अध्याय 6
कटप्पा
'अगली बार ऐसा धूर्त कार्य करने से पहले इसे याद रखना,' कहते हुए मलयप्पा ने शिवप्पा के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। कटप्पा पास ही सिर झुकाये परछाईं को देखता शांत खड़ा था। उनके सिर के ऊपर सूर्य गर्म गोला बनकर तप रहा था। 'परन्तु उसने मुझे ललकारा था।' भाई का तीक्ष्ण स्वर सुन कटप्पा चौक उठा। शिवप्पा सही कह रहा था, परन्तु उसकी भी तो गलती थी। सही से कहीं अधिक वह गलत था। पिता बेहतर जानते थे। 'तुम अपनी औकात भूल गये थे,' मलयप्पा ने कहा। 'उसे भी तो राजकुमार से भिड़ने के लिए एक गुलाम बालक को नहीं ललकारना चाहिए था,' शिवप्पा गुस्से में रोता हुआ बोला। 'तुम्हें हार जाना चाहिए था, मूर्ख।' उसके पिता ने एक तमाचा और जड़ दिया। एक और जोरदार तमाचा। 'जीतने के लिए आप मुझे नहीं पीट सकते,' शिवप्पा क्रोध में चिल्लाया। एक क्षण के लिए वहां शांति फैल गयी। जब कटप्पा ने सिर ऊपर उठाया, तो देखकर कांप उठा। उसके छोटे भाई ने पिता का हाथ पकड़ रखा था, और दोनों एक-दूसरे को देखते हुए मूर्ति बनकर खड़े थे। कटप्पा को घूरता देख शिवप्पा ने पकड़ ढीली कर दी। पिता भारी कदमों से वहां से चले गये। कटप्पा ने देखा कि उनकी आंखें क्रोध से लाल थीं। 'नन्ना,' कटप्पा ने पुकारा, परन्तु पिता बगैर उसकी ओर देखे कदम आगे बढा़ते गये।
'अन्ना, मैं...' शिवप्पा की आवाज आयी। कटप्पा ने हाथ ऊपर उठाते हुए भाई को रोक दिया। वह अपनी आंखें बंद किये खड़ा था। भाई और पिता के बीच तनाव हर रोज बढ़ता जा रहा था और वह प्रायः बीच में फंस जाता। कटप्पा चिंतित था कि किस प्रकार उस दिन राजकुमारों के ऊपर जान-बूझकर हाथी खोलने की बात को वह अस्वीकार कर रहा था। भाई के बढ़ते इस अजीब व्यवहार से वह परेशान हो गया था। 'अन्ना, महामंत्री हिरण्य ने ही मुझे राजकुमार महादेव से द्वंद्व के लिए चुनौती दी थी। मैं जीत गया तो क्या इसमें मेरी गलती है?' कटप्पा भाई की ओर मुड़ा और गहरी सांस भरते हुए बोला, 'इसका यह अर्थ नहीं था कि तुम्हें पूरा बल लगाकर खले ना था। राजकुमार महादेव के बारे में तुम जानते हो कि वह-' 'कायर हैं,' कहते हुए शिवप्पा हंसने लगा। 'वे सब हैं। वे कायर हैं और बहादुरों सा आचरण करते हैं क्योंकि हम उन्हें ऐसा करने की अनुमति देते हैं। वे महत्वपूर्ण बन जाते हैं क्योंकि हम, अपने मस्तिष्क में, सोचते हैं कि हम उनसे कमतर हैं। सिर्फ इसलिए कि हमारी चमड़ी का रंग काला है और उनका गोरा।' 'चुप,' कटप्पा ने उसे रोक दिया। वह जानता था कि शिवप्पा आगे और क्या बोलने वाला था। उसे भय हो रहा था कि अगर अधिक देर तक उसने छोटे भाई को सुना तो वह भी उसकी तरह सोचना शुरू कर देगा। संभवतः उसके पिता भी इसी बात से भयभीत थे। उसने छोटी कटारों व चाबुक वाली तलवारों का पुलिंदा उठाकर कंधे पर रखा और ढलान से नीचे उतरने लगा। शिवप्पा भी उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए दौड़ पड़ा। 'हम कब तक गुलाम बने रहेंगे? अन्य देशों में स्वतंत्र लोग हैं।
