ से श्वेता दी भी उनके सामने नहीं जाती थी । मेरे पुछने का मतलब था कि क्या जब आप की शादी हुई थी तब भी क्या वो ऐसे ही थे ?"
" नहीं नहीं , शादी के शुरुआती कई सालों तक बहुत अच्छे थे लेकिन जब से उन्हें हार्ट की बिमारी हुई तब से थोड़े बदल गये और बची खुची बवासीर के रोग ने कर दिया ।"
" बवासीर ! ये कब हुआ ?"
" छः सात साल हो गए " - चाची अपने कमरे की तरफ जाती हुई बोली -" तु बैठ । मैं पैसे लेकर आती हूं ।"
मैं सोफे पर लेट गया।
थोड़ी देर में चाची आई और सोफे पर मेरे सर के बगल बैठने का प्रयास करी। मेरे लेटने के कारण सोफे पर जगह नहीं था इसलिए मैने उठने का प्रयत्न किया तो चाची ने मेरे सर को उठा कर अपने गोद यानी जांघों पर रख दिया और बोली - " लेटा रह । मैं बैठ जाऊंगी ।"
" आपको बैठने में दिक्कत होगी " - मैंने लेटे हुए उनको देखते हुए कहा ।
" कोई दिक्कत नहीं होगी " - कहकर चाची रूपए मेरे हाथ में पकड़ाई और मेरे सर के बालों को अपनी उंगलिया से सहलाने लगी ।
मैंने अपने सर को उनके मोटे और मांशल जांघों पर एडजस्ट करते हुए रूपए गिनने लगा । बीस हजार रुपए थे ।
" ये तो बहुत ज्यादा है । कौन सी मोबाइल लाना है ?" - कहते हुए रूपयों को अपने पैंट के अंदर रख दिया ।
" कोई भी अच्छी सी देख समझ के ले लेना ।"
" ठीक है । लेकिन चाइनीज मोबाइल नहीं लाऊंगा ।"
" जो तुझे समझ में आए वो ले लेना । "
चाची के जांघों पर सर रखकर लेटने से उनके जांघों का गुदाज पन महसूस हो रहा था जिससे मुझे कुछ कुछ हो रहा था । मैंने करवट ली और उनके पेट की तरफ मुंह करके लेट गया । उनकी साड़ी पेट पर से हट गई थी जिससे उनकी थोड़ी चर्बी युक्त और थोड़ी फुली हुई पेट नग्न हो गई थी । करवट ले कर पलटने से मेरा मुंह सीधे उनके नंगे पेट से सट गया । जिससे उनके बदन में हुई सिहरन को मैंने साफ महसूस किया ।
वो अभी भी मेरे सर के बालों को सहलाए जा रही थी । चाची अभी मात्र ४३ या ४४ साल की थी । इस उम्र में भी औरतों की सेक्स लाइफ पिक पीरियड में रहती है । जबकि चाचा की बिमारी देख कर मुझे नहीं लगता था कि वो अपनी सेक्स लाइफ इन्जवाय कर रही होगी। और शायद कई सालों से ऐसी ही जीवन जी रही होगी ।मुझे उन पर ना जाने क्यों बहुत दया आई और मैंने उनकी नंगे पेट को अपने होंठों से चुम लिया ।
" अरे ! क्या करता है , गुदगुदी होती है " - चाची अपने शरीर को झटके देते हुए बोली ।
" आप को अच्छा नहीं लगता है ? " - कहते हुए मैंने फिर से उनके पेट को चुम लिया ।
वो कुछ नहीं बोली । सिर्फ मेरे बालों पर उंगलियां फेरती रही । हम ऐसे ही अवस्था में कितनी देर तक पड़े रहे । तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी ।
मैं उठ कर बैठ गया । चाची अपने साड़ी को व्यवस्थित करते हुए दरवाजा खोलने चली गई ।
चाची के साथ चाचा ने हाॅल में प्रवेश किया ।
" तुम अभी यहीं हो , कालेज गए नहीं ? " - चाचा ने मुझे देख कर अपनी चिर-परिचित लहजे में कहा ।
" आज कालेज नहीं है । कल श्वेता दी और जीजू यहां शिफ्ट हो रहे हैं उसी के बारे में चाची से बातें चल रही थी ।"
" अच्छा ! थोड़ी देर पहले तो किसी के डाइवोर्स के बारे में बोल रहे थे ।"
" हां । उसके अलावा इसके बारे में भी बातें करनी थी ।"
" ठीक है ठीक है...मुझे भी पता है कि वो लोग ..यहां तुम्हारे उस दोस्त... क्या नाम था उसका.... हां , शायद अमर के घर शिफ्ट हो रहे हैं । तो इस के लिए तुम दोनों को क्या बातें करनी थी ?
