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Kaali is to marry in 3 years. Guess what happens


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prasha_tam

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Dr अमर अगले दिन शाम को 9 बजे हॉस्पिटल में से बाहर निकले तो गेट पर काली को देख कर दंग रह गए।


काली अपनी पोटली सीने से लगाए हाथ जोड़कर उसका इंतजार कर रही थी। अमर ने काली को पकड़कर अपनी गाड़ी में बिठाया और तेजी से वहां से निकल गया।


काली ने अपने हाथ बढ़ाए और अमर को उसके हजार रुपए लौटाए। अमर ने अपने माथे पर हाथ मार लिया और हक्का बक्का काली को देखता रहा।


अमर (गाड़ी सड़क किनारे लगाकर), “तुम यहां क्या कर रही हो?”


काली खुद्दारी से, “अपना सौदा पूरा कर रही हूं, मालिक। आप ने मुझे खरीदा है। अब आप का मुझ पर अधिकार है!”


अमर हजार रुपए दिखाकर लगभग चीखते हुए, “तुम अपने घर जा सकती थी!”


काली चुपके से, “मैं चोर नही हूं! नमक हराम भी नहीं!”


अमर अपने आप को काबू करते हुए दुबारा पैसे दिखाकर, “तुमने दो दिनों में कुछ खाया है?”


काली ने सर हिलाकर मना करते हुए, “आप ने बताया नहीं की पैसे किस लिए थे। मैं आप की इजाजत के बगैर कुछ नहीं कर सकती।”


अमर ने उसके हमेशा के होटल में गाड़ी रोकी। होटल में जाते ही उसके लिए खाने की थाली लाई गई। अमर ने काली के लिए भी एक थाली मंगवाई।


काली चुपके से, “आप मेरे साथ क्या करेंगे?”


अमर, “पहले खाना खाने को कहूंगा और फिर तुम्हें अपने घर ले जाऊंगा।”


काली, “आप की बीवी मुझे लेगी?”


अमर गुस्से से दबी आवाज में, “मेरी कोई बीवी नही! ना ही कभी बीवी होने वाली है!”


काली अपना सर हां मैं हिलाकर, “इसी लिए आप ने मुझे खरीदा!”


अमर, “देखो… (आस पास देख कर) इस बारे में बाद में बात करेंगे!”


दोनों चुपचाप खाना खाकर होटल से बाहर निकल गए। अमर काली को अपने घर ले आया तो काली अमर के घर को देखती रह गई।


अमर एक 1 बेडरूम हॉल किचन में रहता था पर पिछले 3 सालों से औरत का ना होना साफ दिख रहा था। अमर के लिए उसका घर बस सोने की एक जगह बन कर रह गई थी।

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अमर ने किचन में से कूड़ा सरकाते हुए काली को वहां अपना बिस्तर लगाने के लिए कहा और खुद अपने कमरे को अंदर से बंद कर सो गया। अमर को 5 साल बाद अपने घर में एक जवान लड़की का होना अजीब लग रहा था। अमर के मन में एक शैतान उसे चिढ़ा रहा था कि यह लड़की अब उसकी गुलाम है। अब अमर को देर रात को हिलाकर सोने की जरूरत नहीं।


अमर ने अपने कमरे में लगे TV पर पोर्न फिल्म लगाई और मूठ मारने लगा लेकिन काली से आवाज छुपाने के लिए उसने आवाज कम रखी। अमर हिलाने लगा पर उसे बार बार बाहर किचन में सोती काली याद आती और वह रुक जाता। आखिर में अमर ने TV बंद कर दिया और 3 सालों में पहली बार बिना मूठ मारे सो गया।


सुबह 6 बजे अमर उठा तो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। उसका पूरा घर साफ होकर चमक रहा था। किचन ऐसे सजा था मानो अभी वहां पर खाना बनाने की शुरुवात हो। किचन की फर्श पर एक पतली चुनरी फैलाए उस पर थकी हुई काली सो रही थी। जाहिर सी बात थी कि जब वह मूठ मार रहा था काली जाग कर उसके घर को साफ कर रही थी।


काली सोते हुए बिलकुल बच्ची जैसी लग रही थी। उसकी ढीली कमीज बता रही थी कि यह किसी और से मिली पुरानी कमीज थी। कमीज का गला एक ओर मुड़ने से खुला रह गया था और काली की छोटी कसी हुई चूची और उसके ऊपर का काला अंगूर साफ दिख रहा था।