अपनी फसल का एक हिस्सा दो और राजा आपको अपना जीवन जीने की मुक्ति दे देता है। अथवा वनों में उन महिलाओं-पुरुषों को स्वतंत्रता प्राप्त है, जो किसी राजा के आगे सिर नहीं झुकाते।' 'परन्तु अल्पायु में ही फांसी चढा़ दिये जाते हैं या राजा के हाथी के पैरों तले कुचल दिये जाते हैं,' कटप्पा ने तेज सांसें भरते हुए कहा। 'जैसे महाराज के आदेश पर यहां कोई मारा ही न गया हो। प्रत्येक भूमिपति स्वयं में एक कानून है। शासन करने वाले वर्षा के बाद कुकुरमुत्तों की भांति गांव-गांव पैदा होते जा रहे हैं। एक गोड़ा और सब्जी काटने का चाकू रखने वाला भी खुद को 'महावीर' कहने लगा है। राजा कुछ धन और प्रशंसा के बदले पदों को बेच रहा है। और हम तुच्छ आम जनों में स्त्री-पुरुष कोई भी मुक्त नहीं है। कुत्तों का भी जीवन इससे उन्नत है।' 'इसी प्रकार की बातें करते रहे तो एक दिन अपना सिर धड़ से अलग पाओगे । कोई आश्चर्य नहीं कि नन्ना तुम्हारे बारे में चिंतित रहते हैं।' 'उन्हें अपने सिर की चिन्ता करनी चाहिए। हमारे कितने पूर्वजों की मृत्यु सामान्य तरीके से हुई है?' शिवप्पा ने थप्पड़ सा मारा। कटप्पा के पास कोई उत्तर न था। अपने पूर्वजों द्वारा माहिष्मती साम्राज्य के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का यशगान सुनते वह बड़ा हुआ था। ये गाथाएं तीन सौ वर्ष पूर्व प्रथम राजा के सिंहासन पर विराजमान होने जिनती प्राचीन थीं। कहानियों में ही उसने सुना था कि अपनी अठारह पीढ़ी पूर्व उसके अपने लोग भी मुक्त हुआ करते थे और खुद को गौरीपर्वत का पुत्र कहते थे। 'तुम यह गट्ठर उठाने में मेरी सहायता क्यों नहीं करते?'
कटप्पा ने पूछा। 'अन्ना, तुम्हारे लिए, मैं यह करूंगा। दूसरे जनों का भार उठाना मुझे पसन्द नहीं,' एक गट्ठर अपने सिर पर रखता हुआ शिवप्पा बोला। आगे बढ़ने पर शिवप्पा ने फिर पूछा, 'अन्ना, हम गुलाम क्यों हैं?' 'यही हमारी नियति है,' कटप्पा धीरे से बोला। 'हम अपनी नियति क्यों नहीं बदल सकते?' 'शिवप्पा, मुझे तुम्हारे इन विचारों से भय होने लगा है। तुम नन्ना का हृदय तोड़ दोगे। उन्हें लगता है कि तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है।' कटप्पा ने भाई पर आंखें तरेरते हुए कहा। उसे छोटे भाई की व्यंग्यपूर्ण मुस्कान अच्छी नहीं लगी थी। 'भविष्य? क्या गुलामों का भी कोई भविष्य होता है, अन्ना?' किसी राजकुमार के मूत्र के पात्र को उठाना क्या भविष्य कहलाता है? जब वह किसी किसान की पुत्री से बलात्कार करे तो मूक बनकर खड़े रहना और फिर तौलिया देना ताकि वह अपना यौन अंग साफ कर सके, क्या इसे भविष्य कहते हैं? उनके पापों को छिपाना क्या भविष्य कहलाता है? एक जानवर की भांति मर जाने को क्या भविष्य कहते हैं? नहीं, धन्यवाद। मैं अपना भविष्य स्वयं बना लूंगा।' कटप्पा भयभीत था। कुछ गुलाम दबे मुंह कहते थे कि उसके भाई की मित्र मंडली कुछ अजीब है। इस प्रकार की बातें करने के लिए वह अभी बहुत छोटा था। जब कटप्पा उसकी आयु का था, तब उसने पिता की कही बातों के अलावा कुछ और सोचने की हिम्मत तक न की थी। उसके पिता कहा करते थे कि एक गुलाम के पास सोचने का अधिकार नहीं होता। गुलाम से केवल सेवा की अपेक्षा होती है और यदि आवश्यकता पड़े तो मालिक के लिए जान तक न्योछावर करने की। वे शस्त्रागार के पिछले द्वार पर पहुंच चुके थे। गुप्त शस्त्रों को जमा कराने के बाद कटप्पा को शीघ्रता से बिज्जल के कक्ष जाना था। 