" चाचा , वो लोग यहां काफी सारे सामान के साथ शिफ्ट कर रहे हैं । क्या आप ने कोई लेबर वगैरह से बात की है ? इतना सारा सामान जिसमें बड़े बड़े पलंग , आलमारी , बक्से , बर्तनों का कार्टून , बैग और न जाने क्या क्या सामान होगा , वो क्या आप खुद ही करोगे ।"
तात श्री ने मुझे घूर कर देखा और चाची से बोले -" मेरी मोबाइल यहां छुट गया है , देखो वो मेरे रूम में कहीं होगा ।"
चाची कमरे में चली गई । कुछ देर बाद वो चाचा का मोबाइल लिए हुए आई और उन्हें सौंप दी । चाचा मोबाइल लेकर बाहर चले गए ।
" तुमने मुझे ये सब बताया नहीं कि मजदूर देखने होंगे " - चाचा के बाहर निकलते ही चाची ने पूछा ।
" आप चिंता मत करो , मैंने लेबर पहले ही ठीक कर दिया है ।"
" ओह । " - चाची ने थोड़ी देर रूक कर कहा -" देखा न कैसा आदमी है... जहां काम दिखाई दिया , फट से ज़बान बन्द हो गई। कैसे लेबर जुगाड़ होगा... कैसे राजीव और श्वेता को यहां शिफ्ट करने में मदद करना है....उन को तो जैसे कोई मतलब नहीं है...सुना और भाग खड़े हुए ।"
" आप तो उनका स्वभाव जानती हो... छोड़ो उनको... मैं सब कर लुंगा " - मैंने चाची को आश्वासन दिया ।
" हां , कई साल हो गए उनको जानते हुए । अगर तु नहीं होता तो मेरे घर का एक रत्ती भर भी काम नहीं होता....मेरा काम , श्वेता का काम , राहुल का काम.... आज तक तुने ही तो किया है ।"
" मैंने तो जो भी किया है अपनी फेमिली के लिए किया है... छोड़ो वो सब । मैं चलता हूं " - कहकर मैं दरवाजे की ओर बढ़ा ।
" कहां जाओगे ?" - चाची भी मेरे साथ चलते हुए बोली ।
" अमर की मम्मी के पास । वहां रूम वगैरह की सफाई भी तो करवानी है ।"
" ठीक है " - चाची ने कहा ।
***********
मैं वहां से निकल कर अजय की मम्मी के घर चला गया ।
वहां मजदूर उपर वाले तल्ले की साफ सफाई कर रहे थे । आंटी ( अमर की मम्मी ) मजदूरों के साथ ही खड़ी थी ।
मैंने आंटी के चरण स्पर्श कर प्रणाम किया और कहा -" आंटी , एक बार नीचे चलो न , कुछ बात करनी थी ।"
" कैसी बातें ?" - आंटी ने मुझे सवालिए दृष्टि से देखते हुए कहा ।
" अमर के बारे में ।"
आंटी कुछ नहीं बोली ।
मैं आंटी के साथ उनके कमरे में आ गया ।
" क्या बात करनी है ? - वो बिस्तर पर बैठते हुए बोली ।
" आंटी , अमर का मोबाइल कहां है ?" - मैं भी उनके बगल में बैठते हुए कहा ।
" अमर का मोबाइल यहां पर नहीं है । पुलिस भी जब यहां आई थी तब उन्होंने भी मोबाइल के बारे में पुछा था । फिर उन्होंने पुरे घर की तलाशी ली थी । उपर नीचे दोनों तल्लों में । हर जगह लेकिन मोबाइल कहीं भी नहीं मिली ।"
" ओह ! " - मैंने निराश होते हुए कहा ।
" वैसे अमर के क़ातिल का कुछ अता पता लगा ?"