अपनी वहशी नजर से मासूम काली को बचाने के लिए अमर ने नीचे देखा। सोते हुए ठंड की वजह से काली ने अपने पैरों को मोड़ कर ऊपर उठाया था। काली की कमीज उठकर उसके सांवले रंग का कसा हुआ पेट और नीचे की ओर मूढ़ता अंग अनजाने में प्रदर्शित कर रही थी। काली की कमीज की तरह उसकी सलवार भी किसी और की उतरन थी। काली की सलवार उसकी पतली गांड़ पर खींच कर चिपकी हुई थी जिसमें से अंदर की खराब पुरानी पैंटी की लकीरें दिख रही थीं।


अमर ने काली के ऊपर एक चादर डाली तो वह हड़बड़ाकर जाग गई। अमर को अपने ऊपर देख कर काली ने खुद को छोटा कर लिया और माफी मांगने लगी।

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काली, “माफ कीजिए मालिक! मैं देर तक सोई! मैं अभी चाय बनाती हूं! एक मौका और दीजिए मालिक!”


अमर को इस डर से कांपती लड़की को देख कर अपने आप पर गुस्सा आया पर अंदर से शैतान सजा के मजेदार तरीके सुझाने लगा।


अमर, “तुम्हें डरने की कोई बात नही। तुमने कल रात को काफी मेहनत की है। देखो मैं सिर्फ सुबह की चाय घर पर लेता हूं। बाकी खाना बाहर होता है। लेकिन मैं पैसे छोड़ कर जा रहा हूं। तुम अपने खाने के लिए सामान भर लो। (कुछ सोच कर) कोई पूछे तो बताना की मैंने तुम्हें घर संभालने के लिए नौकरी पर रखा है और आज रात का खाना मैं घर पर खाऊंगा।”


अमर नहाकर बाहर आया तब तक काली ने उसके लिए चाय और बिस्किट रखे। अमर के जोर देने पर काली ने भी चाय बिस्किट लिए पर वह अमर के साथ कुर्सी पर बैठने को तयार नहीं थी। अमर कुर्सी पर बैठ कर बिस्किट के स्वाद का मजा लेती मासूम काली को देखता रहा। काली चाय में बिस्किट डुबोने के लिए झुकती और उसकी कमीज के गले से काले अंगूरों की जोड़ी अमर के साथ आंख मिचौली खेलती।


अमर ने उसी पल एक और फैसला किया।


अमर, “काली, तुम्हारी पोटली दिखाना!”


काली ने अपनी पूरी संपत्ति अमर के सामने चाय की मेज पर रख दी। अमर ने पोटली में देखा तो वहां वादे के मुताबिक काली के स्कूल के कागज थे। काली 18 साल की बालिक थी जिसे अमर कल रात का जमा माल बिस्किट की तरह खिला सकता था।


अमर ने अपने शैतानी विचारों को दबाकर काली के कपड़े देखे।


अमर, “काली, अब तुम मेरी गुलाम हो तो तुम मेरी जिम्मेदारी भी हो। तुम्हें न केवल ढंग के कपड़ों की जरूरत है पर सही पोषण और पढ़ाई की भी जरूरत है।”


काली सोचते हुए, “गाड़ी में फुलवा दीदी ने कहा था कि मर्द बस औरत को चोदना चाहते हैं। क्या यह पोषण और पढ़ाई उसका हिस्सा है?”


अमर ने कराहते हुए अपने जोरों से धड़कते 7 इंची लौड़े को दबाया और घुटी हुई हंसी निकलने दी।


अमर, “मुझे भरी हुई औरत पसंद है, सुखी टहनी भी तुम्हें देख कर शरमा जाए। रही बात पढ़ाई की तो, मेरे लिए यहां कागजात आ सकते हैं जिनके लिए तुम्हें दस्तखत करने के साथ उन्हें पढ़ना भी पड़ेगा।”


काली ने अपने सर को हिलाकर हां कहा तो अमर ने काली को दोपहर को तयार रहने को कहा। आज दोपहर काली के लिए नौकरों के हिसाब से कपड़े लिए जाने थे।


अमर ने दिए सामान की सूची लेकर काली अमर के पीछे पीछे बाहर निकली और कई किलो का सामान लेकर मालिक के घर लौटी। इतना सामान और इतना पैसा उसने एक साथ कभी देखा नहीं था।


अमर दोपहर को अपने घर 3 साल बाद आया था। अमर के आते की काली ने उसे खाना परोसा और खुद नीचे बैठ कर खाने लगी। खाना खाने के बाद अमर ने काली की ठीक डॉक्टरी जांच की ओर उसे कुछ टिके लगाए। अमर ने काली से कहा की उसे अपना वजन कुछ 15 किलो बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए काली को हर रोज सब्जियों के साथ खाने में दूध और पनीर रखना होगा।