'अन्ना, इसे पकड़िये,' कहते हुए शिवप्पा ने कटप्पा का इंतजार किये बगैर गठरी नीचे छोड़ दी। तलवारों के जमीन पर गिरने से उत्पन्न हुई खनखनाहट से शस्त्रागार के मुंशी की नींद टूट गई। जम्हाई लेते हुए उसने गुलाम बालक की ओर अनमने ढंग से देखा। 'मैं अब आपकी आज्ञा चाहूंगा,' शिवप्पा बोला। कटप्पा कोई प्रतिक्रिया दे पाता, उससे पहले ही वह गायब हो गया। कटप्पा पागलों की भांति इधर-उधर उसे देखने लगा। कुछ दूरी पर एक लड़की जमीन पर झाड़ू लगाती दिखी। वह क्रोध से लाल हो गया। पिता ने शिवप्पा को कई बार मना किया कि उस लड़की से बात न करे। कटप्पा ने प्रण किया कि जब अगली बार पिता उसके भाई पर चाबुक चलाएंगे तो वह चुपचाप खड़ा रहेगा। उसका दुष्ट भाई चाबुक खाने योग्य ही है। 'सुना है, तुम्हारे भाई ने छोटे राजकुमार की नाक तोड़ दी?' मुंशी ने तलवारों की गणना कर ताड़पत्र पर कुल संख्या अंकित करते हुए कहा। 'वह... वह एक दुर्घटना थी,' कटप्पा हकलाते हुए बोला। उसका ध्यान प्रांगण में लड़की से बतियाते उसके भाई की ओर था। मुंशी की नजर भी कटप्पा की आंखों का पीछा करते हुए उन दोनों पर पड़ी और वह मुंह बंद कर हंसने लगा। 'तुम्हारा वह भाई बहुत सयाना है। सच तो यह है कि वह कुछ ज्यादा ही सयाना है!' मुंशी कनिष्ठ अंगुली कान में डालता बोला। 'क्या वह यहां अक्सर आता है, स्वामी?' कटप्पा ने मुट्ठी बांधते हुए पूछा। वह भाई को पकड़कर घसीटते हुए घर ले जाना चाहता था। 'वे प्रायः साथ देखे जाते हैं। हर कोई चर्चा करता है—एक गुलाम लड़का और कुलीन घराने की एक लड़की।' गठरी से तलवारें निकालकर दीवार पर टांगते हुए मुंशी बोला। 'वह किसी हरामजादे की पुत्री है, स्वामी,' इससे पहले कि उसकी सांसों की दुर्गंध से मुंशी अपवित्र हो, कटप्पा ने अपने मुख को हथेली से ढंकते हुए कहा। 'ओहो, परन्तु किस हरामजादे की? भूमिपति पट्टराय के हरामजादे भाई की। कृष्णा, कृष्णा, मुझे नहीं पता कि भूमिपति पट्टराय की क्या प्रतिक्रिया होगी, जब वह इस बारे में सुनेंगे,' अंतिम कटार दीवार पर टांग कर हाथ घोते हुए मुंशी ने कहा। विधिपूर्वक उसे ऐसा करना पड़ता था क्योंकि उसने गुलाम कटप्पा की तलवारों को हाथ लगाया था। इस पाप के लिए वह घर जाकर अपनी पत्नी को पीटने से पूर्व स्नान भी करेगा। कटप्पा ने मन ही मन विचार किया। हे ईश्वर! शिवप्पा के शब्द उसके विचारों को अब तक संक्रमित कर चुके थे। 'स्वामी, यदि भूमिपति को चिन्ता होती तो वह अब तक अनाथालय में रहकर झाडू न दे रही होती,' कटप्पा ने कहा। उसका भाई लड़की का हाथ पकडे़ हुए था और इतनी दूर से भी उसे लड़की शर्म से झेंपती नजर आ रही थी।