" नहीं आंटी , अभी तक तो नहीं । इसीलिए तो मोबाइल के बारे में आप से पुछ रहा था । उसके काॅल डिटेल से पता चलता कि उसने उस दिन या पिछले कुछ दिनों से किस किस के साथ बात की थी । या कुछ मैसेज वगैरह से पता चलता कि हाल फिलहाल किसके साथ ज्यादा टच में था ।"
" एक महिना से भी ऊपर हो गया लेकिन अभी तक मेरे बेटे के हत्यारे को पुलिस पकड़ नहीं पाई । मुझे तो पुलिस पर यकीन ही नही रहा । मेरा बेटा उपर से मुझे देख रहा होगा और बोल रहा होगा कि मां..मेरा हत्यारा अभी तक खुलेआम घूम रहा है ... क्या उसको सजा नहीं मिलेगी... क्या उसके हत्यारे ऐसे ही खुलेआम बेफिक्र होकर घुम रहे होंगे " - वो भावुक होते हुए रूंधे गले से बोली - " क्या मेरी आत्मा ऐसे ही भटकते रहेगी ।"
" सजा मिलेगी आंटी...जरूर मिलेगी । भगवान के घर देर है लेकिन अंधेर नहीं । आप थोड़ी हिम्मत बनाएं रखें ।"
" मैंने तो हिम्मत ही बनाए रखा है बेटा.... मैं तो बस इसलिए जिन्दा हूं कि एक बार हत्यारे को फांसी पर चढ़ते हुए देख लूं वर्ना मैं तो उसी दिन अमर के साथ ही ऊपर चली गई होती ।"
आंटी फफक कर रो पड़ी । मेरी आंखें भी भर आई । मैंने उन्हें अपने बाहों में भर लिया और उन्हें दिलासा देते रहा ।
थोड़ी देर बाद वो नोर्मल हुई । वो मुझ से अलग हो गई ।
" बेटा , मैं अपनी सारी दौलत लुटा दुंगी अपने बेटे के हत्यारे को फांसी पर चढ़ाने के लिए । तु पुलिस को पैसे खिला । और यदि तुझे लगता है कि पुलिस हत्यारे को पकड़ने में कुछ नहीं कर पायेगी तो कोई डिटेक्टिव ढुंढ । उसे पैसा दे । वो जितना मांगे मैं उतना दुंगी लेकिन उस खूनी को ढुंढे और मेरे हवाले करे । उसे मै सजा दुंगी । अपने हाथों से उसका खून करूंगी ।" - आंटी क्रोधित होकर बोली ।
" आंटी , मैं कल इसी सिलसिले में गाजियाबाद जा रहा हूं पुलिस से मिलने । और प्राइवेट डिटेक्टिव के बारे में मुझे कोई खास जानकारी नहीं है । हां इतना मैंने सुना है कि वो भले ही काम का रिजल्ट दे पाए या ना दे पाए लेकिन अपना चार्ज ले ही लेंगे और उनके चार्ज भी काफी बड़ी रकम में होती है ।"
" कुछ भी कर पर उस हत्यारे को ढुंढ । रूपए पैसे की चिंता मत कर जितना लगेगा मैं दुंगी । मेरी ये सारी जमा पूंजी , सम्पत्ति किस काम की है...जब मेरा बच्चा ही नहीं रहा तो ये मेरे किस काम की ।"
" मैं कर रहा हूं आंटी । मैं पुरे जतन से खूनी का पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं । और अब तो उस खूनी का अगला टारगेट मैं हो गया हूं ।"
" क्या ?" - आंटी ने चौंकते हुए कहा ।
" हां आंटी ।"
मैंने उन्हें मेरे और रीतु के बीच में जो बातें हुई थी , वो कह सुनाई ।
वो सुनकर चिन्तित होते हुए बोली -" मेरा एक बेटा तो चला गया और अब मैं अपने दुसरे बेटे को खोना नहीं चाहती.... एक मिनट तु बैठ , मैं अभी आती हूं ।"
ये बोलकर वो बिस्तर से उठी और अपनी अलमारी से कुछ निकाल कर वापस बिस्तर पर आकर बैठ गई । मैंने देखा वो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का उनके नाम पर चेकबुक था । उन्होंने एक चेक पर अपना साइन किया और चेकबुक से फाड़ कर मुझे दे दिया ।
" बेटा , इसमें तीन लाख रुपए भर के बैंक से उठा ले । एक लाख मुझे दे देना और बाकी तु अपने पास रख लेना । तु इन पैसों को उस हत्यारे को खोजने में लगा ।"
" ये तो काफी बड़ी रकम है आन्टी ।"
" कोई बात नहीं । और भी यदि ज्यादा पैसों की जरूरत पड़े तो मुझे बताना । "
मैंने चेक पाकेट में रख लिया ।
" बेटा , तुझसे एक बात और कहनी थी ।"
" हां आंटी बोलिए ।"
" कल तुम्हारे जीजा और बहन आ रही है तो मैं चाहती हूं कि इस बीच मैं चारों धाम दर्शन करके आ जाऊं ।"
" चारों धाम ! कौन सी चारों धाम ?" - मैं चौंक कर बोला ।
" बद्रीनाथ , केदारनाथ , गंगोत्री और यमुनोत्री ।"
" ओह ! कब जाएंगी ?"