काली के लिए यह सब अजीब और नया था। पर उसे असली धक्का तो कपड़े खरीदते हुए लगा।


अमर के साथ दुकान में जाकर कपड़ों की कीमत सुनकर काली लगभग बाहर दौड़ गई। अमर ने न केवल काली के लिए कपड़े खरीदे पर दुकान में काम करती लडकी के साथ भेजकर उसके लिए छोटे छोटे कपड़े भी खरीदे। उन छोटे कपड़ों को देख कर काली समझ गई कि मालिक उसके भरने का इंतजार नहीं करने वाले।


अमर ने काली को घर छोड़ा और वापस हॉस्पिटल लौट गया। शाम को हॉस्पिटल का काफी स्टाफ आपस में बोल रहा था कि शायद बड़े डॉक्टर साहब को कोई मिल गई है। साहब आज दोपहर को बाहर गए थे और शाम को भी देर तक रुकने को तयार नहीं है। सारा स्टाफ इस बात से हैरान था पर खुश भी।


शाम के 9 बजे अमर की गाड़ी हॉस्पिटल से निकली और बिना होटल में रुके सीधे उसके घर पहुंची। अमर नहीं जानता था कि उसे क्या देखने को मिलेगा और यह उसके लिए एक अनोखी बात थी।


अमर ने अपने घर में कदम रखा तो खाने की महक ने उसे लगभग धराशाई कर दिया। अमर को देख काली शर्माकर मुस्कुराई और खाना परोसने की तयारी करने लगी। अमर ने नहाकर कपड़े बदलते हुए अपने लौड़े पर कुछ देर ठंडा पानी डाल कर उस पर काबू पाया।


काली नीचे बैठने लगी तो अमर ने उसे आदेश दिया की वह उसके साथ बैठ कर खाना खाए। दोनों खाना खाने लगे और अमर ने काली के दिनचर्या के बारे में पूछा।


काली, “दोपहर को लौटने के बाद वैसे तो काम करने के लिए कुछ बचा नहीं था। इस लिए मैंने रसोईघर में खाने की किताब पढ़ी, खाना पकाने की तयारी की, आपके कपड़े धोए और बाकी वक्त में आपका कमरा साफ़ किया।”


काली के चेहरे का रंग और उसकी आंखें बता रही थी कि उसने अमर के कमरे में चलते TV की वीडियो को देखा था। अमर ने सोचा की यह लड़की होशियार लगती है और अगर यह घर में अकेली रही तो कोई इसे फुसलाने की कोशिश कर सकता है।


अमर, “पिछले 3 साल मैं यहां अकेला था तो शायद कुछ आदतें मुझे भी बदलनी होगी! खैर, मुझे लगता है की तुम्हारी उम्र के हिसाब से तुम्हें अपनी दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर उसका इम्तिहान देना चाहिए।”


काली, “आप को अपनी गुलाम के लिए बदलने की कोई जरूरत नहीं है। मैं अपने गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों में से एक थी पर अगर आप चाहते हैं तो मैं इम्तिहान देने को तयार हूं।”


अमर मुस्कुराया और काली यह देख कर शरमा गई। अमर ने खाना खाने के बाद काली को बताया की उसे रसोई घर के फर्श पर नहीं सोना चाहिए और जब काली खाने के बर्तन रखने रसोई में गई तो उसने सोफे पर काली के सोने की जगह बनाई।


अमर बिना कुछ कहे अपने कमरे में चला गया और अपने बेड पर लेट कर छत को ताकने लगा। एक जवान लड़की पर मिल्कियत होना ऐसी ताकत थी जिसे काबू में रखना बेहद मुश्किल था। अमर ने अपनी आंखे बंद कर ली पर उसके सामने काली का बदन आ रहा था। अमर की तड़पती जवानी उसे यह सोचने पर मजबूर कर रही थी कि काली बिना उन मैले पुराने कपड़ों की कैसी होंगी।


अमर ने अपने मन को काबू में रखते हुए आह भरी जब उसे अपने कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज आई। अमर ने सोचा की काली कल सुबह के नाश्ते के बारे में पूछने आई थी तो उसने अपनी आंखें खोल कर अपने आप को तड़पाने से रोक लिया।


अमर आंखें बंद रख कर, “क्या हुआ काली?”


काली ने उसके बगल में खड़े होकर चुपके से, “मैं रसोई घर का काम कर चुकी हूं। क्या मुझे गद्दे पर सोना है?”


अमर गहरी सांस लेकर, “हां, तुम्हें आज से गद्दे पर ही सोना है।”


काली चुपके से, “मालिक, मैं तयार हूं!”