'बालक, खून खून ही होता है। धन का इससे कोई लेना-देना नहीं। लड़की के पिता की मृत्यु के बाद, संभव है भूमिपति पट्टराय ने सोचा हो कि उसके पालन-पोषण के लिए राजकीय अनाथालय ही उचित स्थान होगा। परन्तु बात जब खून पर आती है तो... परन्तु... इसमें तुम्हारे भाई का भी क्या दोष? क्या तुमने लड़की के वक्षों का उभार देखा है? बड़े आमों जैसे!' अपनी पौत्री की आयु वाली बालिका पर बुरी नजर डालते हुए बूढ़े मुंशी ने कहा। 'गुलाम बालक, क्या तुम उसका नाम जानते हो?' आह, कामाक्षी, कामुक नयनों वाली! सत्रह वर्ष की अवस्था में ही उसके शरीर के अंग-अंग से रस टपकता है... राम, राम, मैं यह सब इस वृद्ध अवस्था में क्यों कह रहा हूं? अभी, तुम्हारा भाई एक गुलाम बालक से अधिक बांका छैला है, परन्तु ईश्वर ने उसे कितनी कम आयु प्रदान की है।' कटप्पा ने क्रोध में मुट्ठी भींच ली। अपने भाई के बारे में ऊलजलूल बाले ने पर वह मुंशी का सिर दीवार पर पटक देना चाहता था। लेकिन पिता का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ गया। वह शिवप्पा जितना बुद्धिमान तो नहीं था, परन्तु उसे अपने आज्ञाकारी और अनुशासनबद्ध होने पर गर्व था। उसने स्वयं पर काबू रखा, मुंशी के आगे सम्मान में झुका और शस्त्रागार परिसर से बाहर आ गया। उसका भाई अभी भी अपनी प्रेमिका के साथ खड़ा था, और बड़े आराम से उससे विदा ले रहा था। कटप्पा को देर हो रही थी और इसीलिए वह परेशान था। परन्तु जाने से पहले वह भाई से कुछ बात कहना चाहता था। हाथों को पीछे बांधता-खोलता, संकरी गली का चक्कर काटता वह द्वार के निकट खड़ा हो उसकी प्रतीक्षा करने लगा।
गली के दूसरी ओर पाठशाला में ब्राह्मण बालक उच्च स्वरों में वेदों का मंत्रोच्चार कर रहे थे, और वह उनके शब्द पढ़ने में प्रयासरत था। क्रोध को शांत करने के लिए कुछ भी सही। अंततः, जिस समय तक शिवप्पा आया, परछाइयां बड़ी हो चली थीं और पश्चिम से हवा तेज बहने लगी थी। शिवप्पा आत्मसंतुष्ट व प्रसन्न नजर आ रहा था कि कटप्पा को प्रतीक्षा करता देख उसका मुख खुला का खुला रह गया। 'अन्ना, क्या आपके पास कोई कार्य नहीं है? उस पियक्कड़ राजकुमार के पैरों की मालिश करने जैसा?' शिवप्पा ने तंज कसते हुए कहा। कटप्पा ने इस अपमान को अनदेखा कर दिया। शिवप्पा ने यह जानने के लिए पीछे मुड़कर देखा कि कामाक्षी जा चुकी है अथवा नहीं। 'नन्ना तुम्हें पहले ही चेतावनी दे चुके हैं,' कटप्पा बोला। शिवप्पा नीचे देखते हुए फुसफुसाया, 'मैं उससे प्रेम करता हूं।' कटप्पा यह कई बार सुन चुका था। 'और इससे निष्कर्ष क्या निकलेगा?' 'मैं जल्द ही उससे ब्याह रचाऊंगा,' शिवप्पा बोला। विरोध के इस स्वर से कटप्पा भीतर तक कांप उठा। 'जाग जाओ, शिवप्पा! तुम ऐसा नहीं कर सकते,' भाई का कंधा झकझोरते हुए कटप्पा ने कहा। 'क्यों नहीं?' शिवप्पा उसका हाथ झटकते हुए बोला और कुछ कदम पीछे हट गया। 'क्योंकि... राजा तय करते हैं कि हम किससे और कब ब्याह करेंगे और यदि...' 'कोई राजा मेरे जीवन का निर्णय नहीं करेगा। मैं उससे ब्याह रचाऊंगा।' 'ब्याह के लिए अभी तुम बहुत छोटे हो।' 'मैं उसे एक बच्चा देने लायक बड़ा हो गया हूं। बस इतना पर्याप्त है।' कटप्पा ने उसके चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया। शिवप्पा को पीड़ा से अधिक आश्चर्य हुआ। उसने अपने भाई को कभी क्रोधित होते नहीं देखा था। 