" वो लोग कल यहां आ रहे हैं तो तु परसों की टीकट करवा दे ।"
" ठीक है आंटी.... मैं अब चलता हूं । वैसे आप को कुछ सामान वगैरह मंगवाना है ?"
" हां । कल आना , बता दुंगी ।"
मैं वहां से बाहर निकल गया ।
************
मैं बाहर निकल कर रमणीक लाल को फोन लगाया ।
रमणीक लाल करोलबाग थाने में हवलदार था । शायद ३५ से ४० के बीच उमर होगा । करप्ट पुलिसिया था । रिश्वतखोरी में फंस गया था , जिसकी वजह से काफी अरसे से सस्पेंशन में चल रहा था । एक बार उसकी कुछ लोगों के साथ पंगे के दौरान मैंने उसकी मदद की थी इसलिए वो मेरी इज्जत करता था । और मेरा दोस्त जैसा हो गया था । जबकि हमारे उम्र में काफी अंतर था । चूंकि अभी वो सस्पेंशन में चल रहा था इसलिए उसका हाथ तंग रहता था ।
" सागर बोल रहा हूं " - मैं बोला - " एक काम है , करेगा ?"
" कैसा काम ?" - रमणीक लाल ने कहा ।
" मामूली काम ।"
" अरे ! पहले काम तो बता ?"
" थोड़ा रूटीन काम है । थोड़ा लेग वर्क है , थोड़ा क्लैरिकल वर्क है । कुछ कमाई का भी जोगाड़ है ।"
" क्या बात है । लगता है कोई लाटरी लग गई है ?"
" वो सब छोड़ , काम करेगा तो हां बोल बरना..."
" अगर इल लैगल काम है तो सुन....मेरा सस्पेंशन का दौर खत्म हो गया है , मेरी नौकरी बहाल हो गई है ।"
" ये तो बहुत अच्छी खबर है । ठीक है मैं किसी और को देखता हूं ।"
" कितना देगा ?"
" रमणीक लाल , काम मेरी मर्जी का और उजरत तेरी मर्जी का ।"
" जरूर कोई मोटा बकरा काटा होगा ।"
मैं हंसा ।
" कुछ लोग की फुल बैक ग्राउंड टटोलनी है । उनके बारे में जितनी ज्यादा जानकारी हासिल हो सके , इकठ्ठा करनी है ।"
" कौन लोग ?"
" इस काम के लिए तुम्हें एक दो आदमी भी एंगेज करने पड़े तो उस की फीस भी मैं भरूंगा ।"
" जरूर , जरूर । कोई मोटा बकरा है ।"
" हां या ना बोल ।"
" हां ।"
" कागज कलम निकाल और जो बोलता हूं , उसे नोट कर ।"
" करा ।"
मैंने उन तमाम लोगों के नाम लिखाये जो इस केस से सम्बंधित थे ।
" सब नोट कर लिया ?" - फिर मैंने पूछा ।
" हां ।"
मैंने सम्बन्ध विच्छेद किया और बाइक पर बैठ कर पहाड़गंज चला गया ।