अमर काली की बात से चौंक गया और उसकी आंखे खुल गई। अमर के सामने काली खड़ी थी और अमर के अंदर का शैतान नाचने लगा।


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Superb ... Keep it up
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Lefty69

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अमर का गला सूख गया था और लौड़ा फुल गया था। काली हिचकिचाते हुए bed के किनारे बैठ गई और अमर ने उसे खींच कर अपने नीचे दबाने की आस को बड़ी मुश्किल से काबू किया।


अमर घुटि हुई आवाज में, “तुम क्या कर रही हो?”


काली अपने अधनंगे बदन पर हाथ फेरते हुए, “आप ही ने यह कपड़े मुझे दिलाए थे! मैं आप के हुकुम से गद्दे पर सोने आई हूं।”


अमर ने अपने लौड़े पर अपनी चादर दबाकर, “बाहर सोफे के गद्दे पर तुम्हारे सोने का इंतजाम कर दिया है। तुम वहां सो जाओ!”


काली सोचते हुए, “तो वह जो TV पर आप कल रात देख रहे थे वह आप मेरे साथ नहीं करना चाहते? (अमर ने सर ना में हिलाकर झूठ कहा) क्या आप को साहूकार की तरह लड़के पसंद हैं?”


अमर चौंक कर, “नहीं!… देखो काली… तुम कुंवारी हो। तुम्हारी पहली… तुम किसी खास के साथ अपना पहला अनुभव… मतलब…”


काली की आंखों में आंसू भर आए। उसने अपना सर झुकाकर हां कहा।


काली, “मैं समझ गई। फुलवा दीदी की झिल्ली भी एक डॉक्टर ने 2 बार सील कर उसे तीन बार कुंवारी बनाकर बेचा था। आप भी मुझे बेचने के लिए लाए हो!”


काली उठने लगी तो अमर ने उसे पकड़ कर अपने पास बिठाया।


अमर, “काली, मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैं तुम्हें नहीं बेचने वाला। लेकिन मैं अब दुबारा शादी नहीं करने वाला और तुम्हारा पहला अनुभव किसी ऐसे के साथ होना चाहिए जो तुम्हारे साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजरे।”


काली, “क्या आप की बीवी के पास जाने से पहले आप लड़की से अंजान थे?”


अमर, “नहीं, कॉलेज में मेरी girlfriend थी।”


काली, “क्या वह लड़की कुंवारी थी?”


अमर सवालों की दिशा पहचानकर, “नहीं! पर इसका मतलब…”


काली, “तो अमीर लोगोंको पहली बार की अहमियत नहीं होती? या यह अहमियत सिर्फ मेरे लिए है?”


अमर गुस्से में, “आखिर चाहती क्या हो मुझसे?”


काली गहरी सांस लेकर, “मुझे यकीन दिलाइए की आप मुझे रण्डी बना कर बार बार नहीं बेचेंगे!”


अमर, “वही तो कर रहा हूं! ठीक है, बताओ क्या करने से तुम्हें विश्वास होगा?”


काली डरकर, “मेरी झिल्ली फाड़ दीजिए। मुझे बिकने लायक मत रखना! मैं आप की गुलाम हूं, मुझे अपना बनाइए!”


अमर की सब्र का बांध टूट रहा था। उसके अंदर का जानवर सामने की मादा पर झपटने के लिए गुर्रा रहा था।


अमर गहरी सांस लेकर, “काली, अगर मैं तुम्हारे साथ वह सब कर दूं तो तुम पेट से हो सकती हो। (दिमाग तेजी से दौड़ते हुए) कोई अपनी गुलाम से बच्चा नहीं चाहता और मैं दुबारा शादी नहीं करने वाला! इस लिए मैं तुम्हें नहीं ले सकता।”


काली चुपके से, “गांव में भी बच्चा गिराए जाने के बारे में मैंने सुना है। बच्चा ना होने के लिए दवा भी होती है।”


अमर डॉक्टर की तरह समझाते हुए, “बच्चा गिराना बेहद दर्दनाक और खतरनाक काम होता है। गोलियां आसन और सुरक्षित होती हैं पर उन्हें मासिक धर्म शुरू होने पर शुरू करना होता है। गोलियों को असर करने में एक महीने का वक्त लगता है। समझी?”