'अगली बार तुमने यदि किसी महिला के बारे में अनुचित शब्द कहे तो मैं तुम्हारी जीभ बाहर खींचने में संकोच नहीं करूंगा।' क्रोध से कटप्पा चिल्लाया। उसके भाई ने मुख दूसरी ओर मोड़ लिया और कहा, 'मेरा... ऐसा कोई मतलब नहीं था। यह सिर्फ...।' एक क्षण के लिए कटप्पा को अपने भाई के चेहरे पर अपराध बोध नजर आया परन्तु शीघ्र ही वह पुनः अपनी आक्रामक मुद्रा में लौट आया। 'आप क्यों नहीं समझते कि मैं उससे प्रेम करता हूं? आप इस प्रकार क्यों अभिजात और महान होने का अभिनय कर रहे हैं? मैंने पहली बार प्रेम को जाना है। इससे पूर्व मैं केवल अनुशासन, कर्तव्य, नियमों को सुनता आया हूं... मैं ऊब चुका हूं। आप मुझे अब और नहीं बांध सकते। आप यह निर्णय नहीं करेंगे कि मैं क्या करूं और क्या न करूं। मैं सदैव एक गुलाम बनकर क्यों रहूं?' कटप्पा ने उत्तर देना आवश्यक न समझते हुए कदम आगे बढ़ा दिये लेकिन शिवप्पा ने उसकी कलाई पकड़ ली। 'मेरे प्रश्नों का उत्तर दिये बिना आप नहीं जा सकते।' 'मेरे पास कोई उत्तर नहीं है। और न ही मैं इन हानिकारक प्रश्नों से अपने दिमाग को मुसीबत में डालता हूं। भाड़ में जाओ! तुम क्या करते हो, मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, ' स्वर ऊंचा करते हुए कटप्पा बोला। दोनों भाई एक-दूसरे को घूर रहे थे। शाम की पवन ने दिशा बदल ली थी और सूखी पत्तियां उन पर उड़-उड़कर गिर रही थीं। कटप्पा ने शस्त्रागार द्वार बंद करने की आवाज सुनी और शीघ्र ही मुंशी अपने घर जाता दिखा। बूढ़े मुंशी ने जैसे ही शिवप्पा को देखा, मुंह बिगाड़ते हुए भद्दी टिप्पणी की। शिवप्पा की आंखों में क्रोध उतर आया। कटप्पा ने भाई की ओर घूरकर देखा तो वह शांत हुआ। वे बूढ़े मुंशी के रास्ता पार करने तक प्रतीक्षा करने लगे। वह उस वेश्या का गीत गुनगुनाता जा रहा था, जो एक बार में एक हाथी, एक घोडा़ , एक बैल और इक्कीस पुरुषों के साथ सोयी थी। कटप्पा वहां से चल पड़ा। उसकी हथेली अभी भी झनझना रही थी और उसे दुख हो रहा था कि छोटे भाई को उसने इतनी जोर से थप्पड़ मारा। 'मुझे क्षमा कर दो, अन्ना,' पीछे से आती शिवप्पा की आवाज ने उसके कदम थाम दिये। छोटा भाई आकर उसके गले से लग गया। कटप्पा को अपने कंधे पर भाई के आंसू गिरते जान पड़ रहे थे। 'हमारी हर वस्तु, हमारी तलवार, हमारे वस्त्र और यहां तक कि हमारा जीवन भी हमारे मालिकों का है। सम्मान को छोड़ हमारे पास अपना कुछ भी नहीं है, शिवा। क्या तुम ऐसे आचरण से यह सब व्यर्थ कर दोगे, भाई?' कहते हुए कटप्पा की आवाज भारी हो गयी थी। 'परन्तु कुलीन वर्ग के लोग भी महिलाओं के बारे में इसी प्रकार से बात करते हैं,' शिवप्पा ने सिसकियों के बीच कहा। कटप्पा मुस्कुरा दिया। उसका भाई यह बात कहते हुए किसी नन्हे बच्चे जैसा लग रहा था। क्या यह वही लड़का था जो अभी कुछ देर पूर्व उस अभिजात लड़की के साथ ब्याह रचाने की बातें कर रहा था?' 'इस तरह बात नहीं करने का एक और बड़ा कारण है, शिवा। तुम्हें कैसा प्रतीत होगा यदि तुम्हारी मां के बारे में कोई ऐसा बोले?' कटप्पा ने धीरे से कहा। 