काली, “इसका मतलब, आप मेरी दूसरी मासिक धर्म के बाद मेरी झिल्ली फाड़ेंगे।”


अमर काली को टालते हुए, “उस से पहले तुम्हारे साथ करना मेरे लिए खतरनाक होगा।”


काली, “क्या औरत की झिल्ली फाड़े बगैर मर्द मजा ले सकते हैं? (अमर को हक्काबक्का देख कर) TV की औरतें मर्द के साथ कई तरीके से करते हुए दिखी।”


अमर जानता था कि जवान लड़की अगर इस सवाल का जवाब ढूंढने निकले तो जवाब देने के लिए मर्दों की कतारें लग जाएंगी।


अमर, “देखो, मर्द जब औरत के साथ वह काम करता है तो उसके गुप्त अंग में से एक रस निकलता है। इस रस से औरत को गर्भ रह जाता है और उसके निकलने पर मर्द को खुशी या संतोष का अनुभव होता है। जब औरत नहीं होती या औरत उस रस को अपने अंदर लेकर खतरा मोल नहीं लेना चाहती तब रस को अलग तरह से निकालकर मर्द संतोष का अनुभव कर सकता है।”


काली, “क्या आप मुझे दिखाएंगे की आप को बिना औरत के संतोष कैसे मिलता है?”


अमर हिचकिचाया तो काली, “आप को मेरा चेहरा पसंद नही तो आप TV लगा कर वह देख सकते हो। मुझे बुरा नहीं लगेगा।”


अमर, “काली, तुम जैसी हो, अच्छी हो! मैने ऐसे कभी…”


काली, “कॉलेज की लड़की के सामने कभी किया नहीं था? या बीवी के सामने?”


अमर, “किया था पर…”


काली, “मैं पराई हूं… आप जिसे बेचोगे उसे यह अनुभव मिलना चाहिए…”


अमर, “रुको!!… ठीक है!!… (अपनी अंडरवियर उतार कर) सिर्फ देखना! कुछ भी करना मना है!”



अमर के 7 इंच लंबे 3 इंच मोटे खंबे को छत की ओर इशारा करते हुए देख कर काली दंग रह गई थी।


काली, “मेरे छोटे भाई का इतना सा है, आप का ऐसे कैसे हो गया?”


अमर हंसकर, “जवानी के साथ इंसान के बदन में कुछ बदलाव होते हैं। तुम भी तो कुछ बदली होगी?”


काली ने अपने हाथ को बढ़ाकर एक उंगली से लौड़े के जड़ के नीचे की चिकनी त्वचा को छू लिया और अमर ने ऐसे आवाज निकली मानो उसे जल गया हो।


काली, “मेरे यहां पर काफी घने और घुंगराले बाल हैं। क्या मर्दों को नहीं होते?”


अमर, “मेरी कॉलेज गर्लफ्रेंड को उन से तकलीफ होती थी तो मैंने उन्हें साफ करना शुरू किया।”


काली सोचते हुए, “उन बालों से भला क्या तकलीफ होती है? आपका भी मासिक धर्म में खून निकलता है क्या?”


अमर, “नहीं!! चूसते हुए उसके नाक में गुदगुदी होती थी और कभी कभी मुंह में बाल आ जाते थे!”


काली की फैली आंखें और खुला मुंह बता रहा था की अमर ने यह बता कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी।


अमर, “बहुत हुआ!… बाहर जाकर सो जाओ!!”


काली ने अपने सर को झुकाया और बाहर चली गई। अमर देर तक करवटें बदलता रहा पर नींद उस से कोसों दूर थी। आखिरकार थक कर आधे घंटे बाद अमर बाहर गया तो उसने देखा की काली नीचे जमीन पर बैठी अपने घुटनों को अपने सीने से लगाकर सिसक रही थी।

अमर ने काली के कंधे पर हाथ रखा तो वह चौंक कर देखने लगी। काली की आंखों से बहते आंसू देख अमर पिघल गया।


काली, “माफ करना मालिक! मैं आप को जगाना नहीं चाहती थी।”


अमर, “तुमने मुझे नहीं जगाया। बताओ, क्यों रो रही हो?”


काली, “मुझे अकेले में डर लगता है।”


अमर ने कुछ देर के लिए सोचा और फिर गहरी सांस लेकर मानो हिम्मत जुटाई। अमर ने कपड़ों के थैली में से एक गाउन निकाला और काली को कैसे पहनना है वह दिखाया।


अमर, “तुम मेरे साथ मेरे गद्दे पर सो सकती हो पर मुझे बिल्कुल छूना नही! समझी?”


काली ने गाउन पहन कर अपना सर हिलाकर हां कहा।


जब अमर पेशाब कर अपने गद्दे पर लौटा तो काली गद्दे के एक कोने में दूसरी तरफ मुंह कर लेटी हुई थी। अमर भी चुपचाप लेट गया।


दोनों को पता भी नहीं चला की कब नींद उन पर हावी हो गई।
 

Lefty69

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