'हमारी मां मर चुकी है,' भाई ने कहा और कटप्पा सन्न रह गया। उसकी आंखें नम हो गईं और उसने होंठ भींच लिये। उसे अपनी मां को बीच में नहीं लाना चाहिए था। कटप्पा की भांति उसका भाई भी इस झटके से उबर नहीं पाया था। एक बैलगाडी़ हिलती-डुलती उनके पास से गुजरी। बैल ठीकठाक गति से आगे बढ़ रहे थे, फिर भी गाड़ी हांकने वाला उनकी पीठ पर चाबुक चलाए जा रहा था। 'उन बैलों को देख रहे हो, भाई। हम भी उनके जैसे हैं। हम भी अपने मालिकों की गाड़ियां तब तक खींचेंगे जब तक कि हमारे पांव जवाब नहीं दे जाते,' कटप्पा बोला। बैलगाड़ी की आवाज धीरे-धीरे लुप्त हो गई। 'और जब हमारे पांव जवाब दे जाएंगे, तो वे हमारा कीमा बना देंगे।' शिवप्पा के स्वर में गुस्सा लौट आया था। 'हां, मृत्यु के बाद भी हमारी उपयोगिता बनी रहनी चाहिए। भोजन के रूप में, मालिक के जूतों के चमड़े के रूप में, मालिक की तलवार की म्यान के रूप में। सूखे में जीने वाले बैल का जीवन कितना अर्थहीन है,' कटप्पा ने कहा। उसका भाई उससे दूर हट गया। 'मैं किसी का पशु बनकर नहीं रहूंगा,' शिवप्पा बोला। कटप्पा प्रतिक्रिया देता कि उसके भाई ने पास के खेत में छलांग लगा दी।
धान के पौधों में लगभग गायब वह घुटने तक मिट्टी में घुस गया था। कटप्पा ने उसे बाहर निकालने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। 'शिवप्पा, भाई...' 'नहीं, अब बस। तुम मुझे भी बर्बाद कर दोगे। मैं जा रहा हूं,' शिवप्पा बोला और पलक झपकते ही धान के पौधों के बीच गायब हो गया। 'तुम कहां जा रहे हो? तुम इस तरह नहीं भाग सकते, शिवा। मैं पिता को क्या उत्तर दूंगा?' चिल्लाते हुए कटप्पा भी खेत में कूद पडा़ । उसके भाई का कुछ पता न था। शिवप्पा को अपना रास्ता पता था। उसने अवश्य ही इसकी योजना बना रखी होगी। कटप्पा को अपना क्रोध फिर जागता प्रतीत हुआ। उसके भाई ने उसे मूर्ख बना दिया था। 'शिवा, रुक जाओ। खेत में काले सर्प हैं,' कटप्पा पुकार रहा था। 'कुछ मनुष्यों से अधिक विषैला और कोई नहीं होता,' उसके भाई का उत्तर आया। 'तुम कहां जा रहे हो?' पौधों की हलचल से भाई तक पहुंचने के रास्ते का अनुमान लगाता कटप्पा चिल्लाया। 'मुक्ति की ओर।' उसके भाई की आवाज किसी हथौड़े सी उसके सिर पर पड़ी थी। कटप्पा ने कोसा। सूर्य डूब रहा था और खेत सुनहरी फसल की लहरों वाले समुद्र सरीखे दिख रहे थे। उसके भाई का कुछ अता-पता न था। कटप्पा नहीं जानता था कि वह पिता को क्या जवाब देगा। वह कैसे बताएगा कि शिवप्पा भाग गया था? वह जानता था कि भागने वाले गुलाम के साथ वे क्या करते थे? जल्द ही महामंत्री हिरण्य के खूंखार कुत्ते उसे ढूंढ़ रहे होंगे। राजा के आदेश पर दंडकार उसकी तलाश में निकल चुके होंगे ताकि भगोड़े को पकड़कर नजदीक के पेड़ पर टांगा जा सके। जल्द ही उसके सिर पर पुरस्कार घोषित हो जाएगा और फिर पूरे के पूरे गांव उसके भाई को खोजने में जुट जाएंगे। कटप्पा के पैर कमजोर पड़ने लगे थे। मार्ग पर चढ़ते हुए वह लड़खड़ा गया था। उसने महल की ओर दौड़ना शुरू कर दिया। सूर्य पश्चिम के आकाश में जलते गोले सा दिख रहा था और रात्रि पूरब की ओर से बढ़ती चली आ रही थी। उसे पिता से मिलना था और उन्हें किसी भी प्रकार से शिवप्पा को वापस लाना था। इससे पहले कि काफी देर हो जाए।